Fantasy नागिन के कारनामें (इच्छाधारी नागिन )

Post Reply
User avatar
Sexi Rebel
Novice User
Posts: 950
Joined: 27 Jul 2016 21:05

Re: Fantasy नागिन के कारनामें (इच्छाधारी नागिन )

Post by Sexi Rebel »

यहां से निकलने की उसे कोई उम्मीद नजर नहीं आती थी। क्योंकि वो समझ गया था कि यह मन्दिर सुनसान क्यों पड़ा है
और यह भी उसकी समझ में आ गया था कि यहां बरसों से कोई नहीं आया होगा। बरसों पहले जब इस जगह कोई आता भी होगा तो सन्दूक में पड़ी ज्योति की लाश देखता होगा और जब वो मुस्कराती होगी तो लोग डरकर भाग जाते होंगे। धीरे-धीरे लोगों में यह मन्दिर भुतहा मशहूर हो गया होगा और उन्होंने झांकना भी छोड़ दिया होगा। ऐसे स्थान भारत में बहुत पाए जाते हैं।

अब राज को अफसोस हो रहा था कि उसने सतीश और इस्पेक्टर विकास त्यागी की अपने प्रोग्राम के बारे में आगाह क्यों नहीं किया था? लेकिन उस वक्त उन्हें मालूम भी क्या था कि यहां मौत उनके इन्तजार में मुंह फाड़े खड़ी है। डॉक्टर जय कह रहा था

"हां, यही ठीक रहेगा। लेकिन मुझे डॉक्टर सावंत की मौत का हमेशा अफसोस रहेगा।"

इधर राज को अपने मरने से ज्यादा डाक्टर सावंत की सम्भावित मौत का दुख था। वो बेचारा सिर्फ राज की वजह से ही इस मुसीबत में फंसा था। लेकिन डॉक्टर सावंत हिम्मत वाला आदमी था, उसने बड़ी दिलेरी से सीना तानते हुए ठोस लहजे में कहा

"मैं मौत से भयभीत नहीं हूं जय । मौत एक दिन तुम्हें भी आनी है और में भविष्यवाणी कर सकता हूं कि तुम्हारी मौत हम दोनों की मौत से ज्यादा खौफनाक और अपमानजनक होगी।"

"वो बाद ही बातें हैं। पहले मैं आप लोगों को बता दूं कि हाल ही में मेरे पास ऑस्ट्रेलिया से कुछ रेगिस्तानी बिच्छू आए हैं, जिनके काटने से अच्छा भला सेहतमंद आदमी आठ-दस घंटे जल बिन मछली की तरह तड़पता रहता है और अगर उचित इलाज न किया जाए तो दस घंटे बाद मर जाता है।" उसने रूककर दोनों की तरफ देखा और बोला

"उन्हीं बिच्छुओं पर मुझे कुछ परीक्षण करने हैं। मालूम करना चाहता हूं कि उन बिच्छुओं का जहर इन्सानी खून में मिलकर क्या असर दिखाता है।" वो क्रून मुस्कान के साथ बोला, "मेरा ख्याल है कि इन प्रयोगों के लिए आप दोनों से अच्छा जानवर मुझे दूसरा नहीं मिल सकता।"


"वो क्यों?" राज ने कुढ़ कर पूछा।

"क्योंकि आप दोनों अपने अहसास मुंह से बोल कर बता सकेंगे कि आपकी आंतें कट रही हैं या खून में आग लग रही है....।"

"मुझे तो लगता है आप पागल हो गए हैं डॉक्टर जय।" डॉक्टर सावंत ने शायद उकताकर कहा।

"इस बात को तो पन्द्रह साल हो चुके हैं, अब डॉक्टरों ने पहली बार मुझे बताया था कि मेरे दिमाग में कोई अनोखी केमिकल गड़बड़ है।" डॉक्टर जय ने गम्भीर लहजे में कहा।

राज के सारे जिस्म में दहशत की कंपकपी दौड़ गई। उनका पाला एक विक्षिप्त व्यक्ति से पड़ गया था, वो बेहद खतरनाक हो रहा था। आस्ट्रेलिया के रेगिस्तानी बिच्छुओं के बारे में राज ने बहुत कुछ पढ़ रखा था। वो बहुत खौफनाक बिच्छू थे और शायद दुनिया भर के बिच्छुओं में सबसे खौफनाक बिच्छू थे और शायद दुनिया भर के बिच्छुओं में सबसे ज्यादा जहरीले थे।

डॉक्टर सावंत ने राज की तरह बेबसी से देखते हुए पूछा
"राज, आप भयभीत तो नहीं हैं?"

