उसने चेहरा घुमा रखा था ताकि मुझे देख सके और मैं भी अपना चेहरा उसके इतने पास ले आया था कि मेरे होंठ उसके होंठों को छू सकें। उसने ही मेरे होंठों को पकड़ लिया और दोनों एक दूसरे के मजे लेने लगे।
“उफ.. कितना मजा दे लेते हो! काश … काश … पता होता कि एक दिन मुझसे दस साल बड़े, कभी मुझे गोद में खिलाने वाले मेरे इमरान भाईजान एक दिन मुझे नंगी करके मेरी गांड में अपना लंड ठांसेंगे।”
“पता होता तो..”
“तो जब मैं खिलती हुई कली थी और मेरी चूत में चुदने की इच्छायें पैदा होने लगी थीं तो तब तो तुम घर आ आ कर हफ्ता भर रुका करते थे न.. हर दिन या रात तुमसे बिना चुदे छोड़ती नहीं तुम्हें!”
“यही तो है… इंसान को भविष्य पता हो तो कई गलतियां करने से बच जाये।”
“अच्छा.. मैं तो दो बार झड़ चुकी और अभी भी बहुत गर्म हो चुकी हूँ, जल्दी ही झड़ जाऊँगी। पहला राउंड गांड ही मारोगे क्या?”
“नहीं.. आखिर में!”
“तो चोदना शुरू करो.. अब और बर्दाश्त करना मुश्किल है।”
मैंने उठने में देर नहीं लगाई। नीचे चटाई पर सिरहाने पड़ी वह चादर उठाई जो मैं सर पे लपेटता था, आज यही पौंछने के काम आनी थी। वहीं पानी की बोतल भी रखी थी, जिससे थोड़ा कोना भिगा कर लिंग साफ कर लिया।
“सीधी हो जाओ.. साईड से चोदूंगा।”
वह सीधे हो गयी और मैं उसके पहलू में लेट गया। फिर लार से लिंग को गीला किया और उसने हल्का सा तिरछा होते और अपना एक पैर मोड़ते हुए मेरी जांघों पर रख कर अपनी योनि मेरे लिंग की तरफ जहां तक संभव हो सका.. उभार दी।
मैंने पानी से भरी योनि में लिंग उतार दिया और उससे सटते हुए एक हाथ उसकी गर्दन के नीचे से निकाल कर उसका चेहरा अपने पास ला कर उसके होंठ चूसने लगा.. साथ ही दूसरे हाथ से मसाज के स्टाईल में सख्ती से उसके नर्म और फैले हुए वक्ष दबाने लगा।
इसी अवस्था में धीरे-धीरे धक्के लगाने लगा।
“दूसरी बार इस आसन में चुद रही हूँ।” बीच में उसने भारी सांसों के साथ कहा।
“अच्छा लग रहा है?”
“बहुत ज्यादा। जोर जोर से धक्के लगाओ जानेमन.. एकदम ढीली कर दो.. फाड़ के रख दो.. आह।”
मैं जोर-जोर से धक्के लगाने लगा और उत्तेजना के चरम की ओर बढ़ने से उसके होंठों के चूषण में और आक्रामकता आने लगी।
काफी धक्के लगा चुकने के बाद मैंने कमर रोक ली और उसने ऐसी शिकायती नजरों से देखा जैसे झड़ते-झड़ते रह गयी हो।
मैं हंस पड़ा।
उससे अलग होकर मैं उठ बैठा और उसे दबाव देते फिर पहले जैसी पोजीशन में बिस्तर से चिपकाये रखते औंधा कर दिया।
फिर बिस्तर से चिपकाये रखते दोनों पैरों को मोड़ते हुए फैला दिया जिससे पीछे की तरफ से उसकी योनि मेरे सामने आ गयी.. उसकी टांगों के बीच में आते हुए मैंने सामने से देखते अपना लिंग अंदर सरका दिया और अपना जोर अपने घुटनों और कुहनियों पर रखते मैं उस पर लद गया।
पोजीशन समझते हुए उसने मेरे नीचे दबे होने के बावजूद अपनी योनि अंतिम हद तक पीछे उभार दी ताकि मेरा लिंग ज्यादा से ज्यादा अंदर तक जा कर योनिभेदन कर सके। यह कुछ वैसी ही पोजीशन थी जैसे थोड़ी देर पहले हम थे, जब उसकी गुदा में लिंग ठुंसा हुआ था लेकिन अब हमला योनि पे था और उसके पैर भी नीचे से फैले हुए थे।
मैं फिर धक्के लगाने लगा.. उसने गर्दन मोड़ कर अपने होंठों तक मेरे होंठों की पंहुच बना दी और मैं उसके होंठ चूसते हुए धक्के लगाने लगा।
“जोर-जोर से धक्के लगाओ.. मैं झड़ने वाली हूँ।” थोड़ी देर बाद उसने थरथराते हुए स्वर में कहा।
मैंने धक्कों की गति तेज कर दी; कमरे में ‘थप-थप’ की आवाज गूँजने लगी और वह चरम पर पहुंचती सिसकारने लगी।
थोड़े और धक्कों के बाद मुझे उसकी योनि में कसाव महसूस हुआ और फिर वह अकड़ गयी, मुझे भी उन्हीं पलों में स्खलन की सुखद अनुभूति हुई और मैंने उसे कस कर दबोच लिया।
हम दोनों गहरी-गहरी साँसें लेने लगे और मैं उससे अलग हट कर फैल गया।
“मजा आ गया..” वह थोड़ी देर बाद खोये-खोये स्वर में बोली।
हालत थोड़ी सही हुई तो उठ कर वहां मौजूद पानी और चादर से हम दोनों ने खुद को साफ किया और फिर वापस लेट गये।
वह मेरे ऊपर लद कर मेरी आंखों में झांकने लगी।
“मैंने तय कर लिया है।” वह मेरे होंठों को चूमती हुई बोली।
“क्या?”
“यह वाली नौकरी मिल भी गयी तो छोड़ दूंगी और घर पर यही बताऊंगी कि नहीं मिल सकी। तुम तब तक यहीं कोई नौकरी ढूंढ कर ऑफर करो मुझे.. फिर मैं जिद करूँगी यहां नौकरी करने की। जाहिर है कि ऐसे तो कोई न मानेगा लेकिन तुम अपने तरीके से समझाना तो समझ जायेंगे और आने देंगे।”
“ठीक है।”
“बहुत तरस चुकी मैं लंडों के लिये। शादी की फिलहाल कोई उम्मीद भी नहीं दिखती। जो लड़का फंसता भी है तो शादी की लाईन पर आता दिखता नहीं और रिश्ता कोई आता नहीं। पहले तो भूले भटके देखने आ भी जाते थे और दुबलापन देख के खुद से ढल चुकी जवानी का अंदाजा लगा के मना कर देते थे। अब तो निगेटिव इमेज बन चुकी मेरी तो कोई रिश्ता आता भी नहीं।”
“पहले मना करने की एक वजह यह भी थी कि तुम्हारे घर की कमजोर आर्थिक स्थिति के चलते लोग यह अंदाजा लगाने लग जाते थे कि शायद शादी का इंतजाम भी ठीक से न हो पाये और दहेज भी बस नाम का मिले.. फिर आगे तुम खुद ही खराब हो गयी।”
“यह बात भी थी.. खुद नौकरी करके पैसा इकट्ठा कर लूंगी, आजाद जिंदगी में खुश रहूंगी और मनमाफिक चुद-चुद कर खिल जाऊंगी तो एक संभावना है भी कि शायद शादी की वेदी पर कोई मुर्गा शहीद हो भी जाये।”
“और बेरहमी से चुदे छेदों के ढीलेपन को ले कर उसने कोई सवाल किया तो?”
“स्थाई जवाब.. खुद से करती थी। आजाद जिंदगी इसीलिये चुनी थी कि घर में नहीं कर सकती थी। साथ रहने वाली लड़की के पास डिल्डो था और हम दोनों रोज रात आपस में कर लेती थीं।”
“गुड.. और फिर भी ज्यादा जिद करे जानने की तो बता देना कि एक ब्वायफ्रेंड था, उससे किया लेकिन बाद में ब्रेकअप हो गया। तुम्हें न पसंद हो तो अतीत में हुई चुदाई और तुमने भी शादी से पहले किसी लड़की को चोदा न हो तो चलो अलग ही हो जाते हैं। जिंदगी भर डर-डर के रिश्ते को निभाने से बेहतर अलग हो जाना है; अकेले रह लेना है।”
“ऐसा कहां होता है कि लड़के ने न किया हो।”
“तो फिर.. जब लड़का कर सकता है तो लड़की क्यों नहीं कर सकते। लड़के जिस लड़की के साथ करते हैं, वह भी तो किसी की बीवी बनती ही है.. तो ऐसी ही कोई अपने ब्वायफ्रेंड से चुदी लड़की उनकी बीवी क्यों नहीं हो सकती?”
“मर्दाने समाज का दोगलापन। खुद शादी से पहले पचासों जगह लंड ठूंस लें लेकिन शादी में लड़की एकदम कुंवारी सीलपैक चाहिये हरामजादों को।”
“शादी की नौबत आये तो पहले ही परख लेना सामने वाले को.. कि वह भी इसी मानसिकता का तो नहीं।”
“ओके.. अब छोड़ो और मूड बनाओ; अभी एक ही राउंड हुआ है।” उसने आंखें चमकाते हुए कहा।
“कभी पोर्न देख पढ़ के सिक्सटी नाईन का मूड हुआ था क्या.. वह ट्राई करो।”
वह खुशी-खुशी तैयार हो गयी और उठ कर उल्टी हो गयी।
अपने दोनों घुटने फैला कर मेरे इधर-उधर टिकाये और अपनी योनि मेरे होंठों तक पंहुचा दी और खुद मेरे लिंग तक पंहुच गयी और मुर्झाये पड़े लिंग को समूचा मुंह में भर कर ऐसे चूसने लगी जैसे लालीपाप चूसते हैं.. साथ ही एक हाथ से मेरी गोलियों को भी सहलाने खींचने लगी।
जबकि उसकी योनि से उठती महक मुझे बेचैन कर रही थी और मैंने दोनों हाथों को उसकी जांघों के अंदर की तरफ से ला कर उसकी योनि के पास के हिस्से पर पकड़ बना ली थी और उसकी योनि को दबाव डालते थोड़ा फैला कर चाटना शुरू कर दिया था।
उसकी कलिकाओं को चुभलाते हुए जोर-जोर से बाहर खींच रहा था और उसके भगांकुर को जीभ से रगड़े डाल रहा था। जितनी तन्मयता से वह लिंग चूषण कर रही थी, मैं उसकी योनि चूस चाट रहा था।
“सोचो तो एक तरह से लानत है मेरे ऊपर।” चाटने चूसने के दौरान वह बोली।
“क्यों भला?”
“अट्ठाईस की उम्र में मैं पहला सिक्सटी नाईट कर रही हूँ। अब तक तो पचासों बार कर चुकी होना चाहिये था।”
“हम्म.. तुम्हारी किस्मत से ज्यादा तुम खुद दोषी हो, जिसने सही वक्त पर सही फैसले नहीं लिये।”
“सही कह रहे हो.. मैं बेवकूफ ही हूँ।”
फिर वार्ता बंद हो गयी और हम अपने काम में लग गये। मैं भरसक प्रयास कर रहा था कि मेरा ध्यान मेरे लिंग की तरफ न जाये और इस वजह से मैं पूरी तरह उसकी योनि पर एकाग्र था लेकिन फिर भी शरीर प्रतिक्रिया तो देता ही है। थोड़ी देर बाद वह भी लकड़ी की तरह टाईट हो गया।
“तुम्हारा लंड तो एकदम तैयार हो गया है मेरी चूत चोदने के लिये।” उसने हाथ से सहलाते हुए कहा।
“इधर तुम्हारी चूत ने भी पानी छोड़ दिया है और लंड मांगने लगी है।”
“तो चोदो न अब.. देर किस बात की!”
“हटो।” मेरे कहने पे वह मेरे ऊपर से हट गयी.
“मेरी तरफ पीठ किये मेरे लंड पर ऐसे बैठो जैसे शौच के लिये बैठती हो। अपनी चूत इतनी ऊपर रखना कि मैं नीचे से धक्के लगा सकूँ।”
इतनी अनाड़ी तो वह थी नहीं कि बहुत ज्यादा समझाना पड़ता। पोर्न फिल्मों में सब देख ही चुकी थी। उसने पोजीशन बनाई और मेरे लिंग की नोक को अपनी योनि से सटाते मेरे ऊपर बैठ गयी। अपना पूरा वजन अपने घुटनों पर रखा था और अपने हाथ अपने घुटनों पर जमा लिये थे।
“ठीक है न?” उसने अपनी योनि को नीचे दबाते हुए कहा.. जिससे मेरा लिंग रस छोड़ती दीवारों को भेदता अंदर गहराई में घुसता चला गया।
कामुकता भरे पल आरज़ू के साथ
- shaziya
- Novice User
- Posts: 2348
- Joined: 19 Feb 2015 03:27
Re: कामुकता भरे पल आरज़ू के साथ
Read my story
खेल खेल में गंदी बात (Running) मेरा बेटा मेरा यार (माँ बेटे की वासना ) (Complete) नाजायज़ रिश्ता : ज़रूरत या कमज़ोरी (Running) अंजाने में बहन ने ही चुदवाया पूरा परिवार (complete) निदा के कारनामे (Complete) दोहरी ज़िंदगी (complete)नंदोई के साथ (complete ) पापा से शादी और हनीमून complete
खेल खेल में गंदी बात (Running) मेरा बेटा मेरा यार (माँ बेटे की वासना ) (Complete) नाजायज़ रिश्ता : ज़रूरत या कमज़ोरी (Running) अंजाने में बहन ने ही चुदवाया पूरा परिवार (complete) निदा के कारनामे (Complete) दोहरी ज़िंदगी (complete)नंदोई के साथ (complete ) पापा से शादी और हनीमून complete
- shaziya
- Novice User
- Posts: 2348
- Joined: 19 Feb 2015 03:27
Re: कामुकता भरे पल आरज़ू के साथ
“परफैक्ट.. पहले तुम ऊपर नीचे हो कर धक्के लगाओ। फिर मैं लगाऊंगा।” मैंने दोनों हाथ उसकी कमर पर सपोर्ट के लिहाज से जमाते हुए कहा।
“ओके जानेमन.. तो यह लो।”
जड़ तक मेरे लिंग को अपनी योनि में घुसा के उसने हल्के-हल्के आगे पीछे किया, दांये-बायें घुमाया और फिर सिस्कारते हुए ऊपर हो गयी।
“आज जितना कुछ फिल्मों में देख कर तड़पी हूँ.. वह सब करूँगी।” उसने ‘आह’ भरते हुए कहा।
“बिल्कुल करो.. तुम्हारा ही लंड है।”
लिंग के अग्रभाग तक वह योनि को ऊपर उठा ले गयी और फिर वह शरीर को ढीला छोड़ा तो योनि एकदम से नीचे आई और लिंग फिर जड़ तक उसकी योनि में पंहुच गया। उसके मुंह से जोर की ‘आह…’ उच्चारित हुई।
“शाबाश। ऐसे ही करो और मेरे लंड को चोद दो।” मैंने उसका उत्साहवर्धन करते हुए कहा।
दांत भींच कर ‘सी… सी…’ करते वह ऊपर नीचे होने लगी। मुझे एक गीली-गीली आनंददायक गर्माहट अपने लिंग के ऊपर चढ़ती उतरती महसूस हो रही थी। हालाँकि यह भी सच था कि इस स्थिति में मुझे उतना मजा नहीं आ रहा था जितना उसे आ रहा था।
फिर थोड़ी देर बाद वह रुक कर हांफने लगी।
“घुटनों पर जोर दे कर धक्के लगाना मेरे लिये तो बहुत मुश्किल है।” उसने गर्दन घुमा कर उम्मीद भरी नजरों से मुझे देखा।
“ठीक है.. तुम ऊपर उठ कर खुद को एक पोजीशन में रखो, मैं नीचे से धक्के लगाता हूँ।”
उसने सहमति में सर हिलाया और खुद को इतना ऊपर उठा लिया कि लिंग की कैप ही उसकी योनि में बची.. अब मैंने उसकी कमर पर अपनी पकड़ मजबूत की और नीचे से अपनी कमर उठा-उठा कर धक्के लगाने लगा। इसके लिये मुझे अपने पैर भी घुटनों से थोड़े मोड़ने पड़े थे।
कुछ देर वह मुंह भींचे रही अपना.. फिर पहले धीरे-धीरे और फिर जोर-जोर से सिसकारने लगी ‘उम्म्ह… अहह… हय… याह…’
“चुदने से ज्यादा यह अहसास मजा दे रहा है कि मैं चुद रही हूँ।” उसने उखड़ी-उखड़ी सांसों के बीच कहा।
“जब मन बहुत तरसा हो तो यही महसूस होता है।”
धक्के खाते और हवा में अपनी मादक सिसकारियां घोलते वह खुद को घुटनों पे संभाले-संभाले जल्दी ही थक गयी तो अपने मुड़े पैरों को थोड़ा सा सीधा करते अपने दोनों हाथ पीछे कर के मेरे सीने पे टिका दिये।
पहले वाली पोजीशन में जहां वह हवा में सीधी या थोड़ा आगे झुकी हुई थी, वहीं इस पोजीशन में वह काफी हद तक पीछे की तरफ हो गयी थी। और इस पोजीशन में मैं नितम्ब उठा कर एकदम सीधे हवा में धक्के भी नहीं लगा सकता था बल्कि अब सिर्फ अपने कूल्हों के सहारे थोड़े ऊपर सीने की तरफ रुख कर के धक्के लगाने थे।
यह दोनों ही पोजीशन किसी सोफे सेटी पर ज्यादा अनुकूल थे जहां पैर नीचे लटके हों लेकिन बिस्तर पर एकदम सीधे लेट के थोड़े टफ थे।
पर वह चाहती थी तो धक्के तो लगाने ही थे। मैंने धक्के लगाने शुरू किये और थोड़ी देर में वह फिर ‘आह… ओह…’ करने लगी।
“तुम्हें अपने पड़ोस में रहने वाले सिद्दीकी साहब याद हैं?”
“क्यों नहीं.. अभी तीन चार साल पहले ही तो कहीं और शिफ्ट हुए हैं वे!”
