हिन्दी नॉवल-काली दुनिया का भगबान - complete

Post Reply
Jemsbond
Super member
Posts: 6659
Joined: 18 Dec 2014 12:09

Re: हिन्दी नॉवल-काली दुनिया का भगबान - रीमा भारती सीरीज

Post by Jemsbond »

"मेरा शुक्रिया अदा नहीं करोगी रीमा ।" एकाएक सोल्जर बोल उठा ।

मै चौकी ।

इस वक्त सोल्जर आगे चल रहा था । मैं उसके पीछे थी । मेरा मस्तिष्क तेजी से काम कर रहा था । मैं अपने अगले कदम के बारे में सोच रही थी ।

सहसा सोल्जर का स्वर मेरे कानों से टकराया था ।

मैं न सिर्फ चौंकी, बल्कि मेरी सोचें भी बिखर गई थीं । मैंने जल्दी से स्वयं को संभालकर पूछा---" शुक्रिया अदा करने में मेरा क्या जाता है, लेकिन मुझे ये तो मालूम ही चाहिये कि तुम मुझसे किस बात का शुक्रिया अदा करवाना चाहते हो?"

" 'मैँने तुमसे कहा था कि मैं अपनी तरफ से पूरी कोशिश करूंगा कि मार्शल साहब तुम्हारी शर्त मान लें । मैंने मार्शल साहब से तुम्हारी सिफारिश की थी और मेरी वजह से ही ये सब सम्भव हो पाया है ।"

मैं मन…ही मन मुस्कुराई ।

मैं समझ गई थी कि सोल्जर हवा में गप्प मार रहा है, लेकिन मुझे कुछ फ़र्क पड़ने वाला नहीं था । ये तो मेरे लिये शुभ संकेत था कि सोल्जर मेरी तरफ खिंच रहा है ।

शुक्रिया अदा करने में मेरा कुछ जाने वाला नहीं था । सोल्जर को खुश हो जाना था । अत: मैं बोल उठी-"बहुत्-वहुत शुक्रिया मिस्टर सोल्जर । तुमने वाकई मेरी बहुत मदद की है ।"

वह खामोश रहा।

किन्तु अब वह मेरे साथ-साथ सटकर चलने लगा था ।

मैं उसके इरादे भांपकर मन-हीं-मन मुस्कुराई । यह 'पट्ठा मेरी खूबसूरती के सामने चारों खाने चित्त हो गया लग रहा था है लेकिन मैंने अपने चेहरे पर किसी तरह का कोई भाव नहीं उभरने दिया ।

वह एक राहदारी से गुजरते हुए एक कमरे के सामने पहुंचे । कमरे का दरवाजा बंद था ।

सोल्जर दरवाजा खोलकर भीतर दाखिल हुआ ।

मैंने भी भीतर कदम रखा ।

कमरा टूयूब लाईट के दूधिया प्रकाश में जगमगा रहा था ।

कहने को तो वो कमरा था, लेकिन किसी हॉल से कम नहीं था । उसकी सामने बाली दीवार के साथ किंग साइज वेड पड़ा हुआ था । दीवारों पर एक-से-एक खूबसूरत पेन्टिग्स लगी हुई थीं । फर्श पर सुर्ख रंग का मोटा कालीन बिछा हुआ था । यहाँ टी०वी०, फ्रीज, कम्यूटर इत्यादि क्या नहीं था ।

कुल मिलाकर तो कमरा हर आधुनिक सुबिधा से पूर्ण था ।

"तुम यहीं रहोगी रीमा ।" सोज्जर ने कहा ।

" ओ के !"

"कमरा पसंद आया ।"

"ना पसंद आने का तो सवाल ही नहीं पैदा होता ।" मैंने गर्दन मोड़कर अपनी बगल में खड़े सोल्जर की तरफ देखते हुए कहा-"वेसे , अगर मुझे किसी चीज की जरूरत पड़ जाये तो में किससे कहुंगी ।"

"जब भी तुम्हें किसी चीज कीं जरूरत महसूस हो तो पास लगी बैल बजा देना । क्रोईं-न-क्रोई तुम्हारी सेवा में हाजिर हो जायेगा ।"

" बेहतर ।"

"अब में चलता हू।"

"ओ०के० ।"

सोल्जर चला गया । मैंने आगे बढ़कर दरवाजा बंद क्रिया और बारीकी से कमरे का निरीक्षण करने लगी । जल्दी ही एक बात की तो तस्दीक हो गई कि उस कमरे में कोई कैमरा इत्यादि नहीं लगा हुआ था ।

मैंने राहत की सांस ली ।

इसके बावजूद मैंने सतर्कता का दामन नहीं छोड़ा था, हालांकि सोल्जर मेरे बारे में भारत से अपनी तसल्ली का चुका था । लेकिन फिर भी मेरा सावधान रहना और एक-एक कदम फूकफुक कर रखना वेहद जरूरी था ।

मैंने आगे बढकर वेड संभाल लिया ।

इस वक्त मेरा मस्तिष्क तीव्रता से काम कर रहा था । मेरे दिमाग में सिर्फ एक उलझन थी कि सोल्जर को अपने रास्ते से कैसे हटाया जाये ?

दिमाग ठस्स पड़ चुका था ।

समझ में कुछ नहीं आ रहा था ।

फिलहाल इस बारे में दिमाग खराब करना ठीक नहीं समझा था । मुझे अपने आप पर पुरा भरोसा था कि मैं जल्दी ही कोइं-न-कोई रास्ता तलाश कर लूगी ।

इस वक्त मैं व्हिस्की के दो तीन पेग की जरूरत महसूस कर रही थी ।

मैंने बेड के करीब लगी बैल का बटन पुश कर दिया ।

दो पल बाद दरवाजे पर दस्तक पडी ।

"तुम जो कोई भी हो, चले आओ । दरवाजा खुला है ।" दस्तक के जवाब में मैंने कहा ।

दरवाजा खुला । अगले क्षण एक युवती ने भीतर कदम रखा ।

वह भी कम खूबसूरत नहीं थी ।

========

युवती बिचित्र निगाहों से मुझे देख रही थी और मैं उसे । मैं समझ नहीं पा रही थी कि वह मुझे अजीब निगाहों से क्यों देख रही है ?

"यस मैडम ।" वह वेड के करीब पहुंचकर बोली ।

"व्हिस्की मिलेगी ?"

"आप व्हिस्की की बात कर रही हैं । आप जो कहेंगी, वही मिलेगा, आखिर आप मार्शल साहब की खास मेहमान हैं ।"

"अच्छा ?!

"हां ।" यह पलटकर दरवाजे की तरफ बढती हुई बोली---" मै आपके लिये व्हिस्की लेकर आती हु ।"

युवती चली गई ।

युवती के लौटने का ज्यादा इंतजार नहीं करना पहा था । कठिनाई से पाच मिनट ही गुजरे थे कि युवती दोनों हाथों में ट्रे संभाले भीतर दाखिल हुई ।

युवती ने ट्रे मेज पर रख दी और उसमें से व्हिस्की की बोतल और खाने का सामान इत्यादि मेज पर रखने लगी ।

मैंने उसके चेहरे पर गम्भीरता और आँखों में सूनापन देखा था । ऐसा लगता था जैसे कोई फूल धूप में झुलस गया हो । मैंने अनुमान लगा लिया कि वह जिदगी से टूटी हुई है ।

जब यह सामान रख चुकी तो सीधी होती हुई बोली -" अब मैं चलू मेडम ।'"

"जल्दी है क्या ?"

"नहीं तो ।"

"चलीजाना ।'" मैंने काम ---" कुछ देर मुझे कम्पनी दे दो । । वैसे तुम पीती हो?"

