मैं और मेरा परिवार

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xyz
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Re: मैं और मेरा परिवार

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फ्लॅशबॅक 812 जी


नेहा - पिताजी आप हार कर जीत गये

पिताजी- कभी कभी हमे अपने से ज़्यादा दूसरो के बारे मे सोचना पड़ता है

नीता- आपने गाओं वालो के बारे मे सोचा है

पिताजी- हाँ , गाओं ठाकुर चलाते है , ठाकुर की वजह से गाओं का नाम होता है

नेहा - फिर आपने क्या किया

पिताजी- फिर तो हमारी कुस्ति कभी ख़तम ही नही हुई

नीता- आप अकेले मे कुस्ति खेली ठाकुरजी के साथ

पिताजी- हाँ , केयी बार

नेहा - कौन जीता

पिताजी- कभी रिज़ल्ट निकला ही नही

नीता- मतलब

पिताजी- हर बार हमारी कुस्ति अधूरी रह जाती

नेहा - आगे क्या हुआ

पिताजी- सुनो

उस कुस्ति के बाद प्रतापसिंघ मेरी दोस्ती होने लगी

ठाकुरजी ने मेरे पिताजी को दावत पे बुलाया उस कुस्ति के बाद

मैं भी गया था हवेली पे

वहाँ ठाकुरजी ने मेरी तारीफ की , प्रतापसिंघ ने भी मेरी तारीफ की

फिर ठाकुरजी और पिताजी बात करने लगे

और मैं प्रतापसिंघ के साथ हवेली के पीछे चला गया

प्रतापसिंघ- कुस्ति खेलने को तय्यार हो

योगेंद्रसिंघ- यहाँ पर

प्रतापसिंघ -यही पर क्यू डर गये


योगेंद्रसिंघ- मैं डरता नही किसी से

प्रतापसिंघ- तो आओ मैदान मे

और हम हवेली के पीछे कुस्ति खेलने लगे

सबसे छुपाते हुए कुस्ति खेल रहे थे

ये डिसाइड करने के लिए कि हममे से बेस्ट कौन है

हमारी कुस्ति हर बार बहुत लंबी चलती इस बार ठाकुरजी और मेरे पिताजी घूमते हुए हवेली के पीछे आए

तो हम रुक गये और गले मिल कर एक दूसरे से पूछने लगे चोट तो नही लगी

ठकुज़ी- क्या हुआ कपड़े खराब कैसे हो गये ,ये क्या हाल बना रखा है

प्रतापसिंघ- पिताजी वो हम गिर गये थे

योगेंद्रसिंघ- ठाकुरजी , हम एक खरगोश पकड़ रहे थे कि हमारी ये हालत हो गयी

और हम वहाँ से खिसक गये

ठाकुरजी और मेरे पिताजी हँसने लगे उनको पता था कि हम क्या कर रहे थे , उनको पता चल गया था कि इस से हमारी दोस्ती मज़बूत हो जाएगी

हवेली के पीछे कुस्ति खेलने के बाद प्रताप सिंग शाम मे मेरे खेत मे आता

मेरे पिताजी के जाते ही हम कुस्ति खेलते पर सूरज ढलने की वजह से कुस्ति पूरी नही होती

धीरे धीरे हमे उस मे मज़ा आने लगा

हम कुस्ति मज़े के लिए कब खेलने लगे पता ही नही चला

जहाँ अकेले मिले वही शुरू हो जाते

कभी हवेली मे कभी खेत मे , कभी मंदिर के पीछे

तो कभी नदी के पीछे

कही भी शुरू हो जाते

अब कोई हार रहा होता तो दूसरा जानबूझ कर कुस्टी खेलना बंद करता ताकि ये कुस्ति कभी ख़तम ना हो

एक दिन हम हवेली के पीछे कुस्ति खेल रहे थे कि एक नौकर भागते हुए आ गया और बताया कि ठाकुरजी को आटॅक आया है

हम वैसे ही ठाकुरजी के पास आ गये

पर तब तक देर हो चुकी थी

पिताजी ने बताया की ठाकुरजी को जहर दिया गया है

पर ये बात प्रतापसिंघ से ठकुराइन ने छुपा दी

गाओं के ठाकुर के जाते ही नया ठाकुर कौन बनेगा इसकी बाते होने लगी

सबको लगता प्रतापसिंघ बने , पर प्रतापसिंघ का सौतेला भाई ठाकुर बनना चाहता था

उसको प्रतापसिंघ का नाम ज़्यादा सुनाई दे रहा था

उसकी माँ भी यही चाहती थी

प्रतापसिंघ के सौतेले भाई को अपना हक छीनते हुए दिख रहा था

ऐसे मे उस ने प्रतापसिंघ को रास्ते से हटानेंका फ़ैसला किया

उसने ये अफवा फैला दी कि जंगल मे एक भेड़िया आया है

जंगल मे हमारे गाओं की तरफ जंगली जानवर नही आते है

प्रतापसिंघ के सौतेले भाई ने अपने कुत्ते से एक बच्चे पे हमला करवाया और कहा कि भेड़िया ने मारा है

