बहन का दांव complete

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Rishu
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Re: बहन का दांव

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रश्मी : "ओहो ...चलो छोड़ो मुझे...अंदर जाओ...मैं चाय लेकर आती हू...''
मोनू ने बेमन से उसे छोड़ दिया...और अंदर जाकर बैठ गया..कुछ ही देर मे रश्मी चाय लेकर आ गयी और दोनों चुस्कियाँ लेते हुए चाय पीने लगे...और बातें करने लगे.
रश्मी : "आज भी आ रहे हैं क्या वो दोनों ...रात को खेलने''
मोनू : "वो तो कल भी जाना नही चाहते थे...मैने उन्हे दिन में ही फोन कर दिया था...वो ठीक 9 बजे आ जाएँगे..''
अभी 7:30 बज रहे थे..
रश्मी : "ओहो ....मुझे थोड़ा जल्दी करना होगा...खाना भी बनाना है..माँ को दवाई भी देनी है बाद मे...उन लोगो के आने से पहले माँ को सुला देना है...वरना उन्हे बेकार की परेशानी होगी.
मोनू समझ गया की अभी कुछ नही हो सकता...अंदर किचन मे ही एक-दो किस्सेस ले लेनी चाहिए थी उसको...
चाय पीने के बाद रश्मी फटाफट काम पर लग गयी...खाना बनाकर उसने माँ को खिलाया और मोनू को भी..और बाद मे खुद ऊपर कमरे में चली गयी .ये सब करते-करते 9 बज गये और ठीक 9 बजे उनके घर की बेल बजी...मोनू ने जाकर दरवाजा खोला तो दोनो बाहर खड़े थे...उनके मुँह से शराब की भी महक आ रही थी..शायद शाम से ही दोनो पीने मे लगे थे..रश्मी के बारे मे सोच-सोचकर..
मोनू ने उन्हे अंदर बिठाया और भागकर उपर गया, माँ सो चुकी थी और रश्मी अपना खाना खा रही थी.
मोनू : "दीदी ...वो लोग आ गये हैं...आप जल्दी से चेंज करके नीचे आ जाओ..''
ये मोनू का इशारा था की वो अपने वही वाले कपड़े पहन कर नीचे आ जाए, जिसमें वो जीत रही थी.
और फिर वो नीचे आकर बैठ गया और पत्ते बाँटने लगा..
वो पहली बार मे ही रश्मी को गेम खिलाकर उनके मन मे शक़ पैदा नही करना चाहता था.
जब पत्ते बंट गये और सभी की बूट के बाद 2-2 चाल भी आ गयी तो मोनू ने सबसे पहले पत्ते उठा कर देख लिए..उसके पास सिर्फ़ एक इक्का था और दो छोटे पत्ते...उसने पेक कर दिया.
राजू और रिशू खेलने लगे..
खेलते-2 राजू बोला : "आज रश्मी नही खेलेगी क्या...?"
वो दोनो शायद काफ़ी देर से वो बात पूछना चाहते थे...मोनू भी मन ही मन मे उनकी बात सुनकर हंस दिया..
मोनू : "पता नही....मैने बोला तो था...पर शायद कल वो काफ़ी बार हार गयी थी...इसलिए मना कर रही थी...शायद आ भी जाए..''
रिशू : "अरे, ये तो खेल है...कोई ना कोई तो हारता रहता है...इसमे दिल छोटा करने वाली क्या बात है..''
मोनू कुछ नही बोला और दोनो की गेम चलती रही...वो गेम रिशू जीता , उसके पास पेयर आया था.
जैसे ही रिशू ने पत्ते बाँटने शुरू किए, उन्हे रश्मी के नीचे उतरने की आवाज़ आई...सभी के सभी सीडियों की तरफ देखने लगे..रिशू भी पत्ते बाँटकर उसी तरफ देखने लगा.
और जैसे ही अपनी गेंदे उछालती हुई वो नीचे उतरी , उसके अलग ही अंदाज मे डांस करते हुए मुम्मे देखकर वो दोनो हरामी समझ गये की उसने अंदर कुछ नही पहना है...और सभी की तेज नज़रें टी शर्ट के पतले कपड़े के नीचे उसके निप्पल ढूँढने लगे और उन्हे एक ही बार मे सफलता भी मिल गयी, एक तो उसने अंदर ब्रा नही पहनी थी और उपर से उसके निप्पल आम लड़कियों के मुक़ाबले कुछ ज़्यादा ही मोटे थे...इसलिए नन्ही-2 चोंच सॉफ दिख रही थी.
रश्मी : "मोनू ..मुझे खेलने दो ना...''
मोनू हंसता हुआ उठ गया...और रश्मी को सामने देखकर दोनो के मुँह से पानी टपकने लगा..
मोनू : "रिशू...अब रश्मी आ गयी है, इसलिए पत्ते दोबारा बाँटो...''
रिशू को कोई परेशानी नही थी, उसने ताश दोबारा फेंटी और फिर से पत्ते बाँटने लगा..
