स्वाहा

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Re: स्वाहा

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बकाल रेखा का हाथ थामे अंदर दाखिल हुई और उस चबूतरे के निकट पहुंचकर रुक गई। उसने सिर उठाया और उस एक टांग वाले उल्लू के सामने आदर से सिर नवाया। उसने रेखा को भी झुकने का इशारा किया था लेकिन रेखा सीधी खड़ी रही। तब उस विशालकाय उल्लू ने अपनी दूसरे आंख खोल दी और अपनी दोनों आंखों से पहले बकाल और फिर रेखा को देखा।

"राकल, मेरे भाई! तेरी अमानत ले आई हूँ... इसे कबूल कर।" बकाल ने बड़े आदर से कहा ।

. उस उल्लू ने अपनी एक टांग पर खड़े-खड़े ही अपने दोनों पंख खोलकर फड़फड़ाये। उसके पंख इतने बड़े थे कि उनके हिलने से रेखा और बकाल को अपने चेहरों पर हवा के थपेड़ों का अहसास हुआ।

उसके पंख फड़फड़ाने का मतलब यह था कि उसने रेखा को कबूल कर लिया है।

"मैं तेरी शुक्रगुजार हूँ मेरे भाई।" बकाल फिर सम्मानपूर्ण लहजे में झुकी।

तभी बराबर वाले विशाल स्तम्भ के पीछे से एक के बाद दूसरी औरत निकलती नजर आई। वे सात औरतें थीं। चित्ताकर्षक सफेद रंगत, गोल खूबसूरते चेहरे, एक जैसे छोटे कद, एक जैसा सुर्ख रंग का लिबास । शायद उनके चेहरे भी एक जैसे ही थे। अगर कोई अंतर था भी वो वह एक नजर देखने में महसूस नहीं होता था ।

औरतें, पंक्तिबद्ध चलती हुई, उस विशालकाय उल्लू के पीछे से घूमती, सीढ़ियां उतरकर रेखा के गिर्द घेरा डालकर

खड़ी हो गई।

फिर इन सात औरतों में से दो ने रेखा के हाथ पकड़ लिए। तीसरी औरत ने उसे पीठ से कोमलता से आगे धकेला । वे दोनों औरतें रेखा के हाथ थामे आगे चलने लगीं। शेष पांच उसके पीछे चल दीं।

वे सीढ़ियां चढ़कर उस उल्लू के पीछे आई और वहां से बढ़कर सतम्भ की ओट में चली गई। रेखा ने देखा कि इस

स्तम्भ के पीछे की तरफ एक दरवाजा था जो नीचे से नजर नहीं आता था। इस दरवाजे में से सीढ़ियां नजर आ रही

थीं, जो नीचे की तरफ चली गई थीं।

वे दोनों औरतें रेखा का हाथ पकड़े नीचे उतरने लगीं।

रेखा के चले जाने के बाद बकाल, राकल से मुखातिब होकर बोली- "सकल, मेरे भाई! मुझे तुमसे कुछ बात करनी हैं।"

काल की बात सुनकर उस विशालकाय, खौफनाक उल्लू ने उसे घूरकर देखा फिर अपनी एक आंख बंद कर ली... और साकत ही गया।

बकाल न महसूस कर लिया कि, राकल अब यहां नहीं है। सो वह भी सीढ़ियां चढ़कर स्तम्भ के पीछे पहुंची और

दरवाजे में प्रवेश करके तेजी से सीढ़ियां उतरने लगी।

यह एक बहुत बड़ा तहखाना था जहां जगह-जगह रोशनी हो रही थी। तहखाने में दूर तक कोई नजर नहीं आ रहा था। वे औरते रेखा को अपने ठिकाने पर ले जा चुकी थीं।

काल सीढ़ियां उतरकर आगे बड़ी तो उसे गोल चेहरे वाली एक सेविका दिखाई दी। वो एकाएक ही कहीं से प्रकट हुई थी। वह बकाल को देख, उसके सामने आदर से सिर नवांकर खड़ी हो गई। .

