असली या नकली

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Kamini
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असली या नकली

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असली या नकली


लेखक-रोकी

ये कहानी शुरू होती है 60 के दशक के भारत से

सन 1960 , विभाजन की मार झेल चुका भारत देश धीरे धीरे फिर से अपने आपको संवारने में लगा हुआ था, अमीरी गरीबी का फर्क उस समय बहुत ज्यादा था, वो भी खासकर बम्बई जैसे बड़े शहर में

जी हां कहानी शुरू होती है भारत की औद्योगिक नगरी मुम्बई जिसका नाम उस समय बम्बई था, ऊंची ऊंची इमारतों ने शहर की आबादी को बढ़ाना शुरू कर दिया था, लाखो की तादाद में मिडिल क्लास फैमिली के लोग किसी तरह इस चकाचोंध वाले शहर में अपनी गुज़र बसर कर रहे थे, कुछ किस्मत वाले ऐसे भी थे जिनके पास बेशुमार दौलत थी, जिनके लिए पैसा सिर्फ हाथ का मैल था, परन्तु सबसे बुरी हालत थी छोटी छोटी बस्तियों में रहने वाले गरीब लोगों की, जो बड़ी मुश्किल से अपना गुजारा कर पा रहे थे, दिन भर घर का मुखिया जी तोड़ मेहनत करता तब कहीं जाकर 2 वक्त की सूखी रोटी का इंतेज़ाम हो पाता, उन गरीबो के लिए दिन भर में मुश्किल से 2 रुपये ही कमाना बड़ा मुश्किल होता था, उन 2 रुपयों में ही उनके दिन भर का खर्चा चलाना पड़ता था, (हालांकि उस समय के 2 रुपये की कीमत आज से ज्यादा है)

परन्तु भगवान गरीबी के साथ सब्र बिल्कुल मुफ्त देता है, भले ही वो लोग गरीब थे पर उनके मन मे हमेशा सब्र रहता था, उन्हें पैसो का लालच नही होता था बस 2 वक्त के गुजारे की चिंता होती थी

ऐसी ही एक गरीब बस्ती में मैं आप लोगो को ले जा रहा हूँ, इस बस्ती के भी बाकी जगह की तरह गरीब लोग ही रहते थे, बेचारे किसी तरह अपने परिवारों का पालन पोषण करते और अपनी ज़िंदगी की गाड़ी को आगे बढ़ाते, ज्यादातर लोग मजदूरी करके ही अपना पेट भरते थे , कुछ मैकेनिक थे, तो कोई इक्का दुक्का लोग कहीं ठेला लगाकर अपना जीवन काट रहे थे,
सब लोग दिन भर जमकर मेहनत करते तब कहि जाकर रात को खाने का गुजारा होता, पर उनके मन मे संतोष रहता था, रात को अक्सर आपस मे बैठकर गप्पे मारते और कभी कभी रात को भजन भी कर लेते

इसी बस्ती में एक छोटा सा घर मोहन का भी था, मोहन एक 25 साल का मेहनती इंसान जिसके मा बाप बचपन मे ही चल बसे थे, पीछे रह गयी थी उसकी एक बहन माला , जिसे पाल पोष कर उसी ने बड़ा किया था, माला लगभग 19 साल की थी, मिज़ाज़ की ज़रा गरम थी, अक्सर मोहन को भी किसी बात के लिए डांट दिया करती थी, पर थी दिल की बड़ी साफ, दोनों भाई बहन किसी तरह अपने जीवन को काट रहे थे

अब कहानी के कुछ और किरदारों की तरफ बढ़ते हैं

गरीबों और मिडिल क्लास के लाखों परिवारों की तरह यहां कुछ ऐसे खुश नसीब परिवार भी थे, जिन्हें अमीरी में जीने का सुख मिल रहा था, ऐसा ही एक धनी और अमीर परिवार सेठ बद्री प्रसाद का भी था,

बद्री प्रसाद, एक 65 साल का बूढ़ा आदमी, जिसने अपनी मेहनत से सपनों के इस शहर में खुद के सपने को पूरा किया था, यह उसी की मेहनत का नतीजा था कि आज उसकी गिनती शहर के सबसे अमीर खान दानों में होती थी, उससे एक बार मिलने के लिए मंत्री भी लाइन लगाने को तैयार रहते थे,