"बिल्कुल नहीं।" राज ने हिम्मत बटोरते हुए जवाब दिया-"अगर इसी तरह मरना किस्मत में लिखा है तो ऐसे ही सही। डरने से क्या होगा।"
डॉक्टर जय ने हंस कर कहा

"जब मौत आती है तो बड़े-बड़े बहादुरों के हौसले पस्त हो जाते हैं। आपके हौसलों का भी अभी इम्हिान होने वाला है।"

उसने अपने कारिन्दों से उसी अजनबी भाषा में कुछ कहा, फौरन ही वो खूखार चेहरों वालों हे-के आदमी आगे बढ़े और दो-दो बदमाशों ने राज और डॉक्टर सावंत का दबोचा और इन्हें तरफ को ले चले। जय और ज्योति वहीं खड़े बातें करते रह गए।

यह डॉक्टर जय की प्रयोगशाला थी। दीवारों में बने खानों के सामने शीशे में ढक्कन लगे हुए थे और शीशों के पीछे डॉक्टर जय के पालतू सांप, बिच्छू, छिपकलियां वगैरह जहरीले जानवर बन्द थे। सैकड़ों किस्मों के सांप थे वहां, तरह-तरह के बिच्छू थे और अजीब-अजीब से कीड़े थे। आखिर डॉक्टर सांवत पूर्व जन्म का संपेरा था, जहरों और जहरीले प्राणियों से दिलचस्पी उसकी आत्मा तक में रच-बस गई थी। राज और डॉक्टर सांवत ने सोचा, सिन्देह याह जहरीले कीड़ों का अनुपम संग्रह है।

हॉल के बीचों-बीच दो लम्बी-लम्बी मेजें पड़ी हुई थीं, मेजों के दोनों तरफ चमड़े की पयिों से कस दिया जाता था और फिर उन पर प्रयोग किए जाते थे, उनके जिस्मों में जहर इंजेक्ट करके।

उन बदमाशें ने जबर्दस्ती राज और डॉक्टर सावंत को मेज पर लिटाकर चमड़े की पट्टियां उनके जिस्मों पर कस दीं। अब वो हिल भी नहीं सकते थे। यहां तक कि हाथ-पांव भी नहीं हिला सकते थे।
वो दोनों विवश थे। मुकाबले का कोई फायदा नहीं था। एक तो वो चारों मुश्टंडे उनसे बहुत ज्यादा ताकतवर थे, दूसरे वो हथियारबन्द भी थे।

उन्हें मेजों पर बांधकर वो सभी बाहर निकल गए और राज तथा डॉक्टर सावंत एकांत में रह गए। उन दोनों की इस वक्त यह पोजीशन थी कि वो गर्दन घुमा कर भी एक-दूसरे को नहीं देख सकते थे। उनकी मनोस्थिति का हाल तो शब्दों में ब्यान ही नहीं किया जा सकता।

राज को इस वक्त डॉक्टर सावंत के अहसास का तो पता नहीं था, वो खुद इस वक्त वाकई भयभीत था। उसका जिस्म पसीने में भीग चुका था।
कुछ देर खामोशी के बाद डॉक्टर सावंत ने कहा
"राज साहब.....।"

राज ने घुटे हुए स्वर में कहा
"आपकी मौत का जिम्मेदार मैं खुद को मान रहा हूं डॉक्टर सावंत....मुझे सख अफोसस है।"

"तुम मेरे बारे में न सोचो। अगर हमने मरना ही है और आज ही, तो कोई हमारी किस्मत नहीं बदल सकता। पहले तो यह अन्दाजा लगाएं कि क्या वाकई हमारी जिन्दगी मौत की सरहद की तरफ बढ़ रही है?"

"मैंने मायूम होना नहीं सीखा डॉक्टर सावंत।" राज ने जवाब दिया, "अब भी उम्मीद की एक किरण बाकी है।"

"तुम्हारा ख्याल है कि कोई हमारी मदद को आ सकता है?"