"राकल कहां है?" बकाल ने उसके निकट पहुंचकर पूछा।

उस सेविका ने मुंह से कुछ कहने की बजाय एक तरफ इशारा किया। बकाल उसके पीछे-पीछे चलने लगी। यूं वह विभिन्न दरवाजों के सामने से हुई, एक बड़े से दरवाजे के सामने आकर रुक गई। और जब बकाल भी इस दरवाजे के सामने पहुंच गई तो वह सेविका उल्टे कदमों लौट गई।

बकाल ने दरवाजे पर हाथ रखा तो वह फौरन खुल गया। वह बेधड़क दरवाजे में प्रवेश कर गई। अन्दर आकर उसने पलटकर दरवाजा बन्द किया और आगे बढ़ी। दरवाजे से कुछ ही कदम के फासले पर एक पर्दा लटक रहा था। वह
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Re: स्वाहा

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पर्दा हटाकर दूसरी तरफ पहुंची तो उसने देखा कि कमरे के ठीक बीचों-बीच एक ऊंची मसन्द पर शकल शोख रंग शाही लिबास पहने बैठा है। कमरे में सुख रंग का मोटा कालीन बिछा हुआ था और कमरा भरपूर रोशनी में जगमगा रहा था।

राकल - सिंहासननुभा मसंद पर किसी राजा की तरह बैठा हुआ था। उसके गले में मोतियों का कीमती हार पड़ा आ था। घुघराले बाल, सुर्खी लिए सांवली रंगत, बलिष्ट, स्वस्थ बदन और एक हाथ में सांप की तरह बल खाया हुआ राज-दण्ड।

वह बकाल को देखकर मुस्कराया बकाल उसे देखकर मुस्कराई और उसके चरणों में बैठ गई।

"वो कहां है, मेरे भाई?" बकाल ने पूछा।

"कौन रेखा ?" राकल ने जानना चाहा।

"नहीं, वह चमगादड़ का बच्चा।" बकाल विफर गई।

कल ने यह सुनकर एक गगनभेदी कहकहा लगाया, फिर बोला- "तूने उसका नाम खूब रखा है, बकाल!"

"वह है कहां?"

"हमारी कैद में...।" राकल ने बताया- "वैसे बकाल तूने उसके साथ बड़ा जुल्म किया है?"

"मेरे भाई, क्या तुम चाहते हो कि मैं उस चमगादड़ के बच्चे के साथ शादी कर लूं?"

"यह मैंने कब कहा । देवा काली की कसम वो है तेरा सच्चा आशिक ।" राकल बोला "सच तो यह है कि मुझे उस पर रहम आता है।"

"यह राकल को रहम कब से आने लगा।" बकाल ने व्यंग्य कसा।

"खैर छोड़, यह बता तू यहां मुझसे क्या बात करने आई थी?" राकल ने विषय बदलते हुए पूछा।

"मैं तुमसे इन्द्रजीत के बारे में बात करना चाहती थी...।"

"क्या हुआ उसे...?"

"मेरे भाई, तू जानता है कि मैं उसके बिना नहीं रह सकती।" बकाल ने अपनी इच्छा स्पष्ट की। मैं उसे जीवन भर के लिए अपना बनाना चाहती हूँ।

"उसके लिए तू अमल कर तो रही है।" राकल संजीदा दिखने लगा। "उसका क्या बना?"

"वह एक लम्बा अमल है। अभी प्रारम्भ ही हुआ है। जाने उसमें कितना वक्त लगे।" बकाल ने समस्या बताई।

"वक्त की क्या चिन्ता है।"

"वक्त की तो मुझे बिल्कुल परवाह नहीं है। परवाह मुझे उस चमगादड़ के बच्चे की है। वह निरन्तर मेरे खिलाफ साजिशों में लगा है। मुझे उसकी सूरत से भी नफरत है। मैं चाहती हूँ कि उसे आंसूओं की दीवार में चिनका दिया जाए। वह जब तक जिन्दा रहेगा मुझे बेचैन और अशांत करता रहेगा।"

"यह काम इतना आसान नहीं है। सरदार कोलाना, अपने काले चिराग जैसे महत्वपूर्ण बन्दे की मौत पर एक तूफान खड़ा कर देगा।"

