एक अनोखा बंधन compleet

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Re: एक अनोखा बंधन

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एक अनोखा बंधन--21

गतान्क से आगे.....................

आदित्य ने घर के बाहर सीढ़ियाँ डलवा दी और आस-पड़ोस में ये क्लियर भी कर दिया कि ज़रीना उसके यहा टेनेंट बन कर रह रही है.

“सोच रहा हूँ कि तुम्हारे घर की भी मरम्मत करवा दूं.” आदित्य ने कहा.

“रहने दो सबको शक हो जाएगा. ये काम शादी के बाद करेंगे. बल्कि दोनो घरो को जोड़ कर एक बना देंगे हम.” ज़रीना ने कहा.

“ज़रीना चाचा जी का टेलीग्राम आया था आज फॅक्टरी में. तुरंत बुलाया है उन्होने मुझे मुंबई सिमरन से मिलने के लिए. तुम बताओ क्या करूँ.”

ज़रीना ने गहरी साँस ली और बोली, “जाना तो पड़ेगा ही तुम्हे. इस समस्या का हल तो करना ही है ताकि हम सुख शांति से रह सकें.”

“हां बहुत ज़रूरी है इस उलझन को दूर करना तभी हम अपने प्यार में आगे बढ़ पाएँगे.”

ज़रीना रह तो रही थी टेनेंट के रूप में मगर आस-पड़ोस के लोग फिर भी उसे घूर-घूर कर देखते थे. जिसके कारण वो गुमशुम और परेशान रहती थी. आदित्य के मुंबई जाने के ख्याल से वो और ज़्यादा परेशान हो गयी थी

“आदित्य मुझे भी ले चलो साथ मुंबई. मैं यहा अकेली नही रह पाउन्गि. तुम देख ही रहे हो कैसा माहॉल है यहा. घूर-घूर कर देखते हैं लोग मुझे. लगता है लोगो को शक हो गया है हमारे बारे में.”

“ज़रीना चिंता मत करो..मैं मुंबई जा रहा हूँ ना. सब ठीक करके आउन्गा और आते ही हम शादी कर लेंगे. ज़्यादा दिन नही सहना होगा तुम्हे ये सब. फिर देखता हूँ कि कौन घूर कर देखता है तुम्हे. आक्च्युयली मैं प्राब्लम ये है कि किसी को बर्दास्त नही हो रहा होगा कि एक मुस्लिम लड़की हिंदू के घर रह रही है.”

“हां यही मैं प्राब्लम है. पता नही जब हम शादी करके रहेंगे फिर किस तरह रिक्ट करेंगे ये लोग.”

“तब की तब देखेंगे. हमें जो करना है करना है.”

“आदित्य मुझे भी अपने साथ मुंबई ले चलो प्लीज़. मैं यहा अकेली क्या करूँगी.”

“चलना चाहती हो तुम?”

“हां…ले चलोगे ना?”

“तुम्हारे लिए कुछ भी करूँगा जान. चलो समान पॅक करलो, तुम्हे मुंबई घुमा कर लाता हूँ.” आदित्य ने कहा.

“बहुत खर्चा करवा रही हूँ तुम्हारा.”

“पागल हो क्या. सब तुम्हारा है. और फॅक्टरी ठीक चल रही है. और ध्यान दूँगा तो और ज़्यादा तरक्की करेंगे.”

“आदित्य तुम बहुत अच्छे हो” ज़रीना ने कहा और कह कर किचन की तरफ चल दी.

“रूको कहा जा रही हो?”

“खाना बनाना है…” ज़रीना हंसते हुवे बोली और किचन में आ गयी.

आदित्य भी उसके पीछे पीछे आ गया.

“आदित्य पता नही क्यों पर डर सा लग रहा है मुझे. पता नही ये समस्या कैसे और कब दूर होगी और कब मुझे तुम्हारी पत्नी कहलाने का हक़ मिलेगा.”

“वो हक़ तो तुम्हे कब से है. फिर भी एक काम और किए देता हूँ अगर कोई डाउट है तुम्हे तो” आदित्य ने चाकू उठाया और इस से पहले कि ज़रीना कुछ समझ पाती झट से अपने दायें हाथ का अंगूठा चीर दिया.

“ये क्या किया आदित्य…पागल हो गये हो क्या.”

आदित्य ने कुछ कहे बिना ज़रीना की माँग भर दी और बोला, “अब मत कहना कि तुम मेरी पत्नी नही हो. जब दिल से मान चुके हैं हम एक दूसरे को पति-पत्नी तो और क्या रह गया है.”

ज़रीना आदित्य के कदमो में बैठ गयी, “आदित्य मेरा वो मतलब नही था. हम दोनो तो ये जानते ही हैं. बात समाज की हो रही है.”