"मालूम नहीं।" राज ने गहरी सांस ली, "शायद यह मेरा अति आशवाद ही। मुझे याद है कि ठीक बारह बजे मुझे सतीश के साथ एक दोस्त से मिलने जाना था। बारह बजे सतीश ने मेरा इन्तजार किया होगा। वो जानता है कि मैं वक्त का बहुत पाबन्द इन्सान हूं। इसलिए दस-पन्द्रह मिनट इन्तजार के बाद उसने जरूर आपके यहां फोन किया होगा, फिर दो-चार जगह और फोन करके भी मुझे तलाश करने की कोशिश की होगी और जब मैं न मिला हूंगा तो लाजिमी है कि उसे फिक्र हुई होगी। अब देखना यह है कि इस फिक्रमंदी की हालत में वो क्या सोचता है? और किस तरह हमें तलाश करने की कोशिश करता है। बस यही एक उम्मीद एक टिमटिमाते चिराग की तरह मुझे नजर आ रही है।"

"बारह बजे....और इस वक्त पांच बज रहे हैं। पूरे पांच घंटे गुजर चुके है।"

"जी हां, शायद साढ़े ग्यारह बजे हमें बाजार में ज्योति नजर आई थी। उस वक्त में सतीश को कुछ नहीं बताना चाहता था, जिसका अब मुझे अफसोस हो रहा है। काश ! मैं रास्ते में से ही उसको फोन कर देता।"

"हम जो नहीं कर सके, उसका अफसोस करना बेकार है।
सवाल सिर्फ यह है कि हमारे लापता होने के बाद सतीश क्या कर सकता है?"

"वो इंस्पेक्टर विकास त्यागी से जाकर मिलेगा।" राज ने कहा।

"इंस्पेक्टर त्यागी भी क्या करेगा? उसे क्या मालूम कि हम कहां

"यही बात मुझे परेशान कर रही है। हो सकता है वो यही समझे कि हम कहीं घूमने-फिरने निकल गए हैं, सुबह तक लौट आएंगे। उनको किसी खतरे का आभास भी हो तो कैसे जान पाएंगे कि हम इस तरफ आए हैं? सच पूछिए डॉक्टर सावंत कि मैं किसी चमत्कार की उम्मीद कर रहा हूं।"
इस जमाने में ऐसे चमत्कार नहीं होते डॉक्टर राज ।"

उसी वक्त बाहर किसी के चलने की आवाज पैदा हुई, जो उन तक भी पहुंची। वो दोनों खामोश होकर आने वाली मुसीबत का इन्तजार करने लगे।

डॉक्टर जय, ज्योति और एक कोई सात फुट लम्बा पहलवान अन्दर दाखिल हुए। ज्योति ने दोनों कूल्हों पर हाथ रख कर किसी विजेता की सी मुद्रा में कहा

"कितना खूबसूरत सीन है! किसी दुश्मन को बेबस करके उसके सामने खड़े होने मेंक्या आनन्द आता है यह तुम क्या जानो? याद है, तुमने मेरे इस शीर को खत्म करने की कोशिश की थी राज ? मैं तो तुम सब लोगों को माफ कर चुकी थी, लेकिन डॉक्टर जय ने मुझे फिर याद दिलाया है कि तुम लोगों ने कई बार मुझसे दुश्मनी निभाई है। अब बोलो, क्या सलूक किया जाए तुमसे?"

"हमने जो ठीक समझा, किया। तुम्हारी मर्जी, तुम जो चाहो करते रहो।"
User avatar
Sexi Rebel
Novice User
Posts: 950
Joined: 27 Jul 2016 21:05

Re: Fantasy नागिन के कारनामें (इच्छाधारी नागिन )

Post by Sexi Rebel »

अब राज को अफसोस हो रहा था कि उसने सतीश और इस्पेक्टर विकास त्यागी की अपने प्रोग्राम के बारे में आगाह क्यों नहीं किया था? लेकिन उस वक्त उन्हें मालूम भी क्या था कि यहां मौत उनके इन्तजार में मुंह फाड़े खड़ी है। डॉक्टर जय कह रहा था

"हां, यही ठीक रहेगा। लेकिन मुझे डॉक्टर सावंत की मौत का हमेशा अफसोस रहेगा।"