बद्रीप्रसाद 65 साल



बेशुमार दौलत, बेहिसाब हीरे-जवाहरात, कई गाड़ियां, सैंकड़ो फैक्ट्रियां और भी ना जाने क्या-क्या, पग पग पर सिर्फ पैसा ही पैसा , इतनी धन दौलत की अगर गिनने बैठे तो कई दिन लग जाये

बद्री प्रसाद के 2 बेटे थे - बड़ा महेश (45 साल ) और दूसरा जगदीश (43 साल )

दोनों बेटे बाप की तरह ही बहुत मेहनती थे और काम में अपने पिता का हाथ बटाते थे, सारे काम काज का मुखिया अभी भी बद्री प्रसाद खुद ही था,
कहते हैं ना भगवान पैसे के साथ घमंड और लालच फ्री में देता है, यही बद्री प्रसाद और उसके बेटों के साथ भी था, अनगिनत पैसों ने उन्हें और भी ज्यादा लालची और अहंकारी बना दिया था, किसी से सीधे मुंह बात तक नही करते , दिन रात बस पैसे बनाने में लगे रहते, अपने वर्कर्स से जितना ज्यादा हो सकता उतना काम करवाते और जितनी कम हो सके उतनी पगार देते, गरीबो को वो लोग अपने पैर की जुती समझते थे , पैसो के लालच ने उन्हें पूरी तरह अँधा बना दिया था


अब हम बद्री प्रसाद के बेटों के परिवार के बारे में जानते हैं

बद्री प्रसाद के बड़े बेटे महेश की शादी रमा से हुई थी,
रमा 42 साल

रमा भी एक अमीर खानदान की लड़की थी, उसका जीवन भी सारे एशो आराम से गुजरा था, रमा 42 साल की एक गृहिणी थी , कसा हुआ बदन, तीखे नैन नक्श, कजरारी आंखे, सांचे में ढली हुई कमर, भारी नितम्ब और सुडौल जाँघे , जिन्हें देखकर कोई भी दीवाना हो जाये
उसका पूरा दिन बस घर के काम काज में ही गुजरता था, पहले के जमाने में वैसे भी बहुत कम लडकियों को जॉब करने की इज़ाज़त मिलती थी , और वो भी तब जब घर में कोई और कमाने लायक न हो ,
रमा जब पहली बार बहु बनकर उनके घर आई थी, तो उनके घर की चका चोंध देखकर उसकी आँखे भी बड़ी हो गयी थी , भले ही वो खुद भी एक आमिर खानदान से ताल्लुक रखती थी , परन्तु सेठ बद्रीप्रसाद का बंगला तो किसी महल से कम ना था ,
रमा को लगा था कि उसके पिता ने उसके लिए सबसे अच्छा रिश्ता ढूँढा है, पर जल्द ही उसकी ये गलत वहमी दूर हो गयी , शादी के कुछ दिन तक तो महेश उसे समय देता था , परन्तु बाद में वो अपने कामो में इतना खो गया था कि रमा के लिए समय भी नही निकाल पाता था, रमा हमेशा से ही एक सेक्सी और चुदाई की शौक़ीन लडकी रही थी, पर शादी से पहले उसने अपने आपको बिलकुल अछुता रखा था, ये उसकी तमन्ना थी कि उसका पति उसकी जवानी को हमेशा रोंदे, और उसे हमेशा काम सुख का आनद दे,
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सुहागरात की रात महेश ने अपने 7 इंच के लंड से रमा की चुत की धज्जियाँ उड़ा दी थी और उसे जन्नत की सैर करवा दी थी , कुछ महीनों तक तो उसकी जिंदगी में सब कुछ मजे में रहा, उसने अपने पति के साथ चुदाई का हर सुख भोगा, परन्तु धीरे धीरे उसके पति ने उसकी तरफ ध्यान देना कम कर दिया, रोजाना सेक्स का आनंद उढ़ाने वाली रमा को अब सेक्स हफ्ते में एक बार ही नसीब होता था, धीरे धीरे ये महीने में एक हो गया, और जब रमा को पहली सन्तान हुई तो उसके बाद तो जैसे उनका सेक्स करना बिलकुल बंद हो चूका था, रमा ने भी इसे अपनी तकदीर समझ कर अपना लिया,

