भैया का ख़याल मैं रखूँगी complete

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Dolly sharma
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Re: भैया का ख़याल मैं रखूँगी

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दोपहर तक आशना ने अपनी कुछ ज़रूरी शॉपिंग भी कर ली थी. उसने अपनी ज़रूरत के हिसाब से सब कुछ खरीद लिया तह और उसे वीरेंदर की गाड़ी मैं डाल कर उसे हवेली छोड़ आई थी. बिहारी काका को उसने कह दिया थे कि वो उपर वाले फ्लोर मे से कोई एक कमरा उसके लिए तैयार कर दे और उसका सारा समान वहाँ पर रख दे. बिहारी काका को उसने बताया के वो डॉक्टर. बीना के दोस्त की बेटी है और अब वो यहीं रहकर वीरेंदर का इलाज करेगी. बिहारी काका को सब कुछ समझा कर और गाड़ी को अपनी जगह लगाकर वो टॅक्सी से हॉस्पिटल पहुँची तो दोपहर के 12:30 बज गये थे.

हॉस्पिटल पहुँचते ही वो डॉक्टर. बीना के रूम मे गई. बीना: आओ आशना, मैने वीरेंदर की डिसचार्ज स्लिप बना दी है. अब तुम उसे घर ले जा सकती हो. आशना की आँखों में आँसू आ जाते हैं और वो गले लग कर डॉक्टर. बीना को ज़ोर से गले लगा लेती है. आशना: थॅंक यू डॉक्टर. अगर आप नहीं होती तो मेरे लिए यह सब मुमकिन नहीं था.

डॉक्टर. बीना, इट्स ओके आशना, पर तुम्हे किसी तरह वीरेंदर को फिर से नयी ज़िंदगी देनी होगी.

आशना- मैं ज़रूर ऐसा करूँगी. इतना कहकर उसने स्लिप डॉक्टर. से ली,

डॉक्टर. ने उसे सारी दवाइयों के बारे मे समझा दिया और आशना जैसे ही जाने के लिए मूडी के बीना ने कहा: "आशना काश तुम सचमुच वीरेंदर की बेहन ना होती". आशना के कदम यह सुनकर एकदम ठिठक गयी पर वो मूडी नहीं, शायद यह बात तो उसने भुला ही दी थी कि वो वीरेंदर की बेहन है.


हॉस्पिटल से वीरेंदर को लेके वो एक टॅक्सी मे वीरेंदर के घर के बाहर पहुँचे. बिहारी काका उनका गेट खोलकर बाहर ही वेट कर रहे थे. टॅक्सी सीधा कॉंपाउंड मे घुसी और बंग्लॉ के दरवाज़े के पास आकर रुकी. वीरेंदर ने टॅक्सी वाले के पैसे देकर उसे वहाँ से रवाना किया और एक ठंडी सांस छोड़ी. वीरेंदर ने धीरे से कहा "फिर से वही ख़ालीपन मुबारक हो वीरेंदर" और इतना कहकर वो अंदर चला गया. आशना ने उसे सॉफ सुना पर उस वक्त उसने कुछ बोलना ठीक नहीं समझा.



अंदर आने पर वीरेंदर सीधा अपने कमरे मे चला गया और आशना किचन की तरफ चल दी. बिहारी काका ने दोपहर के खाने की तैयारी कर रखी थी. आज बिहारी काका ने चिकन,मटन, डाल, वेजिटेबल,,खीर और चावल बनाए थे. आशना के पीछे पीछे बिहारी काका भी किचन मे आ गये.

काका: बिटिया भूख लगी है क्या.

आशना ने बिना पीछे देखे जवाब दिया: नहीं काका बस आपके खाने की खुश्बू यहाँ तक खींच लाई. वैसे वीरेंदर के आने पर आज तो अपने पूरी दावत की तैयारी कर रखी है.

बिहारी काका झेन्प्ते हुए: नहीं बिटिया ऐसी बात नहीं है, आज बड़े दिनो बाद मालिक ठीक होकर घर आए हैं तो सारी उनकी पसंद की चीज़े बनाई हैं. छोटे मालिक को खाने मे मीट-मुर्ग बहुत पसंद है.

आशना मन मैं सोचते हुए (तभी इतनी सेहत बना रखी है जनाब ने).

आशना: पर काका कुछ दिन वीरेंदर के खाने का थोड़ा ध्यान रखना पड़ेगा क्यूंकी इस तरह के खाने मे काफ़ी फॅट होता है जो वीरेंदर की सेहत के लिए अच्छा नहीं है.

काका: पर बिटिया, मालिक तो रोज़ाना शाम को जिम मे खूब कसरत करके सारी चर्बी बहा देते हैं.

आशना: बहती कहाँ है काका वो तो उनके अंदर ही रहती है. आशना ने यह बोल तो दिया पर उसे इसका एहसास काका के होंठों पर आई कुटिल मुस्कान से हुआ कि उसने अंजाने मे यह क्या कह दिया. आशना का चेहरा शरम से लाल हो गया और आँखें झुक गईं.

काका ने बात संभालते हुए कहा: पर बिटिया मालिक तो मीट -मुर्ग के बिना खाना खाते ही नहीं

आशना कुछ ना बोल सकी उसके पास और कुछ बोलने के लिए कुछ बचा ही नहीं था. वो अपनी पिछली बात के बारे मे ही सोच रही थी.

काका: वैसे भी अब तुम आ ही गई हो तो मालिक का ख़याल तो तुम रख ही लॉगी. यह बात काका ने बड़े ज़ोर देके कही. इससे पहले आशना कुछ समझ पाती, काका ने कहा : जब भूख लगेगी बता देना, मैं रोटियाँ बना दूँगा. आशना ने नज़रें नीचे करके ही हां मैं गर्दन हिलाई. काका वहाँ से चले गये और आशना इन सारी बातों का मतलब निकालने लगी. आशना सोचने लगी कि काका ने कितनी जल्दी मेरी बात पकड़ ली और मुझे वीरेंदर की चर्बी का इलाज भी बता दिया.

आशना: छि मैं भी क्या सोच रही हूँ, वो मेरे भैया हैं, मैं उनका ख़याल रखूँगी पर एक बहन होने के नाते. मैं उनके लिए खुद एक अच्छी सी लड़की ढूँढ लाउन्गी जो उनकी इस अजीब बीमारी मे इनकी मदद करे. यह सोचते सोचते आशना कब सीडीयाँ चढ़ कर उपर पहुँची उसे पता ही ना लगा. उपर आकर वो अपने कमरे मे चली गई और अपनी न्यू ड्रेस लेकर बाथरूम मे चली गई. यह बाथरूम सेम नीचे वाले बाथरूम जैसा था बस टाइल्स अलग कलर्स और डिज़ाइन की थीं. अच्छे से नहाने के बाद आशना ने नये कपड़े पहने और अपने कमरे से बाहर आकर वीरेंदर के कमरे की तरफ चल दी. आशना ने डोर नॉक किया. उसके कानों मे फिर वोही भारी मर्दाना आवाज़ गूँजी 'आ जाओ".


