कामलीला complete

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rangila
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Re: कामलीला

Post by rangila »

बच्चों की छुट्टी करके जल्दी घर भेज दिया और तब मैंने रंजना को सारी बात बताई। रंजना को कोई हैरानी नहीं हुई बल्कि उसे सोनू की बदली हुई मानसिकता का पहले ही पता था।
अब वह उम्र के जिस दौर में था वहां शरीर में वीर्य का इतना उत्पादन होता है कि किसी युवा का इस तरह चेंज हो जाना कोई खास महत्त्व नहीं रखता।
कई युवाओं का अपने वीर्य को निकालने का ‘जुगाड़’ हो जाता है तो कई सोनू जैसे साधारण शक्ल-सूरत वाले युवा भी होते हैं जिनका कोई इंतज़ाम नहीं हो पाता, तो वे हस्तमैथुन का सहारा लेते हैं और ऐसे ही हर सामने पड़ने वाली लड़की से आकर्षित हो जाते हैं…
चाहे वह उनकी सगी बहन ही क्यों न हो।
उन्हें इन बातों की कोई परवाह नहीं होती कि क्या जायज़ है और क्या नाजायज़, क्या नैतिक क्या अनैतिक… उनके लिए सब बराबर।
कई बार वह खुद सोनू को उसी की ब्रा या पैंटी हाथ में लिए हस्तमैथुन करते देख चुकी थी, पकड़ चुकी थी लेकिन कभी उसने सोनू के चेहरे पर शर्मिंदगी नहीं देखी थी।
फिर उसने मुझसे पूछा कि क्या मैं अपने वर्तमान से खुश हूँ? क्या मेरे शरीर में सहवास की प्राकृतिक रूप से पैदा होने वाली इच्छाएं नहीं पनपती? क्या मुझे उम्मीद है कि किसी जायज़ तरीके से वे पूरी हो जाएंगी?
उस दिन ऐसी ही बातों से, जैसी मैंने अभी तुमसे की… रंजना ने मेरे सोचने का तरीका बदल दिया। उसने तुम्हारा उदाहरण दिया कि कैसे तुम सभी सामाजिक मूल्यों का पालन करते, सभी नैतिकता के मापदंडों को पूरा करते इतने साल गुज़ार लाई।
लेकिन हासिल क्या हुआ और क्या हासिल होने की उम्मीद है। क्या जब सारा वक़्त निकल जायेगा और कुछ नहीं हासिल होगा और ये अहसास होगा कि जलते झुलसते बेकार में समाज के नियम निभाती रही।
तो क्या वापसी करके वहां पहुंच पाओगी जहाँ से जवानी का दौर शुरू हुआ था। क्या ज़िन्दगी में भी कोई रिवर्स सिस्टम होता है जो बाद में अपनी गलती का पता चलने पर वापस हो के उसे सुधारने का कोई मौका देता हो?
पहली बार मैंने भी उस दिन रंजना की नज़र से खुद को देखा। मैं वही कर रही थी जो हमारे जैसी घर पे कुँवारी बैठी सैकड़ों हज़ारों लड़कियाँ करती हैं… अपनी इच्छाओं का क़त्ल!
मुझे यह समझ में आ गया कि मैं चाहे इन सामाजिक नियमों को निभाते बूढ़ी भी हो जाऊं, अगर शादी न हो सकी, जिसकी कोई उम्मीद भी नहीं तो क्या यह समाज मेरे लिए भी कोई चोर रास्ता निकलेगा?
तो क्यों न मैं इन्हें ताक पर रख दूं।
रंजना ऐसा ही चाहती थी, वह खुद भी ठोकर मार चुकी थी इन नियमों को पर विकलांग थी, कहीं आना-जाना मुश्किल था और घर पे आने वाला मर्द सिर्फ एक था जो उसका सगा भाई था।
सगे भाई से सम्भोग के लिए वह खुद को तैयार नही कर पाती थी इसलिए कुढ़ने पर मजबूर थी लेकिन मैं क्यों मजबूर थी।
मैं तो आ-जा सकती थी।
मेरे लिये तो एक मर्द वहीं मौजूद था जो मेरा सगा भाई नहीं था।
उसके शब्दों का जादू था या मेरी दबी इच्छाओं का उफान कि दिमाग वैसा ही सोचता गया जैसा वह चाहती थी और उसके उकसाने पर मैं जैसे जादू के ज़ोर से बंधी ऊपर उसके कमरे तक पहुंच गई।
उसका दरवाज़ा बंद था… मैंने सोचा पुकारुं पर हिम्मत न हुई।
दरवाज़े के पास ही खिड़की थी जिसके पल्ले अधखुले थे… वहां से पूरा तो नही पर आधा-अधूरा तो देखा जा सकता था।
सोचा उसे देख के हिम्मत पैदा करुं।
देखा तो बदन में पैदा हुई आग और भड़क गई… पागल था, पूरा नंगा बिस्तर पर पड़ा था और अपने हाथ से अपने लिंग को सहला रहा था।
मैं यह नहीं कह सकती कि मैंने कभी लिंग देखा नहीं था, चाचा का देखा था, उतना बड़ा तो नहीं पर फिर भी बड़ा था… सात इंच तक तो ज़रूर था और वैसे ही मोटा भी।
मेरे हलक में जैसे कुछ फंस गया… एक मादकता से भरी सरसराहट नीचे दोनों टांगों के बीच होने लगी लेकिन उसी पल बचपन के संस्कार और समाज के नियम नाम के दो फ़रिश्ते वहाँ पहुंच गये।
उन्होंने मुझे सोनू को पुकारने नहीं दिया, मेरे शब्द हलक में घुट गये, मेरे बाजुओं को पकड़ लिया और मुझे खिड़की-दरवाज़ा खटखटाने नहीं दिया।
कुछ देर उनसे जूझते फिर बेबसी से मैं वापस हो गई।
मैं रंजना से यह कहकर कि मुझमें खुद आगे बढ़ने की हिम्मत नहीं, कभी वह खुद से आगे बढ़ेगा तो देखा जाएगा… वहाँ से चली आई।
