Incest अनचाहे रिश्तों में पनपती कामुकता की छाया

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Ankit
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Re: Incest अनचाहे रिश्तों में पनपती कामुकता की छाया

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त्रिकोणीय प्रेम
(मैं मानस)

सीमा ने छाया को अपने साथ लाकर हम तीनों की जिंदगी में एक नया रोमांच पैदा कर दिया था माया आंटी इस समय घर पर अकेली ही रहती थी. शर्मा जी अभी भी विदेश से नहीं लौटे थे. आंटी के लिए उनकी अनुपस्थिति खलती तो जरूर थी पर यह नियत का ही खेल था.
घर पर हम चार लोग आनंद पूर्वक रह रहे थे. सीमा के आ जाने से छाया का मेरे कमरे में आना जाना सामान्य बात हो गई थी कभी-कभी तो रात को माया आंटी भी कमरे में आ जाती हम सब गांव की बातें करते और पुराने दिनों को याद करते. जाते वक्त वो छाया को अपने साथ चलने के लिए कहतीं ताकि मुझे और सीमा को निजी पल मिल सकें. छाया उनके साथ चली तो जरूर जाती कुछ ही देर में वह वापस हमारे कमरे में आ जाती.
मेरे सेक्स जीवन में एक नया रोमांच पैदा हो चुका था बिस्तर पर हम तीनों बिना वस्त्रों के पूर्णतया नग्न होकर एक दूसरे के आगोश में लिपटे होते. छाया अभी तक कुंवारी थी और इसीलिए हम सबकी प्यारी थी. हम सब तो संभोग का सुख ले रहे थे पर छाया इस सुख सुख से वंचित थी. हम दोनों उसका विशेष ध्यान रखते थे . सबसे विषम स्थिति छाया की थी वह सीमा को कभी दीदी बोलती कभी भाभी मेरे लिए भी उसके संबोधन अब अलग-अलग प्रकार के होते थे. सामान्यतयः हो मुझे नाम से नहीं बुलाती थी पर कभी-कभी उसे मुझे मानस भैया बोलना ही पड़ता था. खासकर सीमा के आने के बाद. जब से हमारे प्रेम प्रसंग पर माया आंटी ने विराम लगाया था मैं उसके लिए मानस भैया बन चुका था. पर यह हम दोनों में से किसी को यह स्वीकार्य नहीं था. लेकिन वह सभी के सामने मुझे मानस भैया ही बोलते थी. और इसी कारण कभी-कभी वह अंतरंग पलों में भी मुझे मानस भैया बोलती थी.
मैं हंस पड़ता और वह भी शर्मा जाती. हम तीनों बिस्तर पर वह सारे कार्य करते हैं जो एक पुरुष और 2 स्त्रियां मिलकर कर सकते थे. छाया के पास वह सारे गुण थे जो उसे मेरी और सीमा की चहेती बनाए रखते. अब तो उसने सीमा को अपने निकट में ही संभोग करते हुए भी देख लिया था. ब्लू फिल्मों में दिखाये गये सारे आसान और गतिविधियां अब हमारे जीवन में आ चुकीं थी. दोनों ही युवतियां शारीरिक शारीरिक रूप से दक्ष थी. उनके शरीर लचीले थे. वह मेरे ऊपर तरह-तरह के प्रयोग करती और मुझे थका देतीं. प्रेम कीड़ा का अद्भुत आनंद आता था. छाया के दाहिने स्तन पर मेरा कब्जा हुआ करता था और बाएं स्तन पर सीमा का हम दोनों उसे गालों से चूमना शुरु करते हैं और उसकी गर्दन होते हुए उसके स्तनों तक आ जाते. उसके स्तनों को अपने मुंह में चुभलाते हुए हमारे हाथ उसकी नाभि के दोनों तरफ से नीचे जा रहे होते. हमारे हाथ धीरे-धीरे उसकी जांघों तक पहुंच जाते. उन्हें फैलाते हुए उसकी राजकुमारी के दोनों होठों पर हम दोनों का अधिकार होता. उसकी राजकुमारी के होठों को चुमते समय हमारे होंठ आपस में मिल जाते. सीमा और मुझमे यही होड़ लग जाती कि छाया को पहले कौन खुश कर दें. छाया हम दोनों के सिर पर हाथ फिराती रहती. कुछ ही देर में उसकी जांघों में बेचैनी बढ़ जाती. हम स्थिति समझ जाते और अंततः राजकुमारी को सीमा के हवाले कर मैं उठकर ऊपर की तरफ आ जाता और वापस दोनों स्तनों को अपने कब्जे में ले लेता. हम पहले छाया को स्खलित करते इस क्रिया में हम दोनो स्वयम उत्तेजित हो जाते. कुछ ही समय में मैं सीमा की जांघों के बीच उसकी रानी में अपने राजा को प्रवेश करा रहा होता और छाया सीमा के स्तनों को मुंह में लेकर प्यार से चूस रही होती.
कई बार छाया अपनी राजकुमारी को सीमा के मुख पर रख देती थी और मेरी तरफ चेहरा करके मुझसे सटी रहती थी. मैं सीमा का योनि मर्दन कर रहा होता और साथ ही साथ छाया के दोनों स्तनों को भी सहला रहा होता. कभी मेरे हाथ में छाया के स्तन पर होते कभी सीमा के. सीमा छाया की राजकुमारी को अपने होठों से चूस रही होती. यह अवस्था हम तीनों की पसंदीदा थी. इस अवस्था में हम तीनों कई बार एक साथ स्खलित होते थे. उस समय मेरे वीर्य की धार अब दोनों अप्सराओं को एक साथ भिगोती. मैं अपने वीर्य को दोनों के स्तनों पर मलता और मेरे कहने से पहले ही वह दोनों अपने स्तन एक दूसरे से रगड़ने लगतीं और मैं उनके नितंबों को सहलाने लगता. अंत में हम तीनों एक दूसरे की तरफ देखते हुए मुस्कुराते और एक दूसरे के आलिंगन में आकर सो जाते. छाया को सुबह माया आंटी के उठने से पहले कमरे से बाहर जाना होता. सामान्यतः छाया हमारे खेल की समाप्ति के बाद ही अपने कमरे में चली जाती. हम दोनों उसकी कमी महसूस करते हुए और उसके बारे में बात करते हुए सो जाते.

हम तीनों तरह-तरह के प्रयोग करते हुए अपना सुखद वैवाहिक जीवन जी रहे थे. हमें हर पल छाया के लिए एक उचित वर की तलाश थी जिससे उसे भी संभोग का सुख मिल सके. नए आसनों के प्रयोग में एक बार दुर्घटना होते होते बची. छाया सीमा के ऊपर थी उन दोनों के स्तन एक दूसरे से टकरा रहे थे और दोनों एक दुसरे को चूम रहीं थीं. मैं बाथरूम से निकलकर बाहर आया मुझे यह दृश्य अद्भुत लगा दोनों की जांघे आपस में सटी हुई थीं. मुझे 2 राजकुमारियां एक दूसरे से सटी हुई प्रतीत हो रही थी. ऐसा लग रहा था एक गुलाबी गुलाब की कली और लाल गुलाबी कली को आपस में सटा कर रख दिया गया था. इतना मोहक दृश्य मैंने पहले कभी नहीं देखा था. नीचे लेटी सीमा की जांघें फैली हुई थीं. उसकी रानी स्पष्ट रूप से दिखाई दे रही थी. मैं अपने आप को रोक नहीं पाया और तुरंत ही जाकर अपने राजकुमार को सीमा की रानी में प्रवेश करा दिया और छाया की राजकुमारी को अपने हाथों से सहलाने लगा. वह दोनों मुस्कुरा रहीं थीं. उन दोनों के स्तन अभी भी एक दूसरे से सटे हुए थे और दोनों आलिंगन में थी. मेरी उंगलियां छाया की राजकुमारी के होठों को फैलातीं और उसके मुख में गुदगुदी करतीं. मैंने सीमा की रानी से अपने राजकुमार को निकाला और अपने तनाव की वजह से वह बिना कुछ कहे हैं छाया की योनि के मुख पर आ गया. उत्तेजना बस मेरे राजकुमार का तनाव राजकुमारी के मुख पर स्वभाविक रूप से हो गया. कामोत्तेजना के उद्वेग में राजकुमार छाया की राजकुमारी की कौमार्य झिल्ली तक पहुंच गया था. छाया राजकुमार के इस अप्रत्याशित आगमन की प्रतीक्षा में नहीं थी वह चौक गयी. और झटके से सीमा के ऊपर से हटकर बिस्तर पर आ गयी और मेरी तरफ देखने लगी. मुझे अपराध बोध हुआ और मैं हंस पड़ा. मैंने सिर्फ इतना कहा
“यह स्वयं ही वहां कूदकर चला गया” वह दोनों हंस पड़े. छाया उठकर मेरे राजकुमार के पास आयी जैसे उसे दंड देने जा रही थी. राजकुमार के पास आकर उसने उसे अपने मुंह में ले लिया और उसे कुछ देर चूस कर उसे सीमा की रानी में वापस प्रविष्ट करा दिया. वह मुस्कुरा रही थी और मैं भी. अगले कुछ महीने तक छाया हमारे लिए इश्वर का वरदान थी.
माया आंटी को अभी तक हमारे इस त्रिकोणीय प्रेम के बारे में कोई जानकारी नहीं थी और हम सब प्रसन्न थे.
छाया का नया जीवन

नयी नौकरी.
[मैं छाया]
मैं अपनी नई नौकरी ज्वाइन कर चुकी थी. मेरा ऑफिस घर से कुछ दूरी पर था. ऑफिस की गाड़ी मुझे लेने आती और ऑफिस खत्म होने के बाद घर छोड़ जाती. मेरी जिंदगी में यह एक नया अनुभव हो रहा था. ऑफिस के बाकी दोस्तों से मिलकर मुझे बहुत अच्छा लगता. हम सब दिन भर अपने बारे में एक दूसरे से बातें किया करते. ऑफिस में अधिकतर पुरुष थे और कुछ महिलाएं थी. मेरे पक्की सहेली पल्लवी भी इसी कंपनी में थी. हमारे दिन बड़े अच्छे से बीतने लगे. घर पर मानस और सीमा के साथ मेरी रातें रंगीन थीं ही दिन भी अच्छे से कट जा रहा था. सारे सुख मिल गए थे एक ही कमी थी वो सम्भोगसुख.
2 महीने की ट्रेनिंग के बाद हमें हमारे डिपार्टमेंट में शिफ्ट किया गया मेरे नए बॉस मिस्टर एस के मल्होत्रा थे उनकी उम्र लगभग मानस के जैसी होगी. वह अत्यंत सुंदर और आकर्षक व्यक्तित्व के थे. वह हष्ट पुष्ट भी थे. वह हमेशा सख्त स्वभाव के लगते थे हम लोग उनके पास मिलने गए पर जितने कठोर वो दिखते थे उतनी ही नम्रता से हम सब से मिले.