आशना ने दरवाज़े को हल्का सा धक्का दिया तो वो खुलता गया. अंदर वीरेंदर एक सफेद लोवर और ग्रीन टी-शर्ट मे सोफे पे बैठा कुछ फाइल्स देख रहा था. उसने एक उड़ती सी नज़र आशना पर डाली और फिर फाइल्स मे खो गया.

आशना: यह क्या वीरेंदर जी, आपने आते ही ओफिसे का काम देखना शुरू कर दिया.
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Re: भैया का ख़याल मैं रखूँगी

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वीरेंदर ने एक बार उसे देखा और फिर दोबारा फाइल्स पर नज़रें गढ़ा दी. कुछ देर चुप रहने के बाद वीरेंदर बोला, काम की चिंता नहीं है मुझे. मेरा मेनेज़र सब संभाल रहा है. यह तो वो कुछ फाइल्स दे गया है जिसे साइन करना है ताकि डिसट्रिब्युटर्स को उनकी रुकी हुई पेमेंट दे सकें.

आशना: पर काम तो काम ही है ना, आप कुछ दिन सिर्फ़ आराम ही करेंगे और आपका सारा काम उसके बाद. इतना कह कर आशना ने फाइल्स उसके हाथ से ली और उन्हे मेज़ पर रख दिया.

वीरेंदर हैरानी से उसे देखता रहा. पहली बार उसने आशना के मासूम चेहरे को देखा तो देखता ही रह गया. आशना अपनी ही धुन मे कुछ बड़बड़ाये जा रही थी. फाइल्स को मेज़ पर रखने के बाद उसने वो दवाइयाँ निकाली जो वीरेंदर को दोपहर मे लेनी थी. उसने दवाइयाँ निकाली और जग से ग्लास मे पानी डाल कर वीरेंदर की तरफ़ मूडी. जैसे ही उसने वीरेंदर को देखा उसके कदम वहीं ठिठक गये.वीरेंदर एकटक उसे देखे जा रहा था. आशना एक दम शांत खड़ी हो गई. उसकी इस हरकत से वीरेंदर को होश आया, उसने जल्दी से अपनी नज़रें आशना के चेहरे से घुमाई और ग्लास पकड़ने के लिए हाथ आगे बढ़ाया.

आशना ने उसे ग्लास दिया और दवाइयाँ खिलाने लगी. वीरेंदर एक अच्छे बच्चे की तरह सारी दवाइयाँ खा गया.

आशना(मुस्कुराते हुए): शाबाश, रोज़ ऐसे ही अच्छे बच्चे की तरह दवाई खाओगे तो जल्दी ठीक हो जाओगे.

वीरेंदर: डॉक्टर. अगर आप इतनी डाँट खिलाने के बाद दवाइयाँ खिलाओगी तो मैं ठीक बेशक हो जाउ पर डर के मारे कमज़ोर ज़रूर हो जाउन्गा. इतना कह कर वीरेंदर हंस पड़ा और आशना के चेहरे पर भी स्माइल आ गई.


आशना: प्लीज़ आप मुझे आशना कहें, डॉक्टर. ना कहें. वीरेंदर ने उसकी तरफ सवालिया नज़रो से देखा तो आशना बोली. डॉक्टर. वर्ड थोड़ा फॉर्मल हो जाता है ना इसलिए.

वीरेंदर: जैसा तुम्हे ठीक लगे आशना.

अपना नाम वीरेंदर के होंठों से सुनकर आशना एक दम सिहर उठी.

आशना- अच्छा आप जल्दी से फाइल्स साइन कर लीजिए और अपने मेनेज़र को कह दीजिए कि वो अब कुछ दिन आपको आराम करने दें. वीरेंदर सिर्फ़ मुस्कुराया बोला कुछ नहीं. आशना अपने कमरे की तरफ चल दी. रास्ते मे उसने उपर से ही काका को आवाज़ लगा कर बता दिया कि वीरेंदर को दवाइयाँ दे दी हैं, एक घंटे के बाद खाना लगा दें.

अपने रूम मे आने के बाद आशना अपने बेड पर लेट गई और वीरेंदर के साथ होने वाली बातों को सोच कर रोमांचित होने लगी. बीच में उसे काका के साथ हुई किचन की भी बात याद आ गई तो वो और सिहर उठी. ना जाने क्यूँ दिल के किसी एक कोने मे वो उन बातों को सहेज कर रखने लगी. आशना का ध्यान भंग हुआ जब उसके दरवाज़व पर नॉक हुई. आशना ने घड़ी की तरफ देखा, खाने का टाइम हो गया था.

आशना: काका आप ख़ान लगाइए मैं आती हूँ.

काका: जी बिटिया.

कुछ देर बाद आशना नीचे पहुँची तो देखा काका खाना लगा रहे थे. आशना ने इधर उधर देखा और फिर काका से पूछा वीरेंदर नहीं आए नीचे.

काका: उन्होने कहा है कि वो उपर ही खाएँगे.

इतना सुनते ही आशना सीडीयाँ चढ़कर उपर पहुँची और बिना नॉक किए दरवाज़ खोल दिया. वीरेंदर वहाँ नहीं था. तभी उसे बाथरूम के अंदर से आवाज़ आई, काका आप खाना रख दो मैं अभी आता हूँ. आशना कुछ ना बोली, वो वहीं खड़ी रही. कुछ दो-तीन मिनिट के बाद बाथरूम का दरवाज़ा खुला और वीरेंदर सिर्फ़ लोवर मैं बाहर निकला. बाहर निकलते ही उसने आशना को देखा जो हैरानी से कभी उसकी बालों से भरी चौड़ी छाती देख रही थी तो कभी उसके चेहरे की तरफ. उसके बाल गीले थे शायद वो बाल धोके आया था. इतने दिन हॉस्पिटल रहने के बाद शायद उसे अपने सर से बदबू सी आ रही होगी. कुछ पलों तक दोनो एक दूसरे को देखते रहे उसके बाद पहली हरकत वीरेंदर ने की. वीरेंदेट ने अपने दोनो बाज़ू अपनी छाती पर रख कर उन्हे छुपाने की कोशिश की.

