वतन तेरे हम लाडले complete

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shubhs
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Re: वतन तेरे हम लाडले

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rajsharma
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Re: वतन तेरे हम लाडले

Post by rajsharma »

rajsharma wrote: 11 Aug 2017 15:34



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अमजद के लिए मौत को गले लगाना कोई मुश्किल काम नहीं था, वह बहुत बार मौत के मुंह से बच कर वापस आया था मगर अगली बार वो पहले से ज्यादा मुश्किल और घातक मिशन खुशी से करने के लिए तैयार हो जाता था। लेकिन हर बार वह अपनी जान जोखिम में डाल कर निडर होकर लड़ता था, लेकिन आज पहली बार उसे अपनी मौत का बैठकर इंतजार करना पड़ रहा था जहां वह न तो दुश्मन पर हमला करने की स्थिति में था और न ही अपने बचाव का कोई उपाय कर सकता था, अगर वह कुछ कर सकता था तो वह था सिर्फ मौत का इंतजार। और यही इंतजार उसके लिए भयानक था। अगर कर्नल इरफ़ान उसकी कनपटी पर पिस्टल रख कर उसको कह देता कि मेजर राज का पता बता दो नहीं तो मौत को गले लगा लो तो शायद अमजद खुद ही गोली चला लेता मगर मेजर राज का पता नही बताता, मगर इस तरह असहाय बैठ कर मौत का इंतजार करना बहुत यातनादायक था। कभी वह काशफ के बारे में सोचता तो कभी सरमद के बार में, वह नहीं जानता था कि काशफ ज़िंदा है या फिर कर्नल इरफ़ान ने उसे शहीद कर दिया ??? और सरमद के बारे में भी उसे पता नहीं था कि वह गिरफ्तार हो चुका है या फिर उसने अपने बचाव का कोई उपाय किया है ??

समीरा अमजद को अपनी जान से ज्यादा प्यारी थी, उसने समीरा को अपनी छोटी बहन की तरह पाला था, और वो ऐसे किसी भी मिशन में समीरा को जोड़ते हुए घबराता था, मगर समीरा के अलावा वह किसी और पर भरोसा नहीं कर सकता था इसीलिए मजबूरन वह समीरा को अपने साथ रखता। लेकिन इस समय वह समीरा से बेफिक्र था क्योंकि वह जानता था कि मेजर राज के साथ समीरा को कोई खतरा नहीं, मेजर राज समीरा की रक्षा कर सकता था, लेकिन सरमद की ओर से वह खासा चिंतित था। कर्नल इरफ़ान कमरे से गए खासी देर हो चुकी थी, शायद पूरा दिन बीत चुका था मगर अमजद को इस बात का राज नहीं था, वह तो बस एक अंधेरे कमरे में कैद था जहां बाहर होने वाले मामलों की उसको पता नहीं था। कुर्सी पर बैठे बैठे अमजद को अब तकलीफ होने लगी थी, ना जाने कब से वह इसी कुर्सी पर बंधा हुआ था और तो और पिछले काफी घंटों से न तो अमजद को पानी पीना नसीब हुआ था और न ही खाने को कुछ मिला था। परेशानी के कारण उसका गला सूख रहा था मगर उसको यहाँ पानी देने वाला कोई नहीं था।

अमजद ने 2, 3 बार चिल्लाकर पानी भी मांगा मगर उत्तर में उसको ना तो कोई आहट सुनाई दी और न ही कोई उसे पानी पिलाने आया। आज अमजद को महसूस हो रहा था कि मौत का इंतजार करना मौत को गले लगाने से कितना मुश्किल काम था। अब काशफ और सरमद के बारे में ही सोच रहा था कि उसको कमरे से बाहर कुछ कदमों की आवाज सुनाई दी। अब अमजद के चेहरे पर हल्की सी मुस्कान आई वह समझ गया था कि शहादत का समय अब आ रहा है। इतनी देर से जो वह यातनादायक प्रतीक्षा कर रहा था वह इंतजार खत्म होने को है, कर्नल इरफ़ान की पिस्टल से अब एक गोली चलेगी और अमजद के सीने से पार हो जाएगी, और वह एक सैनिक को बचाने की खातिर अपनी जान की बलि देकर शहादत के रुतबे पर आसीन हो जाएगा। इस सोच ने अमजद के अंदर एक अजीब सी हिम्मत पैदा कर दी थी। अब कर्नल इरफ़ान उसके शरीर के टुकड़े कर डालता तब भी वो उससे कुछ उगलवा नहीं सकता था।

क़दमों की आवाज़ अब खासी करीब आ चुकी थी। कमरे के भीतर ज़ीरो का एक बल्ब जल गया था जिससे कमरे में कुछ प्रकाश पैदा हुआ था, तो कमरे का दरवाजा खुला और रस्सियों में जकड़ा व्यक्ति औंधे मुंह अंदर आ गिरा ... उससे पीछे एक और व्यक्ति था वह भी रस्सियों से बंधा हुआ था और एक आदमी उसे बालों से पकड़कर खींचता हुआ अमजद के पास ले आया था। रस्सियों में जकड़ा यह व्यक्ति अमजद के पास आया तो अमजद ने उसको पहचान लिया था। ये सरमद था जिसके चेहरे पर इस समय अनगिनत घाव थे और उसकी आंखें सूजी हुई थीं मगर आश्चर्यजनक रूप से उसके चेहरे पर एक विजयी मुस्कान थी। अमजद को देखकर उसने बहुत मुश्किल से बोलना शुरू किया और महज इतना ही कहा: कुछ नहीं उगलवा सका यह कुत्ता मेरे मुंह से।

