Adultery शीतल का समर्पण

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Re: Adultery शीतल का समर्पण

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सुबह शीतल निश्चिंत होकर साई हुई थी। रात में उसके साथ ना विकास था ना वसीम। लेकिन फिर भी अपनी चूत से पानी निकालकर वो सुकून से सोई थी। उसे उम्मीद थी की सुबह उसे वसीम मिल जाना था। वो अपने बत पे जागी। आज काफी दिनों के बाद उसके होंठों पे मुश्कान थी। वो जल्दी-जल्दी घर में झाड़ पोछा लगाई और फ्रेश होकर नहाने चली गई।

उसने फिर से अपने जिश्म को साफ किया। आज उसका जिश्म चमकना चाहिए वसीम के लिए। उसने एक अच्छी सी साड़ी निकाली थी पहनने के लिए। लेकिन उसे पहनने में वक़्त लगता तो वो पहले सिर्फ नाइटी पहन ली थी। वो पूजा करने गई तो भगवान से मनाई की उसे वसीम सही सलामत उस होटल में मिल जाए। फिर चाहे कुछ भी हो जाए, मैं उन्हें कहीं जाने नहीं दूँगी । शीतल पूजा करके आई तो मकसूद का काल आ रहा था। बो रात में काल की धी मकसद को तो बा अभी मेसेज़ देखकर काल बैंक कर रहा था।

मकसद बहुत उदास हो गया था की रात में शीतल ने उसे काल किया था, लेकिन उसकी खराब किश्मत की रात में उसका फोन बंद था इसलिए काल नहीं लगा था। अभी मेसेज़ में मिस्ड काल अलर्ट देखकर उसने शीतल का काल किया था। उसे बहुत अफसोस हुआ की रात में शीतल अकेली थी और वो नहीं गया। किसी भी वजह से बुला रही हो, लेकिन जाने पै तो बिना किसी डर के वो शीतल को घर सकता था। शायद ऊपर वाला मौका देता तो बहुत कुछ हो सकता था। हो सकता है वो इसी के लिए बुला रही हो। शीतल पहली बार में काल रिसीव नहीं की थी, तो वो तैयार होकर शीतल के घर के लिए निकल पड़ा था।

शीतल पूजा करके आई फिर मकसूद को काल बैंक की। वो खुश होकर उसे बता दी- "वसीम का पता चल गया हैं, मैं अभी एक लड़के के साथ वहीं जाने वाली हैं..." शीतल बहुत खुश थी।

मकसूद के पूछने पे बो होटल का नाम भी बता दी। मकसूद चकित हो गया की इसे कैसे पता चला। वो सोचने लगा की अब तो वसीम को टूट लेगी और फिर मेरा पत्ता कट जाएगा।

मकसद बोला- "वो एरिया ठीक नहीं है मेंडम, वहाँ ऐसे किसी अंजान आदमी के साथ मत जाइए..."

शीतल बोली- "इसलिए तो रात में नहीं गई थी। लेकिन अब भला दिन में क्या प्राब्लम हो सकती है?"

मकसूद बोला- "आप घर पे ही रूकिये, मैं उसे देखकर लेकर आता हूँ."

शीतल को लगने लगा की कही मकसूद के जाने पर ऐसा ना हो की वसीम यहाँ ता नहीं ही आए, और कहीं और ना चला जाए। बहुत मुश्किल से उनका पता चला है और अब में उन्हें खोना नहीं चाहती। वो बोली- "नहीं कुछ नहीं होगा। मैं ही चली जाती हैं वहाँ..."

मकसूद बोला- "ठीक हैं आप रुकिये में आ रहा है...