महेश और रमा को 3 संतान हुई थी,
सबसे बड़ी बेटी मोहिनी ,
मोहिनी 24 साल

मोहिनी 24 साल की एक जवान लड़की थी, उसका बदन भी उसकी माँ की तरह बिलकुल गोरा और दुधिया था, और दिखने में वो रमा की तरह ही खूबसूरत थी, वही तीखे नैन नक्श, दमकता गोरा चिट्टा चेहरा और गुलाबी रसीले होंठ, छोटे छोटे अमरूद जैसी सुंदर सुंदर चुचियाँ, पतली गोरी कमर, उभरी हुई गांड, भरी मांसल जाँघे और उसके कच्चे यौवन की मादक खुशबू जो किसी भी मर्द का लंड खड़ा कर सके , मोहिनी पर भी अपने पिता की तरह पैसो का घमंड सवार रहता था, वो नए जमाने की विचार धाराओ को मानने वाली लड़की थी, उसकी सहेलीया भी ऊँचे खानदानो से ताल्लुक रखती थी, मोहिनी को अपनी सुन्दरता पर बड़ा गर्व था, वो तो अपने शरीर पर मक्खी भी नही बैठने देती थी, चूँकि खुद को मॉडर्न कहलाना पसंद करती थी तो ड्रेस भी वैसी ही पहनती थी, घुटनों से निचे तो कभी कोई ड्रेस पहनी ही नही थी उसने , पढाई लिखाई में ध्यान कम ही रहता था उसका,

दूसरी बेटी का नाम राखी था,
राखी 23 साल

राखी 23 साल के कच्चे योवन की मालकिन थी, उसका शरीर भी अपनी बड़ी बहन की तरह ही खुबसूरत था, दिखने में वो मोहिनी की कार्बन कॉपी लगती थी, पर व्यवहार में वो उसकी बिल्कुल उलट थी, यानि जहाँ एक तरफ मोहिनी को हमेशा मॉडर्न तरीके से लाइफ जीना पसंद था वहीं राखी को हमेशा से सादा और संस्कारी तरीके से रहना पसंद था, और इसी वजह से वो अपने परिवार की लाडली भी थी, हमेशा अपने बदन को पूरी तरह ढककर रखती थी, शायद खुद ने भी अपने बदन को आज तक पूरी तरह से नहीं देखा था, पर उसके कसे बदन को देखकर किसी भी मर्द का लंड पल भर में खड़ा हो जाये

महेश और रमा की तीसरी और आखिरी संतान थी उनका और इस खानदान का एकमात्र वरिश और अपनी कहानी का हीरो – आनन्द ,
आनन्द 22 साल का एक हैण्डसम नोजवान था, दिखने में वो किसी हीरो की तरह ही था, बचपन से ही उसे कसरत करने की आदत थी इसलिए उसका बदन बिलकुल सांचे में ढला हुआ और बिलकुल फिट था, लडकियाँ भी उसे देखकर अक्सर लट्टू हो जाया करती थी, आनन्द अपने बाप पर गया था पर सिर्फ और सिर्फ एक मामले में, वो था उसका लंड, दरअसल उसका लंड उसके बाप से भी थोडा बड़ा और मुसल था, लगभग 8 इंच लम्बा और 3 इंच मोटे लंड से वो चाहे तो किसी की भी चीखे निकल दे, पर बाकि चीजों में वो अपने बाप से बिलकुल उलट था , यानि की उसे काम काज और बिजनेस से नफरत थी, उसे मेहनत करना बिलकुल पसंद नही था , वो तो बस पैसे उड़ाने में यकीन रखता था, और इसलिए हमेशा बस पार्टियों में जाना, मोज मस्ती करना ,पैसे को पानी की तरह बहाना यही सब उसका शौक था, हाँ एक और बात उसे घोड़ो की रेस देखना और उसमे पैसे लगाने का बड़ा शौक था , और अपने इसी शौक के चलते वो महीने में बीस से पचीस हज़ार रूपये तो बस घोड़ो की रेस में ही उड़ा देता था, उसकी फ़िज़ूल खर्ची बहुत ज्यादा थी, अपने आपको को किसी राजकुमार से कम नही समझता था , लेट से उठाना, उठते ही बिस्तर में चाय पीना, फिर तैयार होकर अपने लफंगे दोस्तों के साथ चले जाना और रात को देर से घर आना यही सब उसकी दिनचर्या का हिस्सा था,
उसकी इस फ़िज़ूल खर्ची से बद्री प्रसाद और महेश बहुत परेशान थे, क्यूंकि उन्हें लगने लगा था कि आनन्द जीवन में कुछ नही कर पायेगा, कभी कभी बद्री प्रसाद को गुस्सा आता तो वो उसे बुरी तरह डांटता , जिससे आनन्द नाराज़ होकर अपने दोस्तों के पास चले जाता और फिर 2-3 दिन घर नही आता , पर जब पैसे खत्म होते हो हारकर वापस घर आना ही पड़ता,
बद्री प्रसाद को समझ नही आता की आखिर आनन्द को कैसे सही रस्ते पर लाया जाये क्यूंकि वो उसके खानदान का इकलोता वारिस था

