दीदी तुम जीती मैं हारा complete

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rangila
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Re: दीदी तुम जीती मैं हारा

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दीदी ने अपने हाथ से थोड़ी देर तक लंड को सहलाया । फिर बोली , ” तू खुद ही इसे शांत कर ले ना !! प्लीज !! ”

मैं : " दी प्लीज !!…ऐसे बीच में मत छोड़ो …कुछ करो ना । "

दीदी : " ठीक है , मैं हाथ से करती हूँ । "

स्नेहा दीदी ने मुझे किचन की स्लैब पर बैठने को कहा और मेरे लंड की चमड़ी को आगे पीछे करने लगी । मुझे बहुत अच्छा लग रहा था । पर कभी कभी दीदी चमड़ी को ज़्यादा पीछे कर देती तो दर्द भी होने लगता था छिलने की वजह से ।
करीब 5 मिनट तक दीदी ऐसे ही मेरे लंड को सहलाती रही । फिर अपना हाथ खींचते हुए बोली , ” मेरा हाथ दुःख रहा है , मुझसे नहीं होता …तू खुद कर ले ।”

मैं बोला , ” दी …प्लीज यार …..हाथ दुःख रहा है तो …...। ”

दीदी : " तो …तो क्या ? "

मैं : " तो .....मुंह से कर दो ना …प्लीज !! "

दीदी : " मुंह से करना मुझे अच्छा नहीं लगता ।…...और वैसे भी मैं नहा चुकी हूँ । "

मैं : " प्लीज दी …प्लीज …अपने भाई के लिये इतना भी नहीं करोगी । आपने कितना बड़ा favour किया है …एक favour और कर दो ना प्लीज दी …प्लीज !! "

दीदी थोड़ा convince होते हुए , " ठीक है …ठीक है ..पर ज़्यादा अंदर नहीं डालूंगी और तू ज़बरदस्ती नहीं करेगा । "

मैं : " ठीक है दी । "



फिर स्नेहा दीदी ने अपने हाथ से मेरे लंड को पकड़ा और लंड के सुपाड़े को अपने होठों के बीच डाल लिया । मेरे सारे शरीर में एक मस्ती का करंट सा दौड़ गया । फिर दीदी सुपाड़े को अपने होंठों के बीच फंसा कर उस पर अपनी जीभ फिराने लगी । और मेरे मुंह से मस्ती भरी सिसकारियां फूटने लगी , "…आह हहहहह ……ओह दी ..... ओह ….यू आर सो गुड ….लव यू दी । "

दीदी थोड़ा थोड़ा लंड को अपने मुंह से अंदर बाहर भी करने लगी और सुपाड़े पर अपनी जीभ भी फिराती रही ।
मैंने दीदी के बॉय कट बालों को मुट्ठी में भींच लिया और फिर कुछ देर बाद मैंने दीदी को कहा , " ओह हहहहह ,,,,,,दी ..i am coming !! "




स्नेहा दीदी ने तुरंत ही लंड को मुंह से निकाल लिया । मैं स्लैब से उतरकर खड़ा हो गया और मेरे लंड ने वीर्य की एक ज़ोरदार पिचकारी मारी । जो ठीक दीदी के पैरों के पास जाकर गिरी । दीदी तुरंत और पीछे हो गयी । 2-3 पिचकारी और मारने के बाद मेरा लंड शांत हो गया । मेरे चेहरे पर परम संतुष्टि के भाव थे और मैं स्लैब से टेक लगाये लम्बी लम्बी साँसे ले रहा था ।

तभी स्नेहा दीदी ने मुझे टिश्यू पेपर पकड़ाये और कहा , ” ले , साफ़ कर ले ।”
फिर दीदी कुछ टिश्यू पेपर खुद ले कर फर्श साफ़ करने लगी ।
मैं दीदी को लेके मार्केट गया , वहां दीदी ने घर का कुछ ज़रूरी सामान खरीदा । वापस घर आते आते शाम हो गयी थी । घर वापस आते ही थकान के मारे मैं ड्राइंग रूम में सोफे पर ही ढेर हो गया और दीदी भी सामान रखने के बाद मेरी बगल में ही सोफे पर पसर गयी ।

हम काफी देर तक आँखें बंद किये ऐसे ही सोफे पर बैठे रहे । फिर थोड़ा रिलैक्स होते हुए स्नेहा दीदी ने सवाल किया , “ समू ! एक बात पूछूं ? ”

मैंने आँखें खोल कर दीदी की ओर देखा और कहा , “ पूछो दी । क्या पूछना है ? ”

