उस प्यार की तलाश में ( incest ) compleet

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rajaarkey
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Re: उस प्यार की तलाश में

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मैने अपने सीने से चुनरी हटा दी और उसे बिस्तेर के एक साइड पर रख दिया......इस वक़्त मैं सूट और लॅयागी में थी.......जो हमेशा की तरह टाइट थी और मेरे बदन से पूरी तरह चिपकी हुई थी........जैसे ही मेरे सीने से चुनरी हटी मेरी बड़ी बड़ी छातियाँ मचल कर बाहर को आने लगी......दुपट्टा हट जाने से मेरा क्लेवरेज काफ़ी हद तक बाहर की ओर दिखाई दे रहा था.....वैसे तो विशाल की नज़र दूसरे तरफ थी मगर मुझे उस हाल में अगर वो मुझे देख लेता तो कहीं ना कहीं उसके दिल में मेरे लिए भी कुछ तो अरमान जनम ले ही लेते......

जैसे ही मैने विशाल के ज़ख़्मो को छुआ उसके मूह से एक दर्द भरी कराह निकल पड़ी......उसके पीठ पर कई जगह काले निशान पड़ गये थे......और उसके राइट हॅंड पर भी काफ़ी सूजन थी.........मैं अपने हाथों में हल्दी और तेल दोनो लेकर विशाल के पीठ पर धीरे धीरे लगाने लगी.......विशाल को अब अच्छा लग रहा था मेरे हाथों का स्पर्श......मगर इधेर पता नहीं क्यों मेरे अंदर की आग अब धीरे धीरे भड़कने लगी थी........ये मुझे भी समझ नहीं आ रहा था कि ये मुझे क्या होता जेया रहा है......

आज मेरे मा बाप जानते थे कि मैं विशाल से प्यार करती हूँ.....विशाल भी मुझे बहुत प्यार करता था.......मगर मुझे क्या पता था कि एक दिन ये प्यार कुछ और ही नया रूप ले लेगा.......जिसे लोग भाई बेहन की परिभाषा दिया करते थे....उनके बीच की पवित्रता प्रेम .....मुझे नहीं पता था कि एक दिन यही प्रेम मेरी मोहब्बत में धीरे धीरे बदल जाएगी.......मैं अपने ही भाई से इश्क़ लड़ा लूँगी ये सब सुनने में ही अजीब सा लगता है मगर ये सच होने वाला था और अब इसकी शुरूवात हो चुकी थी ......आने वाला वक़्त देखना था कि मेरे लिए क्या सौगात लेकर आता है.

विशाल का चेहरा अभी भी दूसरी तरफ था........मैं अपने नाज़ुक हाथों से उसके ज़ख़्मों पर धीरे धीरे हल्दी और तेल लगा रही थी......उसके बदन का स्पर्श मुझे भी अच्छा लग रहा था और वही विशाल को भी...... मेरे हाथों की नर्माहट विशाल अपने जिस्म पर पल पल महसूस कर रहा था.....मेरी साँसें अभी भी मेरे बस में नहीं थी.......मेरा दिल बहुत ज़ोरों से धडक रहा था उसके वजह से मैं बहुत लंबी लंबी साँसें ले रही थी जिससे मेरे दोनो बूब्स उपर नीचे हो रहें थे........पता नहीं क्यों बार बार मेरे मन में विशाल के प्रति बुरे ख्याल आ रहें थे......शायद विशाल की मौजूदगी की वजह से........

विशाल- दीदी क्या आप अब भी मुझसे नाराज़ है........विशाल के मन में उठ रहें सवाल अब उसकी ज़ुबान पर आ गये थे........फिर उसने अपना चेहरा मेरी तरफ किया.....और जब उसकी नज़र मेरे सीने की तरफ गयी तो वो एक पल तो मानो मेरे सीने को देखता रहा........उसकी नज़र मेरे सीने से चिपक सी गयी थी.......मगर कुछ सेकेंड्स के बाद उसने अपनी नज़रें दूसरी तरफ फेर ली.......यानी मेरे चेहरे के तरफ.........

