अधूरी हसरतें
- rajaarkey
- Super member
- Posts: 10097
- Joined: 10 Oct 2014 10:09
- Contact:
Re: अधूरी हसरतें
bahut hi mast update
(¨`·.·´¨) Always
`·.¸(¨`·.·´¨) Keep Loving &;
(¨`·.·´¨)¸.·´ Keep Smiling !
`·.¸.·´ -- Raj sharma
`·.¸(¨`·.·´¨) Keep Loving &;
(¨`·.·´¨)¸.·´ Keep Smiling !
`·.¸.·´ -- Raj sharma
- Rohit Kapoor
- Pro Member
- Posts: 2821
- Joined: 16 Mar 2015 19:16
Re: अधूरी हसरतें
thanks all friends
Read my all stories
(संयोग का सुहाग)....(भाई की जवानी Complete)........(खाला जमीला running)......(याराना complete)....
(संयोग का सुहाग)....(भाई की जवानी Complete)........(खाला जमीला running)......(याराना complete)....
- Rohit Kapoor
- Pro Member
- Posts: 2821
- Joined: 16 Mar 2015 19:16
Re: अधूरी हसरतें
निर्मला बारिश के बंद होते ही तुरंत अपनी गाड़ी हाइवे पर लाकर अपने घर की तरफ बढ़ा दी रास्ते भर दोनों एक दूसरे से नजर नहीं मिला पा रहे थे। निर्मला को इस बात का पछतावा बिल्कुल भी नहीं था कि उसने अपने बेटे के ही साथ संभोग सुख का आनंद ले ली है । बल्कि वह अपने बेटे से शर्म के मारे नजरें नहीं मिला पा रही थी। शुभम मन-ही-मन अति प्रसन्न हो रहा था आज उसके मन की बात सच हो गई थी।
आज जो कुछ भी होगा उसके लिए शायद दोनों ही पूरी तरह से तैयार नहीं थे वह तो पार्टी के लिए निकले थे लेकिन हालात ने उन्हें उस एकांत जगह पर रुकने को मजबूर कर दिया था। तूफानी बारिश एकदम थक चुकी थी मौसम धीरे धीरे साफ होने लगा था दूर सूरज की लालिमा हल्के हल्के धरती से जैसे बाहर आ रही हो,,,, निर्मला आराम से गाड़ी चलाते हुए,,, यह सोच रही थी कि अब शीतल उससे ना आने का कारण पूछेगी तो वह क्या बताएगी तभी वह अपने ही सवाल का जवाब मन में ढूंढते हुए मन में ही बोली थी वह भी तो जान ही रही होगी कि तूफानी बारिश किस तरह से पूरे शहर को अपने कब्जे में ले ली थी हाईवे तक सुनसान सा हो चुका था ऐसे में भला कैसे उसके घर पहुंच पाते,,,,, वह मन ही मन शीतल के सवाल का जवाब ढूंढ ली थी।
थोड़ी ही देर में निर्मला की गाड़ी घर के गैराज में प्रवेश की और उसमें से शुभम उतर कर बिना कुछ बोले अपने कमरे की तरफ चला गया निर्मला भी धीरे धीरे कुछ सोचते हुए अपने घर में प्रवेश की तो सामने से ही अशोक तैयार होकर सीढ़ियों से नीचे उतरता हुआ नजर आया उसे देखते ही निर्मला बोली,,,,,
अरे आप तैयार हो गए रूको भी नाश्ता बना देतीे हुं।
नहीं कोई जरुरत नहीं है मैं ऑफिस में कर लूंगा मुझे देर हो रही है।
लेकिन आप आज बहुत जल्दी जा रहे हैं,,,,
( निर्मला के ईतने कहने के साथ ही अशोक आगे बढ़ गया और जाते-जाते बोला।)
मुझे आज ऑफिस में जरुरी काम है इसलिए जल्दी जाना है। ( और इतना कहने के साथ यह वह घर से बाहर चला गया।,,, निर्मला उसे घर के बाहर जाते हुए देखती रही,,,, निर्मला उसे गुस्से की नज़र से देखने लगी और मन ही मन उसे कोसते हुए बोली,,,,, अगर तू मुझ पर ध्यान दिया होता तो आज यह दिन नहीं देखना पड़ता,,,,, इतना कहने के साथ ही वहां पास में पड़ी कुर्सी पर बैठ गई और रात की घटना के बारे में सोचने लगी,,,, उसे खुद पर यकीन नहीं हो रहा था कि उसने कुछ ऐसा कदम उठा ली है जो कि उसकी जिंदगी को पूरी तरह से बदल कर रख सकती है। एक मन ऊसका कह रहा था कि निर्मला तूने जो कि वह बिल्कुल गलत है,,, तुझे ऐसा नहीं करना चाहिए था तूने मां