इधर राज को अपने मरने से ज्यादा डाक्टर सावंत की सम्भावित मौत का दुख था। वो बेचारा सिर्फ राज की वजह से ही इस मुसीबत में फंसा था। लेकिन डॉक्टर सावंत हिम्मत वाला आदमी था, उसने बड़ी दिलेरी से सीना तानते हुए ठोस लहजे में कहा

"मैं मौत से भयभीत नहीं हूं जय । मौत एक दिन तुम्हें भी आनी है और में भविष्यवाणी कर सकता हूं कि तुम्हारी मौत हम दोनों की मौत से ज्यादा खौफनाक और अपमानजनक होगी।"

"वो बाद ही बातें हैं। पहले मैं आप लोगों को बता दूं कि हाल ही में मेरे पास ऑस्ट्रेलिया से कुछ रेगिस्तानी बिच्छू आए हैं, जिनके काटने से अच्छा भला सेहतमंद आदमी आठ-दस घंटे जल बिन मछली की तरह तड़पता रहता है और अगर उचित इलाज न किया जाए तो दस घंटे बाद मर जाता है।" उसने रूककर दोनों की तरफ देखा और बोला

"उन्हीं बिच्छुओं पर मुझे कुछ परीक्षण करने हैं। मालूम करना चाहता हूं कि उन बिच्छुओं का जहर इन्सानी खून में मिलकर क्या असर दिखाता है।" वो क्रून मुस्कान के साथ बोला, "मेरा ख्याल है कि इन प्रयोगों के लिए आप दोनों से अच्छा जानवर मुझे दूसरा नहीं मिल सकता।"


"वो क्यों?" राज ने कुढ़ कर पूछा।

"क्योंकि आप दोनों अपने अहसास मुंह से बोल कर बता सकेंगे कि आपकी आंतें कट रही हैं या खून में आग लग रही है....।"

"मुझे तो लगता है आप पागल हो गए हैं डॉक्टर जय।" डॉक्टर सावंत ने शायद उकताकर कहा।

"इस बात को तो पन्द्रह साल हो चुके हैं, अब डॉक्टरों ने पहली बार मुझे बताया था कि मेरे दिमाग में कोई अनोखी केमिकल गड़बड़ है।" डॉक्टर जय ने गम्भीर लहजे में कहा।

राज के सारे जिस्म में दहशत की कंपकपी दौड़ गई। उनका पाला एक विक्षिप्त व्यक्ति से पड़ गया था, वो बेहद खतरनाक हो रहा था। आस्ट्रेलिया के रेगिस्तानी बिच्छुओं के बारे में राज ने बहुत कुछ पढ़ रखा था। वो बहुत खौफनाक बिच्छू थे और शायद दुनिया भर के बिच्छुओं में सबसे खौफनाक बिच्छू थे और शायद दुनिया भर के बिच्छुओं में सबसे ज्यादा जहरीले थे।

डॉक्टर सावंत ने राज की तरह बेबसी से देखते हुए पूछा
"राज, आप भयभीत तो नहीं हैं?"

"बिल्कुल नहीं।" राज ने हिम्मत बटोरते हुए जवाब दिया-"अगर इसी तरह मरना किस्मत में लिखा है तो ऐसे ही सही। डरने से क्या होगा।"
डॉक्टर जय ने हंस कर कहा

"जब मौत आती है तो बड़े-बड़े बहादुरों के हौसले पस्त हो जाते हैं। आपके हौसलों का भी अभी इम्हिान होने वाला है।"

उसने अपने कारिन्दों से उसी अजनबी भाषा में कुछ कहा, फौरन ही वो खूखार चेहरों वालों हे-के आदमी आगे बढ़े और दो-दो बदमाशों ने राज और डॉक्टर सावंत का दबोचा और इन्हें तरफ को ले चले। जय और ज्योति वहीं खड़े बातें करते रह गए।

यह डॉक्टर जय की प्रयोगशाला थी। दीवारों में बने खानों के सामने शीशे में ढक्कन लगे हुए थे और शीशों के पीछे डॉक्टर जय के पालतू सांप, बिच्छू, छिपकलियां वगैरह जहरीले जानवर बन्द थे। सैकड़ों किस्मों के सांप थे वहां, तरह-तरह के बिच्छू थे और अजीब-अजीब से कीड़े थे। आखिर डॉक्टर सांवत पूर्व जन्म का संपेरा था, जहरों और जहरीले प्राणियों से दिलचस्पी उसकी आत्मा तक में रच-बस गई थी। राज और डॉक्टर सांवत ने सोचा, सिन्देह याह जहरीले कीड़ों का अनुपम संग्रह है।

