मैंने मुस्कुराते हुए जवाब दिया, “फिलहाल तो मुझे पता नहीं, क्योंकि मैं अभी पुराने वाली ब्रा और पैंटी पहन रही हूँ और वो 34d हैं और xl की पैंटी है, पर अब वो मुझे थोड़े टाइट होते हैं..!”
ये कहते ही उसने मेरा हाथ पकड़ कर अपनी और खींचा और बिस्तर पर लेट गए, मुझे अपने ऊपर लिटा लिया।
तब उसने कहा- प्लीज इसे प्यार करो, यह तुम्हारे प्यार का प्यासा है।
मैंने उसके लिंग को गौर से देखा, उसका लिंग सुर्ख लाल हो गया था और उसका सुपाड़ा खून से भर गया था। उसके बार-बार विनती करने पर मैंने उसके सुपाड़े को चूमा तो उसके लिंग से निकलता पानी मेरे होंठों पर लग गया। फिर अब और क्या था मैंने उसके लिंग और अन्डकोषों को कुछ देर चूमा, फिर सुपाड़े पर जीभ फिराई और उसे मुँह में भर कर चूसने लगी।
वो पूरी मस्ती में आकर अपनी कमर को हिलाने लगा। कभी मेरे बालों पर हाथ फिराता तो कभी मेरे पीठ पर तो कभी कूल्हों को प्यार करता। काफी देर चूसने के बाद मेरे जबड़ों में दर्द होने लगा सो मैंने छोड़ दिया। इसके बाद अमर ने मुझे सीधा लिटा दिया और मेरे ऊपर आ गया और फिर मुझे सर से पाँव तक चूमने लगा।
मेरे स्तनों को दबाते, चूसते हुए मेरे पेट को चूमने लगा फिर मेरी नाभि में अपनी जुबान को फिराने लगा। उसके बाद चूमते हुए मेरी योनि तक पहुँच गया।
अब उसने मेरी दोनों टांगों को फैला दिया और अपना मुँह मेरी योनि से लगा कर चूसने लगा। उसने बड़े प्यार से मेरी योनि को चूसते और किनारों पर जी भर कर प्यार किया।
मुझे इस तरह उसने गर्म कर दिया था कि मैं खुद अपने अंगों से खेलने लगी। कभी खुद अपने स्तनों को सहलाती तो कभी अमर के साथ अपनी योनि को मसलने लगती।
अमर मेरी योनि के ऊपर मटर के दाने जैसी चीज़ को दांतों से दबा कर खींचता तो मुझे लगता कि अब मैं मर ही जाऊँगी। उसने मुझे पागल बना दिया था। काफी देर बर्दाश्त करने के बाद मैंने अमर को अपनी ओर खींच लिया और अपनी टांगों को फैला उनको बीच में ले लिया और अपनी टांगों से उनकी कमर को जकड़ लिया।
अमर ने एक हाथ मेरे सर के नीचे रखा और दूसरे हाथ से मेरी बाईं चूची को पकड़ कर दबाते हुए उन्हें फिर चूसा। साथ ही अपने लिंग को मेरी योनि के ऊपर कमर नचाते हुए रगड़ने लगा।
उनके लिंग के स्पर्श से मैं और उत्तेजित होकर अधीर हो गई। मैंने तुरन्त लिंग को हाथ से पकड़ा और योनि के ऊपर दरार में रगड़ा और उसे अपने छेद पर टिका कर टांगों से अमर को खींचा।
इस पर अमर ने भी प्रतिक्रिया दिखाई और अपनी कमर को मेरे ऊपर दबाया ही था कि लिंग सरकता हुआ मेरी चूत में घुस गया। मैंने महसूस किया कि मेरी योनि में खिंचाव सा हुआ और उसके सुपाड़े की चमड़ी को पीछे धकेलता हुआ मेरे अन्दर चला गया और मैं सिसकते हुए सिहर गई।
अब अमर ने अपनी कमर को ऊपर-नीचे करना शुरू कर दिया। साथ ही मेरे जिस्म से खेलने लगा। मैं भी उसका साथ देने लगी, कभी मैं उसके माथे को चूमती तो कभी उसकी पीठ को सहलाती, या उसके चूतड़ों को हाथों से जोर से दबाती और अपनी ओर खींचती। काफी मजा आ रहा था और अब तो मेरी कमर भी हरकत में आ गई थी। मैं भी नीचे से जोर लगाने लगी।
अमर के धक्के अब इतने जोरदार होने लगे कि मैं हर धक्के पर आगे को सरक जाती थी। तब उसने हाथ मेरी बाँहों के नीचे से ले जाकर मेरे कन्धों को पकड़ लिया। मैंने भी उनके गले में हाथ डाल अपनी पूरी ताकत से पकड़ लिया और धक्कों का सामना करने लगी। उनके धक्के समय के साथ इतने दमदार और मजेदार होने लगे कि मेरे मुँह से मादक सिसकारियाँ रुकने का नाम नहीं ले रही थीं।
वो बीच-बीच में रुक जाते और मेरे होंठों से होंठ लगा कर चूमने लगते। मेरी जुबान से खेलने और चूसने लगते और अपनी कमर को मेरे ऊपर दबाते हुए कमर को नचाने लगते। उस वक़्त मुझे ऐसा लगता कि मानो मेरी नाभि तक उनका लिंग चला गया, पूरा बदन सनसनाने लगता, मेरे पाँव काँपने लगते।
काफी देर इस तरह खेलने के बाद, उसने मुझे पेट के बल लिटा दिया, फिर मुझे मेरी पीठ से लेकर कमर और चूतड़ों तक चूमा। मेरे दोनों चूतड़ों को खूब प्यार किया। फिर एक तकिया मेरे योनि के नीचे रख दिया। इस तरह मेरे कूल्हे ऊपर की ओर हो गए।
तब अमर ने मेरी टांगों को फैला दिया और बीच में झुक कर लिंग मेरी योनि में घुसाया फिर मेरे ऊपर लेट गया। अब उसने हाथ आगे कर मेरी दोनों चूचियों को पकड़ा और कमर से जोर लगाया। लिंग के अन्दर जाते ही उसने फिर से धक्कों की बरसात सी करनी शुरू कर दी और साथ ही मेरे स्तनों को दबाते और मेरे गले और गालों को चूमते जा रहा था।
मैंने भी उनकी सहूलियत के लिए अपने कूल्हों को उठा देती तो वो मेरी योनि के गहराई में चला जाता। हम मस्ती के सागर में डूब गए।काफी देर के इस प्रेमालाप का अंत अब होने को था। मैंने उनसे सीधे हो जाने के लिए कहा। हमने फिर से एक-दूसरे के चेहरे के आमने-सामने हो कर सम्भोग करना शुरू कर दिया। हमने एक-दूसरे को कस कर पकड़ लिया और अमर धक्के लगाने लगा। मेरी योनि के किनारों तथा योनि चिपचिपा सा लग रहा था पर मैं मस्ती के सागर में गहरी उतरते जा रही थी। मैंने अपनी आँखें खोलीं और अमर के चेहरे की तरफ देखा। उसने भी मेरे चेहरे की तरफ देखा, हम दोनों ही हांफ रहे थे।
उसके चेहरे पर थकान थी, पर ऐसा लग रहा था जैसे उसमें किसी जीत की तड़प हो और वो अपनी पूरी ताकत से मेरी योनि में अपने लिंग को अन्दर-बाहर कर रहा था।
हम दोनों की साँसें थक चुकी थीं और हांफ भी रहे थे। तभी मेरे बदन में करंट सा दौड़ गया मेरे कमर से लेकर मेरी टांगों तक करीब एक मिनट तक झनझनाहट हुई। मैं स्खलित हो चुकी थी और अमर को पूरी ताकत से अभी भी पकड़े हुई थी, पर अमर अभी भी जोर लगा कर संघर्ष कर रहा था।
करीब 5-7 मिनट में उसने भी जोरदार झटकों के साथ मेरे अन्दर अपने गर्म वीर्य की धार छोड़ते हुए झड़ गया।
अमर मेरे गालों और होंठों को चूमते हुए मेरे ऊपर निढाल हो गए। करीब 10 मिनट तक हम ऐसे ही लिपटे रहे, फिर मैंने उन्हें उठने को कहा।
वो मेरे ऊपर से उठे तो मैंने देखा मेरे कूल्हों के नीचे बिस्तर भीग गया था और चिपचिपा सा हो गया था, साथ ही मेरी योनि और उसके अगल-बगल सफ़ेद झाग सा चिपचिप हो गया था।
मैंने तुरंत तौलिए से साफ़ किया फिर अमर ने भी साफ़ किया और मैं बाथरूम चली गई क्योंकि मेरे बदन से पसीने की बदबू आने लगी थी।
मैं नहा कर निकली तो देखा कि 4 बजने वाले हैं।
मैंने अमर से कहा- अब तुम तुरंत यहाँ से चले जाओ।
उसने अपने कपड़े पहने और चला गया। इसी तरह अगले दिन भी मेरे पति काम की वजह से दिन में नहीं आने वाले थे, सो अमर और मैंने फिर से सम्भोग किया ऐसा लगभग 16 दिन तक चला। इन 16 दिनों में हमने सिर्फ दिन में ही नहीं बल्कि रात में भी कुछ दिन सम्भोग किए क्योंकि हालत ऐसे हो गए थे कि पति को बेवक्त काम पर जाना पड़ जाता था।
कुछ दिन तो ऐसे भी थे कि दिन में 2 से 4 बार तक हम सम्भोग करते और कभी रात को तो कुल मिला कर कभी-कभी 7 बार तक भी हो जाता था।
इस दौरान न केवल हमने सम्भोग किया बल्कि और भी बहुत कुछ किया। फिर एक दिन ऐसा आया कि अमर पागलों की तरह हो गया।
शायद ऊपर वाले का ही सब रचा खेल था कि उस दिन मेरे पति को ट्रेनिंग के लिए बाहर जाना पड़ा और हमने 11 बार सम्भोग किया। इसके बारे में कभी विस्तार से बताऊँगी।
और फिर तो मेरी हिम्मत नहीं हुई के कुछ दिन सम्भोग के बारे में सोचूँ।
कहानी जारी रहेगी।
सारिका कंवल की जवानी के किस्से
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( आखिर वो दिन आ ही गया Complete )...(ज़िन्दगी एक सफ़र है बेगाना complete)..(ज़िद (जो चाहा वो पाया) complete)..(दास्तान ए चुदाई (माँ बेटी बेटा और किरायेदार ) complete) .. (एक राजा और चार रानियाँ complete)..(माया complete...)--(तवायफ़ complete)..(मेरी सेक्सी बहनेंcompleet) ..(दोस्त की माँ नशीली बहन छबीली compleet)..(माँ का आँचल और बहन की लाज़ compleet)..(दीवानगी compleet..(मेरी बर्बादी या आबादी (?) की ओर पहला कदमcompleet) ...(मेले के रंग सास,बहू और ननद के संग).