शीतल जल्दी-जल्दी बेड बटर गरम करके खा ली और एक ग्लास दूध पी ली। फिर वा तैयार होने लगी। वो अच्छी सी डिजाइनर ब्रा और पैंटी पहनी। वो स्लीवलेश ब्लाउज़ पहन रही थी फिर उसे लगा की जब सब कह रहे हैं की एरिया सही नहीं है तो कपड़े चेंज कर लेती हैं। वो दूसरी साड़ी निकाल ली। यं ब्लाउज़ नार्मल था फिर भी क्लीवेज तो दिखता ही है ब्लाउज़ में।

शीतल साड़ी पहनने लगी तो उसने देखा की साड़ी तो छोटी है और इसे तो नीचे से पहनने होगा। वो सोची की फिर से साड़ी चेंज कर लेती हैं। तब तक उस लड़के के पास जाने का टाइम भी हो रहा था, और मकसूद भी किसी बढ़त आने वाला होगा। बो उसी साड़ी को पहन ली।

शीतल तैयार हो ही रही थी की मकद्द दरवाजे पे आ गया। वा जल्दी में साड़ी पहनी और फिर आकर दरवाजा खाली। मकसूद के लिए शीतल अब एक चिड़िया थी जिसे उसे दबाचना और खाना था बसा वा शीतल को देखता रह गया। आज उसके मन में कोई डर नहीं था। शीतल हड़बड़ी में दरवाजा खोली और रूम में जाकर मेकप करने लगी।

मकसद सोफा में बैठ चुका था। उसने बैठे बैठे ही वसीम के बारे में पूछा तो शीतल राम से ही उसे कल हुई बात बताने लगी। मकसूद को ठीक से सुनाई नहीं दे रहा था तो वो बेडरूम के दरवाजे पे आ गया। शीतल अपने आँचल को ठीक से अइजस्ट करती हुई पिज लगा रही थी। मकसूद को कोई डर नहीं था और बा आराम से दरवाजे में अपने बाडी को टिकाकर शीतल को देखने लगा।

शीतल की चमकती हई पीठ और फिर आँचल अइजस्ट करने के चक्कर में उसकी क्लीज देखकर उसका लण्ड टाइट हो गया। उसका मन हुआ की दबोच ले शीतल को और उसके कपड़े फाड़कर उसे चोद दे। अकेली है क्या करेंगी? लेकिन उसने अपने आपको रोक लिया। शीतल इन सबमें अंजान मकसूद में बात करती हुई तैयार होती रही। उधर मकसूद आराम से उसके पूरे बदन को निहार रहा था।

मकसद मन ही मन सोच रहा था की- "ये हर वसीम के लिए इतनी मरी जा रही है, और वो बदकिश्मत इंसान इस पूरी से दूर होकर छिपा हुआ बैठा है। अगर ये थोड़ी भी मेरे लिए परेशान होती तो मैं तो इसे कब का चोद चुका होता। शीतल तैयार होकर बाहर आ गई।

शीतल चलने लगी तो मकसूद बोला- "मैं भी चलता हैं आपके साथ..."
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Re: Adultery शीतल का समर्पण

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शीतल कार निकालने लगी तो मकसूद इस दिया और बोला- "मैडम, जहाँ आपका जा रही हैं, वहाँ कार नहीं जाती। वो इतनी संकरी गलिया है की वहाँ कार तो क्या रिक्शा जाने में भी परेशानी होती है..."

शीतल असमंजस में पड़ गई। वो सोचने लगी की क्या करें? क्योंकी घर में स्कूटी नहीं थी।

मकसद बोला- "उस लड़के को बहने दीजिए और आप मेरे साथ चलिए। वो जगह मुझे भी मालम है..."

शीतल सोचने लगी "ठीक ही तो है। कल रात इसी के लिए तो काल की थी मकसूद को। मुझे वसीम को ट्रॅटने से मतलब है, उस होटल में जाने से मतलब है, अब चाहे किसी के साथ जाऊँ। मकसूद के साथ ही चली जाती हैं। फिर वो उस लड़के के बारे में सोचने लगी। लेकिन वो मेरा इंतजार करता रहेगा। कोई बात नहीं, बाद में वसीम की दुकान पे जाकर उसे ₹500 क्या ₹1000 दे दूँगी."

