जल्दी ही वो दिन भी आ गया जब रश्मि दीदी के पति विदेश चले गए तो राजेश ने उन्हें फोन करके लखनऊ आने को मना कर दिया और वो रेणुका को लेकर दीदी के पास दिल्ली चला गया. उसने दिल्ली से ही गोवा की फ्लाइट ले ली और दीदी और मेरी बीवी को लेकर मस्ती करने गोवा पहुच गया. रेणुका और दिव्या को चोदना मेरी चाहत नहीं बल्कि आदत बन गयी थी लेकिन रूही जैसी गदर माल के लालच में मैंने राजेश को मना नहीं किया.
अब घर में मैं और दिव्या अकेले रह गए और राजेश की बहिन रूही अगले दिन आने वाली थी तो दिव्या भी अपने घर वापस जाने वाली थी. अब अगर मैं रूही को चोदने में कामयाब नहीं हुआ तो अगले १५ दिन बिलकुल सूखे जाने वाले थे. राजेश ने जाने से पहले मुझे भरोसा दिलाया था की रूही चालू लौडियां रही है और शादी से पहले राजेश के एक दोस्त के साथ ही सेट थी इसीलिए थोड़ी कोशिश से मेरा काम हो जायेगा लेकिन मैंने दिव्या से कहा "जानेमन तुम्हारा तुम्हारी ननद के साथ कैसा सम्बन्ध है."
"देखो मेरी शादी के बाद मैं और राजेश अलग रहने लगे थे तो बहुत दोस्ती तो नहीं है हां लेकिन अच्छे सम्बन्ध है." दिव्या ने जवाब दिया.
"इससे पहले वो कभी तुम्हारे साथ अकेले रही है?" मैंने दिव्या से पुछा.
"नहीं. वो यहाँ ज्यादा नहीं आती जाती. इस बार राजेश ने बहुत जिद की है तो वो आने के लिए तैयार हुई है वरना शादी के इतने साल बाद भी उसका पति उसको छोड़ता ही नहीं है. अभी उसको ये नहीं पता की राजेश यहाँ नहीं है." दिव्या बोली.
"उसकी शादी के भी ८-९ साल हो गए होंगे. पति नहीं वो किसी और चक्कर में नहीं आती होगी. वो बाद में पता करेंगे लेकिन देखो औरत औरत से जल्दी खुल जाती है. तुम उसको अपने पास सुलाना और रात में उसके बदन से छेड़ छाड़ करना. देखो वो क्या करती है." मैंने दिव्या से कहा.
अगले दिन सुबह सुबह दिव्या मेरे साथ स्टेशन पहुच गयी. करीब ८ बजे गाडी आ गयी. रूही ट्रेन से उतरी और उसको देख कर मेरा दिल उछलने लगा. ५'३" का दुधिया बदन, बड़ी बड़ी सुडौल चुन्चिया, गदराई गांड, लाल होंठ सच में जीन्स और सफ़ेद टी शर्ट में वो एक अप्सरा से कम नहीं लग रही थी.
नए पड़ोसी complete
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Re: नए पड़ोसी
रूही ने दिव्या को देख लिया था और वो हम लोगो की तरफ बढ़ आई. आकर उसने दिव्या को गले लगाया और पुछा "भाभी, भैया कहाँ है?"
"क्या बताऊँ तेरे भैया का बिज़नस न, कल रात ही उनको जरूरी काम से बाहर जाना पड़ा. एक हफ्ते में लौट आएंगे." दिव्या ने रूही से झूठ बोल दिया.
"ओफ्फो, इतना फोन कर कर के बुलाया और खुद गायब हो गए." रूही गुस्सा होते हुए बोली.
"अरे आ जायेंगे. कुछ ही दिनों की बात है. इनसे मिलो..." दिव्या ने मेरी तरफ इशारा करते हुए कहा. "...ये तुम्हारे भैया के ख़ास दोस्त और हमारे पडोसी मनीष है."
मैंने शराफत से रूही से नमस्ते किया और उसका बैग उठा लिया. रूही बोली "अरे अरे रहने दीजिये ये बैग मैं उठा लूंगी."
दिव्या बोली "अरे इनसे कोई तकल्लुफ मत करो. ये तो घर वाले ही है. चलो मनीष."
