Incest अनचाहे रिश्तों में पनपती कामुकता की छाया

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Ankit
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Re: Incest अनचाहे रिश्तों में पनपती कामुकता की छाया

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बुधवार (तीसरा दिन)
मानस का घर (सुबह 8.15 बजे)
(मैं मानस)

सुबह फोन की घंटी बजते ही मेरे मन में एक अनजाना सा डर समा गया. यह लगभग वही समय था जिस समय कल डिसूजा ने फोन किया था।

मैने फोन उठाया , जिसका मुझे डर था वही हुआ यह फोन डिसूजा का ही था मैंने भगवान को मन में याद किया

"यस मिस्टर मानस, आप सोमिल की पत्नी छाया को लेकर सुबह 10:00 बजे पुलिस स्टेशन आ जाइए"

"सर, कुछ मालूम चला क्या?"

"आइए वही बात करते हैं"

उसकी आवाज में तल्खी थी. मुझे एक अनजाना डर सताने लगा। डिसूजा के पास छाया को ले जाने में मुझे हमेशा डर लगता था. छाया जैसी कोमलांगी और सुंदर नवयौवना को देखकर उसकी आंखों में जो हवस आती थी वह डराने वाली थी। हम मजबूर थे मैंने यह बात छाया और सीमा को बताई छाया डर के मारे रोने लगी।

मैंने उसे अपने सीने से लगाया और समझाया। सीमा ने कहा मैं भी चलूंगी साथ में। एक बार हम तीनों फिर तैयार होकर पुलिस स्टेशन के लिए निकल पड़े। छाया ने आज बिल्कुल सादे कपड़े पहने थे। उसने सलवार कुर्ता पहना था और दुपट्टा भी ले लिया था। वह पूरी तरह अपनी कामुकता को छुपाना चाहती थी और सादगी से वहां जाना चाहती थी। वह डिसूजा की आंखों में हवस देख चुकी थी और उसे किसी भी तरह बढ़ाना नहीं चाहती थी।

यह मेरी वही छाया थी जिसे कामुकता जी भर कर पसंद थी। वह अपनी कामुक हंसी और अदाओं से आस पास के लोंगों को हमेशा उत्तेजित करके रखती थी। पर आज वह स्वयं डरी हुई थी।

पुलिस स्टेशन जैसे-जैसे करीब आ रहा था हम तीनों का डर बढ़ता जा रहा था। छाया मेरे से चिपकती जा रही थी और उसकी गर्दन झुकी हुई थी।

पुलिस स्टेशन आ चुका। कुछ ही देर में हम तीनों डिसूजा के ऑफिस में थे

जंगल का कैदखाना ( सुबह 4 बजे)
(मैं सोमिल)

जल्दी सो जाने की वजह से मेरी नींद रात में ही खुल गई मैंने देखा शांति सोफे पर सो रही थी। उसने अपने ऊपर एक चादर डाल रखी थी जो उसके पैरों से हट गई थी। कमरे में इतनी ठंड नहीं थी की चादर ओढ़ने की जरूरत पड़े । मुझे लगता था शांति ने स्वयं को ढकने के लिए चादर का उपयोग किया था ठंड से बचने के लिए नहीं।

मुझे इस तरह उसे सोफे पर देखकर दया आ रही थी पर मैं उसे बिस्तर पर आने को नहीं कह सकता था। वह युवा लड़की थी मैं पशोपेश में था सोफा इतना बड़ा भी नहीं था जिस पर मैं आराम से सो जाता और उसे बिस्तर पर सुला देता। मैं कुछ देर यूं ही बिस्तर पर जागता रहा बाहर जाने का कोई उपाय नहीं था मुझे सुबह होने का इंतजार करना था।

इसी दौरान मोबाइल पर मेरी नजर पड़ी। मैंने टाइम पास करने के लिए मोबाइल उठा लिया। मोबाइल में कोई नंबर सेव नहीं था। मोबाइल खंगालने पर मुझे कुछ मीडिया फाइल दिखाई पड़ी मैंने उसे प्ले कर दिया। वह पोर्न फिल्म थी। कमरे में अचानक आह... ऊह...की आवाजें आने लगी मैं घबरा गया. शांति कमरे में ही थी।

मैंने किसी तरह मोबाइल को बंद किया तब तक शांति करवट ले चुकी थी। उसकी चादर अब नीचे गिर चुकी थी। शांति की नाइटी से उसके पैर झांक रहे थे। जितना ही मैं नजर हटाता उतनी ही मेरी नजर उसकी तरफ जाती। उसकी पीठ मेरी तरफ थी वह करवट लेकर लेटी हुई थी । पीछे से उसके नितंबों और जांघों का आकार भी स्पष्ट दिखाई पड़ रहा था। स्त्रियों के शरीर की बनावट करवट लेकर सोने पर स्पष्ट दिखाई पड़ती है। मेरे लिंग में न चाहते हुए भी उत्तेजना आ चुकी वह पूरी तरह खड़ा हो गया था।

मैं बिस्तर पर बैठा उसे सहला कर शांत करने लगा पर जितना ही मैं उससे सहलाता था वह उतना ही उत्तेजित होता। अंततः मैंने उसे अपनी हथेलियों से जकड़ कर अपने लिंग का मान मर्दन करना शुरू कर दिया। उसे झुकाने के प्रयास में मेरे हाथों को ज्यादा मेहनत करनी पड़ रही थी। मेरी हथेलियों की विजय होने ही वाली थी पर शायद बिस्तर पर हो रही हलचल से शांति की नींद खुल गई। वह उठ खड़ी हुई...

"सर कोई दिक्कत है?" उसने कमरे में लगी बड़ी लाइट जला दी कमरे अब पूरी तरह प्रकाश हो गया।

मैंने फुर्ती से बगल में पड़ा हुआ तकिया उठाकर अपनी गोद में ले लिया मैं अपनी यह उत्तेजित अवस्था उसे बिल्कुल नहीं दिखाना चाहता था वह शर्मसार हो जाती और मैं भी।

सुबह के 4:00 बज रहे थे।

सर क्या मैं आपका बाथरूम यूज कर सकती हूं..

मुझे थोड़ा अनकंफरटेबल महसूस हुआ मैंने कहा "कोई और बाथरूम नहीं है क्या?"

"नहीं सर' आपको दिक्कत होगी तो मैं बाहर चली जाऊंगी खुले में" उसके चेहरे पर तनाव आ गया था।

कितनी सुंदर और युवा लड़की का बाहर खुले में जाना मुझे कतई गवारा नहीं था बाहर 2-2 गार्ड भी थे. मनुष्य में हवस कभी भी जाग सकती है। मैंने उसे बाथरूम प्रयोग करने की इजाजत दे दी। वह बाथरूम में जा चुकी थी कुछ ही देर में मुझे शीशश….सुसु…..ररररर .की ध्वनि सुनाई पड़ने लगी। कमरे की असीम शांति में यह ध्वनि और भी स्पष्ट थी। हर पुरुष इस ध्वनि को भलीभांति पहचानता है और उसके मन में ध्वनि स्रोत की एक झलक अवश्य बन जाती है।

मैं अपने मन में जाग रही कामुकता को रोक रहा था और नीचे मेरा लिंग विद्रोह पर उतारू था। इस मधुर ध्वनि से वह और भी तन गया था। दिमाग में आए विचारों को वह जाने वह कैसे पढ़ लेता था। मेरी हालत खराब होने लगी अब मैं उसे सहला भी नहीं सकता था।

कुछ ही देर में शांति बाहर आ चुकी थी

"सर, चाय पिएंगे?

मैंने सहमति में सर हिला दिया

"ठीक है मैं आपके लिए चाय ले आती हूं" वह किचन की तरफ जाने लगी मैंने आवाज देकर कहा शांति दरवाजा बंद कर देना. उसने दरवाजा सटा दिया. मेरे मन में आया उठकर दरवाजा अंदर से बंद कर लूँ और आराम से अपना हस्तमैथुन पूरा कर लूँ पर ऐसा करना मुझे ठीक नही लगा।

मैं बिस्तर पर बैठा रहा और शांति के चाय लेकर आने का इंतजार करता रहा। मेरा ल** अभी भी वैसे ही तना हुआ था। मैंने ऐसी उत्तेजना पहले कभी महसूस नहीं की थी।

मैं अपने ल** को हाथों से हल्का हल्का सहला रहा था।

कुछ ही देर में शांति चाय लेकर आ गई हम दोनों ने चाय पी और इधर उधर की बातें करने लगे। आने वाले समय मेरे लिए कठिन हो रहा था। शांति का साथ अब मेरे लिए उत्तेजना का विषय हो चुका था। जितना ही मैं उससे ध्यान भटकाता उतना ही मेरा ध्यान उसकी तरफ जा रहा था। जाने प्रभु ने मेरे भाग्य में क्या लिखा था?

बाहर दरवाजे पर हुई खटपट से शांति कमरे से बाहर चली गई और बाहर गार्डो से बात करने लगी।

मैं मौका देख कर बाथरूम में चला गया जहां सीमा और छाया को याद करते हुए मैंने अपना हस्तमैथुन पूरा किया पर इस दौरान बीच-बीच में शांति अपने अद्भुत यौवन से अपनी जगह बना रही थी।

पुलिस स्टेशन (सुबह 10.15 बजे)
(मैं मानस)

हमें देखते ही डिसूजा ने कहा

"ओह, तो आप तीनों एक साथ ही चलते हैं"

"नहीं, सर वो छाया अकेली थी ना इसलिए मैं उसके साथ आ गई " सीमा ने सफाई दी

चलिए जब आप यहां आ ही गयी हैं तो छाया जी का साथ दीजिए। उसने आवाज दी

"सत्यभामा इन दोनों को ले जाओ"

"आप बाहर बैठिये।? उसने मेरी तरफ इशारा किया.

मैं छाया और सीमा को कातर निगाहों से देखते हुए उसके कमरे से बाहर आ गया. मुझे इन दोनों को वहां छोड़कर इस तरह बाहर आने में बहुत कष्ट हो रहा था. पर ऐसा लगता था जैसे डिसूजा मन में कुछ सोच कर बैठा हैं। मैं रुवांसा होकर कमरे से बाहर आया और उसके ऑफिस के सामने पड़ी एक बेंच पर बैठकर सोचने लगा।

(मैं छाया)

मानस भैया के जाते ही सत्यभामा ने कहा "सर पूछताछ किससे करनी है" डिसूजा ने मेरी तरफ इशारा किया. सत्यभामा ने कहा "चल" मुझे उसका यह संबोधन बहुत खराब लगा.

वह लगभग 35 से 36 वर्ष की मोटी महिला थी। उसे देख कर ऐसा लगता था जैसे भगवान ने उसे महिला बनाकर गलती की थी जाने वह कौन सा पुरुष होगा जो इस महिला के साथ संभोग करने की सोच सकता होगा।

मैंने सीमा को अपने साथ चलने इशारा किया पर उसने रोक दिया

"तु नहीं, तु वहीं बैठी रह.सिर्फ तू चलेगी" उसका मुझे इस तरह से संबोधित करना बिल्कुल अच्छा नहीं लग रहा था. डिसूजा के कमरे में एक और दरवाजा था वह मुझे उस दरवाजे से लेकर अंदर के कमरे में आ गई। अंदर एक गंदा सा कमरा था जिसमें एक कुर्सी रखी हुई थी। कोने में एक स्ट्रेचर था जिस पर किसी को लिटाया जा सकता था दूसरी तरफ कोने में पुलिस की कुछ लाठियां रखी हुई थी मैं यह दृश्य देख कर डर गई। मैंने इस बारे में सुना जरूर था पर मैं अभागी आज स्वयं इस रूम में थी।

"बैठ" लकड़ी की कुर्सी अत्यंत गंदी थी मैंने उसकी बात अनसुनी कर दी। सत्यभामा ने दरवाजा बंद कर दिया मुझे बहुत डर लग रहा था। उसने पूछा

"क्या नाम है तेरा"

" जी छाया"

" तेरी सुहागरात की उस दिन ?"

"जी"

"क्या हुआ मनाई की नहीं सुहागरात?" मै चुप रही

" मनाई कि नहीं?"

मैं फिर भी नहीं बोली

"बोलती क्यों नहीं?"

" मुझे गुस्सा आ गया मैंने कहा नहीं मैं बेहोश हो गई थी"

"अच्छा तू बेहोश हो गई थी।"

"अच्छा यह बता तू कुंवारी है? या मजा ले चुकी है?

मैं फिर चुप हो गई

"साली बोलती क्यों नहीं?"

"आप मुझसे ऐसे बात मत कीजिए"

वह मेरे पास आई और मेरे कोमल गालों पर एक जोर का चाटा दिया। शायद चाटे की आवाज सीमा ने भी सुन मुझे सीमा की आवाज सुनाई दी

"सर अंदर क्या हो रहा है? यह आवाज कैसी थी?" डिसूजा ने कड़क आवाज में कहा

"घबराइए नहीं, आप का भी नंबर आएगा"

मैं अपनी स्थिति देख कर सुबकने लगी थी।

"अब साफ-साफ बता कुंवारी है या चु**वा चुकी है"

मैं उसकी इस गंदी भाषा से शर्मसार हो गई। मैंने सच बोलना ही उचित समझा

" जी मैं कुंवारी नहीं हूं"

"अब ये भी बता दे तेरी सील उसी दिन टूटी थी या नहीं?"

"जी" मैं उसकी बात नहीं समझ पाई थी

"अरे मेरी फूल कुमारी उसी रात पहली बार चु**वाई थी या पहले भी?"

हम लोगों ने जिस बात को छुपाने के लिए इतना झूठ बोला था वही बात वह सुनना चाहती थी मैंने साफ मना कर दिया

"नहीं, पहले भी"

"देख झूठ मत बोलना उस दिन दूसरे कमरे में बिस्तर पर चुदाई वाला खून और वीर्य दोनों मिला है"

मैं पूरी तरह डर गई । मैं होटल से सुहागरात वाली चादर तो ले आई थी पर मुझे नहीं पता था की हमारे प्रेम के अंश गद्दे तक भी पहुंच गए थे.

वह फिर बोली जा स्ट्रेचर पर लेट जा और अपनी सलवार निकाल ले

मुझे यह उम्मीद बिल्कुल भी नहीं थी मैं चुपचाप सर झुकाए रही। वह मेरे पास आए और मुझे धक्का देते हुए बोली जल्दी खोल नही तो मैं फाड़ दूंगी फिर यहां से तुझे नंगा ही जाना पड़ेगा। कोई चारा न होते हुए मैंने अपनी सलवार उतार दी और स्ट्रेचर पर लेट गयी। वह मेरी नंगी जाँघों की फैलाकर मेरी रानी के होठों को अपनी गंदी उंगलियों से फैलाने लगी।

इतने में दरवाजा खुला वहां खड़े होकर डिसूजा ने आवाज दी क्या हुआ बताया इसने…

कहती है यह पहले से खेली खायी है उस रात इसकी भाभी ने सुहागरात बनाई थी। चल जाने दे ब्लड टेस्ट से ही सामने आ जाएगा

मैं शर्म से पानी पानी हो गई डिसूजा ने इतनी ही देर में ही मेरी नग्नता के दर्शन कर लिए थे। वह मेरी रानी को तो नहीं देख पाया जिसे मैंने अपने कुर्ते से तुरंत ही ढक दिया था पर मेरी गोरी जाँघे उसकी निगाहों से न बच सकीं। डिसूजा अपने होठों पर जीभ फेरते हुए वापस कमरे में लौट गया।

मैं अपनी सलवार पहनकर वापस डिसूजा के कमरे में आ गई थी।

उसमें हम दोनों की तरफ देखते हुए कहा

"देखिए उस दिन दोनों ही कमरों से हमें खून के निशान मिले हैं एक कमरे में तो किसी आदमी का खून हुआ और दूसरे कमरे में.."

"इज्जत का" सत्यभामा की आवाज आई

"वो लड़का तेरा सगा भाई है"

"जी नहीं"

"कभी राखी बांधी है उसको?"

मैं फिर एक बार चुप हो गई.

"दोनों कब से एक साथ रहते हो"

"पिछले चार-पांच सालों से"

डिसूजा ने किसी को फोन किया और कुछ देर में एक लड़का अंदर आया मानस भैया भी उसके पीछे-पीछे अंदर आ गए.

राजू इन तीनों को ले जा और इनका ब्लड सैंपल दिलवा दे और इस लड़के का वीर्य भी टेस्ट करवा देना।

"आप लोग जाइए ब्लड रिपोर्ट आने के बाद बात करता हूं"

हम तीनों डिसूजा के कमरे से डरे सहमे बाहर आ गए.

ब्लड सैंपल देने के बाद मानस भैया ने अपना सीमन भी दिया मुझे लगता है मेरे आने के बाद ऐसा पहली बार हुआ था जब मानस भैया के राजकुमार ने उनके हाथों वीर्य स्खलन कराया हो। मानस भैया ने उस लड़के का नंबर लिया और हम अपने घर आ गये।

हम तीनों यह बात जान गए थे की मानस और मेरे संबंध सार्वजनिक होने में अब सिर्फ ब्लड रिपोर्ट की देर है।
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जंगल का कैदखाना (सुबह के 9:00 बजे)
[मैं सोमिल]

मैं एक बार फिर खिड़की के पास खड़ा हुआ बाहर प्रकृति के नजारे देख रहा था अद्भुत रमणीय माहौल था. वही पास से एक नदी भी गुजर रही थी काश मेरी छाया यहां होती. मैं अब भी यह बात नहीं सोच पा रहा था कि मुझे यहां पर लाने का क्या प्रयोजन हो सकता है। मैंने गार्ड से कहा

"मुझे तुम्हारे साहब से बात करनी है" कुछ ही देर में कमरे में फोन की घंटी बजी..

