भाई साहब कहाँ चले गए आप कितना इंतिजार कराएं गे
अपडेट दे दीजिए अब बहुत मेहरबानी होगी आपकी
ज़िंदगी भी अजीब होती है Restart
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Re: ज़िंदगी भी अजीब होती है Restart
भाभी- अब तुम्हारा तुम देखो मैं अपना देख लूँगी . वैसे भी मुझे भी कोई शौक नही है किसी के आगे-पीछे चक्कर काटने का,तुम अपने मे मस्त रहो मैं अपने मे. अब एक परिवार है तो आमना-सामना होता ही रहेगा बाकी तुम अपनी जगह मैं अपनी जगह.अनिता के इतने बुरे दिन भी नही आए है की उसे लोगो का मोहताज होना पड़े. ठीक है आज मेरा वक़्त खराब है और तुम बड़े हो गये हो तो ले लो अपने फ़ैसले, जो करना है करो आज के बाद मैं आगे से तुम्हे कुछ नही कहूँगी.
मेरा दिमाग़ सच मे झल्लाने लगा था जहाँ मैं भाभी को समझाने की पूरी कोशिश कर रहा था उतना ही उनके दिल मे मैल भरता जा रहा था.मैने फिर भी एक कोशिश की उनको समझाने की पर वो टस से मस ना हुई और चली गयी रह गये मैं और प्रीतम.
प्रीतम- इसको नशा बहुत है बड़े घर की होने का.
मैं- क्या बड़े घर की है यार. मैं क्या बदल गया , अब जो काम है वो तो करना ही पड़ेगा ना. साल मे मुश्किल से इतने ही दिन मिलते है और यहाँ आओ तो इनके ये तमाशे यार अब टाइम के अनुसार तो चलना पड़ेगा ना. बीते कुछ सालो मे दुनिया बदल गयी है तुम और हम तो इंसान ही हैं ना , मैं घर ना बसाऊ क्या. माना ठीक है, तब बच्पना बहुत है और जवानी का जोश भी हो गया और फिर मज़े तो दोनो ने ही किए थे ना. पर ज़िंदगी मे और भी चीज़ों को देखना पड़ता है .
प्रीतम- यही बात तो अनिता समझ नही रही है. खैर ,मूड खराब मत कर वैसे भी मैं जा रही हूँ फिर देखो कब मुलाकात हो . अब तू ऐसे रहेगा तो मुझे भी बुरा लगेगा.
कुछ देर सुस्ताने के बाद एक बार और हम ने चुदाई की फिर कुछ खाया पिया और फिर उसको तो जाना ही था . मैं उसको कुछ देना चाहता था पर उसने मना कर दिया .
घर गया तब तक मम्मी- पापा भी वापिस आ चुके थे तो थोड़ी बहुत बाते उनसे भी हो गयी. वैसे भी अगले दिन मुझे भी देल्ही के लिए निकलना था तो थोड़ा बहुत टाइम पॅकिंग मे निकल गया . मैं फादर साब से बात करना चाहता था पर कह नही पाया तो दिल की बात दिल मे लिए मैने बस पकड़ ली देल्ही के लिए. इस बार जब गाँव से चला तो ऐसा लगा कि पीछे कुछ रह गया है.एक अजनबी पन सा साथ लेकर मैं चला था इस बार अपने सफ़र मे. निशा मुझे देखते ही खुश हो गयी थी.रात को हम दोनो एक दूसरे के पास पास बैठे थे.
निशा- सोच रही हूँ, बुआ के बेटे की शादी है तो कुछ शॉपिंग कर लूँ
मैं- जो तेरा दिल करे , कर ले.
वो- तुम ही बताओ क्या गिफ्ट खरीदे.
मैं- कहा ना, जो तुम्हारा दिल करे. जो तुम्हे पसंद है वो ही मेरी पसंद है.
