वक्त का तमाशा

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jay
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Re: वक्त का तमाशा

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24दिसंबर 1985 :-



"उम्म्म्म.. छोड़िए ना, आप तो बस हमारे मज़े ही लूट रहे हैं... पता नहीं कब बनाएँगे हमे इस घर की रानी...." नीतू ने बिस्तर पे एक अंगड़ाई लेके कहा



"अरे मेरी जान, इस दिल की रानी बन गयी है तू अब और क्या चाहिए तुझे... यह दिल इस घर से छोटा थोड़ी है..." उसके साथ के मर्द ने उसे अपने सीने से लगा के कहा.. नीतू उस आदमी की बाहों में ऐसी सिमटी जैसे चंदन के पेड़ से साँप.. नीतू का बदन उस वक़्त किसी भी मर्द के लंड को हिचकोले खिला देता.... नीतू ने नाम के लिए बस एक सफेद झीनी साड़ी पहनी थी जो उसके चुचों को ढक रही थी और नीचे से घुटनो तक थी, उसका सोने सा तराशा हुआ शफाक बदन उसके साथ के मर्द को पागल बनाए जा रहा था..



"छोड़िए जी.. आप तो बस बातें बना रहे हैं.... अगर बनाना होता तो कब का हम से शादी कर ली होती, और अपने बच्चे को अपना लेते.. पर अब तक ना ही आपने मुझे अपनाया है, ना ही आपके बच्चे को..." नीतू ने उस मर्द से अलग होते हुए कहा



"हाए मेरी जान.. ऐसे ना रूठ, तुझसे थोड़ा वक़्त ही तो माँगा है.. फिर तुझे और हमारे बच्चे को ऐसी शान से इस घर में लाउन्गा के दुनिया देखती रह जाएगी..." उस आदमी ने फिर नीतू को अपनी बाहों में जकड़ा और नीतू ने भी उसका साथ दिया..



"आहः सीईईई... हाए यह आपका सीना किसी भी औरत को आपकी गुलाम बना दे आहहूंम्म..." नीतू ने उस मर्द के सीने पे अपनी जीभ घूमाते हुए कहा



"उम्म्म आहाहा, तेरा सीना भी तो किसी भी मर्द को उसके घुटनो पे ला दे मेरी रानी..." कहके उस मर्द ने नीतू की साड़ी उसके जिस्म से अलग कर दी... नीतू के चुचे देख वो अपने होंठों पे जीभ घुमाने लगा..



"हाए मेरी रानी अहहहहा क्या चुचे हैं उफ़फ्फ़ अहहाहा" कहके उस मर्द ने नीतू के चुचों पे हाथ रखा और उन्हे धीरे धीरे दबाने लगा...



"अहाहहा.. जब से आप ऊवू अँग्रेज़ी फिल्म देखे हैं.. बहुत ही प्यासे हो गये हैं आहाहाहहा" नीतू ने सिसकारी लेते हुए कहा



"उम्म्म्म अहहाहा तू चीज़ ही ऐसी है मेरी जान आहा हाए..." कहके उस मर्द ने नीतू के चुचों को धीरे से भींच दिया और दूसरे चुचे को अपने मूह में लेके हल्के हल्के से चूसने लगा



"अहहाहा.... हां चुसिये ना अहहहहाआ..... ओह" नीतू बहकने लगी थी




"उम्म्म अहहाहः ऑश मेरी गरम रानी आहहहहा...." कहके उस आदमी ने उसके आम जैसे चुचों को छोड़ा और उसकी भीनी चूत में दो उंगलियाँ घुसा दी..




"अहहैयईईई माआ..... धीरे कीजिए अहाहाहहा..." नीतू ने बहकते हुए कहा




"आहहा क्या खुश्बू है तेरी जान अहहहहहा.." कहके उस आदमी ने दोनो उंगलियाँ निकाली और खुद सूंघने लगा और साथ में नीतू को भी उसकी महक दी..




"हटिए, गंदे कहीं के.. अँग्रेज़ी मूवी नहीं देखना आगे से..." नीतू ने हँसते हुए कहा



"हाए मेरी रानी.. अब ज़रा हमे भी खुश कर दे.. अँग्रेज़ी मूवी की हीरोइन बन जा अब मेरी रानी अहाआहा" कहके वो आदमी पलंग से उतरा और पलंग से लग के अपनी पॅंट खोलने लगा... जैसे ही उसने अपना पॅंट उतारा, उसका लंबा काला लंड जो आधा आकड़ा हुआ था नीतू की आँखों के सामने आ गया.... नीतू ने उसकी बात को अच्छे से समझ लिया था कि उसके लंड को मूह में लेना था... आज तक नीतू ने ऐसा कुछ नहीं किया था, पर क्यूँ कि वो उसे बेतहाशा प्यार करती थी, इसलिए उसे नाराज़ नहीं करना चाहती थी... नीतू ने अपने हाथों से धीरे धीरे उसके लंबे आधे खड़े लंड को पकड़ा और उसके टोपे के हिस्से को धीरे धीरे उपर नीचे करने लगी.. नीतू के हाथ को महसूस करते ही वो आदमी मस्ती में आ गया और उसके लंड में जान आने लगी... नीतू ने जब उसके लंड को हिलाने की स्पीड बढ़ाई, उसका लंड अपनी औकात पे आने लगा..






