बाप के रंग में रंग गई बेटी complete

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shubhs
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Re: बाप के रंग में रंग गई बेटी

Post by shubhs »

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Abhishekk gupta

Re: बाप के रंग में रंग गई बेटी

Post by Abhishekk gupta »

Update plzz
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Kamini
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Re: बाप के रंग में रंग गई बेटी

Post by Kamini »

shubhs wrote: 12 Sep 2017 19:43 मस्त अपडेट
Abhishekk gupta wrote: 12 Sep 2017 23:38 Update plzz
thanks
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Kamini
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Re: बाप के रंग में रंग गई बेटी

Post by Kamini »

इधर जयसिंह अब अच्छी तरह से जान चुका था कि इस समय उसकी बेटी की नजर उस के नंगे लंड पर टिकी हुई है, और जिस मदहोशी और खुमारी के साथ मनिका लंड को देख रही थी ,जयसिंह को लगने लगा था कि आज बात जरूर बन जाएगी।



मनिका उत्तेजना के परम शिखर पर विराजमान हो चुकी थी, मनिका और जयसिंह दोनों छत पर भीग रहे थे, अंधेरा इस कदर छाया हुआ था कि एक दूसरे को देखना भी नामुमकिन सा लग रहा था, वो तो रह रहकर बिजली चमकती तब जाकर वो एक दूसरे को देख पाते, बारिश जोरों पर थी ,बादलों की गड़गड़ाहट बढ़ती ही जा रही थी, यह ठंडी और तूफानी बारिश दोनों के मन में उत्तेजना के एहसास को बढ़ा रहे थी, मनिका की सांसे तो चल नहीं बल्कि दौड़ रही थी, इधर जयसिंह भी बेताब था, तड़प रहा था ,उसका लंड अभी भी टावल से बाहर था, जिसे देखने के लिए मनिका की आंखें इस गाढ़ अंधेरे में भी तड़प रही थी लेकिन वो ठीक से देख नहीं पा रही थी, जयसिंह इस कदर उत्तेजित था कि उसकी लंड की नसें उभर सी गई थी, उसे ऐसा लगने लगा था कि कहीं यह नसे फट ना जाए,

"मनिका, अब तो यहां तो बहुत अंधेरा हो गया है,कुछ भी देख पाना बड़ा मुश्किल हो रहा है, अब हमें नीचे चलना चाहिए, वैसे भी कपड़े तो पूरे भीग ही चुके है" जयसिंह भारी सांसो के साथ बोला

"हां पापा, अब हमें नीचे चलना होगा" मनिका ने भी जयसिंह की हां में हाँ मिलाई

इतना कहते हुए मनिका जयसिंह की तरफ बढ़ी ही थी कि उसका पैर हल्का सा फिसला और वो जयसिंह की तरफ गिरने लगी, तभी अचानक जयसिंह ने मनिका को अपनी बाहों में थाम लिया , मनिका गिरते-गिरते बची थी , ये तो अच्छा था कि वो जयसिंह के हाथों में गिरी थी वरना उसे चोट भी लग सकती थी,


अब मनिका का अधनंगा बदन अपने पापा के बदन से बिल्कुल सट गया था, दोनों के बदन से बारिश की बूंदें नीचे टपक रही थी, हवा इतनी तेज थी कि दोनों अपने आप को ठीक से संभाल नहीं पा रहे थे, अचानक इस तरह सटने से जयसिंह का तना हुआ लंड मनिका की जांघों के बीच सीधे उसकी बुर वाली जगह पर हल्का सा दबाव देते हुए पैंटी समेत ही धंस गया ,

अपनी बुर पर अपने पापा के लंड के सुपाड़े का गरम एहसास होते ही मनिका एकदम से गरम हो कर मस्त हो गई, आज दूसरी बार एकदम ठीक जगह लंड की ठोकर लगी थी, लंड की रगड़ बुर पर महसुस होते ही मनिका इतनी ज्यादा गर्म हो गई थी कि उसके मुंह से हल्की सी सिसकारी छूट पड़ी , लेकिन शायद तेज बारिश की आवाज में वह सिसकारी दब कर रह गई,


मनिका को ये आभास बड़ा ही अच्छा लग रहा था , वो तो ऊपर वाले का शुक्र मनाने लगी कि वो फिसल कर बिल्कुल ठीक जगह पर गिरी थी,

"अच्छा हुआ पापा, आपने मुझे थाम लिया, वरना मैं तो गिर ही गई होती" मनिका ने जयसिंह की आंखों में झांककर कहा

"मेरे होते हुए तुम कैसे गिर सकती है मनिका" जयसिंह ने भी प्यार से जवाब दिया

जयसिंह अपनी बेटी को थामने से मिले इस मौके को हाथ से जाने नही देना चाहता था, इसलिए उसने मनिका को अभी तक अपनी बाहों में ही भरा हुआ था, मनिका भी शायद इसी मौके की ताक में थी, तभी तो अपने आप को अपने पापा की बाहों से अलग ही नहीं कर रही थी


