Thriller इंसाफ

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koushal
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Re: Thriller इंसाफ

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“संगीता ने छुप कर अपने पति और डिसिल्वा का वो वार्तालाप सुना जिसका विषय सार्थक था और उससे वो इस नतीजे पर पहुंची कि उसका पति सार्थक का कत्ल कराने का इरादा किये बैठा था । उसका वो नतीजा गलत भी नहीं था लेकिन तब उसे ये मालूम नहीं था कि वो ही अंजाम उसका भी होने वाला था ।”
“तुम जो कह रहे हो” - नेता इस बार भड़के बिना शान्ति से बोला - “झूठ है, बकवास है...”
वकील ने उसका कंधा दबा कर उसे चुप कराया ।
“डिसिल्वा ने सार्थक के लिये अपने चमचों को तैनात किया लेकिन संगीता की खुद खबर लेने का फैसला किया ।” - मैंने उस पर निगाह डाली - “मैंने ठीक बोला, फेनी मास्टर ?”
उसने मेरे से निगाह न मिलाई, बेचैनी से पहलू बदला ।
अन्दर से हिल गया था पट्ठा ।
“तुमने कत्ल को एक्सीडेंट का रंग देने की कोशिश की लेकिन उस कोशिश में भांजी तुम्हारी चेन स्मोकिंग की लत की वजह से पड़ गयी । उस कत्ल के दौरान भी तुम अपनी चुरुट की तलब को नजरअन्दाज न कर सके । या चुरुट तुमने अपने में हौसला पैदा करने के लिये सुलगाया - जैसे कि लोग बाग टैंस घड़ी में विस्की का घूंट लगा लेते हैं या कोई दूसरा नशा कर लेते हैं । वहां मौकायेवारदात पर तुम्हारे पुर्तगाली चुरुट का रैपर वेस्ट पेपर बास्केट में पाया गया था और सारे बाथरूम में चुरुट की कसैली मुश्क व्याप्त थी ।”
“कुछ साबित नहीं कर सकोगे । वो चुरुट कोई ऐसी दुर्लभ आइटम नहीं जो मेरे सिवाय किसी को उपलब्ध न हो ।”
“वहां एमपी साहब के सरकारी बंगले में कोई नहीं, तुम पहुंचे थे ।”
“किसी ने मुझे वहां आते जाते नहीं देखा था ।”
“संगीता ने तुम्हें अपने पति से बात करते देखा था ।”
“तो क्या हुआ ? मैंने बात की थी और चला आया था ।”
“रात वाले सिक्योरिटी गार्ड ने तुम्हें आते देखा था, लौटते नहीं देखा था ।”
“उसकी लापरवाही के लिये में जिम्मेदार नहीं ।”
“वो सीआरपीएफ का प्रशिक्षित सिक्योरिटी गार्ड है, लापरवाह नहीं हो सकता ।”
“तो क्यों उसने मुझे लौटते न देखा ?”
“क्योंकि रात को तुम लौटे ही नहीं थे, बंगले में ही रहे थे ।”
“तुम... पागल हो ।”
“अभी नहीं हूं । अभी खैरियत है ।”
“चलो, मान ली तुम्हारी बात । तो दिन वाले गार्ड ने तो मुझे लौटते देखा होता !”
“उसने न देखा क्योंकि एमपी साहब ने ऐसा न होने दिया ।”
“क्या !”
“एमपी साहब ने तुम्हें वहां से यूं निकालने का सामान किया कि गार्ड को तुम्हारी खबर न लगती ।”
“क्या किया मैंने ?” - नेता बोला ।
“बहुत तरीके हैं । मसलन गार्ड को आसपास किसी छोटे मोटे गैरजरूरी काम से भेज दिया - ‘दायें बाजू वाले फलां साहब फोन नहीं उठा रहे, देख के आ घर पर हैं’ ! ‘बायें वालों से आज का अखबार मांग के ला’ वगैरह । या अपनी कार में छुपाया - बड़ी कार की डिकी में बहुत जगह होती है ।”
“ड्राइवर को गवाह बनाया !”
“ऐसा तो आप नहीं करने वाले ! तो उस को भी कोई गार्ड वाला ही ट्रीटमेंट दिया होगा !”
“घर में एक मेड भी है ।”
“मेड्स को मार्निंग में किचन में बहुत काम होते हैं जिनमें जरूरत के मुताबिक इजाफा भी किया जा सकता है ।”
नेता खामोश हो गया ।
“ये आदमी आपकी बीवी का कातिल है और ऐसा इसने आपकी शह पर किया है ।”
“कातिल हो सकता है लेकिन मेरी शह का कोई मतलब नहीं ।”
“अपनी निजी हैसियत में इसके कातिल होने का कोई मतलब नहीं ।”
“क्या पता लगता है ! तफ्तीश का मुद्दा है कि मतलब है या नहीं है !”
“सर !” - डिसिल्वा व्याकुल भाव से बोला - “ये आप...”
नेता ने उसकी तरफ से मुंह फेर लिया ।
“सर...”
“शटअप !” - यादव डपटता सा बोला ।
डिसिल्वा और बेचैन हो उठा ।
नेता एकाएक उठ खड़ा हुआ ।
“हम चलते हैं ।” - वो बोला - “चलो, डिसिल्वा ।”
डिसिल्वा उछलकर खड़ा हुआ ।
“आप जा सकते हैं ।” - यादव शान्त लेकिन स्थिर में बोला - “मैं आपको नहीं रोक सकता । एक सिटिंग एमपी को गिरफ्तार करना मेरे अधिकार क्षेत्र में नहीं आता । लेकिन ये नहीं जा सकता ।”
नेता ने वकील की तरफ देखा ।
“क्यों नहीं जा सकता ?” - वकील ने तत्काल प्रतिवाद किया - “क्या किया है इसने ? क्या चार्ज है इसके खिलाफ ?”
“बहरे हैं ?” - यादव कड़क कर बोला - “कान से मैल निकलवाने की जरूरत है ? अभी पता नहीं लगा आप को कि क्या चार्ज है इसके खिलाफ ?”
