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वहाँ पहुचते पहुचते मुझे ऑलमोस्ट अगली सुबह ही हो गयी थी आँखे नींद मे डूब रही थी बदन थक कर चूर हो रहा था पर मुझे अब जल्दी से जल्दी लक्ष्मी के बेटे से मिलना था , तो मैं करीब 11 बजे उसके कॉलेज के विज़िटर्स ऑफीस मे था उन्होने कहा आप थोड़ा इंतज़ार करें हम बुलवा रहे है , जैसे ही मैने लक्ष्मी के बेटे को देखा कुछ ख़ास नही लगा वो मुझे दुबला पतला सा आँखो पर नज़र का चश्मा, मैने उसे अपना परिचय दिया और कहा कि माँ कहाँ है तो वो बोला माँ इधर क्या करने आएँगी
जब भी आता हूँ तो मैं ही गाँव आता हूँ आज तक तो वो कभी आई ही नही इधर नही कभी बापू आए है बस पैसे भेज देते है टाइम टू टाइम मैने कहा पर वो तो कह रही थी कि तुमसे मिलने आ रही हैं पर उसने तो मना कर दिया अब मैं और भी उलझ कर रह गया था आख़िर कुछ तो राज था कुछ तो खिचड़ी बन रही थी पर क्या था वो मुझे पता नही चल रहा था तो मैने फ़ैसला किया कि वापिस हवेली ही चला जाए
हवेली आने के बाद मैं इसी पेशो-पेश मे था रात घिरी आई थी पुष्पा अपने घर जा चुकी थी मैने सोचा कि क्यो ना आज रात हवेली को अच्छे से देखा जाए आख़िर इतने कमरे थे जो अब भी बंद पड़े थे कुछ तो मिलेगा ही कोई तो राज़ है जिसका मुझे पता नही था तो मैने एक एक कमरे को खंगालना शुरू कर दिया दो-चार कमरो मे तो बस कपड़ो गहनो के अलावा कुछ ना मिला कुछ मे किताबें और फालतू की चीज़े पड़ी थी
पर मैं तलाश करता रहा आख़िर मे मुझे एक कमरे मे एक बॉक्स मे एक चाँदी का हार मिला उसे देख कर मुझे लगा कि ऐसा का ऐसा मैने कही तो देखा है पर याद नही आ रहा था काफ़ी याद करने पर भी याद नही आया तो मैने उसे साइड मे रखा और फिर से चीज़ो को तलाशने लगा आख़िर एक कमरे मे मुझे कुल दस्ता वेज मिल गये करीब पाँच साल पुराने थे धूल मे पड़े हुए
कुछ की हालत तो बहुत ही ख़स्ता हो चली थी पर उनसे कुछ इंपॉर्टेंट भी पता चला उसमे हमारे खानदान की संपत्ति का ब्योरा था पर उसमे जो लिखा था वो रकम और मिल्कियत बहुत ज़्यादा थी जबकि वकील और मुनीम ने जो बताई थी वो तो इस से काफ़ी कम थी तो मेरा दिमाग़ घूमा और मैन बात ये थी कि दादाजी तो बीमार ही थे और मैं यहाँ था नही तो आख़िर कितना पैसा खरच हुआ होगा
मैने वो कागज साइड में रखे और फिर से अपने काम मे लग गया एक बात तो पक्का हो गई थी कि दाल पूरी ही काली हो गयी थी सुबह तक मैने काफ़ी कुछ खंगाल मारा था पर उन प्रॉपर्टी के पुराने पेपर्स के अलावा कुछ काम की चीज़ नही मिली थी मैं हवेली से निकल कर सीधा वकील की पास शहर गया और वो कागज वहाँ पर रखते हुए पूछा कि ............