और जयसिंह भी बात करने के बहाने अपनी कमर को और ज्यादा आगे की तरफ बढ़ाते हुए अपने लंड को मनिका की बुर वाली जगह पर दबा रहा था।

जयसिंह का सुपाड़ा मनिका की चुत के ऊपरी सतह पर ही था, लेकिन मनिका के लिए तो इतना भी बहुत था , आज महीनों के बाद आखिर उसके पापा का लंड उसकी बुर के मुहाने तक पहुंच ही गया था, इसलिए तो मनिका एकदम से मदहोश हो गई ,उसके पूरे बदन में एक नशा सा छाने लगा और वो खुद ही अपने पापा को अपनी बाहों में भींचते हुए अपनी बुर के दबाव को जयसिंह के लंड पर बढ़ाने लगी, दोनों परम उत्तेजित हो चुके थे, मनिका की कसी हुई चुत और जयसिंह के खड़े लंड के बीच सिर्फ एक पतली सी महीन पैंटी की ही दीवार थी, वैसे ये दीवार पैंटी की नहीं बल्कि शर्म की थी, क्योंकि उसकी बेटी की जगह अगर कोई और होती तो इस दीवार को जयसिंह अब तक खुद अपने हाथों से ढहा चुका होता और मनिका भी खुद ही इस दीवार को ऊपर उठा कर लंड को अपनी गरम चुत में ले चुकी होती



पर सब्र का बांध तो टूट चुका था, लेकिन शर्म का बांध टूटना बाकी था, बाप बेटी दोनों चुदवासे हो चुके थे,एक चोदने के लिए तड़प रहा था तो एक चुदवाने के लिए तड़प रही थी, दोनों की जरूरते एक थी, मंजिले एक थी और तो और रास्ता भी एक ही था, बस उस रास्ते के बीच में शर्म मर्यादा और संस्कार के रोड़े पड़े हुए थे।


बाप बेटी दोनो एक दूसरे में समा जाना चाहते थे, दोनों एक दूसरे की बाहों में कसते चले जा रहे थे , बारिश अपनी ही धुन में नाच रही थी , मनिका की बड़ी बड़ी चूचियां उसके पापा के सीने पर कत्थक कर रहीे थी, जयसिंह का सीना भी अपनी बेटी की इन चुचियों को खुद में समा लेना चाहता था, तेज बारिश और हवा के तेज झोंकों में जयसिंह की टॉवल उसके बदन से कब गिर गया उसे पता ही नहीं चला ,अब जयसिंह एकदम नंगा अपनी बेटी को अपनी बाहों में लिए खड़ा था, उसका तना हुआ लंड उसकी बेटी की बुर में पैंटी सहित धंसा हुआ था,


मनिका की हथेलियां अपने पापा की नंगी पीठ पर फिर रहीे थी, उसे तो यह भी नहीं पता था कि जयसिंह अब पूरी तरह से नंगा होकर उससे लिपटा पड़ा है, मनिका की बुर एकदम गर्म रोटी की तरह फूल चुकी थी, बुर से मदन रस रिस रहा था जो कि बारिश के पानी के साथ नीचे बहता चला जा रहा था, तभी आसमान में इतनी तेज बादल की गर्जना हुई कि दोनोे को होश आ गया , दोनों एक दूसरे की आंखों में देखे जा रहे थे लेकिन अंधेरा इतना था कि कुछ साफ साफ दिखाई नहीं दे रहा था, वो तो बीच बीच मे बिजली के चमकने हल्का-हल्का दोनों एक दूसरे के चेहरे को देख पा रहे थे,

मनिका अब मस्त हो चुकी थी, चुत में लंड लेने की आकांक्षा बढ़ती ही जा रही थी, वो जानती थी कि अगर जयसिंह की जगह अगर कोई और लड़का होता तो इस मौके का भरपूर फायदा उठाते हुए कब का उसकी प्यासी चुत को अपने लंड से भर चुका होता


पर मनिका इस मौके को हाथ से जाने नहीं देना चाहती थी ,इधर बारिश रुकने का नाम ही नहीं ले रही थी ,बारिश पल-पल तेज होती जा रही थी, छोटी-छोटी बुंदे अब बड़ी होने लगी थी, जो बदन पर पड़ते ही एक चोट की तरह लग रही थी, मनिका कोई उपाय सोच रही थी क्योंकि उससे अब रहा नहीं जा रहा था ,बारिश के ठंडे पानी ने उसकी चुत की गर्मी को बढ़ा दिया था,

मनिका अपने पापा की नंगी पीठ पर हाथ फिराते हुए बोली "अच्छा हुआ पापा कि आप छत पर आ गए, वरना मुझे गिरते हुए कौन संभालता"