“उनकी बीवी बड़ी चुदक्कड़ थी.. सिद्दीकी का बॉस चोदता था उसे। मैंने और शुएब ने जान लिया था तो हम दोनों को भी दी थी और पहली चुदाई चटाई मैंने उसी की थी।”
“ओह…” उसने सिस्कारियों के बीच ऐसे कहा जैसे उसे सख्त हैरानी हुई हो।
“और उसने गैर मर्द से अपनी पहली चुदाई उस रफीक इलेक्ट्रिशन से करवाई थी जो तुम्हारे घर का भी काम करता था।”
“ओह.. इसीलिये जब भाई किसी काम के लिये उसे बुला के लाता था तो साथ ही लगा रहता था कि नजर रखे रह सके। पता चले कि नजर हटी और उनकी बहन चुद गयी रफीक मिस्त्री से, जो बीस साल तो बड़ा होगा ही मुझसे।”
“यही होगा।”
फिर उस तरफ से ध्यान हटा कर मैं धक्कों पे एकाग्र होने लगा लेकिन पोजीशन ऐसी थी और दूसरे आदत भी नहीं थी इस आसन की, तो जल्दी ही मैं थक कर रुक गया। यह चीज उसने भी महसूस कर ली और फिर अपने शरीर को संतुलित करते, लिंग को योनि के अंदर ही रखे गोल घूम गयी। अब उसका मुंह और बोटी की तरह लटकते स्तन मेरे सामने हो गये।
अब बाकायदा वह दोनों पैर एकदम दोहरे करके मेरे पेट के निचले हिस्से पर इस तरह बैठ गयी कि मेरा लिंग जड़ तक उसकी योनि में ठुंसा रहे।
“इट्स रिलैक्स टाईम बेबी!” वह आंख मारती हुई बोली।
अब वह उसी अवस्था में बैठे-बैठे अपने शरीर को लोच देने लगी और एक हल्के घेरे में कि लिंग बाहर न निकल सके … शरीर को करधनी की तरह गोल-गोल घुमाने लगी। अपने हाथ ऊपर उठा कर उसने गुद्दी पर बांध लिये थे और इस अवस्था में अपने बदन को लोच देती अपने ढले हुए दुबले पतले शरीर के बावजूद गजब की सेक्सी लग रही थी।
“सुपर … मस्त लग रही हो!”
अपनी तारीफ सुन कर वह खुश हो गयी। इस अवस्था में हालाँकि उसका पूरा भार मेरे पेट पर ही था लेकिन वह इतनी हल्की फुल्की थी कि उसके वजन का मेरे ऊपर कोई भी असर नहीं पड़ने वाला था।
मैं थोड़ा हाथ आगे बढ़ा कर उसके निप्पल दबाने खींचने लगा।
“यह तो मैंने सैंडी के साथ भी किया था और वह मस्त हो गया था।”
“कौन सैंडी?”
“तीसरा वाला ब्वायफ्रेंड जो लखनऊ में ही कहीं है … वह गजब का चोदू था और लंड भी उसका हैवी था। मैं भी खूब मस्त हो कर चुदवाई थी उससे।”
“फिक्र न कर जानेमन … यहां रहेगी तो फिर मिल जायेगा। वह न मिले तो भी यहां और मिल जायेंगे। यहां कौन से चोदुओं की कमी है।”
“बिलकुल … यही करूँगी।”
फिर जब मैं फिर से चार्ज हो गया धक्के लगाने के लिये तो उसे अपने ऊपर से हटा दिया- अब कुतिया बिल्ली बन जाओ … तुम्हारे शरीर के लिये मेरा सबसे मनचाहा आसन … और आर्गेज्म पर कंसन्ट्रेट करना। उसी में डिस्चार्ज भी होना है।
उसने गर्दन हिला कर सकारात्मक इशारा किया और मेरे हाथ के दबाव और इशारे पर तख्त के एकदम किनारे पर दोनों घुटने फैला कर टिकाते हुए, सीना चेहरा बिस्तर से सटाये रखे अपने नितम्ब हवा में उठा दिये और योनि को जितना पीछे धकेल सकती थी … धकेल दिया।
मेरे लिये वह ऐसी हो गयी जैसे गोश्त की सपाट दीवार में बनी उभरी हुई योनि हो। एक बार मैंने उसे मुंह से चाटा … सारा ऊपर बहता रस लेकर साईड में उगल दिया और जीभ से चाट-चाट के वह एक्सट्रा चिकनाई हटा दी जिसकी वजह से मेरे सामान्य लिंग के लिहाज से बहुत ज्यादा फिसलन हो गयी थी।
“अब चोदो … वर्ना ऐसे ही झड़ जाऊँगी। बहुत गर्म हो चुकी हूँ।” उसने कसमसाते हुए कहा।
उसकी बेचैनी समझते हुए मैं सीधा हो गया और उसके नितम्बों को लिंग के हिसाब से एडजस्ट करके, लिंग को मुहाने पर सटाया और दबा दिया। वह योनि की दीवारों पर दबाव डालता जड़ तक अंदर धंस गया और वह एक ऊंची ‘उम्म्ह… अहह… हय… याह…’ के साथ मुट्ठियों में बिस्तर की चादर दबोच कर अपनी उत्तेजना जैसे बिस्तर में जज़्ब करने लगी।
मैंने अपने हाथ उसके कूल्हों के ऊपरी हिस्से पर जमाते, कमर को आगे पीछे करते धीरे-धीरे धक्के लगाने शुरू किये।
“हां ऐसे ही पेलो … थोड़ा जोर से चोदो … हां हां ऐसे … और तेज … और तेज।”
वह उत्तेजना में बड़बड़ाती जा रही थी और मैं धक्कों की स्पीड बढ़ाता जा रहा था। कमरे में “थप-थप” की मादक ध्वनि अपने उच्चतम स्तर पर गूँज रही थी जो निश्चित ही हम दोनों के कानों में रस घोल रही थी।
“हां ऐसे ही … हां मेरी जान … थोड़ा और … और जोर से … मैं झड़ रही हूँ … उफ … ओह … आह …”
उसकी योनि के संकुचन और जिस्म में पड़ी थरथराहट को मैं साफ महसूस कर सकता था और उस घड़ी उसकी योनि में पैदा हुई सख्ती ने मेरे लिंग को भी चरम पर पंहुचा दिया और वह उबल पड़ा। मेरे मुंह से भी एक चरम आनंद से भरी ‘आह’ उच्चारित हुई और मैं सख्ती से उसके नितम्बों को जकड़ कर झड़ने लगा।
तत्पश्चात मैं उससे अलग हो कर उसके पास ही पसर गया और हांफने लगा। वह भी आगे बढ़ कर औंधी-औंधी ही फैल गयी और अपनी उखड़ी सांसें दुरुस्त करने लगी।
“तुम्हारे बिस्तर, चादर, कमरे की तो हालत खराब हुई जा रही है।” सांसें दुरुस्त कर चुकने के बाद उसने मेरी ओर देखा।
“होने दो … यह उनकी खुशनसीबी है।”
“कभी पहले इस कमरे में चुदाई हुई है क्या?”
“पता नहीं … मैंने तो नहीं की कभी। पहले हुई हो तो कह नहीं सकता।”
“चलो कुछ और सिखाओ अब लास्ट राउंड से पहले!”
“एक सबसे अहम पॉइंट समझो … सेक्स को एन्जॉय करने के लिये ज़रूरी है कि उसे खुल के किया जाये। इन ख़ास लम्हों में कोई शर्म नहीं, कोई झिझक नहीं … लेकिन होता यह है कि पुरुष सत्तात्मक समाज के चलते मर्दों की सोच यह होती है कि वह सेक्स के नाज़ुक पलों में भी बीवी की बेशर्मी पचा नहीं पाते और अगर बीवी खुल कर चुदने की कोशिश करे तो उसके कैरेक्टर पे ही शक करने लग जाते हैं। इसलिये भले अपने पति के साथ शरमाई सकुचाई ही रहना और वह जैसे उम्मीद करे वैसा ही करना लेकिन शादी के बाहर कहीं भी चुदो तो यह मन्त्र याद रखना कि उन पलों में खुद को कोई पोर्न ऐक्ट्रेस या रंडी ही मान लेना और यह न सोचना कि वही जैसे चाहे तुम्हें चोदे, बल्कि तुम भी जैसे चाहो चुदवाओ और सेक्स के दौरान जैसे भी गंदे से गंदे शब्द मन में उभरते हों, बिना झिझक बोलो … गालियाँ देने का मन करे तो वह भी खुल के दो। समझ लो कि एकदम थर्ड क्लास झुग्गी वाली कोई वेश्या हो … उसे भी गालियाँ देने, गन्दी से गन्दी बातें बोलने के लिये उकसाओ। सारी शराफत चुदाई के बाद के लिये बचा कर रखो … लेकिन चुदाई के टाईम भूल जाओ कि तुम क्या हो और जो भी जी में आये बोलो, जो जी में आये वह करो।”
“जो आज्ञा गुरुदेव। बस ऐसे ही सिखाते रहिये … एक सीधी शरीफ आरज़ू से चुदाई के पलों में एक रंडी आरज़ू जल्दी ही बन जाऊँगी।”
“मन में यह सब आता तो होगा ही?”
“ऐसा कैसे हो सकता है कि कोई पोर्न साहित्य पढ़ता हो और उसके मन में यह सब आता न हो लेकिन यह हिम्मत तो खैर नहीं पड़ती कि उसे खुद पर अप्लाई किया जाये, लेकिन जब तुम जैसे गुरु मिल जायें तो हिम्मत भी आ ही जाती है।”
“हो सके तो इस लास्ट एक्ट में बोलने की कोशिश करो।”
“इतनी जल्दी … अब तक जिसे हमेशा बड़ी इज्ज़त से भाईजान बोलती आई हूँ, एकदम से गालियाँ देने लग जाना तो बड़ी मुश्किल चीज़ है। कोई अजनबी होता तो भले ख़ास मुश्किल न होती।”
“अब भाईजान वाले रिश्ते को भूल जाओ और बस इतना समझो कि तुम्हारा चोदू यार हूँ।”
“हम्म।”
वह सोच में पड़ गयी … शायद मन ही मन यह परखने की कोशिश कर रही थी कि क्या वह मेरे साथ किसी रंडी जैसे बिहैव कर सकती थी।
“थोड़ा बहुत ट्राई मारती हूँ … पूरी तरह तो अभी एकदम से नहीं कर सकती।” थोड़ी देर की कशमकश के बाद वह किसी फैसले पर पहुँचती हुई बोली।
“जितना हो सके उतना ही करो।”
“चलो थोड़ी देर गांड मराई की फ़िल्में दिखाओ ताकि रांड की तरह मरवाने चुदवाने की कुछ टिप्स ले सकूँ और तब तक थोड़ी सी एनर्जी भी वापस आ सके।”
उसकी मर्ज़ी के मुताबिक मैंने फोन पर एक पोर्न साईट खोली और एनल सेक्स की छोटी-छोटी फ़िल्में उसे दिखाने लगा। वह मेरे पहलू में सटी आधी मेरे सीने बाँहों पे चढ़ी फोन में वह सब देखती अपने एक हाथ से अपनी योनि को सहलाने लगी।
पन्द्रह बीस मिनट में ही न सिर्फ वह गर्म हो गयी बल्कि मेरे लिंग में भी तनाव आने लगा और मैं महसूस करने लगा कि मैं अब तीसरी बार स्खलन के लिये तैयार था।
“तो अब अपनी गांड मरवाने के लिये मुझे तेरे लौड़े को भी चाटना पड़ेगा।” उसने मेरे निर्देश पर अमल की पहली झलक दिखाते हुए कहा।
“हाँ, उसके बिना तेरी गांड की चुन्नटें कैसे खुलेंगी मादरचोद … फिर कहेगी, ढीला लंड तेरी गांड चोद नहीं पा रहा ठीक से।” मैंने भी उसके सुर में ताल मिलाते हुए कहा।
“तो ला डाल दे मेरे मुंह में और मुंह चोद दे पहले मेरा … चूस चूस के कड़क कर दूंगी तेरा लंड।”
वह उठ कर बैठ गयी और मैं बिस्तर पर ही खड़ा हो गया। उसके मुंह के हिसाब से पैर थोड़ा मोड़ते हुए खुद को हल्का नीचे किया और अपना अर्धउत्तेजित लिंग उसके होंठ से सटा दिया।
“पहली बार है कि मेरी चूत के रस से सौंदे हुए लंड को चाट रही हूँ … पर नमकीन पानी भी मजा दे रहा है राजा।” वह लिंग को ऊपर से नीचे चाटती हुई बोली।
“चाट ले रांड … तेरा ही माल है।”
पहले वह ऊपर-ऊपर से चाटती रही और जब पूरा लिंग अच्छी तरह चाट चुकी तो मुंह खोल कर उसे अंदर ले लिया और उसे जीभ और तालू से भींचती, उस पर अपनी जीभ लपेटती उसे जोर-जोर से चूसने लगी। मेरी आंखें मजे से बंद हो गयी थीं।
कुछ देर की चुसाई चटाई से मेरा लिंग अच्छे से कड़क हो गया और उसने मुंह से निकाल दिया- ले राजा … तैयार हो गया तेरा लौड़ा मेरी गांड चोदने के लिये।
“चल फिर झुक जा … या जैसे चुदनी हो बता रंडी। वैसे ही तेरी गांड चोद-चोद के हुक्का कर दूँ।”
“तेरी मर्जी रज्जा … जैसे चाहे वैसे चोद लेकिन पहले मेरी चूत इतनी गर्म कर दे कि मैं आधे से ज्यादा रास्ता तो ऐसे ही तय कर लूं … फिर बाकी रास्ता मैं गांड चुदाई में तय कर लूं।”
“गांड चुदाई मेरी मर्जी की पर चूत चटाई तेरी मर्जी की … जैसे तू चाहे मेरी जान।”
“फिर हो जा अधलेटा।”
उसने मुझे नीचे खींच कर बिस्तर पर धकेलते हुए कहा और मैं चित लेट गया और उसका आशय समझ कर तकिये को दोहरा कर के सर के नीचे रख कर सर ऊंचा कर लिया जबकि वह मेरे मुंह पर योनि देती लगभग बैठ गयी।
एक साईड का पैर मोड़ कर घुटना बिस्तर से सटा लिया तो दूसरे साईड का पैर एड़ी टिका कर मोड़ लिया था जिससे उसकी योनि उसकी जांघ भर की ऊंचाई में उठी मेरे ठीक मुंह पर थी। उल्टे हाथ से उसने मेरे सर के बाल दबोच लिये थे और सीधे हाथ को अपनी योनि पर ला कर दो उंगलियों से उसे फैला दिया था।
“ले चाट बहनचोद … अपनी बहन की चुदी हुई चूत को चाट … आह … हां ऐसे ही चाट बहनचोद और मेरी चूत का सारा रस पी जा … ऐसे ही चाटते रह मेरे राजा!” वह सीत्कार करती जो भी मन में आया बोलती रही और मैं उसकी योनि अच्छे से चाटता रहा।
इस बार झड़ने के बाद चूँकि पौंछाई नहीं हुई थी तो मेरा वीर्य या उसका पानी वहीं चादर पर ही गिरा था और जो बचा था वह मेरे मुंह में आ रहा था लेकिन मैं उसे हलक में नहीं जाने दे रहा था बल्कि चाटते-चाटते बिस्तर पर ही उगल रहा था जिससे चादर की छियाछापट हो रही थी।
“आह-आह … बस कर राजा … वर्ना चूत चटाई में ही झड़ जाऊँगी। थोड़ी गांड चाट के छेद तैयार कर ले।” थोड़ी देर बाद वह कसमसाते हुए बोली और उसी अंदाज में घूम गयी कि उसकी गुदा का छेद मेरे मुंह पर आ गया और मैं लार से उसे भी गीला और चिकना करने लगा।
“अब डाल दे लंड बहनचोद … ऐसे ही झड़वायेगा क्या?” थोड़ी ही देर में वह सिहर कर अलग हो गयी।
फिर मैं तख्त से पैर नीचे लटका कर बैठ गया- बैठ जा ऐसे ही मेरी तरफ मुंह किये और खुद उछल-उछल कर अपनी गांड से मेरे लंड को चोद … बाद में मैं चोदूंगा।
“अच्छा तो यह ले।”
उसने मुंह में लार बना कर मेरे लिंग को उसमें नहला दिया और अपने दोनों पैर मेरे इधर-उधर टिकाती मेरी गोद में बैठ गयी। सही छेद पर उसने लिंग को हाथ से पकड़ कर टिकाया था वर्ना चिकनाहट तो इतनी थी कि बजाय पीछे के आगे ही सट से घुस जाता।
बहरहाल, अच्छा खासा ढीला और गीला हो चुकने के बाद भी मेरे लिंग को वही पहले जैसा कसाव महसूस हुआ और उसे दर्द की अनुभूति हुई। मेरे कंधे पकड़ कर उसने खुद को इतना वक्त दिया कि उसका छेद मेरे लिंग को ग्रहण कर ले।
इस कोशिश में मैंने उसके उभरे निकले निप्पलों को बारी-बारी चूसना शुरू कर दिया था जबकि वह एक हाथ से मेरा कंधा पकड़े दूसरे हाथ को नीचे ले जा कर अपने क्लिटोरिस हुड को सहलाने रगड़ने लगी थी।
जल्दी ही उत्तेजना दर्द पर हावी हो गयी और वह संभल गयी। उसकी आँखों में फिर वही मस्ती और नशा दिखाई देने लगा। उसने दूसरे हाथ से भी मेरा दूसरा कंधा पकड़ लिया और फिर अपने पैरों पर जोर देती ऊपर नीचे होने लगी। मैंने अपनी जीभ बाहर ही निकाल रखी थी जिस पर ऊपर-नीचे होते उसके चुचुक रगड़ खा रहे थे।
“पहली बार गांड मरवाने पर मुझे लगा ही नहीं था कि कभी इतना मजा भी आयेगा।”
“मजा नहीं आता तो ऐसे ही लोग मरवाते हैं … कभी किसी गांडू के मन में झांको तो पता चले।”
“सच कह रहे हो। जिस्म के हर हिस्से में मजा है … बस हम समझ नहीं पाते।”
फिर उसी तरह ऊपर-नीचे करती वह मेरे निर्देश के मुताबिक गंदी-गंदी बातें करती उत्तेजित होती रही और मैं भी बराबर का सहयोग देता रहा।
लेकिन थोड़ी देर बाद वह थक गयी तो मैंने उसकी टांगों के नीचे से हाथ निकाल कर उसका सारा वजन अपने हाथों पर लिया और उसी पोजीशन में खड़ा हो गया। इस पोजीशन में आगे या पीछे से लड़की का चोदन तभी संभव था जब आप उसका वजन आसानी से उठा सकें … वर्ना इतना वजन उठा कर कमर चलाना आसान काम नहीं।
यहां एक आसानी तो मेरे लिये यह थी कि बेहद दुबली पतली होने की वजह से वह काफी हल्की फुल्की थी, जिससे मैं उसे आसानी से हवा में उठाये रख सकता था। दूसरी मेरे नजरिये से आसानी यह थी कि उसके शरीर पर मांस की कमी की वजह से ऐसी पोजीशन में नितम्ब का जो हिस्सा नीचे गिर कर एक तरह से एक चौथाई लिंग को समागम से वंचित कर देता था … वह शाजिया में नदारद था, जिससे उसका छेद मेरे लिंग को जड़ तक अंदर ले पा रहा था और इससे उसका रोमांच भी बढ़ रहा था।
“ओके जानेमन.. तो यह लो।”
जड़ तक मेरे लिंग को अपनी योनि में घुसा के उसने हल्के-हल्के आगे पीछे किया, दांये-बायें घुमाया और फिर सिस्कारते हुए ऊपर हो गयी।
“आज जितना कुछ फिल्मों में देख कर तड़पी हूँ.. वह सब करूँगी।” उसने ‘आह’ भरते हुए कहा।
“बिल्कुल करो.. तुम्हारा ही लंड है।”
लिंग के अग्रभाग तक वह योनि को ऊपर उठा ले गयी और फिर वह शरीर को ढीला छोड़ा तो योनि एकदम से नीचे आई और लिंग फिर जड़ तक उसकी योनि में पंहुच गया। उसके मुंह से जोर की ‘आह…’ उच्चारित हुई।
“शाबाश। ऐसे ही करो और मेरे लंड को चोद दो।” मैंने उसका उत्साहवर्धन करते हुए कहा।
दांत भींच कर ‘सी… सी…’ करते वह ऊपर नीचे होने लगी। मुझे एक गीली-गीली आनंददायक गर्माहट अपने लिंग के ऊपर चढ़ती उतरती महसूस हो रही थी। हालाँकि यह भी सच था कि इस स्थिति में मुझे उतना मजा नहीं आ रहा था जितना उसे आ रहा था।
फिर थोड़ी देर बाद वह रुक कर हांफने लगी।
“घुटनों पर जोर दे कर धक्के लगाना मेरे लिये तो बहुत मुश्किल है।” उसने गर्दन घुमा कर उम्मीद भरी नजरों से मुझे देखा।
“ठीक है.. तुम ऊपर उठ कर खुद को एक पोजीशन में रखो, मैं नीचे से धक्के लगाता हूँ।”
उसने सहमति में सर हिलाया और खुद को इतना ऊपर उठा लिया कि लिंग की कैप ही उसकी योनि में बची.. अब मैंने उसकी कमर पर अपनी पकड़ मजबूत की और नीचे से अपनी कमर उठा-उठा कर धक्के लगाने लगा। इसके लिये मुझे अपने पैर भी घुटनों से थोड़े मोड़ने पड़े थे।
कुछ देर वह मुंह भींचे रही अपना.. फिर पहले धीरे-धीरे और फिर जोर-जोर से सिसकारने लगी ‘उम्म्ह… अहह… हय… याह…’
“चुदने से ज्यादा यह अहसास मजा दे रहा है कि मैं चुद रही हूँ।” उसने उखड़ी-उखड़ी सांसों के बीच कहा।
“जब मन बहुत तरसा हो तो यही महसूस होता है।”
धक्के खाते और हवा में अपनी मादक सिसकारियां घोलते वह खुद को घुटनों पे संभाले-संभाले जल्दी ही थक गयी तो अपने मुड़े पैरों को थोड़ा सा सीधा करते अपने दोनों हाथ पीछे कर के मेरे सीने पे टिका दिये।
पहले वाली पोजीशन में जहां वह हवा में सीधी या थोड़ा आगे झुकी हुई थी, वहीं इस पोजीशन में वह काफी हद तक पीछे की तरफ हो गयी थी। और इस पोजीशन में मैं नितम्ब उठा कर एकदम सीधे हवा में धक्के भी नहीं लगा सकता था बल्कि अब सिर्फ अपने कूल्हों के सहारे थोड़े ऊपर सीने की तरफ रुख कर के धक्के लगाने थे।
यह दोनों ही पोजीशन किसी सोफे सेटी पर ज्यादा अनुकूल थे जहां पैर नीचे लटके हों लेकिन बिस्तर पर एकदम सीधे लेट के थोड़े टफ थे।
पर वह चाहती थी तो धक्के तो लगाने ही थे। मैंने धक्के लगाने शुरू किये और थोड़ी देर में वह फिर ‘आह… ओह…’ करने लगी।
“तुम्हें अपने पड़ोस में रहने वाले सिद्दीकी साहब याद हैं?”