यह देख कर आशना की हसी छूट गई. वो फॉरन मूडी और कमरे से बाहर भागी. दरवाज़े पर पहुँच कर उसने धीरे से पीछे देखा और मुस्कुराते हुए बोली: क्या लड़कियो की तरह खड़े हो. जल्दी से कपड़े पहनो और नीचे आ जाओ, आज खाना नीचे ही मिलेगा. वीरेंदर ने अग्याकारी बच्चे की तरह हां में गर्दन हिलाई और लपक कर अलमारी खोली. आशना नीचे पहुँची तो उसके होंठों पर मुस्कान अभी भी थी जिसे देख कर बिहारी काका ने पूछा "क्यूँ देख लिया वीरेंदर बाबू को टॉपलेस. आशना ने हैरानी से काका को देखा जैसे पूछ रही हो उन्हे कैसे मालूम.

काका: यह तो मालिक की पुरानी आदत है, जब भी वो दोपहर को घर पर होते है, खाना खाने से पहले वो अपनी टी-शर्ट उतार देते हैं.

आशना: बाप रे, फिर तो रात के खाने में तो.......इतना कहना था कि दोनो खिलखिला कर हंस दिए. तभी वीरेंदर ने डाइनिंग हॉल में कदम रखा. दोनो एकदम चुप हो गये.

वीरेंदर अंदर आते ही: काका तुमने तो पता है ना, फिर तुमने इसे रोका क्यूँ नहीं.

काका: मुझे पता ही कब लगा यह कब उपर गई, मैं तो इसे बता रह था कि तुमने खाना उपर मँगवाया है, ये तो पलक झपकते ही उपर पहुँच गई.

वीरेंदर: आशना , आइ आम सॉरी.

आशना: आइ आम सॉरी, मुझे नॉक कर के आना चाहिए था.

बिहारी काका: चलो आप बैठ जाएँ मैं खाना परोस देता हूँ.

आशना: काका, तुम जाकर खाना खा लो आज इनको खाना मैं परोसुन्गि. काका चले गये तो वीरेंदर बोला: देखो डॉक्टर. बन कर आई थी और क्या क्या करना पड़ रहा है?

आशना: देखते जाओ अभी और क्या क्या करूँगी और हँस दी.


आशना ने दो प्लेट्स में खाना डाला और दोनो खाना खाने लगे. खाना कहते हुए बार बार दोनो की नज़रें मिल रही थी.आशना टाइट पिंक स्वेट शर्ट और ब्लॅक स्किन टाइट जीन्स में काफ़ी सेक्सी लग रही थी और वीरेंदर भी आशना से नज़रें चुराकर बार बार उसकी खूबसूरती का रस पी रहा था. आशना पूछना तो चाहती थी वीरेंदर से कि वो खाना इस डाइनिंग हॉल में ना ख़ाके अपने रूम मे क्यूँ ख़ाता है पर फिर उसे उसकी आदत (टी-शर्ट उतारकर खाना खाने की आदत) याद आ गई और उसने अपने दिमाग़ से वो सवाल झटक दिया. लेकिन आशना ने एक और सवाल वीरेंदर से कर दिया.

आशना: वीरेंदर जी बुरा मत मानीएगा पर यह टी-शर्ट उतार कर खाना खाने की आदत कुछ समझ नही आई और यह सवाल पूछ कर वो हँस दी.

वीरेंदर आशना के इस सवाल से झेंप गया और हड़बड़ाते हुए जवाब दिया "अक्सर जब मैं घर होता था और दोपहर का खाना खाने बैठता था तो खाना खाते खाते मुझे बड़ी बेचैनी सी होती थी, मेरा शरीर एकदम पसीने से नहा जाता, मेरा गला सूखने लगता तो फिर मैं अपनी कमीज़ या टी-शर्ट उतार फेंकता. बस अब आदत सी हो गई है. जब भी घर पर होता हूँ तो दोपहर को खाना ऐसे ही ख़ाता हूँ.

आशना: क्या आज भी ऐसा ही फील हो रहा है खाना खाते वक्त.

वीरेंदर: तुम तो पूरी जासूस की तरह पीछे पड़ गई हो. तुम्हे डॉक्टर. नहीं जासूस होना चाहिए.

आशना: वोही समझ लो पर अभी तक आपने मेरे सवाल का जवाब नहीं दिया.

वीरेंदर कुछ देर उसको देखता रहा फिर बोला ऐसा कभी कभी ही होता है और फिर तो मुझे उसके बाद कुछ होश ही नहीं रहता. उसके बाद तो कई घंटो तक मैं सोया ही रहता हूँ.

आशना (चिंता भरे स्वर में): क्या अपने कभी डॉक्टर. से कन्सल्ट नहीं किया?

वीरेंदर: डॉक्टर. आंटी को एक बार मैने अपनी बेचैनी के बारे मे बताया तो उन्होने चेकप किया और बताया कि सब नॉर्मल है बस थकान से ऐसा होता है.
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Re: भैया का ख़याल मैं रखूँगी

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आशना को कुछ गड़बड़ लग रही थी पर वो डॉक्टर. तो थी नहीं जो इस बीमारी का कारण जान सकती. उसने खाना खाने के बाद प्लेट्स संभाली और काका को आवाज़ लगा कर कहा कि बर्तन उठा कर सॉफ कर दें. फिर वीरेंदर अपने कमरे की तरफ चल पड़ा और आशना अपने कमरे में चली गई.


काफ़ी दिनो से थकि होने के कारण आशना को बेड पर लेटते ही गहरी नींद ने अपने आगोश में ले लिया. आशना की नींद खराब की उसके मोबाइल की रिंगटोन ने " ज़रा-ज़रा टच मी टच मी टच मी ओ ज़रा- ज़रा किस मी किस मी किस मी". आशना ने अलसाए हुए रज़ाई(क्विल्ट) से अपने चेहरे को कस के ढक लिया ताकि रिंगटोन की आवाज़ उसके कानों तक ना पड़े मगर मोबाइल लगातार बजे जा रहा था. कुछ देर बाद झल्ला कर उसने फोन उठाया और स्क्रीन पर नंबर. देखने लगी. जैसे ही उसकी नज़र स्क्रीन पर पड़ी कॉल डिसकनेक्ट हो गई. आशना का मन आनंदित हो गया. आशना ने मोबाइल तकिये के पास रखा और सोने के लिए आँखें बंद ही की थी कि एक बार फिर से मोबाइल बजने लगा. अब तक आशना की नींद टूट चुकी थी, उसने स्क्रीन पर नंबर. देखा, डॉक्टर. बीना का फोन था. फिर आशना ने घड़ी की तरफ देखा, 7:00 बज चुके थे. आशना ने कॉल रिसीव की और बीना ने उसका और वीरेंदर का हाल जानने के बाद फोन काट दिया. हालाँकि उनकी बातचीत कुछ ज़्यादा देर नहीं चली पर बीना ने उसे एक हिदायत देते हुए कहा कि जो भी करना है जल्द से जल्द और सोच समझ कर करना. उसने इस बात पर खास ज़ोर दिया कि वीरेंदर को ना पता चले कि वो उसकी बेहन है क्यूंकी हो सकता है वीरेंदर ज़्यादा गुस्से में आ जाए और उसकी सेहत पर इसका उल्टा असर पड़े.