इतना कहते हुए वो एक हाथ से अपनी पैंटी की डोरी को खोलने लगी,उसने आज स्लीव्स वाली पैंटी पहनी थी जिसके दोनों ओर डोरिया होती है, वो जानती थी की डोरी खुलते ही उसे पैंटी उतारने की जरूरत भी नहीं पड़ेगी क्योंकि बारिश इतनी तेज गिर रही थी कि बारिश की बोछार से खुद ही उसकी पैंटी नीचे सरक जाएगी, और यही सोचते सोचते अगले ही पल उसने पैंटी की डोरी को खोल दिया,


इधर जयसिंह मनिका को जवाब देते हुए बोला " मैं इसलिए तो यहां आया था बेटी कि मुसीबत में मैं काम आ सकुं, और तुम्हें गिरते हुए बचा कर मुझे अच्छा लग रहा है"
अपनी पापा की बात सुनकर मनिका खुश हो गई और लंड की रगड़ से एकदम रोमांचित हो गई, और रोमांचित होते हुए अपने पापा के गाल को चुमने के लिए अपने होठ आगे बढ़ा दिए, पर अंधेरा इतना गाढ़ा था कि एक दूसरे का चेहरा भी उन्हें नहीं दिखाई दे रहा था इसलिए मनिका के होठ जयसिंह के गाल पर ना जाकर सीधे उसके होंठों से टकरा गए,

होठ से होठ का स्पर्श होते ही जयसिंह के साथ साथ खुद मनिका भी काम विह्ववल हो गई, जयसिंह तो लगे हाथ गंगा में डुबकी लगाने की सोच ही रहा था इसलिए तुरंत अपनी बेटी के होठों को चूसने लगा, बारिश का पानी चेहरे से होते हुए उनके मुंह में जाने लगा, दोनों मस्त होते जा रहे थे, जयसिंह तो पागलों की तरह अपनी बेटी के गुलाबी होंठों को चुसे जा रहा था, और मनिका भी अब सारी लाज शरम छोड़ कर अपने पापा का साथ देते हुए उनके होठों को चूस रही थी,

यहां चुंबन दुलार वाला चुंबन नहीं था बल्कि वासना में लिप्त चुंबन था, दोनों चुंबन में मस्त थे और धीरे-धीरे पानी के बहाव के साथ साथ मनिका की पैंटी भी उसकी कमर से नीचे सरकी जा रही थी, या यूँ कहे कि बारिश का पानी धीरे-धीरे मनिका को नंगी कर रहा था,

दोनों की सांसे तेज चल रही थी जयसिंह अपनी कमर का दबाव आगे की तरफ अपनी बेटी पर बढ़ाए ही जा रहा था और उसका तगड़ा लंड बुर की चिकनाहट की वजह से खिसकती हुई पैंटी सहित हल्के हल्के अंदर की तरफ सरक रहा था, दोनों का चुदासपन बढ़ता जा रहा था कि तभी दोबारा जोर से बादल गरजा और उन दोनों की तंद्रा भंग हो गई,

मनिका की सांसे तीव्र गति से चल रही थी, वो लगभग हांफ सी रही थी, पर इस बार वो खुद को जयसिंह की बाहों से थोड़ा अलग करते हुए बोली-
"पापा शायद यह बारिश रुकने वाली नहीं है , अब हमें नीचे चलना चाहिए"

वैसे तो जयसिंह का नीचे जाने का मन बिल्कुल भी नहीं था, उसे छत पर ही मजा आ रहा था, उसने एक कोशिश करते हुए कहा " हां बेटी, लेकिन कैसे जाएंगे , यहां इतना अंधेरा है कि हम दोनो एक दूसरे को भी नहीं देख पा रहे हैं, हम दोनों का बदन भी पानी से पूरी तरह से भीग चुका है, ऐसे में सीढ़ियां चढ़कर नीचे उतर कर जाना खतरनाक हो सकता है, हम लोग फिसल भी सकते हैं और वैसे भी सीढ़ी भी दिखाई नहीं दे रही है"

मन तो मनिका का भी नहीं कर रहा था नीचे जाने का, लेकिन वह जानती थी कि अगर सारी रात भी छत पर रुके रहे तो भी बस बाहों में भरने के सिवा आगे बढ़ा नही जा सकता, और वैसे भी उसने आगे का प्लान सोच रखा था ,इसलिए नीचे जाना भी बहुत जरूरी था

"पर नीचे तो चलना ही पड़ेगा ना पापा, वरना हमे सर्दी लग जायेगी, नीचे चलकर आप भी गरम पानी से नहा लीजिये फिर मैं भी नहा लूंगी" मनिका इतना कह ही रही थी कि उसकी पैंटी अब सरक कर घुटनों से नीचे जा रही थी , वो मन ही मन बहुत खुश हो रही थी, क्योंकि नीचे से वह पूरी तरह से नंगी होती जा रही थी, माना कि उसके पापा उसे नंगी होते हुए देख नहीं पा रहे थे, लेकिन फिर भी अंधेरे मे ही सही अपने पापा के सामने नंगी होने में उसे एक अजीब सी खुशि महसूस हो रही थी
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Kamini
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Re: बाप के रंग में रंग गई बेटी