मैं रूही का बैग लेकर स्टेशन से बाहर आ गया. वो दोनों बाते करते करते पीछे आ रही थी. बैग काफी हल्का था लगता था रूही ज्यादा कपडे नहीं लायी थी. मैंने सोचा अगर हमारा प्लान कामयाब हो गया तो जरूरत भी नही पड़ेगी. मैंने घूम कर देखा तो वो दोनों काफी दूर थी. मैंने जल्दी से बैग खोल कर देखा तो उसमे दो नाईटी २ जीन्स और ३-४ टीशर्ट थे और काफी सारे अंडर गारमेंट्स. मैंने ऊपर की तरफ पड़ी एक गुलाबी रंग की पेंटी उठा कर अपने पॉकेट में डाल ली और जल्दी से बैग बंद करके उसे डिक्की में डाल दिया. तब तक वो दोनों भी आ गयी और मैं दोनों को लेकर घर वापस आ गया. दिव्या ने मुझसे कहा की नाश्ता करने आ जाना तो मैंने कहा की आज बैंक जल्दी जाना है तो डिनर पर ही आऊंगा और घर चला आया.
मेरे आने के बाद रूही दिव्या से बोली "लगता है वाकई घर के आदमी है, नाश्ता खाना सब तुम्हारे यहाँ ही करते है क्या?"
दिव्या हसने लगी और बोली "नहीं भाई, शादीशुदा आदमी है. इसकी बहिन की तबियत ख़राब है तो इसकी बीवी उसकी देखभाल करने गयी हुई है तभी खाना वाना मेरे यहाँ ही खा रहा है. जब राजेश अकेले होते है तो वो इनके यहाँ खाते है. हमारा यही अरेंजमेंट है."
रूही बोली "अच्छा है. छोटे शहर के यही तो फायदे है. हमारी दिल्ली में कोई जिए या मरे पडोसी को तो मतलब ही नहीं. चलो भाभी मैं जरा नहा कर आती हूँ." और रूही नहाने चली गयी और दिव्या नाश्ता बनाने लगी. करीब आधे घंटे बाद रूही नहा कर आ गयी और दिव्या से बोली "भाभी लगता है आपके पडोसी की बीवी काफी दिन से गयी हुई है. उनको काफी याद आ रही है अपनी बीवी की."
"क्यों? ऐसा क्यों बोल रही है." दिव्या ने पुछा.
"वो जनाब मेरी एक पेंटी ले गए है इसलिए. देखो न मैं ७ जोड़े ब्रा पेंटी लाइ थी और अब ये गुलाबी वाली ब्रा के साथ की पेंटी गायब है." रूही गुस्से से बोली.
"अच्छा? मनीष तो ऐसा आदमी नहीं है. कही ट्रेन में तो किसी ने नहीं निकाल ली." दिव्या मासूम बनते हुए बोली.
"अरे रात भर तो मैं बैग सर के नीचे रख कर सोई थी. वहां कोई नहीं निकाल सकता. ये पक्का आपके पडोसी की हरकत है." रूही बोली.
"हो सकता है. तुझको देख अच्छे अच्छो का इमान डोल जाए." दिव्या ने बात मजाक में टाली.
"कोई नहीं वापस दिला देना. बहुत महगी है." रूही बोली.
दिव्या हँसते हुए बोली "तुम खुद ही मांग लेना. चलो तुम नाश्ता करो मै चली स्कूल."
"क्या बताऊँ तेरे भैया का बिज़नस न, कल रात ही उनको जरूरी काम से बाहर जाना पड़ा. एक हफ्ते में लौट आएंगे." दिव्या ने रूही से झूठ बोल दिया.
"ओफ्फो, इतना फोन कर कर के बुलाया और खुद गायब हो गए." रूही गुस्सा होते हुए बोली.
"अरे आ जायेंगे. कुछ ही दिनों की बात है. इनसे मिलो..." दिव्या ने मेरी तरफ इशारा करते हुए कहा. "...ये तुम्हारे भैया के ख़ास दोस्त और हमारे पडोसी मनीष है."
