कुल मिलाकर 50 लोगों का टूर बना, जिसमें एक लेडी टीचर को मिलकर 20 फीमेल और वाकई के मेल स्टूडेंट्स & दो टीचर्स थे.
दूसरे दिन रागिनी ने आकर कन्फर्म भी कर दिया, कि उसके पापा एक लग्षुरी बस और टेंपो के लिए मान गये हैं, लेकिन उनका आधा भाड़ा हमें पे करना पड़ेगा…
जिसे हम सभी स्टूडेंट्स कंट्रिब्यूट कर के पे कर सकते हैं..
सभी अपने नये टूर को लेकर बहुत ही एक्शिटेड थे, क्योंकि जीवन में पहली बार कुछ समय के लिए हम सब अपनी तरह से जीने वाले थे…
घर पर भैया और भाभी ने खुशी-खुशी मुझे टूर पर जाने की पर्मिशन दे दी, साथ ही भाभी पूरे दिन मेरे लिए कुछ ना कुछ खाने की चीज़ें बनती रही…!
मेरे लाख मना करने के बावजूद भी वो नही मानी, और ना जाने क्या-क्या बनाती रही, इस तरह से उन्होने 3-4 डब्बे खाने का समान पॅक कर के रख दिया…
उनके इस तरह मेरे लिए परवाह करते देख, मेरी आँखें नम हो गयी, जिन्हें देखकर उन्होने मुझे अपने सीने से लगा लिया और बोली…
क्या हुआ मेरे लाड़ले को, क्यों रो रहे हो..?
मेने रुँधे गले से कहा – मेरी इतनी परवाह क्यों करती हो भाभी ? इतना तो कोई सग़ी माँ भी नही करती होगी अपने बेटे के लिए…!
मेरी बात सुनकर उनकी आँखों में भी आँसू छलक पड़े, मुझे अपने आप से और ज़ोर से कसते हुए बोली –
मे भी नही जानती लल्ला कि मे क्यों तुम्हारी इतनी परवाह करती हूँ, शायद हमारे पूर्व जनम का कोई नाता रहा हो, और ऊपरवाले ने सोच समझकर फिरसे हम दोनो को एक साथ रहने के लिए भेजा दिया हो…
वरना मेरे इस घर में कदम रखते ही, माजी को क्यों बुला लेता वो अपने पास….
हम दोनो का ये रिस्ता मेरी भी समझ से परे है, कभी-कभी जब सोचती हूँ इस बारे में, तो उलझकर रह जाती हूँ, पर कोई जबाब नही मिलता…
फिर उन्होने मेरा माथा चूमकर कहा – लो ये पैसे रखो, तुम्हारे काम आएँगे, ये कहकर उन्होने मुझे एक 500/- के नोटों की गॅडी पकड़ा दी..
मेने कहा – इतने सारे पैसे..? इनका मे क्या करूँगा भाभी…?
वो – कहीं ज़रूरत लगे तो दिल खोलकर खर्च करना अपने दोस्तों के साथ…लो रखलो..तुम्हारे ही हैं…अब ज़्यादा सोचो मत, और अपनी जाने की तैयारी कर्लो..
भाभी का प्यार देखकर एक बार फिर में उनके वक्षों में सर देकर लिपट गया..
आज शाम 4 बजे कस्बे से बस निकलने वाली थी, मेने अपना समान पॅक किया और बाबूजी और भाभी का आशीर्वाद लेकर अपनी बुलेट उठाई, और कॉलेज के लिए निकाल लिया…
बस रेडी खड़ी थी, एक-एक कर के सभी आते जा रहे थे, मे थोड़ा लेट हो गया था…
अपनी बुलेट कॉलेज की पार्किंग में लगाई, और बॅग लेकर बस में चढ़ गया…
अंदर नज़र डाली तो लगभग सारी सीटें भर चुकी थी, सो लास्ट वाली सीट पर जाकर अपना डेरा डाल लिया…
वैसे, लास्ट वाली सीट पर सारे रास्ते जंप ज़्यादा लगने वाले थे, लेकिन इट’स ओके, जब और कहीं जगह नही थी तो अब कर भी क्या सकते थे…
कुछ देर बाद जब सभी बैठ गये तो पीछे की सीट पर ही हमारे एक टीचर और मेडम आकर मेरे पास बैठ गयी…
एक टीचर ड्राइवर के पास बैठे थे, मेरे बगल में मेडम और उनके बाजू वाली सीट पर हमारे स्पोर्ट्स टीचर बैठ गये…!
