एक और दर्दनाक चीख complete

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Re: एक और दर्दनाक चीख

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"आज मौसम बेहद ख़राब लग रहा है लेकिन शूट तो करना ही होगा"..........राम सिगरेट का कश लेते हुए अपने राइटर साहिल से कह रहा था|

"पर आउटडोर में शूट करना मुनासिब रहेगा मुसलसल बारिश हो रही है ऐसे में शूट नहीं हो पायेगा".....साहिल ने जवाब देते हुए कहा

"शूट तो होना ही है आउटडोर से नहीं इंडोर से ही सही खैर बिगनिंग ऑफ़ थे स्टोरी क्या थी तुमने स्क्रीन प्ले रेडी कर लिया है न?".........राम ने साहिल की ओर देखते हुए कहा

"जी बिलकुल शुरुवात में एक हॉट सीन है जिसमें हीरोइन और उसका पति कॉटेज में ख़राब मौसम के चलते रात की पनाह लेने आते है| वीरान कॉटेज को देख वो दोनों यहाँ रात गुज़ारने को तैयार हो जाते है| फिर एक रूम में दोनों के बीच वही से हॉट सन शुरू होता है".........एक एक कश लेते हुए सिगरेट का राम मुस्कुराता है

"फैंटास्टिक नाइस तो फिल्म का फर्स्ट बिगनिंग हम इसी कॉटेज के एक कमरे से करते है क्यों? ऑलराइट"......राम उठ खड़ा हुआ उसने अपने क्रू मेंबर्स को बुलाया

सौम्या चुपचाप सबके साथ साथ हामी में जवाब दे रही थी....कुछ ही देर में सेट लगाया जा चूका था | रैना एक झिल्ली जैसी सफ़ेद गाउन पहने बिस्तर पे बैठी हुयी डायलॉग्स को पढ़ रही थी| उसे डायरेक्शन बताने के बहाने राम उसे कई जगहों पे छू रहा था | ये सब चीज़े सौम्य नोटिस कर रही थी और हीनभावना भरी नज़रो से डायरेक्टर राम को घुर्र रही थी| रैना भी हस हस के जैसे फ्रीली डायरेक्टर राम से बिलकुल चिपककर बैठी उसके साथ काम से ज़्यादा अठखेलिया कर रही थी|

डायरेक्टर राम ने कैमरामैन जावेद से कहा की इस सीन में वो खुद रैना के साथ शूट करेगा.....जावेद ने कैमरा संभाल लिया था | सुनील रैना का जल्दी से मेक अप करते हुए राम के आदेश अनुसार तुरंत सेट से बाज़ू हटके खड़ा हो गया....शूट स्टार्ट हो चुकी थी......रैना के जांघो पे हाथ फेरते हुए राम उससे फ़्लर्ट कर रहा था.....रैना मुस्कुराये उसके हर डायलॉग्स का जवाब मुस्कुराये दे रही थी|

सौम्या की मज़बूरी थी जो उसे डायरेक्टर राम के साथ काम करना पड़ रहा था | डायरेक्टर राम ने उसे कई मौके दिए थे की वो उसकी फिल्म का हिस्सा बने लेकिन सौम्य ने इन्कारी में सर हिलाये रखा था| खुन्नस में डायरेक्टर राम काम का सारा भार उसपे ही छोड़ देता था| सौम्य लेकिन कुछ कर नहीं सकती थी क्यूंकि उसकी माली हालत ठीक नहीं थी और डायरेक्टर राम के पास काम करने के सिवाह उसके पास कोई चारा भी नहीं था| वो जिस बिग ब्रेक की फिल्मो में इंतजार में लगी हुयी थी वो इंतजार अबतक बस चल ही रहा था |

अचानक जैसे ही शूट प्रोग्रेस में था उसी पल धढ़ से कोई चीज़ आवाज़ की जिसने सेट पे मौजूद हर किसी को चौका दिया....कैमरामैन जावेद एक पल को हड़बड़ा उठा जिससे कैमरा हिल गया.....डायरेक्टर राम और रैना दोनों ने उस आवाज़ को सुना था राम ने थोड़ा चिढ़ते हुए गुस्से में कहा "व्हाट डी हैल ? ये आवाज कहाँ से आयी? क्या जावेद पूरा सीन चौपट कर दिया तुमने"..............जावेद ने मांफी मांगते हुए जैसे खुद को झेप लिया|

"सौम्या देखनाा आवाज कहाँ से आयी?"..............राम ने पास खड़ी सौम्य को कहा....सौम्य हड़बड़ाई पहले तो सहमी फिर उसने बाहर निकलते हुए झाँका चारो ओर खामोशी थी और कोई नहीं था

"सर बाहर तो कोई नहीं है"..........सौम्य ने अंदर आते हुए कहा
"उफ़ हो डिस्ट्रक्ट हो गया क्या जावेद कैमरा पूरा हिला दिया तुमने अब ये सीन फिर शूट होगा एंड डिस टाइम नो डिस्टर्बेंस प्लीज".........कहते हुए शूटिंग फिर शुरू हुयी|

सौम्या का लेकिन मन स्थिर नहीं था........उसने बाहर जाके मुआना किया....सीढिया सामने उसे दिखी जो ऊपर के माले की और जा रही थी...जहा वो खड़ी थी वो बड़ा सा लम्बा सा हॉल रूम था......उसने एक बार दोनों तरफ की ओर देखा....सूरज बदलो में एकदम कही चुप गया था मुसलमुसल बारिश के वजह से एक दम कोहरा और अँधेरा छा सा गया था| सौम्या ने आगे बढ़ते हुए सीढ़ियों से ऊपर चढ़ना शुरू किया...आज सुबह ही उसने वह जाके बाकी क्रू मेंबर के साथ चेक किया था| कई कमरों में ताला झूल रहा था एक कमरा डायरेक्टर का था दूसरा जिसमे वो और रैना के सोने का इंतजाम किया गया था | जबकि तीसरा कमरा जावेद और सुनील का था....अचानक सौम्या अभी सोचते हुए उलटे पाव जा ही रही थी की अचानक उसने पाया की सामने खिड़की पे किसी का अक्स मौजूद था| एकदम से उसने घूमके सामने की उस खिड़की ओर देखा जो की जंगलो की ओर खुलता था| एका एक कदम बढ़ाते हुए जब वो वहा पहुंची तो वहा कोई नहीं था|

सौम्या ने खिड़की को आहिस्ते से झटका देके खोल दिया तो बाहर की सर्द हवा उसे अपने चेहरे पे यूँ लगी जैसे जैसे हवाएं उसपे झपटी हो....अपनी आँखों से धुल साफ़ करते हुए सौम्या ने बाहर देखा तो बदलो में बिजलियों की गरगराहट शरू हो चुकी थी| उसने जल्दी से खिड़किया लगायी तो बाहर से अंदर आती हवाओ का शोर भी थम गया | सौम्या अपने कमरे में आयी उसने आस पास की चीज़ो को देखा सब कितने पुराने थे कुछ दराज़ें तो दीमक खायी बुरी तरीके से ख़राब हो चुकी थी| सौम्या कुर्सी पर ही बैठते हुए सोच में दुब गयी की वो आवाज़ आयी तो ऊपर से थी पर किधर से आयी थी?

