Fantasy नागिन के कारनामें (इच्छाधारी नागिन )

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Re: Fantasy नागिन के कारनामें (इच्छाधारी नागिन )

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यह ख्याल राज के जेहन में इसलिए आया, क्योंकि अब वो ज्योति की असाधारण शक्तियों का कायल होता जा रहा था। बल्कि अब वो उसे एक हसीन जादूगरनी समझने लगा था। जिसके चंगुल में फंस जाने के बाद किसी का भी सही सलामत निकल आना नामुमकिन था। राज ने कहा
"अच्छा सतीश....अगर तुम जिद पर ही अड़े हुए हो तो मैं तुम्हें मना नहीं करूंगा। भगवान करे तुम्हारी शादी कामयाब रहे....।"

"थैक्यू....थैक्यू मेरे दोस्त ।” सतीश खुश होकर बोला, "यकीन करो, ज्योति से मिलने के बाद तुम्हारी सारी आशंकाएं और सन्देह दूर हो जाएंगे। वो बहुत अच्छी और नेक औरत है।"

ज्योति का जादू उसके सिर चढ़कर बोल रहा था।

"भगवान करे ऐसा ही हो।" राज ने कहा और उठ कर चला आया।

उस बातचीत के ठीक एक महीने के बाद सतीश और ज्योति की शादी हो गई। शादी के बाद राज को ज्योति से जबरन मिलना पड़ा, क्योंकि सतीश उनका करीबी दोस्त था। और ज्योति सबसे करीबी दोस्त की पत्नी।यानि राज की भाभी।

तीन मुलाकातों के बाद ही ज्योति राज से भी काफी घुल-मिल गई थी। राज को लगा कि ज्योति आदत और शालीनता की बुरी नहीं है। फिर भी न जाने क्यों राज उससे सहमा-सहमा रहता था।

और वो नेकलेस, जो सांप जैसा चांदी का था, अब भी काफी गर्दन में लिपटा रहता था, जिसे देखकर राज की आत्मा कांप जाती थी।

बाद में राज को सतीश से पता चला कि ज्योति उस नेकलेस को कभी अपनी गर्दन से अलग नहीं करती। सोते-जागते हर वक्त उसे पहने रहती थी।

वक्त गुजरता रहा। ज्योति अपनी व्यवहार कुशलता से सबको खुश और संतुष्ट किए हुए थी। राज की आशकाएं भी निर्मूल सिद्ध होने लगीं, जो उसके मन में कुण्डली मारे बैठी रहती थीं और बक्त-बेवक्त फन उठा लेती थीं। ज्योति एक बड़ी शिष्ट और शालीन पत्नी साबित हो रही थी।

उसी तरह दो महीने गुजर गए। इन दो महीनों में ज्योति ने राज को किसी किस्म की शिकायत का मौका नहीं दिया था, वो राज से इस तरह मिलती थी, जैसे वो वाईक उनके परिवार का कोई करीबी परिजन हो।

मध्यम कद की यह हसीन औरत, जिसे किस्मत ने राज की भाभी बना दिया था, बड़ी खुशमिजाज और मिलनसार औरत थी। उसकी बातों में कुछ ऐसी मिठास होती थी कि एक बार उससे मिलने वाला उससे दोबारा मिलने की इच्छा जरूर कराता था।
खखन
खनन

इतने दिनों तक ज्योति से मिलने-जुलने और उसके व्यवहार में कोई असामान्य बात न देखकर अब राज का खौफ बिल्कुल खत्म हो गया था और उसे यकीन हो चला था कि ज्योति के पूर्व पति वाकई स्वभाविक मौत मरे थे। क्योंकि राज की समझ में ऐसे मीठे स्वभाव की औरत किसी को कत्ल नहीं कर सकती थी।


अब राज को दिली अफसोस होता था कि उसने खामखां एक भी और सचचित्र औरत के बारे में न जाने क्या-क्या राय कायम कर ली थी। कभी-कभी वो सोचता कि अगर ज्योति को मालूम हो जाए कि उसने ज्योति से सतीश की शादी में क्या-क्या अड़चनें डालने की कोशिश की थीं तो क्या ज्योति के बारे में अपने दोस्त से क्या-क्या बातें की थीं तो क्या ज्योति तब भी उसकी इतनी ही इज्जत कर पाएगी जैसी कि अब कर रही है?