"कभी पीती थी । लेकिन अब पीनी छोड़ दी है ।"

"क्यों?' मैंने सवाल किया ।

"शराब से नफरत हो गई है ।" उसने एक लंबी सर्द सांस छोड़ी ।

"मेरे लिये एक पैग बनाकर दो ।"

युवती ने पेग बनाकर मुझे थमा दिया ।

"बैठो ।" मैं बोली । वह मेरी बगल में बेड पर बैठ गई ।

"क्या नाम है तुम्हारा?" मैं अपनी निगाहें उसके चेहरे पर फिक्स करती हुई बोली।

" "सारा ।" "

"मार्शल साहब और सोज्जर को कब से जानती हो?"

=========
सारा के चेहरे के भाव तेजी से बदले---"' इस बारे में क्यों पूछ रही हैं मैडम?"

" यू ही उत्सुकता बश पूछ रही हू ।"

"कई सालों से जानती हूं।"

मैंने व्हिस्की का लंबा घूट भरा । अभी भी मेरी निगाहें सारा के चेहरे पर टिकी हुई थी । मैं जल्दबाजी में कुछ भी पूछने के मूड में नहीं थी । ऐसे में काम बिगड़ सकता था । ये भी तो हो सकता था कि सारा को सोल्जर ने मेरी मानसिकता जानने के लिये मेरे पास जानबूझकर भेजा हो ।

"आपका क्या नाम है मैडम ?" सारा ने पूछा ।

"रीमा भारती ।"

"आप तो शायद इण्डियन हैं ।"

"हा ।"

"मैंने आपको यहाँ पहली बार देखा है ।"

"पहली बार तो देखोगी ही । आज ही तो आई हू।"

"ओह ।" सारा के होठों से निक्ला-"वेसे आप यहां कैसे आ फंसी ?"

मैं चौकी ।

सारा ने जो कहा था । उससे मेरा चौंकना स्वाभाविक ही था ।

"मैं र्फसी नहीं हू। खुद आई हूं।" स्वयं को संभालकर मैं बोली

"क्यों?" उसने आश्चर्यभरी निगाहों से मेरी तरफ देखा ।

मैने गिलास होठों से लगाकर एक ही सांस में खाली किया फिर ‘बोली-"क्या करोगी जानकर?"

"उत्सुकता बश पूछ रहीं हु ।"

"दरअसल मैं भारत की एक महरपूर्ण जासूसी संस्था में एक जासूस के रूप में काम क्रिया करती थी । मुझसे एक ऐसा काम हो गया, जिसको वजह से मुझे उस जासूसी संस्था से निकाल दिया गया और वहीँ लोग मेरे पीछे हाथ धोकर पड़ गये । उनका मकसद मुझे गिरफ्तार करके सलाखों के पीछे पहुंचाना था ।" मैंने सारा को वहीँ झूठी कहानी सुनाईं…"मैं हिन्दुस्तान के किसी भी कोने में सुरक्षित नहीं रह गई । इसलिये मैंने अपने को सदा-सदा के लिये अलविदा करने का निर्णय कर लिया, मैं भयानक मौत मरना नहीं चाहती थी । अत: मैं किसी तरह से छिपती-धिपाती मडलैंड पहुंच गई । अब मुझे एक सुरक्षित ठिकाने की जरूरत्त थी । अत: मैंने सोल्जर से सम्पर्क स्थापित जिसने मुझे मार्शल से मिलवाया और मैंने मार्शल को अपने बारे में बताया 'तो उसने मुझे न सिर्फ आर्मी इंटेलीजेंस

===========
प्यास बुझाई नौकर से Running....कीमत वसूल Running....3-महाकाली ....1-- जथूराcomplete ....2-पोतेबाबाcomplete
बन्धन
*****************
दिल से दिल बड़ी मुश्किल से मिलते हैं!
तुफानो में साहिल बड़ी मुश्किल से मिलते हैं!
यूँ तो मिल जाता है हर कोई!
मगर आप जैसे दोस्त नसीब वालों को मिलते हैं!
*****************
Jemsbond
Super member
Posts: 6659
Joined: 18 Dec 2014 12:09

Re: हिन्दी नॉवल-काली दुनिया का भगबान - रीमा भारती सीरीज

Post by Jemsbond »

मे जगह दे दी, बल्कि सारी जिदगी की सुरक्षा की गारंटी दी है !"

"आपकी बात में कितना सच है ?" सारा की निगाहें मेरे चेहरे पर फिक्स हो गई ।

"सब सच ही है ।"

"मुझे नहीं लगता ।" उसने 'कहा-"माफ़ कीजिये मैडम मुझे ऐसा लग रहा है जैसे आप मुझे भी कहानी गढकर सुना रही हैं ।"

मैं मन-सी-मन हैरान रह गई ।

मुझे सारा नाम को वो युवती कोई पहुंची हुई चीज लगी थी । भगवान जाने उसने कैसे इस बारे में अंदाजा लगा लिया था, लेकिन मैंने अपने चेहरे पर किसी तरह का भाव नहीं उभरने दिया ।

"ये कहानी नहीं, हकीकत है सारा ।" मैंने दृढ़ता भरे स्वर में कहा।

सारा व्यंग्य से मुस्कुराई ।

मुझे जो हल्का सा नशा हुआ था । वो कपूर की तरह उड़ गया था ।

"मैं मान लेती कि आप सच कह रहीँ हैं मैडम ।" सारा ने कहा----" लेकिन मार्शल जैसा शख्स ऐसे ही किसी को इतने महत्वपूर्ण विभाग में तो नहीं रखेगा । आखिर आपने उस पर ऐसा कोन-सा जादू कर दिया, जो वह आपको आर्मी इंटेलीजेंस में रखने पर मजबूर गया ?"

मार्शल पर कोई जादू नहीं किया सारा । मैंने एक ऐसा काम किया है, जिसकी वजह उसने मुझे आर्मी के महत्वपूर्ण डिपार्टमेंट में जगह दी है ।" कहने के साथ ही मैंने पैग बनाने के लिये बोतल की तरफ हाथ बढाया ।

तभी सारा हाथ बढ़ाकर बोल उठी--"आपको कष्ट करने की जरूरत नहीं है मेडम । मुझे गिलास दीजिये। मैं आपके लिये पैग बनाती हूं ।"

मैंने गिलास सारा को थमा दिया ।

सारा ने उठकर मेरे लिये पैग बनाया और गिलास मुझे थमा दिया । फिर वह यथास्थान बैठती हुई बोली----" हां ,तो आपने ऐसा कौन-सा काम किया है?"

"मैंने सर एडलॉफ के समर्थकों के मुखिया क्लाइव को -गिस्पतार करवाया है ।" मैंने बताया ।

सारा उछल पड्री-"'क. . .क्या?"

"यस ।"

"ओह ! गॉड अपने क्लाइव को गिरफ्तार करवा कर अच्छा नही किया ।" सारा के होठों से नफरत का सेलाब निकला-आपने अपने स्वार्थ की खातिर इस मुल्क की जनता के साथ बहुत बड़ा जुल्म क्रिया है । आपने एक ऐसे शख्स को उन दरिन्दों के हबाले कर दिया, जो जुल्म के खिलाफ जंग लड़ रहा था । आपको इस मुल्क की जनता कभी माफ नहीं करेगी मैडम ।"

मैं व्हिस्की पीना भूल गई थी।

सारा के शब्दों से तो तस्दीक हो गया था कि कमरे में माइक्रोफोन्स वगेरह नहीं छिपाया गया था, अगर ऐसा होता तो वह मुझसे इस तरह की बातें कभी नहीं करती ।

उसकी बातों से साफ था कि वह मार्शल और सोल्जर से नफरत करती थी तथा क्लाइव से उसे हमदर्दी थी । जाहिर था कि सारा अपने सीने में गहरे जख्म लिये हुए है और वो जख्म मार्शल अथवा सोल्जर ने उसे दिये होंगे ।

किन्तु मैं अभी भी ये फैसला नहीं का पा रही थी कि सारा पर पूरा विश्वास किया जाये अथवा नहीं?