कुछ ही दिनों में हम सब अपने कार्य में व्यस्त हो गए. मल्होत्रा जी मुझसे हमेशा अच्छे से बात करते थे. डिपार्टमेंट के बाकी लोग उनसे डरते थे परंतु मुझे उन से डर नहीं लगता था. मैं अपने कार्य में दक्ष थी और इस बात को वह पूरी तरह पसंद करते थे. कुछ ही दिनों में वह मेरे अच्छे दोस्त बन गए थे. वह मुझे हर बात में गाइड करते और मेरे कार्यों से खुश रहते थे. कभी-कभी वह मेरे निजी जीवन के बारे में भी पूछते. मैं उन्हें उचित दूरी बनाकर अपने बारे में बताती. बातों ही बातों में मुझे यह भी मालूम चला कि वह शादीशुदा नहीं थे. घर पर हमेशा मानस और सीमा मुझे शादी के लिए प्रेरित करते रहते थे वह दोनों भी मेरे लिए कोई अच्छा लड़का देख रहे थे मुझे मल्होत्रा जी धीरे-धीरे अच्छे लगने लगे थे परंतु मैं यही प्रतीक्षा कर थी कि वह खुद ही प्रपोज करें पर ऐसा नहीं हो रहा था. हम दोनों एक दोस्त की भांति कई महीने तक रहे पर हमारे बीच में हमेशा एक मर्यादा कायम रही..

मैंने सीमा भाभी को मल्होत्रा जी के बारे में बता दिया था. हम दोनों उनके बारे में बातें करते थे. सीमा भाभी उन्हें देखने की जिद करती थी. एक दिन मैंने ऑफिस में उनके साथ एक सेल्फी ली और सीमा भाभी को दिखाया वह देखते ही चौक गई. मैंने पूछा
“क्या हुआ” वह बात टाल गयीं और बोलीं
“अरे यह तो बहुत हैंडसम है. तुम्हें इससे बात आगे बढ़ानी चाहिए “
मुझे सीमा दीदी के विचार जानकर बहुत खुशी हुई.
मैं और मल्होत्रा जी आने वाले समय में और करीब आते गए.
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सीमा और सोमिल
[मैं सीमा]
छाया द्वारा उसके बॉस के साथ फोटो देखकर मेरे होश फाख्ता हो गए. यह तो सोमिल था. सोमिल कुमार मल्होत्रा. वह बेंगलुरु में था यह जानकर मैं अपने आप को उससे मिलने से रोक नहीं पायी. मैंने किशोरावस्था में जीवन के दो-तीन साल उसके साथ गुजारे थे और अब छाया उसके संपर्क में आई थी. मैं सोमिल से मिलने को बेचैन हो उठी. मैंने छाया के ऑफिस से सोमिल का फोन नंबर प्राप्त किया और उसे एक दिन फोन किया
“ सोमिल”
“जी, आप कौन”
“मैं सीमा को जानती हूँ”
“सच. मुझे बताइए ना आप कौन हैं?”

“आप चाहे तो अपनी पुरानी मित्र सीमा से मिल सकते है . कावेरी गार्डन, आज शाम ६.०० बजे.”
“मैं जरूर आउंगा”
मैंने फ़ोन काट दिया.
मैं उस दिन सोमिल से मिलने को लेकर बहुत उत्साहित थी. आज कई वर्षों बाद हम एक दूसरे से मिलने वाले थे. अब मैं शादीशुदा थी परंतु उससे मिलकर अपनी स्थिति को बताना जरूरी था वरना मैं हमेशा इस अपराध बोध में रहती कि मैंने सोमिल के साथ किया वादा नहीं निभाया. यह अलग बात थी कि इसमें मेरी कोई गलती नहीं थी पिछले दो-तीन वर्षों में हमारा संपर्क पूरी तरह टूट गया था और हम चाह कर भी एक दुसरे से संपर्क नही कर पा रहे थे.
मैं शाम को सज धज कर सोमिल से मिलने के लिए निकल रही थी. मैंने जानबूझकर आज साड़ी पहनी थी और माथे पर सिंदूर भी स्पष्ट रूप से लगाया था. मुझे लगा यदि सोमिल मुझे इस स्थिति में देखेगा तो एक बार में ही सारी बातें स्पष्ट हो जाएंगीं और हम आसानी से बात कर पाएंगे वरना हम अपनी पुरानी बातों और किए गए वादों में ही डूबे रहेंगे. मैं तैयार होकर घर से निकल चुकी थी.
पार्क में सोमिल मेरा इंतजार कर रहा था. उसके हाथ में एक फूलों का गुलदस्ता था. मुझे देखते ही वह मेरी तरफ दौड़ पड़ा और बिना कुछ कहे मुझे अपनी बाहों में भर लिया. मैंने भी उसे निराश नहीं किया और हम दोनों एक बार गले मिल गए. अचानक उसने मेरे माथे पर सिंदूर देखा और जिसका मुझे अंदाजा था वही बात हुयी वह एक झटके में ही सारी कहानी समझ गया और उसकी आंखों में आंसू भर आए. उसने मेरी तरफ देख कर कहा
“सीमा में पिछले दो-तीन वर्षों से तुम्हें पागलों की तरह ढूंढ रहा हूं. मैंने भी उसे यही बात बतायी.
“हम लोगों ने भी तुम्हें ढूंढने की बहुत कोशिश की मैं अपने पापा के साथ चंडीगढ़ भी गई परंतु तुमने अपना मकान छोड़ दिया था. आस पड़ोस में पूछने पर भी कोई तुम्हारा पता नहीं बता पा रहा था. मैं क्या करती? मेरे पिता मुझ पर लगातार दबाव बना रहे थे और अंततः मैं तुम्हारे सामने इस स्थिति में खड़ी हूं."
सोमिल पूरी तरह मेरी बात समझ रहा था. मैंने उससे पूछा कि
“तुमने अभी तक शादी नहीं की ? हालांकि यह बात मुझे पता थी पर फिर भी मैंने पूछा."
सोमिल की आंखों में अभी तक आंसू सूखे नहीं थे. उसने कहा
“सीमा मैंने सिर्फ तुमसे प्यार किया है और मैं तुमसे ही शादी करना चाहता था. याद है, मैंने तुम्हारे सामने एक वचन भी दिया था”.
मुझे उसका वजन याद जरूर था पर मैं उसे अपने मुंह से नहीं कहना चाहती थी. मैंने हल्की अनभिज्ञता जताते हुए उससे पूछा
“कौन सा वचन”
वह बोला
“जाने दो”
मैंने फिर उससे पूछा “बताओ ना कौन सा वचन”
उसने फिर से टाल दिया.
अब हम एक पेड़ के छांव के नीचे बने बेंच पर बैठ गए थे. वह मुझ से तरह-तरह की बातें कर रहा था उसने पूछा
“तुम्हारी शादी किससे हुई है? मैंने उसे बताया. वह धीरे-धीरे सामान्य हो रहा था. बातों ही बातों में मैंने उससे उसकी नौकरी के बारे में पूछा. उसने घर से बताया कि वह इस कंपनी में मैनेजर की भूमिका में है. और फिर मैंने उससे पूछा
“क्या पिछले दो-तीन वर्षों में तुम्हारा किसी से संपर्क नहीं हुआ है”
“नहीं सीमा. मैं दिल से तुम्हें ढूंढ रहा था परंतु मेरा सौभाग्य या दुर्भाग्य कि तुम आज मुझसे मिली वह भी इस अवस्था में.”
“मैं मान ही नहीं सकती की पिछले दो-तीन वर्षों में तुम्हारा किसी लड़की से संपर्क ना हुआ हो . तुम तो शुरू से ही डोरे डालने में एक्सपर्ट हो”
वह हंसने लगा उसने कहा
“मुझे जो सुख तुमसे प्राप्त हुए थे वह मेरे लिए मेरी यादों में अपनी जगह बना चुके थे मुझे किसी और को लाने की जरूरत नहीं थी. मैंने तुम्हारे इंतजार में यह समय गुजार लिया था. पर अभी पिछले कुछ दिनों से तुम से मिलती जुलती एक लड़की मेरे ऑफिस में आई है. वह मुझे अच्छी लगने लगी है. तुम्हारे जैसी ही है पर अत्यंत कोमल और मासूम है.
“इसका मतलब मैं कोमल नहीं थी”
“अरे नहीं वह बात नहीं है शरीर की बनावट सबकी अलग-अलग होती है. पर बातचीत करने और बातचीत के अंदाज में तुम दोनों मुझे एक जैसी ही दिखाई देती हो”
मैं समझ गई थी कि वह छाया के बारे में बात कर रहा है. मैंने उससे उस लड़की के बारे में और पूछा. वह कुछ देर छाया के बारे में बात करता रहा फिर बात को वापिस मुझ पर ले आया. मैंने कहा
“तुम उससे मिलकर अपने प्यार का इजहार करो अब तो हमारा मिलना संभव नहीं है”
उसने बोला
“मैं शादी नहीं कर सकता”
“क्यों?”
“बस ऐसे ही”
मैंने जिद की.
“सीमा छोड़ो ना. जो बातें अब संभव नहीं है उनके बारे में क्या बात करना”
“मैं सब संभव कर दूंगी.”
“पक्का” वो हँसने लगा.”
“प्लीज बताओ ना”
उससे कहा
“मैंने चंडीगढ़ में तुम्हारे कहने पर एक तुम्हें एक वचन दिया था और जब तक वह वचन पूरा नहीं होता मैं अपनी पत्नी के साथ न्याय नहीं कर पाऊंगा”
मैं घबरा गई उसके इस बात पर मैं क्या जवाब दूं मैं सोच नहीं पा रही थी. मुझे उसका वचन तो याद था पर फिर भी मैंने दोबारा कहा
“देखो हम दोनों ने विवाह करने की सोची थी उस समय ये बातें ठीक थी पर अब मैं शादीशुदा हूं”
उसने फिर कहा
“शायद तुम उस वचन को भूल गई हो. मेरे बेंगलुरु आने से पहले तुम आशंकित थी कि मैं तुम्हारी अनुपस्थिति में किसी और लड़की के संपर्क में आ जाऊंगा और उससे संभोग कर लूंगा. मैंने तुम्हें बार बार यह बात समझायी कि मैं सिर्फ तुमसे ही प्रेम करता हूं और मैं कभी यह नहीं करूँगा. परंतु तुम मेरी बात नहीं मानी. और तुमने मुझसे वचन लिया या कि मैं अपना पहला संभोग तुम्हारे साथ ही करूंगा. तुम्हारी आशंका को मिटाने के लिए ही मैंने तुम्हें यह वचन दिया था.”
मैं निरुत्तर हो गई थी
“पर अब यह असंभव है. क्या कोई और रास्ता नहीं है”
“मुझे नहीं पता. छाया मुझे अच्छी तो लगती है पर मैं उससे अपने प्यार का इजहार नहीं कर सकता क्योंकि मुझे पता है मैं अपने वचन को पूरा किए बिना उसके साथ न्याय नहीं कर पाऊंगा. देखते हैं नियति ने मेरे भाग्य में क्या लिखा है” वह चुप हो गया था.
लगभग 2 घंटे बीत चुके थे हमने पास के रेस्टोरेंट में जाकर कुछ नाश्ता किया और अब विदा लेने का वक्त था. सोमिल ने कहा फिर कब मुलाकात होगी मैंने भी उसे नियति पर ही छोड़ दिया था. हम दोनों अपने अपने घर की तरफ पर चल पड़े.