"मैं कुछ नहीं जानती, मेरे भाई। मुझे इस काम को आसान बनाना होगा।" बकाल ने जिद की।

"अच्छा! ठीक है। तू परेशान न हो, मैं करता हूँ कुछ।" राकल ने उसे बहलाना चाहा।
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Re: स्वाहा

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मैं उसे आंसुओं की दीबार में चिना हुआ देखना चाहती हूँ।"

"इस काम को बहुत होशियारी से करना होगा...।" राकल सोचपूर्ण लहजे में बोला- "पूरी गोपनीयता के साथ करना होगा।"

"मैं जानती हूँ कि तू चाहेगा तो हजार रास्ते निकाल लेना...।" बकाल की आंखों में आशा की चमक भर आई थी।

" अच्छा अब मैं चलती हूँ तुझे रेखा का साथ मुबारक हो।"

"वह कहां है?" राकल ने पूछा।

"सेविकाएं उसे तैयार कर रही होंगी। थोड़ा धैर्य करो आने ही वाली है।" बकाल अपनी मुस्कान दबाते बोली- "वैसे तू उसे वहां से लेकर आया खूब वह तेरी अय्यारी को उम्र भर नहीं समझ सकती।”

इस पर राकल ने फिर एक जोरदार कहकहा लगाया और फिर अपनी राजदण्ड-सी दिखती लाठी का सहारा लेकर उठ खड़ा हुआ। उसने इस राजदण्ड को बैसाखी की तरह अपनी बगल में दबाया और अभी मसंद से उतरकर वह दो कदम ही चला था कि देखते ही देखते नजरों से ओझल हो गया।

फिर बकाल भी उठी और वह पर्दा हटाकर दरवाजे से बाहर निकल गई।

काल के बाहर जाते ही राकल फिर अचानक प्रकट आ अरि अपने राजदण्ड को बैसाखी की तरह बगल में लगाये फिर मसंद कर मसंद पर आ बैठा। उसके होठों पर मुस्कराहट थी और आंखों में ख्वाहिशों के दीये टिमटिमा रहे थे। तभी दरवाजे पर दस्तक हुई और राकल बोला- "आ जाओ...।"

पर्दा हटाकर थे दोनों उसके सामने आकर खड़ी हो गई। उन दोनों के सिर झुके हुए थे।

"क्या हुआ?" राकल ने पूछा। ने

"वह न स्नान करती है, न लिबास बदलती है और न ही यहां आने के लिए तैयार है।"

"क्या तूने उसे बताया कि उससे कौन मिलना चाहता है?"

"नहीं, हमने उसे तेरा नाम नहीं बताया है-वैसे वो काले चिराग के बारे में बार-बार पूछती है।"

"उससे कहो कि तुम्हें राकल ने बुलाया है। राकल से मिल लो कि उसे काले चिराग से राकल ही मिलवा सकता।" राकल के होठों पर धूर्ततापूर्ण मुस्कान थी।

"ठीक हैं।" दोनो सेविकाओं ने सिर नवाया और उल्टे कदम चलती हुई पर्दे के पीछे चली गई।

वे दोनों दरवाजे से निकलकर तेज-तेज चलती उस जगह पहुंची जहां रेखा को रखा गया था। रेखा मसहरी के कोने पर सिर झुकाए बैठी थी।

वह कुछ समझ नहीं पा रही थी कि क्या करे। हालात ने इस कदर से और विपरीत दिशा में पलटा खाया था कि बेबस होकर रह गई थी।

उसने तो सोचा था कि काले चिराग की मदद से अपने भाई को लेकर अपनी दुनिया में चली जाएगी और वहां पहुंचकर उसका उपचार कराएगी। वह अपने भाई को पूर्णतः स्वस्थ देखना चाहती थी और फिर अभी तो उसके जीवन का अति महत्वपूर्ण काम बाकी है। अभी उसे अपने भाई की बर्बादी और बाप की हत्या का प्रतिशोध लेना है। वह रमाकांत को किसी कीमत पर नहीं बख्शेगी। उसे एक न भूलने वाला पाठ पढ़ाकर रहेगी पर यहां तो पासा ही पलट गया था। वह मंजिल के करीब आकर अचानक मंजिल से दूर हो गई थी।

