चलते पुर्जे ( विजय विकास सीरीज़ )

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rajaarkey
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Re: चलते पुर्जे

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बात सुबह के नौ बजे की हे ।


विकास, जावेद, नोशाद, किबला ओर मोगली एक आलीशान कोठी की बाल्कनी में बैठे थे ।


जावेद के हाथों में आज का अखबार था और विकास दूर तक नजर आने वाले दृश्य को देख रहा था…


कराची शहर के पूर्व में स्थित वह एक अर्धबिकसित कालोनी थी ।

मुश्किल से दस परसेंट मकान बनकर तैयार हुए थे ।


चालीस परसेंट निमाणाधीन थे ओर बाकी प्लाटस की शक्ल में पड़े थे ।

निर्माण कार्य तेजी से चालू था ओर कहा जा सकता था कि एक साल में कालोनी पूरी तरह बस जाएगी ।


"जावेद ।" विकास बोला-“वुरां न मानो तो एक बात पूछू?”


"तुम्हें चाचूका विश्वास प्राप्त हे ।” जावेद ने अखबार से नजरें हटाकर एक बार नौशाद अंसारी की त्तरफ देखा और फिर मुस्कराते हुए विकास केचेहरे पर दृष्टि गड़ाता बोला…"जो चाहो पूछो ।"


"' ठिकाने कै रूप में तुमने इसी कोठी को क्यों चुना ?'


"कोई बुराई हे इसमें ? "


"जिस लेबल पर पाकिस्तान की सरकार को तुम्हारी तलाश हे, यहां तक कि नुसरत तुगलक जैसे शातिर तुम्हारे पीछे पड़े हैं । उस अवस्था में इस ठिकाने को मै ज्यादा सुरक्षित नहीं समझता । तुम किसी भी समय उनकी नज़रों में आ सकते हो ।"


"मुझें ऐसा नहीं लगता ।" जावेद के होठों पर मुस्कान थी ।

"वजह ? "


"यहां रहने वो कईं फायदे हैँ । पहला-अभी यहा ज्यादा लोग नहीं रहते । मतलब, आप कम से कम लोगों की नज़रों में आते हैं । दूसरा-जिन लोगों का जिक्र तुमने किया यानी जिन लोगों को मेरी तलाश हे, वे सोच भी नहीँ सकते कि मै इस तरह खुलेआम रह रहा होऊंगा । उनकें ख्याल से तो मैंने खुद को चूहे की तरह किसी बिल में छुपा रखा होगा । बस इतनी सावधानी पड़ती है कि जब दिन के वक्त बाहर निकलता हूतो असली सूरत में नहीं होता । उस सूरत में मेरा नाम श्रवण होता है यानी हिंदूहोता हू । आरती को शक्ल चेंज करने की जरुरत नहीं पड़ती । न ही गिरधर चाचा को पढ़ती थी क्योकि इनकी शक्ल टीवी पर नहीं दिखाई गइ है । कोइ पडोसी न होने क कारण भी हम यहीं सुरक्षित हैँ ।"


"इस एंगिल से देखा जाए तो बात में वजन है मगर इतनी बडी कोठी तुम्हारे हाथ कहां से लग गई ?"


“इसे एक पीसीएस अफसर ने अपनी अवैध कमाई से बनवाया हे अथात् वह किसी को भनक नहीं लगने देना चाहता कि उसकी कहीँ कोई कोठी भी है । इन दिनों वह इस्लामाबाद में पोस्टिड है । पंद्रह दिन पहले मैं, गिरधर चाचा और आरती भी वहीं थे । शफ्फाक शाही के बाद हमारे निशाने पर हाजी गल्ला था यानी हमें करांची आना था । सवाल था-करांची में ठिकाना कहां बनाएं । गिरधर चाचा पीसीएस अफसर क्रो पहले से जानते थे इसलिए उससे मिले । कहा कि मेरा बेटा साफ्टवेयर इंजीनियर है । उसका ट्रांसफर करांची हो गया है । वह शादीशुदा है यानी मेरी बहू भी है । करांची में रहने के लिए किराए का मकान चाहिए । चाचा जानते ही थे कि उसे भी किसी ऐसे किराएदार की तलाश है जो इस राज को राज रख सकै कि कोठी किसकी है । सो, बात बन गई । उसने हमारे बारे में ज्यादा पूछताछ नहीं की बल्कि उल्टा यह कहा कि हम किसी क्रो न बताएं कि कोठी उसकी है । हमने उसे तीन महीने का किराया दे दिया ।"


विकास ने कुछ कहने के लिए मुंह खोला ही था कि एक ट्रे में छ: मग रखे आरती नमूदार हुईं । मगों से भाप उठ रहीँ थी जो बता रही थी कि उनमें गर्मागर्मं चाय हे ।


वह खुद भी वहीं बेठ गइ और छओं चाय पीने लगे ।


उस पोजीशन मेँ मुश्किल से एक ही मिनट गुजरा था कि एक छोटी सी कार कोठी के लोहे वाले गेट कै बाहर रुकी ।


उससे निकलकर एक ऐसा आदमी गेट पर पहुंचा जिसने अपने चेहरे के आंखों से नीचे के हिस्से को एक रुमाल से ढक रखा था ।


जाहिर हे…छओं चौंके ।


उस शख्स ने कालबेल के स्वीच पर अंगूठा रखा । परिणाम स्वरूप मुकम्मल कोठी में कालबेल क्री आवाज गूंज उठी।


"कोन हे ये ?" क*ई के मुंह से एक साथ निकला ।


जावेद उसे गोर से देख रहा था, जेसे पहचानने की कोशिश कर रहा हो और फिर, अचानक वह बुरी तरह उछल पड़ा । मुंह से शब्द जैसे खुद फिसलते चले गए थे…"अरे, ये तो आफताब खान है ?"


"कौन आफताब खान?" पांचों ने एकसाथ पूछा ।


"आईएसआइ की इस्लामाबाद ब्रांच का चीफ ।"" वह कहता चला गया…"ब्रिगेडियर गुलहसन की सुरक्षा की जिम्मेदारी इसी की थी । मैं उसे इसी के पंजे से निकालकर वहां ले गया था जहा उसे कत्ल किया । वहीँ है... वही है आरती । भले ही इसने अपने वेहरे पर नकाब ढक रखा हे मगर मैं इसे लाखों में पहचान सकता हू ।"


"यहा क्यों आया है?" एक बार फिर सभी के मुंह से निकला ।


जावेद बोला…"उसे पता कैसे लगा कि मैं यहां हूं?"


एक पल के लिए तो सन्नाटा छा गया वहां ।


सबके दिमागों मेँ खलबली ।


कालबेल की आवाज पुन: गूंजी क्योकिं उसने एक बार फिर स्वीच पर अंगूठा रखा था । कोण ऐसा था कि वे भले ही उसे देख सकते हो लेकिन वह उन्हें नहीँ देख सकता था ।


नौशाद, आरती, किबला और मोगली के चेहरों पर जहां आतंक नजर आने लगा था वहीँ, जावेद के चेहरे पर यह जानने की जिज्ञासा थी कि आफ्ताब आखिर वहा पहुंच कैसे गया । बिकास ने बहुत ही संतुलित लहजे में कहा था-"हम लोगों को आतंकित होने की नहीँ बल्कि सतर्कं हो जाने की जरूरत है । कोइ न कोइ बात तो है जो वह यहां पहुंचा है लेकिन अभी मुझे ख़तरे जैसी कोइ बात नजर नहीं आती क्योंकि वह कालबेल बजा रहा है । मतलब-हमारी जानकारी में अंदर आना चाहता । खतरे वाली बात होती तो वह इस तरह नहीं आता बल्कि रात के अंधेरे में, फोर्स के साथ आता ।"


जावेद ने एक पल सोचा ।


फिर बोला-"बात तो ठीक हे ।”


"तुम सब यहीं रहो । मैं गेट पर जाकर उससे बात करता हू ।"


"क क्या बात करोगे?" नौशाद के मुह से निकला ।


"जानने की कोशिश करूंगा कि वह यहा* क्यों आया है ।"'


"इसमे जानना ही क्या है?" आरती बोली…“दुश्मन है । हमारे ठिकाने पर आया है । इसी से जाहिर है कि...



