चूतो का समुंदर

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Ankit
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Re: चूतो का समुंदर

Post by Ankit »

वसीम- मैं सच बोल रहा हूँ...मैने सिर्फ़ सरिता को गोली मारी...मुझे नही पता कि वो सक्श कौन था...और किसने बाकी सबको मारा...और ना ही ये पता है कि आरती की बेटी कहाँ गई...सच मे...नही जानता...

मैं(अपना चेहरा सॉफ कर के)- आह..ओके...तो अब ये भी बता दे...कि एक सीधे-साधे किसान...अली ख़ान का बेटा....आख़िर इतना पैसे वाला कैसे हो गया....ह्म्म...सीधे शब्दो मे कहूँ..तो मैं सरफ़राज़ से वसीम बनने की कहानी जानना चाहता हूँ....

वसीम(हैरानी से)- इससे तुझे क्या लेना -देना....

मैं(कड़क आवाज़ मे)- जितना पूछा उतना बोल...कोई सवाल नही....क्योकि सवाल करने की हालत मे तू है ही नही...समझा...अब बोल...

वसीम(मुझे घूर कर)- तो सुन...सरफ़राज़ से वसीम ऐसे ही नही बन गया मैं...बहुत पापड वेले है...और बहुत से पाप भी किए है....समझा....


मैं- जानता हूँ...तू कमीना है...ये मत बता...ये बता कि क्या-क्या कमीनपन किया तूने...और किसके साथ...चल शुरू हो जा.....

वसीम(चेयर पर टिक कर)- क्या जानना है तुझे....लंबी कहानी है....कहाँ से शुरू करूँ...

मैं- हम दोनो ही जानते है कि मैं क्या जानना चाहता हूँ...अब देर मत कर....बोलना शुरू कर....

वसीम- एक सिगरेट पी लू...फिर बताता हूँ...

और वसीम ने सिगरेट सुलगाई और कस मार कर बोलना शुरू किया....


तो ये बात जबसे शुरू होती है...जब सरफ़राज़ अपना सब कुछ खो चुका था...

अपने परिवार की मौत के बाद सरफ़राज़ आज़ाद के पास गया....उससे लड़ा भी...पर आज़ाद सॉफ मुकर गया....आज़ाद का कहना था कि उसने आग नही लगाई....

सरफ़राज़ ने उसके बाद गाओं वालो से पूछ-ताछ की...पर पूरे गाओं मे आज़ाद का इतना रूतवा था कि कोई भी सच नही बोला....

हताश होकर सरफ़राज़ ने गाओं की सारी ज़मीन बेच दी...और वापिस सहर आने का मन बना लिया....

पर उसी वक़्त उस से मिलने सरिता आ पहुँची....और सरिता की बात सुनने के बाद सरफ़राज़ ने आज़ाद को ख़त्म करने का मन बना लिया...

पर आज़ाद को ख़त्म करने के लिए सिर्फ़ मन बनाना काफ़ी नही था....सबसे पहले आज़ाद के रुतवे को ख़त्म करना ज़रूरी था ...

इसलिए सरफ़राज़ ने आज़ाद पर नज़र रखना शुरू कर दिया...और एक दिन रिचा के साथ आज़ाद की रास लीला देख ली...

फिर क्या था...सरफ़राज़ ने रिचा को भी अपने साथ मिला लिया...और सरिता तो पहले से ही आज़ाद के खिलाफ थी...तो अब आज़ाद के खिलाफ तीन लोग हो गये...

फिर तीनो के बीच ये तय हुआ कि पहले आज़ाद के रुतवे को ख़त्म करना है और फिर उसकी दौलत को...और अंत मे उसकी फॅमिली को ....

पर उसके पहले आज़ाद की फॅमिली को तोड़ने का एक मौका मिल गया....और उस दिन आज़ाद की सबसे बड़ी ताक़त..उसका बड़ा बेटा आकाश...आज़ाद से अलग हो गया...

