ज़िन्दगी एक सफ़र है बेगाना complete
- jay
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Re: ज़िन्दगी एक सफ़र है बेगाना
मैने नीचे आकर फिर उसकी यौनिमुख को खोलकर जीभ फिराई… तो रिंकी ने सिसकी लेते हुए मुझे उपर को खीचा और बोली..
नही अरुण तुम ये मत करो, मुझे शर्म सी महसूस होती है..
मे- क्यों ? तो वो बोली..
मुझे ऐसा फील होता है, जैसे तुम मेरे गुलाम हो,
मेने कहा… इसमे क्या शक है मे तो अब तेरे इस रस सागर का गुलाम ही हो गया हूँ मेरी हुष्ण पारी.
नही तुम गुलाम नही, मेरे दिल के राजा हो, और में तुम्हारी दासी.
मे- तो फिर दासी वाला काम करो…., हुकुम करो मेरे सरताज, ये दासी तुरंत बजा लाएगी, शोखी भरे स्वर मे बोली रिंकी.
में चाहता हूँ कि तुम अपने श्रीमुख से मेरे इस शेर को चुमो, चाटो और चूसो…
नही ये मुझसे नही होगा, ऐसी गंदी जगह पर तुम्हारा भी मुँह लगाना मुझे अच्छा नही लगा.
गंदी जगह…. ? क्या बात कर रहो ? ये और गंदी जगह, अरे मेरी जान जो चीज़ ईश्वर ने सृष्ठी के निर्माण के लिए बनाई है, उसे गंदा कैसे कह सकती हो..?
इन्ही की वजह से 1 के 4 या उससे भी ज़यादा होते हैं.
फिर भी मेरा मन नही करता, मे कहा ठीक है, जो तुम्हारा मन करे वैसा करो..
उसने मेरे लौडे को जो स्टील की तरह कड़क हो गया, और भट्टी की तरह गरम हो रहा था हाथ मे लिया और सहलाने लगी,
फिर उसकी चमड़ी को पीछे खींच कर सुपाडे को देखने लगी, थोड़ी देर अपने हाथ से आगे-पीछे किया तो वो और कड़क हो गया, और मेरे प्री-कम की एक बूँद उसके छेद पर आ गई.
पता नही रिंकी ने क्या सोच कर नीचे अपना मुँह करके जीभ को बाहर निकाला और बड़े प्यार से उस बूँद को चाट लिया….
सीईईईई…..आअहह… रिंकी… कैसा लगा मेरा स्वाद..??
रिंकी…वाउ ये तो बड़ा टेस्टी है, और फिर उसने मेरे पूरे खुले हुए सुपाडे को अपने मुँह मे गटक लिया…
में मन ही मन खुश हो गया, पर प्रकट मे बोला… अरे-अरे रिंकी ये क्या कर रही हो, गंदी चीज़ को मुँह मे डाल लिया तुमने तो…
वो मेरी तरफ नज़र भर देखी और मुस्कराई, लेकिन लंड को मुँह से बाहर नही निकाला…
अब वो जितना संभव हो सका उसने अंदर लिया और चूसने लगी.. साथ-2 हाथ से सहलाती भी जा रही थी.
मेरा मज़े के मारे, बुरा हाल था, और आँखे बंद हो गयी…..
अब मुझसे सबर नही हो रहा था, तो उसके कंधे पकड़ के अपने उपर खींच लिया, अब वो मेरे दोनो तरफ पैर करके बैठ गयी,
में भी गान्ड टिका कर बैठ गया और उसे अपनी गोद मे बिठा लिया, फिरसे होठ चुसाइ शुरू होगयि, और दोनो हाथों ने उसके आमों को कब्ज़े मे लेलिया.
