सोलहवां सावन complete

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jay
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Re: सोलहवां सावन,

Post by jay »

komal ji you are great

pls update
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(^^d^-1$s7)
(एक बार ऊपर आ जाईए न भैया )..(परिवार में हवस और कामना की कामशक्ति )..(लेखक-प्रेम गुरु की सेक्सी कहानियाँ running)..(कांता की कामपिपासा running).. (वक्त का तमाशा running).. (बहन का दर्द Complete )..
( आखिर वो दिन आ ही गया Complete )...(ज़िन्दगी एक सफ़र है बेगाना complete)..(ज़िद (जो चाहा वो पाया) complete)..(दास्तान ए चुदाई (माँ बेटी बेटा और किरायेदार ) complete) .. (एक राजा और चार रानियाँ complete)..(माया complete...)--(तवायफ़ complete)..(मेरी सेक्सी बहनेंcompleet) ..(दोस्त की माँ नशीली बहन छबीली compleet)..(माँ का आँचल और बहन की लाज़ compleet)..(दीवानगी compleet..(मेरी बर्बादी या आबादी (?) की ओर पहला कदमcompleet) ...(मेले के रंग सास,बहू और ननद के संग).


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(फैमिली में मोहब्बत और सेक्स (complet))........(कोई तो रोक लो)......(अमन विला-एक सेक्सी दुनियाँ)............. (ननद की ट्रैनिंग compleet)..............( सियासत और साजिश)..........(सोलहवां सावन)...........(जोरू का गुलाम या जे के जी).........(मेरा प्यार मेरी सौतेली माँ और बेहन)........(कैसे भड़की मेरे जिस्म की प्यास)........(काले जादू की दुनिया)....................(वो शाम कुछ अजीब थी)
mini

Re: सोलहवां सावन,

Post by mini »

komaalrani wrote:सोलहवां सावन, पहले एक चूड़ी वाली आयी और मैंने भी सबके साथ, कुहनी तक हरी-हरी चूड़ीयां पहनी। मैंने ज़रा सा नखड़ा किया की वो चुड़िहारिन ( आखिर भैया के ससुराल की थी ,तो भैया की सलहज लगी और फिर मुझसे अपने आप मजाक का रिश्ता बन गया ), और साथ में चंपा भाभी मेरे पीछे पड़ गयीं।

अच्छा ई बूझो , चुड़िहारिन ने मेरी कलाई को गोल गोल मोड़ते हुए पूछा,

" हमरि तुम्हरी कब , अरे हाथ पकड़ा जब।

चीख चिल्लाहट कब , अरे आधा जाये तब।

और मजा आये कब ,.... ?

बात उनकी पूरी की चम्पा भाभी ने ,

"अरे मजा आये कब , पूरा जाए तब और क्या , आधे तीहे में का मजा। "

मेरे गाल गुलाल हो गए , कल से तो भाभी ,भाभी की कुँवारी शादी शुदा बहने और भाभी की भाभियाँ सब एक ही तो बात कर रही थीं , मैं समझ गयी आधा तिहा और पूरा से का मतलब है।

फिर चंदा ने रात में अच्छी कोचिंग भी कर दी थी और भरतपुर के स्टेशन पे आग भी सुलगा दी थी।

"अरे वही लड़का लड़की , डालना और क्या , शरमाते शर्माते मैं बोली , फिर क्या था चूड़ी वाली चूड़ी पहनाते हुए मेरे पीछे पड़ गयी।

और मेरी भाभी से बोली ,

" अरी बिन्नो तोहरी ई ननदिया क बिल में बहुत चींटे काट रहे हैं मोटे मोटे , बहुत खुजली हो रही है , एके बात उसको सूझ रही है "

और मुझसे मुड़ के बोलीं ,

" अरे रानी एकर मतलब , चूड़ी पहिराना। पहले हाथ पकड़ना , फिर शुरू में जब घुसता है अंदर , चूड़ी जाती है रगड़ती कसी कसी तो कुछ दर्द तो होगा ही।

फिर जब भर हाथ चूडी हो जाती है तो कितना निक लगता है , मजा आता है , हैं की नहीं।

दो दर्जन से ऊपर एक एक हाथ में , एकदम कुहनी तक ,

और ऊपर से चम्पा भाभी बोलीं , चुड़िहारिन से ," दो दिन बाद फिर आ जाना ".
ये बात न मुझे समझ में आई न चुड़िहारिन को लेकिन जब चम्पा भाभी ने अर्थाया तो सब लोग हँसते हँसते , (सिवाय मेरे , मेरे पास शर्माने के अलावा कोई रास्ता था क्या )