"अहहाहा हाए अहहहहा.. कितना बड़ा है आपका अहहहा..." नीतू ने उसके लंड को हिलाते हुए कहा




"हाए मेरी जाना अहहहा... तेरी चूत में जाके तो यह कहीं गायब ही अहहहाहा हो जाता है ना अहहहाहा..." कहके उस आदमी ने उसके लंड को नीतू के हाथ से छुड़ाया और लंड उसके मूह में घुसा डाला..




"हाए मेरी रानी अहहाहहा.. अँग्रेज़ी मूवी की हेरोइनिया लग री है अहहहहहहा.." कहके उस आदमी ने नीतू के मूह में अपने लंड से धक्के मारना चालू कर दिया और उसके मूह को चोदने लगा



"अहाहहाः उम्म्म गुणन्ं गन अहहहहा..... उम्म्म्म अहहहहहहा" नीतू कुछ बोल ही नहीं पा रही थी उसके लंड के धक्कों की वजह से




"अहाहहा.. अपनी चूत दे दे अब मेरी रानी अहहहहा..." लंड को निकाल के उस आदमी ने कहा



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(एक बार ऊपर आ जाईए न भैया )..(परिवार में हवस और कामना की कामशक्ति )..(लेखक-प्रेम गुरु की सेक्सी कहानियाँ running)..(कांता की कामपिपासा running).. (वक्त का तमाशा running).. (बहन का दर्द Complete )..
( आखिर वो दिन आ ही गया Complete )...(ज़िन्दगी एक सफ़र है बेगाना complete)..(ज़िद (जो चाहा वो पाया) complete)..(दास्तान ए चुदाई (माँ बेटी बेटा और किरायेदार ) complete) .. (एक राजा और चार रानियाँ complete)..(माया complete...)--(तवायफ़ complete)..(मेरी सेक्सी बहनेंcompleet) ..(दोस्त की माँ नशीली बहन छबीली compleet)..(माँ का आँचल और बहन की लाज़ compleet)..(दीवानगी compleet..(मेरी बर्बादी या आबादी (?) की ओर पहला कदमcompleet) ...(मेले के रंग सास,बहू और ननद के संग).


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(फैमिली में मोहब्बत और सेक्स (complet))........(कोई तो रोक लो)......(अमन विला-एक सेक्सी दुनियाँ)............. (ननद की ट्रैनिंग compleet)..............( सियासत और साजिश)..........(सोलहवां सावन)...........(जोरू का गुलाम या जे के जी).........(मेरा प्यार मेरी सौतेली माँ और बेहन)........(कैसे भड़की मेरे जिस्म की प्यास)........(काले जादू की दुनिया)....................(वो शाम कुछ अजीब थी)
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jay
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"अहहाहा हाए अहहहहा.... कब से हम भी यही कह रहे हैं अहहहा.. अब चोद दीजिए ना इस मुनिया को अहाहहाअ, कब से रो रही है..." नीतू ने पलंग पे अपने पैर फेला के कहा.. नीतू की लाल चूत देख उस आदमी से रहा नहीं गया और एक ही झटके में अपने साँप को उसकी चूत में उतार डाला..



"हाए अहहाहा मर गयी अहहाहा माआआ... धीरे कीजिए अहाहा उफफफ्फ़....." नीतू ने उस आदमी की पीठ पे अपने नाख़ून गढ़ा के कहा और उस आदमी ने धक्के मारना जारी रखा...



"अहहहहा हाए अहाहहा उफ़फ्फ़... उम्म्म्म अहहहहाहा कितनी गरम है आआहहा मेरी रानी अहहहा..... हां अजाहहहा चोदिये ना मेरे सैयाँ अहहहहाहा....." कमरे में दोनो की आवाज़ें गूंजने लगी... वीरान बंगले मेंकोई भी उनकी आवाज़ सुन सकता था, लेकिन दोनो बिना किसी की परवाह के अपनी मस्ती में जुटे थे...




