कामलीला complete

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rangila
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Re: कामलीला

Post by rangila »

सोनू इतना ज्ञानी नहीं था, आधे लिंग को ही अंदर बाहर कर रहा था और हर धक्के के साथ लिंग को दो सूत ज्यादा ठेल देता था और जल्दी ही उसने लिंग को जड़ तक शीला की योनि में घुसा दिया।
जैसा कि उसे अंदाज़ा था, कोई अतिरिक्त दर्द न हुआ और जो था भी वो अब धीरे-धीरे मन्द पड़ता लगभग नगण्य हो चला था।
जब एक बार गाड़ी ठीक रफ़्तार में दौड़ पड़ी तो उसे उस सुख की अनुभूति हुई जिसके लिये वह तड़प रही थी, जिसके लिये उसने वर्जनाओं को ठोकर मारी थी।
रग-रग में हर धक्के के साथ ऐसी आनन्द की लहरें दौड़ रही थीं जिन्हें वह बस महसूस कर सकती थी, बयान नही कर सकती थी।
अंधेरे कमरे में उन दोनों की भारी सांसों के साथ योनि और लिंग के समागम की मधुर आवाज़ गूंज रही थी।
सोनू चाहता था कि वह किसी और आसन में आये लेकिन उसके हाथ के इशारे के बाद भी शीला ने सकारात्मक प्रतिक्रिया न दी तो उसने भी ज्यादा ज़ोर न दिया।
बस इतना किया कि जब यूँ उकड़ूं बैठे धक्के लगाते वह थक गया तो उसे बिस्तर के किनारे खींच लाया और खुद नीचे उतर कर खड़ा हो गया।
अब इस पोजीशन में वह ज्यादा थके बिना और ज़ोर से धक्के लगा सकता था।
उसने लिंग को खुल चुकी शीला की योनि में घुसाया और एक लयबद्ध ताल पर उसकी कमर थिरकने लगी। कमरे में समागम की वह मधुर आवाज़ फिर जारी हो गई जो शीला सुनने को बेइंतिहा तरसी थी।
अब उसने बिस्तर या रानो को पकड़ने की कोशिश नहीं की, बल्कि हर धक्के पर हिलते अपने वक्ष उभारों को उसी ताल पर सहलाने लगी थी।
रानो उन पलों में उसके लिए नगण्य हो गई थी।
वह तरसी थी… तड़पी थी, कब से इस पल के लिए बेक़रार थी… जल्द ही उसकी उत्तेजना अपनी पराकाष्ठा पर पहुँचने लगी।
उसने अपनी नसों में वह मादक ऐंठन महसूस की जो उसे निचोड़ देना चाहती थी और उसकी सिसकारियाँ तेज़ हो गईं। कमरे की सरहदों को तोड़ने लगीं।
फिर चरम पर पहुँचने के सुख ने उसे बेलगाम कर दिया। वह खुद से अपनी कमर ऊपर उठा-उठा कर सोनू के लिंग को अंदर तक लेने की कोशिश करने लगी और साथ ही आवाज़ों पर भी नियंत्रण न रहा।
फिर ऐसा लगा जैसे उसके पेट कि निचले हिस्से की मांसपेशियाँ एकदम सिकुड़ कर फैल गईं हों और उसके अंतर से कोई लावा सा फूट पड़ा हो।
शरीर को एक तेज़ झटका लगा और स्खलन के उन क्षणों में वह कांपने लगी।
योनि की मांसपेशियाँ बार-बार फैलने सिकुड़ने और सोनू के लिंग को भींचने लगीं।
योनि का यह संकुचन और अंदर से उठती भाप ने सोनू के लिंग को भी फुला दिया और वह भी कुछ ऐसे ज़ोरदार धक्कों के साथ, जिन्होंने शीला को हिला दिया… फट पड़ा।
उसने अपने अंतर में उसके लिंग से निकलते गर्म-गर्म वीर्य का अनुभव किया और सोनू किसी जानवर की तरह गुर्राता हुआ उसके ऊपर ढेर हो गया और उसे स्खलन के अंतिम पलों में इतने ज़ोर से भींच लिया कि उसकी हड्डियाँ कड़कड़ा उठीं।
जब यह गुबार थमा तो वह शीला के ऊपर से हट कर बगल में ढुलक गया और अपनी उखड़ी उखड़ी सांसें दुरुस्त करने लगा।
कई मिनट लग गये उसे खुद को संभालने में… दिमाग में चलती सनसनाहट से लड़ कर जीतने में और जब इस अवस्था से बाहर आ सकी तो आसपास के माहौल का अहसास हुआ।
कमरे में छाया अंधेरा और सन्नाटा महसूस हुआ, सिरहाने परछाईं की तरह पड़ी रानो महसूस हुई और अपने पास ही चित पड़ा सोनू महसूस हुआ।
वह एकदम उठ बैठी और सिरहाने सिमट आई… आँख से बंधा स्टोल उसने उतार फेंका था।
उसे एकदम से संज्ञान हुआ कि अब वह पहले वाली कुंवारी शीला न रही थी, उसका शील भंग हो चुका था और यह समाज के बनाये किसी नियम के अन्तर्गत नहीं हुआ था बल्कि प्रकृति के बनाये नियम के अन्तर्गत हुआ था।
आज उसने सामाजिक नियमों की अनदेखी की थी, बड़े बूढ़ों की निर्धारित वर्जनाओं को तोड़ा था, अपनी शारीरिक इच्छाओं के आगे समर्पण कर दिया था।
उसे अपराधबोध की अनुभूति होने लगी।
जो मज़ा, जो अकूत आनन्द अभी कुछ क्षण पहले उसने महसूस किया था, वह दिमाग से निकल गया और रह गई तो खुद की बगावत और इस अपराध का अहसास कि उसने मर्यादा तोड़ी थी।
सोचते-सोचते उसकी आँखें भीग गईं और सांसे बेतरतीब होकर सिसकियों में बदल गईं।
‘क्या हुआ दी?’ उसके बदन की कंपकंपाहट महसूस कर के रानो बोल पड़ी।
‘मम्म… मैं पापिन हूं… सोनू, मेरे भैया… मुझे माफ़ कर दे।’ उसने सिसकियों के बीच कहा।
‘दीदी, यह क्या कह रही हो?’ ज़ाहिर है कि सोनू के लिये यह अनपेक्षित था, तो वह सकपका कर उठ बैठा- दीदी!
