Romance दंगा

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Sexi Rebel
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Re: Romance दंगा

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आलिया ने काँपते हाथो से वो नॅपकिन राज की तरफ बढ़ाया. मगर इस से पहले की राज वो नॅपकिन पकड़ पाता आलिया ने अपना हाथ वापिस खींच लिया.
“अरे…क्या बात है जरीना…कुछ कहो तो सही. क्या लिखा था तुमने नॅपकिन पर वो तो पढ़ने दो.” राज ने कहा और आलिया के हाथ को पकड़ लिया.
आलिया ने तुरंत वो नॅपकिन हाथ में दबोच लिया. बड़ी मुश्किल से निकाला राज ने वो नॅपकिन आलिया के हाथ से.
“छोडो ना राज. प्लीज़ मत पढ़ो…मैं बाद में पहन लूँगी जीन्स.” आलिया गिड़गिडाई
मगर राज नही माना. उसने धीरे से उस नॅपकिन को फैलाया. उस पर लिखा था.
“मेरी ब्रा की स्ट्रॅप टूट गयी है. टॉप नही पहन सकती. अजीब लगेगा. सॉरी.”
आलिया तो नज़रे झुकाए बैठी थी. शर्मा रही थी वो राज से. उसने अपनी चुनरी से अपनी छाती को अच्छे से ढक रखा था.
राज ने भी एक नॅपकिन उठाया और बोला, “पेन देना अपना.”
आलिया ने बिना राज की तरफ देखे उसे पेन पकड़ा दिया.
राज ने नॅपकिन पर कुछ लिख कर आलिया की तरफ बढ़ाया. आलिया ने चुपचाप नॅपकिन पकड़ लिया.
उस पर लिखा था, “नयी खरीद लेंगे. चिंता क्यों करती हो.”
आलिया ने एक और नॅपकिन उठाया और उस पर लिख कर राज को थमा दिया चुपचाप.
उस पर लिखा था, “यहा हाइवे पर कहा से ख़रीदेंगे. तुम चिंता मत करो मैं दिल्ली जा कर खरीद लूँगी.”
राज ने पढ़ कर कहा, “चलो चलते हैं आलिया लेट हो रहे हैं.”
“हां चलो”
इस तरह खाने की टेबल पर पेपर नॅपकिन के ज़रिए दोनो में कुछ प्राइवेट बातें हुई. जो की उनके प्यार की तरह ही सुंदर थी.
राज ने आलिया के लिखे नॅपकिन अपनी जेब में डाल लिए और आलिया ने राज के लिखे नॅपकिन अपने पर्स में.
राज ने ढाबे के काउंटर पर बिल पे किया और आलिया के साथ वापिस कार में आकर बैठ गया.
“मसूरी में कितना अच्छा मौसम था और यहा बहुत गर्मी हो रही है.” राज ने कहा.
“हां दिल्ली में तो आग बरस रही होगी इस वक्त.” आलिया ने कहा.
“आलिया अपने स्कूल के बारे में बताओ. बच्चे तो बहुत खुश होंगे मसूरी आकर. बहुत ही सुंदर हिल स्टेशन है मसूरी”
“हां बहुत खुश हैं वो. वो तो यहा से वापिस ही नही जाना चाहते. खूब मस्ती की बच्चो ने मसूरी में.” आलिया हंसते हुवे बोली.
“आएँगे हम वापिस दुबारा घूमने. अभी बस तुम्हे तुम्हारे घर ले जाने की जल्दी थी.”
बातों में डूब गये दोनो प्रेमी और बातों-बातों में दिल्ली पहुँच गये वो दोनो.

दिल्ली में घुसते ही आलिया ने कहा, “राज कोई ज़रूरत नही है हमें उसी होटेल में जाने की. हमें एयर पोर्ट के पास ही किसी होटेल में रुकना चाहिए. बाकी तुम्हारी मर्ज़ी.”
“ह्म्म…. ठीक है. जैसा तुम कहो.”
राज ने टॅक्सी वाले को एयर पोर्ट के पास ही किसी होटेल में ले जाने को कहा.
ड्राइवर ने उन्हे महिपालपुर उतार दिया. आलिया ने आस पास नज़र दौड़ाई तो मायूस हो गयी. कोई भी ऐसी शॉप नही थी वहा जहा से वो ब्रा खरीद पाती. राज आलिया की असमंजस समझ गया. प्यार में अक्सर प्रेमी, एक दूसरे की परेशानी बिना कहे ही समझ जाते हैं.
होटेल के रूम में आकर राज ने कहा, “आलिया मैं अभी आता हूँ. तुम आराम करो.”
“क्यों….कहा जा रहे हो तुम?” आलिया ने हैरानी में पूछा.
“कुछ नही रीसेपशन से पूछ आता हूँ कि यहा से एयर पोर्ट कितनी दूर है ताकि हम सुबह उसी अनुसार तैयार हो जायें.”
“जल्दी आना राज. मेरा मन नही लगेगा अकेले यहा.”
“ओके”
राज आ गया कमरे से बाहर. “कहा मिलेगी ब्रा…रीसेपशन पर पता करता हूँ.”
राज ने रीसेपशन वाले से पूछा मगर उसे कुछ आइडिया नही था. राज होटेल से बाहर आया और एक ऑटो लेकर निकल पड़ा. उसने ऑटो वाले को किसी मार्केट में ले जाने को कहा. आधा घंटा लगा मार्केट पहुँचने में.
इधर आलिया परेशान हो रही थी. “कहा रह गया राज. रीसेपशन पर ही तो गया था.”
आलिया टीवी ऑन करके बैठ गयी. मगर उसका मन सिर्फ़ राज में ही अटका था.
अचानक दरवाजे पर नॉक हुई. आलिया ने दरवाजा खोला.
“राज ये क्या मज़ाक है. एक घंटे में लौटे हो तुम वापिस. मेरी बिल्कुल भी चिंता नही है तुम्हे.”
“सॉरी…सॉरी…सॉरी…एक दोस्त मिल गया था मुझे. उसी से बात करने लग गया. वक्त का पता ही नही चला.”
“कितने गंदे हो तुम...मैं यहा परेशान हो रही हूँ और तुम बाते करने में व्यस्त थे.”
राज ने कुछ नही कहा और सीधा वॉश रूम में घुस गया. २ मिनिट बाद बाहर आ गया वो.
“आलिया तुम नहा ली क्या?”
“तुम्हारा इंतजार कर रही थी मैं. कुण्डी लगा कर कैसे जाती नहाने. तुम आते तो कौन खोलता.”
“हां वो तो है…चलो नहा लो तुम पहले. फिर मैं भी नहा लूँगा. फिर हम ढेर सारी बाते करेंगे.” राज ने हंसते हुवे कहा.
आलिया ने एक तकिया उठाया और राज पर फेंक कर मारा. “तुम सच में बहुत गंदे हो.” वो घुस गयी भाग कर वॉश रूम में.
अंदर आ कर जैसे ही उसने कुण्डी लगाई उसे खुँती पर एक ब्रा टगी मिली. ब्रा देखते ही उसके चेहरे पर हल्की सी मुस्कान बिखर गयी. वो नहा कर बाहर आई तो राज बिस्तर पर आँखे बंद करके पड़ा था. आलिया ने बेड के पास रखी टेबल पर रखे नोट पॅड को उठाया और एक काग़ज़ पर कुछ लिख कर राज के पास रख दिया और अपने गले से आवाज़ की “उह…उह”
राज ने आँखे खोल कर देखा. “क्या हुवा गले में खरास है क्या. मैं अभी विक्क्स की गोली ले कर आता हूँ.”
“खबरदार इस कमरे से बाहर निकले तुम तो.” आलिया चिल्लाई.
राज फ़ौरन उठ कर बैठ गया. जैसे ही वो बैठा उसे आलिया का रखा काग़ज़ का टुकड़ा दीखाई दिया. उसने वो उठाया.
उस पर लिखा था, “कहा से लाए. अच्छी है.”
राज हंस दिया वो पढ़ कर. राज ने टेबल से नोट पॅड उठाया और कुछ लिख कर उसने भी गले से आवाज़ की “उह..उह” और काग़ज़ आलिया की तरफ बढ़ा दिया. आलिया ने नज़रे झुका कर चुपचाप वो काग़ज़ पकड़ लिया.
उसमें लिखा था, “मुझे डर था कि कही तुम्हे पसंद ना आए.”
आलिया भी मुस्कुरा उठी ये पढ़ कर. वो बिस्तर के दूसरे कोने पर बैठ गयी और फिर से नोट पॅड उठा कर कुछ लिख कर राज की तरफ बढ़ा दिया “उह..उह.”
राज ने काग़ज़ पकड़ लिया और पढ़ने लगा.
उसमें लिखा था, “तुम कुछ लाओ और मुझे पसंद ना आए ऐसा कैसे हो सकता है. वैसे मेरा साइज़ कैसे पता लगा तुम्हे ??? .”
राज ने तुरंत लिख कर आलिया की तरफ काग़ज़ बढ़ा दिया.
उसमें लिखा था, “अंदाज़े से ले आया. शुक्र है अंदाज़ा सही निकला.”
आलिया काग़ज़ पढ़ कर मुस्कुरा दी. उसने तकिया उठाया और दे मारा राज के सर पर. “चलो अब उठो यहा से. ये बिस्तर मेरा है…तुम कही और इंतजाम कर लो.”
“हद होती है बेशर्मी की. पिछली बार भी होटेल में बिस्तर तुमने हथिया लिया था. इस बार भी क़ब्ज़ा करने पर तुली है. मुझे क्या बेवकूफ़ समझ रखा है.”
