Thriller इंसाफ

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koushal
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Re: Thriller इंसाफ

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उपसंहार
वस्तुत: किसी के साथ कुछ न हुआ ।
सिटिंग एमपी के मामले में पुलिस की मजबूरी बड़ी शिद्दत से उजागर हुई । नेता ने अपनी बीवी के कत्ल में अपने किसी रोल से सरासर इंकार किया जो इसलिये चल गया कि रॉक डिसिल्वा ने नेता के खिलाफ मुंह न खोला । आखिरी दम तक सिल्वेरा ने ये जिद न छोड़ी कि संगीता निगम के कत्ल से उसका कोई लेना देना नहीं था ।
रात के वक्त नेता की कोठी पर क्यों गया था ?
उसकी कोई पर्सनल प्राब्लम थी जो नेताजी दिलचस्पी लेते तो हल हो सकती थी । वो प्राब्लम डिसकस करने के लिये ही वो नेताजी से मिलने गया था ।
बाथरूम में सिगार की गन्ध ! पुर्तगाली सिगार का रैपर !
वो उस बारे में कुछ नहीं जानता था । जरूर असली कातिल ने उसे सैट करने की कोशिश की थी, और इस कोशिश के तहत उसने सिगार का रैपर वहां प्लांट किया था और सिगार की गंध फैलाई थी ।
सिक्योरिटी गार्ड ने रात को उसे कोठी से रुखसत होते क्यों नहीं देखा था ?
क्योंकि वो नेताजी ने साथ उन की निजी बीएमडब्ल्यु कार में था जिसे वो खुद ड्राइव करते कहीं जाने के लिये कोठी से निकले थे और उन्होंने उसे लिफ्ट दी थी । वो इतने बड़े आदमी की बराबरी नहीं कर सकता था इसलिये नेताजी के साथ पैसेंजर सीट पर बैठने की जगह पीछे बैठा था और इस वजह से रात के वक्त वो गार्ड को नहीं दिखाई दिया था ।
यानी उसके पास हर बात का जवाब था, बाकी काबिल वकील पर निर्भर करता था जिसका इन्तजाम जाहिर था कि नेता खुशी खुशी करके देता । डिसिल्वा ने नेता का उम्दा बचाव किया था तो इतना तो नेता का उसके लिये करना बनता था ।
बहरहाल डिसिल्वा के खिलाफ एफआईआर में नेता का कोई जिक्र नहीं था और एफआईआर जैसे ढुलमुल तरीके से तैयार की गयी थी, उसके तहत डिसिल्वा का कोर्ट से सन्देहलाभ पाकर छूट जाना महज वक्त की बात थी ।
बेनामी खरीद के सिलसिले में पुलिस के इकानमिक आफेंसिज विंग ने अमरनाथ परमार पर केस दर्ज किया था जिसका सैटलमेंट किसी जुर्माने पर जाकर ही खत्म होना था जो कि परमार भर सकता था ।
यानी दो बड़े आदमियों के खिलाफ जो दो बड़े केस खड़े होते यादव को दिखाई देते थे, वो गीला पटाखा साबित हुए ।
मैं यादव की नस नस से वाकिफ था इसलिये मुझे पूरा पूरा शक था कि उसे भी कोई मोटी रिश्वत चढ़ाई गयी थी ।
सोमवार को ही सार्थक के खिलाफ दर्ज केस खारिज हो गया, उसे कत्ल के इलजाम से बाइज्जत बरी कर दिया गया और जमानत राशि की तुरन्त वापिसी का हुक्म सुना दिया गया ।
‘सार्थक को इंसाफ दो’ कमेटी तो उसकी रिहाई से ही भंग हो गयी लेकिन फिर एक ‘इंसाफ दो’ ट्रस्ट खड़ा किया गया जिसमें वो जमानत राशि जमा करा दी गयी ताकि वो आइन्दा सार्थक जैसे बेगुनाहों को इंसाफ दिलाने के काम आती ।
