सलीम जावेद की रंगीन दुनियाँ

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jay
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चौधराइन
भाग 21 – नया चस्का 2


ग़ोपाल चुपचाप खड़ा था। उससे मदन ने दूसरा पैर दबाने के लिये कहा लेकिन वो खड़ा ही रहा।
"अरे ग़ोपाल, तुम खड़े हो क्यों, दूसरा पांव दबाते क्यों नहीं चलो दबाओ !" चौधराइन माया देवी ने जब अपनी सधी आवाज में आदेश दिया तो गोपाल दूसरे पांव को दबाने लगा। चौधराइन ने मदन को मुस्कुरा के आंख मारी।
" चौधराइन चाची, कहाँ कहाँ दर्द कर रहा है?"
"अरे पूछ मत बेटा, पावों में कमर के नीचे और छाती में दर्द है, खूब जोर से दबाओ।"
चौधराइन ने खुल कर जाँघों, चूतड़ों और बड़ी बड़ी चूचियाँ दबाने का निमंत्रण दे दिया था। मदन पाँव से लेकर कमर तक मसल मसल कर मजा ले रहा था जब कि गोपाल सिर्फ घुटनों तक ही दबा रहा था। मदन ने गोपाल का हाथ पकड़ा और चौधराइन की जांघों के ऊपर सहलाया और कहा कि तुम भी नीचे से ऊपर तक दबाओ। वो हिचका लेकिन मुझे देख देख कर वो भी मायादेवी की शानदार सुडोल गुदाज जांघों लम्बी लम्बी टांगों को नीचे से ऊपर तक मसलने लगा।
2-3 मिनट तक इस तरह से मजा लेने के बाद मदन ने कहा,"चाची साड़ी उतार दें...तो और आसानी होगी..."
"अच्छा, बेटा,..."
"गोपाल, साड़ी खोल दे।" चौधराइन का आदेश गूँजा।
उसने चौधराइन की ओर देखा लेकिन साड़ी खोलने के लिये हाथ आगे नहीं बढ़ाया।
"गोपाल, शरमाते क्यों हो, तुमने तो कई बार अपनी भाभी को नंगी चुदवाते देखा है...यहां तो सिर्फ साड़ी उतारनी है, चल खोल दे।" और चौधराइन ने का गोपाल का हाथ पकड़ कर साड़ी की गांठ पर रखा। उसने शरमाते हुये गांठ खोली और मदन ने साड़ी चौधराइन के बदन से अलग कर दी। काले रंग के ब्लाऊज़ और साया में गजब की माल लग रही थी।
गोपाल को अपनी तरफ़ देखते देख चौधराइन मुस्कुराई, “क्या देख रहा है गोपाल?
"मालकिन, आप बहुत सुन्दर हैं..." अचानक गोपाल ने कहा और प्यार से जांघों को सहलाया।
"तू भी बहुत प्यारा है.." माया ने जबाब दिया और हौले से साया को अपनी घुटनों से ऊपर खींच लिया।
चौधराइन के सुडौल पैर और पिंडली किसी भी मर्द को गर्म करने के लिये काफी थे। वो दोनों पैर दबा रहे थे लेकिन उनकी नजर चौधराइन की मस्त, बड़ी बड़ी मांसल चूचियों पर थी। लग रहा था जैसे कि चूचियां ब्लाऊज़ को फाड़ कर बाहर निकल जायेंगी।
मदन का मन कर रहा था कि फटाफट चौधराइन को नंगा कर चूत मे लण्ड पेल दे। लण्ड भी चोदने के लिये तैयार हो चुका था। और इस बार घुटनों के ऊपर हाथ बढा कर मदन ने हाथ साया के अन्दर घुसेड़ दिया और मखमली जांघों को सहलाते हुये चूत पर हाथ रखा।
फ़ूली हुई खूब बड़ी सी करीब बित्ते भर की मुलायम चिकनी चूत। अच्छा तो चौधराइन ने झाँटे साफ़ कर दीं थीं। मदन से रहा नहीं गया मसल दिया।
एक नहीं, दो नहीं, कई बार लेकिन चौधराइन ने एक बार भी मना नहीं किया।
मदन ने महसूस किया सहलाने से उत्तेजित हो उनकी पुत्तियाँ उभर आयीं और चूत पानी छोड़ने लगी
चौधराइन साया पहने थी और चूत दिखाई नहीं पड़ रही थी। साया ऊपर नाभी तक बंधा हुआ था। मदन उनकी चिकनी की हुई चूत को देखना चाहता था। एक दो बार चूत को फिर से मसला और हाथ बाहर निकाल लिया।
" चौधराइन चाची, साया बहुत कसा बंधा हुआ है, थोड़ा ढीला कर लो.. "
मदन ने देखा कि गोपाल अब आराम से मायादेवी की जांघों को सहला मसल रहा था। गोपाल से कहा कि वो साये का नाड़ा खोल दे। तीन चार बार बोलने के बाद भी उसने नाड़ा नहीं खोला तो मदन ने ही नाड़ा खींच दिया और साया ऊपर से ढीला हो गया।
मदन पांव दबाना छोड़कर चौधराइन की कमर के पास आकर बैठ गया और साये को नीचे की तरफ ठेला। पहले तो उसका चिकना पेट दिखाई दिया और फिर नाभि। मदन ने कुछ पल तो नाभि को सहलाया और साया को और नीचे की ओर ठेला।
अब उसकी कमर और चूत के ऊपर का फ़ूला हुआ भाग दिखाई पड़ने लगा। अगर एक इंच और नीचे करता तो चूत दिखने लगती।
"आह बेटा, छाती में बहुत दर्द है.." माया ने धीरे से कहा । साया को वैसा ही छोड़कर मदनने अपने दोनों हाथ चौधराइन के मस्त और गुदाज लंगड़ा आमों (चूचियों) पर रखे और दबाया। गोपाल के दोनों हाथ अब सिर्फ जांघो के ऊपरी हिस्से पर चल रहा था और वो आंखे फाड़ कर देख रहा था कि ये लड़का कैसे चौधराइन की चूचियां दबा रहा है।
" चौधराइन चाची, ब्लाउज खोल दो तो और आसानी होगी" मदन ने दबाते हुए कहा।
"तो खोल दे न " उसने जबाब दिया और मदन ने झटपट ब्लाउज के सारे बटन खोल डाले और ब्लाउज और ब्रा को चौधराइन की चूचियों से अलग कर दिया।
ब्रा हटते ही लेटी हुई चौधराइन के नुकीले मस्त और गुदाज लंगड़ा आम अपने भार से गोल हो, बड़े बड़े खरबूजों में बदल गये, देख कर मदन झनझना गया और जम कर उन्हें दबाने मसलने लगा और ग़ोपाल से कहा,
"कितनी ठोस है, लगता है जैसे गेंद में किसी ने कस कर हवा भर दी है।" फ़िर घुन्डी को मसल के बोला " क्यों गोपाल कैसा लग रहा है?" मदन जोर जोर से चूचियों को दबा रहा था।
अचानक मदन ने देखा कि गोपाल का एक हाथ चौधराइन की दोनों जांघों के बीच साया के ऊपर घूम रहा है। मदन ने एक हाथ से चूची दबाते हुए गोपाल का वो हाथ पकड़ा और उसे चौधराइन की नाभि के ऊपर रख कर दबाया।
"देख, चिकना है कि नहीं?" ये कह मदन उसके हाथ को दोनों जांघों के बीच चूत की तरफ धकेलने लगा। अचानक मदन चौधराइन के ऊपर झुका और घुन्डी को चूसने लगा।
तभी चौधराइन ने फुसफुसाकर मदन के कान में कहा, "बेटा, तू थोड़ी देर के लिये बाहर जा और देख कोई इधर ना आये.."