भेड़िया का डर गाओं मे फैलते ही सब हवेली आ गये मदद माँगने

अब तक ठाकुर किसी को बनाया नही गया था

ऐसे मे गाओं वालो की मदद कौन करेगा ,

प्रतापसिंघ खड़ा हो गया , और भेड़िया के शिकार पे निकल ने की घोषणा की

इसी लिए सब प्रतापसिंघ को ठाकुर बनाना चाहते थे

मुझे ये बात पता ही नही थी

2 दिन से मैं भेड़िया की वजह से खेतो मे जो बैल थे उनकी रखवाली कर रहा था

प्रतापसिंघ उसके सौतेले भाई के जाल मे फस गया

प्रतापसिंघ अपने 2 साथियो के साथ जंगल की तरफ निकल गया

प्रतापसिंघ पहले मंदिर की तरफ गया पर वहाँ उसे कुछ नही मिला

ऐसे मे वो हमारे खेत के पीछे वाले जंगल मे भेड़िया के शिकार पे निकल गया

मैं खेत मे पड़ा पड़ा बोर हो गया था

ऐसे मे मुझे प्रतापसिंघ जंगल मे जाते हुए दिखाई दिया



मुझे कुस्ति खेलने का मन हुआ तो मैं भी प्रतापसिंघ के पीछे पीछे जाने लगा

प्रतापसिंघ अपने साथियो के साथ जंगल के कंदर मे आ गया

जहाँ उसके लिए जाल बनाया गया था

उस खंडहर मे जाते ही प्रतापसिंघ के साथियो ने प्रतापसिंघ को धक्का दे कर गिरा दिया

ये प्रतपांघ के भाई के हाथो बिक चुके थे

दोनो प्रातपासिंघ के सामने गन लेकर खड़े थे

प्रतापसिंघ के साथ धोका हुआ

अपने भाई को देख कर समझ गया कि ये उसकी चाल है

प्रतापसिंघ इतनी आसानी से हार नही मान सकता था

प्रतापसिंघ ने अपने दिमाग़ का इस्तेमाल करके अपने भाई को कुस्ति खेलके हराने को कहा

उसका भाई प्रतापसिंघ की बातों मे फस गया और वो कुस्ति खेलने लगे

मैं भी वहाँ पहुच चुका था

मैं ने सब कुछ सुन लिया था और देख भी लिया था

मैं बस सही मोके की तलाश मे था

प्रतापसिंघ अपने भाई के साथ हाथा पाई कर रहा था

और वो 2 साथी गन लेकर सब देख रहे थे

मैं उनका ध्यान भटकने का इंतज़ार कर रहा था

और जैसे उनसे ग़लती हुई मैं उन दोनो पे टूट पड़ा

पहले तो उनकी गन दूर फेक दी

और उन दोनो को अपनी ताक़त दिखाने लगा

मेरे आते ही प्रतापसिंघ को मदद मिल गयी उसकी हिम्मत वापस आ गयी

हम दोनो मिलकर सबको मारने लगे

प्रतापसिंघ के साथ , उसके भाई के आदमियो को मारने लगा

हमे अपने आदमियो को मारता हुआ देख प्रतापसिंघ का भाई छुप गया

हम एक एक करके सबको मारने लगे

ऐसे मे प्रतापसिंघ के सौतेले भाई के हाथ गन लग गयी

उसने प्रतापसिंघ को निशाना बना दिया

मैं ये देखते ही प्रतापसिंघ और गन के बीच मे आ गया

गोली मेरे हाथ मे लग गयी

और मेरी चीख निकल गयी

जिस सुनकर प्रताप हरकत मे आ गया और उसने भी गन उठा ली

पर तब तक उसका भाई भाग चुका था

प्रतापसिंघ- ये क्या किया तुमने

योगेंद्रसिंघ-तुम्हे कुस्ति मे हराए बिना मरने कैसे देता

प्रत्पसिंघ- पागल हो तुम , अगर तुम मर जाते तो

योगेंद्रसिंघ - मुझे कुछ नही होगा , बिना तुम्हे हराए मैं मरूँगा नही

प्रतापसिंघ- पर आज तुमने मुझे हरा दिया दोस्त

योगेंद्रसिंघ - दोस्त

प्रतापसिंघ-अब कुछ मत कहो , चलो मैं तुम हॉस्पिटल लेकर जाता हूँ

और प्रतापसिंघ मुझे हॉस्पिटल लेकर गया

गाओं वालो को पता चल गया कि भेड़िया कौन था

अब उस भेड़ियो को प्रतापसिंघ छोड़ेगा नही

मैं ने प्रतपांघ को बचाया था इसलिए पिताजी खुश हो गये उस बार उन्होने ये नही कहा कि मुझे कुछ हो जाता तो , उन्हो ने कहा कि तुम ने गाओं के लिए गोली खाई है