शीतल मकसूद को ही बोली और दरवाजा बंद करती हई बाहर आ गई। मकसूद आसमान में उड़ता हुआ बाइक पे जा बैठा। आज शीतल उसके बाइक में बैठने वाली थी। ये सोचकर ही उसकी आकार बढ़ गई थी की एक हसीना उसके साथ बाइक में घूमने वाली थी। मकसद की बाइक बहुत पानी थी। शीतल जब बाइक पे बैठने लगी तो उसने आस-पास देखा तो सब उसे ही देख रहे थे। वो शर्मा गई की वो अपने पति के चपरासी के साथ बाइक में बैठकर जा रही हैं। लेकिन अभी उसके पास कोई रास्ता नहीं था। वो बाइक में बैठ गई। वो मकसद से थोड़ा अलग हटकर बैठी थी। उसका जिस्म मकसद से दर था।

मकसूद ने बाइक स्टार्ट किया और जैसे ही आगे बढ़ने लगा उसकी बाइक बंद हो गई। उसे बड़ी शर्मिंदगी हुई की इस खटारा बाइक की वजह से उसकी बेइज्जती हो रही है। वो फिर से स्टार्ट किया और आगे बढ़ाया तो बाइक एक झटके से आगे बढ़ गई।

शीतल हड़बड़ा गई और आ करती हुई मकसूद के कंधे को पकड़कर उसके बदन से सट गई। बाइक चलने लगी तो वो खुद को अइजस्ट की। अब शीतल को बड़ी शमिंदगी महसूस हई की बो मकसूद के बदन से ऐसे सट गई थी। सब उसे ही देख रहे थे।

मकसूद तो खुश हो गया था। उसके जिस्म में करेंट दौड़ पड़ा। शीतल की चूचियों की नौहट को वो अपनी पीठ में अभी भी महसूस कर रहा था, हालाँकी शीतल उससे अलग हो चुकी थी। बाइक चलने लगी और कुछ ही देर में शीतल की कमर और जांधे मकसद से सट गई थीं। शीतल चाहकर भी मकसद से अलग नहीं हो पा रही थी। वो अलग होने की कोशिश करती की फिर से उससे सट जा रही थी। उसे बहुत अजीब लग रहा था की मकसद क्या सोच रहा होगा मेरे बारे में की मैं उससे चिपकी जा रही हैं। लेकिन वो अलग होती और फिर सट जाती थी। फाइनली वो अपने जिश्म को ढीला छोड़ दी। अब उसके कंधे भी मकसद से सटने लगे थे।

मकसूद थोड़ा और पीछे होकर बैठ गया था अब। उसे बहुत मजा आ रहा था। लेकिन उसकी चाहत और बढ़ रही थी। सामने एक गइटा आया और मकसद ने झटके से ब्रेक मारा। शीतल पूरी तरह मकसद के बदन पे गिर पड़ी और उसकी चूचियां मकसद की पीठ पे दब गई। मकसद तो जैसे जन्नत में था। उसे बहुत मजा आ रहा था और बा चाहता था की ये रास्ता खत्म हो ना हो।

थोड़ी देर चलने के बाद उस बस्ती में वो लोग आ गये थे। सच में एकदम संकरी गालियां थी। मकसूद किसी तरह से धीरे-धीरे करके बाइक चला रहा था। धीरे बाइक चलाने से बाइक झटके ज्यादा ले रही थी तो शीतल मकसद के बदन से सट गई थी। वो जैसे ही अलग होती थी की फिर से झटका लगता था और वो मकसद से टकरा जाती थी। इसलिए वो पर्मानेंटली ही मकसूद के जिस्म में सट गई थी। मकसूद होटेल की तरफ ना घूमकर के बस्ती में सीधा आगे बढ़ गया। वो आगे से मुड़कर होटेल जाना चाह रहा था ताकी शीतल अपनी चूचियां सटाए थोड़ी देर और बाइक में बैठी रहे।

सब लोग इन दोनों को ही देख रहे थे। शीतल जैसी हसीना इस झुग्गी झोपड़ी में क्या कर रही थी? बहुत सारे लोग यहाँ भी मकसूद को पहचानते थे। वो सब मकसूद को देखकर रश्क कर रहे थे की साले ने ऐसी माल को कहाँ से बाइक के पीछे बिठा लिया। मकसूद शान से बाइक चलता हुआ चला जा रहा था, और शीतल उससे ऐसे चिपकी हुई थी जैसे उसकी ही माल हो। शीतल को बहुत शर्म आ रही थी लकिन बेचारी क्या करती? वो अपनी चूत के चक्कर में पड़ी हुई थी।

मकसूद में उस होटल के पास बाइक रोक दिया। शीतल तुरत उत्तरी और होटल के रिसेप्शन पे चली गईं। शीतल जैसी गरम माल को देखकर होटेल स्टाफ का मुंह खुला का खुला रह गया।

सीतल काउंटर पे जाकर पूरी- "वसीम खान किस रूम में हैं, मुझे उनसे मिलना है..."