"सारा ।" मैं बोली ।

"यस मैडम ।"

"कोई हमारी बाते तो नहीं सुन रहा होगा ।"

"नहीं-: मार्शल और सोल्जर एक जरूरी मीटिंग में व्यस्त हैं । उन दोनों के अलावा तीसरा शख्स इस तरफ़ नहीं आ सकता, क्योंकि किसी भी सैनिक को इस तरफ आने की मनाही है ।"

" ओह?"

"आप पैग लिये क्यों बैठी हैं मेडम? पैग खत्म कीजिये ।"

"तुम्हारी बाते सुनकर मेरा मन व्हिस्की पीने को नहीं रहा सारा । तुमने तो मुजरिम साबित कर दिया है ।"

"अगेन साॅरी पैडमा लेकिन आप किसी मुजरिम से कम भी नहीं हैं । आपने एक ऐसा काम क्रिया है, जिसकी वजह से अब सर एडलॉफ के समर्थकों के हौंसले पस्त हो जायेंगे । क्या आप समझती हैं कि मार्शल, क्लाइव को जिंदा छोड़ देगा । जब भी क्लाइव से उसका मकसद हो जायेगा । बह उसे भयानक मौत मारेगा और उसकी मौत की जिम्मेदार आप होंगी ।" वह मुझे नफ़रत भरी निगाहों से देखती हुई बोली-"क्या आप समझती हैं कि मार्शल आपके साथ वफादारी निभायेगा ? नहीं मेडम । जिस दिन उसका मकदस पूरा हो जाएगा, उस दिन बह आपको दूध की मक्खी की तरह निकालकर फेंक देगा ।"

"क्या वो इतना घटिया इंसान है कि जुबान देकर मेरे साथ ऐसा करेगा?"

=========

"सांप में और मार्शले में जरा भी अंतर नहीं हे? सांप को कितना भी दूध क्यों न पिलाओ, आखिर वो जहर ही उगलेगा ।"

मुझें इन लोगों के बारे में सारा से कुछ भी पूछने की जरूरत, नहीं थी । बह खुद मुझे सबकुछ बता रहीं ।

"एक बात बताओ सारा ।"

" क्या?"

"ये सोज्जर कैसा आदमी है?"

"वो भी एक नम्बर का हरामजादा है । वह अपने स्वार्थ के लिये किसी भी हद तक जा सकता है? औरतों के मामले में भूखा भेडिया है साला! अगर उसका दिल किसी औरत पर आ जाये तो ' उसे हासिल करने के लिये वह कुछ भी कर सकता है । अगर उसे किसी को गोली भी मारनी पड़े वह बेझिझक उसे गोली भी मार देगा ।"

मेरे चेहरे पर अजीब-सी चमक आकर लुप्त हो गई ।

सारा के इन शब्दों से ही मेरी समस्या का समाधान हो गया था । अब में सोल्जर को आसानी से अपने रास्ते से हटा सकती थी ।

"तुम्हें सर एडलॉफ के समर्थकों और इस मुल्क की जनता से इतनी हमदर्दी क्यों है ?" मैंने सारा से अगला सवाल क्रिया ।

"मैं किसी पर जुल्म होते हुए नहीं देख सकती मेडम ।" सारा ने जवाब दियाके । सेना ने तो जुल्म की हद ही कर दी है । निर्दोष लोगों को गाजर-मुली की तरह काट रहे हैं । जो भी सेना के खिलाफ आबाज उठाता है, उसे गोली मार दी जाती है । मासूमों का खून बहाया जा रहा है । धीरे-धीरे सर एडलॉंफ के समर्थकों के हौंसले पस्त हो जायेंगे, क्योंकि उनके सरगना को गिरफ्तार करके जेल की सलाखों के पीछे पहुंचाया जा चुका है और ऐसा आपकी वजह से हुआ है मेडम । आपने सर एडलॉंफ के समर्थकों की सारी मेहनत, सारी कुर्बानियों पर पानी फेर दिया है । अब उन लोगों की पराजय होगी सेना कीं जीत ।"

"सेना की जीत नहीं होगी सारा ।" न चाहते हुए भी मेरे होठों से निकल गया---" वो दिन ज्यादा दूर नहीं है जब फिर से इस मुल्क की सत्ता सर एडाॅलफ के हाथों में होगी ।" '

"ऐसा नहीं होगा मैडम ।"

"जरूर होगा ।" मैंने कहा…"ओर तब न मार्शंल बचेगा और न 'हीँ सोल्जर ।"

" काश ऐसा हो जाये तो मुझे इस नर्क से छूटकारा मिल जाए !" "वंह सर्द सांस छोडती हुई बोली-"मैं अपने परिवार के पास वापस लौट सकूंगी ।"

"अगर मैं ये कहू हूँके मार्शल ने मुझे अपनी रखैल बनाकर रख लिया था तो गलत नहीं होगा । वक्त गुजरता रहा । मौसम बदलते रहे । जब भी उसे वासना की भूख होती तो वह दरिन्दे की तरह मेरे ऊपर टूट पढ़ता । मैं कली से फूल बन गई थी । कई बार मैंने उसके चंगुल से निकल भागने का प्रयास किया, लेकिन कामयाब नहीं हो सकी थी । उसने मेरी निगरानी के लिये सैनिक तैनात कर दिये थे ।" वह अपनी बात आगे बढाती हुई बोलीं-"धीरे धीरे मार्शल की दिलचस्पी मुझमें कम होती चली गई और फिर उसने मुझे सोल्जर को सौंप दिया । सोल्जर उसका बाप निकला । वह मुझसे अपनी प्यास तो बुझाता ही, साथ में मुझे अपने मिलने वालों को भी सौप दिया करता था । धीरे धीरे मैं उस खेल की आदीं हो गई थी । मैंने विरोध करना बंद कर दिया था । जब सोल्जर का दिल भी मुझसे भर गया तो उसने मुझे अपने एक अन्य सहायक को सौंप । जिसने मुझे यहां की नौकरानी बनाकर रख दिया ।"

"तो ये बात है?"

"हां ।" कहते-कहते सारा का चेहरा भभक-सा उठा-"मेरे सीने में इंतकाम की आग धधक रही है ।.जब तक मैं उन दरिन्ब्दों से बदला नहीं ले लेती तब तक मुझे चेन नहीं मिलेगा मेडम । बस मुझे मुनासिब वक्त का इंतजार ।"

"तो फिर ये समझो किवो मुनासिब आ पहुँचा है सारा ।"

सारा ने आश्चर्य भरी निगाह से मेरी तरफ देखा--"अ. . . आप ये क्या कह रही हैं मेडम?"

' "मैं सच कह रही हू।" मैंने, कहा…"तुम्हें बहुत जल्दी इस नर्क से छुटकारा मिलने वाला है ।"

""म. . 'मुझे यहां से कौन छुटकारा दिलायेगा?"

"तुम आम खान से मतलब रखो । पेड़ गिनने की जरूरत नहीं ।"

सारा का आश्चर्य बाल बराबर भी कम नहीं हुआ था । उसे तो जैसे मेरी बात पर बिश्वास ही नहीं हो रहा था ।

"अगर आप बुरा न माने तो एक बात कहू मैडम?"

" हाँ !"

"अ. . . आप जवान के साथ-साथ खूबसूरत भी हैं ।" सारा हिचकिचाती हुई बोली---" अपने आपको बचाकर रखियेगा। कहीं आपकी हालत भी मेरे जैसी न होकर रह जाये ।"

मैं सारा की बात का मतलब समझ गई थी ।

कहने के साथ ही सारा ने मेरे हाथ से खाली गिलास लिया और उठकर पैग बनाने लगी…"एक बात पूछू मेडम ।"

" हूँ ।" . .

