बाप के रंग में रंग गई बेटी complete

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Kamini
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Re: बाप के रंग में रंग गई बेटी

Post by Kamini »

shubhs wrote: 05 Sep 2017 18:22 एक नई शुरूआत
Saileshdiaries wrote: 07 Sep 2017 06:16 मस्त अपडेट, अगला अपडेट भी जल्दी दीजियेगा..!!
thanks sooooooooooooooooooooo much
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Kamini
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Re: बाप के रंग में रंग गई बेटी

Post by Kamini »

लगभग 20 मिनट के घमासान के बाद जयसिंह और मधु साथ साथ झाड़ गए, उनके पानी का मिश्रण मधु की चुत से होता हुआ बेडशीट के ऊपर टपक रहा था, दोनों अभी भी बुरी तरह हांफ रहे थे, और जयसिंह का लंड अभी भी मधु की चुत में ही घुस था, पर अब दोनो की वासना सन्तुष्ट हो चुकी थी, इसलिए वो दोनों नंगे ही चुत में लंड घुसे हुए एक दूर की बाहों में मजे से सो गए।
आज साल भर बाद मधु और जयसिंह ने सम्भोग किया था, मधु तो इस असीम आंनद को पाकर गहरी नींद के आगोश में चली गई थी, पर जयसिंह में मन मे अब भी उथल पुथल मची हुई थी,जयसिंह ने सोचा था कि उसके मधु के साथ सम्भोग करने से उसका मन और लोडा दोनों शांत हो जायेगे पर वो कहते है ना सेक्स वो आग है जो एक बार करने से बुझती नही बल्कि भड़क जाती है, और यही जयसिंह के साथ भी हो रहा था ,उसके दिमाग के घोड़े लगातार दौड़े जा रहे थे और हर बार उसे एक ही मंज़िल पर लेकर जाते - " मनिका " ,जयसिंह तुरंत अपने दिमाग को झटकता ताकि मनिका का ख्याल उसके दिमाग से निकल जाए पर हर बार उसकी आँखों के सामने आज शाम का नज़ारा घूम जाता, आखिर किसी तरह अपने मन को शांत करके वो नींद लेने की कोशिश करने लगा


इधर रात में मनिका अपने पापा को अपने करीब लाने कि योजना सोच रही थी, उसे एक बात तो बिल्कुल साफ हो गयी थी कि उसके पापा जानबूझकर उसके सामने आने में और उससे बाते झिझक रहे हैं, ओर इसलिए मनिका ने इरादा बना लिया था कि सबसे पहले उसे अपने पापा की झिझक खत्म करनी होगी, उन्हें यकीन दिलाना होगा कि वो उनसे नाराज़ नहीं है और ये करने के लिए उसे अपने पापा के साथ थोड़ा खुलना होगा, उनसे प्यार से आराम से बात करनी होगी,मनिका रात भर इसी उधेड़बुन में लगी रही और फाइनली अपनी योजना को सफल बनाने के लिए उसने तीन पॉइंट डिसाइड किये
पहला कि अपने पापा से खुलकर बात करना ताकि उनकी झिझक खत्म हो
दूसरा उन्हें मेरे बदन की झलकियाँ दिखाकर उनके होश उड़ाना
तीसरा की उन्हें पूरी तरह काबू में लाकर वो सब हासिल करना जो पहले वो चाहते थे पर अब मैं चाहती हूं,

मनिका जानती थी कि उसे ये सब करने के लिए बड़ी मेहनत करनी होगी और थोड़ा धैर्य रखना होगा वरना बात बिगड़ सकती है, इसी तरह अपनी प्लानिंग करते करते उसे नींद आ गयी थी।

कहते है सेक्स के बाद बड़ी अच्छी नींद आती है और इसीलिए सुबह जयसिंह की आंख खुली तो घड़ी की सुई 8 बजा रही थी, उसने अपने आस पास नज़र दौड़ाई तो मधु वहां से जा चुकी थी, जयसिंह फ्रेश होने के लिए बाथरूम में गया और लगभग 1 घण्टे में आफिस जाने के लिए बिल्कुल रेडी हो गया ,अब सिर्फ नाश्ता करना ही बाकी रह गया था।

वो ब्रेकफास्ट करने के लिए हॉल में गया तो वहां का नज़ारा देख उसके माथे पर शिकन की लकीरें उभर आई...मनिका पहले से ही वहाँ पर बैठी नाश्ता कर रही थी ...मनिका ने आज जानबूझकर स्कर्ट पहन रखी थी जो उसके उसके घुटने से थोड़ी सी ही ऊपर थी ...उसकी पीठ जयसिंह की तरफ थी.....जयसिंह ने सोचा कि मनिका की नज़र बचाकर सीधा ऑफिस के लिए निकल लेता हूँ इसलिए वो दबे पांव दरवाज़े की ओर बढ़ने लगा

"अरे, आप कहाँ जा रहे है, नाश्ता तो कर लीजिए" मधु किचन से निकलती हुई जयसिंह को बाहर जाता देख बोली

"अम्ममम्मम .......मधु......वो वो....म.....ऑफिस में ही कर लूंगा नाश्ता......तुमम्म चिंता मत करो" जयसिंह घबराता हुआ बोला

"नहीं कोई जरूरत नही है आफिस में नाश्ता करने की , आप यही नाश्ता करके जाओ, बाहर की चीज़ें ज्यादा नही खानी चाहिए वरना बीमार पड़ जाओगे, चलिए आइए इधर, मैं अभी आपके लिए प्लेट लगाती हूँ....." मधु ने लगभग आर्डर देते हुए अंदाज़ में कहा

अब जयसिंह के पास भी कोई चारा नहीं था.... इसलिए वो हारकर वापस टेबल की तरफ बढ़ने लगा......एक बार फिर उसका दिल धक धक करने लगा..... उसके हाथ पांव फूलने लगे......वो धीरे धीरे चलता हुआ टेबल की तरफ आया और जाकर अपनी सीट पर बैठ गया......उसकी नज़र अभी भी नीचे की ओर झुकी हुई थी......