परिवारों की सहमति
[मैं सीमा]
छाया के कहने पर एक बार फिर हमारे शयनकक्ष में ब्लू फिल्म लगाइ गई. मैं और छाया दोनों ही पूर्ण नग्न होकर बिस्तर पर मानस का इंतजार कर रहे थे. फिल्म शुरू होते ही वह भी बिस्तर पर आ गए. हम तीनों एक दूसरे से लिपटकर फिल्म देखने लगे. सीडी में एक युवती से दो युवक प्यार कर रहे थे. उनका प्यार जैसे-जैसे परवान चढ़ता गया हम तीनों उत्तेजित होते चले गए. छाया बीच में थी उसके एक तरफ मैं थी और दूसरी तरफ मानस थे. हम दोनों ही उससे बहुत प्यार करते थे और उसे हर सुख देना चाहते थे क्योंकि वह अभी तक संभोग का सुख नहीं ले पायी थी. उसे हमारे होठों और उंगलियों की कला से ही काम चलाना था. इसलिए हम सबसे पहले उसका ही ध्यान रखते थे. वह भी हम दोनों का बहुत साथ देती थी. फिल्म में एक महिला को दो पुरुषों से संभोग करते हुए देखकर अचानक मेरे मुंह से निकल गया क्या हकीकत में ऐसा भी होता है. छाया तुरंत बोल पड़ी
“हां दीदी मैंने एक बार सपना भी देखा था.” हम तीनों हंस पड़े मानस ने कुछ नहीं कहा वह चुप ही रहे फिल्म खत्म होने के बाद हम सब सामान्य हो चुके थे .

एक दिन मानस ने मुझसे पूछा उस दिन तुम किसी और पुरुष के साथ संभोग करने की बात कर रही थी. मैंने कहा
“हां. क्या यह सच में संभव होता है?
“आजकल इस दुनिया में सब कुछ संभव है. आजकल लोग अपनी कल्पनाओं को जीते हैं. कुछ को यह मौक़ा मिलता है और कुछ सिर्फ कल्पना में ही यह सोचते रह जाते हैं.”
उन्होंने हंसते हुए कहा
“तुम यदि इस बात के लिए अपना मन बनाती हो तो हो सकता है तुम्हें कभी इसका मौका मिल जाए. पर तुम्हें यह बात मुझे स्पष्ट रूप से बतानी होगी” वो फिर हसने लगे और मेरी रानी पर हाथ फेरने लगे.
मैं कुछ बोल नहीं पायी
“पर मेरे मन में सोमिल का ख्याल आ गया”
मेरे दिमाग में एक योजना बनने लगी. आखिर छाया मेरी ननद थी और मानस की बहन भी उन दोनों की ख़ुशी में मुझे भी खुशी मिलती.
मैंने मानस से एस के मल्होत्रा की हकीकत बता दी और उसके वचन के बारे में भी। वह हंसने लगे मैंने कहा मुझे आपकी अनुमति चाहिए। उन्होंने मजाक किया हां तो वचन पूरा कर देना वह तुम्हारे नंदोई बनने वाले हैं इतना कहकर संभोग क्रिया में मस्त हो गए.
कुछ दिनों बाद मैं फिर एक बार फिर सोमिल से मिली वह बहुत खुश था. हम दोनों ने कई सारी बातें की. मैंने छाया की बात दोबारा छेड़ी तो वह बोल उठा छाया वास्तव में बहुत अच्छी है. मैंने कहा
“तुम उसके परिवार वालों से मिले हो या नहीं?”
“अभी तो नहीं पर वह बार-बार जिद करती है”
“तो एक बार मिल लो”
“पर इन सब मेल मुलाकात का अंत क्या होगा यही सोच कर मैं डर जाता हूँ. मेरे पास उसे देने के लिए कुछ नहीं है. तुमने मुझसे वह वचन लेकर मुझे मझधार में डाल दिया है”
“कोई बात नहीं. हो सकता है मैं तुम्हारा वचन पूरा कर दूं”
“क्या कहा तुमने”
“वही जो तुमने सुना”
“क्या सच में ऐसा संभव है”
“जब तुमने दिल से यह चाहा है तो हो सकता है संभव हो”
“मैं इतना कह कर वहां से उठकर चल दी”
मैनें मुड़कर देखा उसके चेहरे पर आश्चर्यमिश्रित खुशी थी. मैं भी मुस्कुराते घर वापस आ रही थी. रास्ते में टैक्सी को हाथ देती इससे पहले मानस अचानक आ गए उन्होंने मुझसे पूछा
"इधर कहां घूम रही हो"
"सोमिल से मिलने आयी थी."
"ओह…. कर किया वचन पूरा"
" हाँ कर लिया… आप भी ना?" मेरे उत्तर में हां और ना का मिश्रण था जिसे उन्होंने हाँ समझा और वह पूरे रास्ते शांत रहे. मैंने भी इस बारे में कोई बात करना उचित नहीं समझा. मैने मन ही मन सोच लिया कभी ऐसी ही एक छोटी मुलाकात में सोमिल के वचन को भी पूरा कर दूंगी जो इस विवाह की अनिवार्य कड़ी थी.


कुछ दिनों बाद छाया ने बताया कि मल्होत्रा जी शनिवार को हमारे घर आने के लिए तैयार हो गए हैं. हम सब बहुत खुश थे. छाया और मैंने उनके लिए कई पकवान बनाए और घर को भी बहुत अच्छे से सजाया था . मानस बाजार से दो बढ़िया बुके भी ले आए थे. हम सब उनका इंतजार कर रहे थे. आज सोमिल को यह बात पता चलनी थी कि जिस लड़की से वह प्रेम करता है वह मेरी ननंद थी. वह ठीक समय पर घर पर आ गया. दरवाजा मानस ने खोला था. उन्होंने बुके देकर उसका स्वागत किया और अंदर हाल में ले आए. हॉल में मुझे देखकर सोमिल कुछ बोल नहीं पाया वह मुझे एकटक देखता रहा. मैंने सिर्फ मुस्कुरा कर उसका स्वागत किया. माया आंटी को देखकर उसने उनके चरण छुए उनसे आशीर्वाद लिया. मानस ने सोमिल को बैठने के लिए कहा और दूसरा बुके उसके हाथ में दे दिया. उसके दिमाग में ढेरों प्रश्न थे पर वह शांत था.

छाया ने एक बार हम सबका परिचय कराया उसने बताया
“यह मेरी माँ हैं, ये मानस भैया हैं और ये मेरी सीमा भाभी हैं और मैं आपकी जूनियर” कह कर हंसने लगी. धीरे-धीरे हम सब सामान्य हो गए और आपस में बातें करने लगे. सोमिल की निगाहों में अभी भी मुझे लेकर प्रश्न थे. काफी देर रात बातें करने के बाद हम लोगों ने खाना खाया. खाने के पश्चात सोमिल अपने घर की तरफ रवाना हो गया. उसके जाने के बाद मानस बहुत खुश थे मानस ने कहा
“मल्होत्रा जी वास्तव में एक जिम्मेदार व्यक्ति लगते हैं छाया तुम्हारी पसंद बहुत ही अच्छी है. पर क्या वह भी तुम्हें पसंद करते हैं “
“पसंद करते हैं तभी तो हम लोगों से मिलने यहां तक आ गए” मैंने कहा.
मानस और मैं दोनों ही बहुत खुश थे. माया आंटी तो सोमिल को देखकर फूली नहीं समा रहीं थीं. उनका होने वाला दामाद इतना खूबसूरत और काबिल होगा शायद उन्हें इसकी उम्मीद नहीं थी. मल्होत्रा जी को देखकर सभी काफी खुश हो गए थे.