मैं उसके चेहरे को देखकर मुस्कुराती रही- नहीं.......अब तुमसे कोई नाराज़गी नहीं है.......विशाल ने तुरंत अपनी नज़रें मेरे चेहरे से हटा ली......शायद उसे ऐसा लगा था कि मैने उसकी नज़रो को पकड़ लिया हो........

विशाल- रहने दो दीदी अब.......आपके हाथों में भी तो चोट लगी है..........आप बेवजह परेशान हो रहीं है.........विशाल की बातों से मुझे ऐसा लगा कि वो ज़रूर मुझसे ये कहेगा कि मैं भी हल्दी और तेल लगा देता हूँ तुम्हें.......मगर उसने ऐसी कोई बात अपने मूह से नहीं कही.......शायद वो शरम से ऐसा ना कह सका हो.......मैं अंदर ही अंदर खुस थी कि काश विशाल आगे मुझसे कुछ और कहता जो मैं उसके मूह से सुनना चाहती थी मगर अगले ही पल मेरी खुशियों पर मानो पानी सा फिर गया.......मैं यही तो चाहती थी कि वो मेरे नाज़ुक से हाथों पर तेल और हल्दी लगाए और अपने कठोर हाथों से मेरे बदन की कोमलता को अच्छे से अपने अंदर महसूस करे...... मगर मेरी ये ख्वाहिश मेरे दिल की दिल में ही दबकर रह गयी........

क्यों चाहती थी मैं ऐसा......आख़िर वो मेरा भाई ही तो था.......ये मुझे क्या होता जा रहा था.......मैं क्यों उसके करीब आकर बहकने लगी थी......शायद विशाल मेरे भाई से पहले वो एक संपूर्ण मर्द था......यक़ीनन उसकी ये मर्दानगी मुझे ऐसा सोचने पर पल पल विवश कर रही थी........मैं उसके मज़बूत बाहों में अपना ये जवान जिस्म सौपना चाहती थी.......महसूस करना चाहती थी.......मैं चाहती थी कि वो मेरे बदन के उन अंगों को छुएें और मसले जिसके लिए मैं अब तड़प रही थी मगर ऐसा विशाल मेरे साथ कभी नहीं कर सकता था.......शायद हमारे दरमियाँ आज रिश्ते की मज़बूत दीवार खड़ी थी.......

विशाल- अब आप आराम करो दीदी.....और हां अपने ज़ख़्मों पर भी तेल और हल्दी लगा लेना........अगर मैं ये कर सकता तो ज़रूर करता मगर आप समझ रही हो ना मेरी मज़बूरी........बेहन हो आप मेरी.........मैं बस विशाल के मासूम चेहरे को देखकर मुस्कुराती रही.......विशाल ने सही कहा था......मेरे हाथों पर और मेरे पीठ पर भी ज़ख़्म के काले काले निशान थे और उसके लिए मुझे अपना सूट निकालना पड़ता.....और रिश्ते से मैं उसकी बेहन थी.......भला वो अपनी बेहन को इस हाल में कैसे हल्दी और तेल की मालिश करता......

फिर वो दवाई लेकर अपने रूम की ओर जाने लगा.....मैं वही अपने बिस्तेर पर बैठी हुई थी........इस वक़्त मेरा सफेद सूट पर हल्दी के पीले दाग सॉफ दिखाई दे रहें थे......विशाल की नज़र मेरे कपड़ों पर लगे उस दाग पर थी.......

विशाल- ये क्या दीदी.....आपके कपड़े तो खराब हो गये......