रानो उसके दिमाग में चलते झंझावात को बेहतर समझ सकती थी, उसने अपनी बांहों में शीला को संभाल लिया और थोड़ा सहारा मिलते ही वह फूट-फूट कर रो पड़ी।
‘दीदी!’ सोनू भी उसके पास आ गया- तुम रो क्यों रही हो… तुमने कोई पाप नही किया। यह सही है या गलत… यह कौन तय करेगा?’
‘भगवान्…? क्या वह सब नहीं देख रहे।’
‘देख रहे तो उन्होंने यह अन्याय किया ही क्यों… दुनिया में ढेरों लोगों को शरीर का सुख जायज़ तरीके से दिया और ढेरों को वंचित कर दिया। जिन्हें वंचित कर दिया, क्या उनके लिये कोई रास्ता सुझाया।’
‘नहीं पता… पर आज जो हुआ वह गलत है।’
‘दीदी… कुछ नहीं गलत है। जिन्हें गलत कहना है वे ही आकर बता दें कि इतनी उम्र तक बिना शादी के बैठी रहने वाली लडकियाँ, औरतें आखिर करें भी क्या?’
सोनू उम्र में छोटा था लेकिन फिर भी इस किस्म की गंभीर बातें समझता था।
उससे सान्त्वना मिली तो शीला का सुबकना कम होने लगा।
सोनू ने रानो की जगह खुद उसे बाहों में ले लिया और उसका सर अपने कंधे से टिकाये, उसकी पीठ सहलाने लगा।
वह वही सब शब्द दोहराने लगा जो वह रानो के मुंह से सुनती आ रही थी।
कहा नहीं जा सकता कि यह उसकी खुद की सोच थी या उसकी सोच पर रानो और रंजना की छाप।
पर उसके शब्द शीला के विचलित मन को सुकून दे रहे थे और उसकी सिसिकियाँ मद्धम पड़ते-पड़ते ख़त्म हो गई थीं।
जब आप बिना कपड़ों के सम्पूर्ण नग्नता से विपरीत लिंगी शरीर के इतने निकट हों और शरीर घर्षण का अनुभव कर रहा हो तो भावनाएं बदलते देर नहीं लगती।
खुद उन दोनों को भी यह अहसास नहीं हो सका था कि कब शीला अपने अपराधबोध से मुक्त हो गई और कब सोनू उसे सांत्वना देने, समझाने की ज़िम्मेदारी से बरी हो गया।
दोनों ने बस यह महसूस किया था कि सोनू के उसकी पीठ पर फिरते हाथ गर्माहट का अहसास दे रहे थे और सोनू ने यह महसूस किया था कि उससे रगड़ता शीला का जिस्म उसे उत्तेजित करने लगा था।
उसने कंधे पर टिका शीला का आंसुओं से भीगा चेहरा उठा कर आंसू पोंछे तो उसके होंठों ने सोनू को जैसे किसी चुम्बक की तरह खींच लिया।
शीला के गालों पर होंठ फिराते वह उसके होंठों तक पहुँचा तो इस बार वह पहले की तरह बंद न रहे, बल्कि उन्होंने पूरे उत्साह से उनका स्वागत किया।
और वे एक प्रगाढ़ चुम्बन में लग गये।
शीला की मनोदशा अजीब हो रही थी, कहीं न कहीं उसके मन में गलत और सही की जंग अब भी जारी थी, मगर जो हो रहा था, उसके आकर्षण से खुद को मुक्त नहीं कर पा रही थी।
इस बार खुद से उसने सोनू के होंठों को चूसा था और जब सोनू ने जीभ को उसके होंठों तक पहुँचाया था तो उसने जीभ को भी चूसने से गुरेज न किया था।
कहीं न कहीं शीला को अहसास इस बात का भी था कि जब वर्जित फल खाना ही है तो अगर-मगर और इसे-उसे छोड़ कर क्यों खाया जाये।
यह प्रगाढ़ चुम्बन लम्बा चला और उन्होंने न सिर्फ एक दूसरे के होंठ चूसे बल्कि जीभ भी उसी अंदाज़ में चूसी।
रानो अब जैसे दोनों के लिये अप्रासंगिक थी और उसे इस स्थिति से आपत्ति भी नहीं थी, वह बस अपनी दीदी का सुख चाहती थी।
इस गहरे चुम्बन ने दोनों की भंगिमाएं बदल दीं… सोनू ने उसे खींच कर अपनी गोद में ऐसे बिठा लिया कि उसके वक्ष सोनू के सीने से दबने लगे और शीला के नितम्ब उसकी जांघों में टिक गये।
चुम्बन अब भी जारी था लेकिन शीला ने एक हाथ से उसकी पीठ का सहारा लेते हुए, दूसरे हाथ से उसके मुरझाये पड़े लिंग को सहलाना शुरू कर दिया था।
जबकि सोनू उसके दोनों नितंबों को अपने हाथों से मसल रहा था, दबा रहा था और उन्हें एक दूसरे के सामानांतर खींचने की कोशिश कर रहा था।
फिर इसी अंदाज़ में बैठे-बैठे उसने शीला को थोड़ा पीछे की तरफ झुकाया और एक हाथ से उसके एक वक्ष को मसलते हुए दूसरे को मुंह से चूसने चुभलाने लगा।
शीला के खून में चिंगारियाँ उड़ने लगीं।
उसने अपनी योनि में वही गर्म तरंगें उभरती महसूस की जो थोड़ी देर पहले तब महसूस की थी जब लिंग प्रवेश नहीं हुआ था।
दोनों बेताबी से एक दूसरे के अंगों को मसलते रहे और सोनू ने शीला को झुकाते हुए अपने पंजों पर गिरा लिया था और उसकी नाभि में जीभ चलाने लगा था।
दोनों हाथों से उसके स्तनों का भरपूर मर्दन करते हुए उसने शीला की पीठ के नीचे से अपने पांव निकाल लिये और उसे बिस्तर पर टिका दिया।
खुद पीछे खिसकते शीला के पैरों के बीच में आ गया और उसके घुटनों को मोड़ते हुए दोनों पांवों को फैला दिया, जिससे शीला की योनि खुल कर उसके सामने आ गई।
और वह फिर ज़ुबान से उसके बाहरी किनारों से खिलवाड़ करने लग गया।
नसों में ऐंठन होने लगी और ऐसा लगने लगा जैसे कोई अपराधबोध नहीं, कोई वर्जना नहीं, बस आनन्द ही आनन्द… अकूत आनन्द!