दीदी : " तेरा अब भी लड़कों में इंटरेस्ट है या कुछ बदलाव महसूस कर रहा है । "

मैं : " पता नहीं दी । ये तो कोई चिकना लड़का सामने आये तभी पता चलेगा । फिलहाल तो मुझे सिर्फ तुम्हारे में इंटरेस्ट है ।"
और मैंने ये कहते ही स्नेहा दीदी का हाथ पकड़ कर अपनी ओर खींच लिया ।

दीदी धम से मेरी गोद में आ गिरी । दीदी अचानक हुए हमले से घबरा गयी और बोली , “ क्या कर रहा है ? पागल है क्या ? ”

मैंने जवाब दिया , “ हाँ दीदी ! पागल ही तो कर दिया है आपने ।”

स्नेहा दीदी मेरी गोद से उठते हुए बोली , “ चल हट ! मुझे जाने दे और भी बहुत से काम हैं । ”

मैं दीदी का सर वापस अपनी गोद में रखते हुए बोला, “ छोडो ना दी ! थोड़ी देर बैठो ना मेरे पास । ”

दीदी बोली , “ नहीं तेरा कुछ भरोसा नहीं । तेरा शेर फिर जग गया तो ? ना जाने फिर तू क्या क्या करेगा । " और फिर मुस्कुराने लगी ।

मैं बोला , “ नहीं दी ! कुछ नहीं करूँगा । बस कुछ देर ऐसे ही लेटी रहो प्लीज ! ”

दीदी : “ ओके ! पर कुछ गलत नहीं करना ।”

मैं : " नहीं दी ! पक्का ! कुछ गलत नहीं करूँगा । "

स्नेहा दीदी ऐसे ही मेरी गोद में लेटी रही और मैं उनके बालों को सहलाने लगा । फिर धीरे धीरे उनके गालों , होठों और गरदन पर अपनी उंगलियां फिराने लगा । दीदी को शायद अच्छा लग रहा था इसीलिए उन्होंने अपनी आँखें मूँद रखी थी । काफी देर तक मैं ऐसे ही दीदी को सहलाता रहा और दीदी की आँख लग गयी ।

मैं भी वैसे ही सोफे पर बैठे बैठे सो गया । करीब आधे घंटे बाद अचानक से स्नेहा दीदी हड़बड़ा कर उठी और बोली , “ ओहो कितना टाइम हो गया ! चल मैं कुछ ज़रूरी काम निपटाती हूँ । तू फ्रेश हो जा , मैं तेरे लिए चाय लाती हूँ । ”

और दीदी उठ कर किचन की तरफ चली गयी । मैं उनके मटकते थिरकते नितम्बों पर नज़र गड़ाये देखता रहा । इससे पहले कि मेरा लंड फिर हुंकार भरे , मैं उठा
और फ्रेश होने बाथरूम चला गया ।

स्नेहा दीदी मुझे चाय देते हुए बोली , “ और कुछ चाहिये तुझे ? ”

मैं : " हाँ ! चाहिये । "

दीदी : " क्या ?"

मैं : " तुम ! "

दीदी मुस्कुराते हुए बोली , " पागल ! मैं कुछ खाने के लिए पूछ रही हूँ । "

मैं : " हाँ हाँ दी ! मैं भी खाने के लिए ही मांग रहा हूँ । "

दीदी : " वो तो तुझे नहीं मिल सकता । और कुछ चाहिये तो बता ।" कहकर दीदी हंसने लगी ।

मैं : " और कुछ नहीं चाहिये मुझे ।"

दीदी हंसती हुई किचन में चली गयी । मैंने चाय खत्म की और अपने रूम में चला आया । और सो गया ।

स्नेहा दीदी ने आके खाना खाने के लिए जगाया । देर तक नींद लेने के बाद मैं काफी फ्रेश सा फील कर रहा था ।

खाने की टेबल पर खाना खाते वक्त दीदी बोली , “ कल माँ आ रही हैं ।”

मैंने चौंक कर पूछा , “ अच्छा ! माँ का फ़ोन आया था क्या ? ”

दीदी बोली , " नहीं , मैंने माँ को फ़ोन किया था कि वापस आ जाओ । अब तुम्हारा लड़का सुधर गया है ।.....हा हा हा ...... "
और दीदी ज़ोर ज़ोर से हंसने लगी ।

मेरी कुछ समझ नहीं आया तो मैंने दूसरा सवाल पूछा , “ मतलब ? मैं कुछ समझा नहीं ।”

दीदी बोली , “ अरे बुद्धू !! मैंने ही माँ को रिश्तेदारों के यहाँ भेजा था । तेरा इलाज जो करना था ।”