अब हम बद्री प्रसाद के दुसरे बेटे जगदीश के परिवार के बारे में जानते है

जगदीश की शादी प्रभा से हुई थी,
प्रभा 40 साल

प्रभा भी दिखने में बड़ी खुबसूरत थी , 40 साल की उम्र में भी उसने अपने बदन को पूरा मेन्टेन किया हुआ था, उसके भरी भरकम बूब्स और गुदाज़ गांड उसके शरीर का आकर्षण बिंदु थे , पर रमा की तरह वो भी अपनी लाइफ बिना सेक्स का आनन्द लिए गुज़र रही थी क्यूंकि जगदीश भी अपने बड़े भाई और बाप की तरह दिन रात बस पैसे बनाने में लगा रहता था

जगदीश और प्रभा के 2 बेटियां थी

पहली रूपा ,
रूपा 23 साल

जो 23साल की खुबसूरत लडकी थी, मोहिनी की तरह वो भी मॉडर्न तरीके से जिंदगी जीना पसंद करती थी , और इसी वजह से उसकी मोहिनी से बहूत पटती भी थी, कम उम्र से ही चुदाई का ज्ञान उसे अपनी मॉडर्न सहेलियों से मिल चूका था और इसिलए दिन रात चुदाई के ख्यालो में ही बनी रहती

दूसरी बेटी का नाम था निशा ,
निशा 22 साल


निशा भी मोहिनी और रूपा से ज्यादा अलग नही थी , और आधुनिक तरीके से जीवन जीना पसंद करती थी ,निशा की सबसे बड़ी खासियत थी उसके खुबसूरत मम्मे, निशा के मम्मे बरसों से पिंजरे में क़ैद कबूतर की तरह थे जो आज़ाद होने के लिए फडफडा रहे थे, निशा सचा में सेक्स की देवी लगती थी, उसका यौवन उसकी समीज में से ही कहर ढाता था,उसकी छतियो के बीच की घाटी जानलेवा थी, उसका नव यौवन कयामत ढाता था ,जाने अंजाने वो किसी की भी साँसों में उतरने का माद्दा रखती थी, अक्सर मोहिनी और रूपा भी उसके इस खुबसूरत बदन को देखकर जल उठती थी

तो ये था बद्री प्रसाद का खानदान
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बम्बई शहर के पोर्श इलाके में सबसे बड़े और सबसे शानदार बंगले का मालिक था बद्रीप्रसाद , उनके बंगले को देखकर कुबेर को भी एक बार शर्म आ जाये, उस समय की सभी आधुनिक सुख सुविधाओ से सम्पन्न उस बंगले की छटा देखते ही बनती थी, बंगला २ मंजिला था , और सभी के सभी कमरे शाही थे, बंगले में जब मुख्य द्वार से घुसते तो बाहर सबसे पहले एक बड़ा विशाल गार्डन था , जिसमे घर के सभी लोग सुबह सुबह धुप का आनन्द लेते थे, गार्डन के अंत में एक ओर शानदार स्विमिंग पूल था ,जो बेहद आधुनिक तरीके से बनाया गया था, घर के पास ही गाडियों की पार्किंग के लिए एक बड़ा सा स्पेस था जिसमे उस समय की लगभग हर बड़ी गाड़ी मोजूद थी, बंगले से बाहर पास में चोकिदारो के लिए भी एक छोटी सी जगह बनाई हुई थी,