सबने मिलकर एक जैयकारा लगाया… शेरॉँवली की जय, ….. और इसके साथ ही बस वहाँ से रवाना हुई…!
बस के चलते ही सब मस्ती में आ गये, एक दूसरे के साथ ग्रूप बनाकर मस्ती करने लगे…
कुछ देर बाद स्पोर्ट्स टीचर भी अपने साथी टीचर के साथ गप्पें लगाने चले गये…
मेने विंडो सीट मेडम को दे दी, एसी बस में वैसे तो विंडो खोलने का तो कोई मतलव नही था, लेकिन फिर भी उन्हें बाहर के नज़ारे देखने का शौक रहा होगा शायद…
ये हिस्टरी की मेडम थी, उम्र कोई 35 की, शरीर थोड़ा चौड़ा गया था.. बड़ी-2 चुचियाँ शायद 38 की रही होगी, मोटी गान्ड 38-40 की… पेट थोड़ा बाहर को निकला हुआ…
इतने सबके बाद भी गोरा रंग, नाक-नक्श ठीक तक ही थे…वो इस समय एक हल्के कपड़े की साड़ी में थी…
डीप गले का टाइट ब्लाउज से उनकी दूध जैसी गोरी और मोटी चुचियाँ ऊपर से किन्हीं दो आपस में जुड़ी हुई चोटियों जैसी दिख रही थी…
मेरा इससे पहले उनसे कोई ज़्यादा वास्ता नही रहा था, बस कॉलेज में टीचर स्टूडेंट वाला हाई-हेलो, क्योंकि मे साइन्स स्टूडेंट था और वो हिस्टरी की टीचर…
लास्ट की सीट थी तो थोड़ी बड़ी… सो मे उनसे टोड़ा दूरी बनाए ही बैठा था… लेकिन हिचकोले भी लास्ट में ही ज़्यादा लगते हैं, तो कभी-2 हम दोनो के शरीर टच हो ही जाते थे..
उन्होने मेरे साथ बात-चीत करना शुरू कर दिया… उन्हें पता तो था ही, कि मे राम मोहन का भाई हूँ, तो घर-परिवार के बारे में कोई ज़्यादा बात-चीत नही हुई…!
अपने बारे में उन्होने बताया, कि उनके पति एक शॉप चलाते हैं, दो बच्चे हैं, जो अभी स्कूल शुरू किए हैं…
लाड़ला देवर ( देवर भाभी का रोमांस) complete
- Ankit
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- Ankit
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Re: लाड़ला देवर ( देवर भाभी का रोमांस)
कुछ देर में ही मेने नोटीस किया की बस के हिचकॉलों के बहाने मेडम कुछ ज़्यादा ही हिल-डुलकर मुझसे टच होने की कोशिश कर रही हैं, तो मे थोड़ा और उनसे दूर सरक कर बैठ गया…
मुझे सरकते देख मेडम बोली – अरे अंकुश ! आराम से बैठो, इतना दूर क्यों बैठे हो… कोई प्राब्लम है क्या…?
मे – नही वो आपको कोई प्राब्लम ना हो इसलिए इधर को आ गया, अब आप आराम से बैठ सकती हैं..
वो – अरे मुझे कोई प्राब्लम नही है, आओ मेरे पास बैठो,
वो क्या है, कि कभी-2 बस के झटके लगते हैं, वैसे कोई बात नही, आ जाओ…ये कहकर उन्होने मेरा हाथ पकड़कर अपने पास ही कर लिया…
मेने सोचा, मेडम भी मज़े लेना चाहती हैं, लेने दो, अपने को क्या… कुछ ज़्यादा लिमिट क्रॉस होती दिखेगी तब देखा जाएगा…
कुछ देर तो वो ठीक ठाक रही, मेने अपनी आँखें बंद करली, और मेडम अपनी तरह से मेरे शरीर के साथ मज़े लेती रही…
ग्वालियर निकालकर हमने एक रोड साइड होटेल में खाना खाया..और कुछ देर रुक कर बस फिर चल पड़ी…
खाने के बाद कुछ देर में ही ज़्यादातर लोगों के खर्राटे गूंजने लगे…
इस बार मेडम ने मुझे खिड़की की तरफ बैठने को कहा…हमारे ऑपोसिट सीट पर स्पोर्ट टीचर अकेले बैठे थे…
मुझे भी झपकी सी आने लगी थी, सो मे बस की बॉडी का सहारा लेकर उंघने लगा..