मदन ने निपल चूसते चूसते गोपाल के हाथ के ऊपर अपना हाथ रख कर साया के अन्दर ठेला और गोपाल का हाथ चौधराइन के चूत पर आ गया। उसने गोपाल के हाथ को दबाया और गोपाल चूत को मसलने लगा । कुछ देर तक दोनों ने एक साथ चूत को मसला और फिर मदन खड़ा हो गया। ग़ोपाल का हाथ अभी भी चौधराइन की चूत पर था लेकिन साया के नीचे चूत दिख नहीं रही थी।
मदन ने अपना पजामा पहना और गोपाल से कहा,"जब तक मैं वापस नहीं आता, तू इसी तरह मालकिन को दबाते रहना। दोनों चूचियों को भी खूब दबाना।"
मदन दरवाजा खोल कर बाहर आ गया और पल्ला खींच दिया। आस पास कोई भी नहीं था। वो इधर उधर देखने लगा और अन्दर का नजारा देखने की जगह ढूंढने लगा। जैसा हर घर में होता है, दरवाजे के बगल में एक खिड़की थी। उसके दोनों पल्ले बन्द थे। हलके से धक्का दिया और पल्ला खुल गया। बिस्तर साफ साफ दिख रहा था।
चौधराइन ने गोपाल से कुछ कहा तो वो शरमा कर गर्दन हिलाने लगा। मायादेवी ने फिर कुछ कहा और गोपाल सीधा बगल में खड़ा हो गया। माया ने उसके लण्ड पर पैंट के ऊपर से सहलाया और ग़ोपाल झुक कर साया के ऊपर से चूत को मसलने लगा। एक दो मिनट तक लण्ड के ऊपर हाथ फेरने के बाद माया ने पैंट के बटन खोल डाले और गोपाल का साढ़े सात इन्च लम्बा लण्ड फ़नफ़ना के बाहर आ गया। मदन ने सपने में भी नही सोचा था कि इस जरा से लड़के का लण्ड इतना बड़ा होगा । चौधराइन ने झट से उसका टनटनाया हुआ लण्ड पकड़ लिया और उसे सहलाने लगी।
चौधराइन को मालूम था कि मदन जरुर देख रहा होगा, सो उसने खिड़की के तरफ देखा। नजर मिलते ही वो मुस्कुरा दी और लण्ड को दोनों हाथों से हिलाने लगी। गोपाल का लण्ड देख कर वो खुश थी। उधर गोपाल ने भी चूत के ऊपर से साये को हटा दिया तो आज मदन ने भी पहली बार उनकी साफ़ चिकनी की हुई चूत देखी शायद आज ही झांटें साफ की होंगी। उनकी चूत करीब बित्ते भर की फ़ूली हुई मुलायम चुद चुद के हल्की साँवली पड़ गई उत्तेजना से बाहर उठी पुत्तियों वाला टाइट भोसड़ा लग रही थी । जिसे मदन की आंखों के सामने एक लड़का मसल रहा था।
मायादेवी ने कुछ कहा तो गोपाल ने साया बिलकुल बाहर निकाल दिया। अब वो पूरी नंगी थी। शानदार सुडोल संगमरमरी गुदाज और रेशमी चिकनी जांघों के बीच दूध सी सफ़ेद पावरोटी सा भोसड़ा अपने मोटे मोटे होठ खोले लण्ड का इन्तजार करता हुआ लग रहा था।
मायादेवी लण्ड की टोपी खोलने की कोशिश कर रही थी। उसने गोपाल से फिर कुछ पूछा और गोपाल ने ना में गर्दन हिलाई। शायद पूछा हो कि पहले किसी को चोदा है या नहीं। माया ने गोपाल को अपनी ओर खींचा और खूब जोर जोर से चूमने लगी और चूमते-चूमते उसे अपने ऊपर ले लिया।
अब मायादेवी की चूत नहीं दिख रही थी। उन्होंने अपना हाथ नीचे की ओर बढ़ाया और अपने हाथ से लण्ड के सुपाड़े को चूत के मुहाने पर रखा। माया देवी ने गोपाल से कुछ कहा और वो दोनों चूची पकड़ कर धीरे धीरे धक्का लगा कर चुदाई करने लगा।
गोपाल अपने से 20 साल बड़ी गांव की सबसे मस्त सुन्दर और इज्जतदार औरत की चुदाई कर रहा था। मदन अपने लण्ड की हालत को भूल गया और उन दोनों की चुदाई देखने लगा। गोपाल जोर जोर से धक्का मार रहा था और चौधराईन भी अपने भारी चूतड़ उछाल उछाल अपने बेटे की उम्र के लड़के से चुदाई का मजा ले रही थी। यूँ तो गोपाल के लिये चुदाई का पहला मौका था ।
मदन देखता रहा और गोपाल जम कर चौधराइन चाची को चोदता रहा और करीब 15 मिनट के बाद वो चौधराइन के गुदाज बदन पर ढीला हो गया। मदन 2-3 मिनट तक बाहर खड़ा रहा और फिर दरवाजा खोल कर अन्दर आ गया। मुझे देखते ही गोपाल हड़बड़ा कर नीचे उतरा और अपने हाथ से लण्ड को ढक लिया। लेकिन मायादेवी ने उसका हाथ अलग किया और मदन के सामने ही गोपाल के लण्ड को सहलाने लगी।
चौधराइन बिल्कुल नंगी थी। उसने दोनों टांगों को फैला रख्खा था और मुझे अपनी चूत की खुली फांके साफ साफ दिखा रही थीं। मदन उनकी कमर के पास बैठ कर चूत को सहलाने के ख्याल से हाथ लगा। चूत गोपाल के रस से पूरी तरह से गीली हो गई थी।
चौधराइन का आदेश फ़िर गूँजा " गोपाल, इसे मेरे साये से साफ कर दे।"
गोपाल साया लेकर चूत के अन्दर बाहर साफ करने लगा।
गोपाल के लण्ड को सहलाते हुये मायादेवी बोली," गोपाल में बहुत दम है...मेरा सारा दर्द खत्म हो गया।" फिर उसने गोपाल से पूछा,"क्यों रे, तुझे कैसा लगा..?"
गोपाल “जी बहुत अच्छा मालकिन।
फ़िर उन्होंने गोपाल से कहा कि वो उसे बहुत पसन्द करती है और उसने चुदाई भी बहुत अच्छी की। पर उन्होंने गोपाल को धमकाया कि अगर वो किसी से भी इसके बारे में बात करेगा तो वो बड़े मालिक (बड़े चौधरी काका) से बोल गाँव से निकलवा देगी और अगर चुप रहेगा तो हमेशा गोपाल का लण्ड चूत में लेती रहेगी।
गोपाल ने कसम खाई कि वो किसी से कभी चौधराइन मालकिन के बारे में कुछ नहीं कहेगा। ग़ोपाल बहुत खुश हुआ जब चौधराइन ने उससे कहा कि वो जल्दी ही फिर उससे चुदवाने के लिए बुलवायेगी। मायादेवी ने उसे चूमा और कपड़े पहन कर बाहर जाने का आदेश दिया।
मदन ने गोपाल से कहा कि वो आंगन में जाकर अपना काम करे। गोपाल के जाते ही मदन ने दरवाजा अन्दर से बन्द किया और फटाफट नंगा हो गया। लण्ड चोदने के लिये बेकरार था ही। चौधराइन ने नजदीक बुलाया और लण्ड पकड़ कर आश्चर्य से देख सहलाते हुए नखरे से कहने लगी,
"हाय आज मुझे मत चोद क्यों कि अभी अभी मैने चुदवाया है और दोपहर में तेरे बाप से भी चुदवाना है। तू घर की जिस किसी भी लड़की को चोदना चाहे, मैं चुदवा दूंगी..।"
मदन ने कोई जवाब न दे उन्हें लिटा दिया और उनकी दोनों टाँगे अपने कन्धों पर रख लीं जिससे उनकी चूत ऊपर को उभर आयी और दोनों फांके खुलकर लण्ड को दावत सी देने लगीं। मदन ने अपने लण्ड का सुपाड़ा चौधराइन की चूत के मुहाने पर दोनों फांकों के बीच रखा और धक्का मारते हुए कहा –“मेरे बाप से चुदवाना है तो क्या आपकी चूत मेरा लण्ड अन्दर लेने से मना कर देगी।”
गीली चूत मे लण्ड का सुपाड़ा पक से अन्दर घुस गया
चौधराइन "आह्ह्ह्ह्ह..... शाबाश ।"
मदन फ़िर बोला, “देखा कैसे बिना आना कानी किये घुस गया न।”
"आअह्ह्ह्ह्ह्ह....मजा आआआअ ग...याआअ.."
मदन चौधराइन के खरबूजों को थाम कर चोदने लगा।
"चौधराइन, अगर मुझे मालूम होता कि आप इतनी चुदासी रहती हो तो मैं 4-5 साल पहले ही चोद डालता, " कहते हुये मदन ने हुमच कर धक्का मारा।
चौधराइन ने कमर उठा कर नीचे से धक्का मारा और गाल पकड़कर नोचते हुए बोली," "आह्ह्ह्ह्ह..... शाबाश बेटा, वो तो तुझसे चुदवाने के बाद मैने जाना कि लड़कों से चुदवाने का अलग मजा होता है ।
मदन ने धक्का मारते मारते चौधराइन को चूमते हुए बोला
"सच बोल, चौधराइन चाची गोपाल के साथ चुदाई में मजा आया क्या?" मदन का लौड़ा अब आराम से उनके भोसड़े में अन्दर-बाहर हो रहा था।
"सच बोलूं बेटा, पहले तो मैं भी घबरा रही थी कि मैं इत्ती सी उम्र के लड़के के सामने रन्डी जैसी नंगी हो गई हूँ लेकिन अगर वो नहीं चोद पाया तो !" चौधराइन ने गोपाल को याद कर चूतड़ उछाले और कहा," गोपाल ने खूब जम कर चोदा, लगा ही नहीं कि वो पहली बार चुदाई कर रहा है.. मैं मस्त हो गई और अब मैं उससे अक्सर चुदवाया करूँगी।"
"और मैं चौधराइन चाची?" मदनने उसके टमाटर से गालों को चूसते हुये पूछा।
"बेटा, तेरा लौड़ा तो मस्त है ही और तेरे में गोपाल से ज्यादा दम भी है....मजा आ रहा है...."