दूसरी तरफ मनिका ठीक उसके साइड वाली सीट पर बैठी थी, आज उसने पहले से ही डिसाइड कर रखा था कि सुबह अपने पापा के आफिस जाने से पहले उनका दीदार जरूर करेगी, और इसीलिए वो सुबह 6 बजे ही जग गयी थी ,

जयसिंह को अपने पास बैठा देखकर मनिका के होठों पर कुटिल मुस्कान उभर आई,

"गुडमार्निंग पापा..." मनिका बड़ी सी मुस्कान अपने चेहरे पे बिखेरते हुए बोली, वो अपनी पहली चाल पर आगे बढ़ने लगी थी

"अम्म गुड़....मॉर्निंग....मणि.. बेटी...."
जयसिंह ने बिल्कुल सकपकाते हुए नज़रे झुकाकर ही उत्तर दिया,

पर इधर मनिका को अपने लिए बेटी शब्द सुनकर जाने क्यों बिल्कुल भी अच्छा नही लग रहा था , उसे तो मणि सुनना भी पसंद नही था, मनिका तो चाहती थी कि उसके पापा उसे दोबारा मनिका कहकर बुलाये, पर अभी मधु के रहते ऐसा करना उसे ठीक नही लगा,


"आप ऑफिस जा रहे है क्या पापा" मनिका ने जयसिंह के चेहरे पर नज़र गड़ाते हुए पूछा

"हां मणि.....वो.... ऑफिस में काफी काम है ..." जयसिंह ने थोड़ा झिझकते हुए जवाब दिया

"आपका बिज़नेस कैसा चल रहा है" मनिका ने बात आगे बढ़ते हुए कहा

" मम्मम बिज़नेस तो...अच्छा ..ही चल रहा है " जयसिंह ने भी जवाब दिया

"मम्मी तो बोल रही थी कि अब आपका बिज़नेस बड़ा अच्छा चलने लगा है और अब आपको पहले से ज्यादा प्रॉफिट होता है" मनिका ने कहा
" हाँ... वो तो है, अब बिज़नेस थोड़ा एक्सपैंड हो गया है ना इसलिए...थोड़ा मम्मम ज्यादा ध्यान देना पड़ता है" जयसिंह ने सम्भलकर जवाब देते हुए कहा, उनसे अब भी मनिका से नज़रे नही मिलाई थी

कुछ देर दोनों के बीच थोडी शांती रही जिसे मनिका ने अपने सवाल से तोड़ते हुए जयसिंह से पूछा" पापा.....आप मेरी पढ़ाई के बारे में नही पूछोगे क्या....मम्मी तो जब से मैं आयी हूँ यही पूछती रहती है, पर आपने तो एक बार भी नही पूछा.....आप मुझसे नाराज है क्या" मनिका ने अपनी चाल में हुक्म का इक्का चल दिया था, उसे पता था कि नाराज़गी की बात सुनकर जयसिंह तुरंत उसकी बात का जवाब देगा और हुआ भी ठीक वैसा ही,

जयसिंह ने तुरन्त मनिका की ओर देखते हुए कहा "नाराज़, नहीं तो , मैं भला तुमसे नाराज़ क्यों होने लगा, वो तो बस मुझे थोड़ा टाइम नही मिला इसलिए मैं तुमसे नही पूछ पाया "

मनिका के घर आने के बाद ये पहली बार था जब जयसिंह ने उससे आँखे उठाकर बात की थी, मनिका ने इसे अपनी छोटी सी जीत की तरह लिया पर उसे भी पता था कि मंज़िल अभी बहुत दूर है पर उसे इस बात की खुशि थी कि उसकी पहली चाल बिल्कुल सही दिशा में कामयाबी की ओर जा रही है,

"तो आप मुझसे बातें क्यों नही करते, हमेशा कटे कटे से रहते हैं, मम्मी भी आपकी शिकायत कर रही थी कि आप घर पर कम टाइम स्पेंड करने लगे है" मनिका लगातार जयसिंह को बातों में लगाये रखना चाहती थी ताकि जयसिंह की झिझक कम हो जाये

" नहीं मणि, ऐसी तो कोई बात नही, वो तो बस थोड़ा काम ज्यादा होने की वजह से कभी कभी घर लेट आना होता है वरना तो...... " जयसिंह ने अपना बचाव करते हुए कहा

"वरना तो क्या, मम्मी ने मुझे सब बताया है कि आप कभी कभी नही बल्कि हमेशा ही लेट आते है, खाना भी बाहर ही कहते हो,बोलो मैं सही बोल रही हूं या नहीं" मनिका ने चहकते हुए कहा

" नहीं तो , मैं तो ज्यादातर घर ही खाता हूं खाना" जयसिंह अब मनिका से अपनी पुराने तनाव को भूलकर अपना बचाव करने में लगे थे

"आप ऐसे नही मानोगे मैं अभी मम्मी को बुलाकर पूछती हूँ........मम्मी......ओ...मम्मी.....जरा इधर तो आना" मनिका अब जोर जोर अपनी मम्मी मम्मी को आवाज़ लगाने लगी

"आ रही हु बाबा, ऐसे क्यों चिल्ला रही है, ये लड़की भी न बस" मधु जल्दी ही नाश्ता लेते हुए आयी और खुद भी वहीं बैठ गयी

"क्या है ,क्यों जोर जोर से चिल्ला रही थी " मधु ने हल्का सा गुस्सा करते हुए पूछा और साथ ही जयसिंह की प्लेट में नाश्ता सर्व करने लगी

"मम्मी, पापा बोल रहे हैं कि वो रोज़ाना घर पर टाइम से आते है और हमेशा घर पर ही खाना खाते है, आप बोलो की ये सच है या झुठ" मनिका ने मधु की ओर देखकर कहा
"अरे वाह, आप तो अब झूठ भी बोलने लगे हो, मनिका ये हमेशा लेट ही आते है, और खाना भी अक्सर बाहर ही खाते हैं, कितनी बार समझाया कि घर जल्दी आया करो पर इनके कानो पर तो जूं तक नही रेंगती, अब तू ही इन्हें समझा" मधु ने लगभग शिकायत के अंदाज़ में जयसिंह की तरफ देखकर कहा

"अच्छा ....तो पापा अब आप मुझसे झूट भी बोलने लगे....हम्म्म्म....." मनिका ने हंसते हुए बड़ी बड़ी आंखे निकालकर जयसिंह से कहा

"अम्म वो वो मणि..... अब मैं क्या बोलू? " जयसिंह थोड़ा सा घबराकर बोला

उसके इस तरह डरने से मधु और मनिका को भी हंसी आने लगी , और उनको इस तरह हसता देख जयसिंह भी थोड़ा मुस्कुरा दिया
,
"आज कितने दिनों बाद आपको हसता देखा है, वरना तो मनिका के जाने के बाद जैसे आपकी हंसी भी चली गयी थी" मधु ने जयसिंह को मुस्काता देख कहा

"आप चिंता मत कीजिये मम्मी, मेरे जाने की वजह से ये हसना भूल गए थे पर अब मैं आ गयी हूँ ना, तो अब मैं इनको बिल्कुल पहले जैसा बना दूंगी" मनिका ने 'पहले' शब्द पर कुछ ज्यादा ही जोर दिया
था

धीरे धीरे जयसिंह भी मनिका से थोड़ा खुलता जा रहा था और धीरे धीरे उसकी झिझक कम होती जा रही थी,उसे यकीन होता जा रहा था कि मनिका शायद दिल्ली वाली घटना को भुलाकर उसे एक ओर मौका देना चाहती है, क्योंकि मनिका ने घर आने के बाद से उससे हमेशा ठीक से ही बात की थी, इससे जयसिंह को थोड़ा थोड़ा यकीन होने लगा था कि शायद मनिका ने उसे माफ कर दिया है, इसलिए जयसिंह को भी अब उससे बातें करने में कम झिझक हो रही थी

