गर्ल'स स्कूल compleet

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Re: गर्ल'स स्कूल

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गर्ल्स स्कूल पार्ट --2


घूमता फिरता वा 10थ क्लास में पहुँच गया. लंच होने की वजह से वहाँ सिर्फ़
2 लड़कियाँ बैठी थी और कुच्छ याद कर रही थी एक तो बहुत ही सुंदर थी. जैसे
यौवन ने अभी दस्तक दी ही हो. चेहरे पर लाली, गोलचेहरा और... ज़्यादा क्या
कहें कुल मिलकर सेक्स किपरतिमा थी. शमशेर को देखते ही नमस्ते करना तो दूर
उल्टा सवाल करने लगी," हां, क्या काम है?" शमशेर ने मुस्कुराते हुए
पूचछा, क्या नाम है तुम्हारा?" वह तुनक गयी, "क्यूँ सगाई लेवेगा के?"
तेरे जैसे शहरा के बहुत हीरो देख रखे हैं. आगया लाइन मारन" जाउ के मेडम
के पास" शमशेर को इश्स तीखे जवाब की आशा ना थी. फिर भी वो मुस्कुराते हुए
ही बोला," हां जाओ, चलो मैं भी चलता हूं." ये सुनते ही वो गुस्से से लाल
हो गयी और प्रिन्सिपल के पास जाने के लिए निकली ही थी कि सामनेसे वाणी और
उसकी दोस्त सामने से आ गयी. दूसरी लड़की ने कहा," गुड मॉर्निंग
सर.""सस्स...सर? कौन सर?" वाणी ने जवाब दिया,"अरे दीदी ये हमारे नये सर
हैं, हमें साइन्स पढ़ाएँगे." इतना सुनते ही उस्स लड़की का रंग सफेद पड़
गया. उसकी शमशेर की और मुँह करने की हिम्मत ही ना हुई और वो खड़ी खड़ी
काँपने लगी. वो रो रही थी. शमशेर ने पूचछा," क्या नाम है तुम्हारा?" वो
बोली," सस्स..सॉरी स..सर." शमशेर ने मज़ाक में कहा," सॉरी सर... बड़ा
अच्च्छा नाम है. तभी बेल हुई और शमशेर हंसते हुए वहाँ से चला गया.


दिशा को समझ नही आ रहा तहा वो क्या करे. अंजाने में ही सही उसने सर के
साथ बहुत बुरा सलूक किया था. वैसे वो बहुत इंटेलिजेंट लड़की थी, पर ज़रा
सी तुनक मिज़ाज थी. गाँव के सारे लड़के उसके दीवाने थे. पर उसने कभी अपनी
नाक पर मखी तक नही बैठने दी. गलियों से गुज़रते हुए लड़के उस्स पर फ़िकरे
कसते थे. उसका जवानी से लबरेज एक एक अंग इसके लिए ज़िम्मेदार था. उसका
रंग एकदम गोरा था. छातिया इतनी कसी हुई थी की उनको थामने के लिए ब्लाउस
की ज़रूरत ही ना पड़े. लड़के उस्स पर फ़िकरे कसते थे की जिस दिन इसने
अपना नंगा जिस्म किसी को दिखा दिया वो तो हार्ड अटेक से ही मर जाएगा. जब
वा चलती थी तो उसके अंग अंग की गति अलग अलग दिखाई पड़ती थी. गॅंड को उसके
कमीज़ से इतना प्यार था की जब भी वो उठती थी उसकी गॅंड कमीज़ को अपनी
दरार में खींच लेती. आए हाए... लड़के भी क्या ग़लत कहते थे, बस ऐसा लगता
था की जैसे उसके बाद तो दुनिया ही ख़तम हो जाएगी. पिच्छले हफ्ते ही उसने
18 पुर किए था.
लड़कों से तंग दिशा ने अपना गुस्सा बेचारे सिर पर निकल दिया. इसी बात को
सोच सोच कर वो मारी जा रही थी. अब क्या होगा? क्या सिर उसको माफ़ कर
देंगे?
तभी नेहा ने उसको टोका," अरे क्या हो गया. तूने जान बुझ कर थोड़े ही किया
है ऐसा! सर भी तो इश्स बात को समझते होंगे! चल छ्चोड़, अब तू इतनी फिकर
ना कर!"
दिशा ने बुरा सा मुँह बना कर कहा," ठीक है!"
नेहा: तू एक बात बता, अपने सिर बिल्कुल फिल्मों के हीरो की तरह दिखाई
देते हैं ना. क्या सलमान जैसी बॉडी है उनकी. मुझे तो बहुत बुरा लगा जब
तूने उसको उल्टा पुल्टा बोला. हाए; मेरा तो दिल किया उसको देखते ही की
मैं दुनिया की शर्म छ्चोड़ कर उससे लिपट जाउ. सच्ची दिशा.
दिशा: चल बेशर्म. सर के बारे में भी....
नेहा: अरे मुझे थोड़े ही पता था की वो सर हैं... ये तो मैने तब सोचा था
जब वो क्लास में आए थे.
दिशा: देख मेरे पास बैठकर... य..ये लड़को की बातें मत किया कर. दुनिया के
सारे मर्द एक जैसे घटिया होते हैं.
नेहा: सर से पूच्छ के देखूं?
दिशा: नेहा! तुझे पता है मैं सर की बात नही कर रही.
नेहा: तो तू मानती है ना सर बहुत प्यारे हैं.
दिशा: तू भी ना बस. और उसने अपनी कॉपी नेहा के सिर पर दे मारी.
दिशा का ध्यान बार बार सर की और जा रहा था. कैसे वो उसको माफ़ करंगे. या
शायद ना भी करें. तभी क्लास में हिस्टरी वाली मेडम आ गयी, सरपंच की
बाहू...उसका नाम प्यारी था...
प्यारी: हां रे छ्होरियो; कॉपिया निकल लो कल के काम वाली...
एक एक करके लड़कियाँ अपनी कॉपी लेकर उसके पास जाती रही. उससे सबको डर
लगता था. इसीलिए कोई भी कभी उसका काम अधूरा नही छ्चोड़ती थी. कभी ग़लती
से रह जाए तो उसकी खैर नही. और आज दिव्या की खैर नही थी. वो कॉपी घर भूल
आई थी.
प्यारी घुरते हुए) हां! तेरी कापी कहाँ है रंडी.
दिव्या: जी... सॉरी मॅ'म घर पर रह गयी.
प्यारी: चल पीच्चे, और मुर्गी बन जा.
दिव्या की कुच्छ बोलने की हिम्मत ही ना हुई. वो पीच्चे जाकर मुर्गी बन गयी
प्यारी दूसरी लड़कियों की कॉपीस चेक करने लगी. जब दिव्या से और ना सहा
गया तो हिम्मत करके बोली: मॅ'म मैं अभी ले आती हूँ भागकर!
प्यारी: (घूरते हुए) अच्च्छा अब ले आएगी तू भाग कर. ठहर अभी आती हूँ तेरे पास.
ये सुनते ही दिव्या काँप गयी!प्यारी देवी उसके पास गयी, उसको खड़ा किया
और उसकी चूची के निप्पल को उमेट दिया. दिव्या दर्द से कराह उठी. " साली,
वेश्या, जान बुझ कर कॉपी छ्चोड़ कर आती है, ताकि बाद में अकेली जाए, और
अपने यार से मिलकर आ सके. हां. बता.. कौन मदारचोड़ तेरी चो.. कहते कहते
अचानक उसको रुकना पड़ा. पीयान ने मेडम से अंदर आने की पर्मिशन माँगी और
बोली," बड़ी मॅ'म ने कहा है जिस किसी के घर में कमरा रहने के लिए किराए
पर खाली हो. वो जाकर बड़ी मॅ'म से मिल ले. नये सर के लिए चाहिए है.