“राज जाओ ना प्लीज़. बहुत थॅकी हुई हूँ मैं. नींद आ रही है बहुत तेज. थोड़ा सा सो लेने दो ना.”
“डिनर नही करोगी क्या?”
“नही…डिनर नही करती हूँ मैं. तुम्हारे बिना २ टाइम का खाना ही मुश्किल से हजम होता था. अब तो आदत सी पड़ गयी है मुझे. डिनर किए हुवे साल बीत गया मुझे. कभी एक-दो बार खाया है मैने. पर ज़्यादातर मुझे शाम को भूक नही लगती है.”
“अब लगेगी…मैं आ गया हूँ ना.”
“देखते हैं. फिलहाल मुझे सोने दो. और जा कर नहा लो तुम.”
राज को बड़ा ही अजीब लगा की आलिया सोने जा रही है. उसे लगा था कि वो दोनो बैठ कर ढेर सारी बाते करेंगे. उसने आलिया को कुछ भी कहना सही नही समझा और चुपचाप नहाने के लिए वॉश रूम में घुस गया. “शायद बहुत थक गयी है मेरी जान. वैसे सफ़र था भी बहुत लंबा.” राज ने मन ही मन सोचा.
जब वो बाहर आया तो देखा कि आलिया कमरे की खिड़की के पास खड़ी है और बाहर झाँक रही है. राज तोलिये से अपने बाल सुखाता हुवा उसके पास आया और बोला, “जान किन विचारो में खोई हो. चेहरे पर बहुत चिंता ज़नक भाव हैं. और तुम तो सोने जा रही थी, यहा पर क्यों खड़ी हो.”
“ओह…तुम आ गये. राज कुछ बातो को लेकर परेशान हूँ.”
“कौन सी बातें?”
“हम जा तो रहे हैं गुजरात वापिस पर क्या हम सही कर रहे हैं?. क्या ये दुनिया हमारे रिश्ते को बर्दाश्त कर पाएगी.”
“अचानक ये सब दिमाग़ में कहा से आ गया?” राज ने पूछा.
“तुम नहाने गये थे तो मैने टीवी ऑन कर लिया. एक न्यूज़ देख कर दिल दहल उठा.”
“कैसी न्यूज़ देख ली तुमने?”
“हमारी ही तरह दो लोग प्यार करते थे बहुत. लड़का और लड़की अलग धर्मी थे. आज सुबह उन दोनो को ऑनर किलिंग के नाम पर मार दिया गया. आज कल हर किसी पर ऑनर किलिंग का भूत सवार है. मुझे डर लग रहा है राज. क्या हमारा वडोदरा जाना ज़रूरी है, हम अपनी छोटी सी दुनिया क्या कही और नही बसा सकते.”
“कैसी बात करती हो जरीना, हमारा घर है वहा, कारोबार है. हम दुनिया से डर कर भाग नही सकते सब कुछ छोड कर. और ये धर्मी-अधर्मी का झगड़ा गुजरात तक सीमित नही है. कहा छुपेंगे हम जाकर.”
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“राज वहा हमें जानते हैं लोग, लोग जानते हैं कि तुम धर्मी हो और मैं अधर्मी हूँ. कही और जाएँगे तो मैं भी खुद को धर्मी बता दूँगी. बात ही ख़तम हो जाएगी सारी.किसको पता चलेगा हमारा धर्म. तुमने ही तो कहा था कि चेहरे पर धरम नही लिखा होता.”
“वो सब तो ठीक है जान पर मुझे ये आइडिया बिल्कुल पसंद नही है. तुम तो डर गयी अभी से. मौत से कितना घबराती हो तुम?”
“मौत से डर नही है कोई, बस तुम्हे खोना नही चाहती. हम मर गये तो भी तो हम जुदा ही होंगे. रूह को चैन नही मिलेगा मेरी. क्या ये सब मंजूर है तुम्हे.”
“तुम तो ये सोच कर चल रही हो कि ऐसा ही होगा. मगर जींदगी में निश्चित कुछ नही होता. मुझे यकीन है कि सब ठीक होगा हमारे साथ. क्या तुम अपने घर नही जाना चाहती.”
“बिल्कुल जाना चाहती हूँ. वो घर तो मेरे सपनो का घर है. पर राज अगर फिर से किसी ने तुम पर हमला किया तो मैं सह नही पाउंगी. घर जाने के लिए बेताब हूँ मैं. बस ये न्यूज़ देख कर दिल परेशान सा हो गया है. अल्लाह हमारे प्यार की हिफ़ाज़त करे.”
“बस एक बात कहूँगा. मैं आसमान से गिरने वाली बिजली से बहुत डरता था. टीवी पर एक बार देखा था कि कुछ लोग बीजली गिरने से मर गये. जब भी बारिश के दिनो में बादल गरजते थे, मेरा दिल बेचैन हो उठता था. मेरे दादा जी मेरा ये डर जान गये थे. एक बार उन्होने मुझे बैठा कर समझाया कि…आसमान से गिरने वाली बीजली कही ना कही तो गिरेगी पर ज़रूरी नही है कि हमारे उपर ही गिरे. इस विचार से मेरा डर गायब हो गया. मानता हूँ कि हमारा रिश्ता कुछ लोगो को पसंद नही आएगा. पर एक बात समझ लो कुछ लोग हमारा साथ भी देंगे. ज़रूरी नही है कि हमारे साथ बुरा ही हो. कुछ अच्छा भी हो सकता है. तुम मेरे साथ चलो…मुझ पर यकीन रखो…जो होगा देखा जाएगा.”
“तुम पर तो अपने खुदा से भी ज़्यादा यकीन है मुझे. बस इस अनमोल प्यार में और कोई ट्विस्ट नही चाहती हूँ मैं.”
“आलिया वैसे तो जींदगी है, कुछ भी हो सकता है मगर मुझे यकीन है कि अगर हम दोनो साथ हैं तो कोई भी हमारा कुछ नही बिगाड़ सकता. हम दोनो साथ रहेंगे और वही अपने घर में रहेंगे.”
“ठीक है अब कुछ नही सोचूँगी. बस ये न्यूज़ देख कर डर गयी थी. मैं साथ हूँ तुम्हारे हर कदम पर. मेरा खुद का मन भी कहा है अपने घर से दूर रहने का.”
“अच्छा चलो छोडो ये सब. तुम ये बताओ इतनी जल्दी सोने क्यों जा रही थी. टॅक्सी में तो हम खुल कर बात ही नही कर पाए ड्राइवर के कारण. अब जाकर मौका मिला था कुछ बाते करने का और तुम सोने की बाते करने लगी. बिल्कुल अच्छा नही लगा मुझे.”
“सर में दर्द है राज. थका दिया इतने लंबे सफ़र ने. सर में दर्द होगा तो कैसे ढेर सारी बाते करूँगी. सोचा थोड़ा सा सो लूँगी तो ठीक हो जाएगा. पर नींद ही नही आई.”
“अरे पागल हो तुम भी. ऐसा था तो बताना था ना मुझे. मैं अभी मेडिसिन ले आता हूँ.”
“नही तुम कही मत जाओ प्लीज़. मेरे पास रहो. हो जाएगा ठीक थोड़ी देर में. मैं मेडिसिन कम ही लेती हूँ.”
“अच्छा चलो लेट जाओ आराम से. ये सर दर्द सफ़र के कारण है. आराम करने से ही दूर होगा.” राज ने कहा.
“राज ये बताओ कि तुम मंदिर में मेरे आगे हाथ जोड़ कर क्यों खड़े थे तुम.?”
“क्योंकि मेरी भगवान तो तुम ही हो अब. इसलिये तुम्हारे आगे ही हाथ जोड़ कर खड़ा हो गया था.”
“हाहहाहा, मज़ाक अच्छा कर लेते हो तुम. मैं भगवान कैसे बन गयी.” आलिया ने कहा
जितना प्यार तुम मुझे करती हो उतना कोई फरिस्ता ही कर सकता है किसी को. पूरे एक साल तक तुमने मेरा इंतेज़ार किया. कोई और होता तो कब का मुझे भूल कर नयी दुनिया शुरू कर चुका होता. जब मुझे होश आया और पता चला कि एक साल बाद आँख खुली है मेरी तो यही लगा मुझे कि मैने अपनी आलिया को खो दिया. मगर जब तुम्हारे खत पढ़े तो अहसास हुवा कि तुम्हारे मन में मेरे प्रति प्यार कम होने की बजाय और बढ़ गया है. क्या ऐसा कोई मामूली इंसान कर सकता है. तभी तुम्हे भगवान मान लिया है मैने.”
“तुम्हारे लिए एक साल तो क्या पूरी जींदगी भी इंतेज़ार कर लेती. नयी दुनिया बसाने का तो सवाल ही नही उठता. मुझे यकीन था कि तुम आओगे एक दिन और देखो तुम आ गये. ये बस हम दोनो के प्यार की ताक़त है जिसने हमें संभाले रखा.”
“जो भी हो मेरे लिए तो तुम ही मेरी भगवान हो.”
“ठीक है फिर, वादा करो वत्स कि मेरी हर बात मानोगे.”
“वो तो वैसे भी मानता ही हूँ, इसमे वादे की क्या बात है.” राज ने कहा.
एक पल को दोनो की नज़रे टकराई तो दोनो खड़े खड़े बस एक दूसरे की निगाहों में खो गये. कुछ बहुत ही गहरी बाते हुई आँखो ही आँखो में दोनो के बीच. इन बातों को शब्दो में पिरोना मुश्किल है क्योंकि आँखो की भाषा सिर्फ़ आँखे ही बोलती हैं और आँखे ही समझती हैं. वक्त जैसे थम सा गया था.