कुछ दिनों बाद मैंने सोमिल से फिर मुलाकात की बातों के दौरान मैंने उसके माता-पिता से मिलने के लिए समय मांगा उसने कहा
“आप लोग अगले शनिवार को हमारे घर पर आ जाइए मैं पापा मम्मी को बता दूंगा”
वह अब शादी के लिए मन बना रहा था.
उसने मुझसे फिर पूछा
“सीमा क्या यह सच में हो पाएगा”
मैंने उससे कहा
“अपने वचन को पूरा करने के बाद तुम कुवारें नहीं रहोगे. मैं तुम्हारे वचन की लाज रखूंगी पर इस बात का ध्यान रखना कि तुम्हारी छाया ने आज तक किसी के साथ संभोग नहीं किया है. और वह अक्षत यौवना है. यदि तुमने अपना पहला संभोग मेरे साथ किया तो तुम्हें उसके साथ किए गए पहले संभोग का सुख नहीं प्राप्त होगा." मैंने उससे यह बात उससे जोर देकर कही थी ताकि वह छाया जैसी सुन्दर , कोमल एवं कुंवारी लड़की के साथ संभोग करने की लालसा में मुझसे संभोग करने की जिद छोड़ दे.
“उसने कहा मैं वचनबद्ध हूं. छाया का कुवांरापन मेरे लिए उतना महत्वपूर्ण नहीं है जितना मेरा वचन.मेरे वचन की उसकी लाज रखना”
मैंने उसे हंसते हुए कहा
“तथास्तु नंदोई जी” वह अपने संबोधन पर हंस पड़ा.
हम सब सोमिल के परिवार वालों से मिलने उसके घर पर आए जाये. सोमिल का घर हमारे घर से थोड़ा दूर था. उसका घर भी बहुत सुंदर था पर छोटा था. उसके माता-पिता के अलावा उसका एक छोटा भाई भी था. हम सभी का भव्य स्वागत किया गया. सोमिल के पिता मुझे पहचानते थे. वह मेरे और सोमिल के संबंधों के बारे में भी कुछ हद तक जानते थे. उन्होंने मुझसे कहा सीमा बिटिया तुम तो बहुत बड़ी हो गई और तुमने शादी कब कर ली.
“पिछले साल ही हुई है. यह मेरे पति मानस हैं यह मेरी ननद छाया है और यह मेरी सास माया जी हैं. छाया ने उठकर सोमिल के माता पिता के पैर छुए. सोमिल की मम्मी ने उसे अपने गले लगा लिया और बोला
“अरे यह कितनी सुंदर है. सोमिल मुझसे बार-बार कहता था पर मुझे यकीन नहीं होता था. आज छाया को देखने के बाद लग रहा है कि सोमिल सच कहता था”
वो छाया से मिलकर बहुत खुश थी. छाया पहली नजर में ही उन्हें पसंद आ गई थी. उसकी इतनी तारीफ सोमिल पहले ही कर चुका था. सिर्फ आंखों से देखना बाकी था . सोमिल के पिता जी ने कहा
“छाया हम लोगों को बहुत पसंद है मुझे लगता है सोमिल और छाया भी एक दूसरे को बहुत पसंद करते हैं. हमें इन दोनों का विवाह कर देना चाहिए.” हम सब भी बहुत खुश हो गए. माया आंटी ने कहा
“सोमिल जैसा दामाद पाकर हम सब भी बहुत खुश हैं” हम सब ने साथ में खाना खाया और विदा लेने की बारी आ गयी. हम लोगों ने सोमिल उनके माता-पिता और उनके छोटे भाई के लिए कई तरह के उपहार ले गए थे. वापस आते समय सोमिल के माता पिता ने अपनी नई बहू और हम सभी के लिए कई सारे उपहार दिए.
सोमिल मुझे जाते हुए देख रहा था और मुस्कुरा रहा था. मैंने शर्म से पलकें झुका लीं और सिर झुकाए हुए आगे चल पड़ी. छाया का विवाह पक्का हो गया था.
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छाया के विवाह की तैयारी
[मैं सीमा]
बेंगलुरु शहर में मोबाइल की उपलब्धता धीरे-धीरे होने लगी थी. हम सब ने भी अपने लिए एक एक मोबाइल खरीद लिया था. मोबाइल पर हम सब की बातें आसान हो चुकी थी. एक दूसरे से मिलना भी अब इतना कठिन नहीं रहा था हम आपस में एक दूसरे से बात करते और कभी कभार मिल लिया करते थे. शादी के दिन धीरे-धीरे करीब आते जा रहे थे. हम सब शादी की तैयारियों में मशगूल थे.
मानस में छाया की शादी की तैयारी में कोई कसर बाकी नहीं रखी थी. उसने गांव के सभी लोगों को न्योता भेजा था. अब जब समाज की नजरों में छाया उसकी बहन हो ही चुकी थी तो वह उसकी शादी बहुत धूमधाम से करना चाहते थे. गांव में उनकी प्रतिष्ठा वैसे ही बनी हुई थी. सभी उनकी तारीफ करते थे कि कैसे उन्होंने छाया को अपनी बहन के रूप में अपना लिया था और उसका जीवन ग्रामीण स्तर से उठाकर उसने उच्च स्तर पर ले आया था. मैं जानती थी कि मानस छाया को बहन नहीं मानता था बल्कि वो उसकी प्रेमिका थी. पर अब तो उसकी शादी थी. हम तीनों हमेशा एक साथ रहते थे. वह हम दोनों की प्यारी थी. वो मेरी छोटी बहन, ननद और कभी कभी सौतन लगती थी. सौतन बोलने पर वह दुखी हो जाती थी. वो कहती
“दीदी मैंने अपने आप को मानस को आपको समर्पित किया है. आप जब चाहेंगी मैं आप दोनों के बीच से हट जाउंगी.”
मैं उसे चुम्बन लेती और बोलती
“तुम हम दोनों के बीच की कड़ी हो. जब तक जीवन हैं तुम हम दोनों की प्यारी रहोगी.” वह खुश हो जाती. छाया बहुत ही अच्छी थी.
हम लोगों ने शादी में अपने सभी दोस्तों और रिश्तेदारों को बुलाया था. पर छाया ने अपनी सहेलियों को बुलाने से साफ मना कर दिया था. उन्हें मानस और उसकी असलियत मालूम थी. छाया यह बात अपनी सहेलियों को नहीं बता सकती थी कि मानस से उसका ब्रेकअप हो गया है. मानस उसका भाई था यह बताना उसके लिए संभव नहीं था. पर उसकी सहेली पल्लवी यह बात जानती थी.

मानस ने एक बहुत बड़ा मैरिज हॉल बुक किया हुआ था. जिसमें गांव से आने वाले सभी लोग रुके हुए थे. गांव की महिलाएं और बच्चे इस भव्य व्यवस्था से बहुत खुश थे. वह इस उत्सव का पूरा आनंद लेते थे. वहां पर सभी के अलग-अलग कमरे बुक थे. खानपान की भी उत्तम व्यवस्था थी. गांव के लोग इन बातों में बहुत खुश थे और मानस की तारीफ करते हुए नहीं थक रहे थे. हम सब भी सुबह-सुबह वही पहुंच जाते और दिन भर उन लोगों के साथ रहते थे. छाया की खूबसूरती गांव वालों के लिए आश्चर्य का विषय थी. मैं भी उतनी ही खूबसूरत थी परंतु छाया की कोमलता उसे मुझसे दो कदम आगे रखती.
मुझे इस बात का कोई मलाल नहीं था मैं छाया से बहुत प्यार करती थी. जब हम दोनों एक साथ होते तो गांव वाले यही कहते आ गई ननद भाभी की जोड़ी . हम दोनों पक्की सहेलियां भी थी. गांव की महिलाएं और लड़कियां छाया को अपने साथ बैठा आशीर्वाद देतीं और अपने अंदाज में उससे सुहागरात और शादी के बाद की बातें करतीं. मैंने एक बार देखा, एक गांव की एक लड़की अपने घुटनों को मोड़कर और घुटने के ऊपर और नीचे के दोनों मांसल भागों को अपनी उंगलियों से सटाकर योनि का आकार बना रही थी और अपनी उंगली को उसमें फंसा कर छाया को सम्भोग के बारे में बता रही थी. छाया भी मुस्कुराते हुए वह सब सुन रही थी. ऐसा लग रहा था जैसे आई आई टी के प्रोफेसर को कोई पाइथागोरस थ्योरम समझा रहा हो...

