लाड़ला देवर ( देवर भाभी का रोमांस) complete

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Kamini
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Re: लाड़ला देवर ( देवर भाभी का रोमांस)

Post by Kamini »

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jay
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Re: लाड़ला देवर ( देवर भाभी का रोमांस)

Post by jay »

भाई बहुत मस्ती भरा अपडेट रहा ये
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(^^d^-1$s7)
(एक बार ऊपर आ जाईए न भैया )..(परिवार में हवस और कामना की कामशक्ति )..(लेखक-प्रेम गुरु की सेक्सी कहानियाँ running)..(कांता की कामपिपासा running).. (वक्त का तमाशा running).. (बहन का दर्द Complete )..
( आखिर वो दिन आ ही गया Complete )...(ज़िन्दगी एक सफ़र है बेगाना complete)..(ज़िद (जो चाहा वो पाया) complete)..(दास्तान ए चुदाई (माँ बेटी बेटा और किरायेदार ) complete) .. (एक राजा और चार रानियाँ complete)..(माया complete...)--(तवायफ़ complete)..(मेरी सेक्सी बहनेंcompleet) ..(दोस्त की माँ नशीली बहन छबीली compleet)..(माँ का आँचल और बहन की लाज़ compleet)..(दीवानगी compleet..(मेरी बर्बादी या आबादी (?) की ओर पहला कदमcompleet) ...(मेले के रंग सास,बहू और ननद के संग).


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(फैमिली में मोहब्बत और सेक्स (complet))........(कोई तो रोक लो)......(अमन विला-एक सेक्सी दुनियाँ)............. (ननद की ट्रैनिंग compleet)..............( सियासत और साजिश)..........(सोलहवां सावन)...........(जोरू का गुलाम या जे के जी).........(मेरा प्यार मेरी सौतेली माँ और बेहन)........(कैसे भड़की मेरे जिस्म की प्यास)........(काले जादू की दुनिया)....................(वो शाम कुछ अजीब थी)
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Ankit
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Re: लाड़ला देवर ( देवर भाभी का रोमांस)

Post by Ankit »

मेरे हाथ उसके कुल्हों से हटकर उसकी पीठ पर आ गये और जैसे ही मेरी उंगलियों ने उसकी ब्रा के एकमात्र हुक को टच किया, वो शरारत कर बैठी, और उसकी ब्रा भी पानी में तैरती नज़र आने लगी…

नीचे मेरा डंडा फुल फ्लश में अकड़ चुका था और इस समय उसकी गांद और चूत के होठों को सहारा दिए हुए था…

दीदी लगातार उसपर अपनी गांद और चूत के होठों को घिस रही थी… अब उसे अपनी पेंटी भी किसी सौतन की तरह अखरने लगी..

वो मेरी बाहों में पीछे को पलट गयी और अपने नंगे अल्लहड़ कच्चे अमरूद जो पकने के लिए तैयार थे मेरी आँखों के सामने कर दिए…

मेरा मन भी उन्हें खाने के लिए मचलने लगा…

मस्ती के जोरेसे उसके अंगूर के दाने जैसे निपल कड़क होकर मुझे निमंत्रण दे रहे थे…

मेरी चटोरी जीभ कहाँ मानने वाली थी.. और उसके एक अंगूर को बड़े प्यार से बड़ी शालीनता से चाट लिया…………….

ईईईीीइसस्स्स्स्स्स्स्शह………..भाईईईईईईईईईईईई………….आआआहह…..

जोरेसीईए…..चतत्त….ना………प्लेआस्ीईईईईई…………

मे भी उसे तड़पाना चाहता था… सो उसी तरह धीरे से दूसरे अंगूर को भी अपनी जीभ की नोक से जस्ट टच कर दिया…….

ज़ॉर्सीईईईई……….चातत्तत्त…ना.. भेन्चोद्द्द्द्द्द्द्द्द्द……..

दीदी की सहनशक्ति जबाब दे गयी… और उसके मूह से गाली निकल गाइिईई….