वह खुद अपने हाथों से अपने कुचों का मर्दन करने लगी।
सोनू ने उसकी उत्तेजना को जब उस स्तर पर पहुँचा दिया कि शीला के दिमाग में सिवा सम्भोग के कुछ बाकी न रहा तो वह उसके बगल में इस तरह लेट गया कि उसका सर शीला के पैरों की तरफ हो गया और पैर शीला के सर की तरफ।
इस तरह वह शीला की साइड से सट कर सीधे हाथ से उसके वक्ष दबाने लगा तो उलटे हाथ से शीला की जांघ का सहारा ले कर उसकी योनि पर जीभ चलाने लगा।
इस तरीके का जो मुख्य कारण था वह यह था कि इस तरह उसका अर्ध उत्तेजित लिंग अब शीला के मुंह के पास हो गया था। इच्छा स्पष्ट थी जिसे समझना शीला के लिये कोई मुश्किल नहीं था।
पर उसने खुद से सवाल किया… क्या वह ऐसा कर पाने में सक्षम थी?
लेकिन जब वह कर रहा था तो क्या शीला का इन्कार उसे बुरा नहीं महसूस होगा।
उसने थोड़ा तिरछा होते हुए अपने सीधे हाथ से उसे थाम लिया और सहलाने लगी।
पहले आँखों पर पट्टी बंधी थी लेकिन अब आँखें खुली थीं… भले अंधेरा था लेकिन आँखे इस अंधेरे की अभ्यस्त हो चुकी थी और वह धुंधला ही सही उसे देख सकती थी।
वह सात इंच के केले जितने साइज़ का था, चाचे के लिंग से उसकी लंबाई भी कम थी और मोटाई भी, मगर फिर भी आकर्षक था और योनिभेदन के लिये एकदम उपयुक्त था।
वह उसे सूंघने के लिए नाक के पास ले आई, अजीब सी सोंधी-सोंधी गंध का अहसास हुआ, जिसने उसमें और उत्तेजना का संचार किया।
नीचे से जो तरंगें उठ रही थीं, वे हर बाधा के बैरियर गिराये दे रही थीं।
खुद से उसका दिल होने लगा कि वह भी उसे मुंह में रखे।
उसने जीभ निकाल कर उसके अग्रभाग को छुआ।
अजीब सा नमकीन स्वाद महसूस हुआ… उसने मन की वर्जनाओं को किनारे कर के खुद से सवाल किया… क्या उसमें ऐसा कुछ था जो अस्वीकार्य कर देने लायक हो?
जब तक आप किसी चीज़ को मन से स्वीकार नहीं कर पाते, वह आपके लिये घृणित हो सकती है लेकिन जैसे ही आप स्वीकार करते हैं, कोई घृणा बाकी नहीं रह जाती।
पहली बार में उसने उस नमकीन ज़ायके को थूक में उड़ा दिया लेकिन फिर से ज़ुबान लगाने पर जो स्वाद महसूस हुआ, उसने स्वीकार कर लिया।
उसने होंठ खोले और लिंग के अग्रभाग को अंदर समेट लिया। उसे अहसास था कि रानो उसे देख रही होगी मगर अब वह खुद में कोई लाज का चिह्न नहीं पा रही थी।
लिंग के ऊपर होंठों का छल्ला बनाये उसने वहाँ तक अपने होंठ उतारे जहाँ तक शिश्नमुंड उसके हलक से न जा टकराया, फिर वापस खींच लिया।
बचाते-बचाते भी लिंग जीभ से स्पर्श किया और जीभ ही तो स्वाद का पता बताती है, वह जैसे पूरा नमकीन हो रहा था।
फिर उसकी सिमटी ज़ुबान खुल गई और मुंह में मौजूद लिंग पर लिपट गई। लसलसा नमकीन स्वाद उस रस की बिना पर था जो खुद उसकी योनि और सोनू के लिंग से निकला था।
सोनू ने शायद बिस्तर की चादर में ही पोंछ दिया था, लेकिन धोया तो नहीं ही था और इसीलिये उसे यह स्वाद आ रहा था, मगर जब तक वह इस विषय में सोच पाती, स्वाद जीभ पर घुल गया।
उसे उबकाई सी आई… बड़ी मुश्किल से उसने खुद को संभाला और लिंग बाहर निकाल कर थूकने लगी।
लेकिन उसे फिर से मुंह में लेने का लोभ संवरण न कर सकी… उसने पास पड़े अपने स्टोल से उसे पौंछा और फिर से हाथ में थाम लिया।
ऐसा नहीं था कि सोनू उसकी हरकत से बेखबर था लेकिन उसे अंदाज़ा था कि किसी भी लड़की के लिये मुख मैथुन पहली बार में आसान नहीं होता।
वह उसकी योनि को छेड़ते-गर्म करते उसे पूरा मौका दे रहा था कि वह अपने अंतर के विरोध और बाधाओं से पार पा ले।
शीला ने उसके लिंग को फिर से मुंह में लिया और दबा कर वैसी ही अवस्था में रुक कर यह देखने लगी कि अब उसका शरीर कैसे प्रतिक्रिया कर रहा है।
रोके रखने से तो कुछ नहीं हुआ मगर जैसे ही उसे चारों तरफ से जकड़ कर अंदर बाहर करने की कोशिश में ज्यादा हलक तक ले गई फिर उबकाई सी आई और उसने लिंग को फिर मुंह से निकाल लिया।
उसे इतनी समझ थी कि जो रास्ता उसने वर्जनाओं को तोड़ कर खोला था वहाँ ये सब क्रियाएँ सामान्य हैं और आज नहीं तो कल उसे सब करना ही है तो किसी ज़िद पर कायम क्या रहना।

उसने बाहर से ही उसके लिंग पर जीभ चला कर उसे चाटना शुरू किया।
ये शुरुआत करने के लिए उसे ज्यादा बेहतर तरीका लगा।
वह उसके अंडकोषों को सहलाती लिंग को बाहर से ही चरों तरफ से चाटने लगी।
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सोनू की जीभ उसके अंतर की गहराइयों में अब कुरेदने लगी थी जिससे उसकी रगों में उड़ती चिंगारियाँ अपने उफान पर पहुँच रही थीं।