एक बार पूरे ज़ोर से उसके मुम्मों को मसल डाला मैने, आआयययययीीईई…..उउउऊओह…. अरुण ज़ोर से नही प्लस्सस्स… दर्द होता है…
फिर्भी मे उन्हें थोड़े हल्के हाथों से मींजता ही रहा, उसकी सफेद गोरी चुचिया लाल सुर्ख हो गयी, और निपल एकदम कड़क हो गये,
मैने आव ना देखा ताव, अपने अंगूठे और उंगिलयों मे पकड़ के उसके दोनो निपल को बड़ी बेरहमी से मरोड़ दिया…
आआआययययययीीईईईईई……उूुुउउऊऊओह….म्म्मा आअम्म्मिईीई…. हहआयईईए… मरररर…ग्गगाआययईीीई…..द्द्धहीएरररीईए….प्लस्सस्स…
फिर अपने मुँह मे भरके बारी-2 से चूसने लगा… रिंकी इस दौरान एक बार झाड़ चुकी थी…
फिर मैने उसको ज़मीन पर घुटने टेक का बैठने को कहा, और उसकी कमर को उपर करके मेरे लंड के उपर बैठने को कहा,
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(एक बार ऊपर आ जाईए न भैया )..(परिवार में हवस और कामना की कामशक्ति )..(लेखक-प्रेम गुरु की सेक्सी कहानियाँ running)..(कांता की कामपिपासा running).. (वक्त का तमाशा running).. (बहन का दर्द Complete )..
( आखिर वो दिन आ ही गया Complete )...(ज़िन्दगी एक सफ़र है बेगाना complete)..(ज़िद (जो चाहा वो पाया) complete)..(दास्तान ए चुदाई (माँ बेटी बेटा और किरायेदार ) complete) .. (एक राजा और चार रानियाँ complete)..(माया complete...)--(तवायफ़ complete)..(मेरी सेक्सी बहनेंcompleet) ..(दोस्त की माँ नशीली बहन छबीली compleet)..(माँ का आँचल और बहन की लाज़ compleet)..(दीवानगी compleet..(मेरी बर्बादी या आबादी (?) की ओर पहला कदमcompleet) ...(मेले के रंग सास,बहू और ननद के संग).
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(फैमिली में मोहब्बत और सेक्स (complet))........(कोई तो रोक लो)......(अमन विला-एक सेक्सी दुनियाँ)............. (ननद की ट्रैनिंग compleet)..............( सियासत और साजिश)..........(सोलहवां सावन)...........(जोरू का गुलाम या जे के जी).........(मेरा प्यार मेरी सौतेली माँ और बेहन)........(कैसे भड़की मेरे जिस्म की प्यास)........(काले जादू की दुनिया)....................(वो शाम कुछ अजीब थी)
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Re: ज़िन्दगी एक सफ़र है बेगाना
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Re: ज़िन्दगी एक सफ़र है बेगाना
रिंकी समझ गयी, और उसने अपनी रामप्यारी के सुराख को लंड के उपर सेट करके धीरे-2 बैठने लगी,
अभी आधा ही अंदर हुआ कि वो चिहुक कर उठ गयी,
मे- क्या हुआ..?
बोली दर्द होता है मुझसे नही हो पा रहा.. तुम्ही कुछ करो..
मैने झटके से उसे नीचे किया, क्योंकि अब रुकना असंभव हो रहा था, और अपने जंग बहादुर को उसके रस सागर के मुंहाने पे फिट करके एक झटका दिया…
लंड तो झटके में आधी मंज़िल तय कर गया, लेकिन रिंकी की चीख निकल गयी और उसकी आँखों से खारा पानी बाहर आने लगा,
धीरे-2 आधे लंड से ही उसको चोदता रहा, फिर एक झटका मार कर पूरा डाल दिया,
दर्द से कराही रिंकी लेकिन मैने अब रुकना मुआसिब नही समझा और धीरे-2 लयबद्ध तरीके से धक्के देता रहा,
थोड़ी ही देर में रिंकी की कराहें मस्ती भरी सिसकियों मे बदल गयी..
चुदाई अपनी फूल स्पीड मे शुरू हो चुकी थी… कोई एक दूसरे से हारने को तैयार नही था,
मेरा लंड किसी पिस्टन की तरह अंदर-बाहर हो रहा था, रिंकी की चूत से रस्धार लगातार जारी थी, जिसकी वजह से कमरे मे फुकछ-फुकछ की आवाज़ें, और जांघों से जांघों की थपकन गूँज रही थी.
तकरीबन 20-25 मीं की धमाकेदार चुदाई के बाद, आख़िर वो समय आही गया, और हम दोनो अपने चरम सुख को पा गये.