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"पर नीचे तो चलना ही पड़ेगा ना पापा, वरना हमे सर्दी लग जायेगी, नीचे चलकर आप भी गरम पानी से नहा लीजिये फिर मैं भी नहा लूंगी" मनिका इतना कह ही रही थी कि उसकी पैंटी अब सरक कर घुटनों से नीचे जा रही थी , वो मन ही मन बहुत खुश हो रही थी, क्योंकि नीचे से वह पूरी तरह से नंगी होती जा रही थी, माना कि उसके पापा उसे नंगी होते हुए देख नहीं पा रहे थे, लेकिन फिर भी अंधेरे मे ही सही अपने पापा के सामने नंगी होने में उसे एक अजीब सी खुशि महसूस हो रही थी


मनिका ने अपनी पैंटी को पैरों का ही सहारा देकर टांग से निकाल दिया, अब मनिका कमर के नीचे बिल्कुल नंगी हो चुकी थी, उसके मन में यह इच्छा जरूर उठे जा रहीे थीे कि काश उसे नंगी होते हुए उसके पापा देख पाते तो शायद वो कुछ आगे करते, लेकिन फिर भी जो उसने सोच रखा था वो अगर कामयाब हो गया तो आज की ही रात दोनों एक हो जाएंगे,

मनिका के बदन पर मात्र टीशर्ट ही रह गई थी बाकी तो वो बिल्कुल नंगी हो चुकी थी, जयसिंह तो पहले से ही एकदम नंगा हो चुका था, आने वाले तूफान के लिए दोनों अपने आपको तैयार कर रहे थे, इसीलिए तो मनिका ने अपने बदन पर से पैंटी उतार फेंकी थी और जयसिंह बारिश की वजह से नीचे गिरी टावल को उठाकर लपेटने की बिल्कुल भी दरकार नहीं ले रहा था,
इधर बारिश थी की थमने का नाम ही नहीं ले रही थी, मनिका नीचे जाने के लिए तैयार थी ,बादलों की गड़गड़ाहट से मौसम रंगीन बनता जा रहा था, तेज हवा दोनों के बदन में सुरसुराहट पैदा कर रही थी,

मनिका ने नीचे उतरने के लिए सीढ़ियों की तरफ कदम बढ़ाएं और एक हाथ से टटोलकर जयसिंह को इशारा करते हुए अपने पीछे आने को कहा, क्योंकि सीढ़ियों वाला रास्ता बहुत ही संकरा था वहां से सिर्फ एक ही इंसान गुजर सकता था इसलिए उसने जयसिंह को अपने पीछे ही रहने के लिए कहा,

अंधेरा इतना था कि उसने खुद जयसिंह का हाथ पकड़कर अपने कंधे पर रख दिया ताकि वो धीरे धीरे नीचे आ सके, मनिका सीढ़ियों के पास पहुंच चुकी थी, बारिश का शोर बहुत ज्यादा था, अब वो सीढ़ियों से नीचे उतरने वाली थी इसलिए उसने जयसिंह से कहा-
"पापा संभलकर, अब हम नीचे उतरने जा रहे हैं ,अगर मैं गिरने लगूं तो मुझे पीछे से पकड़ लेना"

जयसिंह ने बस सर हिलकर हामी भर दी, अब जयसिंह और मनिका धीरे धीरे सीढ़िया उतरने लगे, मनिका आगे आगे और उसके पीछे पीछे जयसिंह, मनिका आराम से दो तीन सीढ़ियां उतर गई, और जयसिंह भी बस कंधे पर हाथ रखे हुए नीचे आराम से उतर रहा था, मनिका तो तड़प रही थी ,उसे जल्द ही कुछ करना था वरना यह मौका हाथ से जाने वाला था ,दोनों अगर ऐसा ही चलते रहे तो रहा है तो यह सुनहरा मौका हाथों से चला जाएगा, इसलिए मनिका ने अब सीढ़ी पर फिसलने का बहाना करते हुए आगे की तरफ झटका खाया
" ऊईईईई...मां ....गई रे....." मनिका ने जानबूझकर गिरते हुए कहा

इतना सुनते ही जयसिंह ने बिना वक्त गवाएं झट से अपनी बेटी को पीछे से पकड़ लिया, अब जयसिंह का बदन अपनी बेटी के बदन से बिल्कुल सटा हुआ था, इतना सटा हुआ कि दोनों के बीच में से हवा को आने जाने की भी जगह नहीं थी, लेकिन अपनी बेटी को संभालने संभालने मे उसका लंड जोकी पहले से ही टनटनाया हुआ था वो उसकी बेटी की बड़ी बड़ी भरावदार गांड की फांको के बीच जाकर फंस गया, जयसिंह के बदन मे आश्चर्य के साथ सुरसुराहट होने लगी,