थोड़ी देर की ऊपरी चटाई के बाद शीला ने उसे फिर मुंह के अंदर समेट लिया और इस बार ज्यादा गहराई तक ले जाने के बजाय आधे लिंग को ही चूसने लगी।
इस बार उसे उबकाई न आई और ये चूषण खुद उसे इतना भाया कि उसने सोनू के तिरछे शरीर को धकेलती उसे चित कर लिया और खुद अपने घुटने उसकी पसलियों के आसपास मोड़ते उसके ऊपर आ गई।
अब उसका मुंह ठीक सोनू के लिंग के ऊपर था और सोनू के मुंह के ठीक ऊपर उसकी योनि… सोनू ने उसके नितंबों को सहलाते उसे थोड़ा नीचे करके अपनी सुविधानुसार एडजस्ट कर लिया था।
जो 69 सिक्सटी नाइन की अवस्था उसने रानो की ज़ुबानी सुन कर अपनी कल्पना में ढाली थी, उसे खुद अपने ऊपर साकार कर लिया था।
इस घड़ी उसके जिस्म में फैलती कामाग्नि उस पर इतना हावी थी कि उसे परवाह नहीं थी कि उसे देखती उसकी बहन उसके बारे में क्या सोच रही होगी।
वह भरपूर ढंग से इस सुख को पा लेना चाहती थी, इसमें जी लेना चाहती थी।
और दोनों तरफ के भरपूर चूषण से उसमे फैली उत्तेजना का पारा जल्दी ही अपनी पराकाष्ठा पर पहुँचने लगा तो वह उठ के सीधी हो गई।
उसने खुद से अपनी योनि सोनू के लिंग के ऊपर पहंचाई और अपने हाथ से सोनू के लिंग को पकड़ कर अपने छेद से सटा लिया…
संकेत साफ़ था।
सोनू ने अपनी कमर ऊपर उठाते हुए अपने लिंग को ऊपर की तरफ उमसाया, जिससे शिश्नमुंड छेद पर दबाव बनाते अंदर धंस गया।
एक मादक, उच्च सिसकारी शीला के मुख से ख़ारिज हुई।
और वह ‘सीईईई’ करते उसपे बैठती चली गई। ऐसा लगा जैसे कोई गर्म सुलगता नश्तर उसके योनिद्वार को भेदता, कसी हुई दीवारों को रगड़ता अंदर पेवस्त हो गया हो।
जितनी तकलीफ का अनुभव हुआ उससे कहीं ज्यादा आनन्द की अनुभूति हुई।
एक अजीब सी अनुभूति उसे और हुई… जैसे उसकी योनि में खुजली सी हो रही हो और जिसे मिटाने के लिये उसे अपनी योनि को ऊपर नीचे करके उसे घर्षण देना होगा।
घर्षण के लिये उसे थोड़ा आगे सोनू के सीने की तरफ झुकना पड़ा और सहारे के लिये सोनू के सीने पर हाथ टिकाने पड़े और यूँ उसके भारी वक्ष बेसहारा हो कर झूलने लगे।
तब उसे घर्षण के लिये अपने शरीर को आगे पीछे करने में आसानी हुई जिससे योनि में पैदा होती वह कसक मिटने लगी। दीवारें कसावट लिये थीं इसलिए रगड़न भी भरपूर मिल रही थी।
यूँ जनाने आघातों पर उसके बेसहारा लटकते वक्ष आगे पीछे झूल रहे थे जिन्हें सोनू अपने हाथों में लेकर मसलने दबाने लगा था।
कुछ देर में उसे इस पोजेशन में असुविधा होने लगी तो वह सीधी हो कर बैठ गई… लिंग वैसे ही उसकी योनि में समाया हुआ था। उसने सोनू को बाहों से पकड़ कर ऊपर खींचा, जिससे सोनू उठ कर बैठ गया।
अब उनकी पोजीशन ऐसी थी कि सोनू दोनों पैर सीधे फैलाये बैठा हुआ था और शीला उसके लिंग को अपनी योनि में दबाये उसकी गोद में बैठी हुई थी।
वह सोनू के कंधों पर पकड़ बनाते ऊपर नीचे होने लगी जिससे घर्षण की निरंतरता फिर चालू हो गई।
वह जल्दी ही चरम पर पहुंचने लगी… जबकि सोनू अपने पर पूरा नियंत्रण रखे हुए था। अंतिम चरण में वह सोनू के मुंह पर अपने वक्ष मसलती ऊपर नीचे होने लगी थी।
और सोनू भी उन्हें मुंह से चूमता, काटता, दबाता अपने हाथों से उसकी पीठ, नितम्ब दबाने सहलाने और मसलने लगा था।
उस घड़ी जैसे दोनों एक दूसरे में समा जाने की जद्दोजहद में लग गये थे… और अंतिम सीढ़ी पर पहुंचते ही शीला के अंतर से एक झरना फूट पड़ा।
ज़ोर-ज़ोर से सिसकरते हुए वह सोनू के शरीर को अपने शरीर से रगड़ते भींचने लगी, योनि की मांसपेशियां फैलने सिकुड़ने लगीं और कंपकंपाहट के साथ वह स्खलित होने लगी।
जब उसकी मांसपेशियों में आया तनाव ख़त्म हुआ तो वह सोनू से बुरी तरह चिपटी हुई ढीली पड़ गई।
सोनू भी अब अनुभवी खिलाड़ी था, इस अवस्था को समझता था इसलिये उसने अपने शरीर को शिथिल कर लिया था और अपने हाथ की क्रियाएँ थाम ली थीं।
करीब तीन मिनट तक वे शिथिल से उसी अवस्था में बैठे रहे लेकिन सोनू का गर्म, कड़कता लिंग अभी भी उसकी योनि की दीवारों को यह अहसास करा रहा था कि खेल अभी ख़त्म नहीं हुआ।
धीरे धीरे सोनू ने फिर उसकी नितंबों को मुट्ठी में भींचते मसलना शुरू किया और शीला ने चेहरा ऊपर उठाया तो उसके होंठ थाम लिए और उन्हें भी चूसने लगा।
उसके होंठों के आसपास शीला की योनि का रस लगा था जिसका स्वाद शीला ने उसके होंठों के मर्दन के साथ ही अनुभव किया लेकिन इससे उसके मन में कोई घिन जैसी अनुभूति न पैदा हुई।
वह चुम्बन में सहयोग करने लगी और एक प्रगाढ़ चुम्बन ने उसकी रगों में वही रोमांच फिर पैदा कर दिया। वह सोनू की पीठ सहलाने लगी और सोनू थोड़ा तिरछा हो कर एक हाथ से उसके वक्ष मसलने लगा और दूसरे हाथ से उसके नितंबों की दरार को ऐसे रगड़ने, खोदने लगा कि उसकी उंगलियों की छुअन जब शीला के गुदाद्वार पर होती तो उसे बेचैन कर जाती।