सरमद के मुंह से यह बात सुनकर अमजद के चेहरे पर भी एक विजयी मुस्कान आ गई थी। वह आगे बढ़कर सरमद को गले लगाना चाहता था मगर अफसोस कि अपनी कुर्सी से उठने के लायक नहीं था वह अब अमजद ने नीचे गिरे हुए व्यक्ति को देखा जो अब तक औंधे मुंह पड़ा था अमजद ने ध्यान से उसको देखा तो उसे भी पहचान लिया, यह काशफ था, मगर उसकी हालत बहुत बुरी थी। कर्नल इरफ़ान ने उस उत्पीड़न के पहाड़ तोड़ दिए थे, अमजद की नजर जब काशफ के पैर पर पड़ी तो उसके होश फाख्ता हो गए, उसकी टांग पर बहुत ज्यादा खून जमा हुआ था और अब भी थोड़ा सा खून उसकी टांग से रिस रहा था । उसके साथ कर्नल इरफ़ान खड़ा था जिसके चेहरे पर दुख और गुस्से के स्पष्ट संकेत देखे जा सकते थे। उसको शायद अपनी विफलता का गुस्सा था कि इन तीनों में से किसी से भी वह ये नहीं उगलवा सका था कि आखिर मेजर राज और समीरा इस समय कहाँ है?

कर्नल इरफ़ान के साथ 2 लोग और थे मगर इस बार वह हंटर वाली हसीना कर्नल के साथ नहीं थी कमरे की रोशनी अब कर्नल इरफ़ान के कहने पर ऑन कर दी गई थीं। रोशनी ऑन होने के बाद अमजद ने अब फिर काशफ देखा तो पता चला कि आखिर काशफ के साथ हुआ क्या है। उसकी टांग में ड्रिल मशीन के माध्यम से छेद किया गया था। उसने अपना दाहिना पैर फ़ोल्ड कर रखा था जबकि बाएं पैर को वह धीरे धीरे जमीन पर मार रहा था। मगर उसका बाकी पूरा शरीर स्तब्ध था, उसका चेहरा नीला हो रहा था और उसके कपड़े फटे हुए थे। काशफ की यह हालत देखकर अमजद की आँखों में खून उतर आया था। उसका बस नहीं चल रहा था कि वह अब अपनी जगह से उठे और कर्नल इरफ़ान के टकड़ टुकड़े कर डाले ...... मगर अफसोस कि वह इस समय कुछ नहीं कर सकता था। कर्नल इरफ़ान के साथ आए बाकी दो लोगों ने अब काशफ को जमीन से उठाया और अमजद के साथ एक और कुर्सी पर बिठा दिया जबकि सरमद अब तक खड़ा था मगर वह रस्सियों में जकड़ा हुआ था वह अपनी मर्जी से ज़्यादा हरकत नहीं कर सकता था सिवाय छोटे छोटे कदमों के साथ धीरे धीरे चलना। इसलिए कर्नल इरफ़ान को उससे कोई खास खतरा महसूस नहीं हो रहा था।

कर्नल इरफ़ान ने अभी अमजद से कहा और बोला ये अपने दोस्त की हालत देख रहे हो ??? मुझे सब कुछ सच सच बता दो कि मेजर राज इस समय कहाँ है अन्यथा। । । । । । । । इससे पहले कि कर्नल इरफ़ान का वाक्य पूरा होता अमजद ने एक जोरदार व्यंग्य का ठहाका लगाया तो कर्नल इरफ़ान कुछ गुस्से और कुछ आश्चर्य मिश्रित प्रतिक्रिया के साथ उसे देखने लगा। अमजद बोला कर्नल किस को डरा रहे हो? मेरे दोस्त की हालत तुम्हारे सामने है, जब वह तुम्हारा बर्बर अत्याचार सहन कर गया और तुम उससे कुछ न उगलवा सके तो तुम्हें ऐसा क्यों लगता है कि मैं तुम्हारे अत्याचार को सहन नहीं कर पाउन्गा और तुम्हें कुछ बताऊँगा ....


अमजद की बात सुनकर उसके साथ खड़े सरमद ने भी एक ठहाका लगाया और कुर्सी पर बैठे काशफ ने भी अपनी धीमी और पीड़ा से भरपूर आवाज में एक व्यंग्य का ठहाका लगाया। तीनों को ठहाके लगाते देखकर कर्नल इरफ़ान को अपना अपमान महसूस हो रहा था . वह सोच भी नहीं सकता था कि काशफ को इस हालत में देखने के बाद अमजद में हिम्मत बाकी रहेगी, उसका विचार था कि अमजद सब कुछ उगल देगा काशफ की यह हालत देखकर। मगर यहां तो मामला ही उलट था, वह तीनों तो एक दूसरे को देखकर खुश हो गए थे और उनमें पहले सा साहस आ चुका था, और तो और काशफ जिसके पैर में कर्नल इरफ़ान छेद कर चुका था और उसमें बोलने तक की हिम्मत नहीं थी उसका चेहरा नीला हो रहा था और उसके शरीर से खून निचोड़ लिया गया था वह भी व्यंग्य के ठहाके लगा रहा था।


दोस्तो ये सिर्फ़ पुराने वाकये को याद करना था

अब आगे .................


अमजद हैरानगी के साथ कर्नल इरफ़ान चेहरे के बदलते रंग देख रहा था और उसके चेहरे से नज़र आने वाली परेशानी अमजद के लिए ख़ुशख़बरी की प्रतीक थी। अमजद समझ गया था कि मेजर राज कोई न कोई ऐसा काम कर गया है जिससे कर्नल इरफ़ान को गहरी चोट लगी होगी, उसको इस बात से कोई उद्देश्य नहीं था कि वह यहां से जिंदा निकल सकता है या नहीं, इसको बस इस बात की खुशी थी कि मेजर राज ने कर्नल इरफ़ान के लिए कोई बड़ी मुश्किल खड़ी कर दी है जिसकी वजह से वह परेशान है और अमजद के लिए यही काफी था कि शहीद होने से पहले वह कर्नल इरफ़ान को इस तरह परेशान देख रहा था। कर्नल ने जैसे ही कॉल अटेंड की और राफिया से पूछा कि क्या बात है तो उसने कर्नल को बताया कि इमरान ने आपसे कोई बात करनी है उसे मदद चाहिए, और इमरान यानी मेजर राज राफिया से फोन लेकर कमरे से बाहर निकल गया था। मेजर राज ने फोन पर हैलो कहते ही बड़े अजीब तरीके में कर्नल इरफ़ान को ससुर जी कह कर संबोधित किया और उसका हाल पूछा जिस पर कर्नल इरफ़ान को काफी गुस्सा आया क्योंकि कर्नल इरफ़ान के पास अब तक इमरान की स्थिति महज एक साधारण से लड़के की थी जिसने राफिया की जान बचाई और अब भी वह एक अंगरक्षक के रूप में राफिया के साथ मुर्री में मौजूद था

