दूध ना बख्शूंगी/Vedprakas sharma
"ओफ्फो-----अब ये क्या उठा लिया आपने?"
" जुदाई ।"
अमिता का दिल धक्क से रह गया------ जाने क्यों मुंह से कम्पित स्वर निकला-----"ज---जुदाई ।"
"हां भई---।" तोताराम -सी मुस्कान के साथ सामान्य स्वर में कहा------"मैं प्रेम बाजपेयी का बहुत पुराना पाठक हूं-------ओर 'जुदाई' -बाजपेयी की लेटेस्ट रचना है, जिसे मनोज पाॅकेट बुक्स ने प्रकाशित किया है ।"
"वह तो मैं जानती हू लेकिन आप पिछले तीन दिन से लगातार इसे अपने साथ तो चिपकाए फिर रहे हैं, ऐसा इसमे क्या है ?"
धीमे से हंसते हुए तोताराम ने जवाब दिया-------“तुम नहीं समझेगी!"
"क्या मतलब?"
“तुम उपन्यास नहीं पढ़ती हो ना, इसलिए तुम्हें उपन्यास की कशिश का अन्दाजा भी नहीं है-------मै तभी से वाजपेयी का पाठक हु जब विधायक नहीं था-----तब मेरे पास काफी समय होता था---- बाजपेयी का कोई भी उपन्यास प्रकाशित होते ही उसे एक ही बैठक में पढ जाना मेरे लिए खाना खाने से भी ज्यादा जरूरी होता था… इच्छा तो अब भी यही होती है, लेकिन क्या करू इतना समय ही नहीं मिलत्ता-----विधायक हूँ न--पिछले तीन दिन से यह चौबीस घण्टे मेरे साथ है-----खाली समय मिलते ही पड़ना शुरू कर देता हूं-अब भी पचास पेज बाकी रह गए हैं ।"
" अब आप 'सम्राट' में मेरे साथ डिनर लेने चल रहे है या इस क्लमुही 'जुदाई' के बाकी पचास पेज पढ़ने---?"
तोताराम ने हंसते हुए, जवाब दिया---------"तुमने तो तिल का पहाड़ बना दिया…....मैं तुम्हारे साथ डिनर लेने ही जा रहा हू ।”
"मैं तुमसे बात करती रहूगी और तुम इसमें डूवे रहना ।"
" ऐसा नहीं होगा-मैं सिर्फ खाली समय मे ही इसे पढूगा----चलें?"
"चलते हैं-----मै जरा अपने कमरे से अपना पर्स लेकर आती हू !" कहने के बाद बुरा-सा मुह बनाती हुई अमिता मुडी और तेज कदमों के साथ अपने कमरे की तरफ बढ गई॥॥॥
उसकी पीठ देखता हुआ तोताराम होठो-ही-होंठों मे बुदबुदाया------" मै जानता हू अमिता कि तू किस हद तक गिर सकती है और यदि,,, तू उस हद तक गिरी तो मनोज पॉकेट बुक्स से निकली प्रेम बाजपेयी की यह लेटेस्ट रचना ही तेरे लिए फांसी का फन्दा बन जाएगी---"सांरी दुनिया के सामने तुझे नग्न कऱ देगी ।"
वह तोताराम राजनगर के केंट क्षेत्र से विधानसभा से विपक्ष का विधायक था, जो कि 'सम्राट' होटल के हाॅल में अभी-अभी अपनी बीबी के साथ प्रविष्ट हुआ था--लम्बे चौड़े हॉल में तीव्र प्रकाश था-----अधिकांश सीटें भरी हुई थी-----कुछ रिक्त भी थीं । उन्हीं में से एक की तरफ वह जोड़ा बढ़ गया ।
अमिता के गोरे-सुडौल और तराशे गए बदन पर कीमती साड्री थी,, जबकि तोताराम खद्दर का कलफ़ लगा सफेद चिट्टा कुर्ता-पायजामा पहने था-उसके दाएं हाथ में अब भी 'जुदाई' थी-----सीट पर बैठने के कुछ देर बाद ही वेटर आ गया ।
तोताराम ने कहा…“अपनी पसन्द का आर्डर दे दो अमिता ।"
"अभी नहीं---।" अमिता ने अपना श्रृंगार से पुता चेहरा वेटर की तरफ उठाकर कहा-----"पहले हम एक राउण्ड डांस करेगे-उसके बाद डिनर लेगे ।"
जब वेटर "जेसी इच्छा" कहकर चला गया तब तोताराम ने कहा-----"डांस और मैं---? "
"क्यों क्या हुआ?" अमिता ने आंखें निकाली ।
"मैं भला डांस कैसे कर सकता हूं ?"
"क्यों नहीं कर सकते ?"
चारों तरफ़ देखते हुए तोताराम ने कहा-----------" यहाँ बहुत से ऐसे लोग बैठे हैं, जो मूझे जानते हैं----बे देखेंगे तो क्या कहेंगे ?"
"क्या कहेगे, बीबी के साथ डांस कराना क्या -जुर्म है ? "
" ओंफ्फो----तुम समझती क्यों नहीं अमिता----इस शहर का विधायक हू----मेरा यू तुम्हारे साथ फ्लोर पर जाकर डास करना अच्छा नहीं लगता-किसी ने फोटो खिंचबाकर अखवार में छपवा दिया को जबरदस्ती सरदर्द करने वाला स्कैंण्डल खडा हो जाएगा ।"
"तो फिर मैं यहां क्या आपका मुंह देखने आई हूं ?" अमिता भड़क उठी ।
"अरे नाराज क्यों होती हो ? ”
"नहीं तो, क्या खुश होऊं ।" अमिता बिफर पडी-"मुझे नहीं लेना ऐसा डिनर आप ही बैठो यहा -मै चली ।"
"अरे----रे----कहां जाती हो?" ,तोताराम बौखला गया ।
अमिता गुर्रा-सी उठी------मै तो आपसे शादी करके पछताई----यदि मुझें पता होता कि विधायक से शादी करके अपंने सारे अरमानो का खून करना पड़ता है तो ये शादी कभी न करती ।"
"अमिता !'!'!"
"मैं जा रही हू ।” कहने के साथ ही एक झटके से अमिता उठ खडी हुई ।।
तोताराम ने जल्दी से उसका हाथ पकड़कर दबे स्वर में कहा…"ठ-ठहरो अमिता-बैठो…........मैं वेसा ही करूंगा बाबा, जैसा कहती हो, लेकिन भगवान के लिए बैठ जाओ ।"
गुस्से में भुनभुनाती हुई--सी अमिता बैठ गई------तोताराम उसके उखड़े हुए मूड को सामान्य करने की चेष्ठा करने लगा… कम-से-कस इस हाँल में वह तमाशा बनना नहीं चाहता था ।
दस मिनट के अन्दर तोताराम ने अमिता का मूड 'फ्रैश' कर दिया था--------अचानक अमिता ने कुर्सी से उठते हुए कहा…"मैं अभी टॉयलेट से होकर आती हूं ।"
तोताराम ने गर्दन हिलाकर स्वीकृति दी ।
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Re: दूध ना बख्शूंगी/Vedprakas sharma
अमिता टॉयलेट की तरफ बढ़ गई जबकि मौका मिलते ही तोताराम ने 'जुदाई' खोल ली और पढ़ने लगा!!!!
टॉयलेट की तरफ बढती अमिता के कदमों में जाने क्यों हल्की-सी लड़खड़ाहट थी …हांल के एयरकंडीशन होने के बावजूद मेकअप से पुते चेहरे पर पसीने की नन्ही-नन्ही बूंदे उभर आई! !
टेयलेट के समीप पहुंचकर उसने कनखियों से तोताराम की तरफ देखा-बह किताब में डूबा हुआ था !!'
अमिता फुर्ती के साथ एक केबिन में घुस गई।
किसी मर्द ने पूछा-----"क्या रहा?"
"मैंने उसे डास के लिए तैयार कर लिया है ।
" गुड ।" मर्द ने कहा…"अब तुम सिर्फ अपने होंठों पर यह लगा लो ।"
. अमिता ने अपने सामने फैली मर्द की हथेली देखी…हथेली पर एक छोटी-सी डिबिया रखी थी-----डिबिया में 'मरहम' जैसा कोई पदार्थ था-----उसी पदार्थ पर दृष्टि टिकाए अमिता ने थोड़े भयभीत स्वर में कहा…“म-मुझें डर लग रहा है दीवान ।"
"डर-डरने की क्या बात है?"
"पता नहीं क्यों-----ऐसा लगता है जैसे कि उसे मूझ पर शक हो गया है ।"
" यह तुम्हारे मन का वहम है और यदि इसे सच मान भी लिया जाए तो क्या फ़र्क पड़ता है-------उस बेचारे की जिन्दगी अब है ही कितनी देर की----इस हाॅल से उसकी लाश ही निकलेगी ।"
" यदि किसी को पता लग गया कि उसका कत्ल हमने किया है तो ????"
" तुम तो बेकार ही डर रही हो-किसी को पता नहीं लेगेगा-हमारा तरीका ही ऐसा है-जल्दी करो-देर होने पर वह चौक सकता है----बस,फ्लोर पर डांस करते समय तुम्हें सिर्फ उसके सीने पर एक प्यारा-सा चुम्बन लेना है-------चुम्बन उसके लिए मौत सावित होगा ।"
अमिता ने डिबिया से थोड़ा -सा मरहम लेकर लिपस्टिक से पुते अपने होंठों पर ठीक इस तरह लगा लिया जैसे, लिपस्टिक लगाई जाती हे…अब उस मरहम और लिपस्टिक का मिश्रण उसके होंठों पर लगा हुआ था ।।।
"अब तुम जाओ ।" दीवान नामक व्यक्ति ने डिबिया बन्द करने के बाद अपनी जेब में डालते हुए कहा----"अब-----जब हम मिलेंगे तो हमारे बीच तोताराम नाम की दीवार नहीं होगी अमिता !"