"'जब आप चाहती हैं कि मार्शल और सोल्जर जिंदा न बचें ।' इसके बावजूद आपने क्लाइव को गिरफ्तार क्यों करवाया?"

"मुझे पैग दो ।" मैं उसकी बात सुनी अनसुनी करती हुई बोली ।

सारा ने को पैग थमा दिया ।

"आपने भी सवाल का जवाब नहीं दिया ।"

"कुछ सवाल ऐसे होते हैं, जिनका जवाब वक्त आने पर दिया जाता है ।" मैं बोली---"" मेरे को में तो सब कुछ पूछ लिया, . लेकिन अपने बारे में कुछ नहीं बताया।"

"मैं अपने बारे मे क्या बताऊं?"

"बो सब कुछ जो तुम्हारे साथ घटा है, जिसकी वज़ह से तुम मार्शल और सोल्जर को जिंदा देखना नहीं चाहती । जबकि तुम उनकी विश्वासपात्र' लगती हो । ऐसा क्यों?" मैंने पूछा ।

पलक झपकते ही उसके चेहरे पर सोच के गहरे भाव उभरते चले गये । कदाचित् वो ये फैसला करने की कोशिश कर रही थी कि अपनी बात कहां से शुरू करे? '

मेरी निगाहें सारा के चेहरे पर जमी हुई थीं ।

"मार्शल ने मुझे भी आर्मी में अच्छी सर्विस दी थी । ये आज से तीन साल पहले की बात है उस वक्त मैं और भी ज्यादा हसीन थी । मेरी खूबसूरती देखकर मार्शल मुझ पर फिदा हो गया था ।

चंद दिनों बाद उसने मुझे आर्मी से हटा लिया और ये कहकर मुझे अपने पास रख लिया कि आज से मैं उसकी पी०ए० हूँ । मेरे वेतन में . भी उंसने अच्छा-खासा इजाफा कर दिया था, लेकिन उसके दिल की बात मेरी निगाहों से छिपी नहीं रह गई थी ।"

बह बताती चली गई--"एक दिन मार्शल ने अपने दिल की बात मेरे सामने रख ही दी । तो मुझ अपने बेडरूम में ले जाना चाहता था । लेकिन मैंने उसकी बात मानने से साफ इंकार कर दिया । बह अपनी जिद पर अड़ा रहा और उसने अपनी हवस मिटाके दम लिया । उस दिन के बाद बह रोज मेरे जिस्म से खेलने लगा । मैंने मार्शल का, विरोध किया, मगर उस पर कोई प्रभाव नहीं पडा उल्टा मेरे विरोध. का परिणाम यह हुआ कि उसने मुझे इस किले में नजरबंद-सा कर लिया और सेरी स्थिति एक, कैदी जैसी होकर रह गई ।"

कहते-कहते सारा का गला भर आया।

मैं उसका एक-एक शब्द गोर से सुन रही थी ।।
प्यास बुझाई नौकर से Running....कीमत वसूल Running....3-महाकाली ....1-- जथूराcomplete ....2-पोतेबाबाcomplete
बन्धन
*****************
दिल से दिल बड़ी मुश्किल से मिलते हैं!
तुफानो में साहिल बड़ी मुश्किल से मिलते हैं!
यूँ तो मिल जाता है हर कोई!
मगर आप जैसे दोस्त नसीब वालों को मिलते हैं!
*****************
Jemsbond
Super member
Posts: 6659
Joined: 18 Dec 2014 12:09

Re: हिन्दी नॉवल-काली दुनिया का भगबान - रीमा भारती सीरीज

Post by Jemsbond »

" मुझमें और तुममेँ जमीन आसमान का अन्तर है सारा । मेरी मर्जी के मुझे कोई छू भी नहीं सकता । मैं वो जहरीली नागिन जिसका काटा इंसान पानी नहीं मांगता । वो तो मेरी किस्मत खराब है, जो मुझे आई०एस०सी० छोड़नी पडी और मुझे मार्शल की पनाह में आना पड़ा । वरना मैं मार्शल जैसे शख्स को घास तक नहीँ ' डालती ।"



"आपकी बातें सुनकर तो मेरी खोपडी नाचकर रह गई है मेडम ।" सारा चकराई बोली…"कहीं ऐसा तो नहीँ-हे कि आपने अपने बारे में जो कुछ बताया है । वो सब कुछ झूठ हो और आपका मार्शल तक पहुंचने का मकसद मार्शल और सोल्जर का खात्मा करना हो !"


मैं मनं-ही-मन सारा कै दिमाग की तारीफ किये बगेर-नहीं रह सकी थी । इससे पहले कि मैं कुछ कह पाती, वह पुन: बोल उठी--"अगर मैंने सच कहा है तो आप अकेली इन लोगों का बाल भी बांका नहीं कर सकेंगी । मार्शल और सोल्जर दोनों ही खतरनाक किस्म के इंसान हैं । दोनों ने अपनी सुरक्षा का-तगड़ा बंदोबस्त क्रिया हुआ है ।"



सारा को क्या मालूम था कि जब मैं कहर बनकर उन दरिंन्ब्दों पर टूटूगी तो उनके सारे सुरक्षा-प्रबंध धरे-के-धरे रह जायेंगे ।


मैं तो बड़े बडो को एक दहशतनाक अंजाम तक -पहुचा चुकी हूँ । वे दोनों तो किस खेत की मूली थे ।


"यानि मेरा अंदाजा ठीक निकला मेडम ।"


मैं उसका जवाब गोल कर गई ।


फिलहाल मैं उसे अंधेरे में ही रखना चाहती थी ।

!मैडम !"

"यस ।"



"अगर आप मुझे यहां से निकाल दे तो मैं मरते दम तक आपका अहसान नहीं भूलूगी । मैं अपने पृरिवार वालों के पास जाना चाहती हू


"तुम्हाऱी इच्छा अवश्य पूरी होगी सारा ।"


" मैं किसी काबिल तो नहीं हूं मेडम, अगर मेरी मदद की जरूरत हो तो बेझिझक बोल देना । आपके लिये मैं अपनी जान पर खेल जाऊंगी ।" वह दृढ़ता भरे स्वर में बोली ।



मैंने सारा के चेहरे का गोर से अध्ययन क्रिया । "


सारा के चेहरे के भाव बता रहे थे कि वह सच्चे दिल से मेरी मदद करने की ख्वाहिशमंद है । मुझे ऐसे शख्स की ज़रूरत भी थी ।

वक्त पड़ने पर सारा मेरी काफी यहीं मददगार साबित हो सकती थी ।


अचानक ।
बाहर राहदारी में बूटों की आवाजे गूंज उठी ।

पलक झपकते ही सारा वेड से नीचे उतर गई । अगले क्षण उसकी निगाहें दरवाजे की तरफ घूम गई । साथ ही उसके होठों से नफरत फूट निकली---"दोनों हरामजादों में से ही कोई एक
होगा ।"


मेरी निरराहें दरवाजे पर स्थिर हो चुकी थीं ।



आवाज कमरे के करीब आती जा रही थी । फिर कठिनाई से एक पल ही गुजरा था कि सोल्जर ने भीतर कदम रखा ।

सोल्जर ने मेरी तरफ देखा ।


मैँ धीरे से मुस्कुरा दी ।



वह भी मुस्कुराया।


. "तुम यहां क्या कर रही हो?" वेड के करीब पहुंचकर सोल्जर सारा से मुखातिब होकर गुर्रा उठा ।


इससे पहले कि सारा कोई जवाब देती, मैं बोल उठी-"मुझे व्हिस्की की सख्त जरूरत थी । इसीलिये मैंने इसे बुलाया था ।"