जैसे जैसे रात बढ़ती गयी, दोनो के जिस्म ठंडे होने लगे... 15 मिनट बाद जब उस आदमी ने अपना पानी नीतू की चूत में छोड़ा, बेजान होके नीतू की बाहों में गिर पड़ा, और नीतू भी उसके बालों में हाथ घुमाती घुमाती नींद की आगोश में चली गयी..... रात के करीब 1 बजे, बंगले का गेट खुला.. और एक साया धीरे धीरे आगे बढ़ने लगा... आगे बढ़ते बढ़ते घर के एंट्रेन्स के दरवाज़े के पास पहुँचा... रात के 1 बजे, सिर्फ़ फाउंटन से पानी गिरने की आवाज़ और घर के पीछे से समंदर की लहरों की पत्थरों से टकराने की आवाज़.. उस साए ने इतमीनान से अपने आस पास देखा, और जब उसे यकीन हुआ कि उसके अलावा वहाँ कोई नहीं है, धीरे से उसने दरवाज़े को खोला, और उतनी ही शांति से उस दरवाज़े को अंदर से बंद भी कर दिया... दबे हुए कदमों से आगे बढ़ के उस साए ने सीडीयों की तरफ रुख़ किया.. हर एक सीधी पे कदम रखते ही, वो चोकन्ना होके इधर उधर देखता और फिर उपर की ओर बढ़ने लगता... सीडीया ख़तम होते ही, अपनी बाईं ओर घूम के एक कमरे के बाहर खड़ा हो गया... एक दम हल्के से उस दरवाज़े की नॉब को घुमाया और अंदर का नज़ारा देखने लगा.. अंदर नीतू और उस मर्द का नंगा जिस्म देख उस साए की एक मुस्कान निकल गयी.... उस कमरे के दरवाज़े पे खड़े रह के ही उस साए ने अपनी जेब से एक पिस्टल निकाली, और फाइरिंग कर दी... सुनसान रात में बंगला खौफनाक चीखों से गूँज उठा....





कहते हैं वक़्त के साथ हर ज़ख़्म भर जाता है... और यह भी कहा जाता है कि वक़्त रेत की तरह होता है.. उसे जितना पकड़ने की कोशिश करो, वो उतना ही तेज़ी से फिसलता जाता है... लेकिन कितनी सच्चाई है इन वाक्यों में... यह निर्भर करता है उस वक़्त से गुज़रने वाले हर एक व्यक्ति पे... जब एक ज़ख़्म आपकी पूरी दुनिया ही बर्बाद कर देता है, तो उस ज़ख़्म को भर पाना वक़्त के लिए भी मुश्किल हो जाता है.. हर घड़ी, हर पल वो ज़ख़्म याद दिलाता है आपको, आपकी उजड़ी हुई दुनिए के बारे में.. और जब वक़्त भी आपके ज़ख़्मों को ना भर सके, तो वक़्त रेत की तरह फिसलने के बदले, आपके इशारे पे ही चलता है...



31स्ट दिसंबर 2013 :-



वक़्त रात के 11 बजे... एक घंटे में 2014 का आगमन होने वाला था.... साउत मुंबई, कोलाबा का एक आलीशान बंगला.. बंगले का नाम था "राइचंद'स....".. उस बंगले के मालिक का नाम था उमेर राइचंद, करीब 56 की एज होगी, लेकिन एज के हिसाब से काफ़ी हेल्ती इंसान थे.. रोज़ सुबह गोल्फ खेलना और गोल्फ कोर्स पे करीब आधे घंटे तक वॉक करना, यह दो कारण थे उनकी सेहत के... जवानी में काफ़ी शौकीन रहे थे और काफ़ी दिमाग़ वाले भी.. तभी तो उन्होने अपने पुश्तों की जायदाद का आज की तारीख में 15 गुना तक इज़ाफ़ा कर दिया था



अमर राइचंद की बीवी, सुहासनी देवी... सुहासनी रजवाड़े खानदान से थी, उसकी उमर 45 थी, 18 साल की उमर में ही सुहासनी की शादी करवाई गयी थी... इसलिए अमर और सुहासनी के बच्चे भी कुछ ज़्यादा बड़े नहीं थे.. अमर काफ़ी रंगीन मिजाज़ का था, तभी तो उन्होने शादी के 4 सालों में ही 3 बच्चे भी प्लान कर दिए..