मैंने शराफत से रूही से नमस्ते किया और उसका बैग उठा लिया. रूही बोली "अरे अरे रहने दीजिये ये बैग मैं उठा लूंगी."
दिव्या बोली "अरे इनसे कोई तकल्लुफ मत करो. ये तो घर वाले ही है. चलो मनीष."
मैं रूही का बैग लेकर स्टेशन से बाहर आ गया. वो दोनों बाते करते करते पीछे आ रही थी. बैग काफी हल्का था लगता था रूही ज्यादा कपडे नहीं लायी थी. मैंने सोचा अगर हमारा प्लान कामयाब हो गया तो जरूरत भी नही पड़ेगी. मैंने घूम कर देखा तो वो दोनों काफी दूर थी. मैंने जल्दी से बैग खोल कर देखा तो उसमे दो नाईटी २ जीन्स और ३-४ टीशर्ट थे और काफी सारे अंडर गारमेंट्स. मैंने ऊपर की तरफ पड़ी एक गुलाबी रंग की पेंटी उठा कर अपने पॉकेट में डाल ली और जल्दी से बैग बंद करके उसे डिक्की में डाल दिया. तब तक वो दोनों भी आ गयी और मैं दोनों को लेकर घर वापस आ गया. दिव्या ने मुझसे कहा की नाश्ता करने आ जाना तो मैंने कहा की आज बैंक जल्दी जाना है तो डिनर पर ही आऊंगा और घर चला आया.
मेरे आने के बाद रूही दिव्या से बोली "लगता है वाकई घर के आदमी है, नाश्ता खाना सब तुम्हारे यहाँ ही करते है क्या?"
दिव्या हसने लगी और बोली "नहीं भाई, शादीशुदा आदमी है. इसकी बहिन की तबियत ख़राब है तो इसकी बीवी उसकी देखभाल करने गयी हुई है तभी खाना वाना मेरे यहाँ ही खा रहा है. जब राजेश अकेले होते है तो वो इनके यहाँ खाते है. हमारा यही अरेंजमेंट है."
रूही बोली "अच्छा है. छोटे शहर के यही तो फायदे है. हमारी दिल्ली में कोई जिए या मरे पडोसी को तो मतलब ही नहीं. चलो भाभी मैं जरा नहा कर आती हूँ." और रूही नहाने चली गयी और दिव्या नाश्ता बनाने लगी. करीब आधे घंटे बाद रूही नहा कर आ गयी और दिव्या से बोली "भाभी लगता है आपके पडोसी की बीवी काफी दिन से गयी हुई है. उनको काफी याद आ रही है अपनी बीवी की."
"क्यों? ऐसा क्यों बोल रही है." दिव्या ने पुछा.
"वो जनाब मेरी एक पेंटी ले गए है इसलिए. देखो न मैं ७ जोड़े ब्रा पेंटी लाइ थी और अब ये गुलाबी वाली ब्रा के साथ की पेंटी गायब है." रूही गुस्से से बोली.
"अच्छा? मनीष तो ऐसा आदमी नहीं है. कही ट्रेन में तो किसी ने नहीं निकाल ली." दिव्या मासूम बनते हुए बोली.
"अरे रात भर तो मैं बैग सर के नीचे रख कर सोई थी. वहां कोई नहीं निकाल सकता. ये पक्का आपके पडोसी की हरकत है." रूही बोली.
"हो सकता है. तुझको देख अच्छे अच्छो का इमान डोल जाए." दिव्या ने बात मजाक में टाली.
"कोई नहीं वापस दिला देना. बहुत महगी है." रूही बोली.
दिव्या हँसते हुए बोली "तुम खुद ही मांग लेना. चलो तुम नाश्ता करो मै चली स्कूल."
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Re: नए पड़ोसी
और दिव्या स्कूल के लिए निकल गयी. रूही ने पेट भर कर नाश्ता किया और सो गयी. दिव्या जब दोपहर को स्कूल से वापस आई तो रूही सो ही रही थी. सोते सोते उसकी नाईटी ऊपर उठ गयी थी तो उसकी गोरी जांघे नंगी हो गयी थी. दिव्या वो टाँगे देख कर ललचा गयी. जब से मनीष ने उसको रूही को उत्तेजित करने के लिए कहा था को बार बार इस बारे में सोच कर ही गीली हुई जा रही थी.
