नए पड़ोसी complete

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Kamini
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Re: नए पड़ोसी

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Rishu
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Re: नए पड़ोसी

Post by Rishu »

कभी कभी मैं और दीदी सोचते की रुची का क्या हुआ होगा क्योंकि ये तो हम जानते थे की लाला जैसा हरामी आदमी रुची से कभी शादी नहीं करने वाला था वो भी ये जानते हुए की वो कितने लंड ले चुकी है पर उसके बाद उनके घर वालों से न कभी हमारी मुलाकात नहीं हुई और न ही कोई खबर मिली. मयंक ने भी फिर कभी हमसे मिलने की कोशिश नहीं की पर ओम ने जरूर एक बार दीदी से मिलने की कोशिश की पर रश्मि दीदी ने उससे कह दिया की अब वो उससे नहीं मिलना चाहती और अगर उसने दीदी को दुबारा परेशान किया तो वो विजय अंकल से कह देंगी. कुछ दिन तक तो मैं और दीदी परेशान रहे की कहीं ओम वापस हमें परेशान न करे पर फिर ओम भी कभी हमारे पास नहीं आया. अब चूँकि बगल में दुकान बंद हो गयी थी तो हमारा उधर आना जाना भी बंद हो गया और नए पड़ोसियों से हमारी कोई ख़ास जान पहचान नहीं हुई केवल पापा की राजेश से हलकी फुलकी बातचीत हो जाती थी और वो भी राह चलते. घर आना जाना हमारा नहीं था.
ऐसे ही समय निकलता गया और मेरा ग्रेजुएशन पूरा हो गया और पापा चाह रहे थे की मैं दिल्ली में mba में एडमिशन ले लूं पर दीदी का पोस्ट ग्रेजुएशन यहीं चल रहा था तो मेरा उन्हें छोड़ कर जाने का मन नहीं था. वैसे भी अभी मेरा और दीदी का हनीमून पीरियड ही चल रहा था. मेरी जिद के आगे आखिर पापा ने कह दिया की ठीक है तुम अच्छे से तैयारी करो ताकि तुम्हे लखनऊ में किसी अच्छे mba कॉलेज में दाखिला मिल जाए. पर तभी हमारे साथ एक बहुत बुरा हादसा हुआ. दरअसल पापा ने नयी कार खरीदी थी और वो और मम्मी मामा के घर जा रहे थे और हाईवे पर उनकी कार एक ट्रक से टकरा गयी. एक्सीडेंट इतना भयानक था की कार के परखच्चे उड़ गए. मम्मी और पापा की मौके पर ही मौत हो गयी. हमको रात में पुलिस वालों ने खबर दी. मेरे और दीदी के ऊपर तो पहाड़ ही टूट पड़ा. खैर जैसे तैसे हमने अपने आपको संभाला और अपने रिश्तेदारों की मदद से अंतिम संस्कार वगेरह किया गया.
करीब ३-४ दिन बाद मेरे मामा ने मुझसे कहा "देखो मनीष, अब घर की जिम्मेदारी तुम्हारे ऊपर है. तुम अब mba का चक्कर छोडो और नौकरी के बारे में सोचो. जीजा जी ये घर तो तुम लोगों के लिए छोड़ गए है पर अभी १-२ साल में रश्मि की शादी भी तो करनी है."
"जी मामा जी मैं भी अब यही सोच रहा था." मैंने मामा से कहा.
मेरी बात सुन कर मामा जी ने कुछ फॉर्म निकाले और बोले इनको भर कर मुझे दे देना. मैंने फॉर्म देखे तो वो मेरे पापा की जगह मुझे नौकरी देने के एप्लीकेशन फॉर्म थे. दरअसल मामा और पापा एक ही बैंक में काम करते थे तो मामा जानते थे की मुझे पापा की जगह नौकरी मिल सकती है. मैंने फॉर्म भर दिए और मामा को दे दिए. मामा ने बैंक की यूनियन से जोर लगवा कर मेरा केस जल्दी ही फाइनल करवा दिया और 4 महीने बाद मेरा अपॉइंटमेंट मेरे घर के पास की ही बैंक ब्रांच में हो गया.
समय निकलने से और मेरी नौकरी लगने के बाद पुराने जख्म भर गए और मेरे और दीदी के बीच फिर से सब कुछ पुराने ढंग से चलने लगा. सुबह मैं बैंक निकल जाता और दीदी कॉलेज. शाम को दोनों साथ साथ वापस आते, साथ साथ खाते और साथ साथ सोते. दीदी अब मेरी दीदी कम बीवी ज्यादा हो गयी थी. सैलरी मिलती तो मैं दीदी के लिए सेक्सी कपडे वगेरह के गिफ्ट खरीदता. कुल मिला कर मेरा और दीदी का मामला सेट हो गया था और हम लोग रोज चुदाई करते थे सिर्फ महीने के पांच दिन छोड़ के या फिर जब मामा हम लोगो से मिलने आ जाते तब. मम्मी पापा के बाद वो हर २-३ महीने में चक्कर मार ही लेते थे पर अचानक उनका ट्रान्सफर २ साल के लिए दिल्ली हो गया तो अब हम लोगो को कोई भी रोकने टोकने वाला नहीं था. मेरी जिंदगी बिलकुल किसी शादी शुदा आदमी जैसी बीतने लगी.
Rishu
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Re: नए पड़ोसी

