Adultery लेखक-प्रेम गुरु की सेक्सी कहानियाँ

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jay
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Re: Adultery लेखक-प्रेम गुरु की सेक्सी कहानियाँ

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होटल लौटते-लौटते 7 बज गए थे। दिन में 2-3 बार नताशा का फोन भी आया था पर उसे सॉरी बोलना पड़ा कि मैं आज जल्दी नहीं आ सकूंगा।
उसने कल (सन्डे) के प्रोग्राम के बारे में पूछा तो मुझे उसके प्रस्ताव के लिए मना ही करना पड़ा। मैंने उसे समझाया कि मैं अभी होटल में 3-4 दिन और रुकुंगा तो हम लोग आराम से यहाँ मिल सकते हैं।

मुझे लगता है मेरी बातों से उसे निराशा तो जरूर हुई होगी पर मैं किसी प्रकार का जोखिम नहीं उठा सकता था।

फिर नताशा ने बताया कि वह कल दिन में समय मिला तो होटल आने की कोशिश करेगी।

अगले दिन सन्डे था तो मैं थोड़ा देरी से उठा।
10 बज गए थे मैं नहाकर तैयार हो गया था और चाय पी चुका था। मैं सोच रहा था आज दिन में थोड़ी देर बंगलुरु के दर्शनीय स्थल का भ्रमण ही कर लिया जाए।

साली नताशा ने तो आज फोन ही नहीं किया, कहीं नाराज़ तो नहीं हो गई है।
एक बार तो मैंने उसे फोन करने की सोची पर बाद में मैंने अपना इरादा बदल लिया।

कोई 4 बजे का समय रहा होगा। नताशा का फोन आया।
“क्या कर रहे हो जानू?”
“बस तुम्हें ही याद कर रहा था.”
“चल … झूठे कहीं के.”
“क्यों?”
“इतनी याद आ रही थी तो फिर आये क्यों नहीं?”
“वो.. यार … दरअसल मैं …”

“अच्छा सुनो!” उसने मेरी बात को बीच में ही काटते हुए कहा।
“हाँ बोलो डिअर?”
“वो मेरी कजिन है ना?”
“हाँ … उसे क्या हुआ?”
“अरे … उनकी फॅमिली में किसी दूर के रिश्तेदार की डेथ हो गई थी तो आज वो सभी वहाँ जाने वाले हैं और रात को वहीं रुकेंगे। उन्होंने तो मुझे भी साथ चलने का बोला था पर मैंने मना कर दिया।”

“ओह … सो सैड … डेथ कैसे हो गई? कितनी एज थी?”
“ओहो … छोड़ो ना यह सब!”
“क्या मतलब?”
“अरे यार … किस्मत ने इतना सुनहरा मौक़ा हम दोनों को दे दिया है. और तुम फालतू बातों में लगे हो. तुम फटाफट यहाँ चले आओ.”

एक बार तो मुझे अपनी किस्मत पर यकीन ही नहीं हुआ। साली यह किस्मत तो हर समय लौड़े लगाने को तैयार रहती है आज इस कदर मेहरबान हो रही है मैंने तो ख्वाब में भी नहीं सोचा था। फिर नताशा ने मुझे अपनी कजिन का पता बताया।

मैंने मार्किट से एक बुके और मिठाई का पैकेट ले लिया। मैं सोच रहा था उसके लिए कोई गिफ्ट भी ले लूं पर मुझे कुछ समझ ही नहीं आ रहा था कि उसके लिए क्या लिया जाए जिसे पाकर वो ख़ुशी से झूम उठे।
जब कुछ समझ नहीं आया तो मैंने निश्चय किया कि कल उसको साथ लेकर उसके मनपसंद की कोई बढ़िया गिफ्ट खरीदकर उसे दे दूंगा।

और फिर जब मैं नताशा के बताये एड्रेस पर पहुंचा तब तक 7 बज चुके थे। थोड़ा धुंधलका सा हो रहा था। मैंने उसके फ्लैट के पास पहुँच कर उसे फोन पर अपने पहुँचने के बारे में बताया तो वह मुझे लेने के लिए नीचे आ गई।

उसने बालों की चोटियाँ बना रखी थी और काले रंग की पतली सी पजामे और लंबा सा कुर्ता पहन रखा था जिसमें अन्दर की तरफ ब्लाउज था और बाहर से खुला हुआ सा था। बलाउज और पजामे के बीच में उसका पतला सा पेट और नाभि का गोल और गहरा छेद नज़र आ रहा था। जिस प्रकार उसकी पजामी उसकी जाँघों पर कसी हुयी लग रही थी मुझे मुझे लगता है आज उसने अन्दर पैंटी और ब्रा नहीं पहनी है।

हम दोनों चुपचाप फ्लैट में आ गए। मैंने आप पास नज़र दौड़ाई कहीं कोई देख तो नहीं रहा। वैसे बड़े शहरों की एक तो अच्छी बात होती है कि किसी को दूसरे के बारे में कोई ज्यादा चिंता नहीं होती।
अन्दर आकर नताशा ने गेट बंद कर लिया।

मैंने अपने हाथों में पकड़ा बुके और मिठाई का डिब्बा उसे पकड़ा दिया।
नताशा ने ‘थैंक यू’ बोलते हुए उसे हॉल में रखी मेज पर रख दिया और फिर दौड़ कर मेरे सीने से लग गई।

उसने अपनी बांहें मेरे गले में डाल दी और मेरे होंठों को चूमने लगी। मैंने उसे अपनी बांहों में भर लिया और उसकी कमर और नितम्बों पर हाथ फिराना चालू कर दिया। अब तो मेरी अंगुलियाँ आराम से उसकी गांड और चूत की गर्माहट महसूस कर सकती थी।

जैसे ही मेरे हाथ उसके नितम्बों की खाई में सरकने लगे वह अपने पंजों के बल होकर मेरे गले में झूलने सी लगी।