कर्नल इरफ़ान ने थोड़े कर्कश स्वर में इमरान को कहा कि बोलो क्या बात है कैसी मदद चाहिए? तो आगे से मेजर राज अपने विशिष्ट स्वर में बोला कि कर्नल साहब आपके पास इस समय जो मेरे साथी हैं अमजद, काशफ और सरमद, उनकी रिहाई के संबंध में आपकी मदद की जरूरत थी .... इमरान के मुंह से इन लोगों का ज़िक्र सुनते ही कर्नल इरफ़ान का मस्तिष्क सुन्न होने लगा, एक पल को तो वो समझ ही नहीं सका था कि इमरान ऐसी बात क्यों कर रहा है और उसे कैसे पता अमजद और उसके साथियों के बारे में, लेकिन साथ ही कर्नल इरफ़ान के मन में एक झमाका सा हुआ कि कहीं यह व्यक्ति जिसने राफिया को अपना नाम इमरान बताया है मेजर राज का कोई साथी न हो, या फिर ऐसा भी मुमकिन है कि यह खुद मेजर राज ही हो। इससे पहले कि कर्नल इरफ़ान कुछ बोलता मेजर राज कर्कश स्वर में बोला, सुनो कर्नल, तुम्हारी इकलौती बेटी इस समय मेरे साथ है और हम दोनों एक ही बेड पर सोए हैं, और उसको मुझ पर पूरा भरोसा है, अगर 10 मिनट के भीतर आप ने मेरे साथियों को न छोड़ा तो फिर कभी तुम अपनी बेटी की शक्ल नहीं देख पाओगे। और हाँ .... सुनो, मेरा नाम इमरान नहीं, मेजर राज है। और मैं अब तुम्हारी बेटी राफिया को अपने साथ लेकर जा रहा हूँ, अगर तुमने राफिया के मोबाइल के माध्यम से मेरा पीछा करने की कोशिश की या मेरे साथियों को रिहा करने के बाद उनका पीछा करने की कोशिश की तो अपनी बेटी की मौत के जिम्मेदार तुम खुद होगे। और यह मत समझना कि अपनी निष्क्रिय आईएसआई के एजेंट को हमारे पीछे लगा कर तुम हमें पकड़ सकते हो, हमारे साथी तुम्हारी और तुम्हारी टीम की निगरानी कर रहे हैं, अब चुपचाप मेरे साथियों को छोड़ दो और उन्हें कश्मीर तक जाने का रास्ता भी प्रदान करो, कश्मीर पहुंचने तक अगर उन पर कोई आंच आई तो मुसीबत तुम्हारी बेटी पर टूट पड़ेगी, जब वह खैरियत से कश्मीर पहुंच जाएंगे तो तुम अपनी बेटी को सही सलामत देख सकोगे। तब तक के लिए बाय बाय

मेजर राज ने यह कह कर फोन बंद कर दिया और कर्नल इरफ़ान क्रोध और बेचारगी की मिलीजुली स्थिति में केवल इतना ही कह सका नहीं तुम ऐसा नहीं कर सकते .... लेकिन मेजर राज फोन बंद कर चुका था और कर्नल इरफ़ान अब कभी बंद फोन की तरफ देखता तो कभी सामने बैठे अमजद को देखता उसकी समझ में नहीं आ रहा था कि क्या करे। काफी देर तक वह इसी दुविधा में रहा, अमजद के चेहरे पर मुस्कान थी वह यह तो नहीं जानता था कि फोन पर किसने बात की और क्या बात की, लेकिन कर्नल इरफ़ान की परेशानी उसके लिए राहत का सामान तैयार कर रही थी। इससे पहले कि कर्नल इरफ़ान कुछ बोलता उसे फोन पर फिर से एक बेल बजी। यह मैसेज टोन थी, कर्नल इरफ़ान ने तुरंत मैसेज पढ़ा तो राफिया के नंबर से राज का मैसेज था जिसमें लिखा था कर्नल इरफ़ान 5 मिनट हो गए आपने मेरे साथियों को अभी तक रिहा नहीं किया, तुम्हारे पास 5 मिनट और हैं उसके बाद तुम्हारी बेटी के साथ में क्या होगा यह आप अच्छी तरह समझ सकते हो। यह मैसेज पढ़ते ही कर्नल इरफ़ान के पैरों तले से जमीन निकल गई थी। वह तुरंत होश में आ चुका था और उसने अपने अधीनस्थों को आदेश किए कि तुरंत उन्हे खोला जाए और यहां से जाने दिया जाए।कर्नल इरफ़ान का आदेश सुनकर उसके सहायक बिजली की सी तेजी से तीनों को खोलने लगे और कुछ ही देर बाद अमजद अपने दोनों साथियों को साथ लिए लड़खड़ाते हुए जेल से बाहर निकल चुका था