लेकिन उसे इत्मीनान हुआ जब सतीश ने इस बारे में ज्योति से कभी जिक्र तक नहीं किया था। एक तरह से अब उसे ज्योति पर पूरा विश्वास हो गया था।
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लेकिन उसी दौरान एक अजीब सी घटना घट गई और राज ने बड़ी मुश्किल से अपने दिलो-दिमाग से उतार फेंका था-फिर वही तेजी और सख्ती के साथ उस पर सवार हो गया। उसके मुर्दा हो चुके सन्देह फिर से जी उठे। उस दिन ज्योति फिर से उसे एक भोली और मासूम औरत के बजाय पांच-पांच पतियों को खा जाने वाली एक भयानक डायन दिखाई देने लगी थी। सतीश की एक छोटी-सी बात ने उसकी खुशफहमियों की इमारत को धराशाही कर दिया था।

सतीश के अनुसार यह बात महज इत्तेफाक थी और मामूली भी। लेकिन यही मामूली सी बात राज के लिये किसी जुल्म से कम साबित नहीं हुई थी।

उसने राज को बताया कि एक रात अचानक सतीश की आंख खुल गई थी, ज्योति बैड पर उसकी बगल में बेसुध सो रही थी और उसके खुले हुए स्वच्छ सीने पर वही....गर्दन वाला नेकलेस कुण्डली मारे बैठा हुआ था। दूर से उसे ऐसा लगा था जैसे नेकलेस का वो सिरा, जहां सांप का फन था, वहां कोई गठरी सी बनी चीज हिल रही हो। बिल्कुल इस तरह जैसे वो चांदी का सांप जिन्दा हो गया और उसकी दोमुंही जुबान लपलपा रही हो। लेकिन जब सतीश ने करीब जाकर देखा तो नेकलेस बिल्कुल ठीक था, वो हिलने वाली चीज गायब थी।

बस इतनी सी बात थी जिसन राज का वहम बढ़ा दिया था। जबकि सतीश को यकीन था कि वो उसकी नजरों का धोखा था।

जिसे सतीश मामूली बात समझ रहा था, वही राज के लिए एक खौफनाक सवाल बन गई थी। राज सोचता रहा था कि आखिर सतीश ने उस चांदी के फन पर क्या चीज हरकत करते देखी ली थी? क्या वो वाकई उसकी नजरों का धोखा था या उस चांदी के सांप में कोई भयानक रहस्य हुपा हुआ था?

सतीश ने यह बात राज को सिर्फ इसलिए बताई थी, क्योंकि उसे मालूम थी, क्योंकि उसे मालूम था कि राज ज्योति के उस सांप जैसे नेकलेस से बहुत खौफ खाता है। यह कह कर उसने राज की हिम्मत और हौसले का मजाक उड़ाया था, ताकि राज उस नेकलेस से और ज्यादा डरने लगे और सतीश उसके डर से मजे ले सके।

हुआ भी ऐसा ही था, उस बात से राज बहुत डर गया था।

लेकिन उसने अपना खौफ और दहशत सतीश पर प्रकट नहीं किया था। वो बात को टाल गया था, चुप रह कर।
उसके बाद उसने मौका पाकर सतीश से पूछा
" सतीश, तुमने कभी ज्योति से यह भी पूछा था कि वो चांदी का वह नेकलेस हर वक्त क्यों पहने रहती हैं?" सतीश ने हंसते हुए कहा था

"पूछा था मैंने। उसने जवाब दिया था कि वो नेकलेस उसकी मां ने उसे मरते हुए दिया था, इसलिए वो नेकलेस को जान से प्यारा समझती है और खो जाने के खौफ से उसे कभी नहीं उतारती। उसकी मां को किसी महापुरूष ने वहा तोहफा दिया था, जो दबर्दस्त गुप्त और ऊपरी ताकतों के मालिक थे।"

राज उसका जवाब सुनकर खामोश रह गया था और बात आई-गई हो गई थी। उस घटनाओं को भी कई दिन गुजर गए।