वो बोलीं , अरे एक रात में तो दो दर्जन की एक दर्जन हो जायेगी , और कुछ खेत में टूटेगी कुछ पलंग पे ,कुछ हमरे देवर के साथ तो कुछ नंदोई के साथ। "

आज भाभी और चम्पा भाभी ने तय किया था कि वो मुझे शहर की गोरी से गांव की गोरी बनाकर रहेंगी। तब तक पूरबी भी आगयी , भाभी की रिश्ते में बहन लगती थी ,उम्र में उनसे छोटी , मुझसे दो तीन साल बड़ी होगी , इसी साल शादी हुयी थी और पहले सावन में मायके आई थी।

और मेरे श्रृंगार और छेड़ने दोनों में हिस्सा बटाने लगी।
पावों में महावर और हाथों में रच-रच कर मेंहदी तो लगायी ही, नाखून भी खूब गाढ़े लाल रंगे गये, पावों में घुंघरु वाली पाजेब, कमर में चांदी की कर्धनी पहनायी गयी। पूरबी ने चांदी की पाजेब बहुत प्यार से खुद मुझे पहनाई और मुझसे बोलने लगी ,

" ननद रानी ,तुम्हारे गहनों में सबसे जोरदार यही है। "

मेरे कुछ समझ में नहीं आया ,लेकिन पूरबी और चम्पा भाभी जोर जोर से मुस्करा रही थीं।

" अरे छैलों के कंधे पे चढ़ के बोलेगी ये , कभी गन्ने के खेत में तो कभी आम के बाग़ में, इसलिए सबसे पहले ये पाजेब ही पहना रही हूँ। "
कुछ देर में चंदा और रमा भी आ गयीं मेले के लिए तैयार हो के ,खूब सजधज के। साथ में कामिनी भाभी भी।

भाभी ने अपनी खूब घेर वाली हरे रंग की चुनरी भी पहना दी, लेकिन उसे मेरी गहरी नाभी के खूब नीचे ही बांधा, जिससे मेरी पतली बलखाती कमर और गोरा पेट साफ दिख रहा था।
लेकीन परेशानी चोली की थी, चन्दा के उभार मुझसे बड़े थे इसलिये उसकी चोली तो मुझे आती नहीं पर रमा जो भाभी की कजिन थी और मुझसे एक साल से थोड़ी ज्यादा छोटी थी, की चोली मैंने ट्राई की। पर वह बहुत कसी थी।
चम्पा भाभी ने कहा-
“अरे यहां गांव में चड्ढी बनयान औरतें नहीं पहनती…”
और उन्होंने मुझे बिना ब्रा के चोली पहनने को मजबूर किया। भाभी ने तो ऊपर के दो हुक भी खोल दिये, जिससे अब ठीक तो लग रहा था पर मैं थोड़ा भी झुकती तो सामने वाले को मेरे चूचुक तक के दर्शन हो जाते और चोली अभी भी इत्ती टाइट थी कि मेरे जोबन के उभार साफ-साफ दिख रहे थे।

हाथ में तो मैंने चूड़ियां, कलाई भर-भरकर तो पहनी ही थीं, भाभी ने मुझे कंगन और बाजूबंद भी पहना दिये। चन्दा ने मेरी बड़ी-बड़ी आँखों में खूब गाढ़ा काजल लगाया, माथे को एक बड़ी सी लाल बिंदी और कानों में झुमके पहना दिये। चम्पा भाभी ने पूरा मुआयना किया और कुछ देर तक सोचती रहीं , फिर बोलीं ,अभी भी एक कसर है।





अंदर गयीं और एक नथ ले आयीं , बहुत ही खूबसूरत , बहुत बड़ी नहीं तो बहुत छोटी भी नहीं। मेरे होंठों से रगड़ खाती , और एक प्यारा सा बड़ा सा सफेद मोती।

और कामिनी भाभी ने अपने हाथ से पकड़ के पहना दिया।
मैंने जरा सा नखड़ा किया , ना नुकुर किया तो ,कामिनी भाभी चिढ़ाते हुए बोलीं ,

" अरी बिन्नो ,नथ पहनोगी नहीं तो उतरेगी कैसे "

फिर साथ साथ चंदा को हड़काया भी ,

" ये मस्त माल तेरे हवाले कर रही हूँ , तेरी जिम्मेदारी है। २४ घंटे के अंदर नथ उतर जानी चाहिए। "

चंदा भी कौन कम थी , बोली

" भाभी , अरे २४ घंटे। मेरी सहेली को समझती क्या हैं , १२ घंटे से कम में ये नथ न उतर गयी तो कहिये। अरे इसकी बुलबुल तो आई है है यहाँ चारा घोंटने। "