फिर दो दिन बाद ऐसा मौका आया जब दोपहर में रंजना ने उसे मुझे बुलाने भेजा।
मैंने उसे यही कहा कि मैं आधे घंटे बाद आकृति के आ जाने के बाद आ पाऊँगी।
उस वक़्त मैं अकेली ही तो होती हूँ, एक बजे आकृति आती और दो बजे बबलू।
उसने चाय पीने की इच्छा की तो उसे बरामदे में बिठा कर मैं किचन में चली आई।
मैं उस वक़्त सिंक में कुछ धो रही थी कि चुपके से वह मेरे पीछे आ खड़ा हुआ।
मैंने एकदम पलट के देखा तो वह मुझसे ऐसे सट गया जैसे बस में सटा था।
मेरे हाथ रुक गये।
‘यहाँ कौन सी भीड़ है?’ मैंने थोड़े गुस्से से कहा।
‘अपना काम करती रहो दीदी।’ उसने मेरी कमर थामते हुए कहा।
उसके स्पर्श ने मुझे झटका दिया था, नैतिकता और नियमों वाले फ़रिश्ते फिर सामने आये पर मैं उन्हें दूर ही रहने को कहा और उस स्पर्श को महसूस करने लगी कि वह मुझे कैसा लग रहा था।
एक नर्म गुदगुदाहट का अहसास, रोएं खड़े हो गये थे… सीने के उभारों में एक कसक और दोनों जांघों के बीच छुपी हुई जगह में एक मखमली हलचल।
एक मस्ती भरी सनसनाहट महसूस होने लगी थी।
दिमाग में रंजना की बातें गूंजने लगीं।
क्या इस वक़्त के गुज़र जाने के बाद मैं फिर वापस ला सकती थी?
नहीं, तो क्यों मैं इसे ऐसे ही गुज़र जाने दूँ।
मैंने सामने खड़े दोनों फरिश्तों को बाय कर दिया।
और इत्मीनान से खड़ी होके अपना काम करने लगी।
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rangila
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Re: कामलीला

Post by rangila »

यह और बात थी कि दिमाग इस चीज़ पर एकाग्र था कि क्या हो रहा था और जो हो रहा था उससे मुझे क्या महसूस हो रहा था।
उसने दोनों हाथों से मेरे नितम्ब सहलाये थे… मेरी कमर को रगड़ते हुए अपने हाथ ऊपर खींचे थे और ऊपर अपनी दोनों मुट्ठियों में मेरे अवयव कस लिए थे।
मेरे पूरे शरीर में लज्जत भरी गर्महाहट और कंपकपाहट पैदा हो गई थी, दिमाग पर ऐसा नशा छाने लगा था जिसे शब्दों में ब्यान नहीं किया जा सकता।
फिर उसने हाथ नीचे किये और मेरे कुर्ते के दामन को ऊपर उठा कर पकड़ लिया।
नीचे मैंने लेगिंग पहनी हुई थी, उसने लेगिंग को एकदम से ऐसे नीचे किया कि मेरे कूल्हे अनावृत हो गये।
शर्म का एक तेज़ अहसास हुआ मुझे और मैंने अपने हाथ से उसे फिर ऊपर चढ़ाने की कोशिश की, लेकिन इस कोशिश में भी मैंने अपनी दिशा नहीं बदली थी।
मैंने ऊपर चढ़ाया तो उसने फिर नीचे कर दिया…
मैंने फिर चढ़ाया, उसने फिर नीचे कर दिया और कई बार की कोशिश ने मेरी शर्म को हरा दिया और हाथ वापस ऊपर सिंक की तरफ आ गया।
मैं पीछे मुड़ कर उस इंसान का सामना नहीं करना चाहती थी, जिसे हमेशा किसी और नज़र से देखती आई थी।
बस सामने देखते मन की आँखों से उसे महसूस कर रही थी।
फिर उसने अपनी पैंट आगे से खोली थी शायद… क्योंकि अगले ही पल उसके लिंग की तेज़ गर्माहट मुझे अपने नितम्ब पर महसूस हुई थी।
वह फिर मुझसे इस तरह सट गया कि बीच में उसका सख्त लिंग मुझे चुभन देने लगा।
कुछ देर की गर्माहट के बाद वह हट गया और फिर एक हाथ से कुर्ते का दामन थामे दूसरे हाथ से शायद अपना लिंग पकड़ के मेरे नितंबों की दरार में फिराने लगा।
‘रंजना दी ने मुझे बता दिया था कि आपको कोई ऐतराज़ नहीं, बस आगे मुझे बढ़ना होगा।’
उसने लिंग की छुअन नितम्ब की दरार में मौजूद छेद पर देते हुए कहा।
जानकार मुझे हैरानी नहीं हुई और मैंने कुछ रियेक्ट भी नहीं किया। बस पूरी एकाग्रता से उस स्पर्श को अनुभव करती रही जो मुझे सर से पांव तक रोमांचित कर रहा था।
फिर उसने दामन छोड़ दोनों हाथों से दोनों कूल्हों को एकदूसरे के समानांतर खींचा… ऐसे दोनों के फट जाने से न सिर्फ उसे मेरा गुदाद्वार दिख गया होगा बल्कि योनि का निचला सिरा भी दिखा होगा।
उसने एक उंगली उस घडी गीली हो चुकी योनि में फिराई।
मुझे करेंट सा लगा और मैंने चिहुंक कर हटने की कोशिश की पर उसने उसी पल ताक़त लगा कर मुझे रोक लिया और अपना लिंग नीचे झुकाते हुए पीछे से ऐसे घुसाया कि योनि को छूते हुए आगे आ गया।
इस स्थिति में मैं उसके लिंग को अपनी जांघों के बीच पा रही थी और मेरी योनि के खुले अधखुले लब उसके ऊपरी सिरे को रगड़ते हुए गीला कर रहे थे।
वह इस तरह मेरी योनि के अंदरूनी भाग की गर्माहट महसूस कर सकता था और साथ ही मेरी जाँघों की कसावट भी!