फिर वह उसी छेद को उंगली से इस तरह खोदने लगा कि उंगली से घुसाने के लिए दबाव तो डालता मगर घुसाता नहीं।
एक अलग क़िस्म का रोमांच उसके नसों में चिटकन पैदा करने लगा।
इस चूषण और रगड़न से जब वह इस स्थिति में पहुंच गई कि खुद उसकी कमर में एक लयबद्ध थिरकन पैदा हो गई तो सोनू ने उसे अपनी गोद से हटा दिया।
वह फिर बिस्तर से नीचे उतर कर खड़ा हो गया और शीला को खींच कर किनारे कर लिया, अपनी तरफ शीला की पीठ करके, उसके कंधे पर दबाव बनाते, उसे इतना नीचे झुकाया कि वह बिस्तर से लग गई।
वह पहले भी यही करना चाहता था मगर शीला ने सहयोग नहीं किया था लेकिन अब वह उसके हाथ के इशारे पर नाच रही थी।
अब सूरते हाल ये थी कि वह बिस्तर के एकदम किनारे पर अपने घुटने टिकाये इस तरह झुकी हुई थी कि उसके नितम्ब हवा में ऊपर उठे थे मगर सीना, चेहरा बिस्तर से लगा था।
सोनू ने थोड़ा नीचे झुक कर उसकी बहती, चूती योनि को चाटना शुरू किया।
उसके मुंह से मदमस्त सी कराहें फूटने लगीं।
थोड़ी देर में ही वह फिर उत्कर्ष की बुलंदियों पर उड़ने लगी और तब सोनू ने खड़े होकर अपना लिंग उसके थोड़े खुल चुके छेद पर टिका कर दबाया और अंदर उतार दिया।
इस रुख में दीवारों की कसावट और ज्यादा महसूस हुई। और उसके लिंग की अंतिम चोट शीला को अपनी बच्चेदानी पर महसूस हुई।
वह उसके नितंबों को थपथपाते, भींचते लिंग को अंदर बाहर करने लगा। शीला यौनानन्द के समंदर में गोते लगाने लगी। दिमाग से सिवा इस आनन्द के और सबकुछ निकल गया।
आघातों की गति क्रमशः बढ़ती गई और एक नौबत यह भी आई की उसके धक्कों ने तूफानी गति पकड़ ली और कमरे में ज़ोरों की ‘थप-थप’ गूंजने लगी।
हर चोट पर शीला के मुंह से भिंची-भिंची आह-आह निकल रही थी जो धीरे-धीरे तेज़ होती जा रही थी।
फिर जब सोनू का इस आसन से दिल भर गया तो वह उसे लिये इस तरह बिस्तर पर आ गया कि लिंग बाहर न निकला और वैसे ही शीला के पैर सीधे हो गये।

अब वह उसकी पीठ की तरफ से उसे भोग रहा था।
उसकी एक टांग सोनू ने अपनी जांघ के ऊपर उठा दी थी, उसके शरीर को तिरछा कर लिया था जिससे योनिभेदन के साथ ही वह एक हाथ से उसके वक्ष मसल रहा था।
मसल क्या रहा था बल्कि पूरी ताक़त से भींच रहा था, नोच रहा था और साथ ही थोड़ा चेहरा आगे कर के, अपने दूसरे हाथ से उसका चेहरा घुमा कर होंठ भी बीच-बीच में चूस रहा था।
और इन्हीं आघातों में दोनों चरम पर पहुंच गये।
ज़ोर की आवाज़ों के साथ दोनों ही अकड़ गये… जिस सुख में शीला अकड़ गई, उसकी योनि ने सोनू के लिंग को भींच लिया और इसी संकुचन में सोनू भी फट पड़ा।
उसके लिंग ने सख्त और संकुचित होती दीवारों से अपना प्रतिरोध जताते हुए फूल कर ढेर सा वीर्य उगल दिया जिसकी गर्माहट शीला को एकदम अपने गर्भाशय में महसूस हुई।
पूरी तरह स्खलित हो कर वह अलग हो गये और हांफने लगे।
करीब दो मिनट बाद रानो ने सोनू को टहोका- चलो, अब जाओ, वरना चाचा जी खबर ले लेंगे।
थका थका सोनू अनमने भाव से उठ खड़ा हुआ और कपड़े पहनने लगा, जबकि शीला वैसे ही खामोश पड़ी रही।
कपड़े पहन कर वह बाहर निकल गया… साथ ही रानो भी।
सोनू को रुखसत कर के रानो वापस आई तो उसने कमरे की बत्ती जला दी।
तेज़ रोशनी ने शीला को चौंका दिया और वह उठ कर बैठ गई, उसने जल्दी से अपनी नाइटी दुरुस्त की और उठ खड़ी हुई।
जाने क्यों उसे इस घड़ी रानो ने निगाहें मिलाने में शर्म आ रही थी। वह उठ कर बाहर बाथरूम की तरफ चली गई।
जब तक वापस आई, बिस्तर की चादर चेंज कर के रानो बिस्तर की हालात सुधार चुकी थी और उसके लेटते ही उसने लाइट बंद कर दी और खुद भी आ लेटी।
‘ह्म्म्म… तो कैसा लगा?’ थोड़ी देर की ख़ामोशी के बाद उसने शीला को छेड़ा।
शीला जैसे इस सवाल से बचना चाहती थी।
थोड़ी देर चुप रही और बोली भी तो यह कि वह उन क्षणों में कैसी बेशर्म हो गई थी, सारी लोक लाज किनारे रख दी थी।
‘यह अच्छी बात थी कि तुमने जल्द ही इस बात को समझ लिया कि सम्भोग के इन पलों में खुद को समेटे रखना अपने आप से अन्याय करने जैसा है। ऐसे हालात में यही बेशर्मी इस सुख को दोगुना कर देती है। पर मेरा सवाल अभी भी है दी… कैसा लगा?’
‘हल्का हल्का दर्द महसूस हो रहा है, नीचे भी और ऊपर भी।’
‘हाँ वह रहेगी शुरुआत में, कल दर्द और सूजन की मैं दवा ला दूंगी, दो दिन में नार्मल हो जायेगा। आगे से दर्द ख़त्म हो जायेगा। पर यह कहो कि मज़ा आया या नहीं?’
