मजबूरी का फैसला complete
- rajaarkey
- Super member
- Posts: 10097
- Joined: 10 Oct 2014 10:09
- Contact:
Re: मजबूरी का फैसला
बहुत ही अच्छा अपडेट
(¨`·.·´¨) Always
`·.¸(¨`·.·´¨) Keep Loving &;
(¨`·.·´¨)¸.·´ Keep Smiling !
`·.¸.·´ -- Raj sharma
`·.¸(¨`·.·´¨) Keep Loving &;
(¨`·.·´¨)¸.·´ Keep Smiling !
`·.¸.·´ -- Raj sharma
- Kamini
- Novice User
- Posts: 2188
- Joined: 12 Jan 2017 13:15
Re: मजबूरी का फैसला
Mast update
शादी का मन्त्र viewtopic.php?t=11467
हादसा viewtopic.php?p=164372#p164372
शैतान से समझौता viewtopic.php?t=11462
शापित राजकुमारी viewtopic.php?t=11461
संक्रांति काल - पाषाण युगीन संघर्ष गाथा viewtopic.php?t=11464&start=10
हादसा viewtopic.php?p=164372#p164372
शैतान से समझौता viewtopic.php?t=11462
शापित राजकुमारी viewtopic.php?t=11461
संक्रांति काल - पाषाण युगीन संघर्ष गाथा viewtopic.php?t=11464&start=10
-
- Novice User
- Posts: 206
- Joined: 21 Mar 2017 22:18
Re: मजबूरी का फैसला
दोनों बहन भाई अपने बोर्डिंग पास ले के एअरपोर्ट के लाउंज में अपनी बोर्डिंग के इंतज़ार में बैठे थे | दोनों बहन भाई खामोश बैठे अपनी अपनी सोचो में गुम थे |
ज़ाकिया सोच रही थी कि काश वो भाई की बात ना मानती और अकरम की मौत के फ़ौरन बाद वापिस अपने माँ बाप के पास चली जाती तो उसे अपने भाई का यह घिनोना रूप देखने को ना मिलता और ना बहन भाई का एक मुकद्दस रिश्ता रात के अँधेरे में यूं शर्मशार होता |
इधर वकास जो जाने अनजाने में अपनी ही बहन को अपना दिल दे बैठा था | वो भी ज़ाकिया को अपने आप से इस तरह जुदा होते देखकर अन्दर ही अन्दर बहुत ग़मगीन था | मगर उसमें अपनी बहन को अब रोकने की हिम्मत ना थी | इसीलिए वो भी अब बेवसी से आने वाले वक़्त का इंतज़ार कर रहा था |
वकास को यह तो शक था कि पाकिस्तान जाकर ज़ाकिया शायद दुबारा शादी ना करे , मगर उसे यह पूरा यकीन था कि अब वो दुबारा कभी वापिस उसके पास न्यू यॉर्क नहीं आएगी |
वकास एक अजीब सी उलझन में था कि वो करे तो क्या करे , आखिरकार थोड़ी देर सोचने के बाद वकास ने अपने दिल में एक फैसला किया कि आज आखरी मौका है कि वो अपने दिल की बात पूरी तरह अपनी बहन के सामने खोल दे और फिर उसके बाद जो होगा वो उसको फेस कर लेगा |
यह सोचकर उसने ज़ाकिया को मुख्तिब किया, “ज़ाकिया मैं आज तुमसे आखरी बार एक बात करना चाहता हूँ” |
ज़ाकिया : भाई अब बात करने को रह क्या गया है |
“ज़ाकिया कुछ भी हो, मैं अब खुद को नहीं रोक पाऊंगा , इसीलिए जब तक मैं अपनी बात पूरी मुकम्मल ना कर लूं , प्लीज मुझे रोकना मत” वकास ने यह कहते हुए ज़ाकिया को उसकी सीट से उठाया और उसे साथ लेकर लाउंज के एक कोने में जिधर “देसी” लोग कम थे उधर जाकर दोनों बहन भाई बैठ गए |