“क्यों नहीं.. अभी तीन चार साल पहले ही तो कहीं और शिफ्ट हुए हैं वे!”
“उनकी बीवी बड़ी चुदक्कड़ थी.. सिद्दीकी का बॉस चोदता था उसे। मैंने और शुएब ने जान लिया था तो हम दोनों को भी दी थी और पहली चुदाई चटाई मैंने उसी की थी।”
“ओह…” उसने सिस्कारियों के बीच ऐसे कहा जैसे उसे सख्त हैरानी हुई हो।
“और उसने गैर मर्द से अपनी पहली चुदाई उस रफीक इलेक्ट्रिशन से करवाई थी जो तुम्हारे घर का भी काम करता था।”
“ओह.. इसीलिये जब भाई किसी काम के लिये उसे बुला के लाता था तो साथ ही लगा रहता था कि नजर रखे रह सके। पता चले कि नजर हटी और उनकी बहन चुद गयी रफीक मिस्त्री से, जो बीस साल तो बड़ा होगा ही मुझसे।”
“यही होगा।”
फिर उस तरफ से ध्यान हटा कर मैं धक्कों पे एकाग्र होने लगा लेकिन पोजीशन ऐसी थी और दूसरे आदत भी नहीं थी इस आसन की, तो जल्दी ही मैं थक कर रुक गया। यह चीज उसने भी महसूस कर ली और फिर अपने शरीर को संतुलित करते, लिंग को योनि के अंदर ही रखे गोल घूम गयी। अब उसका मुंह और बोटी की तरह लटकते स्तन मेरे सामने हो गये।
अब बाकायदा वह दोनों पैर एकदम दोहरे करके मेरे पेट के निचले हिस्से पर इस तरह बैठ गयी कि मेरा लिंग जड़ तक उसकी योनि में ठुंसा रहे।
“इट्स रिलैक्स टाईम बेबी!” वह आंख मारती हुई बोली।
अब वह उसी अवस्था में बैठे-बैठे अपने शरीर को लोच देने लगी और एक हल्के घेरे में कि लिंग बाहर न निकल सके … शरीर को करधनी की तरह गोल-गोल घुमाने लगी। अपने हाथ ऊपर उठा कर उसने गुद्दी पर बांध लिये थे और इस अवस्था में अपने बदन को लोच देती अपने ढले हुए दुबले पतले शरीर के बावजूद गजब की सेक्सी लग रही थी।
“सुपर … मस्त लग रही हो!”
अपनी तारीफ सुन कर वह खुश हो गयी। इस अवस्था में हालाँकि उसका पूरा भार मेरे पेट पर ही था लेकिन वह इतनी हल्की फुल्की थी कि उसके वजन का मेरे ऊपर कोई भी असर नहीं पड़ने वाला था।
मैं थोड़ा हाथ आगे बढ़ा कर उसके निप्पल दबाने खींचने लगा।
“यह तो मैंने सैंडी के साथ भी किया था और वह मस्त हो गया था।”
“कौन सैंडी?”
“तीसरा वाला ब्वायफ्रेंड जो लखनऊ में ही कहीं है … वह गजब का चोदू था और लंड भी उसका हैवी था। मैं भी खूब मस्त हो कर चुदवाई थी उससे।”
“फिक्र न कर जानेमन … यहां रहेगी तो फिर मिल जायेगा। वह न मिले तो भी यहां और मिल जायेंगे। यहां कौन से चोदुओं की कमी है।”
“बिलकुल … यही करूँगी।”
फिर जब मैं फिर से चार्ज हो गया धक्के लगाने के लिये तो उसे अपने ऊपर से हटा दिया- अब कुतिया बिल्ली बन जाओ … तुम्हारे शरीर के लिये मेरा सबसे मनचाहा आसन … और आर्गेज्म पर कंसन्ट्रेट करना। उसी में डिस्चार्ज भी होना है।
उसने गर्दन हिला कर सकारात्मक इशारा किया और मेरे हाथ के दबाव और इशारे पर तख्त के एकदम किनारे पर दोनों घुटने फैला कर टिकाते हुए, सीना चेहरा बिस्तर से सटाये रखे अपने नितम्ब हवा में उठा दिये और योनि को जितना पीछे धकेल सकती थी … धकेल दिया।
मेरे लिये वह ऐसी हो गयी जैसे गोश्त की सपाट दीवार में बनी उभरी हुई योनि हो। एक बार मैंने उसे मुंह से चाटा … सारा ऊपर बहता रस लेकर साईड में उगल दिया और जीभ से चाट-चाट के वह एक्सट्रा चिकनाई हटा दी जिसकी वजह से मेरे सामान्य लिंग के लिहाज से बहुत ज्यादा फिसलन हो गयी थी।
“अब चोदो … वर्ना ऐसे ही झड़ जाऊँगी। बहुत गर्म हो चुकी हूँ।” उसने कसमसाते हुए कहा।
उसकी बेचैनी समझते हुए मैं सीधा हो गया और उसके नितम्बों को लिंग के हिसाब से एडजस्ट करके, लिंग को मुहाने पर सटाया और दबा दिया। वह योनि की दीवारों पर दबाव डालता जड़ तक अंदर धंस गया और वह एक ऊंची ‘उम्म्ह… अहह… हय… याह…’ के साथ मुट्ठियों में बिस्तर की चादर दबोच कर अपनी उत्तेजना जैसे बिस्तर में जज़्ब करने लगी।
मैंने अपने हाथ उसके कूल्हों के ऊपरी हिस्से पर जमाते, कमर को आगे पीछे करते धीरे-धीरे धक्के लगाने शुरू किये।
“हां ऐसे ही पेलो … थोड़ा जोर से चोदो … हां हां ऐसे … और तेज … और तेज।”
वह उत्तेजना में बड़बड़ाती जा रही थी और मैं धक्कों की स्पीड बढ़ाता जा रहा था। कमरे में “थप-थप” की मादक ध्वनि अपने उच्चतम स्तर पर गूँज रही थी जो निश्चित ही हम दोनों के कानों में रस घोल रही थी।
“हां ऐसे ही … हां मेरी जान … थोड़ा और … और जोर से … मैं झड़ रही हूँ … उफ … ओह … आह …”
उसकी योनि के संकुचन और जिस्म में पड़ी थरथराहट को मैं साफ महसूस कर सकता था और उस घड़ी उसकी योनि में पैदा हुई सख्ती ने मेरे लिंग को भी चरम पर पंहुचा दिया और वह उबल पड़ा। मेरे मुंह से भी एक चरम आनंद से भरी ‘आह’ उच्चारित हुई और मैं सख्ती से उसके नितम्बों को जकड़ कर झड़ने लगा।
तत्पश्चात मैं उससे अलग हो कर उसके पास ही पसर गया और हांफने लगा। वह भी आगे बढ़ कर औंधी-औंधी ही फैल गयी और अपनी उखड़ी सांसें दुरुस्त करने लगी।
“तुम्हारे बिस्तर, चादर, कमरे की तो हालत खराब हुई जा रही है।” सांसें दुरुस्त कर चुकने के बाद उसने मेरी ओर देखा।
“होने दो … यह उनकी खुशनसीबी है।”
“कभी पहले इस कमरे में चुदाई हुई है क्या?”
“पता नहीं … मैंने तो नहीं की कभी। पहले हुई हो तो कह नहीं सकता।”
“चलो कुछ और सिखाओ अब लास्ट राउंड से पहले!”
“एक सबसे अहम पॉइंट समझो … सेक्स को एन्जॉय करने के लिये ज़रूरी है कि उसे खुल के किया जाये। इन ख़ास लम्हों में कोई शर्म नहीं, कोई झिझक नहीं … लेकिन होता यह है कि पुरुष सत्तात्मक समाज के चलते मर्दों की सोच यह होती है कि वह सेक्स के नाज़ुक पलों में भी बीवी की बेशर्मी पचा नहीं पाते और अगर बीवी खुल कर चुदने की कोशिश करे तो उसके कैरेक्टर पे ही शक करने लग जाते हैं। इसलिये भले अपने पति के साथ शरमाई सकुचाई ही रहना और वह जैसे उम्मीद करे वैसा ही करना लेकिन शादी के बाहर कहीं भी चुदो तो यह मन्त्र याद रखना कि उन पलों में खुद को कोई पोर्न ऐक्ट्रेस या रंडी ही मान लेना और यह न सोचना कि वही जैसे चाहे तुम्हें चोदे, बल्कि तुम भी जैसे चाहो चुदवाओ और सेक्स के दौरान जैसे भी गंदे से गंदे शब्द मन में उभरते हों, बिना झिझक बोलो … गालियाँ देने का मन करे तो वह भी खुल के दो। समझ लो कि एकदम थर्ड क्लास झुग्गी वाली कोई वेश्या हो … उसे भी गालियाँ देने, गन्दी से गन्दी बातें बोलने के लिये उकसाओ। सारी शराफत चुदाई के बाद के लिये बचा कर रखो … लेकिन चुदाई के टाईम भूल जाओ कि तुम क्या हो और जो भी जी में आये बोलो, जो जी में आये वह करो।”
“जो आज्ञा गुरुदेव। बस ऐसे ही सिखाते रहिये … एक सीधी शरीफ आरज़ू से चुदाई के पलों में एक रंडी आरज़ू जल्दी ही बन जाऊँगी।”
“मन में यह सब आता तो होगा ही?”
“ऐसा कैसे हो सकता है कि कोई पोर्न साहित्य पढ़ता हो और उसके मन में यह सब आता न हो लेकिन यह हिम्मत तो खैर नहीं पड़ती कि उसे खुद पर अप्लाई किया जाये, लेकिन जब तुम जैसे गुरु मिल जायें तो हिम्मत भी आ ही जाती है।”
“हो सके तो इस लास्ट एक्ट में बोलने की कोशिश करो।”
“इतनी जल्दी … अब तक जिसे हमेशा बड़ी इज्ज़त से भाईजान बोलती आई हूँ, एकदम से गालियाँ देने लग जाना तो बड़ी मुश्किल चीज़ है। कोई अजनबी होता तो भले ख़ास मुश्किल न होती।”
“अब भाईजान वाले रिश्ते को भूल जाओ और बस इतना समझो कि तुम्हारा चोदू यार हूँ।”
“हम्म।”
वह सोच में पड़ गयी … शायद मन ही मन यह परखने की कोशिश कर रही थी कि क्या वह मेरे साथ किसी रंडी जैसे बिहैव कर सकती थी।
“थोड़ा बहुत ट्राई मारती हूँ … पूरी तरह तो अभी एकदम से नहीं कर सकती।” थोड़ी देर की कशमकश के बाद वह किसी फैसले पर पहुँचती हुई बोली।
“जितना हो सके उतना ही करो।”
“चलो थोड़ी देर गांड मराई की फ़िल्में दिखाओ ताकि रांड की तरह मरवाने चुदवाने की कुछ टिप्स ले सकूँ और तब तक थोड़ी सी एनर्जी भी वापस आ सके।”
उसकी मर्ज़ी के मुताबिक मैंने फोन पर एक पोर्न साईट खोली और एनल सेक्स की छोटी-छोटी फ़िल्में उसे दिखाने लगा। वह मेरे पहलू में सटी आधी मेरे सीने बाँहों पे चढ़ी फोन में वह सब देखती अपने एक हाथ से अपनी योनि को सहलाने लगी।
पन्द्रह बीस मिनट में ही न सिर्फ वह गर्म हो गयी बल्कि मेरे लिंग में भी तनाव आने लगा और मैं महसूस करने लगा कि मैं अब तीसरी बार स्खलन के लिये तैयार था।
“तो अब अपनी गांड मरवाने के लिये मुझे तेरे लौड़े को भी चाटना पड़ेगा।” उसने मेरे निर्देश पर अमल की पहली झलक दिखाते हुए कहा।
“हाँ, उसके बिना तेरी गांड की चुन्नटें कैसे खुलेंगी मादरचोद … फिर कहेगी, ढीला लंड तेरी गांड चोद नहीं पा रहा ठीक से।” मैंने भी उसके सुर में ताल मिलाते हुए कहा।
“तो ला डाल दे मेरे मुंह में और मुंह चोद दे पहले मेरा … चूस चूस के कड़क कर दूंगी तेरा लंड।”
वह उठ कर बैठ गयी और मैं बिस्तर पर ही खड़ा हो गया। उसके मुंह के हिसाब से पैर थोड़ा मोड़ते हुए खुद को हल्का नीचे किया और अपना अर्धउत्तेजित लिंग उसके होंठ से सटा दिया।
“पहली बार है कि मेरी चूत के रस से सौंदे हुए लंड को चाट रही हूँ … पर नमकीन पानी भी मजा दे रहा है राजा।” वह लिंग को ऊपर से नीचे चाटती हुई बोली।
“चाट ले रांड … तेरा ही माल है।”
पहले वह ऊपर-ऊपर से चाटती रही और जब पूरा लिंग अच्छी तरह चाट चुकी तो मुंह खोल कर उसे अंदर ले लिया और उसे जीभ और तालू से भींचती, उस पर अपनी जीभ लपेटती उसे जोर-जोर से चूसने लगी। मेरी आंखें मजे से बंद हो गयी थीं।
कुछ देर की चुसाई चटाई से मेरा लिंग अच्छे से कड़क हो गया और उसने मुंह से निकाल दिया- ले राजा … तैयार हो गया तेरा लौड़ा मेरी गांड चोदने के लिये।
“चल फिर झुक जा … या जैसे चुदनी हो बता रंडी। वैसे ही तेरी गांड चोद-चोद के हुक्का कर दूँ।”
“तेरी मर्जी रज्जा … जैसे चाहे वैसे चोद लेकिन पहले मेरी चूत इतनी गर्म कर दे कि मैं आधे से ज्यादा रास्ता तो ऐसे ही तय कर लूं … फिर बाकी रास्ता मैं गांड चुदाई में तय कर लूं।”
“गांड चुदाई मेरी मर्जी की पर चूत चटाई तेरी मर्जी की … जैसे तू चाहे मेरी जान।”
“फिर हो जा अधलेटा।”
उसने मुझे नीचे खींच कर बिस्तर पर धकेलते हुए कहा और मैं चित लेट गया और उसका आशय समझ कर तकिये को दोहरा कर के सर के नीचे रख कर सर ऊंचा कर लिया जबकि वह मेरे मुंह पर योनि देती लगभग बैठ गयी।
एक साईड का पैर मोड़ कर घुटना बिस्तर से सटा लिया तो दूसरे साईड का पैर एड़ी टिका कर मोड़ लिया था जिससे उसकी योनि उसकी जांघ भर की ऊंचाई में उठी मेरे ठीक मुंह पर थी। उल्टे हाथ से उसने मेरे सर के बाल दबोच लिये थे और सीधे हाथ को अपनी योनि पर ला कर दो उंगलियों से उसे फैला दिया था।
“ले चाट बहनचोद … अपनी बहन की चुदी हुई चूत को चाट … आह … हां ऐसे ही चाट बहनचोद और मेरी चूत का सारा रस पी जा … ऐसे ही चाटते रह मेरे राजा!” वह सीत्कार करती जो भी मन में आया बोलती रही और मैं उसकी योनि अच्छे से चाटता रहा।
इस बार झड़ने के बाद चूँकि पौंछाई नहीं हुई थी तो मेरा वीर्य या उसका पानी वहीं चादर पर ही गिरा था और जो बचा था वह मेरे मुंह में आ रहा था लेकिन मैं उसे हलक में नहीं जाने दे रहा था बल्कि चाटते-चाटते बिस्तर पर ही उगल रहा था जिससे चादर की छियाछापट हो रही थी।
“आह-आह … बस कर राजा … वर्ना चूत चटाई में ही झड़ जाऊँगी। थोड़ी गांड चाट के छेद तैयार कर ले।” थोड़ी देर बाद वह कसमसाते हुए बोली और उसी अंदाज में घूम गयी कि उसकी गुदा का छेद मेरे मुंह पर आ गया और मैं लार से उसे भी गीला और चिकना करने लगा।
“अब डाल दे लंड बहनचोद … ऐसे ही झड़वायेगा क्या?” थोड़ी ही देर में वह सिहर कर अलग हो गयी।
फिर मैं तख्त से पैर नीचे लटका कर बैठ गया- बैठ जा ऐसे ही मेरी तरफ मुंह किये और खुद उछल-उछल कर अपनी गांड से मेरे लंड को चोद … बाद में मैं चोदूंगा।
“अच्छा तो यह ले।”
उसने मुंह में लार बना कर मेरे लिंग को उसमें नहला दिया और अपने दोनों पैर मेरे इधर-उधर टिकाती मेरी गोद में बैठ गयी। सही छेद पर उसने लिंग को हाथ से पकड़ कर टिकाया था वर्ना चिकनाहट तो इतनी थी कि बजाय पीछे के आगे ही सट से घुस जाता।
बहरहाल, अच्छा खासा ढीला और गीला हो चुकने के बाद भी मेरे लिंग को वही पहले जैसा कसाव महसूस हुआ और उसे दर्द की अनुभूति हुई। मेरे कंधे पकड़ कर उसने खुद को इतना वक्त दिया कि उसका छेद मेरे लिंग को ग्रहण कर ले।
इस कोशिश में मैंने उसके उभरे निकले निप्पलों को बारी-बारी चूसना शुरू कर दिया था जबकि वह एक हाथ से मेरा कंधा पकड़े दूसरे हाथ को नीचे ले जा कर अपने क्लिटोरिस हुड को सहलाने रगड़ने लगी थी।
जल्दी ही उत्तेजना दर्द पर हावी हो गयी और वह संभल गयी। उसकी आँखों में फिर वही मस्ती और नशा दिखाई देने लगा। उसने दूसरे हाथ से भी मेरा दूसरा कंधा पकड़ लिया और फिर अपने पैरों पर जोर देती ऊपर नीचे होने लगी। मैंने अपनी जीभ बाहर ही निकाल रखी थी जिस पर ऊपर-नीचे होते उसके चुचुक रगड़ खा रहे थे।
“पहली बार गांड मरवाने पर मुझे लगा ही नहीं था कि कभी इतना मजा भी आयेगा।”
“मजा नहीं आता तो ऐसे ही लोग मरवाते हैं … कभी किसी गांडू के मन में झांको तो पता चले।”
“सच कह रहे हो। जिस्म के हर हिस्से में मजा है … बस हम समझ नहीं पाते।”
