Thriller इंसाफ

Post Reply
koushal
Pro Member
Posts: 2839
Joined: 13 Jun 2016 18:16

Re: Thriller इंसाफ

Post by koushal »

सार्थक को एम्बुलेंस पर हस्पताल रवाना कर दिया गया ।
लेकिन पहले पुलिस ने उसका समरी बयान रिकार्ड किया जिसकी बिना पर फौरन विशू मीरानी और माधव धीमरे को हिरासत में ले लिया गया जिसका अमरनाथ परमार ने भारी विरोध किया लेकिन यादव के सामने उसकी न चली । उसने उस सन्दर्भ में अपने साले एमपी आलोक निगम का नाम उछाला लेकिन यादव टस से मस न हुआ ।
परमार व्यापारी था, दिल्ली का वासी था, फिर भी नादान था । उसने यादव से वो जुबान न बोली जो वो बेहतर समझता था, बल्कि बेहतरीन समझता था । यादव रिश्वतखोर पुलिसिया था जो रिश्वत कबूलने को बड़ी बेशर्मी से ये कह कर जस्टीफाई करता था कि उस की छ: बेटियां थीं ।
परमार नादान नहीं था तो जरूर उसे अपने सांसद साले की ताकत का गुमान था जो आता और सब सैट कर देता - जिसे वहां पहुंचने के लिये दो फोन लगा भी चुका था - या उसे मीरानी और धीमरे की - खासतौर से धीमरे की क्योंकि वो क्लब का मुलाजिम था - उतनी परवाह नहीं थी जितनी कि वो जाहिर कर रहा था ।
यादव को परमार ने फिर भी इतना जरूर मना लिया कि जब तक सांसद आलोक निगम वहां न पहुंचे, उन दोनों को गिरफ्तार करके वहां से न ले जाया जाये ।
मीरानी और धीमरे को जब पता लगा कि उन की यूं हिमायत हो रही थी तो उन्होंने अपने होंठ सी लिये और जिद की कि वो अपना बयान अपने वकील की मौजूदगी में देंगे जब कि उन्हें नेता का भी बहुत उम्मीदअफजाह इन्तजार था ।
उस तमाम अफरातफरी में दस बज चुके थे ।
मैंने रजनी को कैब बुला कर घर भेज दिया था और खुद यादव से चिपका हुआ था ।
यादव की ड्रिंक्स डिनर में अब कोई दिलचस्पी नहीं रही थी, अब उसका मिजाज पक्के पुलिसिये वाला बन गया हुआ था ।
मैं यादव के साथ क्लब के आफिस कम्पलैक्स के एक कमरे में मौजूद था ।
“क्या खयाल है” - मैं सहज भाव से बोला - “वो दोनों बयान देंगे ?”
“उनका बाप भी देगा ।” - यादव पूरे यकीन के साथ बोला ।
“अगवा का गुनाह कबूल करेंगे ?”
“छोकरे को तहखाने में बन्द करके मुश्के कसके रखा हुआ था, कैसे नहीं कबूल करेंगे ? छोकरे ने साफ उनके नाम लिये है, कैसे मुकरेंगे !”
“उन्होंने ये काम अपने लिये तो किया नहीं होगा !”
“अपने लिये भी किया हो सकता है लेकिन जो किया किसी दूसरे के हुक्म पर किया, इसकी सम्भावना मुझे ज्यादा लगती है ।”
“नाम लेंगे ये दूसरे का ?”
“नहीं लेंगे तो नर्क का नजारा होगा उन्हें । उस दिन को कोसेंगे जिस दिन उनकी माओं ने उन्हें पैदा किया ।”
“ओह !”
“एक बात की तुम्हें खबर नहीं लगी होगी, दर्शन सक्सेना इत्तफाक से यहां था ।”
“यहां ! यहां कहां ? टूर्नामेंट के इनाग्रल फंक्शन में ?”
“नहीं, क्लब में । मेम्बर है यहां का । अक्सर आता है ।”
“आई सी ।”
“उसे रोक लिया गया है ।”
“वजह ?”
“तुम हो ।”
“मैं ?”
“हां तुम्हीं ने उसकी बाबत कुछ ऐसी बातें कहीं कि कई प्वायंट्स पर मुझे उससे एक्सटेंसिव पूछताछ जरूरी लगने लगी । फिर मैंने खामोशी से उसकी पड़ताल भी तो करवाई !”
“यादव साहब, जरा खुल के बात करो न ! आप तो मुझे सस्पेंस में डाल रहे हैं ।”
“कोई सस्पेंस नहीं है । है तो दूर करता हूं । सुनो । मुझे भी ये बात जंच नहीं रही थी कि आग सुलगी सिग्रेट की वजह से लगी थी । इस वजह से आग के बारे में तुमने जो सम्भावना जाहिर की थी, उसमें मैंने गहरा पैठने का फैसला किया था । बड़े टैक्नीलकल एक्सपर्ट्स को बुलाया गया था जिन्होंने अपनी स्पेशल नालेज के जेरेसाया बारीक तफ्तीश की थी तो कनफर्म हुआ था कि आग बिजली के शार्ट सर्कट से लगी थी और शार्ट सर्कट पिछवाड़े के बरामदे की दीवार पर लगी मीटरों की कैबिनेट में हुआ था ।”
“यानी मेरी कही बात की तसदीक हुई !”