वो सब अभी बाते कर रहे थे कि मनिका ने अपनी अपनी चाल का अगला हिस्सा चला

"मम्मी मेरी वो पुरानी 12th की बुक्स कहाँ है, मुझे उनमे से एक बुक चाहये थी, मेरी स्टडी के लिए" मनिका ने तिरछी नज़रो से जयसिंह के चेहरे को देखते हुए मधु से पूछा

"मणि.... वो तो स्टोर रूम में ऊपर टांड पर रखी है, तेरे कॉलेज जाने के बाद मैंने उन्हें एक बॉक्स में रखकर वहां रखवा दिया था, पर वो तो बहुत ऊपर हैं तेरे हाथ कैसे आएगी, मैं एक काम करती हूं , शाम तक किसी से उतरवा दूंगी, " मधु ने कॉफी पीते हुए ही कहा

"पर मम्मी मुझे तो अभी ही चाहिए , मुझे उनमे से कुछ जरूरी नोट्स बनाने है" मनिका ने बड़ा ही मासूम से चेहरा बनाते हुए कहा

"चल तो फिर तेरे पापा ही तेरी हेल्प कर देंगे उन्हें उतरवाने में" मधु ने बड़े ही सामान्य तरीके से जवाब दिया

"पर....मधु.....मुझे तो ऑफिस जाना है.....लेट हो रहा है...." जयसिंह ने कहा

"क्या ऑफिस..... थोड़ा लेट चले जाओगे तो पहाड़ नही टूट जाएगा....बच्ची यहां पढ़ने के लिए बुक्स मांग रही है और आप हो कि 5 मिनट ऑफिस लेट नही जा सकते...."
मधु ने तल्खी से जवाब देते हुए कहा

"पर मधु मेरी बात तो सुनो" जयसिंह ने एक बार और कोशिश करते हुए मधु से कहा

"पर वर कुछ नहीं, आप बुक्स उतारोगे तो उतारोगे, मुझे ओर कुछ नहीं सुनना" मधु ने आर्डर करते हुए जयसिंह से कहा

"चलो ठीक है, उतारता हूँ मैं बुक्स" जयसिंह ने निराश होते हुए कहा, उसे भी पता था कि मधु को ज़िद के आगे उसकी नहीं चलने वाली है

उसने फटाफट बाकी नाश्ता किया और हाथ धोकर स्टोर रूम की तरफ जाने लगा,


"रुकिए पापा, मैं भी आती हूँ" मनिका ने जयसिंह को रोकते हुए कहा

"तुम्म्म्म्म..... क्या करोगी....मणि.... मम्मम मैं...उतारता हूँ ना" जयसिंह घबराते हुए बोला

"पर मुझे जो बुक चाहिए वो मैं निकाल लूँगी, बाकी बुक्स आप दोबारा रख देना" मनिका बड़े ही आराम से बोली

"ठीक है जैसा तुम बोलो" जयसिंह ने भी बेमन से जवाब दे दिया

अब मनिका ने तुरंत हाथ धो लिए और जयसिंह के साथ स्टोररूम की तरफ चल पड़ी जो फर्स्ट फ्लोर पर था।
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Re: बाप के रंग में रंग गई बेटी

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मनिका सीढ़ियों पर चलते वक्त जान बूझकर जयसिंह के बिल्कुल पास पास चल रही थी, सो अचानक बिना सोचे-समझे इस तरह करीब आ जाने पर जयसिंह कुछ पल के लिए थोडा असहज हो गया था, और उससे कुछ कहते नहीं बन रहा था. मनिका के परफ्यूम की भीनी-भीनी खुशबू ने उन्हें और अधिक परेशान कर दिया था, जल्दी ही दोनों स्टोररूम के सामने खड़े थे

स्टोररूम काफी दिनों से बंद पड़ा था,
जब जयसिंह ने स्टोर रूम खोला तो देखा की वहां पर काफी दिनों से सफाई नहीं हुई थी, बुक्स जिस जगह पडी थी वो काफी ऊपर थी , जय सिंह ने आसपास देखा तो उसे एक लकड़ी की सीढ़ी दिखाई दी, पर उस पर काफी धूल मिट्टी जमा थी।

"पापा यहां पर तो काफी गंदगी है, आपके कपड़े ना खराब हो जाए" मनिका ने कहा


"कोई बात नहीं मैं दूसरे कपड़े पहन लूंगा " जयसिंह ने बिना मनिका की तरफ देखे ही कहा और सीढी को लेकर उस जगह के पास लगाने लगा जहां बुक्स पड़ी थी

जैसे ही जयसिंह ने ऊपर चढ़ने के लिए अपना पांव आगे बढ़ाया सीढ़ी में से चरमराने की आवाज़ आयी, चूंकि सीढ़ी काफी पुरानी थी इसलिए ज्यादा वजन झेल नही सकती थी

"पापा आप मत चढ़िए, वरना सीढ़ी टूट जाएगी, आपका वजन थोड़ा ज्यादा है इस सीढ़ी के लिए" मनिका ने कहा

"पर सीढ़ी के बिना इतनी ऊपर कैसे पहुँच पाऊंगा" जयसिंह ने थोड़ा परेशान होकर कहा

"एक तरीका है" मनिका के चेहरे पर एक शातिर मुस्कुराहट आ चुकी थी

"कोनसा तरीका" जयसिंह ने बसकी तरफ देखकर पूछा

" आप एक काम कीजिये , सीधी को नीचे से पकड़ लीजिये, मैं इस पर चढ़कर बुक्स उतार लेती हूं" मनिका बोली

"चलो ठीक है, तुम चढ़ जाओ पर जरा ध्यान से" जयसिंह ने कहा

"पापा, मैं चढ़ तो जाऊंगी पर आप मुझे सम्भाल तो लोगे ना" मनिका ने बेहद ही मादक अंदाज़ में द्विअर्थी शब्दों में कहा

"तुम चिंता मत करो मणि, मैं अच्छे से पकड़ कर रखूंगा,बिल्कुल गिरने नही दूंगा" जयसिंह ने सामान्य तरीके से जवाब दिया

"ठीक है तो पापा मैं चढ़ रही हूं, आप सम्भालना" ये कहते हुए मनिका ने अपना पांव सीधी के पहले कदम पर रखा और फिर धीरे धीरे ऊपर चढ़ने लगी।

मनिका ने ये सब कुछ पहले से ही सोच रखा था इसीलिए आज उसने जानबूझकर स्कर्ट पहनी थी, मनिका धीरे धीरे ऊपर चढ़ी जा रही थी , जयसिंह ने सीढ़ी को मजबूती से पकड़ा हुआ था, मनिका को अपने इतने पास पाकर जयसिंह का ध्यान विचलित होता जा रहा था,