रश्मी की तरफ से चाल चलने और पत्ते देखने का काम मोनू का ही था...इसलिए 2-2 ब्लाइंड के बाद मोनू ने एकदम से डबल ब्लाइंड चल दी..उसकी देखा देखी रिशू और राजू ने भी डबल ब्लाइंड चल दी..वो तो बस रश्मी को घूरने में लगे थे...
मोनू ने फिर से ब्लाइंड का अमाउंट बड़ा दिया और 600 रुपय बीच मे फेंक दिए...अब राजू की फटने लगी..उसने अपने पत्ते उठा लिए..और फिर कुछ सोचकर उसने 1200 बीच मे फेंके और चाल चल दी..
अब चाल बीच मे आ चुकी थी, इसलिए राजू ने भी अपने पत्ते देख लिए..वो काफ़ी देर तक सोचता रहा और आख़िर मे जाकर उसने पेक ही कर दिया..
अब बारी थी रश्मी की...उसने मोनू की तरफ़ देखा तो मोनू ने 600 की ब्लाइंड फिर से चल दी..
रिशू ने भी 1200 की चाल रिपीट कर दी..
अब थी असली इम्तिहान की घड़ी...रश्मी के इम्तिहान की घड़ी...उसकी किस्मत के इम्तिहान की घड़ी..
मोनू ने पत्ते उठाए ...उन्हे चूमा...और फिर एक-एक करते हुए उन्हे देखा..
पहला हुकुम का पत्ता था 10 नंबर..
दूसरा भी हुकुम का ही निकला ...बेगम...
अब तो मोनू को पक्का विश्वास हो गया की उसके पास हुकुम का कलर आया है..
पर जैसे ही उसने तीसरा पत्ता देखा, लाल रंग देखकर उसका दिल टूट गया...
पर अगले ही पल वो खुशी से उछाल पड़ा...क्योंकि वो लाल रंग मे ही सही पर गुलाम था...
यानी उसके पास सीक़ुवेंस आया था...10,11,12..
उसने वो सब शो नही होने दिया...और बड़े ही आराम से रिशू की चाल से डबल चाल चलते हुए 2400 रुपय बीच मे फेंक दिए..
अब रिशू भी समझ चुका था की मोनू के पास बाड़िया वाले पत्ते आए हैं...इसलिए उसने एकदम से डबल की चाल चली है...पर उसके पास भी पत्ते चाल चलने लायक थे, इसलिए वो अभी तक खेल रहा था...वो आगे चाल तो चलना नही चाहता था पर शो ज़रूर माँग लिया उसने...
मोनू ने शो करते हुए अपने पत्ते सलीके से उसके सामने फेंक दिए...
उन्हे देखकर एक दर्द सा उभर आया रिशू के चेहरे पर...जैसे अक्सर जुआ हारने वाले के चेहरे पर आ जाता है..
उसने भी अपने पत्ते फेंक दिए..
उसके पास 9 का पेयर था..
और मोनू ने हंसते हुए सारे पैसे अपनी तरफ खिसका लिए..
इतने सारे पैसे अपने सामने देखकर रश्मी खुशी से चिल्ला पड़ी..
वो लगभग 10 हज़ार थे , जो एक ही बार मे उनके पास आ गये थे..
हारने का गम मनाते हुए रिशू को रश्मी के उछलते हुए मुम्मो को देखकर कुछ देर के लिए सांत्वना ज़रूर मिली...पर उसका मूड खराब हो चुका था.
एकदम से रश्मी बोली : "मैं कुछ खाने के लिए लाती हूं अंदर से...''
और वो उठकर अंदर चली गयी..
Rishu
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Re: बहन का दांव

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उसके जाते ही मोनू उसकी सीट पर आकर बैठ गया...ये सोचकर की एक गेम वो भी खेल ले, और हार जाए, ताकि वो खेलने के लिए बैठे रहे...वरना जुआरियों को हमेशा यही लगा रहता है की अगर कोई बड़ी गेम हार जाते हैं तो उसके बाद निकलने की सोचते हैं..
पर उसके बैठते ही रिशू एकदम से बोला : "अब तुम रश्मी को ही खेलने दो...ऐसे बीच मे बदल-2 कर मत खेलो...''
मोनू चुपचाप उठ गया...और वापिस सोफे के हत्थे पर बैठ गया..
रिशू और राजू एक तरफ ही बैठे थे...दोनो एक दूसरे के पास मुँह लेजाकर ख़ुसर फुसर करने लगे..
रिशू : "यार...ये तो मेरा बैठे-2 निकलवा कर रहेगी आज...साली बिना ब्रा के बैठी है सामने...मन तो कर रहा है की इसके मोटे-2 निप्पल पकड़कर ज़ोर से दबा दूं...''
राजू फुसफुसाया : "हाँ यार...साली बिल्कुल सामने बैठकर ऐसे हिला रही है अपने दूधों को की मन कर रहा है उन्हे दबोचने का...साली रंडी लग रही है बिल्कुल....एक बार बस मिल जाए इसकी...ये सारे पैसे हारने का भी गम नही रहेगा...''
और दोनो खी-2 करते हुए हँसने लगे...
मोनू उनकी बातें सुनने की कोशिश कर रहा था पर उसे कुछ सुनाई ही नही दे रहा था..