हॉल के बीचों-बीच दो लम्बी-लम्बी मेजें पड़ी हुई थीं, मेजों के दोनों तरफ चमड़े की पयिों से कस दिया जाता था और फिर उन पर प्रयोग किए जाते थे, उनके जिस्मों में जहर इंजेक्ट करके।

उन बदमाशें ने जबर्दस्ती राज और डॉक्टर सावंत को मेज पर लिटाकर चमड़े की पट्टियां उनके जिस्मों पर कस दीं। अब वो हिल भी नहीं सकते थे। यहां तक कि हाथ-पांव भी नहीं हिला सकते थे।
वो दोनों विवश थे। मुकाबले का कोई फायदा नहीं था। एक तो वो चारों मुश्टंडे उनसे बहुत ज्यादा ताकतवर थे, दूसरे वो हथियारबन्द भी थे।

उन्हें मेजों पर बांधकर वो सभी बाहर निकल गए और राज तथा डॉक्टर सावंत एकांत में रह गए। उन दोनों की इस वक्त यह पोजीशन थी कि वो गर्दन घुमा कर भी एक-दूसरे को नहीं देख सकते थे। उनकी मनोस्थिति का हाल तो शब्दों में ब्यान ही नहीं किया जा सकता।

राज को इस वक्त डॉक्टर सावंत के अहसास का तो पता नहीं था, वो खुद इस वक्त वाकई भयभीत था। उसका जिस्म पसीने में भीग चुका था।
कुछ देर खामोशी के बाद डॉक्टर सावंत ने कहा
"राज साहब.....।"

राज ने घुटे हुए स्वर में कहा
"आपकी मौत का जिम्मेदार मैं खुद को मान रहा हूं डॉक्टर सावंत....मुझे सख अफोसस है।"

"तुम मेरे बारे में न सोचो। अगर हमने मरना ही है और आज ही, तो कोई हमारी किस्मत नहीं बदल सकता। पहले तो यह अन्दाजा लगाएं कि क्या वाकई हमारी जिन्दगी मौत की सरहद की तरफ बढ़ रही है?"

"मैंने मायूम होना नहीं सीखा डॉक्टर सावंत।" राज ने जवाब दिया, "अब भी उम्मीद की एक किरण बाकी है।"

"तुम्हारा ख्याल है कि कोई हमारी मदद को आ सकता है?"

"मालूम नहीं।" राज ने गहरी सांस ली, "शायद यह मेरा अति आशवाद ही। मुझे याद है कि ठीक बारह बजे मुझे सतीश के साथ एक दोस्त से मिलने जाना था। बारह बजे सतीश ने मेरा इन्तजार किया होगा। वो जानता है कि मैं वक्त का बहुत पाबन्द इन्सान हूं। इसलिए दस-पन्द्रह मिनट इन्तजार के बाद उसने जरूर आपके यहां फोन किया होगा, फिर दो-चार जगह और फोन करके भी मुझे तलाश करने की कोशिश की होगी और जब मैं न मिला हूंगा तो लाजिमी है कि उसे फिक्र हुई होगी। अब देखना यह है कि इस फिक्रमंदी की हालत में वो क्या सोचता है? और किस तरह हमें तलाश करने की कोशिश करता है। बस यही एक उम्मीद एक टिमटिमाते चिराग की तरह मुझे नजर आ रही है।"

"बारह बजे....और इस वक्त पांच बज रहे हैं। पूरे पांच घंटे गुजर चुके है।"

"जी हां, शायद साढ़े ग्यारह बजे हमें बाजार में ज्योति नजर आई थी। उस वक्त में सतीश को कुछ नहीं बताना चाहता था, जिसका अब मुझे अफसोस हो रहा है। काश ! मैं रास्ते में से ही उसको फोन कर देता।"

"हम जो नहीं कर सके, उसका अफसोस करना बेकार है।
सवाल सिर्फ यह है कि हमारे लापता होने के बाद सतीश क्या कर सकता है?"