जैसे ही मनिका सीढ़ी पर थोड़ी ऊपर पहुंची , जयसिंह ने अपनी नज़रे उठाकर ऊपर की ओर देखा, उस पर जैसे बिजली गिर गयी हो, जयसिंह का चेहरा बिल्कुल गर्म हो गया, उसे ऐसा लग रहा था जैसे इसे बहुत तेज़ बुखार हो, उसे अपनी सांसे रुकती हुई सी महसूस होने लगी और उसका दिल जोरों से धड़कने लगा,

ट्यूबलाइट की तेज़ रौशनी में मनिका की स्कर्ट में से झलकती पूरी तरह नंगी दूध सी सफ़ेद जांघें चमक रहीं थी, उसकी स्कर्ट में से उसकी नीले कलर की छोटी सी कच्छी उसकी बड़ी सी गांड की दरारों में फंसी साफ दिखाई पड़ रही थी,उसकी भींची हुई टांगों के बीच योनि की 'V' आकृति उसे बिल्कुल साफ साफ नज़र आ रही थी.

जयसिंह का लंड खड़ा होकर अब उसे तकलीफ देने लगा था, उसे ऐसा महसूस हो रहा था कि अगर उसने जल्दी से अपने लंड को आज़ाद नही किया तो कहीं उसकी नसे ना फट जाए, इस नज़ारे को देखकर उसके बदन में हज़ारों ज्वालामुखी फूटने लगे,
जयसिंह ने अब तक जो प्रतिज्ञा की थी कि वो अपनी बेटी से दूर रहेंगे वो सब उसे एक पल में ही मिट्टी में मिलती हुई नजर आने लगी, उसका दिमाग उसे नज़रे नीचे करने को कह रहा था पर उसका दिल इस नज़ारे को अपनी आंखों में कैद करने की बात कह रहा था,

" मनिका...मेरी बेटी है...हाय्य अब भी कितनी छोटी-छोटी कच्छियाँ पहनती है...उफ़ पर वो मेरी बेटी...साली का जिस्म ओह्ह..दिल्ली जाकर मस्त हो गयी है बिल्कुल आहहहहहह, नहीं नहीं वो मेरी बेटी है" जयसिंह का दिमाग अब अब बुरी तरह फंस चुका था,

इधर मनीज भी जानबूझकर ज्यादा टाइम लगा रही थी, बीच बीच मे वो अपनी सुंदर गांड को मटका देती जिससे जयसिंह के दिल पर हज़ारों वर हो जाते,

"पापाआआआ.... आपने ठीक से तो पकड़ा है ना, अगर आपने गिरा दिया तो मैं दोबारा कभी नहिं चढूंगी" मनिका ने चेहरे पर कुटिल मुस्कान लाते हुए कहा


"तुम चिंता मत करो मणि, मैं बहुत अच्छे से पकडटा हूँ, जिसे चढ़ाता हूँ उसे कभी नही छोड़ता" जयसिंह भी अब धीरे धीरे इस खेल में बढ़ रहा था हालांकि उसके दिल मे अभी भी काफी डर था पर फिलहाल तो मनिका की कच्छी ने उसके दिमाग का फ्यूज़ उड़ा रखा था,

" ह्म्म्म , मुझे बुक मिल गयी है पापा, अब मैं नीचे उतर रही हूं" मनिका ने कनखियों से जयसिंह की ओर देखा तो वो अभी भी अपनी नज़रे उसकी स्कर्ट के अंदर गड़ाए था

"अरे इतनी जल्दी मिल गयी, अगर कोई और बुक हो तो वो भी निकल लो वरना बार बार चढ़ना पड़ेगा" जयसिंह की आंखों में वासना के दौरे तैरने लगे, और उसका लंड तो बस उसकी पैंट को फाड़कर बाहर आने को तैयार था

"नहीं पापा अभी मुझे यही बुक चाहिए, अगर जरूरत पड़ेगी तो दोबारा चढ़ जाऊंगी, वैसे भी आप काफी अच्छे से चढ़ाते है" मनिका ने अपने चेहरे पर शरारती मुस्कान लाते हुए कहा

"ठीक है जैसी तुम्हारी मर्ज़ी" जयसिंह बड़े बेमन से बोला,

धीरे धीरे मनिका अपनी गांड को मटकती हुई नीचे उतरने लगी, जैसे ही वो लास्ट कदम उतरने वाली थी उसने जानबूझकर गिरने का बहाना बनाया और गिरते हुए जयसिंह की बाहों में समा गई

जयसिंह ने आज साल भर बाद मनिका के कोमल शरीर को छुआ था,वो तो उसकी मादक गन्ध से मदहोश ही हो गया था ,उसे ये एहसास बहुत अच्छा लग रहा था, इधर मनिका को भी जयसिंह की बाहों में उतेजना सी महसूस हो रही था, जिसकी गवाही उसकी चुत से निकली पानी की कुछ बूंदे थी जो उसकी पैंटी से होते हुए जांघो से स्पर्श करके उसे ठंडक का एहसास करवा रही थी,

पर जयसिंह के मन मे ये डर भी था कि अगर मनिका को ये आभास हो गया कि उसकी वजह से मैं उत्तेजित हो रहा हूँ तो इस बार तो वो मुझे मार ही डालेगी, इसलिए जयसिंह तुरंत होश में आया और बोला
"अरे आराम से मणि, अभी गिर जाती तो"


मनिका भी अब थोड़ी सम्भली और जयसिंह की बाहों की कैद से खुद को न चाहते हुए भी आज़ाद किया,

"चलो मणि, अब नीचे चलते है, मुझे ऑफिस भी जाना है" जयसिंह ने अपनी बिखरी सांसे समेटते हुए कहा

"ठीक है पापा" कहते हुए मनिका अपने पापा के साथ नीचे आ गयी, जयसिंह ने मनिका से नज़र बचाकर अपने लन्ड को पैंट में एडजस्ट किया

जयसिंह अब आफिस जाने के लिए दरवाज़े की ओर जाने लगा कि मनिका ने पीछे से उससे कहा - " पापा जल्दी घर आना , मैं आपका वेट करूंगी"

"यस ऑफकोर्स मैं कोशिश करूंगा जल्दी आने की" जयसिंह ने मुस्कुराते हुए जवाब दिया
ये बोलकर जयसिंह ऑफिस के लिए अपनी कार में रवाना हो गया, उसे इस बात की बहुत खुशी हो रही थी कि उसकी अपनी बेटी से दोबारा दोस्ती हो गई थी और इधर मनिका को अपनी पहली चाल कामयाब होने पर खुशी थी,

जयसिंह तो सीधा आफिस के लिए निकल गया पर आज के इस घटनाक्रम ने मनिका और जयसिंह दोनों के दिलों में आग सी लगा दी थी