पर ये तो वो समझ ही चुका था की वो दोनो रश्मी के बारे मे ही बात कर रहे हैं..
तभी रश्मी की आवाज़ आई अंदर से : "मोनू...वो बेसन वाली मूँगफली कहाँ रखी है...मिल नही रही मुझे...''
मोनू उठकर अंदर चला गया...
अब राजू और रिशू थोड़ा खुलकर बाते करने लगे रश्मी के बारे मे...
मोनू जैसे ही अंदर पहुँचा, रश्मी ने उसे अपनी तरफ खींचकर उसे अपने सीने से लगा लिया..
एकदम से रश्मी की इस हरकत पर वो बोखला सा गया...क्योंकि उन दोनो के बाहर बैठे हुए रश्मी से ऐसी हरकत की उम्मीद नही थी उसको पर उसके नर्म मुलायम मुम्मो के एहसास को अपनी छाती पर महसूस करके उसे मज़ा बहुत आया...और वो एक ही पल मे ये भूल गया की उसके दोनो दोस्त कुछ ही दूर यानी बाहर बैठे हैं. रश्मी की खुशी देखते ही बनती थी
रश्मी : "मोनू....तुमने बिल्कुल सच बोला था...हम जीत गये...वो भी इतने सारे पैसे एक साथ....वाव....आई एम सो हैप्पी ......''
और इतना कहते हुए उसने एकदम से उपर होते हुए मोनू के होंठों को चूम लिया...वो स्मूच तो नही था पर उसके नर्म और ठन्डे होंठों के एहसास को एक पल के लिए ही सही, महसूस करते ही उसके तन बदन मे आग सी लग गयी...उसने भी रश्मी के चेहरे को पकड़ कर उसे चूमना चाहा पर तभी बाहर से रिशू की आवाज़ आई
''अरे भाई...मूँगफली मिली या नही....''
रश्मी एकदम से मोनू से अलग हो गयी...पर उसकी आँखो की शरारत साफ़ बता रही थी की वो भी मोनू के लिए अभी उतनी ही उतावली हो रही थी ,जितना की वो हो रहा था उसके लिए..
अचानक मोनू ने उसके दोनो मुम्मों को दबोच लिया और ज़ोर से दबा दिया...
रश्मी एक दम से चिहुंक उठी...ये उसके भाई का सीधा और प्रहार था उसके स्तनों पर...जिसे महसूस करके उसका बदन भी ऐंठने लगा..
रश्मी फुसफुसाई : "छोड़ो मोनू....वो बाहर ही बैठे हैं...कोई अंदर ना आ जाए ...छोड़ो ना...ये कर क्या रहे हो तुम....''
मोनू ने भी शरारत भरी मुस्कान से कहा : "मूँगफली ढूँढ रहा हू ...''
और इतना कहते-2 उसने रश्मी के दोनो निप्पल पकड़ कर ज़ोर से भींच दिए..
और बोला : "मिल गयी मूँगफलियाँ....''
रश्मी कसमसाकर बोली : "कमीने हो तुम एक नंबर के....जाओ अभी बाहर...ये मूँगफलियाँ रात को मिलेंगी...''
मोनू बेचारा बेमन से बाहर निकल आया..पर ये सांत्वना भी थी की आज रात को ज़रूर कुछ ख़ास होकर रहेगा..
मोनू के आने के एक मिनट के अंदर ही रश्मी भी आ गयी...और आदत के अनुसार रिशू और राजू की नज़रें फिर से एक बार उसके निप्पल्स पर चली गयी...और इस बार उन्हे ये देखकर और भी आश्चर्य हुआ की वो तो पहले से भी बड़े दिख रहे थे...ऐसा क्या हो गया रश्मी को एकदम से...ऐसा तो तब होता है जब लड़की पूरी तरह से उत्तेजित होती है...
तो क्या रश्मी उन्हे देखकर ही उत्तेजित हो रही है...
क्योंकि मूँगफली की प्लेट नीचे रखते हुए वो जिस तरीके से उन्हे देख रही थी...सॉफ पता चल रहा था की वो भी उनमे इंटरस्ट ले रही है...
उन दोनो के लंड तो खड़े होकर बग़ावत करने लगे...
खेल की माँ की चूत ...उन्हे तो बस रश्मी मिल जाए इस वक़्त, वो अपने सारे पैसे ऐसे ही उसे देने के लिए तैयार थे...
पर रश्मी तो अलग ही दुनिया में थी...उनके मन मे क्या चल रहा है इस बात से भी अंजान..
और इस बार रश्मी ने पत्ते बाँटने शुरू किए...और वो बेचारे बेमन से अगली गेम खेलने लगे..
रश्मी के चेहरे की हँसी जाने का नाम ही नही ले रही थी...ऐसा अक्सर होता है, नये-2 जुआरियो के साथ...
अगली गेम के लिए बूट और ब्लाइंड की राशि 500 कर दी गयी...और 3-3 ब्लाइंड चलने के बाद जब एक बार और रश्मी की तरफ से मोनू ने ब्लाइंड चली तो राजू और रिशू का मन हुआ की पत्ते उठा कर देख ले...पर फिर ना जाने क्या सोचकर दोनो एक-2 बाजी और ब्लाइंड की खेल गये...यही तो मोनू भी चाहता था..क्योंकि उसे तो पक्का विश्वास था की रश्मी के पत्ते तो अच्छे होंगे ही...इसलिए उसने इस बार ब्लाइंड की रकम भी दुगनी करते हुए 1000 कर दी.