उसे आनंद तो बहुत आया लेकिन थोड़ी हैरत भी हुई, क्योंकि थोड़ी देर पहले उसकी बेटी ने पैंटी पहनी हुई थी, लेकिन इस वक्त सीढ़ियों से उतरते समय जिस तरह से उसका लंड सटाक करके गांड की फांकों के बीच फस गया था , इससे तो यही लग रहा था उसे कि उसकी बेटी ने पैंटी नहीं पहनी है, जयसिंह को अजीब लग रहा था,

तभी मनिका बीच मे ही बोल पड़ी- "ओहहहहह.... पापा आपने मुझे फिर से एक बार गिरने से बचा लिया,आपका बहुत-बहुत शुक्रिया पापा"

"इसमें शुक्रिया कैसा बेटी, यह तो मेरा फर्ज है" जयसिंह ने अभी भी लंड मनिका की जांघो में ही फसा रखा था

मनिका कुछ देर तक सीढ़ियों पर खड़ी रही और जयसिंह भी उसे अपनी बाहों में लिए खड़ा था , उसका लंड मनिका की भरावदार गांड में फंसा हुआ था, और ये बात मनिका बहुत अच्छी तरह से जानतीे थी, वो इसी लिए तो जान बूझकर अपनी पैंटी को छत पर उतार आई थी, क्योंकि वो जानती थी की सीढ़ियों से उतरते समय कुछ ऐसा ही दृश्य बनने वाला था, मनिका के साथ साथ जयसिंह की भी सांसे तीव्र गति से चल रही थी,

जयसिंह तो अपनी बेटी की गांड के बीचो बीच लंड फंसाए आनंदीत हो रहा था और आश्चर्यचकित भी हो रहा था, उसने अपनी मन की आशंका को दूर करने के लिए एक हाथ को अपनी बेटी के कमर के नीचे स्पर्श कराया तो उसके आश्चर्य का ठिकाना ही ना रहा, उसकी हथेली मनिका की जांघो पर स्पर्श हो रही थी और जांघो को स्पर्श करते ही वो समझ गया कि उसकी बेटी कमर से नीचे बिल्कुल नंगी थी,

उसके मन में अब ढेर सारे सवाल पैदा होने लगे कि
" यह पैंटी कैसे उतरी, क्योंकि मेरी आंखों के सामने तो मनिका ने सिर्फ अपनी स्कर्ट को ही उतारी थी, तो यह पैंटी कब और कैसे उतर गई, कहीं मनिका अंधेरे का फायदा उठाकर अपनी पैंटी उतार कर नंगी तो नही हो गई, क्योंकि बिना पैंटी की डोरी खोलें ऐसी तेज बारिश में भी पैंटी अपने आप उतर नहीं सकती थी, इसलिए शायद जानबुझकर मनिका ने अपनी पैंटी की डोरी खोलकर पैंटी उतार दी होगी, इसका मतलब यही कि मनिका भी कुछ चाह रही है, कहीं ऐसा तों नहीं कि मनिका भी इस मौके का फायदा उठाना चाहती है, जो भी हो उसमें तो मेरा ही फायदा है" यही कशमकश जयसिंह के मन में चल रही थी

********************

मजा दोनों को आ रहा था, खड़े लंड का यूँ मस्त मस्त भरावदार गांड में फसने का सुख चुदाई के सुख से कम नहीं था,

इधर मनिका तीन सीढ़ियां ही उतरी थी और वो वहीं पर ठीठक गई थी, अपने पिता के लंड का स्पर्श अपनी जाँघो पर होते ही मनिका को समझते देर नहीं लगी की उसकी चाल अब बिल्कुल सही दिशा में जा रही है, अपने पापा के लंड की मजबूती का एहसास उसे अपनी गांड की दरारो के बीच बराबर महसूस हो रहा था, बादलों की गड़गड़ाहट अपने पूरे शबाब में थी, बारिश का जोर कम होने का नाम ही नहीं ले रहा था, कुल मिलाकर माहौल एकदम गरमा चुका था, बारिश की ठंडी ठंडी हवाओं के साथ पानी की बौछार मौसम में कामुकता का असर फैला रही थी, मनिका की साँसे भारी हो चली थी, रह-रहकर उसके मुंह से गर्म सिसकारी फूट पड़ रही थी, लेकिन बारिश और हवा का शोर इतना ज्यादा था कि अपनी बेटी की गरम सिसकारी इतनी नजदीक होते हुए भी जयसिंह सुन नहीं पा रहा था,


तभी मनिका अपने पापा से बोली,
" मुझे कसकर पकड़े रहना पापा, क्योंकि छत का पानी सीढ़ीयो से भी बह रहा है, और हम दोनों भीगे हुए हैं, सो पैर फिसलने का डर ज्यादा है, इसलिए निसंकोच मुझे पीछे से कस के पकड़े रहना"