“क्या देख रहे हो मेरी आँखो में राज.”
“जो तुम देख रही हो मेरी आँखो में वही मैं देख रहा हूँ तुम्हारी आँखो में.” राज ने हंसते हुवे कहा.
और फिर अचानक ही राज आलिया की ओर बढ़ा. आलिया समझ गयी कि राज का क्या इरादा है वो फ़ौरन वहा से भाग कर बिस्तर पर लेट गयी करवट ले कर, “मुझे सोने दो अब. सोने से सर दर्द भाग जाएगा.”
राज मुस्कुराता हुवा बिस्तर के कोने पर बैठ गया और नोट पॅड उठा कर उस पर कुछ लिखने लगा. लिख कर उसने आवाज़ की, “उह…उह”
आलिया ने मूड कर देखा तो पाया कि उसके पीछे एक काग़ज़ पड़ा था.
उस पर लिखा था, “इतना प्यार करते हैं हम दोनो. पूरे एक साल बाद मिले हैं. एक चुंबन तो बनता ही है हमारा. तुम क्यों भाग आई, कितना अच्छा अवसर था एक चुंबन के लिए.”
आलिया ने बिना राज की तरफ देखे उसी काग़ज़ पर नीचे कुछ लिख कर राज की तरफ सरका दिया और करवट ले कर लेट गयी.
राज ने वो काग़ज़ उठाया.
उस पर लिखा था, “प्यार का मतलब क्या ये है कि हम चुंबन में लीन हों जायें. भूलो मत अभी हम कुंवारे हैं. शादी नही हुई है हमारी. ये सब शादी के बाद ही अच्छा लगता है, उस से पहले नही. प्लीज़ बुरा मत मान-ना पर ये सब अभी नही.”
राज ये पढ़ कर थोड़ा भावुक हो गया. उसने दूसरा काग़ज़ लिया नोट पॅड से और उस पर कुछ लिख कर आलिया के बगल में रख कर बिना आवाज़ किए वहा से उठ कर खिड़की पर आ कर खड़ा हो गया. आलिया को ये अहसास भी नही हुवा की राज ने कुछ लिख कर उसकी बगल में रख दिया है.
वैसे आलिया पड़ी तो थी चुपचाप करवट लिए पर वो बेसब्री से इंतेज़ार कर रही थी राज के जवाब का. जब काफ़ी देर तक राज की कोई आवाज़ उसे सुनाई नही दी तो उसने मूड कर देखा और पाया कि राज खिड़की के पास खड़ा है और उसकी बगल में एक काग़ज़ पड़ा है.
आलिया ने तुरंत वो काग़ज़ उठाया.
उस पर लिखा था, “सॉरी जान मैं भूल गया था कि अभी हम कुंवारे हैं. आक्च्युयली कभी ध्यान ही नही दिया इस बात पर. कुछ ज़्यादा ही अधिकार समझ बैठा तुम पर. सॉरी आगे से ऐसा नही होगा. शादी कर लेंगे जाते ही हम.”
आलिया फ़ौरन बिस्तर से उठ कर आई और राज के कदमो में बैठ गयी.
“अरे ये क्या कर रही हो उठो. पागल हो गयी हो क्या.”
“मुझे माफ़ कर दो राज. मेरी अम्मी और अब्बा ने जो मुझे संस्कार दिए हैं वो मुझपे हावी हो गये थे. तुम्हारा तो शादी के बिना भी हक़ है मुझपे. मुझसे भूल हो गयी जो कि वो सब लिख दिया. मैं अपने राज को ऐसा कैसे कह सकती हूँ.”
“अरे उठो पागल हो गयी हो तुम. माफी तो मुझे माँगनी चाहिए. मैं शायद बहक गया था. पहली बार हुवा है मेरे साथ ऐसा. और तुम्हारे अम्मी और अब्बा ने बहुत अच्छी शिक्षा दी है तुम्हे. अच्छा लगा ये देख कर कि तुम इतना आदर करती हो उनकी बातों का. उठो अब, ग़लती मेरी ही थी जो कि इस रिश्ते में अचानक एक झलाँग लगाने की सोच रहा था.”
आलिया उठ गयी और सुबक्ते हुवे बड़े प्यार से बोली, “मुझे चुंबन लेना आता भी नही है. तुमने अचानक ये बात करके मुझे डरा दिया.”
“अच्छा ठीक है बाबा. मेरी जान सच में बहुत मासूम है. वैसे चुंबन लेना मुझे भी नही आता. बस यू ही तुम्हारी आँखो में देखते-देखते मन बहक गया. चलो छोडो ये सब ये बताओ खाओगी क्या कुछ. मुझे तो भूक लग रही है.”
“तुम खा लो, मुझे सच में भूक नही है.”
“चलो ठीक है. मैं खा कर आता हूँ. तुम आराम करो.”
“यही मंगा लो ना खाना. मेरे पास रहो. मुझसे दूर मत जाओ प्लीज़.”
“अच्छा ठीक है, यही मंगा लेता हूँ.” राज ने आलिया के चेहरे पर हाथ रख कर कहा.
राज और आलिया के प्यार की मासूमियत होटेल के उस कमरे में हर तरफ बिखरी पड़ी थी. ये ऐसा मासूम प्यार था, जो कि बहुत कम लोगो को नसीब होता है. और जिनको ये नसीब होता है वो राज और आलिया की तरह प्यार के फरिस्ते बन जाते हैं.
राज ने रूम में ही खाना खाया. खाना खाने के बाद दोनो ने खूब बाते की. बातों में हमेशा की तरह प्यार भी था और तकरार भी. आलिया बेड पर ही सोई. बिस्तर छोडने को तैयार नही हुई वो. खैर राज भी नही चाहता था कि वो नीचे सोए. इसलिये चुपचाप फर्श पर चादर बीचा कर सो गया.
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सुबह ६ बजे उठ गये दोनो. पहले आलिया घुस गयी नहाने. नहा कर जीन्स और टॉप पहन कर निकली बाहर.
“वाउ तुम आलिया ही हो या कोई और. बहुत प्यारी लग रही हो इन कपड़ो में.” राज ने कहा.
“मज़ाक मत करो. जीन्स थोड़ी सी लूज है. बेल्ट भी नही है मेरे पास. दिक्कत रहेगी चलने में.” आलिया ने मायूसी भरे लहज़े में कहा.
“अब अंदाज़ा हर बार तो सही नही हो सकता. तुमने कभी अपनी फिगर बताई ही नही मुझे.”
“बता दूँगी लिख कर. अभी ये बताओ क्या करूँ अब मैं.”
“अपना चुडीदार ही पहन लो. जीन्स पहन-ने के बहुत मोके आएँगे जींदगी में. पहली बार नही घूम रहे हम साथ. आगे भी घूमते रहेंगे. अभी पूरा भारत पड़ा है घूमने के लिए.”
“क्या हम पूरा भारत घूम लेंगे.” आलिया झूम उठी ये सुन कर.
“बिल्कुल. मेरी तो बचपन की इच्छा है ये. तुम्हारे साथ घूमने का मज़ा ही कुछ और होगा. चलो जल्दी से चेंज करलो. मैं नहा कर आता हूँ. नास्ते का ऑर्डर कर दिया है मैने.” राज ने कहा और वॉश रूम में घुस गया.
ठीक ८ बजे निकल दिए वो दोनो होटेल से. एयर पोर्ट बहुत नज़दीक था महिपालपुर से. कोई २० मिनिट में ही एयर पोर्ट पहुँच गये वो दोनो.
बोरडिंग पास लेकर, सेक्यूरिटी चेक करवा कर वो बोरडिंग के इंतेज़ार में बैठ गये.
“जान मुझे विंडो सीट मिली है. पर क्योंकि तुम पहली बार सफ़र कर रही हो प्लेन से इसलिये अपनी विंडो सीट तुम्हे दे दूँगा.”
“शुक्रिया आपका इस मेहरबानी के लिए. वैसे इस अहसान के लिए मुझे क्या करना होगा.” आलिया ने कहा.
“अब आप इतना अहसान मान रही हैं तो घर जाते ही सबसे पहले एक कप चाय दे देना. तरस गया हूँ तुम्हारे हाथ की चाय के लिए.”
तभी बोरडिंग की अनाउन्स्मेंट हुई और वो दोनो बोरडिंग के लिए चल दिए.
राज और आलिया के पास एक लेडी आ कर बैठ गयी. बैठते ही वो बोली, “क्या आप वडोदरा में ही रहते हैं.”
“जी हां, हम वही रहते हैं.” राज ने कहा.
“आपका शुभ नाम?”
“जी मेरा नाम राज है.”
“ओह शुक्र है. आक्च्युयली मैं पहली बार गुजरात जा रही हूँ. सुना है कि वहा का माहोल बहुत खराब है. ये टेररिस्ट लोग पता नही कब बक्सेंगे हम हिंदुस्तानियों को.”
“टेररिस्ट…गुजरात में कोई टेररिस्ट नही हैं.” राज ने कहा.
“अरे यार मासूम मत बनो. तुम जानते हो मैं क्या कह रही हूँ.”
आलिया से ये सब बर्दाश्त नही हुवा और वो बोली, “क्या आप कृपया करके शांति से बैठेंगी. हमें डिस्टर्बेन्स हो रही है.”
“ये कौन है आपके साथ. रीअॅक्ट तो ऐसे कर रही है जैसे कि मैने इसे कुछ कहा है.”
“ये मेरी पत्नी है और इसका नाम आलिया है.”
