शापित राजकुमारी

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Kamini
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शापित राजकुमारी

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शापित राजकुमारी


लेखक
विनोद महर्षि "अप्रिय"


प्राचीन चन्द्रपुरी राज्य में एक अनुशाषित एवं प्रजावत्सल राजा वैभवराज हुए। वैभवराज का राज्य हर तरह से खुशहाल राज्य था। वैभवराज के दरबारी विद्वानों में एक विद्वान विशम्भर थे। जो अत्यंत प्रचंड विद्वान थे। राज दरबार मे उनका कद राजा के बाद सबसे बड़ा होता था। राजा का सेनापती चक्रधर थे जो युद्धकला में प्रखर थे एवं कुशल रणनीतिज्ञ थे।

शाही परिवार में रानी तारामती थी। जो राजा की हर सम्भव राज काज में सहायता करती थी। प्रतिदिन राज दरबार मे राजा प्रजा की समस्याओं का निपटारा करते थे और तारामती हर सम्भव अपने विचारों से राजा की सहायता करती। हर प्रकार से वैभवराज का राज्य सम्पन्न था। इस कमी थी तो वैभवराज के कोई संतान नही थी। विवाह के कई वर्ष बीत जाने पर भी जब राजा के कोई संतान नही हुई तो राज परिवार के साथ साथ प्रजा को भी चिंता होने लगी।

राजगद्दी का अगला उत्तराधिकारी कौन होगा? यह प्रसन्न अक्सर राजा और रानी को चिंतित करता था। लेकिन रानी तारामती हमेशा राजा को यह कहकर ढांढस बंधाती की जब तक हम है प्रजा को कोई समस्या नही होने देंगे। और फिर भगवान हमारे साथ इतना गलत नही करेगा। आप बस सब्र रखिये सब्र का फल मीठा होता है।

रानी की बात वैभवराज मान लेता था मगर फिर भी प्रजा की चिंता में वो हमेशा उदास रहता कि मेरे बाद प्रजा को कौन संभालेगा। पड़ोसी राजा जो कि एक क्रूर शासक था वो हमेशा ही चन्द्रपुरी पर राज करने का सपना देखता रहता था। लेकिन चक्रधर की रणनीति और सेना के पराक्रम के सामने उसकी हिम्मत नही होती थी। चन्द्रपुरी की सेना के बहादुरी के किस्से कोने कोने में फैले थे।

एक तरफ़ चक्रधर और सेना का शौर्य था तो दूरी तरफ विशम्भर का ज्ञान जो राजा को हर समस्या से निपटने में बहुत सहायक थे। चक्रधर के एक पुत्र था जिसको वो हमेशा सेना के शिविर में ले जाते और बहादुर सैनिकों के किस्से सुनाते तथा शस्त्र विधा सिखाते। चक्रधर का पुत्र कार्तिक जल्द ही शस्त्र विधा में पारंगत होता जा रहा था। अपने पिता के गुण वो बखूबी अपना रहा था।

दरबारी विद्वान के भी एक पुत्र था, मार्तण्ड। मार्तण्ड भी अपने पिता की तरह बहुत बुद्धिमान था। विशम्भर ने अपने पुत्र को शास्त्र विद्या का अध्धयन करने काशी भेज हुआ था।

सन्तान ना होने के कारण राजा अकेले में अक्सर सोचता कि काश चक्रधर और विशम्भर की तरह मेरा भी एक पुत्र होता जिसको में हर तरह से हर विद्या में पारंगत करता और राज्य की कुशहाली के लिए उसे राजगद्दी पर बैठाता। राजा की यह उदासी सिर्फ तारामती ही दूर कर सकती थी जो हमेशा करती भी थी।

एक दिन विशम्भर ने राजा को बताया कि विराटनगर में एक देवी है जो सबकी मनोकामना पूरी करती है। आप वहां के राजा से अनुमति लेकर देवी के दर्शन कीजिये और प्रार्थना कीजिये।

विशम्भर की हर बात सच होती थी तो राजा को उन पर पूरा भरोसा था। विराटनगर के राजा से अनुमति लेकर वैभवराज देवी की पूजा अर्चना करता है और मन्नत मांगता है। एक वर्ष बाद राजा के जुड़वां सन्तान होती है। एक लड़का एयर एक लड़की।।।



शाही परिवार और समस्त राज्य उल्लास से नाचने गाने लगे। आखिर राजा को सन्तान सुख जो मिल गया। राज्य में उत्सव सा मनाने लगे। शाही परिवार ने प्रजा के लिए शाही भोज का आयोजन किया।

रानी तारामती और वैभवराज बहुत खुश थे। समय अब हंसी खुशी में व्यतीत होने लगा। राजकुमार विजयराज और राजकुमारी चन्द्रावती समय के साथ साथ बढ़ने लगे। और दोनो ही भाई बहन बहुत ही मेधावी निकले। बचपन मे ही राजकुमार का शास्त्र से प्रति लगाव था तो राजा ने विजयराज को आश्रम में अध्ययन के लिए भेजने का निर्णय किया। लेकिन रानी का मन बेटे से दूर होने की बात नही मान रहा था।

राजा ने समझाया और विजयराज को आश्रम में अध्ययन के लिए भेजा। जहां विशम्भर का पुत्र भी वहाँ पहले से ही शास्त्र अध्ययन कर रहा था। 7 वर्ष की उम्र में विजयराज काशी चला गया।

राजकुमारी बचपन से ही सस्तरों की शौकीन थी। जहां भी कटार तलवार या धनुष देखती उसे लेने के लिए रोने लगती, उनके साथ खेलती रहती। राजा ने सोचा कि राजकुमारी को यौद्धा बनाया जाये। विजयराज जब अध्ययन करके वापिस आएगा तो अपनी बहन से जरूरी शस्त्र विद्या भी सीख लेगा। जिस वय में बच्चे मिट्टी से खेलते है उस वय में राजकुमारी तलवार भाले, धनुष से खेलने लगी।