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इसी तरह 4 दिन बीत गए थे हम दोपहर को रोज मिलते और रोज सम्भोग करते। शाम को 5 से 7 मेरा बेटा पढ़ाई के लिए जाता, तो उस वक़्त भी हमें समय मिल जाता और एक-दो बार कर लेते थे। दिन भर मैं बस उसके बारे में ही सोचती रहती थी। मुझे नशा सा हो गया था, उसका और जब वो कहता कि उसको करना है, मैं तुरंत ‘हाँ’ कर देती।
अगले हफ्ते पति की शिफ्ट बदल गई और वो दोपहर को जाने लगे, अमर का भी समय शाम को वापस आने का था। दोपहर तक मुझे सामान्य लग रहा था, पर शाम होने लगी तो लगा कि अब मैं नहीं मिल पाऊँगी। शाम को मेरा बेटा पढ़ कर आ चुका था इसलिए अब कोई गुंजाईश नहीं बची थी।
मैं रसोई में खाना बनाने लगी मेरा काम लगभग पूरा हो चुका था। करीब 8 बज रहे थे, तभी मेरे बेटे ने मुझसे खाना माँगा और मैंने उसे खाना खिला दिया।
मैं खाना ढक कर अपने छोटे बच्चे को दूध पिलाने लगी, तब मैंने ध्यान दिया कि मेरा बड़ा बेटा किताब खोल कर ही सो गया है। मैंने उसे उठाकर दूसरे बिस्तर पर सुला दिया।
इधर छोटा बेटा भी सो गया, तो मैंने उसे भी झूले में सुला दिया। फिर मेरे दिल में ख्याल आया कि अमर को फोन करूँ। मैंने फोन लगाया तो उसने बताया कि वो अपने कमरे में ही है।
उसने मुझे छत पर आने को कहा।
मैंने कहा- पति कभी भी आ सकते हैं सो नहीं आ सकती हूँ।
पर उसने कहा- थोड़ी देर के लिए आ जाओ..!
मैं छत पर जाने लगी तो मैंने सोचा कि पति से पूछ लूँ कि कब तक आयेंगे, तो उन्हें फोन करके पूछा।
उसने कहा- लगभग 9 बजे निकलेंगे तो 10.30 से 11 बजे के बीच आ जायेंगे।
अमर का कमरा सबसे ऊपर ठीक हमारे घर के ऊपर था। हम छत पर कुछ देर बातें करने लगे।
फिर अमर ने कहा- चलो कमरे में चाय पीते हैं..!
हम कमरे में गए, उसने दो कप चाय बनाई और हम पीते हुए बातें करने लगे।
उसने बातें करते हुए कहा- ऐसा लग रहा है कि आज कुछ बाकी रह गया हो।
मैंने मुस्कुराते हुए कहा- हाँ.. शायद मेरा प्यार नहीं मिला इसलिए…!
उसने तब कहा- तो अभी दे दो…!
मैंने कहा- आज नहीं, मेरे पति आते ही होंगे।
तब उसने घड़ी की तरफ देखा 9.30 बज रहे थे।
उसने कहा- अभी बहुत समय है, हम जल्दी कर लेंगे..!
मैंने मना किया। पर उसने दरवाजा बंद कर दिया और मुझे पकड़ कर चूमने लगा। मैं समझ गई कि वो नहीं मानने वाला। सो जल्दी से करने देने में ही भलाई समझी।
मैंने उससे कहा- आप इस तरह करोगे तो काफी देर हो जाएगी, जो भी करना है, जल्दी से करो… बाकी जब फुर्सत में होंगे तो कर लेना!
उसने दरवाजा बंद कर दिया और मुझे पकड़ कर चूमने लगा। मैं समझ गई कि वो नहीं मानने वाला। सो जल्दी से करने देने में ही भलाई समझी।
मैंने उससे कहा- आप इस तरह करोगे तो काफी देर हो जाएगी, जो भी करना है, जल्दी से करो… बाकी जब फुर्सत में होंगे तो कर लेना…!
मेरी बात सुन कर उन्होंने अपना पजामे का नाड़ा खोल कर पाजामा नीचे कर दिया। मैंने उनके लिंग को हाथ से सहला कर टाइट कर दिया।
फिर झुक कर कुछ देर चूसा और फिर अपनी साड़ी उठा कर पैंटी निकाल कर बिस्तर पर लेट गई।
अमर मेरे ऊपर आ गए। मैंने अपनी टाँगें फैला कर ऊपर उठा दीं। फिर अमर ने एक हाथ से लिंग को पकड़ा और मेरी योनि में घुसाने लगे। मेरी योनि गीली नहीं होने की वजह से मुझे थोड़ी परेशानी हो रही थी, पर मैं चाह रही थी कि वो जल्दी से सम्भोग कर के शांत हो जाए इसलिए चुप रही।
पर जब अमर ने 2-4 धक्के दिए तो मेरी परेशानी और बढ़ गई और शायद अमर को भी दिक्कत हो रही थी।
सो मैंने कहा- रुकिए बाहर निकालिए..!
उन्होंने लिंग को बाहर निकाल दिया, मैंने अपने हाथ में थूक लगा कर उनके लिंग तथा अपनी योनि के छेद पर मल दिया और लिंग को छेद पर टिका दिया।
फिर मैंने उनसे कहा- अब आराम से धीरे-धीरे करो।
उन्होंने धीरे-धीरे धक्के लगाने शुरू किए, कुछ देर में मेरी योनि गीली होने लगी तो काम आसान हो गया।
उन्होंने मुझे धक्के लगाते हुए पूछा- तुम ठीक हो न.. कोई परेशानी तो नहीं हो रही..!
मैंने कहा- नहीं.. कोई परेशानी नहीं हो रही और होगी भी तो आपके लिए सब सह लूँगी, पर फिलहाल जल्दी करो क्योंकि देर हो जाएगी तो मुसीबत होगी।
ये सुनते ही उन्होंने मुस्कुराते हुए मुझे चूमा और धक्के तेज़ी से लगाने लगे, मैंने भी अपनी योनि को सिकोड़ लिया कि दबाव से वो जल्दी झड़ जाए।
करीब 20 मिनट के सम्भोग के बाद वो झड़ गए। मैंने जल्दी से वीर्य को साफ़ किया और अपनी पैंटी पहन कर कपड़े ठीक किए और चली आई।
अगले दिन पति के जाने के बाद दोपहर में अमर ने मुझे फोन किया।
मुझसे उसने कहा- अब तुम्हारे साथ बिना सम्भोग किए एक भी दिन नहीं रहा जाता।
मैंने उनसे कहा- रोज-रोज करोगे तो कुछ दिन में ही मजा ख़त्म हो जाएगा, बीच में कभी कभी गैप भी होना चाहिए।
तब अमर ने कहा- ये भी सही है पर क्या करें दिल मानता नहीं है।
मैंने उसे कहा- दिल को मनाओ..!
फिर उसने मुझे शाम को मिलने को कहा, और हम फिर मिले और दो बार सम्भोग भी हुआ।
फिर इसी तरह 2-4 दिन गुजर गए। एक दिन मैंने अमर से कहा- मैं अकेली हूँ दोपहर में..!
तो उन्होंने कहा- उन्हें भी आज दफ्तर में काम नहीं है, सो बस आ ही रहा हूँ।
पर मुझे थोड़ा डर लग रहा था क्योंकि मैं मध्यकाल में थी सो गर्भ ठहरने के डर से उन्हें पहले ही कह दिया कि आज कॉन्डोम साथ ले लें।
करीब 2 बजे वो मेरे घर पहुँच गए आते ही मुझे बाँहों में भर कर चूमने लगे फिर एक थैली मेरे हाथों में दी और कहा- आज तुम्हारे लिए तोहफा लेकर आया हूँ।
मैंने उत्सुकता से थैली को लिया और देखा मैं देख कर हैरान थी। थैली में कपड़े थे जो थोड़े अलग थे।
मैं हँसते हुए बोली- यह क्या है?
उन्होंने मुझसे कहा- पहन कर तो देखो पहले..!
मैंने मना किया क्योंकि थैली में जो कपड़े थे वो किसी स्कूल के बच्चे के जैसे थे, पर मेरी साइज़ के थे।
उन्होंने मुझे पहनने को जिद्द की, पर मैं मना कर रही थी। फिर मैंने उनकी खुशी के लिए वो पहनने को तैयार हो गई।
मैंने अन्दर जाकर अपने कपड़े उतार दिए फिर थैली में से कपड़े निकाले उसमे एक पैंटी थी पतली सी, एक ब्रा, उसी के रंग की जालीदार और एक शर्ट और एक छोटी सी स्कर्ट।
पहले तो मैं मन ही मन हँसी फिर सोचने लगी कि लोग कितने अजीब होते है प्यार में हमेशा औरतों को अलग तरह से देखना चाहते हैं।
मैंने वो पहन ली और खुद को आईने में देखा मुझे खुद पर इतनी हँसी आ रही थी कि क्या कहूँ, पर मैं सच में सेक्सी दिख रही थी।
स्कर्ट इतनी छोटी थी के मेरे चूतड़ थोड़े दिख रहे थे, मैंने सोच लिया कि अगर वो मुझे सेक्सी रूप में देखना चाहता है तो मैं उसके सामने वैसे ही जाऊँगी।
तब मैंने शर्ट के सारे बटन खोल दिए और नीचे से उसे बाँध दिया ताकि मेरे पेट और कमर साफ़ दिखे। अब मेरे स्तनों से लेकर कमर तक का हिस्सा खुला था और सामने से स्तन आधे ढके थे जिसमे ब्रा भी दिखाई दे रही थी।
जब मैं बाहर आई तो अमर मुझे देखता ही रह गया। उसने मुझे घूरते हुए अपनी बाँहों में भर लिया और कहा- तुम आज क़यामत लग रही हो, बहुत सेक्सी लग रही हो। और फिर मुझे चूमने लगा।
फिर उसने कहा- आज तुम्हें मैं कुछ दिखाना चाहता हूँ..!