मैंने अब अपने दोनों हाथों से उसकी कमर को पकड़ लिया उसे ऊपर उठाने की कोशिश करने लगा। वह थोड़ा सा उछली और फिर उसने अपनी दोनों टांगें मेरी कमर के गिर्द डाल कर कस ली।
हे भगवान्! आज तो नताशा किसी स्कूल गोइंग किशोरी की तरह चुलबुली सी हो रही थी।

मेरे पुराने पाठक, पाठिकाओं को जरूर याद होगा एक बार मिक्की (याद करें तीन चुम्बन) ने ऐसे ही उछलकर मेरी कमर के गिर्द अपनी मखमली टांगें मेरी कमर में कस ली थी।

फिर उसने मुझे बेडरूम की ओर चलने का इशारा किया। मैं उसे बांहों में लिए बेड रूम में आ गया। ट्यूब लाईट की दूधिया रोशनी पूरे कमरे में फैली हुयी थी। डबल बेड पर सुनहरे रंग की नई चादर बिछी हुयी थी. उस पर गुलाब और मोगरे की पत्तियाँ बिखरी हुयी थी। शायद बढ़िया रूम फ्रेशनर भी किया हुआ था।

अब मैंने उसे बेड पर लिटा दिया और मैं उसके ऊपर आ गया। उसकी जांघें अब भी मेरी कमर के बीच लिपटी हुई थी। मैंने उसके गालों और होंठों पर चुम्बन लेने शुरू कर दिए।

नताशा की मीठी सीत्कारें कमरे में गूंजने लगी थी। कभी वह मेरे मुंह में अपने जीभ डाल देती तो मैं चूसने लगता और कभी मैं अपनी जीभ उसके मुंह में डाल देता तो वह किसी लोलीपोप की तरह उसे चूसने लगती।

मेरा लंड तो किसी लोहे की सलाख की तरह सख्त हो गया था और उसकी चूत के ऊपर ठोकर सी मारने लगा था।

“प्रेम …”
“हाँ जानेमन?”
“कल पता है मैं तो सारी रात तुम्हारे ही ख्यालों में खोई रही और बस तुम्हें ही याद करती रही.”
“हम्म.”

“पता है मेरा मन कर रहा था.”
“क्या?”
“कि एक पूरी रात तुम्हारे आगोश में बिताऊँ.”
“हाँ जान तुम्हारी यह तमन्ना तो आज पूरी होने वाली है। आओ तुम्हारी तमन्ना पूरी कर दूं.”
और फिर हम दोनों ने अपने कपड़े और जूते निकाल फेंके।

हे भगवान्! उसका गदराया हुआ सा बदन देखकर तो लगता है यह नताशा तो पूरी बोतल का नशा है। पतली कमर और गदराया हुआ सा नाभि के नीचे का भाग, सुतवां जांघें और मोटे कसे हुए नितम्ब उफ्फ्फ … इस फित्नाकार मुजसम्मे को कहर कहूं, बला कहूं, क़यामत कहूं या फिर खुदा का करिश्मा कहूं कुछ समझ ही नहीं आ रहा।

उसे देखकर मेरा लंड तो किसी घोड़े की तरह हिनहिनाने लगा था। नताशा ने उसे अपने हाथों में पकड़ लिया और मसलना चालू कर दिया।
फिर उसने बेड की साइड टेबल पर रखी क्रीम निकाली और मेरे लंड पर लगाने लगी।

उसकी नाज़ुक अँगुलियों का अहसास पाते ही मेरा लंड बेकाबू होकर उछलने ही लगा था। अब मैंने उसके हाथों से वह क्रीम की डिब्बी लेकर उसे लेट जाने का इशारा किया।

नताशा तो शायद इसी के इंतज़ार में थी। उसने अपनी जांघें चौड़ी कर दी। मोटे-मोटे पपोटों वाली चूत तो आज ऐसे लग रही थी जैसे कोई खिला हुआ गुलाब हो।
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(एक बार ऊपर आ जाईए न भैया )..(परिवार में हवस और कामना की कामशक्ति )..(लेखक-प्रेम गुरु की सेक्सी कहानियाँ running)..(कांता की कामपिपासा running).. (वक्त का तमाशा running).. (बहन का दर्द Complete )..
( आखिर वो दिन आ ही गया Complete )...(ज़िन्दगी एक सफ़र है बेगाना complete)..(ज़िद (जो चाहा वो पाया) complete)..(दास्तान ए चुदाई (माँ बेटी बेटा और किरायेदार ) complete) .. (एक राजा और चार रानियाँ complete)..(माया complete...)--(तवायफ़ complete)..(मेरी सेक्सी बहनेंcompleet) ..(दोस्त की माँ नशीली बहन छबीली compleet)..(माँ का आँचल और बहन की लाज़ compleet)..(दीवानगी compleet..(मेरी बर्बादी या आबादी (?) की ओर पहला कदमcompleet) ...(मेले के रंग सास,बहू और ननद के संग).


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(फैमिली में मोहब्बत और सेक्स (complet))........(कोई तो रोक लो)......(अमन विला-एक सेक्सी दुनियाँ)............. (ननद की ट्रैनिंग compleet)..............( सियासत और साजिश)..........(सोलहवां सावन)...........(जोरू का गुलाम या जे के जी).........(मेरा प्यार मेरी सौतेली माँ और बेहन)........(कैसे भड़की मेरे जिस्म की प्यास)........(काले जादू की दुनिया)....................(वो शाम कुछ अजीब थी)
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Re: Adultery लेखक-प्रेम गुरु की सेक्सी कहानियाँ

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मेरी अंगुलियाँ तो उन पंखुड़ियों की नाज़ुकी महसूस करके जैसे निहाल ही हो गई थी। मैंने पहले तो उसकी चूत पर हाथ फिराया और फिर उसकी नथनिया को पकड़कर होले से खींचकर दबाया तो उसकी एक मीठी किलकारी निकल गई।