रिंकी की गुलब्बो का थोड़ा मुँह सूजा हुआ था, उधर मेरे जंग बहादुर भी कुछ मुँह फुलाए से दिखे. अब इतना तो होना ही था, मज़े भी तो इन्होने ही किए.
शाम के 6 बजने वाले थे, फ्रेश हुए, कपड़े बगरह पहने और बाहर को चल दिए, रिंकी को चलने मे थोड़ी तकलीफ़ हो रही थी, उसे अभी भी दर्द था,
बाहर आकर मेडिकल स्टोर से पेन किल्लर और एंटी-प्रेग्नेन्सी डोस उसको दिलाया,
एक चाइ की दुकान से चाइ पीके थोड़ा मार्केट घूमे, रिंकी जाने लगी अपने घर, तो मैने उसको कल कितने बजे मिलना है पुछा,
कह नही सकती, कल क्या हालत रहती है, आ पाउन्गी या नही वो बोली… और रिक्शे मे बैठ के चली गयी,
में थोड़ी देर और इधर-उधर भटका, एक होटल मे खाना खाया, और आके अपने रूम में लेट गया, थकान सी महसूस हो रही थी सो आँख लग गयी.
जब मेरी आँख खुली तो सुबह के 7 बज चुके थे..वो तो अच्छा था कि आज पेपर का गॅप था वरना फटके हाथ में ही आजाती.
उस दिन रिंकी नही आई, दूसरे दिन पेपर था, बाइयालजी का, तो बैठ गया पढ़ने, जम के पढ़ाई की और सुबह उठके पेपर देने गया,
पेपर देखते ही मेरा दिन बन गया, मेरे हिसाब से पेपर ईज़ी ही लगा,
पोने दो घंटे में पेपर लिख दिया, और 15 मे रिविषन मे लगाए.
लौटने लगा मस्ती मे अपने कमरे की तरफ, ये सोचते हुए, कि अब तो 5 दिन का गॅप है, रिंकी भी यही है, तो अपनी हर दिन होली और रात दीवाली होगी..
कमरे पे आके कपड़े चेंज किए और थोड़ा आँख बंद करके लेटा ही था की रिंकी आ गई, और आते ही झूल गयी मेरे गले मे बाहें डालके.
इतनी प्यारी लग रही थी मेरी जान, मानो कोई स्वर्ग की अप्सरा धरती पर उतर आई हो…
में उसकी खूबसूरती मे खो गया, आज वो एक लूज सा सिल्क का कुर्ता और एक पिंडलियों तक की लोंग स्कर्ट पहने थी.
अचानक मेरे मुँह से रफ़ी साब का ये गाना निकल पड़ा…
बहारो फूल बरसाओ, मेरा महबूब आया है, मेरा महबूब आया !
सितारो रागिनी गाओ, मेरा महबूब आया है, मेरा महबूब आया है !!
अभी आधा ही अंदर हुआ कि वो चिहुक कर उठ गयी,
मे- क्या हुआ..?
बोली दर्द होता है मुझसे नही हो पा रहा.. तुम्ही कुछ करो..
मैने झटके से उसे नीचे किया, क्योंकि अब रुकना असंभव हो रहा था, और अपने जंग बहादुर को उसके रस सागर के मुंहाने पे फिट करके एक झटका दिया…
लंड तो झटके में आधी मंज़िल तय कर गया, लेकिन रिंकी की चीख निकल गयी और उसकी आँखों से खारा पानी बाहर आने लगा,
धीरे-2 आधे लंड से ही उसको चोदता रहा, फिर एक झटका मार कर पूरा डाल दिया,
दर्द से कराही रिंकी लेकिन मैने अब रुकना मुआसिब नही समझा और धीरे-2 लयबद्ध तरीके से धक्के देता रहा,
थोड़ी ही देर में रिंकी की कराहें मस्ती भरी सिसकियों मे बदल गयी..
चुदाई अपनी फूल स्पीड मे शुरू हो चुकी थी… कोई एक दूसरे से हारने को तैयार नही था,
मेरा लंड किसी पिस्टन की तरह अंदर-बाहर हो रहा था, रिंकी की चूत से रस्धार लगातार जारी थी, जिसकी वजह से कमरे मे फुकछ-फुकछ की आवाज़ें, और जांघों से जांघों की थपकन गूँज रही थी.