प्यारी देवी: अरे, हमारी हवेली के होते हुए मास्टर जी को किराए पर रहने
की कोई ज़रूरत ना से. जाकर कह दे उनसे, मैं छ्हॉकरों को बुला कर समान
रखवा देती हूं. रुक मैं आती ही हूँ.
प्यारी देवी 40 के आसपास की महिला थी. एक दम घटिया नेचर की महिला. उस्स
पर ये की उसका पति गाँव का सरपंच था. ऐसा नही था की गाँव में किसी को
उसके लड़कियों के साथ अश्लील हरकतों का पता नही था. गाँव में अपने
कॅरक्टर को लेकर वो पहले ही बदनाम थी. पर इकलौते बड़े ज़मींदार होने के
नाते किसी की उनसे कुच्छ कहने की हिम्मत ही नही होती तही. उसकी लड़की भी
उसके ही पदचिन्हों पर चल रही थी. सरिता; वो नोवी में थी. पर लड़कों से
चुद्व चुद्व कर औरत हो चुकी थी.
मेडम के जाने के बाद नेहा ने दिशा से कहा," अरे यार, तुम्हारे मामा का भी
तो सारा मकान खाली है. तुम क्यूँ नही कह देती वहाँ रहने को.
दिशा: हां...पर!
नेहा: पर क्या, क्या इतने अच्च्चे सर इतने घटिया लोगों के यहाँ रुकेंगे.
देख मॅ'म पूरी चालू है. अगर हमने अभी उनको नही बोला तो वो इश्स चुड़ैल के
जाल में फँस जाएँगे.
दिशा: तुझे भी इन्न बातों के सिवा कुच्छ नही आता. पर मामा से भी तो
पूच्छना पड़ेगा.
नेहा: अरे, उनको मैं माना लूँगी, चल सर को ढूँढते हैं. चल जल्दी चल. तेरी
माफी भी हो जाएगी.
दिशा चल तो पड़ी पर उसको यकीन नही हो रहा था की सर उसको माफ़ कर देंगे.
फिर क्या पता मामा मना ही ना कर दें. मना करने पर जो बे-इज़्ज़ती होगी सो
अलग. पर नेहा उसको लगभग खींचती सी 8वी क्लास में ले गयी, जहाँ शमशेर पढ़ा
रहा तहा.
उनको देखकर शमशेर कुर्सी से उठा और मुस्कुराता हुआ बाहर आया,". हां तो
क्या नाम है आपका." शमशेर उसको छ्चोड़ने के मूड में नही था.
दिशा ने लाख कोशिश की पर उसके होंट लराजकर रह गये. गर्दन झुकाए हुए वा
कयामत ढा रही थी.
नेहा: सर, ये कहना चाहती है आप इनके घर में रह लीजिए. यह सुनते ही वाणी
भी बाहर आ गयी," हां सर, आप हमारे घर में रह लीजिए"
शमशेर ने सोचते हुए कहा," अब तुम्हारा क्या कनेक्षन है?
वाणी: सर, मैं दिशा दीदी के मामा की लड़की हूँ.
शमशेर: तो?
वाणी चुप हो गयी. इश्स पर नेहा एक्सप्लेन करने के लिए आगे आई," सर,
आक्च्युयली दिशा यहाँ अपने मामा के यहाँ रहती है. वाणी अपने मम्मी पापा
की इकलौती संतान है, और बचपन से ही उन्होने दिशा को खुद ही पाला है.
इसीलिए....
शमशेर: बस बस... मैं भी सोच रहा था एक ही नेज़ल लगती है दोनों की. ओक
गॅल्स, मैं च्छुतटी के बाद तुम्हारे घर चलूँगा.
दिशा: पर... स.. सर!
शमशेर: पर क्या
दिशा: वो मामा से पूच्छना पड़ेगा!
वाणी बीच में ही कूद पड़ी," नही सर, आप आज ही चलिए. मैं पापा को अपने आप
बोल दूँगी."
शमशेर वाणी के गालों पर हाथ फेरता हुआ बोला, नही बेटा! पहले मम्मी पापा
से पूच्छ लो. अगर वो खुश हैं तो में तेरे पास ही रहूँगा, प्रोमिसे.
वाणी: ओक, थॅंक यू सर.
इसके बाद च्छुतटी का टाइम होने वाला था, सो शमशेर सीधा ऑफीस ही चला गया.
वहाँ अंजलि बैठी कुच्छ सोच रही थी

"मे आइ केम इन मॅ'म", शमशेर ने उसके विचारों को भंग किया.
अंजलि: आओ शमशेर जी
शमशेर: किस बात की टेन्षन है अंजलि, शमशेर ने धीरे से कहा.
अंजलि: प्यारी मेडम आई थी, कह रही थी तुम्हे उनकी हवेली मैं रहना पड़ेगा.
पर मैं नही चाहती. वो निहायत ही वाहयात औरत है.
शमशेर: तो माना कर देते हैं. प्राब्लम क्या है?
अंजलि: प्राब्लम ये है की और कोई अरेंज्मेंट अभी हुआ नही है.
शमशेर: तो मैं तुम्हारे साथ रहूँगा ना जान.
अंजलि: मैने तुम्हे बताया तो था ये नही हो सकता. मैं वैसे भी अकेली रहती
हूँ. कोई फॅमिली साथ होती तो भी अलग बात थी.
शमशेर: वैसे तुम रहती कहाँ हो.
अंजलि: यही उस्स सामने वाले मकान में. अंजलि ने खिड़की से इसरा करते हुए
कहा. मकान स्कूल के पास ही गाँव से बाहर ही था.
शमशेर: कोई बात नही! मकान तो शायद कल तक मिल जाएगा. आज मैं भिवानी अपने
दोस्त के पास चला जाता हूँ.
अंजलि: कौनसा मकान?
शमशेर: कुच्छ सोचने की आक्टिंग करते हुए) वो कोई दिशा के मामा का घर है.
बच्चे कह रहे थे, कल घर से पूच्छ के आएँगे. हालाँकि वो उनके बदन की एक एक
हड्डी तक का आइडिया लगा चुका था.
अंजलि: अरे हां. वो बहुत अच्च्छा रहेगा. बहुत ही अच्च्चे लोग हैं. उनका
मकान भी काफ़ी बड़ा है. फिर वो 4 ही तो जान हैं घर में. मुझे भी अपने साथ
रखने की काफ़ी ज़िद की थी उन्होने. मुझे यकीन है वो ज़रूर मान जाएँगे.
शमशेर: कितना अच्च्छा होता, अगर हम...
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तभी स्कूल की छुट्टी हो गयी.स्टाफ आने वाला था. शमशेर बाहर निकल गया.
उसने देखा दिशा उसकी और बार बार अजीब सी नज़रों से देखती जा रही थी. जैसे
उसको पहचानने की कोशिश कर रही हो.
रात के 8 बाज चुके थे. अंजलि घर पर अकेली थी. रह रह कर उसको पिच्छली हसीन
याद आ रही थी. कुंवारेपन के 27 सालों में उसको कभी भी ऐसा नही लगा था की
सेक्स के बिना जीवन जिया नही जा सकता. इसी को अपनी नियती मानलिया था
उसने. पर आज उसको शमशेर की ज़रूरत अपने ख़ालीपन में महसूस हो रही थी. अगर
वो शमशेर ना होता तो कभी कल रात वाली बात होती ही नही. जाने क्या कशिश थी
उसमें. लगता ही नही था वो 30 पार कर चुका है. ऐसा सखतजान, ऐसा सुंदर...
उसने तो कभी सोचा ही नही था की उसकी सुहाग रात इतनी हसीन और अड्वेंचरस
होगी. सोचते सोचते उसके बदन में सिहरन सी होने लगी. ओह वो तो शमशेर का
नंबर. लेना भी भूल गयी. बात ही कर लेती खुल कर. स्कूल में तो मौका ही नही
मिला. सोचते सोचते उसके हाथ उसकी ब्रा में पहुँच गये. उसको कपड़ों में
जकड़न सी महसूस होने लगी. एक एक कर उसने अपना हर वस्त्रा उतार फंका और
बाथरूम में चली गयी; बिल्कुल नंगी! सोचा नहा कर उसके गरम होते शरीर को
शांति मिले. पर उसे लगा जैसे पानी ही उसको छ्छूकर गरम हो रहा है. 20
मिनिट तक नहाने के बाद वो बाहर निकल आई. आकर ड्रेसिंग टेबल के सामने खड़ी
हो गयी. अपने एक एक अंग को ध्यान से देखने लगी. उसकी चूचियाँ पहले से भी
सख़्त होती जा रही थी. निप्पल एक दम तने हुए थे. कल पहली बार किसी मर्द
ने इनको इनकी कीमत का अहसास कराया था. पानी में भीगी हुई उसकी चूत पर
नज़र पड़ते ही वा सिहर गयी."आ" उसके मुँह से निकला. उसकी चूत शमशेर की
जवानी का रस पीकर खिल उठी थी, जैसे गुलाब की पंखुड़ीयान हों. उसका हाथ
उसकी पंखुड़ियों तक जा पहुँचा अकेली होने पर भी उसको उसे छूने में संकोच
सा हो रहा था. ये तो अब शमशेर की थी. उसने पीठ घुमाई, शमशेर उसकी गंद को
देखकर पागल सा हो गया था. उसकी चूतदों की गोलाइयाँ थी भी ऐसी ही. अचानक
ही उससी याद आया, शमशेर का बॅग तो यही है उसके पास!
जैसे डूबते को तिनके का सहारा. शायद कही उसका नंबर. लिखा हुआ मिल जाए. वो
एकद्ूम खिल उठी. उसने बॅग को टटोला तो एक डाइयरी में फ्रंट पर एक नंबर.
लिखा हुआ मिला. उसने झट से डाइयल किया; वो शमशेर की आवाज़ सुनने को तड़प
रही थी.
उधर से आवाज़ आई," हेलो"
अंजलि की आँखें चमक उठी," शमशेर"
"जी, कौन"
"शमशेर, मैं हूँ!"
"जी, 'मैं' तो मैं भी हूँ"
"अरे मैं हूँ अंजलि" वो तुनक कर बोली
"ओह, सॉरी मॅ'म! आपको मेरा नंबर. कहाँ से मिला!"
"छ्चोड़ो ना, अभी आ सकते हो क्या?"
शमशेर ने चौंक कर पूचछा," क्या हुआ?"
"मैं मरने वाली हूँ, आ जाओ ना"
शमशेर उसकी बात का मतलब समझ गया. जो आग कल उसने अंजलि को चोद कर उसने जगा
दी थी, बुझाना भी तो उसी को पड़ेगा," ओ.क. मॅ'म, ई आम कमिंग इन हाफ आन
अवर. कह कर उसने फोने काट दिया.
अंजलि सेक्स की खुमारी में मोबाइल को ही बेतसा चूमने लगी. जल्दी से उसने
ब्रा के बगैर ही सूट डाल लिया. वो बेचेन हो रही थी. कैसे अपने साजन के
लिए खुद को तैयार करे. बदहवास सी वा तैयार होकर खिड़की के पास खड़ी हो
गयी. जैसे आधा घंटा अभी 2-3 मिनिट में ही हो जाएगा. लगभग 20-25 मिनिट बाद
ही उसे रोड पर आती गाड़ी की लाइट दिखाई दी जो स्कूल के पास आकर बंद हो
गयी...