मे उसके मूह की तरफ देखता रह गया… और शरारती लहजे में कहा – दीदी अभी कहाँ हुआ हूँ मे भेन्चोद..?

वो – तो जल्दी बन जा ना….! और उसने अपने एक हाथ को मेरे गले से हटा कर, अपनी एक चुचि पकड़ कर मेरे मूह में ठूंस दी..

उसकी चुचि को चूस्ते हुए मे उसकी गांद की गोलाईयों को भी नाप-जोख रहा था…

उसकी पेंटी में कुच्छ चिप-चिपाहट मेरे पेट पर महसूस हो रही थी…उसकी गर्दन पीछे को लटक गयी..

वो तो अच्छा था कि उसके पैरों ने मेरी कमर को कस रखा था…

जल्दी कुच्छ कर ना मेरे भाई… सिसकते हुए कहा उसने…

मे बोला – क्या करूँ दीदी.. कर तो रहा हूँ.. जो तुमने कहा वो…

वो - इसके आगे का… ! अब नही रहा जाता… आअहह… प्लीज़ छोटू… जल्दी से कुच्छ कर वरना मेरी जान ही ना निकल जाए कहीं…

मे उसको उसी पोज़िशन में झील के किनारे पर ले आया वो मेरे गले से लटक कर खड़ी हो गयी..

तो मेने उसकी पेंटी नीचे खिसका दी.. और उसकी जांघों के बीच बैठ गया…

पहली बार मेने उसकी प्यारी मुनिया के दर्शन किए, जो अपने बंद होठ किये हल्के बलों के बीच सूरज की तेज रोशनी में किसी कली की तरह चमक रही थी..

मेने दीदी की गोल-सुडौल जांघों जो अभी तक ज़्यादा मांसल नही हुई थी, और उन दोनो के बीच थोड़ा सा गॅप था..

हल्की उभरी हुई उसकी मुनिया को देखते हुए चूम लिया.. और उसके होठों को खोलकर, अंदरूनी हिस्से को चाटने लगा…

वो अपनी आँखें बंद किए खड़ी मेरे बालों को अपनी उंगलियों से सहला रही थी…

खुले आसमान के नीचे हम दोनो बिना किसी परवाह के अपनी वासना के वशीभूत एक दूसरे के उन्माद को शांत करने के प्रयास में लगे थे..

हमें ये भी डर नही था कि कोई इधर आ भी सकता है…

हालाँकि जुलाइ की उमस भरी दोपहरी में इस बात के कम ही चान्स थे.. फिर भी एक आशंका मन में ज़रूर थी.. सो मेने अपना सर उठाकर दीदी से कहा-

दीदी ! यहाँ कोई आ गया तो…

वो जैसे सपने से जागी हो.. और झल्लाकर बोली – तू मार खाएगा अब मेरे हाथ से..

साले कुत्ते… मे मरी जा रही हूँ.. और तुझे ऐसी गान्ड फट बातें सूझ रही हैं…

उसके मूह से ऐसी बातें सुन मुझे हँसी आ गई और मेने जीभ निकाल कर उसकी रस से भरी कुप्पी के उपर फिराई…

सस्स्स्स्स्स्स्स्सिईईईईईईईईईई…….आआआआआअहह…..आआनन्नह…चत्ले आक्चीई…सीए…हाईए…रीई.. थोड़ा खोल लीयी… उसीए… आहह.. आईसीई…हिी…उईई…माआअ….हांननगज्गग…..

मेने उसकी मुनिया की फांकों को खोल कर उसकी अन्द्रुनि दीवार से जीभ लगा कर रगड़ दी…

मेरी खुरदूरी जीभ के घर्षण से वो बिल-बिला उठी… और उसने मेरा सर कसकर अपनी मुनिया के मूह से सटा दिया और अपने पंजों पर खड़ी हो गयी..