मैं : " ओह ! तो इसका मतलब सब planned था और माँ को भी सब मालूम है ? "

दीदी : " हाँ ! सब planned तो था पर माँ को वो सब नहीं मालूम जो तूने मेरे साथ किया । "

मैं : " तो माँ ने पूछा नहीं कि लड़का कैसे सुधरा ? "

दीदी : " पूछा था , पर मैंने सब सच नहीं बताया । मतलब सेक्स वाली बात नहीं बतायी । "

मैं : " ओह ! तो ये बात है इसका मतलब मेरे पास सिर्फ आज की रात है । "

स्नेहा दीदी चौंकी और मेरी तरफ देखते हुए बोली , " मतलब क्या है तेरा ? "

मैं : " मतलब कि जितना प्यार करना है आज रात ही करना पड़ेगा । फिर माँ के आ जाने के बाद पता नहीं कब मौका मिले । "

दीदी : " ऐसा कुछ नहीं होगा समझे । मत भूल हमारे बीच क्या रिश्ता है । "

मैं : " ओहो छोडो न दी ! अब रिश्ता क्यों याद आ रहा है ? पहले रिश्ता कहाँ था ? "

दीदी : " देख मैंने जो कुछ किया वो तेरे transformation के लिए किया । कोई लड़की ही ये काम कर सकती थी , पर हम ये लड़की कहाँ से लाते ? इसलिए मैंने ही ये ज़िम्मेदारी ली ।
और अब तू ठीक हो गया है तो तू अपने लिए कोई अच्छी सी लड़की ढूंढ और मैं अपने लिए कोई अच्छा सा लड़का देखती हूँ । "

स्नेहा दीदी की बातें सुनने के बाद मुझे बहुत बुरा फील हो रहा था और गुस्सा भी आ रहा था । मैं गुस्से में खाना छोड़ कर उठा और अपने रूम में आ गया दीदी पीछे से आवाज़ देती रह गयी ।

थोड़ी देर बाद जैसा की मैंने सोचा था स्नेहा दीदी मेरे रूम में आयी और मुझे बेड पर उदास लेटा हुआ देख कर बोली , “ खाना क्यों छोड़ आया बीच में ? चल उठ खाना खत्म कर । ”

मैं गुस्से में बोला , " तुम जाओ दी । मुझे अब भूख नहीं है ।"

दीदी : " देख समू ! बचपना छोड़ और चल खाना खा ले ।"

मैं : " मैंने कहा न दीदी मुझे नहीं खाना है । आप जाओ यहाँ से । "

पर दीदी वहीँ मेरे बेड पर ही बैठ गयी ।
दीदी बोली , " देख समू प्लीज मेरी बात समझ । जैसा तू चाहता है वैसा possible नहीं है । हम दोनों एक दूसरे के लिए नहीं बने हैं । "

मैं : " हो सकता है दी हम एक दूसरे के लिए न बने हो । पर मेरी भी एक बात आप कान खोल कर सुन लो । मैं प्यार करने लगा हूँ आपसे । मेरे mind में जो पिक्चर है वो आपकी है ।
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Re: दीदी तुम जीती मैं हारा

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मुझे आपको ही देखकर excitement होता है । मैं आपकी जगह किसी और को imagine नहीं कर सकता । मुझे आपके साथ रहने से ख़ुशी मिलती है और सुबह से तो मेरा मन कर रहा है कि मैं बस आपको ही देखता रहूं । आगे मेरा क्या होगा मैं भी नहीं जानता । इसीलिए प्लीज आप ज़िद न करो और मुझे अकेला छोड़ दो । "


स्नेहा दीदी कुछ देर तक वैसे ही मेरे पास बैठी रही और एकटक मेरी ही तरफ देखती रही । शायद उन्हें भी कुछ समझ नहीं आ रहा था । फिर दीदी उठ कर अपने रूम में चली गयी और मैं दीदी के बारे में ही सोचता सोचता सो गया ।

सुबह स्नेहा दीदी ने मुझे आकर जगाया और कहा कि माँ आ रही है तो मैं स्टेशन जाकर उन्हें ले आऊं ।
मैंने स्टेशन से माँ को रिसीव किया और उन्हें घर पर छोड़कर बिना कुछ खाये ही ऑफिस चला गया ।
माँ ने दीदी से मेरी बेरुखी का कारण पूछा तो दीदी ने कुछ बहाना बना दिया ।