“छोड़ो ज़रीना हटो अब. हद होती है किसी बात की. बेकार के झंझट पाल रखें हैं तुमने अपने मन में. कितना सम्झाउ तुम्हे.” आदित्य ज़रीना को किचन में छ्चोड़ कर बाहर आ गया. ज़रीना वही बैठी हुई सुबक्ती रही.

ज़रीना खाना बना कर आदित्य के पास आई.

“खाना खा लो आदित्य.”

“नही मुझे भूक नही है. तुम खा लो.”

“अच्छा सॉरी बाबा…आगे से ऐसा नही कहूँगी…खाना खा लो प्लीज़…वरना मैं भी नही खाउन्गि. वैसे बहुत सुंदर लग रही है मेरी माँग भरी हुई.”

“मैने अपने खून से माँग भर दी तुम्हारी फिर भी पता नही कौन सी दुविधा में हो. कोई मज़ाक नही किया था मैने. बहुत मान्यता है इस बात की हमारे लिए.”

“मैं जानती हूँ आदित्य. इसी देश में पली-बढ़ी हूँ मैं. अच्छा आगे से ऐसा कुछ नही कहूँगी जिस से तुम्हे दुख पहुँचे.”

आदित्य ज़रीना के करीब आया और ज़रीना के चेहरे पर हाथ रख कर बोला, “जान मैं तुम्हारी हर क्न्सर्न समझता हूँ. पर तुम्हे परेशान नही देख सकता.”

“सॉरी आगे से ऐसा नही होगा…चलो खाना खाते हैं.” ज़रीना मुश्कुरा कर बोली.

आदित्य और ज़रीना के लिए फिर से ये इम्तिहान का दौर था. पहले इम्तिहान में वो दोनो फैल हो गये थे मगर उसके बाद दोनो ने कुछ ऐसा सीखा था जो कि उन्हे जीवन भर काम आएगा. फेल्यूर कभी बेकार नही जाता. कुछ तो वो भी दे ही जाता है. ये अच्छी बात थी कि ऐसे मुश्किल दौर में दोनो एक साथ खड़े थे. यही प्यार की सबसे बड़ी डिमॅंड रहती है अगर आप प्यार के सफ़र पर चल रहे हैं तो.
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Re: एक अनोखा बंधन

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दोनो ने शांति से खाना खाया. और खाना खाने के बाद आदित्य ने हंसते हुवे कहा, “अब एक स्वीट डिश हो जाए.”

“स्वीट डिश नही बनाई…अभी बना कर लाती हूँ कुछ.”

“नही…नही रूको मैं मज़ाक कर रहा था. वैसे कहते हैं कि चुंबन स्वीट होता है.”

“श्रीमान वो भी उपलब्ध नही है इस समय. थोड़ा वक्त लगेगा.” ज़रीना मुश्कुरा कर वापिस किचन की ओर चल दी.

“कितना वक्त लगेगा तैयार होने में.?” आदित्य ने पूछा.

“क्या स्वीट डिश या…” ज़रीना ने मूड कर पूछा.

“दोनो के बारे में बता दो.”

“स्वीट डिश अभी 10 मिनिट में बना देती हूँ. उसमे कितना टाइम लगेगा पता नही.” ज़रीना हंसते हुवे किचन में घुस गयी.

“ओह ज़रीना कितनी प्यारी हो तुम. ऐसी ही रहना हमेशा. मुझे चुंबन की जल्दी नही है जान. बस मज़ाक कर रहा हूँ तुमसे. तुम मेरी अपनी हो ना इतना मज़ाक तो कर ही सकता हूँ. बुरा मत मान-ना.” आदित्य ने मन ही मन कहा.

“आदित्य मुझे शरम आने लगी है अब तुम्हारे साथ. थोड़ा डर भी लगने लगा है तुमसे. पर सब कुछ अच्छा भी लग रहा है. तुम यू ही रहना हमेशा मेरे लिए. चुंबन अगर बहुत ज़रूरी है तो ले लो. पर नाराज़ मत होना मुझसे. जी नही पाउन्गि तुम्हारे बिना.” ज़रीना की आँखे नम हो गयी सोचते सोचते.

ये भी प्यार का अजीब सा रूप है. बिन कहे बहुत सारी बाते होती हैं और समझी भी जाती हैं. ज़रीना और आदित्य लगभग एक सी बाते सोच रहे थे. दिस ईज़ रियली ग्रेट.

अगले दिन आदित्य और ज़रीना मुंबई के लिए रवाना हो गये. दोपहर 3 बजे पहुँच गये वो मुंबई. कोलाबा में घर था आदित्य के चाचा जी का. इश्लीए वही एक होटेल में रुक गये आदित्य और ज़रीना. कुछ देर आराम करने के बाद आदित्य ने कहा, “जान मैं मिल आता हूँ सिमरन से. तुम यही रूको.”

