पार्टी के बाद

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koushal
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पार्टी के बाद

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पार्टी के बाद

पार्टी से लौटते वक़्त, मैं कार थोड़ा तेज ही चला रही थी|

एक तो देर हो जाई थी, दूसरा, रात के तीन बजने वाले थे, मेरा घर रेलवे फाटक के दूसरी ओर था और एक बार माल गाड़ियों की आवाजाही शुरू होने की वजह से फाटक बंद हो गया; तो कम से कम आधा घंटा या फिर उससे भी ज़्यादा वक़्त के लिए अटक के रहना पड़ेगा|

मैं सोच रही थी की घर जा के, ब्लैक डॉग विस्की की बोतल ख़त्म कर दूँगी क्यों की मेरी प्यास अधूरी ही रह गई थी|

यह पार्टी “फ्रेंडशिप क्लब” ने आयोजित की थी, यहाँ कई तरह के “बोल्ड “ संपर्क बनते हैं| पार्टी में कई आदमियों ने मेरे साथ डांस किया था, लेकिन इन सब का सिर्फ़ एक ही मकसद था, मुझे छूना|

चूँकि मैने जान बूझ कर उस दिन सिर्फ़ एक हॉल्टर पहन कर गई थी, इसलिए शायद मैं बहुत लोगों की दिलरूबा बनी हुई थी| मेरा बदन सामने से तो ढाका हुआ था पर मेरी पीठ बिलकुल नंगी थी| हॉल्टर पहनने की वजह से मैने ब्रा नही पहनी थी... मेरे बड़े-बड़े स्तन मेरे हर कदम पर थिरक रहे थे... शायद इस लिए इतने लोग मेरे साथ डांस करने के लिए बेताब हो रहे थे, उन्हे मेरी नंगी पीठ पर हाथ फेरने का मौका जो चाहिए था और वह लोग चाहते थे की मुझे अपने सीने से चिपटा मेरे स्तानो की छूअन का मज़ा ले सके| लेकिन मैने अपने बाल खोल रखे थे| कुछ लोग इसी लिए दुआ कर रहे थे की मैं एक जुड़ा बाँध लूँ, ताकि उन्हे मेरी नंगी पीठ की पहुँच मिल सके|

एक काले रंग के हाल्टर में गोरी चिट्टी लड़की को देखकर किसका दिल नहीं मचल उठेगा?… ऐसे ही एक जनाब थे डाक्टर डिसिल्वा… जो चन्द ही मिनटों मे मेरा मेरा दीवाना बन गए थे…

एक आदमी के साथ डांस करने के बाद जैसे ही मैं बार काउंटर पर पहुँची, डाक्टर साहब मेरे पास आ कर बोले, “माफ़ कीजिएगा मिस, के आप मेरे साथ एक ड्रिंक लेना पसंद करेंगी?”

“जी ज़रूर, आपकी तारीफ?” आख़िर मैं यहाँ तफ़री का लिए आई थी, एक उम्र से दुगना दिखने वाला मर्द अगर मेरे साथ बैठ के पीना चाहे तो हर्ज़ क्या है? इस अय्याशी की महफिल में मुझे मुफ्त की शराब तो पीने को मिल रही है|

“मेरा नाम डाक्टर डिसिल्वा है, मैं एक स्त्री रोग विशेषज्ञ हूँ|”

“डाक्टर साहब, मेरा नाम आएशा है, मैं एक स्त्री हूँ, लेकिन मुझे कोई रोग नही है... हा हा हा हा ...”

“हा हा हा हा”

थोड़ी ही देर में मैं डाक्टर साहब के साथ घुल मिल गई थी|

डाक्टर साहब बोले, “अगर आप बुरा ना माने तो मैं आप जैसे खूबसूरत लड़की के साथ डांस करना चाहता हूँ| पर मेरी एक विनती है आप से...”

“जी बोलिए...”

“आप अपने बालों को जुड़े मे ज़रूर बाँध लीजिएगा...”

“क्यों? क्या आपको मेरे खुले बाल अच्छे नही लग रहे?”
koushal
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“जी, नही... ऐसी बात नही है... खुले बालों में आप बहुत सुंदर दिख रहीं है... बस मैं चाहता हूँ कि आप मेरे साथ डांस करते वक़्त और सैक्सी दिखें... आपकी पीठ नंगी रहेगी तो हम दोनो को डांस करने में मज़ा आएगा... आपने ब्रा तो नही पहन रखी होगी?”