अब तो सबसे पहले रिशू की फटी...क्योंकि पिछली गेम में वो काफ़ी पैसे हार चुका था...और ये ग़लती वो इस बार नही करना चाहता था..
उसने अपने पत्ते उठा लिए...उसके पास 2 का पेयर आया था...पत्ते तो काफ़ी छोटे थे...पर चाल चलने लायक थे...उसका एक मन तो हुआ की पेक कर दे..पर फिर रिस्क लेते हुए उसने 2000 बीच मे फेंक कर चाल चल दी.
राजू की बारी आई तो उसने झट से अपने पत्ते उठा लिए...उसके पास इक्का और बादशाह आए थे...साथ में था 7 नंबर...कोई मेल ही नही था...चाल चलने का तो मतलब ही नही था. उसने पेक कर दिया..
अब एक चाल बीच मे आ ही चुकी थी...पर फिर भी मोनू ने रश्मी के पत्ते देखे बिना एक और ब्लाइंड चल दी...और हज़ार का नोट बीच मे फेंक दिया..
इतनी डेयरिंग तो आज तक इनमे से किसी ने नही दिखाई थी...ऐसा लग रहा था की मोनू को पूरा विश्वास था की वो ही जीतेगा...इतना कॉन्फिडेंस कही उसका ओवर कॉन्फिडेंस ना बन जाए..
अब रिशू के सामने चुनोती थी...पर एक तरह से देखा जाए तो उसका पलड़ा ही भारी था अब तक ...मोनू ने पत्ते देखे नही थे...और उसके पास पेयर था 2 का...ऐसे में उसके मुक़ाबले के पत्ते होना एक रिस्क ही था मोनू के लिए...पर फिर भी वो चाल के उपर ब्लाइंड खेल गया...शायद ये सोचकर की अगर जीत गया तो तगड़ा माल आएगा हाथ...और अगर हार भी गया तो कोई गम नही..क्योंकि पिछली गेम में वो काफ़ी माल जीत ही चुका था..
रिशू की नज़रें रश्मी के उपर थी...तो थोड़ी टेंशन मे आ चुकी थी अपने भाई को ऐसे ब्लाइंड पर ब्लाइंड चलते देखकर..
रिशू ने फिर से एक बार रिस्क लेते हुए 2000 की चाल चल दी...अब तो रश्मी की टेंशन और भी बढ़ गयी....टेंशन के मारे उसके निप्पल उबल कर बाहर की तरफ निकल आए...और उसने जाने अंजाने मे ही अपने दाँये निप्पल को पकड़कर ना जाने क्यो उमेठ दिया...
Rishu
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Re: बहन का दांव

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वैसे ये उसकी हमेशा की आदत थी...जब भी वो उत्तेजित होती थी...यानी रात के समय या फिर फ़िन्गरिंग करते समय...वो अपने खड़े हुए निप्पल्स की खुजली को मिटाने के लिए उन्हे ज़ोर-2 से उमेठ देती थी...ऐसा करने में उसकी खुजली भी मिट जाती थी और उसे अंदर तक एक राहत भी मिलती थी..
पर आज वो भले ही उत्तेजित नही थी..पर उसके निप्पल्स मे हो रही खुजली ठीक वैसी ही थी जैसी रात के समय हुआ करती थी....और इस टेंशन वाली खुजली को भी उसने अपनी उंगलियों के बीच दबोच कर मिटा दिया...
भले ही ये सब करते हुए उसका खुद पर नियंत्रण नही था..पर उसकी इस हरकत को देखकर सामने बैठे दोनो ठरकियों के लौड़े कबूतर की तरह फड़फड़ाने लगे..
अभी कुछ देर पहले ही मूँगफली की प्लेट नीचे रखते हुए जिस अदा के साथ रश्मी ने उन दोनो को देखा था और स्माइल किया था...अब उसे फिर से खुले आम अपने निप्पल को मसलते देखकर उन्हे पूरा विश्वास हो गया की वो उन्हे लाइन दे रही है...एक तो पहले से वो बिन ब्रा के और ऊपर से ऐसी रंडियों वाली हरकतें...उन्होने मन ही मन ये सोच लिया की एक बार वो भी अपनी तरफ से ट्राइ करके रहेंगे...शायद उनका अंदाज़ा सही हो और रश्मी जैसा माल उन्हे मिल जाए
मोनू इन सब बातो से अंजान अपने गेम को खेलने मे लगा था...उसका एक मन तो हुआ की वो एक और ब्लाइंड चल दे...पर कही कुछ गड़बड़ हो गयी तो सारे पैसे एक ही बार मे जाएँगे..
ये सोचते हुए उसने अपने पत्ते उठा लिए..
और अपने पत्ते देखकर एक पल के लिए तो उसके माथे पर भी परेशानी का पसीना उभर आया..
उसके पास 3 का पेयर आया था.