“वो चार्ज कोर्ट में ठहरने वाला नहीं है । वो एक सिरफिरे का प्रलाप...”
“तो न ठहरे । तब की तब देखी जायेगी । अभी ये यहां से नहीं जा सकता, क्योंकि ये कत्ल के इलजाम में गिरफ्तार है ।”
“ये धांधली है ।”
“है तो नहीं लेकिन आप को लगती है तो मुझे कोई ऐतराज नहीं ।”
“मैं डिस्ट्रिक्ट के डीसीपी के पास जाऊंगा और आप की शिकायत करूंगा ।”
“यू आर वैलकम । यहीं बैठे बैठे पहुंच जायेंगे ?”
वकील ने परमार की तरफ देखा ।
एकाएक डिसिल्वा ने चुरुट फेंका और बगुले की तरह बाहर को भागा ।
“खबरदार !”
डिसिल्वा न रुका, पलक झपकते वो कमरे से बाहर निकल गया ।
मीरानी और धीमरे के आजू बाजू खड़े सिपाहियों ने उसके पीछे जाने की कोशिश न की । मुझे बहुत हैरानी हुई । फिर सोचा कि शायद उन्हें अन्देशा था कि कहीं वो दोनों भी न भाग खड़े हों ।
लेकिन तभी असल वजह सामने आयी ।
एक हवलदार और एक सब इंस्पेक्टर डिसिल्वा को घसीटते हुए भीतर लाये । उस के हाथ उसकी पीठ पीछे हथकड़ी से जकड़े हुए थे और बायीं आंख के नीचे ताजा लगी चोट में से खून रिस रहा था ।
“फ्लाइट इज ऐन ईवीडेंस आफ गिल्ट ।” - यादव विषभरे स्वर में बोला - “आप को तो मालूम ही होगा, वकील साहब !”
“ईडियट !” - असहाय भाव से गर्दन हिलाता वकील होंठों में बुदबुदाया - “खुद अपना केस खराब कर लिया ।”
यादव के होंठों पर एक विद्रुपपूर्ण मुस्कराहट आयी ।
नेता ने एक उड़ती निगाह अपने जीजा पर डाली और फिर खामोशी से वहां से रुखसत हो गया ।
सब उसे जाता देखते रहे ।
तीनों कैदियों को एक जगह इकट्ठे बिठाया गया और चारों पुलिसिये उनके सिर पर खड़े हो गये ।
सब इंस्पेक्टर हथियारबन्द था, उसने गन निकाल कर हाथ में ले ली ।
इंस्पेक्टर यादव ने सन्तुष्ट भाव से गर्दन हिलाई ।
“यू कैन गो ।” - फिर परमार अपने वकील से बोला ।
“जी !” - वकील चौंका - “क्या फरमाया ?”
“तुम्हारा आना किसी काम न आया । टाइम बर्बाद करने का कोई फायदा नहीं । जा सकते हो ।”
दनदनाता सा वहां पहुंचा जोशीपुरा पिटा सा मुंह लिये भारी कदमों से वहां से रुखसत हुआ ।
“अब मुझे भी इजाजत है ?” - पीछे दर्शन सक्सेना यादव से सम्बोधित हुआ ।
“थोड़ी देर और रुकिये ।” - यादव से पहले मैं बोला पड़ा ।
उसकी भवें उठी ।
“मेरी गाड़ी तंग कर रही है । खराब थी, ठीक कराई थी लेकिन फिर खराब हो गयी है । मुझे कहीं के लिये लिफ्ट दे दीजियेगा ।
उसने अनमने भाव से सहमति में सिर हिलाया ।
तभी दरवाजा फिर खुला और दो पुलिसियों के बीच में चलते कमला ओसवाल ने भीतर कदम रखा ।
koushal
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शुकर ! - मैं मन ही मन बोला - वहीं थी ।
“मैडम को कुर्सी दो” - यादव बोला - “और आप लोग बाहर जा के खड़े होवो !”
दोनों पुलिसिये बाहर निकल गये ।
“मुझे यहां क्यों लाया गया है ?” - कमला ओसवाल अप्रसन्न भाव से बोली ।
“अभी । अभी । अभी मैं आपसे बात करता हूं थोड़ी देर विराजिये ।”
दर्शन सक्सेना पर और फिर मेरे पर एक उड़ती निगाह डालती वो एक कुर्सी परे सरका कर उस पर बैठ गयी ।
“मेरी बेटी का कत्ल किसने किया ?” - एकाएक परमार बोला ।
इस बार वो एक दबंग बिजनेस टाईकून की तरह नहीं, एक पशेमान बाप की तरह बोला ।
“तुम” - वो मेरी तरफ घूमा - “जब इतने इतनी ज्ञानी हो तो बताओ श्यामाला का कत्ल किसने किया ?”
“बता तो सकता हूं ।” - मैं बोला - “जो कहूंगा, उसे धीरज से सुनेंगे ?”
“हां ।”
“तो सुनिये । वो क्या है कि कत्ल की रात को मोतीबाग में मौकायवारदात पर कई लोगों के कदम पड़े थे । मसलन आपके सुपुत्र के...”
“खबरदार !” - शरद बोला - “मैं नहीं चाहता तुम्हारी जुबान पर मेरा नाम आये ।”
“शरद !” - परमार तीखे स्वर में बोला ।
“दिस मैन इज शियर नानसेंस, पापा । देखना, अब ये कहेगा कि कत्ल ही मैंने किया है ।”
“अभी नहीं कहा ऐसा कुछ मैंने ।” - मैं बोला - “अभी मैंने सिर्फ ये कहा है कि कत्ल की रात जिन लोगों को पांव मोतीबाग वाली कोठी में पड़े थे, उन में तुम भी एक थे । उस रात तुम्हारे कब्जे में शेफाली की कार थी और तुम टुन्न थे जो कि रात की उस घड़ी तुम्हारे लिये कोई नयी बात नहीं थी । नशे में तुम कितने अनप्रिडिक्टेबल हो जाते हो, ये बात किसी से छुपी नहीं है । इस बात के मद्देनजर देखा जाये तो कोई बड़ी बात नहीं कि तुम्हारे हाथों श्यामला का कत्ल हुआ हो । मैंने अपनी आंखों से देखा है कि नशे में भड़के अपने मिजाज में तुम्हें बहन का कोई लिहाज नहीं । मैंने पब्लिक में तुम्हें शेफाली पर हाथ उठाने को तैयार देखा था, प्राइवेट में तो जो न करो, थोड़ा है ।”
“लेकिन” - वो एक एक शब्द पर जोर देता बोला - “कत्ल - नहीं - किया - मैंने - शेफाली - का ।”
“गये तो थे न वहां ?”