इसके बाद वकास ने अपनी बात उस वक़्त से स्टार्ट की जब उसे अपने जाली निकाह की तरकीब में पहली दफा ज़ाकिया के नंगे मम्मे का दीदार किया था |
और फिर वो कैसे एक रात जल्दी घर वापिस आया और गलती से अकरम और ज़ाकिया की चुदाई की आवाजें सुनी |
फिर ज़किया और उसके दरमियाँ होने वाले छोटे छोटे वाकिया की वजह से वो कैसे आहिस्ता आहिस्ता अपनी ही बहन की मोहब्बत में गिरफ्तार होता गया |
वकास इन तमाम बातों को मुक्तसर लिफाज़ में ब्यान करता चला गया |
ज़ाकिया ना चाहते हुए भी अपने भाई के दिल के जज़्बात सुनती रही और सुन कर हैरत जदा होती रही |
उसे तो यकीन ही नहीं हो रहा था कि एक दिन ऐसा भी आएगा जब उसका अपना ही भाई उसका आशिक बन जायेगा |
वकास ने खुल कर ज़ाकिया को बता दिया कि वो जानता है कि दुनिया का कोई भी मज़हब इस बात की इजाजत नहीं देता | मगर फिर भी वो अब ज़ाकिया को एक बहन की हैसियत से नहीं बल्कि एक औरत के रूप में देखता और चाहता है |
और बेशक उसका ज़ाकिया से होने वाला निकाह जाली था | मगर वेगास में ज़ाकिया के साथ रात गुजारने के बाद अब वो ज़ाकिया को अपनी बीवी की हैसियत से प्यार करने लगा है और वो ज़ाकिया को हमेशा इसी तरह चाहता रहेगा चाहे कुछ भी हो जाए |
ज्यूँ ही वकास ने अपनी बात मुकम्मल की , फ्लाइट की बोर्डिंग स्टार्ट हो गई और वो दोनों बिना कोई मजीद बात किए जहाज़ में सवार हो गए |
जहाज़ के सफर के दौरान दोनों बहन भाई ने आपस में इस मुद्दे पर और कोई बात ना की ,क्योंकि एक तो पूरी फ्लाइट पाकिस्तानी पैसेंजर से भरी पड़ी थी, दूसरा अब उनके दरमियाँ अब कोई बात करने को रह भी नहीं गई थी |
इस्लामाबाद एअरपोर्ट पर वकास का एक बहनोई उनको लेने आया हुआ था , जिसके साथ वो दोनों पहले अपने गाँव पहुंचे |
जिधर वकास और ज़ाकिया की सब बहने और उनके बच्चे उनके इंतज़ार में थे | वो सब लोग एक दुसरे से मिल कर बहुत खुश हुए |
अकरम और ज़ाकिया के गाँव वाले मकान में अब ज़ाकिया की बड़ी बहन मुख्तार बीवी और उसका खानदान रिहाइश कर रह था |
ज़ाकिया और वकास एक दो दिन गाँव में ठहरे | जिस दौरान उन दोनों ने अपने माँ बाप की कबर पर हाजरी दी और अपने पुराने घर को जाकर देखा , जिधर वो दोनों पल बढ़ कर जवान हुए थे |
उस घर की हालत पहले ही बहुत ख़राब थी और अब इतने अरसे बाद तो वो घर बिलकुल खंडर बन चूका था |
दो दिन बाद वो लोग लाहौर चले आये | ज़ाकिया का लाहौर वाला मकान डबल स्टोरी था |
जब से ज़ाकिया के माँ बाप मरे थे, उसके बाद ज़ाकिया की दोनों बड़ी बहने अपने बच्चो के साथ लाहौर शिफ्ट हो गए थे |
अब मकान के निचले हिस्से में जाकिया और वकास की बहन रेहाना और उसकी फैमिली रहती थी और ऊपर वाले हिस्से में उनकी दरमियाँ बहन अस्मत बीवी और उसकी फैमिली का बसेरा था |
ज़ाकिया सोच रही थी कि काश वो भाई की बात ना मानती और अकरम की मौत के फ़ौरन बाद वापिस अपने माँ बाप के पास चली जाती तो उसे अपने भाई का यह घिनोना रूप देखने को ना मिलता और ना बहन भाई का एक मुकद्दस रिश्ता रात के अँधेरे में यूं शर्मशार होता |