अब देखा जाए तो वो जीत ही रहा था रिशू से...लेकिन उसे तो ये बात पता नही थी ना..
पत्ते भले ही मोनू के पास चाल चलने लायक थे..पर वो और चाल चलकर खेल को आगे नही बढ़ाना चाहता था...क्योंकि सामने से रिशू 2 चालें चल ही चुका था...यानी उसके पास भी ढंग के पत्ते आए होंगे...मोनू को चिंता सताने लगी की कहीं वो ये बाजी हार ना जाए...या फिर हारने से पहले वो पेक कर दे तो कम से कम शो करवाने के 2000 और बच जाएँगे...
वो कशमकश मे पड़ गया..
फिर उसने एक निश्चय किया....रश्मी को उसने वो पत्ते दिखाए...और धीरे से पूछा.. : "दीदी...आप बोलो...शो माँग लू या पेक कर दू ...''
अब रश्मी इतनी समझदार तो थी नही जो इस खेल को इतनी अंदर तक समझ पाती...पर उसने जब देखा की उनके पास 3 का पेयर है...और मोनू ने यही सिखाया था की पेयर ज़्यादातर गेम्स जीता कर ही जाते हैं...उसने हाँ में सिर हिलाकर शो माँगने को कहा ...और मोनू ने उसके बाद बिना कुछ सोचे समझे 2000 बीच मे फेंकते हुए शो माँग लिया...
अब ये गेम अगर वो हार जाते तो अभी तक के सारे जीते हुए पैसे एक ही बार मे चले जाने थे...पर ऐसा होना नही था..क्योंकि रिशू ने जैसे ही अपने पत्ते उन्हे दिखाए...मोनू ने बड़े ही जोशीले तरीके से 2 के पेयर 3 का पेयर फेंकते हुए सारे पैसे अपनी तरफ करने शुरू कर दिए..
और इतने सारे पैसे एक बार फिर से अपनी तरफ आते देखकर रश्मी तो झल्ली हो गयी...और उसने खुशी के मारे उछलते हुए अपने भाई को गले से लगा लिया....
उसके दोनो मुम्मे बुरी तरह से बेचारे मोनू के चेहरे से रगड़ खाते हुए पिस गये...
और उसकी ये हरकत देखकर रिशू और राजू मोनू की किस्मत को फटी हुई आँखो से देख रहे थे...
वो बड़े ही जोशीले तरीके से मोनू के चेहरे को दबोच कर चिल्लाती जा रही थी : "हम जीत गये....याहूऊऊऊओ....हम जीत गये....''
मोनू ने बड़ी ही मुश्किल से अपने आप को उसके नर्म मुलायम मुम्मे के हमले से छुड़वाया ...वो ऐसा करना तो नही चाहता था पर अपने दोस्तों को ऐसे मुँह फाड़कर उसे और अपनी बहन को हग करता देखकर वो खुद को छुड़वाने पर मजबूर हो गया.
अब मोनू लगभग 20-25 हज़ार जीत चुका था...
रश्मी ने सारे नोटो को सलीके से एक के उपर एक रखकर गड्डी बनानी शुरू कर दी...और एक मोटी सी गड्डी बनाकर उसे अपने कुल्हों के नीचे दबा कर बैठ गयी..
उफफफ्फ़....काश...हम नोट होते...बस यही सोचते रह गये रिशू और राजू.
आज काफ़ी पैसे हार चुके थे वो दोनो...और उन दोनो की जेबें लगभग खाली हो चुकी थी.
रिशू : "मोनू भाई....आज के लिए यहीं ख़त्म करते हैं....अगर गेम लंबी चली गयी तो ज़्यादा चाल चलने के पैसे नही है आज....कल आएँगे हम...वैसे भी कल छोटी दीवाली है...और परसो दीवाली....अब तो उसके हिसाब से ही आएँगे...बस इन दो दिनों का ही खेल रह गया है अब तो...उसके बाद तो फिर से अपने धंधे पानी की तरफ देखना पड़ेगा...''
राजू : "हाँ भाई....आज के लिए तो मैं भी चलूँगा...आज काफ़ी माल हार गया...पर कोई गम नही इसका...इसी बहाने रश्मी तो खुश हुई ना...''
वो जैसे रश्मी को मक्खन लगाने के लिए ये सब कह रहा था.
Rishu
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Re: बहन का दांव

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रश्मी भी उसकी बात सुनकर मुस्कुरा उठी...वैसे भी राजू उसको शुरू से ही आकर्षक लगता था...उसकी डील डोल सबसे अलग थी...और शायद ये सोचकर की उसका लंड भी ऐसा होगा...वो अंदर से सिहर उठी.
जाते-2 रिशू एकदम से पलटा और बोला : "मोनू...अगर तू कहे तो कल हम लाला को भी लेते आए....उसका फोन आया था आज सुबह और बोल रहा था खेलने के लिए...मैने तो बोल दिया की आजकल हम मोनू के घर बैठते है...पर वो अगर कहेगा तभी आने के लिए कहूँगा ..''
मोनू कुछ देर के लिए सोच मे पड़ गया..