फोन अपनी पॅंट की पॉकेट मे रखने के बाद आशना ने अपनी न्यू जॅकेट जो कि लाइट ब्राउन कलर की थी उसे पहन लिया. शाम को काफ़ी ठंड हो गई थी. आशना अपने कमरे से बाहर नहीं निकली, वो अपने रूम मे ही बैठ कर टीवी देखने लगी और आगे क्या करना है वो सोचने लगी. करीब 2 घंटे तक काफ़ी सोचने के बाद उसके सिर में दर्दे होने लगा. उसे समझ में नहीं आ रहा था कि वो अब क्या करे. कैसे वीरेंदर भैया से उनकी शादी की बात करे और सबसे बड़ा सवाल कि शादी करने के लिए लड़की कहाँ से लाई जाए. अंत में आशना ने वीरेंदर को ही कुरेदना ठीक समझा और उसके कमरे में जाने की सोची.

आशना टीवी ऑफ करके अपने कमरे से बाहर निकली ही थी के उसे बिहारी काका वीरेंदर के रूम से खाने की ट्रे लिए निकलते हुए दिखे.

आशना: काका वीरेंदर ने खाना खा लिया क्या?

काका: हां बिटिया, तुम्हारे लिए भी उपर ही ले आउ. आज बहुत ठंड है, अपने कमरे में ही खा लो.

आशना कुछ देर सोचती रही फिर बोली ठीक है काका, आप खाने मेरे रूम में लगा दें, मैं थोड़ी देर वीरेंदर के रूम से होके आती हूँ, उन्हे दवाई खिला दूं.

काका: ठीक है.

आशना आगे बढ़ी ही थी कि उसके पैर एक दम रुक गये,

उसके रुके कदमों को देख कर काका ने उसे सवालिया नज़रो से देखते हुए इशारे से पूछा कि क्या हुआ.

आशना: वो काका वीरेंदर जी पूरे कपड़े तो पहने हैं ना?

काका: हां तुम सुरक्षित हो जाओ. काका के इस जवाब से आशना शरम के मारे ज़मीन मे गढ़ी जा रही थी. उसके बाप समान एक आदमी उसे यह समझा रहा था कि जिस आदमी के पास वो जा रही है वो उसे कुछ भी नहीं करेगा.

काका: बिटिया, जब वीरेंदर बाबू का हो जाए तो हमारा भी एक काम करना.

आशना एक दम चौंकी काका की बात सुनकर. बिहारी ने बहुत जल्दी बात संभालते हुए कहा कि बिटिया मेरा मतलब है कि जब वीरेंदर बाबू दवाइयाँ खा लें तो तुम मेरे कमरे में नीचे आना, तुमसे कुछ ज़रूरी बातें करनी हैं. आशना जल्द से जल्द यहाँ से निकलना चाहती थी उसने अपनी गर्दन हां में हिलाई और वीरेंदर के रूम की तरफ चल दी.


बिहारी नीचे आ गया और अपने मोबाइल को ऑन करके एक नंबर. डाइयल किया. कुछ देर बाद वहाँ से किसी ने फोन उठाया. बिहारी धीमी आवाज़ में "चिड़िया के मन में आग डाल रहा हूँ, अब आगे बोलो जब वो मेरे कमरे में आए तो क्या करना है. कुछ देर बिहारी चुप चाप उसकी बात सुनता रहा और फिर बोला ऐसा ही होगा. फिर बिहारी बोला: बहुत दिन हो गये हैं, अब तो दिन में मिलना भी मुस्किल है जब तक इस चिड़िया के पर ना कट जाएँ, अगर मूड है तो आज रात को आ जाओ नहीं तो मुझे आज फिर से हिलाकर ही सोना पड़ेगा. थोड़ी देर सामने वाले की बात सुनकर बिहारी बोला: तो मैं क्या यहाँ ऐश कर रहा हूँ. पिछले 10 दिन तो खूब ऐश की हम दोनो ने. कभी तुम यहाँ तो कभी मैं वहाँ. पर अब मेरा घर से निकलना ख़तरे से खाली नहीं होगा. चिड़िया चालाक लगती है, थोड़ा सा भी इधर उधर हुआ तो ख़तरा होगा, इसी लिए अब कुछ दिन तो तुमको ही यहाँ पर आना होगा. बिहारी ने कुछ देर सुनने के बाद सामने वाले को बोला: मैं दरवाज़ा खोल दूँगा तुम सेधे मेरे कमरे में आ जाना. वीरेंदर को तो नींद की गोलियाँ दे चुका हूँ दूध में. चिड़िया को भी दूध पिलाकर सुला दूँगा फिर जशन होगा. तुम ठीक 12:00 बजे पहुँच जाना. इतना कह कर उसने फोन काटा, उसे स्विचऑफ किया और आशना के लिए खाना लेने किचन में चला गया.


बिहारी काका पिछले 25 साल से शर्मा परिवार के घर पर नौकर था, काफ़ी ईमानदार और काम मे लगन होने के कारण उसके साथ शर्मा परिवार में एक फॅमिली मेंबर की तरह बिहेव किया जाता. वो कभी किसी को कोई शिकायत का मोका नहीं देता. दिखने मे कोई 45 का एक तगड़े शरीर का मालिक था. बचपन मे गाँव मे पला बढ़ा होने के कारण मेहनत उसके खून मे थी और वो थोड़ी मेहनत अपने शरीर पर भी किया करता. इस उम्र मे भी वो सुबह जल्दी उठ कर घर मे बने पीछे जिम मे कुछ देर शरीर के लिए मेहनत करता और काफ़ी हेल्ती भी ख़ाता. बस उसकी यही आदत के कारण वो आज भी किसी भी औरत या लड़की पे भारी पड़ता. उसने शादी नहीं की क्यूंकी उसे शादी की ज़रूरत ही नहीं पड़ी, क्यूंकी जब तक शर्मा परिवार मे सब ठीक था, वो घर की नौकरानियों को खूब रगड़ता. फिर उस आक्सिडेंट के बाद वीरेंदर ने घर के सभी नौकर नोकारानियों को घर से दूर एक बस्ती मे बसा दिया जिससे बिहारी वीरेंदर से नफ़रत करने लगा था. उसने वीरेंदर को बहुत समझाया कि कम से कम एक नौकरानी को यहीं रहने दे ताकि वो घर के काम मे उसकी मदद करे पर कोई भी नौकरानी रुकने को तैयार नहीं हुई. उन्हे रहने के लिए बस्ती मे मकान, वीरेंदर से पगार और बिहारी से छुटकारा जो मिल रहा था.