"जी सर, क्या बात है?"

"प्लीज मुझे बताइए मुझे यहां पर क्यों लाया गया है"

"सर यह तो मुझे नहीं पता. मुझे आपका ख्याल रखने के लिए कहा गया है. आपको कोई दिक्कत हो तो बताइए."

" मैंने गार्ड से कुछ कपड़े लाने के लिए कहे हैं"

"सर माफ कीजिएगा जहां आप हैं वहां से आबादी बहुत दूर है" मैंने जरूरत के कपड़े वहां पहले ही भेज दिए हैं. प्लीज उनसे ही काम चला लीजिए". वैसे भी आपको उसी कमरे के अंदर ही रहना है कपड़ों की कोई विशेष आवश्यकता नहीं पड़ेगी."

फोन कट हो गया

.उधर शांति गार्ड से भिड़ गई थी सर का अंडर गारमेंट क्यों नहीं लाया. उन दोनों की बातचीत तल्ख हो चली थी। अचानक शांति रोते हुए अंदर आई। उसके होंठ से खून बह रहा था। मैं भागकर बाहर गया पर गार्ड बाहर जा चुका था। मैं वापस शांति के पास आया मैंने पास पड़े तौलिए से उसके होठों पर लगा खून पोछने की कोशिश की।

शांति सुबक रही थी मेरी आत्मीयता भरे व्यवहार से वह मुझसे सटती चली गई। इस बात का एहसास तब हुआ जब उसके कोमल स्तन मेरे सीने से टकराये। मेरे शरीर में करंट दौड़ गई मेरा ल** एक बार फिर उत्तेजित हो गया। इससे पहले कि वह मेरे ल** की चुभन अपने पेट पर महसूस करती। मैंने उसे थोड़ा सा अलग किया।

वह अभी भी सुबक रही थी। मैं उसके चेहरे को अपने दोनों हाथों से सहला रहा था जितना ही मैं उसे छूता मेरा ल** उतना ही तन रहा था। कुछ देर में वह चुप होकर मुझसे अलग हुई और सोफे पर बैठ गई और बोली

"सर, ये लोग बहुत दुष्ट हैं. यह हमारी कोई बात नहीं मानेंगे. मैंने पैसे के लिए इनकी बात मान कर बहुत बड़ी गलती कर दी."

मुझे वह भी मेरी तरह बेबस दिखाई पड़ने लगी. कुछ देर बाद उसने कहा सर आप नहा लीजिए तब तक मैं खाना बना लेती हूँ। मैं बाथरूम में नहाने चला गया उसने एक नया पजामा कुर्ता बिस्तर पर रख दिया था अंडरवियर आज भी नहीं था।

बाथरूम में रखे गए बॉडी शावर जेल और तरह-तरह की खुशबू वाले शैंपू को देखकर मुझे लगा सालों ने इतनी व्यवस्था यहां कैसे कर ली थी मेरा एक अंडरवियर तक तो ला नहीं पा रहे थे।

मेरे बाहर आने के बाद शांति भी नहाने चली गई। बाथरूम के अंदर नहा रही शांति की सुंदर काया मेरे विचारों में घूमने लगी। जब वह बाहर आयी तब मैं उसे देख कर आश्चर्यचकित रह गया। शांति ने मेरी वही सफेद शर्ट पहनी थी जो मैंने सुहागरात के दिन पहनी थी। शांति के शरीर पर एकमात्र वही वस्त्र था। मेरी शर्ट उसके नितंबों के ठीक नीचे तक आ रही थी पर उसकी जांघें स्पष्ट दिखाई पड़ रही थी। वह उन्हें छुपाने की कोशिश कर रही थी पर यह संभव नहीं था। मेरी सफेद शर्ट शांति के शरीर पर जगह-जगह चिपक गई थी। शांति का गोरा रंग शर्ट के अंदर से अपनी चमक बिखेर रहा था। शर्ट विशेषकर उसके स्तनों पर चिपक गई थी जिससे स्तनों का आकार स्पष्ट दिखाई पड़ रहा था। वह मुझे अत्यंत उत्तेजक लग रही थी। उसके होंठ का कट एक दाग जैसा दिखाई पड़ रहा था मैंने अपने इतने करीब किसी सुंदर लड़की को इस तरह कामुक अवस्था मे पहली बार देखा था। मुझे अपने ल** में फिर उत्तेजना महसूस होने लगी। शांति बला की खूबसूरत लग रही थी। यदि वह मेरी छाया होती तो अब तक मैं उसे उठाकर बिस्तर पर ले आया होता आगे क्या होता या आप सोच सकते हैं।

अचानक मैं अपने विचारों से बाहर आया और उससे पूछा

"तुम्हारे कपड़े कहां गए? सर मैं दो नाइटी लेकर आई थी कल एक बाहर सूखने डाली थी गार्ड कहता है वह आंधी में उड़ गई। वही पुराने वाले से काम चलाओ। सर मुझे गंदे कपड़े पहनना बिल्कुल पसंद नहीं है। इसलिए मैंने आपकी यह पुरानी शर्ट पहन ली.मुझे माफ कर दीजिए"

वह बढ़कर मेरी तरफ आने लगी.

मैंने कहा "ठीक है कोई बात नहीं"

मैं उसे इस तरह अपने पास नहीं बुलाना चाह रहा था. वह ड्रेसिंग टेबल के पास चली गई और अपने बाल सवारने लगी मैं उसे पीछे से देख रहा था. उसके नितम्ब मेरी आंखों के सामने अठखेलियां कर रहे थे। उसकी जाँघें पीछे से और स्पस्ट दिखाई दे रहीं थीं। मैं अपनी आंखों से सफेद शर्ट के पीछे उसकी ब्रा और पेंटी खोज रहा था मुझे अभी तक उनके दर्शन नहीं हुए थे। अचानक शांति में ड्रेसिंग टेबल के ऊपर पड़ी किसी चीज को हटाने के लिए अपने हाथ ऊपर किये और मेरी शर्ट ऊपर उठ गयी। मुझे उसके नितंबों के अर्ध दर्शन हो गए। उसके नितंबों का मुझे उतना ही भाग दिखाई पड़ा जितना चतुर्थी के दिन चंद्रमा दिखाई देता है।

उसके साथ ही यह बात भी प्रमाणित हो गई कि उसने पैन्टी नहीं पहनी थी। मैंने किसी लड़की के नग्न नितंब आज पहली बार देखे थे। मेरा ल** पूरी तरह विद्रोह करने पर उतारू था। ऐसा लगता था यदि मैंने उसे उसी समय नहीं सहलाया तो वह उत्तेजना से फट जाएगा।

शांति अपने शरीर पर कभी बॉडी लोशन लगाती कभी अपने बालों पर कंघी करती। उसकी हर गतिविधि में उसके अंग प्रत्यंग मेरी आंखों के सामने नाचते। ऐसी गजब की उत्तेजना मेरे जीवन में पहली बार मिल रही थी। अचानक शांति की कंघी नीचे गिर गई। जैसे वह उसे उठाने के लिए नीचे झुकी मेरी शर्ट एक बार और ऊपर आ गई मुझे उसकी जांघों के जोड़ पर उसकी चू** एक झलक दिखाई दे दी। जब तक मैं उसे देख कर उसके स्वरूप को अपनी निगाहों में कैद कर पाता शांति उठ कर खड़ी हो गयी और मेरी तरफ पलटी। उसने मुझे अपनी तरफ देखते हुए पकड़ लिया था।

उसकी खूबसूरती देखकर मैं दंग रह गया था। आज वह बहुत सुंदर लग रही थी। उसके शरीर पर एक मात्र वस्त्र मेरी शर्ट थी जो उसे और भी खूबसूरत बना रही थी। वह उसके शरीर को ढक कम रही थी उसकी बल्कि उसमें छुपी कामुकता को जगा रही थी। मेरा मन मचलने लगा मैं उसे अपनी बाहों में भर कर उसे प्यार करने की सोचने लगा। मुझे अपने वचन की याद आई मुझे अपना कौमार्य सीमा की चू** में ही तोड़ना था। मेरी सुहागरात के दिन मुझे सीमा के साथ संभोग करना था पर मुझे निष्ठुर नियति ने यहां कैद कर दिया था।

आज फिर मेरे सामने साक्षात रति, शांति के रूप में उपस्थित थी। वह मुझे संभोग के लिए प्रेरित कर रही थी। मुझे नहीं पता शांति के मन में क्या भावनाएं थी।

शांति तैयार होने के बाद खाना बनाने चली गई मैं उसे देखने के लिए तड़प रहा था। मैंने एक दो बार हॉल में आकर किचन की तरफ देखा। उसकी नग्न जाँघें मुझे किचन में जाने के लिए प्रेरित कर रहीं थीं। मैं उसके पास गया और पानी के लिए कहा। उसने मुझे पानी दिया और बड़ी मादक अदा से कहा सर मुझे बुला लिया होता।

उसे क्या पता था मुझे उसे देखना था पानी नही पीना था। मेरी कैद को शांति ने खुशनुमा बना दिया था। वापस आकर मैं बिस्तर पर बैठ गया और अपने मन ही मन शांति के साथ रंगरलिया मनाने लगा। मेरा ल** पूरी तरह उत्तेजित था उसे मेरा इस तरह सहलाना बहुत अच्छा लग रहा था।

शांति आज दिन भर मेरी शर्ट पहन कर रही थी. हम धीरे-धीरे एक दूसरे से बात करने लगे थे मेरे द्वारा सुबह दिखाई गई आत्मीयता से वह मेरे और करीब आ गई थी।

शाम को उसने कौतूहल वश टीवी के नीचे की अलमारी खोली। उसमें शराब की बोतलें देखकर वह आश्चर्य से बोली

"सर, यह देखिए" वह चहक उठी थी। वहां पर रेड वाइन तथा व्हिस्की की कुछ बोतलें रखी थी। शांति ने पूछा

"सर आप लेना पसंद करेंगे" मेरी इच्छा तो थी पर मैंने ना में सर हिला दिया.

वह मायूस हो गई थी उसने कहा ठीक है तब मैं भी नहीं लूंगी. मैं उसकी बात सुनकर आश्चर्यचकित था। यह कैसी सुंदरी थी जो सुरा पान भी करती थी। मैंने फिर कहा ठीक है तुम्हारी इच्छा है तो मैं भी ले लूंगा।

शांति मुझे एक चुलबुली पर संजीदा लड़की लगी थी। सुबह से अभी तक वह सिर्फ मेरे शर्ट में घूम रही थी पर उसने अपनी योनि को मेरी नजरों से बचा कर रखा था। सिर्फ सुबह की एक गलती को छोड़कर जो उससे अनजाने में हो गई लगती थी। हर समय वह अपने दोनों पैरों को सटाए रखती या एक दूसरे के ऊपर चढ़ा कर रखती थी। वह अपनी जांघों को तो मेरी नजरों से नहीं बचा पायी पर अपनी योनि को वह सदैव आवरण देने में कामयाब थी।

कुछ ही देर में वह पूरी व्यवस्था के साथ वापस आ गयी। उसने अपने लिए रेड वाइन निकाली और मेरे ग्लास में भी रेड लाइन डालने लगी। मैंने उसे मना किया मुझे व्हिस्की ही देना उसने रेड लेबल की बोतल निकाल ली और मेरे लिए व्हिस्की का एक पेग बना दिया। हम दोनों अपने-अपने पैग का आनंद लेने लगे वह सोफे पर बैठी थी उसने फिर अपने पैर एक दूसरे पर चढ़ा लिए थे वह किसी भी अवस्था में अपनी चू** (माफ कीजिएगा मैं आगे उसे मुनिया शब्द से संबोधित करूंगा) को मेरी नजरों से बचाना चाहती थी. धीरे-धीरे हम दोनों शराब के सुरूर में आ गए। शांति कुछ ही देर में खाना ले आई। मैं बिस्तर पर बैठकर खाने लगा और वह सोफे पर। अचानक उसके हाथ से खाने की प्लेट सोफे पर गिर पड़ी। वह घबरा गई उसे साफ करने के चक्कर में उसे और गंदा कर दिया। पानी के प्रयोग से सोफा पूरी तरह गीला हो गया था। मुझे लगता है उस पर शराब का नशा हावी था।

मैंने उसे बिस्तर पर बैठने के लिए कहा वह सर झुकाए हुए थी। मुझे उसे देख कर बहुत प्यार आ रहा था। मैंने खाने की प्लेट किचन तक पहुंचाई। और जब तक मैं वापस आता वह बिस्तर पर गिर चुकी थी। उसके पैर अभी भी लटके हुए थे। मेरी शर्ट उसकी मुनिया को बमुश्किल ढकी हुई थी। यदि मैं अपने होठों से उसे फूक मारता तो उसकी मुनिया मेरी आंखों के सामने होती।

पर मुझे यह अच्छा नहीं लगा मैंने उसे आवाज दी

" शांति ..शांति" उसने आंखें खोली और एक बार फिर उठ कर बैठ गयी। मैंने कहा तुम सो जाओ वह उठकर गीले हो चुके सोफे की तरफ जाने लगी। सोफा किसी भी हाल में सोने लायक नहीं बचा था। मुझे उस पर दया आ गई मैंने उसे अपने ही बिस्तर पर एक तरफ सुला दिया। उसने अपनी आंखें कुछ पल के लिए खोली और बोली

" सर आप बहो…...त अच्छे हैं" उसकी आवाज में गजब की मादकता थी। उसकी आंखें बंद हो गई मैने उसे चादर से उसे ढक दिया कुछ ही देर में वह नींद में चली गई। कमरे में इतनी ठंड नहीं थी फिर भी मैंने उसे चादर से ढक दिया था। मुझे पता था जब तक उसे मैं इस अर्धनग्न स्थिति में देखता रहूंगा मुझे नींद नहीं आएगी।

मैं बिस्तर पर लेटा हुआ शांति के बारे में ही सोच रहा था वह एक परी के रूप में इस कमरे में मेरे साथ थी पर क्यों? यह प्रश्न अनुत्तरित था। वासना ने मुझे भी अपने आगोश में ले लिया था। मैं उसके साथ छेड़खानी करना चाहता था। मुझे उसके स्तनों को सहलाने और उसे अपनी बाहों में लेने के लिए तड़प पैदा हो चुकी थी पर हिम्मत नहीं थी। काश वह मेरी सीमा या छाया होती। अब तक हम दो जिस्म एक जान हो गए होते।

मैंने ध्यान भटकाने के लिए फिर मोबाइल हाथ में उठा लिया इस बार मैंने सावधानी से मोबाइल का वॉल्यूम कम किया और उसमें पढ़ी हुई वीडियो क्लिप्स देखने लगा सारी वीडियो क्लिप उत्तेजक ब्लू फिल्म से भरीं थीं। मेरा ल** जो कुछ समय के लिए ढीला हुआ था फिर तन कर वापस खड़ा हो गया मैंने अपने ल** को कुछ देर सहलाया। शराब का नशा मुझ पर आ ही चुका था मुझे भी जल्दी ही नींद आ गई।


पुलिस स्टेशन (शाम 6:00 बजे)
(मैं डिसूजा)

मूर्ति भागता हुआ मेरे कमरे में आया

"सर, सर, उस मरे हुए आदमी का पता चल गया"

" कौन है?"