“हे भगवान.” उस लेडी ने अपने मूह पर हाथ रख लिया. उसने तुरंत एर होस्टेस्स को बुलाया और अपनी सीट चेंज करने की रिक्वेस्ट की.
उस लेडी के जाने के बाद आलिया ने कहा, “देखा राज, इस तरह से लेगी दुनिया हमारे प्यार को. कैसे चिड कर भाग गयी यहा से. कितनी नफ़रत है दुनिया में प्यार के लिए लोगो के दिलो में.”
“वो पागल थी और पागल की बातों को दिल से नही लगाते. उसकी मेंटल कंडीशन ठीक होती तो ऐसी बाते ही ना करती. चलो छोडो ये सब…बाहर झाँक कर देखो बादल कितनी प्यारी चित्रकारी कर रहे हैं.”
“ओह वाउ…ग्रेट. ये तो ऐसा लग रहा है जैसे की हम जन्नत में उड़ रहे हैं. बहुत सुंदर है ये नज़ारा राज. थॅंक यू वेरी मच.”
“जान ये थॅंक यू बोल कर तमाचा मत मारो मेरे गाल पर. तुम्हारे लिए कुछ भी कर सकता हूँ मैं.” राज ने कहा.
आलिया पूरे सफ़र में बस विंडो से बाहर ही देखती रही. बादलों की बनती बिगड़ती चित्रकारी में खो गयी थी वो. कभी हँसती थी कभी मुश्कूराती थी और कभी एक तक बस देखे जाती थी.
अचानक उसने खिड़की से सर लगा कर नीचे की ओर देखा और बोली,“राज देखो…वो नीचे क्या कोई नदी है…” पर राज का कोई रेस्पॉन्स नही आया. वो सो गया था.
आलिया ने राज को कोहनी मारी, “मुझे खिड़की पर बैठा कर सो गये, शरम नही आती तुम्हे.”
“ओह…जान नींद आ गयी थी…क्या हुवा” राज ने आँखे मलते हुवे कहा
“कोई नदी दीखाई दे रही थी शायद. अब तो निकल गयी वो…अब क्या फायदा.” आलिया ने गुस्से में कहा.
“हाहहाहा…एक नदी नही है भारत में. हज़ारों हैं. दूसरी आ जाएगी…परेशान क्यों हो रही हो.”
“हज़ारों हैं तो क्या एक की अहमियत कम हो जाएगी. पहली बार आकाश से देखा मैने किसी नदी को. कितनी सुंदर लग रही थी.”
“मुझे तो इस वक्त तुम बहुत सुंदर लग रही हो. बिल्कुल बच्ची बन गयी हो. लगता है बच्चो को पढ़ाते-पढ़ाते खुद भी बच्ची बन गयी तुम.” राज ने हंसते हुवे कहा.
“कोई बुराई तो नही है ना इसमें, ज़्यादा हँसो मत वरना दाँत तोड दूँगी तुम्हारे अभी.”
“भाई जो भी है मुझे तो डर कर रहना पड़ेगा तुमसे. एक बार गमला मार चुकी हो सर पर, एक बार हॉकी मार चुकी हो पेट में…अब मेरे दाँतों के पीछे पड़ी हो. भगवान भली करे.”
“मैं क्या इतनी बुरी हूँ. अगर ऐसा था तो क्यों आए थे वापिस मेरे पास.” आलिया ने भावुक आवाज़ में कहा.
“अरे मज़ाक कर रहा हूँ जान. तुम भी ना. तुम तो जींदगी हो मेरी. तुम्हारे पास नही आता तो कहा जाता मैं.” राज ने कहा.
तभी प्लेन में अनाउन्स्मेंट हुई कि प्लेन वडोदरा में लॅंड करने वाला है, सभी यात्री सीट बेल्ट बाँध लें.
“हरे हम पहुँच गये अपने घर.” आलिया ने कहा.
“हां बस थोड़ी ही देर में हम अपने उसी घर में होंगे जहा हमें प्यार हुवा था.” राज ने आलिया का हाथ थाम लिया और दोनो प्यार से एक दूसरे की तरफ देखते-देखते खो गये.
“लॅंडिंग के वक्त खींचाव महसूस होगा जान. घबराना मत” राज ने कहा.
“तुम साथ हो तो डर काहे का. बिल्कुल नही घबराऊंगी.” आलिया ने कहा.
कह तो दिया था आलिया ने की नही घबराएगी मगर लॅंडिंग के वक्त उसके पाँव काँपने लगे और चेहरे पर डर सॉफ दीखाई देने लगा. राज उसे देख कर मध्यम-मध्यम मुस्कुरा रहा था.
प्लेन से उतरने के बाद राज ने आलिया को छेड़ा, “तुम तो मेरे होते हुवे भी घबरा रही थी. कितनी डरपोक हो तुम.”
“पहली बार आई हूँ मैं प्लेन से, मुझे नही पता था कि ऐसा होगा. ज़्यादा हसोगे तो लड़ाई हो जाएगी अब.”
“अभी नही जान, घर चल कर लड़ना आराम से.” राज ने कहा.
राज ने एक टॅक्सी की और आलिया को लेकर घर की तरफ चल दिया. दोनो बहुत खुश थे. पाँव ज़मीन पर नही टिक रहे थे दोनो के.
“राज आस-पडोस में किसी ने मुझे तुम्हारे साथ देखा तो, क्या कहोगे उन्हे मेरे बारे में.”
“किसी को कुछ एक्सप्लेन करने की ज़रूरत नही है. और कहना भी पड़ा किसी को कुछ तो बोल दूँगा कि तुम मेरी पत्नी हो… सिंपल.”
“काश हम शादी करके ही घर जाते. फिर कोई उंगली नही उठा पाता.”
“हां ये तो है…पर जान हमें साथ रहने के लिए किसी सर्टिफिकेट की ज़रूरत नही है. और हम एक-दो दिन में ही शादी कर लेंगे, तुम किसी बात की चिंता मत करो.”
“चिंता नही है किसी बात की बस यू ही सोच रही थी.” आलिया ने कहा.
लेकिन ये अच्छा हुवा कि जब वो घर पहुँचे तो किसी ने उन्हे नही देखा. दोपहर का वक्त था और सभी लोग घरो में थे. आलिया ने अपने हाथ से ताला खोला और झट से अंदर आ गयी.
“ये ताला नही चाहिए मुझे अब. इसे फेंक दो. बहुत परेशान किया है इस ताले ने मुझे.” आलिया ने कहा.
“बिल्कुल फेंक दूँगा. अब जब तुम इसे खोल कर घर में प्रवेश कर गयी हो तो इसका कोई काम नही है.”
“घर तो चमका रखा है तुमने. इतनी मेहनत करने कि क्या ज़रूरत थी. मैं कर देती ना सफाई.” आलिया ने कहा और सोफे पर बैठ गयी.
“मैं अपनी जान को क्या धूल-मिट्टी से भरे घर में लाता.” राज ने कहा.
“चाय लावू तुम्हारे…”
“दूध नही है…चाय कैसे बनाओगी…थोड़ी देर रूको मैं मार्केट से ले आऊंगा. पहले थोड़ा बैठ लेते हैं.” राज ने कहा.
राज बैठा ही था सोफे पर की घर की बेल बज उठी.
“कौन हो सकता है?” आलिया ने पूछा.
“तुम अपने कमरे में जाओ. मैं देखता हूँ.” राज ने कहा.
आलिया दिल में बेचैनी सी लिए वहा से उठ गयी, “क्या किसी ने हमें देख लिया. मेरे अल्लाह हमारे प्यार में अब और कोई रुकावट मत डालना.”
राज ने दरवाजा खोला, “चाचा जी आप.”
“हां बेटा मैं. तुम तो बिना बताए चले आए. क्या बीती है मुझपे और तेरी चाची पर कह नही सकता.”
“आईए चाचा जी… अंदर आईए”
“अंदर तो आ जाऊंगा पहले ये बताओ कि ऐसा क्या हो गया था कि तुम हमें बिना बताए चले आए मुंबई से. ऐसा कोई करता है क्या अपनो के साथ.”
“चाचा जी आप बैठिए तो सही. मेरी कुछ मजबूरी थी, जिसके कारण मुझे तुरंत वहा से जाना पड़ा…क्या आप मुझे नही जानते. कोई कारण रहा होगा तभी मैं बिना बताए चला आया. आप मुझे कभी नही जाने देते और मेरा जाना बहुत ज़रूरी था.”
आलिया सब सुन रही थी दिल थामे.
“बेटा हमारा तो चलो कुछ नही पर अवनी का क्या.” रामदास त्रिवेदी ने कहा.
“अवनी का क्या… मतलब?” राज ने हैरानी में कहा.
“बेटा डॉक्टर ने कहा था कि ऐसी कोई बात ना कहें तुम्हारे सामने जिस से तुम्हे दुख पहुँचे. इसलिये अवनी का जिकर नही किया हमनें. तुम्हे ये शादी बिल्कुल पसंद नही थी. पर है तो वो तुम्हारी पत्नी ना.”
“ये आप क्या कह रहे हैं मुझे कुछ समझ नही आ रहा.” राज बेचैन हो उठा.
ये सब सुन कर आलिया की भी हालत खराब हो गयी. उसे अपने कानो पर विश्वास नही हो रहा था.