अपने पापा के जाने के बाद मनिका दौड़कर अपने रूम में आ गई, उसकी सांसे तेज़ तेज़ चल रही थी, उत्तेजना चरम पर थी, उसका मन खुशियों के सागर में हिलोरे मार रहा था, उसने दरवाज़े की कुंडी बन्द की और भागकर अपने पलँग पर पेट के बल आ गिरी,

मनिका ने अभी की घटना को याद करके एक बहुत ही मदहोश सी अंगड़ाई ली , मनिका की इस अंगड़ाई से उसकी छोटी सी कसी हुई ब्रा में क़ैद खरबूजे जैसे मम्मे बाहर की तरफ छलक पड़े और उसके निप्पल बिस्तर से रगड़ खाकर कड़क हो गए थे, उसकी पतली स्कर्ट उस की मोटी गुदाज गान्ड पर इस तरह कसी हुई थी कि उसमेें से मनिका की भारी गान्ड की पहाड़ियाँ साफ तौर पर नज़र आ रही थी, पेट के बल इस तरह लेटने की वजह से मनिका के चूतड़ो का उभार बहुत ही जान लेवा हो चला था,


आज साल भर बाद अपने पापा के जिस्म को छूने की वजह से उसका रोम रोम रोमांचित हो उठा था, उसके सारे शरीर मे मीठी मीठी टीस सी उठ रही थी,अब उससे और बर्दास्त करना बहुत मुश्किल हो गया था, उसने तुरंत अपनी टीशर्ट और स्कर्ट को अपने हाथों से पकड़ा और पल भर में उतार कर फेंक दिया, अब उसने होले होले अपनी ब्रा के हुक खोलने शुरू कर दिए, थोड़ी ही देर बाद उसके बदन पर कपड़े के नाम पर सिर्फ नीले रंग की एक छोटी सी कच्छी थी जो उसके बड़ी सी गांड की दरारों में ओझल सी हो गयी थी, अब वो धीरे से पलटी और पीठ के बल लेट गयी, उसने अपनी अंगुलियो को अपनी पैंटी से छुआ तो उसके गीलेपन के अहसास ने उसे शरम और वासना की अनुभूति से भर दिया, उसने अपनी अंगुलियो को अपनी पैंटी के इलास्टिक में फंसाया, और अपने शरीर को ढके उस आखिरी कपड़े को भी अपने जिस्म से आज़ाद कर दिया,अब वो अपने बिस्तर पर पूरी तरह नंगी होकर आहें भर रही थी,
खिड़की से आती सूरज की हल्की हल्की रोशनी में उसकी खूबसूरत चिकनी चूत सोने की तरह चमक रही थी, और उसमें से आती खुसबू कमरे में धीरे धीरे फैलकर उसकी मादकता को और भी ज्यादा जानलेवा बना रही थी,

मनिका ने अपने एक हाथ को अपनी टांगो के बीच रखा और दूसरे हाथ से अपने कसे हुए मम्मों को मसलना शुरू कर दिया, उसकी चुत गर्म आग की भट्टी की तरह सुलग रही थी,

"उन्ह्ह्ह्ह…ह्म्प्फ़्फ़्फ़्फ़… ओहहहहहह यस ओहहहहहहह यस
ओह्हहहहहह पापाआआआ.... चोद दो मुझे.....बुझा दो इस चुत की प्यास......ओहहहहहह यस ओहहहहहहह यस उम्ह्ह्ह्ह्ह पापाऽऽऽऽऽऽऽ…..पापाऽऽऽऽऽऽऽ…योर डिक पापा…स्स्स्स्स्स्साऽऽऽऽ सो बिग…". कहते हुए मनिका ने अपनी चूत के दाने को मसलते हुए अपने हाथ की एक उंगली को चूत में घुपप्प्प से घुसा दिया ,
“हाआआआआअ” अपनी चूत में उंगली को जाता हुआ महसूस कर के मनिका के मुँह से सिसकारी निकली,उसकी गरम आहें अब लगातार बढ़ती ही जा रही थी, लगातार अंदर बाहर होती उसकी उंगली उसकी चुत की आग को ओर भड़का रही थी, उसका बदन सर्दी के मौसम में भी पसीने से तर बतर होने लगा, उसके गरम जिस्म से निकली आग किसी को भी झुलसाने के लिए काफी थी, अपने दूसरे हाथ से वो वो बीच बीच मे अपने निप्पल को कुरेद देती जिसकी वजह से उसके निपल बड़ी शान से खड़े होकर तन गए थे, आहिस्ता आहिस्ता उसकी उत्तेजना चरम पर पहुंचती जा रही रही थी, उसकी उंगलियों की रफ्तार तेज़ी से बढ़ती जा रही थी, अचानक मनिका के मुँह से एक सिसकारी उभरी और उस की फूली हुई गुलाबी फांकों वाली चूत से रस की एक बूँद टपक कर बिस्तर की चादर को गिला कर गयी, उसके मस्त बदन में हज़ारों चींटियाँ एक साथ रेंगने लगी,फिर एक दम से मनिका का शरीर अकड गया और झटके मारने गया, उसकी चुत से पानी एक फव्वारे की शकल में निकल कर बहने लगा, उसका इतना पानी आज तक नहीं निकला था, उसके शरीर मे मजे की लहर दौड़ गयी
"ऊऊऊऊ….आआआआहह….उूुऊउगगगगगघह!!!!!" की आवाज़ें अब भी उसके मुंह से निकल रही थी ,

थोड़ी देर बाद उसने अपनी बिखरी हुई सांसो को समेटा और नहाने के लिए बाथरूम में घुस गई,

इधर जयसिंह का भी कमोबेश यही हाल था, रह रहकर उसकी आँखों के सामने मनिका की उभरी हुई गांड का मंजर आ जाता, वो बार बार कोशिश करता कि उसके दिमाग से ये ख्याल निकल जाए पर जितनी वो आग बुझाने की कोशिश करता उतनी ही उसकी आग और भड़क जाती, बड़ी मुश्किल से कार चलाते हुए वो अपने आफिस के केबिन में पहुंचा, उसने अपना ध्यान आफिस के कामो में लगाने की कोशिश की पर उसकी हर कोशिश बेकार साबित हो रही थी, वो जब जब अपनी पलकें झपकाता, उस की जवान बेटी के खूबसूरत जिस्म का ख्याल उस की आँखों के सामने आ कर उसके होश उड़ा देता,

उस ने अपने दिल और दिमाग़ को समझाने की लाख कोशिश की कि इस तरह मनिका के बारे में सोचना गलत है क्योंकि वो पहले भी इस गलती की सजा भुगत चुका है,मगर वो कहते हैं ना कि लंड है कि मानता ही नहीं, इसीलिए उस का लंड भी आज उसके काबू में नही रहा था.