मैंने दीदी से बात करना लगभग बन्द ही कर दिया था , बस कुछ ज़रूरी काम की ही बात होती थी । पर दीदी का रूप और यौवन तो मेरे अंदर तक बस चुका था । उसे निकालना मेरे लिए बहुत मुश्किल था ।
मुझे जब भी मौका मिलता मैं दीदी से नज़र बचा कर उनके हुस्न का दीदार कर लिया करता था ।

माँ से भी पहले की तुलना में अब मैं कम ही बात कर पाता था । मेरी सेक्स लाइफ की तो जैसे बैंड ही बज चुकी थी ।
सुन्दर से सुन्दर लड़की मुझे नहीं भाती थी और लड़कों में अब कोई इंटरेस्ट नहीं आता था ।

ऐसे ही चलते चलते करीब 3 महीने गुज़र चुके थे और इन 3 महीनों में ना तो दीदी ने ही कभी मुझसे बात करने की पहल की और ना मैंने ही कोई पहल की ।

एक दिन माँ मेरे कमरे में आयी और मुझसे बोली , “ तेरी स्नेहा दीदी ने एक लड़का पसंद किया है । उसके बैंक में ही काम करता है ।
तू एक बार उसे मिल ले और उसके घर बार की जानकारी पता कर । सब कुछ ठीकठाक रहा तो अगले महीने स्नेहा की शादी कर देंगे । आया समझ में ? ”

मैंने कहा , " हाँ माँ ठीक है । मुझे उसका नाम पता बता देना । मैं देख लूंगा ।”

माँ बोली , “ हाँ वो मैं तुझे सुबह दे दूंगी । तू भी अपने लिए कोई लड़की ढूंढ जल्दी । स्नेहा चली जायेगी तो इस बुढ़ापे में मुझसे तेरी सेवा नहीं होगी , समझ रहा है ना । ”

मैं बोला , " हाँ ठीक है , देखता हूँ । ”
मैंने माँ को टालने के लिए ऐसा बोला था । जबकि हकीकत तो ये थी स्नेहा दीदी के अलावा मेरे दिल में और किसी के लिये जगह थी ही नहीं ।


माँ के मुंह से स्नेहा दीदी की शादी की बात सुन कर मुझे ज़रा भी शॉक नहीं लगा था क्यूंकि खुद दीदी ने पहले ही कह दिया था कि हम दोनों को अपने लिये साथी ढूँढ लेने चाहिये ।

मैं दीदी को दिल से खुश देखना चाहता था । इसीलिए सोचा कि चलो देखते हैं , कौन लड़का है , जो दीदी को पसंद है ।

अगले दिन मैंने अपने ऑफिस से 3 दिन की छुट्टी ली और माँ द्वारा बताये लड़के की छान बीन शुरू कर दी ।
दीदी के ऑफिस में एक चपरासी पहले मेरे ही बैंक में था । मैंने उसे बुलाया और जानकारी हासिल की । जो कुछ उसने मुझे बताया वो चौंकाने वाला था ।
असल में दीदी का लगभग 1 साल से उस लड़के के साथ अफेयर था और सारे बैंक में दबी जुबान में इसकी चर्चा थी ।


मुझे समझते देर न लगी कि दीदी क्यों मेरा जल्द से जल्द ट्रीटमेंट करना चाहती थी और उसके लिये कोई भी कीमत चुकाने को क्यों तैयार थी ।
असल में गलती दीदी की नहीं थी उनकी उम्र ही शादी की हो रही थी । घर में एक गे भाई और बूढ़ी माँ को किस के सहारे छोड़ के जाती ।
इसीलिए दीदी द्वारा उठाये गए कदम के बारे में सोचकर ही मेरी आँखें भर आयी । शादी करके घर छोड़ कर जाने से पहले ,
उन्होंने मुझे ठीक करने के लिये extreme step उठा लिया और अपना कौमार्य पति के बजाये मुझे यानी अपने छोटे भाई को सौंप दिया ।
कितना बड़ा त्याग किया था उन्होंने और एक मैं था जो सिर्फ अपने बारे में ही सोच रहा था ।

अगले दिन मैं सुबह सुबह तैयार होकर उस लड़के के गांव के लिए निकल गया जो कि हमारे शहर से कोई 150 km की दूरी पर था ।
गांव पहुंच कर जो जानकारी मुझे मिली उसने मुझे ऊपर से नीचे तक हिला के रख दिया । वो लड़का तो पहले से ही शादी शुदा था
और 2 साल की एक बेटी का बाप भी था । वापसी में मैं ये तय कर चुका था कि चाहे जो हो जाये पर मैं दीदी को ये शादी तो हरगिज़
नहीं करने दूंगा । घर आते आते मुझे रात हो गयी थी लेकिन मैंने किसी को कुछ नहीं बताया कि मैं कहाँ से आ रहा हूँ ।
माँ ने पूछा पर मैंने बहाना बना दिया कि बैंक के ही काम से कहीं गया था ।