पर मनिका का इरादा कुछ और ही था , वो तो बस पैर फीसलने का बहाना बना रही थी, आज मनिका भी अपने पापा के साथ हद से गुजर जाना चाहती थी, इधर जयसिंह ने भी अपनी बेटी के कहने के साथ ही पीछे से अपने दोनों हाथों को मनिका के कमर के ऊपर से कसकर पकड़ लिया , इस बार कस के पकड़ते ही उसने अपनी कमर का दबाव अपनी बेटी की गांड पर बढ़ा दिया, जिससे उसके लंड का सुपाड़ा सीधे उसकी गांड की भूरे रंग के छेंद पर दस्तक देने लगा, उस भूरे रंग के छेद पर सुपाड़े की रगड़ का गरम एहसास होते ही मनिका के बदन में सुरसुरी सी फैल़ गई, एक बार तो उसका बदन कांप सा गया, मनिका के बदन में इतनी ज्यादा उत्तेजना भर चुकी थी कि उसके होठों से शब्द भी कपकपाते हुए निकल रहे थे
,
वो कांपते स्वर में बोली,
"पपपपप....पापा ... कस के पकड़ रखा है ना

" हहहह...हां बेटी" जयसिंह की भी हालत ठीक उसकी बेटी की तरह ही थी , उसके बदन में भी उत्तेजना का संचार तीव्र गति से हो रहा था, खास करके उसके तगड़े लंड में जो की अपनी ही बेटी की गांड की दरार में उस भूरे रंग के छेद पर टिका हुआ था ,जहां पर अपने पापा के लंड का स्पर्श पाकर मनिका पूरी तरह से गनगना गई थी, मनिका की बुर से पानी अब रीस नहीं बल्कि टपक रहा था, मनिका पूरी तरह से कामोत्तेजना में सराबोर हो चुकी थी, उसकी आंखों में नशा सा चढ़ने लगा था, बरसात की भी आवाज किसी रोमेंटिक धुन की तरह लग रही थी,


मनिका ने अपने पापा का जवाब सुनकर अपने पैर सीढ़ियों पर उतारने के लिए आगे बढ़ाए, अब तक तो जयसिंह का लंड मनिका की गांड में ही फंसा हुआ था, लेकिन जैसे ही मनिका ने अपने पैर को अगली सीढी पर रखा, उसी के साथ साथ जयसिंह ने भी अपने कदम बढ़ाए , अपनी बेटी को पीछे से बाहों में जकड़े होने की वजह से उसका लंड गांड की गहरी दरार से सरक कर गांड की ऊपरी सतह से सट गया, जयसिंह अपनी बेटी को पीछे से कस के पकड़े हुए था, उसकी बेटी भी बार बार कसके पकड़े रहने की हिदायत दे रही थी, और मन ही मन अपने पापा के भोलेपन को कोस रही थी क्योंकि इतने में तो, कोई भी होता वो तो अपने लंड को थोड़ा सा हाथ लगाकर उसकी बुर में डाल चुका होता,
मनिका अपने पापा को भोला समझ रही थी लेकिन उसे क्या मालूम था कि वो इससे पहले कई शिखरों की चढ़ाई कर चुका था,

वो दोनों ऐसे ही एक दूसरे से चिपके हुए दो सीढ़ियां और उतर गए, मनिका की तड़प बढ़ती जा रही थी, इतनी नजदीक लंड के होते हुए भी उसकी बुर अभी तक प्यासी थी , पर अब ये प्यास मनिका से बर्दाश्त नहीं हो रही थी, उसे लगने लगा था कि उसे ही कुछ करना होगा, जैसे जैसे वो नीचे उतरती जा रही थी, अंधेरा और भी गहराता जा रहा था और बारिश तो ऐसे बरस रही थी कि जैसे आज पूरे शहर को निगल ही जाएगी, लेकिन यह तूफानी बारिश दोनों को बड़ी ही रोमेंटिक लग रही थी,

तभी मनिका सीढ़ी पर रुक गई और अपने दोनों हाथ को पीछे ले जाकर जयसिंह की कमर को पकड़ते हुए थोड़ा सा पीछे कर दिया , फिर उनकी तरफ मुँह करते हुए बोली,



"पापाआआआ.....थोड़ा ठीक से पकड़िए ना, नहीं तो मेरा पैर फिसल जाएगा

इतना कहकर उसने वापस अपने हाथों को हटा लिया,

"ठीक है बेटी " कहकर जयसिंह ने मनिका को और ज्यादा कसकर पकड़ लिया जिससे उसका लंड अपने आप एडजस्ट होकर वापस गांड की गहरी दरार से नीचे की तरफ फस गया, मनिका ने यही करने के लिए तो बहाना बनाया था, और मनिका अपनी चाल में पूरी तरह से कामयाब हो चुकी थी क्योंकि इस बार जयसिंह का लंड उसकी गांड के भुरे छेंद से नीचे की तरफ उसकी बुर के गुलाबी छेद के मुहाने पर जाकर सट गया था,

