दीदी तुम जीती मैं हारा complete

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rangila
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Re: दीदी तुम जीती मैं हारा

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अब स्नेहा दीदी के चेहरे पर हवाइयां उड़ने लगी । उन्हें कुछ समझ नहीं आ रहा था कि क्या चल रहा है ।

दीदी : " समीर , ये सब क्या है ? तुम्हें कहाँ से मिली ये फोटोज ? "

मैंने दीदी की तरफ देखा और बोला, " दीदी , आय ऍम सॉरी ! लेकिन ये आदमी फ्रॉड है । इसकी पहले से ही शादी हो चुकी है और एक 2 साल की बेटी भी है ।
मैं कल इसके गांव गया था वहीँ से ये सब जानकारी लेकर आया हूँ । आगे आप खुद इससे पूछ लो । "

और मैं थोड़ी दूर जाकर एक बेंच पर बैठ गया ।
मैं जहाँ बैठा था वहां से उन्हें सिर्फ देख सकता था , बातें साफ़ साफ़ नहीं सुनाई नहीं दे रही थी ।

दीदी ने राजन से कई सवाल किये , उनकी आँखों में आंसू थे और चेहरे पर गुस्सा ।

राजन ने कुछ जवाब दिया तो दीदी ने उसका कॉलर पकड़ के झंझोड़ दिया । राजन ने गुस्से में दीदी के हाथों को अपने कॉलर से झटक दिया ।
पर दीदी ने फिर से उसके कॉलर को पकड़ लिया और शायद उसे कुछ गालियां देने लगी ।
राजन ने दोबारा से दीदी का हाथ पकड़ कर ज़ोर से झटका और पीछे को धकेल दिया तो दीदी नीचे गिर पड़ी ।

अब मुझसे रहा नहीं गया । मैं उठा और राजन को पीछे से हाथ पकड़ कर खींचा और एक ज़ोरदार थप्पड़ उसके गाल पर दे मारा ।
वो लड़खड़ा के दो चार कदम पीछे हो गया , फिर मुझे गालियां बकने लगा।
मैंने दीदी को कंधो से पकड़ कर उठाया तो दीदी ज़ोर ज़ोर से मेरे सीने में अपना मुंह छुपा कर रोने लगी ।

मैंने राजन को चेतावनी दी , " साले , अब अगर तू मेरी दीदी के आस पास भी दिखा ना , तो मैं तेरी हड्डी पसली एक कर दूंगा ।"
राजन मुझे देख लेने की धमकी देता हुआ पार्क से बाहर चला गया ।

मैं दीदी को लेकर बेंच पर बैठ गया और काफी देर तक उन्हें दिलासा देता रहा । उनके बालों को सहलाता रहा जोकि अब लम्बे होकर उनके कंधे तक हो गये थे ।

काफी देर तक मैं दीदी को समझाता रहा और दीदी रोती रही । बड़ी मुश्किल से दीदी के आंसू बंद हुए और मेरी तरफ देखते हुए बोली , “ थैंक्स समू ! ”

मैंने कहा , “ इट्स ओके दी ! मैं हमेशा आपके साथ हूँ, हमेशा ! ”

फिर दीदी बोली ," इस आदमी पर मैंने कितना विश्वास किया था और इसने मेरे साथ इतना बड़ा धोखा किया । "
कहते कहते दीदी फिर रो पड़ी ।

मैंने उनके आंसू पोंछते हुए कहा , “ अब छोडो ना दीदी ! ऐसे बेकार लोगों के लिए क्यों अपनी आँखों के मोती गंवाती हो ।”
दीदी मेरी बात सुन कर कुछ नार्मल हुई ।

पार्क में बैठे बैठे हमें अँधेरा हो चुका था ।
मैंने कहा , “ अब घर चलें या यहीं पार्क में मच्छरों से कटवाओगी ? ”