बाहर निकल कर अमजद ने एक टैक्सी ली और पहले अपने डॉक्टर दोस्त के यहाँ गया, और सभी तरफ देखता रहा कि कहीं उसका पीछा तो नहीं हो रहा ??? मगर ऐसे कोई आसार उसको नजर नहीं आए, फिर भी एहतियात के रूप में वह अपने डॉक्टर दोस्त के पास जाने से पहले 2 बार टैक्सी का रूट चेंज किया और वहां जाकर अमजद ने अपनी और अपने दोस्तों की प्राथमिक चिकित्सा व्यवस्था कराई और उसके बाद कुछ जरूरी सामान साथ लेकर कश्मीर की ओर निकल गया। उसके पास मेजर राज का कोई नंबर नहीं था जिस पर वो संपर्क कर सकता , न ही मेजर राज के पास अमजद से संपर्क के लिए कोई ज़रिया नहीं था। मगर मेजर राज ने विभिन्न समूहों और संगठनों को अमजद को ट्रेस आउट करने का कार्य दे दिया था जिन्होंने कुछ ही देर में अमजद को ट्रेस कर लिया था और उस तक मेजर राज का संदेश पहुंचा दिया था कि आज़ादकश्मीर जाकर कुछ दिन आराम करे, फिर अगर जरूरत पड़ी तो मेजर राज उसे भारत बुलाएगा, और अगर ऐसी जरूरत महसूस नहीं हुई तो वह समीरा को राजी-खुशी से आज़ादकश्मीर वापस पहुंचा देगा। आज़ादकश्मीर जाते हुए भी अमजद ने इस बात का विशेष ध्यान रखा कि कोई उसका पीछा तो नहीं कर रहा है, उसने बार बार अपना रास्ता भी बदला, कभी पहाड़ी क्षेत्रों से पैदल सफर तय किया तो कभी खच्चरों पर एक घाटी को पार किया। । कभी ट्रेन के एक से दूसरे पड़ाव तक तो कभी किसी बस से एक शहर से दूसरे शहर तक की यात्रा। ग़रज़ पूरे 1 दिन का सफर तय करने के बाद अमजद वापस आज़ादकश्मीर पहुंच चुका था जहां अब उसे अपने और अपने दोस्तों के इलाज की व्यवस्था करना था क्योंकि वह न केवल बुरी तरह घायल थे बल्कि इस यात्रा ने उन्हें और भी निढाल कर दिया था। और उन्हें उम्मीद थी कि मेजर राज जल्द ही उन्हें इंडिया एक महत्वपूर्ण मिशन के लिए बुलाएगा, इसलिए जल्द से जल्द फिर से पूरी तरह से ठीक होना बहुत जरूरी था

अमजद और उसके साथियों को छोड़ने के बाद कर्नल इरफ़ान अपना सा मुंह लेकर काफी देर तक उसी जेल में बैठा रहा। उसके लिए अमजद को फिर गिरफ्तार करवाना कोई समस्या नहीं थी और वह अपनी सेना का उपयोग करके राज को भी ट्रेस कर सकता था, लेकिन राफिया में उसकी जान थी वह अपनी इकलौती बेटी के जीवन को खतरे में नहीं डाल सकता था, इसलिए न तो अमजद और उसके साथियों का पीछा किया और न ही मेजर राज का पता लगाने की कोशिश की। उसके अधीनस्थ उसको इस तरह बेबसी से बैठा देखकर एक दूसरे का मुँह देख रहे थे और मन ही मन में अपनी विफलता और इंडिया एक इकलौते एजेंट की सफलता पर दाद दे रहे थे जिसने उनके देश में उन्हें बेबस कर दिया था।

मगर फिर अचानक कर्नल इरफ़ान को कैप्टन फ़ैयाज़ का विचार आया। उसने अपने नंबर से केप्टन फ़ैयाज़ का नंबर डायल किया, काफी देर तक फोन बजने के बावजूद किसी ने फोन नहीं उठाया तो उसने फिर से फोन मिलाया, लेकिन दूसरी बार भी फोन बजता रहा और किसी ने फोन नहीं उठाया। फिर कर्नल इरफ़ान ने कैप्टन फ़ैयाज़ की पत्नी को फोन किया, कुछ घंटी के बाद फोन पर कैप्टन फ़ैयाज़ की पत्नी की आवाज सुनाई दी तो कर्नल इरफ़ान ने तुरन्त उससे फ़ैयाज़ के बारे में पूछा, लेकिन वह भी कैप्टन फ़ैयाज़ से अनजान थी, उसने बताया कि कैप्टन फ़ैयाज़ ने कल से कोई फोन नहीं किया और न ही वह फोन उठा रहा है।

कर्नल इरफ़ान समझ गया था कि कैप्टन फ़ैयाज़ या तो अगले जहां जा चुका है या फिर घोर संकट में है और मेजर राज की कैद में है। कैप्टन फ़ैयाज़ से जब किसी प्रकार का कोई संपर्क न हो सका तो कर्नल इरफ़ान ने इंडिया के एक प्रांत के मुख्यमंत्री अकबर लोकाटी को कॉल की, लेकिन उसका नंबर भी आउट ऑफ सेवा था। फिर कर्नल इरफ़ान ने खुद मुर्री जाने का फैसला किया। उसका विचार था कि मेजर राज अब मुर्री से जा चुका होगा, लेकिन जहां वह और उसकी बेटी रुके थे वहाँ से हो सकता है कोई सुराग मिल सके और वैसे भी हाथ पर हाथ रखकर बैठना कर्नल इरफ़ान की पॉलिसी में शामिल नहीं था। वह अपनी बेटी की जान खतरे में नहीं डालना चाहता था इसलिए उसने अब तक मेजर राज को मुर्री में पकड़ने के आदेश नहीं दिए थे, लेकिन वह यह पता लगाने की कोशिस कर चुका था कि मेजर राज मुर्री से कहाँ की ओर यात्रा कर रहा था, राफिया के मोबाइल से लगातार वह पता कर रहा था कि उसकी वर्तमान लोकेशन क्या है। मेजर राज मुर्री से निकल चुका था इसलिए मुर्री जाने में कोई हर्ज वाली बात नहीं थी यही सोचकर कर्नल इरफ़ान ने एक विशेष विमान से मुर्री जाने की तैयारी पकड़ी और कुछ ही घंटों के बाद कर्नल इरफ़ान मुर्री के बीच पर मौजूद था जहां इस समय रात का समय था, लेकिन रात के इस अंधेरे में भी मुर्री शहर जाग रहा था और बीच में लोगों की भीड़ मौजूद थी