“तेरी कही से ज्यादा तसदीक हुई । हमारे एक्सपर्ट्स का कहना है कि शार्ट सर्कट हुआ नहीं था, जानबूझ कर, चतुराई से, दक्षता से तारों के साथ यूं छेड़ाखानी की गयी थी कि शार्ट सर्कट होता ही होता । शर्मा, शार्ट सर्कट वाली बात तू भी कहता था...”
“लेकिन तब तुम्हारे मिजाज में नहीं आयी थी ।”
“बकवास न कर । और जो मैं कहता हूं वो सुन । करारी बात है ।”
“सुन रहा हूं ।”
“हमारे एक्सपर्ट्स का कहना है कि उस शार्ट सर्कट में भी एक खूबी थी जो साफ जाहिर करती थी कि वो किसी माहिर का काम था । वो शार्ट सर्कट ऐसे तैयार किया गया था कि स्लो मोशन में काम करता । यूं कि तारें काफी देर तक मामूली तौर पर सुलगती और उन का सुलगना फिर उग्र होता और इमारत को आग लगने की वजह बनता ।”
“कमाल है !”
“केस से ताल्लुक रखता एक शख्स है हमारी निगाह में जो ये कमाल करने में सक्षम है ।”
“दर्शन सक्सेना ! क्योंकि वो क्वालीफाइड इलैक्ट्रिकल इंजीनियर है !”
“एग्जैक्ट्ली ।”
“उसकी बाबत एक बात मैं भी कहना चाहता हूं जो कि शायद तुम्हारे किसी काम की हो ।”
“कौन सी बात ?”
“वो नौकरी छोड़ रहा है ।”
“अच्छा !”
“हां । पक्की खबर है ये । उसका इस्तीफा मंजूर हो भी चुका है ।”
“कमाल है ! नौकरी क्यों छोड़ रहा है ?”
“जवाब इतना मुश्किल तो नहीं है !”
“कहीं खिसक जाने की फिराक में है ?”
“या कहीं बेहतर नौकरी मिल गयी ।”
“मालूम पड़ जायेगा लेकिन अभी तू उसकी बाबत मेरी बाकी की बात सुन । वो क्या है कि शार्ट सर्कट को लेकर एक बार फिर मेरी उसकी तरफ तवज्जो गयी तो मैंने यूं ही पुलिस रिकार्ड में चैक किया कि क्या कहीं उसका जिक्र था ! आजकल ये सारा रिकार्ड कम्प्यूटइज्ड है और रिजनल क्राइम रिकार्ड ब्यूरो के मास्टर कम्प्यूटर में है जिसको हम भी अप्रोच कर सकते हैं । मैंने उसको लेकर ऐसा किया तो वांछित जानकारी चुटकियों में सामने आ गयी ।”
“मतलब !” - मैं सम्भल कर बैठा - “उसका पुलिस रिकार्ड था ?”
“हां ।”
“कैसा रिकार्ड ? क्या किया था उसने ?”
“शर्मा, ये आदमी पहले रोहिणी में रहता था । वहीं चार साल पहले उसकी बीवी की टाइफायड से मौत हुई थी और वो अकेला पड़ गया था । बीवी की मौत के एक साल बाद यानी तीन साल पहले उसने पड़ोस की एक सोलह साल की नाबालिग लड़की से बलात्कार की कोशिश की थी लेकिन कामयाब नहीं हो सकता था । लड़की को चीखने चिल्लाने से नहीं रोक सका था इसलिये भागते ही बनी थी । बाद में जब लड़की का बयान हुआ था तो उसने पड़ोसी दर्शन सक्सेना का नाम तो लिया था लेकिन उसकी ठीक से शिनाख्त नहीं कर पायी थी । वो गिरफ्तार हुआ था लेकिन जल्दी ही सन्देहलाभ पाकर छूट गया था । तब इलाके में कुछ और भी खुसर पुसर हुई थी जिसने उसका वहां रहना मुहाल कर दिया था ।”
“कैसी खुसर पुसर ?”
“आस पड़ोस की औरतों को ताड़ता था । किसी की अपने घर से उसके फ्लैट की तरफ तवज्जो हो तो खिड़की में अपना अदद निकाल कर खड़ा हो जाता था ।”
“तौबा !”
“ये बातें खुसर पुसर में ही थीं, किसी ने इस बाबत कोई रपट दर्ज कराने की हिम्मत नहीं की थी लेकिन पड़ोसियों की खास ओपीनियन उसकी बाबत ऐसी हो गयी थी कि हर कोई उसके साथ अछूत की तरह पेश आने लगा था । एकाध गर्म मिजाज मर्द ने उसको सुना के ऐसी घोषणा की थी कि उसकी बीवी के साथ ऐसी हरकत करके दिखाये, हाथ पांव तुड़ाये बिना नहीं बचेगा । तब सक्सेना का वहां से कूच करते ही बना था ।”
“रोहिणी से मोतीबाग शिफ्ट कर लिया ?”
“हां ।”
“वो कोठी खरीदने की हैसियत थी उसकी ?”