" पहले ये तो देखो कि बह क्या कर रहा है-यदि वह संयोग से इधर, ही देख रहा हुआ और मुझे इस केविन से निकलते देख लिया तो.. ।"
इस बीच दीवान ने धीरे से केबिन का पर्दा सरकाकर जाल में झांका और किर अमिता से मुखातिब होकर बोला----" कोई किताब पढ़ रहा हैं।”
अमिता को जैसे एकदम कुछ याद आया--अरे हाँ , एक बात और कहनी है दीवान?"
"क्या?”
" वह प्रेम बाजपेयी की 'जुदाई' नामक किताब पढ़ रहा है !”
" फिर ?"
“इस उपन्यास को वह पिछले तीन दिन से लगातार अपने साथ चिपकाए हुए है-जैसे वह उसकी सबसे प्यारी चीज हो ।"
“अच्छी किताब होगी ।"
" ओफ्फो----तुम समझ नहीं रहे हो दीवान ।"
"क्या समझाना चाहती हो?"
“मुझे लगता है कि उस उपन्यास के पीछे जरूर कोई रहस्य है ।"
दीवान ने चकित स्वर में पूछा…"कितम्ब के पीछे क्या रहस्य हो सकता है?”
"यही तो मैं नहीं समझ पा रही हू मगर पिछले तीन दिन से 'जुदाई' को उसका यूं अपने साथ चिपकाए रखना मुझें अजीब-सा लग रहा है-मुझें सन्देह-सा हो रहा है ।"
"किस बात का संदेह! "
"यही तो मैं नहीं जानती, लेकिन उसका 'जुदाई‘ को हर क्षण साथ लिए फिरना.. ।"
दीवान ने हल्की-सी आवाज के साथ कहा-"मैं बताऊं वह "जुदाई" को अपने साथ क्यों लिए फिर रहा है?”
“क-क्या तुम जानते हो-----हा हा बताओ... ।"
"क्योंकि कुछ ही देर बाद इस दुनिया से खुद उसी की "जुदाई' होने वाली है।"
"मजाक मत करो दीवान-प्लीज, सीरियसली सोचो कि ऐसा क्यों है--- उस उपन्यास में क्या है, जिसकी वजह से बह उसे ऐक मिनट के लिए भी खुद से जुदा नहीं कर रहा है ?"
"तुम्हारा दिमाग खराब हो गया है अमिता-साधारण सी बात के तुम्हें सिर्फ इसलिए अजीब-सी लग रही है, क्योंकि कुछ ही देर बाद तुम उसे मौत का एक चुम्बन देने वाली हो-----ये उपन्यास बाले लोग बड़े चस्की होते हैं----उपन्यास का पीछा तब तक नहीं छोड़ते, जब तक पूंरा न पढ ले ।"
अमिता संतुष्ट न हो सकी ।
टॉयलेट की तरफ बढती अमिता के कदमों में जाने क्यों हल्की-सी लड़खड़ाहट थी …हांल के एयरकंडीशन होने के बावजूद मेकअप से पुते चेहरे पर पसीने की नन्ही-नन्ही बूंदे उभर आई! !
टेयलेट के समीप पहुंचकर उसने कनखियों से तोताराम की तरफ देखा-बह किताब में डूबा हुआ था !!'
अमिता फुर्ती के साथ एक केबिन में घुस गई।
किसी मर्द ने पूछा-----"क्या रहा?"
"मैंने उसे डास के लिए तैयार कर लिया है ।
" गुड ।" मर्द ने कहा…"अब तुम सिर्फ अपने होंठों पर यह लगा लो ।"
. अमिता ने अपने सामने फैली मर्द की हथेली देखी…हथेली पर एक छोटी-सी डिबिया रखी थी-----डिबिया में 'मरहम' जैसा कोई पदार्थ था-----उसी पदार्थ पर दृष्टि टिकाए अमिता ने थोड़े भयभीत स्वर में कहा…“म-मुझें डर लग रहा है दीवान ।"
"डर-डरने की क्या बात है?"
"पता नहीं क्यों-----ऐसा लगता है जैसे कि उसे मूझ पर शक हो गया है ।"
" यह तुम्हारे मन का वहम है और यदि इसे सच मान भी लिया जाए तो क्या फ़र्क पड़ता है-------उस बेचारे की जिन्दगी अब है ही कितनी देर की----इस हाॅल से उसकी लाश ही निकलेगी ।"
" यदि किसी को पता लग गया कि उसका कत्ल हमने किया है तो ????"
" तुम तो बेकार ही डर रही हो-किसी को पता नहीं लेगेगा-हमारा तरीका ही ऐसा है-जल्दी करो-देर होने पर वह चौक सकता है----बस,फ्लोर पर डांस करते समय तुम्हें सिर्फ उसके सीने पर एक प्यारा-सा चुम्बन लेना है-------चुम्बन उसके लिए मौत सावित होगा ।"
अमिता ने डिबिया से थोड़ा -सा मरहम लेकर लिपस्टिक से पुते अपने होंठों पर ठीक इस तरह लगा लिया जैसे, लिपस्टिक लगाई जाती हे…अब उस मरहम और लिपस्टिक का मिश्रण उसके होंठों पर लगा हुआ था ।।।
"अब तुम जाओ ।" दीवान नामक व्यक्ति ने डिबिया बन्द करने के बाद अपनी जेब में डालते हुए कहा----"अब-----जब हम मिलेंगे तो हमारे बीच तोताराम नाम की दीवार नहीं होगी अमिता !"
" पहले ये तो देखो कि बह क्या कर रहा है-यदि वह संयोग से इधर, ही देख रहा हुआ और मुझे इस केविन से निकलते देख लिया तो.. ।"
इस बीच दीवान ने धीरे से केबिन का पर्दा सरकाकर जाल में झांका और किर अमिता से मुखातिब होकर बोला----" कोई किताब पढ़ रहा हैं।”
अमिता को जैसे एकदम कुछ याद आया--अरे हाँ , एक बात और कहनी है दीवान?"
"क्या?”
" वह प्रेम बाजपेयी की 'जुदाई' नामक किताब पढ़ रहा है !”
" फिर ?"
“इस उपन्यास को वह पिछले तीन दिन से लगातार अपने साथ चिपकाए हुए है-जैसे वह उसकी सबसे प्यारी चीज हो ।"
“अच्छी किताब होगी ।"
" ओफ्फो----तुम समझ नहीं रहे हो दीवान ।"
"क्या समझाना चाहती हो?"
“मुझे लगता है कि उस उपन्यास के पीछे जरूर कोई रहस्य है ।"
दीवान ने चकित स्वर में पूछा…"कितम्ब के पीछे क्या रहस्य हो सकता है?”
"यही तो मैं नहीं समझ पा रही हू मगर पिछले तीन दिन से 'जुदाई' को उसका यूं अपने साथ चिपकाए रखना मुझें अजीब-सा लग रहा है-मुझें सन्देह-सा हो रहा है ।"
"किस बात का संदेह! "
"यही तो मैं नहीं जानती, लेकिन उसका 'जुदाई‘ को हर क्षण साथ लिए फिरना.. ।"
दीवान ने हल्की-सी आवाज के साथ कहा-"मैं बताऊं वह "जुदाई" को अपने साथ क्यों लिए फिर रहा है?”
“क-क्या तुम जानते हो-----हा हा बताओ... ।"
"क्योंकि कुछ ही देर बाद इस दुनिया से खुद उसी की "जुदाई' होने वाली है।"
"मजाक मत करो दीवान-प्लीज, सीरियसली सोचो कि ऐसा क्यों है--- उस उपन्यास में क्या है, जिसकी वजह से बह उसे ऐक मिनट के लिए भी खुद से जुदा नहीं कर रहा है ?"
"तुम्हारा दिमाग खराब हो गया है अमिता-साधारण सी बात के तुम्हें सिर्फ इसलिए अजीब-सी लग रही है, क्योंकि कुछ ही देर बाद तुम उसे मौत का एक चुम्बन देने वाली हो-----ये उपन्यास बाले लोग बड़े चस्की होते हैं----उपन्यास का पीछा तब तक नहीं छोड़ते, जब तक पूंरा न पढ ले ।"
अमिता संतुष्ट न हो सकी ।
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Re: दूध ना बख्शूंगी/Vedprakas sharma
जबकि दीवान ने कहा-काफी देर हो गई है…अब तुम जाओ ।"
फ्लोर पर तोताराम को बांहों में लिए अमिता थिरकती रही-अमिता रह-रहकर उससे लिपट जाती थी, जबकि तोताराम थोड़ा झिझक रहा था-----तोताराम को फ्लोर पर देखकर एक अखबार के संवाददाता ने फ्लोर का दृश्य अपने कैमरे में कैद कर लिया--- देखते ही तोताराम ने अमिता को अपने से अलग किया!!!!
वह तेजी से गले में कैमरा लटकाए संवाददाता की तरफ लपका !!!
अभी उसने फ्लोर से नीचे कदम रखा ही था कि---------
एकदम हाॅल की सभी लाइटे आँफ हो गई ।
अथेरा छा गया--घुप्प अँधेरा।
या तो सारे शहर की हीँ लाइट चली गई थी या किसी ने होटल का मेन स्विच आँफ कर दिया था…हांल में मोजूद सभी लोगों के सांथ-साथ तोताराम की आंखों के सामने भी घने अंधेरे के कारण हरे-हरे दायरे चकरा उठे----बह ठिठक-सा गया ।
पहले पल तो अचानक ही अंधेरा हो जाने के कारण सारे हाॅल में सन्नाटा सा छा गया…फिर अजीब-सी गहमागहमी उभरी---------जब हाॅल में अंधेरा छाए एक मिनट हो गया तो आवाजें गूंजने लगी---सिसकांरियां भी उभरी-कदाचित कुछ 'जोडों ने अंधेरे का लाभ उठाने की ठान ली थी-किसी मनचले ने जोर से सीटी भी बजा दी ।
समय गुजारने के साथ ही वातावरण में हंगामा होता जा रहा था कि--------धांय------!'!
