ज़िंदगी भी अजीब होती है Restart

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Re: ज़िंदगी भी अजीब होती है Restart

Post by 007 »

मामी मेरी तरफ देख रही थी मैं उसकी तरफ देख रहा था वो ही वो थी वो ही मैं था कौशल्या मामी का भी मेरे जीवन मे बहुत बड़ा रोल थे मेरा उनसे सेक्स रीलेशन एक ग़लती की वजह से बन गया था जब मैने चाची समझ कर उसको चोद दिया था


उसके बाद हमारा रिश्ता बहुत बदल गया था वो मेरी मामी थी , मेरी दोस्त थी बिस्तर पर मेरी साथी थी आज भी कुछ ऐसा ही लम्हा था कुछ देर हम दोनो एक दूसरे को देखते रहे और फिर मैने मामी को अपनी गोद मे थम लिया मामी ने अपने होंठ मेरे होंठो पर रख दिए और किस करने लगी


मामी की उमर बेशक बढ़ गयी थी पर उसके बदन की ताज़गी आज भी ऐसी ही थी मामी के हल्के गुलाबी पतले पतले होंठ आज भी उनका स्वाद ऐसा ही था जैसा कि पहले था कुछ भी तो नही बदली थी वैसी ही थी पतली छरहरी हा कुछ बाल थोड़े से हल्के सफेद हो गये थे पर आग आज भी वैसी ही थी


हम दोनो का थूक मामी के मूह मे इकट्ठा हो रहा था जिसे वो पी गयी , पर मैं उसके होंठो को चूस्ता रहा जब तक वो खुद से अलग नही हो गयी


मामी- ज़्यादा मत चूसो, वरना होंठ सूज जाएगा


मैं- तो क्या हुआ


वो- कुछ नही पर थोड़ा छुपाना मुश्किल होगा


मैने मामी के ब्लाउज को खोल दिया और ब्रा के उपर से ही उसकी मीडियम साइज़ वाली चुचियो को सहलाने लगा मामी के बदन मे कंपकंपी चढ़ने लगी मामी मेरे चेहरे को अपनी छातियो पर रगड़ने लगी मैं अपने हाथ उसकी पीठ पर ले गया और ब्रा को उतार दिया


मामी की चुचियो के भूरे भूरे निप्पल्स जैसे इंतज़ार कर रहे थे मेरे लबो का मामी की चुचि को मैने अपने मूह मे लिया तो मामी ने एक मीठी आह भरी और मेरे सर के बालो को सहलाने लगी


कुछ ही देर मे मामी के बदन ऐंठने लगा था चुचियो मे तनाव आने लगा था बारी बारी वो दोनो चुचियों को मेरे मूह मे दे रही थी मामी के बदन की मोहक खुशुबू मेरी सांसो मे घुलती जा रही थी


कुछ देर बाद वो मेरी गोद से उतर गयी और मेरी पॅंट को खोलने लगी नीचे खिसकाया और फिर घुटनो के बल बैठ कर मेरे लंड से खेलने लगी मामी ने उपर से नीचे तक लंड पर अपनी जीभ फेरी तो मैं झुर्झुरा गया


मेरे लंड के हर हिस्से पर मामी की गीली जीभ घूम रही थी बीच मे जब वो अपने दाँतों से चॅम्डी को आहिस्ता से काट ती तो एक खुमारी सी छाने लगी मैने अपनी आँखो को मूंद लिया और मामी को अपना काम करने दिया

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Re: ज़िंदगी भी अजीब होती है Restart

Post by 007 »

मामी ने मेरे सुपाडे पर अपने होंठ लगा दिए और उसको पुच पच करते हुए चूसने लगी चाटने लगी मैने उनके सर को थोड़ा सा नीचे को दबाया तो मामी ने लंड का कुछ और हिस्सा अंदर ले लिया और अपने जलवे दिखाने लगी


मैने देखा बीच बीच मे उनका हाथ अपनी चूत पर जा रहा था तो मैं समझ गया कि मामी आज बहुत ज़्यादा गीली हुई पड़ी है पर मैने भी काफ़ी दिन से सेक्स नही किया था तो मैं चाहता था कि आज अच्छे से करू


करीब दस मिनिट बाद मैने अपने लंड को मामी के मूह से निकाला जिस पर मामी की लार लगी हुई थी मैने मामी को खड़ी किया और कच्छी को उतार दिया उफफफ्फ़ मामी की गान्ड क्या थी ज़्यादा भारी तो नही थी पर दिल धड़काने वाली ज़रूर थी