“हां मिल आओ और शांति से काम लेना. उसकी कोई ग़लती नही है. कुछ भला बुरा मत बोल देना उसे. बहुत सेवा की है उसने तुम्हारी. अपना पत्नी धरम निभाया है. मुझे यकीन है कि तुम सब ठीक करके लोटोगे. काश मैं भी चल पाती तुम्हारे साथ.” ज़रीना ने कहा

“पहले माहॉल देख लूँ वाहा का. फिर तुम्हे भी ले चलूँगा. चाचा चाची से तो तुम्हे मिलवाना ही है.” आदित्य ने कहा.

आदित्य ज़रीना को होटेल में छ्चोड़ कर चाचा जी के घर की तरफ चल दिया. पैदल ही चल दिया वो. बस कोई 15 मिनिट की वॉकिंग डिस्टेन्स पर था उसके चाचा जी का घर. दिल में बहुत सारे सवाल घूम रहे थे. चेहरे पर शिकन सॉफ दीखाई दे रही थी. ज़रीना से ये सब छुपा रखा था उसने, क्योंकि उसे परेशान नही करना चाहता था. मगर अब उसके दिलो-दिमाग़ को चिंता और परेशानी ने घेर लिया था. उसे खुद नही पता था कि कैसे हॅंडल करना है सब कुछ, हां बस वो इतना जानता था की उसे हर हाल में इस समस्या का समाधान करना है.

आदित्य घर पहुँचा और बेल बजाई तो उसकी चाची ने दरवाजा खोला.

“नमस्ते चाची जी” आदित्य ने पाँव छूते हुवे कहा.

“नमस्ते तो ठीक…तुम ये बताओ समझते क्या हो तुम खुद को. बिना बताए भाग गये थे यहा से…कान खींचने पड़ेंगे तुम्हारे लगता है?” चाची बहुत गुस्से में दिख रही थी.

“चाची जी मुझे माफ़ कर दीजिए…मेरी कुछ मजबूरी थी.” आदित्य गिड़गिदाया.

“आओ अंदर..देखती हूँ क्या मजबूरी थी तुम्हारी.” चाची ने कहा.

आदित्य अंदर आ गया चुपचाप. चाची ने कुण्डी लगा कर आवाज़ दी, “अजी सुनते हो आदित्य आ गया है.”

उस वक्त सिमरन कमरे में सोई हुई थी. चाची की आवाज़ सुनते ही उठ गयी, “आप आ गये…”

सिमरन के साथ निशा भी थी कमरे में. सिमरन ने निशा को कंधे पर हाथ रख कर हिलाया, “उठो तुम्हारे भैया आ गये हैं.”

“आदित्य भैया आ गये?” निशा ने आँखे मलते हुवे कहा.

“हां आ गये हैं. जाओ मिल लो जाकर?” सिमरन ने कहा.

“अरे सबसे पहले आपको मिलना चाहिए…चलिए अभी मिल्वाति हूँ आप दोनो को. बल्कि आप यही रुकिये मैं भैया को खींच कर लाती हूँ यही.” निशा ने कहा.

“नही रूको मिल लेंगे…इतनी जल्दी क्या है?”

“कैसी बाते करती हो भाभी…ज़्यादा नाटक मत किया करो.” निशा कह कर कमरे से बाहर आ गयी.

आदित्य चुपचाप चाचा चाची के साथ सोफे पर बैठा था. चाची डाँट पे डाँट पीलाए जा रही थी उसे, घर से चले जाने की बात को लेकर.

“मम्मी क्यों डाँट रही हो भैया को…आओ भैया भाभी इंतेज़ार कर रही है तुम्हारा.” निशा ने कहा.

आदित्य से कुछ भी कहे नही बना. उसके तो जैसे पैरो के नीचे से ज़मीन निकल गयी ये सुन कर.

“निशा तुम जाओ. आदित्य अभी आएगा थोड़ी देर में” रघु नाथ ने गंभीर आवाज़ में कहा.

“पापा बात क्या है…आप सब लोग गुमशुम क्यों हैं. भैया आपने मुझसे ठीक से बात भी नही की. सब ठीक तो है ना.”

“तुमसे कहा ना आदित्य आ रहा है. जाओ यहा से.” रघु नाथ ने निशा को डाँट दिया.

निशा मूह लटका कर वाहा से चली गयी.

क्रमशः...............................
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Ek Anokha Bandhan--21

gataank se aage.....................

aditya ne ghar ke baahar seedhiyan dalva di aur aas-padosh mein ye clear bhi kar diya ki zarina ushke yaha tenant ban kar rah rahi hai.

“soch raha hun ki tumhaare ghar ki bhi marammat karva dun.” Aditya ne kaha.

“rahne do sabko shak ho jaayega. Ye kaam shaadi ke baad karenge. Balki dono gharo ko jod kar ek bana denge hum.” Zarina ne kaha.