तकरीबन 20-25 मीं की धमाकेदार चुदाई के बाद, आख़िर वो समय आही गया, और हम दोनो अपने चरम सुख को पा गये.
रिंकी की गुलब्बो का थोड़ा मुँह सूजा हुआ था, उधर मेरे जंग बहादुर भी कुछ मुँह फुलाए से दिखे. अब इतना तो होना ही था, मज़े भी तो इन्होने ही किए.
शाम के 6 बजने वाले थे, फ्रेश हुए, कपड़े बगरह पहने और बाहर को चल दिए, रिंकी को चलने मे थोड़ी तकलीफ़ हो रही थी, उसे अभी भी दर्द था,
बाहर आकर मेडिकल स्टोर से पेन किल्लर और एंटी-प्रेग्नेन्सी डोस उसको दिलाया,
एक चाइ की दुकान से चाइ पीके थोड़ा मार्केट घूमे, रिंकी जाने लगी अपने घर, तो मैने उसको कल कितने बजे मिलना है पुछा,
कह नही सकती, कल क्या हालत रहती है, आ पाउन्गी या नही वो बोली… और रिक्शे मे बैठ के चली गयी,
में थोड़ी देर और इधर-उधर भटका, एक होटल मे खाना खाया, और आके अपने रूम में लेट गया, थकान सी महसूस हो रही थी सो आँख लग गयी.
जब मेरी आँख खुली तो सुबह के 7 बज चुके थे..वो तो अच्छा था कि आज पेपर का गॅप था वरना फटके हाथ में ही आजाती.
उस दिन रिंकी नही आई, दूसरे दिन पेपर था, बाइयालजी का, तो बैठ गया पढ़ने, जम के पढ़ाई की और सुबह उठके पेपर देने गया,
पेपर देखते ही मेरा दिन बन गया, मेरे हिसाब से पेपर ईज़ी ही लगा,
पोने दो घंटे में पेपर लिख दिया, और 15 मे रिविषन मे लगाए.
लौटने लगा मस्ती मे अपने कमरे की तरफ, ये सोचते हुए, कि अब तो 5 दिन का गॅप है, रिंकी भी यही है, तो अपनी हर दिन होली और रात दीवाली होगी..
कमरे पे आके कपड़े चेंज किए और थोड़ा आँख बंद करके लेटा ही था की रिंकी आ गई, और आते ही झूल गयी मेरे गले मे बाहें डालके.
इतनी प्यारी लग रही थी मेरी जान, मानो कोई स्वर्ग की अप्सरा धरती पर उतर आई हो…
में उसकी खूबसूरती मे खो गया, आज वो एक लूज सा सिल्क का कुर्ता और एक पिंडलियों तक की लोंग स्कर्ट पहने थी.
अचानक मेरे मुँह से रफ़ी साब का ये गाना निकल पड़ा…
बहारो फूल बरसाओ, मेरा महबूब आया है, मेरा महबूब आया !
सितारो रागिनी गाओ, मेरा महबूब आया है, मेरा महबूब आया है !!
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Re: ज़िन्दगी एक सफ़र है बेगाना
वो खिलाकर हंस पड़ी, मानो कहीं दूर चिड़ियों ने चहचाया हो…
कल क्यों नही आई..?? मैने पुछा उसे, वैसे मुझे पता था कारण..
आने लायक छोड़ा था तुमने परसों ? और अगर किसी तरह आ भी जाती तो जाने लायक नही रहती. पूरे दिन दुख़्ता रहा मेरा बदन. कितनी बेदर्दी से रोंदा था मुझे. बहुत बेदर्दी हो तुम सच मे.
तो फिर आज क्यों आई, अपने इस बेदर्दी के पास..?
तुम्हारा दिया हुआ दर्द भी अब मुझे दवा लगने लगा है, सोचती हूँ जब तुम नही मिलोगे तो कैसे कटेंगे मेरे दिन..?
जैसे पहले कटते थे… मे बोला.
पहले की बात और थी अरुण, तब हम मिले नही थे ना… वो रुआंसे स्वर मे बोली.
कुछ दिन मुश्किल होगी, फिर सब्र होने लगेगा.. मैने उसे समझाते हुए कहा.