“हां, गया था, लेकिन कोठी में दाखिल नहीं हुआ था ।”
“क्यों ?”
“क्योंकि... वो... वो...”
“क्योंकि इतने टुन्न थे कि कार से उतर कर आगे बढ़ने का भी दम नहीं था तुम्हारे में । इसी वजह से तुम खुद कार चलाते नहीं हो सकते थे । कौन चला रहा था कार ?”
उसने जवाब न दिया ।
“मैं बताता हूं । माधव धीमरे चला रहा था कार । मोतीबाग में काम भी उसी को था । उसने सार्थक से मिलना था जो कि उसका अस्सी हजार रुपयों का कजाई था और वो वसूली के लिये मोतीबाग पहुंचा था ।”
यादव सचेत हुआ ।
“यहां का मैनेजर होने के अलावा भी धीमरे के कई साइड बिजनेस हैं जिनमें से एक की तो पुलिस को खबर लग भी चुकी है ।”
“डोप पुशिंग ।”
“हां । और दूसरा लोन शार्किंग है । ये लोगों को ब्याज पर कर्जा देता था, सार्थक भी उसका कर्जाई था और उस रात ये कलैक्शन के लिये मोतीबाग गया था ये शरद के साथ था लेकिन कार ये चला रहा था क्योंकि शरद ज्यादा पी गया था और कार चलाना उसके बस का नहीं था । मोतीबाग पहुंचकर ये अकेला कोठी में दाखिल हुआ था क्योंकि शरद तो शायद नशे में होश ही खो बैठा था” - मैं शरद की तरफ घूमा - “ठीक !”
उसने जवाब न दिया ।
“तुम बोलो, भई !” - मैं धीमरे से मुखातिब हुआ ।
उसने भी जवाब न दिया लेकिन वो साफ साफ आन्दोलित दिखाई देने लगा था ।
“धीमरे ने अकेले कोठी में दाखिला पाया” - मैं आगे बढ़ा - “तो इसे मालूम हुआ कि सार्थक घर पर नहीं था । यानी श्यामला घर में अकेली थी । तब इसके दिमाग में ये शैतानी खयाल आया कि ये उसके अकेले होने का फायदा उठा सकता था और उसके साथ अपनी मनमानी कर सकता था ।”
“वाट द हैल !” - परमार भड़का - “वाट द हैल आर यू टाकिंग अबाउट ! धीमरे की मजाल नहीं हो सकती थी श्यामला के साथ बद्फेली करने की, ऐसा खयाल भी करने की ।”
“अच्छा !”
“बाहर भाई मौजूद ! ये भीतर बहन के साथ जोर जबरदस्ती करता...”
“इसके मैं दो जवाब देता हूं । सुनिये । मिजाज में लाइये । जिस हालत में बाहर शरद मौजूद था, उसमें इसका होना, न होना एक बराबर था । नशे के सरासर हवाले ये तब उठ के खड़ा नहीं हो सकता था, कार से बाहर कदम नहीं रख सकता था, किस काम आता ये बहन के !”
“तब ये इतने बुरे हाल में नहीं हो सकता था ।”
“ये बहन के घर के दरवाजे पर मौजूद था, तो ये भीतर क्यों न गया ? मिला क्यों नहीं जा के बहन से ?”
परमार सकपकाया ।
“फिर हाथ कंगन को आरसी क्या ! इसी से पूछिये कि तब ये किस हाल में था ! आप का बेटा है, कम से कम आप से तो झूठ नहीं बोलेगा !”
“शरद !” - परमार तीखे स्वर में बोला - “जवाब दे ।”
शरद ने जवाब न दिया । उसका सिर झुक गया ।
“सो देयर !” - मैं विजेता के से स्वर में बोला
परमार ने असहाय भाव से गर्दन हिलाई ।
“दूसरा जवाब ?” - फिर बोला ।
“दूसरा जवाब !” - मैं तनिक हड़बड़ाया - “हां, दूसरा जवाब । दूसरा जवाब जोर जबरदस्ती से ताल्लुक रखता है जिसका कि आपने जिक्र किया था । मेरा जवाब है कि क्या पता धीमरे समझता हो कि जोर जबरदस्ती की कोई नौबत नहीं आने वाली थी...”
“क्या ! तुम वही कह रहे हो, जो मैं समझ रहा हूं ?”
“जी हां, वही कह रहा हूं । एक बाप के सामने उसकी दिवंगत बेटी का जिक्र इस मिजाज में करना ठीक नहीं लेकिन मजबूरन ऐसा कहना पड़ा । अब आप चाहते हैं कि इस बात का मैं अभी और खुलासा करूं ?”
“नहीं ।”
“उसके लिये मुझे श्यामला के चंचल चरित्र के बखिये उधेड़ने होंगे और शादी से पहले उसकी धीमरे की तरफ...”
“खबरदार !”
“मैं तो खबरदार हो जाता हूं लेकिन धीमरे से भी तो सवाल कीजिये कि इसकी मजाल हो सकती थी या नहीं ! ये इस क्लब का मुलाजिम है जिसके कि आप प्रेसीडेंड हैं, आप से तो बोलेगा कि वो नापाक खयाल इसके जेहन में आया था या नहीं !”