“zarina chacha ji ka telegram aaya tha aaj factory mein. Turant bulaaya hai unhone mujhe mumbai simran se milne ke liye. tum bataao kya karun.”

Zarina ne gahri saans li aur boli, “jaana to padega hi tumhe. Ish samashya ka hal to karna hi hai taaki hum sukh shaanti se rah sakein.”

“haan bahut jaroori hai ish uljhan ko dur karna tabhi hum apne pyar mein aage badh paayenge.”

Zarina rah to rahi thi tenant ke roop mein magar aas-padosh ke log phir bhi ushe ghoor-ghoor kar dekhte the. Jishke kaaran vo gumshum aur pareshaan rahti thi. aditya ke mumbai jaane ke khyaal se vo aur jyada pareshaan ho gayi thi

“aditya mujhe bhi le chalo saath mumbai. Main yaha akeli nahi rah paaungi. Tum dekh hi rahe ho kaisa maahol hai yaha. Ghoor-ghoor kar dekhte hain log mujhe. Lagta hai logo ko shak ho gaya hai hamaare bare mein.”

“zarina chinta mat karo..main mumbai ja raha hun na. Sab theek karke aaunga aur aate hi hum shaadi kar lenge. Jyada din nahi sahna hoga tumhe ye sab. Phir dekhta hun ki kaun ghur kar dekhta hai tumhe. Actually main problem ye hai ki kishi ko bardast nahi ho raha hoga ki ek muslim ladki hindu ke ghar rah rahi hai.”

“haan yahi main problem hai. pata nahi jab hum shaadi karke rahenge phir kish tarah react karenge ye log.”

“tab ki tab dekhenge. Hamein jo karna hai karna hai.”

“aditya mujhe bhi apne saath mumbai le chalo please. Main yaha akeli kya karungi.”

“chalna chaahti ho tum?”

“haan…le chaloge na?”

“tumhaare liye kuch bhi karunga jaan. Chalo samaan pack karlo, tumhe mumbai ghuma kar laata hun.” aditya ne kaha.

“bahut kharcha karva rahi hun tumhaara.”

“paagal ho kya. Sab tumhaara hai. aur factory theek chal rahi hai. aur dhyaan dunga to aur jyada tarrakki karenge.”

“aditya tum bahut atche ho” zarina ne kaha aur kah kar kitchen ki taraf chal di.

“ruko kaha ja rahi ho?”

“khaana banana hai…” zarina hanste huve boli aur kitchen mein aa gayi.

aditya bhi ushke peeche peeche aa gaya.

“aditya pata nahi kyon par dar sa lag raha hai mujhe. Pata nahi ye samashya kaise aur kab dur hogi aur kab mujhe tumhaari patni kahlaane ka haq milega.”

“Vo haq to tumhe kab se hai. phir bhi ek kaam aur kiye deta hun agar koyi doubt hai tumhe to” aditya ne chaaku uthaaya aur ish se pahle ki zarina kuch samajh paati jhat se apne daayein haath ka anghuta cheer diya.

“ye kya kiya aditya…paagal ho gaye ho kya.”

Aditya ne kuch kahe bina zarina ki maang bhar di aur bola, “ab mat kahna ki tum meri patni nahi ho. Jab dil se maan chuke hain hum ek dusre ko pati-patni to aur kya rah gaya hai.”

Zarina aditya ke kadmo mein baith gayi, “aditya mera vo matlab nahi tha. hum dono to ye jaante hi hain. Baat samaaj ki ho rahi hai.”

“Chodo zarina hato ab. had hoti hai kishi baat ki. bekaar ke jhanjat paal rakhein hain tumne apne man mein. Kitna samjhaaun tumhe.” Aditya zarina ko kitchan mein chhod kar baahar aa gaya. Zarina vahi baithi huyi subakti rahi.

zarina khaana bana kar aditya ke paas aayi.

“khaana kha lo aditya.”

“nahi mujhe bhook nahi hai. tum kha lo.”

“atcha sorry baba…aage se aisa nahi kahungi…khaana kha lo please…varna main bhi nahi khaaungi. Vaise bahut shunder lag rahi hai meri maang bhari huyi.”

“maine apne khun se maang bhar di tumhaari phir bhi pata nahi kaun si duvidha mein ho. Koyi majaak nahi kiya tha maine. Bahut maanyata hai ish baat ki hamaare liye.”

“main jaanti hun aditya. Ishi desh mein pali-badhi hun main. Atcha aage se aisa kuch nahi kahungi jish se tumhe dukh pahunche.”

Aditya zarina ke karib aaya aur zarina ke chehre par haath rakh kar bola, “jaan main tumhari har concern samajhta hun. par tumhe pareshaan nahi dekh sakta.”