अदिति- कोई बात नहीं विशाल....तुम ठीक हो जाओ.....मेरे लिए यही बहुत है.......और क्या मेरे पास कपड़ों की कोई कमी है.......विशाल धीरे से मुस्कुरा कर अपने कमरे की तरफ जाने लगा ......मैं उसे वही से जाता हुआ देख रही थी......नीचे नीले रंग का जीन्स पहने हुए और उपर का जिस्म उसका पूरा नंगा था.......जिससे देखकर मैं मदहोश सी हो रही थी......जैसे ही विशाल दरवाज़े के पास पहुँचा वो तुरंत रुक गया और उसने अपनी गर्देन मेरे तरफ घुमा दी......मैं अभी भी विशाल के जिस्म को घूर रही थी........मैं अब अपने बिस्तेर से उठकर वही फर्श पर खड़ी थी........

विशाल तुरंत पलटकर मेरे पास एक दम से मेरे करीब आकर खड़ा हो गया.......इस वक़्त हमारे बीच फ़ासले बहुत कम थे....यही कोई 3 से 4 इंच की दूरी......मैं उसके साँसों को अच्छे से महसूस कर सकती थी........विशाल ने एक हाथ मेरे कंधे पर रखा और मुस्कुराते हुए थॅंक्स कहा.......

मैं भी बस धीरे से मुस्कुरा दी और ना जाने मुझे क्या हुआ और मैं तुरंत विशाल के सीने में अपना सिर छुपाकर उससे लिपटती चली गयी.......मेरी ये हरकत पर विशाल को एक बहुत बड़ा झटका सा लगा......ऐसा पहली बार था जब मैं विशाल के गले लगी थी.......विशाल भी अपना एक हाथ मेरे सिर पर बड़े प्यार से फेरता रहा और मुझे अपनी बाहों में धीरे धीरे समेटने लगा......मेरे दोनो बूब्स इस वक़्त विशाल के सीने से पूरी तरह चिपके हुए थे.......शायद विशाल भी मेरे बूब्स को अपने सीने पर पल पल महसूस कर रहा था......उसकी नर्माहट को अपने अंदर समेट रहा था.......

इस वक़्त हम दोनो खामोश थे......बस मैं विशाल से लिपटी रही और विशाल मुझसे.......ना ही वो कुछ कह रहा था और ना ही मैं....मगर शायद इस खामोशी में आज मैं अपने दिल का हाल उसे बताना चाहती थी.....मगर मेरी ज़ुबान से चाह कर भी कुछ नहीं कह पा रहें थे........फिर कुछ देर बाद विशाल ने अपनी ये खामोशी तोड़ी.......

विशाल- दीदी.....आप सच में बहुत खूबसूरत हो.......काश आप मेरी बेहन ना होती तो................विशाल के शब्द इतने पर आकर रुक गये थे......मगर मैं उसके कहने का मतलब समझ चुकी थी.......विशाल फ़ौरन मुझसे दूर हुआ और अपने कमरे की तरफ चल पड़ा......मैं अकेले कमरे में खामोश होकर बस उसे जाता हुआ देखती रही.
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जब तक विशाल मेरी नज़रो से दूर नहीं हो गया तब तक मैं वही खामोशी से उसे जाता हुआ देखती रही.......मैं ये बिल्कुल भी तय नहीं कर पा रही थी कि मैं विशाल की बातों से खुस होउँ या फिर नाराज़.......मैं फ़ौरन अपने बिस्तेर पर आकर लेट गयी और फिर से सारी बातें शुरू से लेकर अंत तक सोचने लगी.......एक बार फिर से मेरे दिल में अपने भाई के लिए प्यार उमड़ पड़ा था.........

ऐसे ही ना जाने कब मेरी आँख लग गयी मुझे पता भी ना चला......सुबेह आज भी मैं जल्दी सोकर उठी और अपने बिस्तेर पर कुछ देर तक बैठ रही....आज फिर से मैं अपनी डायरी लेकर बैठ गयी थी......आज मेरे पास लिखने को बहुत कुछ था........मैं कल की सारी घटनायें पूरी लिखती चली गयी.......मैं पहले भले ही अपने भाई के लिए कुछ भी सोचती थी मगर अब मेरा नज़रिया धीरे धीरे अपने भाई के प्रति बदल रहा था........पता नहीं क्यों मैं विशाल की बाहों में अपने आप को पल पल महसूस कर रही थी........