‘बहुत…’ सिर्फ तीन अक्षर बोलने में उसे बड़ी मेहनत लगी और बोल कर शर्म ऐसी आई कि उसने चेहरा ही घुमा लिया।
‘आत्मा पर चढ़ा बोझ उतर गया?’
‘उतर गया या और भारी हो गया?’
‘यह तो देखने वाले के नज़रिये पर डिपेंड करता है कि वह आधा खाली गिलास देख रहा है या आधा भरा हुआ। दोनों ही नज़रिये अपनी जगह ठीक हैं पर ये आप पे डिपेंड है कि आप क्या देख रहे हैं।’
‘इतना आसान नहीं बचपन के संस्कारों से लड़ना और जीतना।’
‘हम जैसी अभिशप्त औरतों के लिये तो दुनिया में सांस लेना भी आसान नहीं दीदी। बस दिमाग में भरे हुए इस कचरे को निकाल फेंको कि हम कोई सामाजिक मर्यादा या वर्जना तोड़ रहे हैं। ये छोटे-छोटे शब्द जिनका वज़न पहाड़ों से भी ज्यादा है, उन लोगों के लिये हैं जिनके पास विकल्प हैं। हम तो वे विकल्पहीन औरतें हैं जिनके पास चुनने के लिये कुछ है ही नहीं।’
‘सुन… अगर गर्भ रह गया तो?’
‘गर्भ ओव्युलेशन पीरियड के दौरान सम्भोग करने से होता है और जहाँ तक मुझे पता है कि तुम्हारी माहवारी आये बीस दिन से ज्यादा हो चुके हैं इसलिये इसकी कोई सम्भावना नहीं।’
‘आज की बात नहीं… वैसे? जैसे तू करती है जब तब?’
‘मैं शुरू में गर्भनिरोधक गोलियाँ खाती थी लेकिन बाद में छोड़ दिया। ओव्यूलेशन पीरियड के दौरान हम अगर करते हैं तो कंडोम इस्तेमाल कर लेते हैं और जब रिस्क नही रहती तो ऐसे ही करते हैं।’
‘मगर…’
‘तुम चिंता न करो… मैं देख लूंगी। कुछ नहीं होगा। अब छोड़ो इन बातों को और जो पल अभी गुज़रे उन्हें याद करते सो जाओ। गुड नाइट!’
कह कर वह तो चुप हो गई।
मगर शीला को बहुत देर तक फिर भी नींद नहीं आई। उसे अभी भी लग रहा था जैसे सोनू उसके जिस्म का मर्दन कर रहा हो, वक्ष वैसे ही कसक रहे हों, योनि वैसे ही मसक रही हो।
जैसे तैसे करके बड़ी मुश्किल से वह सो सकी।
अगले दिन सुबह ही रानो से सोनू से दवा मंगा दी थी ताकि उसे किसी किस्म की परेशानी न हो और वह घर के काम निपटा के अपने काम पे निकल गई थी।
शाम को वापसी में सीधे अपने घर न जाकर रंजना के घर चली आई थी। चाचा जी तो अभी आये नहीं थे और चाची भी पड़ोस में गई हुई थीं।
अकेली रंजना ही थी और उसे रंजना से लिपट कर जी भर के रोने का मौका मिल गया था। रंजना उसके हालात से अनजान तो नहीं थी, सब समझती थी… खुद भी उससे अलग नहीं थी।
वह उसे संभालने की कोशिश करती रही… मगर शीला तब ही चुप हुई जब उसके मन में भरा सारा गुबार निकल गया।
जितनी परिपक्वता से रंजना ने रानो को समझाया था उसी परिपक्वता से उसने शीला से छोटे होने के बावजूद उसे भी समझाया और शीला को उससे बात करके बड़ी तसल्ली मिली।
उनकी बातें तब ही ख़त्म हुईं जब चाची आ गईं और फिर वह अपने घर आ गई।
बचे खुचे घर के सारे काम निपटा के दस बजे जब दोनों बहनें बिस्तर पे लेटी तो दिमाग में वही सिलसिला फिर चल निकला।
रानो की दी हुई दावा का असर हुआ था और उसे दर्द से राहत रही थी।
अब दिन भर के काम और थकन के बाद जब पीठ बिस्तर से लगी थी और तन को थोड़ा आराम मिला था तो ख्याली रौ फिर सहवास की कल्पनाओं की तरफ मुड़ चली थी।
कल अनअपेक्षित था लेकिन आज जैसे खुद वह उस सोनू का इंतज़ार कर रही थी जिससे उसका लगाव अब एक अलग शक्ल अख्तियार कर चुका था।
ग्यारह दस पर आज वह आया और फिर कल की ही तरह रानो उनके लिए नगण्य हो गई और दोनों ने एक भरपूर ढंग से सहवास किया जिसमे शीला दो बार स्खलित हुई और सोनू एक बार।
हालांकि शीला के लिए यह अनुभव नया था और वह इसे ज्यादा से ज्यादा पा लेना चाहती थी लेकिन रानो के लिये यह भी ज़रूरी था कि वह सोनू का इस वजह से भी ख्याल रखे कि उसे रानो को भी भोगना होता था।
इसलिये एक बार में ही उसे चलता कर दिया और दोनों सुकून से सो गई। रानो का तो नही कहा जा सकता मगर शीला तो वाकई सुकून से ही सोई थी।
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rangila
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Re: कामलीला

Post by rangila »

प्रथम सम्भोग के हिसाब से देखें तो तीसरा दिन तो रोज़ जैसा व्यस्तताओं से भरा गुज़रा और रात भी शांति से ही गुज़री क्योंकि आज सोनू को चाचा जी ने अपने साथ किसी काम से लगा लिया था तो उसके आने की सम्भावना ख़त्म हो गई थी।
और चौथी रात चाचा ने पुकार लगा दी।
दोनों बहनें साथ ही चाचा के कमरे में पहुंची थीं जहां चाचा अपना स्थूलकाय लिंग पाजामे से बाहर निकाले दरवाज़े की तरफ देख रहा था।
उन दोनों को देख उसके चेहरे पर चमक आ गई थी।
‘सुन रानो, अगर यह लाइट बंद कर दें तो? हमेशा धड़का लगा रहता है मन में कि बबलू या आकृति में से कोई नीचे न आकर देख ले जैसे तूने देख लिया था।’
‘दीदी, चाचा को अंधेरे की आदत नहीं। थोड़ी देर में ही उलझने लगेगा। उन दोनों की फ़िक्र मत करो, दोनों वक़्त से पहले ही समझदार हो चुके हैं। कभी ऐसी नौबत आ भी गई तो हमें समझेंगे।’
‘आज करें क्या चाचा के साथ?’