फिर उसी तरह ऊपर-नीचे करती वह मेरे निर्देश के मुताबिक गंदी-गंदी बातें करती उत्तेजित होती रही और मैं भी बराबर का सहयोग देता रहा।
लेकिन थोड़ी देर बाद वह थक गयी तो मैंने उसकी टांगों के नीचे से हाथ निकाल कर उसका सारा वजन अपने हाथों पर लिया और उसी पोजीशन में खड़ा हो गया। इस पोजीशन में आगे या पीछे से लड़की का चोदन तभी संभव था जब आप उसका वजन आसानी से उठा सकें … वर्ना इतना वजन उठा कर कमर चलाना आसान काम नहीं।
यहां एक आसानी तो मेरे लिये यह थी कि बेहद दुबली पतली होने की वजह से वह काफी हल्की फुल्की थी, जिससे मैं उसे आसानी से हवा में उठाये रख सकता था। दूसरी मेरे नजरिये से आसानी यह थी कि उसके शरीर पर मांस की कमी की वजह से ऐसी पोजीशन में नितम्ब का जो हिस्सा नीचे गिर कर एक तरह से एक चौथाई लिंग को समागम से वंचित कर देता था … वह शाजिया में नदारद था, जिससे उसका छेद मेरे लिंग को जड़ तक अंदर ले पा रहा था और इससे उसका रोमांच भी बढ़ रहा था।
Read my story
खेल खेल में गंदी बात (Running) मेरा बेटा मेरा यार (माँ बेटे की वासना ) (Complete) नाजायज़ रिश्ता : ज़रूरत या कमज़ोरी (Running) अंजाने में बहन ने ही चुदवाया पूरा परिवार (complete) निदा के कारनामे (Complete) दोहरी ज़िंदगी (complete)नंदोई के साथ (complete ) पापा से शादी और हनीमून complete
खेल खेल में गंदी बात (Running) मेरा बेटा मेरा यार (माँ बेटे की वासना ) (Complete) नाजायज़ रिश्ता : ज़रूरत या कमज़ोरी (Running) अंजाने में बहन ने ही चुदवाया पूरा परिवार (complete) निदा के कारनामे (Complete) दोहरी ज़िंदगी (complete)नंदोई के साथ (complete ) पापा से शादी और हनीमून complete
- shaziya
- Novice User
- Posts: 2348
- Joined: 19 Feb 2015 03:27
Re: कामुकता भरे पल आरज़ू के साथ
“वाह … ऐसे ही चोदो मुझे … और चोदो … फाड़ दो मेरी गांड … सैंडी ने अपने हैवी लंड से मेरी चूत चोदी थी … तुम गांड चोद दो … मेरी गर्मी बढ़ रही है … और चोदो … और … थोड़ा तेज … और तेज …” जैसे-जैसे उसकी उत्तेजना बढ़ती जा रही थी वह आंखें बंद किये मदहोश हुई ऐसे ही जुमले बोले जा रही थी जो आम हालात में भले निम्न स्तर के हों लेकिन ऐसे माहौल में तो आग भरते हैं और वे मेरे कानों में रस घोल रहे थे।
उसके कानों के लिये मैं भी कम रस नहीं उड़ेल रहा था। दो बार झड़ चुका था तो तीसरी बार में टाईम लगना ही था।
यूँ उसे हवा में उठाये-उठाये धक्के लगाते जब थक गया तब उसी तरह उसे थामे-थामे बिस्तर के किनारे टिका दिया और खुद के पांव फैला कर कमर इतनी नीची कर ली कि सही से धक्के लगा सकूं। उसके दोनों पैर आपस में सटा कर एक हाथ से दबाव डालते पीछे कर दिये थे और दूसरे हाथ से उसका एक कूल्हा दबोच लिया था।
“और जोर से धक्के लगाओ … मैं झड़ने वाली हूँ।” उसने कराहते हुए कहा।
मैंने धक्कों की गति बढ़ा दी … वह भी बेसाख्ता जोर-जोर से आहें भरने लगी और मुझे भी चरम की अनुभूति होने लगी।
आखिर में दोनों हाथ से उसके कूल्हे साईड से दबोचे और अपनी अधिकतम गति से धक्के लगाने शुरू किये। इस वक्त उसकी गुदा का छेद फक-फक चल रहा था और मेरा लिंग गचागच उसे ठोके जा रहा था। कमरे में स्तम्भन की मधुर आवाजें जोर से गूँज रही थीं।
फिर आखिरकार उसका और मेरा पानी एकसाथ छूट पड़ा … और उसी पल में उसकी टांगें फैला कर, उनके बीच में जगह बनाते मैं उस पर लद गया और उसे जोर से भींच लिया। उसने भी उसी सख्ती से मुझे जकड़ लिया।
थोड़ी देर तक उसी अवस्था में एक दूसरे को जकड़े हम पड़े रहे और फिर अलग हो कर हांफने लगे।
“एक बात बताओ … क्या गांड मराने से भी लड़की झड़ जाती है?”
“इसका कोई निश्चित फार्मूला नहीं। जब जैसे औरत अपना चरम पा ले … बिना लंड के भी झड़ सकती है और लंड से चूत चुदा के भी हो सकता है कि न झड़े। खैर … अब सो जाओ, थकन काफी हो गयी है। कल बात करते हैं।”
“ओके!”
फिर हम सो गये. जिस हालत में हम थे, उसमें न खुद को साफ़ करने की इच्छा मुझे हुई और न उसे। हाँ रात में किसी वक़्त में पेशाब करने के लिये वह उठी तो उसने खुद को सही कर लिया और मैं उठा तो मैंने खुद को सही कर लिया।
सुबह हम जल्दी ही उठ गये और जो भी सफाई करनी थी वह करके मैं ही बाहर से जाकर नाश्ता ले आया और हम नाश्ता करके एक आखिरी राउंड सहवास के लिये तैयार हो गये।
हालाँकि अब इतनी न इच्छा ही थी और न ही शरीर में एनर्जी महसूस हो रही थी लेकिन मन में यह डर था कि पता नहीं यह नियामत फिर मिले न मिले। वैसे भी इंसान का सोचा सब कहाँ फलीभूत होता है।
इस बार हमने एक सीधा सिंपल सहवास किया और ज्यादा न उछल कूद मचाई और न ही शोर शराबा किया बल्कि बड़ी ख़ामोशी से निपटा लिया।
इसके बाद वह तैयार हो गयी और मैं उसे चारबाग ले आया जहाँ सुबह वाली मेमू मिल गयी और मैंने उसे कानपुर के लिये सवार करा दिया।
इसके बाद हम व्हाट्सअप पर प्राइवेट चैट भी करने लगे और मैं बाकायदा उसके लिये प्रेमी जैसा हो गया, जिससे वह हर किस्म की बात कर सकती थी।
इस बीच मैं उसके लिये नौकरी ढूंढता रहा था और वह भी खाला खालू को इस बात के लिये तैयार करती रही थी कि अगर इस बार यह नौकरी न मिली तो वे लोग उसे लखनऊ ट्राई करने देंगे। फिर हुआ वही जो उसने पहले से सोच रखा था … उसने जिस नौकरी के लिये इंटरव्यू दिया था, वह मिल तो गयी थी लेकिन अब उसे वह करनी नहीं थी।
उसने घरवालों को यही कहा कि वह नौकरी उसे नहीं मिली थी और अब उसने मुझे कह दिया है कि मैं उसके लिये कोई नौकरी देखूं। घरवाले तो इन्कार इकरार की हालत में थे नहीं और एक हफ्ते बाद ही मेरी कोशिशों से उसके लिये हजरतगंज में एक अच्छी नौकरी का प्रबंध हो ही गया।
अब उसने उस नौकरी के लिये जिद पकड़ ली तो खाला खालू ने मुझसे बात की और मैंने उन्हें समझाया कि उसे यह नौकरी करने दीजिये। या फिर पॉसिबल हो तो उसकी जल्द से जल्द शादी कर दीजिये क्योंकि आप लोग समझ नहीं पा रहे कि लड़की घर बैठे-बैठे फ्रस्टेट हो रही है, जो उसकी सेहत के लिये ठीक नहीं। बाहर रहेगी, नौकरी करेगी, लोगों से घुले मिलेगी तो कम से कम उसमें जिंदगी के लिये चाहत पैदा होगी जो उसमे मर रही है और यहाँ की फ़िक्र मत करिये। यहाँ मैं उसके गार्जियन की भूमिका निभाऊंगा और न सिर्फ उसके रहने की जगह पर नजर रखूँगा और उसके काम की जगह पर भी मेरी नज़र रहेगी।
जैसी कि उम्मीद थी, वे लोग मेरे भरोसा दिलाने पर इस बात के लिये राज़ी हो गये और इस ख़ुशी में उसने रात को बड़े अश्लील अश्लील मैसेज कर के पूरा फोन सेक्स ही कर डाला।
अब यहाँ उसके रहने के लिये मैंने पास के ही मोहल्ले में एक घर का चुनाव किया जहाँ एक बुज़ुर्ग दंपत्ति रहते थे, जिनके बेटे यूएस में रहते थे और उन्होंने अपने बड़े से घर को पीजी बना दिया था लड़कियों के लिये, जहाँ बारह लड़कियां रह सकती थीं। खाने पीने का भी वहीं इंतजाम था।
हालाँकि मैंने उन आंटी को एक महीने का किराया दे दिया लेकिन उनसे यही कहा कि मेरी बहन एक महीने बाद यहां रहना शुरू करेगी। वजह न उन्होंने पूछी और न मैंने उन्हें बताई।
अब इस एक महीने के लिये उसका ऐसा जुगाड़ बनाना था कि वह न सिर्फ जी भर के जी ले, बल्कि उसे हर तरह की सुविधा भी हासिल हो और इसके लिये मैंने पहले ही तैयारी कर रखी थी।
मेरा एक कलीग था रोहित, जो इंदिरा नगर में एक फ्लैट में एक पार्टनर के साथ शेयरिंग पे रहता था। कलीग था तो उससे दोस्ती होनी ही थी और चूँकि दोनों रसिक मिजाज थे तो जल्दी ही हममें जमने भी खूब लगी थी।
उसके फ्लैट पे भी जब तब जमघट लगती थी तो उसके पार्टनर शिवम से भी दोस्ती हो गयी थी, हालाँकि उससे फिर भी कोई ऐसी खास प्रगाढ़ता नहीं थी।
दोनों को विपदा की तरह मैंने स्टोरी सुनाई थी कि कजिन की नौकरी लखनऊ लग गयी थी लेकिन फौरी तौर पर रहने का इंतजाम नहीं हो पाया था। ठिकाना हो गया था लेकिन वहां महीने भर बाद ही एंट्री होनी थी। तब तक उसका गुजारा कहां हो।
चूँकि मैं तो एक घर में रहता था तो वहां तो मुश्किल था … वे लोग यूँ किसी लड़की का रहने की अनुमति ना देते, भले वह मेरी कजिन सिस्टर ही क्यों न हो … लेकिन चूँकि फ्लैट में रहना अपेक्षाकृत आसान होता है क्योंकि न यहां किसी से कोई पूछ होती है और न ही कोई एक दूसरे की खबर रखता है तो यहां चल सकता है अगर वह चाहें तो … भले इसके लिये एक महीने के किराये की शेयरिंग कर लें।
आस पड़ोस में कोई पूछता या जिक्र करता भी है तो मेरी बहन बता देना कि उसकी नौकरी यहां लग गयी है लेकिन रहने का तत्काल जुगाड़ नहीं हो पाया है तो कुछ दिन यहीं रहेगी। दिखावे के लिये बीच-बीच में मैं भी यहीं रुक जाऊँगा।
जाहिर है कि दोनों चक्कर में पड़ गये। अकेले रहते थे, आजाद जिंदगी गुजारते थे … गाली गलौज में बात करना आम आदत थी, रोज रात को दारूबाजी और हफ्ते में एक दिन लड़की लाना उनका शगल था। किसी पराये का साथ रहने लग जाना और वह भी जिसके साथ ‘बहन’ शब्द जुड़ा हो … एकदम से उस पर पाबंदी लग जाना भला कैसे पसंद आ जाता।
लेकिन फिर दोस्ती भी थी … मदद करने से पीछे हटना तो और ज्यादा मुश्किल काम था। बड़े सोचे विचारे … पक्का किये कि उन्हें यह कुर्बानी एक महीने से ज्यादा नहीं देनी थी … बड़े मुर्दा दिल से ‘हां’ बोले। मैंने यह यकीन उन्हें दिला दिया था कि उसके रहने का इंतजाम हो चुका है और मैं एडवांस किराया भी दे चुका हूँ … बस इसी महीने की दिक्कत है।
जैसे-तैसे बात बनी तो मैंने शाजिया को आने के लिये कह दिया। इस बीच मैंने उसे ठीक से समझा दिया था कि उसे कैसे और क्या करना है … क्या बोलना है।
फिर वह कानपुर को अलविदा कर के लखनऊ आ गयी।
छुट्टी का दिन था … सुबह मैंने उसे चारबाग से पिक किया और सीधा इंदिरा नगर ले आया।
दोनों उसे देख के उतने ही खुश हुए जितने सामान्य तौर पर हो सकते थे। जाहिर है कि उनकी नजर में वह बहन थी, न कि कोई माल … और दूसरे वह ऐसी कोई सैक्सी काया भी नहीं थी कि देखते ही किसी के मन में रूचि पैदा कर दे। बल्कि ऐसी दुबली पतली थी कि देखने वाले के मन में करुणा ही पैदा कर देती थी।
बहरहाल, शाजिया नहा धो कर फ्रेश हुई और फिर हम साथ ही बाहर निकले। वहीं एक रेस्टोरेंट में नाश्ता किया और घूमने निकल खड़े हुए जो पहले से तय था।
लोहिया पार्क, अंबेडकर पार्क और जनेश्वर पार्क घूमते दिन गुजर गया तो शाम के बाद सहारागंज चले आये। थोड़ी शॉपिंग वगैरह की … वहीं ऊपर चायनीज खाया और करीब दस बजे वापस घर आ गये।
आज मुझे भी यहीं रुकना था तो मैंने शिवम की लोअर और टीशर्ट पहन ली, उन लोगों ने भी कपड़े चेंज कर लिये और हम टीवी वाले बैडरूम में आ गये। शाजिया ने अभी कपड़े नहीं चेंज किये थे।
“भाई बता रहे थे कि तुम लोग मुझे यहां रखने के लिये बड़ी मुश्किल से तैयार हुए।”
“अरे नहीं … ऐसी बात नहीं।” दोनों ही सकपका गये।
“नहीं … मुझे बुरा नहीं लगा। सबकी अपनी अकेली जिंदगी में कई आदतें होती हैं, एकदम से उन पर पाबंदी लग जाना इंसान को अखरता तो है ही।”
दोनों कमीने मुझे घूरने लगे।
“मुझे क्यों घूर रहे हो बे … तुम्हारी हमदर्दी में ही बताई ताकि वह एडजस्ट कर सके।”
“क्या एडजस्ट?” शिवम ने उलझनपूर्ण नेत्रों से मुझे देखा।
“तुम लोग जो भी करते थे, कर सकते हो … किसी को मेरे लिये कुछ बदलने की जरूरत नहीं। मैं नहीं चाहती कि मेरी वजह से किसी को थोड़ी सी भी तकलीफ उठानी पड़े।”
अब दोनों और असमंजस से मुझे देखने लगे कि मैंने क्या-क्या बताया है।
“आजकल सब चलता है यार … सिगरेट पीनी है सामने पियो, इधर-उधर छुप के पीने की जरूरत नहीं। सम्मान फिर भी बना रहेगा।”
दोनों के चेहरों पर एकदम से राहत के भाव आये और उन्होंने अहसान भरी नजरों से मुझे देखा।
“जल्दी निकाल यार … कब से तलब लग रही है।” रोहित ने शिवम की पीठ पर हाथ मारते हुए कहा।
रोहित ने बेड की दराज से सिगरेट की डिब्बी और लाईटर निकाला। दोनों ने बड़ी बेताबी से एक-एक सिगरेट दबोच कर सुलगाई और ऐसे राहत भरे अंदाज में कश लेने लगे जैसे बड़ी मुद्दत के बाद कोई नियामत चीज पाई हो और उनकी हालत देख कर शाजिया हंस पड़ी, जबकि मैं मुस्करा कर रह गया।
“अरे यार … मुझसे डरो मत। इतनी संस्कारी नहीं हूं।” शाजिया ने हंसते हुए कहा था।
और दोनों सर हिला कर रह गये।
“मे आई …” शाजिया ने रोहित की सिगरेट की ओर संकेत करते हुए पूछा और वह हैरानी से मुझे देखने लगा।
“अबे दे दे … आजकल लड़कियां मौका मिलने पे पी लेती हैं। मुझे क्यों देख रहा है?” मैंने घुड़की देते हुए कहा।
उसने सिगरेट दे दी। शाजिया ने एक कश लेकर धुआं मस्ती में उसके चेहरे पर ही छोड़ दिया और दूसरा कश ले कर कश शिवम के चेहरे पर … दोनों आश्चर्य से उसे देखते रहे और उसने सिगरेट वापस रोहित को थमा दी।
“मुझे सिगरेट की महक बड़ी अच्छी लगती है … वैसे तुम लोगों ने जो बोतलें किचन के कबाड़ वाले केबिन में छुपाई हैं … वे भी देखी मैंने। कहो तो ले आऊं … मेरी वजह से तुम्हारे शौक क्यों मरें। भाई ने बताया था कि रोज रात को पीने की आदत है तुम लोगों को!”