दिव्या ने सोचा की रात का इन्तेज़र कौन करे. अभी ही अजमा लेते है रूही को और वो जाकर रूही के पास बेड पर बैठ गयी और उसकी चिकनी जांघो पर हाथ फेरने लगी. रूही शायद कोई उत्तेज़क सपना देख रही थी. दिव्या के हाथ जांघ पर लगते ही उसने अपनी टाँगे फैला दी तो दिव्या ने देखा की रूही ने पेंटी नहीं पहनी है और उसकी गुलाबी चूत बिलकुल चिकनी है जैसे आज ही बाल साफ़ किये हो. दिव्या ने रूही की नाईटी उसके कंधे से उतार कर उसकी एक चूंची नंगी कर दी और उसे अपने मुह में लेकर चूसने लगी.
अचानक हुए इस हमले से रूही की आँख खुल गयी और घबराकर उसने देखा की उसकी भाभी उसकी चूंची चूस रही थी. रूही को समझ में नहीं आया की ये क्या हो रहा है पर उसे मजा तो आ ही रहा था. वो बोली "उफ्फ्फ्फ़ भाभी क्या करती हो अह्ह्ह्ह"
"कुछ नहीं. जब तू ऐसे बदन खोल कर सोएगी तो ऐसा ही होगा. वो तो अच्छा हुआ की मैं थी अगर तेरा भाई होता न लंड पेल देता तेरी चिकनी चूत में." दिव्या चूंची चूसते हुए बोली.
"हाययय कितनी गन्दी बातें करती हो भाभी. अब छोड़ो भी. खामखा आग लगा दोगी. बुझाएगा कौन." रूही मजे लेते हुए बोली.
दिव्या समझ गयी की ये नाम का विरोध है. वो बोली " अगर तेरा भाई होता तो उसके मोटे मुसल से तेरी चूत कुटवा देती लेकिन चिंता न कर अगर आग ज्यादा लगी है तो कुछ न कुछ इन्तेजाम तो हो ही जायेगा." इतना कह कर दिव्या रूही के ऊपर आ गयी और अपने जलते हुए होठ अपनी ननद के होठो पर रख कर चूसने लगी. रूही का वैवाहिक जीवन पिछले २-३ सालो से ख़तम ही हो गया था. उसके पति को गांजे की आदत हो गयी थी और वो चिलम पीकर पड़ा रहता था. पुश्तैनी पैसा था तो खाने पीने की कोई दिक्कत नहीं थी पर हाँ रूही जैसी चुदैल लौंडिया के लिए खाने से ज्यादा लंड जरूरी है. कभी कभी उसका देवर उसके काम आ जाता था पर जब से उसकी शादी हुई वो अलग घर लेकर रहने लगा और अब रूही पर ध्यान भी नहीं देता.
वो राजेश के घर इसलिए नहीं आती थी क्योंकि उसकी शादी से पहले एक बार जब वो और राजेश एक ही बेड पर लेटे थे तो राजेश ने उसको सोया समझ कर उसकी स्कर्ट उठा कर उसकी पेंटी उतारने की कोशिश की थी पर रूही ने उसे कुछ करने नहीं दिया था. रूही ने ये बात किसी को बताई तो नहीं लेकिन उस दिन के बाद से रूही न राजेश के साथ सोई न ही उसने राजेश से ज्यादा बात की. इस वक़्त रूही लंड की भूखी थी और इस बार आने के लिए वो इसीलिए तैयार हो गयी थी की या तो अपने पुराने यार से मिल कर चुदवायेगी या फिर उसको लगा की राजेश आने के लिए इतना कह रहा है तो हो सकता है की राजेश फिर से कुछ कोशिश करे तो वो उसको रोकेगी नहीं.
पर यहाँ तो उसकी उम्मीद के उलट भाई गायब था और भाभी उसके बदन को निचोड़ रही थी. अब दिव्या ने रूही की जीभ चूसना चालू कर दिया था. रूही अब पूरी तरह मस्त होकर अपनी भाभी का साथ दे रही थी. दिव्या धीरे धीरे नीचे बढ़ रही थी और आखिर में वो अपनी मंजिल यानी की रूही की चूत पर पहुच ही गयी. अब दिव्या ने जल्दी से अपनी पोजीशन बदली और अपनी चूत रूही के मुह पर रख कर रूही के चूत के दाने को अपने होठो से मसल दिया. रूही चिहुक उठी और उसने उत्तेजना में दिव्या की चूत चाटना चालू कर दिया.