कुछ देर शांति से गुज़री, लेकिन जल्दी ही मुझे लगा की मेडम की भारी-भारी चुचियाँ मेरे बाजू पर लदी पड़ी हैं…
मेने कोई प्रतिक्रिया नही दी, और चुप चाप सोने का बहाना करता रहा…
अभी मे उनके शरीर की गर्मी को सहन करने लायक भी नही हो पाया था कि उनका एक हाथ रेंगता हुआ मेरे लौडे पर आ गया, और वो उसे पॅंट के ऊपर से ही सहलाने लगी…
बस की पिच्छली सीट के अनएक्सपेक्टेड झटके मेडम के बूब्स को मेरे साइड से रगड़ रहे थे…
लंड का आकर भाँपते हुए मेडम पर खुमारी चढ़ने लगी, और उन्होने मेरा एक हाथ पकड़ कर अपनी मोटी पपीते जैसी चुचि पर रख लिया और ऊपर से अपने हाथ का सपोर्ट देकर उसे अपने पपीते पर दबाने लगी.
मेडम को अब कुछ बड़ा चाहिए था, लेकिन मेरी तरफ से कोई रेस्पॉन्स ना मिलने से वो मन ही मन कसमसा रही थी, अपनी साड़ी ऊपर कर के आगे से उन्होने अपनी चूत में अपनी उंगलियाँ पेल दी…
दूसरे हाथ की उंगलियाँ मेरे पैंट की चैन से खेलने में लगी हुई थी, और वो उसे नीचे करने का प्रयास करने लगी, लेकिन टाइट जीन्स ऊपर से लंड खड़ा, पॅंट और ज़्यादा टाइट हो गया था, तो वो खुल ही नही पा रही थी…
उन्होने अपना दूसरा हाथ भी अपनी चूत से निकाला और दोनो हाथों के सहारे से वो चैन खोलने लगी…
इससे पहले कि वो मेरी चैन को नीचे कर पाती, कि उन्हें अपने कंधे पर किसी के हाथ का अहसास हुआ,
चोंक कर उन्होने झट से अपने हाथ मेरे पॅंट से हटाए और उधर को देखा…
स्पोर्ट्स टीचर जो अब तक का मेडम का सारा खेल देखकर गरम हो चुके थे, इशारे से उन्हें अपनी सीट पर बुला लिया…
मेडम के मना करने का तो अब कोई चान्स ही नही था, उनकी चोरी जो पकड़ी गयी थी, सो वो उनके बगल में जाकर बैठ गयी,
मेने चैन की साँस ली, और अपनी आँखें बंद कर ली…
लेकिन साला मन तो उधर को ही लगा था, तो नीद आने का कोई मतलव ही नही था अब… सो 5-10 मिनिट के बाद आँखों की झिर्री से नज़र डाल ही ली…
वाह ! क्या नज़ारा था, मेडम की साड़ी कमर तक चढ़ि हुई थी, और वो अपने 25-25 किलो के गान्ड के पाटों को लेकर सर की 4” की लुल्ली को अपनी चूत में लेकर उनकी गोद में बैठी कूद रही थी…
सर के हाथ उनकी चुचियों पर थे, और वो उन्हें आटे की तरह गूँथ रहे थे….
कुछ मेडम कूदने का प्रयास कर रही थी, कुछ बस के झटके सहयोग कर रहे थे… सो कुछ ही देर में वो अपना-अपना पानी छोड़कर शांत पड़ गये…
सुबह होते-2 हम ओरछा पहुँच गये, जहाँ की पहाड़ी नदी के किनारे बस खड़ी कर के सब लोग नित्य क्रिया में लग गये…
सबने जंगल में ही शौन्च इतायादि की, और नदी के निर्मल जल में नहा धोकर वहाँ के मंदिरों में दर्शन किए…
मुझे सरकते देख मेडम बोली – अरे अंकुश ! आराम से बैठो, इतना दूर क्यों बैठे हो… कोई प्राब्लम है क्या…?