"सर वह एक कंप्यूटर हैकर है. पहले भी वह फर्जी बैंक ट्रांसफर के मामले में पकड़ा जा चुका है. इंदिरा नगर पुलिस थाने में उसके नाम से दो एफ आई आर दर्ज है. लगभग 3 साल पहले पुलिस ने उसे पकड़ा भी था"

"मूर्ति तुमने बहुत अच्छा काम किया है"

मूर्ति के सफेद दांत काले चेहरे के बीच से दिखाई पड़ने लगे।

मैंने साइबर क्राइम टीम को फोन किया

"एनी अपडेट"

"जी सर, मैं आपको रिंग करने ही वाला था"

"बताइए"

"सर, जिस कमरे में मर्डर हुआ है उसी कमरे से रात 12:00 बजे पैसे ट्रांसफर किए गए हैं। इसमें सोमिल के मोबाइल का भी प्रयोग किया गया है। ऐसा लगता है जैसे किसी कंप्यूटर हैकर ने अकाउंटेंट का पासवर्ड हैक कर लिया है। उसने सोमिल के फोन की ओटीपी और उस पासवर्ड की मदद से पैसे विदेश ट्रांसफर कर दिए हैं।"

"ठीक है सारी रिपोर्ट्स मेरे ऑफिस में भेज दो"

पाटीदार की कंपनी का मुख्य अकाउंटेंट उसका अपना बेटा था जिसने पैसों के गबन की रिपोर्ट लिखाई थी। मुझे यह बात समझ आ चुकी थी के गबन में सोमिल का हाथ नहीं है। होटल के रिसेप्शन में लगे कैमरे की रिकॉर्डिंग से मैंने सोमिल को लगभग 10:00 बजे बाहर निकलते हुए देखा था। उसके बाद सोमिल के होटल में आने का कोई प्रमाण नहीं था। ऐसा लग रहा था जैसे उसे कमरे से बाहर निकाल कर उसके कमरे से ही होटल का इंटरनेट प्रयोग कर किसी ने उस हैकर की मदद से पैसों का गबन किया और अंत में उसे मार दिया।

सोमिल को गायब करवा कर वह इस खून और गबन का आरोप उस पर लगाना चाहता था। मुझे अब सिर्फ उस व्यक्ति की तलाश थी। मेरे पास छाया द्वारा बताए गए दो नाम थे लक्षमन और विकास। मैंने आगे की रणनीति बना ली।

छाया से मिलने का वक्त आ चुका था। मेरी अप्सरा को देखने के लिए मेरी आंखें तरस रही थी। मैं उसका सुख एक बार भोगना अवश्य चाहता था। जो युवती अपने भाई के साथ सहर्ष सुहागरात मना सकती है वह स्त्री कितनी कामुक होगी मुझे इसका अंदाजा लग चुका था।

इस व्यभिचार के लिए मैं मन ही मन तैयार हो गया था। मुझे सिर्फ छाया को रजामंद करना था। मुझे पता था वह मुझे जैसे कुरूप व्यक्ति से कभी संभोग करना नहीं चाहेगी पर मेरे हाथ में जो सबूत थे वह उसे रजामंद करने के लिए काफी थे।

छाया जैसी सुंदरी के साथ रजामंदी से किया गया संभोग स्वर्गीय सुख से कम नहीं होगा मेरा मन बेचैन हो रहा था।
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Ankit
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Re: Incest अनचाहे रिश्तों में पनपती कामुकता की छाया

Post by Ankit »

बुधवार
मानस का घर [शाम 6:00 बजे]
(मैं छाया)
आज पुलिस स्टेशन में हुई बेज्जती से मैं बहुत दुखी थी. मानस और सीमा भी गुस्से में थे .मानस ने अपने कई दोस्तों और परिचितों को फोन किया पर कोई भी इतना प्रभावशाली नहीं था जो डिसूजा को उसकी औकात पर ले आता. घर में बेचैनी का माहौल था। मेरी मां भी डिसूजा को जी भर कर कोस रही थी पर इन सब का कोई औचित्य नहीं था। वह निरंकुश जैसा व्यवहार कर रहा था.
तभी शर्मा जी मुख्य दरवाजे से अंदर आए मां ने उन्हें सब कुछ बता दिया। उनका चेहरा गुस्से से लाल हो गया था. उन्होंने किसी को फोन लगाया और बात करते हुए अपने कमरे में चले गए. अंदर से उनकी आवाज सुनाई पड़ रही थी जिसमें उनके क्रोध की झलक साफ साफ महसूस हो रही थी. वह अत्यधिक उत्तेजित अवस्था में उस आदमी से बात कर रहे थे. कुछ देर बाद वह वापस आये और मुझे अपने पास बुलाया। मैं उनके पास आ गई उन्होंने मुझे अपने से सटा लिया और मेरे माथे को चूम कर बोला
"छाया बेटी कल तक डिसूजा इस केस से बाहर होगा।"
इतना कहते हुए शर्मा जी ने मुझे अपने पास खींच लिया। उनका यह आलिंगन मुझे सामान्य से कुछ ज्यादा लगा। आज उन्होंने मुझे छाया बेटी कहा था इसलिए मैं कुछ गलत नहीं सोच पाई। अन्यथा उस आलिंगन में मेरे स्तन शर्मा जी के सीने से सट गये थे।
यह निश्चय ही पिता पुत्री के आलिंगन से ज्यादा था। मैंने इसकी कल्पना नहीं की थी। मैं तुरंत ही उनसे अलग हो गई वह अपनी कही गई बात पर आश्वस्त थे। उन्होंने कहा
" मेरी होम मिनिस्टर के पीए से बात हो गई है कल मैं उनसे मिलकर डिसूजा को इस केस से हटवा दूंगा। आप लोग निश्चिंत रहिए ।"
मानस और सीमा के चेहरे पर सुकून आ गयी थी। मां भी खुश थी उन्होंने कहा
"आप बैठिए मैं आपके लिए चाय लाती हूँ" हम सभी आपस में बात करने लगे. मैं उनके आलिंगन के बारे में अभी भी सोच रही थी।
आज भी मेरे ई मेल पर सुनील की फोटो आई थी। वह लड़की आज सोमिल के साथ उत्तेजक अवस्था में सोफे पर बैठी हुई थी। उसने सोमिल की वही शर्ट पहनी थी जी उसने सुहागरात के दिन पहनी थी। मुझे उस लड़की की अवस्था आपत्तिजनक लग रही थी। मैंने उसकी फोटो सिर्फ मानस भैया को दिखाई। वह मुझे अच्छे से समझते थे उन्होंने कहा
"छाया मुझे पूरा विश्वास है सोमिल ऐसा नहीं कर सकता। वह निश्चय ही किसी जाल में फंसा हुआ है। तुम निश्चिंत रहो हम इसका हल ढूंढ निकालेंगे।

गुरूवार (चौथा दिन)
जंगल का कैदखाना (सुबह 4 बजे)
(मैं सोमिल)
मैंने शांति के कोमल हाथों को अपने सीने पर पाया। उसके पैर मेरी जांघों पर थे उसका घुटना मेरे ल** से सटा हुआ था। वह सो रही थी। रात में वह मेरे पास कब आ गई मुझे खुद भी पता नहीं चला। मैंने ना चाहते हुए भी करवट ली मेरा चेहरा अब उसकी तरफ हो गया था शायद मेरे हिलने डुलने से उसकी नींद में व्यवधान पड़ा वह थोड़ी देर के लिए हिली और फिर मुझसे और तेजी से सट गई। वह लगभग मुझे आलिंगन में ले चुकी थी उसके स्तन मेरे सीने से सटने लगे थे। उसकी बांहें मेरी पीठ पर आ चुकी थी। वह अपने एक पैर को मेरी दोनों जांघों के बीच रखने का प्रयास कर रही थी। मुझे भी उसका इस तरह पास आना अच्छा लग रहा था। मेरे हाथ उसकी पीठ पर चले गए। हम दोनों पूरी तरह एक दूसरे के आलिंगन में आ चुके थे।
मैं जाग रहा था और वह सो रही थी। मेरा ल** तन कर खड़ा हो गया था। शांति के स्तन अब मेरे सीने को पूरी तरह छू रहे थे। वह जब भी हिलती उसके निप्पलों की चुभन मेरे सीने पर महसूस होती। उसके निप्पल कड़े थे मेरे सीने पर उनकी ताकत महसूस महसूस हो रही थी।
मेरी हथेलियों ने बिना मेरे आदेश के शांति को अपने करीब खींच लिया मेरा ल** अब उसके पेट से सट रहा था और निश्चय ही उसे चुभ रहा होगा।
अचानक शांति ने अपना हाथ मेरी पीठ पर से हटाया और नीचे ले जाकर मेरे ल** के सुपारे पर रख दिया उसके कोमल हाँथ का स्पर्श पाकर ल** में अजीब सी संवेदना हुई। आज कई वर्षों बाद मेरे ल** पर किसी लड़की का हाथ लगा था। ऐसा लग रहा था उसकी नसें फट जाएंगी। मैंने अपने ल** को और आगे की तरफ धक्का दिया। वह उसके पेट से छू रहा था शांति मेरी उत्तेजना पहचान गई थी। अपने अपने हथेलियों से मेरे ल** को सहलाना शुरु कर दिया ल। वह जैसे जैसे उसे सहलाती मेरा ल** और उत्तेजित होता।
शांति ने धैर्य बनाए रखा वह उसे प्यार से उसी तरह सहलाती रही. मेरे हाथ उसके नितंबों को छूने लगे। मेरी शर्ट जाने कब ऊपर की तरफ खींच गई थी। उसके कोमल और मुलायम नितंब मेरी हथेलियों में आते ही मेरी उत्तेजना चरम पर पहुंच गई ।
उसकी हथेलियों का स्पर्श लगातार मुझे मिल रहा था। कुछ ही देर में मैंने उसे खींचते हुए अपने पेट पर ले लिया। मुझे पता था वह जाग रही थी पर मैंने उससे कोई भी बात करना उचित नहीं समझा। हम दोनों के अंग प्रत्यंग एक दूसरे से मिलने को बेकरार थे। शांति मेरे ऊपर आ चुकी थी उसने अपने दोनों पैर मेरी कमर के दोनों तरफ कर लिए।
शांति के स्तन मेरे सीने से छू रहे थे। उसके स्तनों का स्पर्श मेरी उत्तेजना को और बढ़ा रहा था। मेरी दोनों हथेलियां उसके नितंबों पर थी और उनकी कोमलता का एहसास कर रहीं थी। मेरा लं** बेताब हो रहा था. दोनों नितंबों के बीच गहराई में मेरी उंगलियां उसके तथाकथित अपवित्र द्वार को भी छू रहीं थी और मेरी उत्तेजना को बढ़ा रहीं थीं।
शांति अपने स्तनों को लगातार मेरे सीने पर रगड़ रही थी। उसका चेहरा मेरे चेहरे के बिल्कुल समीप था। शांति की सांसे तेजी से चल रहीं थीं. उसकी कमर कमनीय और पतली थी। अचानक मुझे शांति की मुनिया से बहते हुए प्रेम रस का एहसास मेरे ल** के सुपारे पर हुआ. इस गीलेपन के एहसास से मुझे अत्यंत उत्तेजना हुई. हथेलियों में जो अब तक शांति के स्तनों को सहला रही थी अचानक उन्हें मसलना शुरू कर दिया.
शांति अपनी कमर पीछे ले जा रही थी। मैंने आंख खोल कर देखा शांति की आंखें बंद थी। मैंने भी इस स्थिति का आनंद लेते हुए आंखें बंद कर लीं। शांति की कोमल मुनिया का एहसास मेरे ल** के सुपारे पर हो रहा था। शांति धीरे-धीरे पीछे आ रही थी और मेरा लं** उसके मुख में प्रवेश कर रहा था. उसने अपनी कमर एकाएक पीछे कर दी और मेरा ल** उसकी गहराइयों में उतर गया । मुझे सीमा को दिए हुए वचन की याद आई। मैं कांपने लगा मेरा वचन टूट गया ……….
तभी मेरी नींद खुल गई ..…….शांति अभी भी करवट लेकर मेरे से दूर सोई हुई थी. मेरा सुखद स्वपन टूट गया था पर मेरा सीमा को दिया बचन सुरक्षित था। मैं खुश था और शांति को देख कर मुस्कुरा रहा था।
यह तय था कि मेरा प्रथम संभोग सीमा के साथ ही होगा. आखिर वह वही सीमा थी जिसने मेरे लं**की दो-तीन वर्षों तक सेवा की थी. मेरा ध्यान शांति की तरफ गया वह करवट लेकर लेटी हुई थी. उसने अपने शरीर पर पड़ी हुई चादर जाने कब हटा दी थी. मेरी शर्ट उसके नितंबों को ढकने में नाकाम हो रही थी. कमरे में फैली हल्की रोशनी में उसकी जांघें और नितंबों का कुछ हिस्सा स्पष्ट दिखाई पड़ रहा था. यदि वहां थोड़ी और रोशनी होती तो जांघों के जोड़ पर निश्चय ही उसकी मुनिया भी दिखाई पड़ती.
मुझे बाथरूम जाना था मैंने लाइट जला दी बाथरूम से आने के पश्चात मेरी नजर शांति के नितंबों पर पड़ी उसके गोल नितंबों के बीचोबीच उसकी मुनिया के दोनों होंठ दिखाई पड़े. शांति जितनी सुंदर थी उतने ही उसके निचले होंठ. एकदम बेदाग मैंने वैसे भी आज तक स्त्री योनि साक्षात नहीं देखी थी और शांति की योनि देखकर मुझे खुशी हो रही थी. नारी शरीर का यह भाग मेरी कल्पना से ज्यादा खूबसूरत था. मैं उसे कुछ देर यूं ही देखता रहा और बिस्तर पर आ गया मैंने लाइट बंद नहीं की थी. मेरी नजरें उस दिव्य दृश्य से हट नहीं रही थी.
मैं शांति के जगने का इंतजार करने लगा. शायद कमरे की लाइट से उसकी आंखें प्रकाशमय हो गयीं थी. वह अचानक मेरी तरफ मुड़ गयी. मैंने पाया उसके शर्ट के ऊपर के कुछ बटन जाने कब खुल गए थे. उसके दोनों स्तन मुझे दिखाई पड़ रहे थे स्तनों के निप्पल जरूर उस शर्ट से ढके हुए थे परंतु उनका आकार स्पष्ट दिखाई पड़ रहा था.
मेरी उत्तेजना चरम पर थी मेरा ल** अभी भी खड़ा था. पिछले 15 घंटों से मैं उसे अपने हाथों से सहलाते हुए उसे शांत कर दे रहा था पर अब वह विद्रोह पर उतारू था. शांति सो रही थी मैंने हस्तमैथुन का निर्णय कर लिया. मेरे पास शांति की मुनिया और स्तन दोनों की स्पष्ट छवि थी. मेरे विचारों में अर्धनग्न शांति पूरी तरह नग्न हो चुकी थी. अपने देखे गए स्वप्न में मैंने उसके साथ संभोग भी कर लिया था. मैंने अपनी पलकें बंद कर ली और उसके साथ अपने विचारों में ही संभोग रत हो गया. उसकी मुनिया का स्थान मेरे हाथ ले चुके थे. शांति का मेरे ल** पर उछलना और मेरे हाथों का आगे पीछे होना दोनों में जमीन आसमान का अंतर था पर मुझे आनंद आ रहा था.
अपने विचारों में ही उसकी नग्नता का ही जितना आनंद ले रहा था उतना मेरे ल** के लिए काफी था. मैं आंखें बंद किए इस अद्भुत हस्तमैथुन का आंनद उठा रहा था. जैसे ही मेरा वीर्य स्खलित होने वाला था मेरी आंखें खुल गई. बिस्तर पर उठ कर बैठी हुई शांति को देखकर मेरे होश फाख्ता हो गए. मेरे ल** से वीर्य धारा फूट पड़ी.
जब तक शांति संभल पाती वीर्य की धार अपनी उचाई तय करने के बाद उसके स्तनों पर गिर पड़ी. मेरे लिए वीर्य स्खलन रोक पाना असंभव था. मैंने अपने ल** को शांति के दूसरी तरफ कर दिया. इस अद्भुत और शर्मनाक हस्तमैथुन से मैं शांति से नजरे मिलाने लायक नहीं रह गया था. मैंने कहा "सॉरी शांति" और करवट लेकर अपनी आंखें बंद करके मैं उससे बात कर पाने की स्थिति में नहीं था वह मुस्कुराते हुए बाथरूम की तरह चली गई थी बाथरूम से आती हुई मधुर ध्वनि मेरे कानों तक पहुंच रही थी पर मेरा लं** अब शांत हो चुका था उसे कुछ समय तक आराम की जरूरत थी.