“sorry aage se aisa nahi hoga…chalo khaana khaate hain.” Zarina mushkura kar boli.

Aditya aur zarina ke liye phir se ye imtehaan ka daur tha. Pahle imtehaan mein vo dono fail ho gaye the magar ushke baad dono ne kuch aisa seekha tha jo ki unhe jeevan bhar kaam aayega. Failure kabhi bekaar nahi jaata. Kuch to vo bhi de hi jaata hai. ye atchi baat thi ki aise mushkil daur mein dono ek saath khade the. Yahi pyar ki sabse badi demand rahti hai agar aap pyar ke safar par chal rahe hain to.

Dono ne shaanti se khaana khaaya. Aur khaana khaane ke baad aditya ne hanste huve kaha, “ab ek sweat dish ho jaaye.”

“sweet dish nahi banaayi…abhi bana kar laati hun kuch.”

“nahi…nahi ruko main majaak kar raha tha. vaise kahte hain ki chumban sweet hota hai.”

“shrimaan vo bhi uplabdh nahi hai ish samay. Thoda vakt lagega.” Zarina mushkura kar vaapis kitchen ki aur chal di.

“kitna vakt lagega taiyaar hone mein.?” Aditya ne pucha.

“kya sweet dish ya…” zarina ne mud kar pucha.

“dono ke baare mein bata do.”

“sweet dish abhi 10 minute mein bana deti hun. usme kitna time lagega pata nahi.” Zarina hanste huve kitchen mein ghuss gayi.

“oh zarina kitni pyari ho tum. Aisi hi rahna hamesa. Mujhe chumban ki jaldi nahi hai jaan. Bas majaak kar raha hun tumse. Tum meri apni ho na itna majaak to kar hi sakta hun. Bura mat maan-na.” aditya ne man hi man kaha.

“aditya mujhe sharam aane lagi hai ab tumhaare saath. Thoda dar bhi lagne laga hai tumse. Par sab kuch atcha bhi lag raha hai. tum yu hi rahna hamesa mere liye. Chumban agar bahut jaroor hai to le lo. Par naraaj mat hona mujhse. Jee nahi paaungi tumhaare bina.” Zarina ki aankhe nam ho gayi sochte sochte.

Ye bhi pyar ka ajeeb sa roop hai. bin kahe bahut saari baate hoti hain aur samjhi bhi jaati hain. Zarina aur aditya lagbhag ek si baate soch rahe the. This is really great.

Agle din aditya aur zarina mumbai ke liye ravaana ho gaye. Dopahar 3 baje pahunch gaye vo mumbai. Colaba mein ghar tha aditya ke chacha ji ka. Ishliye vahi ek hotel mein ruk gaye aditya aur zarina. Kuch der araam karne ke baad aditya ne kaha, “jaan main mil aata hun simran se. tum yahi ruko.”

“haan mil aao aur shaanti se kaam lena. Ushki koyi galti nahi hai. kuch bhala bura mat bol dena ushe. Bahut seva ki hai ushne tumhaari. Apna patni dharam nibhaya hai. Mujhe yakin hai ki tum sab theek karke lautoge. Kaash main bhi chal paati tumhaare saath.” Zarina ne kaha

“pahle maahol dekh lun vaha ka. Phir tumhe bhi le chalunga. Chacha chachi se to tumhe milvaana hi hai.” aditya ne kaha.

Aditya zarina ko hotel mein chhod kar chacha ji ke ghar ki taraf chal diya. Paidal hi chal diya vo. Bas koyi 15 minute ki walking distance par tha ushke chacha ji ka ghar. dil mein bahut saare sawaal ghum rahe the. Chehre par shikan saaf deekhayi de rahi thi. zarina se ye sab chupa rakha tha ushne, kyonki ushe pareshaan nahi karna chaahta tha. magar ab ushke dilo-deemag ko chinta aur pareshaani ne gher liya tha. ushe khud nahi pata tha ki kaise handle karna hai sab kuch, haan bas vo itna jaanta tha ki ushe har haal mein ish samashya ka samadhaan karna hai.

Aditya ghar pahuncha aur bell bajaayi to ushki chachi ne darvaaja khola.

“namaste chachi ji” aditya ne paanv chute huve kaha.

“namaste to theek…tum ye bataao samajhte kya ho tum khud ko. bina bataaye bhaag gaye the yaha se…kaan kheenchne padenge tumhaare lagta hai?” chachi bahut gusse mein dikh rahi thi.

“chachi ji mujhe maaf kar dijiye…meri kuch majboori thi.” aditya gidgidaaya.

“aao ander..dekhti hun kya majboori thi tumhaari.” Chachi ne kaha.

Aditya ander aa gaya chupchaap. Chachi ne kundi laga kar awaaj di, “aji shunte ho aditya aa gaya hai.”