इसके बाद वह फिर मेरी पीठ से सट गया।
अपने हाथ उसने मेरे कुर्ते में पेट की तरफ से घुसा लिये थे और ऊपर चढ़ाते, मेरी ब्रा को ऊपर की तरफ धकेल कर, दोनों उभारों को बाहर निकाल लिया था और उन्हें मसलने लगा था।
अब जो महसूस हो रहा था वह यह कि जितना मज़ा आ रहा था उससे ज्यादा एक अजीब किस्म की बेचैनी हो रही थी। उसके हाथों से मेरे वक्षों का मसलना जितना मज़ा दे रहा था उससे ज्यादा निप्पल्स पर मिलने वाली रगड़ रोमांचित कर रही थी।
तभी बाहर किसी ने घंटी बजा दी, सारी कल्पनाएं झटके से छिन्न-भिन्न हो गईं और हम एकदम आसमान से ज़मीन पर आ गये। जल्दी से एकदूसरे से अलग होकर कपड़े दुरुस्त किये और उसे बरामदे में बैठने का इशारा करके मैं दरवाज़ा खोलने भागी।
उम्मीद के मुताबिक आकृति ही आई थी।
सोनू तो घर का ही बंदा था इसलिये शक़ की कोई गुंजाईश नहीं थी।
उसे चाय पिलाई और आकृति से कह कर कि मैं रंजना के पास जा रही हूं… घर से चल दी।
रंजना मेरा इंतज़ार ही कर रही थी।
उसे मैंने आज की बात बताई तो उसे ख़ुशी हुई कि मैंने एक बाधा तो पार की।
फिर उसने बताया कि उसने इसीलिये मुझे बुलाया था क्योंकि आज माँ-बाबा बाराबंकी गये हैं किसी काम से और शाम तक आएंगे।
बच्चे भी चार बजे आने हैं… बीच में हमारे पास दो घंटे पूरी तरह अपने तरीके से गुज़ारने का मौका है और चाहे तो इसका इस्तेमाल किया जा सकता है।
मेरी ज़ुबान गुंग हो गई… मैं कह न पाई कि घर में जो आग सोनू ने लगाई थी वह अभी भी अधूरी है और बिना अंत तक पहुंचे मुझे चैन नहीं देगी।
पर वह सब समझती थी, मुझे बाद में पता चला कि उसे ऐसे हालात में इंसान पर क्या गुज़रती है इसका इल्म था… वह खुद मुझे ऊपर सोनू के पास ले के पहुंची थी।
‘सोनू, ध्यान से करना… जानवरों जैसा बर्ताव न करना और रानो… तू दिमाग से सबकुछ निकाल दे और दो घंटों के लिए खुद को हालात के भरोसे छोड़ दे। जो होता है होने दे। किसी मदद की ज़रूरत पड़ी तो मैं हूँ न।’ उसने मुझे भरोसा दिलाया था और कमरे से निकल गई थी।
सोनू ने लपक के दरवाज़ा बंद किया और एकदम से मुझ पर जैसे टूट ही पड़ा।
अब तक वह मेरे लिए बच्चा ही था लेकिन अब मर्द महसूस हो रहा था, उसके पसीने की गंध मुझे उत्तेजित कर रही थी।
उसने मुझे बिस्तर पर गिरा लिया था और मेरे सीने को मसलते मेरे गालों पर अपने होंठ रगड़ रहा था। दिमाग में अभी भी कहीं न कहीं, गलत, अनैतिक जैसी क्षीण सी भावनाएं मौजूद थीं और साथ ही ये अहसास भी कि वह कितना छोटा था।
फिर उसने मेरे होंठों पर अपने होंठ सटा दिये।
अजीब सा गीला-गीला लगा लेकिन जब उसने होंठों को चूसना शुरू किया तो जल्दी ही मुझे अहसास हो गया कि मैं खुद को उसका मज़ा लेने से रोक नहीं सकती थी।
पहली बार मैंने महसूस किया कि मैं अपने खोल से बाहर निकली हूँ… मैंने खुद से आगे बढ़ कर उस चीज़ को हासिल करने की कोशिश की है जो मुझे आनन्द प्रदान कर रही थी।
मैंने खुद से उसके होंठों को चूसना शुरू किया और मेरी तरफ से सकारात्मक प्रतिक्रिया मिलते ही उसमें और जोश आ गया।
वह ऐसे मेरे होंठ चूसने खींचने लगा जैसे चबा ही डालेगा।
फिर जाने किस भावना के वशीभूत होकर मैंने अपनी ज़ुबान उसके मुंह में पहुंचा दी और वह वैसी ही बेताबी और जोश से उसे भी चूसने लगा।
फिर मैंने जीभ खींची तो पीछा करते उसने जीभ मेरे मुंह में घुसा दी जिसे मैं चूसने लगी।
उसके दोनों हाथ मेरे बदन पर फिर रहे थे, मेरे वक्ष का मर्दन कर रहे थे, कपड़े के ऊपर से ही मेरी योनि को रगड़ रहे थे और अब मेरे हाथ भी वर्जना को तोड़ कर उसकी पीठ पर फिरते उसे मसलने लगे थे।
दरअसल हम दोनों ही अनाड़ी थे, अनुभवहीन थे इसलिए दोनों के यौन-व्यवहार में उतावलापन था, बेताबी थी, जंगलीपन था, जल्दी ही सब सुख पा लेने की होड़ थी।
और इसीलिये दोनों ही एक दूसरे को मसले दे रहे थे, रगड़े दे रहे थे… वह कम नहीं था तो मैं भी पीछे नहीं थी।
पहली बार तो मैंने लक्ष्मणरेखा लांघी थी… अब कुछ भी हो, मैं इन पलों को अच्छे से जी लेना चाहती थी।