दीदी के चेहरे पर हलकी से एक मुस्कान आयी और बेंच से उठते हुए बोली , “ चलो , चलते हैं ।”

दीदी को मुस्कुराता देख मैंने कहा , “ ये हुई ना बात , देखो तो हँसते हुए कितनी प्यारी लगती हो ।”

दीदी ने प्यार से मेरे कंधे पर एक हाथ मारा और मेरा हाथ पकड़ के अपना सर मेरे कंधे से टिका कर चलने लगी ।
मुझे तो ऐसा लग रहा था जैसे मुझे मेरी प्यारी दी वापस मिल गयी हो । मैं अंदर ही अंदर बहुत खुश था पर दीदी का दिल यूँ टूटने का अफ़सोस भी था ।

घर आकर दीदी ने माँ को सब कुछ बता दिया पहले तो माँ बहुत उदास हुई । फिर इस बात की उसे ख़ुशी हुई कि जल्द ही सच्चाई सामने आ गयी ।

मैंने खाना खाया और अपने कमरे में आ गया । और अपने लैपटॉप पर नेट सर्फिंग करने लगा । दीदी किचन का काम निबटा रही थी और माँ अपने कमरे में सोने चली गयी थी ।
मैं भी 1 घंटे तक नेट सर्फिंग के बाद सोने ही जा रहा था तभी दीदी मेरे कमरे में आयी।

दीदी : " समू , सो गया क्या ? "

मैं : " नहीं दी , बस सोने ही जा रहा था । अब आप ठीक तो हो ना । "

दीदी :" हम्म …बस ठीक हूँ । "

मैं : " मैं समझ सकता हूँ दी , आपके ऊपर क्या बीत रही होगी । दिल टूटने के दर्द का अहसास है मुझे । "

दीदी मुस्कुरायी : " अच्छा किस लड़की ने तोड़ा दिल तेरा , बता मुझे ? "

मैं : " है एक लड़की । तुम उसे अच्छे से जानती हो । "

और दीदी को जब अहसास हुआ कि मैं उनकी ही बात कर रहा हूँ तो उनके चेहरे के भाव बदल गए और वो एकदम से सीरियस हो गयी ।
मैंने उनका हाथ पकड़ कर अपने पास बैठाते हुए कहा , ” खैर छोडो दी उस लड़की को । आप अपनी बताओ ।”

दीदी धीमे स्वर में बोली ," तू अब भी उस लड़की से प्यार करता है ? "

मैंने उनकी आँखों में आँखें डाल कर कहा , “ हाँ दी !! और मरते दम तक करता रहूँगा ।”

स्नेहा दीदी थोड़ी देर खामोश रही और कमरे के एक कोने को घूरती रही । फिर दीदी की आँखों से झर झर आंसू बहने लगे ।

मैंने अपने हाथ से उनके आंसू पोछते हुए कहा , “अरे ये क्या ! लगता है मैंने अपनी प्यारी दीदी को फिर रुला दिया ।”

स्नेहा दीदी एक गहरी सांस लेते हुए बोली , ” नहीं रे पगले इसमें तेरा कोई कसूर नहीं । ये तो सब किस्मत का कसूर है । ”
वो आगे बोली , ” अजीब ही दस्तूर हैं ज़माने के । जिसे चाहो वो मिलता नहीं और जो तुम्हें चाहे उसे अपना नहीं सकते । ये कैसे रस्म - ओ - रिवाज़ हैं ।”

मैंने जवाब दिया , ” दी ! अगर ख़ुशी चाहिए तो ये रस्म - ओ - रिवाज़ों को तोड़ डालो ।”

दीदी ने चौंक कर मेरी तरफ देखा ।
मैंने आगे कहा , ” यहाँ किसे तुम्हारी परवाह है जो तुम ज़माने की परवाह करती हो ।अपनी खुशियों की बलि चढाती हो , किस के लिए ।
सच तो ये है दी कि ज़माने की दुहाई देकर हम अपनी खुशियों का गला खुद ही घोंट रहे हैं ।”