“क्यों?”

डाक्टर साहब थोड़ा सपकपा गये, “जी, मिस कुछ नही, मैने ऐसे ही पूछ लिया...”

“जी, नही...”

“बहुत अच्छी बात है...”

मैं हंस पड़ी, मैने कहा, “मैं जानती हूँ डाक्टर साहब... आप मेरे बूब्स (स्तनो) पर हाथ फेरना चाहते हैं...”

डाक्टर साहब भी हंस पड़े, क्योंकि उनका इरादा यही था|

मैं बोली, “ठीक है, मैं भी यहाँ तफ़री के लिए आई हूँ... मुझे कोई ऐतराज़ नही है... पर आप ज़ोर से दबाना मत, दर्द होती है…”



मैंने एक बड़ा सा घूँट ले करके अपनी ड्रिंक खत्म की और फिर अपने बालों को समेट कर जुड़े में बांधा, फिर मैंने डॉक्टर साहब का हाथ पकड़ कर बोली, “चलिए डॉक्टर साहब, डांस करते हैं”

डॉक्टर साहब ने अपनी ड्रिंक आधी ही छोड़ दी और मेरे कूल्हों पर हाथ फेरते हुए डांस फ्लोर की तरफ बढ़े... डाक्टर साहब भी मेरे से सॅंट कर, अपने दोनो हाथों से मेरी नंगी पीठ को सहलाते हुए डांस कर रहे थे| हम दोनों के गाल सटे हुए थे मैंने जानबूझकर अपना सीना उनके सीने से चिपका रखा था| वह मौका मिलते ही मेरे कूल्हों को दबाने से भी बाज़ नही आए... मुझे इस बात से कोई आपत्ति नही थी| मैं यहाँ आई इसलिए थी- - तफ़री लेने के लिए|

अचानक मुझे एहसास हुआ की दो टाँगों के बीच में एक अजीब सी चीज़ का दबाव पड़ रहा है|

मुझे समझते देर नही लगी की, डाक्टर साहब का मेरे उपर दिल आ गया है, और उनका गुप्त अंग तन के खड़ा हो गया है|

“मिस, क्या आप मेरे साथ कुछ वक़्त अकेले में बिताना पसंद करेंगी?” उन्होने मुझ से पूछा|

“जी ज़रूर, पर मैं सिर्फ़ एक क़ुइक बैंग, के मूड मे ही हूँ”

“काश हर लड़की आप जैसी समझदार होती”, डॉक्टर साहब की बांछे खिल गई थी उन्हें तो यकीन ही नहीं हो रहा था कि मैं इतनी जल्दी मान जाऊंगी|

एक एक और ड्रिंक लेने के बाद हम लोग स्वीमिंग पूल की तरफ गये|

वहाँ जैसे डाक्टर साहब पर जैसे हैवान हावी हो गया, वो मुझे पागलों की तरह चूमने और चाटने लगे| मेरी पैंटी उतरते वक़्त उन्होने उसे फाड़ ही डाली... यह चार सौ रुपय की पैंटी थी... उनका यह रवैया बदलने के लिए मैने कहा, “डाक्टर साहब... रुकिये, मैं स्कर्ट उपर करती हूँ, आप पैंट तो उतरिए?”

डाक्टर साहब मेरे होंठों को चूसते हुए अपनी बैल्ट खोरकर अपना पैंट उतरने लगे, उसके बाद मैं उनके आगोश मे थी|

“आपके के पास कंडोम तो हैं ना, डाक्टर साहब?”

“चुप हरामजादी, तू तो दूसरी रंडियों की तरह यहाँ चुदने आई है… कॉन्डोम का क्या लेना देना?”