अंधेरे में कोई रिवॉल्वर गर्जां-एक शोला लपका ।
हॉल के वातावरण में किसी नारी की दर्दनाक चीख उठी…यह चीख यकीनन अमिता की थी-इस चीख के बाद हाॅल में जैसे हाहाकार मच गया डरी और सहमी वहुत-भी चीखें गूजऩे लगी-----लोग अपने-अपने स्थान छोडकर इधर-उधर भागने लगे ।
अंधेरे मे एक-दूसरे से टकराते, चीखते, गिरते उठकर पुन: भागते-फायर की आवाज ने वहां आतंक फैला दिया था ।
कोई घबराए हुए स्वर मे चीख पडा----यहा कत्ल हो गया है-----लाईट ऑन करो---॥.
तभी------धांय---।
दुसरा फायर! '
इस बार हाॅल तोताराम की चीख से झनझना उठा ।
भगदड मच -गई-आतंक फैल गया ।
फिर------अचानक ही सारा हाल पहले की तरह चकाचौंध कर देने वाली रोशनी से भर गया…लोग जहा के तहाँ रुक गए…
आखे बुधिया गई-होटल का मैनेजर चीख पडा-
"पुलिस के आने से पहले कोई भी व्यक्ति हाॅल है बाहर न निकले !"
चेहरे पीले पड़ गए…आतंक पुता पड़ा था उन पंर'!!
हर दृष्टि फ्लोर के समीप पडी अमिता की लाश और उससे थोडा हटकर फर्श पर पड़े तोताराम के लहूलुहान जिस्म पर चिपक गई…तोताराम के जिस्म को लाश इसलिए नहीं कहा जा सकता, क्योंकि अभी तक उसके जिस्म में थ्रोड्री हरकत थी ।
गोली उसके पेट में लगी थी ।
. दोनों हाथों से अपना पेट दबाए तोताराम उठ खड़ा हुआ सफेद कपड़े बुरी तरह खून में रंग चुके थे…उसके चेहरे पर असीम पीड़ा के भाव थे-सारा शरीर बुरी तरह कांप रहा था-कुछ कहने के लिए उसने मुंह खोला…मुंह के अन्दर से ढेर सारा खून उबल पड़ा ।"
देखने वालों की चीखें निकल गई, किन्तु किसी ने आगे बढकर तोताराम को सहारा देने का साहस न किया ----- ऐसे अवसरों पर कौन रिस्क लेता है--सभी जानते हैं कि ऐसी बेवकूफी करने पर व्यक्ति पुलिस की चक्करदार प्रक्रिया में उलझ जाता है ।
सभी मूक दर्शक वने असीमित दर्द से छटपटाते र्तोताराम को देखते रहे----आगे बढ़कर संवाददाता ने इस दृश्य का फोटो जरूर ले लिया ॥॥॥॥
पेट को दबाए तोताराम लड़खड़ाता हुआ अपनी सीट की तरफ बढा-----दर्द में डूबी उसकी आंखें मेज पर रखी जुदाई पर गडी हुई थी…हर पल, वह बोलने की भरपूर चेष्टा कर रहा था, किन्तु मुहसे घुटी घुटी चीख के अलावा एक भी शब्द नहीं निकला !!!!!!
संवाददाता अब लगातार उसके फोटो ले रहा था ।
तोताराम अपनी सीट के करीब पहुंचकर लड़खड़ाया-बड्री मुश्किल से उसने मेज पकडकर स्वयं को गिरने से रोका---खून से सना दायां हाथ बढाकर मेज पर रखी 'जुदाई' उठा ली-----किताब का आवरण खून से लथपथ हो गया----इस किताब को हाथ में लिए तोताराम घूमा----- किताब वाला हाथ उसने ऊपर उठा लिया----कुछ कहने के लिए पुन: मुहं खोला------संवाददाता के कैमरे का फ्लैश चमका ॥॥॥॥॥
तोताराम के कंठ से अंन्तिम हिचकी निकली-------उसका शरीर लाश बनकर फर्श पर लुढ़कता चला गया…खून में डूबी 'जुदाई' एक तरफ़ पडी रह गई -बैक पर छपे प्रेम बाजपेयी के चित्र पर भी कई जगह खून के धब्बे लग गये थे ।
विजय के गोरे--चिट्टे एवं गठे हुए जिस्म पर इस वक्त सिर्फ एक अडंरवियर था---लाल रंग का चुस्त, अंडरवियर--शेष सारे जिस्म पर आवश्यकता से अधिक तेल मला हुआ था…तेल लगे जिस्म पर फिसल रहा था ढेर सारा पसीना ।
फिसलता भी क्यों नहीं---???
किसी ऐसे व्यक्ति का पसीने से तर-वतर हो जाना स्वाभाविक ही है जो कि पिछले दो घण्टे से अपने कमरे की दीवार को सरकने की चेष्टा कर रहा हो-वह बुरी तरह हांफ़ रहा. था----------दोनों हथेलियाँ दीवार पर टेककर उसने एक बार फिर इस तरह ताकत लगाई, जैसे कोई घक्के से स्टार्ट होने वाली कार को धक्का लगा रहा हो, परन्तु दीवार टस से मस न हुई ।
" धत् तेरे की ।" कहने के साथ ही उसने अपने माथे से पसीना और हाथ झटकता हुआ बोला…“इस दुनिया में तुम कुछ नहीं कर सकते विजय दी ग्रेट !"
एकाएक कमरे के बाहर से आबाज उभरी----------" विजय---विजय-----!"
"हांय…ये तो अपने तुलाराशी की आवाज़ है ।" विजय एकदम पछाड-सी खा गया फिर बडी तेजी से वह फर्श पर दीवार' के सहारे उल्टा खडा हो गया…सिऱ नीचे-पेर ऊपर-चेहरा बीमार की तरफ़ किए वह जोर-जोर से चिल्लाने लगा-------"जल तू जलाल तु----------आई बला को टाल तु-----जल तू जलाल तू आई बला को टाल तू।"
उसे देखते ही सुपर रघुनाथ ,दरवाजे पर ठिठक गया----मुह से स्वयं ही यह वाक्य निकल गया…“अरे---ये तुम क्या कर रहे हो विजय?"
विजय अपनी ही धुन में कहता चला गया----- ---"जल तू जलाल तु----------आई बला को टाल तु-----जल तू जलाल तू-----आई बला को टाल तू।"
"विजय ।” रघुनाथ ने पुन: पुकारा ।
"जल तू जलाल तु----------आई बला को टाल तु-----जल तू जलाल तू आई बला को टाल तू !"
" ओफ्फो--- तुम अपनी इन ऊटपटांग हरकतों से कभी बाज नहीं आओगे !” कहने के साथ ही रघुनाथ लम्बे-लम्बे क़दमों के साथ कमरे में दाखिल हो गया-वह इस वक्त अपनी सम्पूर्ण यूनीफार्म में था…भारी जूतों की ठक-ठक ठीक विजय के समीप जाकर रूकी-----विज़य अब बाकायदा हनुमान चालीसा का पाठ करने लंगा था-रधुनाथ ने एक बार पुन: उसे पुकारा, परन्तु जब इस बार----भी पर कोई प्रतिक्रिया नहीं हुई तो उसके दोनों पैर पकड़कर जोर से झटका दिया ।
चित अवस्था में फर्श पर पड़ा वह आंखें बन्द किए बुदबुदा रहा था ---"हनुमान-ज़ब नाम सुनावे-भूत-पिशाच निकट नहीं आवे !"
" ओफ्फो---!" रघुनाथ झुंझलाहट भरे स्वर मे चीख पड़ा-----"विजय ।"
विजय ने पट्ट से आखें खोल दीं-रघुनाथ पर दृष्टि पडते ही वह एकदम उछल और चीखा…"भ--भूत-भूत-भूत पिशाच निकट नहीं आवे---हनुमान जब नाम सुनावे ।"
हनुमान चालीसा का पाठ करता हुआ वह सारे कमरे में दौड़ रहा था-दुष्टि हर क्षण रघुनाथ पर थी-आंखों में ऐसे भाव थे जैसे रघुनाथ को वह सचमुच भूत समझ रहा हो, रघुनाथ अपने स्थान पर जड़वत'-सा खडा रह गया…बड्री अजीब-सी स्थिति थी उसकी-बह पागलों की-सी अवस्था मे चीख पडा---उफ्फ-ये मैं हूं विजय--रघुनाथ---।"
"आंय--।"' कहकर विजय एकदम रुक गया----जैसे बहुत तेज चलती हुई गाडी में अचानक ही ब्रेक लगा दिए गए हों वह ऊंट की तरह गर्दन उठाकर बोला----"प....प्यारे तुलाराशी-…ये ये तो तुम हो ! तुमने पहले क्यों -नही बताया, हम तो समझ रहे थे कि
"ये अपनी मूर्खतापूर्ण बाते तुम कब छोडोगे विजय?" रघुनाथ ने उसकी बात बीच ही में काटकर कहा-------" वंहा दीबार के सहारे उलटे खडे क्या कर रहे थे?"