बेटे के बीच के पवित्र रिश्ते को तार तार कर दी है तूने वह शर्मनाक काम कर दी है जिसके बारे में सोचना भी पाप है। यह ख्याल मन में आते ही निर्मला का मन ग्लानी से भर जा रहा था,,,, उसे सच में लगने लगा कि उसने जो की है वह सच में बेहद गलत है उसे ऐसा नहीं करना चाहिए था लेकिन तभी उसका दूसरा मन कहता कि तूने जो की है उसमें कोई गलती नहीं है जो कुछ हुआ वह हालात की वजह से हुआ,,,, ईस तरह से एकांत में बरसती बारिश में उन दोनों की जगह कोई भी होता तो उनके साथ भी यही होता आखिरकार निर्मला सबसे पहले एक औरत है जो कि बरसों से अपने पति के प्यार के लिए तरस रही थी जिसने अभी तक अपने पति से संभोग सुख का पूरा आनंद भी नहीं लेता इतने वर्षों से ऊषकी बुर प्यासी थी,,,, जो कि एक मोटा और तगड़ा लंड के लिए तड़प रही थी और ऐसा दमदार लंड उसके बेटे के पास था जिसे वह अपने हाथों में लेकर बारीकी से उस का निरीक्षण कर चुकी थी,,,, शुभम भी जवान हो रहा गठीले बदन का मर्द था। जिसके अंदर जवानी का जोश हिलोरे मार रहा था। जिसकी नजरे मदमस्त बदन वाली औरतों के अंगो ऊपांगो पर घूमने लगी थी ऊन्हें देख कर उसके लंड में भी तनाव आना शुरू हो गया था और तो और वह खुद ही अपनी मां की खूबसूरत बदन से पूरी तरह से आकर्षित हो चुका था। ऐसे में उस की उत्सुकता औरतों को और भी अच्छे से जानने की बढ़ती ही जा रही थी,,, और जिस हालात में वह रात भर तूफानी बारिश में रुका था,,, कार के अंदर अपनी खूबसूरत और सेक्सी बदन वाली निर्मला को वह सिर्फ औरत की ही नजर से देख रहा था। ऐसे में बरसों से प्यासी एक पत्नी अपने पति से जरा भी प्यार ना पाने की वजह से,,,, एक प्यासी औरत बन चुकी थी जो किसी भी तरह से अपनी प्यास बुझाना चाहती थी और दूसरी तरफ जवान हो रहा लड़का,,, जो औरतों के बदन से आ रही मादक खुशबू को अपने सीने में उतारना चाहता था।। ऐसे में दोनों के बीच मां बेटे के रिश्ते की जगह केवल औरत और मर्द का यह रिश्ता रह गया था इसलिए दोनों सब कुछ भूल कर एक दूसरे में समाते हुए सारे रिश्ते नातों को तोड़कर संभोग सुख की असीम आनंद कीें गाथा को लिखने में जुड़ गए । उस पल को याद करके निर्मला कीबुर फिर से पानी पानी हुए जा रही थी,,, सारी रात जागने की वजह से वह थक चुकी थी उसे अपने बदन में थकान सी महसूस हो रही थी,,, और जिस आनंद को पाने के लिए वह बरसों से तरस रही थी उसके लिए तो जगना भी जरूरी था,,, बिना कर्म किए बिना मेहनत किए कभी भी फल नहीं मिलता,,,, और निर्मला तो बरसों से प्यासी थी अपनी प्यास बुझाने के लिए अगर उसने महीनों जागना भी पड़ता तो भी उसके लिए वह तैयार थी।
निर्मला कुर्सी पर बैठकर यही सब याद करते करते कब उसकी आंख लग गई उसे पता नहीं चला।
यही हाल शुभम का भी था उसे तो अभी भी यकीन नहीं हो रहा था कि रात को कार में उसने अपनी मां को चोदा है। और यकीन भी कैसे करता यह तो उसके लिए एक सपना ही था अपनी मां के खूबसूरत बदन को देख देखकर उसके कल्पनाओं का घोड़ा ना जाने कितनी तीव्र गति से कहां-कहां दौड़ आया था। निर्मला की बड़ी बड़ी चूचियां उसके बड़े बड़े नितंब को याद करके ना जाने कितनी बार उसने अपने लंड को अपने ही हाथों से शांत किया था। शुभम को वह पल बराबर उसके जेहन में बस गया था जब उसने अपनी मां की रसीली बुर को पहली बार कार के अंदर देखा,,,, वह अभी तक उस अंग के बारे में केवल कल्पना ही करता आया था।