"वो इंस्पेक्टर विकास त्यागी से जाकर मिलेगा।" राज ने कहा।

"इंस्पेक्टर त्यागी भी क्या करेगा? उसे क्या मालूम कि हम कहां

"यही बात मुझे परेशान कर रही है। हो सकता है वो यही समझे कि हम कहीं घूमने-फिरने निकल गए हैं, सुबह तक लौट आएंगे। उनको किसी खतरे का आभास भी हो तो कैसे जान पाएंगे कि हम इस तरफ आए हैं? सच पूछिए डॉक्टर सावंत कि मैं किसी चमत्कार की उम्मीद कर रहा हूं।"
इस जमाने में ऐसे चमत्कार नहीं होते डॉक्टर राज ।"

उसी वक्त बाहर किसी के चलने की आवाज पैदा हुई, जो उन तक भी पहुंची। वो दोनों खामोश होकर आने वाली मुसीबत का इन्तजार करने लगे।

डॉक्टर जय, ज्योति और एक कोई सात फुट लम्बा पहलवान अन्दर दाखिल हुए। ज्योति ने दोनों कूल्हों पर हाथ रख कर किसी विजेता की सी मुद्रा में कहा

"कितना खूबसूरत सीन है! किसी दुश्मन को बेबस करके उसके सामने खड़े होने मेंक्या आनन्द आता है यह तुम क्या जानो? याद है, तुमने मेरे इस शीर को खत्म करने की कोशिश की थी राज ? मैं तो तुम सब लोगों को माफ कर चुकी थी, लेकिन डॉक्टर जय ने मुझे फिर याद दिलाया है कि तुम लोगों ने कई बार मुझसे दुश्मनी निभाई है। अब बोलो, क्या सलूक किया जाए तुमसे?"

"हमने जो ठीक समझा, किया। तुम्हारी मर्जी, तुम जो चाहो करते रहो।"
chusu
Novice User
Posts: 683
Joined: 20 Jun 2015 16:11

Re: Fantasy नागिन के कारनामें (इच्छाधारी नागिन )

Post by chusu »

sahi................. keep posting
User avatar
Sexi Rebel
Novice User
Posts: 950
Joined: 27 Jul 2016 21:05

Re: Fantasy नागिन के कारनामें (इच्छाधारी नागिन )

Post by Sexi Rebel »

"हमने जो ठीक समझा, किया। तुम्हारी मर्जी, तुम जो चाहो करते रहो।"

"हर शख्स का जिन्दगी के बारे में अपना एक नजरिया होता है। अपने कुछ असूल होते हैं। हमारा असूल यह है कि दुश्मनों को कभी जिन्दा न छोड़ा जाए।" डॉक्टर जय ने कहा।

कह कर वो सीधा दीवार में ग्र खानों की तरफ गया और शीशे का एक मर्तबान जैसा बर्तन उठा लाया। जिसमें भूरे रंग का एक भयानक बिच्छू हिल रहा था। बिच्छू कम से कम चार इंच लम्बा था। जय ने मर्तबान राज के चेहरे सामने करते हुए कहा
"यह है वो बिच्छू डॉकटर राज! जिसके जहर की मारक क्षमता का परीक्षण मैं आपके जिस्म पर करना चाहता हूं।"

एक बार फिर राज के जिस्म में दहशत से झुरझुरी दौड़ गई। माथे पर पसीना आ गया।
जय ने कहकहा लगा कर कहा
"देखा, मौत कितनी लजीज चीज है डॉक्टर राज?
आपके माथे पर पसीने के कतरे बता रहे हैं कि आप पर मौत की दहशत सवार हो गई है।"

राज की भी सारी उम्मीदें खत्म होती जा रही थीं। उसे जिस चमत्कार का इन्तजार था, उसका ख्याल भी उसके दिल के किसी कोने में दफन होता जा रहा था, उसे यकीन होता जा रहा था कि अब कोई ताकत उसे नहीं बचा सकती।

जय ने एक चिमटी मर्तबान में डालकर बिच्छु को पकड़ा और उसे बाहर निकाला और उसे राज की आंखों के सामने लहरात बोला
"यह बिच्छु आपके जिस्म पर किस जगह डंक मारना चाहता है, इसका चुनाव मैं इसी पर छोड़ देता हूं।" कहकर उसने धीरे से बिच्छु, राज के बाजू पर रख दिया।