उस दिन से पिताजी सर उठा कर चलने लगे

प्रतापसिंघ और मेरी दोस्ती हो गयी

प्रतापसिंघ ने ठकुराइन को सारी बात बता दी और प्रतापसिंघ को ठाकुर बनाया गया

और हमारी दोस्ती मज़बूत हो गयी

इस कुस्ति मे मैं जीत गया

उस के बाद हमने कभी कुस्ति नही खेली

हमारी दोस्ती की वजह से हम बहुत मज़ा मस्ती करने लगे

हमारी दोस्ती गाओं मे मशहूर हो गयी

और गाओं को नया ठाकुर मिल गया

पिताजी हमारी दोस्ती से खुश थे

उनको गाओं की बागडोर नये कंधो पे देख कर अच्छा लगा

नेहा - और ठाकुर ,ठाकुरजी बन गये

पिताजी- हाँ

नीता- पिताजी वो निशान अभी तक होगा

पिताजी- कितनी बार देखा है तुमने

नेहा - आप हमारे साथ कुस्ति खेलोगे

पिताजी- नही , मैं हार जाउन्गा

नीता- आप तो रियल लाइफ के हीरो हो

पिताजी- मैं कोई हीरो नही हूँ , हीरो तो मेरी बेटी है

नेहा - मैं हेरोयिन हूँ

पिताजी- हाँ बाबा , तुम हेरोयिन हो

नीता- पिताजी , प्रतापठाकुर जी आपके दोस्त है , तो हमारे क्या हुए

पिताजी- तुम्हारे भी दोस्त है तभी तो तुम उनको ठाकुरजी कहते हो

माजी- चलो अब अपने कमरे मे , कहानी ख़तम हुई

नेहा - 25 बार सुनी है

पिताजी- और कितनी बार सुनना है

नीता- हम तो ज़िंदगी भर सुनेंगे

पिताजी- अरे बाप रे

नेहा - पिताजी भैया आपके जैसे पहलवान नही है

पिताजी- वो गधा है ,

नीता- पढ़ाई मे आपके जैसे है भैया

पिताजी- वो बचपन मे कसरत करता था अभी भी वो मुझे कुस्ति मे हरा सकता है

माजी- चलो अब बहुत हो गया है ,

नेहा - पिताजी कल नयी कहानी सुननी है

नीता- पिताजी ठाकुरजी के भाई का क्या हुआ



पिताजी- उसका मुझे नही पता , उसको उसके बाद देखा नही किसीने

माजी- तुम अभी गयी नही तो मार पड़ेगी

नेहा - ये हमारे पिताजी का कमरा है आप जाइए

पिताजी- नेहा

नीता- चलो नेहा , माँ को सोना है

पिताजी- तुम भी सो जाओ वरना कल स्कूल नही जाओगी

नेहा - उस स्कूल मे तो हमे जाना पसंद है , क्यू कि वो स्कूल आपने शुरू किया है

और नेहा नीता के साथ अपने कमरे मे चली गयी

सोने से पहले नेहा ने पूजा की नींद खराब की और खुद सो गयी

पूजा को नेहा की इस हरकत की आदत पड़ गयी थी






mini

Re: मैं और मेरा परिवार

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jaldi purane form par aayo na,,
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Re: मैं और मेरा परिवार

Post by xyz »