मानस का घर (सुबह 8 बजे)
(मैं मानस)
मेरे फोन पर वही घंटी बजी. मैंने डिसूजा के फोन के लिए अलग घंटी रख ली थी. मैंने फोन उठाया डिसूजा की आवाज आयी
"मिस्टर मानस आपने और छाया ने तो खूब गुलछर्रे उड़ाये है?
"जी, क्या मतलब है आपका?
"मतलब मैं समझा दूँगा आप अपनी छमिया को लेकर थाने पहुंच जाना 12:00 बजे. ध्यान रखना 10:00 नहीं 12:00 बजे."
"क्या हुआ सर? कुछ बताइए तो क्या बात है?"
"तुम लोगों ने उस रात जो किया है उसके सारे सबूत मेरे पास आ गए हैं. मुझे यहां आकर समझाना कि तुम दोनों ने क्या किया था उस रात."
मैं बहुत डर गया. छाया और सीमा किचन में नाश्ता बना रही थीं . मैंने उन्हें आवाज भी और हम तीनों मेरे कमरे में आ गए. मैंने डिसूजा से हुई सारी बातें बता दी. छाया डर के मारे रोने लगी. वह बहुत मासूम थी. हमारा प्यार सच्चा था हमने जो किया था वह गलत नहीं था यह हम तीनों जानते थे पर डिसूजा इस बात को समाज में फैला कर हमारी बेज्जती करना चाहता था. हमारे लिए यह असहनीय हो जाता. आखिर हमें समाज में ही रहना था. हम तीनों बहुत डर गए थे. छाया रोए जा रही थी. मैंने उसे अपने आलिंगन में ले लिया और उसके गालों को चूमने लगा. वह बोली
"मानस भैया अब हम लोग क्या करेंगे?
मैंने उसकी पीठ पर हाथ फेरते हुए कहा
"मेरी छाया चाहे कुछ भी हो जाए हम इस बात को बाहर नहीं आने देंगे. चाहे हमें इसके लिए कुछ भी करना पड़े. यदि डिसूजा ने तुम्हारे साथ जबरदस्ती करने की कोशिश की तो उसे अपनी जान से हाथ धोना पड़ेगा चाहे मुझे अपना आने वाला सारा जीवन जेल में ही क्यों न बिताना पड़ा मेरी आंखों में खून आ गया था. मैंने उसके दोनों गालों को सखलाते हुए बोला
" तुम चुप हो जाओ मैं तुम्हें रोता नहीं देख सकता"
छाया मुझसे अमरबेल की तरह लिपट गई थी. सीमा भी उसकी पीठ सहला रही थी और उसके गालों को चूम रही थी. हम तीनों के चेहरे एक दूसरे से सटे हुए थे. सच में यदि ऊपर वाला देखता तो हम तीनों का प्यार देखकर निश्चय ही कोई ना कोई मार्ग हमारे लिए अवश्य बना देता. हमारा प्रेम सच्चा था हम तीनों एक दूसरे से बहुत प्यार करते थे।
हम तीनो में से कोई भी नाश्ता करने के पक्ष में नहीं था. हमने बड़ी मुश्किल से अपना समय काटा और पुलिस स्टेशन जाने के लिए तैयार होने लगे. सीमां को मैंने आज जाने के लिए मना कर दिया वैसे भी उसके पेट में दर्द था वह रजस्वला थी.
छाया एक बार फिर सादगी से तैयार हुई उसने सफेद सलवार कुर्ता पहना जिस पर छोटे-छोटे गुलाबी रंग के फूल बने हुए थे. इतनी सादगी भरे कपड़े भी उसके शरीर पर खिल रहे थे. हम दोनों पुलिस स्टेशन की तरफ चल पड़े. मैं स्वयं ही ड्राइव कर रहा था. छाया मेरे बगल में बैठी थी वह आने वाली घटनाओं के बारे में सोच रही थी. उसने मुझसे कहा
"डिसूजा बहुत खराब है वह निश्चय ही मुझे ब्लैकमेल करेगा मैंने उसकी आंखों में हवस देखी है। कहीं उसने मेरे साथ संभोग की मांग रख दी तब?"
छाया की यह बात सोच कर मैं डर गया वह इतनी सुंदर और कोमल थी और डिसूजा इतना भयानक. ऐसा लगता जैसे कोई काला कुत्ता किसी खरगोश के साथ संभोग कर रहा हो. मैं वह दृश्य सोच कर मन ही मन डर गया. मैंने छाया की जांघों पर हाथ रखा और उसे थपथपाते हुए कहा
"छाया घबराओ मत, भगवान हमारे साथ ऐसा कुछ नहीं होने देंगें." हालांकि इसका डर मेरे मन में भी आ चुका था. हम पुलिस स्टेशन पहुंचने ही वाले थे तभी छाया के फोन पर घंटी बजी. शर्मा जी का फोन था..
छाया ने फोन स्पीकर पर कर दिया
"जी"
" छाया बेटी डिसूजा इस केस से बाहर हो गया है. यह केस मिस्टर रॉबिन देखेंगे. भगवान ने हमारी सुन ली."
छाया खुशी से चहकने लगी और बोली
"आप हमारे लिए भगवान हैं डिसूजा को आपने इस केस से हटवाकर हम सबको एक बड़ी मुसीबत से बचा लिया है" "छाया बेटी तुम और माया जी मेरे लिए एक जैसे हो. जितना प्यार में माया जी से करता हूं उतना तुमसे भी करता हूँ. आखिर तुम मेरी बेटी हो."
"डिसूजा ने हम लोगों को 12:00 अपने ऑफिस बुलाया था. हम लोग वहीं जा रहे थे"
"अब वहां जाने की कोई जरूरत नहीं है तुम लोग आराम से रहो में शाम को आकर बात करता हूं"
उन्होंने फोन काट दिया था।

डी आई जी आफिस ( दिन 12.15 बजे)
शर्मा जी डी.आई.जी के ऑफिस में बैठे हुए थे. होम मिनिस्टर ने डीआईजी को जरूरी निर्देश पहले ही दे दिए थे. शर्मा जी बेसब्री से डिसूजा का इंतजार कर रहे थे जिसे डीआईजी ने अपने ऑफिस में बुलवा लिया था. उन्हें अपनी विजय पर गर्व था. उनके इस कार्य ने उन्हें छाया और उनके परिवार वालों की नजरों में महान बना दिया होगा सा उनका अनुमान था. वह घर के मुखिया के रूप में अपना प्रभाव बना सकते थे. कुछ ही देर में डिसूजा भीगी बिल्ली की तरह कमरे में प्रवेश किया
"वह होटल मर्डर वाले केस का क्या हुआ"
"सर लगभग क्लोज होने वाला है जो आदमी मरा था वह कंप्यूटर हैकर है किसी ने उसे पैसों का गबन करने के लिए हायर किया था और काम हो जाने के बाद उसे वही मार दिया. जो आदमी गायब हुआ था सर मुझे लगता है उसे फंसाया गया है क्योंकि उसके कमरे का उपयोग सिर्फ इंटरनेट एक्सेस करने के लिए किया गया है और उसका मोबाइल फोन भी ओटीपी के लिए प्रयोग किया गया है. मैं जल्दी ही उस आदमी का पता लगा लूंगा."
"और कोई बात"
"जी सर, सोमिल का साला भी इस घटना में शामिल हो सकता है……"
"अच्छा डिसूजा एक काम करो तुम यह केस रॉबिन को दे दो" तुम्हें एक जरूरी मिशन पर जाना है. डीआईजी ने उसकी बात बीच मे ही काट दी.
"पर सर मैं एक-दो दिन में यह केस क्लोज कर के चला जाऊंगा"
"नहीं, डिसूजा तुम्हें आज ही इस केस को हैंड वर्क करना होगा और अपने नए मिशन की जानकारी एसपी रामप्रताप से ले लेना."
"सर…."
"ठीक है तुम जा सकते हो.." डिसूजा का मुंह छोटा हो गया था. उसके चेहरे पर तनाव था. वह कहना तो बहुत कुछ चाहता था पर डीआईजी ने अपना सर झुका लिया था और वह अपने कार्यों में खो गया था.
डिसूजा वापस जा चुका था. मैंने डीआईजी साहब को थैंक यू कहा और बाहर आ गया.
शाम तक रोबिन इस केस के इंचार्ज बन चुके थे वह मेरे पूर्व परिचित भी थे. मैंने डीआईजी साहब से उनका नाम की ही सिफारिश की थी.
शाम को में उनके ऑफिस में उनसे मिला और इस केस से संबंधित सारी जानकारी इकट्ठा की. मेरे लिए आज का दिन बहुत अच्छा था. मेरी माया और छाया दोनों खुशी खुशी मेरा इंतजार कर रहे होंगे ऐसी मुझे उम्मीद थी.
वीरान रास्ता ( दोपहर 2 बजे)
शर्मा जी का फोन कटते ही छाया खुशी से चहकने लगी. वह मुझ से लिपटना चाहती थी पर मैं ड्राइविंग सीट पर था. मैंने अपनी गाड़ी तुरंत दूसरी दिशा में मोड़ ली. अब हम डिसूजा से आजाद थे और शायद पुलिस स्टेशन से भी. शर्मा जी ने वाकई सराहनीय कार्य किया था. हम दोनों ही उनके शुक्रगुजार थे. छाया की खुशी का ठिकाना नहीं था. उसने मुझसे कहा
"मानस भैया आज उसी वीरान जगह पर ले चलिए."
मैं उसकी बात समझ नहीं पाया मैंने उससे पूछा
"कौन सी जगह?"
वह शरमा गई और बोली
"जहां आपने मुझे खुली हवा में ही नग्न कर दिया था"
मैं मुस्कुराने लगा मुझे वह दिन याद आ गया. मुझे छाया की इस अदा पर हंसी भी आ रही थी और मेरे राजकुमार में उत्तेजना भी.
छाया में आज उत्पन्न हुई कामुकता खुशी की एक स्वाभाविक प्रतिक्रिया थी. आज मेरी छाया पुराने रूप में मुझे दिखाई पड़ी. पिछले तीन-चार दिनों का अवसाद जैसे छूमंतर हो गया था. तभी छाया के मोबाइल पर ईमेल अलर्ट फिर आया. उसमें इस बार भी सोमिल की फोटो थीं. फ़ोटो देखकर छाया की आंखें फटी रह गई. उसने मुझे फोटो दिखाने की कोशिश की. मैंने गाड़ी एक तरफ रोक कर वह फोटो देखी. सोमिल बिस्तर पर नग्न पड़ा हुआ था उसका पायजामा नीचे खिसका हुआ था और राजकुमार से उछलता हुआ वीर्य फोटो में कैद हो गया था. सोमिल की आंखें बंद थी. वह लड़की सोमिल की शर्ट पहने हुए ठीक बगल में बैठी थी और उसे ध्यान से देख रही थी. उस लड़के की नग्न जाँघे और खुले हुए स्तन भी उस फोटो में स्पष्ट दिखाई दे रहे थे.
छाया आज बहुत खुश थी उसने वह फोटो देखते ही कहा "यह फोटो देखकर तो लग रहा है कि सोमिल को भी एक छाया मिल गई है"
मैंने छाया को चूम लिया और कहा
"मेरी छाया इकलौती है और इकलौती ही रहेगी"
मैंने अपनी गाड़ी उस वीरान जगह की तरह घुमा ली. यह वही जगह थी जहां मैं छाया को एक बार लेकर गया था. यह बेंगलुरु शहर से लगभग 10 - 12 किलोमीटर दूर थी तथा मुख्य सड़क से हटकर थी. वहां से नदी का सुंदर नजारा दिखाई पड़ता था. जाने अभी तक बेंगलुरु के प्रॉपर्टी बिल्डरों की नजर वहां तक क्यों नहीं पहुंची थी. मेरे एक दोस्त ने मुझे उस जगह के बारे में बताया था. मैं और छाया उस दिन बहुत खुश थे. छाया के कहने पर हम उस जगह को देखने चले गए वहां का नजारा वास्तव में बहुत खूबसूरत था. छाया उसे देखकर मोहित हो गई. उस दिन उसने हमेशा की तरह स्कर्ट और टॉप पहना हुआ था. मुझे उससे छेड़खानी करने का मन हुआ कुछ ही देर में वह मेरी बाहों में थी. हम दोनों पास पड़े हुए पत्थर पर बैठ गए थे. छाया मेरी गोद में थी प्रकृति के इस नजारे को देखते हुए वह मेरे राजकुमार को अपने कोमल हाथों से सहला रही थी और मेरी उंगलियां उसकी राजकुमारी को. हमारे होंठ आपस मे एक हो गए थे. एक दूसरे को इस तरह प्रकृति की गोद में स्खलित करने का सुख अद्भुत था.
यही बातें सोचते सोचते हम दोनों एक बार फिर उसी जगह पर आ गए. गाड़ी को किनारे खड़ी करने के बाद हम उसी जगह पर एक बार फिर खड़े थे. वह पत्थर आज भी वहीं पड़ा हुआ हमारे प्रेम की गवाही दे रहा था जिस पर मेरे और छाया के प्रेम रस के कुछ अंश गिरे हुए थे बाकी तो छाया के स्तनों में सुखा लिया था.
छाया शर्माते हुए उसी जगह की तरफ बढ़ रही थी. उसके चेहरे पर एक बार फिर शर्म की लाली आ गई थी. उसे पता था कुछ देर बाद क्या होने वाला था. वह खुद ही स्वेच्छा से वही करने यहां आई थी मैं तो बस उसका साथ दे रहा था. छाया को आगे आगे चलते देख मुझे हंसी आ रही थी. उसके नितंब पीछे से बड़ी अदा से हिल रहे थे. वह सलवार कुर्ता पहने हुए थे और सीधी-सादी लड़की जैसे लग रही थी पर वस्त्रों के अंदर मेरी कामुक छाया थी अद्भुत और बेमिसाल.
वाद अदुतीय प्राकृतिक छटा को निहार रही थी. तभी मेरे हाथ उसकी कमर पर आ गए. वह कुछ बोली नहीं मेरे हाथों में अपना काम करना शुरू कर दिया. कुछ ही देर में छाया की सलवार जमीन पर थी। छाया की पैंटी को सरकाने में मेरी उंगलियों को काफी मेहनत करनी पड़ी. जाने क्या सोचकर उसने इतनी कसी हुई पैंटी पहनी थी. एक पल के लिए मुझे लगा कि उसने डिसूजा से बचने के लिए इतनी टाइट पेंटी पहनी थी पर उसे यह बात नहीं मालूम थी कि डिसूजा संभोग के लिए उसकी इस पैंटी को एक पल में फाड़ देता और उसकी कोमल योनि को तार-तार कर देता.
मेरी हथेलियां उसकी जांघों पर खेलने लगी. धीरे-धीरे वो छाया के निचले होठों को तलाश रही थी. मेरी मध्यमा उंगली ने छाया की रानी के दोनों होठों को अलग किया और स्वयं रानी के प्रेम रस में डूब गई. मैंने अपनी उंगली को होंठों के ऊपर किनारे तक लाया और वह भग्नासा से छूने लगा. छाया ने अपनी कमर पीछे की तरफ कर ली और जांघों को सिकोड़ लिया. वह पूरी तरह उत्तेजित थी. मुझे लगता है रास्ते में वह यहां होने वाले घटनाक्रम को ही सोच रही थी. मैंने उसकी रानी को और ज्यादा तंग करना उचित नहीं समझा मेरी उनलियों की काबिलियत से वह भलीभाँति परिचित थी. मैंने उसके स्तनों का हाल-चाल लेना चाहा. वह भी ब्रा के अंदर कैद थे. छाया ने आज ऐसी ब्रा पहनी थी जिससे उसके स्तनों का आकार दब गया था. छाया ने अपने अंगो को बचाने के लिए व्यूहरचना की थी ऐसा उसने डिसूजा के डर की वजह से किया था।
छाया के स्तनों को आजाद करना जरूरी था वरना वह छाया की इस अद्भुत खुशी में शरीक नहीं हो पाते और मेरा राजकुमार भी उनकी संवेदना पाने के लिए तरसता रहता. मैंने छाया का कुर्ता ऊपर उठाना शुरू कर दिया जैसे-जैसे कुर्ता ऊपर आ रहा था उसके नितंब कटीली कम,र गोरी पीठ और सफेद ब्रा नजर आने लगी. छाया के हाथ स्वतः ही ऊपर उठते चले गए और कुर्ता बाहर आ गया. छाया अभी भी अपना चेहरा नदी की तरफ की हुई थी मैंने ब्रा के हुक खोलने शुरू कर दिए. मेरी उंगलियों को हुक खोलने में अच्छी खासी मेहनत करनी पड़ रही थी. आखरी हुक खोलते ही ब्रा एक स्प्रिंग की तरह अलग हो गई. छाया की पीठ पर ब्रा के निशान बन गए थे मैंने उसे अपने हाथों से सहलाया और होठों से चूम लिया. छाया ने स्तनों के आजाद होते ही छाया का रोम रोम खिल उठा. मेरे हाथ उसके स्तनों पर चले गए छाया में मुझे कष्ट न देते हुए अपनी ब्रा को स्वयं ही अपने शरीर से अलग कर दिया. कुदरत की बनाई हुई मेरी खूबसूरत और कमसिन छाया आज प्रकृति की गोद में ही नग्न खड़ी थी और संभोग सुख के लिए प्रतीक्षारत थी.
मैं उसके स्तनों और पेट को सहलाता हुआ सामने की तरफ आ गया. मुझे छाया की खूबसूरत रानी के दर्शन हुए. वह अपने होंठों को एक दूसरे से चिपकाये हुए मुस्कुरा रही थी. ऐसा लग रहा था जैसे वो अपने भीतर से रिस रहे प्रेमरस को बाहर आने से रोकना चाहती हो. पर इश्क और मुश्क छुपाये नही छुपते. होंठो के बीच प्रेमरस झांक रहा था. मेरी उंगली ने कुछ प्रेमरस रानी के होंठों पर भी लगा दिया था वो चमक रहे थे.
मैंने आज कई दिनों बाद छाया की रानी पर हल्के बाल देखें थे. शायद पिछले दो-तीन दिनों के तनाव में वह अपनी रानी का ख्याल नहीं रख पाई थी अन्यथा छाया के ऊपर और नीचे के होंठो में नियति ने सुंदरता कूट-कूट कर भरी थी. छाया की बाहें अब हरकत में आ रहीं थीं. उसकी उंगलियां मेरी बेल्ट से खेलने लगी राजकुमार बाहर आने के लिए बेताब था. कुछ ही देर में वह छाया के हाथों में अपनी लार टपकाते हुए खेल रहा था. मैं छाया की पीठ और नितंबों को सहला रहा था मैंने पूरे वस्त्र पहने हुए थे और छाया पूर्णता नग्न. हमारे अप्रतिम प्रेम का गवाह वह बड़ा पत्थर निकट ही था. मैंने छाया को अपनी गोद में उठाया और उस पत्थर पर के पास आ गया. मैंने छाया को अपनी गोद में बिठा लिया उसके दोनों पैर मेरी कमर के दोनों तरफ थे और चेहरा मेरी तरफ. मेरा पेंट मेरे घुटनों तक आ गया था. मेरी जांघें नग्न थीं. छाया अपने नितंबों को मेरी जांघों पर टिकाए हुए थी. राजकुमार उसके और मेरे पेट के बीच दबा हुआ था. हमारे होंठ मिलते चले गए. छाया को आज मिली अद्भुत खुशी ने उसमें और जोश भर दिया था यह उसके होठों की गति से स्पष्ट था।
उसके स्तन मेरी शर्ट से टकरा रहे थे मुझे उनकी अनुभूति नहीं हो पा रही थी. मैंने अपनी शर्ट ऊंची कर ली हम दोनों के निप्पल आपस में मिलने लगे. छाया मेरे होठों को बेतहाशा चूमे जा रही थी. हमारी जीभ भी आपस में एक दूसरे को उसी तरह छू रही थी जैसे राजकुमार रानी के मुख्य को छू रहा था. छाया ने अपने पैरों से स्वयं को व्यवस्थित किया हुआ था वह भी। राजकुमार को छेड़ना जानती थी. मुझे मेरा राजकुमार छाया के नटखट पुत्र जैसा लगता था वो दोनों एक दूसरे से बहुत छेड़खानी करते और उतना ही प्यार.
अचानक छाया नीचे की तरफ बैठती चली गई और मेरा राजकुमार रानी की गहराइयों में उतरता गया. छाया की रानी का कसाव अद्भुत था ऐसा लग रहा था जैसे किसी पतली सकरी गुफा में राजकुमार को गहरे दबाव के साथ जाना पड़ रहा था. राजकुमार रानी द्वारा उत्सर्जित प्रेम रस के सहारे बढ़ता जा रहा था और छाया का चेहरा लाल होता जा रहा था. उसके होंठ मेरे होंठ से अलग हो रहे थे. शायद छाया के ध्यान रानी की तरफ था. वह राजकुमार को अपने अंदर बिना दर्द के सजो लेना चाहती थी. राजकुमार के पूरा प्रविष्ट होने के बाद छाया ने चैन की सांस ली. उसने अपनी आंखें खोली और मुझे अपने चेहरे की तरफ देखता पाया. उसमें अपनी पतली उंगलियों से मेरी आंखें बंद कर दी और कहा
"प्लीज आंखें बंद कर लीजिए मुझे शर्म आ रही है" इस चटक धूप में छाया के साथ इस तरह संभोग करना अद्भुत आनंद था. मैंने अपनी पलकें बंद कर ली. छाया की कमर ऊपर नीचे होने लगी. छाया अद्भुत लय में अपनी कमर ऊपर नीचे कर रही थी. राजकुमार रानी के इस तरह आगे पीछे होने से बेहद खुश था. वो उछल उछल कर रानी के अंदरूनी भाग में प्रवेश करता और उसके होंठो तक आता. मेरे दोनों हथेलियां छाया के नितंबों को सहारा दी हुई थीं और उन्हें आगे पीछे होने में मदद कर रहीं थीं. बीच-बीच में मेरी उंगलियां छाया की दासी को भी छू देतीं. ऐसा करते ही छाया के कमर स्थिर हो जाती. मैं उसका इशारा समझ जाता और अपनी उंगलियों को हटा लेता. छाया की कमर फिर हिलने लगती मुझे पता था कि वह तिरछी निगाहों से मुझे देख रही होगी. पर उसने मेरी पलके बंद कर दी थी मैंने उस सुख का अनुभव लेने का विचार त्याग दिया छाया धीरे-धीरे उत्तेजित हो चली थी. मैंने महसूस किया कि छाया की कमर अब ज्यादा ऊपर नीचे नहीं हो रही थी अपितु एक ही जगह पर वह अपनी कमर को तेजी से हिला रही थी. ऐसा महसूस हो रहा था जैसे वह अपनी भग्नासा को मेरे शरीर के रगड़ रही थी. मैंने उसके स्तनों को सहलाना शुरु कर दिया. अपने अंगूठे और तर्जनी के बीच उसके निप्पओं को दबाते ही छाया कांपने लगी वह स्खलित हो रही थी. मुझे पता था उसने अपनी आंखें बंद कर ली होंगी. मैं उसे स्खलित होते हुए देखना चाहता था वह उस समय बहुत प्यारी लगती थी. मैंने अपनी आंखें खोल दी. छाया का चेहरा लालिमा से दमक रहा था उसने अपन निचला होठ दांत से दबाया हुआ था. मैंने एक बार फिर उसके होंठों को अपने होंठों में ले लिया.
रानी के कंपन लगातार राजकुमार को महसूस हो रहे थे. मैं भी मेरी छाया के साथ-साथ स्खलित होना चाहता था. मैंने भी अपनी कमर तेजी से हिलानी शुरू कर दी. मेरी जांघों के ऊपर नीचे होने की वजह से छाया उछलने लगी. राजकुमार से और बर्दाश्त ना हुआ. इससे पहले कि वीर्य की पहली धार छाया की रानी को भिगोती, छाया ने अपनी कमर ऊपर उठा ली. राजकुमार बाहर आ गया और छाया को भिगोना शुरु कर दिया. मेरी हथेलियों ने राजकुमार को दिशा देने का कार्य बखूबी सम्हाल लिया था.
छाया हंस रही थी और वीर्य की धार से बचने का झूठा प्रयास कर रही थी. वीर्य स्खलन समाप्त होते ही उसने राजकुमार को अपने हाथों में ले लिया और नीचे झुक कर उसे चूम लिया. मैं उसके मुलायम बालों पर उंगलियां फिरता रह गया.
छाया ने अपने वस्त्र पहन ने शुरू किए. सलवार पहनाने में मैंने उसकी मदद की प्रत्युत्तर में मुझे छाया की रानी को चुमने का एक अवसर मिल गया. छाया जोर से हंस पड़ी और मेरे सिर को दूर धकेला. उसकी रानी में संवेदना अभी भी कायम थी. छाया की ब्रा और पेंटी नीचे पड़ी थी जिसे मैंने अपने हाथों में उठा लिया और अपने पैंट की दोनों जेब में रख लिया. हम दोनों एक दूसरे की बाहों में बाहें डाले कार की तरफ बढ़ चले. हमारे चेहरे पर खुशी और सुकून था.
घर पहुंचने पर हमारे कपड़ों की सलवटें और हमारे चेहरे पर खुशी देख कर सीमा ने घटनाक्रम भाप लिया. शर्मा जी ने शायद माया आंटी को भी फोन कर दिया था.
छाया भी मेरे साथ मेरे कमरे में आ गई थी. मैंने उसकी ब्रा और पेंटी अपनी जेब से निकाल कर बिस्तर पर रख दी. सीमा पीछे खड़ी थी वह मुस्कुराने लगी और बोली
"मेरी ननद डिसूजा से तो बच गए पर उसके भैया से बचना मुश्किल है" सीमा स्वयं रजस्वला थी उसे मेरे और छाया के बीच हुए संभोग से कोई आपत्ति नहीं थी. यदि वह स्वस्थ होती तो निश्चय ही हमारा साथ दे रही होती. हम दोनों ने सीमा को अपने आलिंगन ने ले लिया और उसके गालों को चूम लिया. आज का दिन शर्मा जी ने हमारे लिए खुशनुमां बना दिया था।
मानस का घर ( शाम 6:00 बजे)
(मैं मानस)
दरवाजे पर आहट हुई. सीमा ने दरवाजा खोला किसी अनजान व्यक्ति ने उसे एक लिफाफा दिया और तुरंत ही वापस लौट गया. अंदर आने के बाद उसने लिफाफा खोला मैं, छाया और माया जी सीमा के पास ही थे. हम सभी को उतनी ही उत्सुकता थी कि इस लिफाफे में क्या है? लिफाफा खोल कर सीमा ने अंदर पड़े फोटोग्राफ्स बाहर निकाल दिए. यह सभी फोटोग्राफ छाया के थे. कुछ में वह पूर्ण नग्न अवस्था में थी. कुछ फोटो में छाया के साथ मैं भी दिखाई दे रहा था और भी आपत्तिजनक अवस्था में. कुछ फोटो में सीमा भी थी. एक फोटो में छाया और सीमा पूरी तरह नग्न होकर बाथरूम में नहा रहीं थीं । छाया के शरीर पर हल्दी लगी हुई थी. यह स्पष्ट हो गया था यह सारी फोटो विवाह भवन के बाथरूम से लीं गयीं थीं. माया आंटी को हमारे संबंधों की भनक थी उन्होंने यह फोटो देखकर कोई आश्चर्य व्यक्त नहीं किया न हीं हमने उन्हें सफाई देने की कोशिश की.
यह कौन व्यक्ति था जिसने बाथरूम में कैमरा लगाया हुआ था? कहीं इसमें कोई साजिश तो नहीं थी? या फिर होटल वाले ने अपनी कामुकता शांत करने के लिए ऐसा किया था.
हम तनाव में आ गए थे।
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Ankit
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Re: Incest अनचाहे रिश्तों में पनपती कामुकता की छाया