मामी के गोरे चुतड़ों पर जो हल्का सा गुलबीपन था वो बड़ा सेक्सी था और उपर से उनका पूरा शरीर गोरा था बस चूत ही काली थी और उसके वो झाट के बाल वहाँ से चूत की खूबसूरती और बढ़ गयी थी

मामी इस कदर गीली थी कि चूत से रिस्ता कामरस झान्ट के बालो को भी गीला करने लगा था जैसे की हरी घास मे कुछ शबनम की बूंदे सुबह सुबह कुछ ऐसी ही सुंदर मामी की चूत लग रही थी


मैने मामी को बेड पर पटक दिया और मामी ने खुद अपनी टाँगो को फैला लिया और अपनी गान्ड के नीचे तकिया लगा लिया ताकि चूतड़ थोड़े से उपर हो जाए


मामी- मनीष अब मत तडपा मुझे बहुत दिनो से तरस रही हूँ तुझसे प्यार करने के लिए


मैं- मैं भी मामी


मैने मामी की टाँगो को अपनी जाँघो पर चढ़ाया और मामी की चूत पर अपने गरम सुपाडे को रख दिया


मम्मी-अयाया


मैने हल्का सा झटका मारा तो लंड चूत मे जाने लगा मामी की चूत वक़्त के साथ थोड़ी मेच्यूर हो गयी थी तो चोदने मे और मज़ा आने वाला था धीरे धीरे मेरा पूरा लंड चूत मे जा चुका था और मैं मामी के उपर लेट गया


मामी ने अपने हाथ मेरी पीठ पर लगा दिए और मुझमे और अंदर तक समाने की कोशिश करने लगी मेरे गाल मामी के गालो से टकरा रहे थे और मैने अब अपनी कमर उचकानी शुरू की


मामी- आज तेरे साथ करके बहुत अच्छा लग रहा है बस ऐसे ही धीरे धीरे कर थोड़ा लंबा चलेंगे


मैं- हूंम्म


मामी का बाया गाल मेरे होंठो मे दबा हुआ था और मामी की चूत मे लंड फसा हुआ था कुछ देर बाद मामी ने अपने पैर एम शेप मे कर लिए जिस से लंड और गहराई तक अंदर को जाने लगा


मैं और मामी इस दौरान कुछ भी बात नही कर रहे थे बस धीरे धीरे अपनी चुदाई को आगे ले जा रहे थे मामी भी अपनी कमर उचका उचका कर मेरा साथ दे रही थी


कहने को तो ये सेक्स था पर हम अपने रिश्ते को थोड़ा और मजबूत कर रहे थे मामी के गुलाबी होंठो को मैं हल्के हल्के से चूम लेता था मामी की चुचिया मेरे सीने के बोझ तले दबी पड़ी थी और मामी की साँसे उफन रही थी



काफ़ी देर हो चुकी थी हम दोनो को पर वो चाहती थी कि मैं उसके उपर ही चढ़ा रहूं शायद वो दूसरी बार झड रही थी जब मेरा पानी उसकी चूत मे गिरने लगा मैने बहुत दिनो बाद सेक्स किया था तो जब मेरा हुआ तो मैं झेल नही पाया काफ़ी सारा पानी मामी की चूत मे गिरा जब मैने लंड को बाहर की तरफ खीचा तो वीर्य भी बाहर आकर गिरने लगा

कुछ देर तक हम दोनो एक दूसरे की बाहों मे पड़े रहे फिर मामी ने अपने कपड़े पहने मैं बाथरूम मे चला गया थोड़ी थकान भी हो रही थी तो मैं नहा धोके आया


मामी- खाने मे क्या खाओगे


मैं- खाना निशा के साथ खाउन्गा


मामी- मेरे साथ नही खाना क्या


मैं- खाउन्गा आपके साथ भी पर सुबह, अभी उसे पूछना तो पड़ेगा ना मेहमान है वो


मामी- हाँ, पूछना तो पड़ेगा वैसे बात कितनी आगे बढ़ी है उसके साथ


मैं- मामी, उसका मेरा ना थोड़ा अलग टाइप का है, मतलब हम साथ रहते है पर फिर भी बस ऐसे ही है


मामी- शादी कर ले उसके साथ


मैं- मामी, सोचता तो हूँ पर मिथ्लेश की यादे जो है उसकी याद आती है तो फिर दिल साला काबू मे नही रहता और उपर से मम्मी भी नाराज़ है तो देखू क्या होता है


मामी- तुम्हारी मम्मी कल आ रही है तो फिर करते है बात सारे परिवार के आगे वो मना थोड़ी ना करेगी