उसके कानों के लिये मैं भी कम रस नहीं उड़ेल रहा था। दो बार झड़ चुका था तो तीसरी बार में टाईम लगना ही था।
यूँ उसे हवा में उठाये-उठाये धक्के लगाते जब थक गया तब उसी तरह उसे थामे-थामे बिस्तर के किनारे टिका दिया और खुद के पांव फैला कर कमर इतनी नीची कर ली कि सही से धक्के लगा सकूं। उसके दोनों पैर आपस में सटा कर एक हाथ से दबाव डालते पीछे कर दिये थे और दूसरे हाथ से उसका एक कूल्हा दबोच लिया था।
“और जोर से धक्के लगाओ … मैं झड़ने वाली हूँ।” उसने कराहते हुए कहा।
मैंने धक्कों की गति बढ़ा दी … वह भी बेसाख्ता जोर-जोर से आहें भरने लगी और मुझे भी चरम की अनुभूति होने लगी।
आखिर में दोनों हाथ से उसके कूल्हे साईड से दबोचे और अपनी अधिकतम गति से धक्के लगाने शुरू किये। इस वक्त उसकी गुदा का छेद फक-फक चल रहा था और मेरा लिंग गचागच उसे ठोके जा रहा था। कमरे में स्तम्भन की मधुर आवाजें जोर से गूँज रही थीं।
फिर आखिरकार उसका और मेरा पानी एकसाथ छूट पड़ा … और उसी पल में उसकी टांगें फैला कर, उनके बीच में जगह बनाते मैं उस पर लद गया और उसे जोर से भींच लिया। उसने भी उसी सख्ती से मुझे जकड़ लिया।
थोड़ी देर तक उसी अवस्था में एक दूसरे को जकड़े हम पड़े रहे और फिर अलग हो कर हांफने लगे।
“एक बात बताओ … क्या गांड मराने से भी लड़की झड़ जाती है?”
“इसका कोई निश्चित फार्मूला नहीं। जब जैसे औरत अपना चरम पा ले … बिना लंड के भी झड़ सकती है और लंड से चूत चुदा के भी हो सकता है कि न झड़े। खैर … अब सो जाओ, थकन काफी हो गयी है। कल बात करते हैं।”
“ओके!”
फिर हम सो गये. जिस हालत में हम थे, उसमें न खुद को साफ़ करने की इच्छा मुझे हुई और न उसे। हाँ रात में किसी वक़्त में पेशाब करने के लिये वह उठी तो उसने खुद को सही कर लिया और मैं उठा तो मैंने खुद को सही कर लिया।
सुबह हम जल्दी ही उठ गये और जो भी सफाई करनी थी वह करके मैं ही बाहर से जाकर नाश्ता ले आया और हम नाश्ता करके एक आखिरी राउंड सहवास के लिये तैयार हो गये।
हालाँकि अब इतनी न इच्छा ही थी और न ही शरीर में एनर्जी महसूस हो रही थी लेकिन मन में यह डर था कि पता नहीं यह नियामत फिर मिले न मिले। वैसे भी इंसान का सोचा सब कहाँ फलीभूत होता है।
इस बार हमने एक सीधा सिंपल सहवास किया और ज्यादा न उछल कूद मचाई और न ही शोर शराबा किया बल्कि बड़ी ख़ामोशी से निपटा लिया।
इसके बाद वह तैयार हो गयी और मैं उसे चारबाग ले आया जहाँ सुबह वाली मेमू मिल गयी और मैंने उसे कानपुर के लिये सवार करा दिया।
इसके बाद हम व्हाट्सअप पर प्राइवेट चैट भी करने लगे और मैं बाकायदा उसके लिये प्रेमी जैसा हो गया, जिससे वह हर किस्म की बात कर सकती थी।
इस बीच मैं उसके लिये नौकरी ढूंढता रहा था और वह भी खाला खालू को इस बात के लिये तैयार करती रही थी कि अगर इस बार यह नौकरी न मिली तो वे लोग उसे लखनऊ ट्राई करने देंगे। फिर हुआ वही जो उसने पहले से सोच रखा था … उसने जिस नौकरी के लिये इंटरव्यू दिया था, वह मिल तो गयी थी लेकिन अब उसे वह करनी नहीं थी।
उसने घरवालों को यही कहा कि वह नौकरी उसे नहीं मिली थी और अब उसने मुझे कह दिया है कि मैं उसके लिये कोई नौकरी देखूं। घरवाले तो इन्कार इकरार की हालत में थे नहीं और एक हफ्ते बाद ही मेरी कोशिशों से उसके लिये हजरतगंज में एक अच्छी नौकरी का प्रबंध हो ही गया।
अब उसने उस नौकरी के लिये जिद पकड़ ली तो खाला खालू ने मुझसे बात की और मैंने उन्हें समझाया कि उसे यह नौकरी करने दीजिये। या फिर पॉसिबल हो तो उसकी जल्द से जल्द शादी कर दीजिये क्योंकि आप लोग समझ नहीं पा रहे कि लड़की घर बैठे-बैठे फ्रस्टेट हो रही है, जो उसकी सेहत के लिये ठीक नहीं। बाहर रहेगी, नौकरी करेगी, लोगों से घुले मिलेगी तो कम से कम उसमें जिंदगी के लिये चाहत पैदा होगी जो उसमे मर रही है और यहाँ की फ़िक्र मत करिये। यहाँ मैं उसके गार्जियन की भूमिका निभाऊंगा और न सिर्फ उसके रहने की जगह पर नजर रखूँगा और उसके काम की जगह पर भी मेरी नज़र रहेगी।
जैसी कि उम्मीद थी, वे लोग मेरे भरोसा दिलाने पर इस बात के लिये राज़ी हो गये और इस ख़ुशी में उसने रात को बड़े अश्लील अश्लील मैसेज कर के पूरा फोन सेक्स ही कर डाला।
अब यहाँ उसके रहने के लिये मैंने पास के ही मोहल्ले में एक घर का चुनाव किया जहाँ एक बुज़ुर्ग दंपत्ति रहते थे, जिनके बेटे यूएस में रहते थे और उन्होंने अपने बड़े से घर को पीजी बना दिया था लड़कियों के लिये, जहाँ बारह लड़कियां रह सकती थीं। खाने पीने का भी वहीं इंतजाम था।
हालाँकि मैंने उन आंटी को एक महीने का किराया दे दिया लेकिन उनसे यही कहा कि मेरी बहन एक महीने बाद यहां रहना शुरू करेगी। वजह न उन्होंने पूछी और न मैंने उन्हें बताई।
अब इस एक महीने के लिये उसका ऐसा जुगाड़ बनाना था कि वह न सिर्फ जी भर के जी ले, बल्कि उसे हर तरह की सुविधा भी हासिल हो और इसके लिये मैंने पहले ही तैयारी कर रखी थी।
मेरा एक कलीग था रोहित, जो इंदिरा नगर में एक फ्लैट में एक पार्टनर के साथ शेयरिंग पे रहता था। कलीग था तो उससे दोस्ती होनी ही थी और चूँकि दोनों रसिक मिजाज थे तो जल्दी ही हममें जमने भी खूब लगी थी।
उसके फ्लैट पे भी जब तब जमघट लगती थी तो उसके पार्टनर शिवम से भी दोस्ती हो गयी थी, हालाँकि उससे फिर भी कोई ऐसी खास प्रगाढ़ता नहीं थी।
दोनों को विपदा की तरह मैंने स्टोरी सुनाई थी कि कजिन की नौकरी लखनऊ लग गयी थी लेकिन फौरी तौर पर रहने का इंतजाम नहीं हो पाया था। ठिकाना हो गया था लेकिन वहां महीने भर बाद ही एंट्री होनी थी। तब तक उसका गुजारा कहां हो।
चूँकि मैं तो एक घर में रहता था तो वहां तो मुश्किल था … वे लोग यूँ किसी लड़की का रहने की अनुमति ना देते, भले वह मेरी कजिन सिस्टर ही क्यों न हो … लेकिन चूँकि फ्लैट में रहना अपेक्षाकृत आसान होता है क्योंकि न यहां किसी से कोई पूछ होती है और न ही कोई एक दूसरे की खबर रखता है तो यहां चल सकता है अगर वह चाहें तो … भले इसके लिये एक महीने के किराये की शेयरिंग कर लें।
आस पड़ोस में कोई पूछता या जिक्र करता भी है तो मेरी बहन बता देना कि उसकी नौकरी यहां लग गयी है लेकिन रहने का तत्काल जुगाड़ नहीं हो पाया है तो कुछ दिन यहीं रहेगी। दिखावे के लिये बीच-बीच में मैं भी यहीं रुक जाऊँगा।
जाहिर है कि दोनों चक्कर में पड़ गये। अकेले रहते थे, आजाद जिंदगी गुजारते थे … गाली गलौज में बात करना आम आदत थी, रोज रात को दारूबाजी और हफ्ते में एक दिन लड़की लाना उनका शगल था। किसी पराये का साथ रहने लग जाना और वह भी जिसके साथ ‘बहन’ शब्द जुड़ा हो … एकदम से उस पर पाबंदी लग जाना भला कैसे पसंद आ जाता।
लेकिन फिर दोस्ती भी थी … मदद करने से पीछे हटना तो और ज्यादा मुश्किल काम था। बड़े सोचे विचारे … पक्का किये कि उन्हें यह कुर्बानी एक महीने से ज्यादा नहीं देनी थी … बड़े मुर्दा दिल से ‘हां’ बोले। मैंने यह यकीन उन्हें दिला दिया था कि उसके रहने का इंतजाम हो चुका है और मैं एडवांस किराया भी दे चुका हूँ … बस इसी महीने की दिक्कत है।
जैसे-तैसे बात बनी तो मैंने शाजिया को आने के लिये कह दिया। इस बीच मैंने उसे ठीक से समझा दिया था कि उसे कैसे और क्या करना है … क्या बोलना है।
फिर वह कानपुर को अलविदा कर के लखनऊ आ गयी।
छुट्टी का दिन था … सुबह मैंने उसे चारबाग से पिक किया और सीधा इंदिरा नगर ले आया।
दोनों उसे देख के उतने ही खुश हुए जितने सामान्य तौर पर हो सकते थे। जाहिर है कि उनकी नजर में वह बहन थी, न कि कोई माल … और दूसरे वह ऐसी कोई सैक्सी काया भी नहीं थी कि देखते ही किसी के मन में रूचि पैदा कर दे। बल्कि ऐसी दुबली पतली थी कि देखने वाले के मन में करुणा ही पैदा कर देती थी।
बहरहाल, शाजिया नहा धो कर फ्रेश हुई और फिर हम साथ ही बाहर निकले। वहीं एक रेस्टोरेंट में नाश्ता किया और घूमने निकल खड़े हुए जो पहले से तय था।
लोहिया पार्क, अंबेडकर पार्क और जनेश्वर पार्क घूमते दिन गुजर गया तो शाम के बाद सहारागंज चले आये। थोड़ी शॉपिंग वगैरह की … वहीं ऊपर चायनीज खाया और करीब दस बजे वापस घर आ गये।
आज मुझे भी यहीं रुकना था तो मैंने शिवम की लोअर और टीशर्ट पहन ली, उन लोगों ने भी कपड़े चेंज कर लिये और हम टीवी वाले बैडरूम में आ गये। शाजिया ने अभी कपड़े नहीं चेंज किये थे।
“भाई बता रहे थे कि तुम लोग मुझे यहां रखने के लिये बड़ी मुश्किल से तैयार हुए।”
“अरे नहीं … ऐसी बात नहीं।” दोनों ही सकपका गये।
“नहीं … मुझे बुरा नहीं लगा। सबकी अपनी अकेली जिंदगी में कई आदतें होती हैं, एकदम से उन पर पाबंदी लग जाना इंसान को अखरता तो है ही।”
दोनों कमीने मुझे घूरने लगे।
“मुझे क्यों घूर रहे हो बे … तुम्हारी हमदर्दी में ही बताई ताकि वह एडजस्ट कर सके।”
“क्या एडजस्ट?” शिवम ने उलझनपूर्ण नेत्रों से मुझे देखा।
“तुम लोग जो भी करते थे, कर सकते हो … किसी को मेरे लिये कुछ बदलने की जरूरत नहीं। मैं नहीं चाहती कि मेरी वजह से किसी को थोड़ी सी भी तकलीफ उठानी पड़े।”
अब दोनों और असमंजस से मुझे देखने लगे कि मैंने क्या-क्या बताया है।
“आजकल सब चलता है यार … सिगरेट पीनी है सामने पियो, इधर-उधर छुप के पीने की जरूरत नहीं। सम्मान फिर भी बना रहेगा।”
दोनों के चेहरों पर एकदम से राहत के भाव आये और उन्होंने अहसान भरी नजरों से मुझे देखा।
“जल्दी निकाल यार … कब से तलब लग रही है।” रोहित ने शिवम की पीठ पर हाथ मारते हुए कहा।
रोहित ने बेड की दराज से सिगरेट की डिब्बी और लाईटर निकाला। दोनों ने बड़ी बेताबी से एक-एक सिगरेट दबोच कर सुलगाई और ऐसे राहत भरे अंदाज में कश लेने लगे जैसे बड़ी मुद्दत के बाद कोई नियामत चीज पाई हो और उनकी हालत देख कर शाजिया हंस पड़ी, जबकि मैं मुस्करा कर रह गया।
“अरे यार … मुझसे डरो मत। इतनी संस्कारी नहीं हूं।” शाजिया ने हंसते हुए कहा था।
और दोनों सर हिला कर रह गये।
“मे आई …” शाजिया ने रोहित की सिगरेट की ओर संकेत करते हुए पूछा और वह हैरानी से मुझे देखने लगा।
“अबे दे दे … आजकल लड़कियां मौका मिलने पे पी लेती हैं। मुझे क्यों देख रहा है?” मैंने घुड़की देते हुए कहा।
उसने सिगरेट दे दी। शाजिया ने एक कश लेकर धुआं मस्ती में उसके चेहरे पर ही छोड़ दिया और दूसरा कश ले कर कश शिवम के चेहरे पर … दोनों आश्चर्य से उसे देखते रहे और उसने सिगरेट वापस रोहित को थमा दी।
“मुझे सिगरेट की महक बड़ी अच्छी लगती है … वैसे तुम लोगों ने जो बोतलें किचन के कबाड़ वाले केबिन में छुपाई हैं … वे भी देखी मैंने। कहो तो ले आऊं … मेरी वजह से तुम्हारे शौक क्यों मरें। भाई ने बताया था कि रोज रात को पीने की आदत है तुम लोगों को!”
Read my story
खेल खेल में गंदी बात (Running) मेरा बेटा मेरा यार (माँ बेटे की वासना ) (Complete) नाजायज़ रिश्ता : ज़रूरत या कमज़ोरी (Running) अंजाने में बहन ने ही चुदवाया पूरा परिवार (complete) निदा के कारनामे (Complete) दोहरी ज़िंदगी (complete)नंदोई के साथ (complete ) पापा से शादी और हनीमून complete
खेल खेल में गंदी बात (Running) मेरा बेटा मेरा यार (माँ बेटे की वासना ) (Complete) नाजायज़ रिश्ता : ज़रूरत या कमज़ोरी (Running) अंजाने में बहन ने ही चुदवाया पूरा परिवार (complete) निदा के कारनामे (Complete) दोहरी ज़िंदगी (complete)नंदोई के साथ (complete ) पापा से शादी और हनीमून complete
- shaziya
- Novice User
- Posts: 2348
- Joined: 19 Feb 2015 03:27
Re: कामुकता भरे पल आरज़ू के साथ
दोनों ने आंखें फैला कर पहले अविश्वास भरे अंदाज में उसे देखा फिर दोनों हाथ उठा कर मेरे कदमों में लोट गये।
“धन्य हो गुरू … ऐसी मस्त बहन सबको मिले।” दोनों आगे पीछे एक ही बात बोले।
शाजिया उठ कर बाहर निकल गयी और अगले दो चक्करों में उसने चखने के साथ पीने का सामान वहीं पंहुचा दिया लेकिन गिलास चार देख कर दोनों भौंचक्के रह गये।
“इतनी हैरानी से क्या देख रहे हो … मैं सिर्फ सोडा ले लूंगी, लेकिन सामने बैठ के पियोगे तो साथ देना बनता है न?” शाजिया ने मुस्कराते हुए कहा और दोनों संतुष्ट हो गये।
उसी ने तीन पैग बनाये और खुद सोडा ले लिया। हम तीनों धीरे-धीरे पैग चुसकने लगे।
“वैसे ऐसे कोई कोऑपरेटिव हो तो एतराज की गुंजाइश कहां बचती है।” शिवम ने चुस्की मारते हुए कहा।
“सही बात है।” रोहित ने सर हिलाते हुए उसकी बात का अनुमोदन किया।
“पहले ही बता देना था।” रोहित ने शिकायती नजरों से मुझे देखा।
“मुझे भी कहां पता था भोसड़ी के … यह सब तेवर तो पहली बार देख रहा हूँ।”
“ह … अबे गाली दे रहे हो?” दोनों ने मुंह फैलाये।
“हां तुम झांट के लौड़ो …. तो शरीफ हो न बड़े … कभी गाली ही नहीं बकते हो।”
“अरे मगर … इनके सामने?” दोनों उलझन में पड़ गये।
“तो क्या … वह मेरे सामने सिगरेट पी सकती है, शराब की महफिल में साथ दे सकती है तो मैं गाली क्यों नहीं दे सकता?”