उसे अपनी नजरों पर बिल्कुल भी यकीन नहीं हो रहा था कि उसने अपनी आंखों से अपनी मां की नंगी बुर को देखा है। उसकी बनावट उसके आकार को देखकर आश्चर्यचकित रह गया। वैसे भी उसकी मां की बुर इस उम्र में भी बेहद तारीख थी जिसकी वजह से उसकी गुलाब की पत्तियां बस हल्की हल्की ही नजर आ रही थी और नजर आ रही थी बस केवल एक हल्की सी पतली लकीर,,,, जिसमें लाखों खुशबूदार फूलों के रस को निचोड़कर सारा रस भरा हुआ था। शुभम अपनी मां की जांघों के बीच जब पतली सी दरार को देखा तो उसके बदन में हलचल सी मच गई,,,, उसने उसे कोई भी सुराग नजर नहीं आ रहा था इसलिए वह और भी ज्यादा दंग इस बात से था कि आखिरकार बुर में लंड जाता कैसे हैं और क्या इतनी सी छोटी सी बुर में मोटा लंबा लंड घुस जाता है। यह सब बातें उस समय उसे बेहद परेशान किए हुए थी। ऊस पल की उत्तेजना उसके बदन में झनझनाहट की तीव्रता को और भी ज्यादा बढ़ा दी थी। जब शुभम ने अपनी अंगुलियों से अपनी मां की दहकती हुई बुर को स्पर्श किया तो उस समय उसका पूरा वजूद किसी सूखे पत्ते की तरह फड़फड़ासा गया। उसे निर्मला की गुलाबी बुर का स्पर्श किसी बिजली के तार में दौड़ते करंट से कम नहीं लगा था। शुभम अपने बिस्तर पर लेटे लेटे यही सब सोच रहा था और यह सब सोचते हुए उसका हाथ खुद-ब-खुद पजामे में चला गया,,,, उसका लंड एक बार फिर से पूरी तरह से तैयार होकर खड़ा हो गया था। जिसे वह हल्के हल्के सहलाते हुए आनंद की अनुभूति कर रहा था। उसे इस बात का बिल्कुल भी अंदाजा नहीं था कि बाहर से एकदम साथ दीखने वाली बुर अपने अंदर ना जाने कितने महासागर को समेटे हुए हैं। आंखों को ठंडक प्रदान करने वाली रसीलपुर अपने अंदर ना जाने कितनी गर्मी भरे हुए हैं,,,। क्योंकि वह जब अपने लंड को अपनी मां की बुर के अंदर उतारा था तो उसे इस बात का बिल्कुल भी अंदाजा नहीं था कि बुर के अंदर की गर्मी किसी तपती हुई भट्टी के समान होगी,,,,, उसे एक पल तो ऐसा लगा कि जैसे उसका लंड निर्मला की बुर के अंदर की गर्मी में पिघल जाएगा,,,, लेकिन ना जाने वह कैसे संभाल गया उसे खुद भी नहीं पता चला। उसे इतना तो उसके दोस्तों के द्वारा पता ही चल गया था कि चुदाई करने में बहुत मजा आता है लेकिन इतना ज्यादा मजा आता है उसे इस बात का पता निर्मला की चुदाई करने के बाद ही हुआ। अपनी मां की चुदाई करने के बाद उसके मन में किसी भी प्रकार की ग्लानी नहीं थी। बल्की वह तोें इस नए रिश्ते से बेहद खुश था। लेकिन उसके मन में अभी भी है सवाल बना हुआ ही था कि क्या आगे भी उसकी मम्मी इसी तरह से उसके साथ संबंध कायम रखेगी या यह संबंध यहीं खत्म हो जाएगा,,,, यही सब सोचते हुए वह भी सो गया।
मोबाइल की घंटी बजी तो निर्मला की नींद खुली और वहां अपने पर्स में से मोबाइल निकाल कर स्क्रीन पर देखी तो शीतल का ही नंबर झलक रहा था। वह समझ गई कि कल रात के बारे में ही शीतल उसे फोन कर रही है। निर्मला को खुद अच्छा नहीं लग रहा था क्योंकि ले देकर शीतल ही उसकी खास सहेली थी। उसके घर ना पहुंच पाने का दुख निर्मला को भी था लेकिन हालात ही उसके सामने कुछ इस तरह से अपना हाथ रोके खड़े थे कि वह उसके घर पहुंच ही नहीं पाए शायद किस्मत को कुछ और मंजूर था। और जो मंजूर था वह हो चुका था। अब तो निर्मला बस इसी उधेड़बुन में लगी हुई थी कि शीतल को कैसे समझाएं। यह सब सोचते हुए ही शीतल का फोन एक बार कट गया और दोबारा रिंग बजने लगी इसलिए निर्मला ने शीतल के फोन को रिसीव करके हेलो बोल रही थी कि सामने से सवालों की झड़ी बरसने लगी।