अब मैंने उसकी चूत की फांकों को चौड़ा किया। गहरी लाल चुकंदर सी चूत के पपोटे खुलकर गुलाब का फूल सा नज़र आने लगा तो मैंने अपने होंठ उसपर लगा दिए। पहले तो अपनी जीभ उन पर फिराई और बाद में उसकी मदनमणि को उस सोने की रिंग समेत अपने मुंह में भर कर चूसने लगा।

नताशा के ऊपर तो जैसे नशे का खुमार सा चढ़ने लगा था। मैंने जैसे ही उसके दाने पर अपने दांत गड़ाए उसकी एक हल्की सी आह निकल गई. उसने अपनी जांघें मेरे सर के चारों ओर लपेट ली और मेरे सर के बालों को अपने हाथ में पकड़ किया।

“आआईईई ईईईई … प्रेम … आह …”

मैं 4-5 चुस्की लगाकर हट गया और फिर उसकी चूत पर थोड़ी क्रीम लगा दी। बाद में अपनी एक अंगुली उसके छेद में डालते हुए अन्दर भी क्रीम लगा दी। नताशा के पूरे शरीर में एक सिहरन सी दौड़ गई।

“ईईईस्स स्स्स” उसने मेरा हाथ हटाने की एक नाकाम सी कोशिश तो जरूर की पर ज्यादा विरोध नहीं किया।

मैंने 3-4 बार अपनी अंगुली को अन्दर-बाहर किया। अब मैं उसके ऊपर आ गया और अपने लंड को उसकी मक्खन सी मुलायम चूत के चीरे पर घिसने लगा।

“आह … प्लीज जल्दी करो … आह …”

अब देरी करना ठीक नहीं था। मैंने एक ही झटके में अपना पूरा लंड उसकी रसीली चूत में घोंप दिया। नताशा के मुंह से हुच्च की सी आवाज निकली और फिर एक मीठी किलकारी निकल गई।
“उईईईई माआआआ …”

अब मैंने उसकी चूत पर अपने लंड को घिसते हुए धक्के लगाने शुरू कर दिए। जैसे ही मेरा लंड उसकी मदनमणि में पहनी सोने की बाली (रिंग) से रगड़ खाता तो नताशा की एक मीठी चीख सी निकालने लगती।

मैंने उसके उरोजों को भी मसलना और चूसना शुरू कर दिया था। बीच बीच में उसकी फुनगियों को भी अपने दांतों से काटना जारी रखा।

नताशा तो अगले 3-4 मिनट में ही एक बार झड़ गई। और उसने अपना शरीर ढीला छोड़ दिया।

मुझे लगा इस कबूतरी को अगर मोरनी बना कर ठोका जाए तो यह इस चुदाई को अगले कई दिनों तक याद करके रोमांच में डूबी रहेगी।
“जान … आओ आज एक नया प्रयोग करते हैं.”
“क्या?”

मैं उसके ऊपर से उठ गया उए उसके दोनों पैरों को मोड़कर उसके घुटने उसकी छाती की ओर कर दिए और एक तकिया उसके नितम्बों के नीचे लगा दिया। ऐसा करने से उसके नितम्ब और भी ऊपर उठ गए। अब तो उसकी चूत किसी संतरे की फांकों की तरह चिपक सी गई थी। और गांड का छेड़ तो बहुत ही सिकुड़ा हुआ लगाने लगा था। मेरा तो मन करने लगा था अपना लंड उसकी चूत के बजाय उसकी गांड में ही डाल दूं पर अभी यह करना ठीक नहीं था।

फिर मैं अपने घुटनों के बल हो गया और अपना एक हाथ उसकी जाँघों पर रखा और दूसरे हाथ से अपने लंड को पकड़कर उसकी चूत के मुहाने पर रख दिया। अब मैंने अपना दूसरा हाथ भी उसकी जांघ पर रखा उसे दबाते हुए एक जोर का धक्का लगा दिया।
“आआईईई ईईईईइ …”

धक्का इतना जबरदस्त था कि नताशा की एक घुटी घुटी सी चीख निकल गई। आप सोच रहे होंगे यार प्रेम गुरु तुम इतने कठोर या बेदर्द कैसे हो सकते हो?

आपका सोचना सही है पर इस आसन में चूत इतनी ज्यादा टाईट हो जाती है कि लंड अन्दर डालना बहुत मुश्किल होता है। इसलिए तेज धक्का लगाना जरूरी होता है।

थोड़ी देर में नताशा संयत हो गई। मुझे लगता है जल्दी ही वह मेरे धक्कों के साथ भी अभ्यस्त हो जायेगी। नताशा ने अपने पंजे अपने दोनों हाथों में पकड़ लिए और मैंने उसकी जाँघों पर अपनी हथेलियाँ लगाते हुए धक्के लगाने शुरू कर दिए। मेरा लंड उसकी फांकों और कलिकाओं को रगड़ता हुआ अन्दर बाहर होने लगा।

अभी मैंने 5-4 धक्के ही लगाए थे कि मुझे लगा मेरे लंड के चारों ओर कोई चिकना सा तरल पदार्थ लगाने लगा है।
हे भगवान्! इस नताशा की चूत भी कितना शहद छोड़ती है।

नताशा ने अपने घुटने थोड़े से मोड़ दिए तो उसकी टांगें ऐसे लगाने लगी जैसे कोई गोल घेरा सा बन गया हो।
अब तो मेरे धक्कों के साथ उसकी मीठी किलकारियां निकलने लगी थी- प्रेम मैं तो तुम्हारे बिना अधूरी ही थी सच में आज तुमने मुझे पूर्ण स्त्री बनाने का अहसास दिलाया है.
“हाँ जानेमन मैं भी तुम्हें पाकर धन्य हो गया!”