दीदी मेरी बात से थोड़ी संतुष्ट सी नज़र आने लगी थी ।
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rangila
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Re: दीदी तुम जीती मैं हारा

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दीदी बोली , “ शायद तू ठीक कह रहा है ।…anyway.... चल बहुत रात हो गयी है , अब तू सो जा । गुड़ नाईट ।”

और दीदी बेड से उठ कर जाने लगी ।

मैंने उनका हाथ पकड़ा और वापस बेड पर बैठाते हुए बोला , ” दीदी एक बात बोलूं ? प्लीज बुरा तो नहीं मानोगी ।”

दीदी बोली , ” बोल ना , क्या बात है ? ”

मैं : " प्लीज ! आज मेरे साथ यहीं पर सो जाओ ना । "
दीदी ने चौंक कर मेरी तरफ देखा और मेरी आँखों में मिन्नत का भाव देख कर बोली , ” ठीक है ! पर कुछ गड़बड़ नहीं करना ।”

मैं खुश होते हुए बोला , ” प्रॉमिस दी ! कुछ गड़बड़ नहीं होगी ।”

और दीदी वहीँ मेरी बगल में लेट गयी ।
मैंने उनका सर उठा कर अपने सीने पर रख लिया और उनके बालों में उंगलियां फिराने लगा ।

मैं : " दीदी प्लीज ! उदासी छोड़ो । उस कमीने के लिये और आंसू बहाने की ज़रूरत नहीं है । मैं आपके लिए बहुत अच्छा लड़का ढूंढूंगा ।
जो आपको बहुत बहुत प्यार करेगा और आपका बहुत ख्याल रखेगा । "

दीदी मेरी बातें सुन कर मुस्कुरा दी और मेरे माथे पर चुम्बन लेकर फिर से मेरे सीने पर सर रख के लेट गयी ।

मैंने भी दीदी के सर पर किस किया और बोला, ” दी प्रॉमिस करो । अब आप कभी नहीं रोयेंगी ।”

दीदी ने अपने हाथ से मेरा सीना सहलाते हुए कहा , “ अगर तू मेरा ऐसे ही ख्याल रखेगा तो कभी नहीं रोऊँगी । आई प्रॉमिस !! ”

हम ऐसे ही काफी रात तक बातें करते रहे और मैं दीदी की पीठ , गरदन , बालों और गालों को धीरे धीरे सहलाता रहा और कब नींद आ गयी पता ही नहीं चला ।

अगले दिन मैंने देखा दीदी ऑफिस जाने के लिये तैयार ही नहीं हुई है । तो मैं दीदी के पास गया और पूछा , ” दी क्या बात है ? आज ऑफिस नहीं जाना क्या ? ”

दीदी ने थोड़ा उदास होते हुए कहा , “ मेरा मन नहीं हो रहा था तो मैंने 4 दिन की छुट्टी ले ली है। वैसे भी वहां उस कमीने राजन की शकल देखने से तो अच्छा है , मैं कुछ दिन घर पर आराम करूँ ।”

मैं : ” idea तो अच्छा है दी । पर उसे भी कब तक avoid करोगी। एक ना एक दिन तो सामना करना ही पड़ेगा ।”

दीदी : “ तब का तब देखा जाएगा । फिलहाल तो मेरा ऑफिस जाने का मूड नहीं है ।”

मैं : “ ok as u wish…चलो मैं तो ऑफिस निकलता हूँ , देर हो रही है । bye ”