और उसके बाद दोनों जम कर चुदाई करते रहे और आखिर में मदन के लण्ड ने चौधराइन के चूत में पानी छोड़ दिया। दोनों हांफ रहे थे। कुछ देर के बाद जब ठण्डे हो गये तो मदन ने उनकी चूत की फ़ूली फ़ाँके हथेली में दबोच कर कहा–“आज पता चला चाची कि आप इस रजिस्टर के हिसाब किताब के लिये अक्सर यहाँ आती हैं।”
चौधराइन –“अरे नहीं बेटा अभी तक सिर्फ़ चार नाम ही तो चढ़े हैं एक तेरा बाप सदानन्द दूसरा चौधरी साहब मेरे पति, तीसरा तू औ आज ये चौथा गोपाल बस ।”
मदन–“वाह चाची! चार तो ऐसे कह रही हो जैसे बहुत कम हैं।
चौधराइन –“अरे बेटा क्या करूँ ये चूत साली ऐसा रजिस्टर है कि भरता ही नहीं ।”
मदन मुट्ठी में दबोची उनकी फ़ूली चूत की फ़ाँकों के बीच उँगली चुभोते हुए बोला, “कोई बात नहीं चाची अब मैं इस रजिस्टर की देखभाल किया करूंगा और कोई पन्ना खाली न जाने दूँगा।”
चौधराइन हँसकर घर चली गयीं।
क्रमश:……………………………
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चौधराइन
भाग 22 - समझौता चौधराइन का



कहने को तो मदन जोश में कह गया पर चौधराइन के जाने के बाद उसके दिमाग ने सोचा कि ये मैंने चौधराइन से ये कैसा बेवकूफ़ी भरा वादा कर लिया इस तरह तो मैं दिनरात इनकी चूत ठन्डी करने में ही लगा रहूँगा और इस गाँव में भरी तरह तरह कि चूतों का स्वाद न ले पाऊँगा। पर जल्दी ही उसके शैतानी दिमाग को एक शान्दार आइडिया सूझ गया।
हुआ यों कि एक दिन एक नये नये जवान हुए चिकने लड़के चिन्टू को ले उसकी भरी पूरी गदराई जवान खूबसूरत माँ चम्पा मदन के पास आई।
चम्पा –“मदन बेटा, ये मेरा लड़का चिन्टू पढ़ता लिखता तो है नहीं दिनभर शैतानी करता रहता है। आप चौधराइन से कह के इसे किसी काम पे लगा दो तो धीरे धीरे कुछ सीख जायेगा और बड़ा होने तक अपनी रोजी रोटी तो कमा ही लेगा।”
मदन उन्हें ले के चौधराइन के पास गया और सारी बात बताई ।”
सारी बात सुन चौधराइन ने माँ बेटे को थोड़ी देर बाहर बैठ इन्तजार करने के लिए बोल मदन को सलाह करने के लिए अन्दर बुलाया।
चौधराइन –“लौंडा है तो मेरे रजिस्टर में दर्ज करने लायक
मदन –“और उसकी माँ मेरे खाते लायक।
चौधराइन –“क्या बकता है।”
मदन –“क्यों मेरा मन नही होता नये नये तजुर्बे करने का?
चौधराइन –“पर तूने तो मुझसे वादा किया था कि अब तू अपनी ताकझाँक बन्द कर देगा।“
मदन –“तब आपने रजिस्टर कहाँ खोला था?
चौधराइन –“पर जरा संभल के।
मदन –“ आप फ़िक्र न करो। तो आज से तय रहा जो लड़का आपका उसकी माँ बहन मेरी।”
चौधराइन –“ठीक है। बुलाओ।”
मदन ने माँ बेटे को अन्दर बुलाय।
चौधराइन –“ठीक है। शुरू में मैं इसे हल्का काम दूँगी ताकि इसे काम करने की आदत पड़े। इसे आज रात भेज देना पँचायतघर की रखवाली करने। इसे सिर्फ़ वहाँ सोना है। ”
दोनों खुशी खुशी चले गये । उस रात जब चौधराइन ने चिन्टू से अपनी चूत जम के बजवाई तो चौधराइन के करतब देख देख मदन भी बहुत उत्तेजित हो गया और उसने भी चौधराइन की चूत धुन डाली। चुदाई से निबट करीब रात के दो बजे जब मदन बगिया वाले मकान पर जा रहा था तो सोच रहा था कि चौधराइन ने तो हरी झन्डी दे दी पर चिन्टू की अम्मा चम्पा फ़ँसानी तो खुद मुझे ही पड़ेगी ।”
भगवान ने खुद ही इसका रास्ता दिखा दिया। हुआ यों कि तीसरे दिन करीब एक बजे दोपहर में चम्पा मदन के पास बगिया वाले मकान पर आई और
मदन –“ आओ चम्पा चाची। कहो कैसी हो?”
चम्पा –“मैं तो ठीक हूँ पर चिन्टू बड़ा थका थका रहता है । ऐसा क्या काम कराती है चौधराइन?”
मदन –“कुछ नहीं बस पँचायत घर में सोता है।”
चम्पा(हँसकर) –“अरे सोने से कहीं कोई थकता है बेटा।”
मदन ने सोचा हँस रही है क्यों न इसका मन टटोलने के देखे सो बोला –“क्यों तुम रात में सोती हो तो नहीं थकती क्या या चन्दू(चम्पा का पति) चाचा नहीं थकते ।”
चम्पा उसका दोहरा मतलब समझ गयी, उसके मन में गुदगुदी सी हुई क्योंकि उसने भी गाँव में मदन के कारनामों की कहानियाँ सुनी थीं हँस के बोली –“अरे मेरी बात और है मैं तो तुम्हारे चन्दू चाचा के मारे……वो भी कभी जब वो मुझे……हटो। क्या फ़ालतू बात ले……।” यह बोलते बोलते चम्पा शर्मा के चुप हो गई। फ़िर संभल के आगे बोली –“ पर वो तो अकेला…।”
और वो फ़िर शर्मा गई।
मदन मजाक के ढ़ंग से –“कौन जाने शायद चौधराइन चाची साथ में……।”
चम्पा हँसते हुए –“ क्या मजाक करते हो बेटा कहाँ चौधराइन कहाँ जरा सा बच्चा।”
मदन मुस्कुराकर –“ जरा सा बच्चा क्यों। मेरी ही उमर का होगा और चौधराइन चाची तुम्हारी उमर की।”
चम्पा भी अब शर्म छोड़ पूरी तरह बहस के मूड में आ गयी थी मुस्कुरा के बोली –“हाँ माना तेरी ही उमर का है पर हम बुढ़ियों और तेरी उमर वाले का क्या तालमेल?
मदन आश्चर्य प्रकट करते हुए –“तुम्हें बुढ़िया बताने वाले को मैं अन्धा ही कहूँगा । मुझे तो ताज्जुब है कि तुम और चन्दू चाचा रोज क्यों नहीं थकते । चाचा शायद तुम्हें नाजुक समझ के………।”
चम्पा –“ चुप कर बेटा ये सब कोई रोज रोज थोड़े ही………।”
मदन –“ये तो अगर मैं चन्दू चाचा होता तो बताता।”
पता नही बात चीत की झोंक में या शायद जानबूझ के चम्पा कह गई –“अच्छा तो तू आज बता ही दे।”
बस मदन ने चम्पा चाची का गदराया बदन बाहों में भर लिया उसकी मजबूत बाहों के उमंग भरे कसाव में चम्पा को एक अनोखा अनुभव हुआ पर उसने छूटने की एक कमजोर सी कोशिश की –“छोड़ बेटा क्यों मजाक करता है।”
इसबार मदन ने गम्भीर आवाज और चमकती आँखों से चम्पा चाची की उत्तेजना के खुमार से भरती आँखों में झाँक के कहा –“ये मजाक नहीं है चाची यही तो मैं साबित करना चाहता हूँ।”
ऐसा बोलते हुए मदन चम्पा चाची को लिए लिए ही बिस्तर पर गिर पड़ा।
चम्पा उत्तेजना से काँपती आवाज में–“ अरे अरे कहीं कोई आ गया तो…………?
आगे का वाक्य चम्पा के मुँह में ही घुट गया क्यों कि मदन ने उसके होठों को अपने होठों मे दबा लिया नये जवान होते लड़के का जिस्म और की बाँहो का कसाव चम्पा को अपने चढ़ती जवानी की याद दिला रहा था वो अपना आपा खोती जा रही थी और मदन से लिपटती जा रही थी एक दूसरे के होठों को चूसते चूसते कब दोनों के जिस्म से कपड़े उतर गये पता ही नहीं चला । जब दोनों के होठ अलग हुए तो बुरी चम्पा ने हाँफ़ते हुए मदन से कहा –“क्या सचमुच मैं अभी भी तेरे जैसे जवान लड़के को लुभाने लायक हूँ।”
मदन चम्पा चाची के ऊपर से उठ के बैठ गया और एक भरपूर नजर बिस्तर पर नंगधड़ंग पड़ी चम्पा चाची पर डाली और बोला –“मैं झूठ नहीं बोलूँगा दरअसल मेरी उमर के लड़कों को नईजवान लड़कियों से औरतें ज्यादा पसन्द आती हैं और औरतों में आप बेजोड़ हैं।”
चम्पा चाची –“अगर तू सच कहता है तो ताज्जुब नहीं रोज रात में चौधराइन मेरे चिन्टू को चूस डालती हो।”
मदन –“अरे छोड़ो चाची दोनो साले मजा करते होंगे अभी थोड़ी देरे में तुमको मेरी बात का विश्वास हो जायेगा।”
ये कह मदन ने अपने दोनों हाथों से उनकी केले के खम्बों जैसी जाँघें पकड़ के फ़ैलायी और अपने फ़ौलादी लण्ड का सुपाड़ा उनकी फ़ूली हुई चूत के रसीले मुहाने पर रखा । फ़िर अपने दोनों हाथों में उनकी बड़े बड़े खरबूजों जैसी चूचियाँ थाम के धक्का मारा। चम्पा के मुँह से निकला –“आआह्ह्ह!