“बेटा जब तक तुम कोमा में थे अवनी मुंबई में ही रही हमारे पास. खूब सेवा की उसने तुम्हारी. हम सब अपने काम में बिज़ी हो जाते थे पर वो हर वक्त तुम्हारे पास बैठी रहती थी. एक तरह से वही तुम्हारी नर्स थी पूरा साल. जिस दिन तुम्हे होश आया उस से दो दिन पहले ही गयी थी वो दिल्ली अपने घर. वो वापिस आई तो तुम चले गये. बहुत रोई वो तुम्हारे लिए. देखो बेटा ७ साल हो चुके हैं शादी को. शादी के वक्त ७ साल के बाद गोने की बात हुई थी. अब वक्त आ गया है कि तुम अपनी पत्नी को घर ले आओ. भैया जींदा होते तो वो भी यही कहते जो मैं कह रहा हूँ.”
“चाचा जी…मैने उस शादी को ना तब माना था और ना अब मानूँगा. वो सब दादा जी ने कर दिया था. मम्मी, पापा भी इसके खिलाफ थे. मुझे अवनी से कोई नाराज़गी नही है पर मैं ये बालविवाह नही निभा सकता.”
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“बेटा बेशक भैया भाभी भी राज़ी नही थे इस शादी के लिए पर शादी तो हुई ना और पूरे धर्मी रिती रिवाज से हुई. तुम जल्दबाज़ी में कोई फ़ैसला मत लो. ठंडे दिमाग़ से सोच लो. अवनी बहुत अच्छी लड़की है. जितनी सेवा उसने की है तुम्हारी उतनी कोई नही कर सकता. तुम्हारे बारे में पता चलते ही वो अपनी पढ़ाई-लिखाई सब कुछ छोड कर मुंबई आ गयी थी. उसने अपना पत्नी धरम निभाया, तुम नही देख पाए लेकिन हमने देखा है. उसे ठुकराने की भूल मत करना…बहुत प्यारी बच्ची है वो. तुम्हारी जोड़ी अच्छी रहेगी.”
“बस चाचा जी प्लीज़. रहने दीजिए ये सब. मैं इस बाल-विवाह को कभी स्वीकार नही करूँगा.”
“हां बेटा मैं कौन होता हूँ, जिसकी बात तुम मानोगे.”
“नही चाचा जी आपकी हर बात मानूँगा मगर ये नही मान सकता. ७ साल पहले शादी हुई…तब मुझे होश भी नही था. बहुत बुरा लगा था मुझे उस वक्त भी कि ये क्या मज़ाक हो रहा है. पर मेरी किसी ने नही सुनी. मैने इस शादी को कभी स्वीकार नही किया और ना ही करूँगा.”
“तुम्हारे स्वीकार करने या ना करने से क्या होता है. शादी पूरे समाज के सामने हुई थी और पूरे रीति रिवाज से हुई थी. और एक बात सुन लो तुम. अवनी मुंबई अपने घर वालो से लड़ कर आई थी. किसी को उम्मीद नही थी कि तुम कोमा से निकलोगे. मगर अवनी ने उम्मीद नही छोडी. वो इतना प्यार करती है तुम्हे, पत्नी के सारे फ़र्ज़ निभाए उसने और तुम ऐसी बाते कर रहे हो. जब उसे पता लगेगा ये सब तो वो तो मर ही जाएगी. क्या कमी है उसमे जो कि तुम ऐसी बाते कर रहे हो.”
“बात कमी की नही है. मैं उस से मिलूँगा और समझा दूँगा उसे.”
“बेटा अवनी के पेरेंट्स ने किसी विश्वास के साथ भेजा था उसे मुंबई. अवनी की ज़िद्द थी वरना वो उसे कभी ना भेजते, अब तुम ऐसा बर्ताव करोगे तो तूफान आ जाएगा. वो लोग चुप नही बैठेंगे.”
“चाचा जी मुझे किसी से गिला शिकवा नही है. अवनी से मैं कभी नही मिला. बस शादी के वक्त देखा था उसे. ना ही उसके परिवार वालो से मुलाक़ात हुई बाद में कभी. मैं उनसे माफी माँग लूँगा. रिश्ते ज़बरदस्ती नही जोड़े जाते. दादा जी ने ग़लत किया था ये बाल विवाह करवा कर और मैं इस ग़लती को जींदगी भर नही धो सकता.”
“ठीक है बेटा जैसी तुम्हारी मर्ज़ी. मेरा फ़र्ज़ तो तुम्हे समझाना था. भैया भाभी जींदा होते तो वो भी यही समझाते.”
“मम्मी पापा को भी मैं यही जवाब देता. अब मैं बड़ा हो गया हूँ. २१ साल उमर है मेरी. बालिग हूँ मैं अब और अपने भले बुरे का फ़ैसला खुद कर सकता हूँ. ७ साल पहले मुझे बहला फुसला कर मंडप पर बैठाया गया था. असहाय था उस वक्त मैं पर आज नही हूँ. आज किसी के आगे नही झूकुंगा. ये मेरी जींदगी है और मैं अपने तरीके से जीने का हक़ रखता हूँ.”
“मैं चलता हूँ बेटा. खुश रहो सदा. फिर भी जाते-जाते यही कहूँगा कि एक बार सोच लेना फिर से. एक मासूम लड़की की जींदगी का सवाल है जिसने पूरा साल बिना किसी स्वार्थ के तुम्हारी सेवा की है.”
“मुझे अवनी से कोई शिकवा नही है. उसने मेरे लिए इतना कुछ किया उसके लिए आभारी हूँ. पर मैं मजबूर हूँ. मैं उस से मिलकर माफी माँग लूँगा. मुझे उम्मीद है कि वो मेरी बात समझेगी.”
“बेटा क्या तुम्हारी जींदगी में कोई और लड़की है जिसके कारण तुम अवनी को ठुकरा रहे हो. अगर ऐसा है तो जान लो..उस से बेहतर पत्नी नही मिल सकती तुम्हे. जो त्याग और समर्पण उसने दिखाया है वो हर किसी के बसकि बात नही है. सोचना दुबारा फिर से. फॅक्टरी संभाल लेना जाकर अब तुम. मेरे जो बस में था मैने किया. चलता हूँ अब.”
रामदास त्रिवेदी चेहरे पर निराशा के भाव लिए वहा से निकल गया.
रघुनाथ के जाने के बाद आलिया तुरंत भाग कर आई और बोली, “तुम शादी शुदा हो और मुझे बताया तक नही. एक महीना तुम्हारे साथ रही मैं इस घर में. अब भी लंबे सफ़र के बाद तुम्हारे साथ आई हूँ. क्या ये बात नही बता सकते थे मुझे.”
“जान…मेरे लिए उस शादी का कोई मतलब नही था. मैने कभी उस शादी को शादी नही माना. बल्कि मैं तो भूल ही गया था गुड्डे-गुड्डी के उस मज़ाक को.”
“अब क्या होगा मुझे बहुत डर लग रहा है. अवनी तुम्हारी पत्नी कैसे हो सकती है. तुम पर तो सिर्फ़ मेरा अधिकार है ना राज.” आलिया रोते हुवे बोली.
“हां मुझ पर और मेरी आत्मा पर सिर्फ़ तुम्हारा अधिकार है.”
“उसने बहुत सेवा की तुम्हारी. कही तुम्हारा दिल उसके लिए पिघल तो नही जाएगा.” आलिया सुबक्ते हुवे बोली.
“पागल हो क्या. तुम्हारे सिवा मेरी जींदगी में कोई नही आ सकता. तुमने सुनी ना सारी बाते. फिर क्यों परेशान हो रही हो.”
“अवनी से मिलने मत जाना…कही वो तुम्हे मुझसे छीन ले. वादा करो कि नही मिलोगे तुम अवनी से.”
“पागल मत बनो. उस से मिलना बहुत ज़रूरी है. उसकी क्या ग़लती है. उस से मिल कर अपना पक्ष रखूँगा तभी बात बनेगी वरना तो वो मुझे ग़लत समझेगी”
“क्या वो सुंदर है?” आलिया ने आँखो से आँसू पोंछते हुवे कहा.
“मैं मिला ही कहा हूँ उस से. बस शादी के वक्त देखा था. तब बहुत छोटी थी वो. रो रही थी मंडप में आते हुवे. जैसे मुझे ज़बरदस्ती लाया गया था मंडप में वैसे ही उसे भी ला रहे थे उसके पेरेंट्स. और सुंदर हुई भी तो क्या फरक पड़ता है, मेरी आलिया का मुक़ाबला कोई नही कर सकता.”
“मिल लेना उस से मगर देखना मत उसे बिल्कुल भी, ठीक है, वरना तुम्हारा खून पी जाऊंगी मैं….. मेरे अल्लाह ये सब हमारे साथ ही क्यों हो रहा है.” आलिया ने कहा.
आलिया सोफे पर बैठ गयी सर पकड़ कर. राज ने उसके कंधे पर हाथ रखा और बोला, “क्या हुवा जान तुम परेशान क्यों हो रही हो. मैं हूँ ना तुम्हारे साथ. तुम घबराओ मत सब ठीक है.”
“क्या ठीक है, अब जब तक तुम्हारी पहली शादी का मामला नही निपट जाता हम शादी नही कर सकते.” आलिया ने भावुक हो कर कहा.
“क्यों तुम्हे चुंबन की जल्दी पड़ी है क्या?” राज मुस्कुरा कर बोला.
“राज मज़ाक मत करो…क्या ये सब मज़ाक लग रहा है तुम्हे. किस हक़ से रहूंगी मैं अब यहा तुम्हारे साथ बताओ. अब मुझे जाना पड़ेगा ना अपने ही घर से.”
“कैसी बात कर रही हो तुम…क्यों जाना पड़ेगा तुम्हे. शादी के बिना भी ये घर तुम्हारा ही है.”