छाया साक्षात रति थी यह उन्हें नही पता था. उसके चेहरे की मासूमियत उसका सबसे बड़ा हथियार थी. विवाह समारोह में आया हुआ कोई भी व्यक्ति चाहे वह पुरुष हो या महिला या कितना भी कुत्सित विचारों वाला हो वह यह बात सोच नहीं सकता था कि छाया मेरे और मानस के बीच की कड़ी थी. मैं और मानस यह सोच कर ही उत्तेजना से भर जाते थे कि हमारी प्यारी छाया की शादी हो रही है और कुछ ही दिनों मैं वह संभोग सुख का आनंद ले पाएगी.
छाया ने अपनी कामुकता को बड़ी खूबसूरती से जिया था. बहुत कम ही लोग ऐसे होते हैं जिन्हें अपने आसपास में मानस जैसा साथी मिल जाता है और वह उनकी सारी इच्छाओं की पूर्ति करता है. छाया मानस से तीन-चार महीनों के लिए दूर थी पर भगवान ने उसे मुझसे मिला दिया था. मैंने उसकी कामुकता को उस दौरान भी सीचतीं रही. मेरे विवाह के बाद से तो उसे दोहरा मजा मिल रहा था मैं और मानस उसकी हर इच्छा पूरी करते थे.
अब कुछ दिनों बाद उसे संभोग सुख प्राप्त होने वाला था. हम सब बहुत खुश थे. उसने एक दिन मुझसे बातों ही बातों में एक बात बोली
“सीमा दीदी जब तक मेरी शादी नहीं हो जाती पूरे विवाह समारोह में आप अपनी पैंटी नहीं पहनियेगा और मैं भी नहीं पहनूंगी. हम दोनों बीच-बीच में मानस भैया का ख्याल रखते रहेंगे. जब तक वह उत्तेजित रहेंगे तब तक वह दुखी नहीं होंगे”
मैंने उससे कहा
“अरे इसकी फुर्सत कहां मिलेगी.”
“आप सिर्फ मानस भैया को यह बात बता दीजिएगा”
मैने मुस्कुराते हुए कहा
"मैं यह बात सोमिल को भी बता दूंगी”
वह हंसते हुए बोली
“अरे वह एकदम सज्जन है. वह यह सब काम शादी के पहले नहीं करेंगे”
हम दोनों हँसने लगे.
छाया मेरे गले लगते हुए कान में बोली
“आपकी शादी में भी मैंने पैंटी नहीं पहनी थी. मानस भैया सुहाग रात मनाने तक मुझे सहलाते रह गए थे.” वह हसते हंसते भाग गयी. सच में वह बड़ी नटखट थी.
हम सब अपने काम में मशगूल हो गए. छाया ने सच ही कहा था मेरे बताने से पहले ही उसने मानस को बता दिया था. जहां भी मौका मिलता वह मेरे पास आते मेरे घागरे को ऊपर करते मेरी रानी और नितंबों को सहला देते तथा अपने राजकुमार में तनाव भर कर चले जाते. मैं भी कभी-कभी उनके राजकुमार को अपने हाथों में लेकर दबा देती और उनके तनाव को महसूस करती. यह बड़ा आकर्षक लगता था. दिन भर हम एक दूसरे को उत्तेजित करते रहते मुझे पता था वह यही काम छाया के साथ भी कर रहे थे. मुझे यह और भी उत्तेजक लगता है कि छाया की दो-तीन दिनों में शादी है और वह अपने मानस भैया के साथ यह सब काम कर रही है पर छाया की यही मादकता और कामुकता उसका स्वभाव था. हम इसका आनंद ले रहे थे. छाया कभी-कभी मेरे पास भी आती और और मेरी रानी को हाथ लगा कर देखती और बोलती
“दीदी इसको सूखने नहीं देना है”
रात में घर पहुंचते-पहुंचते हम लोग पूरी तरह उत्तेजित रहते और अपने अपने अंदाज में अपना स्खलन करते. कभी कभी छाया विवाह भवन में भी स्खलन करा देती थी.
छाया की राजकुमारी अब राजकुमार को आगोश में लेने के लिए पूरी तरह तैयार हो चुकी थी
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Re: Incest अनचाहे रिश्तों में पनपती कामुकता की छाया

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छाया का विवाह
[मैं सीमा]
छाया का विवाह विधि विधान से सम्प्पन हुआ. हल्दी की रस्म में मैंने मुख्य भूमिका निभाई थी. मैंने छाया की राजकुमारी को हल्दी में भिगो दिया था और हल्दी छुड़ाते छुड़ाते उसे स्खलित करा दिया था वह उत्तेजित भी थी और खुश भी. शर्माजी ने कन्यादान दिया. गाव वाले उन्हें मानस का बॉस समझते थे और पितातुल्य मानते थे. हमारे लिए वो माया जी के भावी पति थे.
सुबह विदाई का कार्यक्रम संपन्न हुआ और छाया की विदाई भी हो गई. छाया विवाह मंडप के एक भाग से हटकर दूसरे भाग में चली गई थी. हम लोगों में से किसी को भी विदाई का पता भी नहीं चला. छाया की सुहागरात के लिए मैंने पांच सितारा होटल में कमरा बुक किया हुआ था. सोमिल की माता जी से मैंने पहले ही अनुमति ले ली थी. वह मुझसे बोली
“बेटा तुम सोमिल को भी बचपन से जानती हो और छाया को भी. वह तो तुम्हारी सहेली भी है और ननद भी. तुम दोनों की सुहागरात को जितना यादगार बना सकती हो बनाओ. मैं तो यही कहूंगी की उस दिन यह दोनों उस होटल में अकेले रहें इसकी बजाय तुम और मानस भी एक कमरा लेकर वहीं होटल में ही रहो. इससे उन दोनों को मानसिक बल मिलेगा.” सोमिल की मम्मी की यह बात मुझे पसंद आ गई. विवाह की भागा दौड़ी में मैंने भी मानस के साथ कई दिनों से खुलकर संभोग नहीं किया था मुझे पता था उन्हें इसकी सख्त आवश्यकता थी उनकी छाया भी उसी समय सुहागरात मना रही होगी ऐसे में उनकी वेदना को कम करना आवश्यकत था।
मैं छाया को लेकर ब्यूटी पार्लर चली गई. वह ब्यूटी पार्लर ब्राइडल मेकअप के लिए विख्यात था. वह दुल्हन को उसकी मनोदशा और इच्छा के अनुसार सजाता था. अपने विवाह के समय मुझे इस बात की जानकारी नहीं थी पर मेरी सहेली ने इस बारे में मुझे बताया था. यहां पर लड़कियों के स्तनों और जांघों पर भी मेहंदी से कलाकृति बनाई जाती थी. यह अत्यंत कामुक अनुभव होता होगा ऐसा मैंने सोचा था. मैंने छाया से उसकी राय मांगी उसने कहा चलो कराते हैं. फिर यह दिन बार-बार थोड़ी आएगा हम सब ब्यूटी पार्लर में दाखिल हो गए थे. लड़कियों ने हमारा स्वागत किया और हमारा मेकअप करने ले गई छाया ने मुझसे कहा
“सीमा भाभी आपको भी वैसा ही मेकअप करना पड़ेगा.”
“क्यों मेरी शादी थोड़ी है”
“आप भी करा लीजिए। आज आप मानस भैया के साथ ही रहिएगा. आप इस तरह सज धज कर उनके पास जाएगी तो उन्हें अच्छा लगेगा. जब मैं अपनी सुहागरात मना रही होउंगी उस समय आप मानस के साथ सुहागरात मनाईएगा. मुझे बहुत अच्छा लगेगा और मानस भैया भी खुस हो जाएंगे.” उसकी आँखों में आसूं थे. वो मानस को बहुत प्यार करती थी.
मैं उसकी बात मान गई मुझे उसकी बातों में प्यार भी दिख रहा था और मुझे अंदर ही अंदर हंसी भी आ रही थी. उन लड़कियों ने हम दोनों को अगल-बगल लिटा कर हमारा मेकअप शुरू कर दिया. उन्होंने हम दोनों की जाँघों, नितंबों और स्तनों पर तरह-तरह की कलाकृतियां बनाई जिससे हमारे अंग प्रत्यंग और निखर गए छाया की राजकुमारी के आसपास उन्होंने सजावट कर दी थी. मैंने अपनी राजकुमारी के ठीक ऊपर आई लव यू और एक दिल का निशान बनवा लिया था. हम दोनों एक दूसरे को देख कर खुश हो गए और मेकअप रूम में चले गए.
वहां पर हम दोनों को ब्राइडल मेकअप में तैयार किया गया. छाया की सुहागरात थी इसलिए उसकी सजावट मैंने कुछ ज्यादा करने के लिए कहा. पर हम दोनों को देखने के पश्चात यह कहना मुश्किल था असल में सुहागरात किसकी है. छाया ने सुर्ख लाल रंग की साड़ी पहनी हुई थी और मैंने हल्के हरे रंग की साड़ी पहनी हुई थी.
शाम को लगभग 9:00 बजे हम लोगों ने थोड़ा-थोड़ा खाना खाया और अब वक्त आ चुका था कि छाया और सोमिल को होटल पहुचाया जाए.
कुछ ही देर में हम लोग होटल के लिए निकल चुके थे.
मैं और मानस अलग गाड़ी में थे. छाया और सोमिल एक विशेष रूप से सजी-धजी गाड़ी में थे. मानस बहुत खुश थे वह मुझे बार-बार धन्यवाद देते और कहते
“सीमा इस शादी को संपन्न कराने में तुमने जो किया है मैं उसके लिए तुम्हारा शुक्रगुजार हूं. तुमने छाया और मुझे हमेशा के लिए ऋणी बना दिया” शायद मानस यह जानते थे कि मैंने सोमिल के वचन की लाज रख ली थी.
"छाया की खुशी में ही मेरी खुशी है” मैंने कहा. मैं खिड़की से बाहर देखने लगी.
मैं हमारे संबंधों में आये बदलाव के बारे में सोच रही थी. मुझे छाया से कुछ दिनों पहले हुए वार्तालाप की याद आ रही थी.

एक बार मैंने अंतरंग पलों के दौरान छाया से पूछा था
“सुहागरात के दिन तुम्हें अपना कौमार्य खोने के स्वप्न आते हैं”
“हां कभी-कभी आते हैं”
“तब तो मल्होत्रा जी सपने में आते होंगे ?”
वह मुस्कुराने लगी. मैंने कहा
“बता ना”
“अरे छोड़िए दीदी”
“नहीं नहीं प्लीज बताओ ना. तुम तो मेरी अतरंग सहेली हो मुझसे क्या छुपाना “
“सच कहूं तो अभी भी मानस भैया ही आते हैं”
“क्या?”
“वाह री भैया की प्यारी बहना” कह कर मैंने उसके गाल पर चिकोटी काट ली.
“भगवान करे तेरा सपना सच हो”
“दीदी आप भी मजाक करतीं हैं”
“कई बार सपने सच भी हो जाते हैं “
“सच हो गया तो तो मैं इस धरती की सबसे भाग्यशाली इंसान होउंगी.” यह कह कर वह मुस्कुरा दी थी.

टायरों के चीखने की आवाज से मेरी तन्द्रा भंग हुयी. हम होटल पहुच चुके थे.