सुपाड़ा अन्दर जा चुका था पर इसके बाद मक्कार मदन रुक गया और चम्पा चाची की बड़े बड़े खरबूजों जैसी चूचियाँ दबा दबाके निपल ऐसे चूसने लगा जैसे कोई आम चूस के खाता है। उसकी इस हरकत से उत्तेजित हो चम्पा ने अपने भारी चूतड़ उछाल उछाल के उसका पूरा लण्ड अपनी चूत में धाँस लिया और झुँझला के फ़ुसफ़ुसाई –“अगर तू ऐसे करता रहा तो मैं बिना चुदे बिना थके ही झड़ जाऊँगी। फ़िर तू साबित कैसे करेगा कि तू चम्पा चाची को थका सकता है।”
बस मदन इसी बेकरारी का तो इन्तजार कर रहा था उस भरी दोपहरी में बगिया के उस एकान्त मकान में मदन ने चम्पा चाची के जिस्म और दिमाग को अपनी जोशखरोश से भरी चुदाई से इतना मजा दिया कि वो अपने घर ऐसे थिरकते हुए लौट रही थीं जैसे कि वो एक बार फ़िर जवान हो गई हों। चम्पा चाची ने शाम को अपने पति (चन्दू) के आने पर उन्होंने बड़ी आवभगत की और रात में खुद पहल कर चन्दू चाचा को चुदाई के लिए उकसाया। दोपहर में जो कुछ मदन की चुदाई से सीखा था वो सब चन्दू चाचा के साथ फ़िर से दोहरा के आजमाया।

चन्दू को बहुत मजा आया और बड़ा आश्चर्य हुआ। चुदाई के बाद उसने पूछा –“आज तू बड़ी खुश है चम्पा।”
चम्पा चन्दू के बालों भरे चौड़े सीने पर हाथ फ़ेरते हुए –“ खुश क्या चिन्टू की चिन्ता दूर हुई वैद्यजी(सदानन्द) के लड़के ने चौधरी के यहाँ लगवा दिया।”
चन्दू –“कौन वो मदन?”
चम्पा बोली –“हाँ वही। मुझे तो बड़ा सीधा लगता है पर लोग तो पता नहीं क्या क्या कहते हैं।”
चन्दू –“हाँ ताज्जुब तो मुझे भी है मैं एक गरीब किसान हुँ पर हमेशा आते जाते अपनी तरफ़ से चाचा राम राम कहना कभी नहीं भूलता । मुझे लगता है चौधरी की बगिया में जो चोर नौकर थे वो ही बदनाम करते हैं क्यों कि सालों को मदन ने निकाल दिया।”
चम्पा मुस्कुराई और मन ही मन सोंचा अब तो और भी राम राम करेगा –“खैर हमें क्या अपना लड़का ठिहे से लग गया।”
चन्दू उसकी चूत पर हाथ फ़ेर कर –“ठीक बात क्यों न इसी खुशी में बार और हो जाये
चम्पा ने उसके लण्ड पर हाथ रखा –“हाय दैया! ये तो फ़िर खड़ा हो गया।”
चन्दू चम्पा के ऊपर आ के सुपाड़ा चूत पर लगाते हुए–“खुशी मना रहा है न।“
चम्पा की इतनी चुदाई शादी वाली रात भी नहीं हुई थी जितनी आज हुई।
अगले दिन खेत पर जाते समय चन्दू मदन से मिल उसका आभार प्रकट करते हुए गया। मदन ने चन्दू को इतना खुश कभी नहीं देखा था।
उसी दिन चम्पा चाची ने मदन को मिल रात के किस्से की जानकारी दी तो मदन की समझ मे सारा माजरा आया वो हँसते हुए बोला –“ वाह चाची भतीजे से सीख चाचा पे आजमाया और उन्हें खुश भी कर दिया। तुमने कमाल कर दिया।
चम्पा –“कमाल तो तूने कर दिया हमें खुश रहना सिखा दिया। सारे करतब तेरे ही तो सिखाये हुए हैं ।”
मदन –“मिलती रहा करो, चाची ऐसे ऐसे करतब बताऊँगा कि चाचा को आप जन्नत की हूर लगेंगी।”
चम्पा –“जुग जुग जियो बेटा। आज तो नही परसों दोपहर एक बजे आऊँगी।”
मदन –“ठीक है चाची।”
तो इस तरह शुरू हुई चौधराइन की चूत की चौधराहट। अब हाल ये है कि चौधराइन को कोई नया शिकार मिले, तो उसके घर की औरते माँ बहन जो भी मदन को पसन्द आ जाय, चौधराइन की तरफ़ से उन्हें चोदने की छूट है और दूसरी ओर अगर गाँव की कोई औरत मदन से फ़ँस जाती हैं तो उनके लड़कों के लण्ड से चौधराइन अपनी चूत सिकवाती हैं ।
समाप्त
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(एक बार ऊपर आ जाईए न भैया )..(परिवार में हवस और कामना की कामशक्ति )..(लेखक-प्रेम गुरु की सेक्सी कहानियाँ running)..(कांता की कामपिपासा running).. (वक्त का तमाशा running).. (बहन का दर्द Complete )..
( आखिर वो दिन आ ही गया Complete )...(ज़िन्दगी एक सफ़र है बेगाना complete)..(ज़िद (जो चाहा वो पाया) complete)..(दास्तान ए चुदाई (माँ बेटी बेटा और किरायेदार ) complete) .. (एक राजा और चार रानियाँ complete)..(माया complete...)--(तवायफ़ complete)..(मेरी सेक्सी बहनेंcompleet) ..(दोस्त की माँ नशीली बहन छबीली compleet)..(माँ का आँचल और बहन की लाज़ compleet)..(दीवानगी compleet..(मेरी बर्बादी या आबादी (?) की ओर पहला कदमcompleet) ...(मेले के रंग सास,बहू और ननद के संग).


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(फैमिली में मोहब्बत और सेक्स (complet))........(कोई तो रोक लो)......(अमन विला-एक सेक्सी दुनियाँ)............. (ननद की ट्रैनिंग compleet)..............( सियासत और साजिश)..........(सोलहवां सावन)...........(जोरू का गुलाम या जे के जी).........(मेरा प्यार मेरी सौतेली माँ और बेहन)........(कैसे भड़की मेरे जिस्म की प्यास)........(काले जादू की दुनिया)....................(वो शाम कुछ अजीब थी)
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Re: सलीम जावेद की रंगीन दुनियाँ

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फ्रेंड्स अब ये सलीम जावेद मस्ताना की दूसरी कहानी आपके लिए






अशोक की मुश्किल
भाग 1
बिल्ली के भाग्य से छींका टूटा…

अशोक लखनऊ के पास के गाँव का एक गठीले बदन वाला कड़ियल जवान है उसका कपड़ों का थोक का व्यापार लखनऊ कानपुर के आस पास के छोटे छोटे शहरों कस्बों और गाँवों के फुटकर व्यापारियों में फैला है जिसे वो लखनऊ में रहकर चलाता है। उसे अक्सर व्यापार के सिलसिले में शहरों कस्बों और गाँवों में आना जाना पड़ता है. इसीलिए उसे अक्सर रात में भी यहाँ वहाँ रुकना पड़ता है। शादी से पहले अपनी जिस्मानी जरुरतों को पूरा करने के लिए वो यहाँ वहाँ बदमाश लडकियों, औरतों में मुंह मार लेता था, पर धीरे धीरे उसकी प्रचंड काम शक्ति(चोदने कि ताकत) और हथियार (लंड) के आकार की वजह से बड़ी से बड़ी चुदक्कड़ बदमाश लड़की या औरत यहाँ
तक की रंडियां भी एक बार के बाद उसके पास आने से घबराने लगीं ।
दरअसल उसका लंड करीब नाइसिल पावडर के डिब्बे के जितना लम्बा और मोटा था और वो इतनी ज्यादा देर में झड़ता की जो एक बार चुदवा लेती थी वो दोबारा उसके पास भी नहीं फटकती थीं धीरे धीरे वो इतना बदनाम हो गया की जब वो रात में किसी शहर गांव में रुकता तो उसे यूँही (जांघों के बीच लंड दबा के) सोना पड़ता क्योंकि सब औरते उसके बारे में जान गयीं थीं.