निशा ने मेरे काँधे पर अपना सर रख दिया और पास बैठ गयी. अक्सर हमारे पास कहने को कुछ नही होता था, दिल अपने आप समझ लिया करते थे दिलो की बाते. अगर निशा नही होती तो मेरा क्या होता मिथ्लेश के जाने के बाद जैसे उसने थाम लिया था मुझे, ज़िंदगी मे फिर से मुस्कुराने की वजह थी तो वो निशा थी, मेरी निशा.
और बहुत विचार करके मैने फ़ैसला किया कि निशा ही मेरी ज़िंदगी की डोर बनेगी. अगली शाम मैं उसे लेके झंडेवालान मे माता के मंदिर ले गया.
निशा- यहाँ क्यो आए है हम
मैं- कुछ कहना था तुमसे.
निशा- हाअ,
मैने वो दुल्हन का जोड़ा जिसे निशा ने पसंद किया था , जिसे उसकी नज़रों से बचाकर मैं खरीद लाया था मैने उसके हाथों मे रख दिया.
वो हैरान रह गयी थी , उसके चेहरे पर जो खुशी थी हां उसी को तो मैं देखना चाहता था.
निशा- मज़ाक कर रहे हो ना मनीष.
मैं- नही, इस से पहले कि मैं टूट कर बिखर जाउ, निशा मुझे थाम लो मुझे अपना बना लो. मुझसे शादी करोगी निशा.
निशा की आँखो से आँसू बह चले, पर उसके चेहरे पर मुस्कान थी , जो मेरे दिल को धड़का गयी थी. निशा ने बस अपनी बाहे फैला दी और मुझे अपनी बाहों मे भर लिया. जैसे गरम रेत पर बरसात की कुछ बूंदे गिर जाती है उतना ही करार मुझे उस पल था. जल्दी ही वो मेरे सामने दुल्हन का जोड़ा पहने खड़ी थी. मैने पहले ही सारी तैयारी कर रखी थी , उसका हाथ अपने हाथो मे थामे फेरे लेते हुए मैं और वो अपनी नयी ज़िंदगी के सपने सज़ा रहे थे, मैं कभी नही सोचा था कि निशा मेरी जीवनसाथी बनेगी पर उपर वाले ने शायद उसे ही चुना था मेरे हम सफ़र के रूप मे. कहने को तो वो बस सात फेरे थे पर मैं और निशा जानते थे कि हमारा बंधन अब दो जिस्म एक जान हो गया था.
हमारे रिश्ते को अब एक नाम मिल गया था, शादी के बाद हम दोनो वही पर सीडीयो पर बैठे थे.
निशा- कभी सोचा नही था ना.
मैं- तुम हमेशा से मुझसे प्यार करती थी ना
निशा- तुम जानते हो ना. मेरा था ही कौन एक सिवाय तुम्हारे.
मैं- कभी कभी डर लगता है मुझे
निशा- क्यो.
मैं- मेरी तकदीर ही ऐसी है .
निशा- अब से मैं तकदीर हूँ तुम्हारी, मैं तुम्हारे भाग्य को अपने हाथो की लकीरो मे लेके चलूंगी,
मैने उसका माथा चूम लिया. और रात होते होते हम घर आ गये.
मैने घर आके सबसे पहले पापा को फोन किया.
मैं- एक बात बतानी थी आपको.
पापा- हाँ बेटे, सब ठीक तो हैं ना.
मैं- सब ठीक है पापा, वो मैने , वो मैने शादी कर ली है .
पापा- चलो कुछ तो ठीक हुआ तुम्हारी ज़िंदगी मे पर किस से.
मैं- निशा से पापा.
पापा- अब मुझे चैन मिला , निशा ही तुम्हे ठीक रखेगी, रूको मैं तुम्हारी मम्मी को बुलाता हूँ.
और फिर मैने पापा की आवाज़ सुनी , खुशी से चहकते हुए, कुछ देर बाद फोन पर मम्मी थी अपनी ढेरो शिकायते लेकर.
मुंम्मी- हाय राम, क्या जमाना आ गया हमे बता तो देता , मुझे तो बुलाना ही नही चाहता फलना फलना.
मैं- सुन तो लो मेरी बात .