बिस्तर की हालात तहस-नहस हो गई थी।
फिर उसने मेरे कपड़े उतारने चालू किये, सबसे पहले कुर्ते को ऊपर खींचते उतार फेंका… शर्म ने मुझे कुछ देर तो बांधे रखा लेकिन जैसे ही उसने मेरी ब्रा को उतार कर अपने मुंह से मेरी चूचियों को रगड़ना-चुभलाना शुरू किया…
उत्तेजना ने शर्म को फ़ना कर दिया।
मैंने भी उसकी टी-शर्ट नीचे से ऊपर की तरफ खींची और उसे उतार फेंका।
फिर वह मेरे ऊपर लद गया… नग्न शरीर से नग्न शरीर का स्पर्श।
‘आह’ ! बता नहीं सकती कि इसमें क्या लज्जत है।
ऐसा लगा जैसे खून में चिंगारियां उड़ने लगीं हों।
हम फिर ‘किस’ करने लगे और किस करते करते उसने मेरी सलवार का नाड़ा खींच कर खोल दिया और फिर एक झटके से उठ बैठा। उसने उंगलिया मेरी पैंटी के दोनों साइड ऐसे फंसाई कि नीचे खींचने पर सलवार समेत पैरों से निकलती चली गई।
अब मेरी बालों से ढकी योनि उसके सामने थी।
उसने उत्तेजना भरी एक सांस खींचते हुए उसे मुट्ठी में दबोच लिया और झुक कर मेरे होंठ चूसने लगा।
दूसरा हाथ उसने सपोर्ट के लिए मेरे सर के पीछे लगा लिया था।
जबकि योनि पर उसकी पकड़ ने मेरे अंदर की कामवासना और भड़का दी थी।
मैंने हाथ से उसकी पैंट की बेल्ट पकड़ कर उसे खींचने की कोशिश की तो उसने खुद अपने योनि को पकड़ने वाले हाथ से बेल्ट खोल दी और सामने से अंडरवियर नीचे सरक दी।
उसका लिंग भी पूरी तरह तना हुआ था और लगभग खीरे जैसे उसके लिंग को मैंने हाथ से पकड़ लिया।
कुछ नर्म कुछ सख्त अजीब सा अहसास हुआ।
वह पहला लिंग था जिसे मैंने थामा था।
मैंने उसे ऊपर नीचे किया… ऐसा लगा जैसे वहाँ दो प्रकार की चमड़ी हो, एक अंदरूनी चमड़ी जो एक जगह स्थिर थी, दूसरी ऊपरी चमड़ी जो उस पर फिसल रही थी।
फिर उसने मुझे छोड़ा और अपनी पैंट उतार कर फेंक दी।
अब वह मेरे पैरों के बीच बैठ गया और मेरे दोनों पैरों को घुटनों से मोड़ कर उन्हें इस तरह फैला लिया कि योनि खुल कर उसके सामने आ गई।
मैं खुद से नहीं देख सकती थी, मैंने आँखें बंद कर ली और एक हाथ से मुट्ठी में चादर दबाते हुए दूसरे हाथ से स्वयं अपने वक्ष दबाने लगी।
जबकि सोनू ने उंगली से मेरी योनि को सहलाना शुरू कर दिया था, वह वैसे ही गर्म भाप छोड़ रही थी।
सोनू की उँगलियों की रगड़ ने उसे और तपा दिया, मेरे शरीर में लहरें पड़ने लगीं।
मैंने आँख खोल कर उसे ऐसे देखा जैसे कहने की कोशिश की हो कि अब घुसाओ।
उसने भी जैसे मेरी बात समझ ली हो और अपने लिंग पर थूक लगा के उसे मेरी योनि के छेद पर टिका दिया, फिर अपने हाथों की पकड़ मेरे मुड़े घुटनों पर बनाईं और एकदम से तेज़ धक्का लगा दिया।
चिकनाहट इतनी थी कि लिंग फिसल कर नीचे चला गया।
उसने दोबारा और बेहतर ढंग से कोशिश की और मुझे ऐसा लगा जैसे मेरे सर पर आसमान टूट पड़ा हो।
एकदम जैसे कोई खंजर मेरे तन को चीरता अंदर घुसा हो और आधी दूरी पर फंस गया हो।
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Re: कामलीला

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हलक से एक बिलबिलाती हुई चीख निकली थी और तड़प कर पैर सीधे करके उसे धकेलने की कोशिश की थी लेकिन सोनू ने घुटनों पर ऐसे सख्ती से हाथ जमाये थे कि सफल न हो सकी।
दिमाग में अँधेरा भर गया… सांय-सांय होने लगी।
दर्द की तेज़ लहर के बीच मैंने महसूस किया कि सोनू ने फिर धक्का मारा था और मुझे ऐसा लगा कि उसका लिंग रुकेगा ही नहीं और मुझे अंदर तक फाड़ डालेगा।
उसके गड़ने की, बच्चेदानी से टकराने की अनुभूति हुई।
‘ओऊं… आह… निकाsssss..लाल… लो….’ फंसी फंसी आवाज़ के साथ दर्द से छटपटाते मैं बस इतना कह पाई, जबकि सोनू ने वापस लिंग को योनि के मुंह तक खींचा था और फिर अगले धक्के में अंदर घुसा दिया था।
बर्दाश्त की इन्तहा हो गई। दर्द को सहन करने की कोशिश में मैंने अपनी पूरी शक्ति लगा दी… इस हद तक कि दिमाग में अँधेरा भर गया और मैं संज्ञाशून्य हो गई।