और फिर एक सीडी निकाल कर टीवी चला दिया, पहले थोड़ी देर जो देखा तो मुझे यकीन ही नहीं हुआ कि क्या ये सच है।
मेरे सामने ब्लू-फिल्म लगी थी। मैंने तब उनसे पूछा- क्या ये सच में हो रहा है..?
उन्होंने कहा- हाँ.. ऐसी पिक्चर तुमने कभी नहीं देखी थी क्या?
मैंने कहा- नहीं!
मैं उसके सभी सीन देख कर काफी गर्म हो गई।
मैंने अमर से कहा- चलो मुझे प्यार करो।
उसने मेरा हाथ पकड़ा और फिर हम अन्दर चले गए, अन्दर जाते ही मैंने अपने कपड़े खुद ही उतार दिए और अमर ने भी खुद को नंगा कर दिया। एक-दूसरे को पागलों की तरह चूमना शुरू कर दिया, मैंने उसके लिंग को चूस कर काफी गर्म कर दिया और उसने मेरी योनि को।
फिर अमर ने मुझे लिटा कर सम्भोग के लिए तैयार हो गया तो मैंने कहा- आज कॉन्डोम लगा लो.. मुझे डर है कहीं बच्चा न ठहर जाए।
उसने मुझसे पूछा- आज क्यों इससे पहले तो बिना कॉन्डोम के ही किया और तुमने कभी नहीं कहा?
तब मैंने कहा- मैं मध्यकाल में हूँ, इसमें बच्चा ठहरने का डर होता है।
तब उन्होंने कहा- मुझे कॉन्डोम के साथ अच्छा नहीं लगता, क्योंकि इसमें पूरा मजा नहीं आता।
मैंने उनसे कहा- 2-4 रोज कॉन्डोम लगाने में क्या परेशानी है… बाकी समय तो मैं कोई विरोध नहीं करती।
तब मेरी बातों का ख्याल करते हुए उन्होंने अपनी पैंट के जेब से कॉन्डोम की डिब्बी निकाली और मुझे देते हुए कहा- खुद ही लगा दो।
मैंने कॉन्डोम निकाल कर उनके लिंग पर लगा दिया। फिर उन्हें अपने ऊपर ले कर लेट गई और लिंग को अपनी योनि मुँह पर टिका दिया और कहा- अब अन्दर घुसा लो।
मेर कहते ही उन्होंने लिंग को अन्दर धकेल दिया और धक्के लगाने लगे। कुछ देर यूँ ही सम्भोग करते रहे। फिर 4-5 मिनट के बाद मुझे बोले- कॉन्डोम से मजा नहीं आ रहा, ऐसा लग ही नहीं रहा कि मैंने तुम्हारी योनि में लिंग घुसाया है।
मैंने उनकी भावनाओं को समझा और मैंने अपनी योनि को सिकोड़ लिया ताकि उनको कुछ अच्छा लगे।
फिर मैंने पूछा- क्या अब भी ऐसा लग रहा है?
तब उन्होंने कहा- प्लीज यह कॉन्डोम निकाल देता हूँ बिल्कुल मजा नहीं आ रहा है।
मैंने मना किया, पर कुछ देर के सम्भोग में लगने लगा कि वो पूरे मन से नहीं कर रहे हैं।
कहानी जारी रहेगी।
अगले हफ्ते पति की शिफ्ट बदल गई और वो दोपहर को जाने लगे, अमर का भी समय शाम को वापस आने का था। दोपहर तक मुझे सामान्य लग रहा था, पर शाम होने लगी तो लगा कि अब मैं नहीं मिल पाऊँगी। शाम को मेरा बेटा पढ़ कर आ चुका था इसलिए अब कोई गुंजाईश नहीं बची थी।
मैं रसोई में खाना बनाने लगी मेरा काम लगभग पूरा हो चुका था। करीब 8 बज रहे थे, तभी मेरे बेटे ने मुझसे खाना माँगा और मैंने उसे खाना खिला दिया।
मैं खाना ढक कर अपने छोटे बच्चे को दूध पिलाने लगी, तब मैंने ध्यान दिया कि मेरा बड़ा बेटा किताब खोल कर ही सो गया है। मैंने उसे उठाकर दूसरे बिस्तर पर सुला दिया।
इधर छोटा बेटा भी सो गया, तो मैंने उसे भी झूले में सुला दिया। फिर मेरे दिल में ख्याल आया कि अमर को फोन करूँ। मैंने फोन लगाया तो उसने बताया कि वो अपने कमरे में ही है।
उसने मुझे छत पर आने को कहा।
मैंने कहा- पति कभी भी आ सकते हैं सो नहीं आ सकती हूँ।
पर उसने कहा- थोड़ी देर के लिए आ जाओ..!
मैं छत पर जाने लगी तो मैंने सोचा कि पति से पूछ लूँ कि कब तक आयेंगे, तो उन्हें फोन करके पूछा।
उसने कहा- लगभग 9 बजे निकलेंगे तो 10.30 से 11 बजे के बीच आ जायेंगे।
अमर का कमरा सबसे ऊपर ठीक हमारे घर के ऊपर था। हम छत पर कुछ देर बातें करने लगे।
फिर अमर ने कहा- चलो कमरे में चाय पीते हैं..!
हम कमरे में गए, उसने दो कप चाय बनाई और हम पीते हुए बातें करने लगे।
उसने बातें करते हुए कहा- ऐसा लग रहा है कि आज कुछ बाकी रह गया हो।
मैंने मुस्कुराते हुए कहा- हाँ.. शायद मेरा प्यार नहीं मिला इसलिए…!
उसने तब कहा- तो अभी दे दो…!
मैंने कहा- आज नहीं, मेरे पति आते ही होंगे।
तब उसने घड़ी की तरफ देखा 9.30 बज रहे थे।
उसने कहा- अभी बहुत समय है, हम जल्दी कर लेंगे..!
मैंने मना किया। पर उसने दरवाजा बंद कर दिया और मुझे पकड़ कर चूमने लगा। मैं समझ गई कि वो नहीं मानने वाला। सो जल्दी से करने देने में ही भलाई समझी।
मैंने उससे कहा- आप इस तरह करोगे तो काफी देर हो जाएगी, जो भी करना है, जल्दी से करो… बाकी जब फुर्सत में होंगे तो कर लेना!
उसने दरवाजा बंद कर दिया और मुझे पकड़ कर चूमने लगा। मैं समझ गई कि वो नहीं मानने वाला। सो जल्दी से करने देने में ही भलाई समझी।
मैंने उससे कहा- आप इस तरह करोगे तो काफी देर हो जाएगी, जो भी करना है, जल्दी से करो… बाकी जब फुर्सत में होंगे तो कर लेना…!
मेरी बात सुन कर उन्होंने अपना पजामे का नाड़ा खोल कर पाजामा नीचे कर दिया। मैंने उनके लिंग को हाथ से सहला कर टाइट कर दिया।
फिर झुक कर कुछ देर चूसा और फिर अपनी साड़ी उठा कर पैंटी निकाल कर बिस्तर पर लेट गई।
अमर मेरे ऊपर आ गए। मैंने अपनी टाँगें फैला कर ऊपर उठा दीं। फिर अमर ने एक हाथ से लिंग को पकड़ा और मेरी योनि में घुसाने लगे। मेरी योनि गीली नहीं होने की वजह से मुझे थोड़ी परेशानी हो रही थी, पर मैं चाह रही थी कि वो जल्दी से सम्भोग कर के शांत हो जाए इसलिए चुप रही।
पर जब अमर ने 2-4 धक्के दिए तो मेरी परेशानी और बढ़ गई और शायद अमर को भी दिक्कत हो रही थी।
सो मैंने कहा- रुकिए बाहर निकालिए..!
उन्होंने लिंग को बाहर निकाल दिया, मैंने अपने हाथ में थूक लगा कर उनके लिंग तथा अपनी योनि के छेद पर मल दिया और लिंग को छेद पर टिका दिया।
फिर मैंने उनसे कहा- अब आराम से धीरे-धीरे करो।
उन्होंने धीरे-धीरे धक्के लगाने शुरू किए, कुछ देर में मेरी योनि गीली होने लगी तो काम आसान हो गया।
उन्होंने मुझे धक्के लगाते हुए पूछा- तुम ठीक हो न.. कोई परेशानी तो नहीं हो रही..!
मैंने कहा- नहीं.. कोई परेशानी नहीं हो रही और होगी भी तो आपके लिए सब सह लूँगी, पर फिलहाल जल्दी करो क्योंकि देर हो जाएगी तो मुसीबत होगी।
ये सुनते ही उन्होंने मुस्कुराते हुए मुझे चूमा और धक्के तेज़ी से लगाने लगे, मैंने भी अपनी योनि को सिकोड़ लिया कि दबाव से वो जल्दी झड़ जाए।
करीब 20 मिनट के सम्भोग के बाद वो झड़ गए। मैंने जल्दी से वीर्य को साफ़ किया और अपनी पैंटी पहन कर कपड़े ठीक किए और चली आई।
अगले दिन पति के जाने के बाद दोपहर में अमर ने मुझे फोन किया।
मुझसे उसने कहा- अब तुम्हारे साथ बिना सम्भोग किए एक भी दिन नहीं रहा जाता।
मैंने उनसे कहा- रोज-रोज करोगे तो कुछ दिन में ही मजा ख़त्म हो जाएगा, बीच में कभी कभी गैप भी होना चाहिए।
तब अमर ने कहा- ये भी सही है पर क्या करें दिल मानता नहीं है।
मैंने उसे कहा- दिल को मनाओ..!
फिर उसने मुझे शाम को मिलने को कहा, और हम फिर मिले और दो बार सम्भोग भी हुआ।
फिर इसी तरह 2-4 दिन गुजर गए। एक दिन मैंने अमर से कहा- मैं अकेली हूँ दोपहर में..!
तो उन्होंने कहा- उन्हें भी आज दफ्तर में काम नहीं है, सो बस आ ही रहा हूँ।
पर मुझे थोड़ा डर लग रहा था क्योंकि मैं मध्यकाल में थी सो गर्भ ठहरने के डर से उन्हें पहले ही कह दिया कि आज कॉन्डोम साथ ले लें।
करीब 2 बजे वो मेरे घर पहुँच गए आते ही मुझे बाँहों में भर कर चूमने लगे फिर एक थैली मेरे हाथों में दी और कहा- आज तुम्हारे लिए तोहफा लेकर आया हूँ।
मैंने उत्सुकता से थैली को लिया और देखा मैं देख कर हैरान थी। थैली में कपड़े थे जो थोड़े अलग थे।
मैं हँसते हुए बोली- यह क्या है?