अमर का सबसे बड़ा बेटा विक्रम... अपने बाप के नक्शे कदमों पे चलने वाला विक्रम भी काफ़ी रंगीन मिजाज़ का था, पढ़ाई लिखाई में सब से पीछे, लेकिन आवारा गार्दी और अयाशी में सब से आगे.. विक्रम सिर्फ़ अपने बाप के नाम की वजह से कॉलेज तक पढ़ा, लेकिन कॉलेज की सेकेंड एअर में आते ही उसे उसकी क्लास मेट से इश्क़ हो गया.. इसलिए उन्होने भाग के शादी भी कर ली.... अपनी इज़्ज़त की खातिर ऊमेर ने लड़की वालों से सीक्रेट मुलाक़ात करके एक अरेंज्ड मॅरेज का नाटक रचाया और अपनी इज़्ज़त को संभाल लिया..अमर को एक बात विक्रम की भाती तो वो था उसका बिज़्नेस करने का तरीका.. दुनिया की नज़रों में अमर की ट्रॅन्स्पोर्टेशन और टूरिज़्म कंपनीज़ थी,लेकिन असल में वो एक बुक्की था और काफ़ी पुराने और नये क्रिकेटर्स के साथ उठता बैठता.. जैसे जैसे अमर की उमर बढ़ती गयी, उसका नेटवर्क टूटने लगा, लेकिन विक्रम ने जैसे ही इस चीज़ में अपना ध्यान डाला, अमर की डूबती नैया को जैसे खिवैया मिल गया था.. मॅच फिक्सिंग, सट्टेबाज़ी के नेटवर्क को बढ़ा के विक्रम ने हवाला में भी हाथ बढ़ाया.. हवाला करने वाले लोग अभी काफ़ी कम लोग थे, लेकिन मुंबई जैसे शहर में अभी भी हवाला के नाम पे रोज़ कम से कम 200-300 करोड़ की हेर फेर होती है... इसी हवाला की वजह से विक्रम ने अमर की प्रॉपर्टी को ऐसे बढ़ाया कि अमर ने सब काम की बाग डोर उसे ही सौंप दी... अमर अब सिर्फ़ बड़े फ़ैसले ही लेता, मतलब किंग से अमर अब किंग मेकर बन गया था.



अमर का दूसरा बेटा रिकी... रिकी अमर की आँख का तारा था, 24 साल का रिकी काफ़ी स्मार्ट और डॅशिंग बंदा था... कॉलेज ख़तम करने के बाद रिकी मास्टर्स की पढ़ाई करने लंडन गया था.. अमर को रिकी पे काफ़ी गर्व था.. विक्रम उसका बड़ा भाई था, लेकिन विक्रम को उसकी क्लासी बातें और तौर तरीके ज़रा पसंद नहीं थे.. विक्रम जितना रफ था, रिकी उतना ही स्मूद था.. रिकी एक नज़र में किसी को भी पसंद आ जाता. चाहे वो कोई भी हो... अमर ने उसे मास्टर्स पढ़ने इसलिए भेजा ताकि वो इन दो नंबर के कामो से डोर ही रहे, क्यूँ अमर जानता था रिकी अगर इसमे फँस गया, तो कभी निकल नहीं पाएगा.. रिकी चंचल स्वाभाव का था.. दिल से बच्चा, लेकिन उतना ही सॉफ.. रात को प्लेस्टेशन पे गेम्स खेलना, हर 6 महीने में मोबाइल्स बदलना और हर 2 साल में गाड़ियाँ बदलना..लड़कियों के बारे में फिलहाल बात ना करे तो सही ही रहेगा, अपनी रईसी का फुल प्रदर्शन करना उसे अच्छा लगता, लेकिन उतना ही ज़मीन पे रहता.. दोस्तों पे जान छिड़कने वाला रिकी, आज राइचंद हाउस में न्यू ईयर मानने आया था फॅमिली के साथ



अमर की बेटी शीना.. शीना घर में सब से छोटी, दोनो भाइयों की प्यारी.. खूब मज़े करती लाइफ में.. ऐयाशी से एक कदम दूर, शीबा ने बस अपनी चूत किसी को नहीं दी थी, लेकिन लंड काफियों के शांत किए.. शीबा के चाहने वाले काफ़ी थे उसके कॉलेज में, लेकिन उसके क्लास के आगे कोई टिक नहीं पाता.. जब भी कोई शीबा को प्रपोज़ करता, या तो शीबा उसे सीधा मना कर देती, या तो उसके साथ फर्स्ट डेट पे जाके उसकी जेब खाली करवा कर उसे दूर करती.. शीबा का स्टाइल अलग था.. "मैं किसी झल्ले या फुकरे को अपना दिल नहीं देने वाली.. अगर मैं किसी को अपना दिल और अपनी चूत दूँगी, तो ही विल बी सम वन स्पेशल..." शीबा अपनी दोस्तों को हमेशा यह कहती... जाने अंजाने, पता नहीं कैसे.. लेकिन कोई था जिसने शीबा के दिल में अपना घर बना लिया था.. और शीबा का दिल हमेशा उसके लिए बेकरार रहता..