कर्नल इरफ़ान रास्ते में ही पता लगा चुका था कि राफिया ने किस हट स्टे किया था। कुछ देर की कोशिश के बाद वह हट को ढूंढने में सफल हो गया था और सीधा वहाँ चला गया। दरवाजे पर बैठे सुरक्षा गारड़ ने कर्नल को रोकने की कोशिश की तो कर्नल इरफ़ान ने पहले उसे एक थप्पड़ रसीद किया और उसके बाद अपना नाम बता कर अंदर घुस आया और सुरक्षा गार्ड दिल ही दिल में कर्नल को गालियां बकता बेचारगी की छवि बना कर वापस अपनी कुर्सी पर बैठ गया। कर्नल इरफ़ान अंदर गया तो कमरे की हालत देख कर लग रहा था कि कुछ देर पहले तक यहां कोई मौजूद था। एक मेज पर 2 गिलास पड़े थे जिनमें कोई पेय पदार्थ था जो पीने वाले ने आधा गिलास में ही छोड़ दिया था, एक साइड पर कुछ कपड़े पड़े थे जिन्हें देखकर लग रहा था कि यह समुद्र तट से वापस आकर उतार कर रखे गए हैं उनमें ब्रा और पैन्टी भी मौजूद थी और एक मर्दाना शॉर्ट भी थी। कर्नल इरफ़ान इंतिहाई ध्यान के साथ कमरे की समीक्षा कर रहा था कि शायद कोई काम की चीज़ हो और उसके साथ ही वह किसी चीज को हाथ भी नहीं लगा रहा था ताकि किसी विशेष टीम को बुलवाकर फिंगर प्रिंट्स भी लिए जा सकें। पूरे कमरे में सन्नाटा था, कर्नल इरफ़ान पूरे कमरे की समीक्षा के बाद सामने मौजूद बाथरूम की ओर बढ़ा, जिसका दरवाजा आधा खुला हुआ था। दरवाजा धीरे धीरे खोलकर कर्नल इरफ़ान अंदर दाखिल हुआ तो फर्श गीला था और उस पर पानी भरा था। एक कोने में एक ब्रा और पैन्टी भी मौजूद थी। यह देखकर कर्नल इरफ़ान को विश्वास हो गया था कि मेजर राज उसकी बेटी राफिया की चूत मार चुका था, मगर अब वो किस हाल में होगी यह सोच सोच कर कर्नल इरफ़ान परेशान हो रहा था


कर्नल इरफ़ान बाथरूम से निकला और मुख्य कक्ष के साथ मौजूद दूसरे कमरे की ओर बढ़ने लगा, कमरे के दरवाजे पर पहुंचकर कर्नल ने धीरे से दरवाजा खोला और बहुत ही सावधानी के साथ अंदर झांकने लगा। कमरे की समीक्षा करते हुए कर्नल इरफ़ान टकटकी लगाए कमरे में मौजूद अलमारी से होते हुए बेड तक गया और बेड पर नज़र पड़ते ही कर्नल इरफ़ान को एक शॉक लगा। सामने बेड पर कोई और नहीं बल्कि उसकी बेटी राफिया लेटी हुई थी, उसकी आँखें बंद थीं, बदन पर एक शर्ट थी और नीचे स्कर्ट पहना हुआ था। कर्नल इरफ़ान भागकर उसके पास पहुंचा और उसका चेहरा पकड़ कर उसे हिलाने लगा, उसे एक झटका लगा था कि शायद उसकी बेटी अब इस दुनिया में नहीं रही, मेजर राज उसकी बेटी को एक गहरी नींद सुला कर यहां से निकल चुका है। मगर एक, दो आवाजों से राफिया की आंख खुल गई जो मेजर राज और समीरा के जाने के बाद थकान से चूर गहरी नींद में सो रही थी . अपने सामने पापा को देखकर राफिया ने खुशी से एक चीख मारी और पापा से लिपट गई, कर्नल इरफ़ान भी निहाल होकर अपनी बेटी को प्यार करने लगा। अपनी इकलौती बेटी को सही सलामत अपने सामने देखकर उसकी जान में जान आ गई थी। उसने काँपती हुई आवाज़ में राफिया से पूछा बेटा, तुम ठीक तो हो ना?

राफिया ने चहकते हुए कहा पापा मैं तो ठीक हूँ मगर आप अचानक ऐसे कैसे आ गए ??? आप तो इंडियन एजेंट को पकड़ने के लिए मिशन पर थे, मिशन छोड़कर बेटी की याद कैसे आ गई आपको ?? राफिया की आवाज में खुशी तो थी

मगर कर्नल इरफ़ान हैरान था कि उसके चेहरे पर परेशानी के आसार क्यों नहीं? कहीं ऐसा तो नहीं कि राफिया को अभी तक इमरान की असलियत नहीं पता हो ??? कर्नल इरफ़ान ने हैरानी के साथ राफिया से पूछा बेटा क्या तुम्हें मेजर राज के बारे में नहीं पता ???

राफिया ने हैरान होते हुए कहा पापा मुझे कैसे मालूम होगा उसके बारे में, उसको तो आप पकड़ने में लगे हुए हैं और उसकी वजह से अपनी बेटी की भी याद नहीं आती आपको ???