क्या हुआ निर्मला दिखा दी तुमने अपनी दोस्ती कितने प्यार से मैंने तुम्हें अपनी शादी की सालगिरह पर बुलवाई थी और तुम हो कि एक बार भी फोन करना भी मुनासिब नहीं समझी,,,
अरे यार मेरी बात तो सुनो कि सब कुछ बोलती ही रहोगी,,,
अब क्या सुनाऊं मैं और सुनने सुनाने के लिए कुछ बाकी रखा ही कहां है तुमने,,,,,
अरे नहीं आना था तो मुझे साफ-साफ बोलदी होती मैं पागलों की तरह तुम्हारा इंतजार तो नहीं करती,,,,,,
आज जो कुछ भी होगा उसके लिए शायद दोनों ही पूरी तरह से तैयार नहीं थे वह तो पार्टी के लिए निकले थे लेकिन हालात ने उन्हें उस एकांत जगह पर रुकने को मजबूर कर दिया था। तूफानी बारिश एकदम थक चुकी थी मौसम धीरे धीरे साफ होने लगा था दूर सूरज की लालिमा हल्के हल्के धरती से जैसे बाहर आ रही हो,,,, निर्मला आराम से गाड़ी चलाते हुए,,, यह सोच रही थी कि अब शीतल उससे ना आने का कारण पूछेगी तो वह क्या बताएगी तभी वह अपने ही सवाल का जवाब मन में ढूंढते हुए मन में ही बोली थी वह भी तो जान ही रही होगी कि तूफानी बारिश किस तरह से पूरे शहर को अपने कब्जे में ले ली थी हाईवे तक सुनसान सा हो चुका था ऐसे में भला कैसे उसके घर पहुंच पाते,,,,, वह मन ही मन शीतल के सवाल का जवाब ढूंढ ली थी।
थोड़ी ही देर में निर्मला की गाड़ी घर के गैराज में प्रवेश की और उसमें से शुभम उतर कर बिना कुछ बोले अपने कमरे की तरफ चला गया निर्मला भी धीरे धीरे कुछ सोचते हुए अपने घर में प्रवेश की तो सामने से ही अशोक तैयार होकर सीढ़ियों से नीचे उतरता हुआ नजर आया उसे देखते ही निर्मला बोली,,,,,
अरे आप तैयार हो गए रूको भी नाश्ता बना देतीे हुं।
नहीं कोई जरुरत नहीं है मैं ऑफिस में कर लूंगा मुझे देर हो रही है।
लेकिन आप आज बहुत जल्दी जा रहे हैं,,,,
( निर्मला के ईतने कहने के साथ ही अशोक आगे बढ़ गया और जाते-जाते बोला।)
मुझे आज ऑफिस में जरुरी काम है इसलिए जल्दी जाना है। ( और इतना कहने के साथ यह वह घर से बाहर चला गया।,,, निर्मला उसे घर के बाहर जाते हुए देखती रही,,,, निर्मला उसे गुस्से की नज़र से देखने लगी और मन ही मन उसे कोसते हुए बोली,,,,, अगर तू मुझ पर ध्यान दिया होता तो आज यह दिन नहीं देखना पड़ता,,,,, इतना कहने के साथ ही वहां पास में पड़ी कुर्सी पर बैठ गई और रात की घटना के बारे में सोचने लगी,,,, उसे खुद पर यकीन नहीं हो रहा था कि उसने कुछ ऐसा कदम उठा ली है जो कि उसकी जिंदगी को पूरी तरह से बदल कर रख सकती है। एक मन ऊसका कह रहा था कि निर्मला तूने जो कि वह बिल्कुल गलत है,,, तुझे ऐसा नहीं करना चाहिए था तूने मां बेटे के बीच के पवित्र रिश्ते को तार तार कर दी है तूने वह शर्मनाक काम कर दी है जिसके बारे में सोचना भी पाप है। यह ख्याल मन में आते ही निर्मला का मन ग्लानी से भर जा रहा था,,,, उसे सच में लगने लगा कि उसने जो की है वह सच में बेहद गलत है उसे ऐसा नहीं करना चाहिए था लेकिन तभी उसका दूसरा मन कहता कि तूने जो की है उसमें कोई गलती नहीं है जो कुछ हुआ वह हालात की वजह से हुआ,,,, ईस तरह से एकांत में बरसती बारिश में उन दोनों की जगह कोई भी होता तो उनके साथ भी यही होता आखिरकार निर्मला सबसे पहले एक औरत है जो कि बरसों से अपने पति के प्यार के लिए तरस रही थी जिसने अभी तक अपने पति से संभोग सुख का पूरा आनंद भी नहीं लेता इतने वर्षों से ऊषकी बुर प्यासी थी,,,, जो कि एक