पर इसी बीच बिल्ली के भाग्य से छींका टूटा अशोक पास के एक कस्बे में व्यापार के सिलसिले में गया था वहां के फुटकर व्यापारियों से हिसाब किताब करते रात हो गयी तो उन लोगो ने पड़ोस की एक विधवा अधेड़ औरत चम्पा से गुजारिश करके उसके यहाँ अशोक के रुकने का इंतजाम कर दिया. ये विधवा किसी दूर के गाँव से, अपनी जवान खुबसूरत गदराई भतीजी महुआ जिसके माँ बाप कुछ धनदौलत छोड़ गए थे उसे बेचबांच के ये मकान लेकर रहने के लिए आई थी. अतः ये लोग अशोक की असलियत नहीं जानते थे अशोक को महुआ पसंद आ गई और उसने चम्पा से उसका हाथ मांग लिया और दोनों का विवाह हो गया।
सुहागरात को अशोक ने दुलहन का घूँघट उठाया महुआ की खूबसूरती देख उसके मुंह से निकला “सुभान अल्लाह ! मुझे क्या पता था की मेरी किस्मत इतनी अच्छी है।”
ऐसा कहते हुए अशोक ने अपने होंठ उसके मदभरे गुलाबी होठों पर रख दिये। महुआ को चूमते समय उसके बेल से स्तन अशोक के चौड़े सीने पर पूरी तरह दब गये थे वो उसके निप्पल अपने सीने पर महसूस कर रहा था ।
महुआ की फ़ूली बुर पर उसका लण्ड रगड़ खा कर साँप की तरह धीरे धीरे फ़ैल रहा था। महुआ की बुर गर्म हो भी उसे महसूस कर रही थी जिस्मों की गरमी में सारी शरम हया बह गई और अब महुआ और अशोक सिर्फ़ नर मादा बचे थे अशोक की पीठ पर महुआ की और महुआ की पीठ पर अशोक की उँगलियाँ धसती जा रही थी । दोनों ने एक दूसरे को इतनी जोर से भींचा कि अशोक के शर्ट के बटन और महुआ का ब्लाउज चरमरा के फ़टने लगे अपने जिस्मों की गर्मी से पगलाये दोनो ने एक दूसरे की शर्ट और ब्लाउज उतार फ़ेंकी । अब महुआ ब्रा और पेटीकोट में और अशोक अन्डरवियर मे था। महुआ ने अशोक के अन्डरवियर के साइड से उसका टन्नाया हलव्वी लण्ड बाहर निकाल लिया और सहलाने लगी। साँसों की तेज़ी से महुआ का सीना उठबैठ रहा था और उसके बेल से स्तन बड़ी मस्ती से ऊपर नीचे हो रहे थे। अशोक ने उन्हें दोनो हाँथों में दबोच कर, उन पर जोर से मुँह मारा । इससे उत्तेजित हो महुआ ने उसका टन्नाया हलव्वी लण्ड जोर से भीच दिया । तभी अशोक ने उसके पेटीकोट का नारा खीच दिया
महुआ की मोटी मोटी नर्म चिकनी जांघों भारी नितंबों से पेटीकोट नीचे सरक गया। अशोक पागलों की तरह उसके गदराये जिस्म मोटी मोटी नर्म चिकनी जांघों भारी नितंबों को दबोचने टटोलने लगा।
महुआ से अब रहा नहीं जा रहा था, सो उसने अशोक का टन्नाया हलव्वी लण्ड खीचकर अपनी बुर के मुहाने पर लगाया और तड़पते हुए बोली,
"आहहहहहह अशोक, प्लीज़ अब रहा नहीं जाता, प्लीज़ मुझे चोद डालो नहीं तो मैं अपने ही जिस्म की गर्मी में जल जाऊँगी, हाय राजा अब मत तड़पाओ।"
अब अशोक ने और रुकना मुनासिब नहीं समझा। महुआ की टाँगें फ़ैला और एक हाथ उसकी गुदाज चूतड़ों पे घुमाते हुए दूसरे से अपना खड़ा, कड़क, मोटा, गर्म लण्ड पकड़ कर महुआ की फ़ूली हुई पावरोटी सी बुर के मुहाने पर रगड़ते हुए बोला, "चल महुआ, अब होशियार हो जा ज़िंदगी में पहली बार अपनी बुर चुदवाने के लिये। अब तेरी बुर अपना दरवाजा खोल कर चूत बनने जा रही है ।"
महुआ ने सिसकारी ली और आँखें बंद कर लीं । महुआ को पता था कि पहली चुदाई में दर्द होगा, वो अब किसी भी दर्द के लिये तैयार थी । अपना सुपाड़ा ठीक से महुआ की बुर के मुँहाने पे रख कर अशोक ने ज़ोर से दबाया। बुर का मुँह ज़रा सा खुला और अशोक के लण्ड का सुपाड़ा आधा अंदर घुस गया।
महुआ दर्द से कराही,
"इस्स्स्स्स्स्स अशोक।"
वो महुआ की कमर पकड़ कर बोला,
"घबरा मत महुआ, शुरू में थोड़ा दर्द तो होगा फ़िर मजा आयेगा।"
महुआ की कमर कस कर पकड़ कर अशोक ने लण्ड अंदर धकेला पर बुर फ़ैलाकर लण्ड का सुपाड़ा बुर में आधा घुस कर अटक गया था। महुआ ने दर्द से अपने होंठ दाँतों के नीचे दबा लिये और अब ज़रा घबराहट से अशोक को देखने लगी। महुआ की बुर को अपने लण्ड का बर्दास्त करने देने के लिये अशोक कुछ वक्त वैसे ही रहा और महुआ का गदराया गोरा गुलाबी जिस्म सहलाते हुए उसके बेल से स्तन की घुन्डी चूसने लगा, जब अशोक को एहसास हुआ कि महुआ की साँसें सामन्य हो गयी हैं तो फिर अपनी कमर पीछे कर के, महुआ को कस कर पकड़ कर पूरे ज़ोर से उचक के धक्का दिया। इस हमले से अशोक के लण्ड का सुपाड़ा महुआ की कम्सिन, अनचुदी बुर की सील की धज्जियाँ उड़ाते हुए पूरा अन्दर हो गया । अशोक के इस हमले से दर्द के कारण महुआ, अशोक को अपने ऊपर से धकेलने की कोशिश करने लगी और अपनी चूत से अशोक का लण्ड निकालने की नाकाम कोशिश करते हुए ज़ोर से चिल्ला उठी,
"आहहहहहहहह
मैं मर गयीईईईईईई, उ़़फ्फ़्फ़्फ़़ फ्फ़्फ़्फ़फ़्फ़ नहींईंईंईंईं, निकालो लण्ड मेरी बुर से अशोक, फ़ट जायेगी।"
ये देख कर अशोक ज़रा रुका और महुआ का एक निप्पल होठों मे दबाके चुभलाने लगा । अशोक के रुकने से महुआ की जान में जान आयी। उसे अपनी बुर से खून बहने का एहसास हो रहा था । अशोक महुआ के बेल से स्तन की घुन्डी चूस रहा था, उसका गदराया गोरा गुलाबी जिस्म सहला रहा था जब अशोक को एहसास हुआ कि महुआ की साँसें अब सामन्य हो गयी हैं और वो धीरे धीरे अपनी बुर को भी आगे पीछे करने लगी तो उसने हल्के से लण्ड का सुपाड़ा दो-तीन बार थोड़ा सा आगे पीछे किया। पहले तो महुआ के चेहरे पर हलके दर्द का भाव आया फ़िर वो मजे से
"आहहहहह, ओहहहहह"
करने लगी । पर जब कुछ और धक्कों के बाद महुआ ने हल्की सी मुस्कुराहट के साथ अशोक की तरफ़ देखा, तो अशोक समझ गया कि महुआ की चूत का दर्द अब खतम हो गया है। अबकी बार अशोक ने लण्ड का आधा सुपाड़ा बाहर निकाला और फ़िर से धीरे से चूत में धक्का मारा। पर लण्ड का सुपाड़ा फ़िर से चूत में घुस कर अटक गया और महुआ ज़ोर से चिल्ला उठी,
"आहहहहहहहह
मैं मर गयीईईईईईई, उ़़फ्फ़्फ़्फ़़ फ्फ़्फ़्फ़फ़्फ़, बस अशोक अब और नहीं, फ़ट जायेगी।"
अनुभवी अशोक समझ गया कि ये इससे ज्यादा बर्दास्त नहीं कर पायेगी सो मन मार के सुपाड़े से ही चोदने लगा अशोक को इसमें ज्यादा मजा तो नहीं आया पर महुआ के गदराये गोरे गुलाबी जिस्म से खेल सहला और उसके बेल से स्तन की घुन्डी चूसते हुए काफ़ी मशक्कत के बाद आखिरकार वो उसकी छोटी सी चूत में सुपाड़े से ही चोदकर लण्ड झड़ाने में कामयाब हो ही गया इस बीच उसकी हरकतों से महुआ जाने कितनी बार झड़ी और बुरी तरह थक गई। इसीलिए मजा आने के बावजूद महुआ ने अगले दिन चुदवाने से इन्कार कर दिया और फ़िर पहले दिन की थकान और घबराहट को सोच हर रोज ही चुदवाने में टाल मटोल करने लगी। घर में सुन्दर बीबी होते हुए बिना चोदे जीवन बिताना अशोक के लिए बहुत मुश्किल हो रहा था अत: अशोक ने झूठ का सहारा लिया एक दिन उसने महुआ से कहा कि उसके पेट में दर्द है और वो डाक्टर के यहाँ जा रहा है वहाँ से लौट कर उसने महुआ को बताया कि डाक्टर ने दर्द की वजह चुदाई में कमी बताया है और कहा है कि ये दर्द चुदाई करने से ही जायेगा।
ये सुन कर महुआ चुदाने को तैयार हो गई पर उसने सुपाड़े से ज्यादा अपनी चूत में लेने से इन्कार कर दिया क्योंकि उसे सचमुच बहुत दर्द होता था। अशोक भी जो कुछ मिल रहा है उसी को अपना भाग्य समझ इस आधी अधूरी चुदाई पर ही सन्तोष कर जीवन बिताने लगा।
क्रमश:………………
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( आखिर वो दिन आ ही गया Complete )...(ज़िन्दगी एक सफ़र है बेगाना complete)..(ज़िद (जो चाहा वो पाया) complete)..(दास्तान ए चुदाई (माँ बेटी बेटा और किरायेदार ) complete) .. (एक राजा और चार रानियाँ complete)..(माया complete...)--(तवायफ़ complete)..(मेरी सेक्सी बहनेंcompleet) ..(दोस्त की माँ नशीली बहन छबीली compleet)..(माँ का आँचल और बहन की लाज़ compleet)..(दीवानगी compleet..(मेरी बर्बादी या आबादी (?) की ओर पहला कदमcompleet) ...(मेले के रंग सास,बहू और ननद के संग).