“भई, खरीदी थी तो थी ही ! दूसरे, सुना है रोहिणी वाला फ्लैट काफी बड़ा था, काफी कीमती था । ऊपर से उसकी बीवी की हैवी अमाउन्ट की लाइफ इंश्योरेंस थी । फिर आजकल प्रापर्टी की परचेज के लिए फाइनांस मिलना भी कोई खास मुश्किल काम नहीं ।”
“ठीक ।”
koushal
Pro Member
Posts: 2839
Joined: 13 Jun 2016 18:16

Re: Thriller इंसाफ

Post by koushal »

“उसके इतने गुण सामने आने पर स्वाभाविक तौर पर मैंने उसके सन्दर्भ में उसके घर के सामने हुए कत्ल पर विचार किया, श्यामला के कत्ल के केस में बतौर मर्डर सस्पैक्ट उसके नाम पर विचार किया ।”
“कातिल वो ?”
“सैक्सुअली फ्रस्ट्रेटिड लोग कोई सुधर नहीं जाते । उम्र बढ़ने के साथ साथ उन की वल्गर, वाहियात आदतें और मजबूत होती जाती हैं । क्या पता उसने श्यामला के साथ भी कोई करतूत की हो जिसका अंजाम कत्ल तक पहुंचा हो !”
“श्यामला का कातिल दर्शन सक्सेना !”
“क्या पता ! जब वो लड़का पुकार पुकार कर कहता है कि उसने कत्ल नहीं किया, जब जन्तर मन्तर पर धरने पर बैठे उसके हमदर्दों का जोर उसकी बेगुनाही पर है तो बतौर कातिल कोई दूसरा आल्टरनेटिव होना तो चाहिये न !”
“वो दूसरा आल्टरनेटिव दर्शन सक्सेना !”
“वर्किंग आल्टरनेटिव । आगे की आगे देखेंगे ।”
“क्या देखोगे आगे ?”
“जो दिखाई देगा ?”
“भई, पुलिस वाले हो, उसकी बाबत जेहन में अभी भी तो कुछ होगा !”
“है ।”
“क्या ? आल्टरनेटिव का आल्टरनेटिव ?”
“हां ।”
“कौन ?
“कमला ओसवाल ।”
“क्या ! वो भी ?”
“उससे ताल्लुक रखती एक शुबह वाली बात सामने आयी है ।”
“क्या ?”
“उसके बारे में मालूम पड़ा था कि वो जयपुर लिटरेरी फैस्टिवल में गयी थी । इस सिलसिले में हमने जयपुर पुलिस से मदद मांगी थी । वहां से रिपोर्ट आयी है कि वो वहां नहीं पहुंची । तब हमने रेलवे बुकिंग चैक करवाई । जयपुर के लिये किसी नाइट ट्रेन में उसकी बुकिंग नहीं पायी गयी । अब ये न कहना कि जयपुर के लिये बाई रोड निकल ली होगी ।”
“मैं यही कहने लगा था ।”
“एक अकेली औरत का इस मौसम में खुद कार ड्राइव करके जयपुर के लिये निकलना खुदकुशी करने के बराबर है ।”
“ठीक ! लेकिन वो तो गवाह है सार्थक के खिलाफ !”
“दर्शन सक्सेना भी है । इसलिये मैंने दोनों को वैकल्पिक हत्यारा माना । अगर एक की गवाही में झोल हो सकता है तो दूसरे की भी में भी हो सकता है ।”
“हूं ।”
“फिर सार्थक का अगवा भी मुझे ये सोचने पर मजबूर करता है कि शायद वो बेगुनाह हो, उसने अपनी बीवी का कत्ल न किया हो !”
“यादव साहब, सार्थक के लिये आप की नयी सोच वैलकम है लेकिन कमला ओसवाल कातिल नहीं है ।”
“तेरे को क्या पता ?”
“मेरा ऐसा अन्दाजा है ।”
“क्या कहने तेरे अन्दाजे के !”
“मेरी सोच, मेरी समझ कहती है कि वो कातिल नहीं है लेकिन वो जानती है कि कातिल कौन है !”
“जानती है । और बताती है । सार्थक है कातिल ।”
“आप सुनो तो !”
“सुना !”
“मेरी अक्ल कहती है कि किसी न किसी तरीके से - पैसों से या धमकी से या किसी और परसुएशन से - उसको बतौर कातिल सार्थक का नाम लेने के लिए तैयार किया गया है । या वो अपने किसी निजी स्वार्थ के तहत असल कातिल पर से फोकस हटाने के लिये सार्थक का नाम ले रही है ।”
उसने मुंह बाये मेरी तरफ देखा ।
“इसी घिचपिच में कुछ ऐसा हुआ है कि वो खुद अपनी जान को खतरा महसूस करने लगी है इसलिये कहीं जा छुपी है ।”
“कहां ! जयपुर में ?”
“अब आप खुद अपनी बात को काट रहे हैं । जब स्थापित है कि उसने रेल का सफर नहीं किया, वो खुद ड्राइव करके भी जयपुर नहीं गयी हो सकती तो कहां होगी ?”
“दिल्ली में ?”
“या आसपास । लेकिन वो दिल्ली में ही है ।”
“तुझे कैसे मालूम ?”