अंजलि ने दरवाजा खोलने में एक सेकेंड की भी देर ना लगाई. बिना कुच्छ सोचे
समझे, बिना किसी हिचक और बिना दरवाज़ा बंद किए वो उसकी छति से लिपट गयी.
" अरे, रूको तो सही, शमशेर ने उसके गालों को चूम कर उसको अपने से अलग
किया और दरवाजा बंद करते हुए बोला, मैने पहले नही बोला था"
अंजलि जल बिन मच्चली की तरह तड़प रही थी. वो फिर शमशेर की बाहों में आने
के लिए बढ़ी तो शमशेर ने उसको अपनी बाहों में उठा लिया. और प्यार से
बोला, मेडम जी, खुद तो तैयार होके बैठी हो, ज़रा मैं भी तो फ्रेश हो लूँ"
अंजलि ने प्यार से उसकी छति पर घूँसा जमाया और उसके गालों पर किस किया.
शमशेर ने उसको बेड पर लिटाया और अपने बॅग से टॉवेल निकल कर बाथरूम में
चला आया.
नाहकर जब वा बाहर आया तो उसने कमर पर टॉवेल के अलावा कुच्छ नही पहन रखा
था. पानी उसके शानदार शरीर और बालों से चू रहा था. अंजलि उसके शरीर को
देखकर बोली," तुम्हे तो हीरो होना चाहिए था"
"क्यूँ हीरो क्या फिल्मों में ही होते है" कहते हुए शमशेर बेड पर आ बैठा
और अंजलि को अपनी गोद में बैठा लिया. अंजलि का मुँह उसके सामने था और
उसकी चिकनी टाँगें शमशेर की टाँगों के उपर से जाकर उसकी कमर से चिपकी हुई
थी.
" प्लीज़ अब प्यार कर लो जल्दी"
"अरे कर तो रहा हूँ प्यार" शमशेर ने उसके होंटो को चूमते हुए कहा.
" कहाँ कर रहे हो. इसमें घुसाओ ना जल्दी"
शमशेर हँसने लगा" अरे क्या इसमें घुसने को ही प्यार बोलते हैं"
"तो"अंजलि ने उल्टा स्वाल किया!
देखती जाओ मैं दिखता हूँ प्यार क्या होता है. शमशेर ने उसको ऐसे ही बेड
पर लिटा दिया. उसका नाइट सूट नीचे से हटाया और एक एक करके उसके बटन खोलने
लगा. अब अंजलि के बदन पर एक पनटी के अलावा कुच्छ नही था. शमशेर ने अपना
टॉवेल उतार दिया और झुक कर उसकी नाभि को चूमने लगा. अंजलि के बदन में
चीटियाँ सी दौड़ रही थी. उसका मॅन हो रहा तहा की बिना देर किए शमशेर उसकी
चूत का मुँह अपने लंड से भरकर बंद कर दे. वो तड़पति रही पर कुच्छ ना
बोली; उसको प्यार सीखना जो था.
धीरे धीरे शमशेर अपने हाथो को उसकी चूचियों पर लाया और अंगुलियों से उसके
निप्पल्स को च्छेड़ने लगा. शमशेर का लंड उसकी चूत पर पनटी के उपर से
दस्तक दे रहा था. अंजलि को लग रहा था जैसे उसकी चूत को किसी ने जलते तेल
के कढाहे में डाल दिया हो. वो फूल कर पकौड़े की तरह होती जा रही थी.
अचानक शमशेर पीच्चे लेट गया और अंजलि को बिठा लिया. और अपने लंड की और
इशारा करते हुए बोला," इसे मुँह में लो."
अंजलि तन्ना ई हुई थी,बोली," ज़रूरी है क्या.... पर ये मेरे मुँह में आएगा कैसे?
शमशेर: बचपन में कुलफी खाई है ना, बस ऐसे ही
अंजलि ने शमशेर के लंड के सूपदे पर जीभ लगाई तो उसको करेंट सा लगा. धीरे
धीरे उसने सूपदे को मुँह में भर लिया और चूसने सी लगी. उसको बहुत मज़ा आ
रहा था. शमशेर ज़्यादा के लिए कहना चाहता था पर उसको पता था ले नही
पाएगी.
" मज़ा आ रहा है ना!"
"हुम्म" अण्जलि ने सूपड़ा मुँह से निकलते हुए कहा"पर इसमें खुजली हो रही
है" अपनी चूत को मसालते हुए उसने कहा." कुच्छ करो ना....