Post by Rishu »

एक दिन मेरी ब्रांच में मेरे पडोसी राजेश अपनी बीवी के साथ आये. वो मुझे पहचानते तो थे ही तो मुझे देखते ही मेरे पास आ गए और बोले "मनीष जी क्या इसी बैंक में काम करते है."
मैंने कहा "जी हाँ, बताइए क्या बात है."
"दरसल अपना एक करंट अकाउंट और इनका सेविंग अकाउंट खुलवाना है" राजेश ने कहा.
"आप लोग फॉर्म भर दीजिये. एड्रेस प्रूफ, फोटो वगेरह दे दीजिये. मैं खुलवा देता हूँ." मैंने कहा.
"अभी तो हम पेपर्स लाये नहीं है. सिर्फ पूछने आये थे की बिना गारेंटी के अकाउंट खुल जायेगा क्या?" पहली बार दिव्या ने कुछ कहा तो मैंने पाया की उसकी आवाज बहुत मीठी थी. मैंने पहली बार उसकी तरफ गौर से देखा तो पाया की वो काफी सुन्दर है. शायद रंग गेहुआ होने के कारण मैंने कभी उन पर ध्यान नहीं दिया और वैसे भी वो सुबह जल्दी स्कूल चली जाती होगी और जब दोपहर को लौटती होगी तो मैं बैंक में रहता होऊंगा और उसके अलावा को ज्यादा घर से बाहर नहीं आती जाती तो कभी सामना ही नहीं होता जो इतना ध्यान देता. वैसे भी रश्मि दीदी को चोदने के बाद मैंने दूसरी लड़कियों पर ध्यान देना थोडा कम कर दिया था पर बड़ी उम्र की औरतें तो मेरी कमजोरी थी ही. अभी भी कभी कभी मौका मिलने पर नीलम आंटी को चोद ही लेता था. वैसे दिव्या उतनी बड़ी भी नहीं थी. मुझसे करीब १० साल बड़ी होगी. अचानक मुझे महसूस हुआ की मैं ये सब सोचता हुआ दिव्या को कुछ ज्यादा ही घूरे जा रहा था तो मैंने झेप मिटाने के लिए कहा "अरे आप लोगो की गारेंटी के लिए मैं हूँ न. आप लोग कल आ जाइये. मैं सब करवा दूंगा."
"कल मैं तो आ जाऊँगा पर इनका मुश्किल है. आज तो इनके स्कूल की छुट्टी है तो ये आ गयी. अब तो अगली बार जब इनकी छुट्टी होगी तब मैं इन्हें लेकर आ जाऊँगा." राजेश बोला.
मैंने कहा "चलिए उसकी भी कोई जरूरत नहीं. मैं शाम को आपके घर आ जाऊँगा. सब फॉर्मेलिटी पूरी करवा लूँगा और एक दो दिन में अकाउंट खुलवा कर कागज भी आपके घर पर ही दे जाऊँगा. ठीक है."
"सच. आपका बहुत शुक्रिया. दरअसल मेरे स्कूल वालों ने इसी महीने से मेरी सैलरी चेक से देनी शुरू कर दी है और मेरा कहीं भी कोई बैंक अकाउंट नहीं है. अगर आप ये करवा दे तो..." दिव्या ने मेरे कानों में शहद घोला.
"शुक्रिया की क्या बात. आखिर पडोसी पडोसी के काम नहीं आयेगा तो कौन आयेगा. शाम को ७ बजे मिलते है." मैंने राजेश से हाथ मिलाते हुए कहा और वो दोनों चले गए. मुझे दिव्या की खूबसूरती ने इतना इम्प्रेस किया की मैंने सोचा की इनसे तो जान पहचान बढ़ानी ही चाहिए. हो सकता है की कुछ वैसा फायदा हो जाए जो पहले हुआ था तो इसीलिए शाम दीदी से बोलकर मैं उनके घर फॉर्म वगेरह लेकर पहुच गया. दरवाजा दिव्या ने खोला और मुझे अन्दर बुलाया. बहुत साल बाद इस घर में आया था. इन लोगों ने घर में काफी बदलाव करवा लिए थे. दिव्या मुझे ड्राइंग रूम में ले गयी जहा राजेश टीवी देख रहा था. मुझे देखकर राजेश खड़ा हो गया और मुझसे हाथ मिलाया. मैंने उन दोनों से फॉर्म पे साइन करवाए. पेपर्स वगेरह लिए और कहा "तो ठीक है राजेश भाई. मैं चलता हूँ."
"अरे आज पहली बार आप मेरे घर आये हैं मनीष जी ऐसे सूखे सूखे थोड़े ही जाने दूंगा. मैं तो वेट कर रहा था की पहले काम वगेरह हो जाए फिर महफ़िल जमाई जाए. जाओ दिव्या इन्तेजाम करो." राजेश बोला और दिव्या अन्दर चली गयी.
"अरे आप लोग परेशान न हो. घर पर दीदी मेरा वेट कर रही होंगी." मैंने मना किया.
Rishu
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Re: नए पड़ोसी