बुर के गुलाबी छेद पर अपने पापा के लंड के सुपाड़े का स्पर्श होते ही मनिका जल बिन मछली की तरह तड़प उठी, उसकी हालत खराब होने लगी , वो सोचने लगी की वो ऐसा क्या करें कि उसके पापा का मोटा लंड उसकी बुर में समा जाए, इधर जयसिंह भी अच्छी तरह से समझ चुका था कि उसके लंड का सुपाड़ा उसकी बेटी के कौन से अंग पर जाकर टिक गया है, जयसिंह का लंड तो तप ही रहा था, लेकिन उसकी बेटी की बुर उसके लंड से कहीं ज्यादा गरम होकर तप रही थी, अपनी बेटी की बुर की तपन का एहसास लंड पर होते ही जयसिंह को लगने लगा की कहीं उसका लंड पिघल ना जाए, क्योंकि बुर का स्पर्श होते ही उसके लंड का कड़कपन एक दम से बढ़ चुका था और उसे मीठा मीठा दर्द का एहसास हो रहा था, मनिका पुरी तरह से गनगना चुकी थी, क्योंकि आज पहली बार उसकी नंगी बुर पर नंगे लंड का स्पर्श हो रहा था,


बरसों से सूखी हुई उसकी जिंदगी में आज इस बारिश ने हरियाली का एहसास कराया था, उत्तेजना के मारे मनिका के रोंगटे खड़े हो गए थे, अपने पापा के लंड के मोटे सुपाड़े को वो अपनी बुर के मुहाने पर अच्छी तरह से महसूस कर रही थी, वो समझ गई थी कि उसकी बुर के छेद से उसके पापा के लंड का सुपाड़ा थोड़ा बड़ा था, जो की बुर के मुहाने पर एकदम चिपका हुआ था, मनिका अपनी गर्म सिस्कारियों को दबाने की पूरी कोशिश कर रही थी, लेकिन उसकी हर कोशिश उत्तेजना के आगे नाकाम सी हो रही थी, ना चाहते हुए भी उसके मुंह से कंपन भरी आवाज निकल रही थी,
"पपपपपप.....पापा ....पपपपपप... पकड़ा है ना ठीक से" मनिका सिसकारते हुए बोली

"हंहंहंहंहं....हां .... बेटी "जयसिंह भी उत्तेजना के कारण हकलाते हुए बोला

"अब मैं सीढ़ियां उतरने वाली हूं, मुझे ठीक से पकड़े रहना" मनिका कांपते होठों से बोली

इतना कहने के साथ ही वो खुद ही अपनी गांड को हल्के से पीछे ले गई, और गोल-गोल घुमाते हुए अपने आप को सीढ़िया उतरने के लिए तैयार करने लगी,

जयसिंह ने भी गरम सिसकारी लेते हुए हामी भर दी, जयसिंह की हालत भी खराब होते जा रही थी, ,रिमझिम गिरती बारिश और बादलों की गड़गड़ाहट एक अजीब सा समा बांधे हुए थी, मनिका जानती थी कि इस बार संभालकर सीढ़ियां उतरना है वरना फिर से इधर उधर होने से जयसिंह का लंड अपनी सही जगह से छटककर कहीं और सट जाएगा, इसलिए उसने वापस अपने दोनों हाथ को पीछे की तरफ ले जाकर अपने पापा के कमर से पकड़ लिया और उन्हें कसकर अपनी गांड से सटा लिया


अब वो बोली "पापा इधर फीसल़ने का डर कुछ ज्यादा है, पूरी सीढ़ियों पर पानी ही पानी है, इसलिए आप मुझे और कस के पकड़े रहना, मैं नीचे उतर रही हूं"

इतना कहने के साथ ही मनिका अपने पैर को नीचे सीढ़ियों पर संभालकर रखने लगी और जयसिंह को भी बराबर अपने बदन से चिपकाए रही, इस तरह से जयसिंह की कमर पकड़े हुए वह आधी सीढ़ियो तक आ गई, इस बीच जयसिंह का लंड उसकी बेटी की बुर पर बराबर जमा रहा, अपनी बुर पर गरम सुपाडे की रगड़ पाकर मनिका पानी पानी हुए जा रही थी, उसकी बुर से मदन रस टपक रहा था जो कि जयसिंह के लंड के सुपाड़े से होता हुआ नीचे सीढ़ियों पर चू रहा था, मनिका के तो बर्दाश्त के बाहर था ही लेकिन जयसिंह से तो बिल्कुल भी यह तड़प सही नहीं जा रही थी, जयसिंह अच्छी तरह से जानता था कि उसका लंड अपनी बेटी की उस अंग से सटा हुआ था जहां पर हल्का सा धक्का लगाने पर लंड का सुपाड़ा सीधे बुर के अंदर जा सकता था , लेकिन जयसिंह अभी भी शर्म और रिश्तों के बंधन में बंधा हुआ था, जयसिंह को अभी भी थोड़ी सी शर्म महसूस हो रही थी, ये तो अंधेरा था इसी वजह से वो इतना आगे बढ़ चुका था, इसीलिए तो जयसिंह अब भी सिर्फ उस जन्नत के द्वार पर बस लंड टीकाए ही खड़ा था