सौम्या को अचानक अहसास हुआ की ठीक सामने आईने में कोई ठीक उसके बगल में खड़ा मौजूद है....सौम्य का ध्यान जब आईने पे होने लगा तो उसे सचमुच किसी के होने का अहसास अपने पास लगा...उसने झट से आईने की तरफ देखा तो वह कोई नहीं था| सौम्या अकेले उस रूम में और ज़्यादा देर ठहर नहीं पायी और रूम का दरवाजा लगाए झटपट सीढ़ियों से नीचे उतर गयी|

शूट हो चूका था | सौम्या को जब कमरे में आते डायरेक्टर राम ने देखा तो जैसे उसपे बरस पड़ा...."सौम्या कहाँ चली गयी थी तुम ? there was a Shoot happening and u just disappeared कितनी आवाज़ें दी मैंने तुम्हें?".........राम की बात सुनके सौम्या चुपचाप हो गयी

"वो दरअसल? मैं उस आवाज़ के पीछे ऊपर गयी मैंने किसी को ऊपर फील किया जैसे कोई परछाई"
"व्हाट रब्बिश? परछाई किसकी आत्मा की हाहाहा"..........राम जैसे सौम्या का मज़ाक उडाता हुआ बोला....साथ में खरे सारे क्रू मेंबर भी हस पड़े
"सर आई ऍम नॉट लाइंग मैं सच कह रही हूँ |"
"लुक सौम्या आई डॉन'ट वांट की तुम बाकियो को भी अपने इलुशन से डराओ मैं नहीं चाहता यहाँ कोई भी किसी भी किस्म का सीन क्रिएट हो अंडरस्टैंड दू यू अंडरस्टैंड?"...............राम के हिदायत भरी बातों से सौम्या को खामोशी ही साधके मानना पड़ा

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Re: एक और दर्दनाक चीख

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डायरेक्टर राम को उस दिन शूटिंग करने का और अवसर न मिला कारण था बिगड़ते मौसम का मिजाज और ऊपर से घना छाया कोहरा और अँधेरा होने को था जबकि वक़्त शाम ४:३५ का था....रैना ने बाथरूम को खोला और अंदर दाखिल होते हुए नल को खोला....ऊपर से पानी उसके संगमरर जैसे बदन पे गिरने लगा...वो ठन्डे पानी से ठिठुर सी गयी थी उसने कुछ देर नहाया उसके बाद झट से नल को बंद कर दिया..."उफ़ सौम्या सौम्या विल यू प्लस गिव मी माय टॉवल?"...........रैना को लगा जैसे कमरे में कोई था ही नहीं | उसने फिर उकताते हुए आवाज़ दी....

वो वैसे ही भीगे बदन ठण्ड से ठिठुर सी रही थी..."सौम्या सौम्या उफ़ आर यू डेयर?".........रैना को लगा की शायद वो नीचे थी...उसने दरवाजा खुद ही खोलना चाहा तो दरवाजा अपने आप खुलने लगा...दरवाजे की आवाज़ सुन वो झट से पीछे को हो गयी | दरवाजा आधा खुलकर ठहर गया......"इस समवन डेयर?"........जवाब पाने से पहले ही किसी ने हाथ अंदर बढ़ाते हुए तौलिया अंदर की ओर किया....रैना को लगा की शायद ये सौम्य ही थी...."थैंक गॉड सौम्या उफ़ ससस य..यी क्या आह्ह्ह्ह"..........एक पल को रैना चीख उठी क्यूंकि तौलिया जैसे ही उसने उस हाथ से लिया उसे असलियत दिखी....वो हाथ पे कई ज़ख्म उभरे हुए थे और उनसे खून निकल रहा था यकीनन वो भयानक हाथ सौम्या का नहीं हो सकता था.....चीखते हुए जैसे ही रैना ने दरवाजा लगाना चाहा वो हाथ अपने आप गायब हो गया और तभी शावर का नल अपने आप खुलने लगा....

रैना को समझ न आया और ठीक उसी पल उसे अहसास हुआ की ऊपर नल से पानी नहीं लाल लाल ताजा खून निकल रहा था....रैना चीखते हुए बाहर निकलना चाह रही थी खून से तरबतर वो पूरी भीग चुकी थी....वो अपने बदन पे लगते खून को देख चिल्ला उठी दीवारों पे और फर्शो पे भी खून बहे जा रहा था|

"अरे ये तो रैना की आवाज़ है"............एका एक अपने सिगरेट को फैकते हुए राम ने अपने क्रू मेंबर्स की ओर देखते हुए कहा....जो उस चीख को सुनते ही फ़ौरन हड़बड़ा उठे सब के उस वक़्त हॉल रूम में नीचे बैठे हुए शूट को लेके बातचीत में राम से लगे हुए थे....तुरंत सब सीढ़ियों से ऊपर के माले पे चढ़ते हुए आये.....उसी पल सौम्या राम से टकराई जो नीचे उतारते हुए उन लोगो को बुलाने ही आ रही थी|

"क..क्या हुआ? व्हाट हैपेंड?"........दोनों बाज़ुओं से सौम्य को पकड़ते हुए....जो खौफ्फ़ खायी हुयी थी
"व..वो रैना अंदर बाथरूम से बाहर नहीं आ रही और वो चीखें जा रही है मैं उसकी आवाज़ सुनते ही फ़ौरन रूम में आके ये सब हाल देखा"..........सौम्या के खामोश होते ही उसे परे हटाए राम बाकियो के साथ कमरे में प्रवेश करता है |

इतने में रैना दरवाजा खोले तौलिया लपेटी वैसी ही खून से तरबतर भीगी हालत में बाहर निकल आती है....उसे देख हर कोई चौंक जाता है....राम उसे दोनों बाज़ुओं से थामते हुए सकती से उसे झिंझोड़ते हुए शांत करने की कोशिशें करता है...कुछ देर बाद रैना खामोश हो जाती है|

"रैना ये सब ये क्या है? व्हाट जस्ट डी फ़क हैपेंड विद यू?".........राम उसकी हालत को देखते हुए कहता है....सौम्या रैना को बिस्तर पे बिठाती है....हर कोई वह खड़ा मौजूद होता है|

रैना जैसे तैसे अपने पे काबू पाते हुए सुबकते हुए सारा हाल ब्यान करती है..."क्या ? शावर से ब्लड खून कैसे आ सकता है? हमने जब चेक किया था तो बंद बाथरूम था और नल में तो पानी भी नहीं आ रहा था |"

"राम सर ठीक कह रहे है | मैंने ही तो सारे कमरे अच्छे से चेक किये थे....थोड़ी बहुत साफ़ सफाई भी की थी पर बाथरूम में नल से बेहटा खून और तो और मैं तो यहाँ इस कमरे में थी ही नहीं मैं तो बाकी कमरों का जायज़ा लेने बाहर गयी हुयी थी तुम्हारी आवाज़ सुनी to"