राज को अपने सारे जिस्म में च्यूटियां सी रेंगती महसूस हुईं
और उसके गले में दहशत भरी चीख निकलते-निकलते डंक अपने जिस्म में घुसने का इन्तजार करने लगा। वो इस वक्त बिल्कुल बेबस था। उसकी कलाईयां चमड़े की पयिों से मेज के साथ बंधी हुई थी और उसका जिस्म जरा भी हिल नहीं सकता था।

बिच्छू कुछ क्षण एक जगह ही चिपका रहा। फिर आहिस्ता-आहिस्ता वो बाजू से कलाई की तरफ रेंगने लगा। जय और ज्योति राज की दहशत से आनन्द उठा रहे थे। जय अगर चाहता तो वह बिच्छू को छेड़कर उत्तेजित कर सकता था, जिससे वो फौरन डंक मार देता। लेकिन वो राज की बेबसी से मजे लेना चाहते थे।

बिच्छू धीरे-धीरे रेंगता हुआ राज की कलाई तक पहुंच गया , फिर चमड़े की पी पर से हाता हुआ हाथ पर पहुंच गया।

अचानक एक नया ख्याल राज के दिमाग में उभरा, वो अपनी कलाईयों को हिला नहीं सकता था, लेकिन अंगुलियों को हिला-डुला सकता था, खोल सकता था, बन्द कर सकता था। इस नये ख्याल दिमाग में आते ही उसका दिल जोर-जोर से धड़कने लगा वो दिल ही दिल में प्रार्थना करने लगा कि बिच्छू उसकी अंगुलियों तक पहुंच जाए।

वक्त जैसे रूक गया था, एक-एक पल एक-एक साल की तरह गुजरता लग रहा था राज को। जय राज के हाथ से दो ढ़ाई फुट की दूरी पर ही खड़ा हुआ था और खौफनाक नजरों से उसी की तरफ देख रहा थ। वो पूरा ध्यान लगा कर बिच्छू की तरफ देख रहा था।

आखिर बिच्छू रेंगता हुआ राज की अंगुलियों तक पहुंच गया। वो क्षण आ गया था जिसका राज को बड़ी बेकब्री से इन्तजार था।
राज ने अपनी बीच वाली अंगुली पहली अंगुली के नीचे की और पहली अंगुली का नाखून लगभग अंगूठे से सटा दिया। फिर जैसे ही वो बिच्छू उन दोनों अंगुलियों की नोक पर आया, राज ने अपने जिस्म की पूरी ताकत लगाकर बिच्छु को डॉक्टर जय पर उछाल दिया, ठीक उसी तरह, जिस तरह कैरम बोर्ड के स्ट्राईगर को गोटी पर मारा जाता है।

यह सब इतना अचानक हुआ था कि डॉक्टर जय इस हमले के लिए तैयार नहीं था। बिच्छु में उड़ता हुआ जय की गर्दन के पास उसक कंधे पर जा गिरा। राज की अंगुली की चोट से वो इतना जिलमिला गय था कि उसने जय के कंधे पर टिक्ते ही उसकी गर्दन पर डंक मार दिया था।

डॉक्टर जय के गले से एक दर्दनाक चीख निकली, उसने हाथ मार कर बिच्छु को कंधे से नीचे गिरा दिया और तकलीफ की अधिकता से नीचे बैठता चला गया।

ज्योति चिल्लाई
"यह क्या हो गया जय?"

बिच्छु अब फर्श पर रेंग रहा था, उस सात फुट लम्बे पहलवान ने आगे बढ़ कर उसे जूते से कुचन दिया। जय हाफ रहा था
और उसके गले से ऐसी आवाजें निकल रही थीं जैसे कोई उसका गला काट रहा हो।

ज्योति ने आगे बढ़कर डॉक्टर जय को सहारा दिया तो वह बड़ी मुश्किल से बोला

"मुझे बिस्तर पर लिटा दो। इस जहर का तो परीक्षण भी नहीं हुआ.....इसका तोड़ मेरे पास नहीं है।"

ज्योति ने जल्दी से कहा
"जय...फौरन मुझे मणि का पता बताओ, शक्ति प्राप्त करके मैं तुम्हारा जहर चूस लूंगी। हम दोनों सदियों तक जिन्दा रहकर प्रेम करते रहेंगे....।"

"वो.....वो....चार नम्बर के काले जहर वाले जार में है......जाओ....जल्दी ले आओ।"
Post Reply