मेरी जीभ की नोक जैसे ही उसके छोटे से छेद में घुसने की कोशिश करती, वैसे ही वो वापस आजाती…

उत्तेजना के कारण उसकी क्लिट निकल कर बाहर आ गया… जिसे मेने जीभ से चाट कर अपने होठों से दबा लिया…और अपनी एक उंगली से उसके छेद के उपर मसल्ने लगा….

उफफफफफफफफ्फ़….कचूततुउउ…म्मेरीए…भाइईइ….मईए….आअहह….गाइिईईई…

और किल्कारी मारते हुई वो झड़ने लगी…मे उसकी कोरी गागर का सारा पानी पी गया, जो किसी अमृत से कम नही था… मेरे लिए…

अपनी बड़ी बेहन का अमृत पीकर मे धनी हो गया…. वो खड़ी खड़ी हाँफ रही थी… उसकी टाँगें काँपने लगी थी…

फिर वो बोली- मुझे कहीं छाया में ले चल… अब मुझसे धूप में खड़ा होना मुश्किल हो रहा है…

मेने उसे गोद में उठाया और पेड़ों की छाया की तरफ ले चला………

मेने एक घने पेड़ की छाया के नीचे उसे घास पर उतार दिया… और अपना अंडरवेर नीचे करके बोला – दीदी ! तुम भी थोड़ा इसे प्यार करो ना !

उसने भी आज पहली बार उसे बिना कपड़ों के देखा था, वो अपने पंजों पर मेरे सामने बैठ गयी और मेरे लंड को हाथ में लेकर सहलाते हुए बोली- छोटू.. ये तो बहुत बड़ा और मोटा भी ….!

मे – तुम्हें अच्छा नही लगा ? तो वो तपाक से बोली – अच्छा तो है.. पर …. ये मेरी उसमें घुस पाएगा…?

मेने कहा – किस्में घुसने की बात कर रही हो..? तो वो सकपका गयी.. और झिझकते कुए बोली – मेरी उसमें…

तुम लोग क्या कहते हो उसको.. जिससे हम लड़कियाँ सू सू करती हैं…

मे – मुझे क्या पता.. तुम किससे सू सू करती हो…?

वो – तू बहुत बदमाश होता जा रहा है… अरे भाई.. वो..सी.च.चुत…बस अब बता.. घुस जाएगा…

मे – मुझे क्या मालूम.. मेने कभी घुसाया है क्या तुम्हारी चूत में जो मुझे पता हो…? और अगर तुम्हें डाउट हो तो रहने दो…

उसने मेरे कूल्हे पर एक ज़ोर की चपत मारी.. और मेरे लंड को मसल कर बोली – अब तो चाहे जो भी हो… इसे तो मे आज लेकेर ही रहूंगी अपनी चूत में.. भले ही साली फट ही क्यों ना जाए…!

और उसे आगे-पीछे करने लगी, मेरा लंड तो उसके कोमल हाथ में आते ही ठुमके लगा रहा था,
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Ankit
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Re: लाड़ला देवर ( देवर भाभी का रोमांस)

Post by Ankit »

अब तो उसके धैर्य की सीमा ही ख़तम होती जारही थी, जिसके चलते उसने एक बूँद अपने रस की सॅंपल के तौर पर उसको पेश करदी…

सफेद मोटी जैसी बूँद को देख कर दीदी ने उसे अपनी उंगली के पोरे पर रख लिया और उसे देखने लगी…

मे – क्या देख रही हो, जैसे मेने तुम्हारे रस को पीया है अमृत समझ कर वैसे ही ये तुम्हारे लिए अमृत है, चख कर देखो…

उसने झेन्प्ते हुए उसे अपनी जीभ से टच किया.. और उसका स्वाद लेने की कोशिश करती रही… फिर उसने अपनी पूरी उंगली को मूह में ले लिया..

मे – कैसा है… ? तो उसने आँखों के इशारे से ही हामी भरी और फिर अपनी उंगली मूह से निकाल कर बोली – टेस्टी है..

तो मेने कहा.. फिर देख क्या रही हो इसे मूह में लेकर प्यार करो… चूसो इसे.. जिससे ये तुम्हारी राम दुलारी को अच्छे से प्यार दे सके..