“नहीं आरती ।" बिकास ने उसकी बात काटी…“हमेँ इस कदर नहीँ डरना चाहिए । वेसे भी, कम से कम अभी तक तो वह अकेला ही नजर आ रहा है और हम छ: हैं । मेँ देखता हूं।" कहने के बाद वह किसी की भी सुनने के लिए वहां रुका नहीं था ।


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बिकास लोहे वाले गेट के करीब पहुचा लेकिन उसे खोला नहीं, इधर ही से गेट कें उस तरफ खड़े आफताब से पूछा… "कहिए ? "


“मेरा नाम आफ्ताब खान हे ।"" उसने सीधे ओर सपाट लहजे मेँ कहा-"कुछ दिन पहले तक मैं आईएसआइ की इस्लामाबाद ब्राच का चीफ था मगर बर्खास्त कर दिया गया हू ।"


उसके शब्द बिकास के जहन में इसलिए तीर की तरह लगे थे क्योंकि उसने बिल्कुल सच बोला था ।


वह बताया था जो उसके ख्याल से उसे छुपाना चाहिए था मगर चेहरे से अपनी मानसिक अवस्था प्रकट न होने दी उसने ।


उतने ही सीधे ओर सपाट लहजे में कहा-“ किससे मिलना है?"


“तुमसे भी और जावेद से भी ।”


“मुझसे ! मतलब ? '"


"मैं जानता हूकि तुम बिकास हो । इंडियन सीक्रेट एजेंट ।”


इसमें शक नहीं कि उसके अलफाजों ने बिकास के दिमाग में विस्फोट सा किया था । उसका अंदाज ही ऐसा था कि यह कहने की कोई गुंजाइश बाकी न बची थी कि-मैं विकास नहीँ हूं । विकास आगे बात करने के लिए शब्द तलाश ही रहा था कि उसने कहा-"मेरे आने ओर बात करने के तरीके से तुम्हें समझ जाना चाहिए कि मैं यहां तुम लोगों को किसी किस्म का नुकसान पहुचाने नहीं आया हूं ।"


"क्यों आए हो?”


"मैं तुम लोगों के काम आ सकता हूं तुम लोग मेरे ।"


"बात समझ में नहीं आईं ।"


"पूरी बात आराम से बैठकर समझा सकता हू । अंदर ले जाने से पहले जैसे चाहो तलाशी ले सकते हो । हथियार के नाम पर मेरे नाखूनों तक को वढ़ा हुआ नहीं पाओगे । विकास, जावेद या किसी और की तो बात ही छोड़ दो । कम से कम तुम्हें तो खुद पर इतना काॅन्फिडेंस है ही कि एक निहत्या आदमी तुम्हारा बाल भी बांका नहीं कर सकता । वो भी तब, जबकि तुम्हारी जेब मे अब भी रिवॉल्वर हे । चाहो तो इसी वक्त मुझे शूट कर सकते हो ।”


"मेरे काॅन्फिडेंस की बात छोडो ।'" विकास ने उसे बहुत ध्यान से देखते हुए कहा था…“फिलहाल तो मुझे तुम्हारे उस काॅन्फिडेंस की तारीफ करनी होगी जिसके तहत तुम यहां आए हो और इतनी बेबाकी से अपना असली परिचय दिया हे ।"


"किसी समझदार आदमी ने कहा कि सबसे ज्यादा ताकत सच में होती है और इस वक्त मैंने उसी का इस्तेमाल किया है ।"


"कैसे जानते हो कि मैं बिकास हू और हम यहां मिलेंगे ।”


“रात मैें भी भूलभूलैया की एक दीवार के पीछे छूपा था ।"


विकास कै तुरंत पूछा-“तुम वहा क्या कर रहे थे ?'


"ब्रिगेडियर गुलहसन की मौत के कुछ दिन बाद से ही मै जावेद से मिलने का ख्वाहिशमंद था ।"


"क्यों ?"


"वो आराम से बताने की बात है ।”


"जो बता रहे थे वो बताओ ।"


"इसे इत्तफाक ही कहा जाएगा कि मैंने नाज़नीन की तरफ़ से अखबार में दिया गया विज्ञापन पढ़ लिया था । उसे पढते ही मैँ समझ गया कि अगर जावेद की नजर इस पर पढ़ गइ तो वह अखवार में दिए गए नंबर पर संपर्क जरूर करेगा । नुसरत ने वर्खास्त जरूर करा दिया है मगर मेरे पुराने संपर्क आज़ भी जिंदा हें । उन्हीं की मदद से अखबार में दिया गया नंबर सर्विलांस पर लगवाया । इस तरह पता लगा कि नाज़नीन ओर जावेद भूलभुलैया पर मिलने वाले हें । मै भी वहां जा छुपा मगर वहां जावेद को नाज़नीन नहीं बल्कि तुम लोग मिले । मेंने न केवल तुम्हारे बीच हुइ सभी बातें सुनीं बल्कि तुम लोगों को फालो करता हुआ यहा तक भी आया ।"


"खुद को उसी समय प्रकट क्यों नही' किया?"


"मैं जानता था ओर गौर से सोचने पर तुम भी मानोगे कि अगर मैंने उस वक्त वो बेवकूफी कर दी होती तो तुममें से कोई बगैर सोचे समझे मुझे गोली से उडा देता । मुझे यह कहने का मौका न मिलता कि मेरे भूलभुलैया क्री दीवार के पीछे छुपने या तुम लोगों को फालो करने के पीछे कोइ दुर्भावना नहीं थी ।"


बिकास चुप रह गया ।।


क्योकि उसकी बात से सहमत था ।


उसी ने कहा-“सुबह होते ही, दिन के उजाले में, यहां आते ही कालबेल इसलिए बजाइ ताकि कम से कम मुझे देखते ही तुममें से क्रोइ गोली से न उड़ा दे । सोचे कि अगर मैँ किसी दुर्भावना से आया होता तो कालबेल न बजाता ओर मुझे अपनी बात कहने का मौका मिले।"


"वही हो रहा है।"


"बेशक । "


"तुम्हें यह डर क्यों था कि कोई तुम्हें देखते ही उड़ा देगा?”


"भले ही तुममें से कोइ ओर न सही लेकिन जावेद मुझे अच्छी तरह पहचानता है । वह मुझे देखते ही...


“उसके लिए तो तुमने आधे चेहरे क्रो रुमाल से ढक रखा है ।'"


"नहीं ।'" उसके लहजे में एक अजीब सी वेदना थी…"अपने चेहरे को मैंने इसलिए नहीँ ढक रखा कि कोई मुझे पहचान न सके। "


"और किसलिए ढक रखा है ?"


"अंदर । सबके बीच बैठकर न केवल बताऊंगा बल्कि इसे हटाकर भी दिखाऊंगा ।"


"मैं अंदर आने दूंगा, तब न ।"


"क्या तुम्हें अब भी नहीं लगता कि मैं अंदर आने लायक हू? मुझे नहीं पता कि और मै किस तरह ये यकीन दिला सक्ता हूंकि मैं यहां किसी दुर्भावना से नहीं आया हू ।'"


"रुमाल हटाकर दिखाओ ।"


""प्लीज.. प्लीज़ बिकास ।'" अगर यह लिखा जाए तो ज़रा भी गलत न होगा कि आफताब खान गिढ़गिड़ा उठा था-"इसके लिए मज़बूर मत करो मुझे । इसके अलावा और चाहे जेसे इस बात की पुष्टि कर लो कि में यहा किसी को नुकसान पहुंचाने नहीं बल्कि एक खास किस्म की मदद हासिल करने आया हूं।"


विकास ने फैसला लेने में केवल दो सेकिड खर्च किए ।


उसने गेट खोला ।


आफताब क्रो अंदर लिया । हालांकि उसे नहीं लग रहा था कि उसकी तलाशी लेने की ज़रूरत है मगर तलाशी ली क्योकि वह जानता था, बाल्कनी से सबकुछ देखा जा रहा है ।


उनकी तसल्ली के लिए यह दृश्य दिखाना जरूरी था ।


ड्राइंगरूम में बैठा आफताब खान जब सबको उतना संतुष्ट कर चुका जितना विकास को किया था त्तो जावेद ने कहा…"अब बताओ कि तुमने आधे चेहरे पर रूमाल क्यों ढक रखा है ?'


आफताब ने बगैर कुछ कहे, एक झटके से रुमाल हटा लिया और…….ऐसा होते ही वहां एकसाथ कईं चीखें गूँज उठी।


आरती तो अपनी चीख कै बाद दोबारा पलटकर आफताब के बगैर नाक के चेहरे की तरफ देखने तक की हिम्मत न जुटा पाई ।


जावेद भी अवाक रह गया ।


मुंह से निकला-"य ये कैसे हो गया?"


सबने आफ़ताब की आंखों में मचलते आंसूदेखे थे । बहुत ही वेदनायुक्त लहजे में कहा उसने…"नुसरत तुगलक ने किया।” '


"क्यो ?


"क्योंकि मैँ गुलहसन को न बचा सका ।"


"केंवल इसलिए उन्होने तुम्हारी नाक...