यह सुनकर शमशेर ने उसको अपनी पीठ पर टाँगों की तरफ मुँह करके बैठने को
कहा. उसने ऐसा ही किया. शमशेर ने उसको आगे अपने लंड की और झुका दिया
जिससे अंजलि की चूत और गांद शमशेर के मुँह के पास आ गयी. एकद्ूम तननाया
हुआ शमशेर का लंड अंजलि की आँखों के सामने सलामी दे रहा था. शमशेर ने जब
अपने होंट अंजलि की चूत की फांको पर टिकाए तो वा सीत्कार कर उतही. इतना
अधिक आनंद उससे सहन नही हो रहा था. उसने अपने होंट लंड के सूपदे पर जमा
दिए. शमशेर उसकी चूत को नीचे से उपर तक चाट रहा था. उसकी एक उंगली अंजलि
की गांद के च्छेद को हल्के से कुरेद रही थी. इससे अंजलि का मज़ा दोगुना
हो रहा था. अब वा ज़ोर ज़ोर से लंड पर अपने होंटो और जीभ का जादू दिखाने
लगी. लेकिन ज़्यादा देर तक वा इतना आनंद सहन ना कर पाई और उसकी चूत ने
पानी छ्चोड़ दिया जो शमशेर की मांसल छति पर टपकने लगा. अंजलि ने शमशेर की
टाँगो को जाकड़ लिया और हाँफने लगी.
शमशेर का शेर हमले को तैयार था. उसने ज़्यादा देर ना करते हुए कंबल की
सीट बना कर बेड पर रखा और अंजलि को उसस्पर उल्टा लिटा दिया. अंजलि की
गांद अब उपर की और उठी हुई थी. और चुचियाँ बेड से टकरा रही थी. शमशेर ने
अपना लंड उसकी चूत के द्वार पर रखा और पेल दिया. चूत रस की वजह से चूत
गीली होने से 8 इंची लंड 'पुच्छ' की आवाज़ के साथ पूरा उसमें उतार गया.
अंजलि की तो जान ही निकल गयी. इतना मीठा दर्द! उसको लगा लंड उसकी
आंतडियों से जा टकराया है.
शमशेर ने अंजलि की गंद को एक हाथ से पकड़ कर ध्हक्के लगाने सुरू कर दिए.
एक एक धक्के के साथ जैसे अंजलि जन्नत तक जाकर आ रही थी. जब उसको बहुत
मज़े आने लगे तो उसने अपनी गांद को थोड़ा और चोडा करके पीच्चे की और कर
लिया. शमशेर के टेस्टेस उसकी चूत के पास जैसे तप्पड़ से मार रहे थे.
शमशेर की नज़र अंजलि की गंद के छेद पर पड़ी. कितना सुंदर छेद था. उसने
उस्स छेद पर थूक गिराया और उंगली से उसको कुरेदने लगा. अंजलि अनानद से
करती जा रही थी. शमशेर धीरे धीरे अपनी उंगली को अंजलि की गांद में घुसने
लगा."उहह, सीसी...क्या....क्कार... रहे हो.. ज..ज्ज़ान!"अंजलि कसमसा उठी.
देखती रहो! और शमशेर ने पूरी उंगली धक्के लगते लगते उसकी गंद में उतार
दी. अंजलि पागल सी हो गयी थी. वा नीचे की और मुँह करके अपनी चूत में जाते
लंड को देखने की कोशिश कर रही थी. पर कुम्बल की वजह से ऐसा नही हो पाया.
शमशेर को जब लगा की अंजलि का काम अब होने ही वाला है तो उसने धक्कों की
स्पीड बढ़ा दी. सीधे गर्भाष्या धक्कों को अंजलि सहन ना कर सकी और ढेर हो
गयी.
शमशेर ने तुरंत उसको सीधा लिटाया और वापस अपना लंड चूत में पेल दिया.
अंजलि अब बिल्कुल थक चुकी थी और उसका हर अंग दुख रहा था, पर वो सहन करने
की कोशिश करती रही. शमशेर ने झुक कर उसके होंटो को अपने होंटो से चिपका
दिया और अपनी जीभ उसके मुँह में घुसा दी. धीरे धीरे एक बार फिर अंजलि को
मज़ा आने लगा और वो भी सहयोग करने लगी. अब शमशेर ने उसकी चुचियों को
मसलना सुरू कर दिया था. अंजलि फिर से मंज़िल के करीब थी. उसने जब शमशेर
की बाहों पर अपने दाँत गाड़ने शुरू कर दिए तो शमशेर भी और ज़्यादा स्पीड
से ध्हक्के लगाने लगा. अंजलि की चूत के पानी छ्चोड़ते ही उसने अपना लंड
बाहर निकाल लिया और अंजलि के मुँह में दे दिया. अजाली के चूत रस से सना
होने की वजह से एक बार तो अंजलि ने मना करने की सोची पर कुच्छ ना कहकर
उसको बैठकर मुँह में ले ही लिया. शमशेर ने अंजलि का सिर पीच्चे से पकड़
लिया और मुँह में वीरया की बौच्हर सी कर दी. अंजलि गू...गूओ करके रह गयी
पर क्या कर सकती तही. करीब 8-10 बौच्चरे वीरया ने उसके मुँह को पूरा भर
दिया. शमशेर ने उसको तभी छ्चोड़ा जब वो सारा वीरया गटक गयी.
दोनों एक दूसरे पर ढेर हो गये. अंजलि गुस्से और प्यार से पहले तो उसको
देखती रही. जब उसको लगा की वीरया पीना कुच्छ खास बुरा नही था तो वो शमशेर
से चिपक गयी और उसके उपर आकर उसके चेहरे को चूमने लगी...

