एक गाओं की सुनसान जगह पर...दोपहर के वक़्त.......
स इस गाओं मे किसी के बारे मे पूछताच्छ करते हुए एक जगह रेस्ट करने लगा....कि तभी किसी ने उसके सिर पर पीछे से बार किया और स बेहोश हो गया .....
फिर जब स को होश आया तो उसने अपने आपको एक चेयरे पर बँधा हुआ पाया....और आधी-खुली आँखो से सामने बैठे सक्श को देख कर उसको अपनी आँखो पर भरोशा नही हुआ......
स के सामने इस वक़्त आज़ाद मल्होत्रा बैठा हुआ था......
स (चौंक कर)- ये..ये तुम..तुम जिंदा हो....नही...तुम जिंदा नही हो सकते....ये नही हो सकता...
तभी रूम मे आवाज़ आई...
"" ये सच है गद्दार....ये जिंदा भी है और तन्दुरुस्त भी......""
स( चीख कर)- ये नही हो सकता....बिल्कुल नही हो सकता...
"" क्यो नही हो सकता...हाँ...""
स(सामने घूर कर)- क्योकि मैने ही इसे मारा था.....अपने हाथो से मारा था....हा....हाहाहा....मैने मारा था इसे...और मैं जिसे मारता हूँ उसे जिंदगी नसीब नही होती...कभी नही...कभी नही....
तभी रूम मे रोशनी फैल गई और सामने का नज़ारा देख कर स के होश उड़ गये.......
रूम मे रोशनी फैलते ही स के सामने बैठे सक्श ने अपने चेहरे से मास्क निकाल लिया.....
जो सक्श एक पल पहले आज़ाद नज़र आ रहा था...वो असल मे बहादुर था....आज़ाद का पुराना वफ़ादार....
स(गुस्से से चिल्ला कर) - तू...तेरी इतनी हिम्मत कि तू मुझसे चालबाजी करे...हाँ....मुझसे धोखा...
बहादुर(गुस्से से)- चुप कर धोखेबाज.....साला...खुद धोखा दे रहा था...और अब मुझे ही सुना रहा है...हाँ...
स(घूरता हुआ)- हुहम...आख़िर तूने ये सब क्यो किया...क्या मिला तुझे...
बहादुर- सच....और यही जानने के लिए मैं तड़प रहा था....असल मे मर रहा था....हर दिन, हर पल...बस यही सोच रहा था कि मुझे बस....बस एक बार अपने मालिक का पता चल जाए...और देख...आज मुझे सब सच पता चल गया....मेरे मालिक के बारे मे भी और...तेरे बारे मे भी....
स(ठहाका मार कर)- हाहहाहा....सच...हाँ...सच पता कर के भी तू क्या करेगा....तेरा मालिक तो गया....और अब उसका खानदान भी जायगा....और तू...तू कुछ नही कर पायगा...कुछ भी नही...
बहादुर- अच्छा....सच मे...तुझे क्या लगता है कि मैं चुप बैठुगा...हाँ...
स(मुस्कुरा कर)- ह्म्म...नही...तू तो चुप नही रहेगा....पर तू करेगा क्या....अंकित से बोलेगा...हाँ...तो जा बोल दे...पर याद रखना....वो ये कभी नही मानेगा....कभी नही....
बहादुर- अच्छा...और वो क्यो....
स- क्योकि उसकी सोच मेरे कब्ज़े मे है...वो वही करेगा..जो मैं उससे करवाउन्गा.....बिल्कुल वही....
बहादुर- अगर ऐसा होता तो वो मुझे आज़ाद बना कर तेरे सामने नही भेजता....समझा...
स- ओह...तो तुम सोचते हो कि मैं तुम्हे अंकित से मिलने दूँगा....कभी नही...और रही बात अंकित के प्लान की...तो उसको यकीन दिलाने के लिए मेरे पास भी कई प्लान है....
बहादुर- चलो देखते है कि तू क्या करता है....पहले खुद तो बच के दिखा....
स- मुझे बचाने वाले यहाँ पहुँचते ही होगे....अब तू बचने की तैयारी कर...अगर बच सके तो बच के दिखा....
तभी रूम का गेट खुला और एक-एक करके 4 आदमियों को अंदर फेका गया...जो सभी बेहोश थे....
और तभी रूम मे एक सक्श अंदर आया और ज़ोर से चिल्लाया....
""तू इनके बाल पर ही उछल रहा था....ये ले....ये सब तो ख़त्म हो गये...अब तुझे कौन बचायगा.....हाँ..""
और जैसे ही वो सक्श स के सामने आया तो उसे देख कर स दंग रह गया.....
स की हालत इस समय ऐसी थी...जैसे वो एक ज़िंदा लाश बन गया हो....काटो तो खून नही...शायद यही हाल हो गया था उसका.....
तभी सामने खड़े सक्श ने गुस्से से दाँत पीसते हुए स की कनपटी पर एक मोटी लकड़ी से ज़ोर से हमला किया...जिससे स दुवारा बेहोश हो गया....और सामने खड़ा सक्श गुस्से मे स को थप्पड़ मारते हुए बड़बड़ाने लगा.....
"" मेरे बेटे को मारेगा....मेरे बेटे को....हााअ...""
ये सब देख कर बहादुर ने हाथ जोड़ कर उस साक्ष् को शांत रहने की रिक्वेस्ट की....
बहादुर- आप कृपया शांत हो जाइए...और अंकित बाबा के लिए इसे छोड़ दीजिए....इसे अपने किए की सज़ा मिलेगी...ज़रूर मिलेगी....पर अभी आप इसे छोड़ दीजिए...अंकित साब को अपना काम पूरा करने के लिए इसकी ज़रूरत है....प्ल्ज़....मान जाइए...शांत हो जाइए....
बहादुर की बात सुनकर वो सक्श शांत हुआ और गुस्से से भनभनाता हुआ रूम से निकल गया....
उसके जाते ही बहादुर ने अपने आदमियों को बुलाकर स का ध्यान रखने का बोला और वो भी बाहर निकल गया......
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चूतो का समुंदर
- Ankit
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- shubhs
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Re: चूतो का समुंदर
अब ये कौन है
सबका साथ सबका विकास।
हिंदी हमारी राष्ट्रभाषा है, और इसका सम्मान हमारा कर्तव्य है।
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