वक्त बीत रहा था, उधर आश्रम में बिना एक दूसरे की पहचान के विशम्भर का पुत्र और राजकुमार अच्छे दोस्त बन गए। आश्रम में सबकी पहचान गुप्त रखी जाती थी। ताकि किसी को एक दूसरे से कोई वैरभाव ना हो। इधर राजकुमारी धीरे धीरे अपने खेल को निपुणता में तब्दील करती गई।

समय की रफ्तार से शाही परिवार की खुशियां बढ़ने लगी। राजकुमारी अब तलवारबाजी और धनुर्विद्या का अध्ययन कर रही थी।भाई शास्त्र में तो बहन, शस्त्र में निपुण होते जा रहे थे। कुछ अलग था लेकिन वैभवराज खुश थे। वो चाहते थे कि राजकुमारी एक कुशल यौद्धा बने।

राज्य में हर वर्ष एक प्रतियोगिता होती थी। जिसमे निशानेबाजी और घुड़दौड़ होती थी। जो भी व्यक्ति 3 साल लगातार उसमें सफल होता था उसे सेनापति बना दिया जाता था। पहले वाले सेनापति को या तो कोई दूसरा पड़ मिलता या फिर उसको सेवानिवृत कर दिया जाता।

चक्रधर पिछले 10 वर्षों से सेनापति था। और वीरप्पा पिछले 2 सालों से उस प्रतियोगिता को जीत रहा था। वीरप्पा चक्रधर से ईर्ष्या रखता था। वीरप्पा सेनानायक था और एक कुशल यौद्धा भी था। वीरप्पा को सेनापति पड़ चाहिए था। उधर चक्रधर अपनी देखरेख में राजकुमारी को निशानेबाजी और घुड़सवारी के गुर सीखा रहा था। चक्रधर ने राजकुमारी में साहस को कूट कूट कर भर दिया था।
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Kamini
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Re: शापित राजकुमारी

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चक्रधर चाहता था की इस बार राजकुमारी इस प्रतियोगिता में भाग ले। हालांकि उम्र में बहुत कम थी अन्य यौद्धाओ के सामने वो कुछ नही थी। लेकिन चक्रधर को अपनी क्षमता और राजकुमारी के कौशल पर पूरा भरोसा था। साथ ही वो राजकुमारी के साहस को भी परखना चाहता था। पहले तो रानी इस बात पर नही मानी लेकिन फिर राजा और चक्रधर के कहने पर वो मान गई।

राजकुमारी तो पहले से ही तैयार थी। वो उत्सुक थी अपनी योग्यता को दिखाने के लिए।

तय समय पर नगाड़े की नाँद से मुनादी करवा दी और राज्य के यौद्धा और कई प्रतियोगी शामिल हुए। प्रतियोगिता की शर्त थी कि राज्य का कोई भी नागरिक उसमे शामिल हो सकता था। और जो व्यक्ति दोनो प्रतियोगिताओं में विजय होगा वो ही विजेता माना जाता था। लगातार 3 वर्ष तक विजय प्राप्त करने वाले को सेनापति का पद मिलता था। बाकी एक प्रतियोगिता के विजेता को स्वर्ण मुहर भी मिलती थी।

राज्य के विशाल मैदान में शामियाना सजा दिया गया। नगाड़े बजने लगे और विशाल प्रतियोगिता का आयोजन भव्य तरीके से होने वाला था। ऊंचे सिंहाशन पर राज और रानी बैठे थे। सामने यौद्धाओ की पंक्ति के अंत मे सुकुमारी राजकुमारी चन्द्रावती धनुष लिए खड़ी थी। ,



सभी यौद्धाओं ने प्रत्यंचा चढ़ा रखी थी। वीरप्पा ने सबसे पहले निशाना साधा जो कि ठीक लक्ष्य पर लगा। जैसे की सभी को उम्मीद थी। एक एक करके सभी यौद्धाओं ने निशाने लगाए, लेकिन वीरप्पा के अलावा कोई भी लक्ष्य को भेदने में सफल नही हुआ। सबसे अंत मे राजकुमारी चन्द्रावती की बारी थी।

रानी तारामती बहुत चिंतित थी। लेकिन वैभवराज बहुत खुश थे। रानी के चेहरे पर चिंता की लकीर देख कर वैभवराज ने रानी से पूछा,,

राजा- प्रिये! आपके चेहरे पर चिंता की लकीर क्यों है? बल्कि आपको तो खुश होना चाहिए।

रानी- खुश कैसे, महाराज

राजा- आज हमारी बेटी इतनी कम उम्र में भी इन महान यौद्धाओ के साथ इतनी कठीन परिक्षा देने जा रही है।

रानी- महाराज यही तो मेरी चिंता का कारण है।

राजा- क्यों! इसमें आप चिंतित क्यों हो।

रानी- महाराज राजकुमारी तो नादान है। अभी तो वो सस्त्र विद्या सीख रही है। उसे इतना ज्ञान भी नही है। कहीं हार गई तो।

राजा- रानी साहिब यही तो फक्र की बात है कि इतने कुशल धनुर्धारियों में अपनी छोटी सी पुत्री का साहस तो देखिए आप।

रानी- लेकिन महाराज, यदि राजकुमारी का निशाना ठीक नही लगा तो।।।

राजा- रानी साहिबा आप नकारात्मक भाव मत लाइये। और रही बात निशाने की तो, मुझे भी पता है कि उसका निशाना अभी उतना सटीक नही है। लेकिन इसमें चिंतित होने जैसा कुछ नही है।

रानी- महाराज आप समझ नही रहे है। मेरे कहने का मतलब है कि यदि राजकुमारी का निशाना चूक गया तो शाही परिवार की तौहीन हो जाएगी।

राजा- इसमें कैसी तोहीन! यह तो शाही परिवार के लिए गर्व का वक्त है। इतनी कम उम्र में राजकुमारी इतने कुशल यौद्धाओं में बीच चुनोती के लिए तत्पर है। मेरा तो सीना गर्व से फूला जा रहा है और आप चिंता जता रही हो।

