लाड़ला देवर ( देवर भाभी का रोमांस) complete
- kunal
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Re: लाड़ला देवर ( देवर भाभी का रोमांस)
ankit bhai mast story hai
फूफी और उसकी बेटी से शादी.......Thriller वासना का भंवर .......Thriller हिसक.......मुझे लगी लगन लंड की.......बीबी की चाहत.......ऋतू दीदी.......साहस रोमांच और उत्तेजना के वो दिन!
- Ankit
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Re: लाड़ला देवर ( देवर भाभी का रोमांस)
thanks mitro
- Ankit
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Re: लाड़ला देवर ( देवर भाभी का रोमांस)
हम 60-70 किमी निकल आए थे, भैया ने जो जगह घूमने के लिए बताई थी, वो आने वाली थी…
आगे एक छोटे से गाओं के बाहर सड़क के किनारे चाय नाश्ते की टपरी सी थी, मेने उसके पास पहुँचकर अपनी बाइक रोकी और कुच्छ नाश्ते के लिए पुछा,
वो गरमा-गरम पालक-मेथी के पकोडे तल रहा था..
हमने उससे पकोडे लिए और खाने लगे… उसके बाद एक-एक चाइ ली जो कुच्छ ज़्यादा सही नही लगी.. अब ले ली थी तो पीनी पड़ी…
चाय पीते-2 मेने उस टपरी वाले से उस जगह के बारे में पुछा..
तो उसने बताया कि यहाँ से आधे किमी के बाद अपने ही हाथ पर एक कच्चा पत्तरीला रास्ता आएगा, उसी से वहाँ पहुँचा जा सकता है…
वो जगह रोड से करीब एक फरलॉंग ही अंदर को है…उसे चाय पकोडे के पैसे देकर हम फिर आगे बढ़ गये..
वो जगह वाकई में रोमांटिक थी.. घने उँचे पेड़ों के बीच एक छ्होटी सी झील जैसी थी, जिसका पानी एक सिरे पर स्थित कोई 15-20 फीट उँची पहाड़ियों से निकल रहा था, और झील में जमा हो रहा था… !
ओवरफ्लो होकर झील का पानी सबसे निचले किनारे से निकल कर जंगलों के बीच जा रहा था…
झील के दोनो किनारों पर उसके समानांतर तकरीबन 30-40 मीटर की चौड़ाई के हरी-हरी घास के मैदान थे… कुल मिलाकर प्रेमी जोड़ों के मज़े करने के लिए ये उत्तम जगह थी.
जब हम वहाँ पहुँचे तो दोपहर के 12-12:30 का समय था, इस वजह से और कोई वहाँ नही था, एक-दो जोड़े थे, वो भी निकलने की तैयारी में थे..
मेने बाइक पेड़ों के बीच खड़ी की और अपने बॅग उठाकर झील के किनारे की तरफ चल दिए… दीदी तो उस जगह को देख कर बहुत एक्शिटेड हो रही थी.
वाउ ! छोटू क्या मस्त जगह है यार ! मेरा तो मन कर रहा है, दो-चार दिन यहाँ से हिलू भी ना…
हमने झील के किनारे घास पर अपने बॅग रख दिए और कुच्छ दूर झील के किनारे-2 घूमने लगे…
रंग बिरंगी छोटी-बड़ी मछलिया.. हमें देख कर किनारे से और गहराई को तैरती हुई भाग जाती.. जो झील के साफ नीले पानी में काफ़ी दूर तक दिखाई देती..
वो एक जगह बैठ कर पानी में हाथ डालकर मछलियो से खेलने लगी…
वो कुच्छ देर दीदी के हाथ से दूर भाग जाती.. और एक जगह ठहर कर उसकी ओर देखने लगती, और फिर पुंछ हिला-हिलाकर इधर-उधर भाग लेती…
जुलाइ-अगुस्त के महीने में भी झील का पानी ठंडा था… कुच्छ देर मछलियो से खेलने के बाद दीदी बोली – भाई मेरा तो इसमें नहाने का मान कर रहा है..