"मैंने वहुत कहा. ..बहुत्त कहा उनसे कि मेरी नाकामी की कोई ओर सजा दे दो । फांसी पर चढा दो मुझे । ज़मीन में जिंदा गाड़ दो । जैसे जान ले लो मगर नाक मत काटो ।'" कहता कहता वह फूट फूटकर रोने लगा था…"पर वे नहीं माने । कहने लगे क्रि- तुमने हमारी नाक कटबाइ है, हम तेरी नाक काटेंगे । एक ने मेरे हाथ पेर ज़कढ़ लिए, दूसरे ने चाकूसे नाक काट ली ।” कहने के बाद बहुत देर तक सिसकता रहा वह ।



अपने मुंह से निकलने बाली रोने की आवाज को दबाने के लिए उसी रुमाल को मुह में ठूंसे हुए था जिससे कुछ देर पहले चेहरा छुपा रखा था ।


सिसकियां जब हल्की पडी तो जावेद ने कहा-"मुझे अफसोस है आफ़ताब कि ये सब मेरी वजह से हुआ ।"

"नहीँ, यह सब तुम्हारी वज़ह से नहीं हुआ । जो जुल्म तुम पर और तुम्हारी फैमिली पर हुआ था, उसके बाद तुमने जो कुछ किया, वह तुम्हारा फर्ज था और मेरी डयूटी इस काम पर लगाई गई थी कि तुम अपना फर्ज न निभा पाओ । इसमें कोई शक नहीँ कि पूरी कोशिश कै बावजूद में अपनी डयूटी न निभा पाया । नाकाम हो गया मैं । यह सब होने का असली कारण मेरी नाकामी है । चाहता बस यह था कि भले ही मरी जान ले ली जाए, खुशी-खुशी फांसी पर चढने को 'तैयार था परंतु नाक न काटी जाए. ..मगर उन्होंने मेरी एक न सुनी ।"'


एक बार फिर ऐसा माहौल बन गया कि काफी देर तक कोई कुछ न बोला । फिर, उस खामोशी को बिकास ने यह प्रश्न पूछते हुए तोड़ा-"जावेद से क्यों मिलना चाहते ये?"


"नुसरत तुगलक से बदला लेने कें लिए ।"


सभी चोंकें ।


विकास ने पूछा…"बात समझ में नहीं आईं । कैसा बदला लेना चाहते हो उनसे और उसमें जावेद क्या मदद कर सकता है ?”



आफताब ने जावेद की तरफ दखत्ते हुए कहा था-"मुझे अच्छी तरह मालूम हे कि तुम्हारा अगला टार्गेट हाजी गल्ला है ।"'


" तो ?”


"तुम्हारी सबसे बडी समस्या होगी-उसकै हेडक्वार्टर में घुसना, क्योकिं जब से तुमने शफ्फाक शाही का सफाया किया है तबसे उसने खुद को हेडक्वार्टर में कैद कर लिया है । इस मे से वह बाहर नहीं निकलता कि निकला और तुमने खलास किया । "


“इसमें तुम क्या कर सकते हो?"


“तुम्हें हेडक्वार्टर में, बल्कि उसके बैडरुम में पहुंचा सकता हूं ।"


"क्या वाकइ ? "


"सिफ वहीँ कहूंगा जो कर सकता हू ।”


"कैसे ? "


"मुझे ऐसा गुप्त रास्ता मालूम है जिस पर कोइ सुरक्षागार्ड तैनात नहीं रहता । उसके जरिए उसके बेडरूम तक पहुचा जा सकता है ।"


नौशाद अंसारी बोलने वाला था कि जावेद ने चुप रहने का इशारा करने के साथ कहा…“बड्री अजीब बात कह रहे हो भला ऐसा गेप क्यों _ रखा होगा उसने?"


"अपनी सुरक्षा की खातिर ।"'


"सुरक्षा की खातिर उसने एक ऐसा रास्ता छोड़ रखा है जिस पर एक भी गार्ड नहीं हे यह बात समझ में नहीं आईं । ये क्या कह रहे हो? "


"उसे हमेशा डर सताता रहता है कि एक दिन अमेरिका उसके हेडक्वार्टर पर भी वेसा ही हमला कर सकता हे जेसा ओसामा बिन लादेन के घर पर किया था इसलिए बिशेष रूप स एक ऐसा जोन बनाया हे जहा से ऐन वक्त पर फरार हो जाए ।"


"और वो जोन वो है जहां कोइ गार्ड नहीं होता?"


“हां । '"


“गार्ड न रखने से क्या फायदा?”


"उस रास्ते के बारे में जितने ज्यादा लोगों को पता होगा उसकी गोपनीयता भंग होने की उतनी ही ज्यादा संभावना होगी ।"'


"ओह ।” जावेद के मुंह से निकला-“बात समझ में आइ ।"


“लेकिन गोपनीयता तो उसकी फिर भी भंग है ।” बिकास ने कहा…"जैसे तुम्हें मालूम है ।"'


"क्या तुम्हें पता हे कि उस हेडक्वार्टर का केवल नक्शा हाजी गल्ला के दिमाग की देन है ! असल में उसे बनवाया आईएसआई ने है ! क्योंकि आइंएसआइ ही उसे करांची मेँ पनाह दिए हुए है ।"


“हमेँ इस बारे मेँ क्या मालूम _?"


“हक्रीकत यही है और. .. ।"' आफताब ने गहरी सांस ली…“मैं उस टीम का एक मेंबर हूंजिसकी देख रेख में वह बना था ।"'


"इसका मतलब जो भी टीम मेँ शामिल थे, सबको उस रास्ते के बारे में मालूम होगा !"'


"बेशक । लेकिन वो टीम केंवल दस लोगों की थी । मेरे अलावा नो और थे और…..उन नौ में से कोई भी किसी भी हालत में उस रास्ते के बारे मे जुबान पर नहीं ला सकता । मै भी न लाता । अगर मै आज भी आइएसआइ का मेंबर होता बल्कि...न होता तब भी किसी को इस कै बारे में न बताता मगर मेरे साथ तो हालात ही दूसरे हो गए हैँ । हरामजार्दो ने नाक काट डाली है मेरी ।"


"वो रास्ता समुद्र में खुलता हे न ?" जावेद ने जब यह कहा तो आफ्ताब ने बुरी तरह चोंककर उसकी तरफ देखा । शब्द जेसे मुंह से फिसलते गए-"तुम्हें कैसे मालूम ?”


“चाचू उसी रास्ते कं जरिए वहां से फरार हुए हैँ ।"



"रात, भूलभुलैया पर इनकी ओर बिकास की बातचीत के वक्त मिस्टर विजय और अलफांसे की मदद से इनकै वहां से निकलने का जिक्र तो आया था । यह जिक्र भी आया था कि इस काम में मिस्टर अलफांसे ने किसी रहमान नाम कै आदमी की मदद ली थ्री मगर गुप्त रास्ते के बारे में किसी ने कुछ नहीं कहा था ।"


"उसका जिक्र चाचू करने ही वाले थे कि मैंने इनकी बात काट दी ।" जावेद बोला…“क्योक्रि मैं विकास के सामने उस रास्ते का जिक्र नहीं चाहता था । कुछ देर पहल भी चाचू वही गलती करने वाले थे कि मैंने चुप रहने का इशारा किया क्योंकि पहले तुमसे उगलवाना चाहता था कि तुम क्या जानते हो।""


" ओह !"


"क्या रहमान तुम दस में से था?”


" नहीँ । "


"फिर उसे रास्ते कै बारे में केसे मालूम?”


"इस बारे में में कुछ नहीँ कह सकता । हो सकता है वह कोई हाजी गल्ला का विश्वस्त हो ।”


"फिर भी, चाचू को रास्ता तो पता लग ही गया ।"


"इन्हें समुद्र से लेकर उस जगह तक का रास्ता मालूम होंगा जहां इन्हें कैद किया गया होगा जबकि मुझें उस रास्ते की जानकारी है जो सीधा हाजी गल्ला के बेडरूम में खुलेगा ।"


"ओर तुम हमें वहां पहुंचा सकते हो ?'


"यकीनन । "


"क्यों ।"


'" मतलब ?"


"इसमें तुम्हारा क्या फायदा है ?”


"मेरा फायदा ही समझ में नहीं आया अभी तुम्हारी ?”