"अगर वो तुम नहीं थी तो वो हाथ जिसने मुझे तौलिया बढाए दिया उस हाथ पे मैंने ताजे ज़ख्म देखे खून लगा देखा ऐसा लगा जैसे वो सफ़ेद हाथ किसी इंसान का नहीं बल्कि"

तबतलक राम ने बाथरूम में झाका तो उसके होश उड़ गए....जब वो अंदर लौटा तो पाया की सुनील अंदर कमरे में दाखिल हुआ...."राम सर ऊपर की टंकी पूरी खाली पड़ी है कोई खून तो क्या मुझे तो वहा किसी की इंसान की डेडबॉडी भी नहीं".......सब जैसे चुप से हो गए

"म..मैं सच कह रही हूँ राम इस घर में ज़रूर कुछ है मेरी हालत देखो ये मेरे पुरे शरीर में खून कहाँ से लग गया बताओ जरा अगर मैं झूट कह रही हूँ तो"..............रोती रैना को राम ने चुप करा और उसे अपने साथ फिर बाथरूम में ले आया "मैं खुद देखता हूँ रुको".......उसने जैसे ही नल खोला तो साफ़ पानी उसे नल से गिरता दिखा

"अरे पानी तो पूरा साफ़ है कोई खून तो नहीं फिर खून कैसे आया?".........राम ने सबकी ओर देखते हुए कहा...रैना भी एकदम हैरान थी

"पर?"...............रैना जैसे समझ न पायी की आखिर उसके साथ क्या हुआ था?
"देखो रैना मुझे लगता है ज़रूर इसमें किसी की चाल है मुझे तो ऐसा ही लगता है की कोई हमारे साथ मज़ाक कर रहा है और अगर ये मुझे किसी क्रू की शरारत लगी तो मैं उसे छोडूंगा नहीं".......राम ने सबकी ओर देखते हुए कहा हर कोई जैसे साफ़ इंकार में सर हिलाते हुए इस बात को नकार रहा था |

रैना दोबारा से बाथरूम जा नहीं रही थी पर राम ने उससे कहा की वहां सौम्य के साथ वो खुद मौजूद रहेगा ये सुनके जैसे रैना को थोड़ी हिम्मत मिली....उसने बाथरूम का दरवाजा लगाया पर कुण्डी नहीं लगायी| उस वक़्त फिर कोई हादसा नहीं हुआ....लेकिन हर किसी के मन में हुए इस हादसे एक अजीब सा शक और डर दोनों दिलो में समां गया था |

कुछ देर बाद फिर सब सामान्य हो गया....माहौल में हस्सी मज़ाक का दौर फिर शुरू हो गया....हर कोई dining table पे बैठा खाने का लुत्फ़ उठा रहा था | इतने में उस आवाज़ को सुन सब दोबारा चौंक उठे...."अरे ये आवाज़ कैसी?"......"ये आवाज तो किसी हॉर्न की लग रही है?"..........एका एक राम और बाकी सब उठकर दरवाजे के पास आये....उन्होने देखा की बारिश थम चुकी थी | और उस गाड़ी के हेडलाइट बंद होते ही दो जन गाडी से बाहर की ओर निकले...

"अरे सर यहाँ के लिए सिर्फ हम्हे अथॉरिटी ने परमिशन दे राखी थी तो फिर ये लोग कौन? वो भी शाम के इस वक़्त"..........राम को साहिल ने टोका...सौम्य भी चुपचाप उन दोनों कॉटेज के सामने खड़े घुररते हुए देख रही थी |

एका एक दरवाजा खोलते हुए राम सुनील और साहिल के साथ बाहर निकला.....अपनी तरफ उन तीनो को आते देख वो दोनों चौंक उठे|
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Re: एक और दर्दनाक चीख

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गाड़ी से निकलते ही एक पल को दीप और अरुण ने उस विशाल कॉटेज की ओर देखा....एका एक अरुण के मन में जैसे उसे महसूस हुआ की वाक़ई वो जगह किसी भूतिया स्थान जैसे थी| आस पास घना जंगल और उसके बीच वो कॉटेज....दीप जैसे मुंह खोले हर तरफ से कॉटेज का जायज़ा ले रहा था| दोनों खामोशी से वैसे ही खड़े थे | सुबह के निकले दीप और अरुण पहले ही देर हो चुके थे उनके रास्ते में जैसे कई बाधाएं आयी थी.....दीप ने रास्ते में कहा था की शायद खुदा भी नहीं चाहता की वो उस मनहूस कॉटेज का रुख करे.....लेकिन अरुण को तो छानबीन और रहस्य से पर्दा हटाने के लिए ही ये केस मिला था....वो कभी भी अपनी ज़िंदगी के किसी भी केस में पीछे नहीं हटा था चाहे वो केस कितनो भी प्राण घातक साबित क्यों न हो?

गाड़ी बीच रास्ते में ख़राब हुयी थी...ऊपर से कोहरा और मुसलसल बारिश ने रास्ते को और भी कठिनाई से भर दिया था....बड़ी ही मुश्किल से वो दोनों सुबह के निकले आखिर शाम को कॉटेज पहुंचे थे | अरुण को मालुम था की हादसा अँधेरा होते ही शुरू हो जाता है इसलिए डेड लेक आने से पहले वो पूरा तैयारी के साथ आया था...इधर दीप भी तैयार था और वो कई सामग्री अपने साथ ले आया था.....उसका तो विश्वास था की उसे इंसान का तो खतरा नहीं पर वहा उसकी जान यकीनन मुश्किल में पड़ सकती थी | उसे विश्वास था की की अरुण बक्शी वहा सिर्फ कॉटेज की साज़िश को मालूमात करने ही उसके साथ आया था |

इतने में दीप ने अपनी चुप्पी तोड़ी "उफ़ एक तो सर्द का मौसम और ऊपर से ये व्यवाण वीराना जंगल और सामने ये रहस्मयी कॉटेज ऐसा महसूस हो रहा है जैसे यहाँ कई राज़ दफ़न है मुझे तो कॉटेज में पाव रखने पर भी डर लग रहा है"................अरुण ने उसकी ओर मुस्कुराये देखा

"मैं तुम्हारे साथ हूँ दीप तुम्हें कुछ नहीं होगा हम यहाँ जिस गुत्थी को सुलझाने आये है वो सुलझाके ही यहाँ से वापिस जाएंगे"

"आमीन".........दीप ने अपने गले में झूलते उस ताबीज़ को हाथो में समेटे हुए कहा

"ये लोग कौन है ?"..........एक पल को अरुण ने भी दीप की बात सुन सामने की ओर देखा तो यकीनन सामने से तीन लोग कॉटेज से निकलते हुए उनकी तरफ आ रहे थे |

"ये तो इंसान लग रहे है जीते जागते इंसान पर यहाँ इस क्राइम सीन एरिया पर ये लोग?"........एका एक अरुण ने बड़बड़ाते हुए कहा