पर आकाश और आरती के जाने के बाद भी सरफ़राज़ के मन का कुछ नही हुआ...मतलब ये कि आज़ाद के रुतवे मे कोई कमी नही आई. ..

और आकाश भी सहर मे अमीर होता गया...जिसे सरफ़राज़ सबसे बड़ा दुश्मन मानता था..क्योकि आलाश ने आमिर को आरती से दूर रहने की धमकी दी थी...ये बात सरफ़राज़ को रिचा से पता चली थी...

तब सरफ़राज़ ने डिसाइड किया कि पहले वो खुद पैसे वाला बनेगा और फिर आकाश को तोड़ेगा...

सरफ़राज़ अपने प्लान मे लग गया....और उसे फ़ायदा हुआ अनवर के भरोशे का...

अनवर के हाथ मे जावेद ने पूरा बिज़्नेस दे रखा था...और अनवर आँख बंद कर के सरफ़राज़ की बात मान लेता था...

इसी वजह से सरफ़राज़ ने अनवर को धोखा दे कर कई घपले किए और दौलत जोड़ने लगा...

पर हर चोर एक दिन पकड़ा जाता है...वैसा ही सरफ़राज़ के साथ हुआ...

किसी ने जावेद को सरफ़राज़ के कारनामे सुना दिए....और जावेद ने बिना अनवर को बताए इंक्वाइरी करनी शुरू कर दी...

पर तभी आनवार की मौत हो गई और जावेद चुप रह गया....

और फिर जावेद ने ही सरफ़राज़ को सबनम से सदी करने को मना लिया...

फिर कुछ दिन सब ठीक चला...पर एक दिन सरफ़राज़ को पता चला कि जावेद अपना सबकुछ सबनम और उसके बच्चों के नाम करने वाला है....

तो सरफ़राज़ से रहा नही गया और उसने जावेद का आक्सिडेंट करवा दिया...जिसमे जावेद की बीवी भी मारी गई...



पर सरफ़राज़ के अरमान तब भी पूरे नही हुए...क्योकि वसीयत के मुताबिक सब कुछ अनवर के नाम था ..जो अब सबनम और उसके बच्चों के नाम हो गया...तो मजबूरी मे सरफ़राज़ को सबनम के साथ गुज़ारा करना पड़ा....

पर इसी बीच सरफ़राज़ ने चुपके से अपनी प्रेमिका सलमा से शादी कर ली थी...और उसने तय कर लिया था कि वो दोनो के साथ जिंदगी गुजारेगा...बिना किसी को खबर लगे....

पर सरफ़राज़ को झटका तब लगा...जब सादिया के साथ बने उसके नाजायज़ रिस्ते से सादिया प्रेगनेंट हो गई...
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Ankit
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Re: चूतो का समुंदर

Post by Ankit »

पहले तो सादिया ने बात को संभाल लिया कि वो ये बच्चा सकील का ही बताएगी...पर उसी दौरान सरफ़राज़ को पता चला कि सादिया के प्रेगनेंट होते ही सादिया और सबनम के माँ-बाप ने सब कुछ दोनो बहनो के नाम कर दिया....

बस...सरफ़राज़ का ईमान फिर डोल गया और उसने परवेज़ की दौलत के साथ सकील की दौलत भी हथियाने का प्लान कर लिया...

और एक दिन एक और आक्सिडेंट करा कर तीनो को दुनिया से विदा कर दिया....

अब सबनम के साथ सादिया भी सरफ़राज़ के हाथ मे थी और उनकी दौलत भी...

तो सरफ़राज़ सब कुछ बेच कर उस सहर मे आ गया जहाँ आकाश रहता था...एक नये काम और नये नाम के साथ....

ये थी कहानी....सरफ़राज़ के वसीम बनने की....

पूरी कहानी सुन कर वसीम मुझे देखने लगा...जबकि मेरी आँखो मे गुस्से की वजह से खून उतर आया था...

वसीम- सुन लिए मेरे कारनामे....आआ...

वसीम के बोलते ही मैने उसके मुँह पर एक मुक्का जड दिया....

मैं- तू इतना बड़ा कमीना निकलेगा....साले....