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"अरे अभी कौन सा रात के १२ बज गए है. दो दो पेग हो जाए फिर चले जाइएगा आप." राजेश ने कहा तब तक दिव्या एक ट्रे में काजू, गिलास, सोडा और स्कॉच की बोतल लेकर आ गयी. वैसे तो मैंने पहले भी दोस्तों के साथ पी है. लाला ओम मयंक वगेरह के साथ भी पर कभी स्कॉच नहीं पी और इधर तो कई महीनो से शराब नहीं पी थी.स्कॉच देख कर मैंने सोचा की थोड़ी देर बैठ ही लेते है. मैंने कहा "एक शर्त पर बैठूंगा."
"कैसी शर्त मनीष जी?" राजेश ने पुछा.
"यही की आप लोग मुझे जी और आप नहीं बुलाएँगे. आप मुझसे उम्र में करीब १७ साल बड़े है." मैंने कहा.
"मंजूर है यार अब तो बैठो. पर तुम्हे कैसे पता की मैं तुमसे कितना बड़ा हूँ." राजेश ने हँसते हुए पुछा.
"अभी तो इस फार्म में आप दोनों ने अपनी उम्र भरी है. आप मुझसे १७ साल और भाभी से ७ साल बड़े है." मैंने कहा तो दिव्या ने हँसते हुए कहा "ये तो बड़ी गड़बड़ हो गयी जो तुमको मेरी उम्र पता चल गयी." और हम दोनों के लिए पेग बनाकर वो किचन में चली गयी.
मैं करीब २ घंटे उनके यहाँ रुका और खा पीकर घर आया. मैंने महसूस किया की मैं करीब ४ साल से दीदी को रोज चोद रहा था और अब थोडा थोडा बोर हो गया था पर आज पीकर जब मैंने दीदी को चोदा तो एक ताजगी का एहसास हुआ. दीदी भी बोली "आज बहुत दिनों बाद काफी जोश में थे? क्या हुआ? क्या बगल वाली भाभी समझ कर चोद रहे थे."
मैंने कहा "वैसे आज तो नहीं सोच रहा था पर कल हम लोग रोल प्ले करेंगे. तुम दिव्या बनना. बड़ा मजा आयेगा." और सच में अगले दिन दीदी दिव्या बनी और मैं राजेश और हम दोनों को बड़ा मजा आया. इस तरह मेरी और दीदी की सेक्स लाइफ जो सूख रही थी उसमे फिर से रस धार बह निकली. कुछ दिन बाद मैं फिर से राजेश के घर उनकी पासबुक वगेरह देने पंहुचा तो राजेश उस दिन भी पी रहे थे. उन्होंने फिर से मुझे साथ बिठा लिया. उस दिन मुझे पता चला की वो नियम से रोज ही पीते है. उस दिन भी मैंने ३ पेग लगाये और घर लौट कर दीदी को जबरदस्त चोदा. करीब ६ महीने में ही मैं भी राजेश की तरह रोज पीने वाला हो गया और राजेश मेरा रोज का साथी. कभी मैं उसके घर चला जाता तो कभी वो मेरे घर. राजेश खुले दिल का आदमी था. मेरे घर तो कोई ज्यादा आता जाता नहीं था पर राजेश के यहाँ काफी लोग आते रहते. मैंने देखा की हर २-३ हफ्ते में उसका कोई रिश्तेदार या दोस्त वीकेंड में उसके घर पर रहने आ ही जाता था तब हम लोग साथ बैठ कर नहीं पी पाते. मैंने कई बार कोशिश की कि दीदी मेरा साथ देने लगे पर दीदी कभी कभी चख जरूर लेती थी पर इससे ज्यादा नहीं.
Rishu
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Re: नए पड़ोसी