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गर्ल'स स्कूल --३

शमशेर को वापस भी जाना था। अगर किसी ने उसको यहा देख लिया तो अंजलि के लिए प्राब्लम हो सकती थी। वो दोनों बाथरूम गये और नहाने लगे. अंजलि प्यार से उसकी छाती और कमर को मसल रही थी. वा बार बार उसको किस कर रही थी...पर शमशेर का ध्यान कहीं और था. वो दिशा के बारे में सोच रहा था. कस्स! वो लड़की हाथ आ जाए. अगर उसे उनके घर में रहने को मिल जाए तो काम बन सकता है. दिशा जैसी सेक्सी लड़की उसने आज तक नही देखी थी तौलिए से शरीर पौछ्ते हुए वो अंजलि से बोला," मकान का क्या रहा?" "वो हो जाएगा, तुम चिंता मत करो!" अंजलि ने पूरा अपनापन दिखाते हुए कहा. फिर बोली, ये गाड़ी किसकी लाए!" "अपनी ही है और किसकी होगी?" "तो फिर उस्स दिन बस में क्यूँ आए.?" "अरे वो भिवानी मेरा दोस्त है ना. वो लेकर आया था किसी काम के लिए, फिर मुझे भिवानी आना ही था तो मैने उसको बोल दिया की अभी अपने पास ही रखे" कौनसी है?अंजलि ने पूचछा! "स्कोडा ओक्टिवा!" क्यूँ? अंजलि: कुच्छ नही, बस ऐसे ही. शमशेर ने अंजलि को अपने सीने से लगाया और दोनों हाथों से उसकी गांद को दबाकर एक लंबी फ्रेंच किस दी और बोला," सॉरी जान, अब जाना पड़ेगा. सुबह स्कूल में मिलते हैं" अंजलि ने भी पूरा साथ दिया,"हां पता है! शमशेर ने कपड़े पहने और निकल गया! उधर छुट्टी के बाद घर जाते ही दिशा ने वाणी को उपर बुलाया. वहाँ 2 कमरे बने हुए थे जिनका कोई यूज़ नही होता था. एक रूम की खिड़की से जीना पूरा दिखाई देता था. दूसरा कमरा उससे अटॅच था जो बाहर की और भी खुलता था. वाणी ने उपर आते ही बोला,"हां दीदी?" दिशा: यहीं रहेंगे ना अपने सर. वाणी: हां, पर पापा से पूच्छ तो ले. दिशा: तू पूच्छ लेना ना. वाणी: पूच्छ लूँगी, पर तुझे क्या प्राब्लम है. दिशा: कुच्छ नही, पर तू ही पूच्छ लेना. जाने दिशा के मॅन में क्या चोर था. वो वाणी को समझाने लगी की क्या और कैसे कहना है. वाणी: मैं ये भी बोल दूँगी की बहुत स्मार्ट हैं. दिशा: धात पगली, इसीलिए तो तेरे को समझा रही हूँ! स्मार्ट होने से पापा के मान जाने का क्या कनेक्शन. उल्टा मना कर देंगे. वाणी: क्यूँ दीदी? दिशा: अब तू ज़्यादा स्वाल जवाब ना कर. जा बात कर ले पापा से. ध्यान रखना मैने क्या कहा है. वाणी: ठीक है दीदी. वाणी नीचे गयी अपने पापा के पास. उसके पापा की उमर 50 के पार ही लगती थी. खेती करते थे. घर का काम ठीक ठाक चल रहा था. मम्मी की उमर 40 के आसपास होगी. उसके पिता की ये दूसरी शादी थी. वाणी जाकर पापा की गोद में सिर रखकर लेट गयी. कुच्छ देर बाद बोली," पापा, बड़ी मॅ'म पूच्छ रही थी अगर हमारा उपर वाला मकान खाली हो किराए के लिए तो... पापा: लेकिन बेटा उनके पास तो काफ़ी अच्च्छा घर है अभी. वो खाली करवा रहे हैं क्या. वाणी: नही, अभी साइन्स के नये सर आए हैं. उनके लिए चाहिए. वाणी ने उनके चेहरे की और देखा. कुच्छ दिन पहले एक डॉक्टर उनके पास किराए पर रहने की पूच्छ रहा था. लेकिन अनमॅरीड होने की वजह से पापा ने मना कर दिया था. पापा: बेटी, क्या वो शादी- शुदा हैं? वाणी: पता नही, पर उससे क्या होता है. पापा: मैं कल स्कूल आउन्गा. फिर सोचकर बता दूँगा. वाणी: दे दीजिए ना पापा, हमें टूवुशन के लिए इतनी दूर नही जाना पड़ेगा. बहुत अच्च्छा पढ़ाते हैं.(दिशा ने उसको यही सिखाया था) प्लीज़ पापा मान जाइए ना. उसके पापा दोनों लड़कियों से बहुत प्यार करते थे. फिर उन्हे अपनी बेटियों पर भरोसा भी था. वो बोले,"ठीक है, तू ज़रा पढ़ाई कर ले मैं थोड़ी देर मैं बताता हूँ. उसके जाने के बाद वो अपनी पत्नी से बोला,"निर्मला, अगर वो कुँवारा हुआ तो!" निर्मला: आप तो हमेशा उल्टा ही सोचते हैं. क्या आपको दिशा पर यकीन नही है. आज तक उसने कोई ग़लती नही की. हर बात आकर मुझे बता देती है. वाणी को तो वो बच्ची ही समझती थी. पापा: वो तो ठीक है मगर... निर्मला: मगर क्या, बेचारियों को ट्यूशन पढ़ने के लिए कितनी दूर जाना पड़ता है. आप क्या हरदम उनकी रखवाली करते हैं. षर्दियो मैं तो अंधेरे हो जाता है आते आते. उपर से 1500 रुपए मिलेंगे वो अलग. क्या सोच रहे हैं जी, हां कर दीजिए. अनमने मॅन से दया चंद बोला," ठीक है फिर हां कर दो." निर्मला ने दिशा को आवाज़ लगाई. दिशा तो जैसे इंतज़ार में ही खड़ी थी. "हां मामी जी!अभी आई." निर्मला: बेटी एक बात तो बता. ये तुम्हारे जो नये सर हैं, कैसे हैं. दिशा: आपको कैसे पता मामी जी? निर्मला: अरे वो वाणी को उसकी बड़ी मॅ'म उपर वाले कमरों के लिए कह रही थी, तुम्हारे मास्टर के लिए; दे दें क्या? दिशा: देख लीजिए मामी जी. निर्मला: इसीलिए तो बेटी पूच्छ रही हूँ, कैसे हैं? दिशा: कैसे हैं का क्या मतलब; टीचर हैं, अच्च्छा पढ़ाते हैं, और क्या. निर्मला: बेटी, मैं सोच रही थी अगर उनको यहाँ रख लें, तो तुम्हे ट्यूशन की भी प्राब्लम नही रहेगी. दिशा: हां ये बात तो है मामी जी. ठीक है बेटी, जा पढ़ाई कर ले! दिशा जाने लगी. बेटी के लचकदार जिस्म को देखकर मामी जाने क्या सोचने लगी. उपर जाते ही दिशा ने वाणी को अपनी बाहों में भर लिया. वाणी ने खुश होकर पूचछा की क्या हुआ? दिशा: मामी ने हां कर दी, सर के लिए. वाणी ने चुटकी ली, "तुम तो बहुत खुश