परमार ने आग्नेय नेत्रों से धीमरे की तरफ देखा लेकिन मुंह से कुछ न बोला ।
“चलिये, फार दि काज़, ये काम मैं करता हूं ।” - मैं धीमरे की तरफ घूमा - “बोलो, भई, जवाब दो । खामोश रहोगे तो यही समझा जायेगा कि तुम कातिल हो ।”
“झूठ !” - वो भड़कता सा बोला ।
“ये भी झूठ कि वहां से निकल लेने की अफरा तफरी में तुमने अपनी कार - असल में शेफाली की कार - आगे खड़ी स्विफ्ट से भिड़ा दी थी, उसकी दायीं टेल लाइट तोड़ दी थी और शेफाली की आई-10 की बायीं हैडलाइट तोड़ दी थी । फिर ये जाहिर करने के लिए कि वो हादसा असल में सार्थक की कार के साथ हुआ था, पहली फुर्सत में तुमने उसकी सान्त्रो की बायीं हैडलाइट तोड़ दी थी । और पहली फुरसत में ही तुमने आई-10 की टूटी हैडलाइट रिप्लेस करा ली थी । यूं तुमने कत्ल का अपना गुनाह सार्थक पर पास आन करने की । कोशिश की ! कहो कि मैं झूठ कह रहा हूं । जवाब मेरा नहीं तो परमार साहब का लिहाज करके देना ।”
“जो तुमने कहा, वो सब किया था मैंने” - इस बार धीमरे दबे स्वर में बोला - “लेकिन कत्ल नहीं किया था ।”
“अच्छा !”
“मैं तो वहां रुका ही नहीं था, क्योंकि वो तो... वो तो पहले ही... पहले ही वहां मरी पड़ी थी । लाश पर निगाह पड़ते ही मेरे तो होश उड़ गये थे । मैं तो एक सैकंड फालतू वहां ठहरने को तैयार नहीं था । मैंने तो बगूले की तरह वहां से कूच किया था । इसी हड़बड़ी में तो आगे खड़ी कार ठोक बैठा था ।”
“कबूल करते हो दर्शन सक्सेना की स्विफ्ट तुमने ठोकी थी ?”
“हां ।”
“जो कि शेफाली की आई-10 थी ?”
“हां ।”
“ऐसे ही सार्थक की सान्त्रो को क्यों डैमेज किया ?”
“अब क्या कहूं ! वो मूर्खता थी मेरी लेकिन उस वक्त न लगा ऐसा । उस वक्त तो मैं इस कोशिश में था कि किसी को खबर ही न लगती कि मैं वहां गया था ।”
“शरद को तो लगती जो साथ था !”
“होश में होता तो लगती !”
“उस वक्त के टाइम का कोई अन्दाजा है जब वहां से कूच किया था ?”
“हां । दस बजने को थे ।”
“क्या पहने थे ?”
“क्या बोला ?”
“भई, तब ड्रैस क्या थी तुम्हारी ? नेपाली ड्रैस पहने थे ? क्योंकि तुम्हारा कोई नेपाली त्योहार था उस रोज । विवाह पंचमी !”
“नहीं, मैं नार्मल ड्रैस पहले था । कोट पतलून वगैरह । विवाह पंचमी का तो मेरे को खयाल भी नहीं आया था ।”
“हूं । श्यामला मरी कैसे थी ?”
“मुझे नहीं मालूम ।”
“तब नहीं मालूम था, अब तो मालूम है न !”
“हां, अब मालूम है । अखबार पढ़ के मालूम हुआ था । उसकी खोपड़ी पर चारभुजी नेपाली मूर्ति का वार पड़ा था ।”
“मूर्ति वहां दिखाई दी थी ?”
“मेरे को सिर्फ लाश दिखाई दी थी जिस पर निगाह पड़ते ही मेरे होश उड़ गये थे । लाश के अलावा अगर मेरी किसी बात की तरफ तवज्जो गयी थी तो वो ये थी कि वहां माहौल में बड़ी अजीब सी, तीखी सी गन्ध व्याप्त थी ।”
“जले तम्बाकू जैसी ?”
“हां । हां । सही कहा तुमने । ऐसी ही थी । कसैली सी ।”
“सिगार जैसी !” - परमार व्यग्र भाव से बोला - - “उस पुर्तगाली चुरुट जैसी जो डिसिल्वा पीता है ! जो वो फरार होने की कोशिश से पहले अभी भी पी रहा था ?”
“हां । हां ।”
“तो” - परमार दांत पीसने लगा - “इस कमीने कुत्ते ने मेरी बेटी का भी कत्ल किया ! अब नहीं बचेगा ये मेरे हाथों से । खुद पी जाऊंगा हराम...”
“गुस्सा काबू में कीजिये, जनाब ।” - मैं बोला - “डिसिल्वा ने श्यामला का कत्ल नहीं किया था ।”
उसके जोशोजुनून को ब्रेक लगी । डिसिल्वा पर झपटने को तत्पर वो ठिठका ।
“वो मुश्क सिर्फ ये साबित करती है कि उस रात डिसिल्वा के भी पांव श्यामला की कोठी में पड़े थे ।” - मैं डिसिल्वा की तरफ घूमा - “क्यों गये थे वहां ?”
“सार्थक को त्योहार की बधाई देने गया था ।” - डिसिल्वा दबे स्वर में बोला - “इतना दिल से बधाई देने गया था कि उसकी नैशनल ड्रैस पहन कर गया था । सोचा था खुश होगा ।”
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“नेशनल ड्रैस यानी नेपाली टोपी । कालर वाला, घुटनों से ऊंचा कुर्ता, चूड़ीदार पाजामा और कोट !”
“हां ।”
“वहां क्या हुआ था ?”
“कुछ नहीं हुआ था । सार्थक नहीं था इसलिये मैं लौट आया था ।”
“तब श्यामला जिन्दा थी ?”
“हां । कालबैल के जवाब में उसी ने तो मुझे दरवाजा खोला था ! उसी ने तो मुझे बताया था कि सार्थक घर पर नहीं था !”
“और तुम दरवाजे पर से ही लौट आये थे ?”
“नहीं । भीतर तो मैं गया था । श्यामला ने इनवाइट किया था इसलिये गया था । ड्राईंगरूम में जाकर श्यामला का पेश किया पानी का गिलास भी पिया था, लेकिन वहां टिका नहीं था । लौट के आने को बोल कर वहां से चला आया था ।”
“पहुंचे कब थे वहां ? टाइम याद है ?”