मैं एकटक उनकी तरफ कुछ देर तक देखती रही.... जी तो कर रहा था कि मना कर दूँ लेकिन तबतक मैं इतनी गरम हो चुकी थी कि मुझे भी थोड़ी शांति की ज़रूरत थी इसलिए इसके बाद मैं कुछ नही बोली| डाक्टर साहब ने मेरे बदन का निचला हिस्सा बिल्कुल नंगा कर दिया और वह मेरे जिस्म जानना अंग मे अपना मर्दाना अंग घुसने ही वाले थे कि उनका मोबाइल फ़ोन बाज उठा|

यह शायद उसकी बीवी होगी, क्योंकि मुझे फ़ोन से एक औरत की आवाज़ सुनाई दे रही थी... वह काफ़ी गुस्से में थी| फ़ोन जैसे तैसे रखने के बाद उन्होने मुझ से कहा, “माफ़ करना आएशा, मुझे जाना होगा...”

मैने देखा की उनका लिंग अब बिल्कुल ढीला पद गया है| मुझे बड़ा गुस्सा आया मैने कहा, “हरामजादे, लड़की को चोदने के बहाने नंगा कर के बोलता है की जाना होगा? तेरा खड़ा नही होता क्या?”
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“माफ़ करो आएशा, मेरी बीवी का फ़ोन आया था और देखो वह जो बंदा इस तरफ आ रहा है, वह इस होटेल का मैनेजर है और रिश्ते में मेरा साला, अगर उसने मुझे इस हालत मे देख लिया तो...”

मैने डाक्टर साहब पर दो तमाचे कस दिए, “मादरचोद, अब बता, किसी और से चुदने के लिए क्या मैं पैसे खर्च करूँ?”

डाक्टर साहब को भी गुस्सा आ गया उन्होने ने मेरे बालों को पकड़ कर मेरा गला दबाते हुए कहा, “सुन कुतिया, मौका रहता तो तुझे चोद के मैं तेरा कीमा बना डालता... मौके का इंतज़ार करना... अभी मुझे जाना होगा हरामजादी”


बस फिर क्या था, दो या तीन ड्रिंक लेने के बाद, मैने पार्टी से निकालने का फ़ैसला किया और अब मैं कार चला रही थी, और डाक्टर को कोस रही थी|

लेकिन मेरी किस्मत ने मेरे को फिर से धोखा दे दिया, हमेशा की तरह रेल का फाटक बंद हो चुका था और अब कोई चारा नही था, मुझे आधा या पौना घंटा यहीं इंतज़ार करना ही पड़ेगा क्योंकि जब तक माल गाड़ियाँ नही गुजर जातीं; फाटक खुलनेवाला नही था |

मैंने मायूसी की एक साँस ली और कार में लगे रेडियो को आन करने गई; तब मैने देखाकी चारों तरफ एक अजीब सा सन्नाटा छाया हुआ था| सिर्फ़ धीरे धीरे आती जाती रेल गाड़ियों के अलावा और कहीं से कोई भी आवाज़ नही आ रही थी| आस पास दूसरा कोई आदमी भी नही था| अब मुझे थोड़ा-थोड़ा डर सा लगने लगा|

उस वक़्त रात के साढ़े तीन बाज रहे थे|

खैर, मैने एक सिगरेट सुलगाई और एक लंबा सा कश लिया और सीट को पीछे की तरफ थोड़ा झुका कर के आँखे मूंद के इंतेज़ार करने लगी की कब फाटक खुलेगा|

ना जाने कितनी देर मैं ऐसे अधलेटी अवस्था मे थी, मेरा ध्यान तब बटा जब मुझे किसीने पुकारा, “ए लड़की, मुझे भी एक बीड़ी पीला ना”

मैने देखा की एक बुजुर्ग भखारी मेरी गाड़ी की खिड़की के पास खड़ा है और वह शायद काफ़ी देर से मुझे देख रहा था|

“यह बीड़ी नही है बाबा, सिगरेट है... आप पिएँगे?”

“हाँ... हाँ... दे ना”

मैने अपना जूठा सिगरेट जिसके मैने दो या तीन ही कश लिए थे, उसे दे दिया|

“इतनी रात को यहाँ क्या कर रही है?” भखारी ने मेरे से पूछा

“फाटक खुलने का इंतेज़ार कर रही हूँ, बाबा”

“ठीक है, ठीक है”, भिखारी कुछ बेताब सा हो रहा था, “तू दारू पी कर आई है?”