पर तभी निशा ने मेरे हाथ से फोन ले लिया .
मेरा दिमाग़ सच मे झल्लाने लगा था जहाँ मैं भाभी को समझाने की पूरी कोशिश कर रहा था उतना ही उनके दिल मे मैल भरता जा रहा था.मैने फिर भी एक कोशिश की उनको समझाने की पर वो टस से मस ना हुई और चली गयी रह गये मैं और प्रीतम.
प्रीतम- इसको नशा बहुत है बड़े घर की होने का.
मैं- क्या बड़े घर की है यार. मैं क्या बदल गया , अब जो काम है वो तो करना ही पड़ेगा ना. साल मे मुश्किल से इतने ही दिन मिलते है और यहाँ आओ तो इनके ये तमाशे यार अब टाइम के अनुसार तो चलना पड़ेगा ना. बीते कुछ सालो मे दुनिया बदल गयी है तुम और हम तो इंसान ही हैं ना , मैं घर ना बसाऊ क्या. माना ठीक है, तब बच्पना बहुत है और जवानी का जोश भी हो गया और फिर मज़े तो दोनो ने ही किए थे ना. पर ज़िंदगी मे और भी चीज़ों को देखना पड़ता है .
प्रीतम- यही बात तो अनिता समझ नही रही है. खैर ,मूड खराब मत कर वैसे भी मैं जा रही हूँ फिर देखो कब मुलाकात हो . अब तू ऐसे रहेगा तो मुझे भी बुरा लगेगा.
कुछ देर सुस्ताने के बाद एक बार और हम ने चुदाई की फिर कुछ खाया पिया और फिर उसको तो जाना ही था . मैं उसको कुछ देना चाहता था पर उसने मना कर दिया .
घर गया तब तक मम्मी- पापा भी वापिस आ चुके थे तो थोड़ी बहुत बाते उनसे भी हो गयी. वैसे भी अगले दिन मुझे भी देल्ही के लिए निकलना था तो थोड़ा बहुत टाइम पॅकिंग मे निकल गया . मैं फादर साब से बात करना चाहता था पर कह नही पाया तो दिल की बात दिल मे लिए मैने बस पकड़ ली देल्ही के लिए. इस बार जब गाँव से चला तो ऐसा लगा कि पीछे कुछ रह गया है.एक अजनबी पन सा साथ लेकर मैं चला था इस बार अपने सफ़र मे. निशा मुझे देखते ही खुश हो गयी थी.रात को हम दोनो एक दूसरे के पास पास बैठे थे.
निशा- सोच रही हूँ, बुआ के बेटे की शादी है तो कुछ शॉपिंग कर लूँ
मैं- जो तेरा दिल करे , कर ले.
वो- तुम ही बताओ क्या गिफ्ट खरीदे.
मैं- कहा ना, जो तुम्हारा दिल करे. जो तुम्हे पसंद है वो ही मेरी पसंद है.
निशा ने मेरे काँधे पर अपना सर रख दिया और पास बैठ गयी. अक्सर हमारे पास कहने को कुछ नही होता था, दिल अपने आप समझ लिया करते थे दिलो की बाते. अगर निशा नही होती तो मेरा क्या होता मिथ्लेश के जाने के बाद जैसे उसने थाम लिया था मुझे, ज़िंदगी मे फिर से मुस्कुराने की वजह थी तो वो निशा थी, मेरी निशा.
और बहुत विचार करके मैने फ़ैसला किया कि निशा ही मेरी ज़िंदगी की डोर बनेगी. अगली शाम मैं उसे लेके झंडेवालान मे माता के मंदिर ले गया.
निशा- यहाँ क्यो आए है हम
मैं- कुछ कहना था तुमसे.
निशा- हाअ,
मैने वो दुल्हन का जोड़ा जिसे निशा ने पसंद किया था , जिसे उसकी नज़रों से बचाकर मैं खरीद लाया था मैने उसके हाथों मे रख दिया.
वो हैरान रह गयी थी , उसके चेहरे पर जो खुशी थी हां उसी को तो मैं देखना चाहता था.