मुझे अहसास था कि मैं उस वक़्त बेहोश ही हो गई थी और होश तब आया था जब बाहर दरवाज़ा पीटने के साथ रंजना की आवाज़ सुनी थी ‘दरवाज़ा खोल पगले… सोनू… सोनू… खोल…’
सोनू भी शायद किसी हद तक डर गया था मेरी हालत देख के, उसने खुद को ढकने का भी ख्याल नहीं किया और दरवाज़ा खोल दिया। रंजना लपक कर मेरे पास आई थी और मुझे संभालने लगी थी।
‘हाय राम… ज़रा भी तमीज नहीं… दोनों के दोनों अनाड़ी हो। कुछ सीखा ही नहीं अब तक!’ वह मेरे सर को सहलाती डांटने के अंदाज़ में बोली थी।
सोनू पास ही खड़ा मूर्खों की तरह देख रहा था।
‘ऐसे करते हैं किसी कुंवारी लड़की के साथ?’ उसने सोनू को देख डपटते हुए कहा- एकदम जंगली की तरह घुसा दिया। अरे बंद कर ये बम्बू… मुझे दिखा रहा है… शर्म नहीं आती।’
उसके डपटने पर सोनू को अपने नंगेपन का ख्याल आया और उसने वही पड़ा मेरा दुपट्टा उठा कर कमर से लपेटते हुए रंजना को घूर कर पूछा- तुम्हें कैसे पता कैसे करते हैं?
‘मुझे सब पता है… समझे, जल्दी से थोड़ा पानी गुनगुना करके ला और अपने बम्बू को देख, उस पर खून लगा है, उसे भी साफ़ कर लेना। जा जल्दी।’
‘खून!’ मैंने भी सहमते हुए नीचे देखा, जहाँ अभी भी तेज़ पीड़ा की लहरें उठ रही थीं, वहीं जांघों के पास थोड़ा खून लगा था और थोड़ा नीचे चादर पर भी लग गया था।
‘कुछ नहीं, झिल्ली फटी है तेरी… कोई नहीं यार, कभी न कभी तो फटनी ही थी। थोड़ा ध्यान हटा दर्द की तरफ से, पहली बार में सबको झेलना पड़ता है। इसके पर ही सुख का समंदर है समझ।’
‘तुझे सेक्स के बारे में ये सब कैसे पता… कभी किया तो नहीं।’
‘किया है मेरी जान, बस कभी बताया नहीं।’
‘क्यों?’ मुझे सख्त हैरानी हुई कि हम दोनों के बीच कोई ऐसी भी बात थी जो उसने मुझसे छिपाई थी।
‘क्योंकि मैं अकेली नंगी थी और तूने कपड़े पहने हुए थे। समझ… अपना नंगापन छुपाने की ज़रूरत तब तक रहती है जब तक सामने वाले के कपड़े न उतर जायें, एक बार वह भी नंगा हुआ न तो छुपाने की ज़रूरत नहीं।’
‘कब किया? किसके साथ?’ मुझे अपनी हालत से ज्यादा दिलचस्पी उसका सच जानने में थी।
‘बाद में फुरसत से बताऊँगी, अभी इतना समझ कि पिछले साल जब गांव गई थी तो वहीँ मामा के जो लड़के हैं अवि भैया… उन्होंने ही मेरे साथ किया था।
पहली बार ज़बरदस्ती, मेरी मर्ज़ी के खिलाफ, दूसरी बार मौके का फायदा उठा कर मुझे डरा कर और तीसरी बार मुझे खुद अच्छा लगा और चौथी बार मैंने खुद से कह कर कराया।
यह ऐसा ही मज़ा है और मैं तो तरसी हुई थी और न आगे भविष्य में कोई उम्मीद दिख रही थी, जो मौका मिला उसे न भुनाती तो और क्या करती।
वह शादी शुदा हैं, उनके बच्चे हैं… उन्होंने वचन लिया था कि जब तक उनसे हो सकेगा मेरी इस ज़रूरत को पूरा करते रहेंगे पर मैं कभी किसी को यह बात न बताऊं।
अभी भी जब कभी वह आते हैं, हम में सेक्स होता है… पहले तुझे बताती तो अपनी मज़बूरी समझा न पाती पर अब तू खुद समझ सकती है तो छुपाने की ज़रूरत नहीं।’
तब तक सोनू पानी ले आया था, जिससे कपड़े को भिगा कर रंजना मेरी योनि को अच्छे से साफ़ करने लगी थी और सोनू सामने ही खड़ा देख रहा था।
अपने नंगेपन और योनि को उन दोनों के बीच साफ़ कराने में मुझे खासी शर्म आ रही थी।
‘सोनू तुम बाहर जाओ, मैं अभी बुलाती हूं।’ मेरी बेचैनी और शर्म को समझते हुए रंजना ने सोनू से कहा और वह मुंह बनाता बाहर चला गया।
‘सुन, अवि भैया इस मामले में बेहद तजुर्बेकार थे और उन्होंने ऐसे किया था कि मुझे कोई खास तकलीफ नहीं हुई थी… तुझे बताऊं तो उस पगले को समझा पायेगी।’
‘नहीं… यह सब मेरे बस का नहीं, उसे ही समझाओ। मुझसे नहीं होगा।’
‘यार समझ मेरी जान, कुछ भी है, कितना भी खुलापन है हम दोनों के बीच मगर भाई है। कैसे मैं उससे समझाऊं कि क्या क्या करना है। कितनी बेशरम हो जाऊं।’
‘तो रहने दे आज… फिर कभी करेंगे, समझ लेगा किसी से कि कैसे करते हैं।’ मेरा दिमाग अजीब सा हो रहा था और मैं फैसला नहीं कर पा रही थी कि मैं रुकूँ, या चली जाऊं।