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बिहारी तो पहले, पूरा दिन भर सर्वेंट क्वॉर्टर्स मे ही रहता. कभी किसी नोकरानी को तो कभी किसी नोकरानी को अपने कमरे मे बुलाकर बहाल कर रहा होता. वो घर मे सर्वेंट्स का हेड था तो कभी किसी की हिम्मत नहीं हुई उसकी शिकायत करने की. एक बार एक नोकरानी ने शिकायत करके उसे घर से निकालने की कोशिश भी की पर बिहारी ने उसके पति को पैसे देके उसी नोकरानी को बदचलन साबित करके घर से धक्के देके निकलवा दिया था. बाद मे पता लगा कि उसके पति ने भी उसे तलाक़ दे दिया था. इस डर से कोई भी उसके खिलाफ नहीं बोलता. सारे नोकरो के जाने के बाद बिहारी तो जैसे भूखे शेर की तरह हो गया था. वो रोज़ रात को अपना पानी निकाल कर सो जाता पर इस से उसकी आग और भड़क रही थी. लेकिन जल्द ही उसकी ज़िंदगी मे एक ऐसी औरत आई जो अपनी नज़र शर्मा परिवार की जायदाद पर रखती थी. एक बार वो हवेली मे आई तो बिहारी से उसकी मुलाकात हुई. उस औरत ने जल्द ही बिहारी की आँखों मे हवस देख ली और उसे फसा लिया.

बस यहाँ से शुरू हुआ उनका वीरेंदर की जायदाद को हथियाने का एक चक्रव्यूह. वो औरत भी बिहारी जैसा दमदार मर्द पाकर खुश थी. दोनो अक्सर घर पर मिलने लगे जब वीरेंदर ऑफीस होता और धीरे धीरे उन्होने वीरेंदर की जायदाद हड़पने के प्लान पर अमल करना शुरू कर दिया. लेकिन आशना के यूँ अचानक आ जाने से उन्हे अपना प्लान असफल होता नज़र आ रहा था क्यूंकी वीरेंदर की वसीयत के मुताभिक अगर आशना घर वापिस लौट आती है तो 50% शेर उसका होगा और अगर वो लौट के ना आए तो सारा शेयर वीरेंदर की वाइफ और बच्चों को जाएगा (यह वसीयत वीरेंदर ने अपने परिवार की मौत के तुरंत बाद बनवा ली थी और तब तक उसे यही लगता था कि रूपाली उससे शादी करेगी). वसीयत मे एक यह क्लॉज़ भी था कि अगर किसी कारण वीरेंदर की मौत आशना के लौटने से पहले या वीरेंदर की शादी होने से पहले हो जाती है तो सारी ज़ायदाद एक ट्रस्ट को सौंप दी जाएगी.

आशना के आ जाने से बिहारी और उस औरत की एक मुश्किल बढ़ गई थी और एक आसानी भी हो गई थी. मुश्किल यह थी कि अगर आशना वीरेंदर के सामने उसकी बेहन बनकर जाएगी तो 50% शेयर उसका हो जाएगा और तब उनका सारी जायदाद पर हाथ सॉफ करने का सपना अधूरा रह जाएगा पर आसानी यह हो गई कि आशना वीरेंदर के सामने उसकी बेहन बनकर नहीं जाना चाहती थी (जी हां, ठीक सोचा अपने, बिहारी जानता है कि आशना वीरेंदर की बेहन है. वो यह सब कैसे जानता है उसके लिए पढ़ते रहिए), जिस कारण उनके दिमाग़ में एक नया प्लान बना. वीरेंदर जैसे चालाक और समझदार आदमी को तो अपने बस मे करना उनके लिए नामुमकिन था पर आशना को इस झूठ के ज़रिए वो ब्लॅकमेल कर सकते थे. तो उन दोनो ने प्लान किया कि किसी तरह आशना वीरेंदर की सेक्षुयल नीड्स को पूरा करे या वो ऐसे हालत पैदा करें कि आशना मजबूर हो जाए अपने भैया का बिस्तर गरम करने के लिए तो फिर वो वीरेंदर का काम तमाम करके आशना को वीरेंदर की बीवी साबित करके उससे वसीयत बदलवा सकते हैं. इससे दो फ़ायदे होंगे, एक तो यह कि आशना कभी अपना मूह नहीं खोल पाएगी और दूसरा यह कि अगर आशना ना होती तो उन्हे किसी और लड़की की मदद लेनी पड़ती जो कि ख़तरनाक भी साबित हो सकता था.

तो यह था उनका नया प्लान, जो उन्होने आशना के आने के बाद बनाया, उनका पहले का प्लान भी काफ़ी ख़तरनाक और दमदार था. वीरेंदर के खाने में वो कभी कभी कुछ अफ़रोडियासिक का एक मिश्रण मिला दिया करते थे जिससे वीरेंदर की सेक्स करने की इच्छा भड़क उठे और वो फ्रस्टेट होके किसी भी औरत या लड़की को अपना शिकार बना डाले. इस से यह होता कि सेक्षुयल असॉल्ट के जुर्म में वीरेंदर जैल जाता और यह दोनो पीछे से सारा माल सॉफ कर जाते मगर इस में किस्मत उनका साथ नहीं दे रही थी क्यूंकी वीरेंदर ऑफीस से घर और घर से ऑफीस बस इन्ही दो जगह जाता था और दोनो ही जगह कोई भी लड़की काम नहीं करती थी. बिहारी ने कई बार वीरेंदर को किसी औरत या लड़की को नौकरानी रखने के लिया मनाना चाहा पर वीरेंदर ने हर बार मना कर दिया. वीरेंदर अपनी सेक्षुयल ज़रूरतें खुद भी पूरी करने में असमर्थ था, शुरू शुरू में एक बार उसने काफ़ी एग्ज़ाइटेड होकर अपने लिंग को हाथो से ठंडा करने की कोशिश भी की पर उसके लिंग की सील बरकरार होने से यह उसके लिए काफ़ी कष्टदायक रहा. उसके बाद तो वीरेंदर ने तोबा कर ली थी. जिस भी दिन बिहारी काका को उस दवाई की डोज दे देते, वो काफ़ी उत्तेजित रहता और यही वजह है कि कई बार उसे दोपहर का खाना खाते खाते एकदम बैचनी होने लगती और वो अपने कपड़े उतार फैंकता. बिहारी काका अक्सर उसे 10-15 दिन बाद एक डोज दोपहर के खाने में दे देते जब भी कभी वीरेंदर घर पर लंच करता. उन्होने दोपहर का ही वक्त इसलिए चुना था कि जब डेढ़ दो घंटे बाद इसका असर बिल्कुल ज़्यादा हो तो उस वक्त वीरेंदर के बाहर जाकर कोई ग़लती करने के चान्सस ज़्यादा रहते पर वीरेंदर पर तो रूपाली का धोखा इस कदर हावी हो चुका था के वो घंटो अपने कमरे में ही खोया खोया बैठा रहता और अपनी उत्तेजना को दबाने की कोशिश करता रहता.इसी फ्रस्टेशन के चलते ही कुछ दिन पहले उसे एक माइनर सा अटॅक आया था जिस कारण वो हॉस्पिटल पहुँचा. दवाइयों के सहारे कुछ दिन तक तो उसे ठीक रखा जा सकता था पर अब यह सिचुयेशन उसके लिए काफ़ी ख़तरनाक साबित हो रही थी. बिहारी जानता था अगर इससे पहले कुछ ना किया तो वीरेंदर की वसीयत के मुताबिक उसका सारा पैसा एक ट्रस्ट में चला जाएगा जिसे वो हरगिज़ मंजूर नहीं करता. उसी चाल के सिलसिले में उसने आशना को उसने अपने कमरे में बात करने के लिए बुलाया था.