"शायद ठीक से नहीं ।" जावेद ने कहा ।


"मैें भी उन हरामजादों की नाक काटना चाहता हू ।" आफताब की आंखों में प्रतिशोध की चिंगारियां नज़र आने लगी थीं…"उन्होंने मेरी नाक इसलिए काटी क्योंकि मैं ब्रिगेडियर गुलहसन को न बचा सका । अब हाजी गल्ला उनकी सरपरस्ती में है । उसे उस हेडक्वार्टर में छुपा रखा हे उन्होंन, जिसे अभेद्य माना जाता हैं । जब तुम उसे उसी के बेडरूम मे मौत कै घाट उतार दोगे तो मैें नुसरत तुगलक नाम कै कुत्तों के सामने जाऊंगा, कहूंगा कि तुम हाजी गल्ला की हिफाजत न कर सकै । अब तुमने मुल्क की नाक कटवाइं हे...मुझे तुम्हारी नाक चाहिए ।"" उसका लहजा वहुत खतरनाक और भावुक होता चला गया था…"मैं अपने दांतों से ही उनकी नाक कतर लूंगा । फिर आइना दिखाऊँगा उन्हें । कहूँगा कि देखो हरामजादो...देखो कि बगैेर नाक के आदमी कैसा लगता है। "


कहने के बाद वह लंबी लंबी सांसें लेने लगा । माहौल एक बार फिर ऐसा हो गया था कि किसी के मुंह से बोल न फूटा ।


सांसें नियंत्रित होते ही उसने पुन: कहा…"एक तरह से यह तुम्हारी मदद होगी क्योंकि तुम्हारा तो मकसद ही हाजी गल्ला का खात्मा है मगर यकीन मानो जावेद, मै यहां तुम्हारी मदद करने नहीं बल्कि तुम्हारी मदद लेने आया हूं । उनकी सरपरस्ती में रहत्ते हाजी गल्ला क्रो मौत कै घाट उतार दो । मेरा प्रतिशोध पूरा हो जाएगा ।"


अकेला जावेद ही क्यों, सभी उसके यहां आने के मकसद को अच्छी तरह समझ चुके थे ।


जावेद बोला-"उस रास्ते से कुछ हो सकता तो हम काफी पहले हाजी गल्ला क्रो खत्म कर चूकै होते ।"


" मतलब ? "


"वे जानते हैं कि विजय, अलफासै ओर चाचू हेडक्वार्टर तक पहुंचने वाले गुप्त रास्ते के बारे मे जान चुके हैं । वे यह भी जानते हैं कि उनमें से एक यानी चाचू मेरे पास हैं । स्वाभाविक सी बात है कि वे समझ गए होंगे कि चाचू ने मुझे उस रास्ते के बारे में बता दिया होगा । ऐसी अवस्था मेँ क्या वे उस रास्ते क्रो यूंही खुला छोड देंगे ?? क्या उन्होने चप्पे चप्पे पर गार्ड तैनात न कर दिए होंगे ? ”


"ये बात तो ठीक है ।"" इन शब्दों के साथ आफ़ताब खान के चेहरे पर निराशा छा गई थी-"उन्होने उस रास्ते पर भी सुरक्षा कै उतने ही पुख्ता इंतजाम कर दिए होंगे जितने बाकी रास्तों पर हैं ।"


एक बार फिर उनके बीच खामोशी छा गई थी ।

यह खामोशी इसलिए थी क्योंकि किसी के पास बोलने के लिए कुछ बचा ही न था ।


सबसे ज्यादा निराश आफताब नजर आ रहा था । उसक चहरे पर साफ लिखा था कि वह बडी उम्मीद लेकर आया था मगर एक ही झटके में उसके सारे प्लान की हवा निकल गई ।

"इतना निराश होने की जरूरत नहीं है आफताब ।" जावेद ने दुढ़तापूर्वक कहा था-"मेरे हाथों से हाजी गल्ला की मौत
निश्चित है । ये रास्ता बंद हो गया तो कोई और रास्ता निकाल लूगा । तुम्हें नुसरत-तुगलक से उनकी नाक मांगने का नौका जरूर मिलेगा । ”


आफताब ने जैसे उसकी बात सुनी ही न थी ।


अपने विचारों मेँ गुम था वह और फिर अचानक उछल पड़ा ।


बोला…“मैं सप्रे का इंतजाम कर सकता हू।""


"कैसा सप्रे ?"


"अरंड कै बीज में पाया जाने वाला रिसिन प्रोटीन इतना जहरीला हे कि यदि उसका छिडकाव किसी भीड भरे स्थान पर कर दिया जाए तो यह श्वसन तंत्र के साथ कोशिकाओं की संरचना क्रो भी प्रभावित कर सकता है । अधिक मात्रा में होने पर यह कोशिकाओं में प्रोटीन संश्लेषण की प्रक्रिया भी रोक देता है । "


"अचानक तुम ये क्या बड़बड़ाने लगे हो?" जावेद ने पूछा ।


"ये मेरे नहीं, एक वज्ञानिक कै शब्द हैं । उस वैज्ञानिक के जो जैविक हथियारों पर शोद्ध कर रहा है ।" आफताब किसी पागल की मानिंद कहता चला गया था…"मेँ आइएसआइ की लेबोरेट्री की बात कर रहा हू । वो वैज्ञानिक मेरा दोस्त हे । उसने कहा था कि जल्दी ही वे ऐसा जैबिक हथियार बना लेंगे जिससे शहर पर छिडकाव करके शहर के शहरों को मौत की नींद सुलाया जा सकता है।"


“हमें कौनसे शहर को मौत की नींद सुलाना है !”


"वही तो । '" आफताब बोला… "हमें उतनी मात्रा की ज़रूरत नहीँ है क्योंकि गार्डस क्रो बगैर मारे काम चल सकता है । उनका बेहोश हो जाना ही काफी होगा ओर बेहोश होने से एक क्षण पहले भी उन्हें यह पता नहीँ लगेगा कि उनके साथ कुछ होने वाला है । किसी तरह की गंध भी तो नहीं हे उसमें । "'
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Re: चलते पुर्जे

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अगर यह लिखा जाए तो जरा भी गलत न होंगा कि इस वक्त केवल विकास समझ रहा था कि आफताब क्या कह ओर सोच रहा है । वही बोला…"उससे तो हम भी बेहोश हो जाएंगे ।”


“मेरा वैज्ञानिक दोस्त एंटी रिसिन प्रोटीन की गोलियां भी बना चुका है । बस यह पूछना पडेगा कि कितनी मात्रा में ली जाएं ।""


"क्या वह बता देगा?"


"बताया न, मेरा दोस्त है । विश्वास करता है मुझ पर ।"" वह कहता चला गया-"एल्कोहल का शौकीन है और थोडा बड़बोला भी है । उसे तो पता भी नहीँ लगेगा कि बातों बातों में मैंने क्या जान लिया । मैं ये कर लू'गा...मैें ये काम कर लूगा विकास । मैं रिसिन प्रोटीन भी प्राप्त कर लूगा और एंटी रिसिन प्रोटीन क्री गोलियां भी ।""


“तब तो हम वहां पहुच सकते हैं । " विकास ने कहा ।


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चांदनी रात कै कारण समुद्र कुछ ज्यादा ही जोर-जोर से गर्ज रहा था । खारा पानी दूर दूर से दोड़कर आता और बीस बीस फुट ऊची लहरों में तब्दील होकर हवा में उछल जाता ।


कई बार ऐसा लगा कि लहरों पर सवार रबर की वह छोटी सी नाव समुद्र मेँ अब पलटी कि तब पलटी जिसमें वे सातों सवार थे ।


सातों के जिस्मों पर गोताखोरी का लिबास और सेफ्टी बेल्टस थीं । विकास, आफ्ताब, जावेद और किबला के हाथों में चप्पू थे।।


बिकास और आफताब नाव के अगले हिस्से में बैठे चप्पूचला रहे थे तो जावेद और किबला पिछले हिस्से मेँ । शोर मचाती लहरें नाव को पलटने की पूरी कोशिश कर रहीँ थीं ।


उन्हें नाकाम कर रहे थे तो केवल नाव के चार किनारों पर चार चप्पू।


मोगली, आरती और नौशाद को बीच में इस तरह बैठाया गया था कि बैलेंस बना रहे । एक रस्सी की मदद से वे सातों आपस में बंधे हुए थे ताकि नाव पलटने की अवस्था में भी एक दूसरे से जुदा न हो सकें ।


उनके लिबास पूरी तरह भीग चुके थे ।


आकाश पर चमक रहे पूर्ण चांद के कारण जितना देखा जा सकता था, बस उतना ही देखा जा सकता था ।


उसके अलावा दूर दूर तक कहीं कोइ रोशनी नजर नहीं आ रहीँ थी ।


समुद्र अगर शांत होता तो नाव के ज़रिए उन गगनचुंबी पहाडों तक पहुंचना ज्यादा मुश्किल न था जिनकी जडों से बारम्बार टकरा रही लहरें, उन्हें तोढ़ डालने की नाकाम कोशिशें कर रहीँ थीं, मगर ज्वार भाटे के कारण इस वक्त वह काम बेहद मुश्किल नजर आ रहा था ।