हो! कुच्छ चक्कर है क्या?" दिशा:धात! तू बड़ी शैतान होती जा रही है. वो मैने सिर को आज स्कूल में उल्टा सीधा कह दिया था ना. अब शायद वो मुझे माफ़ कर देंगे. आ चल सफाई करते हैं." दोनों ने मिलकर उपर वाले कमरों को अपनी तरफ से दुल्हन की तरह सज़ा कर तैयार कर दिया. दिशा बोली," आज हम उपर ही सोएंगे" "ठीक है दीदी" अगले दिन सुबह स्कूल जाते हुए दिशा और वाणी बहुत खुश थी. वाणी ने तो स्कूल जाते ही एलान कर दिया की सर हमारे घर रहेंगे. तभी स्कूल के बाहर एक चमचमाती स्कोडा रुकी. बच्चों ने ज़्यादा ऐसी कार देखी नही तो उसके चारों और इकट्ठे हो गये. जब उसमें से शमशेर उतरा तो वो पहले दिन से ज़्यादा स्मार्ट और सेक्सी लग रहा था. वाणी उसको देखते ही भाग कर आई और बोली, सर मम्मी ने बोला है आप हमारे घर में ही रहना! शमशेर: अच्च्छा! वाणी: हां सर, रहेंगे ना! शमशेर ने उसकी और देखते हुए कहा,"क्यूँ नही, वाणी" वाणी: सर, ये इतनी अच्छि गाड़ी आपकी है? शमशेर ने उसके कंधे को हल्का से दबाया," मेरी नही अपनी है" वाणी शमशेर को देखती रह गयी! इश्स छ्होटे से डाइयलोग ने उसपे जाने क्या जादू किया की उसको सर सिर्फ़ अपने से लगने लगे. वाणी दौड़ती हुई दिशा के पास गयी और बोली चल देख क्या दिखाती हूँ दीदी. स्कूल के बाहर लेजाकार उसने दिखाई, देख गाड़ी! गाँव में सच में ही वो गाड़ी अद्भुत लग रही थी. दिशा पहले तो उसको एकटक देखती रही फिर बोली, क्या देखूं इसका! वाणी: सर जी ने कहा है ये अपनी गाड़ी है. दिशा के दिमाग़ में भी इश्स बात का असर हुआ फिर संभाल कर बोली," चल पागल!" वाणी पर इसका कोई असर नही हुआ. वो उच्छलती कूदती वहाँ से चली गयी. बहुत खुश थी वो. शमशेर ऑफीस में दाखिल हुआ,"गुड मॉर्निंग मॅ'म" अंजलि की आँखो में कशिश थी, अपनापन था. लेकिन कॉंटरोल्ल करके बोली," गुड मॉर्निंग मिस्टर. शमशेर! कहिए कैसे हैं! शमशेर: जी अच्च्छा हूँ, आपकी दया से! हां वो मेरे रूम का अरेंज्मेंट हो गया है. अंजलि: कहाँ? शमशेर: वहीं...वाणी के घर, अभी बताया है. अंजलि: ये तो बहुत अच्च्छा हुआ.(मॅन में वो इसके उलट सोच रही थी) तो आपका समान रखवा दूं? शमशेर: अरे नही! मेरा सारा समान गाड़ी में है. छुट्टी के बाद सीधे वही उतरवा दूँगा. मैं पीरियड ले लेता हूँ. कहकर वो ऑफीस से बाहर चला गया और 10थ क्लास में एंट्री की. सभी लड़कियाँ सहमी हुई थी. एक तो मर्द टीचर, दूसरा शकल से ही राईश दिखाई देता था. बड़ी गाड़ी, गले में 4-5 तौले की चैन. उसका रौब ही अलग था. साइकल पर आने वाले मास्टर जियों से बिल्कुल अलग. क्लास में सन्नाटा छाया हुया था. शमशेर ने पूरी क्लास को देखा. सभी की निगाह उसस्पर थी, सिवाय दिशा को छ्चोड़कर. वो नीचे चेहरा किए बैठी थी. शमशेर: गुड मॉर्निंग गॅल्स! मुझे नही लगता की आपको डिसिप्लिन में रखने के लिए डंडे की ज़रूरत पड़ेगी. या है! कोई कुच्छ नही बोली! शमशेर: आप सभी जवान हैं...... नेहा ने उसके चेहरे की और देखा शमशेर: ...मतलब समझदार हैं. मुझे उम्मीद है आप कुच्छ ऐसा नही करेंगी जिससे मुझे डंडे का यूज़ करना पड़े... जिनकी समझ में बात आई, उनकी चूत गीली हो गयी. शमशेर: आप लोग समझ रहे होंगे ना मेरा मतलब. जिसको पढ़ाई करनी है वो पढ़ाइई करें. जिनको डंडा खाने का शौक है वो बता दें, वो भी मेरे पास है. मतलब मैं डंडे का यूज़ भी करना जनता हूँ. इसीलिए कोशिश करें स्कूल टाइम में पढ़ाई पर ही ध्यान दें. अन्या बातों पर नही. तभी क्लास में पीयान आई और बोली, सर दिशा को प्यारी मेडम बुला रही हैं! शमशेर: दिशा जी, आप जा सकती हैं. दिशा स्टाफ्फरूम में गयी. वाणी भी वही खड़ी थी. प्यारी मेडम काफ़ी गुस्से में लग रही थी. "मे आइ कम इन, मॅ'म?" प्यारी: आजा, राजकुमारी! वहाँ खड़ी हो जा दीवार के साथ. दिशा चुपचाप जाकर वाणी के साथ खड़ी हो गयी. वाणी रो रही थी. प्यारी: मैं तो तुम दोनों को अच्च्ची लड़की समझती थी. पर तुम तो... दिशा: सीसी॥क्या हो गया मेडम जी! प्यारी: चुप कर बहन की..., तुम्हे अपने मास्टर पर डोरे डालते हुए शरम नही आई. इतनी ही ज़्यादा खुजली हो रही थी तो गाँव के किसी लड़के को ख़सम बना लेती अपना. इतने पीच्चे पड़े रहते हैं तेरे. सो जाती किसी के साथ... मास्टर पर ही दिल बड़ा आया तेरा. गाड़ी में बैठकर करवाएगी क्या. दिशा की आँखो से पानी टपक रहा था. पहली बार किसी ने इतना जॅलील किया था उसे. "मेडम आप ऐसा क्यूँ कह रही हैं. क्या किया है मैने" "क्या किया है मैने! उसको घर जौंवाई बना के रखोगे तुम. क्या दे दिया बदले में उस्स सांड ने. दिशा से रहा ना गया और बोली," मेडम प्लीज़ बकवास बंद कीजिए. मुझे कुच्छ समझ नही आ रहा." इतना सुनना था की प्यारी के गुस्से का ठिकाना ना रहा. वा उठी और जाकर दिशा के चूतदों पर खींच कर डंडा मारा. वो दर्द से दोहरी हो गयी. यहीं पर वो नही रुकी. उसने दिशा के रेशमी बालों को पकड़कर खींचा तो वो घुटनों के बल आ गयी. प्यारी ने उसके निचले होंट को पकड़ कर खींच लिया. और एक और डंडा मारा जो उसकी बाईं चूची पर लगा. वो बिलख पड़ी. प्यारी: कान पकड़ ले साली कुतिया. मैं बकवाद करती हूँ हाँ. दिशा ने कान पकड़ लिए और मुर्गी बन गयी.
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Re: गर्ल'स स्कूल