हमारी गाड़ी होटल के पोर्च में रुकी. हम सब होटल में रिसेप्शन की तरफ बढ़ रहे थे. हमारे साथ सामान के नाम पर दो ब्रीफकेस थे. एक छाया का और एक ब्रीफकेस में मैंने अपने कुछ कपड़े रख लिए थे. रिसेप्शन पर हमें दो कमरों की चाबी ने दी गई और हम आठवीं मंजिल पर स्थित अपने कमरों की ओर चल पड़े. लिफ्ट में जाते समय हम चार लोग थे पर पूरी शांति थी. दो सजी-धजी नवयौनाए संभोग सुख लेने के लिए होटल के कमरे में जा रहीं थीं। कोई भी एक दूसरे से बात नहीं कर रहा था पर सभी एक दूसरे को देख कर मुस्कुरा रहे थे.
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सुहागरात
[मैं सीमा]

मैंने होटल वाले से बोलकर दोनों ही कमरों को सुहागरात के हिसाब से सजाया था. मानस की खुशी के लिए मैंने एक कमरे को उनकी पसंद से सजाया था. लॉबी में चलते हुए सबसे पहले जो कमरा आया उसकी चाबी सोमिल के पास थी सोमिल ने अपने कमरे का दरवाजा खोला और हम सब उसके कमरे में दाखिल हो गए. कमरा अत्यंत सुंदर तरीके से सजाया हुआ था मैंने सोमिल से कहा आप यहां इंतजार कीजिए हम लोग दूसरा कमरा देख कर आते हैं. छाया ने कहा
“मैं भी आती हूं” वह भी हमारे पीछे पीछे आ गई. हम लोगों ने बगल वाला कमरा भी खोला वह कमरा भी वैसे ही सजा हुआ था. छाया आश्चर्यचकित होकर बोली
“अरे आप लोगों ने भी अपना कमरा वैसे ही सजाया है” यह तो बड़ा आनंद दायक है मुझे बहुत खुशी हो रही है. आप लोग भी मुझे याद कर इस घड़ी का आनंद उठाएंगे” यह कहकर वो मुझसे लिपट गई. मैंने उसके कान में कहा
“छाया मेरी बात ध्यान से सुनो. तुम्हें आज सुहागरात इसी कमरे में मनानी है वह भी तुम्हारे मानस भैया के साथ. तुम्हारा सपना पूरा होने जा रहा है. मानस से सिर्फ इतना कहना कि सीमा भाभी वचन निभाने गई है. वह समझ जाएंगे” इतना कहकर मैं उस कमरे से चली आई और दरवाजा बंद कर दिया.

[मैं मानस]
“अरे सीमा कहां चली गई”
“पता नहीं वह अचानक चली गयीं और मुझसे कहा कि आपको बता दूं कि वह अपना वचन निभाने गई है”
“पर आज तो तुम्हारी सुहागरात है.”
“हां पर उन्होंने ऐसा ही कहा है”
सीमा के वचन से मुझे तो सारी परिस्थितियां समझ में आ गई थी. सीमा आज के दिन ही सोमिल का वचन पूरा करेगी यह मुझे उम्मीद कतई नहीं थी. उसने आज छाया की सुहागरात खराब कर दी थी. आज के दिन छाया को सोमिल के साथ होना चाहिए था. तभी छाया मेरे पास आई और मुझसे लिपट गई. छाया ने मुझसे पूछा
“सीमा दीदी किस वचन की बात कर रही थी?”
मैंने उसे सब कुछ बता दिया वह खुश हो गई थी. उसने मुझसे कहा
“सीमा दीदी की आज्ञा है कि मैं आपके साथ ही सुहागरात मनाऊं”
हम दोनों सारी बात समझ चुके थे और सीमा को दिल से धन्यवाद दे रहे थे कि उन्होंने हम दोनों के इस बहुप्रतीक्षित मिलन को इतना शुभ और आसान कर दिया था साथ ही साथ उसने सोमिल के वचन की लाज भी रख कर छाया के आने वाले वैवाहिक जीवन को खुशहाल करने का मार्ग प्रशस्त कर दिया था. दोनों अप्सराएं एक दुसरे के लिए ही बनीं थी. पहले छाया ने सीमा को मुझसे मिलाया और अब सीमा ने मेरी प्रियतमा को इस पावन अवसर पर संभोग के लिए प्रस्तुत कर दिया था।

छाया अब मेरी बाहों में आ चुकी थी. हमारे मन में कोई मलाल नहीं था. छाया का विवाह हो चुका था और अब वह संभोग के लिए तैयार थी. हम दोनों एक दूसरे के होंठों का चुंबन प्रारंभ कर चुके थे.

[मैं छाया]