“गारन्टी कोई नहीं है लेकिन मैं इस केस की अपनी आधी फीस की शर्त हारने को तैयार हूं कि वो दिल्ली में है ।”
“कहां ! जब इतना ग्यानी है तो बता कहां !”
“आल हैवन हालीडे रिजार्ट में ।”
“जो महरौली गुडगांव रोड पर है ?”
“हां ।”
“कैसे मालूम ? तू ने देखा उसे वहां ?”
“देखा होता तो शर्त हारने की बात करता !”
“तो ?”
“वहां उसकी कार खड़ी देखी ।”
“कैसे मालूम कि उसकी कार थी ? नम्बर से वाकिफ था ?”
“नहीं ।”
“अरे, क्यों खपा रहा है मेरे को ?”
मैंने अपने मोबाइल में दर्ज कार की तसवीर उसे दिखाई ।
“इस तसवीर को आगे महरौली थाने में ट्रांसफर करो और वहां के स्टाफ को आल हैवन हालीडे रिजार्ट विजिट करने का हुक्म जारी कराओ । अगर कार वहां है तो वो भी वहां है ।”
“अपनी कार उसने किसी को उधार दी हो सकती है !”
“तो वो आदमी - या औरत - वहां होगा जिसने कार उधार ली । फिर वो बोलेगा कि कमला ओसवाल कहां थी !”
“जब तूने ये तसवीर खींची थी, तब तूने ही क्यों नहीं पता किया उसका ?”
“मेरे पास टाइम नहीं था । दूसरे, तब इस मामले में कोई इमरजेंसी सामने नहीं थी । तब अभी किसी ने कमला ओसवाल को बतौर मर्डर सस्पैक्ट प्रोजेक्ट नहीं किया था ।”
koushal
Pro Member
Posts: 2839
Joined: 13 Jun 2016 18:16

Re: Thriller इंसाफ

Post by koushal »

“हूं । ये तसवीर मेरे को फारवर्ड कर ।”
मैंने हाकिम के आदेश का पालन किया ।
“मैं महरौली थाने के एसएचओ को फोन लगाता हूं ।” - यादव व्यस्त भाव से बोला ।
“कमला ओसवाल वहां हो तो ऐसा इन्तजाम करना कि उसे फौरन यहां पहुंचाया जाये ।” - मैं बोला ।
“क्यों ?”
“क्योंकि केस हल होने ही वाला है ।”
“उसका हल से क्या वास्ता ! जब कि तू अभी कह के हटा है कि वो कातिल नहीं !”
“कत्ल में उसकी इनवाल्वमेंट फिर भी हो सकती है । अगर होगी तो मौजूदा हालात में अब वो उस बाबत खामोश नहीं रह पायेगी ।”
उसने कुछ क्षण उस बात पर गौर किया, फिर उसका सिर सहमति में हिला ।
फिर वो फोन से उलझ गया ।
******************************************************************
सब लोग क्लब में प्रेसीडेंट के आफिस में जमा थे ।
तब तक ग्यारह बज चुके थे, बाहर से पार्टी सिमट चुकी थी और अब वहां केटरिंग स्टाफ ही मौजूद था जो कि पैक अप में लगा हुआ था ।
दस मिनट पहले क्लब का एक वेटर यादव के पास खबर लेकर आया था कि माननीय नेता जी तशरीफ फरमा चुके थे और इंस्पेक्टर को तलब कर रहे थे ।
विशाल आफिस में प्रेसीडेंट परमार और उसके साले एमपी आलोक निगम के अलावा जो लोग मौजूद थे, वो थे :
शेफाली परमार, शरद परमार, रॉक डिसिल्वा (सिगार तब भी मुंह में ) माधव धीमरे, विशू मीरानी, और दर्शन सक्सेना ।
दर्शन सक्सेना को तब रोका गया था जबकि वो ड्रिंक्स का आनन्द लेकर वहां से रुखसत हो रहा था । पहले उसने ऐतराज जताया था लेकिन जब इंस्पेक्टर यादव का नाम लिया गया था तो उसने रुकने पर हुज्जत नहीं की थी ।
माधव धीमरे और विसू मीरानी अभी औपचारिक तौर पर गिरफ्तार नहीं किये गये थे लेकिन उस घड़ी लोकल थाने से आये दो सिपाही बड़ी मुस्तैदी से उन के सिर पर खड़े थे । अमरनाथ परमार ने बहुत फूं फा दिखाते क्लब के मैनेजर को मिल रहे उस ट्रीटमेंट पर ऐतराज किया था लेकिन यादव ने उसके ऐतराज का कोई नोटिस नहीं लिया था तो वो भुनभुनाता हुआ खामोश हो गया था ।
तब तक नेता कुछ नहीं बोला था । जाहिर था कि वो पहले हालात का जायजा लेना चाहता था और फिर अपनी हैसियत के बलबूते दखलअन्दाज होने का इरादा रखता था ।
“क्या चाहते हो ?” - परमार गुस्से से यादव से सम्बोथित हुआ - “रात की इस घड़ी क्यों यहां ये मेला लगाना जरूरी है ?”
“आप को मालूम होना चाहिये ।” - यादव शान्ति से बोला - “आपकी बेटी का कत्ल हुआ है, मैं उस केस का इनवैस्टिगेटिंग आफिसर हूं...”