अब तो मेरे मन में विशाल को सिड्यूस करने की भी तमन्नाए जनम लेने लगी थी........वैसे तो ये सब ठीक नहीं था इस बात की गवाही मेरा दिमाग़ पल पल मुझे दे रहा था मगर दिल कह रहा था कि जो होगा अच्छा होगा......मैं बहुत देर तक इसी असमजस में फँसी रही मगर अब तक कोई भी फ़ैसला नहीं कर पा रही थी......फिर जब मुझे कुछ नहीं समझ आया तो मैं उठकर अपने बाथरूम में चली गयी........

थोड़ी देर बाद मैं जब नहाने लगी तब अचानक से मुझे कुछ ख्याल आया जिससे मेरे चेहरे पर मुस्कान की हल्की लकीर तैर गयी......मैने अपने बदन पर लगा ब्रा फ़ौरन उतार दिया और उसे जानबूझ कर वही सामने के हॅंगर पर टाँग दी........जहाँ पर रोज़ विशाल अपने कपड़े टांगा करता था........मेरी काले रंग की ब्रा इस वक़्त हॅंगर की शोभा बढ़ा रही थी......मुझे पूरा यकीन था कि विशाल ज़रूर कुछ ना कुछ मेरी ब्रा के साथ छेड़खानी करेगा.......मैं फिर झट से नहाने लगी और फिर अपने कपड़े पहन कर बाहर आ गयी........जब मेरी नज़र सामने विशाल के चेहरे पर पड़ी तो मैं उसे देखकर धीरे से मुस्कुरा पड़ी.......विशाल के चेहरे पर भी एक प्यारी सी मुस्कान थी.........

वो आज भी सिर्फ़ टवल में खड़ा था और मेरे बाहर आने का इंतेज़ार कर रहा था........जब उसने मुझे बाहर आते देखा तो वो फ़ौरन अंदर चला गया......मेरी नज़र एक बार फिर से उसके मज़बूत जिस्म पर चली गयी थी जिसे देखकर मेरे दिल में एक मीठी सी चुभन होने लगी थी.......वैसे तो मैं अपने अंडरगार्मेंट्स रोज़ नहाते वक़्त धो देती थी और उसे अपने कपड़े के नीचे सुखाने के लिए रख देती थी मगर आज मैं अपनी ब्रा को छोड़कर अपने सारे कपड़े धोकर रख दिए थे........उस ब्रा में मेरे बदन की खुसबू ज़रूर आ रही होगी......अब मुझे विशाल के बाहर आने का इंतेज़ार था........मैं अपने प्लान को अंजाम देकर अपने मन ही मन में बहुत खुस हो रही थी........

पता नहीं क्यों पर मुझे ऐसा लग रहा था कि वो अपना पेनिस मेरी ब्रा में लेकर रगड़ेगा और अपना कम उसपर छोड़ेगा......थोड़ी देर बाद मैं डाइनिंग टेबल पर उसके आने का इंतेज़ार करती रही......विशाल नहा कर बाहर निकला और अपने कमरे में चला गया......जैसे ही वो अपने कमरे में गया मैं फ़ौरन उठकर बाथरूम की ओर तेज़ी से जाने लगी.....पापा वही बैठे थे वो मुझे इस तरह जाता हुआ देखकर मुझसे पूछने लगे कि मैं कहाँ जा रही हूँ......मैं क्या कहती जल्दी से बहाना बनाया कि मैने हाथ सही से नहीं धोए है......हालाँकि पापा ने मेरी बातों पर ज़्यादा गौर नहीं किया था........मगर सोचने वाली बात ये थी कि नहाने के बाद हाथ भला इतनी जल्दी कैसे गंदे हो सकते है......
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जब मैं बाथरूम के अंदर गयी तो मैने फ़ौरन दरवाज़ा अंदर से लॉक कर दिया......मैं फिर अपने ब्रा को देखने लगी और जब मेरी ब्रा पर नज़र पड़ी तो मुझे एक बहुत बड़ा झटका सा लगा......जिस हाल में मैं अपना ब्रा वहाँ छोड़ कर गयी थी ठीक वैसे ही ब्रा अब तक हॅंगर पर लटका हुआ था.....विशाल ने मेरे ब्रा को हाथ भी नहीं लगाया था.........