मे – लेकिन दीदी हमें तैरना तो आता नही, अगर पानी गहरा हुआ तो..?
वो – लगता तो नही की ज़्यादा गहरा होगा.. चल धीरे-2 आगे बढ़ते हैं.. ज़्यादा अंदर तक नही जाएँगे.. और वो धीरे-2 पानी में उतरने लगी..
मे अभी भी किनारे पर खड़ा उसे पानी के अंदर जाते हुए देख रहा था..
दीदी काफ़ी अंदर तक चली गयी, फिर भी पानी उसके पेट से थोड़ा उपर तक ही था..
मेने कहा दीदी बस यहीं नहा लो, और आयेज मत जाना.. वो बोली- तू भी आजा ना यार ! साथ मे नहाते हैं.. मज़ा आएगा…
मेने कहा – नही तुम ही नहाओ, मे ऐसे ही ठीक हूँ, तो वो वहीं डुबकी लगाने लगी..
अब वो पूरी तरह भीग गयी थी, डुबकी लगाकर जैसे ही वो खड़ी हुई, उसकी झीने से कपड़े की टीशर्ट उसके शरीर से चिपक गयी और उसकी ब्रा साफ-साफ दिखाई देने लगी..
ब्रा से बाहर झलकते हुए उसके अमरूदो की छटा उसकी टीशर्ट से नुमाया हो रही थी..
उसे देखकर मेरा पप्पू भी मन चलाने लगा…मानो कह रहा हो- अरे यार क्या देखता ही रहेगा भेन्चोद ! कूद पड़ तू भी और ले ले मज़े… मौका है…
मे उसके भीगे बदन के मज़े ले ही रहा था कि उसने फिरसे डुबकी लगाई.. इस बार वो कुच्छ देर तक बाहर नही आई..
साफ पानी में उसका शरीर तो दिख रहा था लेकिन वो उपर नही आ रही थी…. मेरे मन में आशंका सी उठने लगी….
आधे मिनिट से भी उपर हो गया फिर भी वो बाहर नही आई तो मुझे कुच्छ गड़बड़ सी लगने लगी…
तभी दीदी झटके से उपर आई और एक लंबी साँस भरके…अपना एक हाथ उपर करके सिर्फ़ छोटू ही बोल पाई और फिरसे अंदर डूबती चली गयी………
मेने इधर उधर नज़र दौड़ाई, शायद कोई मदद करने वाला हो…लेकिन वहाँ दूर दूर तक ना इंसान ना इंसान की जात, कोई भी नही था…
जब कोई और सहारा ना दिखा, तो मेने ले उपर वाले का नाम, आव ना देख ताव.. अपनी टीशर्ट और पाजामा उतार किनारे पर फेंका और पानी में छलान्ग लगा दी…,
मे तेज़ी से दीदी की ओर बढ़ा…! और जैसे ही उसके पास पहुँचा.., झटके से वो उपर आई, और खिल-खिलाकर मेरे सामने पानी में खड़ी होकर हँसने लगी..
यहाँ पानी उसके गले से थोड़ा नीचे था, माने उसके बूब पानी के अंदर थे…
आगे एक छोटे से गाओं के बाहर सड़क के किनारे चाय नाश्ते की टपरी सी थी, मेने उसके पास पहुँचकर अपनी बाइक रोकी और कुच्छ नाश्ते के लिए पुछा,
वो गरमा-गरम पालक-मेथी के पकोडे तल रहा था..
हमने उससे पकोडे लिए और खाने लगे… उसके बाद एक-एक चाइ ली जो कुच्छ ज़्यादा सही नही लगी.. अब ले ली थी तो पीनी पड़ी…
चाय पीते-2 मेने उस टपरी वाले से उस जगह के बारे में पुछा..