रानी- महाराज लेकिन मेरा तो ह्रदय धड़क रहा है।

राजा- आप तनिक भी चिंता ना करें, राजकुमारी के साहस से ही मैं खुश हूं। यही मेरा इनाम है। आज मुझे तो फक्र है कि हमारी बेटी में इतना साहस है, सोचो आगे चलकर उसका यह साहस कितना बढ़ेगा। यदि आप इस तरह चिंतित होओगी तो राजकुमारी का साहस टूट सकता है। तो आप व्यर्थ की चिंता छोड़ दीजिए।

रानी- जी महाराज, आप सत्य कह रहे है। लेकिन फिर भी एक मां के भाव है उनको में कैसे रोकू।

राजा- आप अपनी आंख बंद कर लीजिए।

फिर आदेशानुसार राजकुमारी की बारी आई। चन्द्रावती ने अपने इष्ट को याद किया और धनुष पर प्रत्यंचा चढ़ाई। हवा की रफ्तार से तीर कमान से निकला और सीधा लक्ष्य को भेद गया।

मैदान में उपस्थित सभी लोगों ने करतल ध्वनि से राजकुमारी की विजय का नाँद किया। सेनापति चक्रधर खड़े होकर तालियां बजाने लगे। मैदान में अब तक गर्व से सीना ताने खड़े वीरप्पा के पैरों तले से जमीन खिसक गई। उसको अपनी आँखो पर यकीन नही था कि इस वय में कोई नौसीखिया कैसे इस लक्ष्य को भेद सकता है। अब तक तो इस राज्य में कोई ऐसा नही था जो कि वीरप्पा से आगे निकल सके। लेकिन आज राजकुमारी ने वो कर दिखाया जिसका तो वीरप्पा ने सपने में भी नही सोचा था।

सेनापति बनने का सपना टूटता हुआ देख वीरप्पा बहूत क्रोधित हुआ, लेकिन कुछ बोल नही सका । राजा ने रानी की तर्ज देखा तो रानी भी मुस्कुरा रही थी। सम्पूर्ण राज्य में पहली बार किसी औरत ने इस प्रतियोगिता में हिस्सा लिया और विजेता भी बन गई। और राजकुमारी यह निशाना साधने वाली सबसे कम उम्र की भी थी तो मन्त्रिवर का फैसला भी राजकुमारी को विजेता मानने का था।

अब वीरप्पा और भी क्रोधित हो गया। वो राजकुमारी को ईर्ष्या की दृष्टि से देखने लगा। लेकिन अभी घुड़सवारी बाकी थी। वीरप्पा को विस्वास था कि घोड़े को सम्भलना तो राजकुमारी के बस की बात नही है। वीरप्पा सोच रहा था कि घुड़सवारी में जीत कर मैं अपनी इज्जत तो बचा ही लूंगा। लेकिन पड़ ना मिलने के आसार देख कर वीरप्पा को राजकुमारी से जलन होने लगी।

चक्रधर के आदेश से यह कहलवाया गया कि दोपहर के खाने के पश्चात घुड़सवारी होगी। अतः सभी भोजन ग्रहण करके कुछ समु आराम कर सकते हो। लेकिन वीरप्पा को कहां अब भूख थी। वो कुछ अलग ही सोच रहा था। उधर राजकुमारी भी अपने घोड़े को सहला रही थी।

क्रमशः-
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Re: शापित राजकुमारी

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निवेदन- मेरी पुस्तक "मरुधरा के पुष्प" ऑनलाइन अमेजन, फ्लिपकार्ट पर उपलब्ध है। अवश्य पढ़ें, 🙏🙏🙏इज्जत तो बचा ही लूंगा। लेकिन पड़ ना मिलने के आसार देख कर वीरप्पा को राजकुमारी से जलन होने लगी।

चक्रधर के आदेश से यह कहलवाया गया कि दोपहर के खाने के पश्चात घुड़सवारी होगी। अतः सभी भोजन ग्रहण करके कुछ समु आराम कर सकते हो। लेकिन वीरप्पा को कहां अब भूख थी। वो कुछ अलग ही सोच रहा था। उधर राजकुमारी भी अपने घोड़े को सहला रही थी।




दोपहर के समय जब सभी भोजन ले रहे थे। और राजा भी अपने महल में चले गए थे। मैदान में सजे शामियाने में सिर्फ अब घुड़सवारी में भाग लेने वाले घुड़सवार ही मौजुद थे। तब दो इंसान ऐसे थे जिनको चैन नही आ रहा था। एक तो राजकुमारी जो आज इतिहास रचना चाहती थी। इतनी कम वय में वो कर दिखाना चाहती थी जो शायद राज्य के किसी भी व्यक्ति ने नही सोचा था। निशानेबाजी में बाजी मारने के बाद अब राजकुमारी के हौसले और ऊंची उड़ान भरने लगे।

दूसरी तरफ वीरप्पा। वीरप्पा को चैन इसलिए नही आ रहा था कि उसकी पड़ पाने की दौड़ में अब राजकुमारी एक बड़ा कांटा बन गई थी। हालांकि वीरप्पा ने निशाना सटीक लगाया था मगर राजकुमारी ने विजय का ताज पहन लिया था। अब वीरप्पा के पास एक ही रास्ता था वो था घुड़सवारी में विजय प्राप्त करना। और यदि ऐसा नही होता है तो वीरप्पा के पूरे राज्य में किरकिरी हो जाएगी।

लेकिन वीरप्पा किसी भी सूरत में हार मानने वाला नही था। किसी भी तरीके से वीरप्पा को घुड़दौड़ जितनी थी। बस । वीरप्पा सोच रहा था कि चाहे कुछ भी करना पड़े , लेकिन राजकुमारी जीत ना सके। लालसा ने वीरप्पा को बागी बना दिया। अपने ही राज्य की राजकुमारी जो शायद भविष्य में राज्य का सुनहरा भविष्य हो, लेकिन वीरप्पा की आंखों में चुभने वाला कांटा बन गई। और वीरप्पा को किसी भी तरीके से वो कांटा निकालना था।