मोटा और तगड़ा लंड के लिए तड़प रही थी और ऐसा दमदार लंड उसके बेटे के पास था जिसे वह अपने हाथों में लेकर बारीकी से उस का निरीक्षण कर चुकी थी,,,, शुभम भी जवान हो रहा गठीले बदन का मर्द था। जिसके अंदर जवानी का जोश हिलोरे मार रहा था। जिसकी नजरे मदमस्त बदन वाली औरतों के अंगो ऊपांगो पर घूमने लगी थी ऊन्हें देख कर उसके लंड में भी तनाव आना शुरू हो गया था और तो और वह खुद ही अपनी मां की खूबसूरत बदन से पूरी तरह से आकर्षित हो चुका था। ऐसे में उस की उत्सुकता औरतों को और भी अच्छे से जानने की बढ़ती ही जा रही थी,,, और जिस हालात में वह रात भर तूफानी बारिश में रुका था,,, कार के अंदर अपनी खूबसूरत और सेक्सी बदन वाली निर्मला को वह सिर्फ औरत की ही नजर से देख रहा था। ऐसे में बरसों से प्यासी एक पत्नी अपने पति से जरा भी प्यार ना पाने की वजह से,,,, एक प्यासी औरत बन चुकी थी जो किसी भी तरह से अपनी प्यास बुझाना चाहती थी और दूसरी तरफ जवान हो रहा लड़का,,, जो औरतों के बदन से आ रही मादक खुशबू को अपने सीने में उतारना चाहता था।। ऐसे में दोनों के बीच मां बेटे के रिश्ते की जगह केवल औरत और मर्द का यह रिश्ता रह गया था इसलिए दोनों सब कुछ भूल कर एक दूसरे में समाते हुए सारे रिश्ते नातों को तोड़कर संभोग सुख की असीम आनंद कीें गाथा को लिखने में जुड़ गए । उस पल को याद करके निर्मला कीबुर फिर से पानी पानी हुए जा रही थी,,, सारी रात जागने की वजह से वह थक चुकी थी उसे अपने बदन में थकान सी महसूस हो रही थी,,, और जिस आनंद को पाने के लिए वह बरसों से तरस रही थी उसके लिए तो जगना भी जरूरी था,,, बिना कर्म किए बिना मेहनत किए कभी भी फल नहीं मिलता,,,, और निर्मला तो बरसों से प्यासी थी अपनी प्यास बुझाने के लिए अगर उसने महीनों जागना भी पड़ता तो भी उसके लिए वह तैयार थी।
निर्मला कुर्सी पर बैठकर यही सब याद करते करते कब उसकी आंख लग गई उसे पता नहीं चला।
यही हाल शुभम का भी था उसे तो अभी भी यकीन नहीं हो रहा था कि रात को कार में उसने अपनी मां को चोदा है। और यकीन भी कैसे करता यह तो उसके लिए एक सपना ही था अपनी मां के खूबसूरत बदन को देख देखकर उसके कल्पनाओं का घोड़ा ना जाने कितनी तीव्र गति से कहां-कहां दौड़ आया था। निर्मला की बड़ी बड़ी चूचियां उसके बड़े बड़े नितंब को याद करके ना जाने कितनी बार उसने अपने लंड को अपने ही हाथों से शांत किया था। शुभम को वह पल बराबर उसके जेहन में बस गया था जब उसने अपनी मां की रसीली बुर को पहली बार कार के अंदर देखा,,,, वह अभी तक उस अंग के बारे में केवल कल्पना ही करता आया था।
उसे अपनी नजरों पर बिल्कुल भी यकीन नहीं हो रहा था कि उसने अपनी आंखों से अपनी मां की नंगी बुर को देखा है। उसकी बनावट उसके आकार को देखकर आश्चर्यचकित रह गया। वैसे भी उसकी मां की बुर इस उम्र में भी बेहद तारीख थी जिसकी वजह से उसकी गुलाब की पत्तियां बस हल्की हल्की ही नजर आ रही थी और नजर आ रही थी बस केवल एक हल्की सी पतली लकीर,,,, जिसमें लाखों खुशबूदार फूलों के रस को निचोड़कर सारा रस भरा हुआ था। शुभम अपनी मां की जांघों के बीच जब पतली सी दरार को देखा तो उसके बदन में हलचल सी मच गई,,,, उसने उसे कोई भी सुराग नजर नहीं आ रहा था इसलिए वह और भी ज्यादा दंग इस बात से था कि आखिरकार बुर में लंड जाता कैसे हैं और क्या इतनी सी छोटी सी बुर में मोटा लंबा लंड घुस जाता है। यह सब बातें उस समय उसे बेहद