“ये तुम जानते हो, मैं जानती हूँ पर ये समाज नही जानता. तुम्हे लोग कुछ नही कहेंगे पर मेरे चरित्र की धज्जिया उड़ाई जाएँगी. लोग मुझे ग़लत नज़रो से देखेंगे. अभी तो ये भी नही पता कि धरम के ठेकेदार हमारे रिश्ते को कैसे लेंगे, उपर से ये बालविवाह का लफडा भी आ गया.राज मैं कैसे रह पाउंगी यहा…नही रह पाउंगी. तुम खुद सोच कर देखो.”
आलिया की बात बिल्कुल सही थी. उसका ऐसा सोचना स्वाभाविक था. समाज के सामने शादी किए बिना उनका साथ रहना आलिया के चरित्र को कलंकित ही करेगा. ये बात आलिया समझ रही थी मगर राज नही समझ पा रहा था.
“तो तुम मुझे और इस घर को छोड कर चली जाओगी. बहुत बढ़िया…क्या इतनी जल्दी हार मान लोगि तुम”
“एक साल तक इंतेज़ार किया मैने तुम्हारा…पूरा एक साल. हार ना कभी मानी है और ना मानूँगी. मगर मैं नही चाहती कि मैं अपने संस्कारों की धज्जियाँ उडाऊ. मेरे अम्मी-अब्बा की रूह भटकेगी अगर मैने ऐसा किया तो. मेरी परवरिश इस बात की इज़ाज़त नही देती कि मैं यहा बिना शादी किए बिना रहूं. और शादी में तो अब रुकावट आ गयी है. जब तक पहली शादी रफ़ा दफ़ा नही करते तुम तब तक दूसरी शादी कैसे करोगे.”
“आलिया किसी ने तुम्हे देखा नही है यहा आते हुवे. तुम चुपचाप यहा रह सकती हो. क्यों इतना कुछ सोच रही हो.” राज ने कहा.
“राज मैं जाना नही चाहती हूँ यहा से…पर यहा रुकना भी बहुत अजीब लग रहा है.” आलिया सुबक्ते हुवे बोली.
राज आगे बढ़ा. वो आलिया को गले लगाना चाहता था. मगर आलिया पीछे हट गयी और भाग कर अपने कमरे में आ गयी और दरवाजा बंद कर लिया.
राज भाग कर आया उसके पीछे, “जान दरवाजा खोलो यू परेशान होने से कुछ हाँसिल नही होगा. और तुम ये घर छोड कर नही जाओगी. अगर गयी तो मैं मर जाऊंगा.”
आलिया ने दरवाजा खोला और चिल्ला कर बोली, “चुप करो ऐसी बाते नही करते. मैं नही जा रही हूँ कही. मैं बस अपने परेशानी बता रही थी. तुम एक औरत की मजबूरी नही समझ सकते.”
“समझ रहा हूँ जान मगर तुम ये घर छोड कर नही जाओगी. ऐसा करते हैं, तुम यहा किरायदार बन जाओ. मैं उपर वाला कमरा झूठ मूट में दुनिया को दीखाने के लिए तुम्हे दे देता हूँ. रहोगी तुम यही नीचे हर वक्त. किसी को क्या पता चलेगा. बस बाहर से सीढ़ियाँ डलवा देता हूँ. बाहर की सीढ़ियों से उपर जाना और पीछे की सीढ़ियों से नीचे आ जाना. मैं इस बाल-विवाह के झंझट को जल्द से जल्द ख़तम करने की कोशिश करूँगा. चाहे कुछ हो जाए तुम रहोगी यही. बस मुझे रेंट देती रहना.”
“हां ये ठीक है. इस से हम साथ भी रहेंगे और दुनिया मुझे ग़लत भी नही समझेगी. पर ये रेंट का क्या चक्कर है.” आलिया अपने आँसू पोंछते हुवे बोली.
“रेंट तो भाई तुम्हे देना ही पड़ेगा.”
“हां पर कैसा रेंट.”
“रोज इस ग़रीब को अच्छा-अच्छा खाना बना कर दे देना यही रेंट है.”
“वो तो वैसे भी मैं दूँगी ही. मैं नही बनाऊंगी तो कौन बनाएगा खाना यहा” आलिया ने कहा.
“अच्छा जान तुम आराम करो मैं मार्केट से राशन ले आता हूँ. और बाहर से सीढ़ियाँ डलवाने का काम भी कल से शुरू करवा दूँगा. एक दिन में ही हो जाएगा सारा काम. फिर ४-५ दिन उसे मजबूत होने में लगेंगे फिर तुम दुनिया की नज़रो में किरायदार बन जाना. तब तक छुप कर रहो.”
“ठीक है…क्या कुछ लाओगे”
“तुम लिस्ट बना दो मैं तब तक फ्रेश हो लेता हूँ.”
“ओके…” आलिया मुस्कुरा कर बोली.

रामदास त्रिवेदी निराश-हताश घर पहुँच गया मुंबई. उनकी बीवी उन्हे देखते ही भाग कर आई उनके पास, “क्या हुवा कुछ पता चला की राज कहा है.”
“हां पता चला…” रघुनाथ बोलते-बोलते रुक गया क्योंकि उन्हे अवनी आती दीखाई दी उसकी ओर.
“चाचा जी क्या हुवा सब ठीक तो है?” अवनी ने कहा
“हां बेटा सब ठीक है. राज बिल्कुल ठीक है. आएगा तुझसे मिलने वो जल्दी ही.”
“कहा हैं वो?” अवनी ने पूछा.
“गुजरात में ही है बेटा. कुछ बहुत ज़रूरी काम था उसे जिसके कारण उसे जाना पड़ा बिना बताए.”
ये सुनते ही अवनी के चेहरे पर मुस्कान बिखर गयी. उसने मन ही मन कहा, “शुक्र है सब ठीक है.”
“चाचा जी पापा उनसे मिलने को बोल रहे थे. उन्हे मैने बताया नही है अभी की वो यहा नही हैं. आपने मना किया था ना अभी बताने से इसलिये उन्हे कुछ नही बताया, बस यही बताया है कि उन्हे होश आ गया है. अब बतायें कि क्या कहूँ पापा को. वो तो कल ही मुंबई आने को बोल रहे हैं और वो यहा नही हैं.”
“बेटा थोड़ा बैठते हैं पहले. आराम से सोचते हैं कि क्या करना है.”
“ठीक है चाचा जी. आप बैठिए आराम से, मैं चाय लाती हूँ आपके लिए… इलायची वाली.” अवनी ने कहा और कह कर चली गयी.
“कैसे बताऊंगा इस मासूम को कि जिसके लिए तुम इतना परेशान हो, जिसकी तुमने दिन रात सेवा की वो तुम्हे अपनाना ही नही चाहता. नही बता पाऊंगा इसे कुछ भी. ये काम राज को ही करना होगा.इस फूल सी बच्ची को मैं ये सब अपने मूह से नही बता सकता.” रामदास त्रिवेदी ने मन ही मन कहा.
अवनी किचन में चाय बनाती हुई बस राज को ही सोच रही थी, “आपको नींद में ही देखा मैने पूरा साल. रोज आपके चरण छू कर दिन की शुरूवात करती थी. यही दुवा करती थी मैं कि आप इस गहरी नींद से उठ जायें और आपकी गहरी नींद मुझे लग जाए. देखना चाहती थी आपको उठे हुवे. पर आप नींद से जाग कर चले भी गये यहा से और मुझे पता भी नही चला. इस से बुरा नही कर सकते थे भगवान मेरे साथ. काश दिल्ली नही जाती तो आपको देख पाती और आपके चर्नो में बैठ कर कहती की मुझे बहुत खुशी हुई आपको जागे हुवे देख कर. पता नही आप मेरे बारे में सोचते हैं कि नही पर मैं आपको बहुत प्यार करती हूँ. बचपन से ही बस आपको ही बैठा रखा है दिल में.”
“अरे अवनी चाय उबल गयी बेटा कहा खोई हो” चाची ने आवाज़ दी.
अवनी अपने विचारो से बाहर आई और तुरंत गॅस ऑफ किया, “ओह सॉरी चाची जी, ध्यान भटक गया था.”
“कोई बात नही बेटा होता है कभी-कभी. वैसे क्या सोच रही थी तुम. ज़रूर राज के बारे में ही सोच रही होगी.”
अवनी का चेहरा शरम से लाल हो गया ये सुन कर. उसने बात को टालते हुवे कहा, “आप चलिए मैं चाय लाती हूँ.”
“इतनी सुंदर और सुशील बहू हमें ढूँढे नही मिलती. अच्छा हुवा जो कि तुम बचपन में ही हमारे राज की बीवी बन गयी.” चाची ने कहा.
“चलिए ना चाची जी मैं चाय ला रही हूँ.” अवनी शरमाते हुवे बोली.
“हां ले आओ बेटा…” चाची ने कहा और चली गयी
चाची के साथ ही आरजु खड़ी थी. वो राज के चाचा, चाची की, इक-लौति संतान थी. चाची के जाने के बाद वो अवनी के पास आई और बोली, “भाभी बड़ी खुश लग रही हो. खुशी-खुशी में चाय खराब तो नही कर दी.”
“चल भाग यहा से…तुझे कौन सा चाय पीनी होती है. खराब भी हुई तो तुझे क्या फरक पड़ेगा.” अवनी ने कहा.
“वैसे भैया को ना आप देख पाई उठने के बाद और ना मैं. आप दिल्ली चली गयी और मुझे अपने कॉलेज की ट्रिप पे जाना पड़ा.” आरजु ने कहा.