"ठीक है । तुम जाओं ।" सोल्जर ने कहा---" जब तक बुलाया न जाये, तब तक इस तरफ का रुख करने की भी जरूरत नही है ।"


"ठीक है ।" सारा सिर हिलाकर रह गई ।


"अब खड्री खडी मेरा मुंह क्यों देख रही हो? यहां से निकलो ।"

सारा पलटकर तेज तेज कदमों से दरवाजे की तरफ बढ गई।


"ये कब आई थी?" सोल्जर ने पूछा ।



"अभी-अभी आई थी ।"


"कुछ कह रही थी ।"


. . "नहीं तो ।"


. " 'उसका नाम सारा है ।" सोल्जर बोना--" "नौकरानी है जब भी कोई मेहमान आता है । उसकी खातिरदारी और देखभाल यहीं करती है । तुम उसे मुह मत लगाना और न हीँ ज्यादा बातें करना । वस अपने काम-से मतलब रखना ।"


" मैं सोज्जर का तात्पर्य समझ गई थी । वो नहीं चाहता था कि मै सारा से ज्यादा मेंल जोल बढाऊं । वह मुझे वो सब कुछ बता सकती है, जो कुछ उसके साथ गुजरा था ।

परन्तु वेचारा सोज्जर क्या जानता था किं वह न सिर्फ सब कुछ बता चुकी है, बल्कि उसकी मौत का इंतजाम भी कर गई है ।
मेरी इच्छा तो हुई कि फौरन वेड से नीचे उतरकर कराटे कै एक ही वार में कमीने की गर्दन छोड़ दूं किन्तु मैं बडी मुश्किल से अपनी इस इच्छा को क्रियान्वित करने से रोक पाई थी ।


"बैठो सोल्जर ।" मैंने कहा ।


"मेरे पास बैठने के लिये वक्त नहीं है । मैं एक जरूरी काम से जा रहा हूँ ।" उसने कहा---"तुम्हारे लिये मार्शल साहब का एक मेसेज है ।"


"क्या मेसेज है?"



"वे कुछ देर बादं तुम्हारे पास पहुच रहे हैं?"


" खास बात है क्या?"


जवाब में सोज्जर के होठों पर अर्थ पूर्ण मुस्कान नाच उठी ।


मै बच्ची तो नहीं थी । मैं उसकी मुसकान का मतलब अच्छी तरह से समझ गई थी । आज तक न जाने कितने लोगों से मेरा वास्ता पड चुका है । फिलहाल मेरी दिलचस्पी मार्शल से ज्यादा सोल्जर में थी। . .

सोल्जर ।


मेरे मिशन में एक बहुत बडी रूकावट था वह ।

मुझे उस रुकावट को अपने रास्ते से हटाना था ।

"में चलता हूं रीमा ।"


" ओ के ।"


सोल्जर चला गया ।

मैं बेड से नीचे उतरकर अपने लिये नया जाम तैयार करने लगी । अब मुझे मार्शल का इंतजार था । . .


======
======


इंतजार की घडियां लंबी होती जा रहीं थीं ।


मार्शल न जाने कहां अटक गया था ।


अब तक मैं पांच लार्ज पैग हलक से नीचे उतार चुकी थी ।


और अब ।


सिगरेट-पर-सिगरेट फूर्के जा रही थी । बेड के करीब मेज पऱ रखी ऐश-ट्रे ठसाठस भर चुकी थी ।

तकरीबन चालीस मिनट बाद मार्शल का चेहरा नजर आया ।


"हेलो यंग लेडी ।" वह बेड की तरफ बढता हुआ बोला ।


"हेलो ।" मैं चहकी ।


मेरी निगाहें मार्शल के चेहरे पर थीं । उसके चेहरे पर शराब की तमतमाहट साफ नजर आ रही थी । आखो मे सुर्खी तैर रही थी ।।
प्यास बुझाई नौकर से Running....कीमत वसूल Running....3-महाकाली ....1-- जथूराcomplete ....2-पोतेबाबाcomplete
बन्धन
*****************
दिल से दिल बड़ी मुश्किल से मिलते हैं!
तुफानो में साहिल बड़ी मुश्किल से मिलते हैं!
यूँ तो मिल जाता है हर कोई!
मगर आप जैसे दोस्त नसीब वालों को मिलते हैं!
*****************
Jemsbond
Super member
Posts: 6659
Joined: 18 Dec 2014 12:09

Re: हिन्दी नॉवल-काली दुनिया का भगबान - रीमा भारती सीरीज

Post by Jemsbond »

उसकी चाल में हल्की-सी लडखड़ाहट थी । जाहिर था कि इस समय मार्शल लिमिट से ज्यादा पीये था ।

मैंने एक खास बात और नोट कि वह अकेला नहीं आया था । उसके साथ तीन कमाण्डो भी थे, जो दरवाजे के बाहर ही रूक गये थे और दीवार से किसी छिपकली की तरह चिपके खड़े थे ।

यानि बहुत ही चालाक और चौकस रहने वाला शख्स. था मार्शला . .।

"म. . .मुझे आने में थोड्री देर हो गई रीमा ।" मार्शल का स्वर लड़खड़ाया। "

"कोई बात नहीं मार्शल साहब । मैँ आपका और भी इंतजार कर सकती थी ।" मैंने कहा ।

वह मुस्कुरा दिया । मार्शल बेड के करीब पहुच चुका था और उसकी निगाहें मेरे चेहरे पर टिकी हुई थीं ।

"क्या देख रहे हैं आप ?' मैंने पूछा ।

"तुम पहले से कहीं ज्यादा खूबसूरत लग रही हो बेबी ।"

" आपकी नजरों का धोखा है । मैं तो पहले जितनी ही खूबसूरत हूं।" मेरे होठों पर दिलकश मुस्कान नाच उठी ।

वह कुछ बोला नहीं ।

बस खामोश खडा मेरा चेहरा निहारता रहा ।

" आप खड़े क्यों हैं?" मैंने सिगरेट का आखरी कश लेकर उसे ऐश- ट्रे में झोंकते हुए कहा-"बैठिये न?"

मार्शल मेरी बगल में मुझसे सटकर बैठ गया ।

अगले क्षण मैं चौंकी । अपने नितम्ब पर कुछ सरसराता-सा महसूस हुआ था ।

दूसरे क्षण मेरा हाथ पीछे गया तो मार्शल की उंगलियां मेरी उँगलियों से उलझ गई ।

"य. . . ये क्या शरारत है मार्शल साहब ?" मैं शिकायती लहजे में बोली ।

मार्शल ने तुंरत अपना हाथ पीछे खींच लिया ।

उसके इरादे साफ़ हो चुके थे । वह इस समय मौजमस्ती करने का इरादा लेकर मेरे पास आया था । किन्तु मैं फिर भी अनजान वनी रही ।

"तुम्हें यहां कोई तकलीफ तो नहीं है रीमा ।" वह मेरी बात सुनी अनुसनी करता हुआ बोला ।

" आपके होते हुए भला मुझे कोई तकलीफ कैसे हो सकती है !" मैने उंत्तर दिया, फिर एक क्षण ठहरकर बोली-
" आपने मेरे बारे में क्या सोचा?"

"म...मतलब?"