काला चिराग बन्दी बना लिया गया था। वह एक हमदर्द इंसान था। यह सत्य था कि वह रेखा की मदद अपने स्वार्थ. हेतू यानी बकाल को पाने के लिए कर रहा था लेकिन उसकी इस चाहत से उसके भाई को भी तो छुटकारा मिल रहा
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Re: स्वाहा

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था। अब जाने काले चिराग के जहन में क्या मन्सूबा... कैसी योजना थी। काश! बकाल कुछ देर और न आती तो काला चिराग उसे अपनी योजना बता चुका होता और उस पर अमल करके अपने भाई की मुक्ति के लिए संघर्षरत होती। अब वह एक गहरे कुएं में थी जिसके पानी में वह तैर तो सकती थी लेकिन उसमें से निकल नहीं सकती थी। दरवाजे पर आहट हुई। रेखा ने सिर उठाया तो अपने सामने दो सेविकाओं को पाया। वे अपनी शक्लो-सूरत से जुड़वां

बहनें लगती थीं। वे उसके निकट आकर बड़े अदब से खड़ी हो गई।

. फिर उसके सामने जरा-सा झुकी और सीधी हो गई। उनमें से एक बोली-

"तुझे बुलाया है।" अजीब अंदाज था यह बातचीत का ।

"किसने बुलाया है?" रेखा ने पूछा।

"राकल ने।" बताया गया।

"तो चलो।" रेखा यह सुनते ही अपना बैग कन्धे पर डालकर चलने के लिए तैयार हो गई।

"ऐसे नहीं।" दासी बोली ।

"फिर कैसे ?" रेखा ने पूछा।

"पहले स्नान कर लो... तुम थक गई होंगी। नहा-धोकर लिबास बदल लो फिर चलो...।"

"नहीं, मैं थकी नहीं हूँ। मैं फौरन राकल से मिलना चाहती हूँ। मेरा भाई रेगिस्तान में जाने कैसा होगा ?"

"हमें नहीं मालूम कि तू क्या कह रही है।" दासी धीमे से बोली।

"तुम्हें समझने की जरूरत भी नहीं है।" रेखा बेचैन-सी बोली- "तुम लोग बस मुझे राकल के पास ले चलो।"

"इस तरह सकल नाराज होगा। तू उसका आदेश मान लेगी तो वह तुझे काला चिराग से मिला देगा... उसने यही कहा है।" दासी बदरस्तूर धीमे से बोली थी।

रेखा चौंकी। दासी के इस कथन से उसे राकल की नीयत का अंदाजा करते देर न लगी। उसका दिमाग घूम गया। वह

बिफरकर बोली- "राकल से जगाकर बोलो कि आने से इंकार कर दिया है।"

"नहीं, ऐसा न करो।" दासी सहमकर बोली- "आप उसके क्रोध से वाकिफ नहीं।"

"जो मैन कहा है उससे जाकर कह दो। रहा उसका गुस्सा तो वह में देख लूंगी। उसने मुझे समझा क्या है?"

"एक बार और सोच लें।" दोनों दासियां जाते-जाते रुक गई।

"सोच लिया। इज्जत है तो सबकुछ है। इज्जत नहीं तो कुछ भी नहीं। तुम जाओ।" दासियां सहमी-सहमी सी कमरे से निकल गई।

रेखा का दिमाग तप रहा था। वह गुस्से में कमरे में चहलकदमी करने लगी। तपते जहन में सोचें बवण्डर बन चली थीं।