“हां, याद है । साढ़े नौ के बाद । मेरे खयाल से नौ पैंतीस पर ।”
“तो” - उस पर से तवज्जो हटा कर मैं सबसे सम्बोधित हुआ - “अगर इन दोनों साहबान के बयान पर ऐतबार लाया जाये तो उस रात श्यामला का कत्ल रात साढ़े नौ और दस के बीच हुआ । पुलिस की तफ्तीश भी इस टाइम फैक्टर की तसदीक करती है ।”
यादव ने सहमति में सिर हिलाया ।
“डिसिल्वा को श्यामला जीवित मिली, धीमरे ने उसे मरी पाया, इसका साफ मतलब है कि इन दोनों के फेरों के बीच के वक्फे में वहां कातिल का फेरा लगा जिसने अपना काम किया और निकल लिया, जिसकी वहां आवाजाही किसी की निगाह में न आयी । कमला ओसवाल कहती हैं कि इन्होंने रात दस बजे के करीब सार्थक को वहां से निकल कर जाते देखा जब कि वो नेपाली पोशाक पहने था । अब हमें मालूम है कि उस रात को नेपाली पोशाक वाला विजीटर रॉक डिसिल्वा था । ये कहती हैं कि जिस शख्स को इन्होंने कोठी से कूच करते देखा था, उसीने अपनी कार से दर्शन सक्सेना की स्विफ्ट ठोकी थी । लेकिन अब हमें ये भी मालूम है कि वो हादसा धीमरे के किये हुआ था । मैडम की गवाही के मुताबिक जिस शख्स को इन्होंने कोठी से निकलते देखा था, अपनी कार में सवार होने से पहले उसने इनके डस्टबिन में कुछ डाला था जो कि बाद में स्थापित हुआ था कि एक चारभुजी नेपाली मूर्ति थी जबकि ऐसी किसी मूर्ति के वजूद की धीमरे को तो खबर ही नहीं लगी थी और डिसिल्वा की विजिट में मूर्ति का कोई रोल ही नहीं था क्योंकि श्यामला तब जिन्दा थी । मैडम की गवाही को सक्सेना साहब बाकायदा एन्डोर्स करते हैं यानी जो बतौर गवाह एक जने ने कहा, उसी को दूसरे गवाह ने अक्षरश: दोहराया । इस तमाम बातों का जो सामूहिक नतीजा निकला है वो ये है कि गवाही में कोई झोल है ।”
“क्या ?” - यादव बोला ।
“थोड़ा टाइम और दो मुझे, फिर अभी सामने आता है झोल ।”
यादव खामोश हो गया ।
मैं दर्शन सक्सेना की तरफ घूमा ।
“आप बोलिये, जनाब ।”
“मैं !” - वो हड़बड़ाया - “मैं क्या बोलूं ?”
“इस सिनेरियो में आपकी भी हाजिरी है इसलिये बनता तो है आप का बोलना !”
“मेरी हाजिरी ! खामखाह !”
“ये बात स्थापित है कि बर्ड वाचिंग आपकी हॉबी है - आपने खुद ऐसा बोला था - लेकिन आप किसी और ही तरह के बर्ड्स को वाच करते हैं ।”
“क्या बोला ?”
“अपनी कोठी के ड्राइंगरूम की फ्रेंच विंडो पर खड़े होकर दूरबीन से सामने श्यामला के घर में वाच करना आपकी हॉबी है । वाच करने को श्यामला आपको दिखाई दी या न दिखाई दी, ये जुदा मसला है लेकिन वहां की रात की आवाजाही आपको बराबर दिखाई दी जिस से आपको ये अन्दाजा हुआ कि सार्थक घर पर नहीं था और जल्दी लौटने वाला भी नहीं था । ऐसा न होता तो डिसिल्वा उसके इन्तजार में वहां रुका होता । आपको वो बड़ा अच्छा मौका लगा बर्ड वाचिंग की जगह फार दि चेंज बर्ड हैंडलिंग करने का । वो नेपालियों के त्योहार का दिन था जिसकी कि आपको भी खबर भी इसलिये वहां विजिट करने के लिये वो आपके पास भी बहाना था ।”
“कहां... कहां विजिट करने के लिये ?”
“सामने की कोठी पर विजिट करने के लिये । श्यामला के घर जाने के लिये ।”
“मैं ! मैं श्यामला के घर गया ?”
“नहीं गये ?”
“नहीं गया । रात को वहां जाने का क्या मतलब था मेरा ?”
“रात को ही जाने का मतलब था क्योंकि श्यामला घर पर अकेली थी और सार्थक जल्दी लौटने वाला नहीं था ।”
“नानसेंस !”
“आप नहीं गये थे ?”
“नहीं । नहीं गया था ।”
मैंने कुछ क्षण अपलक उसे देखा । वो विचलित न हुआ । पूरी निडरता से उसने मेरे से आंख मिलाई ।
“आप सैक्स स्तार्व्ड पर्सन हैं । जब से आपकी बीवी मरी है, यौन तुष्टि के लिये वाहियात, जलील, नाजायज हरकतें करते हैं ।”
“ये मुझ पर बेजा इलजाम है ।”
“जब आप रोहिणी रहते थे, तब की आपकी ऐसी हरकतें पुलिस के महकमे में ऑन रिकार्ड हैं । वहां आपने एक नाबालिग लड़की से बलात्कार करने की कोशिश की थी ।”
“झूठ !”
“पड़ोस की एक शादीशुदा औरत को एक्सपोज करके दिखाया था ।”
“बकवास !”
“दूरबीन से श्यामला को ताड़ने की आप की हरकत भी कोई राज नहीं है । किस किस बात से मुकरेंगे आप ! फिर मैंने पुलिस के महकमे के रिकार्ड का भी तो हवाला दिया ! पुलिस का महकमा यहां मौजूद है ।” - मैंने हाथ लहराकर एक ही एक्शन में यादव और चार सिपाहियों को कवर किया - “कनफर्म कीजिये ।”
उसने ऐसी कोई कोशिश न की ।
मैं कमला ओसवाल की तरफ घूमा ।
“मैडम” - मैं बोला - “आप का बयान है कि सोलह दिसम्बर की रात को आप शापिंग के लिये कोठी से निकली थीं जब कि आपने सार्थक को कोठी से निकल कर जाते देखा था ?”