‘अच्छा चल तेरे लिए मैं बेशर्म ही हो जाती हूँ, जो हिम्मत तूने आज की है उसे पूरे तौर पर कर… जो शुरू हुआ है उसे अधूरा मत छोड़।’ वह पानी, कपड़ा समेटती उठ खड़ी हुई।
उसके जाने के बाद मैंने खुद को बिस्तर की चादर से ढक लिया और अगले तूफ़ान के आने की प्रतीक्षा करने लगी… योनि से सम्बंधित मांसपेशियां दर्द से ऐंठ रही थीं वह अलग।
पांच मिनट बाद वह आया और मेरे पास बैठ गया- सॉरी दीदी, शायद मैं ही अनाड़ी हूँ, आप तो लड़की हो, मुझे ही सही से हैंडल करना चाहिए था।
‘तो अब कैसे हैंडल करोगे?’ मैंने मुस्कराते हुए कहा।
तो उसने मुझे फिर दबोच लिया और मेरे ऊपर लदते हुए मेरे होंठों से अपने होंठ टिका दिये।
उसकी कमर पर बंधी लुंगी भी खुल गई थी और मेरे शरीर पर मौजूद चादर भी हट गई थी।
एक दूसरे के नग्न शरीरों के घर्षण से फिर चिंगारियाँ उड़ने लगीं।
इस बार उसने अपने हाथों से मुझे सहलाते, दबाते मेरे होंठों को चूमने के बाद मेरी गर्दन, कंधों को चूमना शुरू कर दिया था और मेरे उरोजों तक आ पहुंचा था।
उसने जिस तरह मेरे निप्पलों के आसपास जीभ फिराई और फिर अंत में चूचुकों को मुंह में लेकर चुभलाया, मैं उत्तेजना से ऐंठ गई, योनि का दर्द जैसे दिमाग से ही निकल गया।
एक हाथ से एक वक्ष को दबाता, भींचता और दूसरे को मुंह से चूसता, चुभलाता… मेरे मुंह से मस्ती में डूबी आहें निकलने लगी थीं।
मैंने दोनों हाथों से उसका सर थाम लिया था।
जब वह अच्छे से दोनों स्तनों का मर्दन कर चुका तो सीने को बीच से चूमते हुए नीचे सरकने लगा और नाभि पर रुक गया।
उसकी जीभ गोल होकर नाभि के गड्ढे में फिरने लगी और एक मादकता भरी गुदगुदाहट मेरी समस्त नसों में दौड़ने लगी।
पर वह वहाँ भी ज्यादा देर न रुका और नीचे सरकते मेरी योनि तक पहुंच गया।
पहले उसने वहाँ कई चुम्मियाँ लीं जहाँ योनि के बाल फैले थे, फिर दोनों टांगें फैला दीं और खुद चौपाये की तरह झुकते हुए अपना मुंह मेरी योनि तक ले आया।
अब उसकी जीभ योनि के किनारों से छेड़छाड़ करने लगी।
मैं कुहनियों के बल उठकर अधलेटी अवस्था में उसे देखने लगी… मुझे ताज्जुब हो रहा था कि वह ऐसा भी कर सकता है।
जी तो कर रहा था कि उसे रोक दूं लेकिन जिस तरह का सुख हासिल हो रहा था, वह मेरी कल्पना से भी परे था इसलिए लालच ने मुझे रोकने न दिया और वह वैसे ही पूरी योनि को चाटता रहा।
जल्दी ही मेरी यौन-उत्तेजना मुझे पर इस तरह हावी हो गई कि अभी दर्द से मसकती योनि अब वह मज़ा दे रही थी जो मुझे स्वर्ग की सैर कराये दे रही थी।
मैं खुद को अधलेटी अवस्था में और न रख पाई और लेट गई।
मेरी कामुक सीत्कारें अब कमरे की हदें तोड़ कर बाहर तक जाने लगी थीं।
जब उसने सुनिश्चित कर लिया कि मेरी योनि पूरी तरह तप चुकी है और मैं उसके लिंग को सहन कर सकती हूँ तो वह उठ कर मेरी जांघों के बीच में बैठ गया।
मैंने आँखें बंद कर ली थीं लेकिन महसूस कर सकती थी कि उसने अपने लिंग को, फिर मेरी योनि को फैला कर बीच छेद पर उसे टिकाया हुआ है और मेरे घुटनों पर फिर पहले जैसी पकड़ बना ली है।
मैंने भी आगे मिलने वाले सुख की कल्पना से खुद में सहने की ताक़त पैदा की और आघात के लिए तैयार हो गई।
उसने थोड़ा ज़ोर लगाया तो अभी ही खुल चुके छेद में उसका अग्रभाग मुझे तेज़ पीड़ा का अहसास कराते हुए अंदर धंस गया।
मैंने होंठ भींच लिये।
इस बार उसने आगे बढ़ने की बजाय खुद को वहीं रोक लिया और अपने हाथ से मेरी योनि के ऊपरी सिरे को जहाँ भगांकुर होता है, उसे सहलाने लगा।
यह योनि का सबसे संवेदनशील हिस्सा होता है… मैंने उस हिस्से में पैदा होने वाली हलचल पर ध्यान लगाया तो आश्चर्यजनक रूप से दर्द में कमी महसूस होने लगी।
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Re: कामलीला

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फिर वह मेरे ऊपर लद गया और मेरे होंठों को चूमते-चूसते मेरी गोलाइयों को मसलने सहलाने लगा। मैंने आँखें खोल ली थीं और उसकी आँखों में देख रही थी जो मुझे देखता जैसे कह रहा था…
बस दीदी, बैरियर टूट गया… अब आगे का रास्ता क्लियर है।