आशना को वीरेंदर के कमरे से अपने कमरे मे आए हुए एक घंटे के करीब हो गया था. बिहारी सोच रहा था कि अब तक आशना ने खाना खा लिया होगा. बिहारी अपने कमरे के दरवाज़े पर खड़ा होकर उपर की तरफ ही देख रहा था कि उसे आशना के रूम का दरवाज़ा खुलने का आभास हुआ, वो फॉरन अपने कमरे में घुस गया और दरवाज़ा धीरे से बंद कर दिया. करीब पाँच मिनिट तक वेट करने के बाद भी जब आशना उसके रूम मे नहीं आई तो उसे हैरानी और परेशानी दोनो होने लगी. अब तो बिहारी को डर भी लगने लगा था क्यूंकी 11 बजने वाले थे और करीब 12 बजे उस औरत ने भी आना था.

बिहारी अजीब की कशमकश में था कि उसका दरवाज़ा धीरे से नॉक हुआ. बिहारी एक दम अपनी जगह से उठा और दरवाज़ा खोल दिया जो कि पहले से ही थोड़ा खुला था.

बिहारी: नॉक करके क्यूँ शर्मिंदा करती हो बिटिया यह तुम्हारा ही कमरा, मेरा मतलब घर है जब चाहे किसी भी कमरे में आ- जा सकती हो. आशना को झटका लगा जब बिहारी ने उसे कहा कि यह उसका ही घर है. बिहारी को भी अपनी ग़लती का एहसास हो चुका था. उसने जल्दी से बात बदलते हुए कहा कि कुछ दिनो तक जब तक मालिक ठीक नहीं हो जाते तब तक तो तुम यहीं पर रुकेगी तो तब तक यह घर उसी का हुआ ना. बिहारी ने बड़ी चालाकी से अपनी बात पलट दी थी.


अंदर आते ही आशना की नज़र बिहारी के कमरे पर पड़ी, बड़ा ही सॉफ सुथरा और घर के बाकी कमरो की तरह काफ़ी आकर्षक कमरा था. सुख-सुविधाओ से सुसज्जित कमरे मे हर एक वस्तु मौजूद थी. हर एक चीज़ जो इंसान की ज़रूरत होती है वो सब उस कमरे मे मौजूद थी जो कि बिहारी का रुतबा इस घर मे बयान कर रही थी. आशना हैरान थी कि एक नौकर का कमरा भी इतना सुंदर हो सकता है. खैर वीरेंदर को इसका होश ही कहाँ था कि घर मे क्या हो रहा है, उसे तो बस काम और सिर्फ़ काम से मतलब था.
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Dolly sharma
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Re: भैया का ख़याल मैं रखूँगी

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बिहारी: बैठो बिटिया मैं तुम्हारे लिए पानी लाता हूँ.

आशना: नहीं काका अभी पीकर ही आई हूँ.

बिहारी: बहुत लेट हो गई तुम, मुझे लगा शायद सो गई होगी. मैं भी सोने ही वाला था कि तुम आ गई.

आशना: नहीं काका वो डॉक्टर. बीना का फोन आया था, वीरेंदर के ट्रीटमेंट के बारे मे समझा रही थी.. आशना ने बड़ी सफाई से झूठ बोल दिया जबकि वो यही सोचे जा रही थी कि बिहारी काका ने उसे अपने कमरे मे क्यूँ बुलाया है.

बिहारी: कोई बात नहीं, बैठो.

आशना बेड के पास लगे सोफे पर बैठ गई. उसके आगे मेज़ पर एक शराब की बोतल और खाली ग्लास रखा था. शराब काफ़ी महँगी लगती थी और ग्लास में कुछ शराब होने के कारण आशना समझ चुकी थी कि काका शराब पी रहे थे. आशना बड़ा अनकंफर्टबल फील कर रही थी काका के आगे. वो डर रही थी कि अगर काका ने कोई ग़लत हरकत की तो वो कैसे अपने आप को सच्चा साबित कर पाएगी क्यूंकी वीरेंदर तो उस से यही पूछेगा इतनी रात को आशना उसके कमरे मे क्या कर रही थी.

बिहारी: वो माफ़ करना बिटिया कभी कभी पी लेता हूँ जब बहुत ज़्यादा खुश होता हूँ या बहुत ज़्यादा उदास. आज तो मेरी लिए खुशी का दिन है, मालिक ठीक होकर घर पर आ चुके हैं.

आशना: कोई बात नहीं काका.

बिहारी उसके लेफ्ट साइड पर आके सोफे के साथ लगे बेड पर बैठ गया. आशना ने वोही दोपहर वाली पिंक टी-शर्ट पहनी थी और जॅकेट वो उपर ही भूल आई थी. बिहारी उसके लेफ्ट साइड पर बैठा था जिस से बिहारी की नज़र आशना के क्लीवेज पर पड़ी जो कि आशना के बैठने से बाहर की तरफ उभर आई थी. आशना ने झट से काका की नज़रें पढ़ ली पर वो इसी वक्त कुछ रियेक्शन करती तो उसे खुद भी ज़िल्लत उठानी पड़ती और काका भी झेन्प जाते.

आशना: बोलिए काका, क्या कम था आपको मुझसे.