"मतलब ये कि मेरे काम के बारे में क्या सोचा? अगर मैं इसी तरह खाली बैठी रही तो बोर हो जाऊंगी । मैं कुछ करते रहना चाहतीं हूं। मुझे करने के लिये कोई काम दीजिये ।"

" तुम इतनी परेशान क्यों हो रही हो ? जब तुम्हारे लायक कोई काम आएगा तो मैं तुम्हें बता दूंगा । फिलहाल तो तुम आराम करो । वैसे मैं तो ये चाहता किं तुम काम-जाम छोडकर मेरी होकर रह जाओं । क्योंकि तुम मुझे पसंद हो ।"

सारा ने गलत नहीं कहा था । यह मेरे साथ यही सब करने के चक्कर में था, जो उसने सारा के साथ क्रिया था, लेकिन वो क्या जानता था कि इस बार उसका पाला रीमा भारती से पडा है, जो उस जैसे जाने कितनों को अपनी 'पैंटी' में रखती है । मैंने अपनी नशीली आंखें उसकी आँखों में डाल दीं-"मैं बंधनों में जिदगी गुजारने की आदि नहीं हूँ मार्शल साहब ! मैं एक आजाद पंछी की तरह जीवन व्यतीत करती रही हूं। न मेरे उपर _ किसी का दबाव रहा है, और न ही कोई अंकुश । ये मेरी अपनी जिदगी है और मैं आगे भी इसे अपने ढंग से बसर करना चाहती हू । "

'गुड गर्ल ।" वह बोला---" मैँ तुम्हारी आजादी पर किसी तरह क्री पाबन्दी लगाने का इरादा नहीं रखता। तुम अपने ढंग से जी सकती हो । मगर कहना पड़ेगा रीमा डार्लिंग कि तुम बहुत खूबसूरत हो । तुम्हें देखकर मेरा दिमाग खराब हो रहा है ।"

फिर मार्शले ने मेरी खूबसूरती के कसीदे काढने शुरु कर दिये थे । इस घडी मेरे होठों पर एक दिलकश मुस्कान नृत्य कर रही थी । मार्शल को बढावा देने वाली मुस्कान ।

अचानक । मार्शल ने अपना चेहरा आगे की तरफ सुझाया और मेरे होठों . पर चुम्बन जड़ दिया ।

मुझे ऐसा लगा जैसे मेरे होठों पर कोई अंगारा गिरा हो ।

"य. . .ये क्या हरकत है ?" मैंने हड़बड़ाने की शानदार एस्टिंग की…"दरवाजा खुला हुआ है । कोई भी भीतर आ सकता हैं।"

"मेरे होते हुए किसकी मजाल है, जो अन्दर कदम भी रख दे? फिर भी अगर तुम्हें खुले दरवाजे के कारण शर्म आ रही है तो मैं बंद करवा देता हूं।" ककहर बह दरवाजे की तरफ़ मुंह करके आदेश पूर्ण लहजे में बोला-"दरवाजा बंद कर दो ।" मार्शल के आदेश का तुरंत पालन हुआ है "

दरवाजा बंद होने वाला मार्शल का एक कमाण्डो था, जो दरवाजे के बगल में दीवार से चिपका ख़ड़ा था ।

"अब तो हमें कोई नहीं देखेगा ।" बोला वह ।

मैंने खामोशी साध ली ।

"माई स्वीट हार्ट ।" बह मुस्कराया ---" आई लव यू।"

अब मेरे रूप का जादू मार्शल के सिर चढकर बोलने लगा था ।

मैंने अपने होठ उसकी गंर्दन से रगड़ दिये ।

मार्शल ने मेरी शर्ट के खुले गले में हाथ डालकर मेरे वक्ष कौ छुआ । मगर दूसरे ही क्षण अपना हाथ यूं झटके से पीछे खींच लिया । मानो उसे बिजली का शॉक लगा हो ।

"क्या हुआ मार्शल साहब?" मैंने पूछा ।

वह सकपकाकर रह गया । फिर वह बूट उतारकर वेड पर बैठ गया । मैं पहले ही पालथी मारकर वेड पर बैठं चुकी थी । मार्शल ने मेरी बांह थामकर अपने कंधो पर रख लीं । मैंने अपनी बांहें उसके गले का हार बना दीं और अपने अधर उसके होठो की तरफ बढा दिए ।

अगले क्षणा . . ।

मेरे अधर उसके होठों से टकरा गये । साथ ही मेरी बांहें उसकी गर्दन के इदे-गिर्द फदे की तरह कस गई ।

मार्शल ने मुस्कुराकर अपने दांतों से मेरी कान की लो को धीरे से द्रबा दिया ।

मैं रोमांचित हो उठी ।

हम दोनों एक दूसरे के इतने करीब थे कि एक दूसरे के दिल को धड़कने साफ सुन रहे थे । हमारी गर्मा-गर्म सांसें एक दूसरे के चेहरे से टकरा रहीँ थीं ।

उत्तेजना बढ़ रहीं थी ।

मैंने मार्शल की आँखों में झांका ।

बहां वासना के-सुर्ख डोरे तैर रहे थे । सांसें भारी थीं । चेहरा कनपटियों तक सुर्ख नजर आ रहा था ।

बह मुझमें समाने के लिये बेताब था ।

. ". . .अब तुम अपने कपड़े उतार दो रीमा ।" मार्शंल के सब्र का प्याला छलक गया ।

" क.....क्यो ?" मैने चौकने का अभिनय किया ।

"मै तुम्हारी खूबसुरती देखना चाहता हूं ।"

भला मुझे कपड़े उतारने में क्या शर्म थी? आज तक मैं न जाने कितने मर्दो के सामने वस्त्र उतार चुकी हूँ । दूसरे क्षण मैंने अपने कपडे उतार फेकें । ’

अब में निर्वस्त्र थी ।

मेरा शोला बदन अपनी स्वर्णिम आभा कै साथ उसके सामने . . था ।

वह पट्ठा तो मानो सांस लेना तक भूल गया था । मार्शल अवाक्-सा मेरे उफनते यौवन को देखता रह गया । जब मेरा कयामत बरपा देने वाला जिस्म अपनी जन्मजात अवस्था में किसी बालिग मर्द के सामने हो तो वह अपने जिस्म पंर कपडों का वजन कैसे सहन कर सकता है?

यही मार्शल के साथ हुआ ।

शीघ्र ही वह मेरी तरह निर्वस्त्र था।

… फिर उसने मुझे बेड पर पीछे की तरफ़ धकेल दिया की मुझ पर छाता चला गया ।

प्यार का खेल शुरु हुआ ।

थाप-पर-थाप पड़ने लगी ।

. , मार्शल तो दरिन्दा साबित हो रहा था । उसे संभाल पाना मेरे लिये कठिन काम था ।

मेरे होठों से पीड़ा भरी चीखे निकल रही र्थी । किन्तु उस पर मेरी चीखों का जरा भी प्रभाव नहीं पड़ा था । वह तो मानो बहरा हो गया था । मैंने मार्शल के नीचे से निकलने का प्रयास क्रिया, लेकिन उसने मुझे हिलने तक नहीं दिया था ।

एकाएक मार्शल की गति में तीव्रता भरती चली गई । ऐसा लग रहा था जैसे कमरे में तूफान आ गया हो । हम दोनों पसीने से लथपथ हो चुके थे । . … और फिर ।

मार्शल के जिम क्रो जोरों का झटका लगा, साथ ही वह मेरे ऊपर गिरकर कुत्ते की तरह हांफने लगा । वह काफी देर तक मुझसे लिपटा पड़ा रहा ।

फिर यह मेरी बगल में गिरकर लंबी-लंबी सांसें लेने लगा ।

वह तो लंबी रेस का घोडा निकला था । कुछ पल ही गुजरे थे क्रि मार्शल का हाथ पुनः मेरे जिस्म पर फिसलने लगा । वह दूसरी पारी खेलने के मूड लग रहा था ।

मैं उसे इंकार भी तो नहीं कर सकती थी ।

"मेंने आज़ तक ऩ जाने कितनी औरतों का मानमर्दन क्रिया है ।" वह मेरे होठों पर ऊंगली फिराता हुए बोला-"लेकिन जो आनन्द मुझे तुमसे मिला है किसी और से नहीं मिला । वाकई में तुम बहुत जानदार चीज हो रीमा ।"

मैंने मन-ही-मन उसे भद्दी-सी गाली दी और उठकर बैठ गई ।

"क्या हुआ" मार्शल ने पूछा ।

"कुछ नहीं ।"

"फिर तुम् उठकर क्यों बैठ गई?"