शायद मुझमें से महक आ रही थी| अब मुझे थोड़ी मस्ती सूझी, “हाँ बाबा, क्या करूँ, एक आदमी ने मुझे पीला दिया... पर आप किसी से कहना नही…”

“ठीक है, ठीक है... कुछ पैसे हैं तेरे पास?” भिखारी ने पूछा

“पैसे?”

“हाँ, हाँ पैसे...”

“जी देखती हूँ”, मैने पर्स में पैसे खोजने का नाटक किया, पर भखारी की नज़र बचाकर मैने एक दस का नोट अपनी मुट्ठी मे छिपा लिया| मैने ध्याने से आस पास देखा, दूर दूरतक कोई नही था, फाटक के पास आती जाती माल गाड़ियाँ और स्ट्रीट लाइट की रौशनी में मैं और वह भिखारी अकेले थे|
koushal
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मुझे हल्का हल्का नशा तो हो रखा ही, मैने अपनी मस्ती को थोड़ा आगे बढ़ाने की सोची,”माफ़ करना बाबा... मेरे पर्स में तो पैसे नही हैं”

“अपने ब्लऊज मे देख, मुझे पता है, तेरे जैसी लाड़िकियाँ और औरतें ब्लऊज में भी पैसे रखती हैं”, भिखारी ने कहा, वह मेरे हॉल्टर को ब्लऊज कह रहा था|

“मेरे जैसी लड़कियाँ? क्या मतलब?” मैं सचमुच थोड़ा हैरान हो गई|

“मतलब बड़े बड़े मम्मे वाली”

“हाय दैया...”, मैने शरमाने का नाटक किया, “ठीक है देखती हूँ”

यह कह कर मैने, अपने हॉल्टर का स्ट्रैप जोकि मेरी गर्दन पर बँधा हुआ था, उसे खोल दिया और अपना जानना सीना उसके सामने नंगा कर दिया|

मेरा जुड़ा भी खुल गया, बालों से मेरा एक वक्ष स्थल धक गया, मैं अंजान होते हुए बोली, “बाबा आपने ठीक कहा था, लीजिए, एक दस का नोट मिल गया मुझे|”

भिखारी ने दस का नोट मेरे से ले लिया पर उसकी आँखे मेरे मम्मो पर ही टिकी थीं|

“हाय दैया...”, मैने फिर शरमाने का नाटक किया, “बाबा, मैं तो नशे में भूल ही गये थी की मैने अंदर कुछ नही पहना, दैया रे दैया... आपने तो मुझे नंगा देख लिया”

“नही, मैने तुझे नंगा नही देखा,”

“क्या मतलब?”

“बताता हूँ, पहले एक बात बता लड़की... तेरे पास एक और सिगरेट है क्या?”

“जी हाँ”

“और दारू?”

“हाँ जी पर, पानी नही है बाबा”

“पानी मेरी कुटिया मे है... चल मेरी कुटिया में चल... फाटक खुलने में अभी आधा घंटा और देर है... मेरे साथ बैठ के दारू पी ले... लेकिन जब तो अपने सारे कपड़े उतार देगी तभी मैं समझूंगा कि मैंने तुझे नंगा देखा है…”

“मैं अगर आप की कुटिया में जा कर के नंगी हो गई तो क्या आप मुझे चोद देंगे?”

“हाँ, मैं तुझे चोदने के लिए ही कुटिया में लेकर जा रहा हूँ, अगर मैं काहूं तो यही. तुझे चोद सकता हूँ पर कुछ लिहाज कर रहा हूँ, तेरे बाल और मम्मे देख कर मेरा लौड़ा खड़ा हो गया है, पर तुझे कोई एतराज़ है क्या...?


कुछ सोच कर मैने कहा, “अगर मैं नंगी हो कर आपका मुठ मार (हस्तमैथुन) दूं तो?”

“नही... मैं तुझे चोदना चाहता हूँ, मना मत करना... काफ़ी दीनो बाद मैने तुझ जैसी कमसिन लड़की के नंगे मम्मे और खुले लंबे बॉल देखें हैं... मैं तेरे साथ जाबरदस्ती नही करना चाहता हूँ...”