और हँसते हँसते सभी लोट पोट होगये।

चन्दा की छोटी बहन, कजरी, उसकी सहेली, गीता, पूरबी और रमा भी आ गई थीं और हम सब लोग मेले के लिये चल दिये। काले उमड़ते, घुमड़ते बादल, बारिश से भीगी मिट्टी की सोंधी-सोंधी महक, चारों ओर फैली हरी-हरी चुनरी की तरह धान के खेत, हल्की-हल्की बहती ठंडी हवा, मौसम बहुत ही मस्त हो रहा था।











हरी, लाल, पीली, चुनरिया, पहने अठखेलियां करती, कजरी और मेले के गाने के तान छेड़ती, लड़कियों और औरतों के झुंड मस्त, मेले की ओर जा रहे थे, लग रहा था कि ढेर सारे इंद्रधनुष जमीन पर उतर आयें हो। और उनको छेड़ते, गाते, मस्ती करते, लम्बे, खूब तगड़े गठीले बदन के मर्द भी… नजर ही नहीं हटती थी।

कजरी ने तान छेड़ी- “अरे, पांच रुपय्या दे दो बलम, मैं मेला देखन जाऊँगी…” और हम सब उसका गाने में साथ दे रहे थे।


तभी एक पुरुष की आवाज सुनायी पड़ी- “अरे पांच के बदले पचास दै देब, जरा एक बार अपनी सहेली से मुलाकात तो करवा दो…” वह सुनील था और उसके साथ अजय, रवी, दिनेश और उनके और साथी थे।


पूरबी ने मुझे छेड़ते हुये कहा- “अरे, करवा ले ना… एक बार… हम सबका फायदा हो जायेगा…”

मैंने शर्मा कर नीचे देखा तो मेरा आंचल हटा हुआ था और मेरे जोबन के उभार अच्छी तरह दिख रहे थे, जिसका रसास्वादन सभी लड़के कर रहे थे।


“बोला, बोला देबू, देबू कि जइबू थाना में बोला, बोला…” सुनील ने मुझे छेड़ते हुए गाया।


“अरे देगी, वो तो आयी ही इसीलिये है… देखो ना आज हरी चुनरी में कैसे हरा सिगनल दे रही है…” चन्दा कहां चुप रहने वाली थी।
“अच्छा अब तो इस हरे सिगनल पर तो हमारा इंजन सीधे स्टेशन के अंदर ही घुसकर रुकेगा…” उसके साथी ने खुलकर अपना इरादा जताया।
माल तो मस्त है , एकदम जबरदस्त है ई नयका माल उसने जोड़ा और गाना शुरू कर दिया , और मेरी ओर इशारा कर कर के ,

कमरिया चले ले लपलप्प ,लालीपाप लागेलू

जिल्ला टॉप लागेलू
तू लगावेलु जब लिपस्टिक तब जिया मार लागेलू




चंदा ने मुझे इशारे से बताया की यही रवी है , कल जिसकी तारीफ़ वो चूत चटोरा कह के कर रही थी ,वही।

खूब खुल के मेरी ओर इशारे कर के वो गा रहा था और सब लड़के दुहरा रहे थे.

मैं थोड़ा शरमा ,झिझक रही थी लेकिन बाकी लड़कियां ,मेरी सहेलियां खुल के मजे लेरही थीं। और लड़कों को और उकसा रही थीं


तब तक एक लड़के ने मेरे नथुनी को लेके मजाक शुरू कर दिया ,

" हे अरे यह शहरी माल क नथुनिया तो जान मार रही है "और लगता है की वो कोई गीता का पुराना यार होगा , उसने सीधा उसी से पूछा

"नथ उतराई अभिन हुयी है है की नहीं। "

गीता एक पल के लिए रुकी और मेरा चेहरा उन सबों की ओर कर के दिखा के बोली ,

" अरे देख नहीं रहे हो इतनी बड़ी नथ , एकदम कच्ची कुँवारी कली मंगवाया है तुम सबके लिए "

और लड़कों के पहले सारी लड़कियां खिलखिला के हंसने लगी , रवी ने मेरे नथ की ओर इशारा करके एक नया गाना छेड़ दिया।