फ्लॅशबॅक 812एच

नेहा और नीता हर दिन नयी नयी मस्ती करने मे लगी हुई थी

मस्ती के साथ वो पढ़ाई भी करती थी

पर पूजा तो पढ़ाई कम और अपनी सहेली के साथ टाइम पास ज़्यादा करती थी

जयसिंघ तो ज़ोर लगा कर पढ़ाई कर रहा था

उसे अच्छे मार्क लेकर शहर3 जाना था

एग्ज़ॅम हो गयी

जयसिंघ को पूरी उम्मीद थी कि उसके शहर3 जाने की टिकेट उसे मिल जाएँगी

छुट्टियाँ शुरू होते आम का सेशन शुरू हो गया

आम का बगीचा धीरे धीरे बड़ा हो रहा था

एक हेक्टर तक बड़ा हो गया

एक पेड़ से शुरुआत हुई थी

बात 3 ,4 साल पुरानी है

एक दिन पूरी फॅमिली खेत मे गयी थी

पिताजी और माँ खेत मे काम कर रही थी

जयसिंघ पूजा नेहा नीता और छोटू खेल रहे थे

खेलते खेलते नेहा और नीता को आम का एक छोटा पौधा दिखाई दिया

दोनो ने उस पौधे को ज़मीन से निकाल कर अपने पिताजी के पास ले गयी

नेहा - पिताजी

पिताजी- क्या है नेहा

नेहा- देखिए हमे क्या मिला

पिताजी- क्या है

पिताजी को नेहा के हाथ मे आम का पौधा दिखाई दिया

माजी-ये क्या किया ,इस को बाहर क्यू निकाला

पिताजी- कहाँ मिला तुम्हे ये पौधा

नेहा - वो वहाँ दूर झाड़ियों मे मिला

पिताजी- तो

नीता- हम उसे निकाल कर ले आए

पिताजी- मिट्टी के साथ निकाला

नेहा - हाँ

पिताजी- पर तुम यहाँ क्यू लेकर आई हो

नीता- हम इसको हमारे खेत मे लगते है

पिताजी- तो लगा दो पर इसकी देखभाल तुम्हे करनी होगी

माजी-तुम दोनो कुछ भी करती रहती हो,अब ये नया भूत घुस गया तुम्हारे दिमाग़ मे

पिताजी- नेहा जाओ लगा दो खेत मे

नेहा - जी पिताजी

पिताजी- पर इसकी देखभाल भी करना

नीता- मैं भी करूँगी पिताजी

माजी- चलो अच्छा है ये दोनो उस पौधे के पीछे लगी रहेंगी ,

नेहा और नीता ने पौधा खेत मे लगा दिया

उसको पानी दिया

और वापिस पिताजी के पास आ गयी

नेहा - पिताजी पौधा लगा दिया

पिताजी- जाओ अब खेलो और घर जाते हुए फिर से पानी देना

नीता- जी


और नेहा नीता फिर से खेलने लगी

शाम मे घर जाने से पहले नेहा ने पौधे को पानी दिया

ऐसे 1 हफ़्ता निकल गया

नेहा नीता रोज उस आम के पौधे को पानी देती

वो पौधा जीने की जगह मार रहा था

नेहा और नीता ये समझ ही नही पा रही थी कि हो क्या रहा है

वो तो पानी दे रही है फिर पौधे के पत्ते गिर क्यूँ रहे है

नेहा भाग कर अपने पिताजी के पास आ गयी

.नेहा को ऐसे हफ्ते हुए देख कर पिताजी ने उसको पानी दिया

पिताजी- क्या हुआ ऐसे भाग क्यूँ रही हो

नेहा - जल्दी चलिए मेरे साथ

पिताजी- क्या हुआ और नीता कहाँ है

नेहा- जल्दी चलिए

पिताजी नेहा के साथ जाने लगे

माँ भी पिताजी के पीछे पीछे जाने लगी

नेहा पिताजी को लेकर उस आम के पौधे के पास आ गयी

नेहा - पिताजी देखिए ये पौधा तो मर रहा है

माजी- पागल , तूने खेत के बीच मे लगाया पौधा

पिताजी-तुम रूको , नेहा क्या हुआ

नेहा - पिताजी ये पौधा मर रहा है

पिताजी- तुम ने ग़लत जगह लगाया है

नीता- आपने तो कहा कि खेत मे लगा दो

माजी- तो क्या बीच मे लगाओगी खेत के

पिताजी-नेहा यहाँ क्यू लगाया पौधा

नेहा - ताकि ये खेत के बीच मे खड़ा रख कर सभी पौधो को छाँव दे

पिताजी- ये तो अच्छा सोचा तुमने

माजी- उस से पता है क्या होगा

पिताजी- तुम चुप रहो

नीता- पर ये तो

पिताजी- मैं कुछ करता हूँ , तुम एक लकड़ी लेकर आओ नेहा

नेहा भाग कर एक लकड़ी लेकर आ गयी

पिताजी- जयसिंघ , सेंखहत लेकर आओ

जयसिंघ भी खत लेकर आ गया

पिताजी- जयसिंघ खेत के बाजू मे जो पक्की मिट्टी है वो लेकर आओ

जयसिंघ मिट्टी लेकर आ गया

पिताजी- ये मिट्टी आम के पेड़ के लिए ठीक नही है , पक्की मिट्टी चाहिए ,ताकि पेड़ को मज़बूती मिले

नीता- जी

पिताजी- अब हम यहाँ जगह बना देंगे , इस पक्की मिट्टी से जगा बना देंगे

माजी- इस से तो खेत की जगह वेस्ट हो जाएगी

पिताजी- थोड़ी जगह से कुछ नही होगा

पिताजी ने नेहा और नीता के पौधे के लिए जगा बना दी

उस पौधे को खाद दिया और लकड़ी की मदद से सहारा दिया

और उस पौधा मे फिर से जान आ गयी


पिताजी- अब रोज पानी देना देखना एक दिन बहुत बड़ा पेड़ बन जाएगा

नेहा- जी , और बड़ा होने पर हम इसके आम खाएँगे

पिताजी- अब इसका ध्यान रखना कुछ दिन

नेहा खुश हो गयी

नेहा और नीता पौधे के साथ खेलने लगी

उनको खेलता हुआ देख कर पिताजी को अच्छा लगा




माजी- ये आपने क्या किया खेतो के बीच की अच्छी जगह वेस्ट कर दी

फिराजी- कुछ नही होता, देखो नेहा और नीता कितनी खुश है

माजी- वो तो है

जयसिंघ- पिताजी मेरे दिमाग़ मे एक आइडिया आया है

पिताजी- बोलो

जयसिंघ- उधर देखिए क्या दिखता है

पिताजी- जंगल

जयसिंघ- जंगल के आगे

पिताजी- एक बंजर खेत है और उसके बाद हमारा खेत है

जयसिंघ- ठीक से देखिए

माजी- तुम कहना क्या चाहते है

पिताजी- मैं समझ गया जयसिंघ कहना क्या चाहता है

माजी- मुझे भी बताइए

पिताजी- नेहा का वो आम का पेड़ बड़ा हो गया तो जंगल दिखेगा नही

माजी- एक पेड़ से जंगल कैसे छुप सकता है

जयसिंघ- क्यू ना हम वहाँ पर आम का बगीचा बना दे ताकि जंगल छुप जाए और लोग हमारे खेत मे काम करने भी आ जाएँगे