Post by Ankit »

यह कौन व्यक्ति था जिसने बाथरूम में कैमरा लगाया हुआ था? कहीं इसमें कोई साजिश तो नहीं थी? या फिर होटल वाले ने अपनी कामुकता शांत करने के लिए ऐसा किया था. मुझे बहुत क्रोध आ रहा था. मैंने विवाह भवन के मैनेजर को फोन करने की कोशिश की पर फोन नहीं लगा. मैंने अश्विन को फोन लगाया. (अश्विन मनोहर चाचा का दामाद था जिसकी शादी में हम लोग दो वर्ष पहले शरीक होने गए थे और उसी के बाद से मेरा और छाया का विछोह हो गया था हमारे प्रेम पर हमारा अनचाहा रिश्ता भारी पड़ गया था.) विवाह भवन की सारी व्यवस्था उसी ने की थी.

अश्विन ने फोन उठा लिया था

"जी, मानस भैया"

" तुम मेरे घर आ सकते हो क्या? हमें विवाह भवन चलना है."

"क्या बात हो गयी मानस भैया?"

"यहां आ जाओ फिर बात करते हैं"

"पर भैया मैं तो बेंगलुरु से बाहर हूं"

"ठीक है, मुझे उसके मैनेजर का कोई और नंबर हो तो भेज दो और आने के बाद मुझसे मिलना"

हम समझ चुके थे कि किसी ने बाथरूम में कैमरा लगाया था और वह छाया की नग्न तस्वीरें खींचना चाहता था. हमारी रासलीला के कारण मेरी और छाया की तस्वीरें भी छाया के साथ आ गई थी. हम तीनों ने विवाह भवन में जिस कामुकता का आनंद लिया था फोटो में उसकी एक झलक स्पष्ट दिखाई पड़ रही थी. माया आंटी इन फोटो को देखकर शर्मसार हो रही थी और उन्होंने वहां से हट जाना ही उचित समझा.

तभी मेरी नजर नीचे पड़े खत पर पड़ी. वहां पर हम तीनों ही थे और हमारे बीच कोई पर्दा नहीं था. मैने खत पढ़ना शुरू कर दिया


"प्यारी छाया,

मैंने आज तक जितनी भी लड़कियां देखी है उनमें तुम सबसे ज्यादा सुंदर हो, तुम मेरे लिए साक्षात कामदेवी रति का अवतार हो. मुझे सिर्फ और सिर्फ एक बार तुम्हारे साथ संभोग करना है. मुझे पता है मैं तुम्हारे लायक बिल्कुल भी नहीं हूं पर मन की भावनाएं तर्कों पर नहीं चलती. तुमसे संभोग किए बिना मेरे जीवन की बेचैनी कम नहीं होगी.

मानस के साथ होटल में मनाए गए सुहागरात से मुझे तुम्हारी कामुकता का अंदाजा हो गया है. मानस के साथ निश्चय ही तुम्हारे संबंध पिछले कई वर्षों से रहे होंगे. यूं ही कोई अपने सौतेले भाई के साथ सुहागरात नहीं मनाता.

मैं तुम्हारी इसी अदा का कायल हो गया हूँ. जिस प्रकार तुमने मानस के साथ रहते हुए भी अपने कौमार्य को बचा कर रखा था और उसे अपने विवाह उपरांत ही त्याग किया है मुझे यह बात भी प्रभावित कर गई है. मुझे यह भी पता है कि सोमिल इस समय कहां है और क्या कर रहा है. मेरा विश्वास रखो मैं तुम्हें ब्लैकमेल करना नहीं चाहता हूं पर तुमसे संभोग किए बिना मैं रह भी नहीं सकता हूँ.

तुम कामदेवी हो और अब तुमने अपना कौमार्य भी परित्याग कर दिया है अब तुम्हें किसी पर पुरुष से संभोग से आपत्ति नहीं होनी चाहिए. वैसे भी मैं तुम्हारे लिए इतना पराया नहींहूँ। मुझे सिर्फ और सिर्फ एक बार अपनी उत्तेजना का कुछ अंश देकर मुझे हमेशा के लिए तृप्त कर दो. संभोग के दौरान मैं सिर्फ और सिर्फ तुम्हारी कामुकता का आनंद लेना चाहता हूं तुम्हें आहत करना नहीं.

उम्मीद करता हूं कि तुम मेरी इस उचित या अनुचित याचना को पूरा करोगी. मैं तुम्हें विश्वास दिलाता हूं की होटल में हुई सुहागरात की घटना तुम तीनों के बीच ही रहेगी. मैं दोबारा कभी इस बात का जिक्र नहीं करूंगा. मेरे पास तुम्हारे कई सारे नग्न छायाचित्र है भविष्य के लिए तुम्हारी वही यादें ही मेरे लिए पर्याप्त होंगी।

उम्मीद करता हूं कि तुम मुझ पर विश्वास करोगी आज से 2 दिन बाद हमारा मिलन होगा मैं तुम्हें समय और स्थान ई-मेल पर सूचित कर दूंगा. सोमिल स्वस्थ और सामान्य है तथा अपनी कामुकता को जागृत कर रहा है जिसका सुख तुम्हें शीघ्र ही प्राप्त होगा.

मिलन की प्रतीक्षा में

तुम्हारा …..

छाया डरी हुई थी. आज ही वह डिसूजा के चंगुल से छूटी थी और फिर उसी भंवर जाल में फस रही थी. मैं एक बार तो पत्र लिखने वाले की संवेदना का कायल हो गया. उसने छाया की सुंदरता में इतने कसीदे पढ़ दिए थे कि मुझे उससे होने वाली नफरत थोड़ा कम हो गई थी.

पर वह मेरी छाया को भोगना चाहता था वह भी बिना उसकी इच्छा के यह बिल्कुल गलत था. छाया की कामुकता और उत्तेजना का भोग उसकी इच्छा के बिना लगाना नितांत जघन्य कृत्य था. वह काम देवी थी उससे बल प्रयोग करना या उसे बाध्य करना सर्वाधिक अनुचित था.

हमारे मन में तरह-तरह की बातें आने लगीं. माया जी को हमने यह बात नहीं बताई. यह बात हम तीनों के बीच ही थी और इसका निर्णय भी हम तीनों को ही करना था.


(मैं छाया)

शर्मा जी लगभग 8:00 बजे घर लौटे उनके चेहरे पर विजयी मुस्कान थी. हम सभी ने उनका भव्य स्वागत किया. सच में आज उन्होंने डिसूजा को इस केस से हटवा कर हम सभी की इच्छा को पूरा कर दिया था. आज वह इस घर के मुखिया के रूप में दिखाई पड़ रहे थे. वह एक बार फिर मेरे पास आये और मेरे माथे को चूम लिया. मेरे दोनों गाल उनकी हथेलियों में थे उन्होंने मुझे अपने आलिंगन में लेने की भी कोशिश की. मुझे उनका कल का आलिंगन याद था जिसमें मेरे स्तन उनके सीने से सट गए थे. आज सावधानी बरतते हुए मैं आगे झुक गई थी और सिर्फ अपने कंधों को उनके सीने से टकराने दिया.

उन्होंने फिर कहा

"कोई मेरे परिवार पर और खासकर मेरी छाया बेटी पर बुरी नजर डालेगा मैं उसे नहीं छोडूंगा." उनके उदघोष से मां का सीना गर्व से फूल गया था. उन्हें शर्मा जी को अपना जीवनसाथी चुनने पर आज अभिमान हो रहा था. मा ने उन पर अपना सर्वस्व न्योछावर कर दिया था. मां को इस खत की जानकारी नहीं थी इसलिए वह बहुत खुश थीं। हम तीनों के चेहरों पर अभी भी तनाव थे. यह बात हमने शर्मा जी से भी बताना उचित नहीं समझा.