अब मैंने और भी जोर से धक्के लगाने शुरू कर दिए थे। मेरा पूरा लंड उसकी चूत में फंसा हुआ था। जैसे ही मैं धक्का लगाता मेरे अंडकोष उसकी गांड के छेद पर लगते तो रोमांच के मारे नताशा का पूरा शरीर ही लरजने लगता। उसकी चूत के मोटे मोटे पपोटों के बीच की पत्तियाँ भी मेरे लंड के घर्षण से और भी ज्यादा फूल गई थी और लंड के साथ थोड़ी अन्दर बाहर होने लगी थी।

नताशा के मुंह से गुर्र … गुरर्र … की आवाजें आने लगी थी। वह अपनी चूत का संकोचन करने का प्रयास भी कर रही थी. पर मेरे धक्कों की तब को सहन करना अब उसकी चूत और फांकों के वश में नहीं था।
उसका शरीर एक बार फिर से अकड़ा और फिर उसने अपने आप को ढीला सा छोड़ दिया। मुझे लगता है उसका एक बार फिर से स्खलन हो गया है।

हमें कोई 10-15 मिनट हो गए थे। नताशा इस दौरान 2 बार झड़ चुकी थी। मुझे लगा वह इस लम्बी मैराथन से थक गई है तो मैंने उसके पैरों को नीचे कर दिया और अब मैं उसके ऊपर आ गया। अब तो नताशा फिर से अपने नितम्बों को ऊपर-नीचे करने लग गई थी।

“प्रेम … आह … अब अपना प्रेम रस बरसा दो … आह …”

और फिर मैंने अपना एक हाथ उसकी गर्दन के नीचे लगाया और दूसरे हाथ से उसकी कमर को पकड़कर 5-4 धक्के लगाए तो मेरे लंड भी पिचकारियाँ छोड़नी शुरू कर दी।
नताशा तो आह … ऊंह करती उस अनंत आनंद को भोगती रही।
जैसे बरसों की बंजर रेतीली भूमि को बारिश की फुहार मिल जाए! उसकी चूत तो संकोचन करती रही और मेरे वीर्य को पूरा अन्दर समेटती चली गई।

थोड़ी देर मैं उसके ऊपर ही पसरा रहा और उसके होंठों और गालों को चूमता रहा. नताशा तो शांत पड़ी बस लम्बी-लम्बी साँसें लेती रही। थोड़ी देर बाद मैं उसके ऊपर से उठ गया और उसकी बगल में ही लेट गया।
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नताशा ने भी करवट लेकर अपना मुंह मेरी ओर कर लिया और मेरे सीने से अपना सर लगा दिया। मैंने अपने हाथ उसके सर और पीठ पर फिराने चालू कर दिए।

“प्रेम!”
“हाँ जानेमन?”
“पता है मेरा मन क्या करता है?”
“क्या?”
“मैं पूरी रात इसी तरह तुम्हारे सीने से लग कर तुम्हारे आगोश में बिताना चाहती हूँ।“
“हम्म!”

“और जब सुबह मेरी आँखें खुले तो सबसे पहले मैं तुम्हारे होंठों का चुम्बन लेकर तुम्हें जगाऊँ.”
“हम्म.”
“मैं चाहती हूँ हम दोनों साथ नहायें और फिर मैं किचन में नंगी होकर ही तुम्हारे लिए नाश्ता और खाना बनाऊँ और तुम भी उस समय बिना कोई कपड़ा पहने मेरे पास ही खड़े रहो.”
“हा हा हा … यह कौन सी बड़ी बात है यह तो तुम जब चाहो कर सकती हो.”

“ओहो … कल तो वो सब आ जायेंगे. तो दिन में यह सब कैसे हो पायेगा?”
“यार इसमें समस्या वाली कौन सी बात है तुम चाहो तो दिन में नहीं तो रात में भी तो हम यह सब कर ही सकते हैं.”
“अरे हाँ … इस तरफ तो मेरा ध्यान ही नहीं गया.” कहते हुए वह खिलखिला आकर हंस पड़ी।

“पर एक समस्या है?”
“वो क्या?” उसने आश्चर्य से मेरी ओर देखा।
“यार तुम तो खाना बनाती रहोगी पर मैं किचन में खड़ा क्या करूंगा?”
“क्यों … तुम भी मेरी हेल्प करना.” कहते हुए उसने मेरी ओर तिरछी नज़रों से देखा।
मुझे लगा वह मुझे निरा पपलू (अनाड़ी) समझ रही है।

अब उसे क्या मालूम किचन में जब प्रियतमा नंगी होकर खाना बना रही होती है तो उसके पीछे खड़ा होकर उसे बांहों में भर कर उसके नितम्बों में अपना खडा लंड डालने में कितना मज़ा आता है मेरे से ज्यादा भला कौन जान सकता है।

प्रिय पाठको और पाठिकाओ, आप सभी तो बहुत गुणी और अनुभवी हैं. मेरे पुराने पाठक यह जानते हैं कि जब हमारी नई-नई शादी हुई थी तो मधुर भी रसोई में इसी तरह नंगी होकर खाना बनाया करती थी. शुरू-शुरू में तो उसे बहुत शर्म आती थी पर बाद में तो वह बहुत ही चुलबुली हो जाया कराती थी। और फिर कई बार तो मैं किचन में ही उसे घोड़ी बनाकर पीछे से उसकी चुदाई कर दिया करता था।

मैं तो सोचने लगा था क्यों ना उन्हीं पलों को एक बार फिर से दोहरा लिया जाए।
“ओके … ठीक है चलो आज का खाना हम दोनों मिलकर ही बनायेंगे.”
“तुम्हें अभी भूख तो नहीं लगी ना?”
“लगी तो है पर मैं चाहता हूँ पहले थोड़ा शॉवर ले लें? क्या ख्याल है?”
“हाँ चलो साथ में नहाते हैं.” अब तो नताशा की आँखों की चमक देखने लायक थी।