Ush vakt simran kamre mein shoyi huyi thi. chachi ki awaaj shunte hi uth gayi, “aap aa gaye…”

Simran ke saath nisha bhi thi kamre mein. Simran ne nisha ko kandhe par haath rakh kar hilaaya, “utho tumhare bhaiya aa gaye hain.”

“aditya bhaiya aa gaye?” nisha ne aankhe malte huve kaha.

“haan aa gaye hain. Jaao mil lo jaakar?” simran ne kaha.

“arey sabse pahle aapko milna chaahiye…chaliye abhi milvaati hun aap dono ko. balki aap yahi rukiye main bhaiya ko kheench kar laati hun yahi.” Nisha ne kaha.

“nahi ruko mil lenge…itni jaldi kya hai?”

“kaisi baate karti ho bhabhi…jyada naatak mat kiya karo.” Nisha kah kar kamre se baahar aa gayi.

Aditya chupchaap chacha chachi ke saath sofe par baitha tha. chachi daant pe daant peelaye ja rahi thi ushe, ghar se chale jaane ki baat ko lekar.

“mammi kyon daant rahi ho bhaiya ko…aao bhaiya bhabhi intezaar kar rahi hai tumhaara.” Nisha ne kaha.

Aditya se kuch bhi kahe nahi bana. Ushke to jaise pairo ke neeche se jamin nikal gayi ye shun kar.

“nisha tum jaao. Aditya abhi aayega thodi der mein” raghu nath ne gambhir awaaj mein kaha.

“papa baat kya hai…aap sab log gumshum kyon hain. Bhaiya aapne mujhse theek se baat bhi nahi ki. Sab theek to hai na.”

“tumse kaha na aditya aa raha hai. jaao yaha se.” raghu nath ne nisha ko daant diya.

Nisha muh latka kar vaha se chali gayi.

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एक अनोखा बंधन--22

गतान्क से आगे.....................

निशा के जाने के बाद चाची ने कहा, “बेटा क्या ये सच है कि तुम गोना नही करना चाहते. सिमरन को छ्चोड़ देना चाहते हो.”

“चाची जी मैने चाचा जी को सब बता दिया है.”

“हां इन्होने बताया है मुझे…मगर मैं तुमसे सुन-ना चाहती हूँ.”

“हां ये सच है. मैं ये बाल-विवाह नही निभा सकता. मैने कभी इस शादी को शादी नही माना.”

“मतलब हम सब बडो की कोई परवाह नही तुम्हे. तुम्हारे मम्मी, पापा जींदा होते तो पता नही क्या हाल होता उनका ये सब सुन कर. क्या तुम्हे अंदाज़ा भी है कि क्या ठुकराने जा रहे हो तुम. अरे हीरा है सिमरन हीरा. लाखो में एक है वो.”

“मैं किसी और से प्यार करता हूँ और उसे अपनी पत्नी मानता हूँ. मैं ये गुड्डे-गुडियों का खेल नही निभा सकता.” आदित्य ने कहा.

“ये सुनते ही चाचा और चाची की आँखे फटी रह गयी.”

“मुझे तो पहले से ही शक था इस बात का. बहुत बढ़िया बेटा.” चाचा ने कहा.

“कौन है वो करम जली जो हमारी सिमरन का घर उजाड़ने पर तुली है.” चाची ने कहा.

चाची बहुत गुस्से में थी इश्लीए आदित्य ने चुप रहना ही सही समझा.

“मतलब की तुम्हारा फ़ैसला अटल है.” चाचा ने कहा.

“जी हां…मैं शादी करूँगा तो अपनी मर्ज़ी से और वो भी उस से जिसे मैं बहुत प्यार करता हूँ.इस बाल-विवाह को मैं नही मानता.” आदित्य ने कहा.

“जाओ बेटा ये सब खुद ही कहो सिमरन से जाकर. हम ये सब नही बोल पाएँगे.” रघु नाथ ने कहा और निशा को आवाज़ दी ज़ोर से “निशा!”

निशा मूह लटकाए वापिस आई वाहा और बोली, “जी पापा.”

“आदित्य को ले जाओ सिमरन के पास. ये कुछ ज़रूरी बात करना चाहता है उस से.”

“आओ भैया…” निशा ने कहा.

आदित्य चुपचाप उठ कर चल दिया वाहा से.

“भैया कौन सी ज़रूरी बात है?” निशा ने पूछा.

“छ्चोड़ वो सब…तेरी पढ़ाई कैसी चल रही है.”

“अच्छी चल रही है. लीजिए आ गया भाभी का कमरा. आप दोनो बात करो मैं मम्मी, पापा के पास बैठती हूँ.” निशा कह कर चली गयी.