अमर की बहू स्नेहा... स्नेहा विक्रम के दिल की रानी थी, या यूँ कहा जाए कि उसकी रंडी थी... विक्रम से शादी स्नेहा ने पैसों की वजह से ही की थी... कॉलेज में अपने मदमस्त चुचे और अपना हसीन यौवन दिखा दिखा कर स्नेहा ने विक्रम को पागल कर दिया था.. नतीजा यह हुआ कि विक्रम ने घर वालों की मर्ज़ी के खिलाफ शादी कर ली.. अमर को अपनी इज़्ज़त और रुतबा काफ़ी प्यारा है, इसलिए उसने स्नेहा को घर की बहू स्वीकारा.. स्नेहा सुहासनी देवी को एक नज़र नही भाती थी .... स्नेहा को इस बात की बिल्कुल परवाह ना थी, वो बस पैसों का मज़ा लेती और दिन भर शॉपिंग करती या घूमती फिरती.. जब जब उसकी चूत में खुजली होती विक्रम की गेर हाज़री में वो बाज़ारू लंड से काम चलाती.. स्नेहा की यह बात अमर और सुहासनी अच्छी तरह जानते, लेकिन इस बात से उनकी ही बदनामी होगी, इसलिए उस बात को दबाए ही रखते... स्नेहा की शीना के साथ अच्छी बनती थी, फॅशन पार्ट्नर्स थे दोनो.. लेकिन शीना उसकी रंडियों वाली हरकतों से वाकिफ़ नहीं थी, और रिकी जितना स्नेहा को अवाय्ड करता, स्नेहा उसके उतने ही करीब जाने की कोशिश करती...



राइचंद'स में न्यू ईयर का काउंटडाउन स्टार्ट होता है.... 10...9...8....... 4.....3....2.....1............. सब लाइट्स गुल, एक दम अंधेरा और म्यूज़िक और डीजे की आवाज़ से सारा समा गूँज उठा... अंधेरे में रिकी अपना जाम पी ही रहा था, कि उसके पास एक लड़की आई और उसके बालों को ज़बरदस्ती पकड़ के उसके होंठों के रस को अपने मूह में लेने लगी.. जब तक रिकी को कुछ समझ आता, तब तक उस लड़की ने ज़ोर लगा कर उसके जाम को उसके हाथ से गिरा दिया, और उसका हाथ अपनी चूत पे उपर से ही रगड़ने लगी.... जैसे ही बतियां वापस आई, रिकी के सामने कोई नहीं खड़ा था. रिकी ने इधर उधर देखा, लेकिन उसे सब लोग अपनी अपनी सेलेब्रेशन में खोए हुए दिखे...उसे कुछ समझ नहीं आया, कि यह किसने किया...



"कौन थी यह भैनचोद...." कहके रिकी ने अपने बालों को ठीक किया और दूसरा पेग लेने चला गया.....
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Re: वक्त का तमाशा

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न्यू ईयर की पहली सुबह.. राइचंद'स में, सब लोग देर सुबह तक सो रहे थे, बस जो सुबह जल्दी उठा था वो था रिकी.. रिकी सुबह सुबह अपना वर्काउट कभी मिस नहीं करता.. लंडन में रिकी ने पर्सनल इन्स्ट्रक्टर रखा हुआ था, जिसकी वजह से उसकी लीन बॉडी देख के कॉलेज की गोरियाँ भी उसपे फिदा थी... इधर उसे गाइड करने वाला कोई नहीं था, पर फिर भी बॉडी को आक्टिव रखने के लिए रिकी लाइट एक्सर्साइज़ कर ही लेता... सुबह सुबह जब रिकी अपनी एक्सर्साइज़ ख़तम कर के अपने रूम की तरफ बढ़ा, रास्ते में उसे शीना आती हुई दिखी..



"हाई सिस... हॅपी न्यू एअर स्वीटहार्ट.." कहके रिकी शीना के गले लगा. और शीना ने भी अच्छी तरह रिकी को रेस्पॉन्स दिया



"हॅपी न्यू एअर भाई... उम्म्म, आइ लव दिस बॉडी ओडर ऑफ मेन.." शीना ने रिकी के बालों में हाथ घुमा के कहा



"में ? कितनो को स्मेल किया है आज तक.." रिकी ने आँख टेढ़ी कर के हंस के कहा



"लीव इट ना भाई.. बताओ, व्हाट्स युवर प्लान फॉर टुडे... कहीं घूमने चलते हैं.." शीना ने रिकी के हाथों में हाथ डाल के कहा और आगे बढ़ने लगी



"प्लान तो कुछ नहीं यार.. घूमने कहाँ चलें.. नीड टू लीव फॉर लंडन इन आ वीक वैसे.." रिकी ने शीना को अपने पास खींच के कहा