अब मैं बेड से उठकर खड़ा हो गया और नताशा को अपनी गोद में उठा लिया और हम दोनों बाथरूम में आ गए। मैंने नताशा को फर्श पर खड़ा कर दिया।

“आआईईइइ …”
“क्या हुआ?”
“वो मेरा सु-सु निकल रहा है …” कहते हुए वह कामोड पर बैठने लगी तो मैंने उसे रोक दिया।
“जान मेरी एक बात मानोगी क्या?”
“ओह … क्या?”
“यार इस कमोड पर नहीं फर्श पर बैठ कर सु-सु करो ना?”
“क्यों?”
“यार तुम्हारा यह अनमोल खजाना इतना खूबसूरत है तो इसमें से निकलते हुए सु-सु की पतली धार का संगीत कितना मधुर होगा तुम्हें अंदाजा ही नहीं है … प्लीज …”

नताशा ने एक बार कातिल निगाहों से मेरी ओर देखा और फिर झट से फर्श पर बैठ गई। उसने अपनी जांघें थोड़ी सी चौड़ी की और फिर कलकल करती उसकी मूत के पतली सी धार निकल कर फर्श पर दम तोड़ने लगी।

मुझे लगता है उसकी ऊंचाई तो जरूर एक फुट ऊंची रही होगी। उसकी कलिकाओं से टकराती हुई मूत की धार का संगीत तो ऐसे लग रहा था जैसे किसी ने सितार का सप्तम स्वर ही छेड़ दिया हो।
नताशा आँखें बंद किये सु-सु करती रही और मैं इस मनमोहक दृश्य को देखता ही रह गया। मेरा मन तो कर रहा था मैं नीचे बैठकर उसकी सु-सु की धार में अपनी अंगुलियाँ ही लगा दूं। पर इससे पहले कि मैं कुछ कर पाता नताशा के सु-सु की धार पहले तो मंद पड़ी और फिर एक बार हल्की सी ऊपर उठती हुयी बूंदों की शक्ल में ख़त्म हो गई।
मैं तो अपने होंठों पर जीभ ही फिराता रह गया।

उसके बाद हम दोनों ने शॉवर लिया। नताशा तो इस समय बहुत ही चुलबुली सी हो गई थी। उसने मेरे लंड को पकड़कर पहले तो उस पर साबुन लगाया और फिर उसे धोकर साफ़ किया। लंड महाराज तो उसकी इस कलाकारी को देखकर मंत्र मुग्ध ही हो गए और एक बार फिर से अंगड़ाई लेने लगे।

नताशा ने उसे मुंह में भर लिया और चूसने लगी। ऊपर ठन्डे पानी की फुहारें पड़ रही थी और नताशा किसी लोलीपॉप के तरह मेरे लंड को चूसे जा रही थी। कोई 5-6 मिनट लंड चूसने के बाद नताशा ने उसे अपने मुंह से बाहर निकाल दिया और अपना गला सहलाने लगी।

मुझे लगता है वह अभी इस मामले में अनाड़ी है पर मेरी संगत में रहकर धीरे- धीरे हुनर भी सीख जायेगी।

अब मैंने भी नताशा की चूत को साबुन लगाकर साफ़ किया और उसे अपना एक पैर कमोड पर रखकर खड़ा होने को बोला। जब नताशा मेरे कहे मुताबिक हो गई तो मैं नीचे बैठ गया और उसकी चूत को पहले तो चूमा और फिर अपनी जीभ नुकीली करके उसके चीरे पर फिराने लगा।

नताशा तो आह … ऊंह करती रह गई। अब मैंने उसकी चूत को पूरा मुंह में भर लिया और उसकी चुस्की लगानी शुरू कर दी। नताशा तो अब रोमांच के सातवें आसमान पर थी। उसकी मीठी सीत्कारें निकालने लगी थी।

“प्रे … म आह … तुम तो आह … सच में जादूगर को.. आह … मैं मर जाऊंगी … आऐईईइ …”
वह झटके से खाने लगी। मुझे लगता है उसका ओर्गास्म हो गया है। मैंने 2-3 चुस्की और लगाईं और फिर उसकी चूत से अपना मुंह अलग कर लिया। नताशा ने नीचे होकर मेरे होंठ चूम लिए।

अब नताशा शॉवर के नीचे आ गई। मैं उसके पीछे आ गया और उसकी पीठ से चिपक कर उसके उरोजों को दबाने लगा। मेरा लंड उसके नितम्बों की खाई में जा लगा। नताशा ने अपनी कमर को थोड़ा नीचे झुकाते हुए पानी की नल को पकड़ लिया और अपने नितम्ब और जांघें खोल दी।

मैंने शेल्फ पर पड़ी क्रीम की डिब्बी से क्रीम निकालकर थोड़ी तो अपने लंड पर लगाई और फिर अपना लंड उसकी चूत में डाल दिया। मुझे लगा मेरा लंड किसी खुरदरी सी कन्दरा (गुफा) में जा रहा है। शायद साबुन से धोने के कारण अन्दर की चिकनाहट थोड़ी कम हो गई थी। पर मेरे लंड को अन्दर जाने में कोई ज्यादा मुश्किल नहीं हुयी।

नताशा तो बस आह … उईई … करती रही।

मैंने उसकी कमर को पकड़ लिया और धक्के लगाने शुरू कर दिए। मेरे धक्कों से उसकी चूत से भी फच्च फच्च की आवाज निकलने लगी थी और जो उसके कन्धों और पीठ पर गिरते हुए पानी के साथ होती फच्च-फच्च की आवाज के साथ अपनी ताल मिलाने लगी थी।

अब तो नताशा भी अपने नितम्बों को थिरकाने लगी थी। मैं उसके नितम्बों पर थप्पड़ भी लगाता जा रहा था। मेरे थप्पड़ों से उसके नितम्ब लाल से नज़र आने लगे थे और नताशा तो जैसे ही थप्पड़ लगता जोर से आह … सी भरती और मस्ती में अपने नितम्बों को और जोर से मेरे धक्कों के साथ आगे पीछे करने लगती।