मे – नही वो आपको कोई प्राब्लम ना हो इसलिए इधर को आ गया, अब आप आराम से बैठ सकती हैं..
वो – अरे मुझे कोई प्राब्लम नही है, आओ मेरे पास बैठो,
वो क्या है, कि कभी-2 बस के झटके लगते हैं, वैसे कोई बात नही, आ जाओ…ये कहकर उन्होने मेरा हाथ पकड़कर अपने पास ही कर लिया…
मेने सोचा, मेडम भी मज़े लेना चाहती हैं, लेने दो, अपने को क्या… कुछ ज़्यादा लिमिट क्रॉस होती दिखेगी तब देखा जाएगा…
कुछ देर तो वो ठीक ठाक रही, मेने अपनी आँखें बंद करली, और मेडम अपनी तरह से मेरे शरीर के साथ मज़े लेती रही…
ग्वालियर निकालकर हमने एक रोड साइड होटेल में खाना खाया..और कुछ देर रुक कर बस फिर चल पड़ी…
खाने के बाद कुछ देर में ही ज़्यादातर लोगों के खर्राटे गूंजने लगे…
इस बार मेडम ने मुझे खिड़की की तरफ बैठने को कहा…हमारे ऑपोसिट सीट पर स्पोर्ट टीचर अकेले बैठे थे…
मुझे भी झपकी सी आने लगी थी, सो मे बस की बॉडी का सहारा लेकर उंघने लगा..
कुछ देर शांति से गुज़री, लेकिन जल्दी ही मुझे लगा की मेडम की भारी-भारी चुचियाँ मेरे बाजू पर लदी पड़ी हैं…
मेने कोई प्रतिक्रिया नही दी, और चुप चाप सोने का बहाना करता रहा…
अभी मे उनके शरीर की गर्मी को सहन करने लायक भी नही हो पाया था कि उनका एक हाथ रेंगता हुआ मेरे लौडे पर आ गया, और वो उसे पॅंट के ऊपर से ही सहलाने लगी…
बस की पिच्छली सीट के अनएक्सपेक्टेड झटके मेडम के बूब्स को मेरे साइड से रगड़ रहे थे…
लंड का आकर भाँपते हुए मेडम पर खुमारी चढ़ने लगी, और उन्होने मेरा एक हाथ पकड़ कर अपनी मोटी पपीते जैसी चुचि पर रख लिया और ऊपर से अपने हाथ का सपोर्ट देकर उसे अपने पपीते पर दबाने लगी.
मेडम को अब कुछ बड़ा चाहिए था, लेकिन मेरी तरफ से कोई रेस्पॉन्स ना मिलने से वो मन ही मन कसमसा रही थी, अपनी साड़ी ऊपर कर के आगे से उन्होने अपनी चूत में अपनी उंगलियाँ पेल दी…
दूसरे हाथ की उंगलियाँ मेरे पैंट की चैन से खेलने में लगी हुई थी, और वो उसे नीचे करने का प्रयास करने लगी, लेकिन टाइट जीन्स ऊपर से लंड खड़ा, पॅंट और ज़्यादा टाइट हो गया था, तो वो खुल ही नही पा रही थी…
उन्होने अपना दूसरा हाथ भी अपनी चूत से निकाला और दोनो हाथों के सहारे से वो चैन खोलने लगी…
इससे पहले कि वो मेरी चैन को नीचे कर पाती, कि उन्हें अपने कंधे पर किसी के हाथ का अहसास हुआ,
चोंक कर उन्होने झट से अपने हाथ मेरे पॅंट से हटाए और उधर को देखा…
स्पोर्ट्स टीचर जो अब तक का मेडम का सारा खेल देखकर गरम हो चुके थे, इशारे से उन्हें अपनी सीट पर बुला लिया…
मेडम के मना करने का तो अब कोई चान्स ही नही था, उनकी चोरी जो पकड़ी गयी थी, सो वो उनके बगल में जाकर बैठ गयी,
मेने चैन की साँस ली, और अपनी आँखें बंद कर ली…
लेकिन साला मन तो उधर को ही लगा था, तो नीद आने का कोई मतलव ही नही था अब… सो 5-10 मिनिट के बाद आँखों की झिर्री से नज़र डाल ही ली…
वाह ! क्या नज़ारा था, मेडम की साड़ी कमर तक चढ़ि हुई थी, और वो अपने 25-25 किलो के गान्ड के पाटों को लेकर सर की 4” की लुल्ली को अपनी चूत में लेकर उनकी गोद में बैठी कूद रही थी…
सर के हाथ उनकी चुचियों पर थे, और वो उन्हें आटे की तरह गूँथ रहे थे….