लाला उनका पुराना साथी था...और एक नंबर का हरामी भी...लड़कियों को चोदने और उनके बारे मे बात करना, बस यही काम था उसका...एक-दो बार मोनू ने उसके मुँह से रश्मी के बारे में सुन लिया था, कहासुनी भी हुई थी दोनों में, तबसे वो उसके साथ दूरी बनाकर रखता था...और ये बात सभी को मालूम थी..
पर जुआ खेलने मे वो एक नंबर का अनाड़ी था..चाल कब और कैसे चलनी है, इसका उसे अंदाज़ा नही था...उसे बस उपर के खेल की जानकारी थी..जैसी जानकारी रश्मी को थी..ठीक वैसी ही...
पर वो खुलकर पैसे लगाता था अपनी हर गेम में ...और आज जिस तरह से मोनू के हाथ जुआ जीतने का मंत्र हाथ लगा था, उसके बाद तो ऐसे ही जुआरियों के साथ जुआ खेलने का मज़ा आता है
उसने हां दी...
उनके जाने के बाद रश्मी ने पूछा : "ये लाला कौन है...?''
मोनू : "वो कल ही देख लेना...इनकी तरह ही एक दोस्त है वो भी...पर ज़्यादा खेलना नही आता उसको..''
रश्मी : "पर आज मज़ा बहुत आया मोनू...इतने पैसे जीत गये हम....ये देखो...''
उसने अपनी गांड के नीचे से नोटो की गड्डी निकाल कर दिखाई...जो अच्छी तरह से दबने के बाद सीधे हो चुके थे..मोनू भी उन नोटो की गर्मी से ये अंदाज़ा लगाने की कोशिश कर रहा था की ये असल मे कौनसी गर्मी है...उसकी बहन की गांड की या हरे-2 नोटों की..
सारे पैसे मोनू ने रश्मी को रखने के लिए दे दिए...वो पलटकर जैसे ही उपर अपने कमरे मे जाने लगी , मोनू एकदम से बोला : "मूँगफली...''
और वो शब्द सुनकर रश्मी को एकदम से वो बात याद आ गयी जो किचन मे उसने मोनू से बोली थी...की रात को वो अपनी मूँगफली खिलाएगी उसको..और वो याद करते ही उसकी दोनो मूंगफलियां यानि निप्पल्स टाइट हो गयी...वो गहरी साँसे लेने लगी...और उसका दिल ज़ोर-2 से धड़कने लगा..
अगर इस वक़्त मोनू उसको पीछे से पकड़कर उसकी दोनो चुचियाँ ज़ोर से दबा देता तो वो वहीं के वहीं पिघल जाती...लिपट जाती उसके साथ...नोच फेंकती अपने और उसके कपड़े...और खिला देती अपने भाई को अपनी मूँगफलियाँ..
उसने हकलाते हुए कहा : "क....क्या कहा.....तुमने....''
मोनू : "ये मूँगफलियाँ तो अंदर रख दो दीदी...बाहर पड़ी हुई सील जाएँगी....इनका करारापन चला जाएगा...''
उसने प्लेट मे रखी मूँगफलियों की तरफ इशारा किया.
रश्मी : "ओह्ह्ह .......मैं समझी......उम्म्म्मम..... ओक ...रख देती हू....''
और इतना कहकर उसने जल्दी से वो प्लेट उठाई और भागकर किचन मे चली गयी...फिर वो बाहर निकल कर जैसे ही अपने कमरे मे जाने लगी...पीछे से मोनू ने धीरे से कहा : "और दीदी....उन मूँगफलियों का क्या...जो मुझे खिलाने वाली थी आज आप ....''
एक बार फिर से सुलग उठी रश्मी, अपने भाई की ये बात सुनकर...
उसने धीरे से पीछे देखा और बोली : "फ़िक्र मत करो...उनका करारापन नही जाएगा....''
मोनू : "जब तक चेक ना कर लू...मुझे विश्वास नही होगा...''
रश्मी : "बदमाश.....तो तू नही मानेगा....''
रश्मी तो खुद यही चाह रही थी की आज वो ना ही माने...
मोनू ने ना मे सिर हिला दिया...ऐसा मौका भला वो क्यो छोड़ता ...
रश्मी : "अभी माँ को चेक करके आती हूँ ...सोना मत....ह्म्म्म्म...''
और वो अपनी बड़ी सी गांड मटकाती हुई उपर चली गयी....और मोनू खुशी-2 अपने कमरे की तरफ...
अपने कमरे मे जाते ही मोनू ने अपने सारे कपड़े उतार फेंके..और अगल-बगल डियो लगा लिया...और फिर सिर्फ़ एक निक्कर और टी शर्ट पहन कर अपने बेड पर लेट गया..वो और उसका लंड बड़ी ही बेसब्री से रश्मी का इंतजार करने लगे...रात के 12 बजने वाले थे...उसकी आँखो मे नींद भरी हुई थी..पर वो सोना नही चाहता था...बस अपनी आँखो को बंद करके वो रश्मी के आने के बाद क्या-2 करेगा यही सोचने लगा...और ये सोचते -2 कब उसकी आँख लग गयी, उसे भी पता नही चला.
''मोनू.....मोनू....सो गये क्या....''