आदित्य कमरे में दबे पाँव दाखिल हुवा. उसका दिल ज़ोर-ज़ोर से धड़क रहा था. सिमरन बेड के पास खड़ी थी नज़रे झुकाए. अंजाने में ही आदित्य की निगाह सिमरन के चेहरे पर पड़ी. वो देखता ही रह गया उसे. एक आकर्षक नयन नक्स पाया था सिमरन ने. चेहरे पर प्यारी सी मासूमियत थी.

आदित्य ने उसके कदमो की तरफ देखा और बोला, “कैसी हैं आप.”

“मैं ठीक हूँ. आप कैसे हैं.” सिमरन भी आदित्य के कदमो को ही देख रही थी.

“क्या खेल खेला ना किस्मत ने. कितनी जल्दी हम दोनो की शादी हो गयी थी. उस उमर में हमें शादी का मतलब भी नही पता था. बहुत रो रही थी आप, याद है मुझे. पता नही क्या ज़रूरत थी इतनी जल्दी ये सब करने की.” आदित्य ने अपनी बात कहने के लिए भूमिका तैयार की.

“हां हमारे अपनो ने बचपन में ही हमें इस रिश्ते में बाँध दिया.”

“आप ही बतायें बाल-विवाह कहा तक जायज़ है. गैर क़ानूनी है ये. फिर भी हम लोग नही मानते.”

“बाल-विवाह बिल्कुल जायज़ नही है.”

“तो आप मानती हैं कि हम लोगो के साथ ग़लत हुवा. देखिए अब हम बड़े हो चुके हैं. और हमें अपना जीवन साथी चुन-ने का हक़ होना चाहिए. मैं अब घुमा फिरा कर नही कहूँगा. मैं ये बाल-विवाह नही निभा सकता हूँ. आप भी इस बंधन से खुद को आज़ाद समझिए.”

ये सुनते ही सिमरन के पैरो के नीचे से जैसे ज़मीन निकल गयी. बहुत कुछ कहना चाहती थी वो मगर कुछ नही बोल पाई. होन्ट जैसे सिल गये थे उसके. आदित्य का दिल भी बहुत ज़ोर-ज़ोर से धड़क रहा था. वो फ़ौरन वाहा से भाग जाना चाहता था.

“मुझसे कोई भूल हुई हो तो मुझे माफ़ कर दीजिएगा प्लीज़. चलता हूँ मैं.” आदित्य मूड कर जाने लगा

“सुनिए…” सिमरन ने हिम्मत करके आवाज़ दी.

आदित्य वापिस मुड़ा और बोला, “कहिए…मैं आपकी बात सुने बिना नही जाउन्गा यहा से.”

“बेशक बाल-विवाह ग़लत है और रहेगा. उस वक्त मैने भी वो खेल एंजाय नही किया. मगर मेरी परवरिश कुछ इस तरह की गयी कि आपको एक देवता बना कर मेरे दिल में बैठा दिया गया. बचपन से यही सिखाया गया कि पति परमेस्वर होता है इश्लीए आदित्य तुम्हारा परमेश्वर है. मैं सब कुछ स्वीकार करती गयी खुले मन से. कब आपसे प्यार हो गया…पता ही नही चला. और इतना प्यार कर बैठी आपसे कि अपने पेरेंट्स से लड़ बैठी आपके लिए. वो नही चाहते थे कि मैं आपके लिए मुंबई आउ. मगर मैं अपनी ज़िद पर आडी रही और उन्हे मुझे भेजना पड़ा आपके पास. मुझे एक मोका तो दे दीजिए प्लीज़. बाल-विवाह तो ग़लत है मगर मेरा प्यार ग़लत नही है. शादी चाहे जैसे भी हुई हो मगर मैं आपको तन,मन धन से अपना पति मानती हूँ.”

“ये सब कह कर तो गुनहगार बना दिया आपने मुझे. काश ये धरती फॅट जाए और मैं इसमें समा जाउ.” आदित्य सर पकड़ कर बैठ गया बिस्तर पर.
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Re: एक अनोखा बंधन

Post by rajaarkey »

सिमरन तुरंत कदमो में बैठ गयी आदित्य के और बोली, “नही प्लीज़ ऐसा मत बोलिए. मैने कुछ ग़लत कहा तो उसके लिए माफी चाहती हूँ आपसे पर आप अपने लिए ये सब ना बोलिए.”

“सिमरन उठ जाओ प्लीज़. मेरे कदमो में बैठ कर और गुनहगार मत बनाओ मुझे. सारी ग़लती मेरी ही है. काश इस शादी को मैं भी आपकी तरह शादी स्वीकार कर लेता तो आज ये दिन नही देखना पड़ता.

बहुत सुंदर हो आप. उस से भी ज़्यादा सुंदर आपका व्यक्तित्व है. कोई भी इंसान आपके जैसे जीवन साथी को पाकर खुद को धन्य महसूस करेगा. मगर मैं आज ऐसी जगह खड़ा हूँ जहा मैं चाह कर भी आपको स्वीकार नही कर सकता.”