निशा- मज़ाक कर रहे हो ना मनीष.
मैं- नही, इस से पहले कि मैं टूट कर बिखर जाउ, निशा मुझे थाम लो मुझे अपना बना लो. मुझसे शादी करोगी निशा.
निशा की आँखो से आँसू बह चले, पर उसके चेहरे पर मुस्कान थी , जो मेरे दिल को धड़का गयी थी. निशा ने बस अपनी बाहे फैला दी और मुझे अपनी बाहों मे भर लिया. जैसे गरम रेत पर बरसात की कुछ बूंदे गिर जाती है उतना ही करार मुझे उस पल था. जल्दी ही वो मेरे सामने दुल्हन का जोड़ा पहने खड़ी थी. मैने पहले ही सारी तैयारी कर रखी थी , उसका हाथ अपने हाथो मे थामे फेरे लेते हुए मैं और वो अपनी नयी ज़िंदगी के सपने सज़ा रहे थे, मैं कभी नही सोचा था कि निशा मेरी जीवनसाथी बनेगी पर उपर वाले ने शायद उसे ही चुना था मेरे हम सफ़र के रूप मे. कहने को तो वो बस सात फेरे थे पर मैं और निशा जानते थे कि हमारा बंधन अब दो जिस्म एक जान हो गया था.
हमारे रिश्ते को अब एक नाम मिल गया था, शादी के बाद हम दोनो वही पर सीडीयो पर बैठे थे.
निशा- कभी सोचा नही था ना.
मैं- तुम हमेशा से मुझसे प्यार करती थी ना
निशा- तुम जानते हो ना. मेरा था ही कौन एक सिवाय तुम्हारे.
मैं- कभी कभी डर लगता है मुझे
निशा- क्यो.
मैं- मेरी तकदीर ही ऐसी है .
निशा- अब से मैं तकदीर हूँ तुम्हारी, मैं तुम्हारे भाग्य को अपने हाथो की लकीरो मे लेके चलूंगी,
मैने उसका माथा चूम लिया. और रात होते होते हम घर आ गये.
मैने घर आके सबसे पहले पापा को फोन किया.
मैं- एक बात बतानी थी आपको.
पापा- हाँ बेटे, सब ठीक तो हैं ना.
मैं- सब ठीक है पापा, वो मैने , वो मैने शादी कर ली है .
पापा- चलो कुछ तो ठीक हुआ तुम्हारी ज़िंदगी मे पर किस से.
मैं- निशा से पापा.
पापा- अब मुझे चैन मिला , निशा ही तुम्हे ठीक रखेगी, रूको मैं तुम्हारी मम्मी को बुलाता हूँ.
और फिर मैने पापा की आवाज़ सुनी , खुशी से चहकते हुए, कुछ देर बाद फोन पर मम्मी थी अपनी ढेरो शिकायते लेकर.
मुंम्मी- हाय राम, क्या जमाना आ गया हमे बता तो देता , मुझे तो बुलाना ही नही चाहता फलना फलना.
मैं- सुन तो लो मेरी बात .
पर तभी निशा ने मेरे हाथ से फोन ले लिया .
कांटा....शीतल का समर्पण....खूनी सुन्दरी
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Re: ज़िंदगी भी अजीब होती है Restart
Thanx 4 update.. Itna wait kiya h iske liye.. Plz ab end karke hi rukna..
- naik
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- Joined: 05 Dec 2017 04:33
Re: ज़िंदगी भी अजीब होती है Restart
बहुत बहुत शुक्रिया आपका भाई साहब इंतिजार करते करते आखें तरस गयी थी आज का अपडेट पढ़कर बहुत सुकून मिला दिल को
अब अपडेट देते रहिएगा रोकैगा नही बीच मे
अब अपडेट देते रहिएगा रोकैगा नही बीच मे
- naik
- Gold Member
- Posts: 5023
- Joined: 05 Dec 2017 04:33
Re: ज़िंदगी भी अजीब होती है Restart
फिर से बहुत बहुत शुक्रिया आपका