दीदी : bye

आज ऑफिस में काम करने में मेरा बिलकुल मन नहीं लग रहा था । बस मन कर रहा था कि जल्दी से छुट्टी हो और दीदी के सामने पहुँच जाऊं ।
मुझे बार बार दीदी का ही ख्याल आ रहा था । मैं तरह तरह के दीदी के साथ वक्त गुजारने के बहाने खोज रहा था ।
अचानक मेरे दिमाग में एक आईडिया आया , क्यों न मैं दीदी को कहीं घुमाने ले जाऊं । दीदी का मन भी बहल जायेगा और मुझे भी दीदी का भरपूर साथ मिलेगा ।
मैंने ऑफिस से 3 दिन की छुट्टी ले ली ।

रात को खाना खाते वक्त मैंने माँ से कहा , " माँ , चलो मैं तुम लोगों को कहीं घुमा के लाता हूँ । ”

माँ चौंकते हुए बोली , “ ये तुझे क्या हुआ । पहले तो कभी तूने हमें घुमाने का नहीं सोचा ।”

मैं : " ओहो माँ ! पहले नहीं सोचा तो अब तो बोल रहा हूँ । अब चलो । "

माँ : " देख बेटा , मुझे तो कहीं नहीं घूमना इस बुढ़ापे में । तुम दोनों चाहो तो चले जाओ ।"

मैंने दीदी की तरफ देखा और पूछा , " तो बताओ दीदी कहाँ चलना है ? "

दीदी : " मेरा मन नहीं है , तू अकेला ही चला जा । "

माँ : " ओहो ! अब तू भी मत जा , बेचारा कितना खुश होकर बोल रहा था ।"

मैं : " ठीक है न माँ । किसी को नहीं जाना तो ज़बरदस्ती थोड़े ही है ।"

और मैं गुस्से में उठ कर अपने रूम में आ गया ।

दीदी दौड़ी दौड़ी मेरे पीछे आयी और मुझे पीछे से आलिंगन में भरते हुए बोली ," ओके बाबा , आय एम सॉरी !
मैं तो यूँ ही तुझे चिढ़ाने के लिये बोल रही थी । बता ना कहाँ चलना है । ”

मैं खुश होते हुए बोला , ” मनाली चलते हैं । यहाँ से ज़्यादा दूर भी नहीं और जगह भी अच्छी है ।”

दीदी : " ठीक है । कब चलना है ? "

मैं : " सुबह सुबह निकलते हैं । आप अपना सामान पैक कर लो । कुछ गरम कपडे ज़रूर रख लेना । "

दीदी ने मेरे गाल पर एक चुम्बन लिया और “ ठीक है " कह कर चली गयी ।

हम अगली सुबह मनाली के लिए निकल पड़े और 3 दिन तक वहां रहे । हमने मनाली में बहुत मस्ती की , खूब शॉपिंग की । स्नेहा दीदी मनाली आकर बहुत खुश हुई और मुझे उन्हें खुश देख कर बहुत अच्छा लग रहा था । हम दोनों एक ही रूम में रुके और रात को एक दूसरे के आलिंगन में ही सोते थे । पर सेक्स जैसी कोई बात हमारे बीच नहीं हुई । मैं ये निश्चय कर चुका था कि स्नेहा दीदी मेरे प्यार को खुद कबूल करेगी तो ठीक , नहीं तो अब अपनी तरफ से कोई पहल नहीं करूँगा ।

मनाली से वापस आने के बाद स्नेहा दीदी बहुत खिली खिली सी रहने लगी थी और मैं भी दीदी की छोटी छोटी ज़रूरतों का ख्याल रखने लगा था । जैसे जैसे समय गुज़र रहा था दीदी के प्रति मेरा प्यार और गहरा होता जा रहा था पर वक्त को शायद ये मंज़ूर नहीं था ।
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Re: दीदी तुम जीती मैं हारा

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एक दिन माँ ने मुझे बुला कर कहा , “ देख समू ! बहुत हुई मस्ती , अब कुछ आगे का सोचो । या तो अपने लिए कोई लड़की ढूँढ या फिर दीदी के लिए कोई लड़का । किसी एक की शादी तो देख के जाऊँ मैं , अब मेरी उम्र का क्या भरोसा । "