लगता है लैला की तरह नताशा को भी सेक्स के दौरान अपने नितम्बों पर मार खाना, दांतों से कटवाना और उरोजों को मसलवाना बहुत अच्छा लगता है। थोड़ी देर बाद नताशा कुछ ढीली सी पड़ने लगी थी। मुझे लगा वह थक गई है।

“नताशा एक नया प्रयोग करें क्या?”
“ओह … प्रेम अब और कुछ नहीं बस इसी तरह किये जाओ … आह!”
“तुम्हें और भी ज्यादा मज़ा आयेगा.” कहते हुए मैं रुक गया और धक्के लगाने बंद कर दिए।

नताशा अपनी गर्दन थोड़ी सी मोड़कर मेरी ओर देखने लगी कि मैंने धक्के क्यों बंद कर दिए।
मैंने अपना लंड बाहर निकाल लिया और फर्श पर बैठ गया। नताशा के कुछ भी समझ नहीं आया था। मेरा सुपारा तो इस समय फूल कर लाल टमाटर जैसा हो चला था और लंड तो ठुमके पर ठुमके लगा रहा था।
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Re: Adultery लेखक-प्रेम गुरु की सेक्सी कहानियाँ

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“नताशा प्लीज … आओ मेरी गोद में बैठ जाओ.”
अब नताशा को समझ आया कि मैं क्या चाहता हूँ। वह इतराते हुए मेरी ओर मुंह करके मेरी गोद में आ बैठी और उसने अपने चूत की फांकों को चौड़ा कर के मेरे लंड को अपनी चूत में गटक लिया।

मैंने अपने दोनों हाथ पीछे कर लिए और नताशा को भी ऐसा करने का इशारा किया। अब नताशा भी अपने दोनों हाथों को पीछे कर लिए। मैंने हाथ बढ़ा कर नल खोल दी और पानी की मोटी धार उसकी चूत पर गिरने लगी। मेरा लंड उसमें फंसा हुआ सा लग रहा था और उसकी चूत का ऊपरी हिस्सा कुछ फूला सा नज़र आ रहा था।

मुझे भी पानी की गिरती धार से सनसनाहट सी होने लगी थी तो लाज़मी था कि नताशा को भी बहुत मज़ा आने लगा होगा। अब उसने अपने चूत के दाने को पानी की धार के नीचे सेट कर लिया। अब तो वह वह तो रोमांच के मारे किलकारियां ही मारने लगी थी और अपने नितम्बों को उचकाने भी लगी थी और ‘आह … उईईइ … ’ भी करती जा रही थी।

थोड़ी देर में उसने अपने एक हाथ से अपनी चूत के दाने को टटोला और चूत का जोर से संकोचन किया और अपने नितम्बों को जोर जोर से उछालने लगी। मुझे लगा उसका ओर्गास्म हो गया है। उसका शरीर झटके से खाने लगा था।

अचानक वह उठ खड़ी हुई और मुझे धकेलते हुए मेरे ऊपर आ गई और अपने दोनों घुटनों को मोड़कर मेरे लंड की सवारी करने लगे। उसने अपनी चूत को मेरे लंड पर घिसते हुए धक्के लगाना शुरू कर दिया और साथ में जोर-जोर मीठी सीत्कारें करने लगी।

मैं कुछ ज्यादा नहीं कर सकता था बस अपने हाथों से उसके नितम्बों को सहलाता रहा और उसके उरोजों को भींचता और मसलता रहा। उसके धक्के इतने तेज थे कि मुझे लगाने लगा मेरा लंड अपनी सहनशक्ति जल्दी ही खो देगा।

मेरा एक हाथ उसके नितम्बों की खाई में उसकी गांड के छेद को टटोलने लगा था. और जैसे ही मुझे वह कोमल सा छेड़ अपनी अँगुलियों पर महसूस हुआ, मैंने अपनी एक अंगुली का पोर उसकी गांड के छेद में घुसाने की कोशिश की।

उसकी गांड का कोमल अहसास पाते ही मेरी उत्तेजना बहुत ज्यादा बढ़ गई थी।
नताशा का भी यही हाल था। नताशा तो अब बड़बड़ाती जा रही थी ‘आह … उईईइ … मेरे राजा … आह …’

अचानक नताशा ने नीचे होकर मेरे होंठों को जोर-जोर से चूमना शुरू कर दिया और जोर से अपनी चूत को मेरे लंड पर धकेलने सी लगी। अब तक मेरी अंगुली का एक पोर उसकी गांड के छेद में समा चुका था।

मैं भी कब तक अपने उत्तेजना को संभाल पाता मेरी पिचकारियाँ फूटने लगी और उसके साथ ही नताशा ने एक जोर के किलकारी मारी और मेरे ऊपर पसर कर लम्बी-लम्बी साँसें लेने लगी। हम दोनों का ओर्गास्म एक साथ हो गया था। हम दोनों एक दूसरे की बांहों में समाये ऐसे ही लेटे रहे और ऊपर ठन्डे पानी की फुहारें ऐसे बरसती रही जैसे सावन के मेघ बरसते हैं।

थोड़ी देर बाद हम दोनों उठ खड़े हुए। नताशा लड़खड़ाते हुए शॉवर के नीचे आ गई और फिर मैंने भी शॉवर लिया और फिर हम दोनों तौलिये से शरीर को साफ़ करके बाहर आ गए। नताशा ने कपड़े पहनने से मना कर दिया था।

“प्रेम तुम सोफे पर बैठो, मैं अभी आई.” कहकर नताशा रसोई में चली गई।
चलते समय जिस प्रकार उसके नितम्ब हिचकोले खा रहे थे आप सोच सकते हैं कि उसकी गांड मारने की मेरी कितनी प्रबल इच्छा होने लगी थी।