वीरप्पा ने अपने चार पांच विस्वासी सैनिकों को बुलाया और उन्हें अपनी योजना बनाई। एक कुत्सित दिमाग मे कुकृत्य ही जन्म लिया करते है। वीरप्पा ने राजकुमारी के घोड़े को दौड़ में गिराने की सोची । किसी भी तरीके से राजकुमारी या घोड़ा गिर जाए तो वीरप्पा आगे निकल जायेगा। लेकिन भरे मैदान में यह सब होगा कैसे? योजना को किस तरह से सफल किया जाए। वीरप्पा और उसके साथी सैनिक सोचने लगे। समय उनके पास बहूत कम था।

उधर इस कुत्सित मानसिकता से बेखबर राजकुमारी अपने घोड़े को सहला रही थी। राजकुमारी की बस एक ही चाहत थी को पिताजी की आंखों में उसके प्रति सदैव स्नेह और गर्व भरा रहे और इसके लिए राजकुमारी को कुशल यौद्धा बनना था। एक कुशल यौद्धा को हथियार चलाने के साथ साथ घुड़सवारी भी आनी जरूरी है। हालांकि राजकुमारी को अच्छी घुड़सवारी आती थी। लेकिन शायद वीरप्पा के अनुभव के आगे वह कमजोर थी। लेकिन इन सब बातों से बेखबर राजकुमारी बस अपनेआप से खुश थी और निश्चिन्त होकर घुड़दौड़ का इंतजार कर रही थी।

आखिर वीरप्पा ने अपने एक सैनिक जिसको घुड़सवारी आती थी उसकक समझाया कि तुम अपने घोड़े के साथ मैदान में उतर जाना। और राजकुमारी के ठीक पास ही अपना घोड़ा रखना। जब दौड़ शुरू हो तो तुम्हे अपना घोड़े से राजकुमारी के घोड़े को टक्कर मारनी है। ध्यान रहे राजकुमारी तुमसे आगे ना निकल पाए। और किसी भी तरीके से राजकुमारी के घोड़े को गिराना है। सैनिक ने कहा हुजूर जैसा अपने कहा ठीक वैसा ही होगा। आप निश्चिन्त रहिये , दौड़ आप ही जीतेंगे। राजकुमारी का घोड़ा बीच मैदान, में गिर जाएगा।

तय योजना के अनुरूप मैदान में शाम के समय घोड़े और सवार सज कर दौड़ के लिए तैयार थे। वीरप्पा का सैनिक राजकुमारी के ठीक पास ही था। उसकी विजय तो बस राजकुमारी को गिराने में थी। राजा के आदेशानुसार दौड़ शुरू हुई। अभी कोई 20 योजन ही घोड़े दौड़े थे कि अचानक उस सैनिक ने अपनी योजना कामयाब कर दी।

दौड़ते हुए घोड़े को राजकुमारी के घोड़े से टक्कर मारी और घोड़े के साथ राजकुमारी भी धड़ाम से मुहं के बल मैदान में गिर गई। सारे घुड़सवार आगे निकल गए और सबसे आगे वीरप्पा था। किसी को शक ना हो इसके लिए वो सैनिक भी वही गिर गया और चोट लगने जैसा बहाना बनाने लगा। इस तरह रोने लगा जैसे कि उसको सचमुच दर्द हो रहा हो। उधर राजकुमारी को गिरता देख रानी खड़ी गई। लेकिन राजा के इसारे पर वही रुकी रही।

चक्रधर सैनिकों की सहायता से राजकुमारी को शिविर में लाये और देखा कि कहीं चोट तो नही लगी। लेकिन राजकुमारी को तो गहरी चोट पहुंची थी। उसका कोई इलाज नही था। वैधजी आये और देखा तो कहीं ज्यादा चोट नही थी।

राजकुमारी को तो हृदय पर चोट पहुंची थी।

चक्रधर- उस सैनिक को पेश करो।
(सैनिक को लाया गया। जो दर्द का झूठा बहाना कर रहा था।)
चक्रधर- यह क्या किया तुमने?

सैनिक- क्षमा करें सेनापति महोदय, मैं लक्ष्य की तरफ तेजी से बढ़ने के चक्कर मे राजकुमारी से टक्कर गया।

चक्रधर- तुम्हे पता भी है कितना बड़ा अन्याय किया है तुमने।

सैनिक - हुजूर, सजा का हकदार हु। लेकिन मैंने जानबूझकर ऐसा नही किया।

राजा- कोई बात नही सेनापति जी, आप इतने क्रोधित ना हो, अक्सर ऐसी दुर्घटना घटित हो जाती है। इसमें इस सैनिक का कोई कसुर नही है।

सैनिक- महाराज की जय हो।। मेने कुछ भी जनबुझकर नही किया था हुजूर।

राजा- जाओ , कोई बात नही।

चक्रधर- लेकिन महाराज राजकुमारी तो निराश हो गई ना। अपने उसे बिना सजा के ही छोड़ दिया।

राजा- सेनापति जी, इसमें उसका कोई दोष नही है। ऐसा हो जाता है कभी कभी। और वैसे भी हमे राजकुमारी पर आज फक्र है। आज ऐसा प्रतीत हो रहा है कि तो के राज्य का भविष्य उत्तम होगा।
राजकुमारी आपको कुछ हुआ तो नहीं।

चन्द्रावती- जी पिताजी , नही। बस एक मलाल रह गया।

राजा- क्या?