कर्नल इरफ़ान समझ गया था कि उसको अब तक इमरान की असलियत नहीं पता। मगर क्या वाकई उसने राफिया को कोई नुकसान नहीं पहुंचाया ?? कर्नल इरफ़ान ने यही बेहतर समझा कि राफिया को इमरान की असलियत के बारे में नहीं कहा जा सकता है कहीं ऐसा न हो कि उस पर इस बात का बुरा प्रभाव पड़े . क्योंकि इतना तो कर्नल इरफ़ान समझ गया था कि राफिया इमरान से बहुत ज्यादा ही अटैच हो गई थी और उसके साथ शारीरिक संबंध तक स्थापित कर चुकी थी, ऐसे में अराज के बाद इमरान की बेवफाई राफिया को दुख देने का कारण बन सकती थी। अब की बार कर्नल इरफ़ान ने इमरान के बारे में पूछा कि वह कहाँ है ???

राफिया ने हैरान होते हुए कहा पापा क्या हो गया है आपको ??? आप की उसकी बात हुई थी, अंजलि के कोई दूर के रिश्तेदार मुश्किल में थे और आप से पूछ कर ही तो वह उनकी मदद को गया है। और अब तक वापस नहीं आया। अब कर्नल इरफ़ान को विश्वास हो गया था कि इमरान ने उसकी बेटी को कुछ भी पता नहीं लगने दिया और वह बहुत कौशल के साथ पिता बेटी को अंधेरे में रखकर यहां से जा चुका है
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(वापसी : गुलशन नंदा) ......(विधवा माँ के अनौखे लाल) ......(हसीनों का मेला वासना का रेला ) ......(ये प्यास है कि बुझती ही नही ) ...... (Thriller एक ही अंजाम ) ......(फरेब ) ......(लव स्टोरी / राजवंश running) ...... (दस जनवरी की रात ) ...... ( गदरायी लड़कियाँ Running)...... (ओह माय फ़किंग गॉड running) ...... (कुमकुम complete)......


साधू सा आलाप कर लेता हूँ ,
मंदिर जाकर जाप भी कर लेता हूँ ..
मानव से देव ना बन जाऊं कहीं,,,,
बस यही सोचकर थोडा सा पाप भी कर लेता हूँ
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Re: वतन तेरे हम लाडले

Post by rajsharma »

राफिया कुछ देर तक अपने पापा के साथ बैठ कर बातें करती रही, कर्नल इरफ़ान को राफिया की बातों से पता चल गया था कि वह इमरान को बहुत चाहने लग गई है, और उसे अपनाना चाहती है, राफिया ने खुद भी कर्नल को बताया कि वह बहुत होनहार युवा है, उसको बस आपकी मदद की जरूरत है, आप उसे सेना में भर्ती करवा लें और अपने साथ रखें, वह बहुत आगे जाएगा, खासकर कंप्यूटर में वह बहुत माहिर है ... इससे पहले कि राफिया कर्नल को लैपटॉप का पासवर्ड तोड़ने की खबर सुनाती उसको इमरान की कही हुई बात याद आ गई कि यह बात कर्नल इरफ़ान को ना बताए, वो खुद ही अपना कौशल दिखा देंगे अन्यथा कर्नल इरफ़ान गुस्से में उसे सजा भी दिलवा सकता है। यही सोचकर राफिया चुप हो गई और इससे आगे कुछ नही बोली कि वह कंप्यूटर क्षेत्र में बहुत माहिर है। कर्नल ने राफिया से कप्तान फ़ैयाज़ के बारे में भी पूछा तो राफिया ने उसके बारे मे अन्भिग्यता जाहिर की और कहा कि उससे बस कल रात ही बात हुई थी उसके बाद से उसका कोई अता-पता नहीं

कर्नल इरफ़ान समझ गया कि कैप्टन फ़ैयाज़ ने मेजर राज को पकड़ने की कोशिश की होगी और मेजर ने उसको ठिकाने लगा दिया होगा। मगर इस दौरान समीरा का उल्लेख कहीं नहीं आया, उसको समीरा का सौभाग्य ही समझ लीजिये कि राफिया ने कहीं भी अंजलि का उल्लेख नहीं किया और न ही कर्नल इरफ़ान के मन में यह बात आई कि वह मेजर राज की साथी समीरा के बारे में कुछ पूछे, उसके मन में अब सिर्फ यही बात थी कि उसकी बेटी सही सलामत है उसके लिए यही काफी है। बातों बातों में कर्नल इरफ़ान ने राफिया को बताया कि इमरान की वापसी अब 2 दिन तक तो नहीं होगी, तो चलो तुम मेरे साथ वापस लाहौर, जिस पर राफिया राजी हो गई मगर अपने पापा से फोन लेकर अपने नंबर पर फोन करने लगी क्योंकि उसका फोन मेजर राज के पास था। लेकिन नंबर ऑफ जा रहा था, राफिया ने 2, 3 बार कोशिश की मगर नंबर नहीं मिला तो उसने निराश होकर फोन वापस अपने पापा को दे दिया, और कुछ ही देर के बाद दोनों बाप बेटी वापस लाहौर रवाना हो रहे थे।

कर्नल इरफ़ान के मन में एक तरह से मेजर राज के लिए गुस्सा नरम हो गया था कि उसने राफिया को कोई नुकसान नहीं पहुंचाया और कोई तकलीफ नहीं दी। यह तो वह नहीं जानता था कि मेजर राज ने उसकी बेटी की चूत और गाण्ड का क्या हश्र किया था मगर चूत और गाण्ड के अलावा मेजर राज ने किसी भी तरह से राफिया को चोट नहीं दी। इसीलिए कर्नल के मन में अब मेजर राज को पकड़ने का विचार नहीं था बल्कि वह अपने ही मिशन पर विचार कर रहा था कि उसे आगे क्या करना है। अगली सुबह कर्नल इरफ़ान और राफिया वापस अपने घर में मौजूद थे। वापस घर पहुंचकर कर्नल इरफ़ान कुछ देर सुस्ताने के लिए लेट गया था क्योंकि काफी दिनों से उसकी नींद पूरी नहीं हुई थी, मेजर राज को पकड़ने के चक्कर में वह दिन-रात एक कर बैठा था मगर अंत में पता लगा कि मेजर राज उसकी बेटी बैंड बजाता रहा है और उसकी बेटी की टाइट चूत और गाण्ड के मजे लेता रहा और कर्नल इरफ़ान उसे पागलों की तरह ढूंढ ढूंढ कर अपनी गाण्ड में दर्द करवा बैठा था।