थोड़ी देर बाद नताशा दो गिलासों में गर्म दूध लेकर आ गई।
“लो यह केशर और बादाम इलायची डाला हुआ गर्म दूध पी लो तुम्हारी सारी थकान दूर हो जायेगी.”
“अरे थकान तो तुम्हें हो रही होगी?” मैंने हंसते हुए कहा तो नताशा किसी नवविवाहिता की तरह शर्मा गई।

“मेरे से तो ठीक से चला भी नहीं जा रहा!” उसने कामुक मुस्कान के साथ मेरी ओर देखते हुए कहा।
“सच कहूं तो मेरा तो मन ही नहीं भरा है अभी तक.”
“हट!”
“ऐ जान! मेरी गोद में बैठ जाओ ना?”
और फिर वह मनमोहक मुस्कान के साथ बड़ी अदा से मेरी गोद में आकर बैठ गई।

मेरा लंड तो उसके गोल नितम्बों के नीचे दब कर जैसे निहाल ही हुआ जा रहा था। दूध पीने के दौरान मैं उसके गालों को भी चूमता रहा और उसके उरोजों को भी मसलता रहा। नताशा को भला कोई ऐतराज कैसे हो सकता था वह तो सम्मोहित हुई बस आह … ऊंह करती रही।

“प्रेम, खाने के बारे में क्या विचार है?”
“भई जो बनाओगी खा लेंगे.”
“खाना तो मैंने पहले ही तैयार कर लिया था. दीदी और बच्चों को भी पैक करके दे दिया था और अपने लिए भी बनाकर रख दिया था। बस मैं उसे फ़टाफ़ट गर्म करके ले आती हूँ आप बैठो.” कहकर नताशा मेरी गोद से उठकर रसोई की ओर जाने का उपक्रम करने लगी।

“चलो मैं भी साथ चलता हूँ तुम खाना गर्म करना और मैं तुम्हें गर्म करता रहूंगा.”
“हट!” मेरी बात पर नताशा खिलखिलाकर हंस पड़ी।

और फिर हम दोनों किचन में आ गए। रसोई में आने के बाड़े नताशा ने फ्रिज से खाना निकाला और गर्म करने लगी। उसकी पीठ मेरी ओर थी।

मैंने पीछे से उसे अपनी बांहों में भर लिया और उसके कानों की लोब को अपने मुंह में भर कर चूसने लगा था। मैंने उसके उरोजों को भी दबाना और मसलना चालू कर दिया था और एक हाथ से उसकी बुर के दाने और उस पर पहनी बाली को भी मसलने लगा।

मेरा लंड उसके नितम्बों से चिपक गया था और उसकी नाज़ुकी और कसावट महसूस करके फिर से खड़ा हो गया था।

मैं सोच रहा था कि नताशा की गांड मारने की बात किस प्रकार शुरू की जाए। क्या पता वह इस बात के लिए तैयार भी होगी या नहीं?
आज तो प्रेमगुरु का इम्तिहान ही होने वाला है।

इस भरपूर जवान जिस्म की मल्लिका की गांड कितनी हसीन होगी यह तो मैं पिछले एक महीने से सोच-सोच कर पागल ही हुआ जा रहा था। काश एक बार उसकी मुजसम्मे की तरह तरासी हुई गांड मारने को मिल जाए तो यह मानव जीवन ही सफल हो जाए।
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(एक बार ऊपर आ जाईए न भैया )..(परिवार में हवस और कामना की कामशक्ति )..(लेखक-प्रेम गुरु की सेक्सी कहानियाँ running)..(कांता की कामपिपासा running).. (वक्त का तमाशा running).. (बहन का दर्द Complete )..
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jay
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Re: Adultery लेखक-प्रेम गुरु की सेक्सी कहानियाँ

Post by jay »

“आईईई ईईईई … क्या कर आहे हो?”
मैं नताशा की हल्की सी चीख सुनकर चौंका। अब मुझे ध्यान आया मेरा लंड पूरा खड़ा हो गया था और उसकी गांड के छेद पर दबाव बना रहा था।
“नताशा तुम्हारे नितम्ब इतने खूबसूरत हैं कि मैं तो इनका दीवाना ही हो गया हूँ।”

“जान … सब कुछ तुम्हारे हवाले कर दिया है मैंने तो!” कहते हुए नताशा घूमकर मेरी ओर हो गई और उसने अपनी बांहों मेरे गले में डाल दी।
और फिर मैंने उसे अपने बांहों में भर कर चूम लिया।

डाइनिंग टेबल पर खाना खाने की तो मात्र औपचारिकता थी। मैंने नताशा को अपनी गोद में बैठा लिया और फिर अपने हाथों से उसे खाना खिलाया।

उसकी कजिन की बेटी के जन्मदिन पर जो केक कटा था वह भी थोड़ा उसने डिनर के साथ परोसा था।

मैंने पहले तो थोड़ा केक उसे खिलाया और फिर थोड़ा सा उसके गालों और होंठों पर लगा दिया और फिर अपनी जीभ से चाटने लगा।

नताशा को तो अब नशा सा चढ़ने लगा था। फिर मैंने थोड़ा केक उसके उरोजों पर भी लगा दिया और फिर उसे पहले तो चाटा और फिर पूरे उरोज को मुंह में भर कर चूसने लगा। नताशा तो मेरी इस कारीगरी और हरकतों को देख कर मंद-मंद मुस्कुराती हुई कामुक सीत्कारें ही भरती रही।

और फिर नताशा मेरी गोद से उठकर खड़ी हो गई और उसने भी थोड़ा सा केक मेरे लंड पर लगाया और उसे अपने मुंह में भर कर चूसने लगी। जिस प्रकार वह मेरा लंड चूस रही थी मुझे लगता है उसे अभी थोड़ी ट्रेनिंग की जरूरत है बाद में तो वह इस क्रिया में भी सिद्धहस्त और पारंगत हो ही जायेगी।