"उम्म्म.. चलो गोआ चलते हैं.." शीना ने एग्ज़ाइट होके कहा



"नो वे... गोआ टू क्राउडेड, आंड जस्ट बीचस हैं.. व्हाट एल्स.." रिकी ने जवाब दिया



"तो फिर महाबालेश्वर.. अपना वीकेंड फार्म भी है उधर.. मस्त मज़ा आएगा..." शीना ने फिर उछल के कहा



"वीकेंड फार्म.. आइ नेवेर न्यू दिस.... चलो डन.. जब सब लोग जाग जायें तो सब को पूछ लेते हैं..." रिकी ने जवाब दिया



"ओह यस... चलो सी यू सून, फ्रेश होते हैं अभी.. बाय.." कहके रिकी और शीना दोनो अपने अपने कमरे में चले गये



कमरे में घुसते ही शीना ने अपना नाइट सूट पलंग पे उतार फेंका और अपनी विक्टोरीया सीक्रेट्स की लाइनाये में आईने के सामने जाके खड़ी हो गयी.. आईने के सामने जाते ही शीना ने खुद को एक मॉडेल के पोज़ देके देखा, और अपने हाथ उँचे करके अपने बालों को पोनी में बाँध दिया... फिर एक साइड से, और दूसरे साइड से अपने फिगर को निहारने लगी.... धीरे धीरे करके अपने हाथों को नीचे सरकाने लगी... हाथ सरकाते सरकाते उसने अपने ब्रा के उपर से ही चुचों पे हाथ फेरने लगी और निपल कसने लगी..



"उम्म्म्म.... तुम्हे इस तरह कड़क होने का कोई हक़ नहीं है, जब तक मैं तुम्हे ना कहूँ.." शीना ने अपने आपको आईने में देखा अपने निपल्स को उंगलियों में लेके, और एक हँसी के साथ बाथरूम में फ्रेश होने चली गयी... शीना के बाथरूम में जाते ही, उसके रूम के कीहोल पे से किसी की आँखें भी हट गयी.. उधर रिकी अपने रूम में सुबह सुबह न्यूज़ चॅनेल देख रहा था के न्यूज़ देख के उसके दिमाग़ में कुछ बिज़्नेस आइडिया आया...



"डॅड के साथ डिसकस कर लेता हूँ आज, शायद यहाँ काम बन जाए.." रिकी ने टीवी बंद कर के कहा... जैसे ही रिकी ने टवल उठाया बाथरूम में जाने को, उसके रूम का दरवाज़ा नॉक हुआ "खट..खट.."



"कम इन प्लीज़..." रिकी को लगा शायद कोई घर के स्टाफ मेंबर में से उसके लिए चाइ या जूस लाया हो



ब्लॅक डिज़ाइनर साड़ी के साथ लो कट डिज़ाइनर ब्लाउस में रिकी के रूम में स्नेहा आई.... स्नेहा का नेन नक्श देख के आज भी काफ़ी लोगों के लंड पे तलवार चल जाए ऐसा उसने खुद को मेनटेन किया था.. 36 के चुचों के साथ उसकी 26 की कमर और साड़ी में उसकी कमर जैसे फ्लॉंट होती थी, वैसे रूप में अगर कोई उसे देख ले, तो मार काट मच जाए उसके लिए.... रिकी स्नेहा को अपने कमरे में देख काफ़ी सर्प्राइज़ था.. वैसे तो वो जानता था कि उसके माँ बाप को वो लड़की पसंद नहीं है, बट घर से दूर होते हुए, रिकी इन सब बातों को इतना महत्व नहीं देता.. स्नेहा उसके लिए उसकी भाभी थी, वो इसलिए उसको जितनी इज़्ज़त मिलनी चाहिए, उतनी इज़्ज़त देता था..



"अरे भाभी...आप उठ गये.." रिकी ने अपने सीने पे टवल डाल के कहा



"हां देवर जी.... सोचा मेरे देवर से थोड़ी बात कर लूँ, आज तो फिर आप अपने दोस्तों के साथ व्यस्त रहेंगे, फिर हमारे लिए कहाँ टाइम रहेगा " स्नेहा ने बेड पे बैठ के कहा... स्नेहा के बेड पे बैठते ही सामने खड़े रिकी को उसके आधे से ज़्यादा नंगे चुचों के दर्शन हुए.. स्नेहा ने शायद अपना बदन नहाने के बाद अच्छी तरह सुखाया नहीं था, तभी तो उसके चुचों पे अभी पानी की कुछ बूँदें थी, जो नीचे फिसल कर उसके चुचों की घाटियों में इकट्ठी हो रही थी.. रिकी ने एक नज़र उसके चुचों को देखा और फिर स्नेहा से नज़र मिला ली, स्नेहा ने यह देखा और अंदर ही अंदर हँसने लगी