फ्लोर पर तोताराम को बांहों में लिए अमिता थिरकती रही-अमिता रह-रहकर उससे लिपट जाती थी, जबकि तोताराम थोड़ा झिझक रहा था-----तोताराम को फ्लोर पर देखकर एक अखबार के संवाददाता ने फ्लोर का दृश्य अपने कैमरे में कैद कर लिया--- देखते ही तोताराम ने अमिता को अपने से अलग किया!!!!
वह तेजी से गले में कैमरा लटकाए संवाददाता की तरफ लपका !!!
अभी उसने फ्लोर से नीचे कदम रखा ही था कि---------
एकदम हाॅल की सभी लाइटे आँफ हो गई ।
अथेरा छा गया--घुप्प अँधेरा।
या तो सारे शहर की हीँ लाइट चली गई थी या किसी ने होटल का मेन स्विच आँफ कर दिया था…हांल में मोजूद सभी लोगों के सांथ-साथ तोताराम की आंखों के सामने भी घने अंधेरे के कारण हरे-हरे दायरे चकरा उठे----बह ठिठक-सा गया ।
पहले पल तो अचानक ही अंधेरा हो जाने के कारण सारे हाॅल में सन्नाटा सा छा गया…फिर अजीब-सी गहमागहमी उभरी---------जब हाॅल में अंधेरा छाए एक मिनट हो गया तो आवाजें गूंजने लगी---सिसकांरियां भी उभरी-कदाचित कुछ 'जोडों ने अंधेरे का लाभ उठाने की ठान ली थी-किसी मनचले ने जोर से सीटी भी बजा दी ।
समय गुजारने के साथ ही वातावरण में हंगामा होता जा रहा था कि--------धांय------!'!
अंधेरे में कोई रिवॉल्वर गर्जां-एक शोला लपका ।
हॉल के वातावरण में किसी नारी की दर्दनाक चीख उठी…यह चीख यकीनन अमिता की थी-इस चीख के बाद हाॅल में जैसे हाहाकार मच गया डरी और सहमी वहुत-भी चीखें गूजऩे लगी-----लोग अपने-अपने स्थान छोडकर इधर-उधर भागने लगे ।
अंधेरे मे एक-दूसरे से टकराते, चीखते, गिरते उठकर पुन: भागते-फायर की आवाज ने वहां आतंक फैला दिया था ।
कोई घबराए हुए स्वर मे चीख पडा----यहा कत्ल हो गया है-----लाईट ऑन करो---॥.
तभी------धांय---।
दुसरा फायर! '
इस बार हाॅल तोताराम की चीख से झनझना उठा ।
भगदड मच -गई-आतंक फैल गया ।
फिर------अचानक ही सारा हाल पहले की तरह चकाचौंध कर देने वाली रोशनी से भर गया…लोग जहा के तहाँ रुक गए…
आखे बुधिया गई-होटल का मैनेजर चीख पडा-
"पुलिस के आने से पहले कोई भी व्यक्ति हाॅल है बाहर न निकले !"
चेहरे पीले पड़ गए…आतंक पुता पड़ा था उन पंर'!!
हर दृष्टि फ्लोर के समीप पडी अमिता की लाश और उससे थोडा हटकर फर्श पर पड़े तोताराम के लहूलुहान जिस्म पर चिपक गई…तोताराम के जिस्म को लाश इसलिए नहीं कहा जा सकता, क्योंकि अभी तक उसके जिस्म में थ्रोड्री हरकत थी ।
गोली उसके पेट में लगी थी ।
. दोनों हाथों से अपना पेट दबाए तोताराम उठ खड़ा हुआ सफेद कपड़े बुरी तरह खून में रंग चुके थे…उसके चेहरे पर असीम पीड़ा के भाव थे-सारा शरीर बुरी तरह कांप रहा था-कुछ कहने के लिए उसने मुंह खोला…मुंह के अन्दर से ढेर सारा खून उबल पड़ा ।"
देखने वालों की चीखें निकल गई, किन्तु किसी ने आगे बढकर तोताराम को सहारा देने का साहस न किया ----- ऐसे अवसरों पर कौन रिस्क लेता है--सभी जानते हैं कि ऐसी बेवकूफी करने पर व्यक्ति पुलिस की चक्करदार प्रक्रिया में उलझ जाता है ।
सभी मूक दर्शक वने असीमित दर्द से छटपटाते र्तोताराम को देखते रहे----आगे बढ़कर संवाददाता ने इस दृश्य का फोटो जरूर ले लिया ॥॥॥॥
पेट को दबाए तोताराम लड़खड़ाता हुआ अपनी सीट की तरफ बढा-----दर्द में डूबी उसकी आंखें मेज पर रखी जुदाई पर गडी हुई थी…हर पल, वह बोलने की भरपूर चेष्टा कर रहा था, किन्तु मुहसे घुटी घुटी चीख के अलावा एक भी शब्द नहीं निकला !!!!!!
संवाददाता अब लगातार उसके फोटो ले रहा था ।
तोताराम अपनी सीट के करीब पहुंचकर लड़खड़ाया-बड्री मुश्किल से उसने मेज पकडकर स्वयं को गिरने से रोका---खून से सना दायां हाथ बढाकर मेज पर रखी 'जुदाई' उठा ली-----किताब का आवरण खून से लथपथ हो गया----इस किताब को हाथ में लिए तोताराम घूमा----- किताब वाला हाथ उसने ऊपर उठा लिया----कुछ कहने के लिए पुन: मुहं खोला------संवाददाता के कैमरे का फ्लैश चमका ॥॥॥॥॥
तोताराम के कंठ से अंन्तिम हिचकी निकली-------उसका शरीर लाश बनकर फर्श पर लुढ़कता चला गया…खून में डूबी 'जुदाई' एक तरफ़ पडी रह गई -बैक पर छपे प्रेम बाजपेयी के चित्र पर भी कई जगह खून के धब्बे लग गये थे ।
विजय के गोरे--चिट्टे एवं गठे हुए जिस्म पर इस वक्त सिर्फ एक अडंरवियर था---लाल रंग का चुस्त, अंडरवियर--शेष सारे जिस्म पर आवश्यकता से अधिक तेल मला हुआ था…तेल लगे जिस्म पर फिसल रहा था ढेर सारा पसीना ।
फिसलता भी क्यों नहीं---???
किसी ऐसे व्यक्ति का पसीने से तर-वतर हो जाना स्वाभाविक ही है जो कि पिछले दो घण्टे से अपने कमरे की दीवार को सरकने की चेष्टा कर रहा हो-वह बुरी तरह हांफ़ रहा. था----------दोनों हथेलियाँ दीवार पर टेककर उसने एक बार फिर इस तरह ताकत लगाई, जैसे कोई घक्के से स्टार्ट होने वाली कार को धक्का लगा रहा हो, परन्तु दीवार टस से मस न हुई ।
" धत् तेरे की ।" कहने के साथ ही उसने अपने माथे से पसीना और हाथ झटकता हुआ बोला…“इस दुनिया में तुम कुछ नहीं कर सकते विजय दी ग्रेट !"
एकाएक कमरे के बाहर से आबाज उभरी----------" विजय---विजय-----!"
"हांय…ये तो अपने तुलाराशी की आवाज़ है ।" विजय एकदम पछाड-सी खा गया फिर बडी तेजी से वह फर्श पर दीवार' के सहारे उल्टा खडा हो गया…सिऱ नीचे-पेर ऊपर-चेहरा बीमार की तरफ़ किए वह जोर-जोर से चिल्लाने लगा-------"जल तू जलाल तु----------आई बला को टाल तु-----जल तू जलाल तू आई बला को टाल तू।"
उसे देखते ही सुपर रघुनाथ ,दरवाजे पर ठिठक गया----मुह से स्वयं ही यह वाक्य निकल गया…“अरे---ये तुम क्या कर रहे हो विजय?"
विजय अपनी ही धुन में कहता चला गया----- ---"जल तू जलाल तु----------आई बला को टाल तु-----जल तू जलाल तू-----आई बला को टाल तू।"
"विजय ।” रघुनाथ ने पुन: पुकारा ।
"जल तू जलाल तु----------आई बला को टाल तु-----जल तू जलाल तू आई बला को टाल तू !"
" ओफ्फो--- तुम अपनी इन ऊटपटांग हरकतों से कभी बाज नहीं आओगे !” कहने के साथ ही रघुनाथ लम्बे-लम्बे क़दमों के साथ कमरे में दाखिल हो गया-वह इस वक्त अपनी सम्पूर्ण यूनीफार्म में था…भारी जूतों की ठक-ठक ठीक विजय के समीप जाकर रूकी-----विज़य अब बाकायदा हनुमान चालीसा का पाठ करने लंगा था-रधुनाथ ने एक बार पुन: उसे पुकारा, परन्तु जब इस बार----भी पर कोई प्रतिक्रिया नहीं हुई तो उसके दोनों पैर पकड़कर जोर से झटका दिया ।
चित अवस्था में फर्श पर पड़ा वह आंखें बन्द किए बुदबुदा रहा था ---"हनुमान-ज़ब नाम सुनावे-भूत-पिशाच निकट नहीं आवे !"