मेरा मन तो करने लगा था एक बार उसके मुख श्री का भी अभिषेक और उद्धार अपने वीर्य से कर दूं पर मेरा मन तो उसकी गांड के पीछे जैसे पागल हुआ जा रहा था।

डिनर निपटाने के बाद हम फिर से रूम में आ गए और हम दोनों एक दूसरे की ओर करवट लेकर लेट गए।

मैंने उसके होंठों को मुंह में भर लिया और चूमने लगा और अपने हाथों से उसकी पीठ और कमर को सहलाना शुरू कर दिया और धीरे-धीरे उसके नितम्बों पर भी हाथ फिराना चालू कर दिया।

उसने मेरे सीने से अपना सर लगा रखा था और मेरे सीने पर उगे बालों में अंगुलियाँ फिराने लगी थी और मेरे निपल्स को भी हाथों से दबा रही थी। वह इस समय कुछ बोल नहीं रही थी, पता नहीं वह क्या सोचे जा रही थी।

मेरे दिलो दिमाग में तो बस उसके खूबसूरत नितम्ब ही घूम रहे थे। मुझे लगता है अब उसके नितम्बों का उदघाटन करने का उपयुक्त समय आ गया है।

“नताशा?”
“हम्म?”
“क्या सोच रही हो?”
“कुछ नहीं!” उसने चौंक कर जवाब दिया।
“जान कोई बात तो है?”
“वो … वो मैं यह सोच रही थी काश! मेरी शादी तुम्हारे साथ हो जाती.”

इससे पहले कि मैं कुछ बोलता नताशा के मोबाइल की घंटी बजने लगी।
लग गए लौड़े!!
पता नहीं किसका फोन है? क्या पता उसकी कजिन वापस ना आ रही हो? हे लिंग देव! अब तो बस तुम्हारा ही सहारा है।

नताशा ने करवट बदलकर अपना मोबाइल उठाया और बात करने लगी। अब उसके नितम्ब मेरी ओर हो गए थे। मैं चुपके से उसके पीछे होकर उसके नितम्बों को अपने पेट से लगा लिया और उसके पेट और उरोज को सहलाने लगा।

“हेल्लो दीदी!”
“ …”
“हाँ मैं ठीक हूँ.”
“ …”
“हाँ आया था … आज भी दो बार बात हुई है. उनका तो मेरे बिना मन ही नहीं लग रहा. वो तो बोलते हैं मैं मिलने आ जाऊं क्या?”
“ …”
मुझे लगता है नताशा उस लटूरे को यहाँ बुलाने की भूमिका (बेकग्राउंड) बना रही है। मैंने अपना हाथ उसकी जाँघों के बीच फिराते हुए उसकी चूत के छेद में अपनी अंगुली डाल दी।
नताशा के एक हल्की चीख सी निकल गई।
“ …”
“ओह … कुछ नहीं एक मच्छर ने काट लिया.”
“ …”
“हाँ ठीक है.”
“ …”
“ना … डर वाली क्या बात है? मैं भरतपुर में भी कई बार फ्लैट पर अकेली ही रहती हूँ.”
“ …”
“हाँ .. हाँ मैं ध्यान रखूंगी.”
“ …”
“ठीक है … कितने बजे तक पहुंचेंगे?”
“ …”
“ओके गुड नाईट दीदी.”

नताशा ने लम्बी बात नहीं की और ‘गुड नाईट’ फोन काट दिया।
“वो दीदी का फ़ोन था.”
“हम्म … क्या बोल रही थी?”
“अरे यही कि मुझे अकेली को डर तो नहीं लग रहा … गुलफाम से बात हुई क्या … ये … वो …”

“वो वापस कब तक आयेंगे?”
“यहाँ से 3 घंटे की ड्राइव हैं अगर सुबह 8-9 बजे वहाँ से निकलेंगे तो 1 बजे से पहले तो नहीं आ पायेंगे.”
“गुड … तब तक तो हम कई राउंड खेल लेंगे.” मैंने हंसते हुए कहा और फिर अपना खड़ा लंड उसके नितम्बों की खाई में लगा दिया।
मैंने उसके उरोजों को भी मसलना चालू रखा।

उसने अपना मोबाइल फोन स्विच ऑफ कर दिया था। और जैसे दूध का जला छाछ भी फूंक फूंक कर पीता है मैंने तो पहले ही अपना मोबाइल स्विच ऑफ कर दिया था। मैं नहीं चाहता था कोई इन अन्तरंग पलों में नाहक खलल (डिस्टर्ब) डाले।

“प्रेम! तुमने तो बताया ही नहीं?”
“क्या?”
“यही कि अगर तुम्हारी शादी मेरे साथ हुई होती तो क्या होता?”

अब मैं सोच रहा था नताशा जैसी खूबसूरत लड़कियां हमबिस्तरी (सम्भोग) के दौरान बहुत ही रोमांटिक होती हैं पर उन्हें अपनी खूबसूरती पर बहुत नाज़ (गर्व) भी होता है। ये अपने पति या प्रेमी पर अहसान बहुत अधिक जताती हैं. अक्सर उन्हें दब्बू किस्म का पति पसंद होता है जो केवल उसकी हाँ में हाँ मिलाये और हर समय उसकी आगे पीछे घूमता ही रहे, जैसा वह बोले बस करता जाए।
ऐसी औरतों का घर गृहस्थी में कम ही मन लगता है. और सारे दिन बनाव श्रृंगार, गपसप्प और शोपिंग में ही बिताना पसंद करती हैं।

सच कहूं तो ऐसी लड़कियां बहुत ही आलसी और अपने करियर और फॅमिली के प्रति लापरवाह भी होती हैं। ऐसी औरतों का दाम्पत्य जीवन क्लेशपूर्ण ही होता है। इनका मन कभी भी एक आदमी से संतुष्ट नहीं होता और विवाहेत्तर सम्बन्ध बनाने में भी संकोच नहीं करती।
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