पिताजी- ये तुम ने अच्छा सोचा

माजी- पर उसके लिए तो काफ़ी टाइम लगेगा , 3 4 साल लग जाएँगे

पिताजी- हम धीरे धीरे जंगल को छुपा देंगे

जयसिंघ- पहले एक हेक्टर से शुरुआत करते है

पिताजी- तुम सही कह रहे हो , जंगल भी छुप जाएगा और गर्मियो के दिनो मे आमदनी भी हो जाएगी

माजी- हाँ , ये अच्छा रहेगा

पिताजी-नेहा नीता पूजा छोटू इधर आओ

सब भाग कर पिताजी के पास आ गये

पूजा- पिताजी आपने बुलाया

पिताजी- तुम सबको एक काम करना होगा

नीता- कैसा काम

पिताजी- नेहा तुम्हारा पौधा तो अकेला हैना

नेहा - हाँ

पिताजी- उसको दोस्त नही चाहिए खेलने को
.
नेहा- हम हैं उसके दोस्त

पिताजी- और रात मे उसे डर लग गया तो

नेहा - हाँ , मैं तो ये सोचा ही नही

पिताजी- हम एक काम करते है , कल मैं तुम सबके लिए आम लेकर आउन्गा

छोटू - आम , मुझे ज़्यादा चाहिए

माजी- मेरे भी खा लेना

पिताजी- हम आम खाएँगे , और उसको ज़मीन मे लगा देंगे , फिर उस से आम का पौधा निकलेगा और फिर हमारा सुन्दर आम का बगीचा बन जाएगा

नेहा - आम का बगीचा, पिताजी आप बहुत अच्छे हो

नीता- फिर तो हम आम के बगीचे मे छुट्टियों मे खेल भी सकते है

जयसिंघ- पिताजी हम पौधे खरीद कर भी लगा सकते है

पिताजी- उस से अच्छा है हम खुद अपनी मिठास से पौधा बनाए ,

माजी- पहले तो जगह पक्की करनी होगी

नेहा - हाँ , अभी जैसा किया है

पिताजी- हम मिलकर बनाएँगे , पूरी छुट्टियों मे हम यही मस्ती करते हुए आम का बगीचा बनाएँगे

नीता- इसमे तो बहुत मज़ा आएगा

पूजा - मुझे भी काम करना होगा

पिताजी- हम सब थोड़ा थोड़ा काम करेंगे , रोज 2 पौधे लगाएँगे
अगेर सब ठीक रहा तो हमारा बगीचा तय्यार हो जाएगा

और सब ने पिताजी का साथ दिया

एक दूसरे की मदद करते हुए

एक दूसरे के कंधे से कंधा मिला कर आम का बगीचा बनाने मे लग गये

छोटू आम खा कर गुठली गाढ देता

जयसिंघ और पिताजी मिट्टी को पक्की बना देते ,

माजी और पूजा गुठली के लिए खड्डाी तय्यार करती

और नेहा नीता उस मे गुठली डाल कर खड्डार भर देते

फिर वहाँ पौधे के लिए लकड़ी का सहारा और खाद और पानी का इंतज़ाम कर दिया

सब इस तरह से आम का बगीचा बनाने मे लग गये

उम्मीद बहुत कम थी कि खेत की ज़मीन पर मज़बूत पेड़ लग जाएगा

पर सब का हौंसला इतना ज़्यादा था कि पिताजी ने बहुत मेहनत की पेड़ वहाँ खड़े रह सके

पेड़ को पानी की जगह पसीने से बड़ा किया गया

उसको इतना प्यार दिया गया कि आसमान को जल्दी से छुने लगा

बारिश के मोसम के बाद तो पौधे बड़े हो गये

पर बारिश ज़्यादा होने से कुछ पौधे गिर गये थे

पर उनका फिर से सहारा दे कर खड़ा किया

और देखते देखते आम का बगीचा खिलने लगा

धीरे धीरे आम का बगीचा जंगल को छुपाने लगा

नेहा और नीता बगीचा देख कर खुश हो गयी

गाओं वाले भी इसे अपनी रोज़ी रोटी के नज़रिए से देखने लगे

धीरे धीरे आम का बगीचा बड़ा हो गया

माजी- ये तो हो गया , मुझे तो विश्वास नही हो रहा है

पिताजी- सबने इतनी मेहनत जो की है

पूजा - अगले साल तो आम भी लग जाएँगे

पिताजी- हाँ , अगके साल आम लग जाएँगे

नेहा - पिताजी मैं बहुत खुस हूँ

पिताजी- तुम्हारा पौधा कहाँ है

नीता -वो तो सब से बड़ा बन गया है वो देखिए

पिताजी- चलो आज उसी के नीचे खाना खाते है

माजी-पूजा मेरी मदद करो

और सब आम के बगीचे मे बैठ कर खाना खाने लगे

अपने मेहनत से लगाए हुए पेड़ की छाँव के नीचे बैठ कर खाना खाने से सब को सुकून मिल रहा था






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Re: मैं और मेरा परिवार

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फ्लॅशबॅक 812 !