‘तुम नहीं दी, अभी दो दिन तो हुए तुम्हारी योनि खुले, अभी तो पगला जाओगी। कल बिस्तर से उठना दूभर हो जायेगा।’
बातें करती दोनों बिस्तर पे आ बैठीं और शीला नर्म हाथों से चाचा के लिंग को सहलाने लगी।
रानो ने तेल लेकर चाचा के लिंग पर चुपड़ दिया और थोड़ा शीला के हाथों में लगा कर थोड़ा खुद के हाथों में लगाने के बाद वह भी चाचा के लिंग से छेड़छाड़ करने लगी।
चाचा की आंतरिक भावनायें क्या थीं, यह उसके चेहरे या आँखों से परिलक्षित नहीं होती थीं लेकिन वह उन दोनों को देख रहा था जैसे समझने की कोशिश कर रहा हो।
वह किसी भी उम्र का हो दिमाग में किसी बच्चे जैसा था जिसे रिश्तों की समझ नहीं थी… बस जो शरीर को अच्छा लगता था उसे महसूस करना चाहता था।
जबकि वह दोनों भी पिछली बातों और बाधाओं से उबर कर अब सिर्फ उस सुख को ही अनुभव करना चाहती थीं जो ऐसे हालात में शरीर को मिलता था।
एक-एक हाथ से न सिर्फ वह चाचा के लिंग को सहला रही थीं— मसल रही थीं बल्कि उसके अंडकोषों को भी सहला रही थीं— दबा रही थीं।
थोड़ी देर बाद जब लिंग एकदम सख्त हो गया तो शीला ने ही पहल करते हुए थोड़ा तेल अपनी योनि में लगाया और नाइटी ऊपर उठाते चाचे के लिंग पर इस तरह बैठी कि लिंग लेटी अवस्था में चाचा के पेट से सटा हुआ था और उसके ऊपर शीला की योनि दोनों होंठ खोल कर इस तरह रखी थी कि ऊपर नीचे के क्रम में रगड़ने पर अंदरूनी भाग में घर्षण का अनुभव हो।
न सिर्फ उसे लिंग की नर्म गर्माहट मिले बल्कि चाचा को भी उसकी योनि के अंदरूनी भाग की गर्माहट और घर्षण मिलता रहे।
अब चाचा की आँख मुंद गईं और वह शायद उस रोमांच में डूब गया।
शीला अब आगे पीछे होने लगी थी और रानो पीछे से चाचा के अंडकोषों को सहला रही थी।
‘अभी सोनू आएगा न… क्यों उतावली हो रही हो दी?’ रानो ने हंसते हुए कहा।
‘तो क्या… दो बार नहीं मज़ा ले सकती।’ कहते हुए शीला ने महसूस किया कि जैसे अब वह भी किसी हद तक बेशर्म हो चली है।
‘ज़रूर लो… पर थोड़ा मेरा भी ख्याल करो…’
उसकी बात पर शीला के दिमाग को झटका सा लगा। उसे ख्याल आया कि उसे ख़ुशी देने के चक्कर में रानो ने अपनी ख़ुशी की क़ुर्बानी दी थी।
अगर सोनू शीला की वासना शांत कर रहा था तो रानो की प्यास का क्या?
वह चाचा के ऊपर से हट गई।
चाचा आँखें खोलकर उन्हें देखने लगा।
‘तुम आओ।’
पहले रानो ने उसकी आँखों में झांक कर ये सुनिश्चित किया कि उसे बुरा तो नहीं लगा था, फिर नकारात्मक प्रतिक्रिया मिलने पर वह अपनी नाइटी उठाते हुए उसी के अंदाज़ में चाचा के लिंग पर आ बैठी।
और आगे-पीछे सरकती घर्षण का मज़ा लेने लगी… देने लगी।
लेकिन थोड़ी देर के घर्षण ने ही रानो के शरीर में दौड़ते खून को उबाल दिया। कई दिनों की दबी हुई प्यास बुरी तरह भड़क उठी।
‘दीदी, मैं अब बिना किये नहीं रह सकती। तुम हेल्प करो।’ उसने बेबसी से शीला को देखा।
‘कैसे?’
वो चाचा के ऊपर झुकती हुई उसके सीने से इस तरह सट गई कि उसकी योनि ठीक चाचे के लिंग की नोक के ऊपर आ गई।
‘इसे छेद से सटाओ।’
पीछे से शीला को उसके बिना चर्बी के कसे हुए नितम्ब दिख रहे थे, नितंबों की दरार में गुदा का छेद दिख रहा था और उसके साथ लगी योनि भी पूरे आकार में दिख रही थी।
उसने चाचा के लिंग के अग्रभाग को उसकी योनि के कुछ हद तक खुले छेद से सटाया।
‘पकड़े रहना, इधर उधर मत होने देना।’
शीला ने सहमतिसूचक ‘हूँ’ की और रानो अपनी योनि को नीचे धकेलने लगी।
चाचा का शिश्नमुंड आलू की तरह बड़ा सा था जो ऐसे तो एकदम से घुस जाने लायक नहीं था।
शीला लिंग को थामे न होती तो तय था कि वह फिसल कर ऊपर नीचे चला जाता मगर चूँकि वह स्थिर था तो इधर उधर होने के बजाय छेद पर ही दबाव डाल रहा था और योनिमुख की दीवारें दबाव झेलती फैल रही थीं।
मांसपेशियों में इस तरह के खिंचाव की तकलीफ रानो ने पहले भी झेली थी, पर पहले किसी और ने दी थी और अब वह खुद से झेल रही थी।
फिर खिंचाव बढ़ते-बढ़ते एकदम शिश्नमुंड अंदर घुस पड़ा।
रोकते-रोकते भी रानो के मुंह से दबी-दबी चीख निकल गई… उसे ऐसा लगा था जैसे उसकी योनि फट ही गई हो।
तकलीफ कुछ इसी तरह की थी, शरीर ने हल्की ठंड के बावजूद पसीना छोड़ दिया।
वह खुद को स्थिर कर के दांत पे दांत जमाये, होंठ भींचे उस तकलीफ को बर्दाश्त करने लगी।
‘बहुत ज्यादा दर्द हो रही है क्या?’ शीला ने चिंतित स्वर में कहा।
‘हम्म… पर यह तो एक न एक दिन झेलनी ही है। तुम हाथ चलाती रहो वर्ना चाचा ने धक्के लगाने शुरू कर दिये तो मैं संभाल नहीं पाऊँगी।’