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प्यारी सच में ही कमिनि और घटिया औरत थी. उसने डंडा उसकी गांद के दरार के बीच रख दिया और उपर नीचे करने लगी," साली मैं बुझती हूँ तेरी चूत की प्यास, किसी को हाथ नही लगाने देती ना यहाँ. वाणी से अपनी प्यारी दीदी की ये दशा देखी ना गयी. वा कमरे से भाग गयी और बदहवास सी सर-सर चिल्लाने लगी. सभी बच्चे बाहर आ गये. अंजलि भी दौड़ी आई और उधर से शमशेर भी.... वा हैरान था. वाणी भागती हुई जाकर शमशेर से लिपट गयी," सर, दीदी...!" शमशेर को सब अजीब सा लगा. यौवन की दहलीज पर खड़ी एक लड़की उससे बेल की तरह लिपटी हुई थी. पर वक़्त ये बातें सोचने का नही था. शमशेर: क्या हुआ, वाणी? वाणी: स॥सर वो प्यारी मेडम..." सभी स्टाफ रूम की और भागे, दिशा ज़मीन पर लाश सी पड़ी थी, उसका कमीज़ फटा हुआ था जिससे उसके कसा हुआ पतला पेट दिख रहा था. शमशेर को समझते देर ना लगी. उसने फोन निकाला और भिवानी के एस.पी. को फोन किया. "हां शमशेर बेटा!" उधर से आवाज़ आई "अंकल, मैं लोहरू के एस टी. सेक. गर्ल्स स्कूल से बोल रहा हूँ. आप लेडी पोलीस भेजिए, यहाँ क्राइम हुआ है. "वेट्स अप बेटा, तुम्हारे साथ कुच्छ... "आप जल्दी फोर्स भेजिए अंकल जी" "ओक बेटा" प्यारी अब भी अकड़ में थी. उसको लगता था की उसके आदमी के थानों में संबंध हैं. उसका कोई कुच्छ नही बिगाड़ सकता. लेकिन जब पोलीस आई तो सारा सीन ही बदल गया. जीप से एक लेडी इनस्पेक्टर उतरी. डंडा घुमाती हुई आई और बोली," किसने फोने किया था एस.पी. साहब को?" शमशेर उसके पास गया और बोला, आइए मिस. और उसको दिशा के पास ले गया. दिशा अब ऑफीस में बैठी थी. अब भी वा बदहवास सी रो रही थी. शमशेर बोला,"हां दिशा मेडम को दिखाओ और बताओ क्या हुआ है." दिशा अपनी चुननी को हटाकर उसको अपना कमीज़ दिखाने ही वाली थी की वो रुक गयी और शमशेर की और देखने लगी. शमशेर समझ गया और बाहर चला गया. कुच्छ देर बाद लेडी इनस्पेक्टर बाहर आई और प्यारी को अपने साथ बिठा कर ले गयी. अंजलि ने डी.ओ. साहब को रिपोर्ट की और स्कूल की छुट्टी कर दी. शमशेर ने अंजलि को कहा की वो उसके साथ चले. अंजलि को घर छ्चोड़ देते हैं. शमशेर ने गाड़ी स्टार्ट की, वाणी आगे बैठ गयी. अंजलि और दिशा पीछे, और वो उनके घर पहुँच गये. घर जाते ही दिशा दहाड़े मारकर रोने लगी. धीरे धीरे शांत करके उनसबको सारा माजरा बताया गया. अंजलि ने बताया की वो ज़बरदस्ती शमशेर को अपने घर रखना चाहती थी. सब जानते थे की वो कैसी औरत थी. सुनकर वाणी के पापा चिंतित हो गये और बोले," अब क्या होगा बेटा?" "होगा क्या अंकल जी! प्यारी मेडम को सज़ा होगी. "नही नही बेटा! गाँव में दुश्मनी ठीक नही. तुम मामले को रुकवा दो. दिशा मामा की इश्स बात पर फुट पड़ी. शमशेर ने कहा देखते हैं अंकल जी. उधर सरपंच को पता लगते ही उसका पारा गरम हो गया. उसने तुरंत थाने में फोन किया. वहाँ से जो उसको पता चला, सुनते ही उसकी सिट्टी पिटी गुम हो गयी, शमशेर एक बड़े आइपीएस ऑफीसर का बेटा था. अब कुच्छ हो सकता है तो वही कुच्छ हो सकता है. सरपंच हाथ जोड़े दौड़ा दौड़ा आया. सारे गाँव ने पहली बार उसका ये रूप देखा. वा गिड़गिदाने लगा. फिर दायाचंद के कहने पर इश्स बात पर समझोता हुआ की प्यारी देवी पूरी गाँव के सामने दिशा से माफी माँगेगी और उसका ट्रान्स्फर गाँव से दूर कर दिया जाएगा. ऐसा ही हुआ. अब दिशा को भी तसल्ली हुई. कुच्छ ही देर में सब कुच्छ सामानया होगया जैसे कुच्छ हुआ हिना हो. गाँव वाले अंदर ही अंदर बहुत खुश थे. वाणी के पापा की तो रेप्युटेशन ही बढ़ गयी. इन सब में वो कुच्छ सवाल और कुच्छ शर्तें जो वा शमशेर को बताना चाहता था, उसके दिमाग़ से हवा हो गये. वा बोला," माफ़ करना मास्टर जी, हम तो चाय पानी ही भूल गये! "दिशा बेटी ज़रा मास्टर जी और मेडम के लिए चाय तो बनादे." "जी मामा जी" दिशा नॉर्मल नही हुई थी, उसको रह रह कर प्यारी देवी की बातें याद आ रही थी. उसकी चूत पर किसी ने टच किया हो, आज से पहले कभी नही हुआ था. अब भी उसको अपनी गॅंड के बीचों बीच डंडा घूमता महसूस हो रहा था. उसने शमशेर सर के बारे में कितनी गंदी बातें बनाई, सोचकर ही उसका चेहरा गुलाबी हो गया. फिर उसे ध्यान आया कैसे शमशेर सिर ने उसको हीरो की तरह बचाया और प्यारी देवी को सज़ा दिलवाई. चाय बनाते बनाते दिशा ने सोचा," क्या ये ही उसके हीरो हैं." सोचने मात्रा से ही दिशा शर्मा गयी और घुटनों में छिपा लिया. वा चाय बनाकर लाई और सबको देने लगी. शमशेर को चाय देते हुए उसके हाथ काँप रहे थे. अब तक भी वो उससे नाराज़ थी. चाय पीते ही वाणी ने शमशेर का हाथ पकड़ा और बोली," सर चलिए, आपको आपका घर दिखाती हूँ. उसके पापा को थोड़ा अजीब सा लगा और उसने वाणी को घूरा, पर उसस्पर इसका कोई असर नही हुआ; वह तो निशपाप थी. वा शमशेर को खींचते हुए उपर ले गयी. अपनी तरफ से उन्होने कमरे को पूरा सजाया था. शमशेर जाते ही बोला," मुझे सेट्टिंग करनी पड़ेगी" वाणी मायूस हो गयी," सर, दिशा दीदी और मैने इतनी मेहनत की थी" शमशेर हँसने लगा. वो नीचे जाकर अपना लॅपटॉप, एक फोल्डिंग टेबल, अपना. बॅग और बिस्तेर लेकर आया. और अपने हिसाब से कमरे में सेट्टिंग करने लगा. मम्मी ने वाणी को आवाज़ दी. वाणी दौड़ती हुई नीचे गयी. खिड़की से शमशेर ने देखा. वाणी का फिगर मस्त था. जब ये लड़की तैयार होगी तो शायद दिशा से भी मस्त होगी. उसने अपने होंटो पर जीभ फिराई और फिर से अपने समान को अड्जस्ट करने में जुट गया. "उपर क्या कर रही थी बेटी. सर को आराम करने दे." नही मम्मी, सर तो अपने रूम की सफाई कर रहे हैं. मैं उनकी मदद कर रही थी." दिशा चौकी," हमने सफाई करी तो थी कल वाणी." उससे मन ही मन गुस्सा आया. कल कितने अरमानों से उसने कमरे को सजाया था. वाणी: वो तो सर ने सारी सेट्टिंग ही चेंज कर दी. दिशा को इतना गुस्सा आया की अगर वो उसके सर ना होते तो अभी जाकर उससे लड़ाई करती. क्या समझते हैं खुद को. पर वो बोली कुच्छ नही और बाहर जाकर कपड़े धोने की तैयारी करने लगी. शमशेर सब अड्जस्टमेंट के बाद आराम से बेड पर बैठ गया. उसने देखा दिशा बाहर कपड़े धो रही हैखिड़की से वहाँ का दृश्या सॉफ दिखाई देता तहा. बेमिसाल हुश्न की मालकिन थी वह. कपड़े धोते धोते उसके चेहरे के रंग बार बार बदल रहे थे. कभी मंद मंद मुस्कुराती. कभी नर्वस हो जाती और कभी चेहरे पर वही भाव आ जाते जो पहली बार उसका नाम पुच्छने पर आए तहे. शायद कुच्छ सोच रही थी वा. अचानक वह झुकी और उसकी चूचियों की घाटी के अंदर तक दर्शन हो गये शमशेर को. उसकी सेब के साइज़ की चूचियाँ बिल्कुल गोले थी. वो भी बिना ब्रा के. क्या वो कभी उन्हे छ्छू भी पाएगा. काश ऐसा हो जाए. दिशा पहली लड़की थी जिसके लिए उसका सब्र टूटता जा रहा था, और वो लाइन ही नही दे रही. नही तो कितनी ही हसीनायें अपनी पहल पर उसके लंड को अपनी चूत में ले चुकी थी. वह उठी और कपड़े निचोड़ने लगी. उसका मुँह दूसरी तरफ हो गया. उसकी कमीज़ उसकी गांद की दरार में फँसा हुआ था. कमीज़ गीला हो जाने की वजह से उसकी गांद का सही सही साइज़ शमशेर के सामने था. एक दम गोल गोल. जैसे आधे गोले तरबूज में किसी कलाकार ने बड़ी सफाई से एक छ्होटी फाँक को निकल दिया हो. शमशेर उसको प्यार का पहला पाठ पढ़ाने को तत्पर हो उठा. पर उसको डर था. वो बड़ी तुनकमिज़ाज थी. कही पासा उल्टा पड़ गया तो इसके चक्कर में बाकी स्कूल की लड़कियों से भी हाथ धोना न पड़ जाए. स्कूल में एक से एक मीठे फल थे हां इसके आगे सब कुच्छ फीका ही था. तभी फोन की घंटी बाजी. फोन अंजलि का था. "हेलो" "शमशेर" "हां जान" "ठीक अड्जस्ट हो गये हो ना" "हां, जान बस तुम्हारी कमी है" "तो आज रात को आ जाओ ना" अंजलि की चूत की प्यास भी अब बढ़ गयी थी. "सॉरी जान" पर इनको अजीब लगेगा." "कुच्छ देर के लिए आ जाना, घूमने का बहाना करके." "देखता हूं" "आइ लव यू!" "लव यू टू जान!" शमशेर का ध्यान अब दिशा की गांद के अलावा कहीं जाता ही नही था. उसके शरीर की हड्डियाँ गिनते गिनते शमशेर को नींद आ गयी. करीब 5 बजे दिशा ने चाय बनाई. उसकी मम्मी बोली बेटी तुम्हारे सर को भी दे आना. दिशा जाने लगी तो मामा ने टोक दिया," दिशा बेटी, रूको! वाणी चलो बेटा चलो सर को चाय देकर आओ! "पापा, मेरा काम ख़तम नही हुआ है अभी, मैं बाद में जाउन्गि. दीदी तुम्ही दे आओ." चाहती तो दिशा भी यही थी पर उसमें सर का सामना करने की हिम्मत नही थी, जाने क्यूँ. उपर चढ़ते चढ़ते उसके पैर भारी होते जा रहे थे. उपर जाकर उसने देखा, सर जी सो रहे थे. वा एकटक उसको देखती रही. कितना हसीन चेहरा था. कितनी चौड़ी छति थी, कमर पतली और... और ये क्या, शमशेर की पॅंट आगे से फूली हुई सी थी. इसमें छिपे खजाने की कल्पना करते ही उसका चेहरा शर्म से लाल हो गया. "हाए राम!" conti...
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गर्ल'स स्कूल --4