मेरी बात मान मुस्कुराते हुए उसने मेरे गरम सुपाडे को अपने होठों में क़ैद कर लिया और चूसने लगी.. और फिर धीरे-2 उसने उसे आधी लंबाई तक अपने मूह में कर लिया..

मेरी उत्तेजना बढ़ती जा रही थी… लंड एकदम कड़क हो चुका था, उसकी नसें फूलने लगी.. मेने उसका मूह अपने लंड से अलग हटाया तो वो मुझे नाराज़गी वाले भाव लाकर देखने लगी…

मेने कहा, अब इसको अपनी प्यारी-2 मुनिया में लेने का समय आ गया है.. और उसको वहीं हरी-हरी घास पर लिटा कर उसके घुटनो को मोड़ कर उसके पेट से लगा दिया,

मेने अपने घुटने ज़मीन पर टिकाए… फिर उसके कुल्हों को अपनी जांघों के उपर रखा…

अब उसकी छोटी सी कुँवारी चूत उपर को उभर आई, जिसे मेने एक बार फिरसे अपनी जीभ से चाट लिया, और उसकी मुनिया के होठ खोलकर अपना मोटा टमाटर जैसा सुपाडा उसके छोटे से छेद पर भिड़ा दिया…

मेरे सुपाडे से उसकी छोटी सी चूत एकदम ढक सी गयी थी… मेने अपनी कमर को हल्का सा पुश किया, जिससे वो उसकी गीली चूत में सेट होगया…

इतने से ही दीदी के शरीर में झुरजुरी सी दौड़ गयी और उसने अपनी आँखें कस कर बंद कर ली..

मेने एक हल्का सा धक्का अपनी कमर को लगाया.. तो मेरा सुपाडा आधे से थोड़ा ज़्यादा अंदर समा गया और वो किसी दीवार जैसी परत पर जाकर अटक गया.. जो शायद उसकी झिल्ली थी..

रामा के मूह से एक हल्की सी चीख निकल गयी…. और उसकी आँखों में पानी आगया…

मेने दीदी को एनकरेज करते हुए कहा – दीदी थोड़ा मॅनेज करना पड़ेगा… और फिर एक लंबी साँस लेकर एक जोरदार धक्का लगा दिया….

आआयययययययययययीीईईईईईई……..माआआआअ…………मररर्र्र्ररर………गाइिईईईईईईईईई……….रीईईईईईईईई……..आआआआअहह…….

एक फ़च की आवाज़ के साथ उसकी झिल्ली फट गयी.. और एक खून की धार मेरे लंड की साइड से निकली….

मेरा लंड भी दर्द करने लगा था… शायद उसकी चूत की झिल्ली से वो भी रगड़ गया था…

5-7 मिनिट मे यूँ ही पड़ा रहा… उसके उपर, और इस दौरान मे उसके आँसू पोंछता रहा, उसको ढाढ़स देता रहा…

फिर उसको चुप कराकर.. उसके होंठो को चूसा… उसकी चुचियों को सहलाया… तब जाकर वो नॉर्मल हुई… और मेरा भी दर्द कम हुआ..

कुच्छ देर बाद मेने उसको पुछा – दीदी अब दर्द तो नही है.. तो उसने ना में सर हिलाया और बोली – पूरा चला गया कि नही…

मे – हां ! लगभग… बस थोड़ा और वाकी है.. जबकि अभी मेरा आधा लंड ही गया था..,

अब मेने आधे लंड को थोड़ा बाहर को निकाला… लंड के साथ उसकी चूत की अन्द्रुनि परत भी बाहर तक आई…और साथ ही उसकी कराह भी निकल गयी…

मे थोड़ा रुका और फिर से उतना अंदर कर दिया… तो वो फिर कराही… ऐसे ही बड़े ध्यान से… आराम से मेने अपने आधे लंड को अंदर-बाहर किया..