" ओफ्फो---!" रघुनाथ झुंझलाहट भरे स्वर मे चीख पड़ा-----"विजय ।"
विजय ने पट्ट से आखें खोल दीं-रघुनाथ पर दृष्टि पडते ही वह एकदम उछल और चीखा…"भ--भूत-भूत-भूत पिशाच निकट नहीं आवे---हनुमान जब नाम सुनावे ।"
हनुमान चालीसा का पाठ करता हुआ वह सारे कमरे में दौड़ रहा था-दुष्टि हर क्षण रघुनाथ पर थी-आंखों में ऐसे भाव थे जैसे रघुनाथ को वह सचमुच भूत समझ रहा हो, रघुनाथ अपने स्थान पर जड़वत'-सा खडा रह गया…बड्री अजीब-सी स्थिति थी उसकी-बह पागलों की-सी अवस्था मे चीख पडा---उफ्फ-ये मैं हूं विजय--रघुनाथ---।"
"आंय--।"' कहकर विजय एकदम रुक गया----जैसे बहुत तेज चलती हुई गाडी में अचानक ही ब्रेक लगा दिए गए हों वह ऊंट की तरह गर्दन उठाकर बोला----"प....प्यारे तुलाराशी-…ये ये तो तुम हो ! तुमने पहले क्यों -नही बताया, हम तो समझ रहे थे कि
"ये अपनी मूर्खतापूर्ण बाते तुम कब छोडोगे विजय?" रघुनाथ ने उसकी बात बीच ही में काटकर कहा-------" वंहा दीबार के सहारे उलटे खडे क्या कर रहे थे?"
कांटा....शीतल का समर्पण....खूनी सुन्दरी
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Re: दूध ना बख्शूंगी/Vedprakas sharma
जबकि दीवान ने कहा-काफी देर हो गई है…अब तुम जाओ ।"
फ्लोर पर तोताराम को बांहों में लिए अमिता थिरकती रही-अमिता रह-रहकर उससे लिपट जाती थी, जबकि तोताराम थोड़ा झिझक रहा था-----तोताराम को फ्लोर पर देखकर एक अखबार के संवाददाता ने फ्लोर का दृश्य अपने कैमरे में कैद कर लिया--- देखते ही तोताराम ने अमिता को अपने से अलग किया!!!!
वह तेजी से गले में कैमरा लटकाए संवाददाता की तरफ लपका !!!
अभी उसने फ्लोर से नीचे कदम रखा ही था कि---------
एकदम हाॅल की सभी लाइटे आँफ हो गई ।
अथेरा छा गया--घुप्प अँधेरा।
या तो सारे शहर की हीँ लाइट चली गई थी या किसी ने होटल का मेन स्विच आँफ कर दिया था…हांल में मोजूद सभी लोगों के सांथ-साथ तोताराम की आंखों के सामने भी घने अंधेरे के कारण हरे-हरे दायरे चकरा उठे----बह ठिठक-सा गया ।
पहले पल तो अचानक ही अंधेरा हो जाने के कारण सारे हाॅल में सन्नाटा सा छा गया…फिर अजीब-सी गहमागहमी उभरी---------जब हाॅल में अंधेरा छाए एक मिनट हो गया तो आवाजें गूंजने लगी---सिसकांरियां भी उभरी-कदाचित कुछ 'जोडों ने अंधेरे का लाभ उठाने की ठान ली थी-किसी मनचले ने जोर से सीटी भी बजा दी ।
समय गुजारने के साथ ही वातावरण में हंगामा होता जा रहा था कि--------धांय------!'!
अंधेरे में कोई रिवॉल्वर गर्जां-एक शोला लपका ।
हॉल के वातावरण में किसी नारी की दर्दनाक चीख उठी…यह चीख यकीनन अमिता की थी-इस चीख के बाद हाॅल में जैसे हाहाकार मच गया डरी और सहमी वहुत-भी चीखें गूजऩे लगी-----लोग अपने-अपने स्थान छोडकर इधर-उधर भागने लगे ।
अंधेरे मे एक-दूसरे से टकराते, चीखते, गिरते उठकर पुन: भागते-फायर की आवाज ने वहां आतंक फैला दिया था ।
कोई घबराए हुए स्वर मे चीख पडा----यहा कत्ल हो गया है-----लाईट ऑन करो---॥.
तभी------धांय---।
दुसरा फायर! '
इस बार हाॅल तोताराम की चीख से झनझना उठा ।
भगदड मच -गई-आतंक फैल गया ।
फिर------अचानक ही सारा हाल पहले की तरह चकाचौंध कर देने वाली रोशनी से भर गया…लोग जहा के तहाँ रुक गए…
आखे बुधिया गई-होटल का मैनेजर चीख पडा-
"पुलिस के आने से पहले कोई भी व्यक्ति हाॅल है बाहर न निकले !"
चेहरे पीले पड़ गए…आतंक पुता पड़ा था उन पंर'!!
हर दृष्टि फ्लोर के समीप पडी अमिता की लाश और उससे थोडा हटकर फर्श पर पड़े तोताराम के लहूलुहान जिस्म पर चिपक गई…तोताराम के जिस्म को लाश इसलिए नहीं कहा जा सकता, क्योंकि अभी तक उसके जिस्म में थ्रोड्री हरकत थी ।
गोली उसके पेट में लगी थी ।
. दोनों हाथों से अपना पेट दबाए तोताराम उठ खड़ा हुआ सफेद कपड़े बुरी तरह खून में रंग चुके थे…उसके चेहरे पर असीम पीड़ा के भाव थे-सारा शरीर बुरी तरह कांप रहा था-कुछ कहने के लिए उसने मुंह खोला…मुंह के अन्दर से ढेर सारा खून उबल पड़ा ।"
देखने वालों की चीखें निकल गई, किन्तु किसी ने आगे बढकर तोताराम को सहारा देने का साहस न किया ----- ऐसे अवसरों पर कौन रिस्क लेता है--सभी जानते हैं कि ऐसी बेवकूफी करने पर व्यक्ति पुलिस की चक्करदार प्रक्रिया में उलझ जाता है ।
सभी मूक दर्शक वने असीमित दर्द से छटपटाते र्तोताराम को देखते रहे----आगे बढ़कर संवाददाता ने इस दृश्य का फोटो जरूर ले लिया ॥॥॥॥
पेट को दबाए तोताराम लड़खड़ाता हुआ अपनी सीट की तरफ बढा-----दर्द में डूबी उसकी आंखें मेज पर रखी जुदाई पर गडी हुई थी…हर पल, वह बोलने की भरपूर चेष्टा कर रहा था, किन्तु मुहसे घुटी घुटी चीख के अलावा एक भी शब्द नहीं निकला !!!!!!
संवाददाता अब लगातार उसके फोटो ले रहा था ।
तोताराम अपनी सीट के करीब पहुंचकर लड़खड़ाया-बड्री मुश्किल से उसने मेज पकडकर स्वयं को गिरने से रोका---खून से सना दायां हाथ बढाकर मेज पर रखी 'जुदाई' उठा ली-----किताब का आवरण खून से लथपथ हो गया----इस किताब को हाथ में लिए तोताराम घूमा----- किताब वाला हाथ उसने ऊपर उठा लिया----कुछ कहने के लिए पुन: मुहं खोला------संवाददाता के कैमरे का फ्लैश चमका ॥॥॥॥॥
तोताराम के कंठ से अंन्तिम हिचकी निकली-------उसका शरीर लाश बनकर फर्श पर लुढ़कता चला गया…खून में डूबी 'जुदाई' एक तरफ़ पडी रह गई -बैक पर छपे प्रेम बाजपेयी के चित्र पर भी कई जगह खून के धब्बे लग गये थे ।
विजय के गोरे--चिट्टे एवं गठे हुए जिस्म पर इस वक्त सिर्फ एक अडंरवियर था---लाल रंग का चुस्त, अंडरवियर--शेष सारे जिस्म पर आवश्यकता से अधिक तेल मला हुआ था…तेल लगे जिस्म पर फिसल रहा था ढेर सारा पसीना ।
फिसलता भी क्यों नहीं---???
किसी ऐसे व्यक्ति का पसीने से तर-वतर हो जाना स्वाभाविक ही है जो कि पिछले दो घण्टे से अपने कमरे की दीवार को सरकने की चेष्टा कर रहा हो-वह बुरी तरह हांफ़ रहा. था----------दोनों हथेलियाँ दीवार पर टेककर उसने एक बार फिर इस तरह ताकत लगाई, जैसे कोई घक्के से स्टार्ट होने वाली कार को धक्का लगा रहा हो, परन्तु दीवार टस से मस न हुई ।
" धत् तेरे की ।" कहने के साथ ही उसने अपने माथे से पसीना और हाथ झटकता हुआ बोला…“इस दुनिया में तुम कुछ नहीं कर सकते विजय दी ग्रेट !"
एकाएक कमरे के बाहर से आबाज उभरी----------" विजय---विजय-----!"
"हांय…ये तो अपने तुलाराशी की आवाज़ है ।" विजय एकदम पछाड-सी खा गया फिर बडी तेजी से वह फर्श पर दीवार' के सहारे उल्टा खडा हो गया…सिऱ नीचे-पेर ऊपर-चेहरा बीमार की तरफ़ किए वह जोर-जोर से चिल्लाने लगा-------"जल तू जलाल तु----------आई बला को टाल तु-----जल तू जलाल तू आई बला को टाल तू।"
उसे देखते ही सुपर रघुनाथ ,दरवाजे पर ठिठक गया----मुह से स्वयं ही यह वाक्य निकल गया…“अरे---ये तुम क्या कर रहे हो विजय?"
विजय अपनी ही धुन में कहता चला गया----- ---"जल तू जलाल तु----------आई बला को टाल तु-----जल तू जलाल तू-----आई बला को टाल तू।"
"विजय ।” रघुनाथ ने पुन: पुकारा ।
"जल तू जलाल तु----------आई बला को टाल तु-----जल तू जलाल तू आई बला को टाल तू !"
" ओफ्फो--- तुम अपनी इन ऊटपटांग हरकतों से कभी बाज नहीं आओगे !” कहने के साथ ही रघुनाथ लम्बे-लम्बे क़दमों के साथ कमरे में दाखिल हो गया-वह इस वक्त अपनी सम्पूर्ण यूनीफार्म में था…भारी जूतों की ठक-ठक ठीक विजय के समीप जाकर रूकी-----विज़य अब बाकायदा हनुमान चालीसा का पाठ करने लंगा था-रधुनाथ ने एक बार पुन: उसे पुकारा, परन्तु जब इस बार----भी पर कोई प्रतिक्रिया नहीं हुई तो उसके दोनों पैर पकड़कर जोर से झटका दिया ।
चित अवस्था में फर्श पर पड़ा वह आंखें बन्द किए बुदबुदा रहा था ---"हनुमान-ज़ब नाम सुनावे-भूत-पिशाच निकट नहीं आवे !"