इधर वकास जो जाने अनजाने में अपनी ही बहन को अपना दिल दे बैठा था | वो भी ज़ाकिया को अपने आप से इस तरह जुदा होते देखकर अन्दर ही अन्दर बहुत ग़मगीन था | मगर उसमें अपनी बहन को अब रोकने की हिम्मत ना थी | इसीलिए वो भी अब बेवसी से आने वाले वक़्त का इंतज़ार कर रहा था |
वकास को यह तो शक था कि पाकिस्तान जाकर ज़ाकिया शायद दुबारा शादी ना करे , मगर उसे यह पूरा यकीन था कि अब वो दुबारा कभी वापिस उसके पास न्यू यॉर्क नहीं आएगी |
वकास एक अजीब सी उलझन में था कि वो करे तो क्या करे , आखिरकार थोड़ी देर सोचने के बाद वकास ने अपने दिल में एक फैसला किया कि आज आखरी मौका है कि वो अपने दिल की बात पूरी तरह अपनी बहन के सामने खोल दे और फिर उसके बाद जो होगा वो उसको फेस कर लेगा |
यह सोचकर उसने ज़ाकिया को मुख्तिब किया, “ज़ाकिया मैं आज तुमसे आखरी बार एक बात करना चाहता हूँ” |
ज़ाकिया : भाई अब बात करने को रह क्या गया है |
“ज़ाकिया कुछ भी हो, मैं अब खुद को नहीं रोक पाऊंगा , इसीलिए जब तक मैं अपनी बात पूरी मुकम्मल ना कर लूं , प्लीज मुझे रोकना मत” वकास ने यह कहते हुए ज़ाकिया को उसकी सीट से उठाया और उसे साथ लेकर लाउंज के एक कोने में जिधर “देसी” लोग कम थे उधर जाकर दोनों बहन भाई बैठ गए |
इसके बाद वकास ने अपनी बात उस वक़्त से स्टार्ट की जब उसे अपने जाली निकाह की तरकीब में पहली दफा ज़ाकिया के नंगे मम्मे का दीदार किया था |
और फिर वो कैसे एक रात जल्दी घर वापिस आया और गलती से अकरम और ज़ाकिया की चुदाई की आवाजें सुनी |
फिर ज़किया और उसके दरमियाँ होने वाले छोटे छोटे वाकिया की वजह से वो कैसे आहिस्ता आहिस्ता अपनी ही बहन की मोहब्बत में गिरफ्तार होता गया |
वकास इन तमाम बातों को मुक्तसर लिफाज़ में ब्यान करता चला गया |
ज़ाकिया ना चाहते हुए भी अपने भाई के दिल के जज़्बात सुनती रही और सुन कर हैरत जदा होती रही |
उसे तो यकीन ही नहीं हो रहा था कि एक दिन ऐसा भी आएगा जब उसका अपना ही भाई उसका आशिक बन जायेगा |
वकास ने खुल कर ज़ाकिया को बता दिया कि वो जानता है कि दुनिया का कोई भी मज़हब इस बात की इजाजत नहीं देता | मगर फिर भी वो अब ज़ाकिया को एक बहन की हैसियत से नहीं बल्कि एक औरत के रूप में देखता और चाहता है |
और बेशक उसका ज़ाकिया से होने वाला निकाह जाली था | मगर वेगास में ज़ाकिया के साथ रात गुजारने के बाद अब वो ज़ाकिया को अपनी बीवी की हैसियत से प्यार करने लगा है और वो ज़ाकिया को हमेशा इसी तरह चाहता रहेगा चाहे कुछ भी हो जाए |
ज्यूँ ही वकास ने अपनी बात मुकम्मल की , फ्लाइट की बोर्डिंग स्टार्ट हो गई और वो दोनों बिना कोई मजीद बात किए जहाज़ में सवार हो गए |