फिर भी, एक घंटे के थका देने वाले प्रयास के बाद वे पहाडों की ज़ड़ में पहुँच गए थे ।

"कहां हे वो गुफा?” विकास ने इतने तेज़ स्वर में पूछा कि आवाज लहरों के शोर को चीरकर आफ़ताब के कानों तक पहुंच जाए ।



आफताब ने भी उत्तने तेज स्तर में जवाब दिया…“सबसे उच्चे पहाढ़ की जढ़ में चलते रहो । एक स्थान पर पहाढ़ में कूब सा निकला नजर आएगा । गुफा उसी के नीच, समुद्र के अंदर है ।"'


वहीँ प्रयास जारी हो गया ।


नाव को कूब के नीचे पहुंचने में बीस मिनट लगे ।


फिर, एक हुक जेसी चीज को पहाढ़ की दीवार में गाड़ने की कोशिश चालूहों गई । पहले हुक पर विकास ने जोर-जोर से हथोड़े बरसाए, फिर आफ़ताब ने और उसके बाद किवला ने ।


समुद्र के खारे पानी पर बार बार दोढ़कर आ रही भारी लहरें उनके जिस्म से पानी की दीवारें बनकर टकरा रही थीं ।


उनके कारण उनका काम और भी ज्यादा मुश्किल होता जा रहा था पर वे तो जेसे आज निकले ही हर मुसीबत से टकराने के लिए थे ।


प्रकृति और इंसानी हौंसलों का ये टकराव सदियों से होता चला आया है । कभी प्रकृति जीतती है, कभी इंसानी हौंसले ।


पंद्रह मिंट ज़रूर लगे लेकिन वह वक्त आया जब आफताब ने पहाढ़ में गड़े हुक को चेक करते हुए कहा-"अब ये नाव को संभाल सकता । "


बिकास ने उस रस्सी के सिरे पर बंधा कांटा पहाड में गाड़े गए हुक में र्फसा दिया जिसका एक सिरा नाव से बंधा था ।


अब नाव लहरों पर उछल-कूद तो मचा सकती थी मगर वहां से कही जा नहीं सकती थी ।


आफताब ने कहा…"अब हमें समुद्र में कूदना हे । सब लोग आक्सीजन मास्क ओर हेलमेट पहन लें ।"'


सबने हुक्म का पालन किया ।


सभी ने करीब करीब एक साथ नाव से मेँ जम्प लगा दी ।


एक दूसरे से बंधे गहराई में उतरते चले गए । सभी ने वे स्वीच आन कर लिए थे जिनके कारण उनके हैल्मेट के अग्रिम भाग में लगी न टार्चे आन हो गई थीं ।


अब वे पानी के अंदर अपने आसपास कै दृश्य को देख सकत थे ।


गहराई में पानी की हलचल भी कम थी मगर चारों तरफ से "घुप्प घुप्प" की आवाजं आ रही थीं ।


आफताब को जल्दी ही पानी से भरी गुफा नजर आई ।


वह उसी में घुस गया । रस्सी से बंधे होने कें कारण सब उसी में समा गए ।


गुफा में पानी भले ही था मगर वहां उसमें जरा भी हलचल न थी इसलिए बगैर किसी खास दिक्कत कै अंदर क्री तरफ तैरते चले गए ।


माहौल इतना डरावना था कि अगर आफताब को उस गुफा के बारे में पता न होता तो कभी उसके अंदर दाखिल न होता ।



शीघ्र ही उसे पानी में डूबी लोहे की सीढी नजर आईं । वह, ओर उसके पीछे छओं सीढी पर चढते चले गए । लोहे के करीब चालीस डंडे चढने के बाद गुफा की छत में दो बाइ दो का एक गोल होल नज़र आया । सीढी उसे क्रास करती हुई ऊपर चली गई थी । आफताब बगैर किसी हिचक के होल को पार कर गया ।


अब वह दस बाइ दस के एक छोटे से पहाडी कमरे में था और वही क्यों, अगले पांच मिनट में सातों वहीँ थे ।


उस कमरे में जहा जरा भी पानी नहीं था ।


पानी उस होल के नीचे था जिसके ज़रिए वे वहां पहुंचे थे । मास्क उतारते हुए मोगली ने कहा था…"मार दिया शाब, मेरी तो हड्रिडयां कीर्तन करने लगी हें ।"'


"वाकई ।"' किबला बोला-"आफताब ने जब इस रास्ते कें बारे में बताया था तब ऐसा नहीं लगा था कि इतना मुश्किल होगा ।"' आरती ने कहा…“थक तो मैं भी गई हू' लेकिन ऐसे अद्भुत रास्ते की मैं कल्पना तक नहीं कर सकती थी ।"'


“मैंने तुम चारों से पहले ही कहा था ।" जावेद नौशाद की तरफ दखता हुआ बोला-"कितनी कोशिश की थी समझाने की इस मिशन में तुम्हारी कोई जरूरत नहीं है । मैं, बिकास और आफ़ताब ही काफी हैं मगर तुम नहीं माने । किसी ने एक न सुनी। "


"अब भी तेरी कोई सुनने वाला नहीं है ।"' आरती ने कहा ।


जावेद ने कुछ कहने कें लिए मुंह खोला ही था कि नौशाद बोल पडे…"तुझे अकेला छोडने की अब हममें से किसी में हिम्मत न है । ”


"समझ क्यों नहीं रहे चाचू।" जावेद झल्लाया-"ज्यादा भीढ़ समस्या हो सकती है । अब भी कहता हूं तुम लोग यहीँ रुक जाओ, मैं, विकास और आफताब मिशन पूरा करके आते हे । तुम्हें यहीँ से साथ लेकर वापस लोट जाएंगें।"


"तुम्हारी समझ मेँ अभी तक ये बात क्यों नहीं आईं जावेद बेटे कि हम सबकी जान तुममें बसी हैं ।"' किबला ने कहा था…"हम मर तो सकतें हैँ मगर तुम्हें अकेला नहीँ छोढ़ सकते ।”



झल्ताया हुआ जावेद पुन: कूछ कहने वाला था कि उससे पहले आफताब बोला…" मै कोठी पर ही देख चुका हू जावेद, सारी कोशिशें बेकार हैं । इनमें से कोई तुम्हारी बात मानने वाला नहीं हे । बेहतर हे कि टाइम खोटा करने की बजाए आगे बढा जाए ।"'


वह यह सोचकर चुप रह गया कि आफताब ठीक कह रहा हे ।


विकास ने दाई दीवार की तरफ इशारा करते हुए आफताब से कहा-"तुम्हारे बताए मुताबिक इस दीवार में एक दरवाजा है । उसे पार करते ही वह सुरंग जो हमें हेडक्वार्टर तक ले जाएगी और ताजा हालात के मुताबिक उस सुरंग में माइंस हो सकते हैँ जबकि आमतौर पर एक भी गार्ड नहीं रहता था ।"'


"संभावना तो यहीँ है कि अब गार्डस होंगे और हम उनसे निपटने की पूरी तैयारी करने कें बाद ही यहां आए हैं ।" कहने कै साथ उसने गोताखारी लिबास उतारना शुरू कर दिया था ।


सबने उसका अनुसरण किया क्योकि पहले ही तय हो चुका था कि उन्हें अपने गोताखोरी लिबास इस कमरे में छोढ़ देने हैँ ।


कुछ देर बाद उन सभी के जिरमों पर साधारण लिबास थे । सभी ने अपनी जेबों से निकालकर एक एक एंटी रिसिन प्रोटीन की टेब्लट खाइ ।


फिर, उनके हाथों में ऐसी छाटी छोटी पिचकारियाँ नज़र आने लगीं जेसी सलून पर, फेस पर स्प्रे करने के लिए होती हें ।


"दरवाजा यहां उत्पन्न होगा ।" आफताब ने दीवार के एक खास हिस्से की तरफ इशारा किया ।


सबने अपनी नजरें वहीँ गड़ा दीं । साथ ही, हाथों में मौजूद छोटी छोटी पिचकारियाँ इस तरह तान ली थीं जैसे वे एके सैंतालीस हो ।


आफताब कमरे में माजूद एक ऐसे स्वीच बोर्ड क्री तरफ बढा जिस पर अनेक स्वीच थे ।


उंगलियां एक खास स्वीच पर रखता हुआ वोला-"रेडी ।"