डायरेक्टर राम,साहिल,जावेद उनके सामने खड़े होक उन्हें अपलक हैरानी भरी निगाहो से देखने लगे.....अरुण बक्शी ने उन तीनो को बड़ी गौर से घुरा....डायरेक्टर राम ने भी दीप और अरुण बक्शी का जैसे आँखों से मुआना किया |

"हम्म आपकी तारीफ़? इस वक़्त आप दोनों यहाँ क्या कर रहे है?".......राम ने गंभीर होते हुए कहा

"मेरा नाम अरुण बक्शी है और ये मेरे साथ आये परनोमालिस्ट मोहद दीप लेकिन ये सवाल मेरा बनता है की आपको यहाँ आने की अनुमति किसने दी? क्या आप जानते नहीं की कई महीने पहले यहाँ पर एक क़तल हो चूका है जिसकी इन्वेस्टीगेशन अभी भी चल रही है".........अरुण ने भी राम की तरफ देखते हुए कहा....इस बीच दीप और राम के बगल में खड़े उसके क्रू मेंबर जावेद और साहिल भी चुपचाप थे |

"आई थिंक मिस्टर यू डॉन'ट नो अबाउट मी आई ऍम फिल्म डायरेक्टर राम किशोर....और यहाँ हम एक फिल्म की शूटिंग के लिए आये है ये मेरे क्रू members है cameraman जावेद एंड इस फिल्म के स्क्रिप्ट एंड स्क्रीन राइटर मिस्टर साहिल हमारे साथ बाकि के क्रू members भी है जो इस वक़्त कॉटेज में है हमने आपकी गाड़ी देखी तो हम्हें लगा की इस वक़्त यहाँ कौन आ सकता है? जबकि ये एक abadoned प्लेस है "

"आपको शूटिंग करने के लिए यही जगह मिली थी जबकि यहाँ आना पब्लिक के लिए साफ़ मनाही करा दी गयी है"

"मिस्टर आई हैव दी अथॉरिटी परमिट इफ यू वांट आई कैन शो यू बट मैंने तो सुना था की पुलिस ने इस केस पे अपनी तवज्जोह देनी न के बराबर कर दी है तभी तो हुम्हे परमिशन मिल सका"

"मिस्टर राम किशोर शायद आप मुझसे वाक़िफ़ नहीं मैं वर्मा डिटेक्टिव एजेंसी का सबसे एहम सीनियर डिटेक्टिव अरुण बक्शी हूँ जब पुलिस किसी केस को सुलझाने में असमर्थ हो जाती है तब हम ही उस केस में पुलिस की रज़ामंदी के साथ इन्वेस्टीगेशन करना शुरू कर देते है वैसे आपको यहाँ नहीं आना चाहिए था"

"ओह आई सी, यानी की आप शहर के जाने माने सुप्रसिद्ध डिटेक्टिव फर्म ऑफ़ प्रकाश वर्मा से तालुक रखते है"

"यानी आप बहुत कुछ जानते है"

"हम्म्म आप भूल रहे है मैं भी सुप्रिसद्ध डायरेक्टर राम किशोर हूँ और यहाँ आने की वजह है मेरी अपकमिंग फिल्म की शूटिंग "हॉन्टेड" हम लोगो को इससे अच्छी प्लेस कही और नहीं मिल सकती वैसे जासूस के साथ परनोमालिस्ट ये कैसी वजह है?"............एका एक राम ने डीप की और नज़र फेरते हुए कहा

"जी मेरा नाम मोहद डीप है और मैं कई सालो से ऐसी ही सुपरनैचरल एलिमेंट्स पे रिसर्च कर रहा हूँ | और मेरी यहाँ आने की वजह भी कुछ ऐसी ही है जिनमें अरुण साहब ने भी हस्तश्वेप किया है"

साहिल ने इस बीच डायरेक्टर राम के कान में फुसफुसाया अरुण और दीप दोनों को देखने लगे...."अच्छा अच्छा तो वो शख्स आप है जिसने डेड लेक के ऊपर कई रेसर्चेस करते हुए उसकी हिस्ट्री और यहाँ हुए चीज़ों को पैरानॉर्मल एक्टिविटी ठहराया है वाक़ई अगर आपसे मुलाक़ात पहले होती तो मेरे राइटर साहिल को स्क्रिप्ट लिखने में और भी आसानी होती..."

"वैसे आप लोग कितने दिन के लिए यहाँ ठहरे हुए है?"...........अरुण ने सवाल किया

"जी २ दिन की शूटिंग है दरअसल हमारे काम करने का स्टाइल ही कुछ ऐसा है आज हमारा आधे से ज़्यादा शूट हो जाता लेकिन आप तो देख ही रहे है मौसम का मिजाज और सर्दी और कोहरा आउटडोर शूटिंग करना ही बेहद कठिन हो रहा है हमारे लिए".............डायरेक्टर राम अरुण और डीप से बात चीत करते हुए कॉटेज की तरफ रुख करता है......पीछे उसके क्रू मेंबर्स भी चल रहे होते है....

"वैसे आप यहाँ इन्वेस्टीगेशन करेंगे तो इससे हम्हें तो दिक्कत नहीं होगी न"

"वैसे तो यहा हमारे ठहरने का मन तो नहीं था लेकिन ऐसा लगताहै की वापिस आज शहर आ जाना हो न सकेगा यही रात काटनी पड़ेगी वैसे शूटिंग तो आज आप कर भी नहीं पाएंगे तो खलल कैसा? हाहाहा"..........अरुण ने मुस्कुराते हुए हसकर जवाब दिया....

कॉटेज में दाखिल होते ही....अरुण और दीप से राम ने अपने बाकी के क्रू मेंबरस हीरोइन रैना मेक उप आर्टीस्ट सुनील और अपनी असिस्टेंट डायरेक्टर सौम्या से परिचय करवाया....एका एक सबसे रूबरू होते हुए अरुण ने सौम्या की तरफ देखा.....सौम्या ने भी उसे एक पल को देखा दोनों की नज़रे मिली तो जैसे होंठो पे दोनों के ही मुस्कराहट छा गयी....डीप खामोशी से कॉटेज को बारीकी से चारो तरफ अपनी नज़र फेर रहा था.....उसने एक बार सस्पेंस भरे अंदाज़ में सामने सीढ़ियों की ओर देखा और एक पल को बस देखता ही रहा....