चन्द्रावती- भले ही हार जाती लेकिन दौड़ तो पूरी करती में, जिससे मेरा आत्मविस्वास बढ़ता। बीच मे ही गिरना मेरे आत्मबल को झटका है।

राजा- ऐसे विचारो को दूर करो पुत्री, अभी यह आपका पहला मौका है। आगे और भी बहुत समय है आपके पास। आप बस और अच्छे से प्रयास करते रहो।

तभी नगाड़ा बजा और घोषणा हुई कि वीरप्पा ने सबसे पहले विजय रेखा को पार किया। चक्रधर को बहुत गुस्सा आ रहा था। लेकिन राजा के चहरे पर गर्व के ही भाव थे। राजा ने जाकर वीरप्पा को बधाई दी।

वीरप्पा की जीत से वैभवराज खुस थे। उन्होंने दूसरे दिन राजदरबार में वीरप्पा को सम्मानित किया गया।
(राज दरबार का दृश्य, सामने ऊंचे सिहांशन पर राज और रानी विराजमान है। दरबारी पंडित विशम्भर और सेनापति चक्रधर भी पास के सिंहशनो पर विराजमान है। दासियां चँवर ढुला रही है। कुछ देर मंत्रिमंडल में मन्त्रणा हुई। वैभवराज और चक्रधर के बीच काफी चर्चा हुई। निर्णय करना था कि वीरप्पा को किस तरह सम्मानित किया जाए।)

राजा- मन्त्रिवर,, प्रतियोगता का परिणाम दराबर को बताओ।

चक्रधर- राजन , हर वर्ष की भांति हमारे राज्य के वीर बहादुरों के बीच एक रोमांचित प्रतियोगिता का इस बार भी सफल आयोजन हुआ। राजकुमारी जी के साथ हुई घटना से मैं बहुत आहत हु। और सेनापति होने के नाते एक सैनिक को गलती की माफी में राजकुमारी जी मांगता हूं।
जैसा कि आपको विदित है कि राजादेसानुसार प्रतियोगिता के विजेता को सम्मानित किया जाता है। जो यौद्धा 3 बार लगातार विजयी होता है उसे राज्य में तृतीय स्थान पर विराजमान होने का सौभाग्य मिलता है। अर्थात सेनापति का पद दिया जाता है। और हमारे सेनानायक वीर बहादुर यौद्धा श्रीमंत वीरप्पा लगातार 3 बार इस प्रतियोगिता के विजेता है।

(तभी एक मंत्री बोलता है ।)

मंत्री- क्षमा करें महाराज, लेकिन आपका न्याय तर्कसंगत नही लग रहा मुझे। राज्य की सुरक्षा का जिमा एक कुशल हाथो में होना आवश्यक है। वीरप्पा एक बहादुर यौद्धा है इसमें शक की कोई गुंजाइश नही है। लेकिन सेनापति महोदय, राजकुमारी जी ने निशानेबाजी में वीरप्पा की बराबरी की है। क्या आपको नही लगता कि राजकुमारी जी भी इसमें बराबर की हकदार है।

चक्रधर- महोदय आपके विचारों का ईद दरबार मे स्वागत है। लेकिन महाराज के आदेशानुसार ही मैं यह घोषणा कर रहा हु। मैं भी मानता हूं कि राजकुमारी जी भी बराबर की हकदार है।
(मंत्री की इस बात पर वीरप्पा मन ही मन गुस्सा होता है। सोचता है की चुप रह वरना तेरी गर्दन धड़ से अलग कर दूंगा। लेकिन भरे दरबार मे मन मे गुस्सा करने के सिवाय कोई चारा न था। तभी वैभवराज बोल पड़ते है।)

राजा- मंत्री महोदय आपकी बात सही है लेकिन न्याय तो करना ही है। आखिर वीरप्पा विजेता है तो उनको सम्मान मिलना चाहिए।

मंत्री- राजन! आपकी बातों से सहमत हूँ। वीरप्पा की बहादुरी पर भी मुझे कोई संदेह नही है। लेकिन आप सोचिये की यदि राजकुमारी ना गिरती तो क्या परिणाम अलग नही हो सकता था।

राजा- जी महोदय, जो भविष्य के गर्भ में राह गया उसकी चिंता क्यों करें। जो वर्तमान हमारे सामने है हमे उसका स्वागत सही तरीके से करना है।
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Re: शापित राजकुमारी

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(राजा की बात से वीरप्पा खुश होता है, लेकिन मन ही मन चक्रधर और मन्त्रि पर गुस्सा करता है। तभी दरबार मे राजकुमारी चन्द्रावती का प्रवेश होता है।सभी खड़े होकर राजकुमारी का स्वागत करते है।)

राजकुमारी- दरबार मे उपस्थित सभी बडों को मेरा प्रणाम। कहो मन्त्रिवर किस बात पर बहस चल रही है आज।

चक्रधर- राजकुमारी जी, कल की प्रतियोगिता के विजेता को सम्मान दिया जा रहा है लेकिन मंत्री महोदय कुछ अलग फरमा रहे है।

राजकुमारी- कहो मंत्री जी आपकी शंका क्या है? शायद मैं समाधान कर सकू।

मन्त्रि- जी राजकुमारी की, मेरा कहना है कि वीरप्पा को सेनापति का पद देना अभी उचित नही है। नियमानुसार आप के भी निशाना सटीक लगाया था। और यदि दौड़ के बीच मे आपके साथ वो घटना ना घटी होती तो, शायद परिणाम कुछ और होता।

राजकुमारी- जी मंत्री महोदय, पहली बात तो यह है कि इस दराबर मे विराजमान सभी मेरे लिए आदरणीय है। मैं बहुत छोटी हूं। पिताश्री के सामने दरबार मे बोलना भी उचित नही है। लेकिन यदि किसी बहस में मेरा नाम शामिल है तो मैं बोलना उचित समझती हूं। सेनानायक वीरप्पा महोदय, मेरे बड़े भाई के सम्मान है। उनकी बहादुरी पर किसी को कोई संदेह नही होना चाहिए। उन्होंने प्रतियोगिता में विजय हासिल करके अपनी बहादुरी और कुशलता का अनुपम परिचय दिया है। वो सम्मान के हकदार है।

(राजदरबार तालियों से गूंज उठा। वीरप्पा भी खुस हो गया।लेकिन तभी मंत्री जी फिर बोल पड़े)

मंत्री- लेकिन मेरे कहने का अर्थ सिर्फ यह है कि यदि राजकुमारी और वीरप्पा के मध्य फिर से दौड़ करवाओ जाए, और उसके बाद विजेता को सम्मानित किया जावे तो बेहतर होगा।