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अशोक की मुश्किल
भाग 2

चम्पा चाची का चूरन…

गतांक से आगे………………
इसी बीच अशोक व्यापार के सिलसिले में जिस कसबे में उसकी ससुराल थी, वहाँ गया। फुटकर व्यापारियों से हिसाब किताब करते रात हो गयी तो सास से मिलने रात ही में पहुंच पाया और रात में वापस आना ठीक न समझ ससुराल में ही रुक गया उसे देख उसकी विधवा सास चम्पा बहुत खुश हुई। महुआ की तरह वह भी उन्हें चाची ही कहता था।
चाची की उम्र यही कोई 40 या 42 साल के आस पास होगी। उनका रंग गोरा डील डौल थोड़ा भारी पर गठा कसा हुआ, वो तीस पैंतिस से ज्यादा की नहीं लगती थी
अशोक ने पाँव छुए तो वो झुककर उसे कन्धे पकड़ उठाने लगीं तो सीने से आंचल ढलक गया और चाची के हैवी लंगड़ा आमों जैसे स्तनों को देख अशोक सनसना गया।
चाची बोली- “अरे ठीक है ठीक है आओ आओ बेटा मैं रोटी बना रही थी इधर रसोईं मे ही आ जाओ जबतक तुम चाय पियो तबतक मैं रोटी निबटा लूँ।
अशोक ने महसूस किया कि चाची ने ब्रा नहीं पहनी है उसने सोचा शायद रसोई की गर्मी से बचने के लिए उन्होंने ऐसा किया हो।
चाची ने उसे चाय पकड़ाते हुए पूछा – “ महुआ कैसी है?”
बोला-“जी ठीक है।”
अशोक डाइनिंग टेबिल की कुर्सी खींच के उनके सामने ही बैठ गया। चाची रोटी बेलते हुए बातें भी करती जा रहीं थी। उनके लो कट ब्लाउज से फ़टे पड़ रहे उनके कटीले आम जैसे स्तन रोटी बेलते पर और भी छ्लके पड़ रहे थे। जिन्हें देख देख अशोक का दिमाग खराब हो रहा था। वो उनपर से अपनी नजरें नहीं हटा पा रहा था। उसने सोचा ये कोई महुआ की माँ तो है नहीं चाची है मेरा इसका क्या रिश्ता?
अगर मैं इसे किसी तरह पटा के चोद लूँ तो क्या हर्ज है, कौन सा पहाड़ टूट जायेगा। उसने आगे सोचा आज तो महुआ भी साथ नही है मकान में सिर्फ़ हमीं दोनों हैं पता नहीं ऐसा मौका दोबारा कभी मिले भी या नहीं ये सोंच उसने चाची को आज ही पटा के चोदने का पक्का निश्चय कर लिया।
वो चाय पीते और उन कटीली मचलती चूचियों को घूरते हुए चाची को पटाने की तरकीब सोचने लगा।
तभी चाची बोली- क्या सोच रहे हो बेटा बाथरूम में पानी रखा है नहा धो के कुछ खा लो दिन भर काम करके थक गये होगे।”
अशोक(हड़बड़ा के) – “मैं भी नहाने के ही बारे में सोंच रहा था।”
ये कहकर वो जल्दी से उठा और के नहाने चला गया। नहाते नहाते उसने महुआ की चाची को पटा के चोदने की पूरी योजना बना ली थी।
नहा के अपने कसरती बदन पर सिर्फ़ लुन्गी बांध कर वो बाहर आया और जोर जोर से कराहने लगा।
कराहने की आवाज सुन चाची दौड़ती हुई आयीं पर अचानक अशोक के कसरती बदन को सिर्फ़ लुन्गी में देख के सिहर उठीं।
वो बोली- “क्या हुआ अशोक बेटा।”
अशोक(कराहते हुए)- “आह! पेट में बड़ा दर्द है चाची।”
चाची बोली- “तू चल के कमरे में लेट जा बेटा मेरे पास दवा है मैं देती हूँ अभी ठीक हो जायेगा।”
वो उसे सहारा दे के उसके कमरे की तरफ़ ले जाने लगी सहारा लेने के बहाने अशोक ने उन्हें अपने गठीले बदन से लिपटा लिया। अशोक के सुगठित शरीर की मांसपेशियाँ बाहों की मछलियाँ चाची के गुदाज जिस्म में भी उत्तेजना भरने लगी पति की मौत के बाद से वो किसी मर्द के इतने करीब कभी नहीं आई थीं ऊपर से अशोक का शरीर तो ऐसा था जैसे मर्द की कोई भी औरत कल्पना ही कर सकती है। बाथरूम से कमरे की तरफ़ जाते हुए उसने देखा कि उत्तेजना से चाची के निपल कठोर हो ब्लाउज में उभरने लगे हैं वो मन ही मन अपनी योजना को कामयाबी की तरफ़ बढ़ते देख बहुत खुश हुआ। जैसे ही वो चाची के कमरे के पास से निकले वो जान बूझ के हाय करके उसी कमरे में घुस उन्हीं के बिस्तर पर लेट गया जैसे कि अब उससे चला नहीं जायेगा।
चाची ने उसे अपना अचूक चूरन देते हुए कहा- “ये ले बेटा ये चूरन कैसा भी पेट दर्द हो ठीक कर देता है।”
अशोक चूरन खाकर फ़िर लेट गया चाची बगल में बैठ उसका पेट सहलाने लगीं काफ़ी देर हो जाने के बाद भी अशोक कराहते हुए बोला-“हाय चाची मर गया हाय बहुत दर्द है ये दर्द जब उठता है कोई दवा कोई चूरन असर नहीं करता। इसका इलाज तो यहाँ हो ही नही सकता इसका इलाज तो महुआ ही कर सकती है।”
चाची ने अपने अचूक चूरन का असर न होते देख पूछा- “आखिर ऐसा क्या इलाज है जो महुआ ही कर सकती है।”
अशोक कराहते हुए बोला-“हाय चाची मैं बता नहीं सकता मुझे बताने लायक बात नहीं है। हाय मर गया, बड़ा दर्द है चाची।”
चाची ने फ़िर पूछा- “मुसीबत में शर्माना नहीं चाहिये यहां मेरे सिवा और तो कोई है नहीं बता आखिर ऐसा क्या इलाज है जो महुआ ही कर सकती है।”
अशोक कराहते हुए बोला-“ चाची आप नहीं मानती तो सुनिये ये सिर्फ़ औरत से शारीरिक सम्बन्ध बनाने से जाता है अब महुआ होती तो काम बन जाता। हाय बड़ा दर्द है मर गया।”
अशोक का पेट सहलाते हुए चाची ने उसके सुगठित शरीर की मांसपेशियों बाहों की मछलियों की तरफ़ देखा और उन्हें ख्याल आया इस एकान्त मकान में वो यदि इस जवान मर्द के साथ शारीरिक सुखभोग लें तो किसी को कुछ पता नहीं चलेगा। ये सोच उनके अन्दर भी जवानी अंगड़ाइयाँ लेने लगी। वो अशोक को सान्त्वना देने के बहाने उसके और करीब आकर सहलाने गयीं यहाँ तक कि उनका शरीर अशोक के शरीर से छूने लगा वो बोलीं- “ये तो बड़ी मुसीबत है बेटा।”