सबको आश्चर्य हुआ। लेकिज स्टाफ ने बताया की वसीम खान तो यहाँ है ही नहीं। इस नाम का तो कोई आदमी यही रूका ही नहीं है 8-10 दिन में। शीतल उदास हो गईं। लेकिन फिर उसे लगा की हो सकता है की किसी और नाम से रुके होंगे तो वो अपनी मोबाइल निकाली और उसकी एक पिक को काप करके सिर्फ चेहरा दिखाई होटेल में। लेकिन फिर भी सबका वही जवाब था।

शीतल मायूस होकर बाहर आई की उसकी इन्फर्मेशन गलत निकली। उसे बहुत गुस्सा आया उस बच्चे पे जो झूठ बोलकर उससे 500 रूपये भी ले गया और सबसे बड़ी बात उसका दिल तोड़ दिया। वो कितनी खुश थी लेकिन यहाँ आकर उसके सारे अरमान टूट गये।

मकसूद बाहर ही खड़ा था। उसने पूछा- "क्या हुआ?"

शीतल मायूस होकर उसे बताई की. "यहाँ नहीं है..." और दोनों वापस लौटने लगे।

फिर से शीतल किसी तरह थोड़ी दूर तो रही मकसद से लेकिन थोड़ी ही देर में उससे चिपक गई। फिर से उसने सोच लिया की जो होता है हाने दो और अपने जिश्म का ढीला छोड़ दी। मकसद अपने पीठ में शीतल की नर्म मुलायम चूचियों को महसूस करता हुआ बाइक चलाने लगा। वापस लौटते वक़्त दोनों वसीम की दुकान की तरफ भी गये लेकिन वो लड़का अब वहाँ नहीं था। मायूस होकर शीतल घर आ गई।

शीतल का मूड खराब हो चुका था। शीतल घर आ गई। मकसूद भी अंदर आना चाहता था। वो तो हमेशा शीतल के पास ही रहना चाहता था, लेकिन शीतल उसे मना कर दी।

शीतल बोली- "आप जाइए, आपको आफिस जाना होगा। मैं फिर बताती ह आपको जैसा होता है..." बोलती हई शीतल अंदर आ गई और मुख्य दरवाजा बंद करते हुए अपने घर चली गई।
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Re: Adultery शीतल का समर्पण

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मकसूद को बहुत बुरा लगा। फिर भी वो हँसता हुआ चल दिया की आज के लिए इतना कोटा काफी था। मकसूद ने होटेल में काल किया और वसीम से बात किया। मकसूद ने पहले ही वसीम को बता दिया था और वसीम ने होटल वालों को समझा दिया था। वसीम ने उससे पूछा और मकसूद उसे सब कुछ बताता गया।

मकसूद ने ये भी बताया की- "शीतल को बाइक पे बिठाकर मुझे बहुत मजा आया। तेरा शुक्रिया दोस्त की तरी बजह से वो हर आज मेरे बदन से सटी और हाय क्या मस्त चूचियां हैं साली की... अभी तक पीठ नरम लग रही

वसीम हँसने लगा।

मकसद ने उससे फिर पूछा- "त ये कर क्या रहा है? क्यों त बाहर है अपने ही घर से? क्यों वो तुझे इतनी बेकरारी से ट्रॅट रही है? तूने पक्का कुछ किया है उसके साथ.."

वसीम हँसता हुआ ही बोला- "बताऊँगा, साले सब बताऊँगा..."