और फिर एक और मुक्का वसीम के मुँह पर पड़ा...पर वसीम हँसने लगा...

वसीम- ह...हहा....तू...तू अभी जानता ही क्या है...हाहाहा...हाँ...

मैं(गुस्से से सासे भरते हुए)- सही कहा...मैने सोचा भी नही था कि तू इतना ज़ालिम होगा कि खुद को पालने वाले को मार देगा...

वसीम- हह...नही-नही...मैने इनको मारा नही...मरवाया है...बस...एक को छोड़ कर....

मैं(हैरानी से)- तो क्या अनवर...उसे तूने मारा था...

वसीम(खड़ा हो कर)- हाँ...इन्ही हाथो से.....बहुत..बहुत..बेदर्द मौत दी थी उसे...

मैं(चिल्ला कर)- कमीने....वो तुझ पर भरोशा करता था और उसे तूने...

वसीम हँसते हुए मुझे देखने लगा और मेरी बात काट कर बोला...

वसीम- भरोशा...हाँ...भरोशा तो था ...पर क्या करे....मुझे दौलत चाहिए थी...दौलत...और..फिर उसे चुप भी तो करना था...सब जान जो गया था...मेरा प्लान...मेरी सोच..सब...

मैं- तो उसका आक्सिडेंट...

वसीम(हँसता हुआ)- वो तो बस दिखाने के लिए....नही तो मैं फस जाता तो...क्या करूँ...जोश मे आ कर बीच रास्ते मे ही उसे...

मैं वसीम की बात सुन कर शॉक्ड था...वो कितनी आसानी से हँसते हुए अनवर के मर्डर को बता रहा था.....

वसीम(हँसता हुआ)- उस दिन मैने उसे बहुत समझाया...पर वो तो सराफ़त का पुतला था...माना ही नही...

फिर मैं क्या करता...मेरे पास एक चाकू था....बड़ा नुकीला....

बस...गुस्से मे आ कर मैने उसके जिस्म मे एक के बाद एक...घापघाप चाकू घूप दिए....

एक..फिर...दो..फिर तीन...बस भोक्ता रहा...भोक्ता रहा....जब तक उसकी सासे उसके हलक से निकल नही गई...

वसीम यहाँ अपने कुकर्म को हँसते हुए खड़े-खड़े सुना रहा था और वहाँ मेरे चेहरे पर खून उतर रहा था....

वसीम- मुझे याद भी नही कि साले को कितनी बार चाकू मारा....मैं तो बस घोपता गया...घोपता गया...घोपता....आआआआआहह...

""ढ़हाायययययययययईए""

""आअहह....""

""ढ़हााआयययययन्न्नणणन्""

""आआहह....""

तभी अचानक रूम मे तीन फिरे हुए और वसीम के जिस्म मे छेद कर गये...

आवाज़ सुन कर हम सबकी नज़रे बेसमेंट के एंट्रेन्स पर घूम गई...

पर इससे पहले कोई कुछ बोलता...2 फाइयर और हुए और वसीम के जिस्म को चीर गये.....

हम सब अवाक हो कर सामने वाले सक्श को देख ही रहे थे कि तभी वसीम कराहता हुआ मुड़ा और फिर एक फाइयर हुआ...

लास्ट फाइयर वसीम के माथे पर होल बनाता हुआ निकल गया और इसी के साथ वसीम कटे पेड़ की तरह फर्श पर जा गिरा.....

और हम सब शॉक्ड रह गये....

मैं कभी वसीम को देखता तो कभी गोली चलाने वाले को....लेकिन मेरे मुँह से एक शब्द भी नही निकल रहा था....

समझ ही नही आ रहा था कि मैं क्या बोलू...क्या करूँ.....?????????
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shubhs
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Re: चूतो का समुंदर

Post by shubhs »

वसीम का मुंहबोला बेटा और अवि का मित्र
सबका साथ सबका विकास।
हिंदी हमारी राष्ट्रभाषा है, और इसका सम्मान हमारा कर्तव्य है।
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