" ओफ्फो---!" रघुनाथ झुंझलाहट भरे स्वर मे चीख पड़ा-----"विजय ।"
विजय ने पट्ट से आखें खोल दीं-रघुनाथ पर दृष्टि पडते ही वह एकदम उछल और चीखा…"भ--भूत-भूत-भूत पिशाच निकट नहीं आवे---हनुमान जब नाम सुनावे ।"
हनुमान चालीसा का पाठ करता हुआ वह सारे कमरे में दौड़ रहा था-दुष्टि हर क्षण रघुनाथ पर थी-आंखों में ऐसे भाव थे जैसे रघुनाथ को वह सचमुच भूत समझ रहा हो, रघुनाथ अपने स्थान पर जड़वत'-सा खडा रह गया…बड्री अजीब-सी स्थिति थी उसकी-बह पागलों की-सी अवस्था मे चीख पडा---उफ्फ-ये मैं हूं विजय--रघुनाथ---।"
"आंय--।"' कहकर विजय एकदम रुक गया----जैसे बहुत तेज चलती हुई गाडी में अचानक ही ब्रेक लगा दिए गए हों वह ऊंट की तरह गर्दन उठाकर बोला----"प....प्यारे तुलाराशी-…ये ये तो तुम हो ! तुमने पहले क्यों -नही बताया, हम तो समझ रहे थे कि
"ये अपनी मूर्खतापूर्ण बाते तुम कब छोडोगे विजय?" रघुनाथ ने उसकी बात बीच ही में काटकर कहा-------" वंहा दीबार के सहारे उलटे खडे क्या कर रहे थे?"
फ्लोर पर तोताराम को बांहों में लिए अमिता थिरकती रही-अमिता रह-रहकर उससे लिपट जाती थी, जबकि तोताराम थोड़ा झिझक रहा था-----तोताराम को फ्लोर पर देखकर एक अखबार के संवाददाता ने फ्लोर का दृश्य अपने कैमरे में कैद कर लिया--- देखते ही तोताराम ने अमिता को अपने से अलग किया!!!!
वह तेजी से गले में कैमरा लटकाए संवाददाता की तरफ लपका !!!
अभी उसने फ्लोर से नीचे कदम रखा ही था कि---------
एकदम हाॅल की सभी लाइटे आँफ हो गई ।
अथेरा छा गया--घुप्प अँधेरा।
या तो सारे शहर की हीँ लाइट चली गई थी या किसी ने होटल का मेन स्विच आँफ कर दिया था…हांल में मोजूद सभी लोगों के सांथ-साथ तोताराम की आंखों के सामने भी घने अंधेरे के कारण हरे-हरे दायरे चकरा उठे----बह ठिठक-सा गया ।
पहले पल तो अचानक ही अंधेरा हो जाने के कारण सारे हाॅल में सन्नाटा सा छा गया…फिर अजीब-सी गहमागहमी उभरी---------जब हाॅल में अंधेरा छाए एक मिनट हो गया तो आवाजें गूंजने लगी---सिसकांरियां भी उभरी-कदाचित कुछ 'जोडों ने अंधेरे का लाभ उठाने की ठान ली थी-किसी मनचले ने जोर से सीटी भी बजा दी ।
समय गुजारने के साथ ही वातावरण में हंगामा होता जा रहा था कि--------धांय------!'!
अंधेरे में कोई रिवॉल्वर गर्जां-एक शोला लपका ।
हॉल के वातावरण में किसी नारी की दर्दनाक चीख उठी…यह चीख यकीनन अमिता की थी-इस चीख के बाद हाॅल में जैसे हाहाकार मच गया डरी और सहमी वहुत-भी चीखें गूजऩे लगी-----लोग अपने-अपने स्थान छोडकर इधर-उधर भागने लगे ।
अंधेरे मे एक-दूसरे से टकराते, चीखते, गिरते उठकर पुन: भागते-फायर की आवाज ने वहां आतंक फैला दिया था ।
कोई घबराए हुए स्वर मे चीख पडा----यहा कत्ल हो गया है-----लाईट ऑन करो---॥.
तभी------धांय---।
दुसरा फायर! '
इस बार हाॅल तोताराम की चीख से झनझना उठा ।
भगदड मच -गई-आतंक फैल गया ।
फिर------अचानक ही सारा हाल पहले की तरह चकाचौंध कर देने वाली रोशनी से भर गया…लोग जहा के तहाँ रुक गए…
आखे बुधिया गई-होटल का मैनेजर चीख पडा-
"पुलिस के आने से पहले कोई भी व्यक्ति हाॅल है बाहर न निकले !"
चेहरे पीले पड़ गए…आतंक पुता पड़ा था उन पंर'!!
हर दृष्टि फ्लोर के समीप पडी अमिता की लाश और उससे थोडा हटकर फर्श पर पड़े तोताराम के लहूलुहान जिस्म पर चिपक गई…तोताराम के जिस्म को लाश इसलिए नहीं कहा जा सकता, क्योंकि अभी तक उसके जिस्म में थ्रोड्री हरकत थी ।
गोली उसके पेट में लगी थी ।
. दोनों हाथों से अपना पेट दबाए तोताराम उठ खड़ा हुआ सफेद कपड़े बुरी तरह खून में रंग चुके थे…उसके चेहरे पर असीम पीड़ा के भाव थे-सारा शरीर बुरी तरह कांप रहा था-कुछ कहने के लिए उसने मुंह खोला…मुंह के अन्दर से ढेर सारा खून उबल पड़ा ।"
देखने वालों की चीखें निकल गई, किन्तु किसी ने आगे बढकर तोताराम को सहारा देने का साहस न किया ----- ऐसे अवसरों पर कौन रिस्क लेता है--सभी जानते हैं कि ऐसी बेवकूफी करने पर व्यक्ति पुलिस की चक्करदार प्रक्रिया में उलझ जाता है ।
सभी मूक दर्शक वने असीमित दर्द से छटपटाते र्तोताराम को देखते रहे----आगे बढ़कर संवाददाता ने इस दृश्य का फोटो जरूर ले लिया ॥॥॥॥
पेट को दबाए तोताराम लड़खड़ाता हुआ अपनी सीट की तरफ बढा-----दर्द में डूबी उसकी आंखें मेज पर रखी जुदाई पर गडी हुई थी…हर पल, वह बोलने की भरपूर चेष्टा कर रहा था, किन्तु मुहसे घुटी घुटी चीख के अलावा एक भी शब्द नहीं निकला !!!!!!
संवाददाता अब लगातार उसके फोटो ले रहा था ।
तोताराम अपनी सीट के करीब पहुंचकर लड़खड़ाया-बड्री मुश्किल से उसने मेज पकडकर स्वयं को गिरने से रोका---खून से सना दायां हाथ बढाकर मेज पर रखी 'जुदाई' उठा ली-----किताब का आवरण खून से लथपथ हो गया----इस किताब को हाथ में लिए तोताराम घूमा----- किताब वाला हाथ उसने ऊपर उठा लिया----कुछ कहने के लिए पुन: मुहं खोला------संवाददाता के कैमरे का फ्लैश चमका ॥॥॥॥॥
तोताराम के कंठ से अंन्तिम हिचकी निकली-------उसका शरीर लाश बनकर फर्श पर लुढ़कता चला गया…खून में डूबी 'जुदाई' एक तरफ़ पडी रह गई -बैक पर छपे प्रेम बाजपेयी के चित्र पर भी कई जगह खून के धब्बे लग गये थे ।
विजय के गोरे--चिट्टे एवं गठे हुए जिस्म पर इस वक्त सिर्फ एक अडंरवियर था---लाल रंग का चुस्त, अंडरवियर--शेष सारे जिस्म पर आवश्यकता से अधिक तेल मला हुआ था…तेल लगे जिस्म पर फिसल रहा था ढेर सारा पसीना ।
फिसलता भी क्यों नहीं---???
किसी ऐसे व्यक्ति का पसीने से तर-वतर हो जाना स्वाभाविक ही है जो कि पिछले दो घण्टे से अपने कमरे की दीवार को सरकने की चेष्टा कर रहा हो-वह बुरी तरह हांफ़ रहा. था----------दोनों हथेलियाँ दीवार पर टेककर उसने एक बार फिर इस तरह ताकत लगाई, जैसे कोई घक्के से स्टार्ट होने वाली कार को धक्का लगा रहा हो, परन्तु दीवार टस से मस न हुई ।
" धत् तेरे की ।" कहने के साथ ही उसने अपने माथे से पसीना और हाथ झटकता हुआ बोला…“इस दुनिया में तुम कुछ नहीं कर सकते विजय दी ग्रेट !"
एकाएक कमरे के बाहर से आबाज उभरी----------" विजय---विजय-----!"
"हांय…ये तो अपने तुलाराशी की आवाज़ है ।" विजय एकदम पछाड-सी खा गया फिर बडी तेजी से वह फर्श पर दीवार' के सहारे उल्टा खडा हो गया…सिऱ नीचे-पेर ऊपर-चेहरा बीमार की तरफ़ किए वह जोर-जोर से चिल्लाने लगा-------"जल तू जलाल तु----------आई बला को टाल तु-----जल तू जलाल तू आई बला को टाल तू।"
उसे देखते ही सुपर रघुनाथ ,दरवाजे पर ठिठक गया----मुह से स्वयं ही यह वाक्य निकल गया…“अरे---ये तुम क्या कर रहे हो विजय?"