आख़िर क्यों.........क्या विशाल ने मेरे ब्रा पर नज़र नहीं डाली......मगर ऐसा कैसे हो सकता है........ये सामने ही तो थी........उसने ज़रूर देखा होगा मेरी ब्रा को......फिर उसने ऐसा वैसे कुछ किया क्यों नहीं....... जो मैं सोच रही हूँ क्या विशाल के दिल में मेरे लिए ऐसी कहीं कोई भी भावना नहीं है........क्या वो आज भी मुझे अपनी बहेन के नज़र से देखता है........मैं जो सोच रही थी मेरी सारी उम्मीदो पर पानी फिर गया था.........मगर अब मेरे अंदर की सोच अब धीरे धीरे बदल रही थी.....मैं भी देखना चाहती थी कि विशाल आख़िर कब तक मुझसे दूर भागता है.....एक दिन मैने उसे पागल ना बना दिया तो मेरा नाम भी अदिति नहीं........

मगर मैं क्यों ऐसा कर रही थी ये शायद मैं भी नहीं जानती थी मगर कहीं ना कहीं मेरे जिस्म को एक मर्दाने शरीर की चाहत थी.......और वो भूक को मिटाने के लिए चाहे मुझे कुछ भी क्यों ना करना पड़े मुझे उसके खातिर सब मंज़ूर था.....मैं फिर बाथरूम से बाहर आई और डाइनिंग चेर पर आकर बैठ गयी.........मेरी नज़र जब विशाल के चेहरे पर पड़ी तो वो भी मुझे एक पल देखने लगा........मैं उसकी आँखों में आँखें डाले देखती रही जैसे मैं उससे ये पूछ रही थी कि उसने इतना अच्छा मौका अपने हाथ से क्यों जाने दिया.........

मोहन- बेटा सॉरी....कल के लिए........मैने जाने अंजाने में तुम्हारे साथ कुछ ज़्यादती की.......

विशाल- नहीं पापा इसमें आपको कोई ग़लती नहीं....मुझे आपको सच्चाई बता देनी चाहिए थी......मगर मैं दीदी की इज़्ज़त के खातिर ये सब बताना ठीक नहीं समझा.......

मोहन- कोई बात नहीं बेटा......होता है ऐसा......

मेरे चेहरे पर एक मुस्कान आ गयी थी जो विशाल की नज़रो से ना छुप सकी थी......वो भी मुझे देखकर मुस्कुराता रहा.......आज तो सॅटर्डे था और मेरी दोपहर में छुट्टी हो जाती थी.......मैं अपना नाश्ता ख़तम करती तभी पापा मुझसे सवाल करते है जिससे मैं वही फिर से बैठ जाती हूँ.....

मोहन- बेटी अब आगे से तुम्हारे साथ ऐसी वैसी कोई हरकत हो तो मुझे सबसे पहले इनफॉर्म करना...मैं सीधा तुम्हारे प्रिन्सिपल से मिलूँगा.......

मैं क्या कहती बस हां में अपना सिर धीरे से हिला दिया........पापा फिर विशाल की ओर देखकर उससे कहते है.....

मोहन- बेटा सोच रहा हूँ कि तेरे लिए एक बाइक खरीद दूं....वैसे तो तूने ये बात मुझसे बहुत पहले कही थी मगर मेरे पास पैसों की उस वक़्त थोड़ी प्राब्लम थी......और वैसे भी तुम दोनो को घर से एक घंटा पहले निकलना पड़ता है.....बाइक आ जाने से टाइम की भी बचत होगी और पैसों की भी......