"गाइस ये है अरुण बक्शी और ये है इनके साथ आये परनोर्मलिस्ट मोहद डीप और ये भी आज हमारे साथ यही ठहरेंगे वैसे अरुण साहब अगर मैं आपका इंट्रोडक्शन इन सबको दू तो आपको कोई मुश्किल तो नहीं"......मुस्कुराते हुए इजाजत भरे लहज़े से डायरेक्टर राम ने अरुण से पूछा

"आपको देने की ज़रूरत नहीं मैं खुद ही इन्हे खुद से खुद से करवा देता हूँ | दरअसल मैं यहाँ इन्वेस्टीगेशन करने के लिए आया हूँ मेरा नाम अरुण बक्शी एंड आई ऍम द इन्वेस्टिगेटर अप्पोइंटेड फ्रॉम वर्मा डिटेक्टिव एजेंसी देखिये आप लोगो को किसी भी तरह की फ़िक्र करने की कोई बात नहीं आप सब आराम से रह सकते है हम अपना काम करेंगे और आप लोग अपना हम आपके शूट में किसी भी तरह की दखल अंदाज़ी नहीं देंगे आई होप की आप लोग भी हमारे साथ यूँ ही को-ऑपरेट करेंगे | "

इतना कुछ सुनकर हर कोई जैसे सकते में चुपचाप पड़ गया....किसी ने कोई ऐतराज़ तो नहीं जताया और न जताने का उनका कोई राइट बनता था क्यूंकि ये सरकारी मामला था हर कोई डेड लेक के उस घटना से रूबरू था और सब की नज़र अपने डायरेक्टर राम की ओर थी जो खुद चुपचाप बेफिक्र सा खड़ा था |

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कमरे का दरवाजा खोलते हुए सौम्या ने मुस्कुराये अरुण की तरफ देखा.....दीप अपने हैंडबैग को सोफे पे रख एक दृष्टि दोनों की ओर देखते हुए फिर पुरे कमरे को जैसे घुर्र रहा था | अरुण ने मुस्कुराये सौम्या का जैसे शुक्रियादा किया

"थैंक्स फॉर अररंजिंग डिस रूम फॉर अस"..........सौम्य मुस्कुराये शर्म से नज़रें झुका लेती है
"इटस माय pleasure यहाँ आपको रहने में कोई दिक्कत नहीं होगी"...........अरुण भी मुस्कुराया
"ऑलराइट"...........सौम्या रूम से निकल ही रही थी की उसने मुड़कर अरुण की ओर देखा

अरुण उसके यूँ वापिस अपनी ओर होने से उसकी तरफ सवालातों से देखने लगा....."वो आप लोग कुछ खाएंगे भी हमारे पास खाने की चीज़ें मौजूद है दो दिन हुम्हे ठहरना है न तो इस वजह से"........अरुण अपनी ज़िन्दगी में कभी किसी से बात करते हुए इतना शरमाया नहीं था उसने पाया की सौम्य का भी वही हाल था |

"जी हम्हें फ़िलहाल तो ज़रूरत नहीं अगर हुयी तो आपको बता देंगे"
"वैसे अगर बुरा न माने तो एक बात पूछ सकती हूँ"
"हाँ पूछिए"
"क्या? आपको लगता है की सच में ही कोई क़ातिल यहाँ घूम रहा है? क्या इस कॉटेज को हत्याने की किसी की साजिश है जो ऐसी वारदात को अंजाम दे रहा है".........एक पल को अरुण ने सौम्या की ओर सोच भरी निगाहो से देखा

"हम्म हो सकता है कुछ भी हो सकता है फ़िलहाल जबतक हम ये पता न कर ले की ये वाक़ई किसी की साज़िश है हम कुछ कह नहीं सकते एनीवे आप!",,,,,,,,,,,अभी अरुण उससे कुछ और कह पाता...इतने में उस आवाज़ ने सौम्या को चौका दिया....उसका डायरेक्टर राम उसे आवाज़ दे रहा था |

"ज..जी मुझे जाना होगा सर बुला रहे है|"..........कहते हुए सौम्या रूम से बाहर निकल गयी

अरुण मुस्कुराये वापिस सोफे पे आके बैठ गया....उसने पाया की डीप आँखे मूंदें जैसे कुछ पड़ रहा था....."क्या हुआ?"............."कुछ नहीं बस दिल से ईश्वर को याद कर रहा हूँ की अब वोही हमारी हिफाज़त करे इस जगह से वैसे एक बात कहना चाहूंगा इस लड़की को देखके ऐसा क्यों लगा? की ये कुछ बताना चाह रही थी पर बता न पा सकी बीच में ही उस राम ने उसे आवाज़ देके बुलवा लिया वरना तुम उससे ज़रूर कुछ पूछकर जान सकते थे".............ये बात सुनके अरुण चुपचाप सर हाँ में हिलाता है.....
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Re: एक और दर्दनाक चीख

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"वैसे एक बात और कहु? अरुण मैं तो इसलिए फ़िक्र में हूँ की क्या हम आज की रात भी यहाँ चैन और सुकून से गुज़ार पाएंगे क्यूंकि मुझे तो नहीं लगता की हम यहाँ से जा भी पाएंगे"

एक पल को अरुण दीप की ओर देखने लगा....लेकिन बात तो उसकी सच थी चाहा तो ठहरना नहीं था....लेकिन वक़्त और हालत ने जैसे उन सबको यु जैसे वहां उस रात के लिए फसा दिया था | अरुण ये भी जानता था की जो हादसे होते है वो रात के वक़्त ही होते है वो बस पूरी तरह से अँधेरा होने का इंतजार करने लगा था....बाहर बदलो में गरगराहट फिर शुरू हो चुकी थी..कुछ ही पल में तूफ़ान चलने लगा था | कॉटेज में अब नीम अँधेरा होने लगा था.....हर कमरों में मोमबत्तिया जल रही थी|

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"आपने मुझे बुलाया सर"...........राम उस वक़्त चेयर पे बैठा अपने कमरे में बाकी क्रू मेंबरस के साथ था रैना सुबह से ही उस वाक़ये के बाद डरी हुयी थी इसलिए वो अपने कमरे में सो रही थी |

"हाँ उन्हें उनका कमरा दिखा आयी तुम?".....राम ने सौम्या से पूछा
"यस सर"..........सौम्या कहकर चुप सी हो गयी
"ज़्यादा उन लोगो से बातचीत करने की ज़रूरत नहीं है तुम्हे हो सकता है की वो लोग हमसे भी पूछताछ करे और मैं नहीं चाहता की फालतू में हम ऐसी किन्ही मामलो में पड़े उनसे रैना के साथ हुए उस घटना का जरा सा भी ज़िकर करने की ज़रूरत नहीं अंडरस्टैंड ये हिदायत मैं सबको दे रहा हूँ"
"यस सर".................सौम्या ने जैसे राम का आदेश माना था | हर कोई भी राम के इस बात के साथ सहमत था|

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शाम ७ बज चूका था....डायरेक्टर राम अपने कमरे में एकांत में बैठा हुआ वैसे ही आज शूटिंग अधूरी रह गयी थी| और ऊपर से कॉटेज आये जो चीज़ें यहाँ अजीबो गरीब हुयी थी उससे वो वाक़ई परेशां था अब अब चिंता का सबब यहाँ उस डिटेक्टिव अरुण और उसके साथ परनोमालिस्ट की हाज़िरी ने दे दिया था जो की उसके काम में बाधा दाल सकते थे| वैसे ही जावेद को उसने उनपे नज़र रखने को बोल दिया था लेकिन फिर भी वो रात गुजरने की बात बोले थे यानी कल सुबह वो यहाँ से रुक्सत भी हो सकते थे | इन्ही कश्मकश में वो अँधेरे में मोमबत्ती की फड़फड़ाती लौ को देखते हुए सिगरेट का कश ले रहा था |