ऐसा नहीं था कि योनि में दर्द ख़त्म हो गया था लेकिन उसमे कमी ज़रूर आ गई थी और मैंने भी उधर से ध्यान हटाने के लिए उसकी पीठ को अपने हाथों से सहलाना शुरू कर दिया।
सारा ध्यान, होंठों के चूषण और वक्ष के मर्दन और उनसे पैदा होने वाली उत्तेजना में लगाये हुए भी मैंने महसूस किया कि अपनी कसावट को हथियार बना कर विरोध करके भी मेरी योनि उसके लिंग को रोक नहीं पा रही थी।
और वह हर पल आगे बढ़ रहा था, धीरे-धीरे अंदर सरक रहा था और योनि में जगह कम होती जा रही थी।
ऐसा लग रहा था जैसे मेरे अंतर में कोई खालीपन बाकी रहा हो जो अब भर रहा हो।
यकीनन दर्द के अहसास के साथ लेकिन साथ ही उत्तेजना और प्यार से मिश्रित छुअन, घर्षण उस दर्द को कम ज़रूर कर रहे थे।
‘दीदी… पूरा चला गया।’ उसने मेरे एक वक्ष को मसलते हुए कहा।
‘हट- नहीं!’
पर वह गलत नहीं कह रहा था, मैंने हाथ लगा कर देखा तो अंदाज़ा हुआ था कि पूरा अंदर था। साथ ही उसके बालों और अंडकोषों की छुअन भी महसूस की।
मुझे ताज्जुब हुआ कि इतना लंबा लिंग मेरी योनि में घुस कर पूरा गायब हो गया था… क्या इतनी जगह होती है उसमें, हालांकि मैं यह भी महसूस कर रही थी कि वह अंदर कहीं लड़ रहा है।

पर इस बात की ख़ुशी थी कि मैंने दर्द की बाधा पर कर ली थी और अब ये सोच कर और उत्तेजना भर रही थी कि आखिरकार मैं सहवास कर रही थी और एक परिपक्व लिंग को अपनी योनि में लिये थी।
फिर उसने उठने की कोशिश की तो लिंग बाहर निकल गया।
ऐसा लगा जैसे ‘पक’ की आवाज़ हुई हो और योनि की मांसपेशियों में बना हुआ खिंचाव एकदम छूट गया हो और थोड़ी राहत सी मिल गई हो।
वह फिर वैसे ही बैठ कर मेरे भगांकुर को रगड़ने लगा और कुछ देर में फिर लिंग को घुसाया… ऐसा नहीं था कि दर्द न हुआ हो लेकिन इस बार आगे का लुत्फ़ पता था तो अनुभूति बहुत कम हुई।
उसने भगांकुर को सहलाते हुए ही धीरे-धीरे पूरा लिंग अंदर सरका दिया। मैं अपने हाथों से अपने वक्षों को मसलने लगी थी।
हालांकि अंदर की कसावट अभी भी इतनी ज्यादा थी कि लग रहा था जैसे योनि ने लिंग को जकड लिया हो… जैसे लिंग अंदर फंस कर रह गया हो।
पर उन दीवारों से चिकना पानी भी रिस रहा था जो उस फंसे हुए लिंग को अंदर बाहर सरकने में सहायता प्रदान कर रहा था।
शुरुआत में उसने धीरे-धीरे लिंग को अंदर पहुंचाया, बाहर निकाला लेकिन जल्दी ही जब फिसलन मनमुताबिक हो गई तो धक्कों में तेज़ी आने लगी।
जल्दी ही यह स्थिति हो गई कि वह मेरे दोनों वक्षों को दबोचे, मेरी जांघों के के बीच बैठा ज़ोर ज़ोर से धक्के लगा रहा था और मैं मुट्ठियों में बिस्तर की चादर दबोचे ‘सी-सी-आह-आह’ करती हर धक्के पर ऐंठ रही थी।
हम दोनों ही नये थे, हम दोनों का ही यह पहला सम्भोग था जिसमे हम बहुत देर तक यह उन्माद कायम न रख सके और जब उसने महसूस किया कि वह चरमोत्कर्ष की तरफ बढ़ रहा है तो मेरे ऊपर लद कर धक्के लगाने लगा।
मैंने भी उसकी पीठ दबोच ली थी और उसे इस तरह खुद से चिपकाने लगी थी जैसे खुद में ही समां लेने का इरादा रखती होऊँ।
फिर एकदम मुझे मेरी नसों में खिंचाव पैदा होता महसूस हुआ और यह खिंचाव एकदम छूटा तो ऐसा लगा जैसे मेरी नसों से कुछ निकल पड़ा हो।
शरीर एकदम से ऐंठ कर झटके लेने लगा और योनि उन क्षणों में इतनी संकुचित हो गई कि सोनू के लिए लिंग चलाना संभव न रह गया और उसने भी एकदम जैसे उस कसाव से निपटने के लिए फूल कर कुछ उगल दिया जो मुझे गर्म-गर्म लगा और उन पलों में उसने भी मुझे एकदम ‘आह’ करते हुए इस कदर सख्ती से भींच लिया कि लगा हम दोनों ही की हड्डियाँ कड़कड़ा जाएंगी।
जब इस दशा से गुज़र चुके तो दिमाग में इतनी सनसनाहट थी कि कुछ सुध न बाकी रही।
तभी दरवाज़ा खुला और रंजना अंदर आई… उसे आते देख मैं भी उठ बैठी और सोनू भी उठ गया।
‘चल जा, साफ़ कर जाकर अपने को!’ उसने सोनू से आँखें तरेरते हुए कहा और वह मुंह बनाता मेरी चुन्नी लपेटता बाहर चला गया।
वह मेरे पास बैठ गई- सच बोल, आया मज़ा या नहीं?