सुबह के घटनाक्रम के बाद जयसिंह के लंड में ऐसा जोश आ गया था जो कम होने का नाम ही नही ले रहा था ,खास तौर पर मनिका की उभरी हुई मांसल गांड के बारे में सोचकर को तो उसका लंड बुरी तरह फनफना उठा था.

जयसिंह अपनी कुर्सी पर बैठ बैचैन होने लगा था, उसने एक बार खुद से वादा किया था कि वो जब तक मनिका को भोग नही लेता मुठ नही मारेगा, पर परिस्थितियां काफी बदल चुकी थी, और अब उसे ये यकीन था कि उसका वो सपना कभी पूरा नही होने वाला, इसलिए उसने अपनी इस प्रतिज्ञा को भूल जाना ही ठीक समझा, उसने सोचा कि शायद मुठ मारने के बाद उसके दिल से मनिका का ख्याल निकल जाए

और यही सोचकर वो अपनी सीट से उठा और सीधा अपने केबिन में बने बाथरूम में घुस गया, उसकी वासना उसके काबू से बाहर होने लगी थी इसलिए हारकर उसने अपने लंड को पैंट की जिप से बाहर निकाल लिया,
जयसिंह का लंड लोहे की रोड की तरह सख़्त हो गया था, उसकी आँखे बंद थीं और उस की आँखों के सामने मनिका का सुडौल मांसल बदन घूमने लगा और वो मनिका के मोटे मोटे मम्मे और उभरी हुई गान्ड को याद कर के अपने हाथ तेज़ी से लंड पर चलाने लगा

"उन्ह्ह्ह्ह…ह्म्प्फ़्फ़्फ़्फ़… ओहहहहहह यस ओहहहहहहह यस"
ओह्हहहहहह उम्ह्ह्ह्ह्ह मनिकाऽऽऽऽऽऽऽ…आहऽऽऽऽऽऽऽ…कितनी खूबसूरत हो गई है हाय्य…स्स्स्स्स्स्साऽऽऽऽ सो क्या सूंदर चौड़ी गांड हो गयी है उसकी…...ह्म्म्म"
जयसिंह के हाथ पिस्टन की तरह अपने लन्ड के ऊपर खचाखच चले जा रहे थे, थोड़ी देर बाद ही मूठ मारते मारते अचानक जयसिंह के लंड ने एक जोरदार झटका लिया और फिर दूसरे ही लम्हे वो “मनिकाअअअअअस्स्स्स्स्स्स्स्स्स्स्स्स्स्सस्स” कहते हुए बुरी तरह झड़ने लगा, जयसिंह के लंड ने इतना पानी छोड़ा कि वो खुद हैरान हो गया, आज से पहले जयसिंह कभी इतनी जल्दी ना तो झड़ा था और ना ही उस के लंड से इतना ज़्यादा वीर्य निकला था, आज पहली बार जयसिंह ने अपना वादा तोड़कर मनिका के बारे में सोचते हुए मूठ लगाई थी, मूठ मारने के बाद धीरे धीरे जयसिंह की चेतना वापस लौटने लगी, उसे वापस अहसास होने लगा था कि उसकी कल्पना सिर्फ कल्पना तक ही सीमित रहे तो अच्छा है वरना इसका बुरा अंजाम भुगतना पड़ सकता है, कई महीनों के बाद उसकी अपनी बेटी से दोबारा बातचीत शुरू हुई है, इसे वो अपनी बेवकूफी से गंवाना नही चाहता था, इसलिए उसने फटाफट अपनी सफाई की और वापस आकर काम मे ध्यान लगाने लगा,
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Kamini
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Re: बाप के रंग में रंग गई बेटी

Post by Kamini »

अभी थोड़ी देर ही हुई थी कि किसी ने उसके केबिन का दरवाजा खटखटाया,

"मे आई कम इन सर" सारिका ने चहकते हुए जयसिंह से अंदर आने की इजाज़त माँगी,

"यस कम इन" जयसिंह ने सारिका को अंदर आने के लिए कहा

"गुड मॉर्निंग सर, वो मैने आपके सिंगापुर जाने का सारा इंतेज़ाम कर दिया है, ये रही टिकेट्स, आपकी फ्लाइट 3 दिन बाद 6 दिसम्बर की है " सारिका ने लगभग एक ही सांस में सब कुछ बोल दिया था

"ओके, ई विल सी इट, यू केन गो नाउ" जयसिंह ने कहा

"सर वो एक और बात है, हमें सिंगापुर के इवेंट आर्गेनाइजर ने फ़ोन किया था , उन्होंने बताया है कि आप अपनी फैमिली मेंबर्स को भी ला सकते है, वो लोग आपका रहने खाने का सारा इंतेज़ाम खुद ही करेंगे, इसलिए अगर आप बोले तो मैं आपकी वाइफ की भी टिकट करा दूं ,क्योंकि वहां पर ज्यादातर लोग अपनी वाइफ के साथ ही आएंगे"
सारिका ने जयसिंह से पूछते हुए कहा

"मैं पहले अपनी वाइफ से पूछुंगा, उसके बाद जो भी बात होगी तुम्हे बता दूंगा " जयसिंह ने बड़े नार्मल तरीके से जवाब देते हुए कहा

"ओके सर, एज यू विश" सारिका ने कहा और केबिन से बाहर चली गई

दिनभर जयसिंह ओफिस के कामों में बिजी रहा, और उधर मनिका भी अपनी अगली चाल के बारे में सोचती रही,

शाम के लगभग 7:00 बजने वाले थे, जयसिंह को मनिका से कही हुई बात याद आने लगी कि वो उसका वेट करेगी, इसलिए जयसिंह ने भी फटाफट अपना बाकी काम निपटाया और घर की तरफ चल पड़ा

घर पहुंचते ही जयसिंह ने देखा कि कनिका और हितेश हॉल में बैठे हुए टीवी देख रहे है जबकि मधु किचन में काम कर रही थी,पर जयसिंह की धोखेबाज़ आंखे तो बस मनिका का दीदार करने के लिए तड़प रही थी, लेकिन मनिका शायद अपने रूम में थी, यही सोचकर जयसिंह मन मारता हुआ अपने रूम की तरफ बढ़ने लगा,
थोड़ी देर में फ्रेश होने के बाद जयसिंह भी हॉल में आकर बच्चो के साथ बैठकर बातें करने लगा

"कनिका, हितेश तुम दोनों की स्कूल कैसी चल रही हैं" जयसिंह ने प्यार से उनके सर पर हाथ फेरते हुए पूछा

" अच्छी चल रही है पापा, अभी कुछ दिनों बाद 10 तारीख से हमारी हाफ इअर्ली एग्जाम शुरू होने वाली हैं " कनिका ने उत्साहित होते हुए जवाब दिया


"तो फिर कैसी तैयारी है तुम दोनों की" जयसिंह ने उनसे पूछा

"तैयारी तो ठीक ही है पापा, पर पता नहीं पेपर कैसे आएंगे" हितेश थोड़ी टेंसन में आकर बोला