कुछ देर तक दोनों ऐसे ही अपनी जीभ से एक दुसरे की चूत चोदते रहे फिर रूही ने वो देखा जो उसने कभी सपने में भी नहीं सोचा था. दिव्या ने बेड साइड से एक स्ट्रापओन डिलडो निकाला और पहन लिया.
दिव्या ने सोचा की रात का इन्तेज़र कौन करे. अभी ही अजमा लेते है रूही को और वो जाकर रूही के पास बेड पर बैठ गयी और उसकी चिकनी जांघो पर हाथ फेरने लगी. रूही शायद कोई उत्तेज़क सपना देख रही थी. दिव्या के हाथ जांघ पर लगते ही उसने अपनी टाँगे फैला दी तो दिव्या ने देखा की रूही ने पेंटी नहीं पहनी है और उसकी गुलाबी चूत बिलकुल चिकनी है जैसे आज ही बाल साफ़ किये हो. दिव्या ने रूही की नाईटी उसके कंधे से उतार कर उसकी एक चूंची नंगी कर दी और उसे अपने मुह में लेकर चूसने लगी.
अचानक हुए इस हमले से रूही की आँख खुल गयी और घबराकर उसने देखा की उसकी भाभी उसकी चूंची चूस रही थी. रूही को समझ में नहीं आया की ये क्या हो रहा है पर उसे मजा तो आ ही रहा था. वो बोली "उफ्फ्फ्फ़ भाभी क्या करती हो अह्ह्ह्ह"
"कुछ नहीं. जब तू ऐसे बदन खोल कर सोएगी तो ऐसा ही होगा. वो तो अच्छा हुआ की मैं थी अगर तेरा भाई होता न लंड पेल देता तेरी चिकनी चूत में." दिव्या चूंची चूसते हुए बोली.
"हाययय कितनी गन्दी बातें करती हो भाभी. अब छोड़ो भी. खामखा आग लगा दोगी. बुझाएगा कौन." रूही मजे लेते हुए बोली.
दिव्या समझ गयी की ये नाम का विरोध है. वो बोली " अगर तेरा भाई होता तो उसके मोटे मुसल से तेरी चूत कुटवा देती लेकिन चिंता न कर अगर आग ज्यादा लगी है तो कुछ न कुछ इन्तेजाम तो हो ही जायेगा." इतना कह कर दिव्या रूही के ऊपर आ गयी और अपने जलते हुए होठ अपनी ननद के होठो पर रख कर चूसने लगी. रूही का वैवाहिक जीवन पिछले २-३ सालो से ख़तम ही हो गया था. उसके पति को गांजे की आदत हो गयी थी और वो चिलम पीकर पड़ा रहता था. पुश्तैनी पैसा था तो खाने पीने की कोई दिक्कत नहीं थी पर हाँ रूही जैसी चुदैल लौंडिया के लिए खाने से ज्यादा लंड जरूरी है. कभी कभी उसका देवर उसके काम आ जाता था पर जब से उसकी शादी हुई वो अलग घर लेकर रहने लगा और अब रूही पर ध्यान भी नहीं देता.
वो राजेश के घर इसलिए नहीं आती थी क्योंकि उसकी शादी से पहले एक बार जब वो और राजेश एक ही बेड पर लेटे थे तो राजेश ने उसको सोया समझ कर उसकी स्कर्ट उठा कर उसकी पेंटी उतारने की कोशिश की थी पर रूही ने उसे कुछ करने नहीं दिया था. रूही ने ये बात किसी को बताई तो नहीं लेकिन उस दिन के बाद से रूही न राजेश के साथ सोई न ही उसने राजेश से ज्यादा बात की. इस वक़्त रूही लंड की भूखी थी और इस बार आने के लिए वो इसीलिए तैयार हो गयी थी की या तो अपने पुराने यार से मिल कर चुदवायेगी या फिर उसको लगा की राजेश आने के लिए इतना कह रहा है तो हो सकता है की राजेश फिर से कुछ कोशिश करे तो वो उसको रोकेगी नहीं.
