मैं- आज नही निशा कल सुबह जा रही है तो आज मैं उसके साथ रहूँगा हाँ पर कल का दिन पक्का तेरा जाना तो मुझे उसके साथ ही था पर मैं कुछ दिन और रुकता हूँ.
प्रीतम- ठीक है मेरे राजा मैं सुबह मेरे प्लॉट मे तेरा इंतज़ार करूँगी.
मैं- दस बजे तक आता हूँ.
मैने प्रीतम को किस किया और फिर घर की तरफ चल पड़ा. मुझे अभी भी यकीन नही हो रहा था ये पगली अचानक से जो मिल गयी थी मेरा पूरा इतिहास जैसे मेरी आँखो के सामने फिर से ताज़ा हो रहा था. खैर मैं घर आया. और सीधा निशा के पास गया.
मैं- यार मैं कुछ दिन बाद आउन्गा
निशा- क्या हुआ.
मैं- एक काम आ गया है तो ………
निशा- इतना छुपाते क्यो हो मैं कुछ कह रही हूँ क्या तुम्हारा जब जी करे तब आ जाना .
मैं- थॅंक्स .
निशा- तुम भी ना.
मैं- पॅकिंग हो गयी हो तो बाहर आ जाओ बैठ ते है कुछ देर छत पर.
निशा - बियर ले आउ.
मैं- ये हुई ना बात और हाँ चाची को बोल देना कि खाने मे कुछ अच्छा बना ले.
निशा- मैने खाना बना लिया है
मैं- तो आजा फिर.
कुछ देर बाद मैं और निशा छत पर बैठे हुए थे.
निशा- तुम्हारे साथ रह रह कर पता नही कैसी हो गयी हूँ मैं
मैं- अभी से बहक गयी क्या तू.
निशा- आज थोड़ी ना बहकी हूँ मैं जबसे तुम मेरी ज़िंदगी मे आए हो तभी से बहकी हुई हूँ मैं. वैसे मैं कह रही थी कि वो मेरे ट्रान्स्फर का कुछ होगा क्या मैं थोड़ा फॅमिली के साथ रहना चाहती हूँ.
मैं- देल्ही आते ही मिनिस्ट्री से फोन करवाता हूँ .
निशा- अब तो ये नौकरी भी जंजाल लगती है , इसको पाने के लिए बहुत मेहनत की और अब देखो बोझ सी लगती है.
मैं- और नही तो क्या. पर कमाना भी तो ज़रूरी है ना.
निशा- क्या फ़ायदा यार इन रुपयो का जब इनसे खुशी मिलती ही नही है.
मैं- निशा, हम जैसे लोगो को खुशी मिलती कहाँ है.
निशा- क्या यार तुम भी सेंटी हो जाते हो, वो परमिला भुआ जी का फोन आया था
मैं- क्या कह रही थी कब आ रही है वो.
निशा- बुआ के लड़के का रिश्ता तय हो गया है. तो सगाई है बुला रही थी सबको.
मैं- क्या बात कर रही है . चिनू का रिश्ता . इतना बड़ा हो गया क्या वो कब कैसे.
निशा- अब सब अपनी तरह है क्या , चिनू टीचर लग गया है तुम्हे तो मालूम होगा नही, अब सही है रिश्ता कर लेतो.
मैं- पर ऐसे कैसे.
निशा- सबको पता होता है कि अपनी ज़िम्मेदारिया निभाने का सही समय कौन सा है और अच्छी ही बात हैं ना कि हमें भी मौका मिलेगा थोड़ा एंजाय करने का रिश्तेदारो को जान ने का .
मैं- पेंचो. एक हम ही रह गये ज़माने मे.
निशा- वैसे मनीष एक बात कहना चाहती हूँ .
मैं- जानता हूँ . तू जैसा चाहती है वैसा ही होगा.
निहा- सुन तो लो
मैं- कहा ना, तू जो चाहती है वैसा ही होगा.
निशा ने कुछ घूँट ली और बोली- कब तक आओगे देल्ही.
मैं- जल्दी ही .
निशा- मन नही लगेगा तुम्हारे बिना.
मैं- मेरा भी , वैसे मैं सोच रहा हूँ इस कोठी को तुडवा के फिर से अपने पहले जैसे घर को उसी तरह बनाया जाए.
निशा- मनीष, दुनिया आगे की तरफ बढ़ती है और तुम हो कि पीछे जाना चाहते हो.
मैं- क्या करूँ यार मेरा मन नही लगता है मुझे मेरा वो ही घर चाहिए. एक पल भी अपना पन नही लगता मुझे यहाँ पर.
निशा- घरवालो से बात करो फिर.
मैं- चाचा जब छुट्टी आएँगे तो पूछता हूँ .
निशा- हुम्म, अब जल्दी से ख़तम भी करो कितना टाइम लगाओगे खाना खाना है मुझे.
मैं- चल फिर नीचे चलते है.
मैने बोतल मुंडेर पर रखी और फिर निशा के साथ नीचे आ गया.
चाची- निशा तू भी लेती है क्या.
निशा- ना चाची, ये तो बस मनीष ज़िद कर लेता है तो कभी कभी.
मैं बस मुस्कुरा कर रह गया.
ज़िंदगी भी अजीब होती है Restart
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Re: ज़िंदगी भी अजीब होती है Restart
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- mastram
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Re: ज़िंदगी भी अजीब होती है Restart
मित्र दो लाख व्यूज के क्लब में पहुँचने पर आपको बधाई
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- Kamini
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Re: ज़िंदगी भी अजीब होती है Restart
congratulations
mast update dear
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Re: ज़िंदगी भी अजीब होती है Restart
Nice update
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Re: ज़िंदगी भी अजीब होती है Restart
Thanks dosto
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