उन्होंने मुझसे कहा- पहन कर तो देखो पहले..!
मैंने मना किया क्योंकि थैली में जो कपड़े थे वो किसी स्कूल के बच्चे के जैसे थे, पर मेरी साइज़ के थे।
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मैंने अन्दर जाकर अपने कपड़े उतार दिए फिर थैली में से कपड़े निकाले उसमे एक पैंटी थी पतली सी, एक ब्रा, उसी के रंग की जालीदार और एक शर्ट और एक छोटी सी स्कर्ट।
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मैंने वो पहन ली और खुद को आईने में देखा मुझे खुद पर इतनी हँसी आ रही थी कि क्या कहूँ, पर मैं सच में सेक्सी दिख रही थी।
स्कर्ट इतनी छोटी थी के मेरे चूतड़ थोड़े दिख रहे थे, मैंने सोच लिया कि अगर वो मुझे सेक्सी रूप में देखना चाहता है तो मैं उसके सामने वैसे ही जाऊँगी।
तब मैंने शर्ट के सारे बटन खोल दिए और नीचे से उसे बाँध दिया ताकि मेरे पेट और कमर साफ़ दिखे। अब मेरे स्तनों से लेकर कमर तक का हिस्सा खुला था और सामने से स्तन आधे ढके थे जिसमे ब्रा भी दिखाई दे रही थी।
जब मैं बाहर आई तो अमर मुझे देखता ही रह गया। उसने मुझे घूरते हुए अपनी बाँहों में भर लिया और कहा- तुम आज क़यामत लग रही हो, बहुत सेक्सी लग रही हो। और फिर मुझे चूमने लगा।
फिर उसने कहा- आज तुम्हें मैं कुछ दिखाना चाहता हूँ..!
और फिर एक सीडी निकाल कर टीवी चला दिया, पहले थोड़ी देर जो देखा तो मुझे यकीन ही नहीं हुआ कि क्या ये सच है।
मेरे सामने ब्लू-फिल्म लगी थी। मैंने तब उनसे पूछा- क्या ये सच में हो रहा है..?
उन्होंने कहा- हाँ.. ऐसी पिक्चर तुमने कभी नहीं देखी थी क्या?
मैंने कहा- नहीं!
मैं उसके सभी सीन देख कर काफी गर्म हो गई।
मैंने अमर से कहा- चलो मुझे प्यार करो।
उसने मेरा हाथ पकड़ा और फिर हम अन्दर चले गए, अन्दर जाते ही मैंने अपने कपड़े खुद ही उतार दिए और अमर ने भी खुद को नंगा कर दिया। एक-दूसरे को पागलों की तरह चूमना शुरू कर दिया, मैंने उसके लिंग को चूस कर काफी गर्म कर दिया और उसने मेरी योनि को।
फिर अमर ने मुझे लिटा कर सम्भोग के लिए तैयार हो गया तो मैंने कहा- आज कॉन्डोम लगा लो.. मुझे डर है कहीं बच्चा न ठहर जाए।
उसने मुझसे पूछा- आज क्यों इससे पहले तो बिना कॉन्डोम के ही किया और तुमने कभी नहीं कहा?
तब मैंने कहा- मैं मध्यकाल में हूँ, इसमें बच्चा ठहरने का डर होता है।
तब उन्होंने कहा- मुझे कॉन्डोम के साथ अच्छा नहीं लगता, क्योंकि इसमें पूरा मजा नहीं आता।
मैंने उनसे कहा- 2-4 रोज कॉन्डोम लगाने में क्या परेशानी है… बाकी समय तो मैं कोई विरोध नहीं करती।
तब मेरी बातों का ख्याल करते हुए उन्होंने अपनी पैंट के जेब से कॉन्डोम की डिब्बी निकाली और मुझे देते हुए कहा- खुद ही लगा दो।
मैंने कॉन्डोम निकाल कर उनके लिंग पर लगा दिया। फिर उन्हें अपने ऊपर ले कर लेट गई और लिंग को अपनी योनि मुँह पर टिका दिया और कहा- अब अन्दर घुसा लो।
मेर कहते ही उन्होंने लिंग को अन्दर धकेल दिया और धक्के लगाने लगे। कुछ देर यूँ ही सम्भोग करते रहे। फिर 4-5 मिनट के बाद मुझे बोले- कॉन्डोम से मजा नहीं आ रहा, ऐसा लग ही नहीं रहा कि मैंने तुम्हारी योनि में लिंग घुसाया है।
मैंने उनकी भावनाओं को समझा और मैंने अपनी योनि को सिकोड़ लिया ताकि उनको कुछ अच्छा लगे।
फिर मैंने पूछा- क्या अब भी ऐसा लग रहा है?
तब उन्होंने कहा- प्लीज यह कॉन्डोम निकाल देता हूँ बिल्कुल मजा नहीं आ रहा है।
मैंने मना किया, पर कुछ देर के सम्भोग में लगने लगा कि वो पूरे मन से नहीं कर रहे हैं।
कहानी जारी रहेगी।
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(एक बार ऊपर आ जाईए न भैया )..(परिवार में हवस और कामना की कामशक्ति )..(लेखक-प्रेम गुरु की सेक्सी कहानियाँ running)..(कांता की कामपिपासा running).. (वक्त का तमाशा running).. (बहन का दर्द Complete )..
( आखिर वो दिन आ ही गया Complete )...(ज़िन्दगी एक सफ़र है बेगाना complete)..(ज़िद (जो चाहा वो पाया) complete)..(दास्तान ए चुदाई (माँ बेटी बेटा और किरायेदार ) complete) .. (एक राजा और चार रानियाँ complete)..(माया complete...)--(तवायफ़ complete)..(मेरी सेक्सी बहनेंcompleet) ..(दोस्त की माँ नशीली बहन छबीली compleet)..(माँ का आँचल और बहन की लाज़ compleet)..(दीवानगी compleet..(मेरी बर्बादी या आबादी (?) की ओर पहला कदमcompleet) ...(मेले के रंग सास,बहू और ननद के संग).
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(फैमिली में मोहब्बत और सेक्स (complet))........(कोई तो रोक लो)......(अमन विला-एक सेक्सी दुनियाँ)............. (ननद की ट्रैनिंग compleet)..............( सियासत और साजिश)..........(सोलहवां सावन)...........(जोरू का गुलाम या जे के जी).........(मेरा प्यार मेरी सौतेली माँ और बेहन)........(कैसे भड़की मेरे जिस्म की प्यास)........(काले जादू की दुनिया)....................(वो शाम कुछ अजीब थी)
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- jay
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Re: सारिका कंवल की जवानी के किस्से
फिर उन्होंने मुझसे कहा- कॉन्डोम निकाल देता हूँ जब स्खलन होने लगूंगा तो लिंग बाहर निकाल लूँगा।
मैंने उनसे पूछा- क्या खुद पर इतना नियंत्रण कर सकते हो?
तो उन्होंने मुझसे कहा- भरोसा करो.. मैं तुम्हें कभी कोई परेशानी में नहीं डालूँगा।
मैंने उन पर भरोसा किया और उन्होंने अपना लिंग बाहर निकाल कर कॉन्डोम हटा दिया फिर दुबारा अन्दर डाल कर सम्भोग करने लगे।
अब ऐसा लग रहा था जैसे वो खुश हैं और धक्के भी जोर-जोर से लगा रहे थे। मुझे भी बहुत मजा आ रहा था। हम करीब 2-3 बार आसन बदल कर सम्भोग करते रहे, इस बीच मैं झड़ गई।
फिर जब अमर झड़ने वाले थे, तो मुझसे कहा- मैं झड़ने को हूँ, तुम हाथ से हिला कर मेरी मदद करो।
फिर उन्होंने लिंग को बाहर खींच लिया, मैं हाथ से उनके लिंग को आगे-पीछे करने लगी और वो झड़ गए। उनके लिंग से वीर्य तेज़ी से निकला और मेरे पेट पर गिर गया कुछ बूँदें मेरे स्तनों और गले में लग गईं। वो मेरे बगल में लेट गए।
मैंने खुद को साफ़ किया। फिर बगल में उनकी तरफ चेहरे को कर लेट गई। उन्होंने मेरी एक टांग को अपने ऊपर रख कर, मेरे कूल्हों पर हाथ फेरते हुए कहा- तुम्हें मजा आया या नहीं?
मैंने जवाब दिया, “बहुत मजा आया, पर मुझे डर लगा रहा था कहीं आप मेरे अन्दर झड़ गए तो मुसीबत हो सकती थी।”
तब अमर ने कहा- मैं इतना नादान नहीं हूँ जो तुम्हें इस तरह की मुसीबत में डाल दूँ और मेरे माथे को चूम लिया। तब मुझे बड़ा सुकून सा महसूस हुआ और मैंने पूछा- आज ऐसे कपड़े मुझे पहनाने की क्या सूझी..?
तब उन्होंने मुझे बताया, “मैंने तुम्हें हमेशा साड़ी या फिर सलवार कमीज में देखा था, मेरे दिल में ख़याल आया कि तुम जब 20-21 की होगी और नए ज़माने के कपड़े पहनती होगी तो कैसी लगती होगी, जैसे कि जीन्स, शर्ट आदि। फिर मैंने सोचा कि तुम उस वक़्त कैसी दिखती होगी जब तुम 15-16 साल की होगी और स्कूल जाया करती होगी। स्कर्ट और शर्ट में, तो मैंने तुम्हें उस लिबास में देखने की सोची इसलिए ये कपड़े लाया।
फिर मैंने पूछा- तो पैन्टी और ब्रा क्यों लाए साथ में?
उन्होंने कहा- तुम अभी भी पुराने वाले पहन रही हो, तो सोचा नया खरीद दूँ, मुझे लगा कि तुम इस टाइप के ब्रा और पैंटी में और भी सुन्दर और सेक्सी लगोगी और सच बताऊँ तो तुम इतनी सुन्दर और सेक्सी लग रही थी कि अगर कोई तुम्हें देख लेता ऐसे तो, बलात्कार कर देता तुम्हारा…!
और हँसने लगा।
मैंने तब पूछा- तुम्हें भी मेरा बलात्कार करने की मन हो रहा था क्या…?