मकसूद अपने काम पे चला गया और शीतल झल्लाती हुई घर पे थी। उसे बहुत गुस्सा आ रहा था वसीम पे।

शीतल कपड़े चेंज करके खाना बनाने लगी और तभी विकास का काल आ गया। विकास ने वहाँ जोयिन कर लिया था। शीतल विकास को कुछ भी नहीं बताई वसीम और मकसूद के बारे में। कहीं विकास फिर गुस्सा ना करने लगे। थोड़ी देर बात करने के बाद वो फोन रख दी और फिर अपने काम में लग गई। वैसे उसके पास अब काई काम नहीं था। वो बस वसीम को याद करने लगी। वो वसीम को बहुत मिस कर रही थी की इतने दिन वो अकेली है और अगर वसीम रहता तो कितनी मस्ती करती उनके साथ। इतनी बार उनसे चुदवाती की उनके सारे अरमान पूरे हो जाते। दिन रात उनसे चुदवाते रहती।
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Re: Adultery शीतल का समर्पण

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Re: Adultery शीतल का समर्पण

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शीतल की सहेली दीप्ति का आगमन शीतल लेंटी थी की उसके घर पे नाक हुआ। वो घड़ी देखी तो 11:00 बज रहा था। वो खुशी से झूम उठी की
अभी कौन होगा? जरूर वसीम ही आए होंगे। लेकिन जब वो दरवाजा खोली तो उसकी एक पुरानी सहेली थी। दीप्ति। शीतल पहले तो वसीम को ना देखकर मायूस हो गई। लेकिन फिर दीप्ति को देखकर चकित हो गई। बो खुशी से उछल पड़ी और उसके गले लग गई।

दीप्ति शीतल की कालेज की दोस्त थी और उसी के उम्र की थी। पढ़ाई करते वक़्त ही दीप्ति की शादी हो गई थी। दीप्ति को एक बरचा भी था 6 महीने का और वो अब थोड़ी मोटी हो गई थी। लेकिन वो भी बहुत खूबसूरत थी। शीतल और दीप्ति कालेज के लड़कों की हाट लिस्ट में थी।

दीप्ति की शादी के बाद दोनों आज ही मिल रहे थे। दीप्ति को पता चला की शीतल यही है तो वो उसका अईस लेकर यहाँ चली आई थी। उसने शीतल का नम्बर लिया था लेकिन वो गलत नम्बर लिख ली थी। इसलिए फोन नहीं कर पाई और किसी तरह पूछते हए अपनी सहेली के पास आ गई थी। दीप्ति का पति भी इसी शहर में काम करता था।

दोनों सहेलियां लंबे समय बाद मिली थी तो दोनों गप्पे लड़ाने लगी। शीतल को बहुत अच्छा लग रहा था और कछ देर के लिए वो वसीम को भी भल गई थी। दोनों में बहुत सारी पुरानी बातें होती रही और थोड़ी देर के बाद दीप्ति शीतल को चिढ़ाते हुए बोली- "तू यहाँ इस मुस्लिम मुहल्ले में क्यों रहने आ गई। तुझ जैसी गरम माल को तो ये लोग आँखों में ही खा जाते होंगे..."

शीतल हँस दी और बोली- "अरे... इसमें नया क्या है? हर काई तो इसी तरह हम लोगों को देखता था। कालेज के दिन भूल गई क्या? याद है फेशार है पार्टी के दिन जब हम लोगों ने पहली बार साड़ी पहनी थी तो सब कैसे घर
रहे थे। वो तो अच्छा है की नजरों से चोदने से हम लोग प्रेगनेंट नहीं होती नहीं तो इंडिया की जनसंख्या 4 गुना
और होती... फिर दोनों सहेलियां ठहाके लगाने लगी।

दीप्ति फिर बोली- "फिर भी ये लोग कुछ ज्यादा ही घूरते हैं। कोई लाइन मरता है की नहीं?"

शीतल ऐसे मैंह बनाई की- "घूरते हैं तो घूरने दो, हम क्या?" फिर वो अपनी मौंग में लगे सिंदूर को दिखती हुई बोली- "ये देखती नहीं क्या, अब कौन लाइन मरेगा?"

दीप्ति हँसने लगी और बोली- "ता त किसी को पटा ले..."

शीतल हँसतं हए बोली- "तू कितनी को पटाकर रखी है जो मुझें पटाने बोल रही है साली?"

दीप्ति का बेटा रोने लगा तो वो अपनी ब्लाउज़ को ऊपर की और उसे दूध पिलाने लगी।

उसकी चूचियों को देखकर शीतल हँस दी और बोली- "कालेज टाइम में तो तेरे बड़े छोटे-छोटे थे। लगता हैं जीजाजी बहुत मेहनत कर रहे हैं, या तू और भी बहुत सारे मजदूर लगा रखी है इसे बढ़ाने के लिए."