मोरे होंठवा से नथुनिया कुलेल करेला ,जैसे नागिन से सँपेरा अठखेल करेला।


जैसे नखड़ा जवानी में रखेल करेला , मोरे होंठवा से नथुनिया कुलेल करेला।

मोरे होंठवा से नथुनिया कुलेल करेला ,जैसे नागिन से सँपेरा अठखेल करेला।

भइले जब सैयां जी क दिल बेईमान , उनके रस्ते में ई बन गइले दरबान

मोरे होंठवा से नथुनिया कुलेल करेला ,जैसे नागिन से सँपेरा अठखेल करेला।

और जवाब उसके गाने का मेरी ओर से पूरबी ने दिया ,

सही कह रहे हो , खाली ललचाते रहना इसका लाल लाल होंठ देखकर , जबरस्त दरबान है ई नथुनिया।

तब तक अजय ने मुझे इस निगाह से देखा की मैं पानी पानी हो गयी।
mini

Re: सोलहवां सावन,

Post by mini »

aap nayi kahani isi forum per shuru kerna pls
mini

Re: सोलहवां सावन,

Post by mini »

komaalrani wrote: कल जब से मैं अजय को देखा था कुछ कुछ हो रहा था , और वैसे भी शादी में जब मैं आई थी उस समय से , फिर भाभी भी बार बार उसे से मेरा टांका भीड़वाने के चक्कर में पड़ी थीं।

और फिर अजय चालू हो गया , उसकी आवाज में था कुछ


अरे जौन जौन कहबा , मानब तोर बचनिया
धीरे से चुम्मा लई ला हो टार के नथुनिया

चढ़त जवानी रहलो न जाय , तोहरे बिना हमार मन घबड़ाये

रतिया के आया जा तानी जुबना दबावे
धीरे से चुम्मा लई ला हो टार के नथुनिया

और चंदा ने चिढ़ाया मुझे ,

यार अब न तेरे होंठों का रस बचेगा न जुबना का आगया लूटने वाला भौंरा।
और मेरे मुंह से निकल गया तो क्या हुआ , फिर तो मेरी सारी सहेलियों ने ,....


लेकिन हम लोगों ने अब गाना शुरू किया ,

पूरबी ने शुरू किया , कुछ देर तक तो मैं शरमाई फिर मैंने भी ज्वाइन कर लिया

हो मोहे छेड़े हैं छैले बजरिया मां

अरे मार गवा बिच्छू बजरिया मां।

नागिन के जैसे लहरे कमरिया ,

छुरी जैसी है हमरी नजरिया ,

अरे , मार गवा बिच्छू बजरिया में।

अरे मच गवा सोर बजरिया मा

अरे मार गवा बिच्छू बजरिया माँ।
अरे कइसन बचाय आपन इमनवा

हो मोहे छेड़े हैं छैले बजरिया मां
" अरे ऐसा जानमारू माल होगा तो छैले छेड़ेंगे ही और सिर्फ छेड़ेंगे नहीं , बल्कि जरा ई चोली फाड़ उभार तो देखो " ये सुनील था।

और मैंने ध्यान दिया तो गाने के चक्कर में मेरी चुनरी नीचे सरक गयी थी और दोनों कड़े कड़े गदराये उभार साफ साफ दिख रहे थे और रवी फिर चालू हो गया ,


अरे अरे निबुआ कसम से गोल गोल

तानी छूके देखा राजा , तोहार मनवा जाइ डोल।

अरे जुबना दबाइबा तब बड़ा मजा आई

तानी छूके देखा राजा , तोहार मनवा जाइ डोल।

गलवा दबयिबा तब बड़ा मजा आई ,

तानी दबाई के देखा राजा तोहार मनवा जाइ डोल।

जुबना क रस लेबा ता बड़ा माजा आई

तानी छूके देखा राजा , तोहार मनवा जाइ डोल।


आज तो सब के सब लड़के तेरे ही पीछे पड़ गए हैं यार , रमा ने चिढ़ाया मुझे।

“साढ़े तीन बजे गुड्डी जरुर मिलना, अरे साढ़े तीने बजे…” अजय की रसभरी आवाज मेरे कानों में पड़ी।
पान खा ला गुड्डी , खैर नहीं बा अरे बोल बतिया ला बैर नहीं बा