विशाल का चेहरा खुशी से खिल उठा था और ना जाने क्यों मुझे भी इस बात की बहुत खुशी हो रही थी......मेरे खुरापाति दिमाग़ में फिर से विशाल को लेकर बुरे बुरे ख्यालात जनम लेने लगे थे.......कितना मज़ा आएगा मैं जब विशाल के साथ उसके बाइक पर बैठकर कॉलेज जाऊंगी.......मेरा जिस्म उसके जिस्म से चिपका होगा ....इस तरह की सोच अब मेरे दिमाग़ में जनम ले रही थी......फिर हम दोनो कॉलेज के लिए निकल पड़े......विशाल के चेहरे पर आज खुशी सॉफ झलक रही थी........

रोज़ की तरह हम दोनो आज भी दूर दूर खड़े थे........मैं विशाल के पास गयी और उसके बगल में जाकर खड़ी हो गयी......विशाल अब मुझे ही देख रहा था.......

अदिति- विशाल तुम्हारी चोट कैसी है....मेरा मतलब है कि तुम्हें आराम है कि नहीं.......

विशाल मेरी बातों को सुनकर धीरे से मुस्कुरा पड़ता है- हां दीदी मेरा दर्द तो मानो गायब ही हो गया.......आप सच में कमाल की दवा लगाती है......मैं विशाल की बातों को सुनकर धीरे से मुस्कुरा देती हूँ और उधेर विशाल के चेहरे पर भी एक प्यारी सी मुस्कान आ जाती है.
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थोड़ी देर बाद बस भी आ गयी.......हमेशा की तरह आज भी बस में भीड़ बहुत ज़्यादा थी.......मैं जैसे तैसे अंदर आई तो विशाल अपने दोस्तों की तरफ आगे जाने लगा.......मैने फ़ौरन उसका हाथ पकड़ लिया तो वो मेरी तरफ पलटकर मुझे हैरत से एक नज़र देखता रहा.......वैसे आज मुझे पूजा कहीं बस में दिखाई नहीं दे रही थी......इस वजह से मेरे खुरापाति दिमाग़ में विशाल को लेकर कई तरह की फीलिंग्स उमड़ रही थी.......

मैं इस वक़्त सफेद सूट में थी .......नीचे मैने उसी रंग की लॅयागी पहनी हुई थी जो हमेशा की तरह मेरे बदन से पूरी तरह चिपकी हुई थी........सीने पर मेरे लाल चुनरी था जो मेरी आकर्षण को और भी बढ़ा रहा था.......विशाल अब भी मुझे घूरे जा रहा था वो मेरा इस तरह से हाथ पकड़ने का मतलब शायद नहीं समझ पा रहा था......

अदिति- विशाल प्लीज़ आज मेरे पास ही रहो ना.......आज तो पूजा भी नहीं आई है......मैं अकेले बोर हो जाऊंगी.......विशाल एक नज़र मुझे देखा रहा फिर वो मुस्कुराते हुए मेरे बाजू में आकर खड़ा हो गया.......मेरे चेहरे पर भी एक प्यारी सी मुस्कान तैर गयी.......इस वक़्त मैं विशाल से सटकार खड़ी थी....उसका बाजू मेरे बाजू से टच हो रहा था......एक बार फिर से मेरे अंदर की आग धीरे धीरे शोला का रूप ले रही थी.......पता नहीं क्यों जब भी विशाल मेरे नज़दीक आता मेरे जिस्म से मेरा कंट्रोल मानो ख़तम हो जाता........