“हां ।” - वो बोली ।
“आप बिग बाजार में शापिंग से जल्दी फारिग हो गयी थीं इसलिये भोलेनाथ के मन्दिर चली गयी थीं । और इसलिये आपको घर लौटने में दस बज गये थे ।”
“हां ।”
“भोलेनाथ का मन्दिर बिग बाजार और आप के घर के रास्ते में है ?”
“नहीं । उलटी तरफ है ।”
“आप कहती हैं बिग बाजार से आप मन्दिर गयी और फिर घर लौटीं !”
“हां ।”
“मैं कहता हूं कि आप शापिंग में लेट हो गयी थीं इसलिये मन्दिर गयी ही नहीं थीं ।”
“गलत कहते हो ।”
“कैसे गयी थीं ? अपनी कार पर ?”
“नहीं । बिग बाजार ज्यादा दूर नहीं है । वाक करके गयी थी । सर्दियों के मौसम में वाक करना मुझे अच्छा लगता है, आज कल मैं वाक का कोई मौका नहीं छोड़ती ।”
“लौटी कैसे थीं ?”
“अरे भई, मैंने बोला न, मैं आजकल के मौसम में वाक का कोई मौका नहीं छोड़ती !”
“लौटीं भी वाक करके ?”
“हां ।”
“शापिंग के सामान के साथ ?”
“और कैसे !”
“शापिंग को आप रोज जाती हैं ?”
“अरे, नहीं, भई, हफ्ता-दस दिन में एक बार ।”
“फिर तो एक बार में आप काफी सारा सामान खरीद कर लाती होंगी !”
“हां ।”
“उस रोज क्या शापिंग की थी, याद है ?”
“हां ।”
उसने साग सब्जी, बेकरी, ग्रोसरी की कई आइटमें गिनाईं ।
“ये तो काफी सामान हुआ ! तीन चार बैग भर गये होंगे ?”
“दो । बड़े वाले ।”
“तो अपनी परचेजिंग के दो बड़े बड़े बैग उठाये पहले आप मन्दिर गयीं - जो कि आप के घर से विपरीत दिशा में है - और फिर घर लौटीं ?”
वो गड़बड़ाई ।
“आप मन्दिर नहीं गयी थीं । मन्दिर की विजिट का जिक्र आपने इसलिये किया था ताकि आप अपनी लेट वापिसी को - दस बजे की वापिसी को - जस्टीफाई कर पातीं । आपका मन्दिर जाने का इरादा होता तो पहले आप मन्दिर गयी होतीं और फिर आपने बिग बाजार से अपनी खरीदारी की होती । खरीदारी के दो बड़े झोले ले कर मन्दिर जाने की कोई तुक नहीं बनती ।”
“उंह ! ये कोई झूठ बोलने लायक बात है !”
“है न ! आप अपनी लेट घर वापिसी स्थापित करना चाहती थीं ताकि आप बगल की कोठी की आवाजाही की गवाही देने से बच पातीं । आप इस बात की गवाही देने से बच पातीं कि आपने दर्शन सक्सेना को श्यामला की कोठी पर जाते देखा था क्योंकि दस बजे से पहले, बहुत पहले आप घर पर थीं । अब मेरी बात काट के दिखाइये आप ।”
उसने बेचैनी से पहलू बदला, अपने होंठों पर जुबान फेरी ।
“न सिर्फ आपने दर्शन सक्सेना को श्यामला की कोठी में दाखिल होते देखा, हसद की मारी आप उसके पीछे वहां गयीं । ...मैंने हसद की मारी बोला, उत्सुकता की मारी नहीं बोला । फर्क समझ में आया, मैडम ?”
उसने जोर से थूक निगली । अब वो साफ बद्हवास लग रही थी ।
यादव बड़े गौर से उसके चेहरे पर पैदा होने वाली हर तब्दीली नोट कर रहा था ।
“तुम” - वो फंसे कण्ठ से बोली - “मुझे क - कातिल साबित नहीं कर सकते ।”
“कब मैंने ऐसी कोशिश की ? लेकिन मेरी ये साबित करने की कोशिश बराबर है - बल्कि दावा है - कि कत्ल के वक्त आप मौकायवारदात पर मौजूद थीं । अब आप खुद बतायेंगी कि असल में क्या हुआ था या मैं अपना अन्दाजा पेश करूं ?”