"यस ।"' सबने एकसाथ इस तरह कहा जैसे बाहर पर फायरिंग करने के लिए तैयार हों ।


आफताब ने स्वीच दबाया ।


हल्की सी घरघराहट कै साथ दीवार में दरवाजा बना ।


बगैर यह देखे कि दूसरी तरफ कोई हे भी या नहीं, सबने अपनी उंगलियों क्रो हरकत दी और सभी की पिचकारी से स्प्रे हुआ ।


सुरंग करीब दस फुट चौडी थी परंतु लंबाई का अंदाजा कम से कम वहां से नहीं लगाया जा सकता था क्योकि करीब चालीस फुट दूर मोढ़ नज़र आ रहा था । दोनो दीबारो के साथ सशस्त्र गार्ड खड़े थे ।


हर दस फुट पर एक गार्ड था यानी मोढ़ के इस तरफ कुल गार्डस की संख्या चार थी । घरघराहट की आवाज़ सुनकर चारों का ध्यान दीवार की तरफ गया । उसमें दरवाजा उत्पन्न हो चुका था ।


दरवाजे के उस तरफ कुछ इंसानों की झलक पाते ही उन्होंने शस्त्र सीधे करने चाहे थे मगर जाने क्या हुआ कि दिमाग चक्रराए ओर व धाढ़ धाड़ करके पथरीली ज़मीन पर गिर गए । गिरने से पहले वे केवल यह देख पाए थे कि दरवाजे कै पार नजर आने वाले लोगां ने छोटी छोटी पिचकारियाँ से कुछ रुप्रे किया था ।


जो हुआ, पलक झपकते ही हो गया था।


चारों गार्डस की हालत देखकर किवला कह उठा…“कमाल का* स्प्रेे है, इसने तो माइंस को अपने हाथों में मौजूद हथियारों क्रो सीधा तक करने का मोका नहीं दिया ।"'


आफताब ने तुरंत अपने होठों पर उंगली रखकर उसे चुप रहने कै लिए कहा और फिर बहुत ही धीमे स्वर में फुस फुसाया-"मोड के उस तरफ़ भी गार्डस तैनात होंगे । हमारी आवाज उन तक नहीं पहुंचनी चाहिए । एक को भी गोली चलाने का मौका मिल गया तो उसकी आवाज़ दूर दूर तक सबको सतर्क कर देगी । उस अवस्था में यदि ये कहूतो गलत न होगा कि हमारे ये स्प्रे बेकार हो जाएंगें ।”


किवला का चेहरा बताने लगा था कि उसे अपनी गलती का एहसास हो गया है । मुंह से कुछ नहीं कहा उसने लेकिन आंखों से जरूर कहा कि अब नहीँ बोलगा ।


सातों दब पांव आगे बढ ।


अंधरे ने दस बाइ दस के कमरे तक उनका साथ दिया था ।

सुरंग गें भरपूर रोशनी थी क्योंकि उसकी छत में जगह जगह वल्ब लगे हुए थे और वे सभी रौशन थे ।


नौशाद अंसारी की इच्छा सबको यह बताने की हुइ कि जब वे विजय ओर अलफांस के साथ यहां से गुजरे थे तो कोइ बल्ब रोशन न था । पूरी तरह अंधेरा था यहां और कोई गार्ड भी तैनात न था मगर आफ्ताब कै शब्दों को याद करके इस इच्छा को अपने सीन ही में दफन करना पड़ा ।


वे मोड पर पहुचे।


उस वक्त सबसे आगे विकास था ।

उसने बहुत ही सावधानी से झांककर दूसरी तरफ देखा । एक ही नजर में उसने देख लिया....था कि अगले पोड से पहले केंवल तीन गार्ड थे ।



उसने स्प्रे किया । तीनां गार्ड लुढक गए । रास्ता क्लियर था और. .. इसी तरह रास्ता क्लियर करते वे ज़रा भी आहट पैदा किए बगैर आगे बढते रहे ।


अगर यह कहा जाए तो गलत न होगा कि अनेक मोडो से अटी पडी सुरंग ही सुरंग में उन्होंने करीब एक किलोमीटर सफर जरूर किया होगा ।


उसकै बाद गेलरिया' शुरू हो गईं जो इस बात की द्योतक थी कि अब वे हेडक्वार्टर की सीमा मेँ दाखिल हो चूकै हैं । शायद बताने की ज़रूरत नहीं हे कि गार्डस वहां भी तैनात थे और उन्हें भी रिसिन प्रोटीन के घातक स्प्रे का शिकार होना पड़ा ।


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काफी बड़ा कमरा था वह । करीब पच्चीस वाइ पच्चीस का ।


दीवारों पर नंगी लडकियां की तस्वीरें । कमरे के बीचों बीच पड़ा गोल बैड । हर तरफ से, सुनहरे पारदर्शी पर्दों से घिरा । भारी भरकम जिस्म वाला जो शख्स उस पर पड़ा खर्राटे ले रहा था उसे पाठक अच्छी तरह पहचानते हैँ मगर उस लडकी को जरा भी नहीं जानते जो ठीक उसकी बगल मेँ लेटी थी ।


उम्र-किसी हालत मे बीस से ज्यादा नहीं । आंखों से आंसुओं की जैसे बरसात हो रही थी । सिसकियाँ ले लेकर बुरी तरह रो रही थी वह ।


ओढ़ने वाली चादर का सिरा मुह में ठूंस रखा था । दोनों मे से किसी के भी जिस्म पर कोइ कपडा न था ।


अचानक बेल बजी । दोनों बुरी तरह चौके ।


लडकी रोना भूल गई ।


हाजी गल्ला इस तरह हड़बड़ाकर उठा किसी ने गोली मार दी हो क्योकि यह वेल उसके आदमियों द्वारा किसी एमरजेंसी में ही बजाईं जाने कें लिए थी ।


मुंह से 'क्या हुआ क्या हुआ? की आवाजें निकल रही थीं ।


लडकी उठकर बैठ गई जबकि हाजी गल्ला तो कूदकर फर्श पर पहुच चुका था ।


बेल थी कि बंद होने का नाम ही न ले रही ।


भला हाजी गल्ला को इस वक्त यह होश कहा' कि उसके जिस्म पर एक भी कपड़ा न था !


वह बाज की तरह स्वीच बोर्ड की तरफ लपका ।

एक स्वीच दबाया ।

कमरे का मुख्य दरवाजा खुल गया और...उसकें खुलते ही जैसे कयामत आ गई ।


इधर, हाजी गल्ला गैलरी में खड़े सात लोगों को देखकर हक्का बक्का था तो उधर, वे सातों पहाढ़ जेसे जिस्म वाले हाजी गल्ला को पूरी तरह नंगा देखकर ।


"क...क...कौन हो तु...म.. .म. .." हाजी गल्ला के हलक से निकलने वाले आखिरी शब्द जोरदार चीख में तब्दील हो गए क्योंकि सेंटेंस पूरा होने से पहले ही बिकास के बूट की ठोकर उसके पेट पर पडी थी ।


भैंसे क्री तरह डकराता हाजी गल्ला कमरे के फर्श पर जा गिरा ।


सातों कमरे के अंदर आए ।


इस वक्त उन सभी कै हाथों में पिचकारियों की जगह रिवाल्वर थे।


आफ्ताब स्वीच बोर्ड की तरफ लपका । उसने एक स्वीच दबाया ओर... कमरे का खुला हुआ मुख्य दरवाजा बंद हो गया ।


वेसा होते ही आफताब ने कहा…“अब कोइ चिंता नहीं जावेद,यह कमरा साऊंडप्रूफ़ हे ।"'


जावेद के चेहरे पर कहर बरपाने वाले भाव थे ।


आंखें दहककर अंगारा बन गई थीं ।


हाजी गल्ला उछलकर फर्श पर खडा हो चुका था ।


वह हालात को समझने की कोशिश कर रहा था जबकि उस देखकर जावेद की आंखां में ऐसे भाव उभरे थे जेसे नागिन के हत्यारे क्रो देखकर नाग की आंखों में उभरत हांगे ।


लड़क्री अपने जिस्म को समेटकर गठरी सी बन गइ थी ।


चेहरे पर आतंक लिए खुद को बैड के एक कौने में छुपाने का प्रयत्न करने लगी ।


ओढ़ने वाली चादर से उसने अपने जिस्म को ढांप रखा था ।


"तुम ।" जावेद को पहचानते ही हाजी गल्ला गुर्रा उठा था…""तू यहां? और नेता...तूभी !" कहने के साथ उसने नौशाद अंसारी को देखा था ।


फिर, बाकी पांचों क्रो देखता हुआ बोला…"तुम सब, इतने सारे लोग यहां कैंसे घुस आए?"