“महीना होने को का रहा है श्यामला का कत्ल हुए । अभी तक तो कुछ कर न पाये !”
“अब करूंगा न !”
“ये यहां क्यों मौजूद है ?” - परमार ने खंजर की तरह एक उंगली मेरी तरफ भौंकी ।
“क्योंकि मैं यहां इसकी मौजूदगी चाहता हूं ।”
“हम नहीं चाहते ।”
“मैं चाहता हूं ।”
“क्यों ?”
“वजह अभी सामने आयेगी ।
“लेकिन...”
“मिस्टर शर्मा स्टेज ।”
परमार तिलमिलाया उसने असहाय भाव से अपने साले की तरफ देखा ।
“मिस्टर इंस्पेक्टर !” - नेता दबंग लहजे से बोला - “यू आर अज्यूमिंग टू मच अथारिटी ।”
“यस” - वो एक क्षण ठिठका, फिर बोला - “सर ।”
“वाट यस ?”
“आई एम अज्यूमिंग टू मच अथारिटी ।”
नेता हड़बड़ाया, फिर बोला - “आई विल रिंग पुलिस कमिश्नर ।”
“प्लीज डू ।”
नेता का मुंह खुला, बन्द हुआ, उसने फोन लगाने की कोशिश न की ।
“मैंने अपने वकील को फोन किया है ।” - परमार ने बताया - “वो आता ही होगा ।”
“मैं वकील को वैलकम बोलूंगा और उससे सवाल करूंगा कि मैं तफ्तीश को यहां जारी रखूं या उसे थाने शिफ्ट करूं ?”
“तुम सबको थाने ले जा सकते हो ?”
“जी हां । एमपी साहब पर शायद मेरा जोर न चले, बाकी सब को ले जा सकता हूं ।”
“तुम ऐसा नहीं कर सकते ।” - नेता भड़का ।
“मेरे खयाल से आप कमिश्नर साहब को काल लगा ही लीजिये ।”
वो फिर खामोश हो गया ।
“आपके क्लब के परिसर से एक अगवा शख्स की बरामदी हुई है जिसको मुश्कें कस के तहखाने में बन्द करके रखा गया गया हुआ था । जहां वो बन्द था वहां की चाबी” - उसने विशू मीरानी की तरफ देखा - “इसके पास थी । मैं नहीं समझता कि ये क्लब का मुलाजिम है, लिहाजा इसके पास क्लब के एक हिस्से की चाबी होने का कोई मतलब नहीं, इसके क्लब परिसर को अगवा जैसे जघन्य अपराध का अड्डा बनाने का कोई मतलब नहीं । जो कुछ इसने किया, परमार साहब, आप उसकी जिम्मेदारी से नहीं बच सकते । कानूनी जुबान में यू आर असैसरी आफ्टर दि फैक्ट । क्या कहते हैं आप इस बारे में ?”
परमार से जवाब देते न बना ।
“जिस शख्स का अगवा हुआ था, जो यहां बन्द था, वो आप का दामाद सार्थक बराल था ।”
“वो मेरी बेटी का कातिल है ।”
“इस इलजाम से वो रिश्ता खत्म नहीं हो जाता जिसमें खुद आपकी बेटी ने आप को बांधा है ।”
“आई विल हैव नन आफ दैट । ही इज नोबॉडी टु मी । वो मेरा कोई नहीं ।”
“न सही । उसके अगवा की असैसरी आप फिर भी हैं । या नहीं हैं ?”
“इसका जवाब अभी मेरा वकील आ के देगा ।”
“मुझे मंजूर है । तब तक बाकी बात सुनिये । सार्थक की यहां गिरफ्तारी के दौरान उससे इतना बुरा सलूक किया गया था कि वो इमीजियेट हास्पिटल केस था । उसके सारे जिस्म पर मार के निशान थे और कुछ पसलियां टूटी हुई थीं । और भी अन्दरूनी चोटें उसे लगी मालूम होती थीं जिनका खुलासा उसकी मैडीकल रिपोर्ट आने पर होगा । लेकिन अहम बात ये है कि हास्पिटल ले जाये जाने से पहले उसने आपकी क्लब के मैनेजर माधव धीमरे को भी अपनी हालत के लिये जिम्मेदार ठहराया था । इस वजह से विशू मीरानी के साथ साथ माधव धीमरे भी पुलिस हिरासत में है । ऐनी प्राब्लम ?”
मीरानी और धीमरे दोनों ने आशापूर्ण निगाह से परमार और नेता को देखा । कोई कुछ न बोला तो दोनों के चेहरे लटक गये ।
“इतनी रात गये मैं यहां मौजूद हूं” - नेता बोला - “ये मेरे लिये भारी असुविधा की बात है...”
“सर, इसके लिये मैं जिम्मेदार नहीं । मैंने आपको यहां तलब नहीं किया ।”
koushal
Pro Member
Posts: 2839
Joined: 13 Jun 2016 18:16

Re: Thriller इंसाफ

Post by koushal »

“लेकिन” - परमार बोला - “मुझे तो तुमने यहां डिटेन किया हुआ है !”