"उठकर बैठना मना है क्या ?"

"नहीं तो !"

" फिर ।"

" मै दूसरी पारी खेलने के मूड में हू । लेट जाओ ।"

वह मेरी कलाई थामकर बोला । तभी दरवाजे पर दस्तक पडी ।

"कौन हरामजादा है?" मार्शल दरवाजे की तरफ मुंह करके चीख उठा ।

"म.. .मैं टामसऩ हू बॉस ।"

"बया बात है?" वह बोला---"दरवाजे पर दस्तक क्यों दी?"

" आइं०एम० सॉरी । ट्रासमीटर पर आपके लिये जरूरी मैसेज है, । इसलिये मुझे आपको डिस्टर्ब करना पडा ।"

पलक झपकते ही मार्शल का सारा जोश ठंडा पड गया । वह स्प्रिंग लगे खिलौने की तरह उछलकर बेड पर बैठ गया ।

"ट्रांसमीटर पर भी अभी मैसेज आना था ।" वह बड़बडाया-"वो जो कोई भी है । मुझसे कुछ देर बाद सम्पर्क स्थापित नहीं का सकता था ।"

कहने के साथ ही वह कपड़े उठाकर पहनने लगा ।

"मेरे लिये क्यो आदेश है सर?" बाहर से टायसन का स्वर उभरा ।

"तुम चलो । मैँ जाता हु ।"

मार्शल कपड़े पहनकर बेड से नीचे उतरा ।

"हरामजादे ने सारा मूड बिगाड़ का रख दिया ।" वह मेरी तरफ देखता हुआ बोला--" मैं कल रात दस बजे आऊंगा रीमा । अब मैं चलता हूं ।"

'

"जब आपका मन करे चले आना मार्शल साहब ।" न चाहते हुए भी मैं मुस्कराई-"मेरे दिलं के दरवाजे आपके लिये चौबीस घंटे खुले हैँ । मुझे आपका इंतजार रहेगा ।"

मेरे गाल पर हल्का-सा चुम्बन अंकित किया । फिर पलटकर दरवाजे की तरफ बढता चला गया ।

मैँने छुटकारे की लम्बी सांस ली ।
कई दिन तेजी से गुजर गये।

मार्शल हर रात दस बजे के आसपास मेरे कमरे में आता और मुझे रौंद कर चला जाता । मेरा मिशन बीच में ही रूक-सा गया था । इस बीच सोल्जर से मेरी मुलाकात नहीं हुई थी । न जाने वो कहां गायब हो गया था?

शाम ढल रही थी ।

इस वक्त मैं इमारत के लंबे…चौड़े आँगन में टहल रहीं थी ।

टहलने का तो सिर्फ ब्रहाना था । दरअसल में वहा की सुरक्षा व्यवस्था जांच कर रही थी, ताकि ज़रुरत पडते पर यहाँ से सहीं-सलामत निकला जा मुझे ।

सहसा!

सामने से सोल्जर आता दिखाई दिया ।

सोल्जर को देखकर मैं अदा से मुस्कुराई ।

"हैलो यंग लेडी ।" वह मेरे करीब पहुंचकर बोला ।

"हैली हैंडसम ।" मेरे होठों की मुस्कान गहरी हो उठी-" तुम कई रोज से दिखाई नहीं दिये । कहां चले गये थे?"

मैंने अपनी बात इस अंदाज में कहीँ थी जैसे मैं उससे मिलने के लिये मरी जा रही हूं । उसे लेकर मेरे दिमाग में जो स्कीम थी, उसके हिसाब से मुझे सोल्जर को पहले अपने जाल में र्फसाना था ।

" मैं एक जरूरी काम से कहीं गया हुआ था । अभी-अभी लौटा हूँ । लेकिन तुम यहां क्या कर रही हो?" वह बोला ।

"मैं अकेली कमरे में पड्री पड्री बोर हो रही थी । इसलिये इस तरफ़ निकल आई ।"

"मार्शल साहब तो आते होगे ।"

"उनका आना न आने के बराबर ही है । वे कुछ देर के लिये आते हैं और अपनी प्यास बुझा कर चले जाते हैं । दिन में तो मैं बहुत ज्यादा बोरियत महसूस का रही हूं । अकेलापन वहुत खलता है । रात में अकेले नीद नहीं आती ।" मैंने सर्द सांस छोड़ी ।

"शायद तुम्हें किसी साथी की जरुरत है ।" वह अर्थपूर्ण अंदाज में मुस्कुराया ।

"यस ।" में भी मुस्कुराई…"बशर्तें वह मेरी पसद का हो । उसके साथ मेरां वक्त आराम से कट सके ।"

"तुम्हें सिर्फ वक्त काटने के लिये साथी चाहिये । मैं तो कुछ और समझा था ।"

" कुछ और क्या समझे थे ?"

" मेरा ख्याल था कि तुम्हें वेड पार्टनर... ।"

"ओह !"
मैं अपनी तरफ़ से पहल करने के हक में नहीं थी ।

सोल्जर को मुझपर शक हो सकता था।

"रीमा ।" वह बोला ।

"यस ! "

"आईं लव यू।"

प्रत्युत्तर में मैं अदा से मुस्करा उठी ।

"अगर तुम बुरा न मानो आज़ रात मैं तुम्हारे कमरे में आ सकता हूँ ।"

"आ जाओ । मैं मना कब क्रिया" है? बहुत मजा जायेगा जब मिल बैठेंगे दीबांने दो ।"
प्यास बुझाई नौकर से Running....कीमत वसूल Running....3-महाकाली ....1-- जथूराcomplete ....2-पोतेबाबाcomplete
बन्धन
*****************
दिल से दिल बड़ी मुश्किल से मिलते हैं!
तुफानो में साहिल बड़ी मुश्किल से मिलते हैं!
यूँ तो मिल जाता है हर कोई!
मगर आप जैसे दोस्त नसीब वालों को मिलते हैं!
*****************
Jemsbond
Super member
Posts: 6659
Joined: 18 Dec 2014 12:09

Re: हिन्दी नॉवल-काली दुनिया का भगबान - रीमा भारती सीरीज

Post by Jemsbond »

उसके चेहरे पर हजार बांट का वल्ब-सा जल उठा, मानो उसे मनमांगी मुराद मिल गई हो । साथ ही उसका चेहरा जिस तेजी से चमका था । उसी तेजी से बुझ भी गया । वह बोला… "'अ.. .अगर मार्शल साहब कमरे में आ गये तो… !"

"डरपोक । प्यार भी करना चांहते हो और डरते भी हो । प्यार करने बाले डरते नहीं हैं । बैसे घबराने की बात नहीं है । आज रात मार्शल साहब मेरे पास नहीं आयेंगे ।"

" तुम्हें कैसे पता ? "उसका स्वर उत्सुकता से भर उठा ।

" मुझे कह गये थे कि आज रात उन्हें कोई जरूरी काम है !"

" फिर तो मैं जरूर आऊंगां । अब ये बताओ कि मैं आज रात कितने बजे हाजिर हो जाऊ?"