मैने उपर से नीचे तक भिखारी को देखा| उसके बदन गंदा था और उसके बदन से बदबू भी आ रही थी, मैं ऐसे आदमी को कैसे अपने उपर लेटने दूं? आज तक जीतने लोगों ने मेरे साथ संभोग किया; सब ने मुझे चूमा चाटा... मुझे भी बड़ा मज़ा आया... लेकिन वे सब स्टॅंडर्ड के थे... यह सोचते हुए मैं कुछ देर तक उसको देखती रही|

फिर मुझे याद आया की मैने कुछ हफ्ते पहले परिवार नियोजन वाली बहन जी से निरोध के दस कॉंडम वाला पैकेट लिया था| जिस में से सिर्फ़ दो ही इस्तेमाल हुए थे...

“क्या सोच रही है, लड़की?” मुझे ऐसे सोचते हुए देख कर शायद वह भिखारी थोड़ा उतावला हो रहा था| शायद उसे इस बात की फ़िक्र थी कि मैं मना ना कर दूँ|

“जी कुछ नही...”

“मैं तुझे चोदना चाहता हूँ... मेरी बात समझ रही है ना... तेरी चूत में अपना लौड़ा डाल के...”

“हाँ, हाँ... मैं पहले भी चुद चुकी हूँ...”
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"किससे? अपने पति से?"

"जी, नहीं... मैं... वह..." मैं कहते- कहते रुक गई|

“कोई बात नही... तो फिर देर मत कर और चल मेरे साथ...” शायद उस भिखारी को इस बात से कोई मतलब नहीं थी कि मैं किसके साथ सोई हुई हूं.... उसे तो बस अपने दिल का अरमान पूरा करना था|

“ठीक है, मैं आपके साथ चालूंगी, आपके सामने नंगी हो कर बैठ के आप के साथ दारू भी पीउँगी, मेरे पास प्लास्टिक के दो गिलास भी हैं... पर आप मुझे चोदते वक़्त... निरोध का इस्तेमाल करेंगे और... मैं आपकी तरफ पीठ करके घुटनो के बल बैठ के झूक जाउंगी, और आप मुझे पीछे से... चोद देना...”

“मैं तो तुझे अपने नीचे लिटाना चाहता था... पर तू कहती है तो ठीक है... मैं तुझे वैसे ही चोदने के लिए तैयार हूँ... तेरे जैसी लड़की नसीबवालों को ही मिलती है|”

“आप वादा कीजिए, मैंने जैसा कहा आप मुझे वैसे ही चोदेंगे...”

“हाँ...हाँ...हाँ... बिल्कुल... बिल्कुल... बिल्कुल...”

मैने गाड़ी साइड में पार्क की एक प्लास्टिक के बैग में गाड़ी की चाबी, शराब की बोतल जिसमें करीब करीब तीन चौथाई शराब बाकी थी, सिगरेट का पैकेट, माचिस, दो प्लास्टिक के गिलास और निरोध का पैकेट लेकर भिखारी के साथ चल दी, डाक्टर साहिब की छुयन की गर्मी मेरे बदन में बाकी थी, मैं उसे उतारना चाहती थी| आज अगर और कोई मिला नही तो यह भिखारी ही सही...

मुझे इस बात की फिक्र लगी हुई थी कि उस भखारी के साथ जाते हुए मुझे कोई देख ना ले, इसलिए मैं बार-बार इधर उधर मुड़ मुड़ कर देख रही थी... पर आसपास कोई भी नहीं था... बस माल गाड़ी के डब्बे धीरे धीरे बंद फाटक के पर गुज़र रहे थे...

भिखारी की झोपड़ी पास ही में थी, उसमे कोई दरवाज़ा नही था, सिर्फ़ छोटा सा लकड़ी का बोर्ड ताकि उसके घर में कुत्ता ना घुस जाएँ और किसी पुराने से मैले से बोरे का एक पर्दा...

मैं जैसी ही अंदर घुसी, भिखारी ने कहा, “चल लड़की, अब नंगी हो जा…”

मैने एक आज्ञाकारी लड़की की तरह अपना हॉल्टर उतार दिया, मैने ब्रा नही पहन रखी थी और डाक्टर साहब ने तो मेरी पैंटी फाड़ ही दी थी, हॉल्टर उतारते ही उसके सामने बिल्कुल नंगी हो गई|

भिखारी ने मेरे हाथ से मेरा हॉल्टर छीन कर एक तरफ फेंक दिया|

“आप अपनी लुँगी नही उतरेंगे?”