पर यहाँ तो उसकी उम्मीद के उलट भाई गायब था और भाभी उसके बदन को निचोड़ रही थी. अब दिव्या ने रूही की जीभ चूसना चालू कर दिया था. रूही अब पूरी तरह मस्त होकर अपनी भाभी का साथ दे रही थी. दिव्या धीरे धीरे नीचे बढ़ रही थी और आखिर में वो अपनी मंजिल यानी की रूही की चूत पर पहुच ही गयी. अब दिव्या ने जल्दी से अपनी पोजीशन बदली और अपनी चूत रूही के मुह पर रख कर रूही के चूत के दाने को अपने होठो से मसल दिया. रूही चिहुक उठी और उसने उत्तेजना में दिव्या की चूत चाटना चालू कर दिया.
कुछ देर तक दोनों ऐसे ही अपनी जीभ से एक दुसरे की चूत चोदते रहे फिर रूही ने वो देखा जो उसने कभी सपने में भी नहीं सोचा था. दिव्या ने बेड साइड से एक स्ट्रापओन डिलडो निकाला और पहन लिया.
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Re: नए पड़ोसी
अब दिव्या ने रूही को कुतिया बनाया और पीछे से वो मोटा डिलडो रूही की चूत में पेल दिया. काफी दिनों बाद रूही की चूत को लंड नसीब हुआ था भले ही प्लास्टिक का ही सही. रूही के मुह से एक तेज़ चीख निकल गयी "नहीईईईईई भाभीईईईईईइ आर्र्र्राआम सीईईइ"
दिव्या ने रूही के चुतर पर एक जोर का हाथ मारा और बोला "साली रंडी, पूरे मोहल्ले से चुदवाना है क्या जो चिल्ला चिल्ला कर सबको बुला रही है, खबरदार जो मुह से आवाज निकली चूत से निकाल कर गांड में दाल दूँगी वैसे लगता है नंदोई जी गांड में नहीं डालते छेद बहुत टाइट है." ये बोल कर दिव्या ने रूही की गांड में एक ऊँगली घुसा दी.
शादी से पहले रूही का यार तो रूही की गांड मारता था पर रूही के पति और देवर ने कभी रूही की गांड नहीं मारी इसीलिए उसकी गांड बहुत कसी हुई थी. इस दोहरी मार को रूही बर्दाश्त न कर पाई और जोर जोर से झड़ने लगी. उसके झड़ने से डिलडो अच्छे से गीला हो गया और आराम से अन्दर बाहर होने लगा. करीब ३० मिनट दिव्या यु ही रूही को चोदती रही कभी धीरे कभी तेज़ और उसकी गांड में ऊँगली करती रही. डिलडो तो प्लास्टिक का था पर रूही की हालत झड झड कर बुरी हो गयी और वो कापने लगी और बोली "बस करो भाभी अब मजा सजा हुआ जा रहा है."
"चिंता न करो ननद रानी, असली मजा तो तुम्हे बाद में करवाऊंगी" बोल कर दिव्या रुक गयी और डिलडो रूही की छुट से निकाल लिया. डिलडो निकलते ही रूही बिस्तर पर गिर पड़ी और दिव्या उसके चून्चो पर आ बैठी और डिलडो रूही क मुह में डाल दिया. रूही अपना ही चूत रस चाटने लगी.
रूही तो इस काम क्रीडा के बाद शांत हो गयी थी पर दिव्या की कामाग्नि भड़क गयी थी. दिव्या ने रूही के सामने से ही मुझे फोन लगाया और बोली "मनीष ये क्या हिमाकत है?"
मैंने पुछा "क्या हुआ?"