“सही बात है … वैसे भी मैं घर से बाहर निकलने वाली लड़की हूँ, इधर-उधर सुनती ही रहती हूं गाली गलौज, फिर यहां सुन कर क्या फर्क पड़ जायेगा।”
दोनों सर खुजाते कभी मुझे देखते तो कभी शाजिया को, जबकि शाजिया ने लिकर की बोतल उठाते हुए कहा- खाली सोडा मजा नहीं दे रहा यार … थोड़ी सी तो लेने दो।
“आप भी पीती हो?” रोहित ने उल्लुओं की तरह पलकें झपकाते हुए पूरे आश्चर्य से कहा।
“कभी कभार … पर बेवड़ी नहीं हूं।”
“जय हो … जय हो।” शिवम ने नारा लगाया।
बहरहाल फिर हम चारों चुपचाप अपने-अपने पैग सिप करने लगे। मैं समझ सकता था कि उनकी मनःस्थिति क्या रही होगी। उनके मन में कई सवाल उभर रहे होंगे जो वे कहने से बच रहे थे लेकिन मुझे पता था कि थोड़ी देर बाद सारी तस्वीर एकदम साफ हो जायेगी।
“मैं चेंज करके आती हूँ।” शाजिया अपना पैग खत्म कर के उठती हुई बोली और बाहर निकल गयी।
“साले … तूने बताया नहीं कि तेरी बहन इतनी एडवांस है।” रोहित ने मुझे गाली देते हुए कहा।
“बहन नहीं कजिन भोसड़ी के … और मुझे क्या पहले से पता था। मैं भी उसकी हरकतें अभी ही देख रहा हूँ … पहले घर में तो हमेशा नेक परवीन ही बनी दिखती थी।”
“वैसे तुम लोगों में इस टाईप की लड़कियां होती तो नहीं।” बीच में शिवम ने बोलते हुए कहा।
“हां होती तो नहीं यार … पर यह है तो क्या करूँ।”
“चल अच्छा है … कोई बंदिश तो नहीं महसूस होगी।”
“खत्म हो गया … और बनाऊं?”
“रहने दे … वही आ के बनायेगी।”
थोड़ी देर में शाजिया चेंज कर के आ गयी। सलवार सूट उतार कर उसने ट्राउजर और टीशर्ट पहन ली थी।
यहां गौरतलब बात यह थी कि उसने नीचे ब्रा उतार दी थी जिससे उसके उभार तो चूँकि मामूली ही थे तो वह नहीं पता चल रहे थे लेकिन एक तो पफी निप्पल मोटे और उभरे थे, दूसरे एरोला भी उभरे हुए थे जिसकी वजह से उसके स्तनों का अग्रभाग एकदम साफ ऊपर से ही परिलक्षित हो रहा था।
जाहिर है दोनों कमीनों की निगाहें वहां ठहरनी ही थी। अब मुश्किल यह हो गयी कि मेरे सामने खुल के देख भी नहीं सकते थे तो नजरें बचा-बचा कर देख रहे थे।
“क्या हुआ ख़त्म हो गये सबके … चलो फिर से बनाती हूँ।” उसने ठीये पे बैठते हुए कहा। उसने फिर बाकायदा चार पैग बनाये और हम चारों फिर लगे। वह दोनों कमीने बार-बार नज़र बचा कर उसके चुचुक देखने से बाज़ नहीं आते थे और मैं उन दोनों को ही देख रहा था।
“तुमने कहाँ सीखा पीना?” फिर मैंने ही बात छेड़ी।
“ब्वायफ्रेंड ने सिखाई … कभी कभार उसी के साथ हो जाती थी।”
“घर कैसे जाती थी फिर नशे में?”
“कहाँ नशे में … नींबू का इस्तेमाल कर के नशे से छुटकारा पाते थे तब घर जाते थे। बड़ी आफत थी तब … अब तो खैर कभी भी पी सकते हैं इन पियक्कड़ों के साथ और कहीं घर जाने की टेंशन भी नहीं।”
“बस पीते ही थे या …?” रोहित ने कहते-कहते जानबूझ कर बात अधूरी छोड़ दी।
“मुझे क्या देख रहा है भोसड़ी के … मैं उसका बाप हूँ, गार्जियन हूँ? उसकी अपनी लाइफ है, जो उसका जी चाहे करे … मेरी खाला की लड़की है तो जितनी हेल्प मैं कर सकता था उतनी किये दे रहा हूँ, उसका मतलब यह थोड़े है कि वो मेरे हिसाब से चलने लगेगी।”
“सही बात है … चली तो मैं अपने बाप के हिसाब से नहीं।” कह कर वह जोर-जोर से हंसने लगी।
“चढ़ रही है बहन तुझे … पर लिहाज भी तो करना चाहिये न। काफी फर्क है शायद तुम दोनों की उम्र में।” इस बार शिवम ने बुजुर्गों की तरह बात की।
“उम्र का फर्क बचपन में मायने रखता है … फिर बीस के बाद सब बराबर हो जाते हैं।” आरज़ू ने एक बड़ा घूँट लेने के बाद कहा।
“तो बताया नहीं … पीने के बाद चुपचाप घर चले जाते थे?” रोहित ने फिर छेड़ी।
“तू कुछ और भी तो पूछ सकता है साले … जबरिया गले पड़ रहा है।” शिवम ने ऐसे कहा जैसे उसके पूछने से उलझन हो रही हो जबकि शायद जवाब वह खुद भी सुनना चाहता था।
“पूछने दो यार … मैं क्या किसी से डरती हूँ।” आरज़ू ने ऐसे सीने पे हाथ मार के कहा जैसे नशा चढ़ गया हो।
“तो बताओ न?”
“अबे चूतिये … तू अपनी गर्लफ्रेंड को अकेले में ला कर दारु पिलाएगा और फिर ऐसे ही घर जाने देगा क्या … पहले यह बता।”
“नहीं … ऐसे कैसे जाने दूंगा।”
“फिर कैसे जाने देगा?”
“चोदने के बाद जाने दूंगा।” उसने कहा तो आरज़ू से लेकिन डर-डर के देख ऐसे मेरी तरफ रहा था जैसे मेरी लात खाने का डर हो और मैं उठ भी गया।
“बैठ जाओ पहलवान!” आरज़ू ने मेरा हाथ पकड़ कर मुझे खींच कर वापस बिठा लिया और रोहित की तरफ देखते हुए बोली- तो बेटा वो किसी और दुनिया का था क्या जो बिना चोदे मुझे जाने देता।
“अरे क्या बात कर रही यार … यह चोदते कैसे हैं?” इस बार शिवम ने लहराते हुए स्वर में कहा … लगता था अब माहौल का नशा सर चढ़ने लगा था।
“एल्लो … यह भी न पता।”
“सब पता है मादरचोदों को … हर हफ्ते लौंडिया ला के चोदते हैं यहाँ और मासूम बन रहे हैं साले।”
“अरे तो कोई बात नहीं … फिर भी मैं बता देती हूँ।” आरज़ू ने अपनी टांगें फैलाते हुए कहा- “देख बेटा … यहाँ पे न, लड़की की चूत होती है, जिसमें तुम लौंडे अपना लंड डाल देते हो और उसे इतना अन्दर-बाहर करते हो कि चूत झड़ जाती है और लंड भी झड़ जाता है।”
ज़ाहिर है कि दोनों के कानों की लवें सुलग गयीं और वे मेरी तरफ देखने लगे और मैंने दिखावे के तौर पर अपना सर पीट लिया।
“क्यों टेन्स हो यार … मेरे बाप तो नहीं। जानने दो सबकुछ … की फरक पैंदा ए उस्ताद।” आरज़ू को तो पक्का चढ़ गयी थी और मुझे यह अंदेशा हो गया कि फिर सब सच ही न उगलने बैठ जाये।
“यह झड़ते कैसे हैं यार?” शिवम ने ही आगे छेड़ा और मैंने उसे लत जड दी, जिससे वह पीछे लुढ़क गया।
थोड़ा बहुत नशा तो सभी को था … शिवम उठा तो गाली देता मेरे ऊपर चढ़ गया और मैंने भी जानबूझ कर उसे पकड़ लिया जैसे छोड़ने का इरादा न रखता होऊं। आरज़ू और रोहित हमें अलग करने की कोशिश करने लगे और इस कोशिश में चारों ही गुत्थमगुत्था हो गये।
जैसा कि मुझे पता था कि इस धींगामुश्ती में मुझे तो गौण ही हो जाना था और वह दोनों आरज़ू के शरीर पर हाथ सेंकने का लुत्फ़ लेने लग जाने वाले थे।
“अरे बहन के लौड़ों … पजामे के ऊपर से उंगली कर रहे हो। पाजामा ही फट जायेगा।” थोड़ी देर बाद कमरे में आरज़ू की भन्नाई हुई आवाज़ गूंजी।
“हट भोसड़ी के … मेरे सामने उसके उंगली कर रहे हो मादरचोदो!” मैं उनसे अलग होता हुआ चिड़चिड़ाया।
बमुश्किल वह तीनों भी अलग हुए।
“यह बताओ तुम में से मेरी गांड में उंगली किसने की और मेरी चूत में किसने उंगली घुसाई।”
“मैंने नहीं … मैंने नहीं।” दोनों ने स्पष्ट इनकार कर दिया।
“मैं पता लगा के रहूंगी … समझ क्या रखा है तुम लोगों ने मुझे। मौके का फायदा उठाते हो … फिंगर टेस्ट होगा तुम दोनों का।”
“यह कैसा टेस्ट होता है?”
“मेरी गांड में फिर से उंगली घुसाओ … दोनों लोग। मैं जान जाउंगी कि किसने मेरी गांड में उंगली करी थी।” उसने निर्णयात्मक स्वर में कहा और पट्ठे खुश हो गये।
वह उनके सामने चौपाये की तरह झुक गयी और दोनों को उंगली घुसाने को कहा। मैं दोनों टाँगे फैलाये दीवार से टिक के उन्हें देखने लगा। पहले रोहित ने उसके पजामे के ऊपर से ही गुदा द्वार में उंगली घुसाई और फिर उसके निर्देश पर शिवम ने।
“हम्म … तो शिवम तुमने मेरी गांड में उंगली करी थी। तुम्हें इसकी सजा मिलेगी।” कहते हुए वह टाँगें फैला कर सीधे बैठ गयी- अब मेरी चूत में उंगली करो।
अब इससे बढ़िया मौका और कहाँ मिलता … दोनों ने पजामे के ऊपर से ही उसकी योनि में उंगली घुसाई और उसके चेहरे से ही लग रहा था कि वह मज़ा ले रही हो।
“ओह … तो रोहित बाबू …. मेरी चूत में तुमने उंगली करी थी। तुम्हें भी सजा मिलेगी।”
“और वह सजा क्या होगी?”
“शिवम … तुमने गांड में उंगली की, जो कि ज़ाहिर करता है कि तुम्हे गांड मारने का बहुत शौक है लेकिन मैं तुम्हें गांड नहीं मारने दूँगी और तुम मेरी चूत मरोगे। यही तुम्हारी सजा है … और रोहित तुम … तुमने चूत में उंगली करके साबित किया है कि तुम्हारी प्रियोरिटी चूत है तो तुम्हें चूत मारने को न मिलेगी और तुम्हे मेरी गांड मारनी पड़ेगी।”
दोनों की लार टपक पड़ी लेकिन फिर भी झिझकते हुए दोनों ने मेरी तरफ देखा- हम सजा भुगतने के लिये तैयार हैं लेकिन …
“अरे उसकी तरफ क्यों देख रहे … कौन सा मेरा सगा भाई या बाप है। कजिन ही तो है … कजिन लोग क्या चोदते नहीं … उसे मौका मिलेगा तो वह भी चढ़ने से कौन सा बाज़ आ जायेगा। वैसे भी मैं किसी से नहीं डरती।”
“हमें यकीन है मलिका आलिया!”
“लंड दिखाओ अपने … चेक करुँगी कि कोई बीमारी तो नहीं है।”
अब भला उन्हें कौन सा ऐतराज़ होता … दोनों कमीने मुझे चिढ़ाने वाले अंदाज़ में देखते झटपट नंगे हो गये और उनके झूलते स्थूल लिंग आरज़ू के चेहरे के आगे लहराने लगे। हालाँकि वे नए बने माहौल में उत्तेजित तो हो गये थे लेकिन उनमें पूर्ण तनाव अभी नहीं आया था।
“ऐसे कुछ पता नहीं चल रहा.. टाईट करना पड़ेगा; लंड खड़े करो भड़वो!” उसके लहराते शब्द और आंखें बता रही थीं कि उस पर कायदे से चढ़ गयी थी।
“कैसे खड़ा करें मैडम.. आप ही चूस के खड़ा कर दो।” रोहित ने शिवम को कोहनी मारते हुए कहा।
“हम्म.. आइडिया बुरा नहीं।” शाजिया ने लहराते हुए कहा और दोनों हाथों से दोनों के लिंग पकड़ कर मुंह के पास कर लिये और बिना किसी शर्म या झिझक के उन्हें चूसना शुरू कर दिया। कभी रोहित का लिंग चूसने लगती तो कभी शिवम का.. साथ ही हाथ से भी उन्हें सहलाती जा रही थी।
“धन्य हो गुरू … ऐसी मस्त बहन सबको मिले।” दोनों आगे पीछे एक ही बात बोले।
शाजिया उठ कर बाहर निकल गयी और अगले दो चक्करों में उसने चखने के साथ पीने का सामान वहीं पंहुचा दिया लेकिन गिलास चार देख कर दोनों भौंचक्के रह गये।
“इतनी हैरानी से क्या देख रहे हो … मैं सिर्फ सोडा ले लूंगी, लेकिन सामने बैठ के पियोगे तो साथ देना बनता है न?” शाजिया ने मुस्कराते हुए कहा और दोनों संतुष्ट हो गये।
उसी ने तीन पैग बनाये और खुद सोडा ले लिया। हम तीनों धीरे-धीरे पैग चुसकने लगे।
“वैसे ऐसे कोई कोऑपरेटिव हो तो एतराज की गुंजाइश कहां बचती है।” शिवम ने चुस्की मारते हुए कहा।
“सही बात है।” रोहित ने सर हिलाते हुए उसकी बात का अनुमोदन किया।
“पहले ही बता देना था।” रोहित ने शिकायती नजरों से मुझे देखा।
“मुझे भी कहां पता था भोसड़ी के … यह सब तेवर तो पहली बार देख रहा हूँ।”
“ह … अबे गाली दे रहे हो?” दोनों ने मुंह फैलाये।
“हां तुम झांट के लौड़ो …. तो शरीफ हो न बड़े … कभी गाली ही नहीं बकते हो।”
“अरे मगर … इनके सामने?” दोनों उलझन में पड़ गये।
“तो क्या … वह मेरे सामने सिगरेट पी सकती है, शराब की महफिल में साथ दे सकती है तो मैं गाली क्यों नहीं दे सकता?”
“सही बात है … वैसे भी मैं घर से बाहर निकलने वाली लड़की हूँ, इधर-उधर सुनती ही रहती हूं गाली गलौज, फिर यहां सुन कर क्या फर्क पड़ जायेगा।”
दोनों सर खुजाते कभी मुझे देखते तो कभी शाजिया को, जबकि शाजिया ने लिकर की बोतल उठाते हुए कहा- खाली सोडा मजा नहीं दे रहा यार … थोड़ी सी तो लेने दो।
“आप भी पीती हो?” रोहित ने उल्लुओं की तरह पलकें झपकाते हुए पूरे आश्चर्य से कहा।
“कभी कभार … पर बेवड़ी नहीं हूं।”
“जय हो … जय हो।” शिवम ने नारा लगाया।
बहरहाल फिर हम चारों चुपचाप अपने-अपने पैग सिप करने लगे। मैं समझ सकता था कि उनकी मनःस्थिति क्या रही होगी। उनके मन में कई सवाल उभर रहे होंगे जो वे कहने से बच रहे थे लेकिन मुझे पता था कि थोड़ी देर बाद सारी तस्वीर एकदम साफ हो जायेगी।
“मैं चेंज करके आती हूँ।” शाजिया अपना पैग खत्म कर के उठती हुई बोली और बाहर निकल गयी।
“साले … तूने बताया नहीं कि तेरी बहन इतनी एडवांस है।” रोहित ने मुझे गाली देते हुए कहा।
“बहन नहीं कजिन भोसड़ी के … और मुझे क्या पहले से पता था। मैं भी उसकी हरकतें अभी ही देख रहा हूँ … पहले घर में तो हमेशा नेक परवीन ही बनी दिखती थी।”
“वैसे तुम लोगों में इस टाईप की लड़कियां होती तो नहीं।” बीच में शिवम ने बोलते हुए कहा।
“हां होती तो नहीं यार … पर यह है तो क्या करूँ।”
“चल अच्छा है … कोई बंदिश तो नहीं महसूस होगी।”
“खत्म हो गया … और बनाऊं?”
“रहने दे … वही आ के बनायेगी।”
थोड़ी देर में शाजिया चेंज कर के आ गयी। सलवार सूट उतार कर उसने ट्राउजर और टीशर्ट पहन ली थी।
यहां गौरतलब बात यह थी कि उसने नीचे ब्रा उतार दी थी जिससे उसके उभार तो चूँकि मामूली ही थे तो वह नहीं पता चल रहे थे लेकिन एक तो पफी निप्पल मोटे और उभरे थे, दूसरे एरोला भी उभरे हुए थे जिसकी वजह से उसके स्तनों का अग्रभाग एकदम साफ ऊपर से ही परिलक्षित हो रहा था।
जाहिर है दोनों कमीनों की निगाहें वहां ठहरनी ही थी। अब मुश्किल यह हो गयी कि मेरे सामने खुल के देख भी नहीं सकते थे तो नजरें बचा-बचा कर देख रहे थे।
“क्या हुआ ख़त्म हो गये सबके … चलो फिर से बनाती हूँ।” उसने ठीये पे बैठते हुए कहा। उसने फिर बाकायदा चार पैग बनाये और हम चारों फिर लगे। वह दोनों कमीने बार-बार नज़र बचा कर उसके चुचुक देखने से बाज़ नहीं आते थे और मैं उन दोनों को ही देख रहा था।
“तुमने कहाँ सीखा पीना?” फिर मैंने ही बात छेड़ी।
“ब्वायफ्रेंड ने सिखाई … कभी कभार उसी के साथ हो जाती थी।”
“घर कैसे जाती थी फिर नशे में?”
“कहाँ नशे में … नींबू का इस्तेमाल कर के नशे से छुटकारा पाते थे तब घर जाते थे। बड़ी आफत थी तब … अब तो खैर कभी भी पी सकते हैं इन पियक्कड़ों के साथ और कहीं घर जाने की टेंशन भी नहीं।”
“बस पीते ही थे या …?” रोहित ने कहते-कहते जानबूझ कर बात अधूरी छोड़ दी।
“मुझे क्या देख रहा है भोसड़ी के … मैं उसका बाप हूँ, गार्जियन हूँ? उसकी अपनी लाइफ है, जो उसका जी चाहे करे … मेरी खाला की लड़की है तो जितनी हेल्प मैं कर सकता था उतनी किये दे रहा हूँ, उसका मतलब यह थोड़े है कि वो मेरे हिसाब से चलने लगेगी।”
“सही बात है … चली तो मैं अपने बाप के हिसाब से नहीं।” कह कर वह जोर-जोर से हंसने लगी।
“चढ़ रही है बहन तुझे … पर लिहाज भी तो करना चाहिये न। काफी फर्क है शायद तुम दोनों की उम्र में।” इस बार शिवम ने बुजुर्गों की तरह बात की।
“उम्र का फर्क बचपन में मायने रखता है … फिर बीस के बाद सब बराबर हो जाते हैं।” आरज़ू ने एक बड़ा घूँट लेने के बाद कहा।
“तो बताया नहीं … पीने के बाद चुपचाप घर चले जाते थे?” रोहित ने फिर छेड़ी।
“तू कुछ और भी तो पूछ सकता है साले … जबरिया गले पड़ रहा है।” शिवम ने ऐसे कहा जैसे उसके पूछने से उलझन हो रही हो जबकि शायद जवाब वह खुद भी सुनना चाहता था।
“पूछने दो यार … मैं क्या किसी से डरती हूँ।” आरज़ू ने ऐसे सीने पे हाथ मार के कहा जैसे नशा चढ़ गया हो।
“तो बताओ न?”