कुछ मेडम कूदने का प्रयास कर रही थी, कुछ बस के झटके सहयोग कर रहे थे… सो कुछ ही देर में वो अपना-अपना पानी छोड़कर शांत पड़ गये…
सुबह होते-2 हम ओरछा पहुँच गये, जहाँ की पहाड़ी नदी के किनारे बस खड़ी कर के सब लोग नित्य क्रिया में लग गये…
सबने जंगल में ही शौन्च इतायादि की, और नदी के निर्मल जल में नहा धोकर वहाँ के मंदिरों में दर्शन किए…
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Re: लाड़ला देवर ( देवर भाभी का रोमांस)
आपको अगर पता हो तो यहाँ एक ओर्छा का महल है, जिसके पास ही राम राजा का भव्य मंदिर है…
कहावत है, कि भगवान राम, दिन निकलते ही, अयोध्या छोड़कर यहाँ आ जाते थे… और यहाँ की प्रजा की देखभाल करते थे…
ओरछा झाँसी से कोई 20-25 किमी दूर साउत ईस्ट में पड़ता है….!
आस-पास के यहाँ के हिस्टॉरिकल जगह और राम राजा के दर्शन कर के हमने अपना कारवाँ फिर आगे बढ़ा दिया…!
शाम से पहले हम खजुराहो के पास पहुँच गये…, हाइवे से हटकर थोड़े से जुंगली इलाक़े में हमने अपनी बस रोकी,
पीछे – 2 समान से लड़ा टेंपो भी आ गया, जिसमें चार आदमी काम करने के लिए साथ आए थे, वहीं हम सबका खाना भी बनाने वाले थे..
छोटी-छोटी पहाड़ियों के बीच एक छोटे से मैदान में हमने अपने टेंट लगाने का सोचा…
दो-दो मेंबर के हिसाब से आनन-फानन में टेंट खड़े होने लगे, सारे स्टूडेंट्स भी इस काम में हाथ बाँटने लगे…
एक घंटे के अंदर अंदर सारे टेंट लग चुके थे… मेरे साथ रवि था.
एक एक्सट्रा टेंट थोड़ा सा बड़े आकार में रसोई के सामान के लिए रखा गया…
उसके बाद रसोई का बनाना शुरू हुआ, कुछ इंटेसटेड लोग उन चारों की मदद करने लगे, वाकी के इधर-उधर के एरिया में घूम-फिर कर वहाँ का जायज़ा ले रहे थे…
अंधेरा होते ही, वहाँ पेट्रोमक्ष जला दिए गये… 9 बजे तक खाना तैयार हो गया, और सबको इत्तला करदी..
सब अपना अपना खाना प्लेट्स में लेकर जिसको जहाँ अच्छा लगा वहाँ बैठकर खाने लगे…इस तरह का अनुभव बड़ा ही भा रहा था सबको…
मे, रवि, करण और आशु, एक साथ बैठे खाना खा रहे थे, कि तभी वहाँ रागिनी और रीना, जो एक ही टेंट में थी, अपनी प्लेट लेकर आ गयी,
रागिनी ने पूछा – अगर तुम लोगों को कोई प्राब्लम ना हो तो हम भी साथ बैठकर खाले..
करण – आओ बैठो, हमें क्यों प्राब्लम होगी…, तो हम 6 लोग एक गोलाई बनाकर बैठ गये और खाना खाने लगे,
कोई इधर उधर से कुछ ख़तम हो जाता तो एक दूसरे की प्लेट से ले लेता.. बड़ा ही रोमांचकारी अनुभव था ये हम सबके लिए…
बातों के बीच खाना खाते हुए, अजीब सी सुखद अनुभूति हो रही थी सबको, एक अपनापन सा लग रहा था…..