बिहारी उसकी आवाज़ सुनकर एक दम अपना ध्यान आशना के बूब्स से हटाता है और बोलता है.


बिहारी: अब तुम्हें ही कुछ करना होगा मालिक के लिए.

आशना: मैं समझी नहीं.

बिहारी: देखो मैं ज़्यादा पढ़ा लिखा तो नहीं पर जितना डॉक्टर. ने मुझे बताया उससे मैं यह अंदाज़ा तो लगा ही सकता हूँ कि वीरेंदर बाबू को कोई बीमारी नहीं है. बस उनकी कुछ ज़रूरतें हैं जो पूरी नही हो रही.

आशना ने सिर झुका कर कहा: लेकिन काका मैं इस बारे मे उनकी क्या मदद कर सकती हूँ.

बिहारी: देखो आशना, इतनी नासमझ तो तुम हो नहीं कि मेरी बात का मतलब ना समझो पर खैर कोई बात नहीं मैं तुम्हे समझाता हूँ. आशना एक दम हैरान होकर बिहारी काका की तरफ देखने लगी क्यूंकी दिन भर बिटिया-बिटिया बुलाने वाले काका एकदम उसका नाम लेकर बात कर रहे थे.
आशना डर के मारे काँपने लगी. बिहारी उसकी हालत समझते हुए बोला: डरो नहीं, मैं तुमसे कोई भी काम ज़बरदस्ती नहीं करवाउंगा पर अगर तुम वीरेंदर बाबू को पूरी तरह ठीक करने मे मेरी मदद करो तो मैं वादा करता हूँ कि तुम्हें ज़िंदगी भर काम करने की ज़रूरत ही नहीं रहेगी. आशना मूह फाडे बिहारी की बातें सुन रही थी, उसके गले से शब्द ही नही निकल पा रहे थे. वो काका की बातों का मतलब भली भाँति समझ रही थी. उसके दिल के किसी कोने में यह ख़याल तो कुछ दिनों से घर कर ही गया था पर वो इसे नकार रही थी, आख़िर वीरेंदर भाई था उसका. पता नहीं काका क्या क्या बोले जा रहे थे पर उनकी आख़िरी बात ने उसे चौंका दिया "आशना अगर तुमने मेरी बात मान ली तो मैं वादा करता हूँ कि वीरेंदर बाबू तुम्हे अपनाए या ना अपनाए पर मैं तुम्हें समाज मे इज़्ज़त दिलवाउन्गा और ज़रूरत पड़ने पर तुम्हारे बच्चो को मैं अपना नाम देने को तैयार हूँ. आशना का पहले तो मन किया कि खैंच के एक ज़ोरदार थप्पड़ बिहारी के गाल पर मारे पर उसने अपने आप को रोक लिया, क्यूंकी अगर बात बिगड़ गई तो फिर आशना को अपनी सफाई देनी मुश्किल हो जाएगी कि वो इतनी रात को बिहारी के कमरे में बिहारी काका से साथ क्या कर रही थी जब कि बिहारी इस समय शराब पी कर धुत था.

बिहारी अपनीी बात बोलकर चुप हो गया और आशना की तरफ देखने लगा. आशना की साँसे तेज़ चल रही थी जिससे उसके उन्नत वक्ष उसकी टी-शर्ट मे हिल रहे थे. बिहारी बड़े ही ध्यान से उन्हे एकटक देखे जा रहा था. आशना ज़्यादा देर तक वहाँ बैठ ना सकी क्यूंकी अब उसे बिहारी काका की हवस भरी नज़रो मे उतावलापन नज़र आ रहा था. वो उठकर जैसे ही जाने को हुई. बिहारी बोला: कोई जल्दी नहीं है, तुम सोच समझ कर फ़ैसले लो. लेकिन इतना याद रखना कि तुम्हे मालामाल कर देंगे और तुम्हे अपनाने के लिए मैं तो हूँ ही ना अगर वीरेंदर बाबू ने तुम्हे बाद मे ठुकरा भी दिया तो. एक एक शब्द आशना की आत्मा को छल्नि कर रहा था. आशना दौड़ कर सीडीयाँ चढ़ने लगी तो बिहारी ने आवाज़ लगा कर कहा कि उपर आपके रूम मे दूध भी रखा है. अगर पिया नहीं तो अब पीकर सो जाना, नींद अच्छी आ जाएगी. आशना ने कोई जवाब नहीं दिया और भाग कर अपने कमरे मे आई और अंदर आते ही आशना धडाम से बेड पर पेट के बल गिरी और सिसक उठी.

यह उसके साथ क्या हो रहा है. क्यूँ वो इस जगह आई, वो तो बहुत खुश थी अपनी उस छोटी सी दुनिया मे. वहाँ उसे कोई पाबंदी नहीं थी, वो वहाँ पर एक आज़ाद ज़िंदगी जी रही थी मगर यहाँ आते ही उसकी ज़िंदगी ने एक अलगा ही रुख़ ले लिया था. पहले उसे अपने ही भाई के घर मे झूठ बोलकर घुसना पड़ा और फिर अब वो अपनी नौकरी भी छोड़ चुकी थी. हालाँकि आशना के लिए नयी नौकरी ढूँढना कोई बड़ा मुश्किल काम नहीं था. अभी भी एक एरलाइन्स का ऑफर उसके पास था मगर वो यहाँ से जा भी तो नहीं सकती थी वीरेंदर को इस हालत मे छोड़कर. वो यह भी जानती थी कि यहाँ रुकना भी उसके लिए ठीक नहीं रहेगा. आख़िर वो कब तक वीरेंदर से सच छुपाकर रखेगी. उसे वीरेंदर से सच बोलने मे भी अब कोई प्राब्लम नहीं थी पर वो परेशान थी तो बिहारी की बातों से. कैसे उस इंसान ने सॉफ शब्दों मे आशना को समझा दिया कि उसे वीरेंदर की रखैल बनकर इस घर में रहना पड़ेगा और अगर वीरेंदर ने आशना से बेवफ़ाई की और इस सौदे मे वो प्रेग्नेंट हो गई तो बिहारी उससे शादी करके उसके बच्चों को अपना नाम दे देगा आशना काफ़ी देर तक सोचती रही और घुट घुट कर रोती रही. फिर उसे नीचे मैन दरवाज़ा खुलने की आवाज़ आई. आशना ने सोचा बुड्ढ़ा शराब पीकर कहीं जा रहा होगा. आशना जो कि बिहारी की इज़्ज़त करती थी उसकी इस हरकत से बिहारी उसकी नज़रो से गिर चुका था. वो जान चुकी थी बिहारी की गंदी नज़र उसके जिस्म पर है. उसने बिहारी की आँखों मे हवस के लाल डोरे तैरते देखे थे जब वो उससे बात कर रहा था. आशना मन मैं सोचने लगी कि हवस इंसान को कितना अँधा बना देती है. वो इंसान यह भी नही सोचता कि सामने उसकी बेटी है या बेटी जैसी कोई और.