तो उसने बताया कि यहाँ से आधे किमी के बाद अपने ही हाथ पर एक कच्चा पत्तरीला रास्ता आएगा, उसी से वहाँ पहुँचा जा सकता है…
वो जगह रोड से करीब एक फरलॉंग ही अंदर को है…उसे चाय पकोडे के पैसे देकर हम फिर आगे बढ़ गये..
वो जगह वाकई में रोमांटिक थी.. घने उँचे पेड़ों के बीच एक छ्होटी सी झील जैसी थी, जिसका पानी एक सिरे पर स्थित कोई 15-20 फीट उँची पहाड़ियों से निकल रहा था, और झील में जमा हो रहा था… !
ओवरफ्लो होकर झील का पानी सबसे निचले किनारे से निकल कर जंगलों के बीच जा रहा था…
झील के दोनो किनारों पर उसके समानांतर तकरीबन 30-40 मीटर की चौड़ाई के हरी-हरी घास के मैदान थे… कुल मिलाकर प्रेमी जोड़ों के मज़े करने के लिए ये उत्तम जगह थी.
जब हम वहाँ पहुँचे तो दोपहर के 12-12:30 का समय था, इस वजह से और कोई वहाँ नही था, एक-दो जोड़े थे, वो भी निकलने की तैयारी में थे..
मेने बाइक पेड़ों के बीच खड़ी की और अपने बॅग उठाकर झील के किनारे की तरफ चल दिए… दीदी तो उस जगह को देख कर बहुत एक्शिटेड हो रही थी.
वाउ ! छोटू क्या मस्त जगह है यार ! मेरा तो मन कर रहा है, दो-चार दिन यहाँ से हिलू भी ना…
हमने झील के किनारे घास पर अपने बॅग रख दिए और कुच्छ दूर झील के किनारे-2 घूमने लगे…
रंग बिरंगी छोटी-बड़ी मछलिया.. हमें देख कर किनारे से और गहराई को तैरती हुई भाग जाती.. जो झील के साफ नीले पानी में काफ़ी दूर तक दिखाई देती..
वो एक जगह बैठ कर पानी में हाथ डालकर मछलियो से खेलने लगी…
वो कुच्छ देर दीदी के हाथ से दूर भाग जाती.. और एक जगह ठहर कर उसकी ओर देखने लगती, और फिर पुंछ हिला-हिलाकर इधर-उधर भाग लेती…
जुलाइ-अगुस्त के महीने में भी झील का पानी ठंडा था… कुच्छ देर मछलियो से खेलने के बाद दीदी बोली – भाई मेरा तो इसमें नहाने का मान कर रहा है..
मे – लेकिन दीदी हमें तैरना तो आता नही, अगर पानी गहरा हुआ तो..?
वो – लगता तो नही की ज़्यादा गहरा होगा.. चल धीरे-2 आगे बढ़ते हैं.. ज़्यादा अंदर तक नही जाएँगे.. और वो धीरे-2 पानी में उतरने लगी..
मे अभी भी किनारे पर खड़ा उसे पानी के अंदर जाते हुए देख रहा था..
दीदी काफ़ी अंदर तक चली गयी, फिर भी पानी उसके पेट से थोड़ा उपर तक ही था..
मेने कहा दीदी बस यहीं नहा लो, और आयेज मत जाना.. वो बोली- तू भी आजा ना यार ! साथ मे नहाते हैं.. मज़ा आएगा…
मेने कहा – नही तुम ही नहाओ, मे ऐसे ही ठीक हूँ, तो वो वहीं डुबकी लगाने लगी..
अब वो पूरी तरह भीग गयी थी, डुबकी लगाकर जैसे ही वो खड़ी हुई, उसकी झीने से कपड़े की टीशर्ट उसके शरीर से चिपक गयी और उसकी ब्रा साफ-साफ दिखाई देने लगी..
ब्रा से बाहर झलकते हुए उसके अमरूदो की छटा उसकी टीशर्ट से नुमाया हो रही थी..