जहाज़ के सफर के दौरान दोनों बहन भाई ने आपस में इस मुद्दे पर और कोई बात ना की ,क्योंकि एक तो पूरी फ्लाइट पाकिस्तानी पैसेंजर से भरी पड़ी थी, दूसरा अब उनके दरमियाँ अब कोई बात करने को रह भी नहीं गई थी |
इस्लामाबाद एअरपोर्ट पर वकास का एक बहनोई उनको लेने आया हुआ था , जिसके साथ वो दोनों पहले अपने गाँव पहुंचे |
जिधर वकास और ज़ाकिया की सब बहने और उनके बच्चे उनके इंतज़ार में थे | वो सब लोग एक दुसरे से मिल कर बहुत खुश हुए |
अकरम और ज़ाकिया के गाँव वाले मकान में अब ज़ाकिया की बड़ी बहन मुख्तार बीवी और उसका खानदान रिहाइश कर रह था |
ज़ाकिया और वकास एक दो दिन गाँव में ठहरे | जिस दौरान उन दोनों ने अपने माँ बाप की कबर पर हाजरी दी और अपने पुराने घर को जाकर देखा , जिधर वो दोनों पल बढ़ कर जवान हुए थे |
उस घर की हालत पहले ही बहुत ख़राब थी और अब इतने अरसे बाद तो वो घर बिलकुल खंडर बन चूका था |
दो दिन बाद वो लोग लाहौर चले आये | ज़ाकिया का लाहौर वाला मकान डबल स्टोरी था |
जब से ज़ाकिया के माँ बाप मरे थे, उसके बाद ज़ाकिया की दोनों बड़ी बहने अपने बच्चो के साथ लाहौर शिफ्ट हो गए थे |
अब मकान के निचले हिस्से में जाकिया और वकास की बहन रेहाना और उसकी फैमिली रहती थी और ऊपर वाले हिस्से में उनकी दरमियाँ बहन अस्मत बीवी और उसकी फैमिली का बसेरा था |
अगर आपको यह कहानी पसंद आये तो कमेंट जरुर दीजिएगा ...........
Read my other stories
अनामिका running*** चुदाई का सिलसिला – एक सेक्स सीरियल running***माँ बेटा और नौकरानी running***वाह मेरी क़िस्मत (एक इन्सेस्ट स्टोरी)complete***मजबूरी का फैसला complete*** हाए मम्मी मेरी लुल्ली complete***निशा के पापा ( INCEST) complete***जीजा के कहने पर बहन को माँ बनाया complete
Read my other stories
अनामिका running*** चुदाई का सिलसिला – एक सेक्स सीरियल running***माँ बेटा और नौकरानी running***वाह मेरी क़िस्मत (एक इन्सेस्ट स्टोरी)complete***मजबूरी का फैसला complete*** हाए मम्मी मेरी लुल्ली complete***निशा के पापा ( INCEST) complete***जीजा के कहने पर बहन को माँ बनाया complete
- Dolly sharma
- Pro Member
- Posts: 2746
- Joined: 03 Apr 2016 16:34
Re: मजबूरी का फैसला
nice update
खूनी रिश्तों में प्यार बेशुमारRunning.....परिवार मे प्यार बेशुमारRunning..... वो लाल बॅग वाली Running.....दहशत complete..... मेरा परिवार और मेरी वासना Running..... मोहिनी Running....सुल्तान और रफीक की अय्याशी .....Horror अगिया बेतालcomplete....डार्क नाइटcomplete .... अनदेखे जीवन का सफ़र complete.....भैया का ख़याल मैं रखूँगी complete.....काला साया complete.....प्यासी आँखों की लोलुपता complete.....मेले के रंग सास, बहु, और ननद के संग complete......मासूम ननद complete
- Ankit
- Expert Member
- Posts: 3339
- Joined: 06 Apr 2016 09:59
Re: मजबूरी का फैसला
superb update