परेशान किए हुए थी। ऊस पल की उत्तेजना उसके बदन में झनझनाहट की तीव्रता को और भी ज्यादा बढ़ा दी थी। जब शुभम ने अपनी अंगुलियों से अपनी मां की दहकती हुई बुर को स्पर्श किया तो उस समय उसका पूरा वजूद किसी सूखे पत्ते की तरह फड़फड़ासा गया। उसे निर्मला की गुलाबी बुर का स्पर्श किसी बिजली के तार में दौड़ते करंट से कम नहीं लगा था। शुभम अपने बिस्तर पर लेटे लेटे यही सब सोच रहा था और यह सब सोचते हुए उसका हाथ खुद-ब-खुद पजामे में चला गया,,,, उसका लंड एक बार फिर से पूरी तरह से तैयार होकर खड़ा हो गया था। जिसे वह हल्के हल्के सहलाते हुए आनंद की अनुभूति कर रहा था। उसे इस बात का बिल्कुल भी अंदाजा नहीं था कि बाहर से एकदम साथ दीखने वाली बुर अपने अंदर ना जाने कितने महासागर को समेटे हुए हैं। आंखों को ठंडक प्रदान करने वाली रसीलपुर अपने अंदर ना जाने कितनी गर्मी भरे हुए हैं,,,। क्योंकि वह जब अपने लंड को अपनी मां की बुर के अंदर उतारा था तो उसे इस बात का बिल्कुल भी अंदाजा नहीं था कि बुर के अंदर की गर्मी किसी तपती हुई भट्टी के समान होगी,,,,, उसे एक पल तो ऐसा लगा कि जैसे उसका लंड निर्मला की बुर के अंदर की गर्मी में पिघल जाएगा,,,, लेकिन ना जाने वह कैसे संभाल गया उसे खुद भी नहीं पता चला। उसे इतना तो उसके दोस्तों के द्वारा पता ही चल गया था कि चुदाई करने में बहुत मजा आता है लेकिन इतना ज्यादा मजा आता है उसे इस बात का पता निर्मला की चुदाई करने के बाद ही हुआ। अपनी मां की चुदाई करने के बाद उसके मन में किसी भी प्रकार की ग्लानी नहीं थी। बल्की वह तोें इस नए रिश्ते से बेहद खुश था। लेकिन उसके मन में अभी भी है सवाल बना हुआ ही था कि क्या आगे भी उसकी मम्मी इसी तरह से उसके साथ संबंध कायम रखेगी या यह संबंध यहीं खत्म हो जाएगा,,,, यही सब सोचते हुए वह भी सो गया।
मोबाइल की घंटी बजी तो निर्मला की नींद खुली और वहां अपने पर्स में से मोबाइल निकाल कर स्क्रीन पर देखी तो शीतल का ही नंबर झलक रहा था। वह समझ गई कि कल रात के बारे में ही शीतल उसे फोन कर रही है। निर्मला को खुद अच्छा नहीं लग रहा था क्योंकि ले देकर शीतल ही उसकी खास सहेली थी। उसके घर ना पहुंच पाने का दुख निर्मला को भी था लेकिन हालात ही उसके सामने कुछ इस तरह से अपना हाथ रोके खड़े थे कि वह उसके घर पहुंच ही नहीं पाए शायद किस्मत को कुछ और मंजूर था। और जो मंजूर था वह हो चुका था। अब तो निर्मला बस इसी उधेड़बुन में लगी हुई थी कि शीतल को कैसे समझाएं। यह सब सोचते हुए ही शीतल का फोन एक बार कट गया और दोबारा रिंग बजने लगी इसलिए निर्मला ने शीतल के फोन को रिसीव करके हेलो बोल रही थी कि सामने से सवालों की झड़ी बरसने लगी।
क्या हुआ निर्मला दिखा दी तुमने अपनी दोस्ती कितने प्यार से मैंने तुम्हें अपनी शादी की सालगिरह पर बुलवाई थी और तुम हो कि एक बार भी फोन करना भी मुनासिब नहीं समझी,,,
अरे यार मेरी बात तो सुनो कि सब कुछ बोलती ही रहोगी,,,
अब क्या सुनाऊं मैं और सुनने सुनाने के लिए कुछ बाकी रखा ही कहां है तुमने,,,,,
अरे नहीं आना था तो मुझे साफ-साफ बोलदी होती मैं पागलों की तरह तुम्हारा इंतजार तो नहीं करती,,,,,,
Read my all stories
(संयोग का सुहाग)....(भाई की जवानी Complete)........(खाला जमीला running)......(याराना complete)....
(संयोग का सुहाग)....(भाई की जवानी Complete)........(खाला जमीला running)......(याराना complete)....