“अच्छी बात ये है कि वो ठीक हैं, इन बातों से कोई फरक नही पड़ता है.” अवनी ने कहा.
“हां ये तो है…भाभी तुमने कितनी सेवा की है भैया की. कोई और इतना नही कर सकता था.”
“बस-बस…चल ये बिस्कट ले कर जा मैं चाय की ट्रे लाती हूँ.” अवनी ने कहा.
अवनी चाय लेकर आई ड्रॉयिंग रूम में तो रघुनाथ ने कहा, “बेटा मैं सोच रहा हूँ कि पहले तुम राज से मिल लो. दोनो मिल कर डिसाइड कर लो कि गोना कब करना है. फिर अपने पापा को बुला लेना.”
“नही चाचा जी कैसी बात कर रहे हैं आप. मैं कुछ डिसाइड नही कर सकती. सब कुछ मम्मी,पापा ही डिसाइड करेंगे.” अवनी ने कहा.
“वो तो ठीक है बेटा. पर वक्त बदल गया है अब. तुम दोनो एक दूसरे से मिल कर सब कुछ तैय करोगे तो अच्छा रहेगा.”
अवनी कुछ परेशान सी हो गयी ये सुन कर और चाय रख कर चली गयी वहा से.
“आप भी ना. वो कैसे करेगी बात राज से, वो भी अपने गोने के बारे में. क्या देखा नही आपने कि वो कितना शरमाती है. ज़्यादा बाते करनी आती भी नही उसे. ये बातें तो आपको ही करनी होंगी अवनी के घर वालो से. ये बच्चे क्या डिसाइड करेंगे.” चाची ने कहा
“तुम्हे नही पता भाग्यवान. आजकल के बच्चे बहुत बड़ी-बड़ी बातें करते हैं. हम जो डिसाइड करेंगे शायद वो इन्हे अच्छा ना लगे.” रघुनाथ ने धीरे से कहा.
“ऐसा क्यों बोल रहे हैं आप.” चाची ने पूछा.
रघुनाथ ने पूरी बात बता दी अपनी बीवी को.
“हे भगवान! ऐसा सोच भी कैसे सकता है राज. ऐसा हुवा तो अनर्थ हो जाएगा. मैं बात करूँगी उस से. दिमाग़ खराब हो गया है उसका जो कि ऐसी बाते कर रहा है.”
“बहुत समझाया मैने उसे मगर उसने मेरी एक नही सुनी” रघुनाथ ने कहा.
“अच्छा तभी आप दोनो को मिलने को बोल रहे थे.”
“हां मैं चाहता हूँ कि जो भी बात करनी है राज खुद करे अवनी से. मैं अपने मूह से उसे ये सब नही बता सकता.”
“राज को समझाऊंगी मैं. वो मेरी बात ज़रूर मानेगा. और अवनी को देखा नही है उसने अब तक. एक बार मिल लेगा तो पता चलेगा उसे कि वो किसे ठुकराने की सोच रहा है.”
“भगवान से यही दुवा है की अवनी के साथ कोई अनर्थ ना हो. राज का कुछ नही बिगड़ेगा… वो लड़का है, सब कुछ अवनी का ही बिगड़ेगा.”
“ऐसा कुछ नही होगा आप शांत रहें. आपको अवनी की बहुत चिंता हो रही है…बिल्कुल अपनी आरजु की तरह मानते हैं आप उसे.”
“हां मेरी बेटी ही है अवनी. देख नही पाऊंगा उसके साथ ये अनर्थ होते हुवे.” रघुनाथ ने कहा.
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राज ने घर के बाहर सीढ़ियाँ डलवा दी और आस-पड़ोस में ये क्लियर भी कर दिया कि आलिया उसके यहा किरायदार बन कर रह रही है.
“सोच रहा हूँ कि तुम्हारे घर की भी मरम्मत करवा दूं.” राज ने कहा.
“रहने दो सबको शक हो जाएगा. ये काम शादी के बाद करेंगे. बल्कि दोनो घरो को जोड़ कर एक बना देंगे हम.” आलिया ने कहा.
“आलिया चाचा जी का टेलीग्राम आया था आज फॅक्टरी में. तुरंत बुलाया है उन्होने मुझे मुंबई अवनी से मिलने के लिए. तुम बताओ क्या करूँ.”
आलिया ने गहरी साँस ली और बोली, “जाना तो पड़ेगा ही तुम्हे. इस समस्या का हल तो करना ही है ताकि हम सुख शांति से रह सकें.”
“हां बहुत ज़रूरी है इस उलझन को दूर करना तभी हम अपने प्यार में आगे बढ़ पाएँगे.”
आलिया रह तो रही थी किरायदार के रूप में मगर आस-पड़ोस के लोग फिर भी उसे घूर-घूर कर देखते थे. जिसके कारण वो गुमसूम और परेशान रहती थी. राज के मुंबई जाने के ख्याल से वो और ज़्यादा परेशान हो गयी थी
“राज मुझे भी ले चलो साथ मुंबई. मैं यहा अकेली नही रह पाउंगी. तुम देख ही रहे हो कैसा माहोल है यहा. घूर-घूर कर देखते हैं लोग मुझे. लगता है लोगो को शक हो गया है हमारे बारे में.”
“आलिया चिंता मत करो..मैं मुंबई जा रहा हूँ ना. सब ठीक करके आऊंगा और आते ही हम शादी कर लेंगे. ज़्यादा दिन नही सहना होगा तुम्हे ये सब. फिर देखता हूँ कि कौन घूर कर देखता है तुम्हे. आक्च्युयली मैं प्रॉब्लेम ये है कि किसी को बर्दाश्त नही हो रहा होगा कि एक अधर्मी लड़की धर्मी के घर रह रही है.”
“हां यही मैं प्रॉब्लेम है. पता नही जब हम शादी करके रहेंगे फिर किस तरह रीअॅक्ट करेंगे ये लोग.”
“तब की तब देखेंगे. हमें जो करना है करना है.”
“राज मुझे भी अपने साथ मुंबई ले चलो प्लीज़. मैं यहा अकेली क्या करूँगी.”
“चलना चाहती हो तुम?”
“हां…ले चलोगे ना?”
“तुम्हारे लिए कुछ भी करूँगा जान. चलो समान पॅक करलो, तुम्हे मुंबई घुमा कर लाता हूँ.” राज ने कहा.
“बहुत खर्चा करवा रही हूँ तुम्हारा.”
“पागल हो क्या. सब तुम्हारा है. और फॅक्टरी ठीक चल रही है. और ध्यान दूँगा तो और ज़्यादा तरक्की करेंगे.”
“राज तुम बहुत अच्छे हो” आलिया ने कहा और कह कर किचन की तरफ चल दी.
“रूको कहा जा रही हो?”
“खाना बनाना है…” आलिया हंसते हुवे बोली और किचन में आ गयी.
राज भी उसके पीछे पीछे आ गया.
“राज पता नही क्यों पर डर सा लग रहा है मुझे. पता नही ये समस्या कैसे और कब दूर होगी और कब मुझे तुम्हारी पत्नी कहलाने का हक़ मिलेगा.”
“वो हक़ तो तुम्हे कब से है. फिर भी एक काम और किए देता हूँ अगर कोई डाउट है तुम्हे तो” राज ने चाकू उठाया और इस से पहले कि आलिया कुछ समझ पाती झट से अपने दायें हाथ का अंगूठा चीर दिया.
“ये क्या किया राज…पागल हो गये हो क्या.”
राज ने कुछ कहे बिना आलिया की माँग भर दी और बोला, “अब मत कहना कि तुम मेरी पत्नी नही हो. जब दिल से मान चुके हैं हम एक दूसरे को पति-पत्नी तो और क्या रह गया है.”
आलिया राज के कदमो में बैठ गयी, “राज मेरा वो मतलब नही था. हम दोनो तो ये जानते ही हैं. बात समाज की हो रही है.”
“छोड़ो आलिया हटो अब. हद होती है किसी बात की. बेकार के झंझट पाल रखें हैं तुमने अपने मन में. कितना समझाऊ तुम्हे.” राज आलिया को किचन में छोड कर बाहर आ गया. आलिया वही बैठी हुई सुबक्ती रही.
आलिया खाना बना कर राज के पास आई.
“खाना खा लो राज.”
“नही मुझे भूक नही है. तुम खा लो.”
“अच्छा सॉरी बाबा…आगे से ऐसा नही कहूँगी…खाना खा लो प्लीज़…वरना मैं भी नही खाऊंगी. वैसे बहुत सुंदर लग रही है मेरी माँग भरी हुई.”
“मैने अपने खून से माँग भर दी तुम्हारी फिर भी पता नही कौन सी दुविधा में हो. कोई मज़ाक नही किया था मैने. बहुत मान्यता है इस बात की हमारे लिए.”
“मैं जानती हूँ राज. इसी देश में पली-बढ़ी हूँ मैं. अच्छा आगे से ऐसा कुछ नही कहूँगी जिस से तुम्हे दुख पहुँचे.”
राज आलिया के करीब आया और आलिया के चेहरे पर हाथ रख कर बोला, “जान मैं तुम्हारी हर परेशानी समझता हूँ. पर तुम्हे परेशान नही देख सकता.”
“सॉरी आगे से ऐसा नही होगा…चलो खाना खाते हैं.” आलिया मुस्कुरा कर बोली.