"अरे बेटा, चिंता करने की कोई बात नहीं है, तुम दोनों बस जमकर पढ़ो, मुझे तुम दोनों पर पक्का यकीन है कि तुम पास होकर दिखाओगे" जयसिंह उनका जोश बढ़ते हुए बोला

"थैंक्स पापा, हम बिल्कुल अच्छे से पढ़ाई करेंगे, आप बिलकुल चिंता न करे" दोनों बच्चे एक साथ बोल पड़े

"ये हुई न बात, अगर तुम दोनों पास हो गए तो मैं तुम्हे तुम्हारी पसंद का गिफ्ट लाकर दूंगा" जयसिंह बोला


"ओह वाव, मुझे तो एक नया मोबाइल चाहिए पापा " कनिका खुशि से उछलती हुई बोली

"हां हां जरूर, अगर तुम पास हुई तो मैं तुम्हे तुम्हारी पसन्द का मोबाइल लेकर दूंगा" जयसिंह ने कहा

"ओह थैंक यू पापा" कनिका उछलते हुए जयसिंह की गोद मे आकर बैठ गयी और अपने दोनों हाथों को उसकी गर्दन के दोनों ओर लपेट लिया

इस तरह अचानक और बेपरवाह होकर जयसिंह से भूरपूर तरीके से चिपटने से कनिका के मम्मे उसके पापा की छाती से जा टकराये, कनिका के इस तरह गोद मे बैठने की वजह से जयसिंह थोड़ा असहज हो गया था पर उसके जिस्म में सर से ले कर पैर तक एक अजीब सी मस्ती की लहर दौड़ गई, ऊपर से कनिका के जवान जिस्म से आती मादक गंध ने तो उसके होश ही उड़ा दिए, आज जयसिंह ने पहली बार कनिका के जवान होते बदन पर नज़र डाली थी, कनिका लगभग इसी साल 18 की हुई थी, दिखने में वो मनिका की तरह ही खूबसूरत थी, वही तीखे नैन नक्श, दमकता गोरा चिट्टा चेहरा और गुलाबी रसीले होंठ, छोटे छोटे अमरूद जैसी सुंदर सुंदर चुचियाँ, पतली गोरी कमर, उभरी हुई गांड, भरी मांसल जाँघे और उसके कच्चे यौवन की मादक खुशबू जयसिंह को धीरे धीरे उत्तेजित करने लगी थी, उसका फनफनाता लंड उसकी पैंट में सर उठाने लगा था, कनिका की छोटी सी कैपरी से झांकती उसकी खूबसूरत पिंडलियों ने तो जयसिंह के दिमाग का फ्यूज़ ही उड़ा कर रख दिया था, जयसिंह अपनी भावनाओं पर काबू करने की नाकाम सी कोशिश कर रहा था, पर उसका लंड तो बस जवान जिस्म का सामीप्य पाकर उसके आपे से बाहर होने लगा था,

"अच्छा तुम्हे क्या चाहिए हितेश" जयसिंह ने ध्यान बटाने के लिए हितेश की ओर देखकर पूछा

"मुझे तो नया प्ले स्टेशन चाहिए पापा" हितेश खुश होता हुआ बोला

"ज़रूर तुम्हे भी तुम्हारा गिफ्ट मिलेगा, पर पास होने के बाद" जयसिंह बोला

जयसिंह लगातार अपना ध्यान बटाने की कोशिश कर रहा था पर उसका लंड तो आज मनमानी पर उतर आया था, कनिका भी नासमझी में अपनी गांड को हिला हिलाकर उनसे बाते किये जा रही थी, इसका नतीजा ये हुआ कि अचानक कनिका की छोटी सी चुत सीधा जयसिंह के उठे हुए लंड से थोड़ा सा रगड़ गई, अपनी चुत पर लंड के इस अहसास से कनिका की हल्की सी आह निकल गई पर इसने उसे जयसिंह पर ज़ाहिर नही होने दिया, आज पहली बार किसी लंड को अपनी अनछुई छोटी सी चुत के इतने नज़दीक पाकर कनिका के बदन में एक मीठी सी टीस उठ पड़ी,
जरासल पिछले 1 साल में कनिका की दोस्ती कुछ ऐसी लड़कियों से हो गयी थी जो अक्सर उसे चुदाई के बारे में बताया करती, शुरू शुरू में तो उसे बड़ा अज़ीब लगता था पर बाद में उसे धीरे धीरे मज़ा आने लगा था, वो स्कूल में घण्टो अपनी सहेलियों के साथ चुदाई की बाते किया करती थी, कभी कभी तो वो सब मिलकर चुदाई की कहानियां भी पढ़ा करते थे, उसकी एक दोस्त ने उसे एक बार ब्लू फिल्म भी दिखाई थी जिसे देखकर वो कई दिनों तक ढंग से सो भी नही पायी, और फिर धीरे धीरे उसने मुठ मारना भी सिख लिया था, पहली बार जब उसका पानी निकला था तो उसे लगा जैसे दुनिया मे इससे ज्यादा सुख कहीं नहीं और उसके बाद से ही वो दिन में 1 बार तो अक्सर उंगली कर ही लेती थी, वो अपने ख्यालो में सोचती की जब उंगली करने से ही उसे इतना मज़ा आता है तो जब उसकी चुत में किसी का लंड जाएगा तो क्या होगा, और ये सोचकर वो मजे से सिहर जाती, वो ब्लू फिल्म्स देख देखकर लंड के बारे में सोचती तो थी पर आज तक उसने कभी भी अपनी सीमा नही लांघी थी, न ही कभी कोई गलत कदम उठाया पर आज पहली बार अपने ही पापा के लंड के बारे सोचकर उसके बदन में लाखों चीटियां एक साथ रेंगने लगी, वो चाहती तो जयसिंह की गोद से उतर जाती पर अब उसे मज़ा आने लगा था, वो जान बूझकर बहाने से अपनी गांड को हिलाती जिससे उसकी चुत जयसिंह के लंड के थोड़ा और करीब आ जाती,

कनिका के इस तरह हिलने से बार बार जयसिंह का लंड कनिका की चुत से कैपरी के ऊपर से ही रगड़ खा रहा था, जयसिंह बार बार अपने लंड को एडजस्ट करने की कोशिश करता ताकि कनिका को उसके खड़े लंड का आभास ना हो पर बार बार उसका लंड होले से उसकी चुत पर रगड़ जाता, कनिका तो अब मजे के मारे हल्की हल्की आहें भर रही थी, अचानक उसने अपनी गांड को कुछ ज्यादा ही झटका दिया जिसकी वजह से जयसिंह का लंड सीधा जाकर उसकी चुत के मुहाने पर कैपरी के ऊपर से ही अटक गया, अगर आज उनके कपड़े न होते तो जयसिंह का लंड सीधा उसकी चुत में घुस चुका होता, कनिका इस मजे को सह नही पायी और उसकी चुत से कामरस की बूंदे निकलकर उसकी कच्छी को भिगोने लगी