मानस की बातें सुनने के बाद मैं पूरी तरह तैयार हो चुकी थी. मुझे मानस के साथ अपना सुहागरात मनाने का बहुप्रतीक्षित अवसर आ चुका था. मैं मानस के होठों को लगातार चूमे जा रही थी. मेरा सपना जो एक बार टूट चुका था आज पुनः जीवंत हो उठा था. मानस के चुंबन में आज अधीरता थी. आज मेरे प्यारे राजकुमार और राजकुमारी का पूर्ण मिलन होने वाला था. आज मैं पूरे तन मन से मानस की हो जाना चाहती थी. मेरे शरीर का रोम रोम उन्हें अपने से जोड़ लेना चाहता था. मेरे शरीर के हर अंग को उनका ही इन्तजार था. मेरे स्तनों को उन्होंने ही आकार दिया था. मेरी जाँघों और नितम्बों पर उनकी ही हथेलियों में मालिश की थी. मैं भावविभोर थी. मानस के हाथ धीरे धीरे मेरे घागरे तक पहुंच चुके थे. उन्होंने उसका नाडा धीरे से खोल दिया था. घागरा भारी होने की वजह से तुरंत ही नीचे गिर पड़ा. मैं नीचे से नग्न हो गयी थी. मानस अभी भी मुझे चुमने में व्यस्त थे उनके हाँथ नितम्बों को सहला रहे थे. कुछ ही देर में उन्हें मेरे स्तनों का ख्याल आया. धीरे से चोली ने भी मेरा साथ छोड़ दिया अब मैं उनके सामने नग्न खड़ी थी. शादी में सीमा भाभी ने मेरे लिए कई सारे गहने लिए थे. सिर से पैर तक लगभग हर अंग पर ज्वेलरी के अलावा और कुछ नहीं बचा था. मानस अभी मुझे लगातार चुम्बन दिए जा रहे थे.
[मैं मानस]
मैंने छाया को अपने शरीर से थोड़ा दूर किया ताकि मैं देख सकूं कि वह कैसी दिखाई दे रही है. छाया आज एक अप्सरा की तरह दिखाई पड़ रही थी. उसके शरीर से सारे वस्त्र निकले हुए थे परंतु सीमा द्वारा दी गई ज्वेलरी उसके शरीर पर अभी तक विद्यमान थी और उसे एक अद्भुत खूबसूरती प्रदान कर रही थी. उस समय छाया आदिकाल की कामुक मूर्ति लग रही थी. छाया छाया के आभूषण उसकी सुंदरता में चार चांद लगा रहे थे. उसके स्तनों पर मेहंदी से जो कलाकृति बनाई गई थी वह अत्यंत मादक थी. स्तन उभरकर बाहर आ रहे थे. निप्पलों के आसपास भी मेहंदी की सजावट की गई थी. छाया का कटी प्रदेश और नाभि अत्यंत मोहक लग रहे थे. नाभि प्रदेश के ठीक नीचे उसका कमरबंद दिखाई पड़ रहा था. मैंने और माया आंटी ने उसे बड़ी पसंद से चुना था और आज मैं छाया को उसी कमरबंद में नग्न देखकर अत्यंत खुश हो रहा था. उसके राजकुमारी के चारों तरफ भी सजावट की गई थी. छाया की मांसल जाँघों पर करीने से मेहंदी लगाई गई थी. मैं यकीन नहीं कर पा रहा था की छाया को इस ढंग से किसने सजाया होगा और वह खुद कितना उत्तेजित हुआ होगा. छाया ने नाक की नथ खूबसूरत थी. वह मुझे उसकी सुहागरात की याद दिला रही थी. छाया सिर झुकाए खड़ी थी वह मेरे अगले कदम की प्रतीक्षा कर रही थी. मैंने उसे फिर से अपने आलिंगन में ले लिया और बारी-बारी से उसके आभूषण खोलने लगा. उसकी अंगुलिया मेरे वस्त्रों की साथ खेलने लगी और मैं नग्न होता चला गया. हम दोनों हमेशा की तरह एक दुसरे के आलिंगन में नग्न खड़े थे. उसके माथे का सिन्दूर उसका मंगलसूत्र और नथ जो उसके सुहागरात की निशानी थे मुझे विशेष दिन की याद दिला रहे थे. मैंने उसके माथे पर चुम्बन लिया और उससे बोला
“तुम्हारी इच्छा थी की तुम जिसे चाहती थी वही तुम्हारा कौमार्य भेदन करे. मुझे उम्मीद करता हूं कि तुम खुश होगी”
उसने कुछ कहे बिना मेरे लिंग को अपने दोनों हाथों में ले लिया और बोली.
“मैंने सोते जागते इस दिन का अपने जीवन में पिछले ३ -४ सालों से प्रतीक्षा की है और सीमा दीदी की वजह से मुझे आपके राजकुमार से यह सुख मिलेगा यह मेरा सौभाग्य है.”
यह कहकर वह नीचे झुकी और राजकुमार को चूम ली. मैंने उसे गोद में उठा लिया. उसे इस तरह नंगी होकर मेरी बाहों में आना बहुत अच्छा लगता था. मेरा एक हाथ उसके नितंबों के नीचे था तथा दूसरे हाथ से मैंने उसकी पीठ को सहारा दिया था वह अपना दाहिना हाथ मेरे गर्दन में फसाई हुई थी. उसके स्तन मेरे स्तनों से टकरा रहे थे. इस अवस्था में उसे बहुत अच्छा लगता था वह बार-बार मुझे इसी तरह गोद में लेने के लिए बोलती थी. आज छाया बहुत खुश थी. मेरा राजकुमार बार बार उसके नितंबों से छू रहा था. मैं उसे बेड के साइड में लगे एक बड़े आईने के पास ले गया. वह यह दृश्य देखकर मंत्रमुग्ध हो गई थी. उसने अपने आप को इतना सजे धजे कभी नहीं देखा था और वह भी इस तरह मेरी बाहों में. वह मदमस्त थी मैं उसके गालों पर लगातार चुंबन ले रहा था. उसके माथे पर लगा हुआ सिंदूर जरूर मेरे नाम का नहीं था पर आज वह विवाहिता थी. उसने अपनी राजकुमारी को देखने की लिए अपनी जांघे फैलाई. हम दोनों उसकी सजावट देखकर खुश हो गए. उसने मुझे चूम लिया और कहा
“ आज मैं और मेरी राजकुमारी आप के लिए सजे हैं”
मैं उसे लेकर धीरे-धीरे बिस्तर पर आ गया. श्वेत धवल चादर पर उसका यह सजा धजा गोरा और कोमल बदन मेरी उत्तेजना को ऊंचाइयों तक ले गया. मैंने छाया को बिस्तर पर लिटा दिया उसके सर के नीचे लाल रंग का सुनहरा तकिया रख दिया. उसने अपने दोनों हाथ सिर के नीचे रख लिए. उसने अपनी जांघों को थोडा फैला दिया था. मैंने उसकी जाँघों को थोडा ऊपर उठाने को कोशिश की. वो समझ गयी और अपनी जाँघों को अपने हांथो से ऊपर खीच लिया ठीक वैसे ही जैसे उसने राजकुमारी दर्शन के समय किया था. मैंने आज राजकुमारी के दिव्य रूप के दर्शन कर रहा था उसकी राजकुमारी की सजावट राजकुमारी की खूबसूरती में चार चांद लगा रही थी. छाया मंद मंद मुस्कुरा रही थी. उसकी मुस्कुराहट में अजीब किस्म की मादकता थी. उसने अपने दोनों हाथ मेरी तरफ बढ़ा दिए. मैं अब उसकी जांघों के बीच आ चुका था इस दौरान सीमा की राजकुमारी के होठों पर प्रेम रस की बूंदें छलक आई थी. आज उसे किसी और उत्तेजना की आवश्यकता नहीं थी. छाया के हाथों का बुलावा देखकर मैं उसके आलिंगन में आने को बेताब हो गया और कुछ ही देर में मैं छाया के ऊपर आ चुका था . मेरा सीना छाया के स्तनों से टकरा रहा था और मेरा राजकुमार राजकुमारी के मुख पर दस्तक दे रहा था.
छाया ने दोनों हाथों से मेरे गाल को पकड़ा और बहुत प्यार से बोली
“मानस भैया इस दिन का इंतजार हम लोग कब से कर रहे थे. आज वह दिन आ गया. आज अपनी छाया को की राजकुमारी को रानी बना दीजिए” इतना कहकर उसने मेरे होठों को चूम लिया.
मैंने उसकी नथ उतारी वह मुस्कुरा रही थी.
मैंने भी अपने राजकुमार को उसकी राजकुमारी के मुख पर रखकर अपना दबाव बढ़ा दिया. जैसे ही राजकुमार उसकी कौमार्य झिल्ली से टकराया छाया की कमर में हलचल हुई. मैंने उसके होठों को और तेजी से चूसना शुरू कर दिया इसके पहले कि वह कुछ समझ पाती मैंने एक झटके में उसका कौमार्य भेदन कर दिया. इससे उसे पीड़ा अवश्य हुई यह उसकी आंखों और चेहरे के हाव भाव से स्पष्ट दिखाई पड़ रहा था. उसकी आंखों में आंसू भी आ गए थे पर वह जैसे इन सब के लिए तैयार थी. मैं उसी अवस्था में कुछ देर रुका रहा. वह मुझे लगातार चूम रही थी. मैंने अपने दोनों हाथों से उसके आंसू पोछे और उसके माथे पर चुंबन किया और एक बार फिर अपने राजकुमार का दबाव बढ़ा दिया. राजकुमार अब और गहराइयों में उतर चुका था लिंग का अंतिम भाग भी राजकुमारी में पूरी तरह उतर चुका था. अब इसके आगे जाने की संभावना नहीं थी छाया बेसुध होकर मेरे अगले कदम का इंतजार कर रही थी. उसकी सांसें बहुत तेज चल रही थी.
मैंने इसी अवस्था में उसको सामान्य करने के लिए उसके स्तनों पर हाथ फेरना शुरू किया. स्तनों पर हाथ फेरने और उन्हें सहलाने के बाद छाया को आनंद का अनुभव होने लगा. मैं लगातार चुंबन लेकर उसे खुश कर रहा था. सामान्य होते ही उसने कहा
“आज मेरी राजकुमारी रानी बन गई” यह कह कर उसने मुझे चूम लिया . मैं अब अपनी कमर को धीरे-धीरे आगे पीछे करने लगा और वह इस का आनंद लेने लगी. संभोग का सुख अतुलनीय है छाया यह बात समझ रही थी और इसका आनंद उठा रही थी. उसकी राजकुमारी के कंपन आज अति शीघ्र चालू हो गए. राजकुमार उन कम्पनों के बीच में स्वयं भी उछलने लगा था. मुझे लगा जैसे मैं छाया के अंदर ही स्खलित हो जाऊंगा. मैंने अपने आप को नियंत्रित किया. मेरे संभोग क्रिया के दौरान छाया अब स्खलित होने की कगार पर पहुंच चुकी थी. उसकी राजकुमारी के कंपन बढ़ते जा रहे थे. अचानक उसकी जांघें पूरी तरह फैल गई उसके चेहरे पर एक अजीब किस्म का खिंचाव आ गया. और उसके नाखून मेरी पीठ में गड गए. छाया स्खलित हो रही थी. स्खलित हो रही राजकुमारी में राजकुमार का तेज आवागमन अत्यंत सुख देता है ऐसा अनुभव मुझे सीमा ने बताया था. मैं वही अनुभव छाया को महसूस करना चाहता था. मैंने अपनी पूरी शक्ति से अपने राजकुमार को उसके राजकुमारी के अंदर आगे पीछे करने लगा. तेज गति से राजकुमार के आवागमन के कारण छाया का आनंद बढ़ता जा रहा था. उसके चेहरे पर दिख रहा यह आनंद अद्भुत था. मेरे राजकुमार का भी लावा फूटने वाला था पर मैं किसी भी हालत में छाया को स्खलित किए बिना अपना लावा नहीं छोड़ना चाहता था. अंततः छाया के जाँघों का तनाव कम पड़ते ही मैंने अपने राजकुमार की अंतिम झटका देते हुए राजकुमारी की पूरी गहराइयों तक उतार दिया . गहराइयों में जाने के बाद राजकुमार स्खलित होने लगा. मैंने उसे बाहर निकाल लिया और हमेशा की तरह मेरे वीर्य ने छाया के शरीर को ढक लिया. मैं छाया के बगल में लेट गया और उसे अपने आलिंगन में ले लिया. हम दोनों ही हांफ रहे थे. और एक दूसरे को प्यार से सहला रहे थे.