"नहीं भाभी ऐसा कुछ नहीं है.. इनफॅक्ट मैने और शीना ने आज प्रोग्राम बनाया है कि पूरी फॅमिली एक दो दिन कहीं घूमने जायें.." रिकी ने हल्की स्माइल के साथ कहा



"कहाँ देवर जी.. आपके भाई हमसे अलग हों तब तो हम बाहर की दुनिया देख पाएँगे.. हमारे नसीब में तो बस इस घर के हर कमरे की सीलिंग देखना ही लिखा है" स्नेहा ने एक ठंडी साँस लेते हुए कहा



रिकी को पहले कुछ समझ नहीं आया, लेकिन फिर तुरंत ही उसने स्नेहा की बात को डिकोड किया और बात घुमा के बोला



"भाभी, भैया को मना लीजिएगा आप प्लीज़... काफ़ी मज़ा आएगा.." रिकी ने नॉर्मली कहा



"वैसे जाना कहाँ है... जगह तो बताइए, फिर मज़े भी उसके हिसाब से ही करेंगे ना.." स्नेहा ने आँख मारते हुए कहा... यह सुन रिकी शरम से पानी पानी होने लगा.. ऐसा नहीं था कि रिकी ने कभी ऐसी बातें नहीं की थी किसी के साथ, लेकिन स्नेहा के साथ वो उस कंफर्ट ज़ोन में नहीं था जिससे उसको ऐसी बातें करने में आसानी हो..



"ओह हो. देवर जी, आप तो ऐसे शरमा रहे हो, जैसे लंडन में आप ने कभी किसी गोरी को घोड़ी ना बनाया हो हाँ" स्नेहा ने हंस के कहा


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Re: वक्त का तमाशा

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"भाभी... ओके , कट दिस क्रॅप... चलिए आप जाके भैया से इस प्लान का डिस्कशन करें, मैं तब तक फ्रेश हो लेता हूँ.." कहके रिकी जल्दी से बाथरूम में चला गया.. रिकी के बाथरूम जाते ही स्नेहा बाहर जाने के लिए खड़ी ही हुई थी, कि बेड के एक कोने में उसे रिकी के कपड़े दिखे.. स्नेहा आगे बढ़ी और उसके कपड़े देखने लगी... जीन्स के ठीक नीचे था रिकी का कॅलविन क्लाइन का अंडरवेर.... ब्लॅक अंडरवेर देख के ही स्नेहा की आँखों में चमक आने लगी.... स्नेहा ने हल्के हाथों से अंडरवेर के फ्रंट पार्ट को हथेली पे रखा, और ठीक जहाँ रिकी का लंड होगा, उस जगह को सूंघने लगी...



"उम्म्म्म सस्सन्न्नुफफफ्फ़ आअहह..... क्या हथियार होगा आपका देवर जी... कब अनलोड करेंगे आप अपनी राइफल को मेरी इस मुनिया के अंदर..." स्नेहा ने साड़ी से धकि हुई अपनी चूत पे हाथ फेर के कहा... धीरे धीरे जब स्नेहा गरम होने लगी, उसने रिकी के कपड़ों को ठीक कर के रखा और झट से अपने कमरे की तरफ निकल गयी....



रिकी और शीना तैयार होके जैसे ही नीचे आए, सामने डाइनिंग टेबल पे सब लोग पहले से ही बैठे थे.... रिकी और शीना ने एक दूसरे को सवालिया नज़रों से देखा और फिर नीचे की तरफ बढ़ने लगे...



"मॉर्निंग माँ, मॉर्निंग पा..." शीना ने अमर और सुहासनी देवी के गालों पे एक पेक दिया और नाश्ता करने बैठ गयी, और सेम चीज़ रिकी ने भी की...



"पापा... हम सोच रहे हैं कि सब लोग एक साथ घूमने जायें.. भाई भी नेक्स्ट वीक लंडन चले जाएँगे, फिर ऐसे चान्स के लिए नेक्स्ट ईयर तक वेट करना पड़ेगा..." शीना ने कुर्सी पे बैठ के कहा



"बहुत अच्छी बात है बेटे, पर मैं और विक्रम जाय्न नहीं कर पाएँगे... " अमर ने शीना को निराश करते हुए कहा



"क्यूँ.. चलिए ना पापा प्लीज़.." शीना ने ज़ोर देके कहा



"आइ वुड हॅव लव्ड टू जाय्न बेटे.. बट कल एक पार्टी से मिलना है, कुछ प्रॉपर्टी के सिलसिले में.... इसलिए हमारा रहना बहुत ज़रूरी है..." अमर ने अपना जूस ख़तम करते हुए कहा