काफ़ी देर यूँही अपना मन हल्का करने के बाद आशना उठी और मूह धोने के लिए बातरूम मे चली गई. वॉशरूम मे मूह धोते हुए उसकी नज़र अपने चेहरे पर पड़ी. उसने अपने आप को ध्यान से देखा और सोचने लगी : क्या मैं इतनी खूबसूरत हूँ कि एक बूढ़ा इंसान भी मेरी तरफ आकर्षित हो सकता है. ऐसा सोचते सोचते आशना रूम मे आई और शीशे के सामने खड़ी होकर अपने आप को देखने लगी. अपने जिस्म को प्यासी नज़रो से देखते हुए उसके गाल लाल होने लगे और उसकी साँसे भारी होने लगी. आज कितने दिन हो गये थे उसे अपने आप से प्यार किए हुए. यह सोचते ही आशना के शरीर मे एक बिजली की लहर सी दौड़ गई और अनायास ही उसके हाथ अपनी टी-शर्ट के सिरो को पकड़ कर उपर उठाते चले गये.

आशना ने टी-शर्ट सिर से निकाल कर उसे एक तरफ़ उछाल दिया और फिर अपनी पॅंट के बटन खोलने लगी. आशना का दिल काफ़ी ज़ोरों से धड़क रहा था, उसने पॅंट भी टी-शर्ट के पास उछाल दी और टेबल पर रखे दूध को एक ही घूँट मे पीकर रज़ाई मे घुस गई. आशना ने जैसे ही आँखे बंद की उसके हाथ अपने आप ही उसके अन्छुए कुंवारे बदन पर हर जगह छाप छोड़ने लगे. आशना की एग्ज़ाइट्मेंट बढ़ती ही जा रही थी. अपने ब्रा कप अपने बूब्स से हटा कर उसने अपने गुलाबी निपल्स को अपनी उंगलियो मे कस लिया जिससे वो और भी तन कर खड़े हो गये जैसे चीख चीख कर बोल रहे हों कि आओ और घोंट दो हमारा गला. जैसे ही आशना ने निपल्स पर अपनी गिरफ़्त बढ़ाई उसके गले से एक आह निकली जो कि एक घुटि चीख का रूप लेकर उसके होंठों तक आ पहुँची. आशना बहुत ही ज़्यादा एग्ज़ाइटेड हो चुकी थी. वो सेक्स के नशे मे अपने बूब्स को लगातार मरोड़ रही थी. आशना ने हाथ पीछे लेजाते हुए अपने ब्रा के हुक्स खोल दिए और ब्रा को अपने कंधे से निकाल कर एक ओर उछाल दिया. अब आशना केवल एक पैंटी मे रज़ाई के अंदर रह गई थी. आशना ने अपने पैर के पंजो पर वेट डाल कर अपनी आस को हवा मे उठाया और धीरे धीरे से अपनी पैंटी भी उतार दी. जैसे जैसे पैंटी उसके बदन का साथ छोड़ रही थी आशना की साँसें तेज़ होने लगी. पैंटी को एक साइड पर फैंकते ही उसने अपनी दोनो टाँगे ज़ोरे से भींच ली जैसे कोई उसकी इस हरकत को देख रहा हो.वो इस वक्त ऐसा महसूस कर रही थी कि वो इस कमरे मे अकेली नहीं कोई और भी उसके साथ है. इस सोच ने उसे और भी रोमांचित कर दिया. उसका चेहरा एक दम आग उगल रहा था और निपल्स तन कर डाइमंड की तरह हार्ड हो गये थे. आशना जानती थी कि अब वो नहीं रुक पाएगी. धीरे धीरे आशना के थाइस का फासला बढ़ता गया और एक वक्त ऐसा आया कि आशना की दोनो टाँगो के बीच काफ़ी जगह बन गई. आशना ने अपने बाएँ हाथ की छोटी उंगली अपनी पुसी की दर्रार मे चलानी शुरू कर दी. लेकिन उसकी पुसी के बाल उसे पूरी तरह उलझाए हुए थे. धीरे धीरे उसने बालों को एक साइड करके अपनी उंगली के लिए जगह बनाई और जैसे ही उसने दरार मे उंगली उतारने की कोशिश की वो दर्द से कराह उठी. एग्ज़ाइट्मेंट मे उसने उंगली ज़्यादा अंदर घुसा दी थी. आशना ने फॉरन उंगली बाहर निकाली और उंगली की तरफ देखने लगी. आशना मन मे सोचते हुए: यह छोटी सी उंगली अंदर घुसने मे इतनी तकलीफ़ करती है तो तब क्या होगा जब इस मे कोई अपना पेनिस डालेगा. यह ख़याल आते ही उसे वीरेंदर की याद आ गई. आज तक आशना ने सिर्फ़ अपने आप को ही प्यार किया था पर आज उसे एक दम वीरेंदर की याद आ जाने से उसके तन बदन मे आग बढ़ने लगी. आशना ने लाख कोशिश की कि वो वीरेंदर के बारे मे ना सोचे पर इस वक्त दिल- दिमाग़ पर हावी हो रहा था. वीरेंदर का ख़याल आते ही उसकी हथेली अपनी पुसी पर चलने लगी. जैसे ही आशना ने अपनी आँखें बंद की उसे वीरेंदर का चेहरा दिखाई दिया और बस इतना काफ़ी था उसे उसके अंजाम तक पहुँचाने के लिए. उसकी आस हवा मे 5-6 बार उठी और फिर धीरे धीरे उसका शरीर ठंडा पड़ने लगा. जैसे ही आख़िरी धार उसकी पुसी ने छोड़ी आशना की आँखों के आगे बिहारी का चेहरा घूम गया. आशना ने डर कर एकदम आँखे खोल दी. धीरे धीरे उसने अपनी सांसो पर काबू पाया और फिर अच्छे से रज़ाई लेकर नींद की आगोश मे चली गई.

अपने ही घर मे आशना का अपने साथ यह पहला प्यार था. वो जानती थी कि ऐसे कई दिन आएँगे जब उसे अपना सहारा बनना पड़ेगा क्यूंकी आशना जब भी फ्री होती उसे मास्टरबेशन करने का मन करता. उसे देख कर कोई सोच भी नहीं सकता था कि इतनी भोली भली सी दिखने वाली लड़की सेक्स मे इतना इंटेरेस्ट रखती होगी.
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