उसने हँसते हुए कहा- हाँ.. एक बार तो ख्याल आया, पर तुम तो वैसे ही मेरे लिए ही आई हो, मुझे बलात्कार करने जरुरत क्या है।
फिर मैंने ब्लू-फिल्म के बारे में पूछा।
उसने कहा- तुम ज्यादातर सामने शर्माती हो सोचा शायद फिल्म देख कर पूरी तरह खुल जाओ इसलिए दिखाया।
फिर उसने मुझसे पूछा- तुम्हें कौन सा दृश्य सबसे उत्तेजक लगा?
मैंने कहा- मेरे लिए तो सभी उत्तेजक ही थे मैंने पहली बार ऐसी फिल्म देखी है।
बातें करते-करते हमने एक-दूसरे को फिर से सहलाना और प्यार करना शुरू कर दिया, हमारे जिस्म फिर से गर्म होने लगे। उसने मुझसे कहा- फिल्म में जैसे दृश्य हैं वैसे कोशिश करते हैं..!
मैंने भी जोश में ‘हाँ’ कह दिया।
हालांकि कुछ पोजीशन तो ठीक थे, पर ज्यादातर मुमकिन नहीं था फिर भी अमर के कहने पर मैंने कोशिश की। हमने एक-दूसरे को अंगों को प्यार करना शुरू कर दिया, मैंने उसनके लिंग को प्यार किया और वो सख्त हो गया और मेरी योनि से मिलने को तड़पने लगा। मैं भी अपनी अधूरी प्यास लिए थी सो मैं अमर के ऊपर चढ़ गई। अमर ने लिंग को मेरी योनि के मुख पर लगा दिया और मैंने नीचे की और दबाव दिया लिंग मेरी योनि में ‘चप’ से घुस गया।
मेरी योनि में पहले से अमर की पूर्व की चुदाई का रस भरा था और मैं खुद भी गर्म हो गई थी सो योनि पूरी तरह गीली हो गई थी, सो मुझे धक्के लगाने में बहुत मजा आ रहा था।
अमर ने मेरी कमर पकड़े हुए था। मैंने झुक कर एक स्तन को उसके मुँह में लगा दिया और वो उसे चूसने लगा। मैं जोरों से धक्के लगाने लगी। अमर भी बीच-बीच में नीचे से झटके देता, और तब उनका लिंग मेरे बच्चेदानी तक चला जाता और मैं जोश में अपने कमर को नचाने लगती। हम काफी गर्म जोशी से सम्भोग करते रहे फिर उसने मुझे नीचे लिटा दिया और कमर के नीचे तकिया रखा और धक्के लगाने लगा। उनके धक्कों से मैं कुहक जाती हर बार मेरे मुँह से मादक सिसकियां निकलने लगीं और मैं झड़ गई। पर अमर अभी भी धक्के पे धक्के लगा रहा था।
मेर झड़ने के करीब 4-6 मिनट बाद वो भी झड़ गए और मेरे ऊपर निढाल हो गए। वो हाँफते हुए मेरे ऊपर लेटे रहे, मैंने उनके सर को सहलाना शुरू कर दिया वो चुपचाप थे। कुछ देर बाद मैंने उनको आवाज दी, पर उन्होंने नहीं सुना, मैंने देखा कि वो सो गए थे। मैंने थका हुआ सोच कर उनको अपने ऊपर ही सोने दिया। ये सोच कर खुद जब करवट लेंगे मुझसे अलग हो जायेंगे।
मैं उनके सर के बालों को सहलाती हुई सोचने लगी कि मैं इनके साथ क्या-क्या कर रही हूँ जो मैंने कभी सोचा नहीं था। सम्भोग अब खेल सा बन गया था, एक-दूसरे को तड़पाने और फिर मिलने का मजा। यही सोचते-सोचते पता नहीं मैं कब सो गई पता ही नहीं चला। जब मेरी आँख खुली तो देखा 2.30 बज रहे थे और अमर अभी भी मेरे ऊपर सोया हुआ है।
मैंने सोचा कि सुबह होने वाली है इसलिए इसे उठा कर जाने के लिए बोलूँ, सो मैंने उसे आवाज दी और वो उठ गया पर उसके उठने पर मुझे बड़ा ताज्जुब हुआ, उसका लिंग अभी तक मेरी योनि के अन्दर ही था। मैं मन ही मन हँस दी और फिर बाथरूम चली गई। वापस आई तो हमने दुबारा सम्भोग किया फिर अमर को चले जाने को कहा।
इसी तरह 15 दिन बीत गए हमें, रोज सम्भोग करते हुए, इन 15 दिनों में हमने कोई कोई दिन 7 बार तक सम्भोग किया।
इन दिनों में मैंने पाया कि मर्द शुरू में जल्दी झड़ जाते हैं पर उसके बाद हर बार काफी समय लगता है फिर से झड़ने में और औरतों का ठीक उल्टा होता है उन्हें शुरू में थोड़ा समय लगता है गर्म होने और झड़ने में पर अगली बार जल्दी झड़ जाती हैं।
मुझे शुरू में लगा कि शायद ऐसा मेरे साथ ही होता है पर कई किताबों से और फिर मेरी सहेलियाँ सुधा और हेमलता से पता चला कि सभी औरतों के साथ ऐसा होता है।
मैंने उनसे पूछा- क्या खुद पर इतना नियंत्रण कर सकते हो?
तो उन्होंने मुझसे कहा- भरोसा करो.. मैं तुम्हें कभी कोई परेशानी में नहीं डालूँगा।
मैंने उन पर भरोसा किया और उन्होंने अपना लिंग बाहर निकाल कर कॉन्डोम हटा दिया फिर दुबारा अन्दर डाल कर सम्भोग करने लगे।
अब ऐसा लग रहा था जैसे वो खुश हैं और धक्के भी जोर-जोर से लगा रहे थे। मुझे भी बहुत मजा आ रहा था। हम करीब 2-3 बार आसन बदल कर सम्भोग करते रहे, इस बीच मैं झड़ गई।
फिर जब अमर झड़ने वाले थे, तो मुझसे कहा- मैं झड़ने को हूँ, तुम हाथ से हिला कर मेरी मदद करो।
फिर उन्होंने लिंग को बाहर खींच लिया, मैं हाथ से उनके लिंग को आगे-पीछे करने लगी और वो झड़ गए। उनके लिंग से वीर्य तेज़ी से निकला और मेरे पेट पर गिर गया कुछ बूँदें मेरे स्तनों और गले में लग गईं। वो मेरे बगल में लेट गए।
मैंने खुद को साफ़ किया। फिर बगल में उनकी तरफ चेहरे को कर लेट गई। उन्होंने मेरी एक टांग को अपने ऊपर रख कर, मेरे कूल्हों पर हाथ फेरते हुए कहा- तुम्हें मजा आया या नहीं?
मैंने जवाब दिया, “बहुत मजा आया, पर मुझे डर लगा रहा था कहीं आप मेरे अन्दर झड़ गए तो मुसीबत हो सकती थी।”
तब अमर ने कहा- मैं इतना नादान नहीं हूँ जो तुम्हें इस तरह की मुसीबत में डाल दूँ और मेरे माथे को चूम लिया। तब मुझे बड़ा सुकून सा महसूस हुआ और मैंने पूछा- आज ऐसे कपड़े मुझे पहनाने की क्या सूझी..?
तब उन्होंने मुझे बताया, “मैंने तुम्हें हमेशा साड़ी या फिर सलवार कमीज में देखा था, मेरे दिल में ख़याल आया कि तुम जब 20-21 की होगी और नए ज़माने के कपड़े पहनती होगी तो कैसी लगती होगी, जैसे कि जीन्स, शर्ट आदि। फिर मैंने सोचा कि तुम उस वक़्त कैसी दिखती होगी जब तुम 15-16 साल की होगी और स्कूल जाया करती होगी। स्कर्ट और शर्ट में, तो मैंने तुम्हें उस लिबास में देखने की सोची इसलिए ये कपड़े लाया।
फिर मैंने पूछा- तो पैन्टी और ब्रा क्यों लाए साथ में?
उन्होंने कहा- तुम अभी भी पुराने वाले पहन रही हो, तो सोचा नया खरीद दूँ, मुझे लगा कि तुम इस टाइप के ब्रा और पैंटी में और भी सुन्दर और सेक्सी लगोगी और सच बताऊँ तो तुम इतनी सुन्दर और सेक्सी लग रही थी कि अगर कोई तुम्हें देख लेता ऐसे तो, बलात्कार कर देता तुम्हारा…!
और हँसने लगा।
मैंने तब पूछा- तुम्हें भी मेरा बलात्कार करने की मन हो रहा था क्या…?
उसने हँसते हुए कहा- हाँ.. एक बार तो ख्याल आया, पर तुम तो वैसे ही मेरे लिए ही आई हो, मुझे बलात्कार करने जरुरत क्या है।
फिर मैंने ब्लू-फिल्म के बारे में पूछा।
उसने कहा- तुम ज्यादातर सामने शर्माती हो सोचा शायद फिल्म देख कर पूरी तरह खुल जाओ इसलिए दिखाया।
फिर उसने मुझसे पूछा- तुम्हें कौन सा दृश्य सबसे उत्तेजक लगा?
मैंने कहा- मेरे लिए तो सभी उत्तेजक ही थे मैंने पहली बार ऐसी फिल्म देखी है।
बातें करते-करते हमने एक-दूसरे को फिर से सहलाना और प्यार करना शुरू कर दिया, हमारे जिस्म फिर से गर्म होने लगे। उसने मुझसे कहा- फिल्म में जैसे दृश्य हैं वैसे कोशिश करते हैं..!