मैंने माँ को आश्वासन दिया कि दीदी के लिये जल्दी ही मैं कोई लड़का ढूंढ़ता हूँ ।
कुछ दिन बाद , डिनर करते हुए मैंने मज़ाक में यूँ ही दीदी को चिढ़ाने के लिये कहा, “ माँ ! एक लड़का देखा है ।”

माँ ने उत्सुकता से पूछा , ” अच्छा कौन है , क्या करता है ? ”

मैंने स्नेहा दीदी की ओर देखा तो दीदी के चेहरे को अजीब सी उदासी ने घेर लिया था ।

मैंने माँ के सवाल का जवाब दिया , “ है एक लड़का । मेरे बैंक में एक साथी का रिश्तेदार है ।”

माँ ने खुश होते हुए पूछा , “ अच्छा करता क्या है ? तू बात आगे बढ़ा ।”

मैं : " अभी ज़्यादा कुछ मालूम नहीं है । पर मैं पता करता हूँ , फिर आपको बताऊंगा । "

माँ बोली , " हाँ ठीक है । जल्दी पता कर के बताना ।"

मैंने हामी में गरदन हिलायी और स्नेहा दीदी की तरफ देखा । दीदी अपना खाना खत्म कर चुकी थी ओर थोड़ी नाराज़ सी लग रही थी । उन्होंने मुझे घूर के देखा ओर उठ कर किचन में चली गयी ।

मेरी कुछ समझ नहीं आया , मैं भी उठ के अपने रूम में आ गया ओर माँ भी अपने कमरे की ओर चली गयी ।
करीब डेढ़ घंटे बाद दीदी मेरे कमरे में आयी , तब तक मैं सो चुका था ।

उन्होंने मुझे जगाया , “ समू ! समू ! ”

मैं हड़बड़ा के उठा और स्नेहा दीदी को देख कर चौंकते हुए बोला , “ दी ! क्या हुआ ? ”

दीदी मेरे बेड पर बैठते हुए बोली , “ तुझसे बात करनी है ।”

मैं : " क्या बात है बोलो ? "

दीदी : " कौन लड़का है ?"

मैं : " कौन ?"

दीदी : "वही जिसकी बात तू , माँ से कर रहा था ।"

मैं : “ अरे वो ! मेरे एक साथी का रिश्तेदार है । ”

दीदी : " देख समू ! मैं अभी शादी नहीं करना चाहती ।"

मुझे अचानक जैसे झटका लगा , “ क्या ? शादी नहीं करना चाहती ? पर क्यों ? "

दीदी : " वो …वो … बात ये है की मेरा अभी मन नहीं है शादी का ।"

मैं : " पर दीदी , मैं भी तो वही पूछ रहा हूँ । मन क्यों नहीं है ? कोई तो वजह होगी ? ”

दीदी : " मुझे नहीं पता । बस अब मेरा मन नहीं है और मेरे लिये लड़का देखने की कोई ज़रूरत नहीं है ।"

मैं : " पर पहले तो आप ....................दीदी मुझे नहीं समझ आ रहा , आखिर आप ऐसा क्यों बोल रही हो ? "

दीदी : " मैंने बताया ना , बस मेरा मन नहीं है ।"

मैं : " या फिर कोई और बात है जो आप मुझसे छुपा रही हो ? "

स्नेहा दीदी थोड़ी देर चुप रही फिर बोली , " नहीं और कोई बात नहीं है ।"

मैं : " कहीं ऐसा तो नहीं कि राजन को अभी आप भूल नहीं पा रही हो ।"

दीदी अचानक गुस्सा होते हुए बोली , “ उस कमीने की बात मत करो । मेरे दिल में उसके लिए सिर्फ नफ़रत है ।”

मैं : " ओके ! ओके ! दीदी शांत हो जाओ ।"
दीदी कुछ नार्मल हुई तो मैंने फिर पूछा , “ दी पक्का कोई और बात नहीं है ? ”