बंगले के अंदर जब प्रवेश करते तो एक बड़ा सा शानदार हॉल था, जो बहूत सुंदर दिखाई पड़ता था, बैठने के लिए बड़े बड़े सोफे रखे थे वहां , घर के एक कोने में एक बड़ी सी डाइनिंग टेबल भी रखी थी ,
बीचो बिच शानदार शाही रुबाब वाली सीढियां थी जो पहली मंजिल को दूसरी मंजिल से जोडती थी,दोनों ही मंजिलो पर सीढियों के दोनों और 3-3 रूम थे

निचे वाली मंजिल में कोने के सबसे पहले रूम में खुद बद्रीप्रसाद रहता था, बद्रीप्रसाद के पास वाले रूम में उसका बड़ा बेटा महेश और उसकी पत्नी रमा रहती थी, फिर एक कमरा बद्रीप्रसाद ने काम काज के लिए बना रखा था,

सीढियों के दूसरी तरफ सबसे पहले किचन था, किचन के पास वाला रूम अक्सर खाली ही रहता था, और वो तभी खुलता था जब घर में कोई पार्टी होती थी, उससे अगले कमरे में जगदीश और उसकी पत्नी प्रभा रहती थी,

उपर वाली मंजिल में बाये तरफ का सबसे पहला रूम आनन्द का था, आनंद का कमरा इस घर का सबसे शानदार कमरा था, आनंद के पास वाला रूम उसकी छोटी बहन और घर की सबसे संस्कारी लडकी रेखा का था, रेखा अपने रूम को भी बहुत सजा के रखती थी,
रेखा के बाजु में स्टोर रूम था , सीढयो की दाहिनी तरह सबसे पहले रूपा फिर मोहिनी और लास्ट वाला रूम निशा का था

उस जमाने में लेट बाथ अटेच नही होते थे, इसलिए घर के बाहर ही एक तरफ 3 – 3 बाथरूम और टॉयलेट थे,


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रात के तकरीबन 8:00 बजने वाले थे, घर के सभी लोग डाइनिंग टेबल पर पहुंच चुके थे, बद्रीप्रसाद का ये सख्त आदेश था कि हफ्ते में कम से कम एक बार तो सब लोग मिलकर साथ में डिनर करेंगे, क्यूंकि बाकि दिन तो तीनो बाप बेटे काम काज की वजह से लेट ही घर आते थे, डिनर के लिए उन्होंने इतवार (सन्डे ) का दिन फिक्स किया हुआ था और बद्री प्रसाद के रूल को कोई तोड़ सके ऐसी उस घर में किसी की भी हिम्मत नही थी सिवाय एक इंसान के , और वो था अपना आनन्द , जी हाँ घर में वो ही एकमात्र शख्स था जो बद्रीप्रसाद की बात को टालने की हिम्मत रखता था, बाकि लोग तो बद्रीप्रसाद की एक आवाज़ से भी खोंफ खा जाते थे, आखिर रुबाब ही कुछ ऐसा था उनका

बद्रीप्रसाद घर के बाकि लोगो के साथ डाइनिंग टेबल पर पहुंच चूका था, पर आनंद का कोई नमो निशान नजर नही आ रहा था,

बद्रीप्रसाद – “ये आनंद कहाँ रह गया महेश” बद्रीप्रसाद ने हल्के गुस्से में कहा

महेश – “जी पिताजी , वो ....वो....मुझे भी नही पता ....शायद अपने रूम में होगा” महेश ने थोडा डरते हुए कहा