उसे देखकर मेरा पप्पू भी मन चलाने लगा…मानो कह रहा हो- अरे यार क्या देखता ही रहेगा भेन्चोद ! कूद पड़ तू भी और ले ले मज़े… मौका है…
मे उसके भीगे बदन के मज़े ले ही रहा था कि उसने फिरसे डुबकी लगाई.. इस बार वो कुच्छ देर तक बाहर नही आई..
साफ पानी में उसका शरीर तो दिख रहा था लेकिन वो उपर नही आ रही थी…. मेरे मन में आशंका सी उठने लगी….
आधे मिनिट से भी उपर हो गया फिर भी वो बाहर नही आई तो मुझे कुच्छ गड़बड़ सी लगने लगी…
तभी दीदी झटके से उपर आई और एक लंबी साँस भरके…अपना एक हाथ उपर करके सिर्फ़ छोटू ही बोल पाई और फिरसे अंदर डूबती चली गयी………
मेने इधर उधर नज़र दौड़ाई, शायद कोई मदद करने वाला हो…लेकिन वहाँ दूर दूर तक ना इंसान ना इंसान की जात, कोई भी नही था…
जब कोई और सहारा ना दिखा, तो मेने ले उपर वाले का नाम, आव ना देख ताव.. अपनी टीशर्ट और पाजामा उतार किनारे पर फेंका और पानी में छलान्ग लगा दी…,
मे तेज़ी से दीदी की ओर बढ़ा…! और जैसे ही उसके पास पहुँचा.., झटके से वो उपर आई, और खिल-खिलाकर मेरे सामने पानी में खड़ी होकर हँसने लगी..
यहाँ पानी उसके गले से थोड़ा नीचे था, माने उसके बूब पानी के अंदर थे…
- Ankit
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Re: लाड़ला देवर ( देवर भाभी का रोमांस)
मे डर और झुंझलाहट के मारे काँप रहा था, उसके उपर गुस्सा होते हुए बोला –
दीदी ये क्या हिमाकत है.. पता है मे कितना डर गया था, और तुम्हें मज़ाक सूझ रहा है..
वो – अरे बुद्धू ! मे तो तुझे भी पाने में बुलाने के लिए नाटक कर रही थी… और खिल-खिलाकर हँसते हुए मेरे उपर पानी उछाल कर मुझे भिगोने लगी..
मे – अच्छा ! तुम्हें मस्ती सूझ रही है रूको अभी बताता हूँ, और मे भी हाथों में पानी भर-भर कर उसकी ओर उच्छालने लगा…
वो बोली – अब तो डुबकी लगाएगा या अभी भी नही..? तो मेने भी सोच लिया कि अब इसको अच्छे से मज़ा चखा ही दिया जाए…
सो मेने पानी में डुबकी लगाई और अंदर ही अंदर उसके पीछे पहुँचा, अपना सर उसकी टाँगों के बीच डाला, उसको अपने कंधे पर उठाकर खड़ा हो गया…
पहले तो वो शॉक लगने से चीख पड़ी, फिर मज़ा लेते हुए मेरे कंधे पर बैठी हवा में अपनी बाहें फैला कर याहू…याहू..हूऊ….. करके चिल्लाने लगी..
जंगल के शांत वातावरण में उसकी कोयल जैसी मीठी आवाज़ पेड़ों और पानी के बीच गूँजकर वापस हमारे कानों से टकरा रही थी..
रामा दीदी तो मस्ती में जैसे पागल ही हो उठी.. और ना जाने कब उसने मेरे कंधे पर बैठे हुए ही अपनी टीशर्ट उतार कर किनारे की तरफ उच्छाल दी..
लेकिन वो किनारे से पहले ही पानी में गिरी और बहकर हमसे दूर जाने लगी…
मे उसको कंधे पर उठाए हुए ही पानी में पीछे की तरफ पलट गया.. च्चपाक्क….