आम के बगीचे मे ये छुट्टियाँ एंजाय करने के लिए जयसिंघ अपने भाई बहनों के साथ आया था

कुछ साल पहले लगाए हुए आम के पेड़ अब बड़े हो चुके थे

इस साल पहली बार आम लगे थे

पिताजी सबको खेत मे लेकर आए थे

जयसिंघ इन छुट्टियों के बाद पढ़ाई करने के लिए शहर3 जाने वाला था

पर जाने से पहले वो ये सारी छुट्टियाँ अपने भाई बहनों के साथ बिताने वाला था

माँ भी खुश थी कि उनका बेटा अपने सपने पूरे करने जा रहा है

लेकिन वो अपने आम के बगीचे को देख कर खुश थी

सब के प्यार मेहनत पसीने से बना हुआ था ये बगीचा

नेहा के लगाए हुए उस एक पौधे से इतना बड़ा बगीचा बन गया था

ये बगीचा उनके लिए पैसे कमाने की जगह उनके प्यार की निशानी जैसा था

इस आम के बगीचे से उनकी यादे जुड़ी थी

पिताजी और माँ ने अपने बच्चो की तरह इनको बड़ा किया था

नेहा नीता को तो यकीन नही हो रहा था कि उनका नन्हा सा पौधा इतना बड़ा हो गया कि उसे आम लगे है

सब कुछ एक सपने जैसा दिख रहा था

पूजा - पिताजी ये हमने लगाया है , हमारी मेहनत से ये बना है

पिताजी- हाँ, , हम सब ने मिलके बनाया है

जयसिंघ- ये तो जैसा सोचा था उस से अच्छा बन गया

माजी- जंगल तो अब दिखाई नही दे रहा है

छोटू- मुझे तो आम खाने है

नेहा- पहले मैं खाउन्गी

नीता- पहले मैं

पूजा - बड़ी मैं हूँ ,

जयसिंघ- सब से बड़ा मैं हूँ

छोटू- माँ

माजी- आप ही बताए मैं तो इनमे नही पड़ूँगी

पिताजी- एक साथ हमला करते है , आज तो पेट भरके आम खाएँगे

नेहा - ये चीटिंग है भैया जीत जाएँगे

पिताजी- मैं हूँ ना

नेहा और नीता को पिताजी ने अपने गोद मे उठा लिया

पिताजी- अब देखना कौन जीतेंगा

नेहा - पिताजी ही जीतेंगे

छोटू - माँ

माजी- मैं तुझे उठा कर नही भाग सकती , पर मैं वहाँ पहले जा रही हूँ , तू जल्दी आना मैं आम तोड़ कर दूँगी