इससे पहले कि कोई कुछ बोलता मोहिनी बिच में ही बोल पड़ी

मोहिनी – दादाजी , आनंद तो अपने कमरे में नही है, मै खुद देखकर आई थी

मोहिनी की बात सुनकर बद्रीप्रसाद को समझ आ गया था की आनंद ओरों दिनों की तरह आज भी अपने लफंगे दोस्तों के साथ बाहर घुमने चला गया है, दरअसल मोहिनी और आनंद की जरा भी नही बनती थी , वो दोनों हमेशा झगड़ा करते रहते थे, और चूँकि रूपा और निशा की मोहिनी से बनती थी इसलिए वो दोनों भी उसी का साथ दिया करती थी, बस एक रेखा ही थी जो आनंद का पक्ष लेती थी,
इधर बद्रीप्रसाद गुस्से से आग बबूला हो गया था,

बद्रीप्रसाद – रामलाल(नोकर) ,आज जब आनंद घर आये तो उसे मेरी इज़ाज़त के बिना कोई खाना न दे पाए

रामलाल – जी मालिक

बद्रीप्रसाद का गुस्सा देखकर बाकि लोग भी घबरा गये थे, सब चुपचाप किसी तरह अपना खाना खत्म करने में लगे हुए थे, उन्हें समझ आ गया था कि आज तो आनंद फिर से डांट खायेगा


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Re: असली या नकली

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सभी लोग अभी खाना खा ही रहे थे कि तभी बाहर से गाड़ी की आवाज़ आती है, सब समझ चुके थे कि आनंद आया है, मोहिनी , रूपा और निशा के चेहरे पर शातिर हंसी आ रही थी, क्यूंकि उन्हें पता था कि अब दादाजी जरुर आनंद को डांटेंगे और उन्हें इसमें बड़ा मज़ा आता था,

इधर आनंद धीरे धीरे चलता हुआ हॉल की तरफ बढ़ रहा था , उसे समझ आ गया था कि आज उसकी खैर नही, दरअसल उसने कोशिश तो बहुत कि थी किसी तरह जल्द से जल्द 8 बजे से पहले पहुंचे पर फिर भी वो लेट हो ही गया था,

आनंद जैसे ही डाइनिंग टेबल की और बढ़ा , उसने देखा कि दादाजी उसकी ओर गुस्से से देख रहे है, उसने तुरंत नज़रे निचे कर ली, और चुपचाप जाकर कुर्सी पर बैठ गया

बद्रीप्रसाद – “कहाँ से आ रहे हो तुम ?” बद्रीप्रसाद ने गुस्से से कहा
आनंद – “वो दादाजी ..वो मै अपने दोस्तों के साथ था”
बद्रीप्रसाद – “ दोस्तों के साथ इतनी रात गये क्या कर रहे थे”
आनंद – “जी, वो ....वो ...किसी दोस्त की जन्मदिन की सालगिरह थी तो वहीं पर गया था”
बद्रीप्रसाद –“ तुम्हे पता नही कि आज संडे है, और संडे को हम रात का खाना साथ खाते है
आनंद – “जी दादाजी पता था, पर पार्टी में थोड़ी देर हो गयी,इसलिए .........”

वो अभी बात कर ही रहे थे कि पास बैठी निशा चिल्लाकर बोली
निशा - दादाजी, भैया के मुंह से शराब की बदबू आ रही है

निशा की बात सुनकर तो जैसे आनंद के पैरो तले जमीन खिसक चुकी थी, उसे समझ नही आ रहा था कि वो क्या बोले, दरअसल आज अपने दोस्त की पार्टी में उसने पहली बार बहुत थोड़ी सी शराब पी थी, और कहते है ना कि अगर किस्मत ख़राब हो तो घर के अंदर बैठे आदमी के सर पर भी ओले गिर सकते है

आनंद की तो सिट्टी पिट्टी गुम हो चुकी थी ,उसे समझ आ चूका था कि आज तो उसकी खैर नही ,

निशा की बात सुनकर बद्रीप्रसाद का मुंह गुस्से से लाल पीला हो गया था,

बद्रीप्रसाद (चिल्लाते हुए ) –“ आनंद ..........निशा जो बोल रही है वो सच है या नही ?”

आनंद बेचारा क्या बोलता , उसकी तो वैसे ही फट के चार हो गयी थी, वो तो मन ही मन निशा को गाली दे रहा था और भगवान् से प्रार्थना कर रहा था कि हे भगवान आज किसी तरह बचा लो फिर कभी शराब के हाथ भी नही लगाऊंगा,

बद्रीप्रसाद – “तुमने सुना नही कि मैंने क्या पूछा ?”