उसकी बात समझ के शीला जल्दी से लिंग पर हाथ चलाने लगी।
अब स्थिति यह थी कि चाचा का स्थूलकाय लिंग ऊपर की तरफ ऐसे रानो की योनि में फंसा हुआ था कि पीछे से देखने पर वो रानो की तीसरी टांग जैसा लग रहा था।
नीचे हस्तमैथुन के अंदाज़ में शीला हाथ ऊपर नीचे कर रही थी और रानो एकदम स्थिर उस बड़े से शिश्नमुंड को अपनी योनि में एडजस्ट करने की कोशिश कर रही थी।
फिर खुद से अपना एक हाथ नीचे ले जाकर अपनी ही योनि के भगांकुर को सहलाने रगड़ने लगी, जिससे उसमें वासना की तरंगें फिर उसी तेज़ गति से दौड़ें जैसे अभी दौड़ रही थीं।
उसे देख शीला भी अपने दूसरे हाथ से अपनी योनि सहलाने मसलने लगी।
थोड़ी देर की कोशिशों के बाद जब रानो इस प्रवेश आघात के झटके से उबर पाई तो उसने हाथ योनि से हटा कर चाचा की पसलियों के साइड में टिका लिया।
और अपनी योनि को धीरे-धीरे नीचे सरकाने लगी… ऐसा लगा जैसे एक विशालकाय गर्म सलाख उसकी योनि की संकुचित दीवारों को अपनी रगड़ से परे हटाती अंदर धंसती जा रही थी।

तकलीफ तो निश्चित ही थी मगर इसे पार कर के ही आनन्द के स्रोत को पाया जा सकता था।
उसे योनि नीचे दबाते देख शीला अपना हाथ नीचे करके अंडकोषों पे ले आई।
और चाचा को चूँकि पहली बार योनि के अंदर की गर्म भाप का आनन्द मिल रहा था तो अब उसकी साँसें भी भारी हो चली थीं।
रानो ने योनि उस अंतिम सिरे तक नीचे सरकाई जहां लिंग उसकी बच्चेदानी से टकराता पेट में गड़ने की अनुभूति देने लगा।
फिर अंतिम बैरियर तक पहुंच कर वह थम गई।
‘कितना बचा?’ उसने गर्दन घुमा कर शीला को देखा।
‘एक चौथाई… तीन चौथाई अंदर है।’
‘बस, इससे ज्यादा और नहीं अंदर ले सकती। यह मेरी अंतिम हद है।’
‘इससे क्या चाचे को कोई फर्क पड़ेगा?’
‘पता नहीं— पड़ना तो नहीं चाहिये लेकिन क्या पता, कहीं ये पूरा घुसाने पर तुल गया तो मैं मारी जाऊँगी। तुम नीचे के हिस्से पर हाथ चलती रहना।’
‘ठीक है।’
अपनी अंतिम सीमा तक लिंग को अपनी योनि में समाहित कर के थोड़ी देर तक वह खिंची फैली योनि की दीवारों को मौका देती रही कि वे उसे ठीक से स्वीकार कर लें।
फिर धीरे-धीरे करके वह ऊपर नीचे होने लगी।
लिंग जैसे उसकी योनि में एकदम फंसा हुआ था जिसे ऊपर नीचे करने में भी रानो को तकलीफ महसूस हो रही थी, लेकिन अंदर जैसे जैसे चिकनाई और मांसपेशियों का लचीलापन बढ़ेगा उसे राहत हो जाएगी, यह उसे पता था।
वासना में सराबोर घड़ियां गुज़रती रहीं।
और धीरे-धीरे जब योनि-रस इतना हो गया कि समागम में आसानी हो सके तो मांसपेशियां भी ढीली पड़ गईं और वो तेज़ गति से धक्के लगाने लगी।
लेकिन चूंकि औरत का शरीर प्राकृतिक रूप से आघात करने के लिये नहीं बल्कि आघात सहने के लिये बना होता है तो वह जल्दी ही थक भी गई और रुक कर हांफने लगी।
‘बड़ी मुश्किल है… यह काम मर्दों का होता है, खुद करो तो कितनी जल्दी थकन आ जाती है।’ वह हांफते हुए बोली।
रुकते वक़्त उसने योनि ऊपरी सिरे पर पहुंचा ली थी जिससे शीला नीचे के लिंग पर हाथ चला सके और शीला वही कर रही थी।
‘किसी मंदबुद्धि के साथ सम्भोग करने में बड़ी मुश्किलें हैं। मैं ऊपर बैठ कर करुं तो थोड़ी आसानी तो होगी मगर साथ ही डर भी है कि ज्यादा घुसने पर तकलीफ देगा।’
पर थोड़ी देर बाद उसने किया यही।
आगे पीछे होने से ज्यादा आसान था ऊपर नीचे होना।
मगर यहां अपने घुटनों पर खास ज़ोर देना था कि कहीं एकदम पूरा ही न बैठ जाये और लिंग की लंबाई उसे तकलीफ दे जाये।
पर ऐसा कुछ न हुआ और वह ठीक ढंग से सम्भोग करने में कामयाब रही।
ये और बात थी कि वह इस तरह चरम तक तो पहुंच गई मगर चरमानन्द न पा सकी।
जबकि चाचा पहली बार के योनि से समागम की गर्माहट बहुत ज्यादा देर न झेल सका और जल्दी ही स्खलित हो गया।
उसे अच्छे से स्खलित करा के वह एकदम से उस पर से हट कर, दोनों टांगें फैला कर साइड में चित लेट गई।
‘दीदी, जल्दी से उंगली से कर दो। मेरा भी होने वाला है।’
शीला, जो अब तक उन्हें देखती अपनी योनि सहलाने में लगी थी, एकदम उठ कर उसकी टांगों के बीच में आ गई और बीच वाली उंगली रानो की योनि में घुसा कर अंदर बाहर करने लगी।
उसकी योनि में भरा चाचा का वीर्य जो पहले से बह रहा था… और तेज़ी से बाहर आने लगा।
‘दीदी, दो उंगलियों से करो।’ रानो अपने स्तन मसलते हुए बोली।
शीला ने एक की जगह दो उंगलियां घुसा दीं और तेज़ी से अंदर बाहर करने लगी।
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