ये पेपर्स तो प्रॉपर्टी के बारे मे कुछ और ही कहते है तो उसके माथे पर परेशानी के बल पड़ गये मैने कहा 5 मिनिट मे सब सच बता वरना फिर तुम जानते ही हो तो वो बोला ठाकुर साहब सच मे आपकी प्रॉपर्टी बहुत ही ज़्यादा है पर लक्ष्मी जी के दबाव मे मुझे ऐसा करना पड़ा मैने कहा और कोन कॉन है उसके साथ तो वो बोला जी मुझे नही पता मुझे तो लक्ष्मी ने ही कहा था और मोटी रकम भी दी थी ऐसा करने के लिए
मैने कहा असली पेपर्स कहाँ है और सबसे इंपॉर्टेंट बात बता कि जब अगर लक्ष्मी को प्रॉपर्टी का ही लालच था तो मुझे यहाँ क्यो बुलाया गया चुप चाप से ही क़ब्ज़ा क्यो नही कर लिया तो वकील घबराई हुई सी आवाज़ मे बोला ठाकुर साहब आपने शायद वसीयत ठीक से नही पढ़ी उसमे ये लिखा था कि अगर किसी कारण से देव प्रॉपर्टी को क्लेम ना कर पाए तो ये सब कुछ सरकार के पास चला जाए और उनकी निगरानी मे एक अनाथालय बना दिया जाए
इस लिए आप को बुलाना यहाँ पर मजूबूरी थी, आपके बिना सारी प्रॉपर्टी लॅप्स हो जाती मैने कहा वकील जो भी बात तेरे मेरे बीच मे हो रही है वो तूने अगर लीक की तो मेरा वादा है कि तेरी लाश कही पड़ी हुई मिलेगी तो वो बोला माफ़ कीजिए देव साहब आगे से मैं पूरी वफ़ादारी करूँगा , शाम को मैं दिव्या से मिलने उसी बगीचे मे चला गया ना जाने क्यो उस से मिलकर बड़ा ही अच्छा लगता था
जब मैं वहाँ पर पहुचा तो वो खरगोशो के साथ खेल रही थी मुझे देख कर बोली मुसाफिर, काफ़ी दिनो मे आए हो इधर मैने कहा जी वो कुछ काम से बाहर जाना हो गया था पर समय मिलते ही इधर आ गया वो बोली अच्छा किया मेरा भी बड़ा मन हो रहा था तुमसे बाते करने का मैने कहा दिव्या जी अगर आप बुरा ना मानें तो एक बात पुछु वो बोली हम कहो क्या बात है
मैने कहा जी वो कल रात कुछ लोगो से मुझे अर्जुनगढ़ और नाहरगढ़ के ठाकूरो की कहानी के बारे मे पता चला पर मुझे यकीन नही हुआ तुम तो इधर महल मे रहती हो तुम्हे तो पता ही होगा तो वो बोली बात पुरानी है मुझे इसके बारे मे कुछ ज़्यादा पता नही है मैने कहा कि वो लोग कह रहे थे कि वसुंधरा देवी को उनकी माँ ने ही जहर दे दिया था
तो दिव्या के चेहरे पर गुस्से से लाली आ गयी पर तुरंत ही उसने अपने आप को संयंत कर लिया और बोली ऐसा कुछ नही हुआ था बल्कि उनकी मौत तो महल मे हुई ही नही थी, मैने कहा तुम्हे कैसे पता तो वो बोली पता है मुझे उसकी एक बात से मेरे अंदर एक हलचल मच गयी थी पर मैने खुद को संभाल लिया था आख़िर दिव्या झूट क्यो बोलेगी
मैने कहा दिव्या तुम्हे जो भी पता है क्या तुम मुझे बताओगी मुझे बहुत ही उत्सुकता हो गयी है उसने एक ठंडी आह भरी और कहा कि देखो मुझे पक्का ये तो नही पता कि आख़िर ठाकुर वीरभान और भीमसेन के बीच ऐसी कॉन सी बात थी जिस से वो एक दूसरे से नफ़रत करने लगे थे पर ये भी सच है कि वीरभान और वसुंधरा एक दूसरे से प्रेम करते थे