आनंद – “जी जी .....वो....वो.....दादाजी .....वो...मै .....आज...पहली बार ही बस.....”

आनंद की बात सुनते ही बद्रीप्रसाद के गुस्से का तो ठिकाना न रहा,वो जोर से चिल्लाकर बोला

बद्रीप्रसाद – “मुझे तुझसे ये आशा बिलकुल न थी आनंद, मैंने तुझे जो आजादी दी है तूने उसका गलत फायदा उठा लिया है, लेकिन बस अब और नही .......”

आनंद – “मुझे माफ़ कर दीजिये दादाजी....वो मैंने दोस्त की बातो में आकर ......”

बद्रीप्रसाद – “मैं देख रहा हूँ तुम दिनों दिन उद्दंडी होते जा रहे हो, अब समय आ गया है तुम मेरे साथ ऑफिस आना शुरू कर दे, अब तो तेरी कॉलेज भी खत्म हो गयी है”

आनंद –“नही दादाजी ,अभी नही , अभी से मैं ऑफिस आकर क्या करूंगा, वैसे भी आप,पिताजी और चाचाजी तो जाते ही है, तो घर पर तो कोई आदमी होना चाहिए ना”

बद्रीप्रसाद – “पर तुम घर पर रहते कब हो, हमेशा अपने आवारा दोस्तों के साथ घूमते रहते हो, नही अब मैं तुम्हारी एक नही सुनने वाला, तू कल से मेरे साथ ऑफिस चल रहा है, बस ....” बद्रीप्रसाद ने अपना फैसला सुनाते हुए कहा

आनंद – “पर दादाजी..........”

आनंद इतना ही बोल पाया था कि बद्रीप्रसाद ने उसकी बात बिच में काट दी और बोले

बद्रीप्रसाद- “मैंने एक बार कह दिया तो कह दिया, कल सुबह जाने के लिए तैयार रहना , वरना मुझसे बुरा कोई नही होगा.....”

आनंद भी समझ चूका था कि अब बहस करने से कोई फायदा नही होने वाला , इसलिए उसने गर्दन निचे की और चुपचाप खाना खाने लगा
उधर 6 आँखे ऐसी थी जिनमे खुशी के मारे चमक आ गयी थी, जी हाँ मोहिनी ,निशा और रूपा दादाजी के इस फैसले से बड़ी खुश हो रही थी, और नज़रे बचाकर आनंद की तरफ इशारे करके उसका मजाक उड़ा रही थी,

आनंद को उनकी इस हरकत पर गुस्सा तो बहूत आ रहा था और खास कर निशा पर, परन्तु दादाजी के सामने वो कर भी कुछ नही सकता था, इसलिए बस चुपचाप खाना खाता रहा

खाना ख़त्म होते ही सब लोग अपने अपने कमरों में चले गये ,घर के नोकर भी जा चुके थे, बस रामलाल ही घर के बाहर बने छोटे से मकान में रहता था, बाकि चोकीदारो के साथ ,क्यूंकि उसे सुबह जल्दी उढ़कर बाकि सब लोगो के लिए नाश्ता बनाना होता था, दोनों बहुओ के साथ मिलकर


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इधर आनंद की ये सोच सोच कर ही जान निकली जा रही थी कि कल उसे अपने दादा के साथ ऑफिस जाना होगा, जबकि उसे तो काम करना बिलकुल भी पसंद नही था, वो तो बस पुरे दिन मौज मस्ती में काट देता था, पर अब तो उसके पास और कोई विकल्प भी नही था, एक बार उसने सोचा कि क्यों न बीमारी का बहाना बनाया जाये, पर अगले ही पल उसने ये विचार दिमाग से निकाल दिया क्यूंकि अगर वो बीमारी का बहाना बनाता तो कई दिनों तक उसका घर से निकलना ही बंद हो जाता , इसलिए हारकर उसने सोचा की अब शायद उसके पास और कोई तरीका नही है बचने के लिए, अब तो उसे हर हाल में ऑफिस जाना ही होगा, पूरी रात आनंद इसी कसमकश में लगे रहा था, पर कोई रस्ता ना निकलता देख हारकर सो गया था