मंत्री जी की इस बात पर समस्त दरबार मे कानाफूसी होने लगी और राजा समेत सभी मंत्री और सेनापति भी चौंक गए।लेकिन दरबारी पंडित विशंभर जो अब तक चुप थे, वो बोल पड़े।

विशम्भर- मैं मंत्री महोदय की बात का समर्थन करता हूँ। वीरप्पा जी की बहादुरी की नही लेकिन राजकुमारी के कौशल को देखने के लिए एक बार फिर मैदान में सिर्फ दो ही यौद्धा हो, और फिर जो विजेता हो उसको सम्मानित किया जाए।

चक्रधर- मैं मंत्री जी और पंडित जी की बात से सहमत हूं।

(दरबार मे एक के बाद एक हाथ खड़े होने लगे और मंत्री जी की बात को पूर्ण समर्थन मिला गया। इस बार राजा भी थोड़े डर गए कि वीरप्पा के साथ फिर से घुड़दौड़ में राजकुमारी को उतरना शायद बेवकूफी है। लेकिन दराबर में इन सभी लोगों की बात को नकारना भी गलत है। तभी राजा ने चन्द्रावती की और मुखातिब होकर पूछा)

राजा- राजकुमारी चन्द्रावती, आपको कुछ कहना है।

राजकुमारी- जी राजन, मैं एक बात कहना चाहती हु की इस समय पहले वीरप्पा का सम्मान हो, उन्हें सेनापति बनाया जाए। ततपश्चात यह प्रतियोगिता आप चाहे तो पुनः करवा सकते है।

वीरप्पा- क्षमा करें राजन, मैं अपनी बात दराबर में रखना चाहता हूं।

राजा- जी सेनानायक अवश्य, बेझिझक रखिये।

वीरप्पा- आदरणीय राजकुमारी जी एयर सभी मंत्रीगण,एवं सेनापति महोदय, यदि इस प्रतियोगिता में जो हार गया उसको और जो जीतेगा उसको किस तरह का इनाम दिया जाएगा। क्या मैं बता सकता हूं?

राजा- अवश्य,, बताइये

वीरप्पा- राजकुमारी जी, मैं चाहता हूं कि इस प्रतियोगिता में जितने वाले को सेनापति और हारने वाले को एक वर्ष का अज्ञातवास दिया जाए। यदि यह दरबार मेरी शर्त माने तो मैं पुनः इस प्रतियोगिता के लिए तैयार हूं।

चक्रधर- (चौंककर) क्या कह रहे हो वीरप्पा! यह सम्भव नही है।

राजकुमारी- मुझे मंजूर है।

(राजकुमारी के इस जवाब पर पूरा दरबार आश्चर्यचकित हो गया। रानी तारामती तो डर गई और राजा की तरफ देखने लगी। सभी मंत्री एक दूसरे का मुंह ताकने लगे। तभी राजकुमारी फिर बोली)

राजकुमारी- लेकिन वीरप्पा जी मेरी एक शर्त आपको भी माननी पड़ेगी।

वीरप्पा- कैसी शर्त राजकुमारी जी

राजकुमारी- पहले आपको सेनापति पद लेना होगा। इसके बाद यह प्रतियोगिता होगी।

वीरप्पा- जी राजकुमारी जी, मुझे आपकी यह शर्त मंजूर है।

राजकुमारी- तो तय हो गए कि आगे क्या होना है। लेकिन अभी वीर यौद्धा वीरप्पा का सेनापति पद के लिए तिलक किया जाय।

सारा दरबार मूक बनकर देख रहा था। किसी के मुहं से कुछ भी नही निकल रहा था। जैसे सभी का रक्त जम गया हो। राजा भी अब डर गया कि कहीं राजकुमारी हार गई तो 1 वर्ष का अज्ञातवास देना पड़ेगा। लेकिन, राजकुमारी स्वयं भरे दरबार मे जब इस तरह स्वीकार कर लेती है तो बाकी कोई बजी उसकी बात कैसे कटे।

ससम्मान वीरप्पा का तिलक किया गया और सेनापति पद पर विराजमान किया गया। दरबार मे सभी आश्चर्यचकित थे। लेकिन राजकुमारी के चेहरे पर एक भी शिकन नही थी। रानी तारामती तो जड़ हो गई थी और चक्रधर भी शोक में थे। अगले दिन फिर मैदान में दो घोड़े सजाए गए और निशानेबाजी के लिए भी राजधवज को मैदान के दूर छोर पर लगाया गया। मुनादी करवाई गई। मैदान के चारों तरफ प्रजा भी उत्साहित होकर इस अनोखी स्पर्धा को देखने लगे। चक्रधर समेत सभी मंत्रयीयों के पसीने छूट रहे थे। राजा के मन मे असंख्य सवाल उठ रहे थे।
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Kamini
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Re: शापित राजकुमारी

Post by Kamini »

आखिर वो वक्त आया जब एक अहम फैसला मैदान के बीच मे होना था। एक अनुभवी और पारंगत यौद्धा और एक नादान 15 वर्षीय बाला जिसको अभी शास्त्र और सस्त्र में फर्क ही नही पता था। रथ पर सवार महाराज और रानी आये। मंत्रीगण और विद्वान आये। प्रातःकाल का समय था। सूर्य अपनी किरणे प्रखर कर रहा था। पंछियों का कलरव गूंज रहा था। प्रजा ने करतल ध्वनि से महाराज का स्वतग किया। सभी मैदान के पास तय स्थान पर विराजमान हुए।