सबने खाना ख़तम किया, कुछ देर बैठकर बातें की, फिर दोनो लड़कियाँ हम सबकी प्लेट उठाकर ले गयी धोने के लिए…
हमें बड़ा आश्चर्य हुआ, कि रागिनी जैसी बड़े घर की लड़की हमारी झूठी प्लेट धोने के लिए ले गयी… शायद ये ग्रूप में होने की वजह से हो…
कुछ देर हम चारों बैठे बातें करते रहे फिर मुझे नींद के झटके लगने लगे तो उठ कर अपने अपने टेंट में चले गये……!
लेटते ही में गहरी नींद में डूब गया…!
कहावत है, कि भगवान राम, दिन निकलते ही, अयोध्या छोड़कर यहाँ आ जाते थे… और यहाँ की प्रजा की देखभाल करते थे…
ओरछा झाँसी से कोई 20-25 किमी दूर साउत ईस्ट में पड़ता है….!
आस-पास के यहाँ के हिस्टॉरिकल जगह और राम राजा के दर्शन कर के हमने अपना कारवाँ फिर आगे बढ़ा दिया…!
शाम से पहले हम खजुराहो के पास पहुँच गये…, हाइवे से हटकर थोड़े से जुंगली इलाक़े में हमने अपनी बस रोकी,
पीछे – 2 समान से लड़ा टेंपो भी आ गया, जिसमें चार आदमी काम करने के लिए साथ आए थे, वहीं हम सबका खाना भी बनाने वाले थे..
छोटी-छोटी पहाड़ियों के बीच एक छोटे से मैदान में हमने अपने टेंट लगाने का सोचा…
दो-दो मेंबर के हिसाब से आनन-फानन में टेंट खड़े होने लगे, सारे स्टूडेंट्स भी इस काम में हाथ बाँटने लगे…
एक घंटे के अंदर अंदर सारे टेंट लग चुके थे… मेरे साथ रवि था.
एक एक्सट्रा टेंट थोड़ा सा बड़े आकार में रसोई के सामान के लिए रखा गया…
उसके बाद रसोई का बनाना शुरू हुआ, कुछ इंटेसटेड लोग उन चारों की मदद करने लगे, वाकी के इधर-उधर के एरिया में घूम-फिर कर वहाँ का जायज़ा ले रहे थे…
अंधेरा होते ही, वहाँ पेट्रोमक्ष जला दिए गये… 9 बजे तक खाना तैयार हो गया, और सबको इत्तला करदी..
सब अपना अपना खाना प्लेट्स में लेकर जिसको जहाँ अच्छा लगा वहाँ बैठकर खाने लगे…इस तरह का अनुभव बड़ा ही भा रहा था सबको…
मे, रवि, करण और आशु, एक साथ बैठे खाना खा रहे थे, कि तभी वहाँ रागिनी और रीना, जो एक ही टेंट में थी, अपनी प्लेट लेकर आ गयी,
रागिनी ने पूछा – अगर तुम लोगों को कोई प्राब्लम ना हो तो हम भी साथ बैठकर खाले..
करण – आओ बैठो, हमें क्यों प्राब्लम होगी…, तो हम 6 लोग एक गोलाई बनाकर बैठ गये और खाना खाने लगे,
कोई इधर उधर से कुछ ख़तम हो जाता तो एक दूसरे की प्लेट से ले लेता.. बड़ा ही रोमांचकारी अनुभव था ये हम सबके लिए…
बातों के बीच खाना खाते हुए, अजीब सी सुखद अनुभूति हो रही थी सबको, एक अपनापन सा लग रहा था…..
सबने खाना ख़तम किया, कुछ देर बैठकर बातें की, फिर दोनो लड़कियाँ हम सबकी प्लेट उठाकर ले गयी धोने के लिए…
हमें बड़ा आश्चर्य हुआ, कि रागिनी जैसी बड़े घर की लड़की हमारी झूठी प्लेट धोने के लिए ले गयी… शायद ये ग्रूप में होने की वजह से हो…
कुछ देर हम चारों बैठे बातें करते रहे फिर मुझे नींद के झटके लगने लगे तो उठ कर अपने अपने टेंट में चले गये……!
लेटते ही में गहरी नींद में डूब गया…!
- jay
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Re: लाड़ला देवर ( देवर भाभी का रोमांस)
superb.................अगले अपडेट के इंतज़ार में ?
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Re: लाड़ला देवर ( देवर भाभी का रोमांस)
mast.....................
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