मैंने भी जोश में ‘हाँ’ कह दिया।
हालांकि कुछ पोजीशन तो ठीक थे, पर ज्यादातर मुमकिन नहीं था फिर भी अमर के कहने पर मैंने कोशिश की। हमने एक-दूसरे को अंगों को प्यार करना शुरू कर दिया, मैंने उसनके लिंग को प्यार किया और वो सख्त हो गया और मेरी योनि से मिलने को तड़पने लगा। मैं भी अपनी अधूरी प्यास लिए थी सो मैं अमर के ऊपर चढ़ गई। अमर ने लिंग को मेरी योनि के मुख पर लगा दिया और मैंने नीचे की और दबाव दिया लिंग मेरी योनि में ‘चप’ से घुस गया।
मेरी योनि में पहले से अमर की पूर्व की चुदाई का रस भरा था और मैं खुद भी गर्म हो गई थी सो योनि पूरी तरह गीली हो गई थी, सो मुझे धक्के लगाने में बहुत मजा आ रहा था।
अमर ने मेरी कमर पकड़े हुए था। मैंने झुक कर एक स्तन को उसके मुँह में लगा दिया और वो उसे चूसने लगा। मैं जोरों से धक्के लगाने लगी। अमर भी बीच-बीच में नीचे से झटके देता, और तब उनका लिंग मेरे बच्चेदानी तक चला जाता और मैं जोश में अपने कमर को नचाने लगती। हम काफी गर्म जोशी से सम्भोग करते रहे फिर उसने मुझे नीचे लिटा दिया और कमर के नीचे तकिया रखा और धक्के लगाने लगा। उनके धक्कों से मैं कुहक जाती हर बार मेरे मुँह से मादक सिसकियां निकलने लगीं और मैं झड़ गई। पर अमर अभी भी धक्के पे धक्के लगा रहा था।
मेर झड़ने के करीब 4-6 मिनट बाद वो भी झड़ गए और मेरे ऊपर निढाल हो गए। वो हाँफते हुए मेरे ऊपर लेटे रहे, मैंने उनके सर को सहलाना शुरू कर दिया वो चुपचाप थे। कुछ देर बाद मैंने उनको आवाज दी, पर उन्होंने नहीं सुना, मैंने देखा कि वो सो गए थे। मैंने थका हुआ सोच कर उनको अपने ऊपर ही सोने दिया। ये सोच कर खुद जब करवट लेंगे मुझसे अलग हो जायेंगे।
मैं उनके सर के बालों को सहलाती हुई सोचने लगी कि मैं इनके साथ क्या-क्या कर रही हूँ जो मैंने कभी सोचा नहीं था। सम्भोग अब खेल सा बन गया था, एक-दूसरे को तड़पाने और फिर मिलने का मजा। यही सोचते-सोचते पता नहीं मैं कब सो गई पता ही नहीं चला। जब मेरी आँख खुली तो देखा 2.30 बज रहे थे और अमर अभी भी मेरे ऊपर सोया हुआ है।
मैंने सोचा कि सुबह होने वाली है इसलिए इसे उठा कर जाने के लिए बोलूँ, सो मैंने उसे आवाज दी और वो उठ गया पर उसके उठने पर मुझे बड़ा ताज्जुब हुआ, उसका लिंग अभी तक मेरी योनि के अन्दर ही था। मैं मन ही मन हँस दी और फिर बाथरूम चली गई। वापस आई तो हमने दुबारा सम्भोग किया फिर अमर को चले जाने को कहा।
इसी तरह 15 दिन बीत गए हमें, रोज सम्भोग करते हुए, इन 15 दिनों में हमने कोई कोई दिन 7 बार तक सम्भोग किया।
इन दिनों में मैंने पाया कि मर्द शुरू में जल्दी झड़ जाते हैं पर उसके बाद हर बार काफी समय लगता है फिर से झड़ने में और औरतों का ठीक उल्टा होता है उन्हें शुरू में थोड़ा समय लगता है गर्म होने और झड़ने में पर अगली बार जल्दी झड़ जाती हैं।
मुझे शुरू में लगा कि शायद ऐसा मेरे साथ ही होता है पर कई किताबों से और फिर मेरी सहेलियाँ सुधा और हेमलता से पता चला कि सभी औरतों के साथ ऐसा होता है।
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Re: सारिका कंवल की जवानी के किस्से
अब तक मैंने अमर और विजय के बारे में बताया आज मैं मुर्तुजा के बारे में बताने जा रही हूँ।
उसका पूरा नाम मुर्तुजा अंसारी था और वो मुझे पुरी में मिला था। जब मैं अपने पति के साथ घूमने के लिए गई थी।
मैं उस वक़्त पति के तबादले की बात हो रही थी, तो मेरे पति ने मुझे और बच्चों को घुमाने के लिए पुरी ले गए। अमर से भी अब मैं दूर रहने लगी थी, क्योंकि वो पत्नी की बीमारी की वजह से ज्यादातर घर आने-जाने लगे थे।
अमर और मेरे बीच बातें तो रोज होती थीं, पर करीब एक महीने से शारीरिक मिलन नहीं हो रहा था। पति के तबादले के ठीक एक हफ्ते पहले हमने घूमने का विचार किया और मेरे पति मुझे और मेरे बच्चों को लेकर पुरी चले गए।
हम दो दिन घूमे, फिर जिस रात वापस आना था उसी शाम को हम खाना खाने एक रेस्टोरेन्ट में गए। तभी मैंने गौर किया एक 35-36 साल का आदमी जो ठीक हमारे सामने बैठा, अपनी बीवी और 3 बच्चों के साथ खाना खा रहा था, बार-बार मुझे घूर रहा है।
वो काफी लम्बा-चौड़ा, गोरा हल्की दाढ़ी, एकदम जवान, उसे देख कर लग रहा था जैसे कोई अँगरेज़ हो।
पहले तो मैंने नजरअन्दाज करने की कोशिश की, पर मुझे कुछ अजीब सा लगा। उसके देखने के तरीके से ऐसा लग रहा था, जैसे वो हमें जानता हो।
काफी देर देखने के बाद उसने मुझे मुस्कुरा कर देखा।
मैंने तब अपने पति से कहा- वो हमें बार-बार देख रहा है।
जब मेरे पति ने उसकी तरफ देखा तो वो उठ कर हमारे पास आया और कहा- आप लोग अंगुल से हो न..?
मेरे पति ने जवाब दिया- हाँ, पर आपको कैसे पता चला?
उसने तब कहा- मैं भी वहीं से हूँ और मेरी एक कपड़ों की दुकान है।
तब मेरे पति ने पूछा- हाँ.. पर मैं तो कभी आपसे नहीं मिला।
फिर मेरे पति ने मेरी तरफ देखा तो मैंने भी कह दिया- मैं भी नहीं जानती!
तब उसने बताया- नहीं.. हम पहले कभी नहीं मिले, दरअसल आपकी पत्नी को मैंने अंगुल में बहुत बार देखा है। बच्चे को स्कूल से लेने जाती हैं तब..
फिर उसने कहा- आप लोगों को देखा तो बस यूँ ही सोचा कि पूछ लूँ कि घूमने आए होंगे!
यह कह कर उसने हम लोगों को अपने परिवार से मिलाया। फिर कुछ देर जान-पहचान की बातें हुईं और हम लोगों ने वापस अपने घर आने के लिए ट्रेन पकड़ ली।
मुझे ऐसा लगा जैसे आम मुलाकात होती है लोगों की राह चलते वैसी ही होगी, पर कहते है कि अगर नदी में बाढ़ आई है तो कहीं न कहीं बारिश हुई होगी।
मतलब कि हर चीज़ के पीछे कोई न कोई कारण होता है, हमारी मुलाकात भी बेवजह नहीं थी, इसका भी कारण था जो मुझे बाद में पता चला।
अगले दिन हम घर पहुँच गए।
मेरे पति का तबादला तो हो चुका था, पर हम इतनी जल्दी नहीं जा सकते थे क्योंकि दिसम्बर का महीना था और मार्च के शुरू में मेरे बच्चे का इम्तिहान शुरू होने वाला था।
इसलिए पति ने फैसला लिया कि उसके इम्तिहान के बाद ही हम यहाँ से जायेंगे ताकि नई जगह में जाकर बच्चे की पढ़ाई के लिए फिर से उसी क्लास में दाखिला न लेना पड़े।
इसलिए पति ने मुझे और बच्चों को यहीं छोड़ दिया और खुद रांची चले गए और हर हफ्ते छुट्टी में आने का फैसला किया।
पुरी से वापस लौटने के दो दिन बाद पति जाने वाले थे सो मैंने उनका सारा सामान बाँध दिया और रात को वो चले गए।
उसी रात अमर ने मुझे फोन किया और मेरा हाल-चाल पूछा। उससे बातें किए एक हफ्ता हो चुका था तो काफी देर तक हम बातें करते रहे।
उसने बताया कि उसकी बीवी की तबियत बहुत ख़राब है, सो अभी उसे महीने में हर बार आना जाना पड़ेगा। मैंने भी सोचा कि हाँ.. अब यहीं तक का साथ लिखा था हमारे नसीब में, सो उसे अपने दिल से निकालने की सोचने लगी क्योंकि जितना याद करती उतना ही दुःख होता। एक लम्बे समय तक किसी के साथ समय गुजार लेना कुछ कम नहीं होता।
खैर… मैं अगले दिन अपने बच्चे को लाने स्कूल गई।
ये मेरा दूसरा वाला बच्चा था। बड़े बेटे को लाने और ले जाने की अब जरुरत नहीं होती थी।
मैं जब उसे लेकर आ रही थी, तभी किसी ने मुझे आवाज दी। मैंने पलट कर देखा तो ये वही आदमी था जो हमें पुरी में मिला था।
मैंने कभी सोचा नही था कि इस आदमी से दुबारा मुलाकात होगी। पर किस्मत का खेल ही ऐसा होता है कि कब किससे मिला दे और कब किससे जुदा कर दे।
उसने मेरे पास आकर ‘सलाम’ कहा, फिर बताया कि वो हमारे पास के मोहल्ले से कुछ दूर ही रहता है। हम साथ बात करते हुए चलने लगे। फिर वो एक गली की तरफ मुड़ गया और हमें अलविदा कह चला गया।
उसने बातचीत के दौरान बताया कि उसका नाम मुर्तुजा अंसारी है, उसकी बीवी का नाम फरजाना है और 3 बच्चे हैं। उसकी बीवी की उम्र कुछ ज्यादा नहीं थी। महज 25 साल थी और बच्चों में भी कोई खास फर्क नहीं बस एक साल का था।
अगले दिन हम फिर मिले और बातें करते हुए जाने लगे।
तभी मैंने पूछा- आप अपनी दुकान छोड़ अपने बच्चों को लेने आते हैं, अपनी बीवी को क्यों नहीं भेजते?
तब उसने कहा- मेरी बीवी पढ़ी-लिखी नहीं है और मुस्लिम संस्कार में पली-बढ़ी है सो ज्यादा घर से बाहर नहीं निकलना पसंद करती..
मैंने कहा- इस जमाने में भी ऐसी है वो!
तब उसने कहा- क्या करूँ बदलने की कोशिश करता हूँ पर बदलती नहीं और ज्यादा जोर देने पर माँ-बाप से कह देती है इसलिए खुद ही सब कुछ करता हूँ।
तब मैंने पूछा- आप कितने पढ़े-लिखे हैं?
उसने जवाब दिया- जी एम.ए. किया है इंग्लिश में!
मैंने कहा- फिर अनपढ़ लड़की से शादी क्यों की?