"तुमने रूही के बैग से उसकी गुलाबी पेंटी निकाल ली. पता है वो बेचारी सुबह से बिना पेंटी के घूम रही है. अब जल्दी से तुम वो पेंटी लेकर आ जाओ और उसे अपने हाथो से पहनाओ. जल्दी आओ." कह कर दिव्या ने फ़ोन रख दिया. मैं समझ गया की मेरा काम दिव्या ने कर दिया है और मेरी सारी मेहनत बच गयी. आज ही रूही आई और आज ही दिव्या ने उसको मेरे लिए तैयार कर दिया. मेरे दिल में दिव्या के लिए प्यार उमड़ आया. मैंने जल्दी से मेनेजर साब से छुट्टी ली और घर की तरफ भगा. उधर रूही दिव्या और मेरी फोन पर हुई बात सुनकर समझ गयी की दिव्या मुझसे चुद्वाती है और आज मैं उसे भी चोदुंगा. इस प्लास्टिक के लंड के बाद उसे एक असली लंड भी मिलेगा ये सोच कर उसकी फुद्दी फिर से पानी छोड़ने लगी.
दिव्या ने रूही के चुतर पर एक जोर का हाथ मारा और बोला "साली रंडी, पूरे मोहल्ले से चुदवाना है क्या जो चिल्ला चिल्ला कर सबको बुला रही है, खबरदार जो मुह से आवाज निकली चूत से निकाल कर गांड में दाल दूँगी वैसे लगता है नंदोई जी गांड में नहीं डालते छेद बहुत टाइट है." ये बोल कर दिव्या ने रूही की गांड में एक ऊँगली घुसा दी.
शादी से पहले रूही का यार तो रूही की गांड मारता था पर रूही के पति और देवर ने कभी रूही की गांड नहीं मारी इसीलिए उसकी गांड बहुत कसी हुई थी. इस दोहरी मार को रूही बर्दाश्त न कर पाई और जोर जोर से झड़ने लगी. उसके झड़ने से डिलडो अच्छे से गीला हो गया और आराम से अन्दर बाहर होने लगा. करीब ३० मिनट दिव्या यु ही रूही को चोदती रही कभी धीरे कभी तेज़ और उसकी गांड में ऊँगली करती रही. डिलडो तो प्लास्टिक का था पर रूही की हालत झड झड कर बुरी हो गयी और वो कापने लगी और बोली "बस करो भाभी अब मजा सजा हुआ जा रहा है."
"चिंता न करो ननद रानी, असली मजा तो तुम्हे बाद में करवाऊंगी" बोल कर दिव्या रुक गयी और डिलडो रूही की छुट से निकाल लिया. डिलडो निकलते ही रूही बिस्तर पर गिर पड़ी और दिव्या उसके चून्चो पर आ बैठी और डिलडो रूही क मुह में डाल दिया. रूही अपना ही चूत रस चाटने लगी.
रूही तो इस काम क्रीडा के बाद शांत हो गयी थी पर दिव्या की कामाग्नि भड़क गयी थी. दिव्या ने रूही के सामने से ही मुझे फोन लगाया और बोली "मनीष ये क्या हिमाकत है?"
मैंने पुछा "क्या हुआ?"
"तुमने रूही के बैग से उसकी गुलाबी पेंटी निकाल ली. पता है वो बेचारी सुबह से बिना पेंटी के घूम रही है. अब जल्दी से तुम वो पेंटी लेकर आ जाओ और उसे अपने हाथो से पहनाओ. जल्दी आओ." कह कर दिव्या ने फ़ोन रख दिया. मैं समझ गया की मेरा काम दिव्या ने कर दिया है और मेरी सारी मेहनत बच गयी. आज ही रूही आई और आज ही दिव्या ने उसको मेरे लिए तैयार कर दिया. मेरे दिल में दिव्या के लिए प्यार उमड़ आया. मैंने जल्दी से मेनेजर साब से छुट्टी ली और घर की तरफ भगा. उधर रूही दिव्या और मेरी फोन पर हुई बात सुनकर समझ गयी की दिव्या मुझसे चुद्वाती है और आज मैं उसे भी चोदुंगा. इस प्लास्टिक के लंड के बाद उसे एक असली लंड भी मिलेगा ये सोच कर उसकी फुद्दी फिर से पानी छोड़ने लगी.
- Kamini
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Re: नए पड़ोसी
mast update
.तबाही.....शादी का मन्त्र .....हादसा ..... शैतान से समझौता ..... शापित राजकुमारी ..... संक्रांति काल - पाषाण युगीन संघर्ष गाथा ....