सुबह के लगभग 8 बजने को आये थे, पर अपना आनंद तो मस्ती में सोया पड़ा था, वो तो अक्सर 10 बजे से पहले उठता ही नही था,और आज भी गहरी नींद में सोया सपनों की वादियों में गुम था, उसे तो ये भी ध्यान नही था कि उसे अपने दादाजी के साथ उनके ऑफिस 7.30 बजे जाना था,

वो अभी मस्ती में सो ही रहा था कि उसके ऊपर धम्म्म्म से पानी आ गिरा, ये मोहिनी थी जिसे बद्रीप्रसाद ने आनंद को उठाने की ज़िम्मेदारी सोंपी थी

आनंद (घबराता हुआ ) – “कौन है.....कौन है.....?”

मोहिनी – “ओये बेवकूफ ,चल खड़ा होजा, रात वाली बात भूल गया क्या”

आनंद – “कौनसी बात,मुझे कुछ याद नही, और तूने मुझ पर पानी क्यों फेंका, मैं तुझे आज नही छोडूंगा “

मोहिनी – “अबे भुलक्कड़ ,तू इतनी जल्दी भूल गया, रात को दादाजी ने तुझे ऑफिस जाने के लिए कहा
था न”

ये सुनकर तो जैसे आनंद आसमान से सीधे जमीन पर आ गिरा, उसने तुरंत पास में रखी घड़ी उठाई और जैसे ही टाइम देखा उसके चेहरे पर हवाइयां उड़ने लगी,

आनंद (घबराते हुए )- पर दीदी ,अभी तो 8:00 से ज्यादा हो चुके , अब तक तो दादाजी,पिताजी और चचाजी ऑफिस जा चुके होंगे

मोहिनी – हाँ वो लोग तो कब के ऑफिस जा चुके है, पर दादाजी ने कहा है कि अगर तू 9 बजे से पहले ऑफिस नही पहुचा तो तेरी खैर नही, तो जल्दी से खड़ा हो और फटाफट तैयार हो जा ,

अब तो आनंद को सच में टेंशन होने लगी थी, और वो तुरंत अपनी चद्दर से बाहर निकला,और दरवाजे की तरफ जाने लगा, पर उसकी ख़राब किस्मत कि टेंशन में वो ये भी भूल चूका था कि उसने नीचे सिर्फ एक अंडरवियर पहनी हुई है, और उसका नागराज उस छोटी सी अंडरवियर में सुबह सुबह बुरी तरह फुंकार रहा था,

मोहिनी ने जैसे ही आनंद को इस हालत में देखा उसका चेहरा बुरी तरह लाल हो गया, उसकी सांसे उपर की उपर और निचे की निचे ही रह गयी, उसके गले का थूक गले में ही अटक गया था, आनंद के लंड को उसकी अंडरवियर के उपर से इस तरह फुंकारते देख उसके कान गरम होने लगे, आज उसने अपनी लाइफ में पहली बार लंड के शेप को इतने करीब से देखा था,

मोहिनी लंड का उभार देखने के बाद आनंद ने जब मोहिनी को इस तरह अपनी तरफ घूरता पाया तो तुरंत उसकी नजरो का पीछा किया, और जैसे ही उसे पता चला की वो तो जल्दी जल्दी में अपनी अंडरवियर में ही चद्दर से बहार निकल गया है जिसमे उसका बड़ा सा मुसल लंड सुबह सुबह ही फन उठाये खड़ा है तो वो शर्म के मारे तुरंत पलट गया,
“आई ऍम सॉरी ........” आनंद के मुंह से बस इतना ही निकल पाया था, और उसने भागकर अपना पजामा उठाया और तुरन्त पहन लिया

मोहिनी को भी समझ नही आ रहा था कि वो क्या बोले, पर जब उसने आनंद को इस तरह भागकर अपना पजामा पहनते देखा तो उसके चेहरे पर हंसी आ गयी, और वो खिल खिलाकर हंसने लगी,
उसे इस तरह हँसता देख आनंद को तो और भी ज्यादा शर्म आने लगी, उसने भागकर अपना तोलिया लिया और सीधा बाथरूम की ओर चल पड़ा

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