उसके बाद एक महीने तक कोई सी साधारण या असाधारण घटना नहीं घटी। लेकिन राज के सन्देह खत्म नहीं हुए। लेकिन न जाने क्यों ज्योति और सतीश का ख्याल आते ही राज के दिल में खतरे की घंटियां बजने लगती थीं।
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वक्त का पहिया अपने नियम से घूम रहा था। न जाने क्यों इन दिनों राज पर एक अजीब सी उकताहट और आदमी सी छाई रहती थी।

हालांकि सतीश जैसे बच्चे दोस्त का साथ, ज्योति जैसी हसीन भाभी की रेशमी मुस्कराहटें और क्रिस्टल के गिलासों में भरी सुनहरी स्कॉच उसे उपलब्ध रहते थे। लेकिन उसका मन बेचैन रहता था।

उस स्थिति से तंग आकर राज ने सोचा कि वो कुछ दिनों के लिए कहीं दूर चला जाए। जहां की हर चीज और हर इन्सान उसके लिए अजनबी हो। जहां उसे पूर्ण शांति मिल सके।

लेकिन किसी जगह का चुनाव भी तो उसके लिए मुश्किल हो रहा था, वो किसी होटल या पब में बैठा शराब पीता रहता। यह समस्या भी राज की जल्दी ही हल हो गई। एक दिन जब वो कमरे से निकल कर किसी शराबखाने में जाने का प्रोग्राम बना ही रहा था कि डॉक्टर गुप्ता की फोन कॉल मिली उसे। राज ने बढ़कर रिसीवर उठाया
"हैलो, डॉक्टर राज!"

"राज, मैं नरेन्द्र गुप्ता बोल रहा हूं। क्या तुम एक अर्ध सरकारी खोज अभियान में मिस्र जाना चाहोगे।" डॉक्टर नरेन्द्र गुप्ता ने संक्षेप में कह दिया।

"मिस्र?" राज ने हैरत और खुशी से कहा, "गुप्ता जी, मैं मिस्र जरूर जाऊंगा। तुम मेरा इन्तजार करो, मैं अभी तुम्हारे पास पहुंच रहा हूं।"

राज रिसीवर रख कर नेहरू अस्पताल की तरफ पैदल ही चल पड़ा था। इतने दिनों से कहीं जाने की सोच रहा था, लेकिन कहां जाए, यह फैसला नहीं कर पा रहा था। अब अचानक ही उसे मिस्र जाने की दावत मिल रही थी, वो भी सरकारी खर्च पर।

राज की खुशी की हद न रही और वो अपने दिल में एक नया उत्साह महसूस करने लगा। जीवन की उमंग, जो इन दिनों हालात ने उससे छीन ली थी।

चलते-चलते उसकी कल्पना मिस्र की रहस्यमय और आकर्षक सरजमीन पर उड़ान भरने लगी। भव्य पिरामिड उसकी आंखों के सामने नाचने लगे और मिस्र के बारे में पढ़ी हुई कहानियों और देखी हुई फिल्मों की यादें ताजा होने लगीं। हजारों साल पहले के बादशाहों और मलिकाओं की ममियां उसके दिमाग में तैरने लगीं।

महारेगिस्तान के तपते हुए पिंड और ठण्डी रातें। मिस्र जैसे प्राचीन देश के ख्याल ने उसकी तमाम उदासियां खत्म कर दी और वो अपने आप को शांत महसूस करने लगा। उसके दिल की बेचैनी भी दूर हो गई।
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इन्हीं ख्यालों में ही रास्ता कट गया और राज नेहरू अस्पताल पहुंच गया। डॉक्टर गुप्ता अपनी गम्भीर मुस्कराहट के साथ उसका प्रतीक्षक था।

"हेलो राज, आ गए। बैठो, कहो, क्या हाल-चाल है? अच्छे हो गए हैं।" नीलकण्इठ एक कुर्सी खींच कर बैठ गया।

"बहुत उत्सुक हो मिस्र जाने के लिए?" डॉक्टर गुप्ता ने गम्भीर मुस्कराहट के साथ पूछा।

"हां, आजकल मूड कुछ उखड़ गया है यहां से। मैं कहीं दूर जाने के लिए कई दिनों से सोच रहा था....कि तुमने मेरी बहुत बड़ी उलझन आसान कर दी है।"

डॉक्टर गुप्ता जवाब में मुस्कराया और बोला
"प्रोफेसर एम. के. दुर्रानी से कभी मिले हो तुम?"