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अब मेरे रिश्तेदार हमारे ऊपर दबाव डालने लगे की अब मैं दीदी की शादी कर दूं. दीदी तो मना कर देती पर मैं क्या करता. आखिर मामा ने दिल्ली में ही एक लड़का फाइनल करके मुझसे कह दिया की अब मैं देर न करूं और दीदी की सगाई कर दूं. अब हम मामला ज्यादा टाल नहीं सकते थे. दीदी की पढाई भी पूरी हो गयी थी और लड़के वालों ने कोई डिमांड भी नहीं की. लड़का देखने में भी अच्छा था. बढ़िया नौकरी, अच्छा खानदान मतलब हमारे पास कोई बहाना नहीं बचा तो आखिरकार दीदी की सगाई हो ही गयी और 2 महीने बाद शादी भी. दीदी हनीमून के लिए गोवा गयी और जब वो वापस लौट कर आई तो उन्होंने मुझे फोन किया. थोड़ी देर तक हलचल लेने के बाद दीदी ने बताया "मनीष, जब मैं गोवा से वापस दिल्ली आ रही थी तो हम ३ दिन बोम्बे में रुके थे. जिस होटल में हम रुके थे न मुझे वही रुची मिली."
"रुची? वो वहां क्या कर रही थी" मैंने पुछा.
"वो उस होटल में रिसेप्शनिस्ट की नौकरी कर रही है. उसने बताया की लाला उसको लेकर बॉम्बे गया था और कुछ दिन मज़े करने के बाद छोड़ कर भाग गया तो उसका टाइम शुरू में काफी ख़राब निकला. तरह तरह के काम किया उसने और अब उस होटल में नौकरी करती अहि और मयंक के साथ रहती है. मयंक भी बॉम्बे में ही रहता है वही नौकरी करता है. अंकल आंटी को सब पता है और अब वो उसकी शादी करने वाले है. वो चाहती थी की मैं एक बार मयंक से मिलूँ पर एक तो ये २४ घंटे मेरे साथ थे और दुसरे मेरा खुद का भी कुछ मन नहीं हुआ की कहीं कुछ लफड़ा न हो जाए." दीदी ने कहा.
"चलो अच्छा ही हुआ." मैंने कहा.
दीदी के दिल्ली जाने के बाद मेरा राजेश के यहाँ जाना और बढ़ गया. अक्सर मैं ऑफिस के बाद सीधे राजेश के घर पहुच जाता और खा पीकर ही वापस आता था पर जब उसके दोस्त वगेरह आ जाते तो मुझे दिक्कत होती थी. दिव्या के लिए मेरे दिल में अभी भी आग थी पर वो कभी कोई सिग्नल ही नहीं देती और इतने दिनों में मुझे ये भी समझ में आ गया की दोनों पति पत्नी आपस में बहुत प्यार भी करते है. ६-८ महीने और निकल गए और एक दिन मामा जी मुझसे मिलने आ गए. घर की हालत देख कर उन्होंने कहा की अब तुम भी कुछ सोचो शादी के बारे में. वैसे भी दीदी ने मेरी बीवी बन के ऐसी आदत डाल दी थी की अब मुझे बहुत दिक्कत हो रही थी. पेट की भूख तो जैसे तैसे मिट जाती थी पर जिस्म की भूख का कोई इंतज़ाम नहीं हुआ था. दिव्या के यहाँ भी कुछ नहीं हो पाया और मेरी नौकरी के चक्कर में कभी कभी दोपहर को जो नीलम आंटी की मिल जाती थी वो काम भी बंद हो गया तो मैंने सीधे सीधे मामा से कहा "सोच तो रहा हूँ मामा."
"कोई लड़की देखी है क्या?" मामा ने पुछा.
"नहीं फिलहाल तो नहीं." मैंने जवाब दिया.
"तो इसको देखो." मामा ने पॉकेट से एक फ़ोटो निकाल कर मुझे दिखाई. उफ्फ क्या फोटो थी. बहुत ही सुन्दर. बस समझ लीजिये की टेनिस प्लेयर मारिया शारापोवा की कार्बन कॉपी. मैंने पुछा "ये किसकी फोटो है."
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