(मैं माया)

दो-तीन दिन की तनाव भरी जिंदगी के बाद आज का दिन सुखद था। मेरी बेटी के चेहरे पर आज हंसी दिखाई पड़ी थी। शर्मा जी को मैंने आज अपने हाथों से खिलाया। आज मैं उन्हें हर तरह से खुश करना चाहती थी। मैंने अपनी अलमारी में उत्तेजक वस्त्रों की तलाश की पर मेरे मन मुताबिक कोई भी वस्त्र ना मिला। मैंने छाया की अलमारी से एक सुंदर नाइटी निकाल ली मेरी उम्र के हिसाब से वह कुछ ज्यादा ही कामुक थी। शर्मा जी भी कम कामुक न थे वह बार-बार मुझे ऐसे वस्त्र पहनने के लिए बोलते थे। आज मैंने उनकी मन की इच्छा पूरी करने की ठान ली थी। बच्चों के अपने-अपने कमरे में जाने के बाद मैं नहाने चली गई। जैसे ही मैं बाथरूम से बाहर निकली शर्मा जी मुझे एकटक देखते रह गए। यह ड्रेस वास्तव में बहुत आकर्षक और कामुक थी। मेरा बदन छाया से लगभग मिलता-जुलता था मुझ में उतनी चमक और कोमलता तो नहीं थी पर बदन के उतार-चढ़ाव छाया से मिलते थे। वो मुझे एक टक देखते रह गए। उन्होंने कहा "तुमने छाया की ड्रेस पहनी है ना"

मैं मुस्कुराने लगी वह मेरी चोरी पकड़ चुके थे. उन्होंने उठकर मुझे अपने आलिंगन में ले लिया मेरे बाल गीले थे मैंने उनसे कुछ समय मांगा पर वह सुनने को तैयार नहीं थे। जब तक मैं अपने बाल हेयर ड्रायर से सुखा रही थी तब तक वह मेरे स्तनों और जांघों से खेलना शुरू कर चुके थे। आज उनकी हथेलियों में गजब की उत्तेजना थी। उनका ल** मेरी नितंबों से लगातार टकरा रहा था वह नाइटी के ऊपर से ही मुझे सहलाए जा रहे थे। कभी-कभी वह उसके अंदर हाथ डाल कर मेरी जांघों को सहलाते। मैं भी उत्तेजित हो रही थी कुछ ही देर में हम दोनों बिस्तर पर थे। उन्होंने कहा

"तुमने छाया की नाइटी पहनी है उसे मालूम चल गया तो?"

"उसे कैसे मालूम चलेगा. मैं सुबह वापस रख दूंगी"

"पर इस नाइटी में तुम मुझे छाया जैसी दिखाई दोगी तो मैं तुमसे संभोग कैसे कर पाऊंगा"

"ठीक है लाइए मैं इसे उतार देती हूँ।" उन्होंने मेरे हाथ रोक लिए उन्होंने पूछा "छाया खुश तो है ना?"

"हां, आज वह बहुत खुश थी. और आपकी बहुत तारीफ कर रही थी"

"मैं भी उसे बहुत मानता हूं और उससे बहुत प्यार करता हूं" इतना कहकर उन्होंने मुझे दबोच लिया. उनके होंठ मेरे होठों को अपने बीच ले चुके थे। उनके लिंग का कड़ापन मेरे पेट को महसूस हो रहा था। उन्होंने फिर कहा

"आज तुम छाया की नाइटी पहन कर और भी जवान हो गई हो"

मेरी नाइटी मेरी कमर तक आ चुकी थी. मैंने उसे बाहर निकालने की कोशिश की पर शर्मा जी ने रोक दिया. वह उसी अवस्था में मेरे ऊपर आ गए और उनका लिंग मेरी योनि में टकरा गया.

आज मैं उन्हें भरपूर सुख देना चाहती थी यह बात सोचते हुए मेरी योनि में पहले से ही पर्याप्त गीलापन आ चुका था। शर्मा जी का लिंग के छूते ही मेरी प्यास बढ़ गई और शर्मा जी ने बिना देर करते हुए अपने लिंग को मेरी गहराइयों में उतार दिया। वह मेरे स्तनों को तेजी से मसल रहे थे और अपनी कमर से लगातार धक्के लगाए जा रहे थे। मैं भी उनकी उत्तेजना में उनका साथ दे रही थी कुछ ही देर में मुझे लगा कि मैं स्खलित हो जाऊंगी। शर्मा जी के रंग ढंग से ऐसा लग नहीं रहा था जैसे उन्हें पूरी संतुष्टि हुई हो। मैंने उन्हें नीचे आने का इशारा किया वह नीचे आ गए मैं उनकी कमर पर बैठकर अपनी योनि को आगे पीछे करने लगी। आज मैं स्वयं बहुत उत्तेजित थी और कुछ ही देर में मैं स्खलित होने लगी।

स्खलित होने के पश्चात उन्होंने मुझे अपने सीने से सटा लिया और मेरे माथे को चूमने लगे। मेरे दोनों गालों को सहलाते हुए वह बार-बार बोल रहे थे

मेरी प्यारी माया और माथे पर झूम रहे थे। मैं हारी हुई खिलाड़ी की तरह उनके पेट पर लेटी हुई थी। मेरी पराजित योनि में उनका लिंग अभी भी गर्व से खड़ा था। वह बार-बार मुझे सहलाए जा रहे थे ऐसा लग रहा था जैसे मैं अपने से उम्र में बड़े आदमी की सीने पर लेटी हुई हूं और वह मुझे बच्चों जैसा प्यार कर रहा है। पर जब मेरा ध्यान मेरी कमर के नीचे जाता मेरी नग्नता उस प्यार की परिभाषा बदल देती थी। शर्मा जी का लिंग अब मेरी योनि में धीरे-धीरे हिलना शुरू हो रहा था कुछ देर बाद शर्मा जी ने मुझे अपने ऊपर से उतरने का इशारा किया। मैं वापस एक बार फिर पीठ के बल लेटने लगी। शर्मा जी बिस्तर से उठ कर नीचे खड़े हो गए वह मुझे डॉगी स्टाइल में आने का इशारा कर रहे थे। आज वह भी पूरे मूड में थे। मैं उन्हें खुश करने के लिए बिस्तर पर डॉगी स्टाइल में आ गई। शर्मा जी ने नाइटी को उठाया और मेरी कमर पर रख दिया मेरे दोनों नितम्ब उनकी आंखों के ठीक सामने थे। नितंबों के बीच से झांक रही मेरी योनि के होंठ भी उन्हें अवश्य नजर आ रहे होंगे।

उनका मजबूत लिंग मेरे नितंबों पर टकरा रहा था। वह कामुक तरीके से मेरी पीठ सहला रहे थे और मेरे नितंबों को चूम रहे थे। अचानक ही उन्होंने मेरी योनि के होठों को चूम लिया मुझे उनसे यह आशा नहीं है आज यह पहली बार हुआ था मेरी योनि एक बार संभोग कर चुकी थी मुझे इस अवस्था में यह कार्य अनुचित लगा मैंने अपनी कमर हिला दी। शायद वह मेरा इशारा समझ गए थे वह वापस खड़े हो गए।

उनके लिंग में आज अद्भुत उत्तेजना थी। कुछ ही देर में लिंग मेरी योनि के मुख से सट गया। मेरी योनि संवेदनशील हो चुकी थी। उसके मुख पर गीलापन अभी भी कायम था। शर्मा जी धीरे-धीरे अपने लिंग का दबाव बढ़ाते गए और वह मेरी योनि में प्रविष्ट होता चला गया। इस अवस्था में शर्मा जी का लिंग मुझे और भी मजबूत और मोटा महसूस हो रहा था। वह मेरे गर्भाशय के मुख तक पहुंच गया था। शर्मा जी अपनी कमर को आगे पीछे करने लगे वह बार-बार मेरी नाइटी को छूते और नाइटी के ऊपर से ही मेरी पीठ को सहलाए जा रहे थे। कभी-कभी वह अपने हाथ नीचे कर नाइटी में ही कैद मेरे स्तनों को छूते। मुझे अद्भुत एहसास हो रहा था। मैं एक बार फिर उत्तेजित हो रही थी। कुछ ही देर में उनके कमर के धक्के बढ़ते गए उनकी लिंग के आने-जाने की गति में अद्भुत इजाफा हो गया था। वह काफी तेजी से अपने लिंग को मेरे योनि में आगे पीछे कर रहे थे। मैं उत्तेजना से कांपने लगी वह मेरी कमर को अपने दोनों हाथों से पकड़े हुए थे कुछ ही देर में मैने उनके लिंग को अपनी योनि में फूलता पचकता हुआ महसूस करने लगी इस अद्भुत एहसास से मैं भी स्खलित होने लगी। उन्होंने मेरी कमर को पकड़कर तेजी से अपनी तरफ खींचा और अपने लिंग को पूरी ताकत से अंदर तक ले गए जो मेरे गर्भाशय के मुख को फैलाने की कोशिश कर रहा था। मैं उनके इस तीव्र उत्तेजना को पहचान गई थी मैंने उन्हें रोका नहीं । मेरी योनि में वीर्य वर्षा हो रही थी जिसकी मुझे अनुभूति भी हो रही थी शर्मा जी के पैर कांप रहे थे और उनका कंपन मुझे अपने नितंबों पर महसूस हो रहा था उनके मुख से धीमी आवाज आई।

छाया…..…………...की नाइटी बहुत सुंदर है मायाजी आप हमेशा ऐसे ही रहा कीजीए।

उनके मुंह से छाया शब्द सुनकर मैं अचानक डर गई पर पूरी बात सुनकर मैं संतुष्ट हो गई थी। छाया की यह नाइटी निश्चय ही उत्तेजक थी। इसने आज मेरी उत्तेजना में आग में घी का काम किया था। मैंने मन ही मन निश्चय कर लिया था कि उनकी खुशी के लिए ऐसे कई सारे वस्त्र अपनी भी अलमारी में रखूंगी।

वह अपना लिंग बाहर निकाल चुके थे मैंने उनके चेहरे की तरफ देखा वह तृप्त लग रहे थे। उन्होंने मुझे एक बार फिर अपने आलिंगन में ले लिया और मेरे दोनों गालों को सहलाते हुए मेरे माथे को चूम लिया।

मैं उनके आलिंगन में कुछ देर वैसे ही खड़ी रही। उन्होंने कहा तुमने और छाया ने मेरे जीवन में आकर मेरी वीरान जिंदगी में रंग भर दिए हैं। मैं भगवान से हमेशा तुम दोनों की खुशी मांगता हूँ और मानस की भी। उन्हें पता था, मानस भी हम दोनों को उतना ही प्यारा था।

(मैं शशिकांत शर्मा उर्फ शर्मा जी)

आज माया से संभोग करके मुझे जीवन का अद्भुत आनंद आया था. छाया की उत्तेजक नाइटी माया पर भी खूब खिल रही थी। यह पिछले 2 वर्षों से हो रहे हमारे मिलन से कुछ अलग था. आज माया ने पूरे तन मन से मुझे स्वीकार कर लिया था। आज उसका यह समर्पण मुझे अत्यंत आत्मीय लगा था और वह मेरे हृदय में आत्मसात हो गयी थी।

मैंने भी डिसूजा को इस केस से हटाकर अपने दायित्व का निर्वहन किया था मैं भगवान को शुक्रिया अदा कर रहा था कि आज मेरे संबंधों की वजह से मैं माया और उसकी बच्ची छाया के लिए कुछ कर पाया था।

संभोग के उपरांत मेरी आंख लग गई

मैंने अपने आप को बादलों में पाया मेरे पैर बादलों में थे पर मैं गिर नहीं रहा था। मैं अपने पैरों से बादलों को हटाता और वह हटकर कुछ दूर चले जाते और अगल-बगल के बादल उस जगह को भरने आ जाते। मुझे अद्भुत आनंद आ रहा था कभी मैं स्वयं को एक किशोर की भांति पाता कभी अपनी वर्तमान उम्र में। चारों तरफ पूर्ण सन्नाटा था पर उस दिव्य दृश्य को देखकर मैं आनंद में डूब गया था तभी अचानक मुझे एक दिव्य स्वरूप दिखाई दिया। मुझे बादलों से एक आकार अपनी तरफ आता हुआ दिखाई पड़ रहा था जैसे-जैसे का आकार मेरी तरफ आता मेरा कोतुहल बढ़ता जाता।

वह एक स्त्री थी जैसे जैसे वह करीब आ रही थी उसकी काया अब दिखाई पड़ने लगी थी पर वह अभी भी विशालकाय थी। सामान्य आकार से लगभग कई गुना विशाल। जैसे-जैसे वा मेरे करीब आती गई मुझे उसका आकार और बड़ा दिखाई पड़ने लगा यह निश्चय हो चुका था कि वह युवती की ही काया थी सफेद बादलों के बीच से गेंहुए हुए रंग की उसकी दिव्य काया अपना अद्भुत रूप दिखा रही थी। कामुक अंगो को बादलों ने घेर रखा था परंतु उस सुंदर काया की कामुकता को रोक पाने में बादल नाकाम हो रहे थे। उसके चेहरे , स्तन, नाभि प्रदेश और जाँघों के योग पर बादलों ने अपना आवरण दे दिया था। उस युवती के पूरे शरीर पर कोई भी वस्त्र नहीं था उसका मुख मंडल प्राकृतिक आभा से दमक रहा था। मैं उसे पहचान नहीं पा रहा था वह मेरे काफी करीब आ चुके थी। अचानक उसके चेहरे पर से बादल हटे मुझे वह कोई देवी स्वरूप प्रतीत हुई । मुझे अपनी गंदी सोच पर घृणा हुई मैं इस दिव्य शक्ति की जांघों और स्तनों पर अपना ध्यान केंद्रित किया हुआ था यह सोचकर मुझे शर्म और लज्जा आने लगी। मेरी गर्दन चुकी थी । तभी उस युवती की गूंजती हुई आवाज आई

"क्या हुआ आपने गर्दन क्यों झुका ली" मैं कुछ उत्तर न दे सका मुझे ऐसा प्रतीत हुआ जैसे व दिव्य शक्ति नाराज होकर मुझे कोई श्राप न दे दे। मैंने सर झुकाए हुए ही कहा

"मैं आपके दिव्य स्वरुप को नहीं पहचान पाया मेरा ध्यान भटक गया था मुझे क्षमा कर दीजिए"

"क्षमा मत मांगिए आपने कोई गलती नहीं की है जिस दृश्य को आप देखना चाहते थे आपने वही देखा. स्त्री शरीर के वही अंग आप को प्रभावित करते हैं जो आप पसंद करते हैं यदि आपने मेरे स्तनों और जांघों को देखने की चेष्टा की है तो निश्चय ही आपके मन में वासना ने जन्म लिया है. मैं तो स्वयं कामवासना की देवी रति हूं. धरती पर सभी वयस्क पुरुष मुझे ही ध्यान करते हैं कभी-कभी वह अपने साथी में मेरा स्वरूप पा लेते हैं। कभी पूर्ण तृप्त ना होने पर वह अपनी भावनाओं में मुझे याद कर लेते हैं। कभी मैं उनके समीप ही किसी और रूप में विद्यमान रहती हूँ। मैं उनकी कामवासना संतुष्ट करने में पूरी मदद करती हूं। जिन्हें कोई साथी नहीं मिल पाता वह मेरे ही अंगों पर ध्यान केंद्रित कर अपनी वासना की पूर्ति करते हैं और चरम सुख प्राप्त करते हैं"

मैं कामदेवी का विशाल हृदय देखकर गदगद हो गया. मैंने उन्हें प्रणाम किया उन्होंने फिर कहा

"यदि तुम इस प्रकार नतमस्तक रहोगे तो इस अद्भुत दिव्य दर्शन का आनंद कैसे ले पाओगे?"