चाची की आवाज थरथरा रही थी।
अशोक कराहते हुए बोला-“हाँ चाची डाक्टर ने कहा है कि इसका और कोई इलाज नहीं है।”
तभी अशोक के पेट पर सहलाता चाची का हाथ बेख्याली या जानबूझकर अशोक के लण्ड से टकराया सिहर कर चाची ने चौंककर उधर देखा, लुंगी में कुतुबमीनार की तरह खड़े उसके लण्ड के आकर का अनुमान लगा कर उसे ठीक से देखने की अपनी इच्छा को चाची के अन्दर की जवान और भूखी औरत दबा नहीं पायी और अशोक के पेट दर्द की बीमारी का नाजुक मामला उन्हें इसका माकूल मौका भी दे रहा था। सो चाची ने बीमारी के मोआयने के अन्दाज में लुन्गी हटाके उसका नाइसिल पावडर के डिब्बे के जितना लम्बा और मोटा लण्ड थाम लिया उसके आकार और मर्दानी कठोरता को महसूस कर चाची के अन्दर की जवान औरत की जवानी बुरी तरह से अंगड़ाइयाँ लेने लगी। अपनी उत्तेजना से काँपती आवाज में वे बोल उठी,-“अरे बेटा तेरा लण्ड तो खड़ा भी है क्या पेट दर्द की वजह से।”
अशोक(लण्ड अकड़ा के उभारते हुए)-“ –हाँ चाची हाय इसे छोड़ दें।”
चाची की आवाज उत्तेजना से काँपने के अलावा अब उनकी साँस भी तेज चलने लगी थी। वो अशोक के लण्ड को सहलाते हुए बोलीं- “अगर मैं हाथ से सहला के झाड़ दूँ तो क्या तेरा दर्द चला जायेगा।”
अशोक-“अरे ये ऐसी आसानी से झड़ने वाला नहीं है चाची।”
चाची ने सोचा एकान्त मकान, फ़िर ऐसी मर्दानी ताकत(आसानी से न झड़ने वाला), ऐसी सुगठित बाहों की मछलियाँ वाला गठीला मर्द, ऐसे मौके और मर्द की कल्पना तो हर औरत करती है। फ़िर उन्हें तो मुद्दतों से मर्द का साथ न मिला था, ऐसे मौके और मर्द को हाथ से निकल जाने देना तो बेवकूफ़ी होगी।
क्रमश:………………
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अशोक की मुश्किल
भाग 3
चाची का फ़ैसला…


गतांक से आगे…
सो चाची ने खुल के सामने आने का फ़ैसला कर लिया, जी कड़ा कर धड़कते दिल से बोल ही दिया- “बेटा फ़िर तो तेरी जान बचाने का एक ही तरीका है तू मेरे साथ कर ले।
अशोक-“अरे ये क्या कह रही हैं चाची ये कैसे हो सकता है। हाय मैं मरा! आप तो महुआ की चाची यानि कि मेरी सास हैं। ”
चाची अशोक के पथरीले मर्दाने सीने पर झुक अपने ब्लाउज में उभरते उत्तेजना से कठोर हो रहे निपल रगड़ लण्ड को सहलाते हुए बोलीं- ये सच है कि मैं महुआ की चाची हुँ इस नाते वो मेरी मुँहबोली बेटी हुई उसके एवज में मुँहबोली माँ का फ़र्ज मैं अदा कर चुकी उसकी शादी कर उसका घर बसा दिया उसी नाते मैं तेरी मुँहबोली सास हुँ अस्लियत में मेरा तेरा कोई रिश्ता नहीं। तू एक अन्जान मर्द और मैं एक अन्जान औरत।
अशोक(दर्द से छ्ट्पटाने के बहाने लण्ड अकड़ा के उभारते हुए)-“मगर चाची……!
चाची अपनी धोती खींच के खोलते हुए बोली- “क्या अगर मगर करता है वैसे भी आखिर तू मेरी महुआ बेटी का पति है तेरी सास होने के नाते तेरी जान तेरे शरीर की रक्षा भी तो मेरा फ़र्ज है।”
अशोक(उनके हाथ से झूठ्मूठ लण्ड छुटाने की कोशिश करते हुए)-“मगर चाची बड़ी शरम आ रही है। हाय ये दर्द……!!
चाची ने एक ही झटके में अपना चुट्पुटिया वाला ब्लाउज खोल अपने बड़े बड़े विशाल स्तन अशोक की आँखों के सामने फ़ड़फ़ड़ा के कहा-“ इधर देख बेटा क्या मेरा बदन इस लायक भी नही कि तेरे इस पेट दर्द की मुसीबत की दवा के काम आये।”
ये कह के चाची ने अपना पेटीकोट का नारा खींच दिया पेटीकोट चम्पा चाची के संगमरमरी गुदाज भारी चूतड़ों शानदार रेशमी जांघों से सरक कर उनके पैरों का पास जमीन पर गिर गया। चाची ने अशोक बगल में लेट अपना नंगा बदन के बदन से सटा दिया और अपनी एक जाँघ उसके ऊपर चढ़ा दी। अशोक उत्तेजाना से पागल हुआ जा रहा था।
उनके बड़े बड़े विशाल स्तनों के निपल अशोक के जिस्म में चुभे तो अशोक बोला
- “हाय चाची कहीं कोई आ न जाय, जान न जाय।”
चाची –“ अरे यहाँ कौन आयेगा घर का मुख्य दरवाजा बाहर से बन्द है फ़िर भी आवाज बाहर न जाये के ख्याल से मैं कमरे का दरवाजा भी बन्द कर लेती हुँ।”
ये कह वे जल्दी से उठ कमरे का दरवाजा बन्द करने जल्दी जल्दी जाने लगीं। उत्तेजना से उनका अंग अंग थिरक रहा था। वो आज का मौका किसी भी कीमत पर गवाना नही चाहती थी। अशोक दरवाजे की तरफ़ जाती चाची की गोरी गुदाज पीठ, हर कदम पर थिरकते उनके संगमरमरी गुदाज भारी चूतड़ शानदार रेशमी जांघें देख रहा था।
दरवाजा बन्द कर जब चाची घूंमी तो अशोक को अपना बदन घूरते देख मन ही मन मुस्कराईं और धीरे धीरे वापस आने लगीं। अशोक एक टक उस अधेड़ औरत के मदमाते जवान जिस्म को देख रहा था। धीरे धीरे वापस आती चाची की मोटी मोटी गोरी रेशमी जांघों के बीच उनकी पावरोटी सी फ़ूली हुई दूध सी सफ़ेद चूत थी जो कभी जांघों के बीच विलीन हो जाती तो कभी सामने आ जाती। पास आकर चाची मुस्कुराती हुई उसके बिस्तर के दाहिनी तरफ़ इत्मिनान से खड़ी हो गईं क्योंकि अशोक को अपना बदन घूरते देख वो समझ गईं थी कि उसपर पर चाची के बदन का जादू चल चुका है। खड़े खड़े ही चाचीने उसकी लुंगी हटा कर उसका दस इन्ची लण्ड फ़िर से थाम लिया और हाथ फ़ेर के बोली –“ बेटा तेरा ये नाइसिल पावडर के डिब्बे के जितना लम्बा और मोटा हैवी लण्ड महुआ ले लेती है?”