“अबे चूतिये … तू अपनी गर्लफ्रेंड को अकेले में ला कर दारु पिलाएगा और फिर ऐसे ही घर जाने देगा क्या … पहले यह बता।”
“नहीं … ऐसे कैसे जाने दूंगा।”
“फिर कैसे जाने देगा?”
“चोदने के बाद जाने दूंगा।” उसने कहा तो आरज़ू से लेकिन डर-डर के देख ऐसे मेरी तरफ रहा था जैसे मेरी लात खाने का डर हो और मैं उठ भी गया।
“बैठ जाओ पहलवान!” आरज़ू ने मेरा हाथ पकड़ कर मुझे खींच कर वापस बिठा लिया और रोहित की तरफ देखते हुए बोली- तो बेटा वो किसी और दुनिया का था क्या जो बिना चोदे मुझे जाने देता।
“अरे क्या बात कर रही यार … यह चोदते कैसे हैं?” इस बार शिवम ने लहराते हुए स्वर में कहा … लगता था अब माहौल का नशा सर चढ़ने लगा था।
“एल्लो … यह भी न पता।”
“सब पता है मादरचोदों को … हर हफ्ते लौंडिया ला के चोदते हैं यहाँ और मासूम बन रहे हैं साले।”
“अरे तो कोई बात नहीं … फिर भी मैं बता देती हूँ।” आरज़ू ने अपनी टांगें फैलाते हुए कहा- “देख बेटा … यहाँ पे न, लड़की की चूत होती है, जिसमें तुम लौंडे अपना लंड डाल देते हो और उसे इतना अन्दर-बाहर करते हो कि चूत झड़ जाती है और लंड भी झड़ जाता है।”
ज़ाहिर है कि दोनों के कानों की लवें सुलग गयीं और वे मेरी तरफ देखने लगे और मैंने दिखावे के तौर पर अपना सर पीट लिया।
“क्यों टेन्स हो यार … मेरे बाप तो नहीं। जानने दो सबकुछ … की फरक पैंदा ए उस्ताद।” आरज़ू को तो पक्का चढ़ गयी थी और मुझे यह अंदेशा हो गया कि फिर सब सच ही न उगलने बैठ जाये।
“यह झड़ते कैसे हैं यार?” शिवम ने ही आगे छेड़ा और मैंने उसे लत जड दी, जिससे वह पीछे लुढ़क गया।
थोड़ा बहुत नशा तो सभी को था … शिवम उठा तो गाली देता मेरे ऊपर चढ़ गया और मैंने भी जानबूझ कर उसे पकड़ लिया जैसे छोड़ने का इरादा न रखता होऊं। आरज़ू और रोहित हमें अलग करने की कोशिश करने लगे और इस कोशिश में चारों ही गुत्थमगुत्था हो गये।
जैसा कि मुझे पता था कि इस धींगामुश्ती में मुझे तो गौण ही हो जाना था और वह दोनों आरज़ू के शरीर पर हाथ सेंकने का लुत्फ़ लेने लग जाने वाले थे।
“अरे बहन के लौड़ों … पजामे के ऊपर से उंगली कर रहे हो। पाजामा ही फट जायेगा।” थोड़ी देर बाद कमरे में आरज़ू की भन्नाई हुई आवाज़ गूंजी।
“हट भोसड़ी के … मेरे सामने उसके उंगली कर रहे हो मादरचोदो!” मैं उनसे अलग होता हुआ चिड़चिड़ाया।
बमुश्किल वह तीनों भी अलग हुए।
“यह बताओ तुम में से मेरी गांड में उंगली किसने की और मेरी चूत में किसने उंगली घुसाई।”
“मैंने नहीं … मैंने नहीं।” दोनों ने स्पष्ट इनकार कर दिया।
“मैं पता लगा के रहूंगी … समझ क्या रखा है तुम लोगों ने मुझे। मौके का फायदा उठाते हो … फिंगर टेस्ट होगा तुम दोनों का।”
“यह कैसा टेस्ट होता है?”
“मेरी गांड में फिर से उंगली घुसाओ … दोनों लोग। मैं जान जाउंगी कि किसने मेरी गांड में उंगली करी थी।” उसने निर्णयात्मक स्वर में कहा और पट्ठे खुश हो गये।
वह उनके सामने चौपाये की तरह झुक गयी और दोनों को उंगली घुसाने को कहा। मैं दोनों टाँगे फैलाये दीवार से टिक के उन्हें देखने लगा। पहले रोहित ने उसके पजामे के ऊपर से ही गुदा द्वार में उंगली घुसाई और फिर उसके निर्देश पर शिवम ने।
“हम्म … तो शिवम तुमने मेरी गांड में उंगली करी थी। तुम्हें इसकी सजा मिलेगी।” कहते हुए वह टाँगें फैला कर सीधे बैठ गयी- अब मेरी चूत में उंगली करो।
अब इससे बढ़िया मौका और कहाँ मिलता … दोनों ने पजामे के ऊपर से ही उसकी योनि में उंगली घुसाई और उसके चेहरे से ही लग रहा था कि वह मज़ा ले रही हो।
“ओह … तो रोहित बाबू …. मेरी चूत में तुमने उंगली करी थी। तुम्हें भी सजा मिलेगी।”
“और वह सजा क्या होगी?”
“शिवम … तुमने गांड में उंगली की, जो कि ज़ाहिर करता है कि तुम्हे गांड मारने का बहुत शौक है लेकिन मैं तुम्हें गांड नहीं मारने दूँगी और तुम मेरी चूत मरोगे। यही तुम्हारी सजा है … और रोहित तुम … तुमने चूत में उंगली करके साबित किया है कि तुम्हारी प्रियोरिटी चूत है तो तुम्हें चूत मारने को न मिलेगी और तुम्हे मेरी गांड मारनी पड़ेगी।”
दोनों की लार टपक पड़ी लेकिन फिर भी झिझकते हुए दोनों ने मेरी तरफ देखा- हम सजा भुगतने के लिये तैयार हैं लेकिन …
“अरे उसकी तरफ क्यों देख रहे … कौन सा मेरा सगा भाई या बाप है। कजिन ही तो है … कजिन लोग क्या चोदते नहीं … उसे मौका मिलेगा तो वह भी चढ़ने से कौन सा बाज़ आ जायेगा। वैसे भी मैं किसी से नहीं डरती।”
“हमें यकीन है मलिका आलिया!”
“लंड दिखाओ अपने … चेक करुँगी कि कोई बीमारी तो नहीं है।”
अब भला उन्हें कौन सा ऐतराज़ होता … दोनों कमीने मुझे चिढ़ाने वाले अंदाज़ में देखते झटपट नंगे हो गये और उनके झूलते स्थूल लिंग आरज़ू के चेहरे के आगे लहराने लगे। हालाँकि वे नए बने माहौल में उत्तेजित तो हो गये थे लेकिन उनमें पूर्ण तनाव अभी नहीं आया था।
“ऐसे कुछ पता नहीं चल रहा.. टाईट करना पड़ेगा; लंड खड़े करो भड़वो!” उसके लहराते शब्द और आंखें बता रही थीं कि उस पर कायदे से चढ़ गयी थी।
“कैसे खड़ा करें मैडम.. आप ही चूस के खड़ा कर दो।” रोहित ने शिवम को कोहनी मारते हुए कहा।
“हम्म.. आइडिया बुरा नहीं।” शाजिया ने लहराते हुए कहा और दोनों हाथों से दोनों के लिंग पकड़ कर मुंह के पास कर लिये और बिना किसी शर्म या झिझक के उन्हें चूसना शुरू कर दिया। कभी रोहित का लिंग चूसने लगती तो कभी शिवम का.. साथ ही हाथ से भी उन्हें सहलाती जा रही थी।
Read my story
खेल खेल में गंदी बात (Running) मेरा बेटा मेरा यार (माँ बेटे की वासना ) (Complete) नाजायज़ रिश्ता : ज़रूरत या कमज़ोरी (Running) अंजाने में बहन ने ही चुदवाया पूरा परिवार (complete) निदा के कारनामे (Complete) दोहरी ज़िंदगी (complete)नंदोई के साथ (complete ) पापा से शादी और हनीमून complete
खेल खेल में गंदी बात (Running) मेरा बेटा मेरा यार (माँ बेटे की वासना ) (Complete) नाजायज़ रिश्ता : ज़रूरत या कमज़ोरी (Running) अंजाने में बहन ने ही चुदवाया पूरा परिवार (complete) निदा के कारनामे (Complete) दोहरी ज़िंदगी (complete)नंदोई के साथ (complete ) पापा से शादी और हनीमून complete
- shaziya
- Novice User
- Posts: 2348
- Joined: 19 Feb 2015 03:27
Re: कामुकता भरे पल आरज़ू के साथ
दोनों लिंग चूषण का मजा लेते हुए मेरी ओर देख रहे थे जैसे मुझे चिढ़ा रहे हों। मैंने पास पड़ी सोडे की खाली बोतल फेंक मारने के लिये उठाई तो दोनों ने दयनीय भाव से हाथ जोड़ दिये- चोद लेने दे यार.. कौन सा तेरी सगी बहन है।
“भोसड़ी के.. पहले ही दिन लग गये साले। महीना भर रहेगी वह तो यहां तो महीना भर चोदोगे उसे ऐसे ही.. मेरे सामने मासूम बनने की नौटंकी न कर मादरचोद।”
“अबे तो कौन सा घिस जायेगी।”
“भक्क भोसड़ी के।”
उधर शाजिया ने सहला कर और चूस कर दोनों के लिंग एकदम टाईट कर दिये और फिर रुक कर दोनों को ऐसे देखने लगी जैसे वाकई मुआयना कर रही हो- लगती तो नहीं कोई बीमारी … तुम देखो भाई.. क्या बोलते हो, इन्हें सजा दूं या नहीं?
“मां चुदवा अपनी।” मैंने थोड़े झल्लाये लहजे में कहा और वह ‘हो हो …’ कर के हंसने लगी।
“मां क्यों … मैं ही चुदवाऊँगी इन भड़वों से। चलो रे सजा झेलो.. लेकिन रुको.. पेलोगे कैसे? मेरी चूत और गांड तो एकदम सूखी है।”
“अब तुम ही बताओ।” दोनों ने अर्थपूर्ण स्वर में कहा।
थोड़ा सोचने की एक्टिंग करने के बाद उसने अपनी टीशर्ट उतार फेंकी और ऊपरी धड़ से नंगी हो गयी। उसके हल्के उभार मगर जबरदस्त एरोला और पफी निप्पल वाले वक्ष दोनों हवसियों के आगे अनावृत हो गये।
“देखो बेटा.. यह दो प्वाइंट हैं, इनको चूसो और दोनों छेद गीले कर लो।” वह अपने दोनों हाथ अपने वक्षों के नीचे लगा कर उन्हें उठाती हुई बोली।
दोनों कुत्ते की तरह जीभ लपलपाते एक दूसरे से सट कर पैर फैलाये नीचे ही बैठ गये। हालाँकि कमरे में बेड मौजूद था लेकिन यह पीने पिलाने की नौटंकी फर्श पर दो गद्दे डाल कर हो रही थी और अब वहीं यह सब तमाशा हो रहा था।
मेरी खाला की बेटी शाजिया दोनों के गोद में ऐसे बैठ गयी कि एक कूल्हा रोहित की गोद में टिका तो दूसरा शिवम की गोद में और दोनों के सर पकड़ कर अपने वक्षों से लगा दिये जिससे वे निप्पल और एरोला मुंह में भर कर चूसने लग गये।
वह खुद आंख बंद कर के ‘सी सी…’ करने लग गयी थी।
यहां एक बात स्पष्ट कर दूँ कि उन दोनों के साथ पीने पिलाने की बैठक तो मेरे साथ जमी थी लेकिन कभी उनके नंगे होने की नौबत नहीं आई थी और न मैंने पहले कभी उनके लिंग देखे थे।
यह तो दिख रहा था कि दोनों के ही लिंग मुझसे लंबे भी थे और मोटे भी, जिससे उसे मेरे मुकाबले और ज्यादा मजा आने वाला था लेकिन खुद उसके पसंदीदा ब्वायफ्रेंड सैंडी से कम थे या ज्यादा थे, यह वही जान सकती थी।
थोड़ी देर की चुसाई में वह अच्छी तरह गर्म हो गयी- और जोर से चूसो मेरी चूचियों को.. नोच डालो मेरी घुंडियों को मादरचोदो.. हां ऐसे ही.. और तुम क्या देख रहे। तुम्हें देखने की सजा मिलेगी। चलो इनके जैसे शरीफ हो जाओ.. कपड़ों में बदमाश लग रहे हो।
“मतलब मैं भी कपड़े उतारूं?”
“तो और क्या कह रही हूँ यार.. जहां तीन लोग नंगे हों वहां एक आदमी कपड़े पहन कर उनकी इंसल्ट करता है। है कि नहीं बे?”
“हां हां मालकिन.. इस साले को भी सजा दो। मैं गांड मारूंगा.. शिवम चूत मारेगा, इसको मुंह चोदने की सजा दो मालकिन।”
“ठीक है.. सजा मुकर्रर। उतारो कपड़े और नंगे हो कर अपना लोला मेरे मुंह में दो।”
अंदर ही अंदर तो इस स्थिति के लिये मैं तैयार ही था, चुपचाप ऐसे कपड़े उतारने लगा जैसे उसका आदेश मान रहा होऊं।
“लेकिन मैम यह तो गड़बड़ है.. हम तीन तो पूरे नंगे हो जायेंगे और आप बस आधी?” शिवम ने मजे लेते हुए कहा।
“अबे हां इस तरफ तो मेरा ध्यान ही न गया! ऐसे तो मैं ही बदमाश लगूंगी तुम शरीफों के बीच। हट बे.. पजामा उतारने दे। मेरी चूत और गांड को भी खुली हवा लेनी है।” दोनों के सर पीछे धकेल कर वह खड़ी हो गयी और उसने इलास्टिक वाला पजामा भी उतार फेंका। तब तक मैं भी कपड़े उतार चुका था और उनके पास आ गया था।
वह फिर उसी पोजीशन में बैठ गयी और दोनों के सर पकड़ कर घुंडियां चुसाने लगी। मुझे मुंह में देने का इशारा किया और मैंने अपने अर्धउत्तेजित लिंग को उसके मुंह में दे दिया। वह सर को आगे पीछे करती मेरा लिंग चूषण करने लगी।
अब परफेक्ट पिक्चर बन रही थी कि वह कंबाइंड रूप से शिवम और रोहित की गोद में नंगी बैठी मेरा लिंग चूषण कर रही थी जबकि वह दोनों दिलोजान से उसकी घुंडियों से खेलने में लगे हुए थे।
“चलो रे बहुत हुआ.. हटो।” उसने लहराती हुई आवाज में कहा तो हम तीनों अलग हट गये। उसने झुक कर अपनी योनि चेक की। वह दोनों वैसे ही बैठे ललचाई निगाहों से उसकी योनि को देख रहे थे।
“शिवम.. चूत तेरी है तो इसे और गीला कर। अभी मतलब भर गीली नहीं हो पाई है।”
“क्यों नहीं मैडम।” शिवम ने खुशी-खुशी कहा।
और वह उठ कर उसके मुंह पर चढ़ गयी और खुद लगभग खड़ी ही उसके मुंह पर योनि रखे उससे योनि चटवाने लगी। एक हाथ से उसने शिवम का सर पकड़ लिया था और दूसरे हाथ से रोहित को उठा कर खड़ा कर लिया था।
उसके संकेत को समझते रोहित उसके होंठों को चूसने लग गया जबकि खुद शाजिया उसे उठाने वाले हाथ को नीचे कर के उसके लिंग को सहलाने लगी।
“लंड मस्त हैं तुम लोगों के.. मजा आयेगा।” बीच में उसने नशे से बोझिल स्वर में कहा।
थोड़ी देर की चटाई के बाद उसने शिवम को परे धकेल दिया और रोहित को नीचे गिरा दिया और उसके चेहरे के दोनों ओर पैर किये उस पर बैठ गयी।
“गांड तेरी है मजनू … तो तू इसे चाट के गीली कर।” उसने जोर से सिस्कारते हुए कहा।
अब मुझे उसकी मनःस्थिति नहीं पता थी.. मुझे लगा शायद वह इन्कार कर दे लेकिन शराब और सेक्स के काम्बीनेशन का नशा उस पर भी हावी था.. वह चपड़-चपड़ चाटने लगा। शिवम उसके सामने बैठ कर दोनों हाथों से उसके दोनों स्तन मसलने लगा जबकि उसके इशारे पर मैं फिर उसे अपना लिंग चुसाने लगा।
“बस कर रे.. अब दोनों छेद चुदने के लिये तैयार हैं।” थोड़ी देर बाद उसने मेरे लिंग को मुंह से निकालते हुए कहा।
तीनों लोग उससे अलग गये।
“तो टॉस करो रे.. पहले कौन चोदेगा?”