विजय अपनी ही धुन में कहता चला गया----- ---"जल तू जलाल तु----------आई बला को टाल तु-----जल तू जलाल तू-----आई बला को टाल तू।"
"विजय ।” रघुनाथ ने पुन: पुकारा ।
"जल तू जलाल तु----------आई बला को टाल तु-----जल तू जलाल तू आई बला को टाल तू !"
" ओफ्फो--- तुम अपनी इन ऊटपटांग हरकतों से कभी बाज नहीं आओगे !” कहने के साथ ही रघुनाथ लम्बे-लम्बे क़दमों के साथ कमरे में दाखिल हो गया-वह इस वक्त अपनी सम्पूर्ण यूनीफार्म में था…भारी जूतों की ठक-ठक ठीक विजय के समीप जाकर रूकी-----विज़य अब बाकायदा हनुमान चालीसा का पाठ करने लंगा था-रधुनाथ ने एक बार पुन: उसे पुकारा, परन्तु जब इस बार----भी पर कोई प्रतिक्रिया नहीं हुई तो उसके दोनों पैर पकड़कर जोर से झटका दिया ।
चित अवस्था में फर्श पर पड़ा वह आंखें बन्द किए बुदबुदा रहा था ---"हनुमान-ज़ब नाम सुनावे-भूत-पिशाच निकट नहीं आवे !"
" ओफ्फो---!" रघुनाथ झुंझलाहट भरे स्वर मे चीख पड़ा-----"विजय ।"
विजय ने पट्ट से आखें खोल दीं-रघुनाथ पर दृष्टि पडते ही वह एकदम उछल और चीखा…"भ--भूत-भूत-भूत पिशाच निकट नहीं आवे---हनुमान जब नाम सुनावे ।"
हनुमान चालीसा का पाठ करता हुआ वह सारे कमरे में दौड़ रहा था-दुष्टि हर क्षण रघुनाथ पर थी-आंखों में ऐसे भाव थे जैसे रघुनाथ को वह सचमुच भूत समझ रहा हो, रघुनाथ अपने स्थान पर जड़वत'-सा खडा रह गया…बड्री अजीब-सी स्थिति थी उसकी-बह पागलों की-सी अवस्था मे चीख पडा---उफ्फ-ये मैं हूं विजय--रघुनाथ---।"
"आंय--।"' कहकर विजय एकदम रुक गया----जैसे बहुत तेज चलती हुई गाडी में अचानक ही ब्रेक लगा दिए गए हों वह ऊंट की तरह गर्दन उठाकर बोला----"प....प्यारे तुलाराशी-…ये ये तो तुम हो ! तुमने पहले क्यों -नही बताया, हम तो समझ रहे थे कि
"ये अपनी मूर्खतापूर्ण बाते तुम कब छोडोगे विजय?" रघुनाथ ने उसकी बात बीच ही में काटकर कहा-------" वंहा दीबार के सहारे उलटे खडे क्या कर रहे थे?"
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Re: दूध ना बख्शूंगी/Vedprakas sharma
विजय उछलकर सोफे पर जा गिरा और फिर इस बात की परवाह किए विना वह पालथी मारकर बैठ गया कि उसके जिस्म पर लगे तेल से सोफा खराब भी ही सकता है, बोला------"दीवार की जड़ में झांककर देख रहे थे प्यारे कि दीवार साली इंच-दो-इंच हटी भी कि नहीं?"
"दीवार हटी` है?"रधुनाथ की बुद्धि चकरा गई ।
" हा प्यारे ----- मगर गर्दिश मे है तारे ---- एक ही जगह इकट्ठे हो गये सारे !"
आगे बढकर रघुनाथ उसके सामने वाले सोफे पर बैठता हुआ बोला-“दीवार भला कैसे हट सकती है?"
"वाह-क्यों नहीं हट सकती?, विजय एकदम किसी झगड़ालू औरत के समान हाथ नचाकर बोला----"कहते है कि ….दुनिया मे एक भी काम ऐसा नहीं है, जिसे इंसान न कर सके-------तुम हमारी ये उवड़-खाबड़ हालत देख रहे हो रधु डार्लिंग-----पिछले दो घण्टे से लगातार दीवार को सरकाने की कोशिश कर रहे हैं, लेकिन लगता है कि लोग साले गलत कहते है हैं----दीवार टस-से-मस नहीं हुई! !
रघुनाथ को लगा कि विजयं का दिमाग इस वक्त खाली है . . और यदि उसने सावधानी से काम न लिया तो विजय उसे लम्बे समय तक बोर कर सकता है, अत: उसने जल्दी से कहा---"मै तुम्हरे पास एक बहुत ही जरूरी काम से आया हूं विजय ।।।"
विजय ने एकदम धूनी रमाकर समाधि में लीन किसी साधू-की सी मुद्रा वना ती और आंखें बन्द करके बोला-"'हम जानते है बच्चा ।"
“तुम जानते हो?" रघुनाथ चोंक पड़ा---म--मगर क्या !"
"कल रात एक विधायक की हत्या हो गई है।"
" है…!" रघुनाथ सचमुच उछल ही पड़ा-"त- तुम्हें कैसे मालूम! "
आंखे बन्द किए विजय उसी मुद्रा मैं कहता चला गया----"हम अन्तर्यामी हैं बच्वा तुम्हे उस विधायक के कातिल की तलाश है---आज सुबह सुंबह तुम पर हमारे बापूजान की झाड पडी है-उन्होंने अल्टीमेटम दे दिया है कि अगर तुमने जल्दी-से-जल्दी विधायक तोताराम के हत्यारे को ससुराल नहीं पहुचाया तो तुम्हारे कान आंखों की जगह और आंखें कानों की जगह लगा जाएंगी--जरा सोचो तुलाराशी---कितने हैंडसम लगोगे तुम !!"
" विजय !!" रघुनाथ कहना ही चाहता था कि विजय ने हाथ उठाकर उसे रोक दिया, बोला------जनता : ने सम्बन्धित थाने का घेराव किया ईंट-पत्थर चलाए------तुम्हारी नाक में दम को गया ।"
" ये-----यह सब तुम्हें कैसे मालूम?" रघुनाथ सचमुच हैरत में पड़ गया ।
विजय ने आंखें खोलीं और फिर उसे चिढाने वाले अन्दाज में बोला----"हमे हैरत इस बात की है प्यारे तुलाराशी कि तुम्हें, पुलिस सुपरिंटेडेण्ट किस बेवकूफ़ ने वना दिया?"
"क्या मतलब?"
"हम तुम्हे इसीलिए सुपर-इडियट कहा करते है ।"
"तुम मेरा अपमान कर रहे हो विजय ।"
"अबे अपमान नहीं करू तो क्या तुम्हें सिर पर बैठा कर भंगड़ा करूं?” विजय ने आंखें निकाली-“कोई छोटा-मोटा इंस्पेक्टर भी इस कमंरे में घुसते ही जान सकता है कि ये सब बाते मुझे कैसे पता लगी, लेकिन एक तुम हो-बन गए पुलिस सुपरिटेण्डेण्ट-अक्ल के नाम पर दिवालिए !!"
"कमरे में घुसतें ही भला कोई कैसे जान सकता है कि. .. ।"
" जरा ध्यान से हमारे कमरे की खूबसूरती को देखो ।"
असमंजस में पड़ा रधूनाथ सचमुच कमरे को और कैमरे में रखे सामान को ध्यान से देखने लगा----अन्तमें उसकी दृष्टि सोफों बीच पडी सेण्टर टेबल पर रखे अखबार पर स्थिर हो गई---बोला---“ओह-तोताराम की हत्या का'समाचार शायद अखबार में छपा है?"
" सीधी-सी बात है-जब विधायक मरेगा तो समाचार जरूर छपेगा ।"
"म्-मगर मैं क्या जानता था कि तुमने अखबार पढ लिया है ?"
“कमरे मैं घुसते ही यदि तुमने मेज पर अस्त-व्यस्त पड़े अखबार को ध्यान से देखा होता तो समझ गये होते कि मैं अखबार पढ़ चुका हु-बस, तब तुम्हें हमारी बातों पर कोई हैरत न होती ।"
" ल-लेकिन ये तो अखबार में कहीं भी नहीं छपा' होगा कि सुबह-सुबह ठाकुर साहब. ने मुझे झाड पिलाई ।"
"अखबार में नहीं मेरी जान---- वह तुम्हारे चेहरे पर छपा है !"
"क्या मतलब ?"
"शहर के बच्चे-बच्चे की तरह हम भी कम-से-कम -यह र्तो जानते ही हैं कि तोताराम विधानसभा में जिस पार्टी की तरफ से विधायक था, वह पार्टी इस वक्त विपक्ष में है और सत्तारूढ पार्टी की नाक में कदम करने के लिऐ किसी भी "इशू" की विपक्ष को तलाश रहती हैँ…उनके विधायक का कत्ल हो गया है ! इससे अच्छा 'इशू' उन्हें कहां मिलेगा-थाने पर जान-बूझकर पथराव किया गया--सारे शहर मेँ अब जगह-जगह शोक सभाएं होंगी-सरकार की कार्यशलता पर उंगलियां उठेगी----इस हत्या को राजनीतिक रंग देने की कोशिश की जाएगी--- इसीलिए सरकार ने पुलिस पर दबाव डाला होगा कि तोताराम का हत्यारा जल्दी-से-जल्दी पिंजरे में पहुंचना चाहिए---वहीं दबाव झाड के रूप से हमारे वापूजान के मुह से तुम तक पहुचा है।"
" तुम बिल्कुल ठीक समझ रहे हो विजय ।"
" अखबार में छपी घटना के बाद जब तुम यहा आए तो, हम समझ गए कि यहाँ क्यों आए हो ?"