"तूने कहावत सुनी होगी हाजी गल्ला कि मौत जब आती हे तो सात ताले तौढ़कर आ जाती हे ।"' जावेद ने दांतपीसे-"जरूरत से ज्यादा सुरक्षित ये हैडक्वार्टर तूने खुद को अमरिका कै शील कमांडोज से बचाने कें लिए बनवाया था मगर यहां तो में ही आ घुसा ।"


“घुस तो आया है बेवकूफ लेकिन तूयहां से जिंदा वापस न जा सकेगा ।” हाजी गल्ला अंदर ही अंदर भले ही डरा हुआ हो मगर प्रगट मेँ पूरी दंबंगईं के साथ पेश आया…"तेरी जिंदगी की आखरी भूल साबित होगी यह ।"'


"जब तू जीत्ते जी मुझे अंदर आने से न रोक सका, तो तेरे मरने के बाद बाहर निकलने से कौन रोक लेगा?”


“तू मुझे इतने सारे लोगों से घेरकर मारेगा ?"


"हुंह ।। तू भी अकेला नहीं आया था मेरे घर ! याद है…त्तेरे साथ इकरामुद्दीन था, शफ्फाक शाही था और जब मुझे हथकडी और बेडियों में जकढ़कर ले जाया गया था तो ब्रिगेडियर गुलहसन भी था । वेचारे? एक भी नहीँ रहा उनमें से ! कुछ दर बाद तू भी नहीं रहेगा । तू उनके बूते पर मेरी वहन को गंदी नजरों से देखता था । तेरी खूंखार नज़रों से मेरी बहन ही नहीं, अब्बू और अम्मी तक सहम जाते थे । हाथ जोढ़-जोड़कर रहम की भीख मांगते थे तुझसे मगर तुझे रहम नहीं आता था दरिंदे । मुझें हथकडी बेडी मेँ ज़कड़कर मेरी बहन के जिस्म से कपड़े नोंचने की बहादुरी दिखाइ थी तूने मगर मै आज भी अपने साथियों के साथ आया ज़रूर हू लेकिन तुझे मौत कै घाट अकेला ही उतारूगा । इनमें कोई मदद नहीँ करेगा मेरी । आज तुझे मेरे हाथों अपने हर गुनाह की सजा मिलेगी।”


“हाथ में रिवाल्वर लेकर तो कोई भी किसी को धमका सकता है । मर्द का बच्चा हैं तो...


"तूमुझें नहीं, खुद क्रो गाली दे रहा हे हाजी गल्ला ।" जावेद उसकी बात काटकर कह उठा…"क्योंकि जब तूने मेरे घर में अपनी मर्दानगी दिखाईं थी तो मैं निहत्था ही नहीं था बल्कि हथकडी बेडी में ज़कड़ा हुआ था । हकदार तो नहीं है तू सब कहने का लेकिन तू. .तू था और जावद कश्मीरी. ..जावेद कश्मीरी हे । इसमें शक नहीं कि इस वक्त मरी सिर्फ एक उंगली की हल्की सी जुबिश तुझे मौत के घाट उतार देगी मगर तेरी उस मौत से मुझे सुकून नहीं मिलेगा । इसलिए, ये ले. .. रिवाल्वर जेब मे रख लिया ।” कहने के साथ उसने सचमुच रिवाल्वर जेब में रख लिया था ।



विकास का यह ठीक न लगा । उसने तेज स्वर में कहा-"ऐसे मौकों पर जजबाती नहीं होना चाहिए जावेद । ये तुम्हें उक्साने की कोशिश कर रहा है और तुम्हें......


"तुम जासूस हो मिस्टर मगर मैं जासूस नहीं हूं ।"' जावेद उसकी बात काटकर कहता चला गया था…"मैँ वो भाई हूं जिसकी आंखां कै सामने इसने उसकी बहन के कपडे तार तार किए थे । मैं वो बेटा हूं जिसकी आंखों के सामने उसके अब्बा गोली मारी गइ और मैं वो अभागा हूंजिसने उस कोख में चाकू घुसते देखा जिसमेँ नौ महीने गुजारे थे । मेरे कानों में उन सबकी चीखं गूंज रही हें । अपनी जासूसी मत झाड़ो । सीख देने की कोशिश मत करो मुझे और सब अपने अपने रिवाल्वर जेब मेँ रख लौ । मै यहा' इसका कत्ल करने नहीं अपने दिल को करार देने आया हूं ओर वह तब मिलेगा जब मैं इसे तढ़प तड़पकर मरता देखूंगा।"'


सब पर सन्नाटा छा गया था ।


"सुना नहीं तुमने !" इस बार जावेद के हलक से किसी हिंसक पशु जैसी गुर्राहट निकली थी…“रिवाल्वर जेब में रखो ।”


उस गुर्राहट में जरूर क्रोइ ऐसी बात थी कि दूसरों कीं तो बात ही छोड़ो, विकास जैसा लडका अपने हाथ को जेब की तरफ़ बढने से न रोक सका जबकि जावेद ने अपनी जेब से एक नहीँ, ठीक एक जेसे दो चाकू निकाले थे । दोनों उसके दोनों हाथों मेँ थे और...एक झटके से दानों क्रो एक साथ खोला ।


"ले ।"" कहने के साथ बाएं हाथ का चाकू हाजी गल्ला की तरफ़ उछाला ।


हाजी गल्ला ने उसे लपक लिया था । जावेद ने अपनी बात पूरी की…"अब हम बराबर हें । इनमें से कोई बीच में नहीं आएगा । तूने मौका नहीं दिया था मुझे मगर मैं तुझे मोका देता हूं… कहर से बचन की ताकत हे तो बच ।"' कहन के साथ दाएं हाथ में मोजूद चाकू को ताने उसने हाजी गल्ला पर जम्प लगा दी थी।


हाजी गल्ला एक तरफ हट गया ।


परिणाम स्वरूप-जावेद फर्श से जा टकराया ।


सभी के दिलों की धडकनें आशंकाओं से घिर गई थीं । यहां तक कि विकास के दृष्टिकोण से भी जावेद ने समझदारी का परिचय नहीं दिया था क्योकि जाहिर तौर पर हाजी गल्ला जिस्मानी रूप से जावेद से कइ गुना ज्यादा ताकतवर था।


वही हुआ ।


जावेद अभी फर्श से उठ भी नहीँ पाया था कि हाजी गल्ला कै हाथ में दबा चाकूघूमा और वह जावेद के बाजूको चीरता निकल गया । कमरे मेँ जावेद की चीख गूंजी, खून उछला ।


भन्नाए हुए किबला का हाथ जेब की तरफ रेंगा मगर तभी, जावेद चीख पड़ा-"नहीँ, कोई मेरी मदद नहीं करेगा।”


हाथ जहा का तहा रुक गया ।

हाजी गल्ला ने जावेद पर दूसरा वार करने की कोशिश की थी मगर इस बार वह झोंक में कमरे की एक दीवार से टकराकर रह गया क्योंकि जावेद ने ऐन वक्त पर अपनी जगह बदल दी थी ।


उसके वाद...उन सवने ताकत ओर जुनून की टक्कर देखी ।


यकीनन जिस्मानी ताकत हाजी गल्ला में ज्यादा थी मगर जावेद के रोम-रोम में जुनून सवार था और. ..ज्यादा वक्त नहीं लगा, केवल पांच मिनट वाद बिकास जेसे लड़के को मानना पड़ा कि जुनून के सामने ताकत की कोई हैसियत नहीं होती ।


जावेद के जिस्म पर हाजी गल्ला के चाकू के कवल तीन ज़ख्म वने थे जबकि हाजी गल्ला के जिस्म पर वने जख्मों को कोई गिन नहीं सकता था और...वे लगातार वढ़ते ही जा रह थे क्योंकि जावेद अपने हाथ में दवे चाकू से वार-वार उस पर बार कर रहा था ।


लहूलुहान अवस्था में हाजी गल्ला फर्श पर गिर चुका था । चाकू हाथ में होने कें वावजूद उसका इस्तेमाल नहीं कर पा रहा था वह और न ही अपने हलक से निकलन वाली चीखौं को रोक पा रहा था ।


यह कहा जाए तो ज़रा भी गलत न होगा कि सिर्फ हाजी गल्ला ही अपने खून से नहाया हुआ नहीं था वल्कि जावेद भी उसके खून से नहा गया था । दीबारौं पर जगह-जगह खून लगा था तो फर्शं पर तो वह ही रहा था ।


बार बार उसके जिस्म पर चाकू से वार करता जावेद जुनूनी अवस्था में चीखे चला जा रहा था-“मेरी वहन को गंदी नज़रों से देखेगा कुत्ते ! कपढे फाडे़गा उसके रेप करेगा उससे । आज सुरैया जिंदा होती तो उसी के हाथों खात्मा कराता तेरा।। चाकू मेरे नहीं, उसके हाथ में होता ओर तुझ...