उसने जवाब दिया, जी शादी तो घरवालों ने करा दी और हमारे यहाँ तो शादियाँ नजदीक के रिश्तेदारों में ही हो जाती हैं।
मैंने कहा- फिर भी आपको तो सोचना चाहिए था कि अपने बच्चों का एक पढ़ी-लिखी औरत जैसा ख्याल रख सकती है वैसा एक अनपढ़ औरत नहीं रख सकती है!
तब उसने कहा- जी पढ़ी-लिखी तो है, पर सिर्फ उर्दू!
फिर मैंने कहा- आपने इतनी जल्दी-जल्दी बच्चे क्यों किए? क्या जल्दबाजी थी?
उसने हँसते हुए कहा- अब क्या कहूँ, रहने दीजिए!
उसका पूरा नाम मुर्तुजा अंसारी था और वो मुझे पुरी में मिला था। जब मैं अपने पति के साथ घूमने के लिए गई थी।
मैं उस वक़्त पति के तबादले की बात हो रही थी, तो मेरे पति ने मुझे और बच्चों को घुमाने के लिए पुरी ले गए। अमर से भी अब मैं दूर रहने लगी थी, क्योंकि वो पत्नी की बीमारी की वजह से ज्यादातर घर आने-जाने लगे थे।
अमर और मेरे बीच बातें तो रोज होती थीं, पर करीब एक महीने से शारीरिक मिलन नहीं हो रहा था। पति के तबादले के ठीक एक हफ्ते पहले हमने घूमने का विचार किया और मेरे पति मुझे और मेरे बच्चों को लेकर पुरी चले गए।
हम दो दिन घूमे, फिर जिस रात वापस आना था उसी शाम को हम खाना खाने एक रेस्टोरेन्ट में गए। तभी मैंने गौर किया एक 35-36 साल का आदमी जो ठीक हमारे सामने बैठा, अपनी बीवी और 3 बच्चों के साथ खाना खा रहा था, बार-बार मुझे घूर रहा है।
वो काफी लम्बा-चौड़ा, गोरा हल्की दाढ़ी, एकदम जवान, उसे देख कर लग रहा था जैसे कोई अँगरेज़ हो।
पहले तो मैंने नजरअन्दाज करने की कोशिश की, पर मुझे कुछ अजीब सा लगा। उसके देखने के तरीके से ऐसा लग रहा था, जैसे वो हमें जानता हो।
काफी देर देखने के बाद उसने मुझे मुस्कुरा कर देखा।
मैंने तब अपने पति से कहा- वो हमें बार-बार देख रहा है।
जब मेरे पति ने उसकी तरफ देखा तो वो उठ कर हमारे पास आया और कहा- आप लोग अंगुल से हो न..?
मेरे पति ने जवाब दिया- हाँ, पर आपको कैसे पता चला?
उसने तब कहा- मैं भी वहीं से हूँ और मेरी एक कपड़ों की दुकान है।
तब मेरे पति ने पूछा- हाँ.. पर मैं तो कभी आपसे नहीं मिला।
फिर मेरे पति ने मेरी तरफ देखा तो मैंने भी कह दिया- मैं भी नहीं जानती!
तब उसने बताया- नहीं.. हम पहले कभी नहीं मिले, दरअसल आपकी पत्नी को मैंने अंगुल में बहुत बार देखा है। बच्चे को स्कूल से लेने जाती हैं तब..
फिर उसने कहा- आप लोगों को देखा तो बस यूँ ही सोचा कि पूछ लूँ कि घूमने आए होंगे!
यह कह कर उसने हम लोगों को अपने परिवार से मिलाया। फिर कुछ देर जान-पहचान की बातें हुईं और हम लोगों ने वापस अपने घर आने के लिए ट्रेन पकड़ ली।
मुझे ऐसा लगा जैसे आम मुलाकात होती है लोगों की राह चलते वैसी ही होगी, पर कहते है कि अगर नदी में बाढ़ आई है तो कहीं न कहीं बारिश हुई होगी।
मतलब कि हर चीज़ के पीछे कोई न कोई कारण होता है, हमारी मुलाकात भी बेवजह नहीं थी, इसका भी कारण था जो मुझे बाद में पता चला।
अगले दिन हम घर पहुँच गए।
मेरे पति का तबादला तो हो चुका था, पर हम इतनी जल्दी नहीं जा सकते थे क्योंकि दिसम्बर का महीना था और मार्च के शुरू में मेरे बच्चे का इम्तिहान शुरू होने वाला था।
इसलिए पति ने फैसला लिया कि उसके इम्तिहान के बाद ही हम यहाँ से जायेंगे ताकि नई जगह में जाकर बच्चे की पढ़ाई के लिए फिर से उसी क्लास में दाखिला न लेना पड़े।
इसलिए पति ने मुझे और बच्चों को यहीं छोड़ दिया और खुद रांची चले गए और हर हफ्ते छुट्टी में आने का फैसला किया।
पुरी से वापस लौटने के दो दिन बाद पति जाने वाले थे सो मैंने उनका सारा सामान बाँध दिया और रात को वो चले गए।
उसी रात अमर ने मुझे फोन किया और मेरा हाल-चाल पूछा। उससे बातें किए एक हफ्ता हो चुका था तो काफी देर तक हम बातें करते रहे।
उसने बताया कि उसकी बीवी की तबियत बहुत ख़राब है, सो अभी उसे महीने में हर बार आना जाना पड़ेगा। मैंने भी सोचा कि हाँ.. अब यहीं तक का साथ लिखा था हमारे नसीब में, सो उसे अपने दिल से निकालने की सोचने लगी क्योंकि जितना याद करती उतना ही दुःख होता। एक लम्बे समय तक किसी के साथ समय गुजार लेना कुछ कम नहीं होता।
खैर… मैं अगले दिन अपने बच्चे को लाने स्कूल गई।
ये मेरा दूसरा वाला बच्चा था। बड़े बेटे को लाने और ले जाने की अब जरुरत नहीं होती थी।
मैं जब उसे लेकर आ रही थी, तभी किसी ने मुझे आवाज दी। मैंने पलट कर देखा तो ये वही आदमी था जो हमें पुरी में मिला था।
मैंने कभी सोचा नही था कि इस आदमी से दुबारा मुलाकात होगी। पर किस्मत का खेल ही ऐसा होता है कि कब किससे मिला दे और कब किससे जुदा कर दे।
उसने मेरे पास आकर ‘सलाम’ कहा, फिर बताया कि वो हमारे पास के मोहल्ले से कुछ दूर ही रहता है। हम साथ बात करते हुए चलने लगे। फिर वो एक गली की तरफ मुड़ गया और हमें अलविदा कह चला गया।
उसने बातचीत के दौरान बताया कि उसका नाम मुर्तुजा अंसारी है, उसकी बीवी का नाम फरजाना है और 3 बच्चे हैं। उसकी बीवी की उम्र कुछ ज्यादा नहीं थी। महज 25 साल थी और बच्चों में भी कोई खास फर्क नहीं बस एक साल का था।
अगले दिन हम फिर मिले और बातें करते हुए जाने लगे।
तभी मैंने पूछा- आप अपनी दुकान छोड़ अपने बच्चों को लेने आते हैं, अपनी बीवी को क्यों नहीं भेजते?
तब उसने कहा- मेरी बीवी पढ़ी-लिखी नहीं है और मुस्लिम संस्कार में पली-बढ़ी है सो ज्यादा घर से बाहर नहीं निकलना पसंद करती..
मैंने कहा- इस जमाने में भी ऐसी है वो!
तब उसने कहा- क्या करूँ बदलने की कोशिश करता हूँ पर बदलती नहीं और ज्यादा जोर देने पर माँ-बाप से कह देती है इसलिए खुद ही सब कुछ करता हूँ।
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(एक बार ऊपर आ जाईए न भैया )..(परिवार में हवस और कामना की कामशक्ति )..(लेखक-प्रेम गुरु की सेक्सी कहानियाँ running)..(कांता की कामपिपासा running).. (वक्त का तमाशा running).. (बहन का दर्द Complete )..
( आखिर वो दिन आ ही गया Complete )...(ज़िन्दगी एक सफ़र है बेगाना complete)..(ज़िद (जो चाहा वो पाया) complete)..(दास्तान ए चुदाई (माँ बेटी बेटा और किरायेदार ) complete) .. (एक राजा और चार रानियाँ complete)..(माया complete...)--(तवायफ़ complete)..(मेरी सेक्सी बहनेंcompleet) ..(दोस्त की माँ नशीली बहन छबीली compleet)..(माँ का आँचल और बहन की लाज़ compleet)..(दीवानगी compleet..(मेरी बर्बादी या आबादी (?) की ओर पहला कदमcompleet) ...(मेले के रंग सास,बहू और ननद के संग).
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(फैमिली में मोहब्बत और सेक्स (complet))........(कोई तो रोक लो)......(अमन विला-एक सेक्सी दुनियाँ)............. (ननद की ट्रैनिंग compleet)..............( सियासत और साजिश)..........(सोलहवां सावन)...........(जोरू का गुलाम या जे के जी).........(मेरा प्यार मेरी सौतेली माँ और बेहन)........(कैसे भड़की मेरे जिस्म की प्यास)........(काले जादू की दुनिया)....................(वो शाम कुछ अजीब थी)
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- jay
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Re: सारिका कंवल की जवानी के किस्से
मुझे पता नहीं क्या हुआ शायद अपने सामने एक अनपढ़ औरत की बातें सुन खुद पर नाज हुआ और कह बैठी- इस जमाने में भी आप ऐसे लोग है… इतने सारे तरीके हैं, कुछ भी कर सकते थे.. कुछ तो दिमाग लगाना चाहिए था!
अब उसे भी शायद अपनी बेइज्ज़ती सी लगी, सो उसने मुझे समझाते हुए कहा- देखिए हर इंसान का रहन-सहन अलग होता है और हर मजहब का भी… मेरी बीवी कट्टर मुस्लिम समाज में पली-बढ़ी है, इसलिए वो इससे दिल से जुड़ी है। मैं भी उसी मजहब का एक हिस्सा हूँ इसलिए उसकी इज्ज़त करता हूँ, पर मैं बस उसके लिए हूँ, मैं भी नए जमाने के बारे में जानता हूँ और घर के बाहर आम लोगों की तरह ही रहता हूँ।
तब मैंने जोर देकर कहा- अगर सोचते तो ऐसा नहीं करते.. औरत बच्चे पैदा करने की मशीन नहीं होती!