“ऐसा क्यों है क्या बता सकते हैं मुझे.?” सिमरन ने पूछा.

“जिस तरह आपने मुझे अपने दिल में बैठा रखा है उसी तरह मैने अपने दिल में ज़रीना को बैठा रखा है…और मैं उसके बिना जी नही सकता. वो मेरी जींदगी है. अब तुम ही बताओ मैं क्या करूँ. तुम्हार साथ बचपन में शादी हुई थी. ज़रीना के साथ प्यार ने शादी करवा दी मेरी. खून से माँग भरी है मैने उसकी. तुम मुझे अपना पति मानती हो. और मैं ज़रीना को पत्नी मानता हूँ. तुम ही बताओ अब क्या किया जाए.”

तभी अचानक आदित्य की चाची दाखिल हुई कमरे में. चाची को देख कर सिमरन फ़ौरन आदित्य के कदमो के पास से उठ कर खड़ी हो गयी.

“मैं बताती हूँ क्या करना है. चलो अभी वापिस गुजरात. मिलना चाहती हूँ मैं इस ज़रीना से. देखूं तो सही क्या बला है वो, जो कि किसी और का घर उजाड़ने पर तुली है.”

“उसकी कोई ग़लती नही है चाची. सारी ग़लती मेरी है. और वो मेरे साथ ही आई है मुंबई. ”

“तो लेकर आओ उसे. या फिर हम चलते हैं होटेल में.”

“उसका इस सब से कोई लेना देना नही है. उसकी कोई ग़लती नही है.”

“बेटा जिसे तुम पत्नी मानते हो और जिस से शादी करना चाहते हो क्या उसे हमसे नही मिलवाओगे.?”

सिमरन एक तरफ खड़ी चुपचाप सब सुन रही थी.

“मैं भी चाहता हूँ कि आप सब मिलें उस से. और हमारे प्यार को स्वीकार करें.” आदित्य ने कहा.

“तो जाओ बेटा उसे अभी इसी वक्त ले आओ. हम मिलना चाहते हैं उस से.” चाची ने कहा.

“हां भैया ले आओ उसे. देखें तो सही कौन है वो जो हमारी प्यारी भाभी की जगह लेना चाहती है.” निशा ने कहा.

“बाद में मिल लेना शांति से अभी नही.” आदित्य ने कहा.

“ले आईए उन्हे. मैं भी उनसे मिलना चाहती हूँ.” सिमरन ने कहा.

आदित्य ने सिमरन की आँखो में देखा और बोला, “क्या आप सच में मिलना चाहती हैं उस से.”

“हां..जिस से आप इतना प्यार करते हैं, उस से मिलना शोभाग्य होगा मेरे लिए.” सिमरन ने कहा.

“ठीक है मैं अभी उसे लेकर आता हूँ. आप सभी को मेरी ज़रीना से मिल कर ख़ुसी होगी.” आदित्य उठ कर चल दिया.

आदित्य के जाने के बाद चाची ने सिमरन को गले से लगा लिया और बोली, “बेटा तुम चिंता मत करो. आने दो इस करम जली को. अकल ठिकाने लगाउन्गि मैं उसकी. हमारे सीधे साधे आदित्य को फँसा लिया. सोचा होगा अच्छा पैसा है, फॅक्टरी है और क्या चाहिए. तू फिकर मत कर आदित्य तेरा ही रहेगा. नाम से तो कोई मुस्लिम लगती है. मुस्लिम लड़की को तो अब बनाएँगे हम अपने घर की बहू.”

“पर चाची क्या फ़ायडा इस सब का. वो उसे प्यार करते हैं मुझे नही”

“पागल मत बनो तुम पत्नी हो आदित्य की और तुम्हे अपने हक़ के लिए लड़ना होगा. केयी बार अपना हक़ लड़ कर ही मिलता है.” चाची ने कहा.

“हां भाभी मम्मी ठीक कह रही हैं. हमें पता है कि भैया सिर्फ़ आपके साथ खुश रहेंगे. ये लड़की ज़रूर कोई चालबाज़ है जो कि खाता पीता घर देख कर एक शादी शुदा लड़के के पीछे पड़ गयी और अपने प्रेम जाल में फँसा लिया. देखो बेसरमी की भी हद कर दी..भैया के साथ यहा चली आई. ज़रूर उसके परिवार वाले भी शामिल होंगे उसके साथ.” निशा ने कहा.

“मुझे कुछ समझ नही आ रहा…पता नही ऐसा मेरे साथ ही क्यों हो रहा है.”

“सब ठीक हो जाएगा बस हिम्मत मत हारना.” चाची ने कहा.

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क्रमशः...............................
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