उधर मैदान में एक तरफ कुशल यौद्धा वीरप्पा और दूसरी तरफ नव अंकुरित नादान पुष्प सी चन्द्रावती। दोनो जिरहबख्तर पहने धनुष तीर लेकर अपने लक्ष्य को पाने के लिए ततपर थे। उधर आज वैभवराज का हृदय जोरो से धड़क रहा था। रानी साहिबा तो जैसे कोई सपना देख रही हो। बार बार महाराज का हाथ पकड़ कर कहती , अब क्या होगा? सभी मंत्रियों के पसीने छूट रहे थे और सबसे ज्यादा बेहाल तो चक्रधर था। दांव पर सेनापति का पद, और उससे भी बड़ी चिंता की चन्द्रावती ने अब तक चक्रधर से ही सब कुछ सीखा था।

सेनापति के पद पर अब वीरप्पा थे। लेकिन इस प्रतियोगिता के पूरा होने तक औपचारिक भर चक्रधर के पास ही था। इसलिए इस स्पर्धा की सारी जिम्मेदारी भी चक्रधर की थी। चक्रधर ने मैदान के चारो तरफ विस्वासी सैनिको का जाल से बिछा दिया। ताकि वीरप्पा कोई चालाकी ना कर सके। इस तरह का बंदोबस्त देखकर वीरप्पा भी आश्चर्यचकित था। वीरप्पा था तो कुशल यौद्धा लेकिन वो कपटी भी था। घमंडी था और लालच भरा हुआ था। पद को पाने की होड़ में उंसने एक राजकुमारी को साख को भी दांव पर लगा दिया।

राणी तारामती ने वैभवराज का हाथ पकड़ कर धीरे से कहा, सुनिए,,

तारामती- सुनिए, आप राजकुमारी को समझाइए।
वो आपकी बात मानेगी।

राजा- क्या समझाऊं रानी साहिबा

तारामती- वो नादान है उसमें जोश है, जोश में होश खोकर उंसने यह फैसला लिया है। यह कतई हमारे लिय उचित नही है।

राजा- रानी साहिबा में आपको पहले ही समझा चुका हूं कि राजकुमारी मेरा गौरव है। मेरा स्वाभिमान है।

रानी- महाराज मुझे पता है, लेकिन वीरप्पा एक कुशल यौद्धा है। आप समझते क्यों नही।

राजा- मैं समझ रहा हु, लेकिन अब मैं क्या कर सकता हु। राजकुमारी ने पूरे दरबार के सामने यह चुनोती स्वीकार की है। और हम क्षत्रिय कभी अपने वचन से पीछे नही हटते है। अब जो भी हो देखा जाएगा।

रानी- लेकिन यदि राजकुमारी हार गई तो 1 वर्ष तक हम कैसे रहेंगे।

राजा- महारानी, आप तनिक सोचना बंद करे। मुझे आपसे ज्यादा चिंता है। लेकिन मुझे यकीन है कि राजकुमारी चन्द्रावती कभी भी हमे या राज्य पर कोई आंच नही आने देगी। हम सौभाग्यशाली है कि ऐसी पुत्री जन्मी है। जो इस वय में भी मौदान में कमर कसकर खड़ी है।

वैभवराज के स्वाभिमान के आगे तारामती की नही चली। और राजकुमारी भी तो पीछे हटना नही चाहती थी।
मैदान में बिगुल बजने से पहले चंद्रावती वीरप्पा के पास आई और बोली,,

राजकुमारी- महोदय, आप मेरे लिए और राज्य के लिए अब तक गौरव थे। लेकिन दो दिन पहले स्पर्धा के दौरान आपकी नीच हरकत ने इस राज्य के स्वाभिमान को ठेस पहुंचाई है। आपको छल कपट का सहारा नही लेना चाहिए था। आपमे हिम्मत है तो खुले मैदान में चुनोती दीजिये। हार और जीत मायने नही रखती है। मुझे कोई फर्क नही पड़ेगा यदि मैं आपसे हार जाऊं तो। लेकिन मैं मेरा काम पूरी ईमानदारी से करूँगी।

वीरप्पा- (चौंककर) जी,,, जी,,, राज,,,,राजकुमारी जी, आप यह क्या कह रही हो। मेने कब छल किया।

राजकुमारी- (वीरप्पा के कान के पास जाकर) अपने जिस सैनिक को हमारा घोड़ा गिराने का काम दिया था, वो अब मेरी कैद में है। आप क्या समझते है। मैं बच्ची हु। इतना तो मुझे भी आता है महोदय।

वीरप्पा के पैरों के नीचे से जमीन खिशक गई, सर से आसमान की छत गायब हो गई। हृदय गति अत्यंत तीव्र हो गई। खुली हवा में भी वीरप्पा पसीने पसीने हो गया। पूरा शरीर कांपने लगा।

वीरप्पा- राजकुमारी जी, शायद आपको कोई गलतफहमी हुई है, या वो सैनिक झूठ बोल रहा होगा, आपसे इनाम पाने के लालच में, मैं कभी इस राज्य का अहित नही कर सकता है।

राजकुमारी- वीरप्पा जी अब आप सफाई देने बन्द करें, आपके कांपते शरीर और, माथे से टपकते पशीने ने बिना कहे ही सब कुछ बयान कर दिया है। अब आप अपने लक्ष्य पर ध्यान केंद्रित करें।

वीरप्पा के जबान तालू से चिपक गई थी। कुछ बोलने के लिए था ही नहीं। दरअसल राजकुमारी को उसी दिन शक हो गया था जब वो मैदान में गिरी थी। राजकुमारी ने उस सैनिक को अकेले में बुलाया और पूछा। डर के मारे सैनिक ने सब कुछ सच बता दिया। तब राजकुमारी ने यह योजना बनाई और जानबूझकर इस स्पर्धा को दुबारा करवाया , ताकि वीरप्पा को उचित सबक दे सके। और वो भी बिना किसी को हकीकत बताये।

वीरप्पा अब लक्ष से विचलित हो गया था। यही राजकुमारी की योजना थी। छल की पोल बीच मैदान में खुलने से वीरप्पा भयभीत हो गया था। अब वो अपने लक्ष्य के बारे में नही सोच रहा था। बल्कि यह सोच रहा था को आगे क्या होगा। बिगुल बजा और दोनो यौद्धाओ ने प्रत्यंचा चढ़ाई।