- Rohit Kapoor
- Pro Member
- Posts: 2821
- Joined: 16 Mar 2015 19:16
Re: अधूरी हसरतें
अरे बाबा मेरी बात तो सुनो,,,, मेरी सुनोगी भी या खुद ही बक बक बक बक करती रहोगी। तुम्हें इतना तो पता ही होगा कि कल रात कितनी मूसलधार बारिश पड़ी है। हम निकले ही तो थी तुम्हारे घर पर आने के लिए लेकिन बीच रास्ते में ही ऐसी तूफानी बारिश पड़ने लगी कि आगे कुछ भी नजर नहीं आ रहा था। एक्सीडेंट होते-होते बचा। तुम्हें तो पता ही होगा कि मैं गाड़ी कितने संभालकर चलाती हूं और ऐसी स्थिति में गाड़ी चला पाना मेरे बस की बात नहीं है।
इतनी तेज बारिश हो रही थी कि हाईवे पर कुछ भी नजर नहीं आ रहा था अगर ऐसे में मैं तुम्हारे घर आने की कोशिश भी करती तो शायद एक्सीडेंट हो जाता मुझे मजबूरन गाड़ी को हाईवे से नीचे उतारकर पेड़ के नीचे खड़ी करनी पड़ी,,,, और तुम सायद नहीं जानती कि रात भर हमें वही ही रुकना पड़ा जब तक की बारिश बंद नहीं हो गई। एक तो भूखे प्यासे हम लोग रात भर वही रूके रहे और तू है कि हम लोगों को ही भला बुरा कहे जा रही है।
( निर्मला की बात सुनकर शीतल को इस बात का पछतावा होने लगा कि आप बिना कुछ सोचे समझे निर्मला को बोले जा रहीे थी,,,, तभी वह अपनी गलती मान कर बात को घुमाते हुए अपने मजाकिया अंदाज में बोली।)
वाह निर्मला रात भर बरसती बारिश में और वह भी कार के अंदर मुझे तो लग रहा है रात भर भाई साब ने तेरी जमकर चुदाई किए होंगे,,,,,
तु फिर शुरू हो गई तेरे दिमाग में सच में गंदगी भरी हुई जब देखो तुझे एक ही बात सुझती है।
क्या करूं निर्मला डार्लिंग जब तक बदन में जवानी है मजे ले लेना चाहिए एक बार बुढ़ापा आ गया तो बस सब कुछ एक सपना सा हो जाएगा।
तो भाई साहब तो है ना जमकर मजा लिया करो उनके साथ।
अपनी किस्मत कहां ऐसी है ऊन्हे तो काम से ही फुर्सत नहीं मिलती। बस तड़प कर ओर हथेलीे से रगड़ कर ही रह जाती हुं।
( शीतल की बात सुनकर निर्मला भी कुछ पल के लिए खो सी गई और मन ही मन सोचने लगी कि शीतल की तरह ही उसकी भी हालत यही थी वह भी तड़प कर रहे जाती थी। चुदाई का असली सुख क्या होता है यह तो वह भूल ही चुकी थी,,,, निर्मला कुछ और सोच पाती इससे पहले ही फिर से शीतल बोली,,,।)
अरे क्या हुआ तू खामोश क्यों हो गई अच्छा सच सच बताओ क्या भाई साहब ने रात भर तेरी ली है कि नहीं,,,,?
अरे यार तू सच में पागल है क्या तेरे भाई साहब को कहा फुर्सत मिलती है मेरे साथ कहीं भी आने जाने के लिए वह तो अपने बिजनेस में ही मस्त रहते हैं।
तो फिर तू किसके साथ आा रही थी।
ओहह,,, जवान लड़के के साथ और वह भी तूफानी बारिश में हाईवे के किनारे एक लड़का और एक खूबसूरत औरत कार के अंदर बड़ा ही रोमांटिक मौसम,,,,,,वाहहह,,,,, मेरी जान जरूर कुछ ना कुछ हुआ होगा,,,,,,,
धत्तत्त,,,,,, तू सच में एकदम पागल है,,वह मेरा बेटा है। तू इतना गंदा क्यों सोचती है?
अरे पागल मैं नहीं तू है बेटा है तो क्या हुआ है तो जहान में उस की नसों में भी जवान खून दोड़ रहा होगा,,, एक जवान खूबसूरत औरत को अपने करीब और वह भी ऐसी बरसती बारिश में पाकर उसका भी लंड खड़ा हो गया होगा,,,,,
शीतल,,,,,,,, क्या बकवास कर रही है।
बकवास नहीं सच कह रही हूं मैंने बहुत सी इंग्लिश मूवी में देखा है की एक जवान बेटा,,, अपनी मां की चुदाई करता है और उसकी मां भी अपने बेटे से जम कर चुदवाती है।
बस कर शीतल तू अब बहुत बोल रही है ऐसा कुछ भी नहीं है।
क्या सच में कुछ नहीं हुआ?
नहीं यार ऐसा कुछ भी नहीं हुआ मैं इस तरह कुछ सोच भी नहीं सकती।
यार इतना अच्छा मौका तुम दोनों ने गंवा दिया तो रात भर क्या हुआ मंजीरा बजा रहे थे।
बारिश बंद होने का इंतजार कर रहे थे।( निर्मला हंसते हुए बोली।)
धत्त तुम दोनों बेवकूफ के बेवकूफ हो,,,, अगर कहीं मैं ऐसी परिस्थिति में अपने बेटे के साथ तूफानी बारिश में कहीं फसी होती तो सच में अपने बेटे के जवान लंड से जरूर चुदी होती,,,,,
क्या सच में तू ऐसा करती शीतल,,,,