"नौ बजे के आसपास जा जाओ ।"

"ठीकं है, तो मैं रात नौ बने हाजिर होता हू।"

" तुम्हारा इंतजार करूंगी ।" एक तरफ बढती हुई बोली ।

किन्तु ।

मेरा बोलने का अंदाज कुछ ऐसा था कि निसंदेह उसके दिल पर हजारों बिजलियाँ एक साथ टूट पड़ी होगी । कुछ पलों बाद मैँ अपने कमरे में बैड पर फैली थी ।

====

====

दरवाजा नॉक हुआ ।

मैंने वाॅल क्लाक पर नजर डाली, उस वत्त ठीक नौ बज रहे थे ।

इस घडी मैं एक हाथ की दो उगलियों के बीच सिगरेट दबाये ओर दूसरे हाथ में व्हिस्की का गिलास थामे सोल्जर की ही प्रतीक्षा कर रहीँ थी । मैंने जान-बूझकर एक झीना-भा गाउन पहन रखा था जिसके नीचे मैं अन्य कोई कपडा नहीं पहने थी ।



दरवाजा पुनः नॉक हुआ ।


"आ जाओ । दरवाजा खुला है ।"' मैंने कहा ।


अगले क्षण दरवाजा खुला और सोल्जर ने भीतर कदम रखा ।


वह वक्त का पाबंद था ।


"आओ डियर ।" मैंने प्यारी सी मुस्कान के साथ उसका स्वागत किया । उसने दरवाजे के दोनों पल्ले आपस में मिलाये और पलटकर वेड की तरफ़ बढता हुआ बोला-"देख लो, मैंने तुम्हे जरा भी इंतजार नहीं करने दिया । मैं ठीक वक्त पर हाजिर हुआ हूँ ।"



"आदमी को वक्त का पाबंद होना ही चाहिये ।" मैंने सिगरेट का कश लिया ।



सोल्जर मेरे करीब वेड पर बैठ गया । फिर उसकी निगाहें मेरे जिस्म पर सरसराती चली गई ।"



" तुम्हारे लिये पेग बनाऊं?" मैंने पूछा ।


" नेकी और पूछ-पूछ ।" उसने उत्तर दिया-------"पीने के बाद प्यार का मजा दौगुना हो जाता है ।"


मैँने अपना गिलास मेज पर रखा । सिगरेट का आखिरी कश लेकर उसे ऐश-ट्रे में मसला फिर बेड से नीचे उतरकर सोल्जर के लिये पैग बनाने लगी ।


पैग बनाकर मैंने बेड के नीचे से एक छोटी-सी पुढिया निकालकर खोली और उसमें मौजूद सफेद रंग का पाउडर गिलास में डाल दिया । वह शीघ्र ही व्हिस्की धुल गया । दरअसल वो पाऊडर इंसान की वासना को चरम सीसा पर पहुंचाने के लिये था । उसके पेट में जाने के बाद इंसान वासना में पागल हो जाता है । उसे और कुछ सुझाई नहीं देता । ऐसे छोटे-मोटे 'फार्मूले' तो आपके सपनों ही रानी यानि मैं हमेशा अपनी 'अंटी' में रखती थी ।


व्हिस्की में पाउडर मिलाना भी मेरी स्कीम का हिस्सा था । मेरी पीठ सोल्जर की तरफ़ थी । इसलिये वो मेरी हरकत नहीं भांप पाया था । मैं गिलास उठाकर सोल्जर की तरफ घूमी और उसे गिलास थमाकर अपना पैग उठा लिया, फिर उसकी बगल में बैठ गई ।



हमने गिलास आपस में टकराये और होठों से लगा लिये । सोल्जर ने एक ही सांस में गिलास खाली कर दिया । मैंने भी गिलास खाली कर दिया ।



और फिर ।

नये पैग बने ।


हलक से नीचे उतरे ।


पीने का सिलसिला उस वक्त खत्म हुआ जब हमारे पेट में चार-चार लार्ज पैग उतर गये थे ।



इस ब्रीच मेरी निगाहें बराबर सोल्जर के चेहरे पर रही थी । पाउडर ने अपना काम कर दिया था । उसका चेहरा अंगारे की तरह सुर्ख पड़ चुका था ।



आंखों में वासनामय पागलपन के भाव साफ़ नजर आने लगे थे ।



"त.. .तुम तो शराब से भी ज्यादा नशीली हो जानेमन ।" वह मेरी बांह सहलता हुआ बोला ।


मेरे होठों पर दिलकश स्वान नाच उठी ।



पलक झपकते ही सोल्जर ने मुझे बांहों मेँ भर लिया और पाग़लो की तरह मेरे होठ, गर्दन, माथा गर्दन चूमने लगा ।



" अपने कपड़े उतार दो रीमा ।" उसका स्वर थरथराया ।



" क्यों ?"



"मै तुम्हारा संगमरमरी बदन देखना चाहता हूं उस रूप में जिसमें कुदरत ने तुम्हें बनाया है ।"



जिस्म पर कपड़े ही कितने थे ? जो मुझे उतारने में देर लगती । सिर्फ एक गाउन ही तो था । मैंने बेड से नीचे उतरकर गाउन की डोरी खींचते हुए अपने कंधों को एक विशेष आज में झटका दिया ।



दूसरे क्षण.....!



गाउन मेरे जिस्म पर फिसलता हुआ पैरों में ढेर नज़र आ रहा था ।



अब मैं निर्वस्त्र थी ।


मेरा जिस्म दूधिया प्रकाश में चमक उठा ।


सोल्जर की निगाहे जब मेरे फूल की तरह खिले यौवन पुष्यों और मखमली जिस्म पर पडी तो उसके छक्के छूट गये, वह भाड़-सा मुंह फाडे देखता रह गया ।


मेरे निर्वस्त्र जिस्म ने उसकी वासना पर आगग में घी जैसा काम क्रिया था ।



आंखों में वासना-ही-वासना तैरती चली गई थी ।



" उफ! तुम्हारा जिस्म है या धधकता ज्वालामुखी?" उसके होठों से बरबस ही निकल गया ।


जवाब में मैं दातों से अपना निचला होंठ दबाकर मुस्करा उठी ।


सोल्जर की निगाहें लगता है मेरे जिस्म पर फिसल रही थीं ।



उस पट्ठे की निगाहें एक जगह पर टिक ही नहीं पा रंहीँ थीं ।


" क्या हुआ सोज्जर?" मैंने उसे कुरेदा ।।

उसका सम्मोहन टूटा ।

"ऐसा सांचे में ढला जिस्म तो मैंने आज तक नहीँ देखा ।"


वह मेरे वक्षों पर निगाहें टिकाता हुआ बोला-"तुम्हारे अंग-अंग से यौवन फूट रहा है । "



मैने अपने वक्षों के नीचे हथेलियाँ रखकर उन्हें तनिक ऊपर उठा लिया ।


मेरे वक्ष और मुखर हो उठे ।


सोल्जर पर तो मानो कड़कड़ाकर बिजली गिरी ।


"म. .मेरे पास आओ ।" उसका स्वर थरथराया ---" अब और मत तरसाओ ।"


"मुझे अपने पास क्यों बुला रहे हो?" मैं मजे लेने वाले स्वर में बोली ।



"में प्यासा हू। अपनी प्यास बुझाना चाहता हू।"


"ये तो ठीक बात नहीं है ।"


"क. .क्यों ठीक नहीं है?"


"तुम तो मेरा जिस्म देखना चाहते थे, और अब प्यास बुझाने की बात कर रहे हो?"'


"मैं क्या करूं? तुम्हारा हाहाकारी जिस्म देखकर मैं पागल हो उठा हूँ। मुझे अपने आप पर काबू नहीं रह गया है ।"
प्यास बुझाई नौकर से Running....कीमत वसूल Running....3-महाकाली ....1-- जथूराcomplete ....2-पोतेबाबाcomplete
बन्धन
*****************
दिल से दिल बड़ी मुश्किल से मिलते हैं!
तुफानो में साहिल बड़ी मुश्किल से मिलते हैं!
यूँ तो मिल जाता है हर कोई!
मगर आप जैसे दोस्त नसीब वालों को मिलते हैं!
*****************
Post Reply