और फिर इसी बात को लेकर काफ़ी बड़ा कांड भी हो गया था पर फिर भी दोनो प्रेमियो का ब्याह हो गया था और उनका बेटा भी हो गया था पर फिर एक दिन वसुंधरा को उनकी माँ सारी बाते भूलकर इधर यानी नाहरगढ़ ले आई और फिर वसुंधरा जी की मौत हो गयी जिसका इल्ज़ाम उनकी माँ पर लगा मैने कहा हम इतना तो पता है मुझे और फिर उनकी माँ को जैल हो गयी थी
वो बोली हाँ पर जैसा कि सब मानते है कि उनको जहर उनकी माँ ने दिया था पर वास्तव मे ऐसा कुछ हुआ ही नही था
मैने कहा दिव्या क्या तुम मुझे पूरी कहानी शुरू से बताओगी तो उसने कहा कि नही वो उस सब के बारे मे बात नही करना चाहती है पर उसके चेहरे पर एक गुस्से की लकीर को मैने देख लिया था मैने कहा मैने कभी भी ज़िंदगी मे महल नही देखा है क्या तुम मुझे दिखाओ गी तो उसने कहा कि वो कैसे तुम्हे दिखा सकती हूँ अगर मालिक लोगो ने देख लिया तो उसकी नौकरी पे बन आएगी तो मैने भी फिर कुछ ना कहा उसके साथ वक़्त बिता कर बड़ा ही अच्छा लग रहा था मुझे पर फिर अंधेरा घिरने लगा था तो घर आना ही था
दो चार दिन ऐसे ही गुजर गये और फिर हवेली मे लक्ष्मी आई मैने कहा कहाँ गयी थी तुम कितने दिन लगा दिए आने मे तो उसने बताया कि वो बेटे से मिलने गयी थी जबकि मुझे पहले से ही पता था कि वो कहीं और से आ रही है मैने पर कुछ भी जाहिर नही होने दिया और उस से बाते करता रहा अब कैसे उगलवाऊ उस से कि वो कहाँ गयी थी बात करते करते मुझे कुछ सूझा तो मैने कहा कि मुझे शहर तक जाना है पर मेरी गाड़ी मे कुछ प्राब्लम है तो क्या तुम्हारी कार ले जाउ
उसने कहा ये भी कोई पूछने की बात है मेरा सब कुछ तुम्हारा ही तो है मैने गाड़ी ली और स्टार्ट कर के बाहर निकल गया सुनसान जगह में आते ही मैने गाड़ी को चेक करना शुरू किया आख़िर कुछ तो मिले जिस से पता चले कि आख़िर ये गयी कहाँ थी पर इधर भी हताशा ही हाथ लगी कुछ नही मिला दो-तीन बार अच्छे से चेक किया पर रह गये खाली हाथ पर कुछ तो खिचड़ी पक ही रही थी जिसमे लक्ष्मी भी शामिल थी पर डाइरेक्ट्ली उस से कुछ पूछ नही सकता था
एक एक दिन बड़ा भारी सा हो रहा था पर फिर एक रोज नाहरगढ़ से ठाकुर राजेंदर की तरफ से निमंत्रण आया कि उनकी बेटी संयोगिता का जनमदिन है तो ज़रूर शिरकत करें मैं सोचने लगा कि जाउ या नही , जाउ या नही मुनीम जी से बात की तो वो बोले आपको बिल्कुल भी नही जाना चाहिए पिछले 19 बरस से इधर से कोई उधर नही गया है पर अगर आप जा ही रहे है तो अपने साथ कुछ आदमी ज़रूर ले जाएँ ना जाने कोन घड़ी क्या हो जाए मैने कहा नही जाउन्गा तो मैं अकेला ही अब जब उन्होने आगे से खुद न्योता भेजा है तो हमारा जाना भी बनता है
मैं मुनीम जी के घर से निकल कर कुछ दूर चला ही था कि मुझे कुछ याद आया तो मैं अंदर कमरे मे पैर रखने ही वाला था कि मैने सुना मुनीम फोन पर कह रहा था कि हाँ अब सही समय आ गया है अपना काम भी हो जाएगा और शक़ भी नही होगा , अब ये कॉन सा काम कर रहा है कहीं ये भी कुछ प्लॅनिंग तो नही कर रहा है मैं हैरान परेशान पर फिर उसकी बाते सुन ने के बाद मैं वहीं से ही मूड गया दो रोज बाद मुझे नाहरगढ़ जाना था