राज और आलिया के लिए फिर से ये इम्तिहान का दौर था. पहले इम्तिहान में वो दोनो फैल हो गये थे मगर उसके बाद दोनो ने कुछ ऐसा सीखा था जो कि उन्हे जीवन भर काम आएगा. फेल्यूर कभी बेकार नही जाता. कुछ तो वो भी दे ही जाता है. ये अच्छी बात थी कि ऐसे मुश्किल दौर में दोनो एक साथ खड़े थे. यही प्यार की सबसे बड़ी डिमांड रहती है अगर आप प्यार के सफ़र पर चल रहे हैं तो.
दोनो ने शांति से खाना खाया. और खाना खाने के बाद राज ने हंसते हुवे कहा, “अब एक स्वीट डिश हो जाए.”
“स्वीट डिश नही बनाई…अभी बना कर लाती हूँ कुछ.”
“नही…नही रूको मैं मज़ाक कर रहा था. वैसे कहते हैं कि चुंबन स्वीट होता है.”
“श्रीमान वो भी उपलब्ध नही है इस समय. थोड़ा वक्त लगेगा.” आलिया मुस्कुरा कर वापिस किचन की ओर चल दी.
“कितना वक्त लगेगा तैयार होने में.?” राज ने पूछा.
“क्या स्वीट डिश या…” आलिया ने मूड कर पूछा.
“दोनो के बारे में बता दो.”
“स्वीट डिश अभी १० मिनिट में बना देती हूँ. उसमे कितना टाइम लगेगा पता नही.” आलिया हंसते हुवे किचन में घुस गयी.
“ओह आलिया कितनी प्यारी हो तुम. ऐसी ही रहना हमेशा. मुझे चुंबन की जल्दी नही है जान. बस मज़ाक कर रहा हूँ तुमसे. तुम मेरी अपनी हो ना इतना मज़ाक तो कर ही सकता हूँ. बुरा मत मान-ना.” राज ने मन ही मन कहा.
“राज मुझे शरम आने लगी है अब तुम्हारे साथ. थोड़ा डर भी लगने लगा है तुमसे. पर सब कुछ अच्छा भी लग रहा है. तुम यू ही रहना हमेशा मेरे लिए. चुंबन अगर बहुत ज़रूरी है तो ले लो. पर नाराज़ मत होना मुझसे. जी नही पाउंगी तुम्हारे बिना.” आलिया की आँखे नम हो गयी सोचते सोचते.
ये भी प्यार का अजीब सा रूप है. बिन कहे बहुत सारी बाते होती हैं और समझी भी जाती हैं. आलिया और राज लगभग एक सी बाते सोच रहे थे.

अगले दिन राज और आलिया मुंबई के लिए रवाना हो गये. दोपहर ३ बजे पहुँच गये वो मुंबई. कोलाबा में घर था राज के चाचा जी का. इसलिये वही एक होटेल में रुक गये राज और जरीना. कुछ देर आराम करने के बाद राज ने कहा, “जान मैं मिल आता हूँ अवनी से. तुम यही रूको.”
“हां मिल आओ और शांति से काम लेना. उसकी कोई ग़लती नही है. कुछ भला बुरा मत बोल देना उसे. बहुत सेवा की है उसने तुम्हारी. अपना पत्नी धरम निभाया है. मुझे यकीन है कि तुम सब ठीक करके लोटोगे. काश मैं भी चल पाती तुम्हारे साथ.” आलिया ने कहा
“पहले माहोल देख लूँ वहा का. फिर तुम्हे भी ले चलूँगा. चाचा चाची से तो तुम्हे मिलवाना ही है.” राज ने कहा.
राज आलिया को होटेल में छोड कर चाचा जी के घर की तरफ चल दिया. पैदल ही चल दिया वो. बस कोई १५ मिनिट की वॉकिंग डिस्टेन्स पर था उसके चाचा जी का घर. दिल में बहुत सारे सवाल घूम रहे थे. चेहरे पर शिकन सॉफ दीखाई दे रही थी. आलिया से ये सब छुपा रखा था उसने, क्योंकि उसे परेशान नही करना चाहता था. मगर अब उसके दिलो-दिमाग़ को चिंता और परेशानी ने घेर लिया था. उसे खुद नही पता था कि कैसे हॅंडल करना है सब कुछ, हां बस वो इतना जानता था की उसे हर हाल में इस समस्या का समाधान करना है.
राज घर पहुँचा और बेल बजाई तो उसकी चाची ने दरवाजा खोला.
“नमस्ते चाची जी” राज ने पाँव छूते हुवे कहा.
“नमस्ते तो ठीक…तुम ये बताओ समझते क्या हो तुम खुद को. बिना बताए भाग गये थे यहा से…कान खींचने पड़ेंगे तुम्हारे लगता है?” चाची बहुत गुस्से में दिख रही थी.
“चाची जी मुझे माफ़ कर दीजिए…मेरी कुछ मजबूरी थी.” राज गिड़गिदाया.
“आओ अंदर..देखती हूँ क्या मजबूरी थी तुम्हारी.” चाची ने कहा.
राज अंदर आ गया चुपचाप. चाची ने कुण्डी लगा कर आवाज़ दी, “अजी सुनते हो राज आ गया है.”
उस वक्त अवनी कमरे में सोई हुई थी. चाची की आवाज़ सुनते ही उठ गयी, “आप आ गये…”
अवनी के साथ आरजु भी थी कमरे में. अवनी ने आरजु को कंधे पर हाथ रख कर हिलाया, “उठो तुम्हारे भैया आ गये हैं.”
“राज भैया आ गये?” आरजु ने आँखे मलते हुवे कहा.
“हां आ गये हैं. जाओ मिल लो जाकर?” अवनी ने कहा.
“अरे सबसे पहले आपको मिलना चाहिए…चलिए अभी मिलवाती हूँ आप दोनो को. बल्कि आप यही रुकिये मैं भैया को खींच कर लाती हूँ यही.” आरजु ने कहा.
“नही रूको मिल लेंगे…इतनी जल्दी क्या है?”
“कैसी बाते करती हो भाभी…ज़्यादा नाटक मत किया करो.” आरजु कह कर कमरे से बाहर आ गयी.
राज चुपचाप चाचा चाची के साथ सोफे पर बैठा था. चाची डाँट पे डाँट पीलाए जा रही थी उसे, घर से चले जाने की बात को लेकर.
“मम्मी क्यों डाँट रही हो भैया को…आओ भैया भाभी इंतेज़ार कर रही है तुम्हारा.” आरजु ने कहा.
राज से कुछ भी कहे नही बना. उसके तो जैसे पैरो के नीचे से ज़मीन निकल गयी ये सुन कर.
“आरजु तुम जाओ. राज अभी आएगा थोड़ी देर में” रघुनाथ ने गंभीर आवाज़ में कहा.
“पापा बात क्या है…आप सब लोग गुमसूम क्यों हैं. भैया आपने मुझसे ठीक से बात भी नही की. सब ठीक तो है ना.”
“तुमसे कहा ना राज आ रहा है. जाओ यहा से.” रघुनाथ ने आरजु को डाँट दिया.
आरजु मूह लटका कर वहा से चली गयी.
आरजु के जाने के बाद चाची ने कहा, “बेटा क्या ये सच है कि तुम गोना नही करना चाहते. अवनी को छोड देना चाहते हो.”
“चाची जी मैने चाचा जी को सब बता दिया है.”
“हां इन्होने बताया है मुझे…मगर मैं तुमसे सुन-ना चाहती हूँ.”
“हां ये सच है. मैं ये बाल-विवाह नही निभा सकता. मैने कभी इस शादी को शादी नही माना.”
“मतलब हम सब बडो की कोई परवाह नही तुम्हे. तुम्हारे मम्मी, पापा जींदा होते तो पता नही क्या हाल होता उनका ये सब सुन कर. क्या तुम्हे अंदाज़ा भी है कि क्या ठुकराने जा रहे हो तुम. अरे हीरा है अवनी हीरा. लाखो में एक है वो.”
“मैं किसी और से प्यार करता हूँ और उसे अपनी पत्नी मानता हूँ. मैं ये गुड्डे-गुडियों का खेल नही निभा सकता.” राज ने कहा.
“ये सुनते ही चाचा और चाची की आँखे फटी रह गयी.”
“मुझे तो पहले से ही शक था इस बात का. बहुत बढ़िया बेटा.” चाचा ने कहा.
“कौन है वो करम जली जो हमारी अवनी का घर उजाड़ने पर तुली है.” चाची ने कहा.
चाची बहुत गुस्से में थी इसलिये राज ने चुप रहना ही सही समझा.
“मतलब की तुम्हारा फ़ैसला अटल है.” चाचा ने कहा.
“जी हां…मैं शादी करूँगा तो अपनी मर्ज़ी से और वो भी उस से जिसे मैं बहुत प्यार करता हूँ.इस बाल-विवाह को मैं नही मानता.” राज ने कहा.
“जाओ बेटा ये सब खुद ही कहो अवनी से जाकर. हम ये सब नही बोल पाएँगे.” रघुनाथ ने कहा और आरजु को आवाज़ दी ज़ोर से “आरजु!”
आरजु मूह लटकाए वापिस आई वहा और बोली, “जी पापा.”
“राज को ले जाओ अवनी के पास. ये कुछ ज़रूरी बात करना चाहता है उस से.”
“आओ भैया…” आरजु ने कहा.
राज चुपचाप उठ कर चल दिया वहा से.
“भैया कौन सी ज़रूरी बात है?” आरजु ने पूछा.
“छोड वो सब…तेरी पढ़ाई कैसी चल रही है.”
“अच्छी चल रही है. लीजिए आ गया भाभी का कमरा. आप दोनो बात करो मैं मम्मी, पापा के पास बैठती हूँ.” आरजु कह कर चली गयी.
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