दूसरे दिन सुबह मैं स्नेहा दीदी के कमरे में गया और उनसे कहा , “ दीदी आज मैं उस लड़के से मिलना चाहता हूँ । कितने बजे आऊं ? ”
दीदी के चेहरे पर एक मुस्कान तैर गयी । वो बोली , “ लंच टाइम में आ जाना ।”
मैंने कहा , “ नहीं , मैं ऑफिस खत्म होने के बाद ही आ पाऊँगा ।”
दीदी बोली ," ठीक है । कहाँ मिलना है ? "
मैंने कहा , " वो जो आपके ऑफिस के पास पार्क है । वहीँ मिलते हैं शाम को 5 बजे । "

दीदी : " ठीक है । "

मैंने जानबूझकर दीदी को शाम का टाइम इसीलिए दिया था कि सारी हकीकत जानने के बाद दीदी वापस ऑफिस नहीं जा पायेगी ।
और हो सकता है दीदी या वो लड़का कुछ हंगामा खड़ा कर दे तो उस पार्क में ना के बराबर लोगों के होने के कारण ज़्यादा तमाशा नहीं बनेगा ।

शाम को ठीक 5 बजे मैं पार्क के गेट पर पहुँच गया और दीदी का इंतज़ार करने लगा । करीब 10 मिनट बाद दीदी उस लड़के के साथ वहां आयी
वो लड़का देखने में साधारण सा ही था । मुझे तो उसमें कुछ भी ऐसा नहीं लगा कि दीदी को ये ही क्यों पसंद आया । दीदी ने आते ही मेरा उससे
परिचय कराया, “ राजन से मिलो और राजन, ये मेरा भाई समीर है “ ।

हालाँकि मुझे उसके परिचय की कोई ज़रुरत नहीं थी । क्यूंकि मैं तो उसकी
पूरी कुंडली ही पढ़ चुका था और उसके चेहरे से नकाब हटाने ही वहां आया था ।
हम तीनो पार्क के अंदर चले गए और एक कोने में खड़े हो गये ।

मैंने ही उससे पहला सवाल किया ," तो कब तक शादी का इरादा है आपका ? "

राजन बोला ," बस मेरा प्रमोशन due है , जैसे ही लेटर मिल जायेगा । उसके कुछ दिन बाद ही हम शादी कर लेंगे । "

मैं : " आप कहाँ के रहने वाले हो ? "

राजन : " यहाँ से 150 km दूर एक गांव है मीरपुर , वहीँ से हूँ । "

मैं : " आपके घर में कौन कौन है ? "

राजन : " मम्मी , पापा और एक छोटा भाई है ।"

दीदी चुपचाप खड़ी हमारी बातें सुन रही थी । कभी नज़रें झुकाये जमीन की तरफ देख रही थी , कभी हम दोनों की तरफ देख रही थी ।
उसके चेहरे पर हलकी मुस्कान भी थी । शायद शादी की तैयारियों और शादी के बाद की लाइफ के सपने उसके मन में तैर रहे होंगे ।

मैंने फिर सवाल किया , " और आपके बीवी बच्चों का क्या ? "

राजन चौंका , दीदी ने भी चौंक कर मेरी तरफ देखा ।
राजन हकबकाया , " क्या ? क्या कहा तुमने ? "

मैंने अपना सवाल फिर दोहराया , " आपने अपने बीवी बच्चों के बारे में नहीं बताया ? "

राजन गुस्से में बोला , " मेरे कोई बीवी बच्चे नहीं हैं । "

मैं : " अच्छा ! तो फिर ये लोग कौन हैं ? "

मैंने अपना फ़ोन निकला और उसमें एक फोटो निकालकर राजन के चेहरे के सामने कर दिया ।
राजन ने फोटो पर सिर्फ निगाह डाली और अपना मुंह फेर लिया और बोला मुझे नहीं मालूम ।
दीदी ने मेरे हाथ से फ़ोन छीन लिया और एक एक फोटो को उत्सुकता से देखने लगी ।
वो फोटो राजन की शादी के थे । जब मैं उसके गांव गया था तो मैंने उसके घरवालों से कहा कि राशन कार्ड अपडेट करने के लिए उसकी बीवी के साथ फोटो चाहिये ।
जब उन्होंने उसकी शादी का एल्बम दिखाया तो मैंने अपने फ़ोन से कुछ फोटो खींच ली थी ।
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VKG
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Re: दीदी तुम जीती मैं हारा

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