“क्योंकि आप किडनैपर्स की करतूत के लिये जवाबदेय हैं जिनमें एक क्लब का मुलाजिम है और दूसरा क्लब के केटरिंग कांट्रेक्टर का मुलाजिम है । फिर ये छोटी सी जहमत है जो आपको इंसाफ की खातिर, दिल्ली पुलिस की खातिर, बर्दाश्त कर लेनी चाहिये ।”
“आगे बढ़ो ।”
“उसके लिये मुझे थोड़ा पीछे जाने की इजाजत दीजिये । पिछले महीने सोलह तारीख को आपकी बेटी श्यामला का कत्ल हुआ, कातिल उसके पति सार्थक बराल को ठहराया गया लेकिन उसको अपना गुनाह कबूल नहीं था । शहर में बहुत लोग उसकी बात पर ऐतबार लाने वाले निकल आये लेकिन न आपको उसकी बेगुनाही पर यकीन आया और न ही पुलिस को आया । फिर कल जब एमपी साहब को पत्नी संगीता निगम का कत्ल हुआ तो...”
“कत्ल !” - नेता ने तत्काल प्रतिवाद किया - “संगीता का कत्ल !”
“जी हां । आपकी पत्नी का कत्ल हुआ था ।”
“कौन कहता है ? ये” - नेता ने तिरस्कारपूर्ण भाव से मेरी तरफ देखा - “ये खुराफाती, गैरजिम्मेदार शख्स, जो...”
“सर, मुझे अपनी बात मुकम्मल करने दीजिये, फिर आप जो जी में आये, कहियेगा ।”
नेता खामोश हो गया ।
“पहले ये बात मेरे ऐतबार में आयी कि आपकी बेटी का कत्ल हुआ था, फिर आज ये बात उजागर हुई कि सार्थक बेल जम्प करके फरार नहीं हुआ था, इन दो जनों ने - माधव धीमरे और विशू मीरानी ने - उसका अगवा किया था और उसे यहां कैद करके रखा हुआ था तो...”
“बट दैट इज शियर नानसेंस !” - परमार बोला - “धीमरे आज सारा दिन मेरे साथ था ।”
“...इस सिलसिले में रिहा कराये जाने के बाद दिया सार्थक का बयान नजरअन्दाज नहीं किया जा सकता, बतौर किडनैपर्स उसकी निशानदेयी को नजरअन्दाज नहीं किया जा सकता । ये बात भी गौरतलब है कि उसको बुरी तरह से ठोका गया था । वो बहुत मजबूत, तन्दुरुस्त और हट्टा कट्टा आदमी है, उसकी वो गत बनाना सिंगल सिलेंडर के इस” - उसने मीरानी की तरफ इशारा किया - “अकेले आदमी के बस का काम नहीं था । इस लिहाज से भुक्तभोगी के बयान पर ऐतबार लाना पड़ता है कि उसकी दुरगत करने वालों में माधव धीमरे भी शामिल था ।”
परमार खामोश रहा ।
“अब तुम बोलो ।” - यादव मीरानी और धीमरे की तरफ आकर्षित हुआ - “जो इलजाम तुम दोनों पर आयद है, उसकी बाबत तुम क्या कहते हो ? किसके कहने पर तुमने ये काम किया ?”
दोनों परे देखने लगे ।
“कोई बात नहीं ।” - यादव बोला - “अभी मैं तुम लोगों का खामोश रहना अफोर्ड कर सकता हूं ।” - वो मेरी तरफ घूमा - “अब तुम बोलो ।”
“नो ।” - परमार ने तत्काल विरोध किया - “आई विल हैव नन आफ दैट ।”
“क्या आप नहीं चाहते कि आपकी बेटी के कत्ल के राज पर से पर्दा उठे ?”
“क्यों नहीं चाहता ? जरूर चाहता हूं । लेकिन ये पुलिस का काम है । पुलिस करे अपना काम ।”
“कर रही है, जनाब । आप इसे हमारे काम का ही हिस्सा मानिये कि आप से अपील है कि इसे बोलने दिया जाये । जो ये कहे, उससे आप का सहमत होना जरूरी नहीं है । इसलिये इस सिलसिले में आप इसका नहीं, मेरा लिहाज कीजिये ।” - वो एक क्षण ठिठका, फिर उसने जोड़ा - “प्लीज ।”
परमार हिचकिचाया ।
“मैं जानता हूं आप इसे नापसन्द करते हैं लेकिन किसी उद्देश्य की खातिर कभी कभी घोर शत्रु को भी बर्दाश्त कर लेना चाहिये ।”
“ओके ।” - परमार कठिन स्वर में बोला - “ओके ।”
“थैंक्यू सर । आई एम ग्रेटफुल ।”
उसने फिर मुझे इशारा किया ।
तभी दरवाजा खुला और एक उम्रदराज रोबीले व्यक्ति ने वहां कदम रखा ।
परमार उछल कर खड़ा हुआ और लपक कर उसके करीब पहुंचा ।
उसने उसकी बांह पकड़ कर मौजूद लोगों की तरफ उसकी पीठ घुमाई और दबी जुबान में जल्दी जल्दी बोलने लगा । उस मोनोलाग के दौरान उस शख्स का सिर कई बार सहमति में हिला ।
आखिर परमार खामोश हुआ और वापस घूमा ।
“मिस्टर जोशीपुरा ।” - वो बोला - “माई लीगल काउन्सल ।”
कोई कुछ न बोला ।