" रूक जाओ भैया...रुक जाओ ।" कमरे में एक आबाज गूंजी ।


हवा में उठा जावेद का हाथ जहां का तहां रूक गया ।


उस अकेले की नहीं, वाकी छओं की नज़रं भी उस लडकी क्री तरफ घूम गई थीं जो वेड से खडी हो चुकी थी । जिसे इस वक्त इस वात की जरा भी परवाह न थी कि उसके जिस्म पर कपढे के नाम पर एक रशा तक नहीं है । उसकी आंखों मं आंसू*थे लेकिन चेहर पर चटटानी कठोरता । उसने कहा था-"लगता हैं भैया इसने तुम्हारी वहन को वहुत सताया था !”


"सताया ही नहीं था, इस राक्षस ने रेप करने की काशिश की थी उससे।” दहाड़ने के साथ जावद ने हलाल होते बकरे की तरह मिमिया रहे हाजी गल्ला के जिस्म पर एक और वार किया ।


“और मेरे तो पिता को ही गोली मार दी इसने।" कहन कें साथ लडकी रो पडी थी-"पिता को ही नहीँ, भाई क्रो भी गोली से उड़ा दिया । केवल दस साल का था वह ओर उसका कुसूर केवल यह था कि उसने मेरी अस्मत वचाने की गुस्ताखी की थी । फिर भी वह मासूम अपनी वहन को बचा न सका । मुझे यहां उठा लाया था । कहने लगा-इसे छटपटाती मछलियां पसंद हें ओर. ..ओर...क्या तुम मुझ मोका दोगे भैया ! क्या मै इसे मौत के घाट उतारकर अपने कलेजे को ठंडक पहुंचा सकती हूं?”


“ज़रूर सुरैया...जरूर । तुम्हारा ही तो इंतजार कर रहा था मै।" दीवाना-सा जावेद कहता चला गया…"यहां आओ...लो, ये चाकू लो ओर उधेड़ दो इस दरिंदें का जिस्म ।"


लडकी यूं झपटी जेस कई दिन का भूखा थाली पर झपटा हो ।


जावेद के हाथ से चाकू लिया उसनेे और इस तरह हाजी गल्ला के जिस्म पर वार पर वार करती चली गई जैसे वह हाड मांस का नहीं वल्कि रुई का वना इंसान हो ।


हर बार के साथ खून उछलता रहा ।


लड़क्री भी जावद की तरह उसकै खून मेँ नहाती चली गई । यहां तक कि हाजी गल्ला के हलक से चीखें निकलनी बंद हो गई पर वह एक के बाद दूसरा वार करती हुई चीखती चली जा रही थी…"ये मेरे अब्बा की तरफ से...ये मेरे भैया की तरफ से...ये मेरी तरफ से ।"


बिकास ने आगे वढ़कर उसकी चाकूबाली कलाई पकडी और बोला-"'बस...वस कर वहन, वो तो कव का मर चुका है ।”



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Post by rajaarkey »

अव वे आठ थे, क्योकि वह लडकी भी साथ थी जिसने अपना नाम रुबिया बताया था ।


उसी रास्ते से वापस निकले जिससे आए थे ।


गैलरियां' ओर सुरंग में सभी गार्डस पूर्ववत: बेहोश पड़े थे ।


दस वाइ दस के कमरे में पहुंचने पर एक सवाल खड़ा हो गया, यह कि-गोताखोरी का आठवां लिबास कहां से आएगा?


बिकास ने रूबिया को अपना लिबास देकर समस्या हल की ।


जावेद ने जव यह सवाल उठाया कि वह समुद्र कैसे पार करेगा तो उसने हंसते हुए कहा जब मैें बर्फ जेसी झेलम से पाकिस्तान आ सकता हू तो समुद्र का छोटासा हिस्सा पार क्यों नहीं कर सकता ??


फिर भी, सबको चिंता सताती रही मगर विकास ने कर दिखाया ।



उस वक्त रात के तीन बजे थे जब नाव उस किनारे पर लगाईं जहां से समुद्री यात्रा शुरु की थी और चोरी की उस लंबी गाडी की तरफ बढ गए जिसमें कोठी से वहां तक आए थे ।

गाडी को वे समुद्र किनार बनी अनेक झाडियों के बीच छुपाकर खडी कर गए ये । वह ज्यों की त्यों मिली ।


सभी उसमें समा गए ।


ड्राइविंग सीट बिकास ने संभाली थी और स्टार्ट करने के बाद गाडी को आगे बढाने ही वाला था कि एक शख्स ड्राइविंग विंडो के नज़दीक नजर आया, दूसरा बाई तरफ की विंडो के नज़दीक ।


बिकास सहित अभी उनमें से कोई कुछ समझ भी न पाया था कि उन दोनों के हाथों में वैसी ही पिचकारियाँ नजर आईं जैसियों से उन्होने गार्डस को बेहोश किया था ।


गाडी कै अंदर की तरफ से स्प्रे किया गया और उस क्षण. ..उन्हें पता लगा कि गार्डस पलक झपकते ही किस तरह बेहोश हो जाते थे । कुछ करने की तो बात ही दूर, संभलने तक का मौका न मिला ।


"फतह ।" यह आवाज़ बिजय की थी ।


“पर ये फतह उतनी आसानी से नहीं मिली है जितनी आसानी से मिली नजर आ रही है ।” अलफांसे ने कहा…"पूरी रात हो गइ इनके इंतजार करते करते ।"


विजय ने ड्राइविंग सीट पर लूढके बिकास को एक तरफ धकेला और उस पर खुद आसीन होता बोला-“तुम्हारा काम खत्म लूमड़ प्यारे, अपना मेहनताना लेने हमारे दड़बे पर पधार जाना ।"


“मतलब?" अलफांसे थोडा चोंका था ।


“ तुम जानते हो कि अव हमे जहां जाना है, वहां तुम्हारी एंट्री नहीं है ।” उसने गाडी स्टार्ट करते हुए कहा ।


“वो तो ठीक है जासूस प्यार मगर किसी ऐसी जगह तक के लिए तो लिफ्ट दे दो जहां से कोई सवारी मिल जाए !"


“गाडी पहले ही ओवरलोड है । तुम्हारे वेठने की जगह नहीँ है इसमें ।" कहने के बाद विजय ने गाडी आग बढा दी थी।


गाडी रेत उड़ाती सड़क की तरफ चली गइ थी जबकि अलफांसे जहां का तहां खडा रह गया था । उसकी पिछली लाल लाइट्स को देखते वक्त उसके होठों पर बहुत ही विचित्र मुस्कान थी ।


बिजय गाडी को करांची की सुनसान पडी सडकों पर तजी से दौडाता हुआ उस बिल्डिंग पर ले गया जिसके मस्तक पर "भारतीय दूतावास" लिखा था । जाहिर है…दूतावास का भारी भरकम लोहे वाला गेट बंद था मगर, उसे खुलवाने के लिए हार्न तक देना न पड़ा।


गाडी को देखते ही सुरक्षा कर्मियों ने गेट खोल दिया था ।


विजय गाडी क्रो कमान जेसे ड्राइव वे पर दोंड़ाता चला गया और ठीक पोर्चं के नीचे ब्रेक लगाए ।


दूत्तावास क भव्य गेट पर स्वयं राजदूत चार सुरक्षा कर्मियों कै साथ उसका इंतजार करते नजर आए ।


इधर वह गाडी से बाहर निकला उधर वे लपकते से अंदाज में उसकी ओर बढे ओर हाथ मिलाते बोले…“वेलकम मिस्टर बिजय । ”


"वो सब तो ठीक है राजदूत महोदय लेकिन इन सालों ने सारी रात काली कर दी । बहुत जोर से नींद आ रही है हमेँ ।"


“आपने पहले ही कह दिया था कि आपके सोने का इंतजाम कर दिया जाए । सो कर दिया गया है और...


"' और ? '"


“जेसा कि आपने कहा था, उन लोगों का इंतजाम भी कर दिया गया है जिन्हें आप गाडी में लाए हैं ।"


"हमने बताया था कि उनकी संख्या सात होगी मगर आठ हो गई 'हे । क्या करें, दुनिया की आबादी साली बढ ही इतनी तेजी से रही हैं । एक लड़की हे जिसके बारे में हमेँ नहीं पता कि वह कौन हे ।"


"कोइ बात नहीँ, उसका इंतजाम भी हो जाएगा ।" कहने कै बाद राजदूत सुरक्षाकर्मियों को आवश्यक निर्देश देने लगे ।



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