और माँ चलके आम के बगीचे मे चली गयी

पिताजी नेहा और नीता के साथ तय्यार हो गये ,

जयसिंघ भी तय्यार था , पूजा और छोटू ने लाइन मार्क की

माँ के हाथ दिखाते ही सब आम के बगीचे की तरफ भागने लगे

जयसिंघ सबसे आगे था

फिर पिताजी

लास्ट मे पूजा थी

नेहा- पिताजी हम हार रहे है

नीता - पिताजी और तेज़

पिताजी- तुम पकड़े रहना

और पिताजी अपनी पूरी ताक़त लगा कर भागने लगे

नेहा- पिताजी छोटू पास आ रहा है

नीता- हम भैया के पास पहुँच गये है

पूजा - मैं थक गयी हूँ मुझसे नही होगा

छोटू- नेहा तुझे हरा कर रहूँगा

माजी- पूजा रूको मत थोड़ी कॉसिश करो

और पिताजी जयसिंघ के साथ भागने लगे

नेहा - पिताजी बस थोड़ी दूर और

पिताजी- तुम पकड़ी रहना

और छोटू भागते हुए नीचे गिर गया

छोटू नीचे गिरते ही रोने लगा

छोटू के गिरते ही माँ उधर से भाग कर छोटू के पास आने लगी

पूजा भी जो चल रही थी वो भी भाग कर छोटू के पास आने लगी

नेहा - पिताजी छोटू गिर गया

पिताजी ने पलट कर देखा

नेहा- पिताजी रुक जाइए ,,

नीता- छोटू के पास चलिए

पिताजी- ये रेस

नेहा - कुछ नही होता , छोटू रो रहा है उसे चोट लगी है

पिताजी नेहा के जवाब से खुश हो गये

पिताजी ने जयसिंघ की तरफ देखो

जयसिंघ आम के बगीचे की तरफ जा रहा था

पिताजी को इस से बहुत दुख हुआ

पिताजी वापस छोटू के पास आ गये

माँ भी छोटू के पास आ गयी और छोटू को अपने गले लगा लिया

पूजा ने अपनी नॅपकिन निकाल कर छोटू के पैर पे लगा दी

नेहा - पागल है क्या , इतनी ज़ोर से भागने की ज़रूरत क्या थी

माजी- चुप कर , वो रो रहा है

नीता - आम भागे थोड़े ही जा रहे थे

पिताजी- कुछ नही हुआ , चोट लगने से मज़बूत होते है

माजी- मेरे बेटे को दर्द नही हुआ , वो अभी रोना बंद करेगा

छोटू - मुझसे चला नही जा रहा है

माजी - मेरी गोद मे आ

छोटू को ज़्यादा चोट नही आई

छोटू जल्दी चुप हो गया

पर सब यहाँ थे

सब छोटू को रोता हुआ देख कर उसके पास आ गये

पर जयसिंघ कहाँ है

माँ और पिताजी ने बगीचे की तरफ देखा तो जयसिंघ वहाँ पहुँच गया था

ये देख कर पिताजी को बहुत दुख हुआ ,

जयसिंघ बड़ा है उसको सबको साथ लेकर चलना चाहिए , ऐसे बीच रास्ते मे छोटू को छोड़ कर जयसिंघ ने ग़लत किया

अपने बेटे की जीत को देख कर माँ को बुरा लगा

ऐसी जीत माँ को नही चाहिए



बड़ा बेटा होने के नाते उसे यहाँ होना चाहिए था

वो बिल्कुल अँधा हो चुका है

नेहा नीता उस से छोटी है पर वो जीतने की जगह छोटू के पास आ गयी

पूजा से भागा नही जा रहा था फिर भी वो भाग कर छोटू के पास आई ,

पर जयसिंघ ने जीतने पे ध्यान दिया

पिताजी को ये उम्मीद नही थी जयसिंघ से

वो दिन ब दिन अपने ज़िम्मेदारी से दूर भाग रहा है

पिताजी को गुस्सा आ रहा था ते बात माँ ने देख ली , माँ ने उनका हाथ पकड़ कर उनको रोक लिया , बेटा कैसा भी हो माँ को प्यारा ही होता है


सब ने छोटू को सहारा दिया

और सब मिलकर आम के बगीचे मे आ गये

जयसिंघ- छोटू ज़्यादा चोट तो नही लगी

छोटू - नही भैया

नेहा - भैया आप जीत गये

जयसिंघ - हाँ ,

पूजा - पहला आम आप को मिलेगा

जयसिंघ - शरत वैसी ही लगी थी ,

जयसिंघ ने आम उठा लिया पर पिताजी ने रोक लिया

जतसिंघ - क्या हुआ पिताजी

पिताजी - उस आम पर छोटू का हक है

पिताजी - छोटू ये लो आम

जयसिंघ -पिताजी मैं भी तो ..........

जयसिंघ की बात पूरी होने से पहले पिताजी बोल पड़े

पिताजी-जितना ज़रूरी नही होता तुम कैसे जीते हो ये ज़रूरी होता है , तुम हार गये हो

माजी - जय , रेस कोई भी हो ,अपनो को साथ लेकर चलना चाहिए , तुम बड़े हो , तुम्हे तो छोटू के पास होना चाहिए था , पर तुमने जितना ज़रूरी समझा , तू जीत तो गया है पर हम हार गये है ,

पिताजी- तूने अपने माता पिता को हरा दिया है

जयसिंघ ने अपना सर नीचा कर लिया

पिताजी - छोटू ये लो आम , तुम सब भी लो , तुम ने छोटू के लिए रेस छोड़ कर ये बता दिया कि जीतना ज़रूरी नही होता , हार मे अगर सब साथ हो तो जीतने से ज़्यादा खुशी मिलती है