दोपहर को जब कर्नल इरफ़ान सो कर उठा तो अब उसका मन काफी फ्रेश था और अब फिर से वो मेजर राज के बारे में सोचने लगा। उसने अपने घर को भी अच्छी तरह से चेक किया खासकर राफिया का कक्ष वो राफिया की ज़ुबानी जान चुका था इमरान ने एक रात उसी के कमरे में बताई थी। बहुत बारीकी से तलाशी लेने के बावजूद भी कर्नल इरफ़ान को कोई खास चीज नहीं मिली जिससे मेजर राज के बारे में कुछ पता लग सके कि उसका आगे का प्लान क्या होगा। अब कर्नल इरफ़ान मेजर राज के बारे में काफी गुस्से में था, रात जो नर्मी उसके दिल में पैदा हुई थी वह अब खत्म हो गई थी, अब उसे इस का एहसास नहीं था कि मेजर राज ने उसकी बेटी को कोई चोट नहीं दी थी अब अगर उसके मन में कुछ था तो वह यह कि मेजर राज ने एक मामूली मेजर होने के बावजूद कर्नल इरफ़ान जैसे वरिष्ठ अधिकारी की रातों की नींद हराम कर दी और उसकी बेटी के बारे में गलत बयानी करके उसे चोट पहुंचाई। अब फिर से वो मेजर राज के खून का प्यासा हो गया था। लेकिन अब की बार कर्नल इरफ़ान ने जो सोचा था वह खतरनाक था। अब कर्नल इरफ़ान मेजर राज को ढूंढने की बजाय वापस इंडिया जाकर अपने मिशन को निचले भाग पूरा तक पहुंचाने की ठान चुका था, यही एक तरीका था मेजर राज से अपने अपमान का बदला लेने का। उसका देश दो हिस्सों में बँटे इससे बेहतर बदला हो ही नहीं सकता था।

यह सोच कर कर्नल इरफ़ान ने अपनी तैयारी की, अपनी टीम को अपने अगले प्लान के बारे में आगाह किया, राफिया की सुरक्षा की विशेष व्यवस्था करने के लिए घर पर सभी सुरक्षा गार्ड को चेंज कर दिया गया ताकि अगर उनमें कोई मेजर राज का जासूस ना हो तो नए सुरक्षा गार्डस को घर पर तैनात किया गया, उसके साथ बहुत उच्च प्रशिक्षित लड़ाकू सैनिकों को पूरी कॉलोनी में फैला दिया गया जो आने वाले किसी भी खतरे से निपटने की क्षमता रखते थे ताकि अगर मेजर राज या उसका कोई साथी राफिया को नुकसान पहुँचाने की कोशिश करे तो ये लड़ाकू युवा उसका सफाया कर सकें। उसके साथ साथ कर्नल इरफ़ान ने अपनी एक विशेष टीम को मुर्री से लाहौर जाने वाले रास्ते पर मेजर राज की खोज के लिए भेज दिया , जहां तक राफिया के मोबाइल के माध्यम से मेजर राज का पता लग सकता था लगाया गया, लेकिन जहां मेजर राज ने मोबाइल बंद किया उसके आगे वह कहाँ गया, इस बात का किसी को कोई पता नहीं था। कर्नल इरफ़ान ने लाहौर में भी विरोधी टेरीरीस्ट टीमों को चौकन्ना कर दिया था ताकि अगर मेजर राज लाहौर में कोई आतंकवादी कार्यवाही करना चाहे तो उसे मुंह की खानी पड़े

यह सभी कदम उठाने के साथ साथ कर्नल इरफ़ान ने अपनी टीम को इंडिया जाने की तैयारी करने के आदेश भी दे दिए थे। लेकिन अब की बार वह समुद्री रास्ते की बजाय जमीनी रास्ते से जाने की तैयारी में था, ताकि जल्द से जल्द इंडिया जाकर वह बड़ा काम कर सके जिसकी हल्की सी भनक समीरा को पड़ चुकी थी और वह उसके बारे में मेजर राज को भी सूचित कर चुकी थी। कर्नल इरफ़ान ने राफिया को भी अपने इस फैसले से अवगत करा दिया था कि वह इंडिया जा रहा है और उसके जाने के बाद राफिया अपना विशेष ध्यान रखे। पाकिस्तान में सभी जरूरी काम निपटाने के बाद अगले दिन कर्नल इरफ़ान अपने कुछ साथियों के साथ सिख श्रद्धालुओं को लाने वाली ट्रेन से इंडिया की ओर रवाना हो गया था जबकि राफिया जो अब तक नहीं जानती थी कि उसका नया प्रेमी इमरान वास्तव में उसके पापा को तिगनी का नाच नचा रहा है और वही मेजर राज है, जिसका वो इंतजार कर रही थी और बार बार अपने नंबर पर कॉल कर रही थी जो लगातार ऑफ जा रहा था। पाकिस्तान की सीक्रेट सर्विस भी पिछले 24 घंटे से मेजर राज को खोजने की कोशिश कर रही थीं मगर अब तक उन्हें कोई पर्याप्त सफलता नहीं मिली थी