“टॉस छोड़ यार.. जिसे तू कह दे वह चोद ले।” शिवम ने अपनी तरफ से समर्पण करते हुए कहा।
“न.. सबकुछ नियम से होगा। चलो टॉस करो।”
वह जितनी गर्म थी उतने ही नशे में भी थी और उसे नाराज करना ठीक नहीं था। अंततः मैंने ही अपने वालेट से सिक्का निकाल कर उसे थमा दिया।
“हेड आया तो रोहित चढ़ेगा पहले और टेल आया तो शिवम चढ़ेगा.. ओके।”
दोनों ने सर हिलाया, उसने सिक्का उछाला और इत्तेफाक से टेल आया।
“चलो तुम चढ़ो पहले मेरी चूत पे.. रोहित तुम तब तक कोई क्रीम, वैसलीन या तेल ले आओ। तुम्हारा मोटा लंड वर्ना मेरी गांड फाड़ देगा।”
“यहीं रखी है।” रोहित ने बेड की जिस दराज से सिगरेट की डिब्बी निकाली थी उसी से वैसलीन की डिब्बी निकाल ली।
“चलो तुम अपनी सजा पूरी करो शिवम.. तुम्हें मेरी चूत पर साठ धक्के लगाने की सजा दी जाती है। साठ धक्कों से पहले झड़ गये तो तुम्हारी गांड पे चार जोर की लातें मैं मारूंगी।”
“नहीं झड़ूंगा।” उसने भरोसा दिलाया।
“तुम.. मुझे बांहों में ऐसे उठाओ दोनों हाथों से जैसे लोग अपने माल को उठा कर बिस्तर पर ले जाते हैं और खड़े रहो.. उस पोजीशन में शिवम मेरी चूत पर साठ धक्के लगायेगा और भाई मेरे मुंह में साठ धक्के.. जो भी उससे पहले झड़ा, मैं उसकी गांड पे लात मारूंगी।” उसने रोहित से कहा।
पहले तो एकदम से रोहित की समझ में नहीं आया कि कैसे उठाना है, फिर जब वह खुद एक बांह उसके गले में डाल कर उचकी तो उसने दोनों हाथ नीचे लगा दिये। उसका एक हाथ शाजिया की गर्दन के नीचे था तो दूसरा उसके घुटनों के नीचे फंसा था जिससे वह बच्चे की तरह उसकी बांहों में फंसी हवा में झूल गयी।
चूँकि उसका कोई खास वजन नहीं था तो रोहित को भी इतनी देर खड़े रहने में कोई परेशानी नहीं थी। इस पोजीशन में शाजिया ने चेहरा मोड़ कर नीचे की तरफ कर लिया था ताकि मेरा लिंग मुंह में ले सके और घुटनों से नीचे के पैर भी इतने फैला और उठा रखे थे कि उसकी योनि शिवम के सामने खुल सके।
“चलो शुरू हो जाओ भड़वो.. शिवम, लंड थोड़ा गीला करके पेलना, इतना मोटा लेने की आदत नहीं है मेरी।”
शिवम “हां” बोलता उसके पैरों के बीच आ गया और अपने लिंग को गीला कर के उसकी योनि में घुसाने लगा। मैं चूँकि उसके चेहरे की तरफ था तो उस तरफ के हालात नहीं देख सकता था।
बस जब वह जोर से सिसकारी, तब समझ में आया कि शिवम लिंग घुसाने में कामयाब हो गया था।
“रुक जा भोसड़ी के.. मेरी मासूम चूत फाड़ेगा क्या गांडू.. दो मिनट सब्र तो करने दे। साला ऐसा लग रहा है जैसे मेरी कसी कसी चूत में मूसल पेल दिया हो.. और तुम खड़े क्यों हो.. मेरे मुंह में देते क्यों नहीं।” वह बिलबिलाती हुई चिल्लाई थी।
मुंह में देना ही ठीक था.. वर्ना पता नहीं क्या-क्या बड़बड़ाती रहती। मैंने उसके मुंह में अपना लिंग घुसा दिया और वह उसे ‘चपड़ चपड़…’ चाटने लगी। शायद अपना ध्यान बंटाना चाहती थी।
“चलो बे.. अपने-अपने धक्के गिनो, बआवाजे बुलंद।” थोड़ी देर बाद उसने आदेश दिया।
और इधर मेरी कमर चलनी शुरू हुई उधर शिवम की.. पहले धीरे-धीरे, फिर थोड़ी गति बढ़ा दी। हम दोनों आवाज के साथ अपने-अपने धक्के गिन रहे थे और रोहित कभी इधर देखता तो कभी उधर।
अब चूँकि हम सभी तो थोड़े नशे में थे ही और दूसरे अपनी एकाग्रता धक्के गिनने में लगानी पड़ रही थी, ऐसे में साठ धक्कों में स्खलित हो जाने का सवाल ही नहीं उठता था, चाहे आम हालात में भले हो जाते.. जबकि उसके चेहरे से ही जाहिर हो रहा था कि वह एक-एक धक्के का मजा ले रही थी।
“जल्दी लगाओ भोसड़ी के.. कब तक पकड़े खड़ा रहूँगा।” रोहित दोनों को गरियाता हुआ बोला।
“चुप खड़ा रह वर्ना गिनती भूल गये तो फिर से लगाने पड़ेंगे।” गिनती रोक कर शिवम ने बीच में चेतावनी दी।
और वह फिर एक गाली दे कर रह गया।
खैर.. जैसे तैसे साठ धक्के गिनती में पूरे हो गये, असलियत में तो शायद ज्यादा ही लगे हों। फिर हम दोनों अलग हो गये और रोहित ने उसे नीचे खड़ा कर दिया।
“मेरी प्यारी प्यारी कसी हुई चूत खोल कर रख दी साले ने!” वह झुक कर अपनी योनि देखने की कोशिश करती हुई बड़बड़ाई- तुम लोग महीने भर में मेरी चूत का भोसड़ा बना डालोगे।
दोनों ‘हो हो…’ करके हंसने लगे।
“चल बे तू आ अब … और जैसे मैं कहती हूँ वैसे ही डालना।” उसने रोहित से कहा।
फिर वह दीवार से सट गयी सीने की तरफ से और दोनों हाथ से अपने फ्लैट से नितम्ब पकड़ कर इस तरह फैलाये कि उसकी गुदा का छेद हमें दिखने लगा जो इस तरह कूल्हे चीरने से कुछ हद तक फैल गया था।
“भोसड़ी के.. पहले ही दिन लग गये साले। महीना भर रहेगी वह तो यहां तो महीना भर चोदोगे उसे ऐसे ही.. मेरे सामने मासूम बनने की नौटंकी न कर मादरचोद।”
“अबे तो कौन सा घिस जायेगी।”
“भक्क भोसड़ी के।”
उधर शाजिया ने सहला कर और चूस कर दोनों के लिंग एकदम टाईट कर दिये और फिर रुक कर दोनों को ऐसे देखने लगी जैसे वाकई मुआयना कर रही हो- लगती तो नहीं कोई बीमारी … तुम देखो भाई.. क्या बोलते हो, इन्हें सजा दूं या नहीं?
“मां चुदवा अपनी।” मैंने थोड़े झल्लाये लहजे में कहा और वह ‘हो हो …’ कर के हंसने लगी।
“मां क्यों … मैं ही चुदवाऊँगी इन भड़वों से। चलो रे सजा झेलो.. लेकिन रुको.. पेलोगे कैसे? मेरी चूत और गांड तो एकदम सूखी है।”
“अब तुम ही बताओ।” दोनों ने अर्थपूर्ण स्वर में कहा।
थोड़ा सोचने की एक्टिंग करने के बाद उसने अपनी टीशर्ट उतार फेंकी और ऊपरी धड़ से नंगी हो गयी। उसके हल्के उभार मगर जबरदस्त एरोला और पफी निप्पल वाले वक्ष दोनों हवसियों के आगे अनावृत हो गये।
“देखो बेटा.. यह दो प्वाइंट हैं, इनको चूसो और दोनों छेद गीले कर लो।” वह अपने दोनों हाथ अपने वक्षों के नीचे लगा कर उन्हें उठाती हुई बोली।
दोनों कुत्ते की तरह जीभ लपलपाते एक दूसरे से सट कर पैर फैलाये नीचे ही बैठ गये। हालाँकि कमरे में बेड मौजूद था लेकिन यह पीने पिलाने की नौटंकी फर्श पर दो गद्दे डाल कर हो रही थी और अब वहीं यह सब तमाशा हो रहा था।
मेरी खाला की बेटी शाजिया दोनों के गोद में ऐसे बैठ गयी कि एक कूल्हा रोहित की गोद में टिका तो दूसरा शिवम की गोद में और दोनों के सर पकड़ कर अपने वक्षों से लगा दिये जिससे वे निप्पल और एरोला मुंह में भर कर चूसने लग गये।
वह खुद आंख बंद कर के ‘सी सी…’ करने लग गयी थी।
यहां एक बात स्पष्ट कर दूँ कि उन दोनों के साथ पीने पिलाने की बैठक तो मेरे साथ जमी थी लेकिन कभी उनके नंगे होने की नौबत नहीं आई थी और न मैंने पहले कभी उनके लिंग देखे थे।
यह तो दिख रहा था कि दोनों के ही लिंग मुझसे लंबे भी थे और मोटे भी, जिससे उसे मेरे मुकाबले और ज्यादा मजा आने वाला था लेकिन खुद उसके पसंदीदा ब्वायफ्रेंड सैंडी से कम थे या ज्यादा थे, यह वही जान सकती थी।
थोड़ी देर की चुसाई में वह अच्छी तरह गर्म हो गयी- और जोर से चूसो मेरी चूचियों को.. नोच डालो मेरी घुंडियों को मादरचोदो.. हां ऐसे ही.. और तुम क्या देख रहे। तुम्हें देखने की सजा मिलेगी। चलो इनके जैसे शरीफ हो जाओ.. कपड़ों में बदमाश लग रहे हो।
“मतलब मैं भी कपड़े उतारूं?”
“तो और क्या कह रही हूँ यार.. जहां तीन लोग नंगे हों वहां एक आदमी कपड़े पहन कर उनकी इंसल्ट करता है। है कि नहीं बे?”
“हां हां मालकिन.. इस साले को भी सजा दो। मैं गांड मारूंगा.. शिवम चूत मारेगा, इसको मुंह चोदने की सजा दो मालकिन।”
“ठीक है.. सजा मुकर्रर। उतारो कपड़े और नंगे हो कर अपना लोला मेरे मुंह में दो।”
अंदर ही अंदर तो इस स्थिति के लिये मैं तैयार ही था, चुपचाप ऐसे कपड़े उतारने लगा जैसे उसका आदेश मान रहा होऊं।
“लेकिन मैम यह तो गड़बड़ है.. हम तीन तो पूरे नंगे हो जायेंगे और आप बस आधी?” शिवम ने मजे लेते हुए कहा।
“अबे हां इस तरफ तो मेरा ध्यान ही न गया! ऐसे तो मैं ही बदमाश लगूंगी तुम शरीफों के बीच। हट बे.. पजामा उतारने दे। मेरी चूत और गांड को भी खुली हवा लेनी है।” दोनों के सर पीछे धकेल कर वह खड़ी हो गयी और उसने इलास्टिक वाला पजामा भी उतार फेंका। तब तक मैं भी कपड़े उतार चुका था और उनके पास आ गया था।
वह फिर उसी पोजीशन में बैठ गयी और दोनों के सर पकड़ कर घुंडियां चुसाने लगी। मुझे मुंह में देने का इशारा किया और मैंने अपने अर्धउत्तेजित लिंग को उसके मुंह में दे दिया। वह सर को आगे पीछे करती मेरा लिंग चूषण करने लगी।
अब परफेक्ट पिक्चर बन रही थी कि वह कंबाइंड रूप से शिवम और रोहित की गोद में नंगी बैठी मेरा लिंग चूषण कर रही थी जबकि वह दोनों दिलोजान से उसकी घुंडियों से खेलने में लगे हुए थे।
“चलो रे बहुत हुआ.. हटो।” उसने लहराती हुई आवाज में कहा तो हम तीनों अलग हट गये। उसने झुक कर अपनी योनि चेक की। वह दोनों वैसे ही बैठे ललचाई निगाहों से उसकी योनि को देख रहे थे।
“शिवम.. चूत तेरी है तो इसे और गीला कर। अभी मतलब भर गीली नहीं हो पाई है।”
“क्यों नहीं मैडम।” शिवम ने खुशी-खुशी कहा।
और वह उठ कर उसके मुंह पर चढ़ गयी और खुद लगभग खड़ी ही उसके मुंह पर योनि रखे उससे योनि चटवाने लगी। एक हाथ से उसने शिवम का सर पकड़ लिया था और दूसरे हाथ से रोहित को उठा कर खड़ा कर लिया था।
उसके संकेत को समझते रोहित उसके होंठों को चूसने लग गया जबकि खुद शाजिया उसे उठाने वाले हाथ को नीचे कर के उसके लिंग को सहलाने लगी।
“लंड मस्त हैं तुम लोगों के.. मजा आयेगा।” बीच में उसने नशे से बोझिल स्वर में कहा।
थोड़ी देर की चटाई के बाद उसने शिवम को परे धकेल दिया और रोहित को नीचे गिरा दिया और उसके चेहरे के दोनों ओर पैर किये उस पर बैठ गयी।
“गांड तेरी है मजनू … तो तू इसे चाट के गीली कर।” उसने जोर से सिस्कारते हुए कहा।
अब मुझे उसकी मनःस्थिति नहीं पता थी.. मुझे लगा शायद वह इन्कार कर दे लेकिन शराब और सेक्स के काम्बीनेशन का नशा उस पर भी हावी था.. वह चपड़-चपड़ चाटने लगा। शिवम उसके सामने बैठ कर दोनों हाथों से उसके दोनों स्तन मसलने लगा जबकि उसके इशारे पर मैं फिर उसे अपना लिंग चुसाने लगा।
“बस कर रे.. अब दोनों छेद चुदने के लिये तैयार हैं।” थोड़ी देर बाद उसने मेरे लिंग को मुंह से निकालते हुए कहा।
तीनों लोग उससे अलग गये।
“तो टॉस करो रे.. पहले कौन चोदेगा?”
“टॉस छोड़ यार.. जिसे तू कह दे वह चोद ले।” शिवम ने अपनी तरफ से समर्पण करते हुए कहा।
“न.. सबकुछ नियम से होगा। चलो टॉस करो।”
वह जितनी गर्म थी उतने ही नशे में भी थी और उसे नाराज करना ठीक नहीं था। अंततः मैंने ही अपने वालेट से सिक्का निकाल कर उसे थमा दिया।
“हेड आया तो रोहित चढ़ेगा पहले और टेल आया तो शिवम चढ़ेगा.. ओके।”
दोनों ने सर हिलाया, उसने सिक्का उछाला और इत्तेफाक से टेल आया।
“चलो तुम चढ़ो पहले मेरी चूत पे.. रोहित तुम तब तक कोई क्रीम, वैसलीन या तेल ले आओ। तुम्हारा मोटा लंड वर्ना मेरी गांड फाड़ देगा।”
“यहीं रखी है।” रोहित ने बेड की जिस दराज से सिगरेट की डिब्बी निकाली थी उसी से वैसलीन की डिब्बी निकाल ली।
“चलो तुम अपनी सजा पूरी करो शिवम.. तुम्हें मेरी चूत पर साठ धक्के लगाने की सजा दी जाती है। साठ धक्कों से पहले झड़ गये तो तुम्हारी गांड पे चार जोर की लातें मैं मारूंगी।”
“नहीं झड़ूंगा।” उसने भरोसा दिलाया।
“तुम.. मुझे बांहों में ऐसे उठाओ दोनों हाथों से जैसे लोग अपने माल को उठा कर बिस्तर पर ले जाते हैं और खड़े रहो.. उस पोजीशन में शिवम मेरी चूत पर साठ धक्के लगायेगा और भाई मेरे मुंह में साठ धक्के.. जो भी उससे पहले झड़ा, मैं उसकी गांड पे लात मारूंगी।” उसने रोहित से कहा।
पहले तो एकदम से रोहित की समझ में नहीं आया कि कैसे उठाना है, फिर जब वह खुद एक बांह उसके गले में डाल कर उचकी तो उसने दोनों हाथ नीचे लगा दिये। उसका एक हाथ शाजिया की गर्दन के नीचे था तो दूसरा उसके घुटनों के नीचे फंसा था जिससे वह बच्चे की तरह उसकी बांहों में फंसी हवा में झूल गयी।
चूँकि उसका कोई खास वजन नहीं था तो रोहित को भी इतनी देर खड़े रहने में कोई परेशानी नहीं थी। इस पोजीशन में शाजिया ने चेहरा मोड़ कर नीचे की तरफ कर लिया था ताकि मेरा लिंग मुंह में ले सके और घुटनों से नीचे के पैर भी इतने फैला और उठा रखे थे कि उसकी योनि शिवम के सामने खुल सके।
“चलो शुरू हो जाओ भड़वो.. शिवम, लंड थोड़ा गीला करके पेलना, इतना मोटा लेने की आदत नहीं है मेरी।”
शिवम “हां” बोलता उसके पैरों के बीच आ गया और अपने लिंग को गीला कर के उसकी योनि में घुसाने लगा। मैं चूँकि उसके चेहरे की तरफ था तो उस तरफ के हालात नहीं देख सकता था।
बस जब वह जोर से सिसकारी, तब समझ में आया कि शिवम लिंग घुसाने में कामयाब हो गया था।
“रुक जा भोसड़ी के.. मेरी मासूम चूत फाड़ेगा क्या गांडू.. दो मिनट सब्र तो करने दे। साला ऐसा लग रहा है जैसे मेरी कसी कसी चूत में मूसल पेल दिया हो.. और तुम खड़े क्यों हो.. मेरे मुंह में देते क्यों नहीं।” वह बिलबिलाती हुई चिल्लाई थी।
मुंह में देना ही ठीक था.. वर्ना पता नहीं क्या-क्या बड़बड़ाती रहती। मैंने उसके मुंह में अपना लिंग घुसा दिया और वह उसे ‘चपड़ चपड़…’ चाटने लगी। शायद अपना ध्यान बंटाना चाहती थी।
“चलो बे.. अपने-अपने धक्के गिनो, बआवाजे बुलंद।” थोड़ी देर बाद उसने आदेश दिया।
और इधर मेरी कमर चलनी शुरू हुई उधर शिवम की.. पहले धीरे-धीरे, फिर थोड़ी गति बढ़ा दी। हम दोनों आवाज के साथ अपने-अपने धक्के गिन रहे थे और रोहित कभी इधर देखता तो कभी उधर।
अब चूँकि हम सभी तो थोड़े नशे में थे ही और दूसरे अपनी एकाग्रता धक्के गिनने में लगानी पड़ रही थी, ऐसे में साठ धक्कों में स्खलित हो जाने का सवाल ही नहीं उठता था, चाहे आम हालात में भले हो जाते.. जबकि उसके चेहरे से ही जाहिर हो रहा था कि वह एक-एक धक्के का मजा ले रही थी।
“जल्दी लगाओ भोसड़ी के.. कब तक पकड़े खड़ा रहूँगा।” रोहित दोनों को गरियाता हुआ बोला।
“चुप खड़ा रह वर्ना गिनती भूल गये तो फिर से लगाने पड़ेंगे।” गिनती रोक कर शिवम ने बीच में चेतावनी दी।
और वह फिर एक गाली दे कर रह गया।
खैर.. जैसे तैसे साठ धक्के गिनती में पूरे हो गये, असलियत में तो शायद ज्यादा ही लगे हों। फिर हम दोनों अलग हो गये और रोहित ने उसे नीचे खड़ा कर दिया।
“मेरी प्यारी प्यारी कसी हुई चूत खोल कर रख दी साले ने!” वह झुक कर अपनी योनि देखने की कोशिश करती हुई बड़बड़ाई- तुम लोग महीने भर में मेरी चूत का भोसड़ा बना डालोगे।
दोनों ‘हो हो…’ करके हंसने लगे।
“चल बे तू आ अब … और जैसे मैं कहती हूँ वैसे ही डालना।” उसने रोहित से कहा।
फिर वह दीवार से सट गयी सीने की तरफ से और दोनों हाथ से अपने फ्लैट से नितम्ब पकड़ कर इस तरह फैलाये कि उसकी गुदा का छेद हमें दिखने लगा जो इस तरह कूल्हे चीरने से कुछ हद तक फैल गया था।
Read my story
खेल खेल में गंदी बात (Running) मेरा बेटा मेरा यार (माँ बेटे की वासना ) (Complete) नाजायज़ रिश्ता : ज़रूरत या कमज़ोरी (Running) अंजाने में बहन ने ही चुदवाया पूरा परिवार (complete) निदा के कारनामे (Complete) दोहरी ज़िंदगी (complete)नंदोई के साथ (complete ) पापा से शादी और हनीमून complete
खेल खेल में गंदी बात (Running) मेरा बेटा मेरा यार (माँ बेटे की वासना ) (Complete) नाजायज़ रिश्ता : ज़रूरत या कमज़ोरी (Running) अंजाने में बहन ने ही चुदवाया पूरा परिवार (complete) निदा के कारनामे (Complete) दोहरी ज़िंदगी (complete)नंदोई के साथ (complete ) पापा से शादी और हनीमून complete