दीदी फिर कुछ देर के लिए खामोश हो गयी और फिर धीमे से स्वर में बोली , “ नहीं कोई और बात नहीं है । बस तुम लोगों को छोड़ कर जाने का मेरा मन नहीं हो रहा ।”

मैंने प्यार से स्नेहा दीदी के सर के बालों को सहलाया और बोला , “ दीदी मन तो हमारा भी नहीं है तुम्हें खुद से अलग करने का । पर याद है ना मैंने पहले कहा था कि ज़माने का यही दस्तूर है । ”

दीदी फिर थोड़ा सा नाराज़ होते हुए बोली , “ भाड़ में जाये ज़माना । ”

मैं : " वो सब तो ठीक है दी , पर माँ को क्या कहोगी ? "

दीदी : " मैं माँ को भी समझा लूँगी । "

मैं : " ठीक है फिर , जैसे आपकी मर्ज़ी । मैं आगे से कोई लड़का नहीं देखूंगा , सब कैंसिल । ”

स्नेहा दीदी के चेहरे पर थोड़ी सी चमक आयी और वो बेड से उठते हुए बोली , “ ओके ! तुम सो जाओ , अब मैं चलती हूँ ।” और दीदी मुड़ कर जाने लगी ।

मैंने पीछे से दीदी को टोका “ दीदी !! ”

दीदी के कदम रुक गए वो पलटी और मुझसे पूछा , “ हैं ? ”

मैंने अपने बेड पर लेटे लेटे कहा , “ अगर प्यार है तो छुपाती क्यों हो ? खुल कर बोलती क्यों नहीं ? ”

स्नेहा दीदी का चेहरा शर्म से झुक गया और वो मुझे “गुड़ नाईट ” बोलकर पलट कर कमरे से बाहर चली गयी ।

कुछ दिन बाद , एक सुबह माँ मेरे कमरे में आयी । मैं ऑफिस जाने के लिए तैयार हो रहा था ।

माँ : " समू , तेरी मौसी के देवर की बेटी की शादी है , उनका फ़ोन आया था । उन्होंने हम सब को वहां बुलाया है । "

मैं : " माँ आपको जाना है तो आप दीदी को साथ ले जाओ । मैं छुट्टी नहीं ले सकता , पहले ही बहुत छुट्टियां हो चुकी हैं । "

माँ : " मुझे पता था मेरे साथ कोई नहीं जाएगा । चल कम से कम मुझे ट्रेन में तो बैठा सकता है या उतना भी टाइम नहीं है तेरे पास । "

मैं : " ओहो माँ कैसी बात कर रही हो । कब जाना है आपको ? "

माँ : " अभी 10 बजे की ट्रेन है और तू बस मुझे ट्रेन में बैठा दे । वहां तो कोई ना कोई मुझे लेने आ ही जायेगा ।"

मैं : " ठीक है माँ । चलो आपका सामान कहाँ है ? मैं आज ऑफिस थोड़ा लेट चला जाऊंगा । "

माँ : " तू चल पहले नाश्ता कर ले । मैं अपना सामान लेकर आती हूँ । "

नाश्ता करने के बाद मैंने स्नेहा दीदी की तारीफ की , “ वाह दीदी क्या परांठे बनाये हैं । कसम से मज़ा आ गया ।”

दीदी मुस्कुराते हुए बोली , " चल झूठे ! ऐसे तो मैं हमेशा ही बनाती हूँ ।"

मैं : " हाँ पर आज आपकी मुस्कान ने इसे और भी टेस्टी बना दिया ।"

दीदी हँसते हुए किचन में चली गयी और माँ अपना सामान लेकर कमरे से बाहर आ गयी । मैं माँ को स्टेशन छोड़ने चल दिया ।
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Kamini
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Re: दीदी तुम जीती मैं हारा

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