मैंने अपनी नजरें उठा दीं वह मुस्कुराती हुई साक्षात मेरे सामने थीं। उनके इस विशाल रूप को देख पाने की मेरी क्षमता नहीं थी मैंने फिर एक बार कहा

"आपके इस दिव्य स्वरूप को मेरी आंखें देख पाने में नाकाम हो रही है. मेरी आंखें इस दिव्य रुप के चकाचौंध में दृष्टि हीन हो रहीं हैं कृपया अपना स्वरूप छोटा करें और मुझे दर्शन दें।"

उनका कद छोटा होता चला गया कुछ ही देर में वह सामान युवती की भांति मेरे सामने खड़ी थीं। चेहरे पर अद्भुत नूर था शरीर की बनावट आदर्श थी स्तनों को अभी भी बादल ने घेरा हुआ था पर उनका आकार स्पष्ट दिखाई पड़ रहा था ऐसा लगता था सांची के स्तूपों को छोटा करके उनके दोनों स्तनों की जगह रख दिया गया हो।सीने से कमर तक आते आते हैं कमर की चौड़ाई अद्भुत रूप से कम हो गई थी और उसके तुरंत ही पश्चात वह बढ़ते हुए उनके नितंब का रूप ले रही थी।

उनकी जाँघें बेदाग और सुडोल थी ऐसी दिव्य काया को मैं ज्यादा देर नहीं देख पाया। मेरी आँखें फिर झुक गई। उन्होंने फिर कहा

"यदि आपकी तृप्ति से हो गई हो तो मैं अंतर्ध्यान ही जाऊं"

" आपसे कोई आपसे कैसे तृप्त हो सकता है मेरी आंखें फिर खुल गई थी उनके चेहरे और शरीर से बादल हट चुके थे सुंदर सुडोल स्तन मेरी आंखों के सामने थे जांघों के जोड़ पर दो खूबसूरत होठ अपने बीच थोड़ी जगह बनाए हुए दर्शनीय थे। नाभि और जांघों के जोड़ के बीच की जगह एकदम सपाट और बेदाग थी। मैं उस अद्भुत काया को निहार रहा था। तभी मेरी नजर देवी के चेहरे पर गए मेरे मुख से निकल गया "छाया"

वह हंसने लगी

अचानक छाया का चेहरा गायब हो गया और वह चेहरा एक दिव्य स्वरुप में परिवर्तित हो गया. जब जब मैं अपना ध्यान चेहरे से हटाता और कामुक अंगो की तरफ लाता मेरे जेहन में कभी वह दिव्य चेहरा आता कभी छाया का चेहरा दिखाई पड़ता। मैंने एक बार फिर चेहरे की तरफ ध्यान लगाया और फिर छाया का ही चेहरा सामने आयाम

मैं इस दुविधा से निकल पाता तभी एक बार गूंजती हुई आवाज फिर आई

"आइए मेरे आगोश में आ जाइए. मैं धरती पर हर जगह अलग-अलग रूपों में उपलब्ध हूं. मेरी उपासना सारी मानव जाति करती है आप भी उनमें से एक हैं।"

मैं धीरे-धीरे उस अद्भुत काया की तरफ बढ़ने लगा। जैसे ही मैं उनके स्तनों को छु पाता मेरी नींद खुल गई।

मैं बिस्तर पर उठ कर बैठ गया। मैं मन ही मन डरा हुआ भी था पर अपने लिंग पर निगाह जाते हैं मेरा डर गायब हो चुका था। वह पूर्ण रूप से उत्तेजित था। शायद यह कामदेवी का ही आशीर्वाद था।


मैं माया जी की नाइटी हटाकर उनके कोमल नितंबों से अपने लिंग को सटा दिया और उन्हें अपने आगोश में लेकर सो गया। यश स्वप्न अद्भुत और अविश्वसनीय था उसने मेरे मन मे प्रश्न उत्पन्न कर दिया था.... क्या छाया कामदेवी रति की अवतार थी....???
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Ankit
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Re: Incest अनचाहे रिश्तों में पनपती कामुकता की छाया

Post by Ankit »

शुक्रवार (पांचवा दिन)
(सोमिल का कैदखाना)
(मैं शांति उर्फ लक्ष्मी)

यहां आने से पहले मेरे मन में भी इस बात का डर था की जिस व्यक्ति के साथ मुझे रहना था वह किस स्वभाव का होगा। मैंने पैसों के लालच में हा तो कर दिया था पर मैं डरी हुई थी। मैंने इससे पहले एक या दो बार ही अपरिचित मेहमानों से सेक्स किया था। वह भी उम्र में मुझसे काफी बड़े थे। उनके साथ सेक्स कर कर मुझे स्वयं को कोई अनुभूति नहीं हुई थी। मैंने सेक्स का आनंद अपने पुराने बॉयफ्रेंड के साथ ही लिया था जो अब दुबई भाग गया था।

भगवान ने मुझे खूबसूरत और हसीन बनाया था पर मेरी गरीबी ने मुझे ऐसे कार्य करने पर बाध्य किया था। मेरी पढ़ाई अब पूरी हो चुकी थी। पैसों के लालच में मैंने आखरी बार यह कार्य करने के लिए स्वयं को तैयार कर लिया था।

मुझे मेरे भाई ने बताया था जो व्यक्ति यहां आ रहा है वह उस रात सुहागरात मनाने वाला था और उसे उसी अवस्था से किडनैप कर लिया गया है। तुम्हें उसका ख्याल रखना है और उसे अगले कुछ दिनों तक उत्तेजित कर उसका मन लगाए रखना है। यदि तुम उसके साथ संभोग कर लेती हो तो यह तुम्हारी विजय मानी जाएगी। इसके लिए तुम्हें उचित इनाम भी दिया जाएगा। पर तुम्हें यह बात ध्यान रखनी होगी कि वह एक सभ्य इंसान है यदि उसे तनिक भी भ्रम हो गया कि तुम एक कॉल गर्ल हो तो वह तुम्हारे पास भी नहीं आएगा।

यह तुम्हारे ऊपर है कि तुम उसे किस तरह प्रभावित करती हो पर यदि तुमने उसके साथ संभोग कर लिया तो निश्चय ही तुम्हारे ईनाम की राशि बढ़ा दी जाएगी। मैं मन ही मन इस अनोखे चैलेंज को स्वीकार कर चुकी थी। सोमिल सर को देखने के बाद मैं उनकी मर्दानगी की कायल हो गई थी। लंबा चौड़ा शरीर और चेहरे पर आकर्षण एक लड़की को संभोग के लिए जो कुछ भी चाहिए था सोमिल सर में कूट कूट कर भरा था।

मैं उनसे पहली नजर में ही प्रभावित हो गई थी। मुझे मेरे भाई द्वारा दिया गया चैलेंज मेरा खुद का चैलेंज बन गया था। मुझे वियाग्रा की कुछ गोलियां भी दी गई थी जिन्हें निश्चित अंतराल पर मुझे सुनील सर को देना था। मैंने दर्द निवारक दवाओं के साथ उस गोली को भी उन्हें देना शुरू कर दिया था। जिससे उनके लिंग में हमेशा उत्तेजना कायम रहती थी। उनका अंडरवियर हम लोगों ने जानबूझकर हटा दिया था तथा मेरी नाइटी के गायब होने की कहानी भी मैंने स्वयं ही गढ़ ली थी।

उनकी सफेद शर्ट में जब मैं बाहर निकली तो मुझे उनकी उत्तेजना का एहसास हो गया था उनके पजामे से उनके लिंग का आकार स्पष्ट दिखाई पड़ता था। उन्हें उत्तेजित करते-करते मैं स्वयं उत्तेजित होने लगी थी। बीती रात मैंने बिस्तर पर सोते हुए हर जतन किए कि वह मेरी चू** को देखकर मुझसे संभोग का मन बना लें। मैं चाहती थी वह मुझे अपनी बाहों में खींच ले और जी भर कर अपनी और मेरी प्यास बुझाएं। पर वह निहायत ही शरीफ थे। मैंने कुछ सफलता तो अवश्य पाई जब वो मेरे सामने ही हस्तमैथुन कर रहे थे। उनकी आंखें बंद थी पर मैं खुली आंखों से उनके सभ्य और सुसंस्कृत ल** को उनकी हथेलियों में हिलते देख रही थी। मेरी इच्छा हो रही थी कि मैं उसे अपने हाथों में ले लूं और स्वयं उन्हें स्खलित कर दूं पर मुझे सब्र से काम लेना था।

मेरी एक गलती भी उन्हें मेरी हकीकत का एहसास दिला देती और मैं चैलेंज हार जाती। उनके वीर्य की धार जब मेरे स्तनों पर पड़ी तब मुझे अद्भुत एहसास हुआ। मेरी योनि पूरी तरह चिपचिपी हो गई थी। बिस्तर पर बैठे रहने की वजह से उस से निकला प्रेम रस चादर पर अपने निशान बना चुका था। जब वह करवट लेकर सो गए तो मैं बिस्तर से उठी और उस निशान को देख कर मुस्कुराने लगी। मैंने बाथरूम में जाकर अपनी उत्तेजना शांत की और उनके बगल में आकर सो गयी। मेरे पास कुछ ही दिन शेष थे मुझे उनके साथ संभोग करना था यह मेरे लिए चैलेंज कम मेरी दिली इच्छा ज्यादा थी।

आज सुबह नहाने के बाद मुझे उनकी शर्ट उतारने पड़ी। यह शर्ट मेरी कामुकता में चार चांद लगा रही थी। मैं नहाकर नाइटी पहन कर बाहर आ गई। इस नाइटी में मैं चाह कर भी अपने सोमील सर को आकर्षित नहीं कर पा रही थी।

छाया और सीमा के प्रयास
(मैं मानस)

छाया और सीमा ने अपने कॉलेज के दोस्तों और फ्रेंड सर्किल में उस अनजान लड़की की तस्वीरें प्रसारित कर दीं थीं। छाया ने उस फोटो में से सोमिल की फोटो हटाकर सिर्फ उस लड़की की फोटो रखी थी वह समझदार तो थी ही।

हॉस्टल की लड़कियों का नेटवर्क जबरदस्त था। उन्होंने उस खूबसूरत लड़की की तस्वीर अपने सभी फ्रेंड्स को भेज दी यह सिलसिला चलता गया और अंततः हमें यह मालूम चल चुका था कि वह लड़की लक्ष्मी थी जो होटल मैनेजमेंट का कोर्स कर चुकी थी। वह पैसों के लिए कभी-कभी वह हाई प्रोफाइल कॉल गर्ल बन कर कामुक गतिविधियां भी किया करती थी।

हमें जबरदस्त सफलता हाथ लगी थी छाया और सीमा अपनी इस सफलता से खुश थे। हमें सोमिल जल्द ही मिलने वाला था।





छाया - अनचाहे रिश्तों में पनपती कामुकता
छाया और सीमा के प्रयास
(मैं मानस)

छाया और सीमा ने अपने कॉलेज के दोस्तों और फ्रेंड सर्किल में उस अनजान लड़की की तस्वीरें प्रसारित कर दीं थीं। छाया ने उस फोटो में से सोमिल की फोटो हटाकर सिर्फ उस लड़की की फोटो रखी थी वह समझदार तो थी ही।

हॉस्टल की लड़कियों का नेटवर्क जबरदस्त था। उन्होंने उस खूबसूरत लड़की की तस्वीर अपने सभी फ्रेंड्स को भेज दी यह सिलसिला चलता गया और अंततः हमें यह मालूम चल चुका था कि वह लड़की लक्ष्मी थी जो होटल मैनेजमेंट का कोर्स कर चुकी थी। वह पैसों के लिए कभी-कभी वह हाई प्रोफाइल कॉल गर्ल बन कर कामुक गतिविधियां भी किया करती थी।

हमें जबरदस्त सफलता हाथ लगी थी छाया और सीमा अपनी इस सफलता से खुश थे। हमें सोमिल जल्द ही मिलने वाला था।

अब आगे .....
मैंने विवाह भवन के मैनेजर से मुलाकात कर उस बाथरूम को देखना चाहा। उसने मुझे बताया कि कल ही कोई आदमी उस कैमरे के बारे में पूछता हुआ यहां आया था। हम लोगों ने बाथरूम में चेक करवाया वहां पर कोई कैमरा नहीं था। हालांकि अभी परसों से ही उस लाइन के कमरों की पेंटिंग शुरू हुई है। हो सकता है पेंटर ने उसे निकाल कर कहीं रखा हो। कल पेंटर नहीं आया था मैं आज उससे बात करता हूं। मैंने वहीं इंतजार करना उचित समझा। कुछ देर बाद वह पेंटर आया और मुझे ले जाकर एक तरफ रखा हुआ वह कैमरा दिखाया। मैंने वह कैमरा ले लिया। मैंने होटल मैनेजर को धन्यवाद देते हुए वहां से बाहर आ गया। यह कैमरा एक वाईफाई कैमरा था जिसकी फोटो को दूर बैठे कंप्यूटर पर देखा जा सकता था। इस तरह का कैमरा बेचने वाले बेंगलुरु में कई दुकानें पर जिस एरिया में हम थे वहां पर सिर्फ दो दुकाने थीं। थोड़ा ही प्रयास करने पर मुझे इस कैमरा खरीदने वाले का नाम मालूम चल गया। यह कैमरा हमारे विवाह भवन में प्रवेश करने के ठीक एक दिन पहले खरीदा गया था और हो सकता है उसी दिन उसे इंस्टॉल भी किया गया हो।

जिस आदमी ने यह कैमरा खरीदा था मैं उससे भली भांति जानता था पर अभी उसका फोन नहीं लग रहा था। हम इस साजिशकर्ता के काफी करीब थे बस कुछ समय का इंतजार था।

उधर पुलिस स्टेशन में इस केस के नए इंचार्ज इंस्पेक्टर रॉबिन 30-32 वर्ष का नया और तेज नवयुवक था। वह डिसूजा का असिस्टेंट था जिसे अब इस केस का प्रभारी बना दिया गया था। डिसूजा के अब तक किए गए जांच के बारे में उसे पूरी जानकारी थी। उसने लक्ष्मण को पकड़ने की कोशिश तेज कर दी थी। उसे लक्ष्मण का सुराग भी मिल चुका था सिर्फ उसे पकड़ना बाकी था। सोमिल की खबर उसे नहीं लग पाई पर एक बार लक्ष्मण पकड़ में आ जाता तो सारी बातें स्वयं ही सामने आ जाती रॉबिन यह बात जानता था। मुझमे छाया और सीमा में कामुक संबंध है यह बात भी उसे मालूम थी पर वह जानता था की वयस्कों के बीच में इस तरह के संबंध होना सामाजिक अपराध तो हो सकता है पर कानूनी नहीं। वह इस पचड़े में नहीं पड़ना चाहता था।

उसने डिसूजा की जांच की इस दिशा को वहीं पर रोक दिया था। वह सिर्फ और सिर्फ कातिल तक पहुंचना चाहता था और पैसों के गबन करने वाले को पकड़ना चाहता था। गुप्तचर की सूचना के अनुसार लक्ष्मण मुंबई में था। रोबिन और उसकी टीम ने उसे मुंबई से गिरफ्तार कर लिया और हवाई जहाज से बेंगलुरु ले आए। शर्मा जी के दबाव की वजह से डीआईजी ने रोबिन को फ्री हैंड दे दिया था।

रॉबिन ने लक्ष्मण से पूछताछ शुरू कर दी थी।

सोमिल का कैदखाना

( मैं शांति उर्फ लक्ष्मी )

आज मैंने सोमिल सर से दिन भर तरह-तरह की बातें की और उन्हें खुश करती रही। आज शाम को स्नान किया और वापस वही शर्ट पहन लिया। मैं उनसे संभोग करने के लिए आतुर हो चुकी थी मुझसे अब बर्दाश्त नहीं हो रहा था। मैंने शाम को फिर उन्हें शराब पीने के लिए आमंत्रित किया पर आज उन्होंने मना कर दिया। मैंने आज हल्का खाना बनाया और उन्हें आज भी वियाग्रा एक डोज फिर से दे दिया।

आज मैं हर हद तक जाना चाहते थी। मैंने मन ही मन सोच लिया था चाहे मेरी असलियत ही क्यों न सामने आ जाए पर मैं आज उनसे संभोग कर करके ही रहूंगी।

मैं कल रात उनके साथ बिस्तर पर सो चुकी थी मुझे पता था मुझे आज भी बिस्तर पर ही सोना है। किचन का काम निपटाने के बाद मैं वापस सोफे पर सोने जाने लगी। उन्होंने कहा शांति यही ऊपर सो जाओ। मैंने थोड़ी है ना नुकुर की और कुछ ही देर में बिस्तर पर आ गयी। मैन कहा

"सर टीवी ऑन कीजिए ना"

"अरे उसमें सब उन्होंने बकवास फिल्में रखी हैं"

"कोई बात नहीं लगाइए तो"

मैने रिमोट अपने हाथों में ले लिया और कोई उचित वीडियो की तलाश में लग गयी। मुझे एक इंग्लिश फिल्म दिखाएं पड़ गई मैंने उसे प्ले कर दिया। फिल्म के शुरुआती दृश्यों में कोई नग्नता नहीं थी। हम दोनों फिल्म देखने लगे। मैंने उनसे कहा कुछ फिल्में अच्छी भी होती है। वह मुस्कुरा रहे थे धीरे धीरे फिल्म में कामुकता आने लगी। जैसे-जैसे हीरो हीरोइन पास आ रहे थे सुनील सर के पाजामे में हरकत हो रही थी। मैंने भी अपनी चादर हटा दी। मेरी जाँघें अब नग्न थीं पर मेरी योनि अभी ढकी हुई थी।

जैसे-जैसे नायक नायिका करीब आते गए उनका लिंग आकार में बढ़ता गया और मेरी जाँघों का फैलाव भी। हम दोनों अपने अपने यौन अंगों पर ध्यान केंद्रित किए हुए थे। मेरी मुनिया भी प्रेम रस छोड़ने लगी वह अपने लिंग को बीच-बीच में मेरी नजर बचाकर सहला देते। यही काम मैं अपनी मुनिया के साथ भी कर रही थी।

फिल्म की कामुकता अश्लीलता में बदल चुकी थी। नायक और नायिका पूरी तरह नग्न हो गए थे। इधर मेरी शर्ट भी मेरी कमर तक आ गई थी मेरी मुनिया पूरी तरह नग्न होकर ऊपर चल रहे पंखे की हवा खा रही थी। अचानक उनकी नजर मुझ पर पड़ी मुझे इस तरह अपनी देख कर वह उत्तेजित हो गए। कमरे में लाइट पहले ही कम थी उन्होंने भी अपना लिंग बाहर निकाल लिया। मेरी नजर बचाकर वह अपने लिंग को बार-बार सहलाने लगे।

मैं भी अपनी मुनिया को धीरे धीरे प्यार कर रही थी। मैंने अपनी शर्ट के बटन भी खोल दिए थे। अब वह मेरे स्तनों के सहारे ही मेरे शरीर पर ठीके हुए थे। थोड़ी भी तेज हवा का झोंका मेरे शर्ट को दो भागों में बांट देता। और वो ऊपर से पूरी तरह नग्न हो जाते।

सोमिल सर की हथेलियाँ अपने लिंग पर तेजी से चल रहीं थी। मैं धीरे-धीरे से सरकते हुए उनके बिल्कुल समीप आ गयी। वह मेरा सरकना महसूस कर रहे थे पर उन्होंने कोई आपत्ति नहीं की। कुछ ही देर में मेरे पैर उनके पैरों से सट रहे थे। उन्होंने अभी भी पैजामा पहन रखा था। मेरे पैरों का स्पर्श वह पूरी तरह महसूस नहीं कर पा रहे थे। उन्हें भी इस स्पर्श का इंतजार था। धीरे-धीरे उनका पैजामा नीचे की तरफ खिसकता गया और हमारी जाँघें एक दूसरे में सटने लगीं।