दोनों एक दूसरे की पहल में लगे हुए थे, लेकीन इस समय जो हो रहा था, उससे भी कम आनन्द प्राप्त नही हो रहा था, इस तरह से भी दोनो संभोग की पराकाष्ठा का अनुभव कर रहे थे,

दोनों की सांसे लगभग उखड़ने लगी थी, मनिका तो ये सोच रही थी कि वो क्या करें कि उसके पापा का लंड उसकी बुर में समा जाए, सीढ़ियां उतरते समय जयसिंह का लंड उसकी बेटी की गांड में गदर मचाए हुए था, लंड मनिका की गांड की दरार के बीचोबीच कभी बुर पर तो कभी भुरे रंग के छेंद पर रगड़ खा रहा था,

मनिका तो मदहोश हुए जा रही थी उसकी दोनों टांगे कांप रही थी, जयसिंह की भी सांसे बड़ी तेजी से चल रही थी, वह बराबर अपनी बेटी को कमर से पकड़ कर अपने बदन से चिपकाए हुए था, इसी तरह से पकड़े हुए दोनों लगभग सारी सीढियां उतरने वाले थे , बस अब गिनती की 3 सीढ़ियां ही बाकी रही थी

जयसिंह ने अभी भी अपनी बेटी को अपनी बाहों में जकड़ा हुआ था और मनिका भी अपने दोनों हाथों से अपने पापा के कमर को पकड़ कर अपने बदन से चिपकाए हुए थी, बाप बेटी दोनों संभोग का सुख प्राप्त करने के लिए तड़प रहे थे,

जयसिंह अजीब सी परिस्थिति में फंसा हुआ था, उसके अंदर मंथन सा चल रहा था, वो अपनी और अपनी बेटी के हालात के बारे में गौर करने लगा क्योंकि ये सारी परिस्थिति उसकी बेटी ने ही पैदा की थी, उसका इस तरह से उसके सामने स्कर्ट उतार कर बारिश में नहाना , अपने अंगो का प्रदर्शन करना, जान बूझकर अपनी पैंटी भी उतार फेकना , और तो और सीढ़ियां उतरते समय अपने बदन से चिपका लेना, ये सब यही दर्शाता था कि खुद उसकी बेटी भी वही चाहती थी जो कि जयसिंह खुद चाहता था,

ये सब सोचकर जयसिंह का दिमाग और खराब होने लगा, अब उससे ये कामुकता की हद सही नहीं जा रही थी , अब सिर्फ तीन-चार सीढ़ीया ही बाकी रही थी,

इस समय जो बातें जयसिंह के मन में चल रही थी वही बातें मनिका के मन में भी चल रही थी, मनिका भी यही चाहती थी कि कैसे भी करके उसके पापा का लंड उसकी बुर में प्रवेश कर जाए, उसको भी यही चिंता सताए जा रहे थे की बस तीन चार सीढ़ियां ही रह गई थी, जो होना है इसी बीच हो जाना चाहिए, एक तो पहले से ही जयसिंह के लंड ने उसकी बुर को पानी पानी कर दिया था,

अब मनिका ने अपना अगला कदम नीचे सीढ़ियों की तरफ बढ़ाया, जयसिंह तो बस इसी मौके की तलाश में था, इसलिए वो अपनी बेटी को पीछे से अपनी बाहों में भरे हुए हल्के से झुक गया, जिससे कि उसका खड़ा लंड उसकी बेटी की बुर के सही पोजीशन में आ गया और जैसे ही जयसिंह के कदम सीढ़ी पर पड़े तुरंत उसका लंड का सुपाड़ा उसकी बेटी की पनियाई बुर मे समा गया

"उन्ह्ह्ह्ह…ह्म्प्फ़्फ़्फ़्फ़… ओहहहहहह ....पापाआआआ"
जैसे ही सुपाड़े का करीब आधा ही भाग बुर में समाया ,मनिका का समुचा बदन बुरी तरह से गंनगना गया, उसकी आंखों में चांद तारे नजर आने लगे, एक पल को तो उसे समझ में ही नहीं आया कि क्या हुआ है , आज पहली बार उसकी बुर में लंड के सुपाड़े का सिर्फ आधा ही भाग गया था, और वो सुपाड़े को अपनी बुर में महसूस करते ही मदहोश होने लगी, उसकी आंखों में खुमारी सी छाने लगी, और एकाएक उसके मुंह से आह निकल गई, अपनी बेटी की आह सुनकर जयसिंह से रहा नहीं गया

वो अपनी बेटी से पूछ बैठा,
"क्या हुआ बेटी"

अब मनिका अपने पापा के इस सवाल का क्या जवाब देती, जबकि जयसिंह भी अच्छी तरह से जानता था कि उसका लंड किसमे घुसा है, फिर भी वो अनजान बनते हुए अपनी बेटी से सवाल पूछ रहा था, पर मनिका अभी भी इतनी बेशर्म नहीं हुई थी कि अपने पापा को साफ साफ कह दें कि आपका लंड मेरी चुत में घुस गया है,
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