हां वो तो करना ही पड़ेगा, और कोई चारा भी तो नही.. जैसे हर मान ली हो उसने.
फिर हम एक दूसरे के हाथ थामे बिस्तर पर बैठ गये, मैने कहा रिंकी तुम यहाँ कब तक रहोगी…?
पापा तो दो दिन बाद ही जाने की बोल रहे थे, लेकिन मैने उन्हें एक हफ्ते की लिए मना लिया है.
फिर तो मज़ा आगया, मेी बोला… मेरी अब 5 दिन की गॅप है, तो पूरे दिन मस्ती करेंगे.
अच्छा जी… मस्ती करेंगे… जैसे घर मे मुझे और कोई काम नही होता.
लो अब ये खाना खाओ, और अपने साथ लाए टिफिन को मेरे सामने रख दिया,
मैने टिफिन खोला और खाना खाने लगा, वो मेरी तरफ ही देखती रही.. मैने चुटकी लेते हुए कहा…
तुम क्या मेरे निबाले गिन रही हो… ? उसने एक प्यार भरी चपत लगाई मेरे कंधे पर… और बोली…
बहुत बदमाश हो तुम, में क्यों तुम्हारे निबाले गिनूँगी, खाना तो मे तुम्हारे लिए ही लाई हूँ ना.
तुम भी खा लो थोड़ा बहुत, मे बोला और एक निबला अपने हाथ से उसके मुँह मे दे दिया…
उसने भी मुँह खोल कर निबाला खाया और साथ मे मेरी उंगलियों को काट लिया…
आआययईीीई… कटखनी बिल्ली साली कटती है… वो हँसने लगी..
ऐसी चुहलबाज़ी करते हुए हमने खाना ख़तम किया, और फिर बैठके बातें करने लगे…
बातें करते करते कब हमारे होठ एक दूसरे जे जुड़ गये पता ही नही चला… और फिर वो सब होता चला गया, जिसके लिए हम तड़प रहे थे.
एक तूफान सा आया, और आकर गुजर गया, हमारे बदन निढाल हो कर बिस्तर पे पसर गये,
आज हमने 3 बार जमके चुदाई की, शाम को रिंकी अपने घर चली गयी, मे थोड़ा बहुत पढ़ा और फिर नीद में चला गया.
इसी तरह हमारा एक वीक कैसे निकल गया पता ही नही चला.. जिस दिन रिंकी लौटने वाली थी, उसके पापा साथ नही थे,
मे उसे बस मे बिठा कर आया, तो वो मेरे कंधे पर सर रख कर कितनी ही देर रोती रही, में उसे चुप कराता रहा, लेकिन सच तो ये था कि मेरा भी रोने का मन कर रहा था, लेकिन रोया नही वरना हम जुदा नही हो पाते, और कुछ ऐसा हो जाता जो हम दोनो के परिवारों की सामाजिक प्रतिष्ठा धूमिल हो जाती.
रिंकी चली गयी, में उदास मन अपने कमरे पर लौट आया..
कल क्यों नही आई..?? मैने पुछा उसे, वैसे मुझे पता था कारण..
आने लायक छोड़ा था तुमने परसों ? और अगर किसी तरह आ भी जाती तो जाने लायक नही रहती. पूरे दिन दुख़्ता रहा मेरा बदन. कितनी बेदर्दी से रोंदा था मुझे. बहुत बेदर्दी हो तुम सच मे.
तो फिर आज क्यों आई, अपने इस बेदर्दी के पास..?
तुम्हारा दिया हुआ दर्द भी अब मुझे दवा लगने लगा है, सोचती हूँ जब तुम नही मिलोगे तो कैसे कटेंगे मेरे दिन..?
जैसे पहले कटते थे… मे बोला.
पहले की बात और थी अरुण, तब हम मिले नही थे ना… वो रुआंसे स्वर मे बोली.
कुछ दिन मुश्किल होगी, फिर सब्र होने लगेगा.. मैने उसे समझाते हुए कहा.
हां वो तो करना ही पड़ेगा, और कोई चारा भी तो नही.. जैसे हर मान ली हो उसने.
फिर हम एक दूसरे के हाथ थामे बिस्तर पर बैठ गये, मैने कहा रिंकी तुम यहाँ कब तक रहोगी…?