कुच्छ देर हम पानी के अंदर डूबे रहे, लेकिन फिर बाहर आते ही वो मेरी पीठ पर सवार हो गयी और मेरे कंधे पर अपने दाँत गढ़ा दिए…
मेरी चीख निकल गयी, मेने अपना हाथ पीछे ले जाकर उसे पकड़ने की कोशिश की,… तो वो हस्ती हुई किसी मछलि की तरह मेरे हाथ से फिसलकर मेरे से दूर जाने लगी..
मे जब उसे पकड़ने के लिए पलटा, तब पता लगा कि वो मात्र ब्रा में ही थी…
उसके उभार किसी टेनिस की बॉल की तरह एकदम गोल-गोल उसके ब्रा में क़ैद मुझे बुला रहे थे, मानो कह रहे हों कि, आजा बेटा….. गांद में दम है तो हमें मसल के दिखा..
मेरी झान्टे सुलग उठी, और मेने खड़े-खड़े ही उसके उपर जंप लगा दी और उसे पानी के अंदर दबोच लिया…
मेरे जंप मारते ही वो भी बचने के लिए पीछे हटी, जिससे मेरे दोनो हाथ उसकी कमर पर जम गये, मेरी उंगलिया उसके लोवर की एलास्टिक में फँस गयी..
उसने जैसे ही पीछे को तैरने के लिए अपने शरीर को झटका दिया, उसका लोवर उतर कर मेरे हाथों में आ गया… अब वो मात्र अपनी ब्रा और पेंटी में थी…
मेने उसके लोवर को हवा में गोल-2 घूमाकर उसको चिढ़ाया, लेकिन उसपर कोई असर नही हुआ, और हँसती हुई अपनी जीब चिढ़ा कर अंगूठा दिखाने लगी..
मे फिर एक बार उसको पकड़ने झपटा, तो वो किसी मछलि की तरह मेरे हाथों से फिसल गयी…
हम दोनो पानी में नहाते हुए अधखेलियाँ कर रहे थे… पानी में तैरती मछलिया भी जैसे हमारे खेल में शामिल हो गयी थी,
और वो भी हमारे आस-पास जमा होकर इधर-से-उधर अपनी पुंछ हिला-हिला कर तैर रही थी…
फिर अचानक दीदी उछल्कर मेरी गोद में आ गई, अपनी पतली-2 लंबी बाहें मेरे गले में लपेट दी और पैरों से मेरी कमर को लपेट कर मेरे सीने से लिपट गयी…
स्वतः ही हम दोनो के होठ एक दूसरे से पहली बार जुड़ गये.. और हम दोनो एक लंबी स्मूच में खो गये..
दीदी मेरे होठों को बुरी तरह से झींझोड़ने लगी, मानो वो उन्हें जल्दी से जल्दी खा जाने की फिराक में हो..
मेने भी उसके निचले होठ को अपने मूह में भर लिया और उसके मूह में अपनी जीभ डालने की कोशिश करने लगा…
कुच्छ देर तो उसके मोतियों जैसे दाँतों की दीवार मेरी जीभ को रोकती रही, फिर वो खुल गयी और मेरी जीभ उसके मूह में घुसकर अपनी सहेली के साथ खेलने लगी..
मेरे हाथ उसके 33 के साइज़ के गोल-मटोल सुडौल नितंबों को मसलने लगे… दीदी की आँखें मस्ती में डूबकर लाल सुर्ख हो गयी, और उनमें अब सिर्फ़ वासना ही दिख रही थी…
मेरे हाथ उसके कुल्हों से हटकर उसकी पीठ पर आ गये और जैसे ही मेरी उंगलियों ने उसकी ब्रा के एकमात्र हुक को टच किया, वो शरारत कर बैठी, और उसकी ब्रा भी पानी में तैरती नज़र आने लगी…
- pongapandit
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- Joined: 26 Jul 2017 16:08
Re: लाड़ला देवर ( देवर भाभी का रोमांस)
mast kahani hai mitr