उनका हाथ अभी भी लिंग पर था मैंने करवट ली। और अपनी जाँघें उनके ऊपर रख दीं। मेरे जांघों का निचला हिस्सा उनके लिंग से छू राजा था। उन्होंने अपने हाथ लिंग से हटा लिये और मेरी जांघों को छूने लगे। मुझे अपनी सफलता पर गर्व होने लगा। मैंने अपनी हथेलियां आगे बढ़ायीं और उनके लिंग को सहला दिया।

उन्होंने कोई आपत्ति नहीं की। मैंने अपनी हथेलियों से रह रह कर उनके लिंग को छूना शुरु कर दिया था। वह अपने हथेलियों से मेरी जांघों को सहलाते सहलाते मेरे नितंबों तक आ गए। अचानक उन्होंने करवट ले ली और मेरी आंखों में देखा। मेरी आंखों में भी प्रेम की भूख थी। उन्होंने मुझे अपनी आगोश में खींच लिया।

मेरी शर्ट खुल चुकी थी। मेरे नग्न स्तन उनके सीने से सट रहे थे। मैंने उनकी हथेलियों को अपने नितंबों पर महसूस किया। मैंने भी उनके लिंग को अपने हाथों में ले लिया और उसे सहलाने लगी। उनकी हथेलियां मेरे नितंबों को छूते छूते मेरी रानी के मुख तक आ गयीं।

उन्होंने रानी के गीलेपन को अपनी उंगलियों पर स्पष्ट रूप से महसूस किया होगा। मैं उठ कर उनके ऊपर आना चाहती थी और यथाशीघ्र संभोग रत होना चाहती थी।

वह अभी मेरी योनि को अपनी उंगलियों से सहला रहे थे और मैं उनके लिंग को अपनी हथेलियों से उत्तेजित कर रही थी।

मैं उठकर उनके ऊपर आ गयी और लिंग पर बैठने का प्रयास करने लगी। वह पूरी तरह उत्तेजित थे। जैसे ही मुनिया ने उनके लिंग को छुआ वह उठकर बैठने लगे। मैं अव्यवस्थित हो गई। उन्होंने अपने लिंग को मेरी मुनिया से दूर कर दिया था। अब वह हम दोनों के पेट के बीच में आ गया था। मेरे स्तन उनके सीने से सट रहे थे मैं उनकी गोद में आ चुकी थी वह मुझे सहलाए जा रहे थे।

मेरा चेहरा उनके चेहरे के बिल्कुल समेत था मैंने उनसे पूछा "सर क्या हुआ"

उन्होंने मुझे गालों पर चूम लिया और बोला "शांति मैं यह नहीं कर सकता मैंने अपनी प्रेमिका को वचन दिया था कि मैं पहला संभोग उसके साथ ही करूंगा। मुझे माफ कर देना। तुम्हारे जैसी सुंदरी के साथ संभोग को ठुकरा कर मैं अपराधबोध से ग्रसित हूँ। उम्मीद करता हूं तुम मुझे माफ कर दोगी। मैं उनकी दुविधा समझ गयी।

मुझे पता था वह एक आदर्श पुरुष थे वह अपना वचन नहीं तोड़ेंगे। मैंने फिर कहा

"पर हम एक दूसरे को खुश तो कर ही सकते हैं" वह प्रसन्न हो गए. मैंने उन्हें होठों पर चुंबन लेने की कोशिश की जिसे उन्होंने सहर्ष स्वीकार कर लिया. वह दूसरे पुरुष थे जिन्हें मैंने होठों पर चुंबन दिया था. मेरे बॉयफ्रेंड ने जबरदस्ती मेरे होठों को मेरी किशोरावस्था में चुम्मा था. वह मेरे होठों को बेसब्री से चूमने लगे। मेरी हथेलियां एक बार फिर उनके लिंग को सहला रहीं थीं और वह अपनी उंगलियों से मेरे नितंबों के नीचे से मेरी मुनिया को सहला रहे थे। हमारी उत्तेजना चरम पर थी।हमें स्खलित होने में ज्यादा वक्त नहीं लगा।

उनके लिंग से निकली हुई वीर्य की धार हम दोनों को गीला कर गई थी। पर हमने उस पर बिल्कुल ध्यान नही दिया। हम एक दूसरे को प्यार करने में व्यस्त थे। हम दोनों उसी अवस्था में ही बिस्तर पर सो गए।

शनिवार
(मैं शांति उर्फ लक्ष्मी)

सुबह उनके प्यारे लिंग को देखकर मेरे मन में एक बार फिर उत्तेजना पैदा हुई। मैंने अपने होठों से उसे मुखमैथुन देने की सोची। मैंने बिना उनकी सहमति के अपने होठों से उसे छूना शुरु कर दिया। सोमिल सर की आंखें खुल चुकी थी पर उन्होंने जानबूझकर अपनी आंखें बंद कर लीं।

मेरे होठों ने अपनी प्यास बुझाना शुरू कर दिया था। सोमिल सर का लिंग एक बार फिर स्खलन के लिए तैयार था। मैं उनके अद्भुत लिंग के साथ बिताए पल को जी लेना चाहती थी । मेरे जीवन में वह एक अद्भुत पुरुष के रूप में आए थे मैं उनके साथ बिताए पलों को अपनी यादों में संजो लेना चाहती थी। लिंग के वीर्य स्खलन करने के पश्चात मेरा चेहरा और मुह उनके वीर्य से भर गया था। सोमिल सर ने मुझे एक बार फिर अपनी गोद में ले लिया वह मुझसे प्यार करने लगे थे।

मैंने उनसे कोई बात नहीं छुपाई और अपनी असलियत खुलकर बता दीं। वो बिल्कुल नाराज नहीं थे। उन्होंने मुझसे कहा शांति तुम एक अच्छी लड़की हो मैं शादीशुदा हूं। तुम्हारे साथ तीन-चार दिनों में मुझे नारी शरीर और उसके सुखद साथ का एहसास हुआ है मैं तुम्हें प्यार करने लगा हूँ। मैं तुम्हारी खुशी के लिए जरूरत पड़ने पर तुम्हारी मदद कर सकता हूं। तुम मुझे अपना एक दोस्त मान सकती हो। मैं उनकी सादगी की कायल हो गयी और फिर एक बार उनसे चिपक गयी।

मैंने सुनील सर से कहा

"मुझे आपसे एक बात करनी है पर मुझे शर्म आ रही है"

"बेशक कहो अब हमारे तुम्हारे बीच में कोई पर्दा नहीं है"

"मैं आपसे एक बार संभोग करना चाहती हूं यह मेरी और मेरी मुनिया की दिली इच्छा है"

मैंने अपनी जाँघों के बीच इशारा कर दिया। वो मुस्कुराने लगे।

" मुझे पता है आप यह आज नहीं करेंगे पर अपने वचन पूरा करने के बाद क्या आप मेरी इच्छा का मान रखेंगे?.

उन्होंने कहा

"एक ही शर्त पर यदि तुम मुझसे वादा करो कि किसी भी पुरुष से संभोग तभी करोगी जब तुम्हारी अंतरात्मा और तुम्हारी इस प्यारी सी मुनिया का मन होगा। किसी लालच या प्रलोभन में नहीं। तुम्हारी मुनिया प्रकृति का दिया हुआ अनुपम वरदान है इसे पैसों के लालच में व्यर्थ प्रताड़ित मत करना। इसकी संवेदना और प्यार ही जीवन का रस है।"

मैं उनकी बात समझ चुकी थी।

मैंने कहा "मैं आपसे मिलन की प्रतीक्षा करूंगी"

सोमिल सर द्वारा कही गई बात मेरे दिलो-दिमाग पर छा गई थी वह कुंवारे होने के बावजूद यह बात कैसे जानते थे कि मुनिया सिर्फ और सिर्फ प्रेम से ही उत्तेजित होती है पैसों से नहीं। उनका यह गूढ़ ज्ञान मेरी समझ से परे था पर मैंने मन ही मन यह ठान लिया था कि भविष्य में कभी भी लालच और पैसों के लिए मुनिया को तंग नहीं करूंगी। मैंने मन ही मन भगवान से प्रार्थना की कि एक बार मेरी मुनिया को सोमिल सर से संभोग सुख प्राप्त हो, और मुस्कुराती हुई बाथरूम की तरफ चल पड़ी।

शानिवार, मानस का घर 6.00 बजे

(मैं मानस)

लक्ष्मी का पता चलते ही मैंने इंस्पेक्टर रॉबिंन से बात की वह बहुत खुश हो गए। हम सुबह सुबह 7:00 बजे ही उस लड़की के घर जाने के लिए निकल गए। वह बेंगलुरु शहर से लगभग 30 किलोमीटर दूर रहती थी।

अचानक आई पुलिस को देख कर लक्ष्मी के घर से निकलकर एक आदमी भागने लगा। रॉबिन की टीम ने उसे दौड़ाकर पकड़ लिया। कुछ ही देर की पिटाई में उसने शांति बनी लक्ष्मी को पहचान लिया और सोमिल के बारे में भी साफ-साफ बता दिया।

पुलिस टीम ने उसे अपने साथ ले लिया और हम सोमिल को कैद की गयी जगह के लिए निकल पड़े। मेरे चेहरे पर खुशी थी। सोमिल मिलने वाला था। मैंने फोन लगाकर छाया को इस बात की सूचना देनी चाही पर तब तक हम नेटवर्क से बाहर आ चुके थे। छाया उस समय निश्चित ही तनाव में होगी। अब से चंद घंटों बाद उसे उस अपरिचित आदमी की हवस मिटाने होटल में जाना था। मुझे धीरे-धीरे यह विश्वास हो चला था कि उस समय से पहले ही हम अपराधी का पता लगा लेंगे।

एक-दो घंटे के सफर के पश्चात हम सोमिल के ठिकाने पर आ गए थे। पुलिस ने बाहर खड़े दोनों गार्डों को अरेस्ट कर लिया। बाहर हुई हलचल से सोमिल और शांति सहम गए थे।

हम अंदर आ चुके थे। लक्ष्मी ने शरीर पर चादर ओढ़ रखी थी। सोमिल सिर्फ पायजामा पहने खड़ा हुआ था। उसका शरीर का ऊपरी भाग नग्न था। ऐसा प्रतीत हो रहा था जैसे वह दोनों नग्न अवस्था में एक-दूसरे को बाहों में लिए सो रहे थे और बाहर की हलचल से उठ खड़े हुए थे। शांति ने अपने शरीर पर चादर लपेट ली थी और सोमिल बमुश्किल अपना पजामा पहन पाया था।

यह मेरे मन की सोच थी। पुलिस ने लक्ष्मी को अरेस्ट कर लिया। सोमिल ने उसे रोकना चाहा। लक्ष्मी रो रही थी उसने अपनी कहानी फिर दोहरा दी।

रॉबिन ने कहा आप लोग चिंता मत कीजिए यदि यह निर्दोष है में तो मैं इसे छोड़ दूंगा सोमिल ने शांति से कहा।

"तुम परेशान मत हो तुम सच्ची हो तो तुम्हें निश्चय ही न्याय मिलेगा" वह संतुष्ट हो गयी और बाथरूम की तरफ कपड़े पहनने चली गई। मैंने उसकी खूबसूरती एक नजर में ही पहचान ली थी। वह सच में छाया का कुछ अंश अपने अंदर संजोये हुए थी।

कुछ ही देर में हम वापस बेंगलुरु के लिए निकल गए। मैंने छाया को इस बात की सूचना दे दी। सोमिल के सकुशल मिल जाने पर घर में खुशी का माहौल था बस एक ही कष्ट था कि छाया को कुछ घंटे बाद उस अनजान आदमी से संभोग करने के लिए जाना था। उसके पास सिर्फ एक ही सहारा था वह खत में लिखी हुई भाषा जिससे उस अनजान व्यक्ति का छाया के प्रति प्यार झलकता था। उससे ऐसा प्रतीत होता था जैसे छाया द्वारा किया गया एक बार का संभोग हमारे सब राज गुप्त रखने के लिए पर्याप्त था पर ये हमे स्वीकार नही था। यही सब बातें सोचते हुए मैं खिड़की के बाहर देख रहा था।

बेंगलुरु शहर अब कुछ दूर ही रह गया था तभी मेरे फोन पर घंटी बजी

"हां कुछ पता चला क्या?

उत्तर सुनकर मेरी आंखें आश्चर्य से फटी रह गई। मैंने रॉबिन से बात की उन्होंने गाड़ी की रफ्तार बढ़ा दी। उन्होंने थाने से फोन कर कुछ और पुलिस फोर्स मंगा लिया। मेरे कहने पर उन्होंने सोमिल को घर भेज दिया। मैं नहीं चाहता था कि छाया के इस कदम की जानकारी उसको अभी हो।

लक्ष्मी और उसके भाई को अपनी दूसरी टीम को हैंड ओवर कर रोबिन और मैं उनके विश्वस्त सिपाहियों के साथ होटल मानसरोवर की तरफ बढ़ चले। यह वही होटल था जहां उस अनजान व्यक्ति ने मेरी छाया को संभोग के लिए बुलाया था।

मानस का घर (सुबह 9 बजे)

(मैं सीमा)

छाया के मोबाइल पर मैसेज आ चुका था मानसरोवर होटल, दोपहर 1:00 बजे। वह रोते हुए मेरे पास आयी।

आखिर वह दिन आ ही गया था जब छाया को उस अनजान व्यक्ति के पास संभोग के लिए जाना था. नियति के इस निष्ठुर प्रहार से छाया का मन मस्तिक आहत हो चुका था। वह समाज में कुत्सित विचार के लोगों के प्रति अत्यधिक क्रोधित थी जो अपनी काम पिपासा को शांत करने के लिए इस तरह का गलत कार्य करते थे। छाया को कामुकता ऊपर वाले ने स्वभाविक रूप में दी थी। जिसे उसका भोग करना था वह उससे प्यार करता और उसके मन मस्तिष्क पर काबिज हो जाता छाया अपनी कामुकता और अपने यौवन के साथ उसकी बाहों में चली आती। उसका तो जन्म ही पुरुषों की कामुकता शांत करने के लिए हुआ था। पर बिना उससे प्रेम किये इस तरह उसे डरा कर संभोग करना सर्वाधिक अनुचित था। मैं मन ही मन उस दुष्ट व्यक्ति को कोस रही थी।

मैंने और छाया दोनों ने आज सुबह से ही व्रत रखा हुआ था। हम भगवान से यही प्रार्थना कर रहे थे कि हे प्रभु मेरी छाया की रक्षा करना। उसकी कोमल रानी किसी अपरिचित के साथ संभोग के लिए बिल्कुल भी तैयार नहीं थी। छाया का रोम रोम हमेशा खिला रहता था उसके स्तन और यौनांग हमेशा खुश और खिले खिले दिखाई पड़ते थे। जब मैं छाया की रानी को अपने होठों से झूमती तुम मुझे अपने होंठ हमेशा खुरदुरे लगते। छाया के शरीर और यौनांगो में गजब की कोमलता थी।

छाया की हरदम खुश रहने की आदत उसकी कामुकता का प्रमुख कारण थी पर आज छाया दुखी थी। ऐसा लग रहा था जैसे किसी पौधे को कई दिनों से पानी न दिया गया हो। उसने स्नान किया और सादे वस्त्र पहन लिए। उसकी मायूसी देखकर मेरी आंखें भर आयीं थी। एक पल के लिए मुझे ऐसा लगा जैसे छाया को फांसी पर लटकाया जा रहा है।

मेरी अंतरात्मा रो रही थी। मुझे लग रहा था मैं चीख चीख कर इस दुनिया से कह दूं छाया और मानस एक दूसरे के लिए ही बने हैं इन्हें अलग मत करो। जब मुझे इसमें कोई आपत्ति नहीं है तो समाज को क्यों आपत्ति होनी चाहिए। छाया को ब्लैकमेल करना सर्वाधिक अनुचित था।

धीरे-धीरे समय हो चला था मैं और छाया उस अनजान को कोसते हुए उससे मिलने निर्धारित स्थल की ओर चल पड़े थे।

(मैं मानस)

हम मानसरोवर होटल पहूच चुके थे। पुलिस ने बिना हल्ला गुल्ला किए होटल के सारे दरवाजे सील कर दिए। छाया और सीमा चौथी मंजिल पर अनजान व्यक्ति के एसएमएस का इंतजार कर रहे थे। छाया मुझ से लगातार संपर्क मे थी। कमरा नंबर का मैसेज उसके फोन पर आते ही उसने हमें सूचित कर दिया। मैंने और रोबिन की टीम ने उस कमरे को घेर लिया। छाया कमरे के अंदर चली गई जैसे ही उस व्यक्ति ने छाया को छुआ, छाया ने मोबाइल से टाइप किया मैसेज भेज दिया जो उसने पहले से टाइप किया हुआ था।

हमें स्पष्ट इशारा मिल चुका था कि वह व्यक्ति छाया के बिल्कुल करीब है। हमारे साथ आए सिपाही ने एक जोरदार लात दरवाजे पर मारी और दरवाजा खुल गया। अंदर मेरी छाया थी और वह आदमी। उसे देख कर मैं हतप्रभ था।
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