सामने राजध्वज था। राजकुमारी का ध्यान लक्ष्य पर था। लेकिन वीरप्पा के मष्तिष्क में कभी वो सैनिक था तो कभी राजकुमारी और कभी राज्य का दंडविधान, । विचार से विचलित और भयभीत वीरप्पा ने जैसे ही प्रत्यंचा छोड़ी तीर अपने लक्ष्य से 4 योजन दूर मिट्टी में जाकर इस तरह गिरा जैसे हाथी के ऊपर सवारी कर रहा वीरप्पा धड़ाम से गिर गया हो और हड्डी की जगह अब वीरप्पा का भविष्य टूट गया।

दूसरी तरफ चन्द्रावती का तीर सटीक निशाने पर लगा और प्रजा ने करतल ध्वनि की। उधर राजा और रानी भी खड़े होकर करतल ध्वनि कर रहे थे। चक्रधर और विशंभर तो जैसे नाचने ही लगे थे। अपनी हार से ज्यादा सजा से भयभीत वीरप्पा बिना स्पर्धा पूरी किये ही, मैदान से भागने लगा। लेकिन अनुभवी चक्रधर के सैनिक जाल को भेद नही सका और पकड़ा गया। बिना बताए ही अब समस्त प्रजा और राजदरबार के सभी लोग समझ गए थे कि आखिर उस दिन स्पर्धा में राजकुमारी के साथ क्या हुआ था।अगले दिन राज दरबार लगा। जैसा की सभी को विदित ही था कि वीरप्पा को आज सजा मिलनी है, राज्य का ढंडविधान बहुत सख्त था। वीरप्पा भी पूरी रात भर कैदखाने में सो नही पाया। कहाँ राज्य का सेनापति बना था और कहां अब यह नौबत आ गई थी की पता नही अगले ही पल मौत की सजा सुना दी जाए। लेकिन राजकुमारी के मष्तिष्क में कुछ और ही था। राजकुमारी चाहती तो बिना स्पर्धा के भी वीरप्पा को सजा दिलवा सकती थी, लेकिन उनकी सोच किसी को दंडित करना नही बल्कि कुत्सित मानसिकता को दूर करने की थी। इसीलिए राजकुमारी अपनी योजना के अनुसार वीरप्पा को हराना ही चाहती थी। लेकिन भयभीत वीरप्पा के विचार अवरुद्ध हो गए और मैदान छोड़कर भाग गया। जिससे अब चक्रधर को भान हो गया कि जरूर वीरप्पा ने उस दिन छल किया था।

दरबार लगा, सिंहाशन पर विराजमान राजा, रानी एयर अन्य मंत्री, एक तरफ चक्रधर फैसले का इंतजार कर रहा था। लेकिन सब राजकुमारी की प्रतीक्षा कर रहे थे। राजकुमारी दरबार मे परेश करती है तो सब खड़े हो गए, क्योंकि शर्त के अनुरूप अब राजकुमारी मुख्य सेनापति थी। राजकुमारी ने इसारे से सबको बैठाया।

दरबान ने आवाज लगाई ,,, कार्यवाही शुरू की जाए।।।

दो सैनिकों ने हथकड़ी लगाए हुए वीरप्पा को दराबर में पेश किया। उसे देखकर चक्रधर की आंखों में गुस्सा चढ़ गया। लेकिन राजकुमारी शांत होकर मुस्कुरा रही थी।

राजा- कहो मन्त्रिवर वीरप्पा का दोष और सजा दरबार को बताओ।

मंत्री- महाराज स्पर्धा की शर्त के अनुसार हारने वाले को एक वर्ष का अज्ञातवास दिया जाए। और वीरप्पा राजकुमारी से मैदान में हारने से पहले ही भाग खड़ा हुआ था। स्पर्धा का नियम तोड़ने के लिए वीरप्पा को एक वर्ष का कठोर कारावास भी दिया जाए।

चक्रधर- लेकिन महाराज,, इस बात का भी तो पता चले कि आखिर वीरप्पा जैसा यौद्धा मैदान छोड़कर क्यों भागा। यकीनन मुझे तो कुछ और ही कारण नजर आ रहा है।

राजकुमारी- आपकी शंका उचित है महोदय, लेकिन मुझे कोई अन्य कारण नजर नही आता है। मुझे लगता है कि वीरप्पा अपनी हार से डर गया और डर से उन्होंने मैदान छोड़ा। क्यों ! वीरप्पा,, आप कुछ कहोगे इस बारे में।

वीरप्पा- सही है राजकुमारी जी, मैदान में आपके तेवर से और राज्य की प्रजा जिस तरह आपका समर्थन कर रही थी, तो मैं भयभीत हो गया था।हालांकि मुझे पता है कि एक सेनापति का मैदान छोड़कर भागना राज्य का सबसे बड़ा जुर्म होता है। जिसकी सजा का मैं हकदार हु। बाकी आपकी रजा।

वीरप्पा के जवाब से राजकुमारी मन ही मन मुस्कुराई, लेकिन चक्रधर संतुष्ट नही हुए।

चक्रधर- लेकिन यह बात नही हो सकती, महाराज मुझे नही लगता कि वीरप्पा भयभीत हो सकता है। मुझे कतई शंका नही है उनके शौर्य पर। बात कुछ और है।

राजकुमारी- महोदया व्यर्थ की शंका ना करे। वीरप्पा सही कह रहे है। इतने बड़े जन समूह के सामने हार किसी मौत से कम नही होती है।

राजकुमारी के इस तरह बोलने से आगे कोई और नही बोला, अब सजा की बारी थी तो वो पहले से तय थी।

राजा- ठीक है। लेकिन अब, वीरप्पा की सजा क्या है राजकुमारी,, यह भी आप ही तय करें।

राजकुमारी- जी पिताश्री,,, वीरप्पा को स्पर्धा हारने की शर्त के अनुसार एक वर्ष का अज्ञातवास दिया जाता है। इसी वक्त वीरप्पा की आंखों पर पट्टी बांध दी जाए।
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