उसे मेरी बात का शायद बुरा लगा और कहा- देखिए आप गलत समझ रही हैं.. कन्डोम और बाकी की चीजों का इस्तेमाल करना हमारे यहाँ सही नहीं माना जाता और न ही नसबंदी कराने को, सो जल्दी-जल्दी में हो गए क्योंकि मेरी बीवी इन सब बातों को सख्ती से मानती है।
तब मैंने कहा- मतलब आगे भी और बच्चे होंगे?
उसने कहा- इसी बात का तो डर है इसलिए बीवी से दूर ही रहता हूँ!
और फिर ऐसी बातें करते हुए हम अपने अपने घर को चले गए।
घर पहुँच कर ऐसा लग रहा था जैसे हमारी मुलाकात दो दिन पहले नहीं बल्कि हम काफी दिनों से एक-दूसरे को जानते थे।
हम दो दिन के मुलाकात में ही इतने खुल कर बातें करने लगे थे, यह सोचना जायज था।
उससे खुल कर बातें करने का भी शायद कारण था कि वो दिखने और बातें करने में बहुत आकर्षक था।
अगले दिन हम फिर मिले, पर इस बार मेरे पति और और घर परिवार की बातें हुई।
फिर मैंने उसे बताया के मार्च में हम यहाँ से चले जायेंगे तो उसने मुझसे मेरा फोन का नंबर माँगा।
मैंने मना किया तो उसने मुझे अपना नंबर दे दिया कि अगर कभी बात करने की इच्छा हो तो फोन कर लेना।
मैं वापस अपने घर चली आई। शाम को पता नहीं मैंने क्या सोचा और उसे फोन किया। मेरी आवाज सुनते ही वो ऐसा खुश हुआ जैसे कोई खजाना मिल गया हो।
थोड़ी बहुत बातें करने के बाद मैंने फोन रख दिया और अपने काम में व्यस्त हो गई।
रात को पता नहीं मुझे नींद नहीं आ रही थी, फिर अचानक मेरे फोन की घंटी बजी, देखा तो उसका मैसेज था।
मैं कुछ देर तो सोचती रही, फिर मैंने भी सोचा कि कोई मुझे अच्छे सपनों का मैसेज कर रहा है, तो मैं भी कर दूँ, सो मैंने भी रिप्लाई कर दिया।
कुछ देर बाद उसका फोन आया, मैंने नहीं उठाया और मैं सोने की कोशिश करने लगी, पर नींद पता नहीं क्यों, मुझे आ नहीं रही थी।
मैं पेशाब करने के लिए उठी और बाथरूम से आकर फिर सोने की कोशिश करने लगी पर फिर भी नींद नहीं आ रही थी।
मैंने मोबाइल में समय देखा तो 12 बजने को थे। मैंने सोचा कि देखूँ मुर्तुजा सोया या नहीं, सो मैंने फोन करके तुरंत काट दिया।
दस सेकंड के बाद तुरंत उसका फोन आ गया। मैं कुछ देर तो सोचती रही कि क्या करूँ, पर तब तक फोन कट गया। मैंने राहत की सांस ली पर तब तक दुबारा घण्टी बजी, मैं अब सोच में पड़ गई कि क्या करूँ?
तब तक फिर फोन कट गया और मैंने सोचा कि शायद अब वो फोन नहीं करेगा, पर फिर से फोन रिंग हुआ। इस बार मैंने फोन उठा लिया।
उसने कहा- हैलो.. सोई नहीं.. अभी तक आप?
मैंने कहा- सो गई थी, पर अभी पानी पीने को उठी तो आपका ‘मिस कॉल’ था पर समय नहीं देख पाई थी, इसलिए कॉल कर दिया, आप सोये नहीं अभी तक?
मैं बस अनजान बन रही थी।
उसने कहा- मुझे आज नींद नहीं आ रही है।
मैंने कहा- आप इतनी रात मुझसे बातें कर रहे हो, आपकी बीवी नहीं है क्या?
उसने कहा- हम साथ नहीं सोते क्योंकि अब तीन बच्चे हो गए हैं।
मैंने तब पूछ लिया- मतलब आप लोग सम्भोग नहीं करते?
तब उसने बताया- हम करते हैं, पर बहुत कम.. बीवी को जब लगता है कि सब कुछ सुरक्षित है… तब..!
मैंने पूछा- आप लोग इतने जवान हो, फिर कैसे इतना कण्ट्रोल करते हो?
उसने बताया- क्या करूँ… बीवी ऐसी मिल गई है, तो करना पड़ रहा है।
मैं धीरे-धीरे उससे खुल कर बातें करने लगी और वो भी खुल कर बातें करने लगा।
उसने बताया कि उसे अपनी बीवी से उस तरह का सुख नहीं मिलता, जैसा उसे चाहिए था और कोई चाहेगा क्यों नहीं जवानी इसीलिए तो होती है।
फिर उसने बताया- मेरी बीवी पास के रिश्तेदार की बेटी है, जो रिश्ते में उसकी चाची की छोटी बहन है, पर मुस्लिम समाज में रहन-सहन होने की वजह से बहुत धार्मिक है। इसलिए वो खुले तौर पर सेक्स की और चीजों को पसंद नहीं करती।
मैंने भी सोचा कि शायद ऐसा होता होगा, सो ज्यादा जोर नहीं दिया।
हम ऐसे ही बातें करते हुए सो गए और अगले दिन मैं फिर उससे मिली।
वो मुझसे ऐसा मिला जैसे हर रोज मिलता था, पर आज रात की बात को लेकर मुझे थोड़ी शर्म सा महसूस हो रही थी।
फिर भी मैं उसे जाहिर नहीं होने देना चाहती थी, सो उससे उसी की तरह बात करने लगी।
उस दिन बच्चों को कुछ प्रोजेक्ट सा मिला था, तो मैंने सोचा कि यहीं से बाज़ार चली जाऊँ, तब उसने भी कहा- मैं भी चलता हूँ..!
सो हम बाज़ार चले गए।
हम लोगों ने बच्चों के लिए सामान ख़रीदा, फिर एक रेस्टोरेन्ट में उसने मुझे कुछ खाने के लिए बोला।
मुझे देर हो रही थी और बारिश जैसा मौसम भी था सो मैंने उसे जल्दी चलने को कहा और हम निकल गए।
मौसम को देखते हुए मैंने छाता ले लिया था।
पर जिस बात का डर था वही हुआ, बीच रास्ते में बारिश शुरू हो गई।
मैंने छाता खोला और हम चारों उसके नीचे आ गए। बारिश ज्यादा तो नहीं थी, इसलिए हमचलते रहे, पर थोड़ी दूर जाते ही तेज़ हो गई।
मैंने हल्के गुलाबी रंग का सलवार-कमीज पहना था और बारिश की वजह से वो भीगने लगा था।
करीब सलवार मेरी जाँघों तक पूरी भीग चुकी थी।
बारिश इतनी तेज़ हो चुकी थी कि 4 लोगों का एक छाता के नीचे बच पाना मुश्किल था पर आस-पास कोई जगह नहीं थी कि हम छुप सकें इसलिए हम जल्दी-जल्दी चलने लगे।
हमने बच्चों को आगे कर दिया और हम पीछे हो गए जिसके कारण उसका जिस्म मेरे जिस्म से चलते हुए रगड़ खाने लगा।
मुझे बहुत अजीब सा लग रहा था। उसके जिस्म की खुशबू मुझे दीवाना सा करने लगी। मैं थोड़ी शरमाई सी थी, पर मेरे पास और कोई रास्ता भी नहीं था।
मेरी अंतहीन प्यास की कहानी जारी रहेगी।
अब उसे भी शायद अपनी बेइज्ज़ती सी लगी, सो उसने मुझे समझाते हुए कहा- देखिए हर इंसान का रहन-सहन अलग होता है और हर मजहब का भी… मेरी बीवी कट्टर मुस्लिम समाज में पली-बढ़ी है, इसलिए वो इससे दिल से जुड़ी है। मैं भी उसी मजहब का एक हिस्सा हूँ इसलिए उसकी इज्ज़त करता हूँ, पर मैं बस उसके लिए हूँ, मैं भी नए जमाने के बारे में जानता हूँ और घर के बाहर आम लोगों की तरह ही रहता हूँ।
तब मैंने जोर देकर कहा- अगर सोचते तो ऐसा नहीं करते.. औरत बच्चे पैदा करने की मशीन नहीं होती!
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तब मैंने कहा- मतलब आगे भी और बच्चे होंगे?
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और फिर ऐसी बातें करते हुए हम अपने अपने घर को चले गए।
घर पहुँच कर ऐसा लग रहा था जैसे हमारी मुलाकात दो दिन पहले नहीं बल्कि हम काफी दिनों से एक-दूसरे को जानते थे।
हम दो दिन के मुलाकात में ही इतने खुल कर बातें करने लगे थे, यह सोचना जायज था।
उससे खुल कर बातें करने का भी शायद कारण था कि वो दिखने और बातें करने में बहुत आकर्षक था।
अगले दिन हम फिर मिले, पर इस बार मेरे पति और और घर परिवार की बातें हुई।
फिर मैंने उसे बताया के मार्च में हम यहाँ से चले जायेंगे तो उसने मुझसे मेरा फोन का नंबर माँगा।
मैंने मना किया तो उसने मुझे अपना नंबर दे दिया कि अगर कभी बात करने की इच्छा हो तो फोन कर लेना।
मैं वापस अपने घर चली आई। शाम को पता नहीं मैंने क्या सोचा और उसे फोन किया। मेरी आवाज सुनते ही वो ऐसा खुश हुआ जैसे कोई खजाना मिल गया हो।
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कुछ देर बाद उसका फोन आया, मैंने नहीं उठाया और मैं सोने की कोशिश करने लगी, पर नींद पता नहीं क्यों, मुझे आ नहीं रही थी।
मैं पेशाब करने के लिए उठी और बाथरूम से आकर फिर सोने की कोशिश करने लगी पर फिर भी नींद नहीं आ रही थी।
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तब तक फिर फोन कट गया और मैंने सोचा कि शायद अब वो फोन नहीं करेगा, पर फिर से फोन रिंग हुआ। इस बार मैंने फोन उठा लिया।
उसने कहा- हैलो.. सोई नहीं.. अभी तक आप?
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उसने कहा- मुझे आज नींद नहीं आ रही है।
मैंने कहा- आप इतनी रात मुझसे बातें कर रहे हो, आपकी बीवी नहीं है क्या?
उसने कहा- हम साथ नहीं सोते क्योंकि अब तीन बच्चे हो गए हैं।
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