***************


इधर मनिका काफी देर से अपने रूम में ही बैठी सज संवर रही थी, आज उसने एक टाइट जींस पहनी थी जिसमे से उसकी गांड की वादियों की भरपूर नुमाइश हो रही थी, जीन्स का कपड़ा उसकी टांगो से इस कदर चिपका हुआ था कि उसमें से मनिका की गांड से लेकर नीचे तक कि पूरी आकृति साफ साफ महसूस की जा सकती थी, ऊपर उसने एक बहुत ही महीन कपड़े की गहरे गले की टीशर्ट पहनी थी जो उसकी नाभि से भी ऊपर तक थी, उस टीशर्ट में से उसके भारी कलश गोल गोल ख़रबूज़े जैसे दिखाई दे रहे थे और साथ ही थोड़ा ऊपर से देखने पर उसके मम्मों के बीच की गहरी लाइन साफ देखी जा सकती थी, उसने जब अपने पापा की गाड़ी की आवाज़ सुनी थी तभी से वो जयसिंह पर कहर ढाने के लिए अपने शरीर को सजा रही थी, जब उसे लगा कि वो अब पूरी तरह तैयार है तो धीरे से उठी और कमरे से बाहर निकलकर सीढ़ियों की तरफ बढ़ने लगी,


जब उसकी नज़र नीचे हॉल में बैठे अपने पापा की तरफ गयी तो कनिका को उनकी गोद मे देखकर तो जैसे उसके तन बदन में आग सी लग गयी, उसे कनिका से जलन सी महसूस होने लगी,

" उफ़्फ़ ये कनिका की बच्ची कैसे पापा की गोद मे जमकर बैठी है, हाय कितना मज़ा आ रहा होगा इसको पापा को छूने पर, काश इसकी जगह मैं होती, हाय्य मैं तो अपनी गांड की गोलाइयों को उनके लन्ड से सटा देती , उन्हें अपने शरीर की खुशबू से पागल ही बना देती, उफ़्फ़ क्या मादक नज़ारा होता वो, मैं अपने प्यारे पापा की गोद मे बैठकर उनके तने हुए लंड पर अपनी गांड मटकाती और वो अपने हाथों से मेरे इन प्यासे मम्मों को जी भरकर मसलते, इससस्स मैं तो मजे से पागल ही हो जाती, पर अब तो ये कनिका की बच्ची ने मेरी जगह हथिया ली है, नहीं नहीं वो सिर्फ मेरी जगह है, वहां बैठने का हक़ सिर्फ मुझे ही है" मनिका अपने मन ही मन में सोचती हुई नीचे की तरफ बढ़ती जा रही थी

"ए कनिका की बच्ची, पापा की गोद में क्यों बैठी है तू, देखती नहीं अभी अभी ऑफिस से आये हैं, थके हुए हैं और तू बेअक्ल सीधा उनकी गोद मे जाकर उन्हें और परेशान कर रही है, चल नीचे उतर जल्दी से" मनिका ने थोड़े गुस्से में आकर कनिका को कहा

कनिका ने जब मनिका को इतने गुस्से में देखा तो वो थोड़ा डर गई, वो उसके गुस्से से भली भांति परिचित थी, इसलिए उसने नीचे उतरना में ही अपनी भलाई समझी, ऊपर से वो नही चाहती थी कि उसकी गीली पैंटी का आभास जयसिंह को हो जाये ,इसलिए वो बेमन से अपने पापा की गोद से नीचे उतरी और साइड में जाकर बैठ गई, पर वो अभी भी हैरानी से मनिका को देख रही थी

इधर कनिका के गोद से उतरने पर जयसिंह के पैंट में बना उभर पूरी तरह से देखा जा सकता था, इसलिए उसने तुरंत अपने एक पैर पर दूसरे पैर को रख लिया, पर इससे पहले की वो ये सब कर पाता कनिका ने कनखियों से उनके लंड के उभार को देख लिया था, उसके चेहरे पर एक अजीब सी मुस्कान आ गई थी,

"ओह माई गॉड, पापा का डिक कितना बड़ा है....... कितना बड़ा उभर बना हुआ था .......इसस्ससस ये मैं क्या सोच रही हूं......ये गलत है......पर....पर वो उत्तेजित क्यों हो गए......कहीं वो मुझे......नहीं नहीं ....ये मेरी गलती है......मुझे ऐसे उनकी गोद मे नहीं बैठना चाहिए था......पर हाय्य कितना मज़ा आ रहा था.......उनका बड़ा सा डिक कैसे मेरी पुसी को टच कर रहा था......उम्ह्ह्ह्ह्ह पापाऽऽऽऽऽऽऽ...........मुझे इतना अच्छा क्यों लग रहा है........हाय्य काश थोड़ी देर बैठ जाती ......अम्मममम कितना मज़ा आ रहा था......उम्ह्ह्ह्ह्ह मेरी चुत से पानी भी निकलने लगा है.....हाय ये मैं क्या सोच रही हूं......पर मुझे पापा की गोद में बैठकर इतना अच्छा क्यों लग रहा था....काश मैं उनकी गोद मे हमेशा बैठी रहूं....पर ....
दीदी ने आकर सारा काम बिगड़ दिया......" कनिका अपने मन मे मची उथल पुथल से परेशान थी

"अरे महारानी अब इतनी चुप क्यों हो गयी" मनिका ने कनिका को चुप देखकर पूछा

"वो.....वो...कुछ नहीं दीदी....वो तो मैं ऐसे ही एग्जाम के बारे में सोच रही थी....10 से हमारे एग्जाम शुरू हैं ना" कनिका ने सफाई से अपना बचाव करते हुए कहा

"अरे वाह, तू कब से पढ़ाई की चिंता करने लगी" मनिका ने मजाक करते हुए कहा

मनिका की बात सुनकर सारे लोग हंस पड़े और कनिका के होठों पर भी हल्की से मुस्कान आ गयी

**********


" हे भगवान, बाल बाल बच गया, अगर किसी ने मेरा पैंट का उभार देख लिया होता तो बवाल मच जाता, ये लंड भी ना...पहले से ही एक के चक्कर मे ज़िन्दगी झंड हुई पड़ी है और अब ये दूसरी को देखकर लार टपक रहा है, अगर उसे थोड़ा सा भी आभास हो जाता तो न जाने क्या हो जाता"
इधर जयसिंह के मन मे मचा तूफान थमने का नाम ही नही ले रहा था
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shubhs
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Re: बाप के रंग में रंग गई बेटी

Post by shubhs »

जल्दी से आगे बढ़ो भाई
सबका साथ सबका विकास।
हिंदी हमारी राष्ट्रभाषा है, और इसका सम्मान हमारा कर्तव्य है।
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