दर्शन सक्सेना अपना अपराध तो तभी कबूल चुका था जब उसने कहा था - ‘वो एक हादसा था, मेरी ऐसी कोई मंशा नहीं थी’, उसने बाद में विधिवत् भी अपना इकबालिया बयान दर्ज कराया । पुलिस ने उस का लिहाज किया कि उसके खिलाफ गैरइरातदन कत्ल का केस दर्ज किया । उसमें भी मुझे कोई इंस्पेक्टर यादव की ही कलाकारिता दिखाई दी । यानी ऐसा करने के लिये उसने दर्शन सक्सेना से भी रिश्वत खायी हो सकती थी । आखिर उसके सामने पुत्र जन्म की बड़ी पार्टी का बड़ा खर्चा खड़ा था ।
दर्शन सक्सेना के इकबालिया बयान से ही ये बात भी उजागर हुई कि कमला ओसवाल भी - जो खुद को हालात की मारी बताकर हमदर्दी बटोर रही थी - कुछ कम नहीं थी, विषम परिस्थितियों में भी उसे अपनी खुद की रोटियां सेंकना बराबर सूझा था । उसने सक्सेना से बाकायदा अपनी खामोशी की कीमत की मांग की थी, और कीमत थी कि वो तुरन्त उससे शादी करे जिसके लिये कि सक्सेना तैयार नहीं था । कमला ओसवाल की ब्लैकमेल जैसी शादी की धमकी ने भी उसे कमला का मुंह सदा के लिये बन्द करने का सामान करने के लिये प्रेरित किया था ।
सोमवार शाम को स्पैशल कूरियर द्वारा प्रेषित एक लिफाफा मुझे मिला जिसमें एडवोकेट महाजन के थैंक्यू नोट के साथ यूनीवर्सल इनवैस्टिगेशंस के नाम एक लाख रुपये का चैक था ।
यानी वकील साहब ने मेरी फीस डबल कर देने का अपना वादा पूरा किया था ।
संगीता के चौथे के - जिसमें क्रिया भी शामिल थी - एक दिन बाद शाम को एक टीवी ब्रॉडकास्ट में नेता उचरता दिखाई दिया :
“आप लोग जानते हैं कि मेरी पत्नी के असामयिक देहावसान के बाद से पिछले चन्द रोज मुझ पर बहुत भारी गुजरे हैं । उस दौरान मुझे बार बार इस अहसास ने झकझोरा कि एक पब्लिक सर्वेंट के जीवन में ऐसा वक्त आता है जब कि उसका जीवन देश को समर्पित होता है । वो सिर्फ खुद के लिये ही जवाबदेय नहीं होता उन वोटरों के लिये भी जवाबदेय होता है जो उसे चुन कर ससंद में भेजते हैं । इसलिये मैं समझता हूं कि मेरा अपनी सांसद की सीट से इस्तीफा देना मेरी खुदगर्जी है जिन जिम्मेदारियों को निभाने के लिये जनता ने मुझे चुना है उनसे मुहं मोड़ना है । मेरा अपनी व्यक्तिगत त्रासदी को जनता की अपेक्षाओं से विमुख होने का निमित्त बनाना मेरी नादानी है । मैंने अपनी पत्नी से विमुख होने की गलती की तो अपनी सजा के तौर पर मुझे उसका मरा मुंह देखना पड़ा अब मैं अपने समर्थकों से विमुख होऊंगा तो वो मेरी और भी बड़ी गलती होगी बल्कि एक अक्षम्य अपराध होगा, बाद में जिसकी तलाफी मुमकिन न होगी । लिहाजा अपने समर्थकों के प्यार और दुलार की कद्र करते हुए उनके प्रबल विरोध के आगे नतमस्तक होते हुए मैं सक्रिय राजनैतिक जीवन से सन्यास लेने का अपना फैसला वापिस लेता हूं और देश के लिये राजनीति में जीवन प्रयन्त सक्रिय रहने का संकल्प लेता हूं । अपने समर्थकों, प्रशंसकों, शुभचिन्तकों, वोटरों की मेरे से अपेक्षाओं को मान देते हुए मैं बतौर सांसद अपना इस्तीफा वापिस लेता हूं और अपना संकल्प दोहराता हूं कि मैं जीवन की आखिरी सांस तक जनता की सेवा करूंगा । जय हिन्द !”
समाप्त
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