“मैने लुँगी उतार दी तो मैं भी तेरी तरह नंगा हो जाऊँगा”

“आप मुझे तो चोदने वाले हैं, आप नंगे नहीं होंगे?”

“हां जरूर होऊँगा, लेकिन मैं तुझे चोदने से पहले डराना नहीं चाहता था...” यह कह कर मुस्कुराते हुए भिखारी ने अपनी लुंगी उतर दी… और जो मैने देखा, उसे देख कर मैं दंग रह गई…

“तूने जो देखा तुझे पसंद आया, लड़की?” भिखारी ने पूछा|


भिखारी ने मुझे जो चीज मुझे दिखाई, ऐसी चीज मैंने जिंदगी में पहले कभी नहीं देखी थी| भिखारी के दो टाँगों के बीच जघन के बालों का एक मैला सा जंगल था... और उसके बीच में उसका काला काला सा लिंग और बड़े बड़े दो अंडकोष, अपनी ज़िंदगी की जवानी की दहलीज़ पर कदम रखते ही मेरे नसीब में पराए मर्दों का गुप्ताँग देखना लिखा हुआ था, पर उस भिखारी का लिंग करीब- करीब 8 इंच लंबा डेढ़ इंच मोटा और एक लोहे के रॉड की तरह सीधा था… ऐसा तलवार की तरह सीधा सपाट लिंग मैंने अपनी ज़िन्दगी में लेना तो दूर कभी देखा भी नहीं था... इस लिए उसे देखते ही मेरे जी ललचाने लगा... पर वह भिखारी बहुत गन्दा दिख रहा था... उसके ददन से न जाने कैसी बदबू आ रही थी, जो कि इस चार दीवारी के अंदर और तेज़ लग रही थी...

उस वक्त मेरे दिमाग में दो बातें घूम रही थी, कि मैं झट से अपना हॉल्टर उठाउँ और इस भिखारी को धक्का मारकर उसकी कुटिया से भाग निकलूं... दूसरा यहीं रह कर इस भिखारी के इतने लंबे और मोटे लिंग से चुद कर एक नया मज़ा लूँ...

मैं यह सब सोच ही रही थी कि भिखारी ने अपनी रूखी सूखी उंगलियों से मेरे कोमल यौनांग को छूते हुए कहा, “तेरी चुत में बाल क्यों नही हैं?”

“जी बाबा मैं इस जगह को बिल्कुल साफ सुथरा रखती हूं...”

“ऐसा क्यों?” शायद उस भिखारी को मालूम नहीं था कि आजकल की ज़्यादातर लड़कियां हेयर रिमूवर का इस्तेमाल करती हैं या फिर वह जान बूझकर अनजान बन रहा था... यह तो पता नहीं|

“ऐसे ही… ताकि लोगों को देख कर अच्छा लगे... लोगबाग अपना लंड इसके अंदर घुसा देते हैं… उसके बाद धक्के लगाते हैं… तभी तो मुझे मजा आता है ना... फिर हिलाते हिलाते उनके लंड से गरम- गरम माल निकल के गिरता है... यह जगह तो मेरे लिए मौज मस्ती का एक जरिया भी तो है ना...” मैं बिल्कुल भोली भाली सीधी सादी बनकर उस भिखारी के सवालों का जवाब दे रही थी पर मैंने उसे यह नहीं बताया कि यह मेरे लिए आमदनी का जरिया भी है|

भिखारी मानो मगन सा होकर मेरे कोमल यौनांग को अपनी उंगलियों से सहलाए जा रहा था... और उसकी रूखी सूखी चाँदी की छुयन से मुझे भी सेक्स का नशा चढ़ रहा था|

"कब से कर रही है, यह सब?"

"मैं बहुत छोटी थी तब पहली बार मेरी आंटी ने मेरे साथ ऐसा करवाया था..."

"अच्छा" भिखारी अभी भी मेरे यौनांग से खेल रहा था...

मैने शायद शराब और सेक्स के नशे में ही बड़ी उत्सुकता के साथ पूछा, “बाबा, क्या आप...” कहते कहते मैं रुक सी गई...

“क्या बोली, लड़की?” भखारी को भ जैसे होश आया|
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