"आखिर उसने मुझे समझ क्या रखा है। ये किस तरह के दुष्ट लोग हैं। एक यह इसकी बहन है जिसने मेरे भाई पर कब्जा कर रखा है, जोर-जबरदस्ती से काम ले रही है और एक यह है जो मुझ पर कब्जा जमाने की सोच रहा है। आखिर वह काला चिराग भी तो है-उसने तो कभी गलत निगाहों से नहीं देखा हालांकि मैं उसके साथ रही। वह एक सच्चा और नेक दिल आदमी था। जाने राकल ने उसका क्या हश किया होगा। आह! चाहत ने उसे कहीं का नहीं छोड़ा एक ऐसी औरत के पीछे बर्बाद हो रहा था जो उससे सीधे मुंह बात करने को तैयार न थी।"

"बकाल का दीवाना है वो और बकाल उसे चमगादड़ का बच्चा कहकर पुकारती थी। वह ऐसा क्यों कहती थी महज अपमानित करने के लिए या इसके पीछे भी कोई भेद है।
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Re: स्वाहा

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"भेद..."

और तब रेखा को याद आया कि जब काला चिराग उसे महल में लेकर गया था तो वहां कोई नहीं था। और रेखा के पूछने पर क्या यहां कोई नहीं है तो काला चिराग ने उसे जो मंजर दिखाया था...वह बड़ी-बड़ी चमगादड़ों का था। फिर रात जब वह सोई थी तो आंखें बंद करते ही वह को एक पत्थर पर सोता पाती थी और उसके इर्द-गिर्द चमगादड़े ही दिखाई देता थीं।

सोचों में अन्देशों का जहर घुलने लगा।

"कहीं काला चिराग कोई ऐसा ही प्राणी तो नहीं।" वह सोचते-सोचते रुक गई- "क्या ऐसा कुछ भी हो सकता है। कहीं वह चमगादड़ तो नहीं। हां, नहीं।" यह सोचकर ही रेखा को पसीना आ गया।

वह अभी इन्हीं कल्पनाओं में उलझी हुई थी कि अचानक दरवाजा खुला और राकल मुस्कराता हुआ अपने राजदण्ड

को बैसाखी बनाए बड़े इत्मीनान से अन्दर दाखिल हुआ।

रेखा टहल रही थी। वह फौरन घबराकर मसहरी पर बैठ गई। राकल उसके करीब आकर रुक गया।

"मुझे पहचाना।" उसके चेहरे पर एक शैतानी मुस्कराहट थी ।

"जी हां, पहचान लिया। आपके तो मुझ पर बहुत से अहसान हैं...।" रेखा को सम्भालते हुए बोली- "और मैं...।" लेकिन राकल ने उसकी बात काटते हुए कहा- 'आपके' नहीं, 'तेरे' कहो।" उसने अपने एक हाथ उंगली इंकार में हिलाई।

"तेरा" कहो। यहां तेरा कहा जाता है।

"यह तो धृष्टता है।" रेखा बोली।

"हमारे यहा इसे धृष्टता नहीं समझा जाता । "

" अच्छा खैर, मैं यह कह रही थी कि...।"

"मैंने तुझे बुलाया था तू आई क्यों नहीं तू नहीं जानती कि राकल से इकार का क्या मतलब होता है।"

"नहीं, मैं नहीं जानती । तू क्या...।"

"ठीक है, मैं ही तुझे बतलाता हूँ। पर पहले यह भी सुन ले कि सच यह है कि मैं तुझसे प्यार करता हूँ।"

रेखा विफर उठी, फुफकार कर बोली- "और मैं तेरी सूरत पर थूकने के लिए भी तैयार नहीं । आखिर तू भी चुड़ैल बकाल का भाई निकला। "

कल के लिए रेखा के ये तेवर और उसका यह जवाब अप्रत्याशित था। वह एक क्षण के लिए सिट-पिटा गया। अपने अंदर सिमट गया, सहम गया। पर फिर उसने फौरन ही खुद को सम्भाल लिया। उसे एक कमजोर इंसान वह भी एक औरत से डरने की भला क्या जरूरत थी। .

राकल ने अपना एक अमल किया और रेखा चकरा कर रह गई।

राकल ने सांप की तरह बल खाया हुआ अपना राजदण्ड अपनी बगल से निकाला और उसे मध्य से पकड़कर अपना हाथ ऊपर उठाया और अपनी एक टांग पर नाचना शुरू कर दिया।
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