दूर से आती आवाज़ सुनकर मोनू की नींद खुल गयी....वो तो सपनों की दुनिया मे था...ठंडी बर्फ मे...पूरा नंगा...और रश्मी के पीछे भाग रहा था...उसके बचे खुचे कपड़े उतारने के लिए...और वो भागे जा रही थी...भागे जा रही थी...
''मोनू....उठो.....मैं आ गयी...''
रश्मी की आवाज़ सुनते ही वो एकदम से अपने सपने की दुनिया से बाहर निकला...वो उसकी बगल मे ही बैठी थी...और उसका हाथ मोनू के माथे पर आए पसीने को पोंछ रहा था.
रश्मी : "क्या हुआ....कोई सपना देख रहे थे क्या......बोलो ...''
मोनू ने हाँ में सिर हिलाया.
रश्मी : "बताओ....क्या देख रहे थे...''
वो शायद जानती थी की वो उसके बारे मे ही सोच रहा था सपने मे...पर फिर भी उसके मुँह से सुनना चाहती थी.
मोनू : "वो मैने बता दिया तो आप शरमा जाएँगी...बहुत कुछ हो रहा था सपने में तो...''
और मोनू की ये बात सुनकर वो सच मे शरमा गयी..
मोनू की नज़रें उसके चेरहरे से होती हुई नीचे तक आई....उसकी क्लिवेज उफन कर बाहर आ रही थी...इतना गहरा गला तो उसने आज तक नही देखा था अपनी बहन का...ऐसा लग रहा था जैसे उसने जान बूझकर अपने मुम्मे बाहर की तरफ निकाले हैं, ताकि मोनू उन्हे देख सके.
रश्मी ने उसकी नज़रों का पीछा किया और बोली : "एक नंबर के बदमाश हो तुम....मैने तो पहले सोचा भी नही था की तुम ऐसे होगे...पर पिछले 2-3 दिनों से जो भी तुम्हारे बारे मे पता चल रहा है,उसके हिसाब से तो तुम बड़ी पहुँची हुई चीज़ हो...''
मोनू ने अपना हाथ आगे करते हुए रश्मी की कमर को लपेटा और उसे अपनी तरफ करते हुए खींच लिया...वो आगे की तरफ होती हुई उसकी छाती पर गिर गयी...और अब रश्मी का चेहरा सिर्फ़ 2-3 इंच की दूरी पर ही था...दोनों की साँसे टकरा रही थी आपस मे..रश्मी के दोनो मुम्मे उसके उपर गिरकर पिचक चुके थे...और रश्मी की पीठ पीछे मोनू का लंड अपना पूरा रूप ले चुका था.
मोनू के हाथ धीरे-2 रश्मी की टी शर्ट के अंदर घुसने लगे..उसकी कमर के कटाव से होकर जैसे ही मोनू का हाथ अंदर दाखिल हुआ...रश्मी एकदम से बोली : "ये....क्या कर रहे हो मोनू....मुझे शर्म आ रही है...''
उसकी आँखो मे गुलाबी लकीरें उतर आई...हल्का पानी भी आने लगा...
मोनू : "दीदी...आपने ही तो कहा था की मूंगफलियां खिलाएँगी...अब हमने इतनी गेम्स जीती हैं...उनके बदले सिर्फ़ यही एक चीज़ तो माँग रहा हू...''
Rishu
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Re: बहन का दांव

Post by Rishu »

रश्मी ने सिसक कर उसकी आँखों मे देखा...जैसे कहना चाहती हो की 'यही से तो शुरुवात होगी बाकी के खेल की...इसके बाद तो रुक नही पाऊँगी ..'
पर वो कुछ बोल ना सकी...
और मोनू के हाथ धीरे-2 सरकते हुए अंदर जाने लगे...और जैसे ही उसकी बीच वाली उंगली ने रश्मी के स्तन का निचला भाग छुआ, दोनो के शरीर सिहर उठे...रश्मी ने अपने होंठ अपने दांतो तले दबा लिए..ताकि उसकी सिसकी ना निकल जाए...और मोनू के मुँह से जो साँसे निकल रही थी उससे रश्मी के बाल पीछे की तरफ उड़ते चले जा रहे थे..
मोनू ने अपनी उंगलियों को रश्मी के पर्वतों के उपर चढ़ाना शुरू कर दिया...टी शर्ट काफ़ी ढीली थी..इसलिए उसके हाथ आराम से उसके मुममे की चिकनी दीवारों से होते हुए मैन पॉइंट तक पहुँच गये...और मोनू ने धड़कते दिल से अपने अंगूठे और बीच वाली उंगली के बीच उसकी मूँगफली को लेकर ज़ोर से दबा दिया..
''अहह ....... मोनू ................... धीरेएsssssssssssssssssss ...............''
उसके बाद तो मोनू से सब्र ही नही हुआ...उसने रश्मी के मुम्मे को अपनी पूरी हथेली मे भरा और ज़ोर-2 से दबाने लगा...ऐसा नर्म एहसास तो उसने आज तक नही लिया था...और उसके निप्पल्स यानी मूँगफलियाँ तो सच मे बड़ी ही करारी थी...उन्हे वो जितना ज़ोर से दबाता वो और भी ज़्यादा उभरकर बाहर निकल आती...और निप्पल के चारों तरफ के घेरे मे छोटे-2 दाने जो थे..उन्हे भी मोनू अपनी उंगलियों से रगड़ रहा था..