"मुझे तुम्हारी समझदारी पर फख्र है विजय! ।"
"तो जिस तरहँ आए हो प्यारे उसी तरह लौट भी जाओ ।"
"क्यों विजय?"
“अबे ये कोई बात हुई साली।" विजय एकदम से भडक उठा…"तुम काहे के सुपरिटेण्डेण्ट हो-कही कत्ल होता है तो यहाँ चले आते हो---- चोरी होती है तो विजय दी ग्रेट चोर को पकड़ेगा-कही साली कोई जेब भी कट जाती है तो सिर है के बल सीधे यहाँ चले आते हो---आज तक खुद कहीँ कोई एक केस भी हल नहीँ किया है-----बने फिरते हो सुपरिटेण्डेण्ट---------हुंह-----शर्म-आनी चाहिए तुम्हें-पुलिस के नाम पर धब्बा हो तुम !"
"विजय ।"
“फूटो प्यारे। मैं तुम्हारी कोई मदद नहीं कर सकता-केस खुद हल कंरो।"
“प-प्लीज विजय ।" रघुनाथ ने बटरिग की…"तुम तो यार बडे अच्छे हो-----बस, इस केस में मदद कर दो…वादा करता हू फिर कभी तुम्हारे पास नहीं आऊंगा ।"
" देखो प्यारे----!"
" प----प्लीज विजय ।" रघुनाथ याचना सी कर उठा ।
" धत्-धत्-धत्--।" जल्दी…जल्दी कहने के साथ ही विजय ने तीन बार अपना हाथ मस्तक पर मारा और फिर बोला-जमाने धत् तेरे की !"
"दीवार हटी` है?"रधुनाथ की बुद्धि चकरा गई ।
" हा प्यारे ----- मगर गर्दिश मे है तारे ---- एक ही जगह इकट्ठे हो गये सारे !"
आगे बढकर रघुनाथ उसके सामने वाले सोफे पर बैठता हुआ बोला-“दीवार भला कैसे हट सकती है?"
"वाह-क्यों नहीं हट सकती?, विजय एकदम किसी झगड़ालू औरत के समान हाथ नचाकर बोला----"कहते है कि ….दुनिया मे एक भी काम ऐसा नहीं है, जिसे इंसान न कर सके-------तुम हमारी ये उवड़-खाबड़ हालत देख रहे हो रधु डार्लिंग-----पिछले दो घण्टे से लगातार दीवार को सरकाने की कोशिश कर रहे हैं, लेकिन लगता है कि लोग साले गलत कहते है हैं----दीवार टस-से-मस नहीं हुई! !
रघुनाथ को लगा कि विजयं का दिमाग इस वक्त खाली है . . और यदि उसने सावधानी से काम न लिया तो विजय उसे लम्बे समय तक बोर कर सकता है, अत: उसने जल्दी से कहा---"मै तुम्हरे पास एक बहुत ही जरूरी काम से आया हूं विजय ।।।"
विजय ने एकदम धूनी रमाकर समाधि में लीन किसी साधू-की सी मुद्रा वना ती और आंखें बन्द करके बोला-"'हम जानते है बच्चा ।"
“तुम जानते हो?" रघुनाथ चोंक पड़ा---म--मगर क्या !"
"कल रात एक विधायक की हत्या हो गई है।"
" है…!" रघुनाथ सचमुच उछल ही पड़ा-"त- तुम्हें कैसे मालूम! "
आंखे बन्द किए विजय उसी मुद्रा मैं कहता चला गया----"हम अन्तर्यामी हैं बच्वा तुम्हे उस विधायक के कातिल की तलाश है---आज सुबह सुंबह तुम पर हमारे बापूजान की झाड पडी है-उन्होंने अल्टीमेटम दे दिया है कि अगर तुमने जल्दी-से-जल्दी विधायक तोताराम के हत्यारे को ससुराल नहीं पहुचाया तो तुम्हारे कान आंखों की जगह और आंखें कानों की जगह लगा जाएंगी--जरा सोचो तुलाराशी---कितने हैंडसम लगोगे तुम !!"
" विजय !!" रघुनाथ कहना ही चाहता था कि विजय ने हाथ उठाकर उसे रोक दिया, बोला------जनता : ने सम्बन्धित थाने का घेराव किया ईंट-पत्थर चलाए------तुम्हारी नाक में दम को गया ।"
" ये-----यह सब तुम्हें कैसे मालूम?" रघुनाथ सचमुच हैरत में पड़ गया ।
विजय ने आंखें खोलीं और फिर उसे चिढाने वाले अन्दाज में बोला----"हमे हैरत इस बात की है प्यारे तुलाराशी कि तुम्हें, पुलिस सुपरिंटेडेण्ट किस बेवकूफ़ ने वना दिया?"
"क्या मतलब?"
"हम तुम्हे इसीलिए सुपर-इडियट कहा करते है ।"
"तुम मेरा अपमान कर रहे हो विजय ।"
"अबे अपमान नहीं करू तो क्या तुम्हें सिर पर बैठा कर भंगड़ा करूं?” विजय ने आंखें निकाली-“कोई छोटा-मोटा इंस्पेक्टर भी इस कमंरे में घुसते ही जान सकता है कि ये सब बाते मुझे कैसे पता लगी, लेकिन एक तुम हो-बन गए पुलिस सुपरिटेण्डेण्ट-अक्ल के नाम पर दिवालिए !!"
"कमरे में घुसतें ही भला कोई कैसे जान सकता है कि. .. ।"
" जरा ध्यान से हमारे कमरे की खूबसूरती को देखो ।"
असमंजस में पड़ा रधूनाथ सचमुच कमरे को और कैमरे में रखे सामान को ध्यान से देखने लगा----अन्तमें उसकी दृष्टि सोफों बीच पडी सेण्टर टेबल पर रखे अखबार पर स्थिर हो गई---बोला---“ओह-तोताराम की हत्या का'समाचार शायद अखबार में छपा है?"
" सीधी-सी बात है-जब विधायक मरेगा तो समाचार जरूर छपेगा ।"
"म्-मगर मैं क्या जानता था कि तुमने अखबार पढ लिया है ?"
“कमरे मैं घुसते ही यदि तुमने मेज पर अस्त-व्यस्त पड़े अखबार को ध्यान से देखा होता तो समझ गये होते कि मैं अखबार पढ़ चुका हु-बस, तब तुम्हें हमारी बातों पर कोई हैरत न होती ।"
" ल-लेकिन ये तो अखबार में कहीं भी नहीं छपा' होगा कि सुबह-सुबह ठाकुर साहब. ने मुझे झाड पिलाई ।"
"अखबार में नहीं मेरी जान---- वह तुम्हारे चेहरे पर छपा है !"
"क्या मतलब ?"
"शहर के बच्चे-बच्चे की तरह हम भी कम-से-कम -यह र्तो जानते ही हैं कि तोताराम विधानसभा में जिस पार्टी की तरफ से विधायक था, वह पार्टी इस वक्त विपक्ष में है और सत्तारूढ पार्टी की नाक में कदम करने के लिऐ किसी भी "इशू" की विपक्ष को तलाश रहती हैँ…उनके विधायक का कत्ल हो गया है ! इससे अच्छा 'इशू' उन्हें कहां मिलेगा-थाने पर जान-बूझकर पथराव किया गया--सारे शहर मेँ अब जगह-जगह शोक सभाएं होंगी-सरकार की कार्यशलता पर उंगलियां उठेगी----इस हत्या को राजनीतिक रंग देने की कोशिश की जाएगी--- इसीलिए सरकार ने पुलिस पर दबाव डाला होगा कि तोताराम का हत्यारा जल्दी-से-जल्दी पिंजरे में पहुंचना चाहिए---वहीं दबाव झाड के रूप से हमारे वापूजान के मुह से तुम तक पहुचा है।"
" तुम बिल्कुल ठीक समझ रहे हो विजय ।"
" अखबार में छपी घटना के बाद जब तुम यहा आए तो, हम समझ गए कि यहाँ क्यों आए हो ?"
"मुझे तुम्हारी समझदारी पर फख्र है विजय! ।"
"तो जिस तरहँ आए हो प्यारे उसी तरह लौट भी जाओ ।"
"क्यों विजय?"
“अबे ये कोई बात हुई साली।" विजय एकदम से भडक उठा…"तुम काहे के सुपरिटेण्डेण्ट हो-कही कत्ल होता है तो यहाँ चले आते हो---- चोरी होती है तो विजय दी ग्रेट चोर को पकड़ेगा-कही साली कोई जेब भी कट जाती है तो सिर है के बल सीधे यहाँ चले आते हो---आज तक खुद कहीँ कोई एक केस भी हल नहीँ किया है-----बने फिरते हो सुपरिटेण्डेण्ट---------हुंह-----शर्म-आनी चाहिए तुम्हें-पुलिस के नाम पर धब्बा हो तुम !"
"विजय ।"
“फूटो प्यारे। मैं तुम्हारी कोई मदद नहीं कर सकता-केस खुद हल कंरो।"
“प-प्लीज विजय ।" रघुनाथ ने बटरिग की…"तुम तो यार बडे अच्छे हो-----बस, इस केस में मदद कर दो…वादा करता हू फिर कभी तुम्हारे पास नहीं आऊंगा ।"
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" प----प्लीज विजय ।" रघुनाथ याचना सी कर उठा ।
" धत्-धत्-धत्--।" जल्दी…जल्दी कहने के साथ ही विजय ने तीन बार अपना हाथ मस्तक पर मारा और फिर बोला-जमाने धत् तेरे की !"
कांटा....शीतल का समर्पण....खूनी सुन्दरी
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