उसके स्वर में किसी बच्चे जैसी ख़ुशी थी।
‘हाँ!’ मैं इससे ज्यादा और क्या कह सकती थी।
‘चल मैं तुझे साफ़ कर देती हूँ।’ वह उठ कर बाहर निकल गई और फिर वही गर्म पानी वाला बर्तन लेकर और साथ में दूसरा कपडा लिये लौटी।
‘देख तो सही, कितना वीर्य निकाला है कमीने ने!’
उसके कहने पर मैंने नीचे देखा तो ढेर सा सफ़ेद वीर्य मेरी योनि से निकल रहा था, जिसे मेरे देखने के बाद रंजना गीले कपडे से पोंछने लगी।
वह कुछ बोलती रही और मैं अपनी सोच में पड़ी रही कि आज मुझे अपने शरीर से वह सुख हासिल हो गया जो मेरा हक़ था लेकिन आज मैंने ये वर्जना न तोड़ी होती तो क्या मैं इसे कभी हासिल कर सकती थी।
अच्छे से मुझे साफ़ कर चुकने के बाद उसने मुझसे पूछा कि अगर मैं अब हिम्मत कर सकूं तो वह मुझे कुछ ज्ञान और दे।
मुझे भी लगा कि अब नंगी तो हो ही चुकी थी, ना-नुकुर से हासिल भी क्या था।
मैंने सहमति जताई और वह मुझे और कई प्रकार की सेक्स से जुड़ी बातें बताने लगी जिनसे मैं और ज्यादा मज़ा पा सकती थी।
मुझे ताज्जुब हो रहा था कि वह मन में कितनी बाते छुपाये थी। बहरहाल मेरी सफाई करके वह बाहर चली गई और शायद सोनू को कुछ समझाने लगी होगी।
करीब दस मिनट बाद वह कमरे में आया- दीदी, सच बोलना… मज़ा आया ना, मैंने अच्छे से तो किया न?
मैं क्या जवाब देती, शर्मा कर सर नीचे करके ‘हाँ’ में सर हिला दिया और उसने मेरी बाहें थाम लीं और मुझे अपने सीने से चिपका लिया।
थोड़ी देर हम ऐसे ही चिपके बैठे एक दूसरे के बदन की गर्माहट को महसूस करते रहे।
फिर धीरे-धीरे पारा चढ़ने लगा।
ज़ाहिर है कि हम नग्न थे और हमारे दिमागों में सेक्स घुसा हुआ था तो और दूसरी भावना और क्या पैदा होती।
मेरे हाथ खुद-बखुद नीचे जाकर उसके मुरझाये लिंग को सहलाते उसमे तनाव पैदा करने लगे और उसके हाथ मेरे वक्ष और नितंबों पर मचलते मुझमे ऊर्जा का संचार करने लगे।
वह फिर मेरे होंठों को चूसने लगा और मैं सहयोग देने लगी।
‘दीदी चलो कुछ नए ढंग से करते हैं।’
‘कैसे?’
वह मुझे छोड़ के चित लेट गया और मुझे देखते हुए बोला कि मैं उस पर इस तरह बैठूं कि मेरी पीठ उसके चेहरे की तरफ रहे और मेरी योनि ठीक उसके मुंह के सामने रहे।
जब मैं इस तरह बैठी तो उसने मेरी पीठ पर दबाव डालते हुए मुझे इस तरह झुका दिया कि मैं किसी चौपाये की तरह हो गई।
उस स्थिति में मेरा मुंह उसके लिंग के सामने था।
‘अब मैं आपकी वेजाइना को मुंह से चूसता हूँ, आप मेरे पेनिस को करो।’
मैंने साफ़ इंकार कर दिया लेकिन उसके ऊपर इस बात का कोई फर्क ही नहीं पड़ा… हालांकि रंजना मुझे जो समझा कर गई थी उसमें ये भी शामिल था पर मैं खुद को एकदम से तैयार नही कर पाई थी।
पर उसने अपनी जुबां से मेरी योनि के किनारों को छेड़ना चालू कर दिया था और मेरे शरीर में लहरें दौड़ने लगी थीं।
मैं योनि की मांसपेशियों को सिकोड़ने-छोड़ने लगी और ‘आह-आह’ करने लगी।
अब मेरा ध्यान उसके लिंग की तरफ नये नज़रिये से गया, मैं इतनी नादान तो नहीं थी कि मुझे मुखमैथुन के बारे में पता न हो पर कभी खुद पर इसकी कल्पना नहीं की थी तो इसलिये असहज थी।
पर अब जो सिलसिला चला है उसमे आज नहीं तो कल ये करना ही है, क्यों न इसका अनुभव भी कर लूं, अच्छा या बुरा, बिना चखे कैसे पता चलेगा।
मैंने उसके पेट पर गिरे लिंग को मुट्ठी में उठा कर जीभ से उसके अग्रभाग को छुआ।
शिश्नमुंड के छिद्र पर एक बूंद चमक रही थी जो मेरी जीभ पर आ गई थी। लसलसी सी… तार सा बनाती और स्वाद में नमकीन सी।
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