तो क्या निर्मला में तेरी तरह बेवकूफ थोड़ी हूं इस उम्र में जवान लंड का स्वाद चखने को मिल जाए यही बहुत ,, होता है,,,। और वैसे भी कहां किसी को पता चलने वाला है अब खुद का बेटा तो दूसरे को यह नहीं कहना ना वह अपनी मां को चोदता है और ना ही उसकी मां ही कहेगी की वह अपने बेटे से चुदवाती है। इसलिए सब कुछ सुरक्षित ही रहता है और इस उम्र में कहीं बाहर जाकर मुंह मारो तो बदनामी का डर भी रहता है और इतना मजा भी नहीं आता। और इस तरह से तो घर की बात घर में ही रह जाती है।
( निर्मला शीतल की यह बात सुनकर हंसने लगी और हंसते हंसते कुछ सोचते हुए बोली,,,, )
यार सीतल कितना अच्छा होता अगर तेरे भी एक बेटा होता,,, तू किसी डॉक्टर के वहां चेकअप नहीं करवाई।
करवाई थी यार मेरा तो सब कुछ नॉर्मल है खामी तो उनके मे ही,,,,
तो उनको इलाज करवाना था ना।
लेकिन वह इलाज के लिए तैयार हो तो ना मर्द हैं कभी झुकना नहीं चाहते,,, इसलिए तो आज तक बिना औलाद के ही हूं,,,, सच कहूं तो निर्मला इसलिए मेरा मन इधर उधर भटकता रहता है किसी और से संबंध बनाने के लिए लेकिन भले ही में इतना कुछ बोल डालती हूं अंदर ही अंदर मुझे बहुत ही शर्म महसूस होती है । मेरी बातें सुनकर तू भी यही सोचती होगी कि मैं गंदी औरत हुं,,, लेकिन सच बताऊं तो मैंने आज तक कभी भी किसी गैर मर्द के साथ संबंध नहीं बनाए।
( शीतल की बात सुनकर निर्मला थोड़ा उदास हो गई और उस को दिलासा देते हुए बोली,,,,)
तू परेशान मत हो शीतल सब कुछ ठीक हो जाएगा,,,,
क्या खाक ठीक हो जाएगा निर्मला तू भी बस झूठा दिलासा देती रहती है,,,,,( तभी शीतल हंसते हुए बोली) हां जरूर ठीक हो जाएगा जब तू अपने बेटे को मेरे पास भेज देगी हो सकता है उसके जवान लंड से चुदकर में पेट से हो जाऊं( इतना कहने के साथ ही वह जोर जोर से हंसने लगी लेकिन निर्मला खामोशी रही वह शीतल की बात सुनकर कुछ भी नहीं बोल पाई तभी सीतल बोली,,,,)
अच्छा यह तो बताओ कि तू आज स्कूल क्यों नहीं आई।
अरे कैसे आती है अभी तो मैं सोकर उठी हूं,,,,,,
चलो अच्छा कोई बात नहीं मुझे क्लास में जाना है कल मिलते हैं। बाय,,,,
( इतना कहने के साथ ही वह फोन कट कर दी,, और शीतल की कही बात पर गौर करने लगी कि वह किस तरह से एकदम बेशर्मों की तरह ऊससे शुभम से चुदने की बात कर रही थी,, क्या सच में वह ऐसा कर सकती है अभी तक उसके कोई भी संतान नहीं है हो सकता है संतान की लालच में वह ईस तरह के कदम उठा ले,,,, और तभी उसकी कही वह बात याद आने लगी थी मां बेटे के बीच शारीरिक संबंध को लेकर कभी भी किसी को कुछ पता भी नहीं चलेगा वह सच ही कह रही थी कि बेटा अपने मुंह से तो यह नहीं कहूंगा कि वह अपनी मां को चोदता है और ना ही मा ही कहेगी कि अपने बेटे से चुदवाती है। इस बात पर गौर करके निर्मला के चेहरे पर खुशी की चमक आ गई वह काफी देर से उस कुर्सी पर बैठी रही,,,, उसे नहा कर खाना बनाना था तभी उसे ध्यान आया कि शुभम भी शायद अपने कमरे में अभी तक सो ही रहा है। इसलिए वह उठकर शुभम के कमरे में जाकर उसे जगाने की सोची और वह शुभम के कमरे तक पहुंच भी गई, कमरे का दरवाजा खुला हुआ था इसलिए वह दरवाजे पर बिना दस्तक दिए कमरे में प्रवेश कर गई,,, कमरे में प्रवेश करते ही जैसे ही उसकी नजर बिस्तर पर पड़ी तो वह बिस्तर का नजारा देख कर एकदम से उत्तेजित हो गई,,,, शुभम एकदम गहरी नींद में था उसका पजामा जांघो तक सरका हुआ था,,,, और उसका लंड पूरी तरह से टनटना कर खड़ा था जिसे उसने नींद में भी अपने हाथों से पकड़ा हुआ था,,, खड़े लंड को देख कर एक बार फिर से निर्मला की बुर में सुरसुराहट होने लगी,, एक बार फिर से उसकी जवानी हिलोरे मारने लगी,,,,, रात को अपने बेटे के लंड को अपनी बुर में लेकर उसकी प्यास बुझने की बजाए और ज्यादा बढ़ गई थी,,,।
Read my all stories
(संयोग का सुहाग)....(भाई की जवानी Complete)........(खाला जमीला running)......(याराना complete)....
(संयोग का सुहाग)....(भाई की जवानी Complete)........(खाला जमीला running)......(याराना complete)....
- Ankit
- Expert Member
- Posts: 3339
- Joined: 06 Apr 2016 09:59
Re: अधूरी हसरतें
superb update bhai