दिशा ने तुरंत वहाँ से नज़र हटा ली. काश वो उसके "सर" ना होते. वो उसको अपना दिल दे देती. उस्स पागल को क्या पता था दिल कोई सोचकर थोड़े ही दिया जाता है. दिल तो वो दे चुकी थी.....है ना फ्रेंड्स!

वो चुप चाप टेबल के पास गयी और चाय रखकर नीचे आ गयी. नीचे जाते ही उसने वाणी को कहा," वाणी! जाओ, सर को जगा दो, वे सो रहे हैं."
निर्मला: तुम ना जगा देती पगली
दिशा: मुझसे नही जगाया गया मामी जी.
वाणी ने अपनी कापिया बॅग मैं डाली और दौड़ कर उपर गयी.
जाकर उसने सर का हाथ पकड़ कर हिलाया. लेकिन उसने कोई हलचल नही की. वाणी शरारती थी और शमशेर से घुलमिल भी गयी थी. उसने शमशेर की छाती पर अपना दबाव डाला. उसकी चुचियाँ शमशेर के मुँह के सामने थी. वो नही उठा. वाणी ने ज़ोर से उसके कान में बोला," सर जी" और शमशेर उठ बैठा. उसने चौंकने की आक्टिंग की" क्या हुआ वाणी?"
"सर जी आपकी चाय" टेबल की और इशारा करते शमशेर से कहा.
ओह, थॅंक्स वाणी!!
"थॅंक्स मेरा नही दीदी का बोलिए"
"कहाँ है वो?"
"है नही थी" चाय रखकर चली गयी. मैने आपको इतना हिलाया पर आप उठे ही नही. आपके कान में शोर करना पड़ा मुझे, सॉरी" वाणी ने हंसते हुई कहा.
" पता है वाणी, जब तक कोई मुझे नाम से ना बुलाए, चाहे कुच्छ भी कर ले. मेरी नींद नही खुलती. पता नही कोई बीमारी है शायद." शमशेर का प्लान सही जा रहा था.
" सर, कुंभकारण की नींद भी तो ऐसी थी ना"
"अच्च्छा मुझे कुंभकारण कह रही है. शमशेर ने उसके गाल उमेठ दिए"
"उई मा!" छ्चोड़ देने पर वो हँसने लगी. शमशेर ने महसूस किया, जैसे उसने उसकी चूत पर हाथ रख दिया और वो कह रही है"उई मा". फिर वाणी वहाँ से चली गयी.
नीचे जाते ही वाणी ने मम्मी को कहा," मम्मी, सर जी तो कुंभकारण हैं" मा ने बेटी की बातों पर ध्यान नही दिया. लेकिन दिशा के तो 'सर' सुनते ही कान खड़े हो जाते थे. वो अंदर पढ़ रही थी. उसने वाणी को अंदर बुलाया. वाणी उसके पास आकर बैठ गयी. कुच्छ देर बाद दिशा ने पूचछा
"चाय पी ली थी क्या सर ने"
"हां पी ली होगी. मैने तो उनको उठा दिया था दीदी.
"तू क्या कह रही थी सर के बारे में"
"क्या कह रही थी दीदी?"
"वही....कुंभकारण...."
"नही बतावुँगी दीदी! आप स्कूल में बता दोगे तो बच्चे उनका नाम निकाल देंगे!"
"मैं पागल हूँ क्या... चल बता ना प्लीज़"
वाणी जैसे कोई राज बता रही हो, इश्स तरह से बोली,"पता है दीदी, सर अगर एक बार सो जायें, तो उन्हे उतने का एक ही तरीका है. उन्हे कितना ही हिला लो वो नही उठेंगे. उन्हे उठाने के लिए उनके कान में ज़ोर से उनका नाम लेना पड़ता है."
"चल झूठी" दिशा को विस्वास नही हुआ.
"सच दीदी"" मैं तो उनकी छाती पर जाकर बैठ गयी थी, फिर भी वो नही उठे. फिर मैने उनके कान में ज़ोर से कहा"सर जी" तब जाकर उनकी नींद खुली"
"मोटी तुझे शरम नही आई उनकी छाती पर चढ़ते हुए." दिशा के मॅन में प्लान तैयार हो रहा था.
वाणी ने उसकी टीस और बढ़ा दी," सर बहुत अच्च्चे हैं ना दीदी!"
"चल भाग! मुझे काम करने दे!" दिशा ने उसको वहाँ से भगा दिया.
शमशेर भी इतना ही बैचैन था दिशा की जवानी से खेलने के लिए. अगर वो भी हमारी तरह कहानी लिख कर पढ़ रहा होता तो आँख बंद करके 5 मिनिट में ही उसकी चूत का दरवाजा पूरा खोल देता यारो! पर उसको थोड़े ही पता है की ये कहानी है. ये तो या तो मैं जानता हूँ या आप.... बेचारा शमशेर! खैर शमशेर टकटकी लगाए खिड़की से बाहर देखता रहा की कम से कम उस्स परी की गांद के दर्शन ही हो जायें. करीब 15 मिनिट बाद दिशा बाहर आई. उसके हाथ में टॉवेल था. शायद वो नहाने जा रही थी. गाड़ी के पास जाकर वो रुकी और उस्स पर प्यार से हाथ फेरने लगी. फिर उसने उपर की और देखा. शमशेर को अपनी और देखता पाकर वो जल्दी से अंदर चली गयी. बाथरूम का दरवाजा बंद करके उसने कपड़े उतारने शुरू किए. शमशेर का प्यारा चेहरा और उसकी पॅंट का उभर उसके दिमाग़ से निकल ही नही रहे थे. उसने अपना कमीज़ उतार दिया और अपने उभारों कोगौर से देखने लगी. उसको पता था भगवान ने उसको इन 2 नगिनो के रूप में क्या दिया है. उसकी छातियाँ ही उसकी जान की दुश्मन बनी हुई थी. उसे पता था की इनमें ऐसा कुच्छ ज़रूर है जिसने गाँव के सारे लड़कों को इनका दीवाना बना दिया है. कोई इन्हें पहाड़ की चोटी कहता, कोई सेब तो कोई अनार. क्या सर जी को भी ये अच्छे लगते होंगे. काश कि लगते हों. वा उनपर हाथ फेर कर देखने लगी, इनमें ऐसा क्या है जो लड़कों को पसंद आता है. ये तो सब लड़कियों के होती हैं. कायओ की तो बहुत बड़ी होती हैं, फिर तो वो ज़्यादा अच्च्ची लगनी चाहिए. सोचते सोचते ही उसने अपनी सलवार उतारी. और शीशे में घूम घूम कर अपना बदन देखने लगी, उसको नही मालूम था की हीरे की परख तो जौहरी ही कर सकता है. उसकी गोल गांद और तनी हुई छातियो की कद्रतो वो ही रसिया करेंगे ना जिनको इनकी तड़प है. आज से पहले उसने अपने जिस्म को इतनी गौर से नही देखा था. आज भी शायद अपने प्यारे सर के लिए.

नाहकार वा बाहर निकली तो चौक गयी. सर सामने ही बैठे थे. शायद मामी ने उन्हे खाने के लिए बुलाया होगा. उसको अहसास हुआ की जैसे सर के बारे में सोचते हुए वो रंगे हाथ पकड़ी गयी. वा भागकर अंदर वाले कमरे में चली गयी.

"बेटी, सर के लिए खाना लगा दे. इनको जाना है कही."
अच्च्छा मामी जी, कहकर दिशा किचन में चली गयी.
वाणी सर के पास ही बैठी थी. वाणी का शरीर जवान हो गया था पर शायद मॅन नही. वो ज़्यादातर हरकतें बच्चों जैसी करती थी. अब भी वो शमशेर के साथ अपना पिच्छवाड़ा सटा कर बैठी थी. कोई बड़ी लड़की होती तो अश्लील हरकत समझा जाता.
"मास्टर जी"निर्मला बोली" आपने दिशा को बचा कर जो उपकर किया है, उसका बदला हम नही चुका सकते, पर अब जब तक तुम इस्स स्कूल में हो, हम तुम्हे हमारे घर से नही जाने देंगे"
"मम्मी, हमारा घर नही; अपना घर. है ना सर जी." वाणी चाहक कर बोली.
"हां वाणी!" शमशेर ने उसके गाल पर थपकी देकर ताल में ताल मिलाई.
"मम्मी गाड़ी भी सर की नही है, अपनी है; हैं ना सर जी.
" मस्टेरज़ी, हमारी लड़की बड़ी शैतान है, कभी इसकी ग़लती पर हमसे नाराज़ मत होना.
शमशेर ने मौका देखकर कहा, ये भी कोई कहने की बात है आंटिजी! ये तो यहाँ मुझे सबसे प्यारी लगती है.
दिशा ने इश्स बात पर घूमकर शमशेर को देखा, और प्यार से जलाने के लिए वाणी को बोली," हूंम्म, सबसे प्यारी!"
वाणी ने अपनी सुलगती दीदी को जीभ निकालकर चिडा दिया. दिशा उसे मारने को दौड़ी, पर उसका असली मकसद तो सर के पास जाना था जैसे ही वो वाणी के पास आई, वाणी शमशेर के पीछे छिप गयी. अब शमशेर और दिशा आमने सामने थे. दिशा के तन पर चुननी ना होने की वजह से उसकी दोनों चुचियाँ शमशेर की आँखो के सामने थी. जल्द ही उसको अपने नंगेपन का अहसास हुआ और वो शर्मकार वापस चली गयी.
"इसमें तो है ना बस गुस्से की हद है." निर्मला ने कहा.
शमशेर: हां, वो तो है.
उसके बाद वो खाना खाने लगे.
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`·.¸.·´ -- Raj sharma
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