पापा तो दो दिन बाद ही जाने की बोल रहे थे, लेकिन मैने उन्हें एक हफ्ते की लिए मना लिया है.
फिर तो मज़ा आगया, मेी बोला… मेरी अब 5 दिन की गॅप है, तो पूरे दिन मस्ती करेंगे.
अच्छा जी… मस्ती करेंगे… जैसे घर मे मुझे और कोई काम नही होता.
लो अब ये खाना खाओ, और अपने साथ लाए टिफिन को मेरे सामने रख दिया,
मैने टिफिन खोला और खाना खाने लगा, वो मेरी तरफ ही देखती रही.. मैने चुटकी लेते हुए कहा…
तुम क्या मेरे निबाले गिन रही हो… ? उसने एक प्यार भरी चपत लगाई मेरे कंधे पर… और बोली…
बहुत बदमाश हो तुम, में क्यों तुम्हारे निबाले गिनूँगी, खाना तो मे तुम्हारे लिए ही लाई हूँ ना.
तुम भी खा लो थोड़ा बहुत, मे बोला और एक निबला अपने हाथ से उसके मुँह मे दे दिया…
उसने भी मुँह खोल कर निबाला खाया और साथ मे मेरी उंगलियों को काट लिया…
आआययईीीई… कटखनी बिल्ली साली कटती है… वो हँसने लगी..
ऐसी चुहलबाज़ी करते हुए हमने खाना ख़तम किया, और फिर बैठके बातें करने लगे…
बातें करते करते कब हमारे होठ एक दूसरे जे जुड़ गये पता ही नही चला… और फिर वो सब होता चला गया, जिसके लिए हम तड़प रहे थे.
एक तूफान सा आया, और आकर गुजर गया, हमारे बदन निढाल हो कर बिस्तर पे पसर गये,
आज हमने 3 बार जमके चुदाई की, शाम को रिंकी अपने घर चली गयी, मे थोड़ा बहुत पढ़ा और फिर नीद में चला गया.
इसी तरह हमारा एक वीक कैसे निकल गया पता ही नही चला.. जिस दिन रिंकी लौटने वाली थी, उसके पापा साथ नही थे,
मे उसे बस मे बिठा कर आया, तो वो मेरे कंधे पर सर रख कर कितनी ही देर रोती रही, में उसे चुप कराता रहा, लेकिन सच तो ये था कि मेरा भी रोने का मन कर रहा था, लेकिन रोया नही वरना हम जुदा नही हो पाते, और कुछ ऐसा हो जाता जो हम दोनो के परिवारों की सामाजिक प्रतिष्ठा धूमिल हो जाती.
रिंकी चली गयी, में उदास मन अपने कमरे पर लौट आया..
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(एक बार ऊपर आ जाईए न भैया )..(परिवार में हवस और कामना की कामशक्ति )..(लेखक-प्रेम गुरु की सेक्सी कहानियाँ running)..(कांता की कामपिपासा running).. (वक्त का तमाशा running).. (बहन का दर्द Complete )..
( आखिर वो दिन आ ही गया Complete )...(ज़िन्दगी एक सफ़र है बेगाना complete)..(ज़िद (जो चाहा वो पाया) complete)..(दास्तान ए चुदाई (माँ बेटी बेटा और किरायेदार ) complete) .. (एक राजा और चार रानियाँ complete)..(माया complete...)--(तवायफ़ complete)..(मेरी सेक्सी बहनेंcompleet) ..(दोस्त की माँ नशीली बहन छबीली compleet)..(माँ का आँचल और बहन की लाज़ compleet)..(दीवानगी compleet..(मेरी बर्बादी या आबादी (?) की ओर पहला कदमcompleet) ...(मेले के रंग सास,बहू और ननद के संग).
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(फैमिली में मोहब्बत और सेक्स (complet))........(कोई तो रोक लो)......(अमन विला-एक सेक्सी दुनियाँ)............. (ननद की ट्रैनिंग compleet)..............( सियासत और साजिश)..........(सोलहवां सावन)...........(जोरू का गुलाम या जे के जी).........(मेरा प्यार मेरी सौतेली माँ और बेहन)........(कैसे भड़की मेरे जिस्म की प्यास)........(काले जादू की दुनिया)....................(वो शाम कुछ अजीब थी)
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