इतने में उसे ऐसा अहसास हुआ जैसे जब भी वो सिगरेट का कश लेता है तो उसके सुलगने से उस कुछ पल के लिए कोई साया ठीक अपने बगल से गायब होता दिखता है और फिर सिगरेट निचे करते ही फिर वो साया जैसे उसके बेहद करीब खड़ा हो जाता है| बार बार गौर करते हुए एक पल को राम मुड़कर अपने पीछे देखता है लेकिन मोमबत्ती की फीकी रौशनी में उसे कुछ साफ़ नहीं दिख रहा था| उसने अपने दिल को समझते हुए इसे वेहम माना और कुर्सी से उठ खड़ा हुआ|

अचानक दरवाजा अपने आप खुलने लगा....अँधेरा काफी था इसलिए उसने मोमबत्ती अपने हाथो में उठाये दरवाजे के चर्र चर्र करती तीखी आवाज़ में उसके खुलते ही थोड़ा तेज़ आवाज़ में कहा "कौन है?".......कोई जवाब न मिला लेकिन किसी के भीतर कदम रखने की आहट सी हुयी

जब उसने भीतर कदम रखते हुए खुद को राम के सामने प्रस्तुत किया तो राम मुस्कुरा पड़ा....ये कोई और नहीं उसकी हीरोइन रैना थी..."अरे रैना तुम कब जगी? अभी तबियत कैसी है? ठीक तो होना"..........रैना की मुस्कराहट उसे बेहद अजीब लगी

वो मुस्कुराते हुए उसके बेहद नज़दीक आयी और उसके गर्दनो पे दोनों हाथ रखके बोली

"हम्म्म मैंने काफी सोचा राम एंड आई ऍम सॉरी की मेरी वजह से तुम आज बोदर हुए"
"अरे कोई बात नहीं रैना असल में ये जगह है ही ऐसी की कोई भी इसे भूतिया घर ही कहेगा जो कुछ हुआ शायद इसमें किसी की शरारत हो अब इसे भूल जाओ ओके"...........रैना ने मुस्कुराया और हाँ में सर हिलाया

राम ने उसके बदन पे हाथ फेरते हुए बाकियो के बाबत पूछा की वो लोग कहाँ है?........रैना ने मुस्कुराके बस इतना कहा की अगर कोई आएगा भी तो बंद दरवाजे से घूमकर वापिस चला जायेगा......राम ये सुनते ही शैतानी मुस्कराहट दिए झट से कमरे का दरवाजा लगा देता है.....

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उस कमरे में एकांत में बैठा साहिल के हाथ पेपर्स पे चल रहे थे| वो अपनी कहानी को और भी बेहतरीन ढंग से बीच बीच में एडिट कर रहा था....उसके हाथ में फसी कलम तेजी से उस सफ़ेद कागज़ो पे चल रहे थे| हवाएं तेज थी हो हो करती ठंडी हवा खुली खिड़की से अंदर दाखिल हो रही थी|........परदे हवाओ से एकदम उड़ रहे थे| साहिल अपनी लेखनी में इतना मलिन था की उसे अहसास भी नहीं की वो सर्द से ठिठुर रहा था लेकिन वो इस क़दर लिखने में खोया हुआ सा था की चाहके भी वो उठके खिड़किया नहीं लगा सकता था | वो करीब सात सालो से इस पेशे में था उसकी लिखी कई हॉरर फिल्में राम के डायरेक्शन द्वारा थिएटर्स में हिट रही थी | इस बार वो अपनी कहानी को इस कॉटेज से जोड़ते हुए बेहद डरावना बनाने की कोशिश कर रहा था|

अचानक से बदल में जैसे विस्पोट हुआ ऐसी गरगराहट भरी आवाज़ उसके कानो में पड़ी तो उसका जिस्म सिहर उठा और उसी शरण उसे अहसास हुआ की उसकी कलम की स्याही पुरे स्क्रिप्ट पे उसके हाथो के एकदम से हड़बड़ाहट में हिलने से फ़ैल गयी थी....."उफ़ ये क्या हो गया एक तो यहाँ लैपटॉप काम नहीं कर रहा सुबह से कोशिश में हूँ लाइट का कोई इन्तेज़ामात नहीं यहाँ पे उफ़ अब ये पेपर भी ख़राब हो गया"........कहते हुए उसने एक नए कागज़ पे अपने स्टोरी को वापिस दोहराना चाहा लिखते हुए |

अचानक उसे अहसास हुआ की सामने की खिड़की से बाहर भीषण तूफ़ान और हवाओ से आपस में पेड जैसे टकरा रहे थे.....अचानक उसके देखते ही देखते हवा इतनी तेजी से कमरे में दाखिल हुयी की उसके मेज पे रखके सारे कागज़ अपने आप बिखरने लगे.....साहिल उठते हुए उन सब कागज़ो को झुक झुक कर थामने लगता है.....उसी बीच बिजलिया चमकने लगती है और बादल आपस में टकराते हुए जैसे माहौल को और भी डरवाना अपनी आवाज़ों से करती जा रही थी|

अचानक साहिल देखता है की कुछ कागज़ अपने आप हवा से उड़ते हुए खिड़कियों के पास उड़कर गिर जाते है....साहिल उन्हें उठाने के लिए खिड़की के पास आता है और झुककर जैसे ही कागज़ को उठाये खिड़की पे देखता है तो चीख उठता है........क्यूंकि सामने का नज़ारा ही कुछ ऐसा था उसके सामने ठीक उस बरगद की पेड पे झूलती वो सर कटी लाश जैसे हवाओ से इधर उधर हेल रही थी....साहिल ने गौर किया की उसने एक गाउन पेहेन रखा था और उसकी कटी उस धड़ से खून बह रहा था | ये दृश्य देखना उसके लिए जैसे संभव न हुआ वो उलटे पाव दौड़ते हुए जैसे दरवाजे से बहार निकलने को जा ही रहा था की अचानक वो रुका उसने देखा की सामने मेज पे राखी उसकी कलम उन कागज़ो पे अपने आप चल रही थी | वो घबराते हुए कांपते हुए ये दृश्य देखके उसके पास आया उसने देखा जैसे कलम कोई चला रहा हो| पर वह कोई भी मौजूद नहीं था उसे कोई कलम थामा हुआ भी न दिखा

वो कलम जोर जोर से उन कागज़ो पे चलती जा रही थी | कागज़ जैसे कलम की खिचाई से फटती जा रही थी एका एक सभी कागज़ो पे वो कलम बिना रुके अपनी स्याही लिखावट के तौर पे छूटती जा रही थी| अचानक अपने आप कलम अपने आप लुड़कते हुए फर्श पे गिर पड़ी साहिल भयभीत उस कलम के लुड़कते हुए अपने पास आने से उसे अपने पाँव से एक ओर फैक देता है| एका एक वो बिना पीछे मुड़के वह ठहरे कमरे से तेजी से दौड़ता हुआ बहार निकल जाता है|