परमार वापिस आकर अपनी कुर्सी पर बैठा । उसने वकील को अपने करीब बिठाया ।
“अब ये बोले ?” - यादव बोला ।
परमार ने सहमति में सिर हिलाया ।
अब वो पहले की तरह टेंशन में नहीं लग रहा था - वकील पहुंच गया था, सब सम्भाल लेगा ।
“मैं पहले सार्थक का ही जिक्र करना चाहता हूं ।” - मैं खंखार कर गला साफ करता बोला - “उसकी बेगुनाही पर किसी को यकीन न आने की प्रमुख वजह ये थी कि अपने डिफेंस में वो कोई मजबूत एलीबाई पेश नहीं कर सका था । अपने भाई शिखर की जो एलीबाई उसने पेश की थी, वो झोलझाल थी, गढ़ी हुई थी और जल्दी ही ये बात उजागर हो गयी थी । लेकिन उसके पास एक मजबूत, चौकस, एयरटाइट एलीबाई भी थी जिसकी बाबत वो खामोश था क्योंकि आखिरी दम तक वो किसी को प्रोटेक्ट करना चाहता था ।”
“किसको ?” - यादव बोला - “नाम लो ।”
“नेता जी खफा हो जायेंगे ।”
“नाम लो ।”
“उसकी मजबूत एलीबाई संगीता निगम थी जिसके साथ उसका अफेयर था । कत्ल की रात को सार्थक उसके पहलू में था ।”
“दैट्स कैरेक्टर असासीनेशन।” - वकील जोशीपुरा ने तत्काल विरोध किया - “मिस्टर हूसोऐवर यू आर, तुम्हारे पर इज्जत हत्तक का गम्भीर दावा ठोका जा सकता है ।”
“मेरी तरफ से इजाजत है आप को ऐसा करने की ।”
“मुझे किसी की इजाजत की जरूरत नहीं ।”
“बढ़िया ।”
“जो वाहियात बात तुम कह रहे हो, उसे कोर्ट में साबित कर सकोगे ?”
“जब आप केस करेंगे तो कुछ तो करूंगा ही ! फिलहाल खामोश रहें और मुझे अपनी बात कह लेने दें तो कैसा रहे ?”
“तुम्हें नाजायज बात कहने की इजाजत नहीं दी जा सकती ।”
“ओह ! तो जज साहब ने अपना फैसला सुना भी दिया है !”
“मिस्टर जोशीपुरा” - यादव सख्ती से बोला - “प्लीज कीप क्वाइट ।”
“लेकिन...”
“दैट्स ऐन आर्डर !”
वकील तिलमिलाया लेकिन उसने होंठ भींच लिये ।
“मे आई प्रोसीड ?” - मैं बोला ।
“यस ।” - यादव बोला ।
“संगीता निगम का सार्थक से अफेयर था और बकौल उसके एमपी साहब इस हकीकत से नावाकिफ भी नहीं थे । लेकिन उस का कहना था कि इस बात की एमपी साहब को खबर नहीं थी कि कत्ल की रात को वो सार्थक के साथ थी । लेकिन उसका ये कहना गलत था, आपको इस बात की खबर थी और खबर पर रियेक्ट करने की आपकी अपनी योजना थी ।”
“कैसी योजना ?” - नेता धीरज से बोला ।
“आपने गुमनाम डोनर के तौर पर सार्थक के वकील विवेक महाजन के आफिस में छ: लाख रुपये पहुंचवाये ताकि उसकी जमानत राशि पूरी होती और वो बाहर आ पाता ।”
“हमने पहुंचवाये ?”
“आपके सिवाय ये काम करने वाला दूसरा कोई नहीं दिखाई देता मुझे । छ: लाख रुपये कोई मामूली रकम नहीं होती और उसका खड़े पैर इन्तजाम करना कोई मामूली काम नहीं होता । कोई हैसियत वाला शख्स ही ये काम कर सकता था । परमार साहब हैसियत वाले हैं लेकिन ये सार्थक के, अपने दामाद के, जले पर नमक छिड़कने को तैयार नहीं । सार्थक के भाई, मां की ऐसी हैसियत नहीं, ऐसे साधन नहीं । संगीता, आपकी पत्नी, आर्थिक रूप से आप पर आश्रित थी, और कौन था जो उसके लिये ये कदम उठा सकता था । होता तो पहले उठाता ।”
“ये बात हम पर लागू नहीं ?”
“नहीं । क्योंकि आप को देर से खबर लगी अपनी बीवी के अफेयर की । जब लगी, तब आपने वो कदम उठाया ।”
“क्यों ? हमें इस बात से क्या लेना देना था कि वो लड़का जेल के अन्दर था या बाहर ?”
“था लेना देना । आप उसकी उस हरकत की, उस जुर्रत की उसको सजा देना चाहते थे और ऐसा करने के लिये, गुस्ताखी माफ, तड़प रहे थे ।”
“सजा अदालत देती न !”
“सालों में देती । आप उसको अपनी पसन्दीदा सजा देना चाहते थे और फौरन देना चाहते थे । और ऐसा तभी मुमकिन था जब कि वो बाहर होता । उसके बाहर आते ही उस का अगवा हो गया । और एक बात भी इसी तरफ इशारा करती है कि अगवा आप के इशारे पर हुआ था ।”
“नानसेंस ! हम किसे इशारा करते ?”