कोई 20-25 बार में ही उसकी चूत फिरसे गीली होने लगी और उसको दर्द होना बंद हो गया..

अब वो भी मेरे साथ सहयोग देने लगी.. उसकी चूत से लाल लाल रस निकल रहा था.. मेने मौका देख एक और भरपूर धक्का मार दिया और पूरा लंड उसकी चूत में डालकर रुक गया…

ऊ…माआ…मार दलाअ… रीए.. भेह्न्चोद… साले… और कितना डालेगा… तेरा ये खूँटा मेरे पेट तक तो पहुँच गया…

मे – बस ये एंड होगया.. दीदी.. अब तेरी चूत ही इतनी छोटी है.. तो इसमें बेचारे मेरे खूँटे का क्या दोष..

और उसकी चुचियों को मसल्ते हुए उसके होठों को चूम लिया…

थोड़ी देर के बाद मेने फिरसे धीरे-2 धक्के लगाना शुरू कर दिया.. कोई 5 मिनिट बाद ही दीदी भी नीचे से अपनी कमर उचकाने लगी और मेरे धक्कों का साथ देना शुरू कर दिया…

आहह… छोटुऊ…जल्दी-जल्दी कर.. बहुत मज़ाअ.. आरहाआ.. है..सस्सिईईईई…हान्न्न…और ज़ॉर्सईए….हाईए…रीए…कितनाअ…मज़ाअ..आट्टाअ…चूड़नीई..मीईंन….शाबास और..टीज़्जज……उफफफ्फ़.. मे..गाइिईईईई…रीई….ओह…गोद्ड़द्ड…

वो जोरेसे मेरी कमर में अपने पैर लपेट कर चिपक गयी.. और इतनी ज़ोर्से झड़ी… कि.. तमाम गाढ़ा-गाढ़ा रस मेरे लंड की साइड से बहने लगा…

मेरे धक्कों की गति धीमी पड़ गयी थी क्योंकि उसने मुझे ज़ोर्से कस रखा था…. लेकिन मेरा होना अभी वाकी था तो धक्के लगाता रहा…

जब वो थोड़ा होश में आई तो बोली- भाई.. घास से मेरी पीठ छिल्ने लगी है.. तो मे उसे लेकर खड़ा हो गया,

मेरा डंडा इस समय 60 डिग्री खड़ा था, जो अकड़कर किसी शख्त रोड की तरह लग रहा था.

मेने उसकी जाँघो के नीचे से हाथ डाल कर उठा लिया, और अपने सुपाडे को उसकी ताज़ी फटी चूत के छेद पर फिट कर दिया.


उसने अपनी बाहें मेरे गले में लपेट ली थी, जैसे ही मेरा लंड उसकी चूत में सेट हुआ,

मेने उसके शरीर के भार को नीचे की ओर आने दिया… नतीजा… धीरे-2 पूरा लंड उसकी चूत में समा गया...

दीदी एक बार फिर दर्द से बिलबिला उठी, क्योंकि अभी कुच्छ पल पहले ही उसकी मुनिया घायल हुई थी.. और अब एक साथ मेरा पूरा मूसल एक ही साथ समाकर उसके पेट तक ठोकर मारने लगा था.

हम दोनो के प्रयास से वो दो-चार बार आराम से उपर नीचे हुई, लंड किसी पिस्टन की तरह अंदर जाता, बाहर आता.. जिसे वो अपनी खुली आँखों से देख भी रही थी.

वो फिरसे गरम होने लगी और मेरे लंड पर कूदने लगी.. मिझे इतना मज़ा आरहा था जिसे शब्दों में बयान नही किया जा सकता…

10 मिनिट खड़े –खड़े चोदने के बाद हम दोनो एक साथ झड़ने लगे, वो मेरे सीने से ऐसी चिपक गयी, जैसे कि कभी अलग ही ना होना हो…

हम दोनो एक बार फिर झील में उतार कर नहाए, एक दूसरे के बदन को साफ किया…
और फिर बाहर आकर अपने अपने कपड़े पहने, बुलेट में किक लगाई और अपने घर को चल दिए…

रास्ते मे मेने उसे पुछा – दीदी अब तो खुश हो ना ! ये सुनते ही उसने मुझे पीछे से अपनी बाहों में कस लिया और मेरी गर्दन को चूमते हुए बोली –

थॅंक्स भाई… आज तूने मेरा वर्षों का सपना पूरा कर दिया…

मे – तो क्या तुम वर्षों से मेरे साथ ये सब करने का सोच रही थी..?