पेड़ पे वो झूलती वो सर कटी लाश अपने आप जैसे गायब हो जाती है |

"अरे ये तो साहिल की चीखने की आवाज़ है".........एका एक लिविंग हॉल में बैठे जावेद और सुनील चौंककर उठ खड़े हुए...वो लोग फट से अपनी कुर्सियों से उठते हुए सीढ़ियों की तरफ बढे इतने में सौम्या को उन्होने अपने सामने सामने पाया

"अरे ये तो साहिल चीख रहा है आवाज़ तो ऊपर से आ रही है"
"क्या हुआ? ये शोर कैसा?"...........इतने में दीप और अरुण वहा उनके पास पहुंचते हुए कहते है
"पता नहीं सर साहिल की चीख सुनते ही हम फ़ौरन यहाँ पहुंचे"
"चलो ऊपर".........अरुण ने जैसे सबको आदेश देते हुए सीढ़ियों पे हड़बड़ी में चढ़ता हुआ बोलने लगा

तभी सीढ़ियों से नीचे आते हुए डर और दहशत में उन्हे साहिल दिखा....जिसे पसीना पसीना डरा सेहमा हुआ देख...अरुण ने ही उसे थामा..."क..क्या हुआ? तुम चीखें क्यों? तुम इतना डर क्यों रहे हो? क्या देख लिया तुमने?"...........साहिल बस कांपते हुए इशारे से ऊँगली ऊपर की तरफ करता हुआ जैसे कुछ कहना चाह रहा था|

"अरे बोलो तो सही आखिर बात क्या है?".....अरुण ने उसे झिंझोड़ते हुए ज़ोर देते हुए कहा
"व..वो व..वहा ऊपर मेरे कमरे में मैं स्क्रिप्ट तैयार कर रहा था....अचानक बाहर तूफ़ान इस क़दर बढ़ा की मैं बिखरे हुए कागज़ उठाने लगा....जैसे ही खिड़की के पास पंहुचा तो देखा की सामने उस पेड़ पे एक सर कटी लाश झूल रही थी| मैं ये सीन देखके बहुत डर गया जैसे कमरे से निकलना चाहा तो देखा की मेरी कलम अपने आप कागज़ो पे चल रही थी मैं यकीन नहीं कर पा रहा आखिर ऐसा कैसे हो सकता है? जरूर इस घर में कोई रूह है मेरा तो जी घबरा रहा है"...........साहिल बहुत ज़्यादा डरा हुआ था|
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Re: एक और दर्दनाक चीख

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उसकी बात सुनकर एक पल को अरुण ने दीप की तरफ देखा....दीप जैसे किसी गहरी सोच में डूबा माथे पे शिखर लिए खड़ा था....हर कोई खौफ्फ़ से जैसे अरुण और साहिल की और देखते हुए कुछ सोच रहे थे | "मैं ऊपर जा रहा हूँ"......कहते हुए अरुण सीढ़ियों से चढ़ते हुए ऊपर के माले पे चला गया....."अरुण रुको'........कहते हुए दीप आवाज़ दिए उसके पीछे सीढ़ियों पे चढ़ते हुए ऊपर चला गया.....

उस कमरे के दरवाजे को हलके से धकेलते हुए अरुण अंदर आया....दरवाजा आधा ही खुला था...वो धीरे धीरे कमरे की खामोशी को महसूस कर रहा था| उसने पाया की स्याही से ख़राब कुछ कागज़ वैसे ही मेज़ पे बिखरे हुए पड़े हुए थे| उसने खिड़की के पास जाके बाहर की और झाका बाहर गुप् अँधेरा था | हो हो करती हवाओ का शोर उसे सुनाई दे रहा था| उस घडी बारिश थम चुकी थी...लेकिन आसमान उसे बिगड़ते मौसम में कुछ अलग सा दिखा| उसने देखा की खिड़की से बाहर दूर दूर सिर्फ जंगल दिखता है| और कई दूर उसे एक टुटा लाल ब्रिज दिख रहा था| उसने अपने आस पास भी नज़र फिराई लेकिन वहा उसे कही सामने या किसी भी आस पास के पेड़ पे कोई कटी सर वाली लाश न दिखी जिसका ज़िकर साहिल ने बारे यकीनी तौर पे किया था|

अचानक उसे किसी की अपने बाज़ू में आहट सी हुयी तो उसने मुड़कर देखा की दीप उसके संग खड़ा बाहर झाँक रहा था....उस वक़्त सर्द हवाएं दोनों के चेहरों पे पड़ रही थी|

"इस खामोश वीराने भरी अँधेरी रात में मुझे घबराहट सी हो रही है| वो झूट नहीं कह रहा लाश वही सामने उस पेड़ पे लटक ज़रूर रही थी जो अब हमारी नज़रो से बोझल हो चुकी".........दीप की अजीब सी बात सुनके अरुण वापिस मेज की तरफ रुख करता है वो कागज़ो को पलटते हुए देखता है और तभी उसके चेहरे का रंग बदलने लगता है....

"ये क्या?"........अरुण की बात सुन दीप उसके हाथ में उठी उस कागज़ को निहारता है
एका एक उसकी भी आँखों में जैसे खौफ्फ़ समा उठता है....वो तुरंत अरुण के हाथ से उस कागज़ को अपने हाथो में लेकर देखने लगता है....."हे खुदा ये तो संकेत है किसी अनहोनी के होने का"......एका एक उसकी बात सुन अरुण भी अजीब नज़रो से उस कागज़ को देखने लगता है...

उस कागज़ पर जो कलम साहिल ने चलती हुयी देखि थी दरअसल वैसे ही कुछ कागज़ो पे वैसे ही स्याही से इस कदर घसीटते हुए कुछ ऐसा कलम ने लव्ज़ छोड़ा था जिसे कोई भी देखता तो खौफ्फ़ से सिहम उठता....ूँ कागज़ो पे बिलकुल एक ही जैसा शब्द लिखा हुआ था| और वो था "DIE "

अरुण ने देखा की पीछे खड़े हर कोई मौजूद थे क्रू मेंबर्स के....जिनमें जावेद सुनील साहिल और सौम्य भी थे....आवाज़ सुनके तबतलक रैना के साथ डायरेक्टर राम भी कमरे में उपस्थित हो चूका था| वो वैसे ही परेशानी में दिख रहा था क्यूंकि डिटेक्टिव अरुण बक्शी के हाथ में जो कागज़ था उसने उसे साफ़ तौर पे देख लिया था| रैना भी खौफ्फ़ से सिहर उठी थी|

"मैं जान सकता हूँ की यहाँ हो क्या रहा है?".........राम ने कहा
"दरअसल आपके राइटर साहिल ने जो कुछ ब्यान किया उसके बाद आप सबकुछ साहिल से ही सुने तो बेहतर होगा"........साहिल ने कांपते हुए राम को जब सबकुच बताया तो वो उसपे जैसे बरस पड़ा