कुछ देर बाद हमारी सांसे सामान्य हो गयीं. छाया बिस्तर से उठ कर बाथरूम की तरफ जा रही थी. उसने बिस्तर पर लाल निशान देखा उसने मुझे उठाया और वह लाल निशान दिखाया . हम दोनों ही यह समझ गए थे कि यह छाया के कौमार्य भेदन का प्रतीक है. मैंने छाया को उसकी राजकुमारी की तरफ इशारा करके दिखाया. वह भी रक्त से सनी हुई थी पर छाया को साफ साफ नहीं दिखाई पड़ रही थी. मैं छाया को फिर से गोद में लेकर आईने के पास ले गया उसने अपनी जांघें फैलाकर अपनी राजकुमारी को देखा. वह फूली हुई थी और उसके निचले भाग पर रक्त लगा था जो सूख गया था. उसने मुझे गालों पर फिर से चुंबन लिया और मेरे कान में बोली
“थैंक्यू मानस भैया” भैया शब्द पर उसने विशेष जोर दिया और मेरे गाल पर फिर से एक पर चुंबन जड़ दिया.
अब वह मेरी गोद से उतर चुकी थी और बाथरूम की तरफ जा रही थी. उसकी जांघो पर भी रक्त के धब्बे थे जो पीछे से दिखाई पड़ रहे थे.
कुछ ही देर में वह वापस बिस्तर पर आई. मैं भी एक बार बाथरूम में जाकर अपने राजकुमार पर लगे रक्त के धब्बों को साफ कर कर आया. हम दोनों एक दूसरे के आलिंगन में फिर से आ गए. छाया बहुत खुश थी परंतु संतुष्ट नहीं थी. वह संभोग सुख दोबारा लेना चाहती थी. वह मुझे फिर से चूम रही थी कुछ ही देर में मेरा राज कुमार वापिस युद्ध लड़ने के लिए तैयार हो गया था. छाया अब मेरे ऊपर आ चुकी थी इस बार उसने खुद ही मोर्चा संभाल लिया था. अपनी कमर को मेरे राजकुमार के ऊपर व्यवस्थित करने के बाद उसने अपने हाथों में मेरे राजकुमार को पकड़ लिया और अपनी रानी के मुख पर रख दिया. वह अपनी कमर को नीचे करती गई और राजकुमार की रानी में विलुप्त होता चला गया. जैसे-जैसे राजकुमार अंदर की तरफ जा रहा था छाया के चेहरे पर एक अजीब किस्म का नशा दिखाई पड़ रहा था. वह बहुत खुश थी. पूरे राजकुमार को अपने अंदर लेने के बाद वह मुस्कुरा उठी इस कार्य में उसे कुछ दर्द हो रहा था कि नहीं पर वह उसको नजरअंदाज कर रही थी. वह वापिस मेरे चेहरे की तरफ आई और अपने स्तनों को मेरी छाती से रगड़ने लगी मैंने भी उसके सजे हुए स्तनों लो अपने दोनों हाथों में ले लिया और उन्हें सहलाने लगा. छाया की कमर हिलने लगी थी. वह धीरे-धीरे अपनी रानी को आगे पीछे करती और मेरा राजकुमार उसका साथ देता. धीरे-धीरे छाया के कमर की गति बढ़ती जा रही थी वह अद्भुत सुख में थी. मैं उसके नितंबों को लगातार सहला रहा था वह इस आनंद की अनुभूति इस बार और भी अच्छे से कर रही थी. बीच-बीच में मैं उसकी दासी को भी हाथ लगा देता था. जैसे ही मैं उसकी दासी को हाथ लगाता वह मेरी तरफ देखती मुस्कुराती और फिर अपनी रफ्तार बढ़ा देती. उसका इस तरह से मेरे साथ संभोग करना अकल्पनीय सुख दे रहा था. मैंने छाया से हमेशा कुछ नए की उम्मीद की थी और आज वह इतनी रफ्तार में और तरह तरह से अपनी कमर चला रही थी कि मुझे यकीन नहीं हो रहा था. राजकुमार अद्भुत सुख में था एक बार के लिए मुझे लगा की छाया ने जिम की मांग सही की थी इन दिनों उसकी कमर में कसाव आ गया था. कुछ ही समय में मैं उत्तेजना के शीर्ष पर पहुंच गया छाया की धड़कन भी और बढ़ गई थी. कुछ ही देर में मुझे महसूस हुआ जैसे मैं पहले स्खलित हो जाऊंगा. मैंने छाया की उत्तेजना बढ़ाने के लिए उसके निप्पलों को अपने मुंह में ले लिया मैं बारी-बारी से उसके निप्पल चूसने लगा. मेरा फार्मूला काम कर गया और छाया की रानी के कंपन महसूस होने लगे. मैंने भी अपने कमर की गति से रानी को और उत्तेजित करने की कोशिश की. अंततः स्खलित हो रही छाया की कमर हिलनी बंद हो गई. मैंने उसे अपने आगोश में जोर से खींच लिया और अपने कमर की गति और तेज कर दी. छाया काँप रही थी पर मैंने अपनी गति न रोकी. मैंने अपने राजकुमार को रानी के अंदर तक पूरा प्रवेश करा दिया था. मेरा लावा फूटने ही वाला था. मैंने लिंग को बाहर किया. वीर्य किधर जा रहा था यह मुझे होश नहीं था. वह छाया और मेरे पेट के बीच कहीं अपना रास्ता तलाश रहा था. मेरे हाथ छाया के नितंबों और पीठ पर थे वह मुझसे लिपटी हुई थी कुछ ही देर में वह मेरे बगल में आ गयी. और हम एक दूसरे के आगोश में फिर कुछ देर के लिए शांत हो गए

मैंने और छाया ने उस रात चार बार संभोग किया. छाया इस सुहागरात को यादगार बना देना चाहती थी 4 बार संभोग करने के पश्चात वह खुद भी बहुत थक गई थी. राजकुमारी पर एक साथ इतने प्रहार से वह भी आहत हो गई थी. मैंने उसे दिखाया राजकुमारी काफी फूल गई थी और उसके साथ दोबारा संभोग करना उचित नहीं होता. मैंने छाया को अपनी गोद में लेकर सो जाने के लिए कहा वह मान गई पर बोली
“ मानस भैया क्या यह हमारी आखिरी रात है”
मैंने उससे कहा
“ सीमा हैं ना, वो हमें फिर मिलवाएगी”
छाया खुश हो गयी और मेरी गोद में सो गई.


सोमिल के वचन की लाज
सोमिल बिस्तर पर बैठा इंतजार कर रहा था. मैं मानस और छाया को छोड़कर वापस आई

अनचाहे रिश्तों में पनपती कामुकता
भाग- 22

सोमिल के वचन की लाज
( मैं सीमा)

छाया और मानस को एक साथ छोड़कर मैं वापस अपने कमरे की तरफ चल पड़ी आज मानस और छाया के संभावित मिलन को सोच कर मैं मन ही मन मुस्कुरा रही थी। सोमिल के कमरे का दरवाजा खोल कर जैसे ही मैं अंदर दाखिल हुई मेरे सिर पर किसी ने जोरदार प्रहार किया मैं धड़ाम से गिर गई।

अगले दिन सोमवार

समय सुबह के 8:00 बजे

(मैं छाया)

"मानस भैया उठिए 8:00 बज गए, हमें 7:00 बजे ही विवाह भवन वापस जाना था."

सीमा भाभी भी उठाने नहीं आयीं। उन्होंने मुझसे 7:00 बजे चलने के लिए कहा था।"

मानस भैया ने मुझे फिर अपनी बाहों में खींच लिया। अभी तक हम दोनों वैसे ही नग्न थे। मेरी खुद की भी इच्छा उनकी बाहों में आकर एक बार और संभोग सुख लेने की थी पर काफी विलंब हो चुका था। मैं उन्हें चूमती हुई बिस्तर से हट गई। उन्होंने कहा

"जाकर देखो सीमा कहां रह गई। लगता है सोमिल का वचन निभाते निभाते वह भी मगन हो गयी" ऐसा कहकर मानस भैया हंसने लगे.

मैंने अपनी नाइटी पहनी और बगल वाले कमरे में गई. कमरे का दृश्य देखकर मेरी चीख निकल गई मैंने दरवाजा वैसे ही बंद कर दिया। और भागकर अपने कमरे में आयी.

"मानस भैया,,,, मानस भैया" सीमा भाभी बेहोश पड़ी है जल्दी आइए.. मानस भैया ने अपना पजामा और कुर्ता पहनना और भागकर बगल वाले कमरे में आए। मैं भी उनके पीछे-पीछे डरी हुई कमरे में प्रवेश की। बिस्तर के एक तरफ सीमा भाभी नीचे जमीन पर बेसुध पड़ी हुयीं थी। मानस भैया ने उनकी पल्स देखी वह चल रही थी। उन्होंने मुझसे कहा..

"थोड़ा पानी देना" मैं भागकर बिस्तर की दूसरी तरफ पानी लेने गई. वहां जमीन पर पड़े एक और व्यक्ति को देखकर मैं एक बार फिर चिल्लाई . मानस भैया सीमा दीदी को छोड़ मेरे पास आये। वह आदमी जमीन पर पेट के बल पड़ा हुआ था। उसके चारों तरफ खून फैला हुआ था उसके पीठ में गोली लगी थी। यह दृश्य देखकर हम दोनों के होश उड़ गए। मैं डर से रोने लगी। मानस भैया ने टेबल पर पड़ी पानी की बोतल उठाई और पानी की कुछ बूंदे सीमा के चेहरे पर डाली। सीमा की आंखें कुछ पल के लिए खुलीं। मानस भैया ने सीमा के चेहरे पर एक बार फिर पानी छींटा सीमा ने आंखे खोली वह होश में आ रही थी।

मानस भैया ने मुझे चुप रहने का इशारा किया। सीमा अब होश में आ चुकी थी। मानस भैया ने उसे भी चुप रहने के लिए कहा और उसे उठाकर किसी तरह अपने कमरे में ले आये।

हम तीनों की हालत खराब थी। सोमिल के कमरे में खून हुआ था। पर सोमिल कमरे से गायब था। सीमा भाभी भी कुछ बता पाने की स्थिति में नहीं थीं।

(मैं मानस)

सीमा को इस हालत में देखकर मेरे होश फाख्ता हो गए थे मेरी प्यारी सीमा किस हाल में आ चुकी थी जब उसने आंखें खोली तो मुझे राहत महसूस हुई मैंने भगवान को एक बार फिर शुक्रिया अदा किया हम तीनों आगे आने वाली घटनाओं के बारे में सोच रहे थे। खून हुआ था और यह एक असामान्य घटना थी। मैंने पुलिस को इत्तिला करने की सोची पर पुलिस का नाम सुनते ही छाया और सीमा डर गयीं। सीमा अभी भी नववधू वाले लिबास में थी।

छाया ने कहा कुछ देर रुक जाइए पहले हम स्वयं को इस बात के लिए तैयार कर ले। मैंने अपना फोन उठाया उसमें कई सारे मिस कॉल थे। विवाह भवन से माया आंटी, शर्मा अंकल, मनोहर चाचा जाने कितने ही लोगों के फोन उस में आए हुए थे। हमें सुबह 7:00 बजे विवाह मंडप पहुंच जाना था और इस समय 8:30 बज रहे थे हमें देर हो चुकी थी। वह सब निश्चय ही हमारी चिंता कर रहे होंगे।

छाया ने कहा

" हम पुलिस से क्या बताएंगे? सीमा दीदी सोमिल के कमरे में क्यों थी?

प्रश्न जटिल था और उत्तर बना पाना इतना आसान नहीं था. तभी छाया की दृष्टि हमारे बेड पर पड़ी. हमारे प्रेम रस और छाया के प्रथम संभोग से हुए रक्तश्राव से बिस्तर पर एक अद्भुत कलाकृति बन गई थी। राजकुमारी(कुवारी योनि) का रक्त स्पष्ट रूप से बिस्तर पर दिखाई पड़ रहा था. छाया ने रूम सर्विस को फोन कर दो बेडशीट लाने ने के लिए बोला। कुछ ही देर में हमारे बेड पर नई बेडशीट थी। परंतु बिस्तर पर हुए रक्तस्राव और प्रेम रस के मिश्रण ने गद्दे पर भी अपने अंश छोड़ दिए थे।

हमने अपने उत्तर तैयार कर लिए।

मैंने आखिरकार पुलिस को फोन कर दिया।
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