"वही तो नहीं जो प्राचीन लिपियों को पढ़ने के माहिर है?" राज ने पूछा, "और जिनका घर पुरानी और दुर्लभ चीजों का अजायबघर लगता है।"

"वही!" डॉक्टर गुप्ता ने सहमति से सिर हिलाया।


"एक दो बार सरसरी सी मुलाकात हुई है....और उससे ज्यादा वाकफियत नहीं है।" राज ने जवाब दिया।

"वो कल मेरे पास आए थे। कुछ प्राचीन ऐतिहासिक तहकीकात के लिए वो मिस्र जा रहे हैं। इस मिशन में दर्शनिक, डॉक्टर, फिजिशियन, साइंटिस्ट सभी तरह के लोग शामिल हैं। वो मेरे पास भी इसीलिए पधारे थे कि मैं उनके साथ मिस्र चलूं। लेकिन तुम तो जानते हो कि मुझे इस अस्पताल से मरने तक की फुसत नहीं होती, इसलिए मैंने उनसे क्षमा मांग ली थी, लेकिन उन्हें अपने बदले एक दूसरा डॉक्टर देने की पेशकश की थी। इन्होंने जब तुम्हारा नाम सुना था तो खुश हो गए थे और जाते-जाते कह गए थे कि कैसे भी हो, मैं तुम्हें उस मिशन के लिए तैयार कर लूं। जब तुम तैयार हो तो मैं उन्हें फोन कर देता हूं।"

प्रोफेसर दुर्रानी से राज की एक-दो मुलाकातों हो चुकी थीं, इसलिए उसने बड़ तपाक से राज का स्वागत किया और मिशन पर जाने के लिए राज को धन्यवाद दिया।

काफी देर तक वो दोनों बैठे मिस्र जाने के बारे में प्रोग्राम बनाते रहे और दूसरे विषयों पर चर्चा करते रहे। प्रोफेसर ने राज से पूरा समझा दिया और यह भी कह दिया कि मिशन में अपने साथ क्या ले जाना चाहिए। सारी बातें तय हो जाने के बाद राज प्रोफेसर से विदा होकर घर वापिस लौट आया।

दूसरे दिन जब राज ने सतीश और ज्योति को बताया कि वो पन्द्रह दिन के अन्दर-अन्दर मिस्र जा रहा है तो वो दोनों हैरान रह गए थे।

"यह अचानक क्या दौरा पड़ा है तुम्हें?" सतीश ने पूछा ।

"एक अन्वेषक पार्टी के साथ जा रहा हूं।” राज ने बताया-"दरअसल आजकल मैं कुछ परेशान सा था। मैं खुद भी कहीं बाहर जाने की सोच रहा था....कि अचानक यह सुनहरी मौका मिल गया।"

"वापसी कब तक होगी?' ज्योति ने चिंतित लहजे में पूछा था।

"ज्यादा से ज्यादा पांच छ: महीने लगेंगे।"

"छ: महीने....हे भगवान! तुम छ: महीने बाद वापिस आआगे?" ज्योति के कुछ ज्यादा ही फिक्रमंदी से कहा-"अचानक मिस्र जाने का फैसला कर लिया? भले मानुष, तुम्हारी तबीयत घबरा रही थी तो भारत में ही कहीं शिमला....श्रीनगर जाने का प्रोग्राम बना लो-भला उस रेगिस्तानी देश में क्या रखा है जी बहलाने को?"

"हां, अगर किसी हिल स्टेशन पर जाने का प्रोग्नाम बनाते तो हम भी तुम्हारे साथ चलते । अब इतने लम्बे अर्से की जुदाई खामखां सहन करनी होगी.....।"

"इसमें दिक्कत ही क्या है? अरे भाई, मैं छ: महीने बाद तो वापस आ ही जाऊंगा।"

"आपके लिए चाहे कुछ भी न हो, लेकिन मेरे लिए तो है न!"

ज्योति ने जल्दी से कहा, "मेरी तो हमेशा से आदत रही है कि जिस शख्स से मैं जरा भी घुल-मिल जाती हूं, उसकी जरा सी जुदाई से बेचैन हो जाती हूं।"
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