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मेजर राज ने जब कर्नल इरफ़ान से फोन पर बात कर ली तो वह वापस कमरे में आया जहां समीरा यानी अंजलि और राफिया दोनों अब तक बिना कपड़ों के ही बेड पर लेटी हुई थीं। इमरान ने पहले अलमारी से अपना एक ट्राउजर निकालकर पहना और फिर ऊपर से शर्ट पहनने के बाद आगे बढ़कर राफिया को प्यार किया और बोला तुम चिंता मत करो मैं जल्द ही वापस आ जाउन्गा उसके बाद वह अंजलि की तरफ बढ़ा और उसके होंठों को चूस कर उसकी प्रशंसा की कि तुम्हें चोदने में बहुत मज़ा आया, अगली बार अगर वो कभी मिले तो तुम्हारी चूत के साथ साथ तुम्हारी गाण्ड की भी चुदाई करूंगा। यह सुनकर अंजलि मुस्कुराई और बोली नहीं मैं कभी गाण्ड नहीं मरवाउन्गी और जो आपने आज राफिया की गाण्ड का हश्र किया है वह देखकर तो मैं कभी भी गाण्ड नहीं मरवाउन्गी, लेकिन तुम्हारा लंड बहुत तगड़ा है तुम बस मेरे उन रिश्तेदारों की मदद कर दो, मैं खुद तुम से एक बार और निश्चित रूप चुदवाउन्गी यह सुनकर इमरान ने एक बार फिर अंजलि के होंठों को चूसा और बाहर निकल गया।

इमरान के जाने के बाद अंजलि कुछ देर राफिया के साथ ही बेड पर लेटी रही, फिर उसने राफिया को देखा और बोली- अब मुझे चलना चाहिए। लोकाटी मेरा इंतज़ार कर रहा होगा। राफिया जो अपनी चूत और गांड से बेहद परेशान थी उसने भी कहा, हां ठीक है तुम जाओ में इमरान का वेट करूंगी इधर ही। अब अंजलि ने राफिया को कहा कि वह तो यहाँ ब्रा और पैन्टी पहन कर ही आई थी और उन्हें भी बाथरूम में उतार दिया, अब साफ नहीं हैं वह।अगर तुम्हें बुरा न लगे तो मुझे अपनी कोई शर्ट और पैंट देदो जो पहन कर यहाँ से जा सकूँ। यह सुनकर राफिया ने अलमारी की ओर इशारा किया और बोली यहाँ देख लो जो तुम्हें फिट आता हो पहन लो . अंजलि ने अलमारी खोली और वहां से एक ढीली शर्ट उठाकर पहन ली। यह सफेद रंग की शर्ट थी और उसके साथ ही एक शॉर्ट निक्कर जो काले रंग का था वह भी पहन लिया। शर्ट के नीचे अंजलि ने ब्रा नहीं पहना था जिसकी वजह से उसके निपल्स का तनाव नजर आ रहा था मगर उसे इस बात की चिंता नहीं थी। कपड़े पहनने के बाद अंजलि राफिया को मिली और एक अच्छा बाय किस कर कमरे से निकल गई

कमरे से निकल कर अंजलि सीधे अपने होटल गई जहां कल रात वह लोकाटी के लंड पर सवारी करती रही थी। होटल पहुँच कर उसने एक बार वही अलमारी खोलकर देखा जिसमें मेजर राज ने कैप्टन फ़ैयाज़ को बांध कर बंद कर दिया था, कप्तान फ़ैयाज़ अब तक बेहोशी की हालत में था, समीरा को लगा कि कहीं वह मर न गया हो, इस ने पल्स चेक की तो वह चल रही थी। यानी कैप्टन केवल बेहोश था मरा नहीं था। उसकी तसल्ली कर समीरा ने फिर से अलमारी को बंद कर दिया और अपने आवश्यक कपड़े निकाल कर अपना बैग तैयार किया। बैग तैयार करने के बाद अंजलि ने फ्रिज से कुछ फल निकाल कर खाए और जूस पिया। मेजर राज से धुँआधार चुदाई करवाने के बाद समीरा थोड़ी थकावट महसूस हो रही थी और उसका शरीर भूख की वजह से हल्का हल्का कांप रहा था। मगर फ्रूट खाने से समीरा को काफी सुधार महसूस हो रहा था और रस पीने से भी समीरा अब काफी बेहतर महसूस कर रही थी। मगर उसके शरीर पर अब तक राफिया की ही शर्ट थी जो उसको काफी फिट आई थी और इसमें न केवल समीरा के मम्मे बहुत टाइट और बड़े दिख रहे थे बल्कि उसके निप्पल भी तने हुए थे और शर्ट के ऊपर से दिख रहे थे। अब समीरा ने अपनी एक छोटी शाल निकाली और अपने कंधों पर डाल आगे से अपना तना हुआ सीना उस शाल से ढक लिया और फिर अपना सामान उठाकर लोकाटी कमरे में चली गई जो उसके कमरे के साथ ही था। लोकाटी के कमरे के बाहर 2 गार्ड खड़े थे, यह वही गार्ड थे जिन्हें कल रात कैप्टन फ़ैयाज़ ने ठुकाई कर बेहोश कर दिया था, मगर उनके गार्ड ने लोकाटी को इस घटना के बारे में कुछ नहीं बताया था क्योंकि इस तरह उनकी नौकरी जा सकती थी।न ही लोकाटी को इस बारे में कुछ पता था क्योंकि सुबह जब वह सो कर उठा तब तक उसके गार्ड फिर से चाक चौबंद कमरे के बाहर खड़े थे।
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(वापसी : गुलशन नंदा) ......(विधवा माँ के अनौखे लाल) ......(हसीनों का मेला वासना का रेला ) ......(ये प्यास है कि बुझती ही नही ) ...... (Thriller एक ही अंजाम ) ......(फरेब ) ......(लव स्टोरी / राजवंश running) ...... (दस जनवरी की रात ) ...... ( गदरायी लड़कियाँ Running)...... (ओह माय फ़किंग गॉड running) ...... (कुमकुम complete)......


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Re: वतन तेरे हम लाडले

Post by rajsharma »

shubhs wrote: 12 Aug 2017 10:32 ये अपडेट पुराना है
Kamini wrote: 13 Aug 2017 08:38Mast update
shubhs wrote: 13 Aug 2017 14:02अपडेट
दोस्तो अपडेट दे दिया है
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