वो खामोश रही ।
koushal
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Re: Thriller इंसाफ

Post by koushal »

“यानी जो कहना है, मुझे ही कहना होगा । तो सुनिये । इस बात की तो मुझे गारन्टी है कि हवस का मारा दर्शन सक्सेना उस रात श्यामला को घर में अकेली जानकर उसकी कोठी में घुसा था । ये जुर्रत इससे इसकी इस खुशफहमी ने करवाई थी कि श्यामला को मालूम था कि वो अपनी कोठी की फ्रेंच विंडो से दूरबीन के सहारे उसे ताड़ता था और वो इस को रिझाने के लिये घर में नंगी फुंगी फिरती थी, यानी खास इसको रिझाने के लिये अपने जवान जिस्म की नुमायश करती थी । और जो स्वेच्छा से ऐसा कर सकती थी वो कुछ भी कर सकती थी, इसे करने दे सकती थी । इसी खुशफहमी का मारा ये उस रात श्यामला के सिर पर जा खड़ा हुआ । इसने श्यामला से जोर जबरदस्ती की और जब ये उसके साथ बद्फेली करने को आमादा था तो ऊपर से मैडम - कमला ओसवाल - वहां पहुंच गयी । मैडम का सक्सेना से प्रेम सम्बंध स्थापित था, लिहाजा इन्हें सक्सेना का किसी दूसरी औरत पर आशना होना भला क्योंकर गवारा होता ! गुस्से में मैडम उन दोनों में दखलअन्दाज हुईं तो सक्सेना आगबबूला हो उठा । इसको भड़काने को तो यही बात काफी साबित हुई होगी कि इसके रंग में भंग डालने के लिये ऐन मौके पर मैडम वहां आन धमकी थीं । मैडम की दखलअन्दाजी से ही वहां ऐसा कुछ हुआ कि नौबत श्यामला के कत्ल तक पहुंच गयी ।”
“इन्होंने मुझे मारने की कोशिश की थी ।” - कमला ओसवाल एकाएक फट पड़ी - “पहले इन्होंने मुझे जुबानी धमकी दी थी कि मैं वहां से दफा हो जाऊं । मैं न मानी तो ये नेपाली चारभुजी मूर्ति उठा कर मुझे मारने दौड़े । श्यामला ने बीच बचाव करने की कोशिश की तो उसकी बद्किस्मती कि जो वार मेरे पर होना था, वो उस पर हुआ । मूर्ति श्यामला की खोपड़ी से टकराई और वो वहीं ढ़ेर हो गयी ।”
सक्सेना ने बीच में बोलने की कोशिश की लेकिन यादव ने कड़क कर उसे चुप करा दिया ।
“आप कत्ल की गवाह हैं ।” - मैं बोला ।
“बद्किस्मती से ।” - वो सिर झुकाये बोली - “नहीं बनना चाहती थी लेकिन बन गयी । मैंने तो सपने में भी नहीं सोचा था कि नौबत वहां खून खराबे तक पहुंच जाने वाली थी, वहां मेरी ही जान पर आ बनने वाली थी । वो तो तकदीर ने मुझे बचाया वर्ना श्यामला की जगह मैं वहां मरी पड़ी होती ।”
“फिर ?”
“फिर क्या ! इन्होंने मुझे मजबूर किया कि मैं उस बाबत खामोश रहूं ।”
“झूठी गवाही के लिये भी इन्होंने ही मजबूर किया ?”
“हां । कहते थे पुलिस का फोकस किसी दूसरे पर बनेगा तो उनकी किसी और की तरफ तवज्जो ही नहीं जायेगी ।”
“जैसे कि खुद उनकी तरफ ?”
“हां ।”
“बलि का बकरा सार्थक को ही क्यों चुना ? आप दो और जनों के मौकायवारदात पर फेरे की भी तो गवाह थीं !”
“सार्थक की बीवी से अनबन, तकरार इलाके में मशहूर थी । इनको बतौर कातिल प्रोजेक्ट करने के लिये वो बेहतर कैंडीडेट लगा था ।”
“एक बेगुनाह को यूं फंसाते आप का दिल न लरजा ?”
“मैं मजबूर थी । इनकी धमकी की तलवार मेरे सिर पर लटक रही थी । इन्होंने मुझे वार्न किया था कि श्यामला के साथ जो इतफाकन हो गया था, उस बाबत मैंने अपनी जुबान खोलने का खयाल भी किया तो ये मुझे जान से मार डालेंगे । ऐसे में कैसे मैं इनके सिखाये मुताबिक गवाही देने से इंकार कर सकती थी !”
“बहरहाल आप कत्ल की चश्मदीद गवाह थीं, आप कातिल से वाकिफ थीं, फिर भी आप खामोश रहीं !”
“वजह मैंने बताई तो है ! इनकी वजह से मैं खामोश रही लेकिन तब भी तो इनकी तसल्ली न हुई !”
“क्या मतलब ?”
“उस वारदात की बाबत मैंने अपने होंठ सी लिये थे फिर भी इन्होंने मेरा मुंह हमेशा के लिये बन्द करने की कोशिश की । अपनी टैक्नीकल एक्सपर्टाइज से मेरी कोठी पर डिलेड एक्शन इलैक्ट्रिक शार्ट सर्कटिंग का ऐसा इंतजाम किया कि कोठी को आग लगती और मैं भी उस में जल कर भस्म हो जाती । ये इस बात से बाखूबी वाकिफ थे कि मुझे अनिद्रा की बीमारी थी जिसकी वजह से मैं रात को नींद की गोली खा के सोती थी । यानी कोठी में आग भड़कती तो उसके हवाले मैं कोठी में ही स्वर्ग सिधार गयी होती ।”
“बच कैसे गयीं ?”
“क्योंकि उस रात घर पर मैंने सोना ही नहीं था । उस रात मैंने जयपुर जाना था । ये बात इलाके में काफी लोगों को मालूम थी लेकिन इत्तफाक से इनको नहीं मालूम थी वर्ना ये मेरी मौत का कोई और इन्तजाम करते ।”
“जयपुर गयीं कैसे आप ? ...सॉरी ! जातीं कैसे आप ?”
“इण्डिया गेट के करीब बीकानेर हाउस है, वहां से रात को एयर कंडीशंड वोल्वो चलती है । मेरी उसमें सीट बुक थी ।”
“यानी अपनी कार में आपने बीकानेर हाउस तक ही जाना था, आगे जयपुर आप बस में जातीं ?”
“हां ।”
“कार वहां छोड़ के ?”
“हां । बुकिंग कराते वक्त मैंने पता कर लिया था कि कार वहां छोड़ना सेफ था ।”
“आई सी । लेकिन जयपुर गयीं तो नहीं आप ?”
“क्योंकि वहां जाना मुझे सेफ न लगा । आग की घटना में ये बात सामने आ के रहनी थी कि जिसकी कोठी में आग लगी थी, वो उसी रात जयपुर लिटरेरी फैस्टीवल अटैण्ड करने के लिये जयपुर गयी थी । मुझे अन्देशा था कि ये मुझे वहां ट्रेस कर सकते थे और उस बार मेरे कत्ल की जो कोशिश नाकाम हो गयी थी, ये उसे - इस बार कामयाबी से - फिर दोहरा सकते थे ।”
“इसका तो ये मतलब हुआ कि दिल्ली से बस की रवानगी से पहले ही आप को अपनी कोठी में लगी आग की खबर लग गयी थी !”
“हां !”
“कैसे लगी ?”