मैं- मम्मी तो बात भी नही करती है


वो- सब सही हो जाएगा


मैने रॉकी को फोन किया और बोला कि निशा को यहाँ ले आ मामी खाना बनाने रसोई मे चली गयी मैं टीवी देखने लगा करीब आधे घंटे बाद निशा आ गयी कपड़े चेंज कर लिए थे उसने बड़ी कमाल लग रही थी


मैं- आज तो जबर्जस्त दिख रही हो, किसपे बिजलिया गिराने का इरादा है

वो- कौन हो सकता है तुम्हारे सिवा


मैं- बोर तो ना हो रही


वो- ना


मैं- बढ़िया


मैं- चल एक एक बियर पीते है


वो- ना यार, तुझे तो पता है मुझे झिलती नही है और फिर खम्खा तमाशा होगा


मैं- अरे कुछ नही होता थोड़ी थोड़ी लेते है तू छत पे आ मैं लेके आता हूँ
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Re: ज़िंदगी भी अजीब होती है Restart

Post by 007 »

mastram wrote: 29 Sep 2017 19:28 bahut achha update 007 bahi
thanks dost
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Re: ज़िंदगी भी अजीब होती है Restart

Post by 007 »

पहले तो वो मना करती रही पर फिर मान गयी और हम दोनो छत पर आ गये, मामी ने अपना घर खेतो मे बनाया था पहले तो ये एकलौता घर था पर अब बस्ती हो गयी थी हम दोनो छत की मुंडेर पर बैठ गये

और खोल ली बियर की बोटले, कुछ घूंठ लिए थे फिर बाते शुरू हो गयी


निशा- एक बात कहूँ


मैं- वो कैसी थी


मैं- कौन


वो- मिथ्लेश


मैं- तेरे जैसी


वो- बता ना


मैं- कहा ना तेरे जैसी


वो- सच मे


मैं- हां


वो- कैसे मिले थे तुम


मैं- बस ऐसे ही गाँव मे मेला था तो मैं भी गया था उसका पाँव भीड़ मे मेरे पाँव पर पड़ गया था तो तभी पहली बार उसको देखा था और तभी दिल मे कुछ कुछ हो गया था


वो- फिल्मी स्टाइल मे


मैं- हूंम्म


वो- फिर आगे


मैं- बस वो रोज आती थी मंदिर मे और मैं भी तो बस दिल ने उसके दिल तक पैगाम पहुचा दिया


वो- ऐसे ही तूने मुझे पटाया था


मैं- दोस्त है यार तू अपनी बल्कि दोस्त से बढ़ कर तूने मेरे लिए जो किया मैं कभी नही चुका सकता तू भी क्या पूछने लगी तुझे तो सब पता ही है


वो- अच्छा लगता है, उन लम्हो को याद करना कितने अजीब दिन थे तब लाइफ मे एक सुकून सा था आज देख सब कुछ है पर फिर भी कम लगता है


मैं- सही कहा यार अब तो सब बदल गया है अपने गाँव की मिट्टी भी बदल गयी यार, पहले हसी-मज़ाक था शराराते थी वो झोड़ मे नहाना पार्क मे पड़े रहना क्या दिन थे यार


वो- पता है जब तू नही था तेरी बहुत याद आती थी


मैं- मुझे भी बहुत मेहनत की यार तुझे ढूँढने मे पर तू इतनी दूर क्यो चली गयी थी


वो-पास ही तो हूँ , तुझसे दूर हो सकती हूँ क्या


मैं- निशा, मैं मर जाता अगर तू ना होती तो मेरी ज़िंदगी मे
वो- ऐसे मत बोल


मैं- पता है या कभी कभी दिल करता है तुझे अपने सीने से लगा लूँ थाम लूँ तुझे अपनी बहो मे तुझे ना बहुत प्यार करू किस करू तुझे


वो- कर ले तो उसमे क्या है


मैं- सच मे


वो- हाँ


उसके होंठो के नीचे एक तिल था जो मुझे बहुत प्यारा लगता था मैने बोतल को साइड मे रखा और निशा का हाथ पकड़ लिया


वो मेरे करीब आने लगी इतनी करीब की उसकी गरम साँसे मेरे चेहरे को छुने लगी, उसने अपने होंठो को आगे किया और ऐसा ही मैने किया जैसे ही हमारे होंठ टकराए उसका बदन हल्के हल्के से काँपने लगा

एक बार जो होंठो से होंठ मिले तो बस मिलते ही गये मैने दोनो हाथो से उसके चेहरे को थाम लिया और उसको स्मूच करने लगा निशा ने अपनी बाहों मे कस लिया और मेरा साथ देने लगी


एक फिर दो फिर पता नही कितने किस हम करते रहे फिर भाई-बहन आ गये छत पर तो और बाते होने लगी
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