साढ़े तीन बजे गुड्डी जरूर मिलना ,साढ़े तीन बजे

अरे एक बार देबू ,धरम पइबू ,
जोड़ा लइका खिलैबु ,मजा पइबू साढ़े तीन बजे ,

साढ़े तीन बजे गुड्डी जरूर मिलना ,साढ़े तीन बजे।

बबुरे का डंडा फटाफट होए ,

तोहरी जांघंन के बीचे सटासट होय ,साढ़े तीन बजे

साढ़े तीन बजे गुड्डी जरूर मिलना ,साढ़े तीन बजे

इकन्नी दुआँन्नी डबल पैसा

तुहारी पोखरी में कूदल बा हमार भैन्सा , साढ़े तीन बजे।

पांच के बादल पचास लग जाय ,

बिन रगड़े न छोड़ब चाहे पुलिस लग जाय ,

अरे करिवाय ल , अरे करिवाय ल , अरे डरवाय ला ,साढ़े तीन बजे।

साढ़े तीन बजे गुड्डी जरूर मिलना ,साढ़े तीन बजे


आज तेरी बचने वाली नहीं है जानू ,अजय की ओर इशारा करके चंदा ने मेरे कान में कहा और मेरे गुलाबी गाल मसल दिए।
चन्दा ने फ़ुसफुसाया- “अरे बोल दे ना वरना ये पीछे पड़े ही रहेंगे…”

“ठीक है, देखूंगी…” मैंने अजय की ओर देखते हुए कहा।

“अरे लड़की शायद कहे, तो हां होता है…” अजय के एक साथी ने उससे कहा।


वह मर्दों के एक झुंड के साथ चल दिये और हम लोग भी हँसते खिलखिलाते मेले की ओर चल पड़े। मेले का मैदान एकदम पास आ आया था, ऊँचे-ऊँचे झूले, नौटंकी के गाने की आवाज… भीड़ एकदम बढ़ गयी थी, एक ओर थोड़ा ज्यादा ही भीड़ थी।


कजरी ने कहा- “हे उधर से चलें…”

“और क्या… चलो ना…” गीता उसी ओर बढ़ती बोली, पर कजरी मेरी ओर देख रही थी।


“अरे ये मेलें में आयी हैं तो मेले का मजा तो पूरा लें…” खिलखिलाते हुये पूरबी बोली।

मैं कुछ जवाब देती तब तक भीड़ का एक रेला आया और हम सब लोग उस संकरे रास्ते में धंस गये। मैंने चन्दा का हाथ कसकर पकड़ रखा था। ऐसी भीड़ थी की हिलना तक मुश्किल था, तभी मेरे बगल से मर्दों का एक रेला निकला और एक ने अपने हाथ से मेरी चूची कसकर दबा दी।


जब तक मैं सम्हलती, पीछे से एक धक्का आया, और किसी ने मेरे नितम्बों के बीच धक्का देना शुरू कर दिया। मैंने बगल में चन्दा की ओर देखा तो उसको तो पीछे से किसी आदमी ने अच्छी तरह से पकड़ रखा था, और उसकी दोनों चूचियां कस-कस के दबा रहा था और चन्दा भी जमके मजा ले रही थी।


कजरी और गीता, भीड़ में आगे चली गयी थीं और उनको तो दो-दो लड़कों ने पकड़ रखा था और वो मजे से अपने जोबन मिजवा, रगड़वा रही हैं। तभी भीड़ का एक और धक्का आया और हम उनसे छूटकर आगे बढ़ गये।
भीड़ अब और बढ़ गयी थी और गली बहुत संकरी हो गयी थी।

अबकी सामने से एक लड़के ने मेरी चोली पर हाथ डाला और जब तक मैं सम्हलती, उसने मेरे दो बटन खोलकर अंदर हाथ डालकर मेरी चूची पकड़ ली थी।


पीछे से किसी के मोटे खड़े लण्ड का दबाव मैं साफ-साफ अपने गोरे-गोरे, किशोर चूतड़ों के बीच महसूस कर रही थी। वह अपने हाथों से मेरी दोनों दरारों को अलग करने की कोशिश कर रहा था और मैंने पैंटी तो पहनी नहीं थी, इसलिये उसके हाथ का स्पर्श सीधे-सीधे, मेरी कुंवारी गाण्ड पर महसूस हो रहा था।


तभी एक हाथ मैंने सीधे अपनी जांघों के बीच महसूस किया और उसने मेरी चूत को साड़ी के ऊपर से ही रगड़ना शुरू कर दिया था। चूची दबाने के साथ उसने अब मेरे खड़े चूचुकों को भी खींचना शुरू कर दिया था। मैं भी अब मस्ती से दिवानी हो रही थी।


चन्दा की हालत भी वही हो रही थी। उस छोटे से रास्ते को पार करने में हम लोगों को 20-25 मिनट लग गये होंगे और मैंने कम से कम 10-12 लोगों को खुलकर अपना जोबन दान दिया होगा।


बाहर निकलकर मैं अपनी चोली के हुक बंद कर रही थी कि चन्दा ने आ के कहा- “क्यों मजा आया हार्न दबवाने में…”
बेशरमी से मैंने कहा- “बहुत…”


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