मोनू ने रश्मी को पीछे की तरफ करते हुए फिर से सीधा बिठा दिया...और अब उसकी निकली हुई छातियों को वो टी शर्ट के उपर से ही दबाने लगा...
दोनो हाथों से दोनो बॉल्स को मसल रहा था वो...रश्मी तो पागल सी हुई जा रही थी...किसी मर्द का पहला स्पर्श जो था उसके जिस्म पर इस तरह से...उसने जो भी आज तक सोचा हुआ था, वो सब महसूस कर रही थी अपने शरीर पर...
मोनू ने अपनी उंगलियाँ सीधा लेजाकर उसके निप्पल्स पर रख दी...
रश्मी ने एक गहरी साँस ली...और उसकी दोनो छातियाँ थोड़ी और बाहर निकल आई.
मोनू ने आदेश सा दिया : "उतारो अपनी टी शर्ट..''
रश्मी का सीना उपर नीचे होने लगा ये सुनकर...पर ना जाने क्या जादू था मोनू की आवाज़ में ...उसके दोनो हाथों ने टी शर्ट के निचले हिस्से को पकड़ा और धीरे-2 उपर सरकाना शुरू कर दिया..
ज़ीरो वॉट का हल्का बल्ब जल रहा था ठीक मोनू के सिर के पीछे...और हल्की मिल्की रोशनी रश्मी के शरीर पर पड़ रही थी...जो धीरे-2 नंगा हो रहा था.
उसका सपाट पेट जैसे ही ख़त्म हुआ, उसके उभारों ने उजागर होना शुरू कर दिया...और धीरे-2 करते हुए एक के बाद एक दोनो पक्क की आवाज़ करते हुए उछलकर बाहर निकल आए...और रश्मी ने उस टी शर्ट को सिर से घुमा कर बाहर निकाल दिया.और अब वो बैठी थी अपने छोटे भाई मोनू के सामने टॉपलेस होकर...अपनी गोल-मटोल छातियाँ लेकर...मोनू ने अपने हाथ ऊपर किये और उन्हें दबाने लगा
मोनू उसकी सुंदरता को बड़ी देर तक निहारता रहा ...और फिर उसने एक और आदेश दिया अपनी बड़ी बहन को..
''खिलाओ...मुझे अब ये मूँगफलियाँ...''
उसका इशारा लाल रंग के निप्पल्स तरफ था, जो भुनी हुई मूंगफली जैसा लग रहा था
रश्मी धीरे से आगे खिसकी...अपनी एक ब्रेस्ट को अपने हाथों मे पकड़ा और मोनू के चेहरे के उपर झुक कर अपने निप्पल से उसके होंठों पर दस्तक दी...
पर वो अपना मुँह बंद किए लेटा रहा...
रश्मी ने अपने पैने निप्पल से उसके होंठों को रगड़ना शुरू कर दिया...पर वो तो जैसे भाव खा रहा था...मज़ा भी उसको लेना था और भाव भी खुद ही खाने लगा..
पर इतना कुछ होने के बाद अब रश्मी पूरी तरह से गर्म हो चुकी थी...अब कोई फ़र्क नही पड़ता था की वो पहल करे या मोनू...बस दोनो किसी भी तरह से पूरा मज़ा लेना चाहते थे...
मोनू ने जब अपना मुँह नही खोला तो रश्मी ने दूसरी ब्रेस्ट को पकड़ा और उसके निप्पल से मोनू के होंठों को रगड़ा...और इस बार उसने थोड़ा ज़ोर लगाया तो उसका खड़ा हुआ निप्पल उसके होंठों की दीवार भेदता हुआ अंदर दाखिल हो गया...पर उसने अपने दाँत आपस मे भींच रखे थे
रश्मी ने सिसक कर कहा : "खोलो अब....वरना ये मूँगफलियाँ सील जाएँगी...इनका करारापन चला जाएगा...''
मोनू अपनी बहन की बात एक ही बार मे मान गया...और जैसे ही उसने अपना मुँह खोला, रश्मी ने पूरा भार उसके उपर डालते हुए अपना पूरा का पूरा मुम्मा उसके मुँह में ठूस दिया....मूँगफली के साथ-2 प्लेट भी अंदर घुसेड दी...मोनू का मुँह काफ़ी बड़ा था...उसने बड़ी ही कुशलता से उसके पूरे मुम्मे को अपने मुँह मे एडजस्ट किया और उसे ज़ोर-2 से चूसना शुरू कर दिया..जैसे कोई दूध पीता है
और अपने भाई के दूध निकालने की इस कला से वो निहाल सी होकर सिसकारियाँ मारने लगी..
''आआययययययययययययययीीईईईईईईईईईई .,........ उम्म्म्ममममममम....... काटो भी इन्हे...... दर्द सा होता है इनमें .......''
रश्मी ने डॉक्टर मोनू को अपनी परेशानी बताई, और वो उसका इलाज करने में जुट गया
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