मैंने मजबूत उंगली रॉक डिसिल्वा की तरफ उठाई ।
“बकवास !” - मुंह से सिगार निकालते डिसिल्वा ने तीव्र विरोध किया - “मेरा अगवा से क्या लेना देना ?”
“नेता जी से तो लेना देना है न ! इनकी भृकुटी के इशारे पर दुम हिलाता है न ! वर्ना परसों इतनी रात गये इनकी कोठी पर क्या कर रहा था ?”
“देखो !” - नेता बोला - “तुम बहुत बढ़ बढ़ के बोल रहे हो । अब तुम...”
“सर, इसे बोलने दीजिये ।” - वकील बोला - “जितना ज्यादा ये मुंह फाड़ेगा, उतना ही ज्यादा फंसेगा । मैं अपने मोबाइल पर इसकी हर बात रिकार्ड कर रहा हूं जो कोर्ट में पेश की जायेगी तो... तो... हिज गूज विल बी कुक्ड ।”
नेता खामोश हो गया ।
“चलिये, बहस के लिये मैं मान लेता हूं” - मैं बोला - “कि आपने कुछ नहीं किया । इस सूरत में जो दूसरा कैण्डीडेट मेरी निगाह में है, वो शरद परमार है ।”
“क्या !” - शरद भड़का ।
“तुम्हारी निगाह में वो श्यामला का कातिल था और तुम उससे बदला लेना चाहते थे । तुम रईस बाप के बेटे हो, छ: लाख रुपये का गुप्त दान तुम्हारे लिये कोई बड़ी बात नहीं था । लेकिन तुम्हारे साथ प्राब्लम ये पेश आयी कि तुम्हें ये खबर न लगी कि सार्थक जमानत पर छूट कर कहां गया ! इस बात का पता निकालने के लिये तुमने शिखर को धुन दिया जिसको कि सार्थक का अता पता मालूम होना तुम्हारी निगाह में लाजमी था ।”
“बकवास ! उस वक्त मैं यहां क्लब में था । धीमरे भी तब यहां था ।”
“कब ?”
“जब शिखर के साथ वो वाकया हुआ था ।”
“कब हुआ था ?”
वो खामोश हो गया, उसने बेचैनी से पहलू बदला ।
“तुम्हें कैसे मालूम कि वो वाकया किस वक्त गुजरा था और किस वक्त की एलीबाई का तुमने इन्तजाम करके रखना था ? ऐसे मालूम, शरद बाबू कि उस वाकये को अंजाम ही तुमने दिया था । धीमरे के साथ मिलकर । इसी वजह से वो तुम्हारी एलीबाई है और तुम उसकी एलीबाई हो कि तब तुम दोनों यहां क्लब में थे । कहो कि मैं गलत कह रहा हूं !”
शरद से कुछ कहते न बना, उसने फिर बेचैनी से पहलू बदला ।
“मैं तमाम जनाबेहाजरीन से दरख्वास्त करता हूं कि वो इस वक्त की शरद की सूरत देखें । इसके माथे पर लिखा है कि सीक्रेट डोनर ये था । साथ ही एमपी साहब से माफी चाहता हूं कि पहले मैंने इन्हें सीक्रेट डोनर करार दिया ।”
नेता का सिर सहमति में हिला ।
“लेकिन इस बात पर मैं कायम हूं कि परसों आप में और आप की पत्नी में भीषण तकरार छिड़ी थी जिसकी गर्मागर्मी में उसने अपने अफेयर की बाबत आप को बता दिया था और उसने आपसे अपने इस वादे से भी पीछे हटने की घोषणा कर दी थी कि जब तक आपके मन्त्री पद का फैसला नहीं हो जाता था, वो कोर्ट में तलाक का केस नहीं डालेगी । सबसे बड़ी बात उसने ये कही थी कि उसने कोर्ट में सार्थक के हक में गवाही देने का फैसला कर लिया था । यानी शरेआम आप पर कीचड़ उछालने का, आपकी छवि बिगाड़ने का फैसला कर लिया था । मीडिया इस खबर को गोली की तरह लपकता कि आप जैसे रूलिंग पार्टी के इज्जतदार नेता की बीवी बेवफा थी, उसके एक कामनर से प्रेम सम्बंध थे । आपको तब अपनी आंखों के आगे बदनामी का ऐसा मंजर दिखाई दिया जो आपके भावी मन्त्री पद को तो आपके लिये सपना बना ही देता, आपके राजनैतिक कैरियर को भी भारी क्षति पहुंचाता । आप ये सब होने देने को तैयार नहीं थे इसलिये आपने अपने वफादार पप्पी रॉक डिसिल्वा को तलब किया जो आपके ‘सिट’ कहने पर सिट होता था, ‘स्टैंड’ कहने पर स्टैण्ड होता था ।”
डिसिल्वा ने प्रतिवाद के लिए मुंह खोला लेकिन यादव ने उसे यूं सख्ती से घूरा कि उसका मुंह सन्दूक के ढ़क्कन की तरह बन्द हुआ ।
Post Reply