"क्या हुआ है? गाइस तुम सब को कभी रैना तो कभी तुम तो कभी सौम्य को दिखता कोई अक्स ये सब फ़िज़ूल है ओके"

"आपके क्रू मेमेबर्स झूट नहीं कह रहे है दरअसल यहाँ आने से पहले से ही मुझे यकीन था की इस वीराने बंद पड़े कॉटेज का कोई और ही राज़ है और ये बात मुझसे बेहतर दीप आपको बता सकते है"........राम ने सिर्फ अपने सर पे हाथ रखकर सिर्फ न में अपने सर को हिलाते हुए जैसे अरुण की बात को अनसुना सा कर दिया

"देखिये मिस्टर हम यहाँ शूटिंग के लिए आये है जिसके लिए हम्हें परमिशन भी है ये फालतू की बातो पे आपको यकीन हो सकता है पर मुझे नहीं आई डॉन'ट बिलीव इन डिस काइंड ऑफ़ सुपरस्टीशन और तुम साहिल इतने बड़े राइटर होकर तुम ऐसी फालतू बात कैसे कर सकते हो? कहाँ है वो सर कटी लाश बोलो"

"अगर मैं झूठ कह रहा हूँ तो फिर ये इनके हाथो में ये जो कोरे कागज़ो पर स्याही से घसीटती हुयी लव्ज़ लिखी है क्या वो मैंने लिखी है मैंने अपनी इन्ही आँखों से कलम को अपने उन कागज़ो पे चलते हुए देखा है| सामने उस पेड़ पे एक औरत की सर कटी लाश देखी है फिक्शन और रियलिटी में फर्क जानता हूँ मैं"

"ओह शट अप"..........खिजलाये स्वर में राम ने साहिल को जैसे खामोश कर दिया.....वह खड़ा हर कोई चुपचाप था और सोच में डूबा हुआ सा था|

"देखिये मिस्टर राम अपने क्रू मेंबर को चुप करा लेने से आप सचाई को झुटला नहीं सकते.....अगर लाश थी तो वो गायब कैसे हो सकती है इतने जल्दी तो कोई उस पेड़ से लाश को हटा तो नहीं सकता न?"........अरुण ने इस बार जैसे विश्वास करते हुए कहा...जिसे सुन राम उसकी तरफ देखने लगा

"तो आप के कहने के मुताबिक़.....यहाँ इस डेड लेक में कोई आत्मा है कोई रूह वास करती है जो हम्हें परेशान कर रही है वो हमारी मौत चाहती है इसन'ट व्हिच यू वांट टू से?".........अरुण ने कोई जवाब नहीं दिया

"अरुण सही कह रहे है| और कहने का कुछ यही मतलब बनता है मैंने डेड लेक पे करीब कई महीनो से रेसर्चेस करते हुए ये पाया है की ये सच है की ये जगह वाक़ई हॉन्टेड है लेकिन सिर्फ एक रूह नहीं यहाँ बहुत सी ऐसी तमाम रूह है जो सिर्फ किसी किसी की मौत का इंतजार करती है मैं यहाँ वैसे ही आके इस राज़ को जानना चाहता था| और इसमें मेरी मदद अरुण भी कर रहे है| आप लोग शायद मेरी बातो पे यकीन न करे पर यही सच्चाई है क्यूंकि मैंने खुद उस मुसाफिर की आत्मा से रूबरू हुआ हूँ और उसने मुझपे जानलेवा हमला भी किया था".............दीप की बात सुनकर एका एक सबकी नज़र उसकी और जैसे अपलक थी...किसी को विश्वास न हुआ लेकिन समझते ही सबके चेहरों का रंग बदल सा गया

"देखिये मोहद डीप आपकी बातो पे ये लोग विश्वास कर सकते है| मैं नहीं आपका पेशा आपको इसकी इज़ाज़त देता है लेकिन मुझे भूत प्रेत सिवाय फिल्मो में ही अच्छे लगते है इन रियलिटी देयर इस नो क्लूो ऑफ़ अन्य काइंड ऑफ़ सच थिंग"............दीप का जैसे इस बार राम पर बहुत तेज गुस्सा आया|

"जब मौत से रूबरू होंगे डैन यू नॉट इवन फाइंड अ क्लू ".......दीप के बात से राम तिलमिला उठा...लेकिन उसकी हिम्मत न हुयी की वो और कुछ कह पाता

"आई ऍम गोइंग तो स्लीप आई वांट एवरीवन की कल सुबह ६ बजे ही सब हाज़िरी दे हम कल अपनी शूटिंग कंटिन्यू करेंगे दैट'स आल"........बिना कुछ कहे अरुण और दीप को घुररते हुए राम वहां से निकल गया..

क्रू के हर मेंबर भी वहा से जाने लगे....सिवाय साहिल और सौम्य के...जिन्हें शायद अरुण और दीप पे यकीन था...साहिल भी थोड़े देर बाद वह से अपने कमरे में चला गया...."अरुण उसे तो यकीन नहीं होगा लेकिन अगर वक़्त रहते हमने सबको सचेत न किया तो शायद कोई अनहोनी सच में घट सकती है ये कागज़ो पे लिखे स्याही से इसका एक ही मतलब होता है वो चीज़ इस पुरे कॉटेज में वास करती है"..........दीप की बात सुनकर अरुण ने उसकी तरफ खामोसी से देखा फिर उस कागज़ को फाड़ते हुए एक ओर फैक दिया|

"मुझे यकीन है आप लोगो की बातो पे मैं झूठ नहीं कहूँगी मैंने वो साया आज दोपहर के वक़्त देखा था| और यही नहीं आज रैना के साथ भी कुछ अजीब सी चीज़ घटी थी जिसे बताने से राम ने हुम्हे सकत हिदायत की थी".........सौमया में सारी सच्चाई दीप और अरुण को बतानी शुरू की जो कुछ आज दिन में उनके साथ घटा था |

"इसका मतलब साफ़ है यहाँ पे वो चीज़ें मौजूद है".............दीप को सेहेमा हुआ देख सौमया और अरुण उसे अजीब निगाहो से देखने लगे जैसे उन्हे ये सुनके यकीन सा हो रहा था|

"देखो सौमया तुम अपना ख्याल रखना कोई भी दिक्कत हो तुम हमसे कहना अभी तुम जाओ वरना डायरेक्टर राम को हमपे शक हो जायेगा"...........अरुण ने जैसे सौमया को समझाया

"ठीक है"........सवालो में डूबी सौमया उस कमरे से चली गयी....

दीप धीरे धीरे उस पुरे कमरे को देखने लगा....अरुण ने भी छानबीन शुरू कर दी थी....उसे मालुम था की इस कॉटेज में कोई तो सुराग उसे हासिल होगा.....दराज़ पुराने वॉरड्रोबेस कमरे की हर जगह से लेके वो सबके सो जाने के बाद लिविंग रूम को भी छान रहे थे| दीप ने उस तस्वीर की ओर देखा और अपने हाथो से उसपे लगी मिटटी को पोछते हुए उस तस्वीर को उतारकर गौर किया |

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