अशोक-“ नहीं चाची सिर्फ़ सुपाड़ा किसी तरह सुपाड़े से चोद के झाड़ लेता हूँ उससे कभी मेरी चुदाई की प्यास नहीं बुझी। वो क्या मुझे आज तक अपने जोड़ की औरत मिली ही नहीं डाक्टरों के अनुसार इसीलिए मुझे हमेशा पेट दर्द रहता है।”
अशोक का लण्ड सहलाती चाची के बड़े बड़े विशाल स्तन, उनके खड़े खड़े निपल, मोटी मोटी गोरी रेशमी जांघें, जांघों के बीच उनकी पावरोटी सी फ़ूली हुई दूध सी सफ़ेद चूत ने अशोक की बर्दास्त खत्म कर दी थी। उसने अपना दाहिना हाथ उनकी कमर के पीछे से डालकर उन्हें अपने ऊपर गिरा लिया। उनके बड़े बड़े विशाल स्तनों के निपल अशोक की मर्दानी छाती में धँस गये।
अशोक ने महसूस किया कि चाची का बदन अभी तक जवान औरतों की तरह गठा हुआ है। वो उनके गुदाज कन्धे पर मुँह मारते हुए बोला-“मुझे आज पहली बार अपने पसन्द की औरत मिली है बदन तो आपका ऐसा है चम्पा चाची कि मैं खा जाऊँ मगर अब देखना है कि इस बदन की चूत मेरे लण्ड के जोड़ की है या नहीं।
चाची हँसते हुए बगल में लेट गई और उसका दस इन्ची हलव्वी लण्ड फ़िर से थाम लिया और हाथ फ़ेरते बोलीं-अशोक।
अशोक-“हाँ चाची ।
चाची “आ जा अब तेरे पेट का दर्द ठीक हो जायेगा क्योंकि ये चाची और उसकी चूत तेरे जोड़ की है।”
अशोक उठकर चाची की जाँघों के बीच बैठ गया और उनकी केले के तने जैसी सुडोल संगमरमरी रेशमी चिकनी और गुदाज मोटी मोटी रानों को सहलाते हुए बोला-“ आह चाची आप कितनी अच्छी हो । बोलते हुए उसका हाथ चूत पर जा पहुँचा। जैसे ही अशोक ने पावरोटी सी फ़ूली हुई दूध सी सफ़ेद चूत सहलाई चाची ने सिसकारी ली
"स्स्स्स्स्स्स्स्स्स्स्स्सआ---आ---ह आ---आ---ह।”
चाची ने अपने दोनों हाथों से अपनी चूत की फांके फैलायी अब उनकी मोटी मोटी नर्म चिकनी गोरी गुलाबी जांघों भारी नितंबों के बीच मे उनकी गोरी पावरोटी सी फूली चूत का मुंह खुला दिख रहा था अशोक ने अपने फौलादी लण्ड का सुपाड़ा चूत के मुहाने पर टेक दिया। चाची ने सिसकारी ली –
"स्स्स्स्स्स्स्स्स्स्स्स्सआ---आ---ह आ---आ---ह।”
अशोक चूत के मुंह की दोनों फूली फांको के ऊपर अपना फौलादी सुपाड़ा घिसने लगा
चाची की चूत बुरी तरह से पानी छोड़ रही थी। उत्तेजना में आपे से बाहर हो चाची ने जोर से सिसकारी ली और झुन्झुलाहट भरी आवाज में कहा –
"स्स्स्स्स्स्स्स्स्स्स्स्सआ---आ---ह आ---आ---ह अब डाल न।”
ये कह चाची ने उसका लण्ड अपने हाथ से पकड़कर निशाना ठीक किया।
ये देख अशोक ने उन्हें और परेशान करना ठीक नही समझा उसने हाथ बढ़ाकर चाची की सेर सेर भर की चूचियाँ थाम लीं और उन्हें दबाते हुए लण्ड का सुपाड़ा चूत मे धकेला।
पक की आवाज के साथ सुपाड़ा चाची की चूत में घुस गया, पर चाची की चीख निकल गई “आ---आ---ईईईईईह”
क्योंकि चाची की चूत में मुद्दतों से कोई लण्ड नहीं गया था सो वो दर्द से चीख पड़ी थीं पर अशोक के लण्ड के सुपाड़े को बिलकुल कोरी बुर का मजा आ रहा था।
अशोक –“ हाय चाची आपकी चूत तो बहुत टाइट है एकदम कोरी बुर लग रही है।”
चाची(बेकरारी से) –“हाय अशोक बेटा तेरे लण्ड का सुपाड़ा मुझे भी सुहागरात का मजा दे रहा है राजा किस्मत से मुझे ऐसा मर्दाना लण्ड और तुझे अपनी पसन्द की चूत मिली है। मेरी भतीजी महुआ के साथ सुपाड़े से मनाई आधी अधूरी सुहागरात की भरपायी, चाची की चूत में पूरा लण्ड धाँस के आज तू अपने मन की सुहाग रात मना के पूरी कर ले। पर अब जल्दी करमेरी चूत में आग लगी है।”
अशोक -“पर आप पूरा सह लोगी चाची? आपकी चूत भी तो इतनी टाइट छोटी सी ही लगती है मैं आप को तकलीफ़ नहीं पहुँचाना चाहता। मुझे डर लगता है क्योंकि आज तक कोई औरत मेरा पूरा लण्ड सह नहीं पाई है।”
चाची – “अरे तू डर मत बेटा मेरी चूत छोटी होने की वजह से टाइट नहीं है बल्कि इसका टाइट होना एक राज की बात है वो मैं फ़िर बाद में बताऊँगी तू पहले पूरा लन्ड तो डाल मेरी इतने सालों की दबी चुदास भड़क के मेरी जान निकाले ले रही है।
अशोक ने थोड़ा सा लण्ड बाहर खीच के फ़िर धक्का मारा तो थोड़ा और लण्ड अन्दर गया चाची कराहीं–
“उम्महहहहहहहहहहह।”
पर अशोक ने उनके कहे के मुताबिक, परवाह न करते हुए चार धक्कों में पूरा लण्ड उनकी चूत में ठाँस दिया
जैसे ही अशोक के हलव्वी लण्ड ने चाची की चूत की जड़ बच्चेदानी के मुँह पर ठोकर मारी, उनके मुँह से निकला- “ओहहहहहहहहहहह शाबाश बेटा।”
आज तक चाची ने जिस तरह के लण्ड की कल्पना अपनी चूत के लिए की थी अशोक के लण्ड को उससे भी बढ़ कए पाया उनके आनन्द का पारावार नहीं था। चाची ने अपनी टाँगे उठा के अशोक के कन्धों पर रख ली। अशोक ने उनकी जांघों के बीच बैठे बैठे ही चुदाई शुरू की। पॉव कन्धों पर रखे होने से लण्ड और भी अन्दर तक जाने लगा। उनके गोरे गुलाबी गद्देदार चूतड़ अशोक की जॉंघों से टकराकर उसे असीम आनन्द देने लगे। साथ ही उसको उनकी सगंमरमरी जॉंघों पिन्डलियों को सहलाने और उनपर मुँह मारने में भी सुविधा हो गई। उसके हाथ चाची की हलव्वी चूचियाँ थाम सहला रहे थे बीच बीच में वो झुककर उनके निपल जीभ से सहलाने और होठों में दबाके चूसने लगता।
धीरे धीरे चाची के बड़े बड़े स्तनों पर उसके हाथों और होठों की पकड़ मजबूत होती गई और कमरे में सिसकारियॉ गूँजने लगी। चाची टॉगें ऊपर उठाकर फैलाती गईं अशोक की रफ्तार बढ़ती गई और अब उसका लण्ड धॉस के पूरा अन्दर तक जा रहा था। अब दोनों घमासान चुदाई कर रहे थे। अब चाची अपने भारी चूतड़ उछाल उछाल के चुदवाते हुए सिसकारियॉं भरते हुए बड़बड़ा रही थीं- “शाबाश बेटा! मिटाले अपना पेट का दर्द और बुझा दे इस चुदासी चाची की उमर भर की चुदास, जीभर के चोद।
अशोक चाची के दबाने मसल़ने से लाल पड़ बडे़ बड़े स्तनों को दोनों हाथों में दबोचकर चूत में धक्का मारते हुए कह रहा था- “उम्म्हये चाची तुम कितनी अच्छी हो सबसे अच्छी हो, इस तरह पूरा लण्ड धँसवा धँसवा के आजतक किसी ने मुझसे नही चुदवाया इतना मजा मुझे कभी नहीं आया। उम्म उम्म उम्म लो और लो चाची आह”
चाची (भारी चूतड़ उछाल उछाल के सिसकारियॉं भरते हुए)- “इस्स्स्साह बेटा! किसी लण्ड की कीमत उसके जोड़ की चूत ही जान सकती है उन सालियों को क्या पता तेरे लण्ड की कीमत, मेरी चूत तेरे लण्ड के जोड़ की है तेरा लंड तो लाखों मे एक है बेहिचक चोदे जा, फ़ाड़ दे अब जबतक तू यहाँ है रोज मेरी चूत फ़ाड़ मैं रोज तेरे लंड से अपनी चूत फ़ड़वाऊंगी ह्म्म उम्म्म्ह उम्म्म ह्म्म उम्म्म्ह उम्म्म!!!!!!! अब तू जब भी यहाँ आयेगा मेरी चूत को अपने लण्ड के लिए तैयार पायेगा।
अब दोनों दनादन बिना सोचे समझे पागलों की तरह धक्के लगा रहे थे दोनों को पहली बार अपने जोड़ के लन्ड और चूत जो मिले थे। आधे घण्टे कि धुँआधार चुदाई के बाद अचानक अशोक के मुँह से निकला - आह चाची लगता है मेरा होने वाला है। आआअह अआआह मुझसे रुका नहीं जायेगा।
चाची-“ उम्मईईईईईईईईईई मैं भी झड़नेवाली हूँ बेटा।”
आ---आ---ह आ---आ---ह उ—ईईई ह्म्म आ--ईईई आ---आ---ह आ---आ---ह उ—ईईई आ--ईईई,. " मैं तो गईई‍र्‍र्‍र्‍र्ईईई।
“आह चाची आ---आ---ह आ---आ---ह उ—ईईई आ--ईईई आ---आ---ह आ---आ---ह उ—ईईई आ—ईईई मेरा भी छुट गया आह।”
अशोक थक कर चाची के बदन पर बिछ सा गया। वो अपनी उखड़ी सॉसों को सम्हालने की कोशिश करते हुए उनका चिकना बदन सहलाने लगा।
चाची –“अब दर्द कैसा है बेटा।
अशोक उनके ऊपर से हट बगल में लेट बोला- अब आराम है चाची।
फ़िर मुस्कुरा के उनकी चूत पर हाथ फ़ेर के बोला-“आपकी इस दवा ने जैसे सारा दर्द निचोड़ लिया।”
क्रमश:………………

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