अमर की बात सुन रिकी थोड़ा हक्का बक्का रह गया... मन में सोचने लगा, आख़िर कितनी प्रॉपर्टी है उसके बाप के पास.. काफ़ी पैसे वाले हैं वो तो पता था , लेकिन प्रॉपर्टी कहाँ कहाँ है वो उसे कभी पता नहीं चला था, ना ही अमर ने किसी से कभी इसके बारे में डिसकस किया था, सिवाय विक्रम के... अमर का जवाब सुन जब शीना अपसेट हुई, तो सुहासनी देवी ने उससे कहा



"निराश ना हो बच्ची, बाकी के लोग चलेंगे ना.. रिकी और मैं चलेंगे बस.. डोंट वरी.." सुहासनी ने शीना के सर पे हाथ फेरते कहा



"अरे माँ, मैं और पापा भी बिज़ी होंगे, तो स्नेहा भी यहाँ रहके क्या करेगी... बहेन, तेरी भाभी भी जाय्न करेगी तुमको...." विक्रम ने बीच में कूद के कहा.. स्नेहा का नाम सुन के जहाँ शीना खुश हुई, वहीं सुहासनी देवी के चेहरे का रंग फीका पड़ गया, और रिकी तो एक अलग दुविधा में ही फँस गया था.. आज सुबह स्नेहा की बातें सुन, वो ज़रा अनकंफर्टबल हो गया स्नेहा का नाम सुनके... लेकिन उसने कुछ नहीं कहा और चुप चाप नाश्ता ख़ाता रहा..



"रिकी, तुम क्यूँ इतने गुम्सुम हो भाई... क्या हुआ.." अमर ने उससे पूछा



"कुछ नहीं डॅड... इनफॅक्ट मैं आपके और भैया के साथ एक बिज़्नेस के बारे में डिसकस करना चाहता था, आप के पास अगर टाइम हो डिस्कशन के लिए तो.." रिकी ने सरलता से कहा



"इसमे टाइम क्या बेटे.. नाश्ता फिनिश करो, और चलो बात करते हैं..." अमर ने अपनी जगह से उठ के कहा, और घर के एक कोने में एक बड़ा सा रूम बना हुआ था, वहाँ जाके कुछ पेपर्स देखने लगा और इशारे से विक्रम को भी बुला लिया.. शीना और रिकी एक दूसरे से बातों में लगे रहे, और सुहासनी भी स्नेहा को इग्नोर करके अपने काम में लग गयी.....



"विक्रम... इस प्रॉपर्टी का बिकना मेरे लिए बहुत ज़रूरी है.... " अमर ने उसके आगे पेपर्स रख के कहा



"पापा, मुझे अब तक समझ नहीं आया आख़िर क्यूँ बेच रहे हैं इसको... मतलब, हमें पैसों की कोई ज़रूरत नहीं है फिलहाल, तो फिर मैं क्यूँ बनी बनाई प्रॉपर्टी बेचु...." विक्रम ने पेपर्स देखते हुए कहा



"वो सब सोचना मेरा काम है विक्रम... तुमसे कल पुणे की एक पार्टी मिलेगी , उसे प्रॉपर्टी दिखा देना, और पॉज़िटिव रिज़ल्ट चाहिए मुझे इसका.." अमर ने बड़े ही कड़क अंदाज़ में कहा



"ठीक है पापा... और एक बात थी, परसों चेन्नई जाना है मुझे.. कुछ टाइम में आइपीएल की ऑक्षन भी स्टार्ट हो जाएगी... तो उसी सिलसिले में कुछ टीम ओनर्स और क्रिकेटर्स से मिलके कुछ सेट्टिंग्स करनी हैं.. तकरीबन 3 दिन वहाँ लग जाएँगे..." विक्रम ने अपना नोट देख के कहा



"हहहा.. हां वो भी है, जब तक ऐसी क्रिकेट हमारे देश में चलती रहेगी विक्रम.. तब तक हमारे क्रिकेटर्स और हम , काफ़ी खुश और अमीर रहेंगे..." अमर ने ठहाका लगा के कहा और विक्रम भी उसकी बात सुन के मुस्कुरा दिया



"पापा, कॅन आइ कम इन.." रिकी ने उसी वक़्त दरवाज़ा नॉक करते कहा..



"अरे हां बेटा, तुम इतने फॉर्मल क्यूँ हो.. आ जाओ, बताओ क्या बिज़्नेस है.." अमर और विक्रम उसके सामने बैठ गये
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(एक बार ऊपर आ जाईए न भैया )..(परिवार में हवस और कामना की कामशक्ति )..(लेखक-प्रेम गुरु की सेक्सी कहानियाँ running)..(कांता की कामपिपासा running).. (वक्त का तमाशा running).. (बहन का दर्द Complete )..
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mini

Re: वक्त का तमाशा

Post by mini »

wah wah kya likhte ho..love u
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