वो – सच कहूँ तो हां !... हर लड़की अपने जीवन में इस दिन का बड़ी बेसब्री से इंतेज़ार करती है, जब वो एक कली से फूल बनना चाहती है.., वो एक लड़की से औरत बनती है…

लेकिन मुझे पता नही क्यों बाहर के लड़कों पर कभी भरोसा नही हुआ.. इसलिए मे तेरे साथ वो सब करती रहती थी कि शायद तू मेरी फीलिंग्स को समझे..

लेकिन बहुत कोशिशों के बाद भी तू मेरी भावनाओं को, मेरे इशारों को नही समझा, तब मेने तेरे उपर नज़र रखना शुरू कर दिया,

और मुझे तेरे और भाभी के बारे में कुच्छ-2 शक़ होने लगा…

जब भाभी तेरी मालिस करती थीं, तो छुप-2 कर मे वो सब देखा करती थी… वो भी जिस दिन भाभी ने पहली बार तेरा कॉक मूह में लिया था…

मे उसकी बातें सुन कर झटका खा गया… फिर संभलते हुए बोला…

मे – तो क्या तुम्हें भाभी और मेरे संबंध से एतराज है…

वो – बिल्कुल नही…! सच कहूँ तो भाभी को उनका हक़ मिला है.. उन्होने ही तुझे ऐसा बनाया है, तुझे सवारने में अपने इतने साल गँवाए हैं…

तेरी हर तकलीफ़ उन्होने अपने उपर झेली है…, तो तेरे उपर पहला हक़ तो उनका ही है..

सच कहूँ तो मे उनके लिए बहुत खुश हूँ.

और अब तो तूने मुझे भी उस खुशी में शामिल कर लिया है…इसके लिए मे हमेशा तेरी अहसानमंद रहूंगी मेरे प्यारे भाई…

ये कहते हुए उसने उचक कर मेरे गाल को चूम लिया…

रामा की भावनाए आज खुलकर सामने आ गयी थी…और उसने जो चाहा वो आज उसे मिल भी गया था..

बुलेट की आवाज़ सुनकर आस-पास के भी लोग हमारे दरवाजे पर आगये थे, मेरी पर्सनॅलिटी के हिसाब से बुलेट एकदम मेरे लिए सही बाइक थी, जो शायद भाभी का ही सपना हो मुझे बुलेट चलाते देखना…

मेने अपने दरवाजे पर पहुँचकर जैसे ही बाइक खड़ी की, भाभी दौड़ कर बाहर आगयि, उनके हाथ में आरती की थाली थी,

मे उतरने को हुआ तो उन्होने हाथ के इशारे से रुकने को कहा और मेरे सीट पर बैठे-2 ही मेरी आरती उतारी, अपने दोनो हाथों को मेरे सर के दोनो ओर से उवार कर मेरी बालायें ली, फिर मेरे माथे को चूमकर बोली- अब आ जाओ…

ये सब बाबूजी दूर बैठे देख रहे थे, उनकी आँखों में पानी था… फिर वो हमारे पास चले आए,

भाभी ने जैसे ही उनके पैर छुये, वो गद गद होगये और उन्हें ढेरों आशीर्वाद दिए.

दीदी मेरे पीछे से उतर कर बॅग हाथ में लिए घर के अंदर जा रही थी, उसकी चाल कुच्छ बदली-2 सी देख भाभी को कुच्छ शक़ हुआ लेकिन उन्होने कुच्छ कहा नही..
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