दोनों फिर से हँसने लगे। दीप्ति कोई जवाब नहीं दी इसका।
दीप्ति शीतल के चूचियां की तरफ इशारा की, और कहा- "तेरे भी तो बहुत बड़े-बड़े हो गये हैं."

शीतल जबाब दी- "कहाँ, मेरे तो इतने ही बड़े हैं। तेरे जीजाजी मेहनत ही नहीं करते। मैं भी सोच रही हैं दो-चार मजदूर रख ही ल..."

बातें चलती जा रही थी। दोनों खाना खाने लगे। 2:30 बज रहा था। शीतल के घर का मुख्य दरवाजा खुला और फिर कोई सादियों में चढ़ता चला गया। शीतल का कलेजा धक्क से कर गया। वसीम चाचा आ गये क्या?

शीतल खाना छोड़कर उठी और दरवाजा खोलकर सीटी पे देखी- "हौं... ये तो वसीम चाचा हैं। ओहह ... शुक है भगवान का की ये सही सलामत वापस आ गये हैं। उसका मन हुआ की अभी दौड़ कर जाए और उनसे लिपट जाए लेकिन दीप्ति घर पे ही थी। अगर इसे जरा भी शक हुआ तो खबर उसके घर और शहर तक आग की तरह फैल जाएगी..."

शीतल वापस आकर जल्दी-जल्दी खाना खाने लगी। खाना खाने के बाद भी दीप्ति सोफा में बैठकर बातें करने लगी, लेकिन शीतल को बैचैनी हो रही थी।
दीप्ति वसीम के बारे में पूछी।
लेकिन शीतल- "मकान मालिक है.' बोलकर बात को टाल गई।

दीप्ति 15 मिनट होते-होते बस एक बार फार्मेलिटी के लिये बोली. "अब चलना चाहिए मुझे.."

शीतल तुरंत बोल दी- "हीं, ठीक है अब जा त। फिर आना। अपना नम्बर दे दें, मैं भी आऊँगी तेरे घर। फोन करेंगी तुझे... इसके बाद 10 मिनट होते-होते शीतल दीप्ति को भेज चुकी थी।

शीतल की सांसें भारी हो गई थी। उसे बैचैनी होने लगी थी। 5 दिन बाद वसीम आया था और वो उसके पास जा भी नहीं पा रही थी। पता नहीं इन 5 दिनों में वो कहीं रहें, क्या किया? बो अब तक उनके पास नहीं गई हैं, पता नहीं क्या सोच रहे होंगे? दीप्ति के जाते ही वो मुख्य दरवाजा लाक की और ऊपर भागी।

वसीम आते ही ऊपर अपने घर में चला गया था। शीतल दौड़ती हई ऊपर पहुँची। वसीम का सामान फैला हुआ था। वो शायद अपने जरी सामान समेट रहा था।

शीतल उसे पीछे से पकड़ ली और उससे चिपक गई और सवालों की झड़ी लगा दी- "आप कहाँ थे? कहाँ चले गये थे मुझे छोड़कर? कोई अपने ही घर में जाता है क्या? मोबाइल क्यों नहीं लग रहा था? कम से कम मुझसे तो बात करतें, मुझे कितनी चिंता हो रही थी एट्सेंटरा."

वसीम अंदर ही अंदर तो बहुत खुश था लेकिन वो बस सीधा खड़ा था। थोड़ी देर में शीतल उससे अलग हुई और उसे अपनी तरफ घुमाईं। वसीम की दादी बिल्कुल बदी हुई थी, बाल बिखरे थे, आँखें लाल थी। शीतल को उसकी हालत में तरस आ रहा था की इस सबकी जिम्मेदार बो है। वो फिर से वसीम से लिपट गई। वसीम इन 5 दिनों में नहाया भी नहीं था तो उसके जिस्म से बदबू आ रही थी। लेकिन ये बदबू भी शीतल को मैंहगे लेवेंडर की खुश्बू दे रही थी। वो रोने लगी थी और फिर से वहीं सारे सवाल दुहरा रही थी।

थोड़ी देर बाद जब शीतल उससे अलग हुई तो वसीम बिलकुल उदास, मागश, थका हारा सा दिख रहा था।
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