“ब्लॉक के एक नेबर ने फोन किया ।”
“आई सी । तब आपने जयपुर न जाने का और कुछ अरसा आल हैवन हालीडे रिजार्ट में अज्ञातवास का फैसला किया ?”
“हां ।”
“पुलिस की शरण में जाने का खयाल न आया ?”
“आया, लेकिन जाने की हिम्मत न हुई । इनका खौफ बुरी तरह से मेरे पर हावी था ।”
“ओह !”
“लेकिन हमेशा तो मैं रिजार्ट में छुपी नहीं रह सकती थी ! आखिर तो जाती ही लेकिन फिलहाल मुझे इन्तजार इस बात का था, उम्मीद इस बात की थी कि इनकी करतूत किसी और तरीके से पुलिस पर उजागर हो जाती, ये गिरफ्तार होते और इनकी धमकी की तलवार मेरे सिर पर से हट जाती ।”
“आपकी उम्मीद पूरी हुई ।”
वो खामोश रही ।
“देवली में आप के नाम तीस फ्लैट हैं, इतनी प्रापर्टी खरीदने के लिये आपके पास पैसा कहां से आया ?”
उसने हड़बड़ा कर सिर उठाया, एक गुप्त निगाह परमार पर डाली ।
मुझे ऐसा लगा जैसे परमार ने उसे कोई गुप्त इशारा किया हो ।
“इस सवाल का जवाब” - यादव कठोर स्वर में बोला - “मैं भी सुनना चाहता हूं ।
“पुलिस को इस बात से कोई मतलब नहीं होना चाहिये ।” - वो तनिक दिलेरी दर्शाती बोली ।
“इंकम टैक्स को तो होना चाहिये ! होगा ।”
“कैसे होगा ?”
“हम खबर करेंगे तो होगा । आपके इतने साधन हमें नहीं दिखाई देते कि आप इतनी प्रापर्टी खरीद सकें । ये यकीनन बेनामी की खरीद है । आप को असल फाइनांसर का राज खोलना ही पड़ेगा ।”
असहाय भाव से उसने फिर परमार की तरफ देखा ।
“वो राज किसी से छुपा नहीं है ।” - मैं बोला - “बेनामी परचेजर उस शख्स के सिवाय और कोई नहीं हो सकता जिसने हाल ही में उस इलाके में पिच्चानवे मकान और खरीदे हैं । और वो पिच्चानवे ही जरूरी नहीं कि तमाम के तमाम उसी शख्स के नाम हों । बेनामी खरीद में उसको ओब्लाइज करने वाले कमला जी जैसे और लोग भी हो सकते हैं ।”
परमार हड़बड़ाया ।
“जब मुझे मालूम हुआ था कि कमला जी के नाम देवली में एक नहीं, दो नहीं, तीस मकान थे तो इतना तो मेरी समझ में तभी आ गया था कि ये बेनामी खरीद का मामला था और वो खरीद परमार साहब के लिये की गयी थी । ये इस सिलसिले में किसी दुबई के बड़े बिल्डर से अपने टाई अप का हवाला देते हैं । वो वजह भी हो सकती है लेकिन मुझे इनकी आनन फानन बेनामी खरीद की कोई और ही वजह जान पड़ती है ।”
परमार ने बेचैनी से पहलू बदला ।
“और कौन सी वजह ?” - यादव बोला ।
“और वजह डिमानेटाइजेशन है जो आठ नवम्बर को मोदी सरकार ने एकाएक लागू की और दो नम्बर का धंधा करने वाले व्यापारियों में - जिनमें बिल्डर सबसे आगे हैं - तहलका मचाया । अपने रूलिंग पार्टी के रसूख वाले नेता और सांसद साले साहब के जरिये जरूर डिमानेटाइजेशन की खबर इन्हें पहले लग गयी थी और पैनिक में आकर इन्होंने अपना दो नम्बर का पैसा बेनामी खरीद में अनलोड करना शुरू कर दिया था । प्रॉपर्टी की आनन फानन बेनामी खरीद के लिये पूरे भरोसे के लोग इन्हें मिल नहीं पा रहे थे, इसी वजह से कमला जी के नाम तीस मकान थे । इसी वजह से ऐसी खरीद की ढ़ंकी छुपी पेशकश सार्थक की मां अहिल्या बराल को भी हुई थी जो कि किसी सिरे नहीं चढी थी क्योंकि वृद्धा इन का हिन्ट नहीं पकड़ पायी थी ।” - मैं परमार की तरफ घूमा - “सर, शार्टली यू विल हैव ए लॉटे टु एक्सप्लेन ।”
“देखेंगे ।” - लापरवाही जताता परमार बोला ।
“इस बार आपके सांसद साले साहब शायद आपकी कोई मदद न कर सकें । अपनी बीवी के कत्ल के मामले में नेता जी को भी बहुत जवाबदारी करनी होगी । खुद अपनी दुश्वारी से दो चार होते नेता जी मुझे नहीं लगता कि आपकी दुश्वारी की तरफ तवज्जो दे पायेंगे ।”
“बोला न, देखेंगे ।” - वो झुंझलाता - “अब बन्द करो ।”
“जो हुक्म ।”
खामोशी छा गयी ।
यादव की निगाह पैन होती तमाम चेहरों पर फिरी और फिर दर्शन सक्सेना पर टिकी ।
“मिस्टर सक्सेना !” - वो बोला - “श्यामला के कत्ल के इलजाम में मैं तुम्हें गिरफ्तार करता हूं ।”
“वो एक हादसा था ।” - सक्सेना कातर भाव से बोला - “मेरी ऐसी कोई मंशा नहीं थी ।”
“कोई काबिल वकील ऐंगेज करना, वो हादसा साबित कर सका तो सजा काफी कम होगी । फिलहाल गिरफ्तारी नहीं टल सकती ।”
“और, सर” - यादव उठ खड़ा हुआ और परमार से मुखातिब हुआ - “आपकी खातिर बाद में होगी, जैसे एमपी साहब की खातिर बाद में होगी । निगम साहब नेता हैं, उनकी खातिर में शायद कोई कमीबेशी हो जाये लेकिन आपके साथ ऐसा नहीं होगा । जय हिन्द !”
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