और पिताजी ने जयसिंघ को ये बताया कि वो कहाँ ग़लत था

छोटू ने पहला आम खा लिया

फिर नेहा नीता और पूजा ने भी अपना इनाम का आम खा लिया

जयसिंघ आज जीत कर हार गया

फिर भी वो खुश था कि छोटू को इनाम का आम मिला है

अजीब था जयसिंघ

वो पढ़ाई मे 1स्ट था पर रियल लाइफ मे वो लास्ट रह गया

पूजा - एक से क्या होगा , आज तो पेट भरके खाने वाले थे

छोटू - मैं तो पेड़ पे चढ़ नही पाउन्गा

जयसिंघ - तू बता तुझे कौन सा आम खाना है मैं तोड़ कर दूँगा

जयसिंघ ने एक छोटी सी कॉसिश की पिताजी से माफी माँगने की

पर कुछ ग़लतियो की माफी हम नही दे सकते , वो समय देता है

क्यू कि ये पहली बार नही हुआ कि जयसिंघ ने अपने भाई बहनों का साथ छोड़ा है

पर पिताजी चाहते थे कि ये आख़िरी बार हो

माँ चाहती कि जयसिंघ दुबारा ऐसा ना करे

नेहा - मैं तो खुद तोड़ूँगी आम

पिताजी - नेहा ध्यान से

नीता- मैं भी खुद तोड़ूँगी ,

पूजा-पिताजी आप नेहा के साथ रहिए मैं नीता को देखती हूँ

पिताजी - जयसिंघ की तरफ देखते हुए , तू बेटी नही मेरा बेटा है

जयसिंघ को इस बात से बहुत बुरा लगा ,

पर वो इस बात का किस तरह से इसका मीनिंग समझेगा ये उसपे था

छोटू के तो मज़े हो रहे थे

नेहा और नीता भी उसे आम तोड़ कर दे रही थी

माँ छोटू को अपने हाथ से आम खिला रही थी

छोटू - माँ आज तो पेट भर के खाउन्गा

माजी - सब तेरा ही है,

माँ जैसे जतसिंघ को बोल रही हो कि उसने सब कुछ खो दिया है

पूजा भी बड़ी होने का फ़र्ज़ अच्छे से निभा रही थी

पिताजी अपने सभी बच्चो से खुश थे बस एक जयसिंघ अपनी ज़िम्मेदारी को समझ जाता यो उनकी टेन्षन ख़तम हो जाती

पिताजी को खुद पे गुस्सा आ रहा था

उनको ऐसा लग रहा था कि जयसिंघ को अच्छी परवरिश नही दे पाए है

उसको पढ़ा लिखा कर ग़लती की ऐसा लग रहा था पिताजी को

गाओं मे स्कूल खोला ताकि सब यहाँ पढ़ सके पर उसको तो बाहर जाना है

जयसिंघ के दिमाग़ मे क्या चल रहा था ये उसी को पता होगा

जयसिंघ को समझना चाहिए था कि पिताजी ने ऐसा क्यूँ कहा था कि एक साल अपने भाई बहनों को देना

अपने भाई बहनों के प्यार को फील करके जयसिंघ शहर3 जाने से मना करेगा पर सब कुछ उल्टा हो रहा था

अब उम्मीद की सिर्फ़ एक किरण थी

जयसिंघ की शादी लड़की से नही देवी से की जाए

ऐसी देवी जो अपने देवेर को बेटे जैसा प्यार करे , अपनी ननद को अपनी बहन समझे , सास ससुर को माता पिता जैसा आदर दे

ससुराल को अपना घर समझ कर उसे प्यार से भर दे ,

इस घर को टूटने ना दे

जयसिंघ को बदल दे ,

जयसिंघ को ये बताए कि फॅमिली क्या होती है , आपमे किसे कहते है , प्यार किसे कहते है ,

अगर ऐसी देवी नही मिली तो जयसिंघ को पिताजी हमेशा के लिए खो देंगे

माँ को भी पिताजी के माथे की लकीर सॉफ दिखाई दे रही थी

माँ को पता था कि पिताजी क्या सोच रहे है

जयसिंघ के बारे मे सोच रहे होंगे

नेहा नीता भी बड़ी हो रही थी

उनको भी समझ मे आ रहा था कि ये हो क्या रहा है

पिताजी के बातों का मतलब वो भी समझती थी

पिताजी को ज़्यादा दुख ना पहुँच इस लिए पूजा हमेशा आगे आकर सबका ध्यान रखती है

पूजा को पता है कि भैया की वजह से पिताजी कितने अपसेट रहते है ऐसे मे वो और पिताजी को दुख नही देना चाहती थी

बस एक अकेला जयसिंघ है जो ये बात समझ नही रहा था

इतना पढ़ाई मे तेज है पर रियल लाइफ मे वो फैल हो गया था

क्या पता उसके दिमाग़ मे कुछ और चल रहा होगा

पिताजी अपना मूड खराब करके , जयसिंघ की वजह से अपने बेटियो का दिन खराब नही करेंगे

पिताजी ने अपने दर्द को अपने छीने मे छुपा लिया और सब के साथ आम का मज़ा लेने लगे

नेहा अपने पिताजी के सबसे करीब थी

उसने पिताजी की ये खूबी धीरे धीरे अपने अंदर ले ली

नेहा ने अपने पिताजी से सीखा अपने दर्द को दबा कर रखना

हम अच्छी चीज़े भी सीखते है और बुरी चीज़े भी सीखते है ,

जयसिंघ को पिताजी की स्माइल देख कर लगा होगा कि पिताजी भूल गये और उसको माफ़ किया

पर जयसिंघ ग़लत था

वो उसके लिए नही अपनी बेटियो के अपने चेहरे पे स्माइल लेकर आए है

इस आम के बगीचे मे दिन भर हँसी मज़ाक करके सब खुश थे

छोटू का पेट तो टाइट हो गया था

उसे तो माँ ने अपनी गोद मे उठा कर घर ले आई

नेहा नीता हमेशा की तरह अपने पिताजी के साथ चलती थी

जयसिंघ को अकेला चलते हुए देख कर पूजा उसका हाथ पकड़ कर चलती थी
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shubhs
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Re: मैं और मेरा परिवार

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