थोड़े देर बाद मैं विशाल के और नज़दीक गयी और मैं उसके आगे जाकर खड़ी हो गयी.......भीड़ इतनी ज़्यादा थी कि थोड़ा भी आगे सरकना बहुत मुश्किल था.......तभी मैं और विशाल के पीछे सटकर खड़ी हो गयी जिससे मेरी गान्ड अब उसके पेंट पर रगड़ खा रहा था......पहले तो उसने मुझे एक नज़र देखा फिर जब मैने कोई रिक्षन नहीं किया तब वो चुप चाप वैसे ही खड़ा रहा........

इस वक़्त मैं विशाल के लंड को अपनी गान्ड पर अच्छे से महसूस कर रही थी......शायद विशाल भी कुछ ऐसा ही महसूस कर रहा होगा.......बस चलने से बार बार धक्के लग रहें थे जिससे मैं और पीछे की तरफ सरक रही थी.......विशाल भी अब आखरी छोर पर खड़ा था.......वो अब और वहाँ से पीछे की ओर नहीं सरक सकता था.....मगर मैं हर बस के धक्के के साथ उसके और करीब होती जा रही थी......मेरे इस हरकत पर विशाल के चेहरे पर पसीने की कुछ बूँदें सॉफ नज़र आ रही थी........

विशाल का लंड अब मेरी गान्ड की गहराई में मानो गुम हो चुका था.....मगर जहाँ तक मैने महसूस किया था कि विशाल का लंड अभी तक खड़ा नहीं हुआ था.......जबकि मैं तो पानी में भी आग लगाने की ताक़त रखती हूँ.......फिर भी आज विशाल और मेरे बीच रिश्तो की मज़बूत दीवार खड़ी थी.....शायद इसी वजह से वो आगे बढ़ना नहीं चाहता था या नहीं बढ़ पा रहा था.......मगर मैने भी सोच लिया था कि चाहे कुछ हो जाए अब विशाल ही वो पहला मर्द होगा जिसको मैं अपनी कुँवारी चूत को सौपुंगी.......उसके लिए मुझे चाहे किसी भी हद तक क्यों ना जाना पड़े.......मगर अफ़सोस आज भी मैं विशाल के दिल में अब तक कहीं कोई ऐसी वैसी भावना नहीं जनम दे पाई थी.......मगर विश्वास था मुझे खुद पर कि ऐसा एक दिन होगा कि विशाल भी मेरे लिए उतना ही तडपेगा जितना मैं आज तड़प रही हूँ......

बस के लगातार कई झटकों ने मेरा काम और भी आसान कर दिया था.......एक और ज़ोर के झटके के साथ मैं अपनी गान्ड विशाल के लंड पर अच्छे से महसूस कर रही थी......जिससे मेरी चूत अब पूरी तरह से भीग चुकी थी......मेरी निपल्स अब किसी पत्थर की तरह सख़्त हो चुके थे.......एक बार दिल में ये ख्याल आया कि मैं फ़ौरन अपने दोनो हाथो को अपने निपल्स पर रख दूं और उन्हें ज़ोरों से मसल दूं.....मगर ऐसा करना वहाँ संभव नहीं था.......तभी विशाल ने फ़ौरन अपने दोनो हाथ मेरे कंधों पर रख दिए........शायद वो अब सही से खड़ा नहीं हो पा रहा था और उपर से मैं भी अपना पूरा वजह उसपर डाल रखी थी.......

मैं उसके तरफ एक नज़र डाली तो वो मुझे ही देख रहा था.......मैने उसकी आँखों में देखा तो जैसे वो मुझसे मानो फर्याद कर रहा हो कि दीदी आप मुझसे दूर हो जाओ......मगर मैं भला इतना अच्छा मौका अपने हाथ से कैसे जाने देती.......पूरे रास्ते भर मैं विशाल को ऐसे ही परेशान करती रही......थोड़ी देर बाद कॉलेज भी आ गया.......मैं फ़ौरन विशाल से दूर हुई तो वो अब लंबी लंबी साँसें ले रहा था मानो जैसे उसके सिर से कोई बहुत बड़ा बोझ उतर गया हो......
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